भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Friday, July 04, 2008
विदेह दिनांक 15 फरबरी, 2008 वर्ष: 1 मास: 2 अंक: 4http://www.videha.co.in/
विदेह दिनांक 15 फरबरी, 2008
संपादकीय
वर्ष: 1 मास: 2 अंक: 4
विदेहक एहि अंकमे सभ नियमित स्तंभ देल गेल अछि। आब ई पत्रिका चलि पड़ल अछि। पहिलुका अंक सभमे किछु टंकणक अशुद्धता दृष्टिगोचर भेल छल। एहि अंकमे ओकर विशेष ध्यान राखल गेल अछि, कारण साहित्यिक पत्रिकामे अशुद्धिक कोनो स्थान नहि छैक।
विश्वक कोन-कोनसँ ई-मेल प्राप्त भेल, आ’ हम आह्लादित भय गेल छी। ई पत्रिका बिना कोनो विलंबक सालक- साल चलैत रहत, से हम अपने लोकनिकेँ विश्वास दैत छी, आ’ ओ’ आबय बला काल सिद्ध करत।
विशेष की कहू। अगिला सप्ताह हम दरभंगा जायब, अपन भतीजीक विवाहमे। ओतय मिथिला रिसर्च इंस्टीट्युट आ’ संस्कृत विश्वविद्यालयक भ्रमण करब आ’ देखैत छी, जे कोन नव अलभ्य चीज लभ्य होइत अछि।
चित्रक पौतीकेँ दू भाग कए देल गेल अछि, मिथिलाक खोजमे चित्रकलाक संग पुरातत्त्वक वस्तु सभक आ’ दर्शनीय स्थान सभक संकलन अछि। मिथिला रत्नमे ऐतिहासिक आ’ वर्त्तमान महापुरुषक चित्रक प्रदर्शनी अछि।एहि संकलनकेँ एहिना सहयोग दय बढ़ाऊ। मैथिलीमे एनीमेशनक घोर अभाव अछि, आ’ जौँ कही जे अछिये नहि, तँ झूठ नहि होयत। संगीत आ’ संस्कृत शिक्षा सेहो ध्वन्यात्मक सामग्रीक बिना अपूर्ण लगैत अछि। अहू दुनू दिश हमर प्रयास शीघ्रे जायत, अपने लोकनिसँ तकनीकी सहयोगक आशा करैत छी। हमर इच्छा अछि, जे बालानां कृतेमे देल गेल खिस्साकेँ एनीमेट करी।
डा. धनकर ठाकुर हमरा एकटा ई-मेलमे हमर गामक (मेहथ, झंझारपुर) एकटा नाटककार आनंदक विषयमे पुछने छलाह, जे ओ’ आइ काल्हि कतय छथि। से ओ गामेमे रहैत छथि। संभव होयत तँ हुनकर कोनो कृति शीघ्रे ‘विदेह’मे ई-प्रकाशित होयत। हम 1993-94 मे राँचीमे नोकरी करैत छलहुँ। अपन एकटा परिचितक संग श्यामलीमे एक गोट डॉक्टर साहेबसँ भेँट भेल छल, जनिकर कनियाँ कलकत्तामे पढ़ि रहल छलखिन्ह। पता नहि ओ’ धनकरे जी छलाह आ’ कि क्यो आर रहथि। अस्तु धनकरजीक पिताजीकेँ भगवान उच्च भगवत पद देथुन्ह, से कामना करैत छी।
मिथिला आ’ मैथिलीसँ संबंधित साइटक संकलन मुख्य पृष्ठ पर अछि। श्री पद्मनाभ मिश्रजीक लिंक ( ऑनलाइन मैथिली लिखबाक हेतु), श्री राजीव रंजन लालक विद्यापति डॉट ओआरजी इत्यादि लिंक मुख्यपृष्ठ पर बिना हिनका लोकनिकेँ पुछने दाबीक संग रखने छी। एनीमेशन आ’ माइक्रोसॉफ्ट एस. क्यु. एल. डाटाबेसमे ई लोकनि, आ’ ज्योति नारायण लालजी,ब्रज कर्ण, मणि ठाकुर आ’ आन पाठक हमरा तकनीकी मदति करताह से हम आशा करैत छी। हम पत्रिकाक पुरान अंक पी.डी.एफ. फॉरमेटमे/ किंवा एच.टी.एम.एल. फॉर्मेटमे विदेहक साइट पर राखय चाहैत छी। संगहि एनीमेशन आ’ ऑडियो साइट पर कोना राखल जाय से सूचित करू। श्री गंगेश गुंजनक ईमेल आ’ मार्ग निर्देशन प्राप्त भेल, ओ’ अपन रचना पठेबाक आश्वासन सेहो देलन्हि अछि। विद्यानंद जी पञ्जीकार जी अपन निबंध पठेने छथि, से आब बुझना जाइत अछि जे रचनाक भरमार लागय बला अछि। सभटा रचना उच्चस्तरीय रहत आ’ पत्रिका पाक्षिक आधार पर नियमित चलैथ रहत से आशा करैत छी।
साइटक खोज सर्च इंजन पर आसानीसँ होय ताहि हेतु किछु विशेष प्रयास कएल गेल अछि। एहि संबंधमे कोनो तकनीकी सुझाव जौँ अपनेक समक्ष होय, तँ से आमंत्रित अछि।
अपनेक रचनाक आ’ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
नई दिल्ली 15/02/08 গজেন্দ্র ঠাকুব
विदेह 15 फरबरी 2008 वर्ष 1 मास 2 अंक 4
एहि अंकमे अछि:-
1. शोध लेख: मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
2. उपन्यास सहस्रबाढ़नि (आँगा)
3. महाकाव्य
महाभारत (आँगा)
4. कथा
5. पद्य (आँगा)
6. संस्कृत शिक्षा (आँगा)
7. मिथिला कला- चित्रकला (आँगा)
8. संगीत शिक्षा
9. बालानां कृते
10. पंजी प्रबंध (आँगा) - लेखक- विद्यानंद झा पञ्जीकार
11. मिथिला आ’ संस्कृत
12. भाषा आ’ प्रौद्योगिकी
13. रचना लिखबासँ पहिने... (आँगा)
14. प्रवासी मैथिल English मे
1. शोध लेख: मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
अग्ना-शैला सँ शुरू होइत अछि दोसर भाग। 10000 ई.पू.।भाषाक आरंभक प्रारंभ मायानन्द मिश्र एहिमे प्रकट कएने छथि।एहिमे बड्ड नीकजेकाँ संकेत भाषासँ ध्वनिक संबंध परिलक्षित कएल गेल अछि। चलंत सँ स्थिर जीवनक शुरुआत सेहो देखायल गेल अछि। तकर बाद शैला कराली अध्यायक प्रारंभ होइत अछि। 7500 वर्ष पूर्वसँ। गौ पालनक चर्चा होइत अछि, गायक संख्यामे पर्याप्त वृद्धि भेल छल। सभ रहथि चरबाक, चर्म वस्त्र्धारी आ’ कटिमे पाथरक हथियार। भेड़, बकरी आ’ सुग्गर छल किछु आन पोसिया जंतु जात। घासक रस्सी, त्रिशूल आ’ नागदेवक चर्चा होइत अछि। बाक नाम आब भ’ जाइत अछि, ओजा। दलाग्राक नाम पड़ैत अछि शैला कराली।पशुक संख्या बढ़ल तँ पशुक चोरि सेहो शुरू भ’ गेल।पीपरक गछक नीचाँ बैठकीक शुरुआत भेल। करालीकेँ अंबा नाम पड़ल।
कराली-महेष अध्यायमे 5000 ई.पू. मे कृषिक प्रारम्भ देखाओल गेल अछि। महेष बीया बागु कए रहल छथि। जवकेँ पका क’ खयबाक चर्चा होइत अछि। आब धारक नाम सेहो राखय जाय लागल।महेष कुल द्वारा पोस केर माँस खेनाइ तँ एकदम निषिद्ध भ’ गेल।ओजा लिंग स्थानमे बैसल रहैत छलाह।
तकर बाद महेष-पारवती अध्याय शुरु होइत अछि 4 सँ 5 हजार वर्ष पूर्व।धानक फसिलक प्रारंभ भेल।पारवती जहिया अयलीह तहिया लाल माटि माथमे ओतुक्का प्रथाक अनुसार लगा देल गेल। पुत्रक नाम गणेष पड़ल। एहिसँ पहिने संतानक परिचय नहि देल जाइत छल।
2.उपन्यास
सहस्रबाढ़नि
