भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Monday, July 28, 2008
'विदेह' १५ जून २००८ ( वर्ष १ मास ६ अंक १२ )7. संस्कृत शिक्षा चमैथिली शिक्षा च
मैथिली शिक्षा च (मैथिली भाषा जगज्जननी सीतायाः भाषा आसीत् - हनुमन्तः उक्तवान- मानुषीमिह संस्कृताम्)
(आगाँ)
-गजेन्द्र ठाकुर
सुभाषितम्
वयम् इदानीम एकं सुभाषितं श्रुण्मः।
आयत्यां गुणदोषज्ञः
तदात्वे क्षिप्रनिश्चयः।
अतीते कार्यशेषज्ञो
विपदा नाभिभूयते॥
वयम् इदानीम यत सुभाषितम् श्रुतवन्तः तस्य अर्थः एवम् अस्ति।
कश्चन् उत्तम कार्यकर्ता कथं व्यवहारं करोति। भविष्यत् काले यत् कार्यं करणीयम्। कार्यस्य गुणाः के अवगुणाः के इति सः चिन्तयति तदात्वे क्षिप्रनिश्चयः। यदा कार्यं सन्निहतं भविष्यति तदा अनुक्षणं निर्णयं करोति। अतीते कार्यशेषज्ञः यद कार्यं शिष्टं भवति, तस्य किम् इति चिन्तयति, एवं यद् कार्यम् अतीतम् अस्ति तत्र किम् शिष्टम् इति चिन्तयति- विपदा नाभिभूयते।
कथा
पूर्वं रायगढ़ दुर्गम् आसीत्। शिवाजी महाराजः तस्य पालनं करोति स्म। एका महिला आसीत्। सा प्रतिदिनं क्षीरविक्रयणं करोति स्म। रायगढ़ दुर्गस्य अन्तः आगत्य क्षीरविक्रयणं करोति स्म। तस्याः लघु पुत्रः आसीत्। तम् गृहे तिक्तवा दुर्गस्य अंतः आगत्य क्षीरविक्रयणं करोति स्म। प्रतिदिनम् अंधकारात् पूर्वं क्षीरविक्रयेण समापयित्व बहिः आगच्छति स्म। एकस्मिन् दिने सा क्षीरं विक्रयेण कुर्वति आसीत् तदा विलम्बः जातः। अंधकारः जातः। यदा महिला क्षीर विक्रयेणं समाप्य द्वार समीपम् आगतवती- तदा दुर्गस्य द्वारं पिहितम् आसीत्। सा तद्दृष्टवा रक्षकवटम् उक्तवती- कृपया द्वारम् उद्घाटयतु। मम शिशुः गृहे अस्ति। रक्षकवटः द्वारम् उद्घाटयतुं निराकृतवान्। पुनः सा महिला प्रार्थितवती। रक्षकवटं सा प्रार्थितवती- कृपया उद्घाटयतु। अहं बहिः गच्छामि। गृहे मम लघु-शिशुः अस्ति। तस्मै भोजनं दातव्यम् अस्ति। कृपया उद्घाटयतु। भवान् किमर्थं न उद्घाटयति। सा पृष्टवती। रक्षकवटः उक्तवान्- शिवाजी महाराजस्य सूचना अस्ति। अंधकारस्य अनन्तरं द्वारस्य उद्घाटनं न करणीयम्। इति। तद् श्रुत्वा सा महिला दिग्भ्रान्ता जातः। अहम् इदानीम गृहं कथं गच्छामि। सा तत्रैव मार्गस्य अन्वेषणं कृतवती। सर्वत्र अटितवती। एकत्र दुर्गस्य भित्तिः शिथिला आसीत्। सा महिला भित्तिम् आरूढ़वती। पार्श्वे एकः वृक्षः आसीत्। वृक्षस्य शाखां गृहित्वा उत्तिर्य सा कथमपि दुर्गात् बहिः आगतवती। अनन्तर दिने शिवाजी महाराजः एतां वार्तां श्रुतवान। सः ताम महिलाम् आहूतवान। ताम सः पृष्टवान। भवती कथं गतवती। तदा सा उक्तवती। अहं किमपि न जानामि। तदा मम कर्णयोः केवलं मम शिशोः क्रन्दनं श्रुयति स्म। अहं कथमपि दुर्गात् बहिः गतवती। तत श्रुत्वा शिवाजी महाराजः संतुष्टः अभवत्। तस्यै महिलायै सः पारितिषिकं दत्तवान।
