भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Thursday, July 17, 2008

पेटार २

ओभरलोड
ललित

जलखैक छिपली टेबुल पर राखि दीनानाथकेँ अपन बर्दीमे ठेहिऐल सन देखि शीला बाजलि-कपड़ो बदलब की अहिना जलखै करब?
ओह फेर ड्यूटी पर जाए पड़त-कहि दीनानाथ छिपलीकेँ सुविधाजनक दूरी पर घीचि खाए लगलाह।
उपरागक स्वरेँ शीला बाजलि-एक भोरक गेल एखन आएल छी आ, फेरो जाएब? बाढ़नि झाँटी अइ ड्यूटीकेँ। नेहाल आ’ सनाथ हैत जान द’ क’।
शीलाक दिस ताकि एक बेर ठोर पर मुसकीक लहरि आनि दीनानाथ अपन भाकुर सनक गलफड़मे तारमतोड़ परोठाक टुकड़ीकेँ माछक झोरमे बोरि-बोरि कोंच’ लगलाह।
खाइत खाइत शीला दिस तकलनि... गर्भभारसँ अलस-शिथिल अंग... मुँहक गोराइ पीरौंछ... बेडौल आकृति।
फेर पुछलखिन-रामू नइं आएल अछि?
गेल हैत काॅलेजसँ मैच-तैच देखए! काल्हि फीस लगतै...।
आ शम्भू?
बहत्तर भ’ गेल... स्कूलसँ आबि हल्ला कर’ लागल जे पाइ दे... सिनेमा जाएब। आइए कोनदन चन्दा दू टाका द’ एलैए... रूसि क’ पड़ा गेल... जलखैओ नइं केलक अछि।
हूँ-मुँहक कौर घोंटि दीनानाथ फेर जिज्ञासा केलखिन-आ कान्ताक मोन केहन छइ? टेम्परेचर नेने रहिअइ?
किंचित निराश स्वरेँ शीला बाजलि-हूँ... बेरिआंमे एक सै एक रहै।
मिआदी छइ... फेर गिलासक पानि एके साँसें पीबि खाली गिलास शीला दिस घुसका देलनि। आशय बुझि शीला गिलास ल’ बाहर चलि गेल।
तृप्तिक ढेकार ल’ दीनानाथ खिड़कीक बाहर तकलनि।
साँझुक गुमसुम आकाश... एकटा विचित्रा प्रकारक चुप्पीसँ भरल छल-ने चन्द्र, ने सूर्य... ने तारा, ने मेघ... ने बरसात, ने रंग... मात्रा एक मैलछौं प्रसार जे आगाँ जा पैघ पैघ मकानक कामदार मुड़ेड़ाक पाछाँ नुका रहल छल।
ता शीला गिलासमे पानि नेने उपस्थित छल। ओकरा हाथसँ गिलास लैत दीनानाथ पुछलखिन-हँ आ बिस्सू त इन्टरव्यूमे गेल छल आइ? की किछु कहितो छल?
की जानए गेलिऐ!-स्वरमे उपेक्षा आनि शीला बाजलि-हुनकर गप्पक अर्थ नइं लगइए।
पानि पीबि किंचित सहानुभूतिक स्वरेँ दीनानाथ बजलाह-बेकार अछि एखन... आइ भगवानक कृपासँ नोकरी लागि जाउ त सभटा समाजवादी दर्शन, मगजसँ ‘नंगड़ी सुटकन्त जात खड़ही’ भ’ जेतैक।
जेबीसँ केप्सटनक डिब्बी बहार क’ एकटा सिगरेट सुनगा दीनानाथ सिंह दरोगा पुनः एक बेर अपन गढ़ुआर पत्नीक बेडौल आकृति दिस तकलनि। शीला अपन लज्जानत आँखि कुर्सीक पौआ पर स्थिर क’ लेलक।
दीनानाथकेँ कोनो खास खुशी कहाँ भेलनि। मिसिओ भरि नइं। एहिसँ त पहिनहुँ अही अंदाजसँ चारि बेर ओ माइ बनल रहथि। ई त पाँचम प्रयत्न रहनि।
दीनानाथ अपन पैघ परिवारक एकमात्रा सोंगर रहथि। एकटा बूढ़ि माइ, तीनटा कनटिरबा, जेठजन आइ. एस-सी.मे पढ़ैत, माझिल दसम आ सबसँ छोट पाँचममे पढै़त! समर्थि बेटीक बिआहक चिन्ता जते कोनो धर्मनिष्ठ राजपूतकेँ होमक चाही ताइसँ कौड़िओ कम दीनानाथकेँ अपन दुलारू कान्ताक नइं रहनि। अलाबे एकर छोट भाइ विश्वानाथक भार, जे बी. काॅम. आ बेकाम दुनू छल। ताहू पर ई महगी आ उपरका आमदनी दिन पर दिन कम्मे भेल जाइन। खर्चक अभ्यस्त हाथ, खाएल पीउल देह... आमदनी हुनकर जाड़कालक ओइ छोटकिनमी सीरक जकाँ रहनि, जाइसँ एम्हरसँ झाँपू त’ ओम्हर उघार... ओम्हरसँ झाँपू त एम्हर उघाड़।
शीला दिस तकइत-तकइत एक बेर हँसलाह। आँखिमे जिज्ञासा आनि शीला हुनका दिस तकलनि।
आँखि मिल-मिला कोंचिऐल ठोरेँ धुआँक पैघ डांड़ि छोड़ि अस्फुट स्वरेँ बजला दीनानाथ-ऊँ... रातुक एकटा सपना मोन पड़ल!
भौंहक संगहि शीलाक डिम्हा एक बेर ऊपर उठलै!
देखलहुँ जे एकटा महाग विस्तर धारमे हेलि रहल छी... ओइमे भाँति-भाँतिक कीड़ा आ छोट पैघ जोंक अछि। हमरो बाँहि हाथ... छाबा... जांघमे मारिते रास जोंक लुधकल सोनित चुसैत रहए। ओह! कारी... कारी... गुज गुज करइत... एखनहुँ देह सिहरि जाइए... हे देखू रोंइआँ ठाढ़ भ’ गेल। फेर कहइ छी एकटा जोंककेँ घीचि क’ देखिलिऐ त’ ओ बदलि गेल... आ...
तखन...?
ओ... माने जोंक बदलिकेँ रामू भ’ गेल... आ हँसए लागल। आ’ दीनानाथ भभा क’ हँसलाह।
सपनोक विचित्रा गति।
की कहलिअइ भाइ... कोन जोंक... कोठरीक भीतर पैसैत बिस्सू पुछलकनि।
बिस्सू... की... की भेलहु ‘इन्टरव्यू’मे? की सब पुछलकौ? उत्कण्ठित जिज्ञासा रहनि दीनानाथक!
मारू गोली... ई सब भाभट छइ... खाली टाटक। हँ! जोंक द किदन कहइ छलिऐ एखन?
ओ रतुका सपना...!-आ दीनानाथ हँसि-हँसि अपन सपना कहि देलखिन।
भाइ, आ दोसर जोंक घीचि क’ देखितिऐ, तँ ओ हम रहितहुँ... तेसरकेँ देखतिऐ, तँ ओ भौजी रहितथि... आ...।-गम्भीर होइत बिस्सू बाजल।
दीनानाथ हँसए लगलाह। बजलाह-सत्ते बिस्सू तोहर मगज खराप भ’ गेलौ’ए। कहाँ सपनाक जोंक, कहाँ तों, रामू, तोहर भाउज... ऐं... कह...।
भाइ, हम अहाँ ओइ नजरिएँ देखबाक अभ्यस्त भ’ गेल छी। आइ समस्त मध्यवर्गीय बुद्धिजीवीक इएह हाल छइ। कमाइबला एक गोट... खाइबला दस। इएह ‘पैरासिटिज्म’ हमरा लोकनिक अइ दलित अवस्थाक कारण अछि। हजार कच्छे हमरासँ नीक एखन अहाँक श्रमजीवी अछि। से नइं, अपने डेरामे जे दाइ काज करै अछि, तकरे देखिऔ... तीनू सासु-पुतौह तीन डेराक काज धएने अछि... तीस टाका महीना आ तीन थारी भात नित्त। घरबला भरि दिन ईंटा ऊघि क’ अबैत छइ आ साँझ क’ निसाँमे उठबैत अछि महराइ। ...औ अपना लोकनि ओकरोसँ बत्तर छी। हमरा अहाँमे, जे जते बेकार से तेहन उदार, तते पैघ सिद्धान्त पांगत। हजारो ‘कन्वेशन’क मोनिमे हम अहाँ घुरिआइ छी। स्वप्नमे इएह ‘पैरासिटिज्म’ देखल’छि अहाँ... हम सब अहाँक सोनित सिसोहै छी।
विकल स्वरेँ दीनानाथ बजलाह-देख बिस्सू। कहाँक गप्प तों कहाँ आनि देलें। अपन बाल-बच्चा... अपन परिवारक पालन, के नइं करैए? अइमे सोनित सिसोहक कोन गप्प भेलइ?
पीअर मुँह पर हँसी आनि शीला बाजलि-कोनो हर्ज नइं छोटका बाबू... कनियाँ आनब त’ कहि देबनि, जे दाइ अपन अन्न-वस्त्राक फिकिर करू... खाली नामक साँइ हम, घोड़-गदहासँ रखबारी करै लै, रब्बीक खेतमे जेना ख’ढ़क मनुक्ख।
जेठ भाइक सोंझा एहि हास्यसँ अप्रतिभ विश्वनाथ ‘दुत्’ कहि कोठरीक बहार भ’ गेल। दीनानाथ कनिएँ मुसकि उठलाह, आ शीला सगर्व आँखिएँ अपन अकाट्य तर्कक प्रशंसा पतिक आँखिमे ताकि लेलनि।
ठेहीक अंगेठी लैत दीनानाथ ठाढ़ भेलाह। टेबुल पर राखल अपन सटका काँख तर दाबि देबालमे ठोकल ऐनामे मुँह देखलनि... रुक्ख आ घुरिऐल घोड़केसा... फूलल-फूलल गाल... भकरार मोंछ... दुब्बर भौंहक तरमे गोल-मोल आँखि।
शीला दिस ताकि बजलाह-चली... रिक्शाक ओवरलोड पकड़’क अछि... एक्सीडेंट आइ काल्हि बढ़ि गलैक अछि।
डेरासँ जखन बहार भेलाह त’ दीनानाथक दिमागी मैदानमे चिन्ता परेड करए लगलनि... रामूक अबारागर्दी... बिस्सूक बेकारी... परसू बाढ़ि-पीड़ित क्षेत्राक मोआयना करए मिनिस्टर साहेब औताह... ठाकुर दीनदयाल सिंहक दिससँ सर्किटहाउसमे हुनक टी-पार्टी... तीन तारीखकेँ स्वास्थ्य-मन्त्राीक अबाइ... जनता हाई स्कूलक उद्घाटन लेल... हँ... काल्हि डी. एस. पी. साहेबक दू दर्जन अण्डा...।
गली अन्हार भ’ गेल रहै। मोड़ पर एकाधटा लैंप। गलीक दुनू कात खिड़कीक उज्ज्वल ठोर खोलि भभा क’ हँसैत ऊँच-ऊँच कटगर मकानसँ बहराइ बला गन्दा नालीसँ अत्यन्त सड़ाइन गन्ह बहार भ’ गलीक अन्धकारकेँ विषाक्त क’ रहल छल। जेबीसँ बहार क’ घमाइन... मइल रुमालसँ अपन नाक बन्द क’ लेलनि। लैंपक इजोतमे देखलनि, फुटपाथ पर एकटा नांगड़ भिखमंगा, एकटा कुबड़ाहि भिखमंगनीसँ मुसुकि-मुसुकि गप्प क’ रहल छल। ओकर सटले एकटा छरहरिआ जबान गुदड़ी-गुदड़ी अंगा पहिरने... पैरमे थोड़े लत्ता लपेटने पातमे सँ किछु फँकैत छल आ बीच-बीचमे पिच्चल नाक आ मोट ठोरवाली ओइ कुबड़ी दिस भूखल नजरिएँ देखि लेल करैक, जे रहि-रहि छिट्टा सनक माथकेँ चांगुर सन आँगुरसँ नोचैत छल। नालीक कातमे रोंइउड़ड़ा कुकूर टक्क लगा क’ ओकर पात दिस देखैत रहै, आ ओहिमे सँ खसैत अन्न पर दुहू एके बेर चोट करै... जे पाबि जाए से जीह लाड़ि पुनः टकटकी लगाबए, आ असल पिल्ला प्रतिद्वन्द्वी पर एकाध बेर हुमड़ि घुमड़ि फेर दोसर अवसर लेल साकांक्ष भ’ जाए।
नंगड़ा ओइ पतरसुट्टा दिस ताकि नहुँएसँ किछु बाजल, जाहि पर ओ कुबड़ी सशब्द बिहुँसलि। दोसरहि क्षण हाथक दोना फेकि पतरसुट्टा ओइ नंगड़ा पर झपटल आ दुहू कुकूर ओहि दोकानक चारू कात कटाउझ करए लागल। दीनानाथक भारी बूटक आबाज सूनि लड़नाइ छोड़ि, दुनू हिनका दिस तकलक आ एके बेर एकटा ‘उपगलीक’ अन्धकारमे बिला गेल। खाली ओ कुबड़ी मात्रा ठाढ़ि भ’ लैंपक इजोतमे अपन मोट-मोट ठोरकेँ फराक कैने भय विस्फारित गोल-गोल आँखिएँ हिनका दिस तकैत रहलि। कुकूर दुनू लड़ैत-लड़ैत दोनासँ किछु फराक भ’ गेल छल। दीनानाथक भारी बूट दोनाकेँ अनायास पीचि क’ आगाँ बढ़ि गेल।
गली आ सड़कक मिलान पर जे सिन्धी चाहक दोकान छल तकर गन्दा टेबुलकेँ गन्दा कपड़ासँ पोछैवला गन्दा छौंड़ा दोकानक कगनी पर ठाढ़ भेल बिहुँसैत आँखिएँ मैल चिट चिट नूआ पहिरने नलसँ पानि भरैत एकटा विगत यौवनाकेँ देखि रहल छल। सड़कक रमन-चमन बढ़ि गेल छलै। रिक्शाक टुन टुन... मोटरक पों पों आ ताँगावलाक मिलल जुलल शब्द आबि रहल छल।
फुटपाथ ध’ दीनानाथ बिदा भेलाह, अभ्यस्त सन ओइ चैक दिस, जे दुनू सिनेमाक बीचमे छल। एतहि तँ कैक बेर ओ ड्यूटीक संग आमदनी केलनि अछि।
मोड़ पर जा अपन परिचित पानवलासँ एकटा कैप्सटन ल’ दोकानक बगलमे कुर्सी घीचि बैसि रहलाह। सिकरेट पिबैत-पिबैत हुनक तीव्र नजरि कउखन सड़कक एम्हर, कउखन ओम्हर आबै जाइ वला रिक्शाकेँ देखि रहल छल।
हँ... ओएह रिक्शे त’... तीन गोटे मने बैसल अछि। नइं दुइएटा। एकटा महाग विशालकाय स्त्राी अपन फूलल मुँह पर स्नो पाउडरक चमक नेने... आ ओकरासँ सुटुकिकेँ बैसल... कोरामे एकटा काचक मुरूत सन कनटिरबीकेँ बैसौने, महाग दुब्बर, अधबयसू गम्भीर मुद्रामे। आ रिक्शावला? जकरा मोंछक पम्हो नइं चलल छलै, तेहने छौंड़ा एकटा डाँड़ उठा पैडिल पर जोर दैत सड़कक चढ़ाइ खतम क’ रहल छल।
पैर पसारि कुर्सीसँ किंचित ओठंगि मुँहसँ सिकरेटक धुआँ फेकि दीनानाथ उप्पर अकाश दिस तकलनि... बिजलीक इजोतसँ भोथ आँखिकेँ अकाश अन्हार कुप्प लगलै। फेर तारा देखैमे एलनि... अकाशोमे ओवरलोड... तारा सब छिटकल एकदम सटि सटि...।
विचित्रा प्रकारक ठेही हिनका आपादमस्तक आच्छन्न क’ देलकनि। दम्म
साधि कन्हाकेँ एक बेर ऊपर दबा एकटा प्रच्छन्न अंगैठी केलनि।
भाइ... कमाइबला एक, खाइबला दस... इएह पैरासिटिज्म... हम सब अहाँक सोनित सिसोहैत छी। ...सहसा अपन छोट भाइक शब्द हुनका मोन पड़ि गेलनि आ बिस्सूक बुड़िबकइ... ओकर हुड्ड स्वभाव पर ममतापूर्वक ई फेरो बिहुँसलाह। एतेमे सड़कक ढलान पर अत्यन्त तेजीसँ जाइत रिक्शाक पों पों हिनक अन्यमनस्कता तोड़लक। फेर सतर्क भ’ देखए लगलाह। शिकार सुझलनि। एकटा रिक्शा अबइ छल... ओहार(हुड्ड) तनाएल... जकर बीचो-बीच ओकर बातीसँ एकर मूड़ी ढाही लड़ैत छल लग अएला पर दीनानाथ अपन सहज कर्कश स्वरेँ सोर पाड़लखिन-ए रिक्शा!
हिनका दिस एक बेर ताकि रिक्शाकेँ कतबहि दबा ओ रिक्शासँ उतरल। हिनका लग आबि अपन घमाएल हाथकेँ रुक्ख केश लग ल’ जाए बाजल-सलाम हजूर!
ओकर प्रणामसँ अप्रभावित सन जेबीसँ नोट-बुक बहार क’ बजलाह-ओवरलोड छौक... लाइसेन्स बहार कर।
दुनू ठोर पसारि बन्द दाँतें ऊपर मुँहें बसात घीचि रिक्शावला क्षण भरि चुप्प ठाढ़ रहल।
पैण्टक भितरी जेबीमे ओकर दहिना हाथक आँगुर किछु क्रियाशील भेल आ एकटा छोट-छीन मोड़ल कूट बहार क’ राखि देलक दीनानाथक बामा तरहत्थी पर।
मैलछौंह लाइसेन्सक नीचाँ हिनका तरहत्थीकेँ किछु गोलाइ, किछु चिकनाहटि आ सरदक अनुभव भेलनि।
आँगुरक संकेतसँ लाइसेन्स कनछिआ क’ देखलनि... एकटा रुपैया... फेर एक बेर ओकरा दिस तेज नजरिएँ देखलनि। हिनक नजरिक मर्म बुझि ओ कठहँसी हँसि बाजल... हें... हें हजूर... माइ-बाप... मारकीट डौन...।
गम्भीर आकृतिएँ दीनानाथ अपन दहिना हाथक आँगुरसँ खेलाइत पेन्सिलक, जकर कारी लीड मने ठेहीक दुआरे मैल काठमे समाधिस्थ छल, सोझ केलनि, आर नोटबुक पर किछु लिखलनि, जाहि पर चिक्कन पेन्सिलक खरखर काठसँ चिरचिरी पड़ा गेलै। लाइसेन्स ल’ रिक्शावला बिदा भेल। रिक्शाक ओहार मोड़ा गेल छल, आ ओहि पर तीनटा युवक बैसल रहथि, एक गोटे भावुक ढंगें सिकरेटक धुआँ मुँहसँ बहार करैत... दोसर कुंजीक जिंजीरकंे तर्जनीमे घुमबैत... अंग्रेजी भासक कोनो गाना सीटी पर गबैत... आ तेसर, बीचमे उकरू भेल बैसल खँउझाएल नजरिएँ कोबरा डेगें चलैत रिक्शावालाकेँ देखैत!
हजूर पान... दीनानाथ घूमि क’ तकलनि। पानवला अपन कठघरासँ उचकि क’ हिनका दू खिल्ली पान बढ़ा रहल छल।
पान मुँहगत क’ पुनः गम्भीर मुद्रासँ सड़क दिस ताक’ लगलाह। फस्ट शो खतम भ’ चुकल छल। लोकक कोलाहल बढ़ि गेल रहै। सड़क पर चुट्टी ससरक दओड़ नइं!
भीड़क दुआरे एकटा रिक्शावला नहुँ-नहुँ रिक्शा गुड़कौने हिनका लगे बाटे जा रहल छल... तीन गोटा... दीनानाथक अभ्यस्त नजरि देखलक... आ मुँहसँ बहार भेलनि... ए रिक्शा!
फेर भावावेशमे, जे कहुँ ओ आगाँ ने बढ़ि जाए, ई ठाढ़ भ’ गेलाह। मुदा रिक्शावला हिनका दिश तकलक... रिक्शा ठाढ़ क’ लग आएल। हिनक बर्दी देखि अनभ्यस्त हाथें हिनका प्रणाम कैलक।
ओवरलोड छउक... लाइसेन्स ला!
ओ अत्यन्त अनभिज्ञ नजरिएँ हिनका दिस ताकि चुप्प छल।
कते दिनसँ रिक्शा चलबैत छें?
आइ आठ दिनसँ सरकार!
लाइसेन्स छौक?
हँ सरकार-कहि ओ फुर्तीसँ जेबीसँ लाइसेन्स बहार क’ हिनका अपन गप्पक सत्यता प्रमाणित क’ देलकनि। ओकर हाथसँ लाइसेन्स ल’ दीनानाथ ओकरा दिस तकलनि। ओकर मुँह पर देहातक शुद्ध छाप छलइ... आन रिक्शावलासँ ओकरामे ओतबे अन्तर छलइ, जतबा कोनो धारसँ बहार टटका आ हाट परहक मइल मुँह भाकुरमे!
तीन गोटाकेँ चढ़ाब’क हुकुम छै?
नइं सरकार... ई सब कहलखिन जे चल-चल हम सब विद्यार्थी छी... के पकड़तौक आ कनिएँ फराक राखल रिक्शा परहक सवारी दिस तकलक।
अच्छा सवारी पहुँचा क’ घूम। भयभीत नजरिएँ ओ हिनका दिस ताकि अपन रिक्शा दिस विदा भेल।
दीनानाथ ओइ रिक्शावलाक शुद्ध निश्छल व्यवहार पर सोचए लगलाह... ओकर घर हेतइ फटकी... दूर कोनो देहातमे... भाइ-बहीन... बहु... बाप... सबकेँ छोड़ि आएल अछि जीविकोपार्जन लेल...।
ऊफ! परीशान कर डाला... रे मील का रास्ता नहीं जानते हो क्या... फिर
उधर...?
दीनानाथ देखलनि... व्यंग्यक चित्राक मोटाइ नेने एकटा नवयुवक रिक्शा पर बैसल ई कथा बाजल छल। ओकरा चीन्है छलखिन... बजरंग राइस-मिल्सक मालिकक बेटा... रिक्शावला अप्रतिभ मुँहें नीचा उतरि सीट आ हैंडिल धएने... घामे-पसीने तर भेल, सड़कक चढ़ाइ पार क’ रहल छल।
दीनानाथ सोचलनि... असलमे ओवरलोड ई थीक... कारण दुनू ओवरलोड जे ई पकड़ने छलाह, से तकर छबो सवारीसँ अवस्से एकर जोख बेसी हेतै। मुदा की एकरा ओवरलोडमे पकड़ि सकइ छथिन... ऊँ हूँ... कथमपि नइं...
मुट्ठीमे राखल लाइसेन्स दिस तकलनि... लाइसेन्स, जे ई आदमी घोड़ा-बड़द जकाँ बोझ ऊघि सकइछ... लाइसेन्स, मनुक्खसँ जानवर बनै लेल लाइसेन्स...। फेर मोन पड़लनि ओ रिक्शावला, ओकर निश्छल भाव भंगिमा... ओकरो घरमे बेसी लोक हेतै... आ, एखन अपन परिवार मोन पड़लनि, रामूकेँ यूनिवर्सिटी फीस लगतैक... पचास टाका बारह आना... अपन पत्नी... गर्भाभारसँ अलस-शिथिल अंग काजमे व्यस्त... सोचलनि... की हम नइं अपन परिवार लेल ओभरलोड क’ रहल छी... जतबा सन्तान अछि, तकर भरण पोषण त’ नीक जकाँ कइए ने सकइ छी, आर ऊपरसँ जनसंख्या वृद्धि... जाहि संततिकेँ विश्वमे संघर्ष करक योग्यता हम नइं द’ सकै छी, तकरा जन्म देबाक अधिकार हमरा की?
स्वयं हम अपराधी... कानून... मुँहगरहाक बनाओल कानून... मुँहचोर पर कस्त राखै लेल... सभटा छल... सभटा भ्रामक... मात्रा विडम्बना...।
मोन पड़लनि गली... दुनू भिखमंगा एकटा कुबड़ी लेल लड़ैत... मोन पड़लनि दुनू रोंइउड़ा कुकूर रिक्त दोना लेल कटाउझि करइत... मोन पड़लनि सिन्धी-चाहक दोकानक मैलका छौंड़ाकेँ विगतयौवनाकेँ ठिकिअबैत। हजूर...!-रिक्शावला दीन मुद्रामे ठाढ़ रहन्हि लगहिमे।
जेबीसँ टाका बहार क’ लाइसेन्सक संगें ओ रिक्शावलाकेँ द’ देलखिन। रिक्शावला पसरल तरहत्थी परहक टाकाकेँ आश्चर्यसँ देखए लागल।
हाथसँ ओकरा जएबाक संकेत क’ दीनानाथ पानवला दिस ताकि खिन्न स्वरेँ बजलाह-एकटा कैप्सटन।















