भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Friday, July 18, 2008

'विदेह' १ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १३ ) भाग १http://www.videha.co.in/



'विदेह' १ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १३ )
http://www.videha.co.in/

एहि अंकमे अछि:-
श्री रामाश्रय झा 'रामरंग' (१९२८- ) प्रसिद्ध ' अभिनव भातखण्डे' केर जीवन आऽ कृतिक विषयमे विस्तृत निबंधक अगिला भाग विदेहक संगीत शिक्षा स्तंभमे।
संपादकीय संदेश: (एतय साहित्य अकादमी सभागारमे २७ जून २००८ केँ भेल कवि सम्मेलन पर रिपोर्ताज पढ़ू।)
१.नो एंट्री: मा प्रविश श्री उदय नारायण सिंह 'नचिकेता'
मैथिली साहित्यक सुप्रसिद्ध प्रयोगधर्मी नाटककार श्री नचिकेताजीक टटका नाटक, जे विगत २५ वर्षक मौनभंगक पश्चात् पाठकक सम्मुख प्रस्तुत भ' रहल अछि। सर्वप्रथम विदेहमे एकरा धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित कएल जा रहल अछि। पढ़ू नाटकक तेसर कल्लोलक दोसर खेप।
२. शोध लेख: मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आगाँ)
३. उपन्यास सहस्रबाढ़नि (आगाँ)
४. महाकाव्य महाभारत (आगाँ)
५. कथा -
गजेन्द्र ठाकुर- पहरराति
६. पद्य
अ. विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी,
आ. श्री गंगेश गुंजन
इ.ज्योति झा चौधरी आऽ
ई. गजेन्द्र ठाकुर शैलेन्द्र मोहन झा
७. संस्कृत मैथिली शिक्षा(आगाँ)
८. मिथिला कला(आगाँ)
९.पाबनि-संस्कार- तीर्थ - पंचदेवोपासक भूमि मिथिला--डॉ प्रफुल्ल कुमार सिंह ’मौन’
१०. संगीत शिक्षा -श्री रामाश्रय झा 'रामरंग'
११. बालानां कृते- १.कौआ आऽ फुद्दी २. देवीजी (भाग दू)
१२. पञ्जी प्रबंध (आगाँ) पञ्जी-संग्राहक श्री विद्यानंद झा पञ्जीकार (प्रसिद्ध मोहनजी )
१३. संस्कृत मिथिला
१४. पोथी समीक्षा: पंकज पराशर: समयकेँ अकानैत
१५.मैथिली भाषापाक
१६. रचना लेखन (आगाँ)
17. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS -Videha Mithila Tirbhukti Tirhut...
महत्त्वपूर्ण सूचना:(१) विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे नवम अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ' रहल अछि।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(२) 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर मैथिली-अंग्रेजी आऽ अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश (संपादक गजेन्द्र ठाकुर आऽ नागेन्द्र कुमार झा) प्रकाशित करबाओल जा' रहल अछि। प्रकाशकक, प्रकाशन तिथिक, पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(३) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक 'सहस्रबाढ़नि'(उपन्यास), 'गल्प-गुच्छ'(कथा संग्रह) , 'भालसरि' (पद्य संग्रह), 'बालानां कृते', 'एकाङ्की संग्रह', 'महाभारत' 'बुद्ध चरित' (महाकाव्य)आऽ 'यात्रा वृत्तांत' विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे प्रकाशित होएत। प्रकाशकक, प्रकाशन तिथिक, पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना (४): श्री आद्याचरण झा, श्री मैथिली पुत्र प्रदीप, श्री प्रफुल्ल कुमार सिंह 'मौन' , श्री प्रेमशंकर सिंह, श्रीमति विभा रानी, श्री कैलाश कुमार मिश्र (इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र), श्री श्याम प्रकाश झा आऽ डॉ. श्री शिव प्रसाद यादव जीक सम्मति आयल अछि आऽ हिनकर सभक रचना अगिला १-२ अंकक बादसँ 'विदेह' मे ई-प्रकाशित होमय लागत।
विदेह (दिनांक १ जुलाई २००८)
१.संपादकीय २.संदेश
१.संपादकीय वर्ष: १ मास: ७ अंक:१३
मान्यवर,
विदेहक नव अंक (अंक १३ दिनांक १ जुलाई २००८) ई पब्लिश भ’ रहल अछि। एहि हेतु लॉग ऑन करू http://www.videha.co.in | आब एकटा सूचना।

२७ जून २००८ केँ साहित्य अकादमी, नई दिल्लीक सभागारमे मैथिली कवि सम्मेलनमे अएबाक नोत विदितजी द्वारा भेटल, से ओतए साँझ छह बजे पहुँचलहुँ। हॉलक सभटा कुर्सी भरल छल, हम आऽ कैमरामेन दू गोटे छलहुँ। नजरि घुमेलहुँ तँ एकटा कुर्सी खाली छल, से कैमरामेनकेँ विदा कए स्वयं कैमरा लए ओतए बैसि गेलहुँ।
अमरनाथ माइक पकड़ि घोषणा उद्घोषणा कए रहल छलाह, लागल जेना अशोक चक्रधर हिन्दी छोड़ि मैथिली बाजि रहल छथि। सभसँ पहिने संजीव तमन्ना जीकेँ काव्य-पाठक लेल बजाओल गेल। ओऽ “पीयर पोस्टकार्” शीर्षक कविताक पाठ कएलन्हि। ताहि पर उद्घोषक टीप देलखिन्ह जे एहि मोबाइलक युगमे पोस्टकार्डक एतेक चरचा पर डाक विभाग हुनका धन्यवाद देतन्हि। फेर उद्घोषणा भेल जे पंकज पराशरजी अपन कविताक पाठ करताह, मुदा ओऽ तावत धरि पहुँचल नहि छलाह, मुदा वीडियोमे बादमे देखलहुँ जे ओऽ आयल रहथि, मुदा प्रयः कतहु एम्हर-ओम्हर चलि गेल रहथि।
से रमण कुमार सिंहजी केँ बजाओल गेल। ओल्ड होममे वृद्ध आऽ एना किएक होइत छैक लोक शीर्षक पद्य सुनओलन्हि रमण जी।
फेर श्रीमति सुनीता झाकेँ ब्रजेन्द्र त्रिपाठी जीक विशेष अनुरोध पर बजाओल गेल।
ओऽ अपन कविता निवेदन मिथिला आऽ भारत देश महान पर सुनओलन्हि। संगे ईहो कहलीह जे ई प्रथम अवसर छन्हि हुनका लेल मंच पर पद्य पाठ करबाक।
फेर मंजर सुलेमान पढ़लन्हि, मोन पड़ैत अछि गाम, आऽ अविनाशजी पढ़लन्हि विद्यापति स्मृति समारोहक उपलक्षमे दू टा कविता- ई हुनकर ब्लॉग पर सेहो बहुत दिनसँ अछि।
कामिनी कामायनीकेँ गाम मोन पड़लन्हि आऽ विस्थापित लोक सेहो।
बिलट पासवान ’विहंगम’ जी जौँ पुछू तँ सभसँ बेशी प्रभावी रहथि, कारण ओऽ देखि कए नहि पढ़लन्हि।
तावत पकसज पराशर जी आबि गेल छलाह, आऽ ओऽ “समयकेँ अकानैत” जे हुनकर पहिल पद्य संग्रह छन्हि, सँ ”हम परिनाम निरासा’ शीर्षक पद्य पढ़लन्हि। हुनका एक बेर फेर आबय पड़लन्हि विहंगमजीक विशेष अनुरोध पर “महापात्र” शीर्षक रचना पढ़बाक लेल। ’विदेह’ केर एहि अंकसँ ’समय केँ अकानैत’ पोथीक समीक्षा/ परिचय देल जा रहल अछि।
