भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Monday, July 28, 2008

'विदेह' १५ जून २००८ ( वर्ष १ मास ६ अंक १२ )२.शोध लेखमायानन्द मिश्रक इतिहास बोधप्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे

२.शोध लेख
मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे
श्री मायानान्द मिश्रक जन्म सहरसा जिलाक बनैनिया गाममे 17 अगस्त 1934 ई.केँ भेलन्हि। मैथिलीमे एम.ए. कएलाक बाद किछु दिन ई आकाशवानी पटनाक चौपाल सँ संबद्ध रहलाह । तकरा बाद सहरसा कॉलेजमे मैथिलीक व्याख्याता आ’ विभागाध्यक्ष रहलाह। पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।
मायानन्द मिश्र जीक इतिहास बोध
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे

पुरोहित
पुरोहित हिन्दीमे अछि आऽ शृखलाक तेसर पोथी थीक। दूर्वाक्षत जकरा मायानन्दजी सुविधारूपेँ आशीर्वचन सेहो कहि गेल छथि सँ एकर प्रारम्भ भेल अछि।
पुरोहित केर आरम्भ दूर्वाक्षत आशीर्वचन मंत्रसँ होइत अछि। शुक्ल यजुर्वेदक अध्याय २२ केर मंत्र २२ “ॐ आब्रह्मन…” सँ “नः कल्प्ताम्” धरि अछि। मिथिलामे एहि मंत्रक संग अन्तिममे “ॐ मंत्रार्था सिद्धयः संतु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव”॥ एकर सेहो मंत्रोच्चार होइत अछि, आऽ एहि अन्तिम दू श्लोकसँ ई मंत्र आशीर्वचनक रूप लए लैत अछि। कारण यजुर्वेदीय २२/२२ मंत्र सौसेँ भारतमे देशभक्त्ति गीतक रूपमे मंत्रोच्चारित होइत अछि। तकर बाद लेखकीय प्रस्तावना जकरा पुरोहितमे विनियोगक नाम देल गेल अछि, केर प्रारम्भ होइत अछि। पुरोहित शतपथ ब्राह्मणकालीन समाज पर आधारित अछि।
विनियोगमे पूर्व आऽ उत्तर वैदिक युग, महाभारत काल इत्यादिक काल निर्धारण पर चरचा कएल गेल अछि। संन्यास आऽ मोक्ष धारणाक प्रवेश, सूत्र साहित्य, आरण्यक आऽ उपनिषद आऽ ब्राह्मण ग्रंथक रचनाक सेहो चरचा अछि।कर्मणा केर बदलामे जन्मना सिद्धांतक प्रारम्भ आऽ शूद्र शब्दक उद्भव, नगरक, आहत मुद्राक, उद्योगक सुदृढ़ीकरणक आऽ लोहाक प्रयोगक सेहो चरचा भेल अछि। फेर मायानन्द जी ई लिखि जाइत छथि, जे दाशरज्ञ युद्ध ई.पू. १८०० मे भरत आऽ कुशिक-कस्साइटक सम्मिलित समूह सरस्वती तटसँ व्यास नदी पार करैत इलावृत पर्वत प्रदेश होइत ओऽ लोकनि कोशल मिथिलाक राजतंत्रक, कुरु-पांचालक संस्कृतिक विकसित होएबासँ पूर्वहि, स्थापना कएने छलाह।
पुरोहित तेरह टा सर्गमे विभक्त्त अछि आऽ एकर अन्त उपसंहारसँ होइत अछि। प्रथम सर्ग दक्षिण पांचालक कांपिल्यनगरसँ शुरू होइत अछि। अथर्वणपल्लीक पशुशाला, साँझ होइत देरी उठैत धुँआक चरचा अछि। मेधा आऽ कुशबिन्दुसँ कथा आगू बढ़ैत अछि। ऋषि गालबक आश्रममे ऋगवेदकेँ कंठाग्र कराएल जएबाक आऽ बादमे जाऽ कए कृषि संबंधी शिक्षा देल जएबाक वर्णन अछि।
दोसर सर्गमे राजा प्रवाहण जैबालिक मूर्ख पुत्र द्वारा ब्राह्मणक अपमानक, प्रथम श्रोत्रिय आऽ दोसर पुरोहित ब्राह्मणक वर्णन अछि।
तेसर सर्गमे आचार्य चाक्रायणक अपमानक कारण पुरोहित वर्ग द्वारा पौरहित्य कर्म नहि करबाक निर्णयसँ प्रजाजनक दैनिक अग्निहोत्र कार्य, आऽ बिना लग्नक कृषि आऽ वाणिज्य कार्यमे होय बला भाङठक वर्णन अछि।
चतुर्थ सर्गमे व्यास कथा आऽ भारत युद्धक चर्चा अबैत अछि आऽ एतय मायानन्द जी पाश्चात्य दृष्टिकोणक अनुसरण करैत छथि। जय काव्यकेँ भारत युद्ध कथाक रूप दए देल गेल- ई वक्त्तव्य अनायासहि दए रहल छथि मायानन्द मिश्र।