एकटा चम्पाकली एकटा विषधर
राजकमल चैधरी

दशरथ झाक परिवार बड्ड छोट आ आंगन बड्ड पैघ। पहिने सभ भाइ संगहि रहै छलाह। आब दशरथ झा एहि पुरान, पैघ, उजड़ल, भांग-धथूरक जंगलसँ भरल आंगनमे अपन स्त्राी आ अपन सखा-सन्तानक संगें एकसरे रहि गेल छथि। दशरथक जीविका छनि-महींस। दुन्नू साँझ मिला क’ आठ-दस किलो दूधक प्रबन्ध एही एकटा महींससँ होइत छनि। महींसक अतिरिक्त डेढ़ बीघा खेत, आर किछु नइं। स्त्राी-रामगंजवाली घर-आंगनमे व्यस्त रहैत छनि, एकटा सन्तान स्कूलमे पढ़ैत छनि, दोसर सन्तान महींसमे, अर्थात महींस चरएबामे, आ बारहम बर्खक अन्तिम चरणमे छन्दबद्ध, मुग्ध, सुशील, आज्ञाकारिणी, प्रसन्नमुखी मात्रा एकटा कन्या...
कन्याक नाम थिक, चम्पा।
शशि बाबू अप्पन बासठि बर्खक जीवनमे जखन पहिल बेर, अपन निकटस्थ पड़ोसिया आ दूर-दूरस्थ सम्बन्धी, दशरथ झाक आंगनमे, बीच आंगनमे आबि क’ ठाढ़ भेलाह, तँ चम्पा देबाल पर गोइठा सैंति रहल छलीह। रामगंजवाली छलीह इनार लग... शशि बाबूकेँ देखिते ओ पानिसँ भरल बालटीन उठा क’, भनसाघरमे, सन्हिआ गेलीह। गामक सम्बन्धें शशि बाबू रामगंजवालीक श्वसुर स्थानीय छथि।
दशरथ झा हँसैत स्वरमे, खोशामदक तरंगित स्वरमे, बजलाह-एहन लाज करबाक कोन काज, शशि बाबू तँ अपन परिवारक लोक छथि... चम्पा, माइकेँ कहिअनु, एक लोटा पानिक प्रबन्ध करतीह। पानि माने, गरम पानि।
-गरम पानि किऐ, बाबूजी?-संयत स्वरमे चम्पा प्रश्न कएलनि। नहुँए स्वरमे भनसाघरसँ चम्पाक माइ बजलीह-गरम पानि माने, चाह। चम्पा, अहाँ दोकानसँ चाह आ चिन्नी ल’ आनू। हम पानि चढ़ा दैत छी।
दोकान जएबाक दुखसँ बेसी दुख आन कोनो काजमे चम्पाकेँ नइं होइत छनि। प्रत्येक बेर बजारक कोनो दोकानसँ घुरबा काल चम्पा सप्पत खाइत छथि, जे मरि जाएब, मुदा आब कहियो कोनो वस्तु उधार अनबाक हो, चाहे एक कनमा सुपारी, चाहे एक सेर कड़ ू तेल-चम्पे दोकान पठाओल जएतीह। चम्पा विरोध करतीह-हम नइं जाएब। जुगेसरक सवा टा टाका बाँकी छै। ओ हमरा उधार नइं देत।
मुदा, माइ कहथिन, किंवा दशरथ बजताह-अहाँ नइं जाएब, तँ आन के दोकान जाएत? ...चम्पा, जुगेसरकेँ कहबैक जे ओकर टाका हम पचा नइं जएबैक। काल्हिए हमर अल्लू उखड़त। हम अल्लू बेचि क’ ओकर टाका द’ देबैक।-चम्पाकेँ बूझल छनि, जे बाबूजी एक्को कट्ठा अल्लू रोपने नइं छथि। चम्पाकेँ बूझल छनि, जे बाबूजी एहिना जखन-तखन छोट-छोट बातक लेल मिथ्या बजैत छथि, फूसि बजैत छथि, सरासरि फूसि...।
मुदा, दछिनबारी टोलक सभसँ प्रतिष्ठित लोक आंगन आबि गेल छथि, पहिल बेर आएल छथि-बाबूजीकेँ शशि बाबूसँ निश्चय कोनो आवश्यक बेगरता छनि-चम्पा एतबा गप्प अवश्य बुझि रहल छथि। एतबा गप्प बुझबाक स्त्राी-सुलभ क्षमता हुनकामे छनि। अतएव, चम्पा माइकेँ बिना कोनो उत्तर देने, जुगेसर-बनियाँक दोकान दिस चलि गेलीह-भगवतीक प्रतिमा सन सुन्नरि, अल्प बयसक बुधियारि आ सुशील कन्या, चम्पा! आ शशि बाबूक संगें दशरथ पुबरिया कोठलीमे चलि गेलाह। चम्पा, चम्पाक माइ आ दशरथ एही घरमे रहै छथि।
देवाल पर एकटा पुरान कैलेन्डर टाँगल अछि। कैलेन्डरमे अंकित अछि, द्रौपदी-चीर-हरणक एकटा प्रचलित चित्रा। शशि बाबू जेना दशरथसँ कोनो महत्त्वपूर्ण गप्प सुनबाक लेल प्रतीक्षा करैत, बड़ी काल धरि एहि चित्रा दिस तकैत रहि जाइत छथि। द्रौपदी विवश छथि, विवस्त्रा छथि... क्रोधसँ उन्मत्त दुःशासन, गर्वसँ आन्हर भेल सुयोधन, ग्लानि आ संतापसँ माथ नीचाँ खसौने, लज्जित पाँचो पाण्डव... आ ऊपरसँ द्रौपदीक देह पर थानक थान साड़ी खसबैत श्री कृष्ण...।
राधारमण भगवान श्रीकृष्णक कैलेन्डरक चित्रामे मधुर-मधुर मुस्का रहल छथि।
शशि बाबू सेहो मोने-मोन मुस्कएलाह। बजलाह किछु नइं, मुदा, दशरथकेँ एतबा गप्प बुझबामे कोनो भांगठ नइं, जे हमरा आंगनमे आबि क’, हमरा कोठलीमे एहि पुरान पलंग पर बैसि क’ शशि बाबू प्रसन्न छथि। एही प्रसन्नताक आवश्यकता दशरथ झाकेँ छनि। शशि बाबू किछुए बर्ख पहिने धरि पुर्णियाँ जिला कचहरीमे हेड किरानी छलाह। आब स्थाई रूपें गामे रहै छथि। शशि बाबूक परिवार बड्ड पैघ। दू टा विधवा बहिन, तीन स्त्राीसँ चारिटा पुत्रा, आ चारू पुत्राक अपन-अपन छोट-पैघ परिवार। भिन्न-भिनाउज एखन धरि नइं भेल छनि। शशि बाबू जाबत जीवित छथि बँटवारा असम्भव।
तीन बेर विवाह करबाक उपरान्तो, शशि बाबू सम्प्रति स्त्राी-विहीन छथि। तेसर स्त्राी पाँचे बर्ख पहिने स्वर्गवासी भेलि छथिन। आब शशि बाबू वृद्ध भ’ गेल छथि, तथापि, परिवारक आ टाका-पैसाक सभटा कारबार ओ स्वयं करैत छथि, स्टील-सन्दूकक चाभी ओ एखनो अपने जनौमे रखैत छथि।
अहाँ हमर उद्धार नइं करब, तँ आन के उद्धार करत।-एही प्रेम-वाक्यसँ दशरथ अप्पन गद्य प्रारम्भ कएलनि। शशि बाबू जेबसँ पनबट्टी बहार क’ पान-जर्दा खा रहल छलाह। पनबट्टी बन्द क’ जेबमे रखलाक बाद, बजलाह-हमरासँ जे सहायता भ’ सकत, हम अवस्स करब मुदा, अहाँ स्पष्ट कहू, अहाँकेँ कतबा टाका चाही। ...कमसँ कम अहाँकेँ कतबा टाका...
दशरथ झा मोने-मोन हिसाब लगबैत छथि। चम्पाक विवाहक हिसाब। शशि बाबूसँ कतबा टाका पैंच मंगबाक चाही? कतबा टाका ओ द’ सकैत छथि? पाँच सै? सात सै? एक हजार? दशरथ झाकेँ बेटीक विवाह कोनो साधारण परिवारमे करबाक हेतु अन्ततः दू हजार टाका चाही। हिसाब जोड़ि लेलाक बाद, दशरथ बजलाह-पहिने चाह पीबि लेल जाए। टाका-पैसाक गप्प तकरा बाद कहब। हम की कहब, रामगंजवाली स्वयं अहाँसँ गप्प करतीह। अहाँसँ की नुकाएल अछि... अहाँसँ कोन लाज... अहाँ हमर अप्पन लोक छी।
चम्पाक लेल एकटा परम उपयुक्त वर दशरथ झा टेबने छथि। वरक पितासँ दशरथ झाकेँ मित्राता छनि। भरथपुर गाम, सहरसासँ तीन कोस उत्तर। वर सहरसा काॅलेजमे बी. ए.मे पढ़ैत अछि। रामगंजवाली विवाहक सभटा खर्च मोने-मोन निर्णय कएने छथि। जँ दस कट्ठा बेचि देल जाए, तँ पन्द्रह सै टाका अवश्य भेटत। तीन टा अशरफी घरेमे अछि। जँ शशि बाबू पाँचो सै टाकाक व्यवस्था क’ देथि...
चाह आ चिन्नीक पुड़िया माइ लग राखि, चम्पा ओसार पर ठाढ़ि छथि। साँझ पड़बामे आब कम्मे देरी अछि। आइ दुपहर खन पानि पड़ल छल-मूसलाधार वर्षा। आंगनमे थाल... सड़क पर थाल... चम्पा दोकान जाइत काल पिछड़ि क’ खसि पड़ल छलीह। माइ कहलखिन-अहाँ साड़ी बदलि क’ केश बान्हि लिअ’ ...जल्दी करू। शशि बाबू बेसी काल नइं बैसल रहताह। केश बान्हि लिअ’ ...ओसनी पर ललका साड़ी राखल अछि, से पहिरि लिअ’ ...जल्दी करू। शशि बाबूकेँ चाह आ पान द’ अबिअनु।
चम्पा इनार लग चल गेलीह। बालटीनमे पानि भरलनि। बड़ी काल धरि हाथ-पैर धोइत रहलीह। केहुनीमे लागल हरैद’क दाग छोड़ौलनि। कनपट्टी लगक मैल... भौंह परक मैल... मुदा, चम्पाक देहमे मैल कोनो ठाम नइं छनि, मात्रा मैलक भ्रम छनि हुनक मोनमे। कनिएँ काल पहिने दोकान लग खसि पड़लि छलीह, तँ अभिमन्यु चैधरीक भातिज, परीक्षित कतेक जोरसँ हँसल छल... लाजें रंगि गेल छलीह चम्पा, लाजसँ, क्रोधसँ, अपमानसँ आरक्त भ’ गेल छलीह। सन्देह भेल छलनि, परीक्षित कोनो अपशब्द सेहो बाजल अछि। यद्यपि परीक्षित मात्रा हँसले टा छल, बाजल नइं छल। चम्पा एहिना एही अल्पवयसमे सदिखन, मैलक भ्रमसँ, अपशब्दक सन्देहसँ, अपमानक सन्देहसँ व्यथित आ चिन्तित होइत रहै छथि।
हाथ-पैर धोलाक बाद ललका साड़ी आ ललका आँगी तकबाक हेतु चम्पा भनसाघरक ओसार पर अएलीह। माइ कहैत छथि, तँ मुँहमे पाउडर लगा क’ केश थकड़ि क’ ललका साड़ी पहीरि क’ शशि बाबूक हाथमे चाहक पेयाली देबैए टा पड़त। माइ जे कहथि, सैह करबाक चाही। सैह करैत छथि चम्पा। इच्छा नहियों रहै छनि, तैयो करैत छथि... जेना दोकानसँ उधार आनब, जेना ललितेशक आंगन जाएब... जेना एही तरहक आन कतेको काज करबाक इच्छा चम्पाकेँ नइं होइत छनि। चम्पा ओहि कोठलीमे प्रवेश नइं कर’ चाहैत छथि, जाहिमे पलंग पर बैसल छथि शशि बाबू आ निहोरा-मिनतीक मुद्रामे एकटा पीढ़ी पर नीचाँमे बैसल छथि चम्पाक बाबूजी, दशरथ झा। चम्पाकेँ लाज नइं होइत छनि, होइत छनि ग्लानि, आत्मवेदना, जे बाबूजी एहन लोक किऐ छथि, एहन दरिद्र आ एहन क्षुद्र... बाबूजी पलंग पर किऐ नइं बैसल छथि? ...कोन स्वार्थक कारणें एखन शशि बाबूक लेल चाह बनाओल जा रहल अछि? ...माइ एतेक अस्त-व्यस्त किऐ छथि?
अपने बैसल जाओ, हम दू मिनटमे अबैत छी-एतबा कहि क’ दशरथ कोठलीसँ बाहर भ’ ओसार पर अएलाह, लोटा हाथमे लेलनि, आ आँगनसँ बहरा गेलाह। शशि बाबू द्रौपदी-चीर-हरणक कैलेन्डर देखि रहल छथि, आ विचारि रहल छथि जे दशरथ झाकेँ टाका देल जाए, किंवा नइं देल जाए। बेसी संभावना तँ एही बातक अछि, जे टाका डूबि जाएत। मुदा, जँ टाका नइं देल जाए, तँ चम्पाक बियाह कोना होएतैक? ...आ दशरथ चल कत्त’ गेलाह? ओ कहैत छलाह जे रामगंजवाली अपने हमरासँ गप्प करतीह। ओ किऐ करतीह गप्प?
आगू-आगू रामगंजवाली, एक हाथमे हलुआक छिपली, दोसर हाथमे पानिक लोटा-गिलास नेने आ हुनका पाछूमे नुकायलि जकाँ, लाल साड़ी आ लाले आँगी पहिरने, बड्ड सकुचायलि, बड्ड लजबिज्जी चम्पा...
रामगंजवाली घोघ नइं तनने छथि। पैघ-पैघ आँखिमे सुन्दरता अवश्य छनि मुदा, स्त्राी-सुलभ लज्जा नइं। लज्जा स्त्राी-आँखिक आन्तरिक ज्योति थिक... रामगंजवालीक आँखि जेना पाथरक बनाओल गेल हो, सुन्दर, किन्तु, जकरामे कोनो आकर्षण-शक्ति नइं। चम्पाक हाथसँ चाहक पेयाली लैत काल शशि बाबू अनुभव कएलनि जे चम्पाक हाथ थरथरा रहलि छनि... जे चम्पाक अंग-अंग काँपि रहलि छनि। सौंसे कपार घामसँ भीजल... दुन्नू आँखि जेना नोरसँ झलफल-झलफल करैत... शशि बाबू अनुभव कएलनि, जँ कनियों काल चम्पा एहि ठाम ठाढ़ि रहतीह, तँ ठामहि झमा क’ खसि पड़तीह, बेहोश भ’ जएतीह।
माइक कोनो नव आज्ञाक प्रतीक्षा चम्पा नइं कएलनि। चाहक पेयाली शशि बाबूक हाथमे देलाक उपरान्त, चम्पा माइ दिस उपेक्षाक तीक्ष्ण दृष्टिसँ देखैत, चुपचाप कोठलीसँ बहरा गेलीह, आंगनमे एक छन ठाढ़ि रहलीह, आ आंगनसँ बहरा क’ अपन सखी, अन्नपूर्णाक आंगन दिस चलि गेलीह। चम्पा जखन बड्ड दुखमे डूबलि रहै छथि, तखन चुपचाप अन्नपूर्णाक घरमे जा क’ सूति रहै छथि।
दशरथ टाकाक विषयमे किछु नइं बजलाह... कतेक टाका चाही, आर की-की, से तँ अहीं सभ कहब-शशि बाबू चम्पाक तीव्र पलायनसँ एक रत्ती अप्रतिभ, आ एक रत्ती निश्चिन्त होइत, समीपमे ठाढ़ि भेलि, रामगंजवालीसँ जिज्ञासा कएलनि-दशरथ कहाँ छथि?
रामगंजवाली बजलीह-ओ बथाने दिस गेल छथि। अबिते होएताह... मुदा, हुनका रहलासँ की, आ हुनका नहिएँ रहलासँ की... हुनका अहाँसँ कोनो गप्प कहैत लाज होइत छनि। ओ नइं कहताह। हमहीं कहब। चम्पा हमर बेटी थिक; हम चम्पाक माइ छी। बेटी पर माइए टाकेँ अधिकार होइत छै, बापक कोनो अधिकार नइं। माइ अपन बेटीक लेल प्राण दैत अछि। हमहूं दैत छी। तें, हमहीं अहाँसँ गप्प करब।
रामगंजवालीक एहि निद्र्वंन्द्व, ओजस्वी आ स्पष्ट भाषणसँ शशि बाबू मोने-मोन सशंकित होइत छथि-की कह’ चाहैत छथि दशरथक स्त्राी?-शशि बाबू कनिएँ सम्हरि क’ बैसैत छथि, अपन पीठ तर तकिया राखि लैत छथि। दशरथ किऐ चल गेलाह? चम्पा किऐ पड़ा गेलीह? किऐ रामगंजवाली एतेक निकटतासँ आ एत्तेक भूमिका बान्हि क’ गप्प क’ रहलि छथि? शशि बाबू गामक लोक नइं छथि, सभ दिन शहरे-बजारमे रहलाह। शहरक लोक छथि शशि बाबू। नोकरी तेयागि क’, आब स्थायी रूपें गाम आएल छथि। गामक रीति-रेवाज, गामक राजनीति, गामक लोकक आचार, भाषा, आ व्यवहार बूझल नइं छनि। तें रामगंजवालीक भूमिकाकेँ बुझबाक उचित क्षमता शशि बाबूकेँ नइं छनि।
शशि बाबू पानक बीड़ा उठौलनि। जर्दाक डिबिया खोललनि। असली गप्प सुनबाक प्रतीक्षा कर’ लगलाह। रामगंजवाली एक बेर आंगनसँ भ’ अएलीह। चम्पा कत्त’ गेल? कोनो पड़ेसियाक आंगनक कोनो स्त्राी कोनटा लग तँ ठाढ़ नइं अछि? रामगंजवाली घुरि क’ कोठलीमे अएलीह।
-आब हमरा देरी होइत अछि। ...दशरथ कहाँ छथि?-शशि बाबू प्रश्न कएलनि। रामगंजवाली मुस्कएलीह। बजलीह-चम्पाक बियाहमे नहियों किछु तँ दू-सवा दू हजार टाका लागत। हमरा सभकेँ मात्रा एक बीघा दस कट्ठा खेत अछि। आ, एकटा महींस अछि। जँ दस कट्ठा खेत बेचब तँ एक हजार टाका भेटत। जँ महींस बेचब तँ भेटत पाँच सै टाका।
शशि बाबू बीचमे टोकलखिन-महींस किऐ बेचब? खेत किऐ बेचब? आ बेचि लेब तखन जीवन कोना चलत?
रामगंजवाली संभवतः इएह प्रश्न सुन’ चाहैत छलीह। तें ई प्रश्न सुनि क’ ओ हँसलीह, जेना कोनो सुखान्त नाटकक नायिका-अभिनेत्राी हँसैत अछि, ताही तृप्त मुद्रामे हँसि क’ रामगंजवाली बजलीह-अहाँ उचित कहलहुँ, जखन ई सभ बेटीक बियाहमे बेचिये लेब, तखन जीवन नइं चलत। अपने लात अपन पेट पर मारब उचित नइं, एतबा हम बुझैत छी। तें हम सभ, माने हमर मालिक, हम, आ हमर बेटी, चम्पा अहाँक शरणमे आएलि छी। ...अहीं, मात्रा अहीं हमरा सभक उद्धार क’ सकैत छी।
-अहीं हमरा सभक उद्धार क’ सकैत छी-रामगंजवालीक मुँहसँ ई गप्प सुनि क’ शशि बाबू विरक्त भ’ गेलाह। क्रोध भेलनि, जे हम किऐ एहि ठाम समय नष्ट क’ रहल छी। काल्हिए-परसूसँ दशरथ झा हजार बेर एहि वाक्यक आवृत्ति कएने छथि, जे शशि बाबू हुनक आ हुनक परिवारक उद्धार क’ सकैत छथि।
जखन कि उद्धार करबाक हेतु नइं, एकटा आन स्वार्थसँ शशि बाबू एहन असमयमे, एहन एकान्तमे दशरथ झाक आंगन आएल छथि। शशि बाबू योजना बना क’ कोनो काज करैत छथि। जीवन-रूपी शतरंज कोना खेलाएल जाए, कोना जीवित मनुष्य सभकेँ काठक पेयादा, किंवा काठक हाथी-घोड़ा बनाओल जाए, से मर्म हुनका बूझल छनि।
शशि बाबूकेँ घरडीहक स्थान बड्ड कम्म। परिवार बड्ड पैघ। आ, दशरथ झाक आंगन शशि बाबूक देबालसँ सटले छनि, पश्चिम दिस। जँ दशरथ झा अपन आंगनक पुबरिया हिस्सासँ बारह धूर जमीन शशि बाबूक हाथें बेचि लेथि, तँ तकर मूल्यक रूपमे चम्पाक विवाहमे हजार-बारह सै टाका देबामे शशि बाबूकेँ कोनो कष्ट नइं हेतनि। ...शशि बाबू उद्धार करबाक लेल नइं, बारह धूर घरडीह किनबाक लेल दशरथक आंगन आएल छथि। अस्तु, रामगंजवालीक गप्पसँ हुनका कोनो प्रसन्नता नइं भेलनि। ओ विरक्त भेलाह जे रामगंजवाली मूलकथा पर नइं आबि, व्यर्थ समय नष्ट क’ रहल छथि... लोक अनेरे सन्देह करत जे शशि बाबू किऐ अपन पड़ोसियाक आंगनमे एत्तेक कालधरि एकान्त कोठलीमे बैसल छथि। बड़ी कालक उपरान्त अपन मोनकेँ स्थिर क’, किंचित गम्भीर मुद्रा बना क’ कनिएँ हतप्रभ जकाँ, रामगंजवाली बजलीह-हम खेत नइं बेचब, घरडीह नइं बेचब, महींसो नइं बेचि सकैत छी। हमरा एक्केटा चम्पा नइं अछि, आनो सन्तान अछि। तकरा सभक मुँहमे जाबी नइं लगाओल जा सकैत अछि।
शशि बाबू पुछलखिन-घरडीह नइं बेचब, तँ की करब? कत्तेक टाका लेब हमरासँ?
रामगंजवाली उत्तर देलखिन-अहाँसँ बेसी नइं, पन्द्रह सै टाका हम सभ लेब। पन्द्रह सै टाका नगद, आ अपना मोने चम्पाकेँ अहाँ जे गहना, कपड़ा, साड़ी, जे देबै, से अपना मोने। अहाँ सन धनीक, बुझनुक, आ विद्वान लोकक संगें चम्पा भरि जीवन सुखी रहती, भरि जीवन आनन्द करती...
-अहीं हमरा सभक उद्धार क’ सकैत छी-शशि बाबू आब एहि गप्पक असली अर्थ बुझि गेलाह। एही कारणें एतेक भूमिका बान्हल जा रहल छल। शशि बाबू स्वयं चम्पासँ बियाह करथि-से दशरथ झा, आ रामगंजवालीक उद्देश्य। ई योजना स्वयं रामगंजवाली बनौने छथि। जँ साठि बर्खक स्वस्थ, सुन्दर, पराक्रमी वृद्ध, शशि बाबू, तेरह बरखक आत्ममुग्ध, लज्जामयी, स्पर्शहीन, नवीन चम्पा-कलीसँ बियाह करताह-तँ शशि बाबूक सम्पूर्ण राजकाज, सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति पर रामगंजवालीक आ दशरथ झाक पंजीकृत अधिकार, अर्थात एकाधिकार भ’ जएतनि, आ महारानी जकाँ, वृद्ध शशि बाबूक संसारमे पटरानी जकाँ राज करतीह हमर चम्पा, हमर चम्पा-कली।
चाह देबाक लेल चम्पा आएल छलीह। शशि बाबूकेँ अवस्से पसिन्न भेल छथिन हमर कन्या, हमर दुलारि-सुकुमारि कन्या। एहन पैघ-पैघ आँखि, एहन सरल-निश्छल स्वभाव, एहन बुद्धि-विचार गाम भरिमे आन कोनो धीयाकेँ नइं छै।
एक बेर अपने दलान पर अपन मित्रा-मण्डलीक समक्ष हास्य कएने अवस्स छलाह शशि बाबू। कहने छलाह, जे मोन होइत छनि जे फेर एकटा विवाह क’ लेथि। मुदा, ई गप हास्ये छल, विनोदे छल, सत्य नइं। विवाह करबाक, बासठिक एहि विचित्रा बयसमे, विवाह करबाक कोनो आकांक्षा शशि बाबू नइं रखैत छथि। मुक्त-हृदय लोक छथि ओ, आब कोनो जाल-जंजालमे नइं पड़ताह।
अतएव, पलंगसँ नीचाँ उतरि क’, धरती पर ठाढ़ होइत, शशि बाबू कठोर आ कठिन स्वरमे बजलाह-अहाँक गप्प हम सुनलहुँ। ...दशरथ झाकेँ अहाँ कहि देबनि, हम एतेक मूर्ख नइं छी। बेसी नइं, चम्पा हमर बेटी, कल्याणीसँ बाइस बर्ख छोट छथि, आ हमर बेटीक बेटी, मुन्नीसँ चारि बर्ख छोट छथि। हम चम्पासँ कतेक बर्ख पैघ छी? अहाँक पति देवता, दशरथ झा हमरासँ कतेक बर्ख छोट छथि, रामगंजवाली? ...अहाँक मोनमे एहन विचार कोना आएल?
रामगंजवाली परम विषाक्त आ परम विरक्त दृष्टिसँ एक बेर शशि बाबू दिस तकलनि। शशि बाबू आतंकित भ’ गेलाह। जेना हुनक सोझाँमे कोनो स्त्राी, कोनो रामगंजवाली कनियाँ ठाढ़ि नइं हो, जेना हुनका सोझाँमे फन काढ़ने, कोनो विषधर ठाढ़ हो... कोनो भयावह विषधर...
रामगंजवाली शशि बाबूकेँ कोनो उत्तर नइं देलखिन। कोनो वाक्य नइं, कोनो शब्द नइं, विषधरक उत्तर होइत छै ओकर विष, ओकर विषदन्त!
मुदा, विधिक ई केहन विधान अछि, जे एहि सामाजिक घटनामे, शशि बाबू विषधर नइं छथि, विषधर छथि चम्पाक माइ, रामगंजवाली!

मिथिला मिहिर / 15 जून 1975

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भए प्रकट कृपाला
मायानन्द मिश्र

भोरेसँ क्षुब्ध दैनिक ‘संसार’ केर सम्पादकीय विभागमे, रेसक जीतल घोड़ा जकाँ हठात् प्रसन्नताक लहरि कूद’ लागल।
प्रसन्नताक लहरि एहि लेल नइं जे देशक एकटा महान उद्योगपति अपन अन्तिम सांस गनि रहल अछि आ ‘संसार’ आबिचुरीक सामग्री एकत्रा क’ लेलक अछि, बल्कि एहि लेल जे अइ म्रियमाण उद्योगपतिक पूर्वक एकटा एहन इतिहास एकरा हाथ लागि गेल छै, जे निश्चित रूपें नगरक कोनो अखबारकेँ ओ सौभाग्य नइं भेटतै।
दुर्भाग्य ‘संसार’ केर भेल छलै ओइ समयमे जखन देशक एकटा दोसर महान उद्योगपति अचानके मरि गेलै आ’ एकरा लग आबिचुरीक कोनो सामग्री तैयार नइं छलै। कहुना बाॅक्सकेँ भरने छल।
एहि बेर दैनिक ‘संसार’ सामग्रीक अभावमे अवसर चूक’ नइं चाहै अछि। बोगला साहेब वृद्ध छथिहे, कखनौ बीमार पड़ि सकै छथि, बल्कि ‘संसार’ प्रतीक्षा कइए रहल छल।
प्रतीक्षा सफल भेलै। देशक महान उद्योगपति वृद्ध श्री श्वेत श्याम बोगला जी अपन अन्तिम क्षणकेँ भोगबाक योग्य नइं रहि सकला, बड़ी-बड़ी काल धरिक लेल होश ओहिना लुप्त भ’ जाइत छनि, जेना मार्केटसँ अचानक कोनो वस्तु लुप्त भ’ जाइ छल, आ क्षणकालक लेल घुमल होश ओहिना कीमती भ’ उठै अछि, जेना लुप्त वस्तु पुनः मार्केटमे अतिरिक्त मूल्यवान भ’ क’ अबैत छल!
एहि मूल्यवान क्षणक उपभोग घरक लोक, स्वजन-परिजन बड्ड धैर्य ओ शान्तिसँ क’ रहल अछि। आगंतुक नेता, उद्योगपति, अफसर तथा पत्राकार लोकनि लग यथायोग्य शोक एवं करुणा प्रदर्शनसँ अपनाकेँ मूल्यवान तथा मृतप्रायसँ अति निकटताक सूचना देबामे व्यस्त अछि, डाक्टर ईश्वरक नाम लेबा लेल कहि देने छै।
अनेक कीर्तन पार्टी जुटल अछि मुदा एखन अपन ढोल आ झालि नुकौने अछि। भीतरसँ बहराइ बला स्वजन परिवजनक भंगिमाक प्रति सतर्क अछि।
सतर्क अछि कान’ वाली जे पहिल हाक ओकरे होमक चाही। एहन-एहन विशेष अवसर पर कियो पाछू नइं रह’ चाहै अछि।
एको रत्ती पाछू नइं रह’ चाहै छथि मस्ताना जी, दैनिक ‘संसार’ केर रिपोर्टर।
पछिला रिपोर्टमे बड़ धोखा भेल छलनि, बड़ा लज्जित भेल छला। अपराधी बन’ पड़ल छलनि।
अपराध एना रेडियो सेहो केने छल। मुदा ओ तँ सरकारी संस्था थिक, के देख’ सुन’ बला छै!
सौंसे संसार सुनलक जे पक्ष प्रकाश जी मरि गेला, फेर सुनलक बचि गेला, क्षमा मांगल गेल। बात साफ।
मस्ताना जी बाॅक्स तैयार केने छलाहे, फोटो छलैे। हड़ाक द’ तीन हजार काॅपी छपि गेल। छपि गेल आ’ बटाइयो गेल।
मस्ताना जीकेँ अनेक कैफियत देब’ पड़ल छलनि। फेड़मे पड़ि गेल छला।
फेरमे एहि बेर नइं पड़’ चाहै छला। तैं एहि बेर अनेक माध्यमे मैटर तैयार केने छथि।
-एकदम ठीक अछि मैटर?
सम्पादक ‘संसार’ अपन टेबुल पर चश्मा खोलि क’ रखलनि आ’ मस्ताना जीसँ पुछलखिन। नेता पक्ष प्रकाशक घटनाक बादसँ चैंकल रहै छथि मस्ताना जीक रिपोर्ट पर।
-एकदम ठीक सर! अइ बेर हम सब बाजी मारि लेबै, आन अखबारवला सब मुँहें तकैत रहि जेतै। अति उत्साहमे मस्ताना जी बाजि रहल छला।
-कोनो गड़बड़ नइं ने?
-जी नइं सर, सन् 1779 मे पहिल प्रेस भारतमे खुजलै आ सन् 1780 मे पहिल पत्रा बंगालसँ बहरेलै, तहियासँ दू सै वर्षमे पहिल बेर एकटा गलती भ’ गेलै आ सेहो हमरासँ...।
-‘ठीक-ठीक’-सम्पादक जी बीचेमे बाजि उठला-ता हम अहाँ बला मैटर देखि लै छी, एक बेर बोगला भवनक चक्कर लगा आउ, पर्सनल डाक्टरसँ ठीक ठीक पता लागत, जखने काज भ’ जाए, तुरंते टेलीफोन करब, एम्हर आबिचुरी छप’ लगतै... कने सावधानीसँ...।
-जी जी, हम चलै छी... सर!
-की?
-साइकिल कने पंचर भ’ गेल छै...।
-पंचर? इएह तँ बनौने छलहुँ?
-जी, साइकिल तँ पुरान भइए गेलै, टायरो सड़ि गेल छै...।
-जाउ, पंचर बलाकेँ कहि देबै, अइ बेर सबटा भेटि जेतै। अहाँ सावधानी राखब। बोगला जीक उत्तराधिकारी सभक नाम-धाम ठीकसँ तैयार अछि ने?
-जी।
-अच्छा आब समय नष्ट नइं करू, कखनौ मरि सकै छै... ता’ हम अहाँ बला रिपोर्ट देखि लै छी। देख’क लेल चलल छल कोलम्बस सन् 1499 मे। मुदा भोतला गेल। तखन चलल वास्कोडिगामा, तखन औरंगजेबक दरबारमे पहुंचल टामस रो, व्यापारक याचनामे। तखन ईस्ट इंडिया कम्पनीक व्यापार बढ़ब’ किरानी बनि क’ आएल राॅबर्ट क्लाइब।
इएह राॅबर्ट क्लाइब सन् 1757 मे पलासीक युद्धकेँ एकटा मोड़ देलक। आ इएह मोड़ अंगरेजी राज्यक लेल महत्पवूर्ण भ’ उठल। बक्सरक युद्ध अंगरेजक लेल उत्तरोक द्वारकेँ खोलि देलक।
खुलि गेल भारतक भंडार अंगरेजक लेल। अंगरेज लूट’ लागल। लूट’ लागल सोनाक देश भारतकेँ।
भारतक ओएह सोना लूट’ आएल छल सात समुद्र सतासी धार पार क’ कए डिक्सन, राॅबर्ट क्लाइबक संगें।
राॅबर्ट क्लाइबक बड़ अंतरंग डिक्सन। डिक्सनकेँ क्लाइबक दिससँ छूट भेटलै, बैमानीक अधिकार भेटलै। कम्पनीमे रहि क’ अलगसँ व्यापार करए लागल।
व्यापारक बड़का संस्था भ’ गेल डिक्सन एंड कम्पनी। आ इंगलैंडक मामूली लोहार भारतमे भ’ गेल लोहा किंग। कहब’ लागल साहेब।
ओही डिक्सन साहेबसँ सन् 1942 मे भागैत काल अंतमे डिक्सन एंड कम्पनीकेँ एक पैकेट सिकरेटमे कीनि लेलक श्वेत श्याम बोगला।
बोगला ता’ बड़ मामूली लोक। किन्तु आरम्भिक कालमे डिक्सन साहेबकेँ बड़ मदति केने छलखिन, व्यक्तिगत स्तर पर।
एकदम व्यक्तिगत रूपें। सामूहिक रूपें ओ अंगरेज व्यापारीक भयंकर शत्राु। जँ वश चलितनि तँ लाठी हाथें अंगरेज व्यापारीकेँ भगा दितथिन। बड़का राष्ट्रवादी। अंगरेज भारतकेँ लूटि रहल अछि।
लूटक माल ल’ क’ भाग’ काल डिक्सन साहेब लग पहुंचला बोगला जी, एक पैकेट सिकरेट ल’ क’-मेरे पास और कुछ नहीं है।
-और खरीदेगा डिक्सन एंड कम्पनी?-डिक्सन साहेब अपनासँ सिकरेट कहिओ नइं जरबैत छल, से जहाँ सिकरेट धरलक कि बोगला जी जेबसँ सलाइ बहार क’ धरा देलखिन। साहेब बड़का टा सोंट लेलक आ बहुत रास धुआँ फेकैत बाजल-देगा, तुमको कम्पनी देगा, तुमसे बहोत प्लीज्ड है, बहोत नेटिभ गर्ल भेजा है... तुम्हीं को देगा, लेकिन आज तुमको मेरे साथ ड्रिंक लेना होगा, वहीं बिजनेस की बात सिखाएगा...।
आ’ सिखा देने छलनि-सीधा रास्ता से समय लगेगा, दूसरा रास्ता पकड़ना। जल्दी बड़ा आदमी बनेगा, इंडिया सोने का देश है, लूट लो, मन भर लूट लो...।
-लेकिन सर! डिक्सन एंड कम्पनीमे कारखाना और मजदूर के अलावे तो और कुछ है ही नहीं।
-तुम इंडियन बहोत इडियट होता है, मजदूर और कम्पनी के साथ गुडविल देता है, गुडविल बहोत बड़ी चीज होती है, हम खाली हाथ आया, इतना बनाया, गुडविल बनाया, वही गुडविल देता है। और... और यहां का कुछ बड़ा आदमी का नाम देता है, लेटर देता है, कम्पनी का क्रेडिट है, वसूलना, लेकिन ब्लैक मैन! ब्लैक मनी ज्यादा बनाना। जितना ब्लैक मनी बनाएगा, उतनी जल्दी बड़ा आदमी बनेगा, बड़ा आदमी बन जाने पर बीच-बीच में ह्नाइट भी बनाता जाना, तुम्हारा एकाउन्ट ग्लेसियर माफिक होना चाहिए... ग्लेसियर समझता है?
-जी नहीं सर-बोगला जी ओकर भाषा ठीक-ठीक नइं बूझथि, खाली काजक बात बुझि जाथि। ग्लेसियर नइं बुझि सकल छला।
-तुम्हारा देश सोने का है, साथ-साथ इडियट का भी है, लेकिन तुम होशियार है, समझेगा, तुम्हारा मनी ज्यादा छिपा रहेगा। नीचे ब्लैक मनी, उसी पर रहेगा ऊपर ह्नाइट मनी...।
आ’ बोगला जी तकर बाद जीवन भरि ग्लेसियरक मर्मकेँ बुझैत रहला। ग्लेसियरक बेसी भाग पानिमे रहै अछि, अदृश्य, अगोचर, सर्वशक्तिमान। ब्लैक मनी इएह सर्वशक्तिमान थिक।
सर्वशक्तिमान अदृश्य थिक, अगोचर थिक।
अगोचरक महिमा ओ जीवन भरि बुझलनि। ओही अगोचरसँ गोचर होइत अछि। गोचरक आधार ओएह अगोचर होइ छै। इएह थिकै मूलमंत्रा।
मंत्रा लेलनि सात समुद्र सतासी धार पार क’ क’ सोनाक देश भारतकेँ लूट’ आएल डिक्सन साहेबसँ।
डिक्सन साहेबसँ दोसर दिन जाइत काल जहाज घाट भेंट कर’ नइं गेला। कहने छलनि-रात भर में जो कुछ कलेक्ट करना जहाज पर दे जाना।
बोगला जी देब नइं सिखलनि।
आ तैं मंत्रा गुरुक जाइ काल भेंट नइं केलनि। डिक्सन साहेब जहाज छूट’
धरि बाट तकने छल।
बोगला जी बाट नइं ताक’ लागल छला स्वाधीनताक। चलि देलनि। चल’ लागल डिक्सन एंड कम्पनी वाइ बोगला कम्पनी। बड़का टा साइन बोर्ड बनल।
पाछू साइन बोर्ड बदलि गेल, ओइ परसँ डिक्सन एंड कम्पनी हटि गेल, भ’ गेल-बोगला कम्पनी।
बोगला कम्पनी तखन भेल जखन काॅटन केर कारबार आरम्भ भेल। लोहा व्यापारमे बहुत दूर धरि गेला। देशक पांच दस आदमीमे आबि गेला। तखन आरम्भ भेल काॅटन व्यवसाय।
काॅटन व्यवसायमे अनेक मील भेल। अनेक मील भेल, तखन अनेक व्यवसाय आरम्भ भेल, नूनसँ साबुन धरि, सुइयासँ ट्रक धरि।
ट्रक सभ लागल अछि। बोगला फैक्टरीक अन्दर, सजल सजाओल। सैकड़ो मन केवल फूल अछि लादल, तखन चन्दन, तखन घी, तखन सड़र, तखन गुगुल, तखन अगरबत्ती, आ’ तखन एक बोड़ा पैसा।
पैसा लुटाओल जाएत ट्रक परसँ। सड़क परक लोक बीछैत जाएत। बीछ’ बलाक संख्या बढ़ैत जाएत, हजारक हजार।
हजारक हजार संख्यामे लोक रहत मृतक जुलूसमे। जुलूसक सबटा व्यवस्था उत्तराधिकारी लोकनि क’ नेने छथि। मात्रा डाक्टरक घोषणाक प्रतीक्षा अछि।
प्रतीक्षा क’ रहल अछि कान’ वाली, प्रतीक्षा क’ रहल अछि पैसा लूट’ बला भिखमंगा, प्रतीक्षा क’ रहल अछि अरथी सजब’ बला, प्रतीक्षा क’ रहल छथि सम्पादक ‘संसार’। एहि पवित्रा अवसर पर कियो पाछू नइं रह’ चाहै अछि। पाछू कहियो नइं रहला स्वयं बोगला जी अपन जीवनमे। चलला से चलिते रहला, पहिने चलला डिक्सन एंड कम्पनीक लोहाक संग। लोहा चलैत रल, बनैत रहल, पसरैत रहल। ओकरा पसर’ छोड़ि देलखिन। चलला काॅटन दिस, बोगला कम्पनी भेल। अनेक मील भेल, अनेक कारखाना भेल, अनेक मजूर संघर्ष भेल, अनेक तिजोड़ी भेल।
तिजोरी बढ़ैत गेल। सबटा अगोचरक कृपा। एही अगोचरक बात जाइ काल डिक्सन साहेब कहने छल। कहने छल-तुम्हारा क्या नाम है?
-जी, श्वेत श्याम बोगला।
-श्वेत मीन्स ह्नाइट और श्याम मीन्स ब्लैक, काला। काॅभर ब्लैक विथ ह्नाइट! समझता है, ब्लैक मैन... अर्न ब्लैक मनी। अर्न एंड अर्न। यू विल बी ए ग्रेट मैन, ए ग्रेट ब्लैक मैन।
डिक्सन साहेबक मंत्रा ओ नइं बिसरला। नाम, धन अछि, देखू, देखि लिअ’। गोचर अछि। लेकिन श्याम धन ग्लेसियर थिक, अगोचर अछि। अगोचर अपरम्पार अछि, अनन्त अछि।
अनन्तक अन्त नइं अछि। अगोचरक अन्त नइं अछि। श्याम धन अगोचर थिक। एकर अन्त नइं अछि। बोगला जीक श्याम धनक अन्त नइं रहल।
अन्त नइं रहल इनवेस्टमेंट केर। अन्त नइं रहल रिटर्न केर। अन्त नइं रहल व्यवसाय केर।
अचानक एक दिन ध्यान गेल, जनता दिस। जनताक लेल नूनक व्यवसाय भेल, तेलक व्यवसाय भेल, साबुनक व्यवसाय भेल, स्नो पाउडरक व्यवसाय भेल। व्यवसाय पर व्यवसाय बढ़ैत गेल। चारू भरक नदी बहि-बहि क’ समुद्रमे आबि-आबि क’ खस’ लागल।
समुद्रमे ग्लेसियर प्रवाहित होम’ लागल।
प्रवाह फेर अचानक रुकि गेल। डिक्सन साहेबक बात मोन पड़ि गेल-बीच-बीच में ह्नाइट। उज्ज्वल।
उज्ज्वल कीर्ति आवश्यक भ’ गेल-भवसागर को पार करन को-बन’ लागल मन्दिर। मन्दिर पर मन्दिर। धर्मशाला पर धर्मशाला। नगर-नगर। शहर-शहर।
शहर-शहर कीर्तन होम’ लागल-भए प्रकट कृपाला...।-जय-जयकार होम’ लागल।
जय-जयकार केलक जनता। जय-जयकार केलक सरकार। सरकारकेँ एलेक्शन आबि गेल। हालति डमाडोल अछि। बहुत खर्चा पड़त। जनता नाखुश अछि। खुश कर’ पड़त।
बोगला जी खुश केलनि सरकारकेँ।-जी! चन्दा? कते? हजार? लाख? करोड़? कै करोड़? हमर सौभाग्य थिक, हमरा सेवाक अवसर भेटल... लेकिन किछु हमरो पर दया-दृष्टि... कने लोहामे तेजी एतै, कने कपड़ामे तेजी एतै, आ... आ’ कने बजटक समय एक्को घंटा जँ पूर्व मालूम भ’ सकतै... जी! जी!! सेवामे हाजिर रहबै।
बोगला साहेब हाजिर, केन्द्रे टामे नइं, राज्योमे भेला।
-जी हाजिर छिऐ, कतेक चाही? ...जी कने पटसन केर भाव... जी जी, कने तेलक दाम... जी जनता लग तँ जाइए पड़तै, सबटा जनतेक लेल छै, जनते पर छै... जनता तँ जनार्दन छिऐ, जनार्दनक कोनो अन्त छै? जी कोनो बदनामी नइं... आखिर चन्दा कत’सँ देबै?
चन्दा विरोधियोकेँ देलनि सब दिन। जेहन विरोधी, तेहन चन्दा।
-अहाँ बदलि सकै छी सरकार? बुझाउ। ...ठीक। कतेक टाका चाही? कीनि लिअ’ एम. एल. ए., एम. पी.। कीनि लिअ’ सरकार। जे लागत देब। लेकिन जे कहब से कर’ पड़त। हमर बात मान’ पड़त।
कोनो कोनो ठाम विरोधीक बात नहियों मानलनि।
-जी नइं, अइ ठाँ सरकार बदलब सम्भव नइं छै। बुझाउ। ...जी नइं, चन्दा देब, लेकिन हाउसमे सरकारक खिलाफ आन्दोन कर’ पड़त, आवाज उठब’ पड़त। जी! जे टाका लागत हम देब, अनकासँ दिआएब, काज करू। प्रयोजन पड़ला पर देखल जेतै, नमस्ते!
प्रयोजन पड़ला पर बोगला जीक स्मरण मिनिस्टर लोकनि करैत रहला, ककरो निराश नइं केलनि कहियो।
-जी! प्राइवेट सेक्टरसँ ल’ लेबै, पब्लिक सेक्टरमे? अहाँक अफसर चला सकत? सबटा खा पीबि जाएत। जनता तबाह भ’ जाएत... अहाँक कोन पब्लिक सेक्टरक हालति नीक अछि? कोनमे नफा होइ अछि? डिक्सन साहेब कहै छलै जे ‘भारत बेईमानों का देश है’... अहाँक सभ योजनाकेँ बैमान सब पीबि जाएत, अहाँकेँ सबटा ह्नाइट मनीकेँ ब्लैक मनी बना देत... सरकार चलाएब कठिन भ’ जाएत... बेस, एकरा अगिला साल पब्लिक सेक्टरमे ल’ लेब, कते चाही चन्दा? लाख? करोड़? कते?
मिनिस्टर लोकनिकेँ बोगला जीक विचार पसिन्न पड़ि जाइन। एक सालक लेल बात टरि जाइ छल। गुपचुप। विरोधीक हल्ला पर विचार आमंत्रित होइ छल। विचार अबैत-अबैत साल लागि जाइ छल। सुविधे सुविधा।
असुविधा भेला पर स्वयं बोगला जी अपन मैनेजर पठबै छला।
-जी सर, झूठमूठक छापा मारि क’ हमरा तंग कएल जा रहल अछि... आखिर हमहूँ एही देशक छी, देशक सेवा करैत रहलौं अछि, लोहासँ, कपड़ासँ, सुइयासँ, इंजिनसँ, कारसँ, ट्रकसँ, नूनसँ, साबुनसँ, स्नोसँ, पाउडरसँ। जनताकेँ जे चाही, देलिऐ। सरकारकेँ जे चाही, देलिऐ, पार्टीकेँ जे चाही, देलिऐ। की चाही अपनेकेँ? कार? टाका? लाख? करोड़? कते? हमर छवि बचाओल जाए...।-एहि बेर नइं बचि सकै छथि बोगला साहेब। डाक्टर-मंडल ईश्वरक नाम लेबा लेल कहि देलकनि। नाकमे सिलेंडर लागल अछि, तथापि शनैः शनैः सांस उखड़ल चल जा रहल अछि।
लोक अन्तिम दर्शनक लेल आबि रहल अछि, जा रहल अछि। बोगला भवनक प्रांगणमे अपार भीड़ अछि।
भीड़मे कान’ वाली चुप्प बैसलि प्रतीक्षा क’ रहल अछि। कीर्तनवला ढोलक झालि ठेकना क’ राखि लेलक। फैक्ट्रीक भीतर ट्रक सब तैयार अछि, फूल नेने, चन्दन नेने, घी नेने, सड़र नेने, गुगुल नेने।
आशा नेने अनेक लोक पैसा लूट’ लेल भवनक आगू सड़क पर ठाढ़ अछि, लाइन लगौने। लाइन तोड़ला पर लोक बिगड़ि उठै अछि।
सभक आँखि अछि गेट पर आ’ कान अछि कीर्तन पर, ध्यान अछि ट्रक पर, ट्रकक पैसाक बोरा पर। सबकेँ बुझल छै, घाट धरि पैसा छीटल जेतै, पच पैसाही, दस पैसाही आ’ बीच बीचमे चैअन्नी। सब ताकि रहल अछि टुकटुक।
मस्ताना जी टेलीफोन ठेकना नेने छथि। आइ खाइयो नइं सकला। कंठ सुखा रहल छनि। उत्सुकतामे छाती धड़कि रहल छनि। सबसँ पहिने दैनिक ‘संसार’ छपत। बाॅक्स न्यूज रहत-बोगला निधन से सारा देश शोकमग्न।-बड़ मोश्किलसँ मस्ताना जी बोगला साहेबक जवानीक फोटो ऊपर केने छथि।
एते मेहनति साइदे कियो रिपोर्टर केने होएत। सन् 1779 मे पहिल प्रेस भारतमे भेलै आ सन् 1780 मे पहिल पत्रा बंगालसँ बहरेलै, अइ दू सै वर्षमे साइदे कियो पत्राकार एते मेहनत केने होएत। पत्रा बहराइते सर्वप्रथम पहुंचत मि. राम जी लग।
मि. राम जी बोगला साहेबक प्रथम पुत्रा। द्वितीय मि. लक्ष्मण जी, तृतीय भरत जी, चतुर्थ शत्राुघ्न जी।
इएह मिस्टर शत्राुघ्न जी एक दिन अपन पितासँ कहने छला-बाबूजी हम सब जयन्ती मनब’ चाहै छी, ई तँ अस्सी थिक ने?
-थिक तँ...।
-जी पिताजी।
-ककर जयन्ती?-पिता पुछने छलखिन।
-जी, अहाँक जयन्ती...।
-नइं, बनियाँकेँ जयन्ती शोभा नइं दै छै, ओकर काजे जयन्ती छिऐ, बोगला नीमक, बोगला साबुन, बोगला फैक्ट्री, इएह नाम ओकर जयन्ती छिऐ। जयन्ती होइ छै नेता केर, जे गद्दीसँ हटिते समाप्त भ’ जाइ छै, तैं ओकर जयन्ती मना क’ मकरध्वज देल जाइ छै...।
बोगला जी चुप्प भ’ गेल छला। सब चुप्प छल।
बाजल छला-जे काज हम असगर केलौं, जीवन भरि तकरा कर’ लेल भगवान चारि भाइंकेँ जन्म देलनि। काज बाँटि लिअ’, डिविजन आॅफ लेवर... जीवनक पुरुषार्थ थिकै, अर्थ-धर्म-काम-मोक्ष। अहूँ सभ चारि भाइं। सबसँ पहिने अर्थ, मने व्यवसाय, जेठ देखता। तखन धर्म। मन्दिर, धर्मशाला, ट्रस्ट दोसर देखता, ब्लैककेँ ह्नाइट करक उत्तम माध्यम। तखन काम, तेसर डाइरेक्ट राजनीतिमे जेता; अपन व्यवसाय सुरक्षा सेहो, संगहि समस्त व्यवसाय-जगतक हित रक्षा आ’ अन्तमे बिना पूँजीक अनेक लाभ। तखन अन्तमे मोक्ष। चारिमक काज रहतनि सबकेँ देखब आ’ संतुलन स्थापित करब। अहाँ चाही तँ पुरस्कार योजना चला सकै छी, विभिन्न कारबारमे जे विज्ञापन खर्च, तकर कोनो प्रयोजन नइं, ओ काज पुरस्कारे क’ देत। मात्रा सूदिसँ विज्ञापन कार्य। एकटा पुरस्कार रहतै ओ कोनो-कोनो वर्ष तीन-तीन भागमे बटि सकैत अछि, ओ तीन रहतै-पहिल देशक कोनो साहित्यकार, दोसर हेतै सामाजिक कार्यकर्ता आ’ तेसर हेतै पत्राकार। ...भरि वर्ष ई सब गुणगानमे लागल रहत। विज्ञापन होइत रहत। इएह भेल हमर जयन्ती। ...एकर घोषणा क’ दियौ-बोगला पुरस्कार।
एही पुरस्कार पर सौंसे देशक लोलुप दृष्टि लागल अछि। लागल अछि साहित्यकार, लागल अछि नेता, लागल छथि मस्ताना रिपोर्टर, दैनिक ‘संसार’।
दैनिक ‘संसार’ कार्यालयमे सम्पादक जी बैसल छथि। ओ मस्ताना जीक चालि बुझै छथि। किन्तु आबिचुरी छपिते... ‘संसार’क प्रति ल’ क’ स्वयं जेता बोगला ब्रदर्स लग।
बोगला ब्रदर्स सावधान अछि अपन व्यवस्थामे। तैयार अछि ट्रक, फूल, चन्दन, घी, पैसाक बोरा, कान’ वाली, कीर्तन वला।
कि ता’ डाक्टर सब बोगला लग मुँह लटका लेलनि। कान’ वाली हाक उठौलक।
हलचल मचि गेल। मस्ताना जी दौड़ला फोन लग। फोन लगौलनि, चिचिएला, स्टार्ट।-‘संसार’ छप’ लागल।