हमर पुरान जीवनक ई एकटा नीक अनुभव छल। बादमेतँ दुर्घटना तँ हँसी-खेल भ’ गेल, नहि एकरासँ कोनो दुःख होइत छल नहिये कोनो लक्ष्यक प्रति तेना भ’ कय पड़ैत छलहुँ। खेल सेहो वैह नीक लागय जाहिमे टीम नहि रहैत छल वरन व्यक्तिगत स्पर्धा बला क्रीडा नीक लगैत छल। एकर कारण सेहो छल, किएकतँ एहिमे टीमक प्रदर्शन पर व्यक्तिगत प्रदर्शन निर्भर नहि करैत छल आ’ जे बड़ाइ आकि बुराइ भेटैत छल से व्यक्तियेकेँ भेटैत छल। अहाँ ई नहि कहि सकैत छी, जे ओकरा कारण हम हारलहुँ, हमतँ नीक प्रदर्शन कएने रही। स्कूल आ’ पढ़ाइक अतिरिक्त ओना क्रीडाक स्थान न्यूने छल। लक्ष्यक प्रति जे निरपेक्षता बादमे हमरामे आयल छल, से ओहि समयमे नहि छल। ओहि समयमे तँ जगतकेँ जितबाक धुनि छल। द्वितीय स्थानक तँ कोनो प्रश्ने नहि छल। द्वितीय स्थानक माने छल अनुत्तीर्ण भेनाइ। खेलोमे,पढ़ाइयोमे, मारि-पीटमे सेहो।
गाम आन-जान खूब होइत छल। ओहि क्रममे गाम जाइत रही तँ महादेव पोखरि परक स्कूलमे काका शिक्षककेँ कहि अबैत छलाह, आ’ हम चुट्टीयो मे स्कूल जाइत रही। कबड्डी, सतघरिया, लाल-छड़ी ई सभ खेलक नामो तँ शहरक बच्चाकेँ बूझल नहि होयतैक। अस्तु ओतुक्का पढ़ाइक सभ प्रणाली अलग छला। प्रतिदिन करची कलमसँ लिखना लिखयमे देह सिहरि जाइत छल, आ’ रोजनामचा सेहो एहि प्रारे लिखैत रही-भोरे-सकाले उठलहुँ नित्य कार्यक उपरांत जलखइ क’ कय पढबाक हेतु बैसलहुँ, फेर स्कूल गेलहुँ, ओतय सँ एलहुँ, पुनः खेनाइ खेलहुँ। फेर स्कूल गेलहुँ, फेर गाम पर एलहुँ अ’ फेर जलखै कएलहुँ। फेर खेलाइ लेल गेलहुँ। फेर आबि कय लालटेनक शीशाकेँ साफ केलहुँ, फेर पढ़लहुँ आ’ फेर भगवनक नाम लय सूति गेलहुँ।रवि दिनक छुट्टीक बदला सोम दिन दू दिनक रोजनामचा लिखि कए ल’ जाय पड़ैत छल। 15 अगस्तक उत्साह सेहो दोसरे तरहक छल। साँझ-आ’ भोरमे 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस, भारत माताक जय केर संग सभ महापुरुष लोकनिक जय करैत जाइत छलहुँ। मुदा मास्टर साहबक ई गप नहि बुझना गेल छल जे मारि-पीट नहि करैत जइह’। मुदा जखन भोरमे जयक नाद गामक सीमान पर सँ जाय काल जखन भेल त्खन पता चलल जे ई गप मास्टर साहब किएक कहने छलाह। महिनाथपुरक स्कूलक बच्चा सभ जखने ओम्हरसँ अबैत रहय आकि मारि बजरि गेल। कोनहुना झोप ताप कएल गेल। फेर गाम पर जे अएलहुँ तखन पुरनका बैचक विद्यार्थी सभ अपन खिस्सा शुरू कएलक ज कोना पोखरिमे घुसा-घुसाकेँ केराक थम पानिमे द’ कय स्वतंत्रता दिवस दिन मार्ने रहथिन्ह अनगौआँ केँ, फेर ओहो सभ दोसर साल बदला लेबाक ताकिमे छल मुदा अहू बेर...।
3. महाकाव्य
महाभारत (आँगा) ------
यश छल सुशासनसँ आ’ छल जन-जीवन अति संपन्न।
छल अहिना दिन बीति रहल अयलाह नारद एकदिन जखन, स्वागत भेलन्हि खूब हुनकर ओहो रहथि आनंदित तखन। देखल शील-गुण पांडवक मुदा कहल द्रौपदीसँ सुनू बात ई, छी पत्नी पांडवक मुदा निवासक नियम किए नहि बनेने छी, नारदक बात समीचीन छल से नियम बनेलथि पाँचो गोटे, एक-एक मास रहथु सभ लग द्रौपदी नियम नहि भंग हो। बारह वर्ष पर्यंत छोड़य पड़त गृह त्रिटि भेल जौँ, पालन नियमक होमय लागल किछु काल धरि ई, कनैत अएलाह विप्र एक अर्जुन पुछलन्हि बात की।
चोर छल चोरेने गौकेँ हाक्रोस विप्र छल करि रहल, शस्त्र छल गृहमे द्रौपदी संग युधिष्ठिर जे रहि रहल। विप्रक शापसँ नीक सोचि मूरी झुकेने गेल अर्जुन, शस्त्र आनि छोड़ायल गौकेँ घुरि आयल गृह तखन।
माँगल आज्ञा युधिष्ठिरसँ दिय’ गृहत्यागक आज्ञा, नियम भंगक कएल हम अपराध, की बाजल अहाँ।
अर्जुन ई अपराध लागत जखन पैघक द्वारा होयत, छोट भाय कखनो अछि आबि सकैत बड़ भाय घर।
मुदा निकलि गेलाह अर्जुन आज्ञा लय माता भायसँ, भ्रमण देश-कोसक करैत पहुँचल हरिद्वार गंग तट, स्नान करैत कल नजरि छल नागरा कान्याक जौँ, कोना बचि सकैत पहुँचि गेलाह पातालक निकट।
विवाह प्रार्थना स्वीकारल अर्जुन ई छल वरदान भेटल, जलमे रस्ता बनत चलि सकब अहाँ व्यवधान बिन।
मणिपुर पहुँचि जतय चित्रांगदा राजकन्या छलि रूपवती, विवाहक प्रस्ताव अर्जुनक स्वीकारल मानल राजा सशर्त, दौहित्र होयत हमर वंशज भेल ई विवाह तखन जा कय।
चित्रांगदाक पुत्र भेल बभ्रुवाहन नाम राखल गेल जकर ई, परम प्रतापी पराक्रमी योद्धा बनल बालक पाछू सुनय छी।
फेर ओतयसँ निकलि अर्जुन पहुँचल प्रभास तीर्थ द्वारका निकट,
शस्त्र-प्रदर्शनक आयोजन केलन्हि कृष्ण निकट परवत रैवतक।
प्रेम देखि सुभद्रासँ कृष्ण छलाह सुझओने नव उपाय ई, अपहरण करब जीतब युद्ध यादवसँ बनत तखने बात ई।
बनलि सारथी वीर सुभद्रा संग्राम छल बजरल जखन, बुझा-सुझा मेल छल करओने कृष्ण जा कय तखन।
विवाह भेल तदंतर अर्जुन संग सुभद्रा गएलाह पुष्कर, पुरल जखन ई वनवास कृष्णक संग पहुँचल इंद्रप्रस्थ।
देखि नववधू प्रसन्न कुंती आनंद नहि समटा रहल, द्रौपदीसँ पाँच पुत्र, आ’अभिमन्यु सुभद्रासँ भेल छल।
बीति छल रहल दिन जखन अएलाह जीर्ण शरीर अग्नि, रोगक निदान छल खांडव वन रहय छल ओ’सर्प तक्षक।
इंद्रक अछि मित्र ओ’ जखन करैत छी जरेबाक हम सूरसार, नहि जरबय दैत छथि इंद्र, करू कृपा अहाँ हे इंद्र अवतार ।
छी प्रस्तुत मुदा अस्त्र अछि नहि हमरा लग ओतेक, इंद्र युद्धक हेतु चाही योग्य शस्त्रक मात्रा जरूरी जतेक।
देल गांडीव धनुष तूणीर अक्षय वरुणक रथ नंदिघोष, चलल डाहबाक हेतु अग्नि पेलाक बाद अर्जुनक तोष।
इंद्र मेघकेँ पठओलन्हि कृष्ण कएल सचेत जे, वायव्यक प्रयोग कएल अर्जुन मेघ बिलायल से।
तक्षकक मृत्योपरान्त इज़ंद्र भेलाह प्रकट ओतय, माँगल अर्जुन दिव्यास्त्र हुनकासँ मौका देखि कय।
जाऊ शिवक उपासना करू दय सकैत छथि वरदान ओ’, छल मय आयल अग्निक कोपसँ बचि लग अर्जुनक ओ’।
सेवा करबाक बात छल मोनमे लेने कृतज्ञ छल ओ’, बनाऊ सभा भवन अनुपम नहि बनल जे कतहु हो’।
4.कथा इमानदारीक ग्लैमर