धीरेन्द्र कुमार मिश्र महोदय एकटा पद्य पढ़लन्हि, दोसर पद्यक सस्वर पाठ करबाक अनुमति माँगि रहल छलाह, मुदा उद्घोषक जी समयाभावक कारणेँ से अनुमति नहि देलखिन्ह आऽ प्रभात झा, मध्य प्रदेशसँ राज्यसभा सांसद, मुख्य अतिथिकेँ पद्य पाठक लेल आमंत्रण देलन्हि। मुदा ओऽ तावत धरि पहुँचल नहि छलाह, बादमे जखन पहुँचलाह तँ कहलखिन्ह जे ओऽ कविता नहि लिखैत छथि, हिन्दी गद्य लिखैत छथि। हुनका एतए अएबाक छलन्हि दू टा किताबक लोकार्पण करबाक हेतु, मैथिलीमे “इतिहास” दर्शन- लेखिका वीणा ठाकुर आऽ हिन्दीमे के.बी. प्रसादक “दुर्योधन के रहते कहीं महाभारत रुका है” पद्य संग्रहक।
फेर देवशंकर नवीन जी अएलाह। ओऽ हिन्दे, मैथिली आऽ अन्य भाषाक कवि सम्मेलनक चर्च कएलन्हि आऽ कहलन्हि जे एतेक बेशी मात्रामे श्रोता-दर्शकक उपस्थिति विलक्षण अछि, कारण पहिने जे ओऽ विभिन्न प्रदेशमे एहि तरहक आयोजन कएने रहथि ओतए संस्था अपन दस टा लोककेँ बैसा कए कुरसी भड़ैत छल। प्रभात झा जाधरि पहुँचितथि तावत रमण कुमार सिंह आऽ अविनाश जीकेँ दोसर राउन्डक लेल बजाओल गेल।
फेर विदित जी पद्य पाठक लेल पहुँचलाह, मुदा यावत शुरू करितथि तावत प्रभात झाजी आबि गेलाह से ओऽ उतरि कए हुनकर स्वागत कएलन्हि। विदित जी मैथिलीमे दैनिक ’मैथिली समाद’ केर कोलकातासँ ताराकान्त झा द्वारा अगस्तसँ शुरू कएल जएबाक शुभ सूचना सेहो देलन्हि आऽ पद्य पाठ सेहो कएलन्हि।
फेर प्रभात जी अपन संस्मरण सुनओलन्हि आऽ दुनू पुस्तकक लोपार्पण भेल।
चित्रकार सचिन्द्रनाथ झा द्वारा श्री प्रभात झा आऽ श्रे विदित जीकेँ विद्यापतिक चित्र प्रदान कएल गेल, एहि चित्रमे बैकग्राउन्डमे मिथिला चित्रकलाक योग सेहो देल गेल छल। विदित जी प्रसन्न छलाह एहि सफल आयोजनसँ, जखन हम बधाइ देलियन्हि तँ कहलन्हि जे मैथिली आब रोड पर आयत, कोठलीमे नहि रहत।
एहि अंकमे नचिकेताजीक नाटक नो एंट्री: मा प्रविश तेसर कल्लोलक दोसर खेप ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि। गगे श गुंजन जीक पद्य आऽ विस्मृत कवि रामजी चौधरीक अप्रकाशित पद्य सेहो ई-प्रकाशित भए रहल अछि।
शेष स्थायी स्तंभ यथावत अछि।
अपनेक रचना आऽ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे। वरिष्ठ रचनाकार अपन रचना हस्तलिखित रूपमे सेहो नीचाँ लिखल पता पर पठा सकैत छथि।
गजेन्द्र ठाकुर
३८९, पॉकेट-सी, सेक्टर-ए, बसन्तकुंज,नव देहली-११००७०.फैक्स:०११-४१७७१७२५
ggajendra@videha.co.in ggajendra@yahoo.co.in
२.संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- "विदेह" ई जर्नल देखल। सूचना प्रौद्योगिकी केर उपयोग मैथिलीक हेतु कएल ई स्तुत्य प्रयास अछि। देवनागरीमे टाइप करबामे एहि ६५ वर्षक उमरिमे कष्ट होइत अछि, देवनागरी टाइप करबामे मदति देनाइ सम्पादक, "विदेह" केर सेहो दायित्व।