माटिपानि / दिसम्बर, 1984

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सरकारी नोकरी
सोमदेव

आ अन्तमे हम नोकरी स्वीकार क’ लेलहुँ। थाकि गेल छल मोन तीन माससँ दरखास्त दैत दैत। फोन्टन पेन झमान भ’ करचीक कलम जकाँ रहि गेल आ नोन-मसल्ला आदि धरबा लेल डिब्बा-डिब्बीक आब कोनो टा दरकार नइं-दोआतक ततेक ने अमार लागल छल चारूकात। ढन-मन पसरल, जेना नेना भुटका ओकरे ल’ क’ क्रिकेट खेलएबाक अभ्यास करैत हो। नित्तह चारिटा दरखास्त लिखी नियमसँ। एकटा ढर्रा बना नेने छलहुँ, ओकरे नकल क’ ली सभ बेर, खाली हाकिम आ पदक नाम टा बदल’ पड़ए। काॅलेजोमे एतबा कलम-घस्सी नइं कएने छलहुँ, से हाथराम एना कुहरथि जेना जाँतक लागनि चलौने होथि। ओहि वेदना पीड़ित हाथसँ माथ ठोकि मासक दस तारीख धरि चावसी आदिक प्रमाणपत्राक नकलक संग नत्थी क’ दरखास्त सभक रजिस्ट्री कराबी। मासक एगारहम तारिखसँ बीसम तारिख धरि पन्द्रह पैसाही सादा लिफाफे पत्रा-पेटीमे खसाब’ पड़ए,केँचा-कौड़ीक कमी भ’ जएबाक कारणें। लिफाफ नइं भरिया जाओ, तैं बी. ए. टाक प्रमाणपत्रा दरखास्तक संग गाँथि पाबी। आ मासक नांगरि पछिला दस दिन भोर-साँझ पुस्तकालय सभमे अखबारक दोसर पृष्ठक मनोयोग-पूर्वक पारायण आर वान्टेड टीपब, गजेटेड अफसर सभसँ प्रमाणपत्रा आदिक ट्र ू कापी अभिप्रमाणित कराएब... मने तीन मास घीक टघार जकाँ टघरि गेल, आर हम बीस तिये साठि, गुने चारि, मने दू सै चालीस टा दरखास्त पठा देबाक पुण्यलाभ क’ चुकलहुँ, तखन मोन ठेहिया गेल... क्यो जवाब नइं देलक। एहन बकटेटर अछि कर्मे... डाकपीन टोकारासँ फराके तबाह, जेना अगाँमे नढ़िया रस्ता काटि देतनि, देखितहिं साइकिल मोड़ि लेअए... आ हमरा तखन अपने पता पर सन्देह होमए लागल तँ एकटा दरखास्त अपने ओहि ठामक पता लिखि क’ खसेलहुँ, आ से हमरा प्राप्त भ’ गेल। तखन सोलहो आना विश्वास भेल, जे ठीक हमर कर्मे ठिठिआएल अछि। आर फेर ओहि दिनसँ बिचारलहुँ, डाक टिकटमे पाइ खर्च करबासँ नीक अछि, पोस्टल आर्डर कीनब, आ दरखास्त लिखबाक स्थान पर वर्ग पहेली भरब... मनोरंजन, पीड़ा-हरन आ शब्द-संचयन। संसारक सर्वसुन्दर कार्य थिक वर्ग-पहेली भरब... जीवनो तँ गर्व-पहेलिये अछि... एना बैसाबी, नइं ओना।
आ नोकरी भेटबाक आशा तँ छोड़िए देलहुँ... चलू नट्ठे रहब।
भगवानक लीला, एक दिन वर्ग-पहेली भरि रहल छलहुँ। पछिला तारीखमे एक गोटेकेँ बीस हजार टाकाक पुरस्कार भेटल छलनि। ओ बिहुँसि रहल छलाह। हमहूँ बिहुँसि उठलहुँ, जेना ओ हमरे फोटो हो, आ हमरे पुरस्कार भेटल हो... मोन आनन्दसँ हरियर बाध भ’ रहल छल आ फेफरा फुलि क’ फुटबाॅल जकाँ हरियरी पर उछलि रहल छल। तखने खिड़की दिससँ एकटा झटका लागल। हम दस लग्गा उछलि क’ आउट भ’ गेलहुँ। मूड आॅफ भ’ गेल। मुदा ओहि झटकाक संग हमर कपारोक दरबाजा फटाक द’ खुजि गेल छल। ई झटका आर किछु नइं, डाकपिन द्वारा फेकल गेल... नोकरीक हेतु अन्तर्वीक्षा लेल बजाहटि छल, सादा लिफाफ, मुदा कतेक पियरगर? सरकारी मोहरक सिन्दूर-बिन्दी लगौने। तीने दिनक बाद अन्तर्वीक्षा होएबाक छलै। अन्तर्वीक्षामे सम्मिलित भेलहुँ, आर नोकरी भेटि गेल। आ जँ सत्य पूछी, कहब मोश्किल छल जे हजारो बकरी-छकड़ीक परीक्षार्थी-समुदायमे ककर गुद्दा बेसी पसिन पड़तनि, के कहौ? ...ओ तँ खन्ना साहेबक कृपा, जे हमरा दिससँ मात्रा सै रुपैयाक उपहार, सर केर कनक चरण धरि पहुँचा अएलाह, अपने नेना-भुटका, कुकुर-बिलाइ सभक संग फस्ट-किलासमे सिनेमा देखि, हमरा कृतार्थ कएलनि, तँ विश्वास भ’ गेल, जे नोकरी अफसरक दरबारमे रिजर्व राखल अप्सरा थिकीह... हुनकर कृपा-कटाक्षसँ किरानीक पत्रा प्राप्त भेल। आ हम साष्टांग-दण्डवत कएलहुँ-
जय-जय हे नोकरी - स्वर्गकेर महरानी।
अफसर राजा कृपा बनब हम आइ किरानी।।
अहाँ पूछब, एहिसँ पहिने की झाम गूड़ैत छलहुँ? नइं, हम झाम तँ नइं, कागज गूड़ैत छलहुँ, मने पत्राकार छलहुँ, आब गुप्त की राखी, जखन सरकारी नोकरी भेटि गेल, प्रतिष्ठे बदलि गेल। कहलहुँ ने पत्राकार, मुदा असलमे हम प्रूफरीडर छलहुँ। ओना, प्रूफ-रिडरियोक जड़िमे छल एकटा साधारण ट्यूशन मात्रा।
बी. ए. पास करबाक उपरान्त पत्राकारिता, मने प्रूफरीडरी, मने ट्यूशन हम करैत छलहुँ एकटा जिम्मरि दुब्बरि, सात वर्षीया कन्याक। दूनू साँझ। आ बाँकी दिन भरि इम्प्लायमेंट एक्सचेंजक अगुअति-पछुअतिक ओगरबाहि।
ट्यूशनिया सात वर्षीया कन्याक जन्म बड़ कबुलापातीक उपरान्त भेल छलनि। पिताजी बिजनेसक हेतु अपन नगरसँ कम्मे संबंध रखथिन, आइ बम्बइ तँ काल्हि कलकत्ता करथि। आ जेहन लाह, तेहन भाग। से माताजी मेक-अपसँ बनल-ठनल दर-दरबार फुदकल चलथि, आ परम्परानुसार एक दिन एम. एल. सी. भ’ क’ रहलीह। हुनक नांगड़ि पकड़ि क’ सेठोजी ताज पोषित भ’ आटी-पाटी खा आबथि। आ जेना-जेना राजा रजबाड़सँ चीन्हा-परिचय बढ़ैत गेलनि, बिजनेस सुरसाक मुँह सन फल्लड़ होइत गेलनि आ अपने दौड़-धूप कने बेसी कर’ लगलाह... यथा वीर हनुमान।
एम. एल. सी. महोदया लग एक दिन पत्राकार बनबाक अपन आकांक्षा प्रकट कएलहुँ। ओ गद्गदायमान होइत हमरा एकटा प्रेसमे ल’ गेलीह, एकटा प्रूफरीडरक कुर्सी हमरा हेतु खाली कराओल गेल। हम पत्राकार, मने प्रूफरीडर भ’ गेलहँु, ओहि दिनसँ देवीजीक दया-दृष्टिक मारि हमरा पर सभ दिन पड़ैत रहल। अगिला मासक पहिल तारीख आएल। पैंतालिस टा टाका टेंटमे खोंसि सकलहुँ।
आगाँ दरमाहा बढ़ि जएबाक उम्मीदक संग प्रेस घुरलहुँ तँ सोझे खादी भंडार पहुँचलहुँ। एक सेट धोती-कुरता आ सेनहुली-बंडी रेडीमेड किनलहुँ, एकटा चामक बेग, एकटा नकली चश्मा। एहि सभसँ सीटल-साटल रेडीमेड बनल पानक दोकान पर ठोर रंगि अयनामे अपन आकृति देखलहुँ त’ क्षुब्ध भ’ गेलहुँ, सै प्रतिशत पत्राकार। मोन पड़ि गेल अपन चारि मास पहिनेक दाढ़ी बढ़ल मुखरा, मैल-मोड़ल बाँहिक कमीज, फाटल धोती... जखन एकटा सै टाका मासी ट्यूशन भेटल छल, तीनिये चारि दिनुका बाद युवती छात्रा बाजलि छलीह-मास्टर साहब, आप थोड़ा-सा भी रसिक नहीं हैं। साहित्य क्या पढ़ाएंगे?-ओही दिन अपन कवि हृदयक अपमान जानि, हम ओ ट्यूशन छोड़ि देने छलहुँ। से आइ बुझना जाइत छल रसिकताक महत्त्व। आ प्रसन्न मोन भेल जखन देवीजीसँ भेंट कएलहुँ। ओ ततेक आकस्मिक ढंगसँ सम्मान कएलनि आ कमलक फूल जकाँ दपदपा उठलीह जे ओहि दिनसँ हम हुनक बे-बहाल पी. ए. (खास सहायक) भ’ गेलहुँ। आब तँ ओ जत’ जाथि, हमरा अवश्य संग क’ लेथि। हमर भोजनोक व्यवस्था हुनके ओहि ठाम होम’ लागल... मुदा हमर मोन रसगुल्लो-पुराणक पारायणसँ प्रसन्न नइं भ’ रहल छल... पानक लालीसँ रंगल अधर सुरा-सुरसरिक धार पर झिल्हैर... हमरा संतुष्ट नइं क’ सकल।
एकटा सुनसान जकाँ बुझि पड़ए, भकोभन्न... जेना फाटल बाँसक बँसुरी बजा रहल होइ... जेना भारतीय फिल्म सभक अधिकतर संगीत श्रेणीक हल्ला-गुल्ला... तखन अपन नव विवाहिता पत्नी मोन पड़थि, हुनक लिखित पाँती मोन पड़ए... जकरा बेर-बेर पढ़ैत-पढ़ैत पहिने आनन्दित आ फेर अनमनाएल सन भ’ जाइ तँ बुझि पड़ए जेना कोनो संताली इलाका हो। बाघ-शेर-गर्जित वन। जानवरक डरसँ हम एकसर डाकबंगलामे बन्द छी, कतहु पहाड़ परसँ संताल नृत्यक ढोल-बँसुरीक स्वर आबि रहल अछि। नृत्यक बोल हमरा बजा रहल अछि। पंगु बनल हम छटपटा रहल छी।
...पत्नी लिखलनि अछि... विवाहक उपरान्त प्रण कएने छलहुँ, शीघ्रसँ शीघ्र संगे राखब। ...नाथ, हमर सखी सभ अपन-अपन प्रियतम संग खिलखिला रहलि छथि, आ हम अहाँक प्रतीक्षामे स्मृतिक दीप जरौने बैसलि छी। ...संगमे ओ प्रसिद्ध गीतक पाँती सभ लिखि देने छलीह जाहिमे एक स्त्राी कारी-कारी बादरि देखि मयूरी जकाँ कुहुकि उठैत छै... सभक साजन परदेशमे छै। बादरि बरसि रहल अछि। मयूरनी कुहुकि रहल अछि। हमर मोन कचोटि रहल अछि। नयनसँ नोर बहि रहल अछि...।
हम आँखि पर लाधल मेघकेँ कोनहुना टारि दी। रहि-रहि पान खाइ आ बिहुँसबाक प्रयास करैत रही। नोकरी भेटि जएबाक आशा छल। हे सुन्नरि, सरकारी नोकरी भेट’ दिअ’, फेर अहाँकेँ कहियो फराक नइं रह’ देब।
एखन की करी?
जतबा पाइ प्रेस आ ट्यशूनसँ भेटै’ए, ततबामे तँ भोजनो चलब दुर्लभ छल। जँ देवीजीक कृपापात्रा नइं रहितहुँ? विवाहक दू वर्ष लागि रहल छल। पत्नीकेँ विदा नइं करा सकल छलहुँ। सासुरक लोक सोझे विदा करा लेब’ लेल कोना कहितथि? एम्हर-ओम्हरसँ ताना भरल तगेदा भेटिए जाइक तैयो। विवाहक उपरान्त कोन पिता अन्तरमनसँ पुत्राीसँ मुक्त भ’ जएबाक इच्छा नइं रखैत छथि?
मुदा हम हारलहुँ नइं। दरखास्त फेकैत गेलहुँ।
आइ कतेक प्रसन्न छल मोन जे हम फौजदारीमे किरानी भ’ गेल छलहुँ। बी. ए. छीहे। शीघ्र तरक्की होयत। आर खन्ना साहेबक आश्वासन-लोन डिपार्टमेंट में लगा देंगे... या अंचलमे पेशकार बनवा देंगे। फिर तो यारो, रहेगी हमारी सपरिवार पिकनिक।
से जे हो, सरकारी नोकरी... किछु हो, सरकारी नोकरी अछि। पचहत्तरिए भेटत, तैं की? इज्जति तँ छै। आ इज्जति छै तँ खुशामद आ खुशामद माने आमद। मोन मधुरा गेल... एकटा डेरा लेब। पत्नीकेँ विदा करा अनबनि।
आ हम नोकरी स्वीकार क’ लेलहुँ आइसँ। भरि दिन कार्यालयमे नव फाँसल सुग्गा जकाँ अनभुआरे बनल रहलहुँ। साँझ खन जखन कार्यालयसँ निकलि कचहरीक हातामे अएलहुँ कि पाछाँसँ सोंधी साहेब हाथ पकड़लनि-हल्लो मि. जर्नलिस्ट, बहुत दिनों बाद मिले हैं यार!
आ झट द’ हाथ मिलौलनि। अंग्रेजी-मिश्रित हिन्दीमे गप्प-सप्प करैत रहलाह... चलू, डेरे पर गप्प-सप्प करबाक अछि। मोन नइं लागि रहल छल। अफसर सभ रिलीफक काजसँ बाहर चल गेल छथि। एतबे नइं, डेरो पर क्यो नइं अछि एखन। आ फेर अहाँ सभ सन साहित्यिक लोक तँ बड़ मस्त जीब होइत छथि। ...बड़ अवसर पर भेंट भेल।
आ मोटर विदा भ’ गेल। अपने चला रहल छलाह। हम हुनक कातमे बैसल छलहुँ। ड्राइभर पाछाँ छल, चपरासीक संग।
मोटर सोंधी साहेबक बँगला दिस भागि रहल छल। सोंधी साहेब फस्र्ट क्लास मजिस्ट्रेट छथि आ खूब चलता-पुर्जा। एहन चलता-पुर्जा जे शीघ्रे जिलाधीश भ’ क’ रहताह... तैं लीडर आदिक गाढ़ परिचय आवश्यक छलनि। कैक बेर देवीजीक डेरा पर आएल छलाह। देवीजी संग रहने हमर एहि तरहक मान होइत छल जेना हमर बाप-दादा कोनो पैघ जागीर छोड़ि क’ मरल होथि आ हम सौखसँ पत्राकारिता क’ रहल होइ। मोटर बँगला पर आबि क’ रुकल। ड्राइभर उतरल। दरबजा खोललक। साहेब आगाँ बढ़लाह। चपरासी सलाम देलक आ हमरा हुनक चैम्बरमे बैसौलक। पहिनेसँ ओहि ठाम हुनक स्टेनो बैसल छल। हम सोच’ लगलहुँ जे सरकारी नोकरीमे कतबा इज्जति छै। सभ-सभकेँ समान दृष्टिसँ देखैत छै। साहेब आ किरानी मित्रावत रहै छथि। मोन भेल... आब निश्चय लोन डिपार्टमेंटमे बदली भ’ जाएत... जखन साहेब मित्रा छथि। आर बुझि पड़ल जेना सौंसे फौजदारी कचहरी हमरा सलाम क’ रहल अछि, हम बिहुँसि रहल छी...।
तखने सोंधी साहेब चैम्बरमे प्रवेश कएलनि, हमरा सभ ठाढ़ भ’ गेलहुँ। ओ स्टेनोकेँ बाहर जएबाक इशारा कएलनि आ बजलाह-ई किरानी-तिरानीक आगाँमे भरिपोख गप्प करब नीक नइं। असिस्टेंट कहुना अस्टिेंट अछि-माथ पर चढ़ि जाएत आ अहाँ भेलहुँ पत्राकार-कवि-हृदय-इमोशनल फेलो।-आ चपरासीकेँ चाय मंगएबाक आदेश भेल।
राति गाढ़ होइत गेल। हमरा सभक गप्पो गाढ़ होइत गेल। ओ खूब बजबा लेल भुखाएल छलाह जेना। कहलनि, बरोबरि भेंट करैत रहब। अहाँकेँ तँ सदिखन हमरा सभक लग रहबाक चाही-हँ, देवीजीसँ हमर नमस्ते कहि देबनि।
साहस जमाइयो क’ हम नइं बाजि सकलहुँ, जे हम आब पत्राकार नइं छी, अहाँक नीचा किरानी भ’ गेल छी। आ हमरा लोन डिपार्टमेंटमे पठा दिअ’।
हम घूरि अएलहुँ।
दोसर दिन कार्यालय गेलहुँ तँ पता चलल जे हमर बदली भ’ गेल अछि नेपालक सीमा पर कोसी पीड़ित अंचलमे-जत’सँ आएब-जाएब असंभव छल, जत’ रहबाक कोनो ठौर-ठेकान नइं। खन्ना साहेबसँ दरियाफ्त करएलहुँ तँ पता चलल जे ई बदली सोंधी साहेब अपने कएलनि अछि। आ हमरा एहि ठाम नइं राखए चाहैत छथि, कारण हमरा हुनकासँ समताक व्यवहार अछि... आ राति कतेक गुप्त बात सभ कएने छलाह... आ स्टेनो हमरा देखि क’ जरि गेल छल... हमरा रहै हुनका हीन-भावनाक अनुभव हेतनि...
हम सोंधी साहेबक कक्ष दिस बढ़लहुँ।
चपरासी हमर भेंट करबाक आवेदन हुनका जा क’ देलकनि। हम बाहर पर्दाक लग ठाढ़ छलहुँ।
भीतरसँ घुनघुनएबाक आवाज आएल-डर्टी। वेरी इन्डिसेंट... कौन है वह? क्या है? कह दो जाने। मैं नहीं जानता उसे...
आ हम सोझे पाछाँ भ’ गेलहुँ।
आ हमरा बुझि पड़ल जेना हम सरकारी नोकरी नइं स्वीकार कएलहुँ अछि, अन्हार-बोनक ठीकेदारी लेल अछि।

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विधिक विधान
लिली रे

पानमती खटनारि माउगि छल। सब ठाम ओकर माँग छलै। चाहे कतबो राति क’ सुतए, पाँच बजे भोरे ओकर नीन टूटि जाइ। छ’ बजे ओ काज पर बहरा जाए। तीन घरमे बासन मँजैत छल, घर बहाड़ैत-पोछैत छल, कपड़ा धोइत छल। साढ़े एगारह बजे अपन झुग्गीमे घुरैत छल।
झुग्गीमे सबसँ पहिने चटनी पीसैत छल। तकरा बाद स्टोव पर गेंट क गेंट रोटी पकबैत छल। ओकर बेटी तकरा बिल्डिंग साइट पर बेचैत छल। कुली-मजदूर टटका रोटी कीनए। चटनी मुफ्त भेटइ।
हिसाब-किताब पूनम राखए। ओ पाँच क्लास तक पढ़लि छल। स्कूलमे पाँचहि क्लास तक छलै। से भ’ गेलइ त’ पानमती पूनमकेँ काज लगा देलकै। बासन माँजब घर पोछब नइं। पूनम करैत छल कपड़ामे ‘इस्त्राी’। फाटल कपड़ाक सिलाइ, बटन टाँकब। इसकूलिया बच्चाक माइ लोकनि पूनमकेँ मासिक दरमाहा पर रखने छलीह। सस्त पड़नि।
चोरी, मुँहजोरी, दुश्चरित्राता-तीनूमे कोनो दोष पानमतीमे नइं छलै। झुग्गी कालोनीक लोककेँ ओकरासँ ईष्र्या होइ। नियोजक लोकनि लग पानमती सम्मानक पात्रा छल। पूनम आठ वर्षक छल जखन पानमती ओहि इलाकामे आएल। पचास टाका मास पर झुग्गी किराया पर नेने छल। आब ओकरा चारि टा अपन झुग्गी छलै। एकमे रहै छल। तीनटा किराया लगौने छल। सौ रुपैया मास प्रति झुग्गी। आब इच्छा छलै एकटा सब्जीक दोकान करबाक। दखली-बेदखलीवला नइं, रजिस्ट्रीवला दोकान। जकरा केओ उपटा नइं सकए। दुनू माइ-बेटी रुपैया जमा क’ रहल छल। बेटी समर्थ भ’ गेल रहै। तकर बियाह करब’ चाहैत छल। नीक घर-वर। विश्वासपात्रा।
पूनम पानि भरबा लेल लाइनमे ठाढ़ि छल। बुझि पड़लै जेना केओ ओकरा दिस ताकि रहल होइ। मुँह चीन्हार बुझि पड़लै। अधवयसू व्यक्ति। उज्जर-कारी केश। थाकल बगए। ताबत लाइन आगू घसकि गेलइ। पूनम सेहो बढ़ि गेल। आगू पाछू लोकक बीच अ’ढ़ क’ लेलक। ओ लोक सेहो दोसर दिस मूड़ी घुरा लेलक।
पूनम सेहो तीन घरमे काज करैत छल। मुदा ओकरा देरीसँ जाइए पड़ै। तहिना देरीसँ अबैत छल। तीनू ठाम चाह-जलखइ भेटै। माइ-बेटी तीन ठाम नइं खा सकए। एक ठाम खाए, बाकी ठाम चाह पीबए। जलखइ’क पन्नी घर आनए। बेरहट रातिमे चलि जाइ। कहियो काल भानस करए।
पूनम जलखइ ल’ क’ बहराए त’ माइ ठाढ़ि भेटइ। पूनमसँ दुनू पन्नी ल’ माइ घर घूरि जाइ। माइ जाबत अदृश्य नइं भ’ जाइ, पूनम देखैत रहए। तखन पुनः काज पर जाए।
फेर ओएह व्यक्ति सुझलइ। ओ पूनमकेँ नइं, पानमतीकेँ अँखियासि क’ देखि रहल छल। दूरहि दूरसँ। पानमती निर्विकार भावसँ जा रहल छल।
तकरा बाद ओ व्यक्ति नइं सुझलइ। पूनम सेहो बिसरि गेल।
पानमती स्टोव पर रोटी पकबैत छल। गरमीमे पसीनासँ सराबोर भ’ जाइत छल। काज परसँ घूरए त’ सबसँ पहिने अपन झुग्गीक पाछू पाॅलिथिनक पर्दा टाँगए। पानिक कनस्तर आ मग राखए। तकरा बाद माइ’क बनाओल रोटी-चटनीक चंगेरी उठा साइट पर बेच’ जाए। पानमती स्टोव मिझा, स्थान पर राखि, नहाइ लेल जाए।
ओहि दिन रोटी कीननिहारक जमातमे ओहो व्यक्ति छल। सभक पछाति आएल। रोटी कीनबाक सती अपन गामक भाषामे बाजल-माइ कि एखनहुँ सुकरिया कहइ छउ? पूनम अकचकाइत पुछलकइ-अहाँ के छी?
-तोंही कह जे हम के छियौ तोहर?-फेर ओएह भाषा।
-बा... बू... !-पूनम कान’ लागल।
-विधिक विधान! जहिया तकैत रहियौ, नइं भेटलें। आशा छुटि गेल त’ भेट गेलें। अकस्मातहि।
-तों चुपहि किऐ पड़ा गेलह? हमरा लोकनिकेँ कतेक तरद्दुत उठाब’ पड़ल-पूनम कनैत बाजल।
-विधिक विधान। हमर दुर्भाग्य। भेल जे आब एहि ठाम किछु हुअ’ वाला नइं। आन ठाम अजमाबी। गम्हड़ियावाली काज करैत छल। तइं भेल जे तोरा लोकनि भूखल नइं रहबें। कहि क’ जएबाक साहस नइं भेल। घूरि क’ अएलहुँ त’ ने ओ नगरी, ने ओ ठाम। गउआँ सभक ओतए खोज लेब’ गेलहुँ त’ सुनलहुँ जे ओ बाट बहकि गेल। गाम नइं जा मजूरक संग चल गेल। कोनो पता नइं छलइक ओकरा सबकेँ।
धत्! हमर माइ ओहेन नइं अछि।-पूनमकेँ हँसी लागि गेलइ। छलछल आँखिसँ हँसैत बाजल, गामक लोक कंठ ठेका देने रहइ गाम घूरि जाइ लेल। जबर्दस्ती ल’ जाइत। तइं माइ नुका क’ मंजूर मामाक मोहल्लामे आबि गेल।
-मंजूर कत’ अछि?
-पता नइं। मामा बड़ जोर दुखित पड़ि गेलै। दवाइ दारूमे सब पाइ खर्च भ’ गेलै। रिकशा सेहो बेच’ पड़लै। पाछू नोएडामे ओकरे गामक कोनो साहेब रहथिन। सएह क्वार्टर देलखिन। रिकशा कीनै लेल पैंच देलखिन। शर्त रहनि जे मेमसाहेबकेँ स्कूल पहुँचाएब, आ घर आनब। तकर बीचमे अपना लेल चलाएब। मेमसाहेब डी. पी. एस.मे टीचर छली। पहिने भेंट कर’ अबैत रहै। एक दूू बेर मामी, बच्चा सबकेँ सेहो अनने छल। आब त’ कत्ता वर्ष भ’ गेलइ। कोनो पता नइं। मंजूर मामाक झुग्गी हमरा लोकनि कीनि लेलहुँ।
-वाह।
-तीन टा झुग्गी आर अछि। किराया पर लगौने छी। सबटा माइक बुद्धिसँ। तों की सब कएलह?
-से सब सुनाबी त’ महाभारत छोट भ’ जेतइ। हम अभागल, दुर्बल लोक।
-चल’ घर चल’। माइ बाट तकैत होएत।