सम्भाषणम्
एकवचनतः बहुवचनं प्रति परिवर्त्तनं कृतम् अस्ति।
बालकः विद्यालयं गतवान। बालक विद्यालय गेलाह।
बालकाः विद्यालयं गतवन्तः। बालक लोकनि विद्यालय गेलाह।
इदानीम् एकवचनतः बहुवचनं प्रति परिवर्तनं कुर्वन्ति एव।
युवकः योगाभ्यासं कृतवान। युवक योगाभ्यास कएलन्हि।
युवकाः योगाभ्यासं कृतवन्तः। युवक लोकनि योगाभ्यास कएलन्हि।
नर्तकः नृत्यं कृतवान। नर्तक नृत्य कएलन्हि।
नर्तकाः नृत्यं कृतवान। नर्तक लोकनि नृत्य कएलन्हि।
अलसं निद्रां कृतवान। आलसी निद्रा कएलन्हि।
अलसाः निद्रां कृतवन्तः। आलसी लोकनि निद्रा कएलन्हि।
सैनिकः जयं प्राप्तवान। सैनिक जय प्राप्त कएलन्हि।
सैनिकाः जयं प्राप्तवन्तः। सैनिक लोकनि जय प्राप्त कएलन्हि।
बालकः ग्रन्थं स्मृतवान। बालक ग्रंथ यादि कएलन्हि।
बालकाः ग्रन्थं स्मृतवान। बालक लोकनि ग्रन्थ यादि कएलन्हि।
बालिका पाठं पठितवती। बालिका पाठ पढ़लन्हि।
बालिकाः पाठं पठितवत्यः। बालिका लोकनि पाठ पढ़लन्हि।
बालिका विद्यालयं गतवती। बालिका विद्यालय गेलीह।
बालिकाः विद्यालयं गतवत्यः। बालिका लोकनि विद्यालय गेलीह।
वैद्या चिकित्सालयं गतवती। वैद्या चिकित्सालय गेलीह।
वैद्याः चिकित्सालयं गतवत्यः। वैद्या लोकनि चिकित्सालय गेलीह।
सखी नगरं गतवती। सखी नगर गेलीह।
सख्याः नगरं गतवत्यः। सखी लोकनि नगर गेलीह।
लेखिका लेखं लिखितवती। लेखिका लेख लिखलन्हि।
लेखिका लेखं लिखितवत्यः। लेखिका लोकनि लेख लिखलन्हि।
भगिनी गानं गीतवती। बहिन गीत गओलन्हि।
भगिन्यः गानं गीतवत्यः। बहिन लोकनि गीत गओलन्हि।
नटी नृत्यं कृतवती। नर्तकी नृत्य कएलन्हि।
नट्यः नृत्यं कृतवत्यः। नर्तकी लोकनि नृत्य कएलन्हि।
अहं रामायणं, महाभारतं, भगवतगीतां च पठामि।
हम रामायण, महाभारत आऽ भगवतगीता पढ़ैत छी।
अहम् अन्नं, पायसं, लड्डूकं च खादामि।
हम अन्न, पायस आऽ लड्डू खाइत छी।
सुब्रमण्यं लेखनीं, करवस्त्रं च आनयतु।
सुब्रमण्यं कलमअ आऽ रुमाल आनू।
सुब्रमण्यं लेखनीं, करवस्त्रं च नयतु।
सुब्रमण्यं कलमअ आऽ रुमाल लए जाऊ।
मम गृहे माता, पिता, भ्राता च सन्ति।
हमर गृहमे माता, पिता आऽ भ्राता छथि।
भवतः गृहे के के सन्ति।
अहाँक गृहमे के के छथि।
भवत्याः गृहे के के सन्ति।
अहाँसभक गृहमे के के छथि।
भवत्याः किम् किम् खादन्ति।
अहाँ सभ की की खाइत छी।
भवत्याः कां कां भाषां जानन्ति।