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आऽ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/आर्काइवक/अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आ’ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ’ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
१. नाटक
श्री उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ जन्म-१९५१ ई. कलकत्तामे। १९६६ मे १५ वर्षक उम्रमे पहिल काव्य संग्रह ‘कवयो वदन्ति’। १९७१ ‘अमृतस्य पुत्राः’ (कविता संकलन) आऽ ‘नायकक नाम जीवन’ (नाटक)| १९७४ मे ‘एक छल राजा’/ ’नाटकक लेल’ (नाटक)। १९७६-७७ ‘प्रत्यावर्त्तन’/ ’रामलीला’(नाटक)। १९७८मे जनक आऽ अन्य एकांकी। १९८१ ‘अनुत्तरण’(कविता-संकलन)। १९८८ ‘प्रियंवदा’ (नाटिका)। १९९७-‘रवीन्द्रनाथक बाल-साहित्य’(अनुवाद)। १९९८ ‘अनुकृति’- आधुनिक मैथिली कविताक बंगलामे अनुवाद, संगहि बंगलामे दूटा कविता संकलन। १९९९ ‘अश्रु ओ परिहास’। २००२ ‘खाम खेयाली’। २००६मे ‘मध्यमपुरुष एकवचन’(कविता संग्रह। भाषा-विज्ञानक क्षेत्रमे दसटा पोथी आऽ दू सयसँ बेशी शोध-पत्र प्रकाशित। १४ टा पी.एच.डी. आऽ २९ टा एम.फिल. शोध-कर्मक दिशा निर्देश। बड़ौदा, सूरत, दिल्ली आऽ हैदराबाद वि.वि.मे अध्यापन। संप्रति निदेशक, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर।
नो एंट्री : मा प्रविश
(चारि-अंकीय मैथिली नाटक)
नाटककार उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ निदेशक, केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर
(मैथिली साहित्यक सुप्रसिद्ध प्रयोगधर्मी नाटककार श्री नचिकेताजीक टटका नाटक, जे विगत २५ वर्षक मौन भंगक पश्चात् पाठकक सम्मुख प्रस्तुत भ’ रहल अछि।)
तेसर कल्लोलक दोसर खेप जारी....विदेहक एहि तेरहम अंक 01 जुलाई २००८ सँ।
नो एंट्री : मा प्रविश

तेसर कल्लोल दोसर खेप

[ई बात कहैत देरी जेना ‘भगदड़’ मचि जाइत अछि आ पुनः सब क्यो कुर्सी पर सँ उठि-उठि के कतार मे जुटि जैबाक प्रयास करैत छथि। क्यो-क्यो सबटा कुर्सी केँ तह लगैबाक प्रयास करैत अछि त’ क्यो सबटाकेँ मंचक एक कात हँटा कए कतारक लेल जगह बनैबा मे जुटि जाइत अछि....क्यो हल्ला - गुल्ला आरंभ क’ दैत छथि। नेताजी माईक पर सँ “हे, सुनै जाउ” “शांत भ’ जाउ” आदि कहै छथि, मुदा हुनकर बात सभक हल्ला - गुल्ला मे जेना डूबि जाइत छनि। दुनू अनुचर नेताजीक देखा-देखी कैक गोटे केँ समझाबै - बुझाबैक प्रयास करै छथि, मुदा क्यो नहि तैयार छथि हिनका दुनूक बात मानै लेल। कनेके देर मे मंच पर सँ सब किछु हँटि जाइत अछि आ पुनः एकटा कतार बनि जाइत अछि..... पुनः प्रथमे दृश्य जकाँ कतहु-कतहु जेना संघर्ष चलि रहल होइक गुप्त रूप सँ। भाषणक मंच पर मात्र तीन गोटे छथि—बीच मे अभिनेता, बामा दिसि वामपंथी युवा, आ अभिनेताक दक्षिण दिसि बदरी बाबू.... चारू मृत सैनिक पुनः कतारक लग ठाढ़ छथि। मात्र रमणी- मोहन, महिला आ चोर छथि मंचक बीचो-बीच, सबटा अवाक् भ’ कए देखैत।]

महिला : (चोर सँ) हे, अहाँ सभक एत’ ‘लेडीज’ सभक लेल अलग ‘क्यू’ नहि होइ छैक ?