घर अबैत काल मोन कोना दनि क’ रहल छल। सभ क्यो एक दोसरा सँ किछु असंभव घटित होयबाक गप क’ रहल छलाह। हम दुनू भाय सातम कक्षामे पढ़ैत छी, संगहि-संग। मुदा आइ पैघ भायक पेटमे दर्द छल से ओ’ टिफीनक बाद छुट्टी ल’ घर चलि गेल छलाह। स्कूलमे सभकेँ हँसैत देखैत छी, तँ अपन घरक स्थिति यादि पड़ि जाइत अछि।ईर्ष्य़ा सेहो होइत अछि आन बच्चाक भग्य पर। फेर मोनमे ईहो होइत अछि, जे हमरे सभ जेकाँ परिस्थिति होयत एकरो सभक। मुदा झुट्ठे प्रसन्नताक नाटक करैत जाइत अछि।घरमे माय बापक कलहक बीच डरायल सन रहैत छी। लगैत रहैत अछि जे ई सभ परिस्थिति कहियो खत्म नहि होयत। नहितँ दोसरसँ गप्प कय सकैत छी, नहिये ककरो अपन मोनक गप्पे कहि सकैत छी। बेर-बखत कहियो अपन सहायताक हेतु सेहो सोर नहि क’ सकैत छी। माय ठीके घरघुसका, मुँहदुब्बर आदि विशेषणसँ विभूषित करैत छलीह। साँझमे घुमनाइ आकि दुर्गापूजाक मेला गेनाइ, ई सभ बात हमरा सभक जीवनसँ दूर छल। एक बेर भूकम्प जेकाँ आयल छल, सभ क्यो ग्रील तोड़ि कय बहरायल, मुदा हम खाट पर पड़ले रहि गेलहुँ। किछुतँ अकर्मण्यतावश आ’ किछु ई सोचि कय , जे की होयत घर टूटि देह पर खसत तँ समस्यासँ मुक्तियोतँ भेटत। एक बेर बाबूजीकेँ कटहरक कोआ खेलाक बाद पेट फूलि गेलन्हि, दू बजे रातिमे। ईहो नहि फुराइत छल, जे बगलमे श्रवनजीक बाबूकेँ बजा लियन्हि, जे कोनो डॉक्टरकेँ बजा देताह। फुरायलतँ छल, मुदा कहियो ग्प नहि छल, तँ आइ काज पड़ला पर कहियन्हि, से हियाऊ नहि भेल। माय केबाड़ पीटि कय पड़ोसीकेँ उठेलन्हि, कनैत खिजैत रहलीह। पड़ोसी डॉक्टरकेँ बजओलक, तखन जा’ कय बाबूजीक जान बाँचल। माय श्राप सेहो दैत रहल आ’ ईहो कहैत रहल जे पाँच वर्षक बेटा रहैत छैक तँ सभ भरोस दैत छैक, जे कनैत किएक छी, अहाँकेँ तँ पाँच वर्षक बेटा अछि। आ’ ई सभ .....जाह, अपने भोगबह हमतँ दुनियासँ चलि जायब। बहिन कॉलेजमे पढ़ैत छलीह। कॉलेजक रस्ता पैरे जाय पड़ैत छल। आ’ कॉलेजसँ आँगा स्कूल छल। बहिन कहलन्हि, जे अहूँ सभ संगे हमरा सभक संगे चलू। एक दिन हमरा सभ गेलो रही। मुदा गप बिनु केने हम दुनू भाँय आगू-आगू झटकैत चल गेलहुँ। मोनमे ईहो भव छल, जे छौड़ा सभ चीन्हि नहि जाय जे हमरा सभक ई बहिन छथि। आब ई सोचैत छी जे चिन्हिये जाइत तँ की होइत। अपन व्यक्तित्त्वक विकासक कमी छल ई? बादमे पैघ भेल छी तँ माँ-बापकेँ उकटैत छियन्हि, जे घरघुस्सू आ’ मुँहचुरूक संज्ञा जे देलहुँ अहाँ सभ, कहियो ई सोचलहुँ, जे कोनो पड़ोसीसँ गप्प नहि करबाक, संगी-साथी नहि बनयबाक, घूमब-फिरब नहि करबाक उपदेशक पाछू, जे अहाँ सभ उपदेश देलहुँ, ओकर पाँछा इच्छा समाजक बुराइसँ दूर करबाक उद्द्य्श्य छल, परंतु यैह तँ बनेलक मुँहचुरू आ’ घरघुस्सू हमरा सभकेँ। रातिमे माय बापक झगड़ाक सीन सपनामे देखैत छलहुँ आ’ डरा कय उठि जाइत छलहुँ। पैघ भाय बहिनसँ हमरा खूब झगड़ा होइत छल, मुदा एक बेर माय-बापक झगड़ाक पछति, खूब कानल छलहुँ, खूब बाजल छलहुँ। किछु दिनसँ भाय-बहिनसँ झगड़ाक बाद टोका-टोकी बन्द छल। सभ बेर वैह लोकनि आगाँ भ’ टोकैत छलाह। मुदा एहि बेर हम कानैत-कानैत बहिनकेँ टोकलियैक आ’ फेर कहियो बहिनसँ झगड़ा नहि भेल। भाय पिठिया छल, संगे पढ़ैत छल ताहि हेतु ओकरासँ तँ झगड़ा होइते रहल, मुदा कम-सम। एहि सभ गपक हेतु माँ पिताजीकेँ जिम्मेदार ठहराबथि, जे सभसँ पड़ोसी-संबंधी, जान-पहचानसँ गप करबासँ ओ’ कहियो नहि रोकलन्हि आ’ सभटा दोष पिताक छलन्हि। एक बेर ग्लोब किनबाक जिद्दक बाद कएक बेर समय देल गेल, जे आइ आयत काल्हि आयत। हम पढ़ब छोड़ि देलहुँ। आ’ तखन जा’ कय ग्लोब आयल। बहिन अखनो कहैत छथि, जे ग्लोब अनबाक जिद्दक पूरा भेलाक बाद हमर पढ़ाइक लय टूटि गेल। वर्गमे स्थान प्रथमसँ नीचाँ आबि गेल आ’ पिताजी एकर कारण तंत्र-मंत्रमे ताकय लगलाह। एकटा तांत्रिकसँ भेँट भ’ गेलन्हि। कतेक दिन हमरा सभ गाममे रहैत जाइत गेलहुँ। कॉलोनीमे एकटा एकाउन्टेंट बाबू छलाह। ओ’ बाबूजीकेँ कहलखिन्ह, जे अहाँ तँ घूस नहि लैत छी, मुदा अहाँक पत्नी अहाँक नाम पर घूस लैत छथि। सभ ट्रांसफरक बाद बिहार सरकारक नौकरीमे दरमाहा बंद भ’ जाइत छैक।आ’ ताहि द्वारे सभ ट्रांसफरक बाद बाबूजी हमरा सभकेँ गाम पठा दैत छलाह। एहि क्रममे हमरा सभ गाममे छलहुँ। पिताजीक चिट्ठी माँक नामसँ गाम आयल छल। हमही पढ़ने रही। बाबूजी मायकेँ लिखने छलाह, जे जौँ अहाँ पाइ लेने छी तँ लौटा दियौक। हम विजीलेंसकेँ लिखने छी, छापा पड़त तखन पाइ निकलत तँ बड्ड बदनामी होयत। एहि सभ परिस्थितिमे स्कूलमे हम घरक परिस्थितिकेँ बिसरि जयबाक प्रयास करय लगलहुँ। झुट्ठेकँ हँसय लगलहुँ। ई आदति पकड़ने छी। घरक बड़ाई करय लगलहुँ। लोक सभ बाबूजीक ईमानदारीक तँ चर्चा करिते रहय। हम सभ घरक कलहक विषय घरक बाहर अनबासँ परहेज करय लगलहुँ, लोक बुझत तँ हँसत। आ’ बुझू जे ईमानदारीक ग्लैमरकेँ जिबैत जाइत गेलहुँ। सोचबाक आ’ गुनधुनीक आदति एहन पड़ल, जे सुतैत सपनामे आ’ जगैत लिखबा-पढ़बा काल धरि ई पाँचाँ नहि छोड़लक। दसमामे छमाही परीक्षा किछु दिन पहिने देने छी। कॉमर्सक परीक्षामे एकटा प्रश्न बनेलहुँ। मुदा ओ’ गलत बनि गेल, फेर दोसर अ’ तेसर बेर प्रयास केलहुँ। सभटा प्रश्नक उत्तर अबैत छल मुदा पहिलो प्रश्नक उत्तर पूरा नहि भ’ रहल छल।कॉपीकेँ अंगाक नीचाँमे नुका लेलहुँ। आ’ पानि पीबाक बहन्ने जे बहरेलहुँ, तँ घर पहुँचि गेलहुँ। पढ़ैत-पढ़ैत सोचय लगैत छी। एक्के पन्ना उनटेने घंटा बीति जाइत छल। चिड़ियाखाना गेल रही एक बेर। किछु गोटे,हमर सभक संबंधी लोकनि, ओतय हमरा सभकेँ भेटि गेलाह। बड्ड हाइ-फाइ सभ। ओनतँ कहलन्हि किछु नहि मुदा हुनकर सभक बगेबानी देखि कय, हमरामे हीन भावना आयल।चुप्पे भीड़मे निकलि घरक लेल निकलि गेलहुँ। जेबीमे पाइ नहि रहय से पैरे निकलि गेलहुँ। ओतय चिड़ियाखानामे सभ डराइत रहल जे कतय हरा गेल। सभकेँ कहलहुँ जे सत्ते भोथला गेल रही। सत्त बात ककरो नहि बतेलहुँ। सभ लोक जे भेटय यैह कहय जे अहा, फलनाक बेटा छथि। बेचारे भगवाने छथि। हिनकर पिताक पे-स्लिप बिना पाइयेक बना दियन्हु। पिताजीसँ नहितँ सहकर्मी खुश छलन्हि नहिये ठीकेदार सभ। सहकर्मी एहि ल’ कय जे नहि स्वयं कमाइत अछि, नहिये दोसराकेँ कमाय दैत अछि। पैघभायक गिनती बच्चामे बदमाशमे होइत छल। एक बेर ट्रांसफरक बाद जखन हमरा सभ गाम गेलहुँ, तँ पैघ भाय जे सभक फुलवाड़ीसँ नीक-नीक गाछ उखाड़ि कय अपना घरक आगाँ लगा’ लैत छल, से आब एकहि सालमे दब्बू,सभसँ पाचू बैसनिहार विद्यार्थीक रूपमे गिनतीमे आबि गेल।