अहाँ सभ कोन कोन भाषा जनैत छी।
भवन्तः किम् किम् कुर्वन्ति।
अहाँ सभ की की करित छी।
भवती किम् किम् करोति।
अहाँ की की करैत छी।
इदानीं भवन्तः च योजयित्वा वाक्यानि वदन्ति एव।
आम् वदामः।
अहं चेन्नै नगरं, मुम्बइ नगरं, दिल्ली नगरं च दृष्टवान।
हम चेन्नै नगर, मुम्बइ नगर आऽ दिल्ली नगर देखलहुँ।
अहं चेन्नै नगरं, मुम्बइ नगरं, दिल्ली नगरं च दृष्टवती।
हम चेन्नै नगर, मुम्बइ नगर आऽ दिल्ली नगर देखलहुँ।
भवन्तः किम् किम् दृष्टवन्तः।
अहाँ लोकनि की की देखलहुँ।
अभिषेकः कोलाहलं करोति- अतः अहं ताडयामि।
अभिषेक कोलाहल करैत छथि- ताहि द्वारे हम मारैत छियन्हि।
मम बहु पिपासा अतः अहं जलं पीबामि।
हमरा बड़ प्यास लागल अछि ताहि द्वारे हम जल पिबैत छी।
मम बहु बुभुक्षा अस्ति, अतः भोजनं करोमि। हमरा बड़ भूख लागल अछि, ताहि द्वारे भोजन करैत छी।
वाहने ईंधनं नास्ति, अतः वाहनं न चलति। वाहनमे ईंधन नहि अछि, ताहि द्वारे वाहन नहि चलैत अछि।
अतः- उपयोगं कृत्वा वाक्यानि वदन्ति एव।
गोपालः रुग्नः अस्ति, अतः सः शालां न गच्छति।
गोपाल दुःखित अछि, ताहि द्वारे पाठशाला नहि जाइत अछि।
गोपालः रुग्नः अस्ति, अतः निद्रां करोति।
गोपाल दुःखित अछि, ताहि द्वारे सुतैत अछि।
गोपालः रुग्नः अस्ति, अतः चिकित्सालयं गच्छति।
गोपाल दुःखित अछि, ताहि द्वारे चिकित्सालय जाइत अछि।
गोपालः रुग्नः अस्ति, अतः न क्रीडति।
गोपाल दुःखित अछि, ताहि द्वारे नहि खेलाइत अछि।
मंत्री आगच्छति, अतः कार्यक्रमः भवति।
मंत्री अबैत छथि, ताहि द्वारे कार्यक्रम होइत अछि।
मंत्री आगच्छति, अतः सर्वे तम नमन्ति।
मंत्री अबैत छथि, ताहि द्वारे सभ हुनका नमस्कार करैत छथि।
मंत्री आगच्छति, अतः सर्वे उत्तिष्ठन्ति।
मंत्री अबैत छथि, ताहि द्वारे सभ उठैत छथि।
परीक्षा अस्ति, अतः छात्राः निद्रां न कुर्वन्ति।
परीक्षा अछि, ताहि द्वारे सभ छात्र निद्रा नहि करित छथि।
परीक्षा अस्ति, अतः सर्वे छात्राः शालां आगच्छन्ति।
परीक्षा अछि, ताहि द्वारे सभ छात्र पाठशाला अबैत छथि।
परीक्षा अस्ति, अतः वयं सर्वे अधिकः पठामः।
परीक्षा अछि, ताहि द्वारे सभ छात्र अधिक पढ़ैत छथि।
उत्सवः अस्ति, अतः अहं सम्यक् मधुरं खादामि।
उत्सव अछि, ताहि द्वारे हम बहुत रास मधुर खाइत छी।
उत्सवः अस्ति, अतः सर्वे जनाः उत्सुकाः भवन्ति।
उत्सव अछि, ताहि द्वारे सभ लोक उत्सुक होइत छथि।
उत्सवः अस्ति, अतः सर्वे जनाः देवालयं गच्छन्ति।
उत्सव अछि, ताहि द्वारे सभ लोक देवालय जाइत छथि।
मम हस्ते नानकम् अस्ति। हमर हाथमे पाइ अछि।
नानकम वाम हस्ते अस्ति वा दक्षिण हस्ते अस्ति वा?
