भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Monday, July 21, 2008
विदेह वर्ष-1मास-1अंक-2 (15.01.2008)8.बालानांकृते- डाकूरौहिणेय
डाकूरौहिणेय
मगध देशमे अशोकक पिता बिम्बिसारक राज्य छल। संपूर्ण शांति व्याप्त छल मुदा एकटा डाकू रौहिणेयक आतंक छल।ओकर पिता रहय डाकू लौहखुर। मरैत-मरैत ओ’ कहि गेल जे महावीर स्वामीक प्रवचन नहि सुनय आ’ जौँ कतओ प्रवचन होय तँ अप्पन कान बन्द क’ लय, अन्यथा बर्बादी निश्चित होयत। रौहिणेय मात्र पाइ बला के लुटैत छल आ’ गरीबकेँ बँटैत छल,ताहि द्वारे गामक लोक ओकर मदति करैत रहय आ’ ओ’ पकड़ल नहि जा सकलछल। एक बेर तँ ओ’ अप्पन संगीक संग वाटिकामे पाटलिपुत्रक सभसँ पैघ सेठक पुतोहु मदनवतीक अपहरण कय लेलक, जखन ओकर पति फूल लेबाक हेतु गेल रहय। जखन ओकर पति आयल तँ रौहिणेयक संगी ओकरा गलत जानकारी दय भ्रममे दय देलकैक। ओकरा बाद सुभद्र सेठक पुत्रक विवाह रहय।बराती जखन लौटि रहल छल तखन रौहिणेय सेठानी मनोरमाक भेष बनेलक आ’ ओकर संगी नर्त्तक बनि गेल।नकली नर्त्तक जखन नाचय लागल, तखन रौहिणेय भीड़मे कपड़ाक साँप चूड़ि देलक। रौहिणेय गहनासँ लदल वरकेँ उठा निपत्ता भय गेल। राजा शहरक कोतवालकेँ बजेलक।ओ’ तँ रौहिणेयकेँ पकड़बामे असमर्थता व्यक्त कएलक,आ’ कोतवाली छोड़बाक बातो कएलक। मंत्री अभयकुमार पाँच दिनमे डाकू रौहिणेयकेँ पकड़ि कय अनबाक बात कहलक। राजा ततेक तामसमे छलाह जे पाँच दिनका बाद डाकू रौहिणेयकेँ नहि अनला उत्तर अभयकुमारकेँ गरदनि काटि लेबाक बात कहलन्हि।
डाकू रौहिणेयकेँ सभ बातक पता चलि गेल छलैक।अभयकुमार जासूस सभ लगेलक। रौहिणेयकेँ मोनमे अयलैक जे सेठ साहूकार बहुत भेल आब किए नहिराजमहलमे डकैती कएल जाय। ओ’ राजमहल रस्ता पर चलि पड़ल। रस्तामे वाटिकामे महावीरस्वामीक प्रवचन चलि रहल छल। रौहिणेय तुरत अपन कान बन्द कए लेलक। मुदा तखने ओकरा पैरमे काँट गरि गेलैक। महावीर स्वामी कहि रहल छलाह-“देवता लोकनिकेँ कहियो घाम नहि छुटैत छन्हि।हुनकर मालाक फूल मौलाइत नहि अछि,हुनकर पैर धरती पर नहि पड़ैत छन्हि आ’ हुनकर पिपनी नहि खसैत छन्हि। “ तावत रौहिणेय काँट निकालि कान फेर बन्न कए लेलक आ’ राजमहलक दिशि चलि पड़ल।राजमहलमे सभ पहड़ेदार सुतल बुझाइत छल।मुदा ई अभयकुमारक चालि रहय।ओकर जासूस बता रहल रहय जे डाकू नगर आ’ महल दिशि आबि रहल अछि। जखने ओ’ महलमे घुसैत रहय तँ पहरेदार ललकारा देलक। ओ’ छड़पिकय कालीमंदिर मे चलि गेल। सिपाही सभ मंदिरकेँ घेरि लेलक। ओ’ जखन देखलक जे बाहरसँ सभ घेरने अछितँ सिपाहीक मध्यसँ मंदिरक चहारदिवारी छड़पि गेल।मुदा ओतहु सिपाही सभ छल आ’ ओ’ पकड़ल गेल। राजा ओकरा सूली पर चढ़ेबाक आदेश देलकैक।मुदा मंत्री कहलन्हि जे बिना चोरीक माल बरामद केने आ’ बिना चिन्हासीक एकरा कोना फाँसी देल जाय।रौहिणेय मौका देखि कय गुहार लगेलक जे ओ’ शालि
गामक दुर्गा किसान छी,ओकर घर परिवार ओहि गाममे छैक।ओ’तँ नगर मंदिर दर्शनक हेतु आयल छल,ततबेमे सिपाही घेरि लेलकैक। राजा ओहि गाममे हरकारा पठेलक,मुदा ग्रामीण सभ रौहिणेयसँ मिलल छल।सभ कहलकैक जे दुर्गा ओहि गाममे रहैत अछि मुद तखन कतहु बाहर गेल छल। अभयकुमार सोचलक जे एकरासँ गलती कोना स्वीकार करबाबी।से ओ’ डाकूकेँ नीक महलमे कैदी बनाकय रखलक।डाकू महाराज ऐश आराममे डूबि गेलाह। अभयकुमार एक दि न डाकूकेँ खूब मदिरा पिया देलन्हि।ओ’जखन होशमे आयल तँ चारू कातगंधर्व-अप्सरा नाचि रहल छल। ओ’ सभ कहलकैक जे ई स्वर्गपुरी थीक आ’ इन्द्र रौहिणेयसँ भेँट करबाक हेतु आबत बला रहथि। रौहिणेय सोचलक जे राजा हमरा सूली पर चढ़ा देलक।मुदा ओ’ सभतँ मंत्रीक पठाओल गबैया सभ छल। तखने इंद्रक दूत आयल आ’ कहलक जे रौहिणेयकेँ देवताक रूप मे अभिषेक होयतैक,मुदा ताहिसँ पहिने ओकरा अपन पृथवीलोक पर कएल नीक-अधलाह कार्यक विवरण देबय पड़तैक।तखन रौहिणेयकेँ भेलैक जे सभटा पाप स्वीकार कय लय।मुदा तखने ओ देखलक जे दैव लोकक जीव सभ घामे-पसीने अछि,माला मौलायल छैक,पैर धरती पर छैक आ’पिपनी उठि-खसि रहल छैक।ओ’ अपनपुण्यक गुणगाण शुरू कए देलक।अभयकुमार राजाकेँ कहलक जे अहाँ जौँ ओकरा अभयदान दय देबैक तँ ओ’ सभटा गप्प बता देत। सैह भेलैक। रौहिणेय
नगरक बाहरक अपन जंगलक गुफाक पता बता देलकैक,जतय सभटा खजाना आ’ अपहृत व्यक्ति सभ छल। राजा कहलन्हि जे किएक तँ ओकरा अभयदान भेटि गेल छैक ताहि हेतु ओ’ सभ संपदा राखि सकैत अछि।मुदा रौहिणेय कोनोटा वस्तु नहि लेलक।ओ’ कहलक जे जाहि महावीरस्वामीक एकटा वचन सुनलासँ ओकर जान बचि गलैक,तकरदीक्षा लेत आ’ ओकर सभटा वचन सुनि जीवन धन्य करत।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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