पानमती नहा क’ भीतर आबि चुकल छल, जखन पूनम आएल।
-माइ, देख त’ हम ककरा अनलिऔ? चीन्हइ छही?
पानमती चीन्हि गेलै। मुदा किछु बाजल नइं।
-कोना छें?-ओ पुछलकइ।
-एतेक दिनसँ जासूसी चलैत रहइ, बूझल नइं भेलइ जे कोना छी।-पानमती अपन पैरक औंठा दिस तकैत नहुँ-नहुँ बाजल।
-तकर माने जे तोंहू चीन्हि गेलें।-ओ हँसबाक प्रयास कएलक।
पानमती किछु उत्तर नइं देलकै। ओहिना अपन पैरक औंठा दिस तकैत रहल। पूनमक ध्यान ओहि दिस नइं गेलै। ओ अपनहि झोंकमे छल-आब लोकक सोझामे माइ पूनम कहैत अछि। मुदा जखन दुःखित पड़ैत छी त’ कह’ लगैत अछि-हमर सुकरिया, नीके भ’ जो।-माथो दुखाइत त’ एकर हाथ पैर हेरा जाइत छै। कौखन नीको रहै छी त’ दुलार कर’ लगैत अछि। मारि मलार-हमर अप्पन सुकरिया। सुकरी! की-कहाँ नाम दैत अछि। पूनम नाम त’ तोरे राखल थिक ने? स्कूलमे। नइं? के रखलक हमर नाम सुकरिया?
-गाममे। तोहर जन्म शुक्र क’ भेलौ, तें सब सुकरिया कह’ लगलौ। हमरा केहेन दन लागए। मुदा ओतेक लोकसँ के रार करए। एत’ अएलहुँ त’ नाम बदलि देलियौ। तोहर नाम पूनम। तोहर माइक नाम पानमती। आ’ अपन नाम जागेश्वर मंडल।-पूनम ठठा क’ हँस’ लागल। जागेश्वरकेँ सेहो हँसी लागि गेलै। पूनम बाजल-कतेक सुखी रही हमरा लोकनि तहिया।
जागेश्वर लए सबसँ सुखक समय रहै ओ। मालिक सीमेण्ट, ईटाक खुचरा व्यापारी छल। अपन साइकिल ठेला छलै, जाहि पर समान एक ठामसँ दोसर ठाम पठबै। कइएक ठाम छोट छोट कच्चा गोदाम बनौने छल। तहीमे एक गोदाम लग एकटा झुग्गी जागेश्वर लेल सेहो बना देलकै। जागेश्वर अपन परिवार ल’ अनलक। सामनेक कोठीमे पानमतीकेँ बासन मँजबाक काज भेटि गेलै। म्यूनिसिपल स्कूलमे पूनम पढ़’ लागल।
मालिक रहै छल दक्षिण दिल्लीमे। अपन कोठी छलनि। तहीमे एक राति हुनकर परिवार सहित हत्या भ’ गेलनि। पुलिस आ वारिस लोकनिक गहमागहमी हुअ’ लागल। गोदामक जमीन मालिक केर नइं छलनि। जागेश्वरकेँ झुग्गी छोड़’ पड़लै। जाहि घरमे पानमती काज करैत छल, तत’ जगह खाली नइं छलै। दोसर एक कोठीमे टाट घेरि, टिनक छत द’, जगह देबा लेल राजी छलै, यदि पानमती ओहि कोठीक काज करब गछए। पानमती दुनू कोठीमे काज कर’ लागल।
जागेश्वरकेँ काज नइं भेटि रहल छलै। नब मालिक पुलिसक झमेला समाप्त होएबा तक प्रतीक्षा कर’ कहलखिन। झमेला अनन्त भ’ गेल छल। ओ मंजूरकेँ पकड़लक। मंजूर बाजल, हमर इलाकामे मजूरी बड़ कम छै। ओहि ठाम अधिकांश लोक नोकरिया। स्त्राीगण सब सेहो आॅफिस जाइत छथि। तैं ओहि ठाम घरक काज कएनिहारक मांग छै। पाइयो तहिना भेटै छै ओहि सब घरमे। छह बजे भोर जाउ, नौ बजेसँ पहिने काज खतम करू। घरवाली अपस्याँत भ’ जाइत अछि जाड़मे। नागा भेल, त’ पाइ कटि गेल। हमरा पोसाइत त’ किऐ अबितहुँ एतेक दूर काज ताक’?
मंजूर प्रीतमपुरामे रहै छल। भिनसर बससँ उत्तर दिल्ली अबैत छल। जगदीशक संग मालिक केर साइकिल ठेला पर माल उघैत छल। साँझ क’ फेर बससँ घर घुरैत छल। ओहि ठाम मालिककेँ कोनो गोदाम नइं छलनि। मंजूर तीस टका मास किरायाक झुग्गीमे रहै छल। ओकर योजना छलै एकटा अपन रिक्शा किनबाक। तकर बाद अपन स्त्राीक काज छोड़ा देबाक।
मंजूरक योजना सुनि जागेश्वर सेहो योजना बनबैत छल। पानमती सेहो। जागेश्वरकेँ झुग्गीक किराया नइं लगैत छलै। तैं ओ अपनाकेँ मंजूरसँ अधिक भाग्यवान बुझैत छल। बुद्विमान सेहो। भविष्यमे ओ झुग्गी बनएबाक सोचैत छल।
-पहिने जगह सुतारब। ठाम ठाम झुग्गी बना किराया पर लगा देबै। तखन तोरा काज कर’ नइं पड़तौ।
-नइं, हम काज नइं छोड़ब। झुग्गी किरायासँ साइकिल ठेला कीनब। एकटा नइं कइएक टा। माल उघै लेल किराया पर देबै।
-मालिककेँ?-जागेश्वर कौतुकसँ पूछै। पानमतीकेँ हँसी लागि जाइ। पूनम सेहो हँस’ लागए।
किछु नइं भेलै।
फरीदाबाद तक बउआएल। ढंगगर काज नइं भेटलै। शुभचिन्तक सब दिल्लीसँ बाहर भाग्य अजमएबाक सलाह देलकै। अपनहुँ सएह ठीक बुझि पड़लै। पानमती कन्नारोहट करत, ताहि डरसँ चुप्पहि चल गेल।
पूनम नेना छल। तैयो ओ दिन मोन पड़ि गेलै। स्कूलसँ बहराएल त’ बाप फाटक लग ठाढ़ भेटलै।
-नोकरी भेटलह?-पूनम पुछलकै।
-भेटि जायत।
-कत’?
-बड़ी दूर। तों नीक जकाँ रहिहें। माइक सब बात मानिहें। जाइ छी।
-कत?
-काज ताक’-जागेश्वरक आँखि छलछला गेलै।
-नइं जाह।
-फेर आबि जएबौ।
जागेश्वर चल गेल। तीन मास जखन कोनो खबरि नइं भेटलै, त’ पानमती पूनमक संग रघुनाथ रिक्शवाला लग गेल। ओकरहि गामक रहै। रघुनाथ बाकी गौंआं सबकेँ खबरि देलकै। सब पहुँचलै। घर घुरि जएबाक सलाह देलकै। पानमतीकेँ नइं रुचलै। सब जोर देब’ लगलै। पानमतीकेँ मान’ पड़लै। तय भेल जे अगिला मासक आठ तारीख क’ जे जमात गाम जाएत, ताहि संग पानमती आ पूनम सेहो रहत। सात तारीख क’ लोक आबि क’ ल’ जेतै अड्डा पर। ताबत पानमती दुनू घरसँ अपन दरमाहा उठा लिअय।
दुनू मलिकाइन दिल्ली छोड़बाक सलाह नइं देलखिन। कहलखिन, काज ताकए गेल छौ, घुरि अएतौ। चाहत त’ आब एत्तहु काज भेटि जेतै। हमरा लोकनि देखबै।
-अपन लोकवेदक से विचार नइं छै। ओ आबि जाए त’ कहबै जे हमरा जल्दी गामसँ ल’ आबए।-पानमती बाजल।
मंजूर भेंट करए अएलैक। पानमती ओकर पैर पकड़ि लेलकै। कान’ लागल। बाजल-हमरा अपन इलाकामे ल’ चलू। ओहि ठाम काजक लोकक माँग छै।
माइकेँ कनैत देखि, पूनम सेहो माइक बगलमे लोटि गेल। माइ बात दोहराब’ लागल।
मंजूर अकचका गेल। बाजल-ओहि ठाम रहब कत’?
-झुग्गीक किराया द’ क’। जेना अहाँ रहै छी।
-झुग्गीक किराया आब बढ़ि गेलै अछि। पचास टाका मास। आ पचास टाका सलामी भिन्न।
-देबै। जे नुआ फट्टा अछि, बेचि क’ द’ देबै।
मंजूरक बहु किछु दिनसँ काज पर जाइ काल नाकर नुकर क’ रहल छलै। हाथ-पैर झुनझुनाइत रहै। बदलामे पानमती सम्हारि देतै त’ दरमाहा नइं कटतै।
सएह सोचि क’ मंजूर राजी भ’ गेल। पानमती तखनहि बिदा हेबा लेल वस्तु जात बान्ह’ लागल। रघुनाथकेँ खबरि दइ लए पूनमकेँ दौड़ा देलकै।
-रघुनाथ काका! हमरा लोकनि गाम नइं जाएब।
-किऐ?
-मंजूर मामा लग रहब।

रघुनाथकेँ तखन सवारी रहै। ओ अधिक खोध वेध नइं केलकै। जागेश्वर प्रीतमपुरामे कत्ता बेर छानि मारलक। ने मंजूर भेटलै, ने पानमती, ने पूनम। अपने लोकबेद जएबासँ रोकै। बेर बेर बुझबै-केओ ककरो संग भागत, त’ पुरान डीह पर थोड़े बसत। ओ त’ तेहेन ठाम जाएत, जत’ ओकरा केओ नइं चीन्हइ। केहेन मूर्ख छें तों।

-महामूर्ख छी हम-जागेश्वर घाड़ नेरबैत बाजल। पूनम सेहो घाड़ नेरबैत बाजल-नइं। तों कदापि मूर्ख नइं छह। झुग्गी बना क’ किराया लगएबाक विचार तोंही कएने छलह। हमरा लोकनि जे ठेला किनलहुँ, से जकरा चलब’ देलिऐ, सएह ल’ क’ भागि गेल। माइ त’ निश्चय क’ लेलक अछि, बिना रजिस्ट्रीक सब्जी दोकान नइं करत। आब तों आबि गेलह। तोंही दोकान चलएब’। आदना लोककेँ नइं देबै।
पूनम अपन माइ दिस तकलक। माइ अपन पैरक औंठा दिस दृष्टि गड़ौने ओहिना ठाढ़ि रहए। पूनमकेँ आश्चर्य भेलै। पूछलकै-माइ! तों किछु बजै नइं छें?
एक क्षण आर चुप रहि, पानमती बाजल-सब्जी दोकानमे देरी छै। रुपैया जमा हैत, जगह भेटत, रजिस्ट्री हैत-एखन त’ नाम पर लगैत बट्टा बचएबाक अछि।
-बट्टा?
-नौ वर्षसँ एहि इलाकामे छी। सब जनैत अछि जे हमरा एक बेटी छोड़ि, आगू पाछू केओ नइं अछि। तखन एकटा पुरुष क्यो।
-केओ एकटा पुरुष नइं। तोहर वर, आ हमर बाप थिक।
-केओ नइं मानत। सब आंगुर उठाओत।
-के आंगुर उठाओत? प्रति तेसर लोक जोड़ी बदलैत रहै अछि एतए।
-तइं त’ ककरो विश्वास नइं हेतै सत्य पर!-पानमती अइ बेर जागेश्वर दिस ताकि बाजल, बेटी लेल नीक घर वर चाहैत छी। एहने समयमे...
-माइ! एहेन कठोर जुनि बन। बाबू हारल थाकल अछि। कहियो त’ भरि गामक लोकसँ लड़ाइ क’ क’ हमरा लोकनिकेँ एत’ अनलक। बेटी-पुतोहुकेँ बाहर पठएबा ले ने तोहर लोकवेद राजी रहौ, ने बाबूके। बाबू नइं अनैत त’ गाममे गोबर गोइठा करैत सड़ैत रहितहुँ आइ।
-तोरा जनैत नीक दशा बनबै वाला तोहर बाप छौ। माइ जहन्नुममे देलकौ!
-नइं माइ, नइं। हमर तात्पर्य से नइं छल। हमरा सन माइ ककरो नइं छै।
-गामसँ अनलक ठीके। बैसा क’ नइं खुऔलक। तहू दिनमे बासन मँजैत रही। आइयो सएह करैत छी। तहिया दू घर काज करैत रही, आइ तीन घर करैत छी।
पूनमकेँ उत्तर नइं फुरलै। ओ दहो-बहो कान’ लागल। पानमती फेर अपन पैरक औंठा दिस ताक’ लागल।
जागेश्वर नइं सहि सकल। हाथसँ बेटीक मुँह पोछैत बाजल-चुप भ’ जो। माइसँ बढ़ि क’ तोहर हित-चिन्तक आन नइं हेतौ। ओकर बातसँ बाहर नइं होइ। ओकरा खूब मानी। चलै छियौ।
-नइं।-पूनम केर कोंढ़ फाट’ लगलै।
जागेश्वर बिदा भ’ गेल। पानमती ठाढ़िए रहल। पूनम अपन माइकेँ बड्ड मानैत छल। कहियो कोनो विरोध नइं कएने छल। दरमाहा बख्शीस जे किछु भेटै, माइक हाथ पर राखि देअए। माइ प्रति बेर ओहिसँ किछु पूनमकेँ दैत कहै-ले अपन सौख-मनोरथ लेल राख।
पूनम एकटा बटुआमे सौख मनोरथक रुपैया रखैत छल। पूनम फुर्तीसँ ओ बटुआ आ जलखैक एकटा पन्नी उठा बाहर दौड़ल।
जागेश्वर मंथर गतिसँ जा रहल छल। पूनम हाक देलकै-बाबू... कनेक बिलमि जा।-जागेश्वर थमि गेल। पूनम बटुआ ओकर हाथमे दैत कहलकै-ई एकदम हमर अपन पाइ थिक। तोरा लेल। जतबा दिन चल’, भूखल नइं रहिह’।
-नइं, नइं। ई राख तों, हमरा काज भेटल अछि।
-तैयो राखि लैह। तोहर बेटीकेँ संतोष हेतह। आ’ इहो लैह। जे घड़ी ने क’लमे पानि अएलहि अछि। हाथ मुँह धो क’ पेटमे ध’ लैह।
-एतेक मानै छें हमरा?-जागेश्वर आर्द्र कंठसँ बाजल।
-तों कोनो कम मानै छ’, हमरा राति क’ खिस्सा कहैत रह’। गीत सुनबैत रह’। कतेक दुलार-मलार करैत रह’। कहियो नइं बिसरल। ने कहियो बिसरत।-पूनम फेर कान’ लागल।
जागेश्वर हाथसँ नोर पोछि देलकै। बाजल किछु नइं। पूनम अवरुद्ध कंठसँ कहलकै, दू सौ सत्तासी नम्बर वैशाली नगरमे हम काज करैत छी। फाटक पर घरवैयाक नाम पता लिखल छै। ओहि ठाम चिट्ठी दिह’। नीक आ अधलाह सब हाल लिखिह’। आर एकटा बात...
-की?
-माइकेँ माफ क’ दिहक। कठोर मेहनति करैत-करैत ओकर मोन कठोर भ’ गेलै अछि। मुदा हमरा विश्वास अछि जे एक दिन ओ पिघलत। आ’ हमरा लोकनि पहिने जकाँ संग रह’ लागब, प्रेमसँ।

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मादा काँकोड़
धीरेन्द्र

दीयठि पुर लुक-लुक करैत माटिक दीप। कहुना घरक सघन अन्हारक करेजकेँ फाड़बाक चेष्टा करैत। पुआरक सेजौट पर पतियानी-जोड़सँ सूतल सात गो नेना, गोनरि ओढ़ने आ सेजौटक एक छोर पर घोकड़िआएल बैसलि बुधनी, अर्थात् एहि सातो मानवीय कायाक जननी। कनकनी ततेक बढ़ि गेल छलै जे निन्नो ने भ’ रहल छलै। दोसर गप्प ई छलै जे गोनरि एक्केटा छलै, जाहिसँ झाँपि कहुना टेल्ह सभक रक्षा क’ रहलि छल। ओकरो सभकेँ अशौकर्ये भ’ रहल छलै। कनिएँ क्यो करौट फेरै कि दोसराक देह उघार भ’ जाइ आ बुधनी फेर ससारि-पसारि सभकेँ झाँपि दै। ठारक हमलासँ अपन नेना सभक रक्षा करैत माइ! अपन परवाहि करओ तँ कोना?
बच्चा सभ तँ सूतल छल, मुदा घोकड़ी काढ़ने बैसलि बुधनी जेना एकटा मनकथाक संसारमे हेरा गेल छल। आँगुरक पोर पर गनलक-पूरा पूरी बारह बरख भ’ गेलै अइ गाम एना, आ बरखक माझेमे तँ जनमि गेल रहै सुकना, माने ओकर जेठका छौंड़ा। कैली टा जनमल तीन बरखक बाद, आ तकर बाद ढेबाहि लागि गेल। जे हो छओ भाइ छै आ एक बहिन। भगवान निकेँ-ना रखथुन। जनम देलखिन अछि, तँ प्रतिपालो करबे करथिन! ...मुदा... मुदा... ध्यान एकाएक चल गेलै। दरबरिया दिश, अर्थात् अपन घरवला दिश। जनमक गप्प अएलै, तँ ओ मोन पड़ि गेलै। ओना चारि-पाँच बरखसँ मुँहो ने देखलकैए, मुदा ताहिसँ की। ओहिना फोटो घिचाएल छै मोनमे। ओ भने बिसरि जाओ, बुधनी कोना बिसरतै? सोचलक बुधनी- लोक कहै तँ छै जे भगवान जनम देलखिन, मुदा... मुदा भगवान की सत्ते जनम दै छथिन... एकाएक जेना लजा गेल। सोचलक जे मुँह कुंडाबोर भ’ गेल हेतै। देहमे विचित्रा सिहरन जकाँ बुझेलै... उहूँ, जाड़सँ नइं... दोसरे-दोसरे जकाँ! जेना हेरा गेल कतहु! जेना हेलए लागल हो कोनो पोखरिमे! ...मोन पड़लै ओ पहिले पहिल गप्प! एहने त’ राति रहै। खाली सेजाओटमे सबरंग पटिया रहै आ ओढ़नामे जोलही तौनी, आ ओ... ओ रहै! ...ओ माने... ओ... अइ बेदरा सभक बाप! ...बड़बड़ा उठलि मोनहि-मोन-जोरे चण्डलबा! ...एको बेर मोनो ने पड़ै छियौ आ... आ... ओइ राति केहन भभटपन पसारि ठकि नेने रहें हमरा! ...हाथ अकस्मात् गाल पर चल गेलै। एखनो दाँतक दाग हेबे करतै आ पुनः छाती दिस देखलक आ जोरसँ उसाँस लेलक आ फेर आँखि नोरा गेलै! देखलक जे डिबिया पर एकटा फतिंगा चकभाउर दैत छलै।
बड्ड तामस उठलै फतिंगा पर। भेलै जे जा क’ एक बाढ़नि मारए! ...कोना चकभाउर दै’ए पपियाहा! एहिना तँ ओहो चकभाउर दै आ... आ... कोना बकोटि क’ धएने रहै जेना कहियो छोड़बे ने करत। कहनहुँ त’ रहए... नइं गइ बुधन... कहियो ने छोड़बौ, आ केहन दुलार करए। केहन दिन छलै ओ। ओना गुजर तँ बटैया-फटैया आ बोनि-मजूरीसँ चलै, मुदा लगै छलै जेना सभ किछु रहए आ चारि-पाँच बरख पहिने कोन उदबाहि उठलै जे सोझे कलकत्ता विदा भ’ गेलै। बुधनी बड्ड रोकने रहै, मुदा ओकरा की भ’ गेलै की ने! नइं जानि! कहलकै, बस! एक बरख कलकत्ता कमेबौ आ एक जोड़ा बरद लेबौ! गाड़ी चलाएब! बेसीसँ बेसी बटाइ करब! देखिहें बुधन! की क’ दै छियौ!
आ ओ हारि क’ छोड़ि देने छलै। खाली जएबा काल कहने छलै हँसि क’-हे! बंगला जादूक फेरमे नइं पड़िह’!
मुदा दरबरिया ओकरा पँजिया क’ चुम्मा लैत विश्वास दियौने रहै-धुत्! बताहि! तोरा बिसरब सोझ छै कोनो?
मुदा केहन नीक जकाँ बिसरि गेलै। एक बरख धरि तँ टको-कौड़ी पठबै आ चिट्ठयो-फिट्ठियो लिखै, मुदा तकर बाद तँ जेना गुम्मी लाधि देलकै आ आब... आब तँ सकुंता छौंड़ाक गप्प ठीके लगै छै ओकरा। ठीक बंगालक जादूमे ओझरा गेलै मने!
आ जेना कछमछा उठल बुधनी! कोना-कोना क’ ई चारि बरख बितौलक ओ, आ धीया-पूताकेँ जिऔने जा रहलि अछि। कुटिया-पिसिया, ठिकौतीमे खेत रोपब, पगरबाहि करब, रोड़ी फोड़ब...। की-की करैए ओ। सात टा नेनाकेँ पोसने जा रहलि अछि! मुदा... मुदा... जो रे चण्डलवा! एक्को बेर ने मोन पड़ै छियौ? आ... आ... आकस्मात् तेहन गप्प मोन पड़लै, जे काँपि उठल ओ! ओइ टोलक सुकन्ती बुढ़िया छै ने, से कतए-ने-कतएसँ चल अएलै एम्हरे, आ फेर हुक्का पीबा ले बैसि गेलै। बैसबे टा थोड़बे कएलै। आशा माइक कथा पसारि देलकै। केहन डेराओन गप्प कहि बैसलै-हइ दाइ! जखने मंशा सभ झप्प-झप्प क’ लेध-गेध देबए लागए कोरामे कि बुझि जाइ उड़नमा पंछी छी-मरदबा काँकोड़ जकाँ कहियो-ने-कहियो नेह-छोह छोड़ि देत आ तखन त’ बस! कँकोड़बा बियान कँकोड़बे खाए! ...से, तोरो सैह परि भेलह... आब उघैत रह’ मोटा!...
आ... ओकर मोन काँपि गेल रहै... एखनो काँपि उठलै। तँ सत्ते ओकरो अन्त की मादा काँकोड़े जकाँ हेतै? ...सत्ते ओकरो नरबा काँकोड़ तँ ओकर नेह-छोह छोड़ि बंगलनियाँकेँ ध’ क’ बैसि गेलै, आ... ई धीया-पूता सभ केना खाउँ-खाउँ करैत रहै छै। बासि चाही, कलौ चाही, बेरहटिया चाही आ राति चाही! ...सत्ते ओ मादा काँकोड़ थिक! जेना मादा काँकोड़क पेटमे बच्चा होइते मर्दबा ओकरा छोड़ि नव-नौतारिक पछोड़ ध’ लै छै, तहिना ओकरो...! ओ हिचुकि-हिचुकि कान’ लागल। माथमे नेनपनक दृश्य नाचए लगलै। खूब रेठान मारए बाध-बोनक, जखन नैहरमे छल। अपना बच्चा सभसँ देह खोखरबैत, मरैत वा कौआक आहार बनैत कतेको असोथकित मादा काँकोड़केँ देखने होएत आ बूढ़-पुरनियाँसँ ‘कँकोड़बा बियान कँकोड़बे खाए’ क’ कथा सुनने होएत! त’ की... ओकरो...? ओ एक बेर सातो टा लेध-गेधकेँ देखलक। तँ? ...तँ? ...मुदा... मुदा... मोन पड़लै ओइ दिनका जेठका छौंड़ा सुकनाक गप्प। मोन पड़लै, आ भरि दिन रोड़ा फोड़ि घुरल रहए, ततेक थाकल रहए जे ओम्हरेसँ पैट घाटक हलुआइक दोकानमे सातु कीनि लेलक, आ धीया-पूता ले बीलम झाक दोकानसँ कनेक गूड़ कीनि लेलक सएह खा क’ सभ सूति रहल। ओ त’ आओर थाकल छल। जेठका बेटा आबि पैर जाँत’ लगलै आ कहलकै-...कनेके दिन रहलौए माइ! बेसीसँ बेसी दू बरख! जखन हम ज’नमे जाए लगबौ तँ तोरा थोड़बे हरान होब’ देबौ। आ ममत्वक मधुर आघातसँ ओ कान’ लागल, आइयो आँखि नोरा अएलै। ओ बड्ड आवेशसँ सातो लेध-गेधकेँ देखलक। पुनः नोर पोछि लेलक आ मोने-मोन सोचलक ओ काँकोड़ नइं, मनुखक बेटी छी, ओकर बच्चा सभ मनुखक बच्चा छिऐ, जकरा नेह-छोह होइ छै। नइं, ई बच्चा सभ ओकर करेजक टुकड़ा छिऐ। ओ एना नइं सोचत। आ उठि क’ पुनः सभकेँ गोनरि ओढ़ा देलक आ आवेशसँ सभकेँ देख’ लागल।