पाइ बाम हाथमे अछि आकि दहिन हाथमे अछि?
वदन्तु। बाजए जाऊ।
वाम हस्ते। न दक्षिण हस्ते।
बाम हाथमे। नहि दक्षिण हाथमे।
नानकं वाम हस्ते एव अस्ति।
पाइ बाम हाथहिमे अछि।
अहं चायम् एव पिबामि।
हम चाहेटा पिबैत छी।
मम पिता कार्यालय एव अस्ति।
हमर पिता कार्यालयअहि मे छथि।
अहं सत्यमेव वदामि।
हम सत्ये टा बजैत छी।
अहं प्रातः रोटिकां खादामि।
हम भोरमे सोहारी खैत छी।
अत्र एव योजयित्वा वाक्यं वदन्ति एव- यथा अहं प्रातः एव रोटिकां खादामि। सायंकाले खादन्ति। न। मध्याह्णकाले खादन्ति। न।
मालती। आम। मम उपनेत्रं कुत्र अस्ति।
मालती। हँ। हमर चश्मा कतए अछि।
तत्रैव अस्ति। ओतहि अछि।
अत्र कुत्रापि नास्ति एव खलु।
एतए कतहु नहि अछि।
तत्रैव अस्ति भः।
ओतहि अछि, यौ।
अत्र नास्ति एव। एतए नहि अछि।
अहं जानामि भोः। तत्रैव अस्ति।
हम जनैत छी। ओतहि अछि।
अत्र नास्ति एव भोः।
एतए नहि अछि।
अहो पश्यतु। अत्रैव अस्ति।
अहा। देखू। एतहि अछि।
अहं प्रतिदिनं शालां गच्छामि।
हम सभ दिन पाठाशाला जाइत छी।
अहं न श्रुतवान। सः किम् इति उक्तवान।
हम नहि सुनलहुँ। ओऽ की बजलाह।
सः अहं प्रतिदिनं शालां गच्छामि इति उक्तवान।
ओऽ हम सभ दिन पाठशाला जाइत छी ई बजलाह।
सा किम् इति उक्तवती।
ओऽ की बजलीह।
सा रमा प्रतिदिनं देवालयं गच्छति इति उक्तवती।
ओऽ रमा प्रतिदिन विद्यालय जाइत छथि ई बजलीह।
अहम् एकं शब्दं लिखामि।
हम एकटा शब्द लिखैत छी।
अहं किम् इति लिखितवान।
हम की लिखलहुँ।
भवान् परीक्षा इति लिखितवान।
अहाँ परीक्षा ई लिखलहुँ।
सः कर्णे किम् वदति।
ओऽ कानमे की बजैत छथि।
एषः अहं शालां गच्छामि, इति उक्तवान।
ई हम पाठशाला जाइत छी, ई बजलाह।
साधयतु अथवा विनश्यतु, इति महात्मा गाँधी उक्तवान।
करू वा मरू ई महात्मा गाँधी बजलाह।
(कः किम् इति उक्तवान।
के की बजलाह।)
अहं पत्राणि प्रदर्शयामि।
शरीर माध्यं खलु धर्म साधनम् इति कालिदासः उक्तवान।
शरीर मात्र धर्मक साधनक माध्यम ई कालिदास बजलाह।
जय जवान जय किसान इति लाल बहादुर शास्त्री उक्तवान।
जय जवान जय किसान ई लाल बहादुर शास्त्री बजलाह।
गृहे माता अस्ति। माता सम्यक पठतु इति वदति।
गृहमे माता छथि। माता मोनसँ पढ़ु ई बजैत छथि।
मम माता अधिकं दूरदर्शनं न पश्यतु इति उक्तवती।
हमर माता बेशी दूरदर्शन नहि देखू ई बाजल/ बजलीह।
मम पिता सत्यं वद इति उक्तवान।
हमर पिता सत्य बाजू ई बजलाह।
गृहे अन्य के के किम् वदन्ति इति वदतु।
घरमे आन के के की की बहैत छथि से बाजू।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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