एहि बेर ट्रांसफरक बादक गाममे गामक निवास किछु बेशी नमगर भ’ गेल छल। फेर मुख्यमंत्री पदक दावेदार एकटा नेताजी जखन गाममे वोट मँगबाक लेल अयलाह, तखन काका हुनकासँ भेँट कएलन्हि, आ’ कहलखिन्ह जे हमर भायकेँ वर्क्ससँ नन-वर्क्स मे ट्रांसफर कए दियौक, बच्चा सभ पोसा जयतैक। नेताजी कहलन्हि जे जौँ हम जीति गेलहुँ तँ ई काज तँ हम जरूर करब। वर्क्समे जयबाक पैरवी तँ बहुत आयल मुदा नन-वर्क्समे जयबाक हेतु ई पहिले पैरवी छी। संयोग एहन भेल जे ओ’ नेताजी जीति गेलाह आ’ मुख्यमंत्री सेहो बनि गेलाह। ओ’ शपथ ग्रहण केलाक बाद ई काज धरि केलन्हि, जे पिताजीक ट्रांसफर कय देलखिन्ह। आ’ हमरा सभ पुनः शहर आबि गेल रही। गाममे रहीतँ एक गोटे जे हमर भायक संगी छलाह, केर गप यादि पड़ि जाइत अछि जे ओ’ ककरो अनका प्रसंगमे कहने छलाह। हुनकर अनुसार हुनकर मायक स्वभाव तीव्र छलन्हि, आ’ ओ’ खेनाइ खाइते काल झगड़ा करय लगैत छलीह। मुदा ओहि दिन ककरो अनका ओ’ आर तीव्र स्वभावक देखने छलाह। खराब आर्थिक स्थितिक उपरांत होयबला कलहक परिणाम हमरो सभ देखि रहल छलहुँ। दू टा घटना आइयो हमरा विचलित कए दैत अछि। एकटातँ इनकम टैक्स कटौतीक मास- मार्च मास। ई घटना तँ सभ साले होइत छल, मुदा कटौती बढ़ैत-बढ़ैत एहि साल धरि आबि कय पूरा मार्च मासक दरमाहा काटि लेलक। माँ कहैत छलीह जे आब भोजन कोना चलय जयतौह। आब भीख माँगय जइहँ ग’ सभ। मुदा बाबूजी एकटा गामक भातिजकेँ पोस्टकार्ड पठेलन्हि आ’ ओ’ आठ सय टाका आनि कय दय गेलखिन्ह, तखन जा’ कय असुरक्षाक भावना खत्म भेल छल। भीख मँगैत अखनो जौँ ककरो देखैत छी तँ मोन कलपय लगैत अछि। दोसर घटना अछि जखन हमरा घरक आँगा एकटा एक्सीडेंट भेल छल आ’ ओकरा बाद हमर भाइ खेनाइ छोड़ि देने छलाह आ’ कानि-कानि कय आँखि लाल कए लेने छलाह। पिताजी जखन बुझबय लगलाह तँ ओ’ जवाब देलन्हि, अहाँकेँ जौँ किछु भय जायत, तखन हमरा सभक की होयत। पिताजी इंश्योरेंस बेनीफिट, जी.पी.एफ., ग्रेच्युटी आदिक हिसाब लगाय भायकेँ बुझेलन्हि जे 99000 रुपय्यातँ तुरत भेटत आ’ फेर महिने-महिने पेंशनो भेटत। लगभग एक घंटा तक बाबूजी भायकेँ बुझबैत रहलाह।
हमरा सभक ओहिठाम एक गोट पीसा आयल छलाह। आइयो घर्मे क्यो अबैत छथि, तँ हम सुरक्षित अनुभव करैत छी। बाबूजीक हुनकर सार भेलखिन्ह से एहि ओहदासँ हँसी सेहो चलि रहल छल। ओ’ कहलन्हि जे हमरे पिताजी जेकाँ ईमानदार एकटा बी.डी.ओ. साहेब झंझारपुरमे छलाह। पिताजी हुनकर मलाह छलखिन्ह, कष्ट काटि अफसर भेलाह। मुदा हमरे सभक घर जेँका हुनको घरमे खाटे टा छलन्हि। पीसा कहलखिन्ह जे कथी ले अफसर भेलहुँ, गाममे रहितहुँ आ’ मचान पर बैसि माछ भात खएतहुँ। माछक कारबारमे फायदा होइत।
बहिनक विवाह बाद घरमे कखनो काल बहनोइ अबैत छलाह। जमायक अबिते देरी माँक झगड़ा पिताजी सँ शुरू भय जाइत छल, किएकतँ घर इंतजाम तँ किछुओ रहिते नहि छल।
ट्रांसफरक बाद पिताजीक अभियान घूसखोरकेँ सजा देबय पर चलल। आ’ जखन सरकारी तंत्र परसँ विश्वास खतम भए गेलन्हि, तखन एकटा तांत्रिकक फेरमे पड़ि गेलाह। घरमे माता-पिताक बीच कलह बढ़ि गेल। एक दिन पिताजीसँ हमरो बहसा-बहसी भए गेल आ’ तीनू भाय बहिन गरा लागि कय कानय लगलहुँ। तकरा बादसँ भाय-बहिन सभसँ झगड़ा होयब समाप्त भय गेल।
--------------------------------------------------------------------
अनेर गुनधुन करैत रही, घरक लगमे पहुँचलहुँ तँ भीड़ देखि मोन हदसि गेल, जे बाबूजीकेँ तँ किछु नहि भ’ गेलन्हि। घरमे पहुँचलहुँ तँ माँ-बहिन सँ पूछय लगलहुँ, जे की भेल? सभ बोल भरोस देबय लगलथि तँ आरो तामस उठय लागल। जोरसँ कानि कय बाजय लगलहुँ जे बाबूजी मरि गेलाह की? कतय छन्हि हुनकर मृत शरीर। ताहि पर बहिन कहलन्हि जे नहि, हुनका किछु नहि भेलन्हि। अहाँक संगी जे मकान मालिकक बेटा अछि, से ओ’ ओकर चोट भाय , ओकर पिता आ’ रिक्शाबला, चारू रिक्शा पर जाइत छल। बेचारा रिक्शा बला विवाह क’ कय कनियाँकेँ अननहिये छल। एकटा विशाल ट्रक रिक्शाकेँ धक्का मारि देलकैक। ठामहि मरि जाय गेलाह। हमर कानब खतम भय गेल। ई जे आफत आयल छैक से आइ ककरो अनका घर, ओना ओ’ जे मृत भेल छल हमर संग डेढ़ सालसँ स्कूल जा रहल छल प्रतिदिन प्रातः। सभ दिन प्रातः सीढ़ी पर कॉलबेल बजबैत छलहुँ आ’ ओ’ सीढ़ीसँ उतरैत छल, आ’ संगे हम सभ स्कूल जाइत छलहुँ। मोन पड़ल जे काल्हि सेहो सभ दिन जेकाँ हम कॉलबेल बजेने छलहुँ,तँ ओकर बहिन जे चश्मा लगबैत छलि, आ’ झनकाहि छलीह, से ऊपरसँ तमसाकेँ कहलक जे कतेक जोरसँ आ’ देरी तक कॉलबेल बजबैत छी, आ’ सेहो जे बेर-बेर किएक बजबैत छी, आबि रहल अछि। काल्हितँ ओ’ आयल मुदा हम तखनहि कहि देलियैक जे काल्हिसँ हम कॉलबेल नहि बजायब, अहाँकेँ हमरा संगे जयबाक होय तँ नीच उतरि कय आयब आ’ संग चलब। ओ’ नहि आयल तँ हम किएक कॉलबेल बजबितहुँ। डेढ़ सालमे पहिल बेर भेल छल जे हम कॉलबेल नहि बजेने छलहुँ आ’ ओ’ डेढ़ सालमे पहिल बेर स्कूल नागा कएने छल। आब हमरा मोनमे हेबय लागल जे कतहु ओ’ बाजि तँ नहि देने होयत जे हम काल्हिसँ कॉलबेल नहि बजायब। मुदा किंसाइत ओकर कोनो आनो कार्यक्रम होयतैक। किएकतँ चोट भाय आ’ पिताक संग रिक्शासँ कतहु जा’ रहल छल। अस्तु हम चिंतित छलहुँ मुदा दुःखी नहि, मुदा मोनक गप कियो बुझय नहि तेँ मुँह लटकेने ठाढ़ रही।हमतँ मात्र सोचने रही जे काल्हिसँ एकरा संगे स्कूल नहि जायब, जायत ई असगरे। मुदा ओ’ तँ असगरे नहि जायत से सत्य कय देखा देलक। हमर मायक आँखिमे नोर छलन्हि, मुदा हमर भीतर प्रसन्नता,किएकतँ हमर पिताजीक मृत्यु जे रुकि गेल छल।
5.पद्य (आँगा)
74. एस.एम.एस.