चोर : अलग ‘क्यू’ ?
रमणी-मोहन : हँ-हँ, कियै नञि ? अहाँ की एकरा सभक संग धक्का-मुक्की करब ? (महिलाक हाथ ध’ कए) आउने—(एकटा पृथक क्यू बनबैत) अहाँ एत’ ठाढ़ भ’ जाउ वी.आई.पी. क्यू थिकै... जेना मंदिर मे नञि होइ छइ ?
चोर : वी. आइ. पी.... एतहु ?
वामपंथी : (भाषण मंच पर सँ उतरैत छथि) बात त’ ई ठीके बजलाह।
अभिनेता : (अधिकतर फुर्ती देखबैत वी.आई.पी. क्यू मे ठाढ़ होइत) ई त’ पृथ्वीक मनुक्खक लेल नव बात नहिये थिक... (चोरसँ) तैं एहिमे आश्चर्य कियै भ’ रहल छह ?

[तावत नेता, हुनक दुनू अनुचर आ वामपंथी युवा मे जेना स्पर्धा भ’ रहल होइक जे के, वी. आई.पी. क्यू मे पहिने ठाढ़ हैताह। एकटा अनुचर रमणी-मोहनकेँ पकड़ि कए “हे ...अहाँ ओत’ कोना ठाढ़ छी”? कहैत वी. आई. पी. क्यू केर पाछाँ आनि कए ठाढ़ क’ दैत छथि। अभिनेता आ महिला आपस मे गप-शप आ हँसी मजाक करै लागैत छथि। रमणी-मोहन मूड़ी झुकौने क्यू केर अंत मे ठाढ़ रहैत छथि। वामपंथी युवा छलाह अभिनेताक पाछाँ ठाढ़, हुनकर पाछाँ बदरी बाबू आ एकटा अनुचर—जे बदरी बाबूक हाथ आ पीठ मे आराम द’ रहल छल। आ दोसर अनुचर ठीक क’ नेने छल- अपनहि मोने जे दोसर क्यू –साधारण मनुक्ख बाला- तकर देख-रेखक दायित्व तकरे पर छैक। तैं ओहि क्यू मे असंतोष आ छोट-मोट झगड़ा केँ डाँटि-डपटि कए ठीक क’ रहल छल। आ हठात् मंच पर एहि विशाल परिवर्तनक दिसि अवाक भ’ कए देखैत चोर कोनो क्यू मे ठाढ़ नहि रहि कए भाषण-मंचक पासे सँ दुनू कतार दिसि देखि रहल छल।
यम आ पाछू-पाछू चित्रगुप्त प्रवेश करैत छथि। युवक हाथमे एकटा दंड आ माथ पर मुकुट, परिधेय छलनि राजकीय, हाव-भाव सँ दुनू कतार मे जेना एकटा खलबली मचि जाइत अछि। कतेको गोटे “हे आबि गेलाह” वैह छथि, “हे इयैह त’ थिकाह !” आदि सुनल जा रहल छल। चित्रगुप्तक हाथमे एकटा मोट पोथा छलनि जे खोलि-खोलि कए नाम-धाम मिला लेबाक आदति छलनि हुनकर। यमराज प्रविष्ट भ’ कए सर्वप्रथम साधारण मनुक्खक कतार दिसि देखैत छथि आ जेना एक मुहूर्तक लेल ओत’ थम्हैत छथि। सब क्यो शांत भ’ जाइत अछि- सभक बोलती बंद—जे अनुचर कतार केँ ठीक क’ रहल छल—ओहो साधारण मनुक्खक कतारक आगाँ दिसि कतहु उचक्के लग घुसिया कए ठाढ़ भ’ जाइत अछि। यमराज पुनः आगाँ बढ़ैत छथि त’ वी. आई. पी. कतारक पास आबै छथि—ओत’ ठाढ़ सब गोटे हुनका नमस्कार करैत छथि। वामपंथी युवा अभिनेता सँ पूछैत छथि “ई के थिकाह ?” उत्तर मे अभिनेता जो किछु कहैत छथि से पूर्ण रूपसँ स्पष्ट त’ नहि होइछ मुदा दबले स्वरेँ बाजै छथि “चिन्हलहुँ नहि ? “ईयैह त’ छथि यमराज !” वामपंथी युवा घबड़ा कए एकटा लाल सलाम ठोकि दैत छथि आ पुनः नमस्कार सहो करै लागैत छथि। यमराज हिनकर सभक उपेक्षा करैत चोरक लग चलि आबै छथि भाषण मंचक लग मे।]

यमराज : (चोर सँ) अहाँ एतय कियै छी महात्मन् ! (हुनक एहि बात पर, विषेशतया ‘महात्मन् !’ एहि संबोधन सँ जेना दुनू कतार मे खलबली मचि जाइत अछि। एतबा धरि जे चारू मृत सैनिक सँ ल’ कए सब क्यो एक दोसरा सँ पूछै लागैत छथि....“महात्मन् ?” “महात्मा कियैक कहलाह ई ?” “ई सत्ये महात्मा थिकाह की ?” “ई की कहि रहल छथि ? ” त’ क्यो-क्यो उत्तर मे… “पता नहि !” ने जानि कियैक...। भ’ सकैछ… आदि,आदि बाजै लागैत छथि। परिवेश जेना अशांत भ’ जाइत अछि यमराज असंतुष्ट भ’ जाइत छथि) आ ! की हल्ला करै जाइ छी सब ? देखि नहि रहल छी जे हिनका सँ बात क’ रहल छी ? (हुनकर डाँट सुनि दुनू अनुचर ठोर पर आङुर धैने “श्-श्-श्-श् !” आदि कहैत सब केँ चुप कराबैत अछि। हठात् जेना खलबली मचल छलैक तहिना सब क्यो चुपचाप भ’ जाइत छथि।)
चोर : (विह्वल भ’ कए) महाराज !
यमराज : (चोर दिसि घुरैत) हूँ त’ हम की कहि रहल छलहुँ ? (उत्तरक अपेक्षा छनि चित्रगुप्त सँ)
चित्रगुप्त : प्रभु, अपने हिनका सँ आगमनक कारण पूछि रहल छलियनि...
यमराज : (मोन पड़ैत छनि) हँ ! हम कहै छलहुँ (चोर सँ) अहाँ एत’ कियैक ?
चोर : (घबड़ाइत) नञि महाराज, हम त’ कतारे मे छलहुँ....सब सँ पाछाँ... ओ त’ एत’ राजनीति केर बात चलि रहल छल ... आ नेताजी लोकनि आबि गेल छलाह तैं....
यमराज : (आश्चर्य होइत) ‘राजनीति’? ‘नेताजी’? माने ?

(नेताजी घबड़ाबैत गला खखारैत कतार सँ बहिरा कए आगाँ आबि जाइत छथि। पाछाँ-पाछाँ थरथरबैत दुनू अनुचर सेहो ठाड़ भ’ जाइत छथि।)
नेता : (बाजबाक प्रयास करैत छथि साहस क’ कए मुदा गला सँ बोली नहि निकलैत छनि) जी… हम छी ‘बदरी-विशाल’!
चोर : इयैह भेला नेताजी !
(तावत वामपंथी युवा सेहो अगुआ आबै छथि।) आ ईहो छथि नेताजी--- मुदा रंमे कने लाल !
चित्रगुप्त : (मुस्की लैत) हिनकर रंग लाल त’ हुनकर ?