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व्यापार
बलराम

घूमि-फीरि क’ जीवनक ओहि चैबटिया पर पहुँचल छी, जत’ लोककेँ एकटा निश्चित मार्गक अनुसरण करब अनिवार्य भ’ जाइत छै। मुदा, कोन मार्गक अनुसरण कएल जाए?
‘व्यापार...’ सेठ जी कहैत छथि-ई अहाँक भावुकता थिक, जे चिन्तित छी। जे भ’ गेलै से भ’ए गेलै। अनजानमे कएल पाप, पाप नइं थिक... तँ आर की? नोकरी कहियौ कि चाकरी, से पाप नइं तँ आर की थिक? ई मनुष्यक व्यक्तित्वक विकासमे भारी बाधक, आ नीक जकाँ देखियौ तँ नोकरी जनतंत्राक सिद्धान्तक एकदम प्रतिकूल।
‘ड्राइंग रूम’मे मोटका गेरुआक टेक लगा अपन खास ब्रांडक कीमती सिकरेटक धुआँ छोड़ैत-छोड़ैत सेठ दुलीचंदक व्यावसायिक बुद्धि अचानक रेलक इंजिन जकाँ गति पकड़ि लैत अछि।
लौह-शंृखला सन कठोर भरिगर देह, रोब भरल चेहरा, मृदु स्वभाव, अंतरंग व्यवहार, बड़ आमंत्राणवत आकर्षक। पाँच बरख पहिने फुटपाथ पर लंुगी बेचनिहार सेठ दुलीचंदक प्रत्येक वस्तुसँ वैभव आ शालीनताक मोहक गंध बहराइत अछि। गलती इएह टा भ’ गेलै जे हिनक नाम हीराचंद, मोतीचंद अथवा मानिकचंद नइं भेलनि।
व्यापार? ...ओना तँ चलब-फिरब, खाएब, हँसब, कानब... सभ कोनो ने कोनो रूपें व्यापारे थिक, मुदा हमरा लोकनि जाहि व्यापारक गप्प करब ओ भिन्न वस्तु थिकैक-कथ्यक गम्भीरतामे प्रवेश करबा लेल तैयार होइत ओ बजैत छथि, महत्व एहि बातक नइं छै जे कतेक पूजी लगाओल गेल, महत्व एहि बातक छै जे आदमी कतेक फुर्तीसँ लोकक आँखिमे बालु झोंकि सकैत अछि। ओकरामे आगिक, बिहाड़िक, बिड़रोक, माने आवश्यकतानुसार सभ कथूक व्यापार करबाक क्षमता छै कि नइं। ...सफल व्यावसायिक योजना ओ थिकैक जे चित्ती कौड़ी जकाँ पड़ाए आ पड़ाइत धनकेँ पकड़ि सामने हाजिर क’ देअए। ...आश्चर्य जे जाहि देशमे जनताक मूर्खताक अपन एकटा कीर्तिमान स्थापित छै, तत’ लोक नोकरी लेल आफन तोड़ै’ए...
हठात् सेठक आँखिमे जेना एक बाकुट मेरचाइक बुकनी पड़ि गेल होइनि। एकटा युवक बिना अनुमति नेने कोठलीमे प्रवेश क’ रहल छल। खिरकिट्टी देह, तानल मोंछ, मैलछांह सूती धोती, खद्धरक हाफ शर्ट, सर्दीसँ गाल आ नाक लाल।
ओ आदमी, ल’ग आबि एकटा कुर्सी पर बैसि गेल। तामसें माहुर होइत सेठ जी पुछलखिन-कत’सँ अबैत छी? के थिकहुँ? ककरा हुकुमसँ सोझे एत’ पहुँचि गेलहुँ? ई मकान ककरो बापक...
ओ आदमी चुप रहल।
-ई कोनो गंुडा थिक... सस्त गंुडा, अवारा... बताहो भ’ सकैत अछि। ...ई नोकर-चाकर कत’ मुइल पड़ल अछि!...
ओ आदमी जेबीसँ एकटा पिस्तौल बहार क’ टेबुल पर रखलक।
-व्यर्थ चिकरि क’ शक्तिक अपव्यय करब नीक नइं। हम बताह नइं छी। गुंडा छी। असभ्य, अशिष्ट, दुष्ट, बदमाश अथवा आरो जे होइत छै, सभ छी। हमरा पाछू पुलिस लागल अछि। एहन जाड़मे आब आगू बढ़ब कठिन अछि। ...ई मकान हमरा बापक होएबाक कोनो प्रश्ने नइं अछि। मकान तँ मकान, एहन ईंटा पर्यंत हमर बाप कहियो सपनामे नइं देखने होएताह। बस एकाध घंटाक आश्रय चाही। चिन्ताक बात नइं। पुलिस एत’ नइं आओत। कोनो घरमे बैसि क’ धधरा तपैत होएत, आ असल बात जे एकटा छोट असामी लेल पुलिस अधिक अपस्यांत नइं होएत।
-मुदा अहाँकेँ अपन परिचय तँ देबाक चाही। एतबा अहाँसँ हम अवश्य पूछब जे एहिना जँ अहाँक घरमे क्यो ढुकि जाए, तँ केहन लागत?
-तकर प्रश्ने नइं उठैत अछि। हमरा घर अछिए नइं... परिचय... भक्त, हमर नाम थिक शिवपूजन, मुदा हम महादेवक भक्त नइं छी। टीसन पर उतरि बाटमे सातटा धार पार कएलाक बाद एक कोस पांके-पांक चललाक बाद जाहि गाम पहुँचब, सएह हमर गाम थिक। हमर जन्म ओहि वंशमे भेल अछि, जाहि वंशक पुरुष पांजिक बल पर एक रातिमे पाँचटा विवाह क’ सकैत छलाह, मुदा हमर विवाह नइं भेल अछि।
-ई कोनो परिचय नइं भेल। असलमे अहाँ कोनो बातकेँ गम्भीरतासँ नइं ल’ रहल छी।
-हम ठीक परिचय देलहुँ अछि। सत्य पूछी तँ हमर कोनो परिचय भ’ए नइं सकैत अछि। हमर पिताक नाम चैकीदारक जन्म-मृत्यु बही छोड़ि आर कतहु नइं भेटि सकैत अछि। हमर जमीन-जाल झमेली साहुक खेतमे मीलि क’ एकाकार भ’ चुकल अछि। डीह पर मुसाइ ककाक आलूक गाछ, बिना कोनो खाद देने झमटगर भेल जा रहल छनि। तैं जाहि गाममे हमर कोनो अस्तित्व अछिए नइं, जाहि बापक नाम कोनो संदर्भमे लेल जएबाक सम्भावना नइं अछि, ताहिसँ अपन संबंध जोड़ब सार्थकता नइं रखैछ।
-पढ़ल लिखल?
-कोनो प्रमाण नइं जे ह’म पढ़ल छी। पिताक मृत्युक बादो लोक चंदा क’ भीख माँगि क’ पढ़ब चालू रखैत अछि। मुदा से वातावरण रहलैक नइं। हमर पिता, माइ आ छोट भाइ, तीनूक मृत्यु बुझू तँ एके संग भ’ गेलै। माताक जोरगर प्रकोप छलै। एहन समयमे पड़ोसक लोकक आसक्ति, जिज्ञासाक कोनो बात नइं रहै छै। तीनूकेँ बेरा-बेरी कान्ह पर लादि श्मशान ल’ जाएब, दाहकर्म करब केहन विकट परिस्थिति थिक, तकर अनुमान अहाँ लोकनि नइं क’ सकैत छी। फेर एकटा छोट बहिन, जकर चेहरा मातासँ कुरूप भ’ गेल छलै, हमरा परोक्षमे जहर खा क’ सूति रहल। सातटा धार पार क’ डाक्टर बाबू अएबामे असमर्थ छलाह। घूरि क’ अएलहुँ तँ ओ मुइल पड़ल छल। ओछाओन अस्त-व्यस्त। ओ छटपटा क’ मुइल। शान्तिसँ नइं मुइल।...
-अहाँक धन्धा?-सेठ जी पुछलखिन।
-जजाति लूटब, घरमे आगि लगाएब आ आवश्यकता भेल तँ हत्या करब।
हम आवेश जनबैत कहैत छिऐक-दुर्भाग्य! वास्तवमे अत्यन्त कष्टमय जीवन रहल अछि अहाँक, अपन-अपन भोग होइत छै। किन्तु अहाँक धन्धा असामाजिक, अनैतिक, लोकहितक प्रतिकूल अछि। अहाँ कोनो आन सम्मानप्रद काज क’ सकैत छी। कमसँ कम चपरासीक नोकरी तँ क’ए सकैत छी।
-एहन विलक्षण शब्द सभ हम एक लाख बेर सुनि चुकल छी। एहिसँ हमरा कोनो लाभ नइं भेल। असलमे अहाँक शब्दकोशे गलत अछि। अहाँ लुटलहुँ तँ से असामाजिक कार्य भेलै। हमरा लुटलासँ दस आदमीक उपकार होइत छै, तैं ओ नितान्त सामाजिक कार्य, लोकहितक एकदम अनुकूल कार्य। ...नर-कंकालक मुड़ेरा बना, ओहि पर ठाढ़ भ’ अहाँ बुझैत छी जे हम बड़ पैघ, बड़ ऊँच पर, तँ ओत’सँ उतरबाक बाट नइं भेटत, खसबेटा अहाँक नियति। ...मनुष्यक लेल सभसँ पैघ दंड थिकैक ओकरा कोनो काज जोग नइं रह’ देब। मुदा ई सोचबाक चाही जे हाथ-पैर तोड़ि देलाक बादो ओहि आदमीमे शक्ति रहै छै... ओ शक्ति आब लुत्ती बन’ जा रहल अछि।
-अहाँक प्रत्येक क्रिया घृणा पर आधारित अछि। अहाँ एकरा त्यागि क’ मनुक्ख बनि सकैत छी, सभ्य जीवन बिता सकैत छी।...
-वाह! हम घृणाक परित्याग क’ दिअ’! हम घृणाकेँ नइं त्यागि सकैत छी। घृणा-प्रत्येक सुखी लोकक प्रति घृणा, प्रत्येक व्यवस्थाक प्रति घृणा। घृणा हमरा शोणितमे रसि-बसि गेल अछि। घृणाक परित्याग क’ हम जीवित कोना रहि सकैत छी!...
-जे किछु, मुदा जे काज अहाँ करैत छी, से अपराध थिकैक। कानूनक हाथ नमगर होइत छै।
-तँ कानून हमरा की करत! जहल देत, यंत्राणा देत, बेसीसँ बेसी फाँसी देत। ताहिसँ की भ’ जेतैक? अहाँक व्यवस्था, अहाँक योजना, अहाँक कानून नित्य हमरा सन दसटा जीव उत्पन्न करैत अछि, तकर की करबैक?
सेठ जी एतबा कालमे अपनाकेँ खूब सम्हारि क’ संयत बना नेने छथि, मुदा आवाज जेना कोनो गहींर इनारसँ आबि रहल हो, ‘अहाँ किछु कहू, हम पबैत छी जे मानवीय गुणक पर्याप्त अंश एखनो अहाँमे शेष अछि। अहाँ अपन जीवन एखनो सुखमय बना सकैत छी। अहाँक सिद्धान्त एकदम सराहनीय, किन्तु संगतिमे किछु अनको विचारक तोष राखहि पड़ैत छै। आब जेना अहाँ कहलहुँ, जजातिक लूटि-तँ हम पुछैत छी, लूटल जजाति अथवा ओकर किछु अंशक बिक्री तँ अहाँ करिते होएब। व्यावसायिक दृष्टिएँ ई एकटा महत्वपूर्ण विषय भ’ सकैत अछि। ओना बाट धराएब हमर काज रहत।
ओ आदमी बड़ी काल धरि अट्टहास करैत रहल।
-सेठ जी, हमरासँ समझौता असम्भव अछि। समझौता तँ अहाँ रूस-अमेरिकासँ करू ग’। जकरा अहाँ लूटिक धन बुझैत छिऐक से हमर धन नइं थिक, सम्पूर्ण पद-दलित मानवताक अधिकार ओहि पर छै।...
-पद-दलित मानवताक चिन्ता अहाँ बेकार करैत छी। पद-दलित मानवताक उद्धार लेल युग-युगसँ ऋषि-मुनि, संत-महात्मा, सुधारक आ नेताक जन्म होइत रहल अछि। किछु तेहन भेलै तँ भगवानो अवतार ल’ए सकैत छथि। सोचि क’ देखियौक तँ भीषणसँ भीषण क्रांतिक बादो विषमता नइं मेटाइत छै। किऐ? बात भ’ जाइत छै अवसरसँ लाभ उठएबाक व्यक्तिगत योग्यताक।
-ई विश्वासघात होएत।
-औ बाबू, मंगनीक बड़दक दाँत क्यो नइं देखत। इएह तँ एहि व्यापारमे महत्वक बात भेलै। व्यवसाय चलैत रहतैक आ अहाँक प्रति ककरो विश्वासक हानि नइं होएतैक।
-मुदा... मुदा...।
ओ आदमी सेठ जीसँ सटि क’ बैसि जाइत अछि।
हम औपचारिकताक निर्वाह करैत बजैत छी-सेठ जी, हम काल्हि आउ?
सेठ जी अन्यमनस्क भावें मूड़ी डोलबैत छथि।
हमरा लगैत अछि, अन्तरमे कतहु एकटा पैघ आतंक पसरि रहल अछि, किछु क्षण पहिलुका आतंकसँ कतेक गुना पैघ आतंक!
ओ आदमी सेठ जीसँ कनफुसकी करबामे विभोर अछि। बाहर आ भीतर, सभ ठाम दुनियाँक व्यापार अबाध गतिएँ चलि रहल अछि। असामान्य कतहु किछु नइं छै। देबाल पर टाँगल गांधीजीक चित्राक पाछू एकटा बगड़ा खोता लगा रहल अछि। एकटा चुट्टीक धारी चलल जा रहल अछि-सभ एक-एकटा अंडा मुँहमे दबौने।...

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लाज
हंसराज

वर्षा खसले रहै। रौद उगैक चण्डाल सन। ओलतीमे छाहरि खसलै। आ, दछिनबरिआ घरक पुबारि कोनियाँ पर बरजू बाबू खन ठाढ़ होथि, आ खन टहलथि। एक बेर बाट पर चलैत बटोहीकेँ ठेकनाबथि आ फेर चारमे खोंसल लिखलहा पोस्टकार्ड देखथि, सोचथि, काल्हिओ नइं खसबा सकलाह।
बरजू बाबू बुढ़ा गेल छथि। आधा कोस डाक घर धरि जाएब पहाड़ लगैत छनि। तैं, साँझ सोचथि भिनसर, आ भिनसर सोचथि साँझ। आ, चिन्ता रहनि जे बेर पर गोपालकेँ चिट्ठी भेटि जाइनि। नइं तँ ई झँझटिमे पड़ताह। कारण, वयसक संग ई खगलो गेलाह अछि। दोसर केओ देखनिहार नइं। एक मात्रा बालक गोपाल, पटनामे नोकरी पर छथिन। ओहो कए वर्ष पहिने परिवार ल’ क’ चल गेलखिन। आब हिनका लोकनिक खोज-पुछारीक मतलब थोड़ रहलनि। तैओ ई लाज-धाख छोड़ि बेर-कुबेर हुनके अपन बेगरता लिखैत छथिन।
तावत जटाधरकेँ अबैत देखलनि। बरजू बाबू हुनका दिस ताकए लगलाह। ओ ओतहिसँ कुशल पुछलखिन। ई एहन रौदमे कोन बेगरतें कतए धरि जएबाक पुछारी कएलखिन। जटाधर जिम्मरक छाहरिमे ठाढ़ भ’ कहए लगलाह-रौद आ छाहरि तँ दिनकरक लीला थिक। ओही लीलामे ने हम सभ नचैत रहै छी। इएह कनेक डाक घर धरि जाएब। टोल-पड़ोसक डाक देखबै। एकटा पोस्टकार्ड अपनो लेब। आ, दू टाक कैंचा सेहो टोल पर द’ देलक। जएह लोकक उपकार भ’ जाइक...।
-एकटा पोस्टकार्ड हमरो लगा देब...?
-एह किए ने...? लिखल तँ नइं होएत?
-हँ, लिखल अछि।
बरजू बाबू पोस्टकार्ड ल’ ओसारासँ उतरए लगलाह। जटाधर मना कएलखिन-नइं, नइं, अहाँ ओतहि रहू। हम ल’ लै छी...।
जटाधर सोझे हिनक ओसारा पर आबि गेलाह। पोस्टकार्ड ल’ विदा होइत कहलखिन-बाबू हम तँ दसक उपकारक पाछाँ लागल रहै छी। आ, ताहिमे हमरासँ जँ अहाँक कोनो काज भ’ सकत तँ हम अपनाकेँ भागवन्ते बुझब...।
जटाधर बरजू बाबूक पोस्टकार्ड ल’ चल गेलाह। एकटा पैघ साँस लैत बरजू बाबू बड़ स्नेहसँ जटाधरकेँ जाइत देखलखिन। आ, ठामहि राखल एकजनियाँ चैकी पर बैसि रहलाह। ई चैकी कते दिनसँ डोलैत अछि। एकरा मरम्मति कराएब से... कए बेर ठाकुरकेँ कहलिऐक... दस मिनटसँ अधिक नइं लगतैक... मुदा, से हमर बात किऐ सुनत? ...ई तँ जटाधरेसँ होअए जे चिन्हितो अछि, टेाकितो अछि। नइं तँ आब गाममे ककरा के चिन्हैत छै।
जटाधर गंगाधरक छोट बालक। गंगाधर एक भिनसर हाथमे फुलडाली ल’ बहराथि। टोले-टोल दरबजे-दरबजे गप्प विलहैत फूल तोड़थि। ठेकनओने रहथि जे कत’ कहिआ नोत भ’ सकैत अछि। बड़ प्रसन्न भ’ खाथि। सभकेँ हितकर गप्प कहथि...।
से, वर्ष दुइएक भेल होएतैक। बरजू बाबू भिनसरे भिनसर पूजा पर बैसल रहथि। इएह जटाधर, एही कोनियाँक नीचाँमे ठाढ़। मुँह पर संकटक आभा। आँखिमे याचनाक भाव। स्वरमे नम्रताक आभास। बरजू बाबू संकेतसँ जिज्ञासा कएलनि। जटाधर बजलाह-हमर माइ राति मरि गेलीह। ...मुरलक्खी पर जरएबनि। मुदा, जारनक ओरिआओन नइं भ’ रहल छै। तखन ऊक धरा गाड़ि देबा लेल लोक सभ कहैत अछि... बीजू तँ आब रहलैक नइं। सभ कलमे रोपैत अछि। ...मुँह झरका क’ गाड़ि देबैक से बाबूकेँ मन नइं मानैत छनि। ...हमरो सभकेँ बरदास्त नइं होइत अछि...।
पूजाकेँ रोकि बरजू बाबू पुछलखिन-एहिमे हम की क’ सकैत छी?
-अहीं टा उद्धार क’ सकैत छी...। तैं हमरा बाबू पठौलनि अछि।
-की? बाजू?
-अहाँकेँ एखनो नरै पर तीनटा बीजू अछि। माइकेँ जरब’ जोकर...।
बरजू बाबू गह्नरित भ’ गेलाह। गंगाधरक खोज-पुछारि, एहि वयसमे हुनका पर एहन विपत्ति, मुइलाक बादो हुनक पत्नीक एहन दुर्गतिक कल्पना हुनका अपना यथार्थ स्थितिक ज्ञान नइं रह’ देलक। ओ अधिक भावुक भ’ गेलाह आ कहलखिन-ओ, से। बेस जाउ, प्रयोजन भरि ओहिमे सँ काटि लिअ...। -आ, जटाधर चोट्टहि फीरि गेल रहथि। आ, एक दिन गंगाधर आबि बरजू बाबू लग हबोढ़कार भ’ कनलाह। तैं एखन जटाधर एहि रौदमे पोस्टकार्ड लगाबए ल’ गेलाह अछि।
बरजू बाबू चैकी परसँ उठलाह। ओसारा पर बूलए लगलाह। घर चल गेलाह। फेर बाहर अएलाह। आ, सोचथि, केहन निरीह भ’ गेलाह। ओना, धनिक कहिओ नइं रहथि। मुदा, खगलो नइं। से कन्यादान, गोपालकेँ पढ़ाएब आ अपना दुनू परानीक औषध करएबामे मरौसी जमीन बेचए लगलाह। पहिने दूर दूरक, पाहीपट्टीक आ तखन लगोक खेत सभ बिलाएल गेलनि। जे घर लटकल, मरम्मति नइं करा सकलाह। खसि पड़ल। आब एकटा दछिनबरिआ रहि गेल। कोनियाँ भेल बाहर आ ओसारा भेल आँगन।
फेर घर अएलाह। बाट ताक’ लगलाह जे आब पत्नी भोजन कर’ बजौथिन। तावत जटाधरक बजबाक आभास भेलनि। बहरएलाह-जटाधर ओही रौदमे फिरल रहथि। ई हुनका दिस तकलनि। ओ जोरसँ कहलखिन-लगा देलहुँ। चिट्ठी लगा देलहुँ। ...गोपाल जल्दीए टाका पठौताह। आ हे, एहि कोलाकेँ अवस्से जिरात करू। ...ई सोनक खण्ड अछि अहाँकेँ... एकरा जिराते राखू। बटाइमे कि किछु भेटै छै...? आ, डेग झारैत चल गेलाह।
बरजू बाबू सोचथि, ई जटाधर केहल लोक अछि। एही लेल ई डाक घर जाइत अछि। आनक चिट्ठी पढ़ब बड़ अधलाह बात। गाम भरिक, घर घरक गप्प ई एहिना बुझैत अछि। बुझिते टा नइं अछि। ओकरा पसारितो अछि।
...ओ गोपालकेँ लिखने छलखिन-पाँजरक छओ कट्ठा हमरा भरि वर्षक एक साँझक बुतात दैत अछि। तैं ओकरा रोपाएब जरूरी। ओहिमे सओ रुपैआ नगद लागत। से जँ ओ समय पर पठाए देथि-तँ ई उपास पड़बासँ बाँचि जएताह...।
ओ सोचथि-जटाधरकेँ पोस्टकार्ड लगाबए की देलिऐक, नांगट भ’ गेलहुँ।

बरजू बाबू दुनू परानी गाममे रहथि। कोनो बेटी तेहन घरमे नइं जे मासो भरि हिनका लग आबथि। तैं गोपालक बिआह तेहन ठाम करौने रहथि जे पुतोहुकेँ एहि घरमे कष्टक अनुभव नइं होइनि। मुदा, से पुतोहु सासु-ससुरकेँ नइं चीन्हि सकलीह। गोपालकेँ पटनामे नोकरी लगिते बिआह करौलनि। तेसरे बरखें दुरागमन। जावत् दुरागमन नइं भेल छल, गोपाल पटनासँ भिनसर आबथि आ साँझमे सासुर जाथि। फिरती काल भिनसरे सासुरसँ आबथि आ साँझ धरि पटना विदा भ’ जाथि। मुदा, दुरागमनक छओ मासक भीतरे गोपालकेँ भोजनक कष्ट होअए लागल। तैं पुतोहु चल गेल रहथिन। आ, तकर बाद बापक खगताक गप्प बेटाकेँ बड़ अधलाह लागै।
ओहि दिन बीच दुपहरिआमे जटाधर सोर कएलखिन। बरजू बाबू घरसँ बहरएलाह। ओ कहलखिन-गोपालक मनिआर्डर आएल अछि। हम नेने अबैत रही। मुदा, डाकपिन कहलक जे ओ काल्हि अपनहिं द’ जाएत...।
काल्हि मनिआर्डर भेटलनि। साँझमे जटाधर पुछारी कर’ आएल रहथि।
पाँजरक खेतक एक कोनमे विड़ार रहनि। तैं जाहि दिन वर्षा होइ, हिनक खेतमे रोपनि भ’ जाइनि, ह’र आ ज’नक तैयारी बरजू बाबू क’ नेने रहथि।
आ, से ओहि दिन वर्षा भेलै। दू पहर रातिक बाद मेघक लच्छन देखबा जोकर। सुपाने वर्षा भेलै। बरजू बाबू भरि राति बुझू जगले रहलाह। ह’र-ज’न ने धोखा द’ देअए। भोरे ओहि पाछाँ लगलाह। जखन ह’र खेतमे गेल आ ज’न सभ बिड़ारमे, तखन बरजू बाबू स्नान क’ पूजा पर बैसलाह।
तावत अएलाह जटाधर, अबितहि भनभनाए लगलाह। एना रोपनि होइत छै। फाँड़ बान्हि खेतमे पैसलाह। हरबाहकेँ डटलनि। अनवाहकेँ दबारलनि। आ, तखन गेलाह बिड़ार। बीआ सिरा गेलै अछि। डाँट ने टुटैक। आइ भरि दिनमे रोप खतम करबाक छै। आ, तखन पूजा पर बैसल बरजू बाबूकेँ आश्वस्त कएलनि।
फेर दुपहरिआमे अएलाह। बरजू बाबू छाता तनने अपन दरबजा पर ठाढ़। रोपनि होइत रहए। जटाधर हुनका लग गेलाह। ओतहिसँ ज’न सभकेँ डाँटए लगलाह-एतेक फरकझारा गब नइं। गाड़ दही, गाड़।
आ, बरजू बाबूकेँ कहलखिन-बड़ देहचोर सभ अछि... खेती-गृहस्थी बड़ कठिन छै, बाबू!
आ, तकर बाद। जखन कखनो जटाधर ओम्हर द’ चलथि, ओत’ ठाढ़ भ’ जाथि। खेतकेँ नीक जकाँ देखथि। बरजू बाबूकेँ पोस्टकार्ड लगएबासँ रोपनि धरिक गप्प बेर बेर कहथि।
फेर कमौन करबौलनि। भरि भरि गफ्फाक बीट। गम्हराएल धान। तखन फुटलैक। ओसें धान भरए। पानि पड़ने खखरी। फुटल शीश। झुकल शीश। नमरल शीश। शीशे बीस...।
जहि दिन धान कटल, ओहि दिन जटाधर अएलाह। बीच खेतमे ठाढ़ भेलाह। देखलनि, धान झट्टा लए काटल जाइत। भरि भरि पाँज ज’न सभ उठाए उठाए आँगन ल’ जाएत। बरजू बाबू हर्षित। अन-धन लक्ष्मी आँगन जाथि...।
ओतहि जटाधर बरजू बाबूकेँ पुछलखिन-ई कहिआ झाँटल जाएत...?
-अरे, से आँगनक काज थिकै...। ...उठा... काज करै’ए बितुआक पुतोहु। जखन जखन पलखति हेतै, झाँटत-उसनत आ कुटबो करत ओएह, ...जे किछु, ओकरे होउक... ओएह टा तँ लागल रहैए...।
बरजू बाबू दरबजा पर आबि गेल रहथि। जटाधर संगें लागल रहथिन। ओ कहलखिन-
-लागल तँ हमहूँ छी।
-अगओं अहींकेँ देब।
-मुदा, एहिमेसँ हमरो भेटबाक चाही... एहिमे हमहूँ लागल छी।
-से की?
-एकर रोपनि लेल चिट्टी हमहीं लगौलहुँ... मनिआर्डरक खबरि हमहीं देलहुँ...।
बरजू बाबूक मन जेना तीत भ’ गेलनि। ओ ओसारा पर चढ़ि गेलाह। घुरि नइं तकलनि जे जटाधर की भेलाह। आ, घर चल गेलाह।
तखनसँ बरजू बाबूक मन अशान्त रहनि। बितुआक पुतोहु अहल भोरेसँ आँगनमे उक्खड़ि खसाए धान झाँटए। फेर दुपहरिआमे आ कहिओ साँझमे।
ओकर पाँच सात दिनुका बाद जटाधर बरजू बाबूक ओतए अएलाह। धान तैयार भ’ जएबाक पुछारि कएलनि। कतेक धान भेलै, से पुछलनि। आ, तखन कहलखिन-आब हमर अंश द’ दिअ।
-अहाँक अंश?
-हँ। एहि धानमे हमरो अंश अछि।
-नइं। एहिमे अहाँक कोनो अंश नइं अछि।
-कोना नइं अछि। ...हम पोस्टकार्ड नइं लगबितहुँ तँ गोपाल अहाँकेँ रुपैया कोना पठबितथि?
-पठएबे करितथि। ...ओहि दिन नइं, ओकर परात पोस्टकार्ड केओ आने खसा दितए?
-मुदा, से तँ भेलै नइं। ...अहाँक नेत धान देबाक नइं अछि...।
बरजू बाबूकेँ तामसें देह थरथराए लगलनि।
-नइं अछि। एना बलधकेल नइं करू।
-हम बलधकेल करै छी?
-हँ। आर नइं तँ की?
-पोस्टकार्ड लगौलहुँ हम। ...मनिआर्डरक खबरि अनलहुँ हम। ...खेत आ बीआ तैयार करौलहुँ हम। रोपबौलहुँ हम। कमबौलहुँ हम। कटबौलहुँ हम। से हम अहाँक कोनो बेगार छी। ...धान नइं देब। हमर अंश नइं देब। ...बजैत लाज नइं...।
बरजू बाबूकेँ मन भेलनि, जे कहथि-माइ मुइल पड़ल रहथिन तँ जरएबा लेल भरि गाममे केओ जारन नइं देनिहार भेलनि। से दिन बिसरि गेलनि।
मुदा, से सभ बजैत बरजू बाबूकेँ लाज भेलनि।
जटाधर पैर झारैत, हाथ फनकबैत जोरसँ बजैत बिदा भेलाह-लाज नइं...।
निर्लज्ज!
बरजू बाबू मने मन बजलाह-लाजो नइं...।
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घट्ठर
रमानन्द रेणु

ओकरा अंगनामे पैर दैत जितनी गरैज उठलै-एलखुन इएह कमौआ मरद! दहून परोसा लगा क’ आगूमे!
ओकर ओ कटाक्ष, ओ रोड़ शब्दक वाण, ओ ललकब, ओकर मोनमे काँट जकाँ गड़’ लगलै। आ ओ एकटा पीड़ासँ तिलमिला उठल।
की ओ कमौआ ‘मरद’ नइं अछि? की ओ अपन बूता पर कूदि रहल अछि? नइं जानि कत’सँ ओ एकरा जालमे फँसि गेल! कहू त’, एक भोर जे घरसँ बिनु किछु पानि पीने बहराएल, आ बेर झुकैत आपस आएल अछि, से की ओहिना? आन क्यो बिन किछु खएने घरसँ बहराइत अछि? आखिर बोनिहारी करब कोनो की सहज छै? आ ताहूमे हरबाही! हट्ठाक पियास! के नइं जनैत अछि जे एहि बैसाख मासमे हट्ठामे की-की भोग’ पड़ैत छै।
आइ जँ ओ घर बैसि जाओ तखन फेर एकर सेखी कत’ जेतै? ककरा पर एतेक रुआब? ककरा पर एतेक? धनि ओ जे एकर एहन बोल सुनितो सभ किछु नीक लोक जकाँ करैत जा रहल अछि। ओ कमाइत अछि से ककरा लेल? खाली अपने पेट भरैत छै की? गिरहतक देल कनी-मनी पनपियाइसँ कतेक काल धरि तोख भ’ सकैत छै? आ ओ की गिरहतक ओत’सँ बोनि नइं अनने हेतै? ओहि दिन मलिकाइन तँ कहैत रहै जे रौदिया ह’र कन्हा पर उठबैत अछि आ आँखिक अ’ढ़ भेल नइं आ कि जितनी पथिया ल’ क’ जूमि जाइत अछि बोनि लेल...। आ से की जितनी ओहिमेसँ नइं खाइत-पीबैत अछि? आ तखन रुआब केहन? जेना ओ किछु करिते नइं अछि। किछु जनिते नइं हो। धनि कही रौदिएकेँ जे ओ एखनो धरि निबाहने चल जाइत छै। आन कोनो ‘मरद’ रहितै तँ देखतिऐ कोना एकर बोल सहितै? ओ तँ सभ दिन एतबे सोचैत रहल जे जँ ओ एको दिन काज नागा करतै तँ ओकर बाल-बच्चा भूखें कलहन्त भ’ जेतै। दोसर कोन जरिया छै? ल’ द’ क’ ओकरे बोनिहारी ने? आ से तँ महतमानि भेल घरमे ताइ-गुरिया करैत रहै अछि। से कथी पर? ओएह अढ़ाइ सेर अन्न पर ने? अढ़ाइए सेर किऐ? ओ तँ दोसरो उखराहामे कोनो-ने-कोनो काज-धन्धा करिते अछि, अधरोजा पर, आ दू सेर अन्न आर घरमे आबि जाइत छै। किन्तु तकर फले की? काज करैत-करैत ओकर देह टूटि रहल छै। सौंसे देहमे एको बुन्न शोणितक दरस नइं लगैत छै। टग हनैत अछि ओ। से किऐ? जँ ओकरा बेर पर भरि पेट भेटितै, तँ ओकर ई हालति नइं ने रहितै? किन्तु से के बूझत?
आ रौदी एहिना अपनेमे सोचैत-गुनैत जा रहल छल।
जितनीकेँ फुरसति कहाँ छै जे ओ ई सभ देखितैक। कहैत रहै छै जे एकसरुआ अछि। चारि-चारि टा चिल्हकाक देख-सून, भानसक ओरियौन, जारन लेल पत्ता खरड़ब आ घर-आंगन देखब, सभ किछु तँ ओकरा एकसरे कर’ पड़ैत छै। ओ पलखतिए नइं पबैत अछि जे आन किछु सोचए-विचारए, देखए-सुनए। माइयो छै तँ जेना घर-आश्रमसँ कोनो मतलबे नइं। निफिकिर। अथबल जकाँ, जत’ कतहु बैसल रहै छै। की करओ ओ?
आ इएह सभ किछु देखि क’ रौदिया चुप रहि जाइत अछि।
ओना ओ बेस तंगो-तरीज भेल रहै अछि, आ तैं कनि मोन गरमा जाइत छै, जँ एकसरुआ नइं रहै तँ एतेक तंगो-तरीज नइं ने होइतै। किन्तु, के बोनिहार एकसरुआ नइं अछि। जकरो दू-चारि समांग छै से छेटगर भेला पर भिन्न-भिनाउज कैए लैत छै। जखन अपन बेटा संग नइं रहै छै तँ आनक कोन बात? ...जाए दैह, एहिना होइत छै, एहिना चलैत छै घर-गिरहस्ती।
रौदी की-कहाँ सोचैत रहल, किन्तु घूरि-फिरि क’ फेर ओतहि पहुँचि जाइत छल, जत’ ओ रहै छल-बसै छल।
ओ हाथक पैनाकेँ चारमे खोंसि चुकल छल आ लोटा उठा क’ घैलचीसँ पानि ढारि पैर-हाथ धो ओसारा पर एकात भ’ क’ खएबाक लेल बैसि गेल छल।
जितनीक फुफकार ओहिना चलैत रहलैक-इह, दाइ गै दाइ! ह’ ह’! कहलकै ने जे सएह पइर! खस्सी के जान जाए आ खबैया के सुआदे ने! मरदाबा बनल हए क’। कथी के मरदाबा? एक भोर उठली आ से एको घड़ी डाँड़ मोड़ि क’ बैस’ के पलखति नइं आ ऊपरसँ एकर रुआब। कथी पर रुआब? केहन क्यो रुआब सहतै? की जानै हइ एकर जे रुआब सहतै ग’?
रौदी सभ किछु सुनैत छल, किन्तु ओकरा लेल जितनीक बात कोनो महत्व नइं रखैत होइ। ओकरा टारैत बाजल-ह’ काढ़ौक ने खाइक?
-ले-ले, ले-ले खाइक। देखहुन ने, जेना रिन्हि क’ गेल रहै ग’। महाराज नाहित केहन बैसि गेलै-ए? बाप रे बाप! बोल केहन टनक हइ! सौख ध’ क’ डाहून!
ओकर हाथ चमक’ लगलै। चूल्हिमे पसाही लागल जाइत छलै तकरा उसकेबा लेल बढ़ल हाथकेँ बलजोरी रोकि नेने छल हाथ लागल एकटा अधजरुआ खोरनाठी आबि गेल छलै। ओ ओकरा नचाब’ लागल छल। ओकरा स्वरमे कटाक्षक संग उत्तेजना सेहो कम नइं छलै।
रौदीक मोन दग्ध भ’ गेल छलै, किन्तु ओकरामे उत्तेजित हेबाक अभ्यास वा सामथ्र्य नइं छलै। ओ बड़ सहज रूपें बाजल-ह’, हो तँ गेलै। लाबौक ने खाइक!
जितनी ललकि उठलैक-चुप, ...बहीबा नहितन!
-चुप्पो रहतै आ कि नइं। कहौ ने?
-ईही-ही-ही-ही। साहेबी केहन चलै हैक’, साहेबी! रे बापक जिमिंदारी हौक हींया। क्यो की रैयति हौक? दाइ-मजुरनी हौक? हिनका ले परोसा लगा क’ देतनि ग’!
-धुर तोरी के, गै भुलरी, कनि ओम्हरसँ थरिया ला तँ?
-चल हट्!-कहैत जितनी हाथक खोरनाठीसँ भुलरीकेँ मारबाक उपक्रम केलकै।
भुलरी डरेँ कात भ’ गेल। छूबैत थारीसँ हाथ चोट्टे हटा लेलक।
जितनी फेर ललक’ लागल-कहलकै ने जे ककर दनिक पइर। हमर बेटी दौन हिनका परोसा लगा क’। खबरदार छौंड़िए! जँ कनियों देह सुगबुगएलें तँ एही खोरनाठीसँ गत्तर-गत्तर दागि देबौ। ...सएह कहू ने। हम की जनै छिऐ एकर जे हमर बेटी अढ़ौती क’ देतै। बड़ रहै तँ बापेक राजमे जा क’ रुआब करैत ग’ ने। से तँ तेहने रहै जे भाइ निकालि देलकै घरसँ। आ एत’ एलै हन रुआब कर’। जो-जो, हम की करजा धारने छिऐ, जे रुआब सहबै...।
ओ बजैत जा रहल छल आ संगे थारीमे सभ किछु साँठि रहल छल।
एही घड़ी कतहुसँ ओकर माइ आँगनमे प्रवेश कएलकै। ओ जितनीक ललकब सुनलकै। ओकरा आर लेसि देलकै। ओ मोने-मोन बाजि उठलि-देखू ने एकर ड’ल। मुँहक कते’ जोर भ’ गेलै हन।
ओ गुम्हरैत बाजल-गै की हैक’ गै? गै तों कथी ले मेहमानकेँ एना गरजै छिहिन गै? देखह हे दाइ-माइ सभ, ई तँ हरि घड़ी ओकरा उलू थू थू केने रहै हैक’?
जितनीक लेल आब चुप रहब असम्भव भ’ गेलै। ओकरा की भेलै अछि। ओ जँ दू टा बात आ कि मोनक दुख-पीड़ा कहलकै तँ ककरा? अपने आदमीकेँ ने? तँ कोन बड़का जुलुम भ’ गेलै? एतबोसँ ओ गेल? अपन आदमीकेँ किछुओ नइं कहि सकैत अछि? आ जँ से नइं, तँ ओकरा कथीक झक्खनि? मुदा से किऐ? ओ किऐ नइं कहतै? दोसर क्यो बजनिहार के? ओकरा अपन बात-विचारमे आन क्यो किऐ दखल देतै? ओ माइक ओतए रहै अछि तकर ई मतलब नइं जे माइ ओकरा सदिखन मुँह बन्न कएने रहतै? ओकरा त’र कएने रहतै? ककरो की किछु जनैत छै ओ? अपन कमाइ खाइत अछि। दोसर क्यो कहनिहारि-बजनिहारि के?
आ से जितनीक उग्रता आर बढ़ि गेलै। माइक बात आगिमे घीक काज क’ गेलै।
ओ अन्हर-बिहाड़ि जकाँ गरजि उठल-हँ गै, कहबै ने तँ की? तोरा कथी लेसि देलकौ? बड़े जहिनवाली भेली हए। देखू ने? राख ने अपन...।
ओकरा माइकेँ तामस आर जोर उठलै-ओकरे बेटी, आ ओकरे मुँह लागल एहन-एहन बात-कहिनी कहतै!
ओ तमकि उठल-हे छौंड़िए, हम कहि दै छियौ, मुँह सम्हारि क’ बाज। ने तँ कल्ला अलगा देबौ’ हम। जानि राख। करोड़नियाँकेँ क्यो किछु कहौ नइं?
जितनी तमकि उठल-अएँ गै, हम करोड़नी? अएं, हम करोड़नी गै? अपन नाँ-गाँ बजा क’ आब हमरो नाँ-गाँ बजेबेबें गै? तोहर कमाइ-खटाइ खाइ छियौ? गै तोहर करजा जनै छियौ? गै तोहर कूटल-पीसल लेलियौ-ए? गै तोहर कथू रत्ती-पत्ती जनै छियौ? कह? बता? बोल एखनी तँ बुझियौ? कहलकै ने जे सएह पइर। गै बोलती किऐ बन्न भ’ गेलौ’ आब? बोल ने...?
आ ओ माइक लगीच पहुँचि गेल। हाथमे जारनिक ठहुरी छलैहे। तामसंे लह-लह करैत छल, आ हाथ चमका रहल छल।
ओकरा माइकेँ आब अपना पर काबू राखब कठिन भ’ गेलै। ओ एहन उलहन बरदाइस नइं क’ सकैत छलै। बेटी भ’ क’ एना कत्तहु कहलकै अछि?
ओकरा लगलै जेना आब जँ ओ कनियो किछु बाजत तँ जितनी ठहुरीसँ डेंगाब’ लगतै ओकरा। ओ लपकि क’ ओकर हाथक ठहुरी पकड़ि लेलक आ अपन बचाव करैत बाजल-हे गै रण्डिया, एना नइं नाच? ने तँ केना दनि भ’ जेतौ। बड़ जहिनवाली रहितें तँ सासुरे बास होइतौ की नइं? क्यो पुछबे नइं केलकौ। लबरी नहितन। एखने हम सभ लबरसटकी झाड़ि देबौ। बड़े बल भेलौ’ ह’ क’ तँ सेहो हम देखा दैत छियौ। थम्ह। मुँह-फठकी नहितन।
आ ओ झपटि क’ ओकर झोंटा पकड़ि अपना दिस घीचि लेलकै। जितनी ओकरे ऊपर खसल। किन्तु ओहो ओकर झोंटा ध’ नेने छलै। दुनू माइ-धी अपनामे गुथि गेल छल आ एक-दोसरकेँ बातसँ आ लातसँ काबू करबाक प्रयत्न क’ रहल छल। अपन पराक्रमक हारि दुनूमेसँ क्यो मानक हेतु प्रस्तुत नइं छल।
अकस्मात् जितनीक माइ चिचिया उठलैक। जितनी माइक बामा बाँहिमे दाँत गड़ा देने छलै, ओ ओकरे पीड़ासँ चिचिया उठल छल।
अँगना भरिक लोक जमा भ’ गेल छलै। लोक सभ दुनूकेँ फराक क’ देलकै। क्यो गोंहछाएल सन बाजल रहै-ह’ ह’ माइयोकेँ क्यो एना करैत हैक’।
जितनी चोटाहल साँप जकाँ गुम्हरैत चूल्हि लग आपस चलि गेल।
रौदी सभ किछु सुनितो जेना बहीर छल। सभ किछु देखितो आन्हर छल। ओकरा जेना किछुओ सुनबामे नइं आएल होइ। ओहिना घट्ठर भेल बैसल छल।
जितनी ओकरा दिस थारी घुसकबैत बाजल-लौक, गीरौक ग’ आब। जते हूरबाक होइ हूरि लौक।
आ रौदी थारी अपना दिस घीचि लेलक।