कहू एहिमे अहाँ छी, सहमत आ’ की छी अहाँ असहमत, दुनू रूपमे दिय’ अहाँ, अपन विचार कय एस. एम.एस.।
आहि कमाऊ अहाँ रुपैय्या, हम बूरि छी भाइ, न्यु टेक्नोलोजी छी ई सभ, बूरि क्यो नहि आइ।
75. अल्हुआ
खाइत भेलहुँ हम अकच्छ तखन, ई अकाल छल भेल भारि। वेदपाठक सुनि कय आग्रह, अएलहुँ हरिद्वार भुखालि।
भरि दिन मंत्र भाखि सोचल, खीर पूड़ी सभ खायब। मुदा ओतुक्का पंडित सभ, खा’ ई सभ छल अघायल। कएलक मेनू परिवर्त्तन कहलक, आइ अल्हुआ अहि लायब। बूझल नहि छल हमरा ई, हाथ धोने छलहुँ बैसल। आयल अल्हुआ देखि कर जोड़ि, विनती कए हम पूछल (अल्हुआसँ), हमतँ छी ट्रेनसँ आयल,
अहाँ कथीसँ अयलहुँ। हमरासँ पहिने अहाँ एतय,
कोन सवारी सँ पहुँचलहुँ।
76. दीया-बाती
आयल दीया बाती, कतेक अमावस्या अछि बीतल, जकर अन्हारमे लागल चोट, कतेक जीव थकुचायल पैरहि, अन्हारक छल थाती। दीया बाती अनलक प्रकाश, ज्ञान-ज्योतिक अकाश, नमन करय छी हम एहि बातक, अंधकार-तिमिर केर होबय नाश।
77. इटालियन सैलून
घर भेल समस्तीपुर,दिल्लीमे छी आयल, खोलि सैलून इटालियन,अयलहुँ कमायले’।
पुलिसक रोक देखि कय गेलहुँ गाम घुरि, पुनः छी आयल, सैलून कतय बानाओल? ईटा पर जे छी अहाँ बैसल, सैह कहबैछ, इटालियन, रोक अहू पर अछि पुलिसक, सेहो अखनो धरि नहि बूझल यौ अहाँ।
78. शव नहि उठत
गामक कनियाँ मूइलि शव अँगनामे राखल, सभ युवा कएने अछि नगर दिशि पलायन, जे क्यो रहथि से घुमैत रहथि ब्लॉक दिशि, साँझमे अयलाह देखल कहल गेलथि मुइल। गामपर क्यो नहि उठेलक शवकेँ किएक, हम कोना छुबितहुँ भाबहु ओ’ होयतीह । मुइल पर भाबहु की भैसुर केलहुँ अतत्तह, समय बदलल नहि बदलल ई गाम हमर।
79.खगता
गोर लागि मौसीकेँ निकलैत, पूछथि अछि किछु खगता, आइ नहि पूछल जखन, बैसल फेर ओ’ तखन। फेर उठल फेर नहि पुछलन्हि, सोचि जे रहैत नहि छन्हि काज। जाइ कोना पाइक बड्ड अभाव।
लोक कहैछ, आयल छथि खगते, ओना दर्शनहुँ दुर्लभ, अहीँ कहू, खगतामे अछि पुछैत क्यो आगूसँ।
80. अतिचार
तीन साल छल अतिचार, नहि होयत एहि कारण। पंडितबे सभ बुझथुन्ह, छन्हि पत्रा सभ बिकाइत, पकड़त सभ बनारसी पत्राकेँ, सेहो नहि बिकायत ,
समय अभावेँ होयत ई, जौँ अतिशय भ’ जायत।
81. रबड़ खाऊ
रबड़ खाऊ आ’ वमन करू चट्टी, अपचनीय तथ्य सभ देखल भ्रात, बड़ छल बुधियार,केलक घटकैती, शुरू जखन भेल सिद्धांत, विवाद, विवाहठीक भेलाक बादक दोसर सिद्धांत, लड़का विवाह कालमे बिसरलाह भाषण, नव सिद्धांतक सृजन कय केलन्हि सम्मार्जन।
82.मुँह चोकटल नाम हँसमुख भाइ
मुँह चोकटल नाम छन्हि हँसमुख भाइ, बहुत दिनसँ छी आयल करू कोनो उपाय, मारि तरहक डॉक्युमेंट देलन्हि देखाय, पुनः-प्रात भ’ जायत देल नीक जेकाँ बुझाय, शॉर्ट-कट रस्ता सुझाय देलन्हि मुस्काय, मुँह चोकटल नाम हँसमुख भाय।
83. बाजा अहाँ बजाऊ
मेहनति अहाँ करू, फल हमरा दिय। चित्र अहाँ बनाऊ, आवरण सजाऊ, हमर किताबक। नृत्य हम करू, बाजा अहाँ बजाऊ। कृति हमर रहत, मेहनति करब अहाँ, आइसँ नहि ई बात,
अछि जहियासँ शाहजहाँ।
84.पिण्डश्याम
दहेज विरोधी प्रोफेसर, केर सुनू ई बात, पुत्री विवाहमे कएल, एकर ढेर प्रचार। पुत्रक विवाहमे बदलि सिद्धांत, वधू रहय श्याम मुदा, मारुति भेटय श्वेत, सिद्धांतक मूलमे, छोड़ू विवेक।
85. राजा श्री अनुरन्वज सिंह
एक सुरमे बाजि देखाऊ, नहि अरुनन्वन, नहि सिंह, पूरा एकहि बेर बताऊ, राजा श्री अनुरन्वज सिंह।
86.पाँच पाइक लालछड़ी
परिवार छल चला रहल, बेचि भरि दिन, पाँच पाइक लालछड़ी, दस पाइमे कनेक मोट लपेटन। देखैत नहाइ साँझमे, ठेला चला कय आयल, बेटाकेँ पढ़ायल, आइ.आइ.टी.मे पढ़ि, निकलल कएलक विवाह, जजक छलि ओ’ बेटी।
पिता कोन कष्टसँ पढाओल, गेल बिसरि, पिताक स्मृतिसँ दूर। नशा-मदिरामे लीन, कनियाँ परेशान, लगेलन्हि आगि, झड़कलि, ओकरा बचेबामे ओहो गेला झड़कि।
कनियाँतँ गुजिरि गेलीह ठामे,
मुदा ओ’ तीन मास धरि, कष्ट काटि पश्चात्ताप कए, मुइलाह बेचारे ।
87. थल-थल
कतबो दिन बीतल, गद्दा जेकाँ थलथल, पट्टी टोलक ओ’ रस्ता, भेल आइ निपत्ता। मटि खसा कय लगा खरंजा, पजेबाक दय पंक्ति, नव-बच्चा सभ कोना झूलत, ओहि गद्दा पर आबि। थल-थल करैत ओ’ रस्ता, लोकक शोकक कहाँ भेल बंद, माँ सीते की अहाँ बिलेलहुँ, ओहि दरारिमे अंत।
88. चोरुक्का विवाह
सिखायब हिस्सक छूटत, नहीं आनब कनियाँकेँ, भायक माथ टूटत। भेल धमगिज्जर सालक साल बीतत, युवक-युवती दुनू भेल चोर विवाहक कैदी,
नहीं छल कोनो हाथ परंच, छल सजा पबैत। भागल घरसँ युवक आब पछतायल घरबारी, मुदा की होयत आब, ओ’ समाजक व्यभिचारी। एलेक्शनक झगड़ामे भाय-भायकेँ मारल, चोरुक्का विवाहक घटनामे ओकरा दोहरायल।
89. भ्रातृद्वितीया
कय ठाँऊ बैसलि, आसमे छलि, भाय आयत, बीतल, साँझ आयल।
आँखि नोर छल सुखायल, चण्डाल कनियाँक गप पर, सालमे एक बेर छल अबैत, सेहो क्रम ई टूटल। कय ठाँऊ बैसलि, धोखरि अरिपन विसर्जित, छल साँझ आयल।
6. संस्कृत शिक्षा (आँगा)
वयम् इदानीम अति सरलां रम्यां कथां श्रुण्वः। एकाम् कथां वदामि। कश्चन् वृद्धः अस्ति। तस्य शक्तिः नास्ति। जीर्णम् शरीरम् अस्ति। चलितिम् शक्नुम न। सः बुभुक्षितः अस्ति। सः एकम् वनम् गच्छति। वने सर्वत्र भ्रमणम् करोति। खदितुम् किमपि लभ्यते वा इति सर्वत्र भ्रमणं करोति। सः एकंवृक्ष समीपम् गच्छति। वृक्षं पश्यति। उत्तमानि फलानि सन्ति। किंतु फलानि उपरि सन्ति। सः वृद्धः चिन्तयति। फलानि उपरि सन्ति। अहं निस्पृहः अस्मि, कथं प्राप्नोमि। किम् करोमि। इति चिन्तयति। वृक्षः उन्नतः अस्ति। अहं निष्यप्तः अस्मि। आरोहण कर्त्तुम् न शक्नोमि। किम् करोमि। कथं फलं प्राप्नोमि। इति चिन्तयति। वृक्षस्य उपरि वानराः सन्ति। वृद्धः एकः उपायः करोति। एकं शिलाखण्डं स्वीकरोति। शिलाखण्डं उपरि क्षिपति। वनराः कुपितः भवन्ति। फलानि अधः क्षिपन्ति। वृद्धः संतोषेण फलं सर्वम खादति। बहुसंतुष्टः भवति।कथायाः अर्थः ज्ञातवंतः। आम् ज्ञातवंतः। धन्यवादः। नमोनमः।
मम् नाम गजेन्द्रः। भवत्याः नाम् किम्? मम् नाम रमा। भवतः नाम किम्? समीचीनम्।
उत्तिष्ठतु।
आगच्छतु। गच्छतु। रोहित आगच्छतु। रोहितः किम् करोति?