पाँचम सर्गमे वैश्य द्वारा उपनयन संस्कार छोड़बाक चरचा अछि, मुदा क्षत्रिय पुत्र आऽ पुत्री दुनूक उपनयन करैत छलाह। वैश्य कन्या शिक्षासँ दूर जाऽ रहल छलीह आऽ ब्राह्मण कन्या गुरुकुलक अतिरिक्त पितासँ शिक्षा लए रहल छलीह। ब्राह्मणकेँ पौरहित्यसँ कम समय भेटैत छलन्हि।
छठम सर्गमे ब्राह्मण पुरोहित द्वारा अथर्व वेदकेँ नहि मानबाक चरचा अछि।
सातम सर्गमे अथर्वनपल्लीमे अथर्ववेदीय संस्कारक शिक्षा आऽ प्रथम श्रेणीक ब्राह्मण द्वारा ओतए नहि जएबाक चरचा अछि।
आठम सर्गमे इद्रोत्सवमे रथदौड़, अश्वारोहण, मल्लयुद्ध, असिचालन, लक्ष्यभेद आऽ विलक्षण अनुकृतिक चरचा अछि, आऽ व्यासपल्लीक लोक द्वारा अनुकृति करबाक चरचा अछि। व्यासपल्लीमे व्रात्य करुष भारत युद्धक कथा कहि रहल छलाह। भारत युद्धक बहुत पूर्व भरत, त्रित्सु, किवी आऽ सृंजय मिश्रित जनक आर्यव्त्तमे शूद्र नामसँ सुमेरियाक जियसूद्रक स्मृतिमे अपनाकेँ गौरव देबाक हेतु सूद्र कहबाक वर्णन अछि।
नवम सर्गमे तन्तुवाय द्वारा स्त्री निमित्त वस्त्रमे तटीयता देल जएबाक कारण भेल अन्तरक चरचा अछि, पहिने ई अन्तर नहि छल। अथर्वण आऽ याज्ञिक ब्राह्मणमे भेदक चरचा अछि।
दशम् सर्गमे शिश्नदेवक पूजा अनार्य द्वारा होएबाक आऽ अथर्वण पुरोहित द्वारा एकर अनभिज्ञताक चरचा अछि। व्यासपल्लीमे अक्षर लिपिक प्रयोग आऽ आचार्य गालबक श्रुति आश्रममे अंक लिपिक अतिरिक्त्त किछु अन्य देखब वर्जित होएबाक गप कहल गेल अछि।
एगारहम सर्गमे गालब आश्रममे दण्डनीति पर चरचा निषिद्ध होएबाक बादो दक्षिण पांचालक सभासदक आग्रह पर एतद संबंधी चरचा होएबाक गप अछि। राजा शिलाजित द्वारा राजपद प्रधान पुरोहितकेँ देबाक चरचा अछि।
बारहम सर्गमे भारत युद्धक बाद नियोग प्रथाक अमान्य भऽ बन्द भऽ जएबाक बात अछि। शिश्नदेवक शिवदेवसँ एकाकारक चरचा सेहो अछि।
तेरहम सर्गमेक्रैव्यराजक अभिषेक उत्सवक चरचा अछि। दूर्वाक्षत मंत्रमे
“ॐ मंत्रार्था सिद्धयः संतु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव” आऽ दीर्घायुर्भव केर मेल शुक्ल यजुर्वेदक २२/२२ मंत्रसँ कए दूबि अक्षत लए विशेष लए ताल गति यति मे गएबाक वर्णन अछि। अनुवाद सेहो मायानन्द जी देने छथि, जे ग्रिफिथक अनुवादसँ प्रेरित अछि।
समस्त विश्वमे ब्राह्मण विद्याक तेजक वर्चस्व स्थापित करए बला, सर्वत्र, वाण चएबामे निपुण, निरोगि, महारथी, शूर, यजमान राज्य सभक जन्म होए, सर्वत्र अधिकाधिक दूध दएबाली धेनु होए, शक्तिशाली वृषभ होए, तेजस्वी अश्व होए, रूपवती सध्वी युवती होथि, विजयकामी वीरपुत्र होथि, जखन हम कामना करी पर्जन्य वर्षा देथि, वनस्पतिक विकास होए, औषधि फलवती आऽ सभ प्राणी योगक्षेमसँ प्रसन्न रहथि।राजन शतंजीवी होथि।
क्रैव्यराजक अभिषेकक लेल ई मंत्र हाथमे अक्षत, अरबा, ब्रीहि आऽ दूर्वादल लए आऽ मंत्र समाप्ति पश्चात राजा पर एकरा छीटबाक आऽ फेर दहीक मटकूरीसँ दही लए महाराजक भाल पर एहिसँ तिलक लगएबाक वर्णन अछि। एहि प्रकरणमे मायानन्द जी लिखैत छथि, जे एहि मंत्रक, जकरा मिथिलामे दूर्वाक्षत मंत्र कहल जाइत अछि, रचना याज्ञवल्क्य द्वारा वाजसनेयी संहिताक लेल कएल गेल। एहि मंत्रक उपयोग मिथिलामे उपनयनक अवसर पर बटुकक लेल आऽ विवाहक अवसर पर वर-वधुककेँ आशीर्वचनक रूपमे प्रयुक्त होए लागल।
पुरोहितक अन्त होइत अछि उपसंहारसँ। एतय वर्णित अछि, जे काशीक रस्ताक अनार्य ग्रामक आर्यीकरण भेल आऽ व्रात्यष्टोम यज्ञ भेल। शिश्नदेवाः पर चरचा अछि, शुनःशेष आख्याण आऽ भारत कथाक कहबाक परम्पराक प्रारम्भ आऽ मगध् द्वारा आर्य धर्मक प्रति वितृष्णाक चर्च सेहो अछि।
(अनुवर्तते)

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