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भोजन
राज मोहन झा

हम भितरका कोठरीमे कल्हुका क्लास लेल नोट तैयार करैत रही, आ ममता ड्राइंग रूममे कापी जाँचि रहल छल। कने काल बाद ममताकेँ सुनलहुँ रमुआकेँ जोरसँ आदेश दैत-खाना भ’ गेलौ रे, रमुआ? भ’ गेलौ तँ लगो।
हमरा छल जे ई आखिरी नोट तैयार क’ ली, तहन उठी। जोरसँ बजलहुँ-हमरा कने ई नोट पूरा क’ लेब’ दिअ’। कोन हड़बड़ी अछि, एखन (घड़ी उठा क’ देखलहुँ) साढ़े आठे बाजल अछि।
-तँ साढ़े आठ अहाँकेँ कम्म बुझाइए? हमरा भोरे आठ बजे कालेज पहुँचि जएबाक अछि।
-हमरो काल्हि नौए बजेसँ क्लास अछि।-हम चिकरलहुँ।
-अहाँकेँ की अछि, अपन आठ बजे उठब। हमरा भोरे उठि सभ किछु करबाक रहैए। नोट पूरा क’ लेब अपन खएलाक बाद।
नइं मानतीह ई। हम किताबकेँ तकिया पर उन्टा क’ राखि बाहर अएलहुँ। ममता कापी जाँचिए रहल छल। कहलिऐ-वाह, हमरा तँ बन्द करबा देलहुँ, आ अपने पोथा पसारने छी।
-इएह, जा रमुआ थारी अनैए!-कापीसँ मूड़ी उठौने बिनु ममता बाजलि।
-अच्छा, हम अहाँकेँ कए बेर कहने छी जे कमसँ कम नौ बाज’ दियौ। केओ सभ्य लोक नौ बजेसँ पहिने नइं खाइत अछि।
-तँ नौ तँ बाजिए जाएत खाइत-खाइत।-ममता कापीमे नम्बर चढ़बैत बाजलि।
हम ओकरा आगाँसँ कापी झिकैत कहलिऐ-नौ बजे माने खा क’ उठी नइं, नौ बजे खाए बैसी!
-अच्छा एक्के बात भेलै।-ममता सोझ होइत बाजलि-अहीं जकाँ आठ बजे धरि हमहूँ सूतल नइं ने रहै छी। हमरा भोरे उठि...
-अच्छा एकटा कहू।-बात कटैत हम कने गम्भीर भ’ ममताकेँ पुछलिऐ-भोरे उठि अहाँकेँ की सभ करबाक रहैए, जखन कि सभटा काज तँ रमुआ करैत अछि?
-अहा हा! आ रमुआकेँ भोरे भोर के उठबैत छै?-ममता चहकैत बाजलि-एक दिन हम छोड़ि दिऐ तँ ई छौंड़ा तँ आओर नौ बजे उठत। आ, एक बेर उठौलासँ उठि जाइत ई छौंड़ा, तहन कोन बात छलै। एह, फेर जा क’ सूति रहत। एकरा तँ दस बेर उठबियौ तहन जा क’ तँ एकर आँखि फुजैत अछि! कए दिन तँ हमरा पानि ढार’ पड़ल अछि छौंड़ा पर, तेहन ई अछि।
हमरा कने अमानुषिक जकाँ लागल। कहलिऐ ममताकेँ-अहाँ बड़ निरदयी छी। ममता तँ बेकारे अहाँक नाम रखलक, जे केओ रखलक से। अच्छा, के रखलक अहाँक नाम सत्ते?
-आब छोड़ू, हमरा नइं मोन अछि के रखलक।-ममता अपन कापीक थाक उठबैत बाजलि। रमुआ पानिक जग आ दू टा गिलास आनि क’ टेबुल पर राखि गेल। ई एहि बातक पूर्व सूचना छल जे आब ओ थारी आनत। खाए पड़त।
हम ममताकेँ कहलिऐ-अच्छा, अहाँकेँ एना नइं लगैत अछि जे हमर मतलब अछि, भोजन जे हम सभ करै छी नित्त दिन, से नइं लगैत अछि जे एकटा यांत्रिक प्रक्रियाक अन्तर्गत क’ लैत छी? माने, अपन आन सभ काज जकाँ? भोजन काज जकाँ नइं करबाक चाही।
-वाह, भोजनो तँ एकटा काजे भेलै। काज तँ भेबे केलै।
-तेना नइं। हमर मतलब ‘भोजन करब’ क्रियासँ नइं छल। ‘भर्व’ तँ भेबे केलै। ‘वर्क’ नइं होएबाक चाही ई। एकरा ‘टास्क’ बुझि क’ नइं कएल जएबाक चाही।-हम बुझौलिऐ।
-अच्छा ई सभ फिलाॅसाॅफी अपन राखू अपनहि लग। अहाँक हिसाबें जँ चल’ लागी हम तँ भ’ गेल! कोनो काजे नइं हो।
रमुआ थारी राखि गेल। हम एकटा उड़ैत दृष्टि थारीक वृत्तमे दौड़ौलहुँ। बाटीकेँ अपना आओर लग घुसकबैत हम ममताकेँ पुछलिऐ-अच्छा, काल्हियो तँ भरिसक इएह आलू-परोड़ आ रामतरोइक भुजिया बनौने रहए! नइं?
ममता रोटीक टुकड़ी तोड़ि दालिमे डुबबैत बाजलि-तँ और की बनौत? आइ-काल्हि गनि-गुथि क’ इएह तँ तीन-चारिटा तरकारी भेटै छै, भाँटा, करैल आ कि इएह परोड़ आ रामतरोइ। परोड़ खाइत-खाइत मुदा हमरो मोन भरि गेल अछि सत्ते।
-खाली इएह नइं ने। हमरा तँ लगैत अछि, परोड़क बदला मानि लिअ’ जे करैले बनबय ई, तैयो हमरा नइं लगै अछि जे स्वादमे कोनो विशेष अन्तर पड़’वला अछि। असलमे बनएबाक एकर जे पद्धति कहू वा प्रक्रिया छै, से एक्के छै। तैं चाहे परोड़ बनबओ वा करैल, स्वाद एके रंग होइ छै करीब-करीब। किछु हम सभ खाइतो तेना छी, जाहिमे स्वादक प्रायः बहुत स्थानो नइं रहै छै। ...नइं?
ममता पानिक घोंट ल’ क’ बाजलि-आब जे बनबैत अछि बेचारा, बना तँ लैत अछि! हमरा ओते समयो नइं रहैए जे किछु देखाइयो देबै।
हम मोन पार’ लगलहुँ जे ममताक हाथक भोजन पछिला बेर हम कहिया कएने रही। नइं मोन पड़ल। मोन भेल जे ममतेसँ पुछि लिऐ। मुदा तुरन्त डर भेल जे एहि बातक ओ आन अभिप्राय ल’ लेत।
-आब की सोच’ लगलहुँ अहाँ?-ममता मुँहमे क’र लैत पुछलक।
-नइं, सोचब की? सोचैत रही जे ई सभटा निघँटेबाक अछि।-हम आगाँक थारी-बाटी दिस इंगित करैत कहलिऐ।
-हे, खा लिअ’ जल्दी। ओकरो छुट्टी हेतै!-हमरा देरीसँ चिबबैत देखि ममता टोकलक।
रमुआ दूधक कटोरा ल’ क’ आएल तँ ममता ओकरा पापड़ सेदि क’ आन’ कहलकै।
अच्छा, एना नइं भ’ सकैत अछि कहियो जे... हम कहैत रही एक दिन जँ एना करी...
-कोना करी?-ममता टोकि क’ हमरा दिस ताक’ लागल।
-असलमे हमर एकटा बहुत दिनसँ इच्छा अछि। इच्छा ई अछि जे एक दिन अहाँ हमरा पर जबर्दस्ती नइं करी खाइ लेल। हमर जखन मोन होएत, माने हमरा जखन खूब भूख लागत, रातिमे एक वा दू बजे, अथवा जखन, तखन खाइ जाइ!-हम प्रस्ताव रखलहुँ।
-हँ, आ रमुआ बैसल रहत ता धरि?-ममता आँखिमे प्रश्न ल’ क’ तकलक।
-मानि लिअ’ ओ अपन खा क’ सूति रहत।-हम आँखिमे प्रश्न ल’ क’ तकलिऐ।
-नइं, हम नइं जागल रहब ता धरि। हमहूँ खा क’ सूति रहब। अहाँ लेल परसि क’ राखि देत, अहाँ अपन उठि क’ खा लेब जखन मोन हो!-ममता सोझे कन्नी काटि लेलक।
एसगरे खएबाक विकल्प हमर उत्साह ठंढा क’ देलक। रमुआ पापड़ सेदि क’ ल’ अनलक आ हमर सभक गप्प सुन’ ठाढ़ भ’ गेल। ममता ओकरा कहलकै-जो तोंहूँ अपन परसि क’ ल’ ले। खा क’ सूत जल्दी, भोरे उठबाक छौ।
हम पापड़ तोड़ि दाँत तर देलहुँ। कुड़कुड़बैत-कुड़कुड़बैत पता नइं हम कोना बहुत दिन पहिलुका देखल गाम परक एकटा दृश्यक आगाँ आबि क’ ठाढ़ भ’ गेलहुँ-बाबा भोजन पर बैसल छथि, आ मैंयाँ आगाँमे पंखा ल’ क’ बैसलि छनि। कतेक रास गप्प आ सूचनाक आदान-प्रदान दुनू गोटेकेँ एही मध्य होइन। बाबा बहुत रुचिपूर्वक भोजन करथि। धात्राीक चटनी हुनका दुनू साँझ अनिवार्य छलनि। बाबाकेँ खाएल भ’ जानि तँ मैंयाँ भूमि पर हाथ रोपैत उठि क’ ठाढ़ होथि-थम्हू, दही नेने अबैत छी।-हमर बाल-मोन पर ई छवि लगैए बहुत गहींर जा क’ अंकित भ’ गेल अछि। तें हमरा आइयो ओहिना मोन अछि। एकटा कारण ईहो भ’ सकैत अछि जे बाबाक भोजन करबाक ई दृश्य भोजनक प्रति एकटा आकर्षक स्वाद उत्पन्न करैत अछि। ओहि जमानामे लोक होइतो छल भोजनक पे्रमी। मैंयाँ सभ दिन साँझमे बाबासँ पुछनि-आइ की तरकारी बनतै रातिमे?-आ बाबा कहथिन। खाली तरकारीक नामे नइं, कोना बनतै सेहो कहथिन। जेना, भाँटा साग द’ क’, अथवा सजमनि मुरइ द’ क’!...
हमरा मोन भेल जे ई बात ममताकेँ कहिऐक। मुदा हमरा लागल जे एकरा ओ सही परिप्रेक्ष्यमे नइं ल’ स्त्राी जाति पर पुरुषक आधिपत्य-माने एकरा नारी स्वातंत्रयक प्रश्नसँ जोड़ि क’ देखत। तें बात बदलि क’ पुछलिऐ-अच्छा, अहाँकेँ अपन दादा मोन छथि?
ममता दूधक कटोरा उठा ‘सिप’ कर’ लागल छलि। ओ कने काल हमर आँखि तकैत रहलि, जेना एहि प्रश्नक तात्पर्य बुझबाक प्रयास क’ रहल होथि। बाजलि-हँ, मोन छथि। मुदा एखन हमर दादा अहाँकेँ कत’सँ मोन पड़ि गेलाह?
-कत’सँ नइं, असलमे हमरा अपन बाबा मोन पड़ि गेलाह। अहाँ तँ हुनका नइं देखलियनि। अच्छा, मैंयाँ मोन छथि?
-किए नइं मोन रहतीह? मुदा अहाँ ई सभ फालतू बात की सोच’ लगैत छी थारी आगाँमे राखि क’?
हम अप्रतिभ भ’ गेलहुँ। नीक नइं लागल ममताक ‘फालतू’ शब्द प्रयोग। हम पानि पीबि दूधक कटोरा थारीमे आगाँ रखलहँु।
ममतासँ किछु कहब व्यर्थ छल। ओ अपन दूधक कटोरा शेष क’ नेने छलि आ हमर प्रतीक्षामे बैसल छलि। हम ओकरा उठ’ कहलिऐ, मुदा ओ बैसल रहलि। बाजलि जे तखन तँ अहाँ आओर देरी करब!
कने काल बाद ओ फेर नेहोरा कएलक-हे, छुट्टी दियौ ओहू छौंड़ाकेँ। जते जल्दी खएबै, ओकरहु काज होएतै।
हम बाबाक जमानासँ आगाँ बढ़ि बाबूजीक युगमे आबि गेल रही। बाबा जकाँ ओ सभ दिन कोन तरकारी बनतै, से फरमान तँ नइं जारी करैत रहथिन, मुदा माइसँ पुछथिन जरूर जे आइ की तरकारी बनल अछि? की तरकारी बनौतीह, से माइ अपने निर्णय लेथि। ई भार बाबूजी माइये पर छोड़ि देने रहथिन प्रायः। अथवा माइ अपनहि ई अधिकार स्वतः ल’ नेने रहथि। एक युगमे एतेक प्रगति तँ हेबाके चाही। हम सोचलहुँ, निर्णय जकर ककरो रहै होइ आ अधिकार चाहे जकर होइ, ई बात छलै जे भोजन एकटा रुचिकर आ आकर्षक वस्तु होइ छलै ताहि दिन। हमरा हँसबाक मोन भेल जे आब हमरा सभक युगमे आबि क’ ई निर्णयक अधिकार पति आ पत्नीक हाथसँ निकलि नौकरक हाथमे आबि गेल अछि।
हमर ध्यान ममता दिस गेल, जे हमर प्रतीक्षामे बैसल छल। हमरा लागल जे एतीकालसँ हमरा पर नजरि गड़ौने ममता हमर मोनमे आएल सभटा भाव जेना पढ़बाक प्रयास करैत रहल अछि। हम कटोरा उठा एके साँसेमे बचल सभटा दूध पीबि गेलहुँ।

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भरदुतिया
धूमकेतु

ओना बूझी तँ किरण दाइकेँ कोनो सुधियो नइं छलनि जे काल्हि भरदुतिया छिऐ। जन्मदिन तँ अपनो मोन छनि, सैहबोक आ धीयोपुताक। सेहो तारीखक हिसाबें। एहन फूहड़ पाबनि-तिहारक स्मृति तँ छलनि, मुदा अपनो कहियो कैने छथि, से नइं मोन छनि। हुनका धीया पुताकेँ तँ बुझलो ने छनि जे कोन पाबनि कोन तिथिकेँ होइत छै। तें सैहेब जखन आबि क’ कहलखिन जे हुनकर अंजनी भैयाक टूर कार्यक्रम काल्हि ओही शहरमे छनि तँ किरण दाइमे कोनो प्रतिक्रिया नइं भेल छलनि। एतबा ओ जनैत छलखिन जे अंजनी भैया केन्द्रमे मंत्राी छथिन आ सम्बन्धें ममियौत छथिन। मुदा हुनकर कोनो नीक लोकक चित्रा मोनमे नइं छनि। हुनकर लखेरापनीक मारि किरण दाइ ताहि तरहें भोगने छथि जे अद्यावधि आत्मामे टहकैत रहै छनि। प्रायः तें किरण दाइक मोनमे बहुत प्रच्छन्न घृणा एकटा द्वेषक रूपमे फेंच उठा क’ फुफकारि उठलनि। बजली-अच्छा! केना माननीय मंत्राीजीकेँ एकटा निरीह पिसियौत मोन पड़लखिन? हमरा तँ भेंटो भेना बीस बरखसँ ऊपरे भेल हैत।
सैहेब हँसैत बाजल छला-से जानथि भाइ आ जानथि बहीन। हम तँ समदिया छी। नोतो लेता आ बहिनिक अन्नो खैता।-तकर बाद पुलकित होइत सांगोपांग ओ खिस्सा किरण दाइकेँ सुनौने छलखिन, केना चीफ सेक्रेटरी हिनका बजौलखिन, ठाढ़ भ’ क’ हाथ मिलौलखिन आ मंत्राीजीक कार्यक्रमक एक प्रति हिनका देलखिन। सैहेब बराबरि कठहँसी हँसैत रहला आ किरण दाइक मोन मनबैत रहला जे जावत तक अपन कियो पुश करैबला नइं रहै छै, तावत तक कियो आगू नइं बढ़ि सकैऐ। बजला-आब एखने देखू ने। एक छन पहिने तक जे आदमी सोझ मुँह गप्प नइं करितए, से मंत्राीजीक कार्यक्रम देखिते हाथ मिलौलक।
मुदा किरण दाइ गम्भीरे बनल रहली। सैहेब चुप भेला तँ हुनका आँखिमे तकैत बजली-हमरा तँ ई छगुंता लगैऐ जे हम एत’ छी, से ओ कोना बुझलनि?
सैहेब सिटपिटा गेला-से कोना कहू?-एतवा कहि क’ सैहेबक ठोर पर मुस्की एलनि आ बिला गेलनि। मुदा किरण दाइक चेहरा पर गतान प्रकट भेलनि-अपने नोत लेब’ अबैत छथि कि निमंत्रित कएल गेलाहे?
सैहेब टाइ खोलैत आलमारी दिस बढ़ि गेला-निमंत्रित के करतनि? अजुको दिनमे निमंत्राण होइ छै?
किरण दाइ पण्डितक बेटी छली। बजली-स्मरण तँ कराओल जा सकैत छै।
सैहेब तिलमिलैला-एह, भाइ एक साँझ खैता, तै लए कत्ते जिरह पसारने छी!
किरण दाइक आँखिमे जे भाव प्रकट भेलनि, से सैहेब नइं देखि सकलखिन। अइ बहुत सामान्य प्रश्नक जवाबमे हुनका ओ सभटा ब्यौरा देब’ पड़ितनि, जे हुनका अंतस्मे काँट जकाँ गड़ैत रहलनि अछि। कनेक काल गुम रहली आ फेर साँस छौड़ैत बजली-खैता तै लए तँ नइँ कोनो। मुदा सवाल स्टेटसक छै।
सैहेब हिनका दिस तकलखिन, मुदा रहि गेला गुम्मे। किरण दाइ बात पूरा कैलनि-मंत्राीजीक बहिनोइयोक कोनो स्टेटस छनि कि नइँ? हुनका संग दिल्लीसँ जे लश्कर औतैक...।
सैहेब जल्दीसँ बाजि उठला-धत्, ओइ लश्करसँ हमरा की?-आ कपड़ा बदलै लेल बेडरूममे पैसि गेला।
किरण दाइक कल्पनामे सिनुर-पिठारक हेतु पसरल अंजनी भैयाक हाथ झलकलनि। बलिष्ठ कब्जा, आँगुरक पोरे-पोर जनमल काँट सन-सन केश... किरण दाइकेँ भेलनि जे ओ कब्जा हुनका मुट्ठीमे दबा लै लेल आगू बढ़ि रहल छनि। ता सैहेब कपड़ा बदलि क’ सिगरेट लेसैत बहरैला। किरण दाइ केश झटकि क’ ठाढ़ि भेली आ बजली-एना करू... डीनरक अहाँ एकटा मेनू बना लिअ’ आ कोनो कैटरिंग सर्भिससँ फिक्स अप क’ लिअ’।
सैहेब गाउनक फीता बन्हैत लहकि उठला-अहाँ अजब लोक छी! लोक अमन्ध समन्ध जोड़ि क’ मंत्राी सभसँ लाभ उठबैऐ... अरे, एहन-एहन आगत-स्वागतमे भेल खर्च-वर्च... ई तँ लगानी छिऐ भाइ, तीनक तेरह ल’ क’ औतै।
‘लगानी’ शब्द पर किरण दाइ पलटि क’ सैहेब दिस तकलखिन, तँ सैहेब कनखी मारि देलखिन। किरण दाइ आँखि पर गाॅगुल्स चढ़ा लेलनि। मुदा दाँत पर ठोर कसा गेलनि। गाॅगुल्सक तरसँ किरण दाइक दृष्टि अपन हाकिम स्वामीक खल्वाट माथ, नमड़ि आएल धोधि परसँ होइत हुनक पैर तक जा क’ रुकि गेलनि। बजली किछु नइं, मुदा हुनका साँसमे एकटा एहन अलक्षित धाह छलै जे सैहेब एतबा दुत्कारियो क’, अपने लजा गेल छला। किरण दाइ लम्बा साँस लेलनि आ बजली-दोसर बात... भरदुतियामे की-की होइ छै... पान-सुपारी... अगरम-बगरम... से जुटबै लेल ठाकुरकेँ बजा दिअ’।
किरण दाइ बड़ी काल धरि सैहेबक पेटसँ पाछाँ छाती आ ताहि पर उगल कारी-उज्जर केशक जंगलकेँ देखैत रहली। सैहेब बजला-ओ. के., मुदा ई पूजा-पाठ हेतै कत’?
किरण दाइ कहलखिन-एही हाॅलक सेंट्रल टेबुल हटा देबै, पूजा-पाठ भ’ जेतै, फेर सेट क’ देबै।
सैहेब छड़पला-आइडिया! अइ टेबुलकेँ बाहर किऐ ल’ जाएब? एही ठाम किछु सिम्पुल नाश्ताक प्लेट्स... अरे, अँकुरी-मखान... अही पर सजा देबै। अंतहिया लोक देखतै किने मिथिलाक भाइ-बहिनिक पाबनि।
किरण दाइ फुसफुसैली-तखनि एना करू, अइ सभ संगे किछु स्वीट्स सेहो मिला दियौक। लश्करमे ओतबे चलतैक।
सैहेबकेँ पूरा कार्यक्रम मनोनुकूल रूप लैत बुझि पड़लनि। आश्वस्त भेला जे किरण दाइ लगानीक मतलब आब बुझि रहलखिन हें। किरण दाइकेँ भेलनि, लोक जतेक बेसी रहतै, ओ ततेक निर्भीक रहि सकती। सैहेब उत्साहसँ बाजि उठला-भेरी गुड।
किरण दाइ मुस्कियाइत रहि गेली।

रतिनाथकेँ मोने-मोन होइन जे बहिनिक खिस्सा तँ हुनका माइ बहुत सुनौने छथिन, मुदा भेंट तँ दुइए बेर भेल छनि। एक बेर तँ भगवतीकेँ छागर दै लेल गाम आएल रहथिन, तखन, आ दोसर बेर परुकाँ, जखन ई नोत लेब’ गेल छला। परुकाँ नोत तँ बहीन नहिएँ लेलखिन। अइ बेर देखा चाही। हुनका झोड़ामे सभसँ तरमे लंुगी छलनि आ तै पर एकटा पतरकी प्लास्टिकक झोड़ीमे थोड़ेक उसनल सारुक, चारिटा कागजी नेबो आ गोट दसेक धात्राी। तै परसँ गमछा छलनि, जकर एक खूँट पर दस-बारह ग्राम मखान, दूटा जिलेबी आ एक गद्दी सिनूर बान्हल छलनि आ दोसर खूँट पर पाँच जोड़ जनौ आ पाँचटा सुपारी।
पूरा हुब्बासँ सीना तनने आ झोड़ाकेँ छातीमे सटने रतिनाथ निधोख बहिनिक कोठी पर पहुँच तँ गेला, मुदा ओत’ हाँजक हाँज सिपाहीकेँ देखि क’ हियओ हारि देलनि। कोठीक बाहर-भीतर आएब-जाएब बन्द छलै। सड़क पर तक पुलिस सभ सह-सह करैत रहै। रतिनाथ पहिने अकचकैला, तखन सहमला। उत्साह ठंढा भ’ गेलनि। मुदा ता गेट पर ठाकुर जमादार पर नजरि पड़लनि। रतिनाथ ओकरा चीन्है छलखिन। परुकों आएल रहथि तँ ओ भेटल रहनि। रतिनाथ काते-कात सहटल-सहटल ठाकुर लग पहुँचि गेला। मुदा ठाकुर तमकि क’ पुछलकनि-क्या है?
रतिनाथ साहससँ काज लेलनि-भीतर जेबै।
ठाकुर बाज जकाँ हाथसँ झोड़ा झपटि लेलकनि आ लुंगी सहित सभ किछुकेँ चाँगुरमे ल’ क’ बाहर घीचि क’ झोड़ा झाड़ि देलकै आ फेर सभटा ओइमे कोंचि क’ रतिनाथक आँखिमे तकैत बाजल-अहाँकेँ तँ बहीन हैती किने?
रतिनाथ तोतरैला-हँ, बेमात्रो... बुझू खासे।
ठाकुरकेँ भरदुतिया मोन पड़लै। रतिनाथक हाथसँ फेर झोड़ा ल’ लेलकनि आ भरि-भरि बाकुट क’ ओकरा ऊपरसँ टोबैत बाजल-बेमात्रो बहीन?
रतिनाथ कननमुँह भेला-बुझे खासे।
ठाकुर झोड़ा आपस क’ देलकनि आ एकटा सिपाही संग क’ देलकनि, जे हिनका ल’ जा क’ हाॅलक पछुवति वला असोरा पर इशारा क’ क’ भागि गेल।
रतिनाथ झंझटसँ मुक्त नइं भेला। झोड़ा नेने इतस्ततःमे कखनो हाॅल तक जाथि, कखनो हाॅलसँ ऊपर सीढ़ी तक पहुँचथि आ फेर आपस आबि क’ एकटा बेंच पर बैसि जाथि। हाॅलसँ ओइ पारक कोठलीमे बहुत लोक रहै। रतिनाथकेँ देखाइन एत्तैसँ। मुदा लोक सभक बगए बाना देखि क’ ओत’ तक जैबाक सहास नइं होइन। दहिना कातक बालकोनीमे बड़का-बड़का डेकची सभमे लड्डू-अमिरती डिकल रहै आ एकटा बड़का बोरामे मखान देवाल लगा क’ राखल रहै। असलमे ऐबाक अहलदिलीमे रतिनाथ रातियो एक्के टा रोटी खैने छला। मुदा तें मधुर ल’ लेबाक मोन नइं भेलनि।
हठात रतिनाथकेँ लागल छलनि जे कएक टा मोटर एक्के संग कोठीमे पीह-पाह क’ रहल छै। हाॅलक ओइ पारक कोठलीमे किछु हलचल भेलैऐ आ चहल-पहल बढ़ि गेलैऐ। ता पता नइं कोमहरसँ ठाकुर जमादार ऐलनि आ रतिनाथक हाथसँ झोड़ा छीनि लेलकनि-अरे स्साला, सबको फाँसी लगबाएगा।
रतिनाथक झोड़ा मोचड़ा क’ डेकची सभक दोगमे चल गेलनि। त्रास्त रतिनाथ सुनलखिन, ठाकुर बन्दूक वलाकेँ हुनकर परिचय देलकै-साहब का साला... मिठाई की निगरानी।
बन्दूक वला गुम्हरि-गुम्हरि दू-तीन बेर हिनका दिस तकलकनि, तँ रतिनाथ सहमि क’ पायामे सटि क’ ठाढ़ भ’ गेला।
ठीक हुनका सामने बैठकमे भरदुतिया मनाओल जा रहल छलै। पीयर बनारसी पर पीयर नकमुन्नी पहिरने बहिन दाइ पंजा भरे बैसलि ककरो हाथमे सिनूर-पिठार लगा रहलखिनहें। रतिनाथ नइं चिन्हलखिन। नोत लेल भ’ गेलै तँ बहिनिक ओ भाइ गोड़ लगैक बदला हुनकर चेहराकेँ आँजुरमे ल’ क’ डोला देलकनि। रतिनाथ ओझाजीकेँ पुलकित भ’ क’ दोसर दिस गदरनि झुका क’ कठहँसी हँसैत देखलखिन। रतिनाथ देखलखिन जे बहिन दाइक चेहरा सिनूर जकाँ लाल भ’ गेलनिहें। भाइक हाथ पर किर्री देब’ लगलखिन, तँ भाइ मुँह बाबि देलकनि। बहिनिक हाथ मुँह तक उठलनि। किर्री कट द’ उठलै तँ जतेक लोक रहै, से थपड़ी पाड़’ लगलै-हियर-हियर...।
फेर रतिनाथकेँ बुझि पड़लनि जे खेला उसरि रहलैऐ। ओझाजी एम्हरसँ ओम्हर दौड़’ लगलखिन आ भाइ बहीन दाइकेँ पाँजमे नेने भरि बाकुट क’ हुनक कनहा पकड़ने बाहर जा रहल छनि। रतिनाथ देखलखिन जे ओझाजी विगजीसँ सजाओल गेल चानीक प्लेट नेने देहरि छेकने ठाढ़ छथिन। मुदा ओ, जे बहिनकेँ पकड़ने ठाढ़ रहनि, कहलकनि-आब ई की? भ’ तँ गेलौ।-ओझाजीक बत्तीसो दाँत देखार भ’ गेलनि। रिरिएलखिन-एह, एहनो भेलैऐ? मुँहों ने अइंठौलियै... आइ लोक बहिनिक अन्न खाइ छै।
रतिनाथ ओझाजीक कठहँसी आ ओइ पुरुखक आँखिमे उमड़ि आएल तिरस्कार, दुनू संगे देखलखिन। ओ पुरुख बजलै-भ’ गेलै सभटा। किर्री अन्न नइं भेलै? मुदा अहाँ जे एहन प्रचण्ड छी जे हमर सेक्रेटरीक मार्फत प्रोग्राममे सम्बन्धक दोहाइ दैत संशोधन करबै छी! केना अहाँ प्रशासनिक सेवामे आबि गेलौं?
रतिनाथ देखलखिन जे ओझाजी तँ खी-खी-खी-खी क’ क’ हँस’ लगलखिन आ बहीन दाइ अही दोपखियामे भाइक पाँजसँ छुटि गेलखिन, जेना गैंची असावधान मलाहक हाथसँ छुटि जाइ छै। ओ आदमी मोटरक केबाड़ीक दोगमे घोसिया गेलै तँ ओझाजी पुनः हँसिते बाजल छला-तखनि अइंठ मुँहे धो लेल जाओ।-आ मीना कएल चानीक गिलास तरहत्थीमे नेने आगू बढ़ौलखिन। ओ आदमी एक घोंट पिलकै आ दोसर घोंट कुरूर क’ देलकै-दुरजी, गिलास चानी के आ पानि तै मे इन्होर?-आ उदास बहीन दिस तकैत बजलै-अच्छा कीरू, बाइ। दिल्ली आ एक बेर।
ओझाजी उत्फुल्ल भ’ क’ मोटरमे सटि गेल छलखिन-बट हाऊ? सो लाँग आइ एम नाॅट पोस्टेड इन देलही...।
मुदा रतिनाथ देखलखिन जे मोटर विदा भ’ गेलै। आश्चर्य लगलनि जे एक छनमे पूरा मजमा कोना बिला गेलै। डीनर हाॅलमे यत्रा-तत्रा डिश छिड़ियाएल छलै। जहिं-तहिं आधा-सौंस लड्डू-अमिरती ओंघराएल। कतेक मधुर तँ ओहिना सौंसे रहै। रतिनाथकेँ एक मोन भेलनि जे सौंस लड्डू-अमिरतीक गनती क’ लैथि। मुदा ता बुझि पड़लनि जे किछु लोक आपस आबि रहल छै। रतिनाथ सावधान भ’ गेला।
किरण दाइ अपन हाकिम पतिक एहि आयोजित शोमे नायिकाक भूमिका निमाहितो हर्षित नइं छली। आपस ऐली तँ ऊपर जेबाक सीढ़ीक निच्चेमे एकटा कुर्सी घीचि क’ बैसि गेली। सैहेब आपस ऐला तँ बहुत हर्षित छला। किरण दाइकेँ निच्चाँमे बैसल देखि क’ हुनका पीठ पर हाथ दैत बजला-इनभेस्टमेंट हैज क्लिक्ड डियर। आब चलू दिल्ली। जेना बहुत पाकल घावमेसँ पीज स्वतः बहि जाइत छै, किरण दाइक आँखिमे छेकल क्रोध आ अपमान बह’ लगलनि। मुँहसँ बहरैलनि-अहाँ तँ कहने रही जे ओ अपने प्रोग्राम देलखिन हें?
सैहेब एकटा लड्डूकेँ दाँतसँ कटैत बजला-ई कोन एहन बड़का बात भेलै जे तै लए अहाँ... अजब लोक छी...।
किरण दाइक आँखिसँ ज्वाला फेकलकनि-दस लोकमे ओ की कहलनि से अहाँ सुनलिऐ?
सैहेब फानि क’ एकटा अमिरती हाथ क’ ल’ लेलनि। उदास स्वरमे बजला-अरे भाइ, ओ तँ बातकेँ प्रोसेस करैक तरीका छिऐ। हुनका की पता छनि जे आइ भरदुतिया छिऐ आ अहाँ एत’ छी? सेहो हुनकर सेक्रेटरी हमर क्लासफ्रेंड छी। ओकरा कहलिऐ। बस।
किरण दाइ किछु बजली नइं। कनेक काल शून्य दृष्टिएँ पतिक मुँह दिस तकैत रहली आ फेर आँचरसँ मुँह झाँपि लेलनि। सैहेब अप्रतिभ भ’ गेला। एकटा लड्डू हाथमे ल’ क’ कनहा उचका क’ मुँह बिजका देलखिन आ सीढ़ी दिस बढ़ि गेला। रतिनाथकेँ बहीनकेँ कनैत देखि क’ उत्तेजनासँ देह झनझनाए लगलनि। डेकचीक दोगसँ अपन झोड़ा निकालि क’ छातीमे सटा लेलनि आ सहटल-सहटल बहिनिक लग पहुँचि गेला। बहीन प्रायः आभाससँ मुँह उघारि नेने छलखिन। आँखि दुनूटा अढ़ूल भेल छलनि आ ठोर पूरा-पूरी स्थिर नइं भेल रहनि। तैयो खखसि क’ नहुँएँसँ पुछलखिन-अरे, अहाँ कखन एलौं यौ?
रतिनाथ प्रफुल्लित भेला, बहीन दाइ चीन्हि गेलखिन। गोर लगैत बजला-एँह, बड़ी काल। ओ सभ आएलो ने छलैऐ, तखने।-प्रमुदित रतिनाथ झोड़ामे सँ प्लास्टिकक झोड़ी बहार केलनि आ आगू क’ देलखिन। किरण दाइक चेहरा पर कौतुकपूर्ण स्मिति पसरि गेलनि। हँसि क’ बजली-बाप रे, अहाँ तँ ढेरी सनेस अनलौं हें यौ।
ता रतिनाथ बाँकिओ वस्तु सामनेमे पसारि देलखिन। किरण दाइ बहुत प्रसन्न भेली। सिनूरक गद्दी खोलि क’, चुटकीमे लैत बजली-एह, एत्ते किऐ केलौं? बाबू छथि कि ने नीके?
किरण दाइ प्रकृतस्थ भ’ गेल छली। एक चुटकी सिनूर सीथ पर लेलनि आ एकटा सारुक उठा क’ सोह’ लगली-अहाँ कत’ नुका गेलौं? चलू पहिने नोत लेब। अहाँकेँ भूखो लागल हैत।-फेर रतिनाथक डेन पकड़ैत बजली-आउ, पहिने ओइ नल पर हाथ-मुँह धोइ दुनू भाइ-बहीन।
आध्ादित किरण दाइ भाइकेँ नोतै लेले बैसली तँ आँखिमे ओएह ज्योति छलनि जे यमकेँ नोतै काल यमुनाक आँखिमे छल हेतनि। ता सैहेब ऊपरसँ निच्चाँ एलखिन। किरण दाइ रतिनाथक छोट आँजुरमे नोतक पदार्थ सरिया क’ दैत छलखिन। चेहरा पर अलौकिक आभा पसरल छलनि। दृश्य देखि क’ सैहेब तुर्छ होइत बजला-आब भरि दिन नोते-नोती चलतै की?
मुस्कियाइत किरण दाइ भाइक हाथ धो क’ ठाढ़ि भ’ गेली। रतिनाथ चट द’ गोर लागि लेलखिन। किरण दाइ दुनू हाथे हुनकर माथ हँसोथैत बजली-नोता-नोती तँ एखने टा भेलैऐ। ओ तँ इनभेस्टमेंट छलै।
सैहेब जोरसँ कुर्सीकेँ रगड़ि क’ घिचलनि आ बैसैत बजला-डैम दिस नोता-नोती, पाबनि-तिहार...।
रतिनाथ आतंकित भेला, मुदा किरण दाइ आश्वस्त मुस्कियाइते रहली।