रोहितः गच्छति। रोहितः आगच्छति। उपविशतु। अभिरामः उपविशति। उत्तिष्ठतु। अभिरामः उत्तिष्ठति। सुनीता पिबति। आस्था पिबति।
ओम गच्छति। खादतु।
सा खादति। आस्था खादति। श्रुतिः किम् करोति। श्रुतिः खादति। स्नेहा किम् करोति। स्नेहा पठति। लिखतु। आस्था लिखति। अश्वनी हसतु। आस्था हसतु। आस्था हसति। सुमन्तः हसति। पश्यतु। सुमन्तः पश्यति। प्रियङ्का वदतु। कृष्णफलकं तत्र अस्ति। प्रियङ्का वदति। आगच्छतु। क्रीडतु। आस्था आगच्छति।
क्रीडति।
गच्छति पठति लिखति सः एषः सा एषा भवान भवती
भवान उत्तिष्ठति। भवान उपविशति। भवती लिखति। भवती पठति। अहं गच्छामि। अहं आगच्छामि। अहं उपविशामि। अहं उत्तिष्ठामि। अहं पिबामि। अहं खादामि। अहं क्रीडामि। अहं हसामि। अहं पठामि। अहं लिखामि। अहं वदामि। भवान किम् करोति। अहं पश्यामि। भवान उत्तिष्ठतु। भवान उपविशतु। भवती पठति। भवती पठतु। भवती लिखति। भवती लिखतु। भवती पश्यति। भवती पश्यतु। भवती गच्छति। भवती आगच्छति। भवती उपविशति। उत्तिष्ठति। वदति। लिखति। अहं पठामि। अहं वदामि। अहं पश्यामि। ददातु। किम् करोति। आगच्छतु। आगच्छति। नयतु। मास्तु-मास्तु। ददातु। कृपया उत्तिष्ठतु। एकम् – एकादश
द्वे द्वादश त्रीणि
चत्वारि पञ्चः षट्
सप्त अष्ट नव दश एकादश द्वादश विंशतिः त्रिंशतः चत्वारिंशत्
पञ्चाशत्
षष्टिः सप्ततिः अशीतिः नवतिः शतम्
संस्कृतम् कथं समयः वक्त्तव्यः इति इदानीम् वयं जानीम। पंच वादनम्। कः समयः। षड् वादनम्। अष्ट वादनम्। समयम् अक्षरैः लिखतु। घट्यां समयं दर्शयतु। दश वादनम्। दशाधिक नव वादनम्। पञ्चन्यून दशवादनम्। एकादश वादनम्। सपाद एकादश वादनम्। सपाद पञ्चवादनम्। सपाद अष्टवादनम्। सार्ध सप्तवादनम्। पादोन एकादशवादनम्। एवमेव सार्द्ध दशवादनम्। एक
द्वि
त्रि चतुर्वादनम्
एदानीम वयम् एकं सुभाषितम श्रुण्वः।
सुभाषितम्
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः। तस्मात् तदेव वक्त्तव्यं वचने का दरिद्रता। वयम् इदानीम् यत् सुभाषितम् श्रुतवंतः तस्य अर्थः एवम् अस्ति। यदि वाक्यं वदामः सर्वे जनाः अपि संतुष्टाः भवन्ति। न केवलं जनाः अपितु सर्वे प्राणिनाः अपि संतुष्टाः भवंति। अतः प्रियः वाक्यमेव वदामः। प्रिय वाक्यम् वक्तुम् धनं दातव्यं किमपि नास्ति। प्रिय वाक्य कथने दारिद्रयं कुतः।
सङ्कल्पगानम्
भवतु सफलार्थाः वयम्
भवतु सफलार्थाः वयम्
भवतु सफलार्थाः वयम् एक वासरे.... ओ हो हो, मनसि मे विश्वासः सम्यक् विश्वासः मे मनसि विश्वासः वयम् एक वासरे....
भवतु शान्तिः सर्वत्र भवतु शान्तिः सर्वत्र
भवतु शान्तिः सर्वत्र
एक वासरे,ओ हो हो..। सन्ति एक-तया वयम्
सन्ति एक-तया वयम्
धृत्वा हस्त-हस्ततलं सन्ति एक-तया वयम्
एक वासरे,ओ हो हो .....
अद्य न अस्ति दरः कस्मात्
अद्य न अस्ति दरः कस्मात्
अद्य न अस्ति दरः कस्मात्
एक वासरे,ओ हो हो....
सिद्धिरस्तु।
7. मिथिला कला- चित्रकला (आँगा)
कुमरम मने विवाह आ’ उपनयनसँ एक दिन पहिने क्रमशः कनियाँ आ’ बरुआकेँ आङ उङारल जाइत अछि मने श्रेष्ठ स्त्रीगण यव आ’ आन पदार्थसँ बनल उबटन लगबैथ छथि। एतय मंडप पर सबरंग पटिया पर षट पाइस अरिपनक समक्ष मंडप पर ई कार्य संपादित होइत अछि। ई एकटा रक्षा कवच थिक।
विधि- तीनटा आयत बनाऊ एकक नीचाँ एक। पाँच खंड उर्ध्वाधर आ’ तीन क्षैतिज खंड करू। एहि 18 खंडमे फूल बनाऊ।
8. संगीत शिक्षा
ई जे सातो स्वरक वर्णन पिछला अंकमे देल गेल छल ओकरासँ आगू आऊ। एहि सातू स्वरमे षडज आ’ पंचम मने सा आ’ प अचल अछि, एकर सस्वर पाठमे ऊपर नीचाँ होयबाक गुंजाइस नहि छैक। सा अछि आश्रय आकि विश्राम आ’ प अछि उल्लासक भाव। शेष जे पाँचटा स्वर अछि से सभटा चल अछि, मने ऊपर नीचाँक अर्थात् विकृतिक गुंजाइस अछि एहिमे। सा आ’ प मात्र शुद्ध होइत अछि। आ’ आब विकृति भ’ सकैत अछि दू तरहेँ शुद्धसँ ऊपर स्वर जायत किंवा नीँचा। जदि ऊपर रहत स्वर तँ कहब ओकरा तीव्र आ’ नीचाँ रहत तँ कोमल कहायत। म कँ छोड़ि कय सभ अचल स्वरक विकृति होइत अछि नीचाँ, तखन बुझू जे “रे, ग,ध, नि” ई चारि टा स्वरक दू टा रूप भेल कोमल आ’ शुद्ध। ’म’ केर रूप सेहो दू तरहक अछि, शुद्ध आ’ तीव्र। रे दैत अछि उत्साह ग दैत अछि शांति म सँ होइत अछि भय ध सँ दुःख
आ’ नि सँ आदेश। (अनुवर्तते)
9. बालानां कृते
बहुरा गोढ़िन नटुआदयाल
एकटा छलि बहुरा गोढ़िन आ’ एकटा छलाह नटुआ दयाल। बहुरा गोढ़िन नर्त्तकी छलि आ’ ओकरा जादू अबैत छलैक। नटुआ दयाल बहुरा गोढ़िनक प्रशंसक छल किएक तँ ओ’ छल प्रेमी, बहुरा गोढ़िनक पुत्रीक। छल ओहो तांत्रिक।
कमला-बलानक कातक केवटी छलि बहुरा, बखरी, बेगूसरायक रहनिहारि। हकलि छलि ओ’ कमरू सँ सीखलक जादू। दुलरा दयाल छल मिथिला राज्यक भरौड़क राजकुमार, ओकरे नाम छल नटुआ दयाल। नृत्य जे ओ’ बहुरासँ सिखलक तँ सभ नामे राखि देलकैक ओकर नटुआ। नटुआ दयालक गुरू छलाह मंगल। सिद्ध पुरुष। अकाशमे बिन खुट्टीक धोती टँगैत छलाह, सुखला पर उतारैत छलाह। बहुरा गाछ हँकैत छलि, जकरासँ झगड़ा भेल ओकरा सुग्गा बना पोसि लैत छलीह। कमला कातमे रहैत छलाह आ’ भजैत छलाह,
कमलेक आसन,ओहीमे बास हे कमला मैय्या।
बहुरा वरकेँ मारि सीखने छल जादू। राजकुमारक विवाहक प्रस्तावकेँ नहि ठुकरा सकलि मुदा। बरियाती दरबज्जा लागल तँ भ’ गेलैक कह सुनी आ’ सभकेँ बना देलक ओ’ बत्तु। मंत्री मल्लक एक आँखिक रोश्नी खतम।आहि रे बा। व्यापारी जयसिंह छल मोहित महुराक बेटी पर,ओकरे खड्यंत्र।आहि रे बा। गुरू लग गेल राजकुमार आ’ आदेश भेलैक, जो कामाख्या, सीखय लेल षट् नृत्य, आ’ जादू। चण्डिका मंदिरमे योगिनीसँ षट्नृत्य सिखलक आ’ आदेश भेलैक संरया ग्रामक भुवन मोहिनीसँ षट् नृत्यक एक अंग सीखबाक। ओहि गामक सिद्ध देवी रहथि वागेश्वरी। नरबलि चढैत छल ओतय। दैत्य अबैत छल ओतय। सिखलक राजकुमार सिद्ध नृत्य अनहद आ’ आज्ञा चक्र। करिया जादूकेँ काटय बला मंत्रफुकलक राजकुमारक कानमे। कमला बलानमे आयल राजकुमार। बहुरा सुखेलक धारक पानि। राजा पता लगेलक जूकियासँ, अनलक बहुराकेँ, मुदा ओ’ तँ लगा देलक दोष राजकुमार पर। यज्ञ भेल तैयो कमलामे पानि नहि आयल, नटुआ पठेलक सभटा पानिकेँ पताल? नटुआकेँ पकड़ि कय आनल गेल। ओ’ अपन नृत्यसँ जलाजल केलक कमलाकेँ।मुदा कहलक बहुराकेँ माफी दियौक। बहुरा कहलक आब तोँ भेलह हमर बेटीक योग्य। आबह बरियाती ल’कय। नटुआ बरियाती ल’ क’ पहुँचल। तीटा पान अयलैक,एक कमलाक पानिक हेतु,दोसर बहुराकेँ माफ करबाक