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मन्दाकिनी
प्रभास कुमार चैधरी
सुतली रातिमे गर्द मचल छलै।
बरबज्जी टेªनक पुक्की गामक लोक सुनने छलै, तकर कनियें कालक बाद रातुक निस्तब्धताकेँ चीरि पिहकारी आ ठहक्काक स्वर सभ चारू कात पसर’ लगलै। ओही गर्दमगोल पर मनोजक निन्न टूटि गेलै।
बीच आँगनमे चैकी पर चितंग पड़ल छल। गुमार बेसी छलै। आँगनमे राखल चैकिये पर माइ बिछौन करबा देने छलै। गुमारक द्वारे सभक बिछौन आँगनेमे लागल छलै। आँगनक मड़बाक उतरबारी कात ओकर चैकी छलै जकर पौथान लग राखल चैकी पर ओकर माइक संग दीयर आ सुधा सूतल छलै-ओकरासँ छोट बहिनक बेटा-बेटी। मड़बाक पुबारी कात राखल चैकी पर प्रदीप सूतल छलै। पाँच भाइमे ओएह टा गाम रहै छै आ गामेसँ काॅलेज जाइत छै। छोटकी बहिन मुन्नीक बिछौन पुबारी घरक पछबरिया ओसारा पर छै आ मड़बाक माँटि पर निभेर सूतल छलै ओकर चरबाह गेनमा। उतरबरिया घरमे काका रहै छथिन, जकर पछबरिया अलंग झड़ि गेल छै। आ मात्रा एकटा कोठली फूसक कहुना ठाढ़ छै। दछिनबरिया घरक तीन कोठलीमे भाइक परिवार रहै छनि।
आँगनमे इजोरिया छिड़िया गेल छै। मनोज जखन आँगन आएल छल, नीक जकाँ अन्हरिया जमकल रहै। सभ सूति रहल छलै। खाली माइ जागल छलै, मुदा ओंघाइत एकटा चैकी पर बैसल छलै। थारी परसैत कहलकै-बड़ राति भ’ गेलौ। कत’ छल’ अन्हारमे?
माइक ओइ बात पर ओकर मोन पाछाँ... बहुत पाछाँ उधिआए लगलै। छोट... बहुत छोट होइत चल गेल ओ। अधिक काल साँझ पड़लो पर आँगन घुरबामे देरी भ’ जाइक। मुदा, गामक जइ कोनो आँगनमे रहए आ चाहे जतबा अबेर होइ, आँगन दिस जएबा लेले जखन बिदा होब’ लागए... लालटेम नेने चरबाह ठाढ़ रहै। ओकरा देखि अनेरो मनोजक मोन लोहछि जाइ। चरवाह ओकर मोनक बात जेना बुझि जाइ।-हमरा पर किए बिगड़ै छी बौआ? मालिक नइं मानलनि। कहलनि-ताकि लबहुन जत’ होथि। अन्हारमे कोना घुरताह?
आ, तामसें मुँह धुआँ कएने जखन मनोज अपन घर दिस विदा होअए, दरबज्जे पर लालटेम नेने टहलैत भेटि जाथिन दादा(पिता)। हुनका देखि ओकर क्रोध आर बढ़ि जाइ। दादा ओकर मोनक बात नइं जानि कोना बुझि जाथिन-अनेरो तमसैलासँ की हेत’? समय पर नइं घूरि सकैत छ’ त’ कम सँ कम टाॅर्च ल’ क’ जा। सेहो नइं होइ छ’ त’ कहि क’ जा जे कोन आँगनमे रहब’? घरे-घर ताक’ त’ नइं पड़तैक एना।
अही घरे-घर तकनी पर ओकर मोन लोहछि जाइ। जेना ओ कोनो दुध-पिब्बा नेन्ना रहए। प्रात भेला पर ओकर तामस आर बढ़ि जाइ। जेम्हरे जाए, सभ पूछ’ लगै-राति कहाँ चल गेल रही मनोज! चरवाह हमरो आँगन ताक’ लेल आएल रहौ।
मुदा मनोज कतबो तमसाए, दादाक व्यवस्थामे कोनो अन्तर नइं होइत छलनि। साँझक बाद गामक कोनो आँगनमे रहए वा धार पार पेठिया-बजारमे अँटकि जाए, जखने विदा होइत छल लालटेम नेने चरबाह ठाढ़ रहै छलै। आ, अपन दलान लग दोसर लालटेम नेने दादा टहलैत रहै छलखिन। माइक बात पर मनोजकेँ ओ पुरना बात मोन पड़ि गेलै। आब ने ओ गाममे रहै अछि, ने घरे-घर क्यो लालटेम नेने ठाढ़ रहै छै। दलान-दरबज्जा सुन्न रहै छै। दादा नइं छथिन आब। ओकर संग ओकर छोटका भाइ सभ सेहो बाहरे रहै छै, गाममे रहै छै-माइ, एकटा छोट भाइ, एकटा छोट बहिन आ भागिन-भगिनी...
आइ दिनेमे गाम पहुँचल छल। दलान सुन्ने छलै। आँगनमे पैसि गेल छल। भनसा घरमे व्यस्त माइ देखिते दौड़ि क’ आँगन आएल छलै आ हाथ पकड़ि शम्भूनाथकेँ भगवतीक घर ल’ गेल छलै। ओकरा खाली हाथ प्रणाम करैत देखि ओकर आँजुरमे किछु फूल आ दूटा टाका राखि देने छलै। भगवतीक बाद माइकेँ प्रणाम क’ आँगन आएल ता उतरबरिया घरसँ काका बहार भेलखिन-कखन अएल’? ने कोनो समाद, ने चिट्ठी। कुशल-क्षेम कि ने!
ओ पैर छूबैत कहलकनि-आॅफिसक काजसँ दरभंगा आएल रही। एक दिन लेल गामो चल अएलहुँ।
-एक्के दिन लेल?-काकाक स्वर उदास भ’ गेलनि-एतुक्का हाल त’ देखिते छी। पचहत्तरि बरखक बूढ़ आ जीर्ण रोगी। आब ई बबासीर एक्को क्षण चैन नइं लेब’ दैत अछि।-एतबा कहि ओ शोणितसँ भीजल धोती देखब’ लगलखिन।
ताबत माइ पछबरिया ओसारा पर बिछौन क’ देने छलै। चैकी पर आबि क’ जहिना बैसल, गेनमा पंखा हौंक’ लगलै। कनेटा हाथपंखा। ओकरा फेर एकटा पुरना गप्प मोन पड़लै। दादाक व्यवस्था आ हुनकर नियम। जहिना शहरसँ क्यो आएल कि बड़का पंखा ल’ गेनमाक पित्ती टुनमा ठाढ़ भ’ जाइत छलै। अढ़ाइ हाथक डण्टा लागल बड़का पंखा! टुनमाक हाथ तैयो लगातार चलैत छलै-घण्टो।
पछबरिया घरक ओसारा परक चैकी पर जखन चाह पीबि, आ जलखै क’ पड़ि रहल, बहुत रास पुरना बात मोन पड़लैक। भाइ गाममे नइं छलखिन। दक्षिणबरिया घर जा भौजीकेँ प्रणाम क’ अएलनि। धीया-पूता सभ स्कूल-काॅलेज चल गेल छलै। माइ भनसाघरमे भानस-भातमे व्यस्त छलै। असगर चैकी पर पड़ल ओकर मोन बौआइत रहलै।
आँगनक सभटा चीज चीन्हल, मुदा तैयो नवे सन लगै। ओना, नव होएबाक सती सभ चीज पुरनाए गेल छलै आँगनमे। पछबरिया कोठे टा नव छलै, जकर ओसारा पर राखल चैकी पर ओ पड़ल छल। मुदा, ओकरो दुनू कोठली आ सौंसे ओसारामे एखनो माँटिए-माँटि छलै। कोठली ओसाराक संग भनसाघरकेँ सेहो सीमेन्ट करबा देबाक दादाक बड़ इच्छा रहनि, आ ओहू सँ पैघ इच्छा रहनि पछबरिया घरक कोठा पर चढ़बा लेल सीढ़ी बना देबाक। माइ कहियो काल दाबल स्वरेँ बजैत छै-एतबो नै पार लगैत छ’ तोरा सभकेँ। अपना नइं काज छ’, मुदा बापक आत्माकेँ शान्ति भेटतह, हुनको लेल त’ एतबा करबा लैह। ओ एकसर एतेक क’ गेलखुन, तोरो लोकनि तँ पाँच छ’...
सत्ते, ओकरा बुते किछुओ कहाँ सम्भव भेल छै? पछबरिया घरक सीढ़ी आ सीमेन्टक कोन कथा, पुबारि घरक मरम्मति पर्यन्त पार नइं लागल छै। चारू कोठली बरसातमे पोखरि बनि जाइत छै-एक्को बुन्न बाहर नइं। ओहो पक्के देबाल छै, मुदा छतमे टीन पाटल छै।
दादा सभ वर्ष ओकर नट-बोल्ट बदलि, पोलटिस लगबा दैत छलखिन... बीच-बीचमे कोनो चदरा बदलबा दैत छलखिन। आब वर्षक वर्ष भ’ जाइत छै। पुबारि घरक उतरबरिया आ दछिनबरिया कोठलीक देबाल वर्षाक पानिसँ अलगि गेल छै। देबाल टेढ़ भ’ गेल छै, कहियो खसि सकैत छै! दुनू बिचला कोठलीक आसमानी रंगक देबाल पर पानिक टघारसँ विचित्रा-विचित्रा रेखाकृति बनि गेल छै। पुबारी कातक ओसारा जे दलानक काज करैत छै, एकदम बदरंग भेल छै। किरमिची रंग धोखड़ि गेल छै आ फर्श परक सिमटी ठाम-ठाम उखड़ि गेल छै।
मुदा, माइ आब एकर सभक चर्चा नइं करैत छै ओकर गाम अएला पर। पहिने करैत छलै। ओइ चर्चा पर ओ उत्साहित भ’ सभटा बजट बना लैत छल। सीढ़ीक बजट, सिमटीक बजट, मरम्मतिक बजट। फेर गामसँ चल जाइत छल। अगिला बेर फेर बजट बनैत छलै। मुदा आब ओकर चर्चा नइं होइत छै। माइकेँ दोसरे चिन्ता छै-जेहो खेत बाँचल छ’, परतिए रहतह। तोरा लोकनि देखबह नइं, त’ हम आँगनसँ कतेक की देखबइ! एकटा बड़दसँ कतहु खेती भेलै अछि? भाँजवला बड़ झँझट करैत अछि। गाममे पाइयो देला पर आब ह’र लेल क्यो बड़द नइं दैत छै। दाउन करबा लेल बड़द नइं होइत छै। सभ झरबा लैत अछि बोझाकेँ।
माइक इहो बात कैक बेर सुनने छल मनोज आ ओकरो बजट बनल छलै। तकर बाद तीन खेप गाम आएल अछि। ने माइ चर्चा करैत छै, ने ओ मुँह खोलैत अछि।
पछबरिया घरक ओसारा पर पड़ल-पड़ल मनोज इएह सभ सोचि रहल छल। माइ एक बेर आरो चाह द’ गेलै। ओ तैयो ओहिना पड़ल छल। दोसर बेर भनसे घरसँ माइ टोकलकै-एना पड़ल किए छ’! नहा-सोना क’ गामक लोक सभसँ भेट क’ आब’।
तैयो ओ ओहिना पड़ल रहल। नहएला-खएलाक बादो बिछौने पर पड़ल रहल। किम्हरो जएबाक इच्छा नइं भेलै खएला-पीलाक बादो। माइयो आबि क’ ओही ओसारा पर पटिया बिछा बैसि गेलै। ओकरा ओहिना पड़ल देखि पुछलकै-नोकरक कोनो इन्तजाम भेल’ की नइं।
ओ मूड़ी डोला देलकै। माइ चिन्तित होइत कहलकै-तखन त’ बड़ झँझट होइत हेतनि। चिलकाउर छथि, दुनू नेन्ना छोट छनि। ऊपरसँ एतेकटा परिवारक भानस-भात। ऐ गाममे त’ आब आगि लागल छै। क्यो छोटका लोक बाते नइं सुनैत अछि। क्यो तैयारो भेल जएबाक लेल त’ ओकर पट्टीक मालिक झट बहका दैत छथिन-खबरदार जौं गेलें। बसबें हमर जमीनमे आ काज आन पट्टीक। एहन-एहन पट्टीदार सभ छथुन। तोहर पट्टी त’ सफाचट छ’। लोके कम्म, ओ जेहो छ’ से बाहर जाइ लेल तैयार नइं। गाममे भुखले रहत, मुदा बाहर नीक-निकुत नइं जुड़तैक। एकटा तैयार भेल छथुन। छथि त’ ब्राह्मणे, मुदा भानसक संग अइंठ-कूठ सेहो कर’ लेल तैयार छथि। पछिलो बेर तोरा कहने रहिअ’।
-ककरा द’ कहै छें?-मनोज मोन पाड़ैत पुछलकै।
-ओएह, मन्दाक बेटा...।
मनोजकेँ मोन पड़ि गेलै। पछिला बेर माइ चर्चा कएने छलै। मन्दाक नाम सुनि ओ चैंकल छल। मन्दाकिनी ओकरे गामक छलै, ओकर संग खेलाएल छलै। ओकरा बेटाक नाम सुनि ओकरा आश्चर्य भेल छलै-मन्दाक बेटा किऐक भनसीयाक काज करतै! ओकर वर त’ कलकत्तामे कमाइत छै। सासुरोमे खेत-पथार छै।
माइ कने घृणासँ कहलकै-सभटा अपन चालि आ कर्म। वर छोड़ि देने छै, घरोसँ निकालि देने छै। चारिटा धीया-पूता छै। वर्ष दिनसँ बापक लग पड़ल अछि। गरीब बाप-माइ अपने बेटा सभ पर आश्रित छै। चारि गोटेक पेट कोना भरतैक? दुनू जेठका मजूरी करैत छै-अपनो ढहनाएल फिरैत अछि, चालि सुधरै तखन ने?
सूनि क’ आश्चर्य आ दुःख भेलै। मन्दा ओकरासँ जेठ छल वयसमे। कनियाँ-वरक खेलमे कहियो काल ओ ओकरो कनियाँ बनैत छल। ओना बेसी काल ओकर कनियाँ बनैत छल मोना। ओ जेहने सुन्नरि छल, तेहने शान्त। कनियाँ बनि खपटाक बासन सभमे काँच बालु आ तरकारीक बतिया सभ राखि ओकरा लेल भानस करैत छल आ फेर स्कूलक कोठलीक माटिमे ओकर कनियाँ बनि चुपचाप ओकरा संग सूति रहै छल।
मन्दा सुन्दर नइं छल। रंग ओकर कारी नइं, त’ गोरो नइं छलै। केश भुल्ल छलै जकरा कतबो तेल-कूड़ दैत छलै, भुल्ले रहै छलै। आँखि छोट-छोट छलै, मुदा शैतानीसँ नचैत। ने बेसी दुब्बर, ने मोट। चालि फुर्तिगर छलै, हरदम बुझाइ जेना पड़ाएल जाइत होअए। गाल फूलल-फूलल आ लाल पातर ठोर रहै, जकरा अधिक काल ओ बिचकाबैत रहै छल। ओ जहिया ओकर कनियाँ बनैक, अकच्छ कर’ लगै। जाहि कोठलीमे सभ कनियाँ-वर पड़ल रहै, तत’ नइं सुतैक। कहियो कोनो झोंझमे, त’ कहियो कोनो कोनटामे ल’ जाइ आ बुझनुक जकाँ बजैक-वर-कनियाँ कतौ सभक सामने सुतलैक अछि संगे!
मुदा संग सुतैत देरी ओ तंग कर’ लगैक-एना कल्ल-बल्ल की पड़ल छें! वर-कनियाँ एना नइं पड़ल रहै छै चुपचाप।
-त’ गप्प कर’ ने कोनो! मोना त’ कतेक रास गप्प करैत अछि।
-ओ बकलेल अछि। वर-कनियाँ खाली गप्पे करैत रहि जाएत त’ बिआह कथी लेल करत, संगे किऐ सुतत?-मन्दा बुझनुक जकाँ बजैक।
-त’ तोहीं कह, वर-कनियाँ की करैत छै!
झिक्का-झोरी होब’ लगै। कहुना अपन पैण्ट सम्हारैत ओ उठि क’ पड़ाए त’ मन्दा खूब हँसैक-लाज होइ छै मौगाकेँ।
पड़ाइत मनोजकेँ मोना भेटैक त’ मुँह कनौन आ आँखिमे नोर-हम नइं बनबैक कमलेशक कनियाँ! नंगरियाब’ लगै अछि। ओकर कनियाँ मन्दा बनतैक। हम तोरे कनियाँ बनबौक।
मुदा बीच-बीचमे मन्दा शैतानी करैक आ मोनाकेँ कमलेश लग पठा दै आ अपने मनोजक संग लागि जाइ-हम एकरे कनियाँ बनबै, मौगाकेँ लाज होइत छै।
आ, एकसर होइत देरी ओ झट पैण्ट खोलि, फ्राॅक उनटि लैक आ मनोज लंक ल’ क’ पड़ाए।
मुदा, ओही फ्राॅक उनटाब’वाली मन्दाक जखन विवाह भेलै, चारिटा मौगी टांगि क’ कोबर घर ल’ गेलै आ सभक नूआ चिरी-चोंत क’ देलकै आ मुँह-कान नछोड़ि लेलकै।
आ, ओहि मन्दाकेँ वर घरसँ निकालि देलकै आ बेटा मजूरी करैत छै, से सुनि ओइ दिन मनोज स्तब्ध रहि गेल छल। माइकेँ तत्काल कोनो जवाब नइं द’ सकल छल। साँझ खन मन्दा अपने आएलि छलै। माइ कोम्हरो गेल छल। मन्दा लग आबि ठाढ़ि रहलै, कहला पर बैसलै नइं। एकटा फाटल नूआमे सौंसे देह झाँपल। दोसर कोनो वस्त्रा नइं। आंगियो नइं। शरीर सुखाएल, आँखिक नीचाँ कारी छाँह आ ठोरो करिआएल। मनोजकेँ मोन पड़लै जे मन्दाक ठोर कतेक पातर आ लाल रहै। ओकरा एकटक देखैत देखि मन्दा कहलकै-की देखै छें एना! अनचिन्हार लगै छियौ हम?
-नइं... से बात नइं! देखै छलियौ जे तोहर ई हाल किऐ भेलौ? केहन त’ सुखी छलें अपन घरमे!
मन्दा हँसलकै-से तों कोना जान’ गेलें जे सुखी रही। विवाहक बाद की पहिनो घुरि क’ कहियो पुछलें जें कोना छें मन्दा? नेनामे पैण्ट खोलि दैत छलियौ, ताहि डरेँ जे पड़ाइत छलें, से डर भरिसक लगले रहि गेलौ।
मनोजकेँ लाज भेलै। मन्दा ठीके कहैत छै। ओकरा नइं जानि मन्दासँ किऐ बाजि नइं होइत छलै। मन्दा जखन कने पैघो भेलै, ओकर चारू कात घण्टो बौआइत रहै छलै। पोखरिक जाहि घाट पर ओ नहाइत छल, ठीक ओकरे नहएबाक समय सभ दिन ओ पानिमे पैसि घण्टो चुभकैत रहै छलै। मनोज हेलि क’ जाठि लगसँ भ’ आबए, मुदा ओ ओहिना छाती भरि पानिमे डूबल घण्टो ठाढ़ि रहै। जाहि आँगनमे ओकर ताश-कौड़ीक अड्डा जमए, मन्दा ओही ठाम भेटि जाइ। मुदा वर-कनियाँक खेलमे जे ओकरासँ डेराएल, से डेराएले रहल मनोज।
मन्दा ओही बात पर हँसी कएलकै आ मनोजकेँ लाज भेलै। अपनाकेँ स्वभाविक बनएबाक चेष्टा करैत कहलकै-से बात नइं छलै मन्दा। तोहर हाल त’ बुझिते छलियौ, जा धरि गाममे रही। आब त’ अपने गाम अनचिन्हार भेल जाइए। कहियो काल अबै छी। मुदा तोरा द’ सुनि क’ बड़ दुख भेल। मिसरक मति एना किऐ खराब भेलनि? एहि वयसमे, धीया-पूताक संग किऐ त्यागि देलखुन तोरा? झगड़ा भेल छलौ?
मन्दा फेर हँसलै-संग रहिते कहिया छलौं जे झगड़ा होइत? ओ कलकत्ता, हम गाम। कहियो काल वर्षमे एक बेर, पाँच-सात दिन आबि जाइत छलाह। झगड़ो करबाक बेर कहाँ भेटेत छल?
-तखन की भेलौ?-मनोजक प्रश्न पर ओ फेर हँसल, गामक लोक एखन धरि नइं कहने छौ? सभकेें बूझल छै। जकरेसँ पुछबही, सएह कहि देतौ-हम कुलटा छी, किदन छी। एही कलंकक संग घरसँ विदा कएने छथि। मुदा हम त’ कहियो नइं कहने रहिअनि जे पतिवरता आ सदवरता छी।
मनोजकेँ अवाक देखि ओ आगू बाजलि-तोरा कहबामे लाज नइं! तोरा लगमे नेन्नेमे अपन फ्राॅक उघारि लैत रही आ तों पड़ा जाइत रहें। सभ पुरुष तोरे सन नइं होइत अछि। जहिया गामक सभ स्त्राीगण उठा क’ हमरा कोबरामे ठेलि देने छल, तोहर मिसरकेँ बड़ हड़बड़ी भ’ गेल रहनि। जहिया कहियो वर्ष दू वर्ष पर गाम अबैत छलाह, एक्के क्रियाक हड़बड़ी रहै छलनि। तकर बादे किछु।
मनोज रोकैत कहलकै-त’ एहिमे कोन हर्ज छलै! स्वामीक अधिकार छलै ओ। एहिमे घरसँ निकालबाक कोन बात भेलै?
मन्दा फेर हँसलि-बात तकरे बाद भेलै। ओ सटल रहि पाँच-सात दिनमे चल जाइत छलाह। आँगनमे एकसर हम स्त्राीगण! ने सासु, ने ननदि। कतेक बेर कहलिअनि-हमरो कलकत्ता ल’ चलू, मुदा नइं ल’ गेलाह। ल’ कोना जैतथि? बापक माथ पर भार छलिअनि। कहुना छुट्टी पौलनि। जमाइ अनलनि मूर्ख, आॅफिसमे दरबान। घर रहनि तखन ने ल’ जैतथि कलकत्ता! मास-दू मास पर मनीआर्डर पठा निश्चिन्त भ’ जाइत छलाह।
मनोज फेर टोकलकै-ई त’ भेलै नौकरीक विवशता। टाका त’ पठा दैत छलखुन, तखन फेर की भेलौ?
मन्दाक हँसी आर बढ़ि गेलै-तखने त’ असली बात भेलै। सुन्न आँगनमे एकसर मौगीक खोज-खबरि लेब’वला, सहानुभूति देखाब’वलाक संख्या बढ़ैत गेलै। पहिने अएलाह एकटा पितिऔत देयोर। भौजी-भौजी करैत एक दिन नइं छोड़लनि। फेर परकि गेला। हमहूँ परकि गेलहुँ। मुदा हुनका रोकलकनि अपने स्त्राी। तखन आएल गामक सम्बन्धे एकटा जाउत। काकी-काकी करैत ओहो ओहने...।
मनोज बीचमे रोकि देलकै-आ तोरा नीक लगैत गेलौ, परिकल गेलें। तखन त’ वाजिबे निकालि देलखुन तोरा। कोनो पुरुष सैह करैत!
ओकर आँखि क्रोधसँ भभकि उठलै-ठीके कहै छें! सभ पुरुष एहिना करैत अछि। ओकरा दूरि क’ किम्हरो चलि दैत अछि, आ मौगी एकसर ओकर बाट देखौ, अपनाकेँ झाँपि-तोपि क’ राखौ। हमहूँ झाँपि-तोपि क’ रहै रही। मुदा चारू कातसँ हाथ लपकल। मुदा से उघार होएबा लेल त’ नइं निकललहु ँ ओइ घरसँ। निकलल छी ओइ घरमे पच्चीस वर्ष बिता क’, जखन हमरा संग रहबाक इच्छा तोहर मिसरकेँ नइं होइत छनि। ओ एकटा नव राखि नेने छथि, कलकत्तेमे। कमाइयो बढ़ि गेल छनि। आब हमर काज नइं छनि। चालीसक वयस पार भेलाक बाद, पन्द्रह वर्षक बेटाक माइ बनलाक बाद हम छिनारि बनि गेल छी। आब चारूमे कोनो सन्तान हुनकर नइं छनि, ओ ककरो बाप नइं छथिन। सभ अनजनुआक जनमल आ टूअर अछि। बड़काकेँ राखि लही तों, सभ काज क’ देतौ। ने त’ हमरे राखि ले, भानस-भात, टहल-टिकोरा सभ क’ देबौक, तोहर नेन्नो सभकेँ खेला-खुआ क’ पोसि देबौक।
मनोज कोनो उत्तर नइं द’ सकलै। तावत माइ आबि गेलै। ओ माइयोकेँ एक बेर फेर विनती कएलकै आ चल गेल। माइ ओकर जाइते पुछलक-की कहैत छल’ तोरा?
-ओएह अप्पन बेटाकेँ, चाहे अपने राख’ द’ कहैत छल। भानस-भात, टहल-टिकोरा सभ गछैत छल।
माइ एकदम्म निषेध कएलकै-एहन काज किन्नहु ने करिह’! बेटाकेँ रखबह त’ राखि लैह। मुदा अपना नइं। प्रमोद ल’ गेल छलखिन अपना संग धनबाद। भारी काण्ड मचि गेलनि। बड़का अड्डा बनि गेलनि डेरा। कनियाँसँ नित्य झगड़ा होब’ लगलनि। हारि क’ पठा देलखिन।
आ अइ बेर गाम अएला पर माइ फेर कहलकै-ओ जाएब गछैत छथि, ओएह मन्दाक बेटा।
माइकेँ तखनो कोनो जवाब नइं द’ सकलै। साँझ धरि ओहिना पछबरिया घरक पुबरिया ओसारा पर पड़ल रहल। धीया-पूता सभ स्कूलसँ घुरि गोड़ लगलकै।
आँगनसँ बाहर आएल तखन अन्हार नइं भेल रहै। उतरबरिया घरक दरबज्जा पर काकाक संग लाल काका बैसल छलखिन। गोड़ लगलखिन त’ आशीर्वाद दैत कहलखिन-अखन रहब’ ने!
-नइं काका। काल्हिए चल जाएब। छुट्टी नइं अछि।
मनोजक जवाब पर लाल काका पैघ साँस लैत कहलखिन-नीके करैत छ’। ई गाम आब रहबा जोगर छ’हो नइं! हमरा लोकनि बूढ़-अथवल, जकरा कोनो उपाय नइं अछि, पड़ल रहै छी। ल’ चल’ हमरो सभकेँ! दू साँझ खएबह आ धीया-पूताकेँ खेलबैत पड़ल रहबह। किताब-पत्रिका जमा क’ दिह’ पढ़ैत पड़ल रहब।
मनोज हँसैत कहलकनि-त’ चलू ने लाल काका! अहाँ त’ सब बेर एहिना कहैत छी, मुदा माया छोड़ैत अछि? अबितो छी कहियो काल, त’ दोसरे दिनसँ मोनमे हल्दिली पैसि जाइत अछि-गाममे कोना की हैत! पड़ा अबै छी लगले।
लाल काका ओहिना पैघ साँस लैत कहलखिन-ठीके कहै छ’ हौ! कहाँ छोड़ैत अछि माया? ई गाम रहबा जोगरक अछि आब? नर्कसँ बत्तर। ने सभ्यता, ने शिष्टाचार। नवका छौंड़ा सभक उद्दण्डताक कथे कोन, बुढ़बो लोकनिक आचरण देखि दंग रहै छी। इएह, मोन नइं लगैत अछि त’ भाइ लग आबि बैसैत छी। आर कतहु जाइ छी हम! देयर आर ब्रोथेल्स इन योर भिलेज नाउ!
लाल काकाक बात पर मनोज चैंकल नइं छल। ओकरा पछिलो बेर ई बात सुनल छलै। उतरबारि भीड़ पर घरे-घर रातिकेँ अड्डा जमैत छै। सेठ मुरली मिसरकेँ सभ घर नोत होइत छनि। अही गाममे रहै छथि आब मुरली। अपन घर नइं जाइत छथि। भोला झाक विधवा बेटी हुनका स्वामी मानि नेने छथिन, गामो मानि नेने छनि, मुदा खाली भोला झाक बेटीसँ सेठ मुरलीक मोन नइं भरैत छनि। टोलक सभ घरमे हुनकर अड्डा जमैत छनि। गामक नीक-नीक लोक ओइ बैसारमे शामिल होइत छथि। लाल काकाकेँ बर्दाश्त नइं होइत छनि।
मुदा, गामक लोककेँ सभटा रुचैत छै! बूढ़ सभक संग छौंड़ो सभ ओइ बैसार सभमे हुलकी दैत अछि। सभ भोरका ट्रेनसँ दरभंगा जाइत अछि काॅलेज, आ कहियो सतबज्जी, त’ कहियो बरबज्जी गाड़ीसँ गाम अबैत अछि। छुट्टी आ शानि-रविकेँ गामेमे हल्ला-गुल्ला कएलक, पिहकारी मारलक आ राति-विराति चोर-चाहर आ छिनरपन कएलक! कथूक लेहाज नइं छै। लाल काका पछिलो बेर कहने छलखिन।
ओकरा कोम्हरो जएबाक मोन नइं भेलै। बेसी ठाम एहने गप्प, ने त’ गोलैसी आ पाटा-पाटीक गप्प! ओ सोझे लाइब्रेरी दिस गेल। ओत’ साँझसँ ब्रिजक खेलाड़ी सभ जुटैत अछि! पेट्रोमेक्स जरा कए, ने त’ लालटेमो लेसि क’ ओहो बाजी पर बाजी खेलाइत चल गेल।
जखन घुरल, सौंसे गाम निसबद छलै। आँगनोमे कोनो सुगबुगी नइं। खाली एकसरे जागलि माइ ओंघाइत बैसल छलै! परसि क’ थारी आगूमे दैत कहलकै-बड़ अबेर भेल’। कत’ चल गेल छल’ अन्हारमे?
आ, ओकरा बहुत रास बात मोन पड़लै। दादा मोन पड़लै आ मोन पड़लै आँगने-आँगन लालटेम ल’ क’ तकैत अपन चरवाह। ओही स्मृतिमे भोतिआएल आँखि लागि गेलै।
बरबज्जी टेªनक पुक्कीक किछुए कालक बाद गाममे कचबच-कचबच होब’ लगलै। ओकर निन्न नीक जकाँ टूटि गेलै। बीच आँगनमे चैकी पर चितंग पड़ल छल। ऊठि क’ आवाजक अख्यास कएलक। बुझएलै जेना बहुत रास लोक पुबारी दिस आबि रहल होइ। ओ ऊठि क’ आँगनसँ बाहर आएल।
भीड़ ओकरे दरबज्जा दिस आबि रहल छलै। बड़का ठहक्का लागि रहल छलै आ बीच-बीचमे पिहकारी। मनोजक उत्सुकता बढ़िते गेलै।
भीड़ लगले नइं पहुँचलै ओकर दलान पर। सभ आँगनमे गेलै आ अन्तमे ओकर दरबज्जा दिस बढ़लै। दृश्य देखि ओ अवाक रहि गेल।
दू टा छौंड़ा दुनू दिससँ मन्दाक बाँहि मोड़ि पकड़ने छलै। ओ ओकरा धकिया-धकिया आगू ठेलि रहल छलै। मन्दाक आँखिमे ने नोर छलै, ने याचना। एकटा विचित्रा सन पथराएल दृष्टि, जेना जे किछु भ’ रहल छलै, तकर कोनो ज्ञान नइं होइ ओकरा। कोना यंत्राचालित पुतला जकाँ भीड़क संग आगू ठेला रहल छल। छौंड़ा सभक संख्या गोड़ दसेक। तकरा पाछाँ किछु गामेक लोक भीड़क तमाशा देखबा लेल संग भेल।
मन्दाक हाथ मोड़ने ठाढ़ रमेश आ दीनूकेँ मनोज डँटलकै-छोड़ि दहक हाथ! एना क्यो स्त्रिागणक संग व्यवहार करैत अछि! लाज नइं होइत छौ तोरा लोकनिकेँ?
दुनू ओकर हाथ छोड़ि देलकै आ आर आगू आबि दीनू बाजल-हमरा सभकेँ किऐ लाज हैत? लाज त’ एकरा हेबाक चाही। अपना संग गामक इज्जति बजारमे नीलाम करैत अछि। आइ हमरा सभकेँ सतबज्जी ट्रेन छूटि गेल। बरबज्जीक आसामे रही कि देखैत छी एकरा प्लेटफार्म पर एकटा मोछियल बुढ़बाक संग टहलैत। दुनू एकटा घरमे पैसल। हमहूँ सभ पछोड़ ध’ लेलिऐ। पकड़ि लेलिऐ ठामहि। ओतहिसँ सभकेँ कहैत आएल छिऐक। गामोमे घरे-घर सभ ठाम ल’ जा क’ कहलिऐ। मुदा, देखू, एकरा। लाज छै कोनो गत्रामे? एक्को बुन्द नोर छै पश्चात्तापक कतहु?
सत्ते, से नइं छलै कतहु! मुदा जे छलै से देख्ेिा मनोज डेरा गेल। ओ सर्द... भावनाहीन आँखि दिस देखैत ओ सिहरि गेल। तैयो साहस क’ कहलकै-किऐ करै छें एना मन्दा? तोरा कनियो लाज नइं होइ छौ सत्ते?
ओकर बात पर मन्दाक स्थिर आँखिक पुतली कने हिललै! सोझे मनोजक आँखिमे तकैत कहलकै-सत्त कहियौ! ठीके हमरा कनियो लाज नइं होइए। ओ त’ कहिया ने मरि गेल। मरि गेल देहक भूख! सभटा सुखा गेल। मुदा पेटक भूख नइं मरल। ओ अखनो लगैत अछि। तखन ई देखबाक फुरसति कहाँ रहै अछि जे बुढ़बा मोछियल अछि कि निमुच्छा छौंड़ा? नइं होइ छौ विश्वास तोरा? हम करा देबौ विश्वास तोरा, लाज हमरा कनियो नइं होइत अछि। एही छौंड़ा सभमे देख ने! बेसी हमर बड़कासँ कनिये छोट पैघ हैत! मुदा हमरा एकरो सभक संग लाज नइं। भूख हमरा अखनो लागल अछि। पाइ आ अन्न हमरा चाही। जकरासँ ई हमरा भेटत, तकर नाम-धाम, मुँह-कान नइं देखैत छिऐ हम। ठाम-कुठामक ध्यान नइं रहै अछि। हमरा लेल बन्न कोठली आ गामक एहि बाटमे कोनो अन्तर नइं। आबि जो, जकरा मोन होउ!
आ, सभकेँ आश्चर्यसँ विस्मित करैत मन्दा ओही ठाम माँटि पर चित्ते पड़ि रहलि। बहादुर छौंड़ा सभ भाग’ लागल। भागि गेल! मुदा मन्दा ओहिना पड़लि छल, सुन्न अकाशक नीचाँ, गामक सड़क पर छिड़िआएल इजोरियामे ओ चितंग पड़लि छल! निर्विकार! ओकर आँखिमे कोनो भाव नइं छलै! ने वासना, ने आमंत्राण, ने कातर-याचना। सम्पूर्ण भावविहीन छलै ओकर आकृति आ आँखिक पुतली स्थिर छलै-ऊपर आकाश दिस उठल।
मनोजक मोन कोनादन क’ उठलै। ठेहुनियाँ द’ ओकर मुँह लग बैसैत कहलकै-उठ मन्दा! झाँपि ले अपन देह! सभ पड़ा गेलौ, खाली हमही टा छियौ।
मन्दाकेँ जेना होश भेलै! स्थिर पुतली हिल’ लगलै आ नइं जानि कहाँसँ बाढ़ि आबि गेलै ओइमे? अपन देह झँपैत उठि बैसल। मनोजक आँखिमे नोर देखि हँसबाक चेष्टा करैत कहलकै-तों कोना ठाढ़े रहि गेलैं रौ? तों त’ हमरा एना देखि क’ नेन्नोमे पड़ा जाइत छलैं।
मनोज कोनो जवाब नइं देलकै! कने काल दुनू आमने-सामने ठाढ़ छल-निःशब्द! तखन मनोज कहलकै-तों अपन आँगन जो मन्दा! भोरमे बड़काकेँ पठा दियहि। अपना संग पटना ल’ जएबै।

ऽऽऽ



















कहाँ छें रे नुनुआँ
रामदेव झा

रातिमे सुखलाल जखन खाए बैसल तँ अपन घरवालीकेँ चैल करैत कहलकै-गइ! जहिया हमर बाबू आ कक्का तोहर घरदेखी क’ क’ आएल रहौ, तँ बाजल रहै जे कनियाँ मनुक्ख सन छै, आ आब तों कोन एहन अलखसुनरी आ इनरासनक प’री भ’ गेलें जे नित्तह लोक तोरा निंघारइ लए कहाँ-कहाँसँ अबैत रहै छौ। मारि फोटो घीचइ छौ आ एकबारमे छपबै छौ। गइ! तीन-तीन धीया-पुता भेलाक बाद कोनो मौगी एते सुन्नरि भ’ जेतइ, से ने केओ आँखिएँ देखलक, ने काने सुनलक।
-चुपचाप खाओ, अनेरे बर्र-बर्र नइं करओ। बियाह बेरमे इएह कोन अलखक चान रहै?-सोनमतिया अपन घरवला पर कुन्हरैत बाजलि-लोककेँ हम बजाब’ जाइ छिअइ जे हओ लोक सब, आब’, हमरा निंघार’। ई चकतबा-जनिपिट्टा बिजैयाक सार सब फसाद ठाढ़ क’ देलक। ओएह सरधुआ बिजैयाक संग आएल छल। बिजैया कहलक जे गइ भौजी! छागरकेँ तों दूध पिअबैत छही, से हमरा सारकेँ बिसबासे नइं होइ छै। ओएह बिजैयाक सार एकबारमे की कहाँ छपबा देलकै। से आब हमरा जानक कबाहटि भ’ गेल।
-कबाहटि की भ’ गेलौ? आब तँ लोक सब तोहर दरसन कर’ अबै छौ। बड़का लोक जकाँ तोरो फोटो घीचइ लए खेखनियाँ करैत रहै छौ। परसू बढ़मथानमे बड़का सभा हेतै। इलाकाक हगामा लोक ओत’ जमा हेतै। ओहिमे परोपट्टाक मुखिया-सरपंच, इलाकाक एमेले, एमपी सब रहतै। पाटी वला सब रहतै। तकरा बीचमे मनिस्टर साहेब तोहर मान-सम्मान करथुन।-सुखलाल खाइत-खाइत कहैत रहल-सौंसे गुलंजर उड़िआइ छै जे आब तोरा लोक सब पंचाइतक मेम्बर-मुखिया बनाब’ चाहै छौ। कहियो एमेले सेहो बनाइए देतौ।
सोनमतिया घरवलासँ गोंहछल स्वरमे कहलक-हम नइं जाइ छी, नेतगिरी कर’। अपने जे दुख-धन्धा अछि, ताहीमे रहब। हमरा बदला इएह चल जाओ नेता बनै लए। हाथीक पैरक खोल सन पैजामा सिया लौ, घुट्ठी धरिक कुरता सिया लौ। दुनू पहीरि क’ अनेरे नेताजी बनि जाएत।
सुखलाल कनेक हँसैत मुदा गम्भीर स्वरमे कहलकै-से तँ हेतै बादमे। मुदा पहिने, परसू जे लोक तोहर मान करतौ, ताहि लए नूआ, आ सेहो तँ साफ क’ लितें? सुखलाल आ सोनमतिया अछि ज’न-बोनिहार। सुखलाल अछि बड़ काजुल। मन लगा क’ काज करैत अछि, तें कहियो बैसाड़ी नइं रहै छै। सोनमतिया लोकक गोबर पथैत अछि। लोकक आँगन-घरमे कुटिया-पिसिया आ टहल-टिकोरा सेहो क’ दैत छै। अपनहुँ दू-तीनटा गाय पोसने अछि। ओकरा सब लय नित्तह घास क’ क’ अनैत अछि। सब मिला क’ अपन परिवारकेँ दुखम-सुखम चलबिते अछि।
सोनमतिया जखन सासुर आएल छल तँ देखने छल भरिबथान बकरी-छकरी। बकरी ओकरा नइं सोहाइ छलै। लोक बकरी पोसैए, ओकर बच्चा, छागरकेँ पोसि-पालि क’ चिकबा हाथें बेचि दैत अछि, बध करबा लए। तैं सोनमतिया बकरी पोसबाकेँ पसिन्न नइं करैत छल। से जखन ओ सासुर बस’ लागल, तँ अपन हिस्साक बकरी-पठरू सब सुखलालकेँ मना क’ हटबा देलक। दोंगा करा क’ आएल छल तँ नैहरसँ एकटा बाछी माइ-बापसँ मांगि क’ नेने आएल छल। आब ओही बाछीक पालि बढ़ैत-बढ़ैत तीन थान गाय भ’ गेल छै।
सोनमतियाक आँगनमे सोनमतिया लगा क’ चारि घरवासी। सुखलालक बाप चारि भाइ, मुदा ककरोसँ ककरो मिलान नइं। तैं सब फराक-फराक छल। सभक घर फराक मुदा आँगन एक्के। सभक जीवन-निर्वाह ओहिना होइत छलै जेना सुखलालक। फरक एतबे जे आन सब बकरी पोसने छल आ सुखलाल गाय। सुखलालक माइ मरि गेल छलै। आन पितिआइनियो सबमे आब बड़की पितिआइनि जीबैत छै। बेस ठेंगाठाही छै, मुँहक बेस जोरगरि।
बड़की पितिआइनिकेँ बहुत रास बकरी छलै। एकटा बकरी बिअएलै दूटा पठरू। एकटा छागर, एकटा पाठी। बकरीकेँ छेड़बाहि ध’ लेलकैक। ओकर दबाइ-वीरो कतबो भेलै मुदा ओ बचलै नइं। छागर-पाठी दूध बिना बिलो-बिलो होअ’ लगलै। दुधकट्टू भ’ क’ पहिने पाठी मरि गेलै। आब छागर सेहो हुकहुक कर’ लगलै।
ओहि दिन छागर नितुआन, लारो-बातो भेल पड़ल रहै, भेलै जे इहो जे छन जे पल छै। आँगनक सब घरक मौगी सब देख’ गेलै। ओ सब आबि क’ थहाथही भ’ गेलै। सोनमतियाकेँ दू मास पहिने तेसर सन्तान भेल छलै। ओ अपना घरसँ कमेकाल बहराइत छल। माल-जालक ताक-छेम, घास-पात, गोबर-कड़सी सुखलाल आ दुनू बेटा-बेटी सम्हारैत छलै। आँगनमे हल्ला होइत सूनि सोनमतियोकेँ घरमे रहल नइं भेलै। ओहो पठरूकेँ देख’ चल आएल। उज्जर रंगक नवजात पठरू लबेजान भ’ क’ पड़ल छलै। बड़की पितिआइनि खुरचनमे दूध ल’ क’ ओकरा पिअबैत छलै मुदा दूध ओकरा मुँहमे नइं जा क’ बहि जाइत छलै।
सोनमतिया पठरूकेँ एकटक देखैत रहलि। अकस्मात की ने की फुरलै, ओ पठरूकेँ उठा क’ कोरमे ल’ लेलकै। ओकर देह हँसोथैत ओकर मुँह अपन छातीसँ सटा देलकै। छातीसँ मुँह सटैत देरी पठरू चुभुर-चुभुर दूध पीब’ लगलै आ बड़ी काल धरि पिबैत रहलै। सोनमतिया अपन कोरसँ पठरूकेँ उतारि क’ धरती पर रखलक तँ पठरू टनमना क’ नहूँ-नहूँ कूद’ लगलै।
सोनमतिया पठरूकेँ भिनसर-साँझ दूध पिआब’ लगलै। पठरू आब खूब कूद’ फान’ लगलै। सोनमतियाकेँ अरोस-पड़ोसक मौगी सब कहल करैक जे-गइ! अपन बच्चाक हिस्सा छीनि क’ बड़की काकीक पठरूकेँ दैत छहिन, अपन बच्चा दुधकट्टू नइं भ’ जेतौ? तों अकरहर करै छें।
-जकरा जौंआँ जनमै छै, से कोना पोसै छै?-सोनमतिया हँसीमे बातकेँ उड़बैत कहैक-बूझ जे हमहूँ जौंएँ बच्चा पोसै छी।
पठरू जेना सोनमतियाकेँ नीक जकाँ चीन्हि गेलै। आँगनमे सोनमतियाक कनेको आहट पबैत देरी ओ कुदैत ओकरा लग चल अबैक आ जबरदस्ती ओकर देह पर खूर अरोपि क’ चढ़ि जाइक। सोनमतियाक मुँह आ छातीसँ अपन थुथुन सटा दै। बादमे भोरे-भोरे सोनमतिया घरक फट्टकमे जा क’ ओ ढाही मार’ लगलै।
सहे-सहे पठरू माँड़, रोटी, कोड़ाइ आ घास-पात सेहो खाए लगलै। कनेके दिनमे बेस छेटगर आ मोटा क’ भकुना भ’ गेलै। सोनमतिया घास क’ क’ बाधसँ आबए तँ पठरू लेल कोमल-कोमल अपोआँग नेने आबए आ अँगना अबिते सोर पाड़ैक-कहाँ छें रे नुनुआँ!-मुदा ओकर मुँहक बोल पूरो ने होइ कि पठरू आबि क’ ओकरा देह पर छड़प’ लगैक।
सोनमतिया आ ओकर नुनुआँक बात सौंसे गाममे पसरि गेल छलै। गाममे पढ़ल-लिखल लोक छल विजय। ओकर सार आएल छलै। सार छलै कोनो एकबारक संवाददाता। ओ सोनमतिया आ ओकर नुनुआँ पठरूक वृत्तान्त जनलक। अपना आँखिएँ देखलक। बड़ अद्भुत लगलै। ओ एकटा मर्मस्पर्शी समाचार बना क’ एकबारमे पठा देलकै। एकबार प्रथमे पृष्ठ पर बाॅक्समे समाचार छापि देलकै। समाचार छपैत देरी सोनमतिया अद्भुत प्राणीमित्रा महिलाक रूपमे विख्यात भ’ गेल।
एकबार, रेडियो ओ दूरदर्शनवला सब आ आनो-आनो लोक सब सोनमतियाक एक झलक देखबा लेल आब’ लगलै। साइकिल आ मोटरसाइकिलक तँ बाते नइं, जीप आ मोटरोक आवागमन गाममे बढ़ैत गेलै। अपरिचित लोक सब कैमरा आ भी. सी. आर. नेने सोनमतियाक फोटो घिचबा लेल बेकल बौआए लागल छल। गाम आ इलाकाक चैक-चैराहा, चट्टी, चाहक दोकान, सबतरि सोनमतियेक चर्चा चल’ लागल। चर्चा इहो चल’ लागल जे सोनमतिया एबरी मुखिया लए ठाढ़ भ’ जाए तँ जीति जएबेे करत, एमेलेओमे ठाढ़ भ’ जाए तँ केओ माइक लाल ओकरा हरा नइं सकतै।
सोनमतियाकेँ मुदा बड़ विपत्ति भ’ गेलै। के-कहाँ आबि-आबि क’ ओकरासँ खोधि-खोधि पठरू आ ओकर सम्बन्धमे पूछल करैक। एके बातकेँ दोहरबैत-तेहरबैत ओ गोंहछि जाए। कए बेर किछु कहबामे अकबकाइयो जाए। मुदा लोक मानए तखन ने! अपन काज-धन्धामे ओझर होम’ लगलै।
ओम्हर क्षेत्राक एमेले साहेबक कानमे सोनमतियाक प्रसिद्धिक खबरि पड़लनि। ओ दौड़ल अएलाह गामक मुखियाक ओत’। मुखियाकेँ ओ डँटैत कहलखिन-गामक राजनीति करै छह आ एतबो बात नइं बुझै छह जे सोनमतिया तोहर सब मुखियागिरी घोसाड़ि देतह। ओकरा अपनामे मिला क’ राखह। कतेको लोक ओकरा देख’ अबै छै। ओ गरीब लोक अछि, ककर की सत्कार करतै? तों बाहरसँ अएनिहार लोकक चाह-पान, जलखै आदिक व्यवस्था अपना ओहि ठाम करहक।
मुखियाजी भीतरे-भीतर गुम्हरि क’ रहि गेलाह, सब फसादक जड़ि थिक ई छागर...। एकबार, रेडियो आ टीवीमे इहो समाचार आएल जे सोनमतिया आ ओकर नुनुआँ छागरकेँ देखबा लेल आगन्तुकक संख्या बढ़िते जा रहल अछि। मुखियाजीक दलान पर स्वागत-सत्कार चल’ लागल। सहे-सहे सोनमतिया आ ओकर नुनुआँ छागरक प्रसंग राजनीतिक रंग पकड़’ लागल। सब पक्ष ओकरा अपन भोट-बैंक बनएबाक जोगाड़ धरएबामे ऊपरा-ऊपरी कर’ लागल।
एहि क्षेत्राक एम. पी. छलाह दिल्लीमे बैसल। हुनक समर्थक सब गामक मुखिया आ क्षेत्राक एमेलेक क्रिया-कलापक सूचना दैत सोनमतियाकेँ अपना दिस अनबाक लेल किछु करबाक विचार देलकनि। नइं तँ अगिला चुनाओमे पछड़ि जएबाक संभावना बुझाओल गेलनि।
संसदक अधिवेशन चलि रहल छल, तैं चोट्टे आबि नइं सकैत छलाह। छलाह ओ अपना पाटीक दबंग नेता। संसदमे जा क’ ओ सोनमतिया नामक एक ग्रामीण महिला द्वारा एकटा मातृहीन पठरूकेँ अपन दूध पिआ क’ पोसबाक चर्चा करैत एकरा महान मानवीय आदर्श सिद्ध कएलनि। सरकारसँ माँग कएलनि जे एहि पर सरकार किछु करए। हुनक भाषणसँ सौंसे संसद अभिभूत भ’ उठल। आनो आन पाटीक लोक हुनक समर्थन कएलनि। सरकार दिससँ तत्काल उत्तर देल गेल जे सोनमती देवी द्वारा पोसल गेल छागर, मानव ओ पशुक मध्य भावनात्मक सम्बन्धक प्रतीक रूपमे राष्ट्रीय धरोहर घोषित कएल जाइत अछि। सरकार दिससँ ओकर सुरक्षा आ घास-पानिक व्यवस्था कएल जाएत। ओकरा कोनहु प्रकारक आघात करब दण्डनीय अपराध होएत। जहिया ओ छागर स्वाभाविक रूपें मरत, तहिया ओकर पार्थिव शरीरकेँ रासायनिक प्रक्रियासँ सुरक्षित क’ राष्ट्रीय संग्रहालयमे राखल जाएत। मातृरूपा महती नारी सोनमती देवीकेँ हुनकहि गाममे सरकारक पर्यावरण-मंत्राी स्वयं जाए, हुनका प्राणि-माताक रूपमे सम्मान करथिन। एहि लए तिथि सेहो निर्धारित भ’ गेल।
इलाका भरिमे उत्साहक लहरि आबि गेल। टीसनसँ गाम धरिक सड़कक मरम्मति होअ’ लागल। गामक गल्ली-कुच्ची साफ भ’ गेल। गामक भँगठल क’ल सबमे वाशर लागि गेल। क’लक टूटल चबूतरा बनि गेल। सोनमतिया आ ओकर नुनुआँ छागरक सम्मान करबाक दिन लगिचाएल जाइत छल। तैयारीमे तेजी होइत जाइत छल। बढ़म थानक बड़का परतीसँ झाड़-झंखाड़ काटि, छीलि-छालि क’ सरिआम आ चिक्कन कएल जा रहल छल। मंत्राी जी दस बजे आबि जएताह। मुखिया जीक ओत’ मंत्राी जी ओ अन्यान्य नेतागण दुपहरमे भोजन करताह। बेरुक पहर मंत्राी जी सोनमती देवीक सम्मान करथिन, नुनुआँ छागरकेँ राष्ट्रीय धरोहर घोषित करताह। भाषण करताह आ चल जएताह।
सुखलालक बड़की पितिआइनकेँ ई सब नइं सोहा रहल छलै। ओ तँ छागरकेँ बेच’ चाहैत छल। छओ-सात सैसँ अधिक दाम पएबा लए टक लगौने छल। मुखियाजीक अपन एकटा खास आदमी बड़की पितिआइनकेँ कहियो देलकै-गइ! मुखियाजी ओतेक कहलकौ छागर बेच’ लए तँ कहलही जे सात सैसँ कममे बेचबे नइं करब। आब लैत रह सात सै ठनठनौआ!
बड़की पितिआइनिकेँ पोसल-पालल छागर हाथसँ बेहाथ होइत बुझि पड़लैक। छागर बेस छेटगर-मँसुगर भ’ गेल छलै। आब ओकरा माइक दूधक कोनो प्रयोजन नइं रहि गेल छलै। तैं बड़की पितिआइनि सोनमतियासँ छागरकेँ दूरे राख’ चाहैत छल, तैं ओ सोनमतियासँ बलहुँ झगड़ा करबा लेल बिर्त रहै छल। छागरकेँ घेरि-बान्हि क’ रखबामे फिरीसान रहै छल।
छागर मुदा आब छिट्टातर झाँपि क’ राख-वला रहि नइं गेल छलै। बड़की पितिआइनि छागरकेँ कतबो बान्हि-छेकि राखए, ओ सोनमतियाक आहट पबितहि सब बान्ह-छान तोड़ि-ताड़ि सोनमतिया लग आबि क’ ओकर मुँहसँ थुथुन सटा क’ में-में कर’ लगैत छल। सोनमतिया ओकरा दुलारसँ कोमल घास खुआ दैत छल। छागर फेर सोनमतियाक चारूकात कूद’ फान’ आ मक’ लगैत छल।
आइ सोनमतियाकेँ बेरुक पहर मान-सम्मान होइतैक तैं फुरसति नइं रहितैक। घास नइं अनैत तँ माल-जाल उपास पड़ि जेतैक। तैं खूब भोरे ऊठि क’ घास कर’ चल गेल। छिट्टा भरि घास क’ सबेरे चलो आएल। छिट्टाक घास आँगनमे पटकलक आ सोर कएलक-कहाँ छें रे नुनुआँ!
मुदा नुनुआँ ओकरा लग नइं अएलैक। सोनमतियाकेँ छगुन्ता होअ’ लगलै। एम्हर-ओम्हर ताकि-हेरि क’ ओ बड़की पितिआइनिकेँ जा क’ पुछलकैक-हइ बड़की काकी! नुनुआँकेँ नइं देखै छिअइ। कत’ छ’?
बड़की पितिआइनि तुरछल बोल कहलकै-कत’ छै से हम की जान’ गेलअइ? भोरे तोरे फट्टकमे हुदुक्का मार’ जाइ छौ।
सोनमतिया कननमुँह होइत बाजलि-हम तँ आइ भोरगरे घास कर’ बोन चल गेल छलिअइ।
बड़की पितिआइनि बमछि क’ गारिक त’र कर’ लगलै-गइ धोंछी! निरासी! नेमझानी! समांगडाही! हमरा छागरकेँ अपना क’ खेल-बेल कएले हें, आ पुछै छें नुनुआँ कत’ छ’?
सोनमतियाक जी हदरि गेलै। ओहि ठामसँ घूमि गेल। लोकक बाड़ी-झाड़ीमे ताक’ लागल, ओ जोर-जोरसँ सोर कर’ लागल-कहाँ छें रे नुनुआँ? अर्र, लिह, लिह। अर्र, लिह, लिह...!
बाटमे जैह भेटैक तकरे पूछि दै-नुनुआँकेँ देखलहक अछि?
‘नइं’ उत्तर सूनि निराश भ’ भ’ फेर ताक’ लागए।
इनारमे हुलकी द’ क’ देखलक, कतहु ओहिमे खसि तँ ने पड़लैक। पोखरिमे जा क’ तकलक, डूबि तँ ने गेलै। सोनमतियाक जी हदरल जा रहल छलै। ओ बुकौर लागल स्वरेँ जोर-जोरसँ चिचिआए लागल-कहाँ छें रे नुनुआँ! कहाँ छें रे नुनुआँ!
तकैत-तकैत दुपहर भ’ गेलै। सोनमतिया बेहाल भेल बौआइत रहल। बाटमे अपने टोलक एकटा लोक बाधसँ चल अबैत भेटलैक। ओकरो पुछलकैक-ओम्हर नुनुआँकेँ देखलहक अछि।
ओ कहलकै-गइ सोनमतिया भौजी! रातिखन झोलफलमे मुखियाजीक खास आदमीकेँ तोरा बड़की पितिआइनिसँ गप्प करैत देखने छलियौ। किदन, सै-सैकड़ाक गप्प होइ छलै। कतौ नुनुआँकेँ तोहर पितिआ सासु बेचि तँ ने देलकौ।
सोनमतिया छाती पीटि-पीटि क’ हाक्रोश क’ उठलि।
गाममे धूरा उड़िया रहल छल। मंत्राीजी, एम. पी., एमेले आ आन-आन नेतागण आबि गेल छलाह। मुखिया जीक दलानमे सभक भोजनक व्यवस्था छल। एक बेरमे पचास-साठि गोटे भोजन क’ सकैत छल। पहिल खेपमे मंत्राी जी ओ विशिष्ट लोक भोजन करताह। फेर दोसर-तेसर खेपमे आन-आन लोक खेतै। ओहि ठाम छल कार्यकर्ता आ परसनिहार बारिक सब। बाहरी लोकक प्रवेश वर्जित छल, तैयो बहुतो तमसगीर खरिहानमे आबि क’ जमा भ’ तमासा देखि रहल छल।
भोजनक पाँतीमे, बीचमे मंत्राी जी छलाह। दुनू कात क्षेत्राक एमपी आ एमेले बैसल। फेर आन-आन लोक। मंत्राी जी मुखिया जीकेँ सेहो बैसबाक आग्रह कएलखिन। पाँतीक बीचमे थोड़ेक घुसुक-फुसुक क’ मुखिया जीकेँ सेहो बैसाओल गेल। पात पर भाँति-भाँतिक भोज्य सामग्री परसल गेल-फुलकी, पोलाओ, माछ, माँसु, मधुर दही आ चहटगर तरकारी, अचार, सभक व्यवस्था कएल गेल छल। भोजन आरम्भ भेल। सब खाइत-खाइत विभिन्न वस्तुक प्रशंसा करथि। खास क’ माँसु बड़ स्वादिष्ट बनल छल। मंत्राी, एम. पी., एमेले साहेब आ मुखिया जीक पात पर तरल करेजी अहगरसँ देल गेल छलनि। ओहिमे सँ एक गोटे बजलाह-हे! एहन सोअदगर माँसु तँ आइ धरि कहियो ने खएने छलहुँ...
तावत तमसगीरक पछिला भागसँ एकटा नारी कंठक चीत्कार सून’मे आएल। लोक सभ पाछाँसँ ढनमना-ढनमना क’ खस’ लागल। लोकक भीड़केँ ठेलैत-ठेलैत, छाती पीटैत सोनमतिया आबि रहलि छल। चारि पाँच टा युवक ओकरा पकड़ि क’ रोकबाक चेष्टा कएलक। मुदा सोनमतिया सबकेँ झमाड़ि क’ ठेलि देलक। ओकर फूजल केश उधिया रहल छलै। देह परसँ आँचर खसि क’ नीचाँ-पाछाँ दिस लेटा रहल छलै। ओ अपन उघार छातीकेँ दुनू हाथक तरहत्थीसँ पीटैत चिचियाइत छल-कहाँ छें रे नुनुआँ! कहाँ छें रे नुनुआँ!
सोनमतिया दलानक निचला सीढ़ी लग आबि क’ तराँहि द’ खसलि आ सीढ़ी पर अपन माथ पटक’ लागल। फेर चिचिया क’ विलाप करैत बाज’ लागल-दैबा रे दैबा! डकूबा सब हमर नुनुआँ मारि क’ खा जाइ गेल, रे दैबा! नुनुआँ रे नुनुआँ।
ओ पाँतीमे बैसल लोक सबकेँ अपन उघार छाती देखा क’, पीटैत बाजल-रे रछच्छा सब! हम एही छातीक दूध पिआ क’ नुनुआँकेँ पोसने छलिअइ। एही छातीक दूधसँ नुनुआँक देहक लीधुर आ माँसु बनल छलै। रे रकसबा सब रे रकसबा सब! मनुक्खेक माँसु सवादि क’ खेबाक छलौ तँ अपन बेटाकेँ मारि क’ ओकर कोंढ़-करेज किऐ ने खाइ जाइ गेलैं...।
ओ विलाप कर’ लागल-तोरा मारि... क’... खाइए... गे... ल..., उ... रे...
नू... नू... आँ... अँ... हँ...।
स्तब्ध मंत्राी जीक हाथक कौर हाथमे रहि गेलनि। ओही संग पाँतीमे बैसल लोकक हाथ सेहो रुकि गेलै। दलान आ खरिहानमे करमान लागल कार्यकर्ता आ तमसगीर सब ठकुआएल सोनमतियाकेँ देखि रहल छल-आइ एही प्राणि-माता सोनमती देवीक मान-सम्मान करबा लेल एतेटा आयोजन भेल छल। जकरा दुआरे सोनमतियाक अभिनन्दन होइतैक तकरा लए ओ अहुछिया कटैत छल-कहाँ छें रे नुनुआँ...।

ऽऽऽ

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