हेतु। आ’ तेसर ओकर बेटीसँ व्याह करबाक हेतु। तीनूटा पान उठेलक नटुआ आ’ शुरू भेल गीत-नाद। पियास लगलैक नटुआकेँ शिष्य झिलमिलकेँ पठेलक इनार पर। डोरी छोट भय गेलैक। अपने गेल नटुआ डोरी पैघ भ’ गेलैक। फूलमती छलि ओतय,पतिक प्रतिभासँ प्रसन्न छलि ओ’। मल्लक आँखि ठीक कएलक बहुरा। कमला पहुँचल कनियाँक संग नटुआ, मुदा आहि रेबा।
नटुआकेँ चक्कू मारलक बहुरासँ दूर भेल ओकर शिष्य। मुदा नटुआ चढ़ेने छल पटोर कमला मैय्याकेँ। कमलाक धार खूने-खूनामे। मुदा कामाख्याक जदूगरनी अयलीह आ’ जीवति कएलन्हि नटुआकेँ। दुश्मनक बलि चढ़ेलक कमलाकेँ। ----
10. पंजी प्रबंध
लेखक- विद्यानंद झा पञ्जीकार
भारतीय इतिहासक वेत्ता ओ’ जातीय व्यवस्थाक मर्मज्ञ लोकनि जनैत छथि, जे भारतवर्षक ब्राह्मण लोकनि सर्वप्रथम वेदक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित रहथि। जेना- सामवेदी, यजुर्वेदी, आदि कहाबथि। मुदा समयक प्रभावमे भिन्न क्षेत्र-प्रक्षेत्रमे रहनिहार ब्राह्मण लोकनि भिन्न-भिन्न संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह। क्षेत्रीय संस्कृतिसँ प्रभावित होएबाक मुख्य कारण छल विशिष्ट क्षेत्रक विशिष्ट जलवायु, क्षेत्र विशेषक भाषा-विशेष, भिन्न-भिन्न क्षेत्रक भिन्न-भिन्न आहार एवम भेष-भूषा आ’ एक क्षेत्र सँ दोसर क्षेत्र जयबाक हेतु आवागमनक असुविधा आदि। फलतः क्षेत्र-विशेषक ब्राह्मण समुदाय, क्षेत्र विशेषक आचार-विचार, खान-पान,वेश-भूषा ,भाव-भाषा ओ’ सभ्यता संस्कृतिसँ प्रभवित भय गेलाह।
उपरोक्त कारणे पुरानक युग अबैत0-अबैत भारत वर्षक ब्राह्मण समाज भिन्न-भिन्न क्षेत्रक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित भए गेलाह। पुरानक सम्मतिये भारत-वर्षक समस्त ब्राह्मण समाजकेँ दस(10) वर्गमे विभाजित कएल गेल रहय। ब्राह्मणक ई दसो वर्ग थीक-उत्कल,कान्यकुब्ज,गौड़,मैथिल,सारस्वत, कार्णाट,गुर्जर, तैलंग,द्रविड़ ओ’ महाराष्ट्रीय। स्थूल रूपेँ पूर्वोक्त पाँच केँ पञ्च गौड़ आ’ अपर पाँचकेँ पञ्च द्रविड़ कहल जाइत अछि। एकर सीमांकन भेल विन्ध्याचल पर्वतक उत्तर पञ्च गौड़ ओ विन्ध्याचल पर्वतक दक्षिण पञ्च द्रविड़।
मैथिल ब्राह्मण
पञ्च गौड़ वर्गक मैथिल ब्राहमण लोकनि पुस्ति-दर-पुस्त सँ मिथिलामे रहबाक कारणेँ मिथिलाक विशिष्ट संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह, तँय अहि कारणेँ पुराणक युगमे मैथिल ब्राह्मण कहाए सुप्रसिद्ध भेलाह। मिथिला वस्तुतः प्राचीन राहवंशक राजधानी रहए। मुदा पश्चातक युगमे विदेह राजवंशक समस्त प्रशासित क्षेत्र अथवा जनपद मिथिला कहाए सुप्रसिद्ध भेल आ’ एहि जनपदक रहनिहार ब्राह्मण लोकनि मैथिल ब्राह्मण कओलन्हि। ई मिथिला आइ नेपाल ओ’ बंगलादेशक सीमा सँ सटैत अनुवर्त्तमान अछि, जे राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिसँ अपन एक विशिष्ट स्थान रखैत अछि।
मैथिल ब्राह्मण लोकनि मूलतः दुइए गोट वेदक अनुयायी थिकाह। एक वर्गक यजुर्वेदक माध्यान्दिन शाखाक अनुयायी थिकाह तँ दोसर सामवेदक कौथुम शाखाक अनुगमन करैत छथि। यजुर्वेदक माध्यन्दिन शाखाक अनुयायी”वाजसनेयी” कहबैत छथि, एहिना सामवेद्क कौथुम शाखाक अनुयायी छन्दोग कहबैत छथि।दुहुक संस्कारमे किछु स्थूलो अन्तर अछि। छन्दोग उपनयनमे चारि गोट संस्कार- नामकरण, चूड़ाकरण, उपनयन ओ समावर्त्तन मुदा वाजसनेयीक ई चारू संस्कार थिक, चूड़ाकरण, उपनयन, वेदारम्भ ओ समावर्त्तन। एहिना छन्दोग विवाह मुख्यतः दू खण्डमे सम्पन्न होइत अछि, पूर्व विवाह आओर उत्तर विवाह। उत्तर विवाह सूर्यास्तक बाद तारा देखि कए होइत अछि। मुदा वाजसनेयी विवाहमे एहन कोनो विभाजन नहि अछि। एकहि क्रममे दिन अथवा रातिमे कखनहुँ भए सकैत अछि। वाजसनेयी ओ’ छन्दोगक धार्मिक संस्कारमे तँ सूक्ष्म अंतर कतौक अछि।
(अनुवर्तते)
11. मिथिला आ’ संस्कृत
कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालयसँ प्रकाशित दोसर नाटक अछि- महाकवि विद्यापतिक गोरक्षविजय नाटक। एहिसँ पहिने कृष्ण पर आधारित नाटक प्रचल छल। एहि अर्थमे ई एकटा क्रांतिकरी नाटक कहल जायत।
नाथ संप्रदाय किंवा गोरक्ष संप्रदायक प्रवर्त्तक योगी गोरक्षनाथक कथा ल’ कय एहि नाटकक कथावस्तु संगठित भेल अछि।गोरक्षनाथक गुरु मत्स्येन्द्रनाथ योग त्यागि कदलिपुरमे राजा 18 टा रानीक संग भए भोग कए रहल छथि। गोरक्ष आ’ काननीपादकेँ द्वारपाल रोकि दैत अछि।मंत्री ढोलहो पिटबा दैत अछि जे योगी सभक प्रवेश कतहु नहि हो आ’ रानी सभकेँ राजाक मोन मोहने रहबाक हेतु कहल जाइत अछि। गोरक्ष आ’ काननपाद नटुआक वेष धरैत छथि आ’ मोहक नृत्य राजाकेँ देखबैत छथि। एहि बीच राजाक एकमात्र पुत्र बौधनाथ खेलाइत-खेलाइत मरि जाइत अछि। राजाक शंका नट पर जाइत छैक तँ ओकरा मारबाक आदेश होइत छैक। नट बच्चाकेँ जिया दैत छैक। राजा हुनकर परिचय पुछैत छथि तखन ओ’ हुनका अपन पूर्व जन्मक सभटा गप बता दैत छन्हि, जे अहाँ तँ जोगी छी भोगी नहि।
एहि नातकक पात्रमे महामति(राजाक मंत्री) आ’ महादेवी- मत्स्येन्द्रनाथक ज्येष्ठ रानी सेहो छथि। मत्स्येन्द्रनाथ कदलीपुरक राजा आ’ पूर्व जन्मक योगी छथि। मत्स्येन्द्रनाथ अंतमे कहैत छथि जे गोरक्ष जेहन शिष्य हो आ’ महादेवी जेहन सभ नारी होथु। --------
12. भाषा आ’ प्रौद्योगिकी
आब किछु बात यूनीकोड आ’ वेबसाइट केर संबंधमे।
कोनो फाइलकेँ पढ़बाक हेतु कंप्युटरमे आवश्यक फॉंट होयब जरूरी अछि, नहि तँ सभसँ सरल उपाय अछि, वर्ड डोक्युमेंटकेँ पी.डी.एफ. फाइलमे परिवर्त्तित करू। एहिमे नफा नुकसान दुनू अछि। नफा जे बिना कोनो फांटक झंझटिक पी.डी.एफ.फाइल जाइ लिपिमे लिखल गेल अछि, ताहिमे पढ़ल जा’ सकैत अछि। एकर नुकसान जे जखने फाइलमे जा’ कय सेव एज टेक्स्ट करब तँ अंग्रेजीतँ सेव भय जायत, मुदा देवनागरी तेहन सेव होयत जे पढ़ि नहि सकी। दोसर यूनीकोडक मंगलमे टाइप कएल डॉक्युमेंटकेँ एडोब अक्रोबेटसँ पी.डी.एफ.मे परिवर्त्तित करबामे दिक्कत होय तँ संपूर्ण फाइलकेँ खोलि कय सेलेक्ट करू यूनीवर्सल यूनीकोड एम.एस.फांट ड्रॉप डाउन मेनूसँ सेलेक्ट करू फेर प्रिंटमे जा कय प्रिंटर एडोब एक्रोबेट सेलेक्ट करू। आब ई फाइल परिवर्त्तित भय जायत पी. डी. एफ.मे। आब वेबसाइट बनेबाक पूर्व किछु मुख्य बातकेँ देखि लिय’। चारि तरहक इंटरनेट ब्राउजर अछि, शेष सभटा एकरा सभकेँ आधार बना कय रचित अछि। तखन सभसँ पहिने ई चारू अपना कंप्युटरमे इंस्टॉल करू. 1.ओपेरा 2.मोजिल्ला 3.माइक्रोसॉफ्टक इंटरनेट एक्सप्लोरर(ई तँ होयबे करत) आ’ चारिमक बीटा(प्रायोगिक) वर्सन आयल अछि, 4. एपलक,अखन तक मेकिनटोसक लेल छल ई, सफारी (विंडोजक हेतु)। आब जखन वेब पेज उपलोद करू वा पहिनहु तँ एहि चारू पर खोलि कय जरूर देखि लिय’।(अनुवर्तते)
13. रचना लिखबासँ पहिने...
जेना मात्रिक छन्द वेदमे व्यवहार कएल गेल अछि, तहिना स्वरक पूर्ण रूपसँ विचार सेहो ओहि युग सँ भेटैत अछि। स्थूल रीतिसँ ई विभक्त अछि:- 1. उदात्त 2. उदात्ततर 3. अनुदात्त 4. अनुदात्ततर 5. स्वरित 6. अनुदात्तानुरक्तस्वरित
7. प्रचय (एकटा श्रुति-अनहत नाद जे बिना कोनो चीजक उत्पन्न होइत अछि, शेष सभटा अछि आहत नाद जे कोनो वस्तुसँ टकरओला पर उत्पन्न होइत अछि।)।
1. उदात्त- जे अकारादि स्वर कण्ठादि स्थानमे ऊर्ध्व भागमे बाजल जाइत अछि। एकरा लेल कोनो चेन्ह नहि अछि। 2. उदातात्तर- कण्ठादि अति ऊर्ध्व स्थानसँ बाजल जाइत अछि। 3. अनुदात्त- जे कण्ठादि स्थानमे अधोभागमे उच्चारित होइछ।नीचाँमे तीर्यक चेन्ह खचित कएल जाइछ। 4.अनुदातात्ततर- कण्ठादिसँ अत्यंत नीचाँ बाजल जाइत अछि। 5. स्वरित- जाहिमे अनुदात्त रहैत अछि किछु भाग आ’ किछु रहैत अछि उदात्त। ऊपरमे ठाढ़ रेखा खेंचल जाइत अछि, एहिमे। 6. अनुदाक्तानुरक्तस्वरित- जाहिमे उदात्त, स्वरित किंवा दुनू बादमे होइछ ,ई 3 प्रकारक होइछ। 7.प्रचय-स्वरितक बादक अनुदात्त रहलासँ अनाहत नाद प्रचयक,तानक उत्पत्ति होइत अछि। (अनुवर्तते)
14. प्रवासी मैथिल English मे
Uposatha is the Buddhist fast day,Upagupta was a famous Buddhist saint. A Jataka mentions a king of Videha and calls him Vedeha . He is made a contemporary of Chidani Brahmadatta of Kampilya who conquered all except Videha in the course of a little over seven years but was defeated by Vedeha due to the superior wisdom of the Videhan minister, Mahosadha. A new era of close intellectual co-operation between Videha on one side and the Kuru-Panchala country on the other . Bahulaiva is represented as the king of Mithila in the Bhagavata. There lie is depicted as a contemporary and devotee of Krishna who paid a visit to Mithila to see his Brahmana friend Srutadeva, so Bahulaiva flourished slightly before the Bharata War.Two events given in Purana belong to the reign of Bahulaiva, the visit of Balarama and Krishna to Mithila in search of a jewel and Duryodhana's training there under Balarama and the visit of Krishna to Mithila to show favour to Srutadeva and Bahulaiva. Krishna, Bhima and Arjuna went to Girivraj to have a fight with Jarasandha of Magadha, this event occurred in the reign of Bahulaiva of Mithila through which territory the three passed in their journey from Indraprastha to Rajagriha.A king of Mithila, called Janaka, was the disciple of Vyasa Krishna Dvaipayan who used to officiate at the sacrifices. Vyasa had a high opinion of the learning of his disciple. He asked his son Suka to go to him to learn the science of libera¬tion. Janaka received and instructed his son who later reported this to his father. This Janaka was Bahulaiva. The Bhagavata says that Suka was also with the Rishis who accompanied Krishna to Mithila to see Bahulaiva and Srutadeva. There were Jankriti, the last of the Janaka dynasty, might flourish even after Yudhishthira.The Puranas conclude with the remark that with Kriti ends the race of the janakas.We Know from Arthashashtra that Karala Janaka brought the line of Vaideha to an end. Karala is represented as the son of Nimi, whereas Kriti was the son of Bahula.Karala Janaka, king of Mithila, is known to the Brahmanical literature. Kriti flou¬rished after Siradhvaja but not after Vedic Janaka. Karala is reported to be cruel and unscrupulous. The names of Bahulaiva ,one with many horses and. Kriti,performance.The list of Puranas appears to be continuous and there is no apparent break, it is presumed that other Janakas are to follow. So, Kriti is not the last Janaka,who is a distinct Karala Janaka. The Puranas are assumed to have been narrated in the reigns of the Paurava king Adhisimakrishna, the Aikshvaku. Bahulaiva, the king of Mithila is a contem-porary of Krishna in the Bhagavata, his son Kriti cannot be identified with Karala on any account.With Kriti the main regular line of the Janakas closed and after him came irregular lines of the Janakas as we know from the¬ Jatakas and the Mahabharata.One of the clans of the Vajjian Republic were the Kauravas. Pandu, the Kuru king, get strengthened by the treasure and army from Magadha, went to Mithila and defeated the Videhas in battle. Vaideha Kritakshana was one of the princes who waited upon Yudhishthira in his palace newly constructed by Maya. He was Kriti as a Yuvaraja or as a King. Krishna, Bhima and Arjun on their way from Kuru to Rajagir, for fighting Jarasandha, took circuitous route through Mithila to avoid detection.Videha was a friendly country. The Videhas were defeated by Bhima on his digvijaya in the east and was staying with Vaidehas and then he could defeat other powers with comparative ease. The rivalry between the sons of Pandu and Dhritarashtra had its effect on the Videhas and Karna defeated these people and caused them to pay tribute to Duryodhana.Vaidehas were vanquish¬ed by Arjuna on the battle of bharata.At one place in Mahabharata the Videhas along with others attacked Arjuna, at another place they are in the army of Yudhishthira and are slain by Kripa.Balarama who did not take part in the Bharata war took refuge during the period in Mithila thus it may be surmised that Videha kings remained neutral in Bharata war.Pandu had conquered Mithila, Bhima subdued the Rajas of Mithila and Nepal but Duryodhana came to Mithila to learn Gada Yudha from Balarama, when Krishna and Balarama were in Mithila in quest of Syamantakamani. Later Balarama went on a pilgrimage and visited the ashrama of Pulaba-Salagrama and the Gandaki. After the Bharata war the Puranas do not provide us with any genealogical list for Videha and for this information is available from the Mahabharata and the Jatakas. Videhan king was reputed for the welfare and all were versed in the discourses of atman the grace of the Lord of the Yogas they were all free from the conflicting passions such as pleasure and pain, though they were leading a domestic life. The Buddhist literature mentions Makhadeva of Mithila and all his 84000 successors and says that they adopted the lives of ascetics after ruling over the kingdom.The kings of Videha are known to be sacrificers. Nimi and Vasishtha had a quarrel and cursed each other to become bodiless,i.e.,Videha. Both then went to Brahma and he assigned Nimi to the eyes of the creatures to wink ,i.e., nimesha, and said Vasishtha should be son of Mitra and Varuna with the name Vashistha. This fable just supply a reason for the birth from Mitra and Varuna. It says that long sacrifices were performed by the Videhan kings. Other famous sacrificers were Devarata and Siradhvaja. Devarata obtained the bow of Shiva which centred the sacrifice of Siradhvaja. The Yajna¬vata of Siradhvaja correspond to the sacrificial areas with temporary residences of members of the kingship in the manner described in YajurVeda. The barber who found a grey hair in Makhadeva's head got grant of a village, equivalent to a hundred thousand pieces of money. The King Satadyumna , Siradhvaja's second successor , gave a house to the¬ Brahmana Maudgalya descendant of King Mudgala of North Panchala. Vedeha, king of Videha, gave Mahosadha a thousand cows, a bull and an elephant and ten chariots drawn and sixteen excellent villages and the revenue taken at the four gates, when he was pleased with an answer given by him. Before becoming king he lived as a prince and ruled as a viceroythe the maneer exactly in the case of Makhadeva. The eldest son succeeded the throne when the old king adopted the life of an ascetic. The king was assisted by his ministers and the priest played an important role and the sages instructed the king. King Vedeha of Mithila had four sages, Senaka, Pukkusa, Kavinda and Devinda , who instructed him in the law. Senaka was most important and Senaka and Pukkusa were counsellors
-
"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
-
जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
-
खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।