(नेताजी केँ देखाबैत छथि)
चोर : ओ त’ कहैत छथि ‘हरियर’ मुदा...
चित्रगुप्त : (जेना सत्ये जानै चाहै छथि) मुदा ?
चोर : जे निन्दा करै छइ से कहै छइ रंग छनि ‘कारी’!
नेता : नञि, नञि....हम बिल्कुल साफ छी, महाराज, बिल्कुल सफेद....
वामपंथी : (तिर्यक दृष्टिएँ नेता केँ दैखैत) ने ‘हरियर’ छथि आ नञि ‘कार’.... मुदा छनि हिनकहि सरकार ! (अंतिम शब्द पर जोर दैत छथि नेताजी क्रोधक अभिव्यक्ति केँ गीड़ि जाइत छथि)
चित्रगुप्त : बुझलहुँ—ई छथि नेता सरकार, अर्थात् ‘नायक’ आ (अभिनेता केँ देखा) ई छथि ‘अभिनेता’ अर्थात् ‘अधिनायक’ आओर अहाँ छी....
नेता : (वाक्य केँ समाप्त नहि होमै दैत छथि) खलनायक !
(यमराज केँ छोड़ि सभ क्यो हँसि दैत छथि हँसीक धारा कम होइत बंद भ’ जाइत अछि जखन यमराज अपन दंड उठा इशारा करैत छथि सब शांत भ’ जाइत छथि।)
यमराज : (आवाज कम नहि भेल अछि से देखि) देखि रहल छी सब क्यो जुटल छी एत’—नेता सँ ल’ कए अनु-नेता धरि...
चोर : उपनेता, छरनेता, परनेता - सब क्यो !
यमराज : मुदा ई नहि स्पष्ट अछि जे ओ सभ कतार मे ठाढ़ भ’ कए एना धक्का-मुक्की कियै क’ रहल छथि।
अनुचर 1 : (जा कए घेंट पकड़ि कए पॉकिट-मार केँ ल’ आनैत छथि—पाछाँ-पाछाँ उचक्का अहिना चलि आबैत अछि) हे हौ ! बताबह-- कियैक धक्का-मुक्की क’ रहल छह ?
पॉकिट-मार : हम कत’ धक्का द’ रहल छलहुँ, हमरे पर त’ सब क्यो गरजैत-बरसैत अछि।
[तावत यमराज (अपन चश्मा पहिरि कए) चित्रगुप्तक खाता केँ उल्टा-पुल्टा कए दैखै चाहैत छथि—अनुचर दुनू भाग- दौड़ कए कतहुँ सँ एकटा ऊँच टूल आनि दैत छथि । टूल केँ मंचक बाम दिसि राखल जाइछ, ताहिपर विशालाकार रजिष्टर केँ राखि कए यमराज देखब शुरू करै छथि। नंदी-भृंगी अगुआ कए हुनक सहायताक लेल दुनू बगल ठाढ़ भ’ जाइत छथि—अनुचर-दुनू केँ पाछाँ दिसि धकेलि कए। नहि त’ अनुचर द्वय केँ मोन छलैक रजिष्टर मे झाँकि कए देखी जे भाग मे की लिखल अछि। मुदा धक्का खा कए अपन सन मुँह बनबैत पुनः नेताजीक दुनू दिसि जा कए ठाढ़ भ’ जाइत छथि। यमराज अपन काज करै लागैत छथि। हुनका कोनो दिसि ध्यान नहि छनि। नंदी अपन जेब सँ एकटा तह लगायल अथवा ‘रोल’ कैल कागज केँ खोलैत छथि आ जेना अपनहि तीनू मे एक-एक क’ कए नाम पढ़ि रहल छथि एत’ उपस्थित लोग सभक आ भृंगी रजिष्टरक पन्ना उल्टाबैत वर्णानुक्रमक अनुसार ओ नाम खोलि कए बहार करैत छथि—तखन यमराज ‘रिकार्ड’ केँ पढ़ै छथि, हिनका तीनू केँ आन कोनो दिसि ध्यान नहि छनि।]

चित्रगुप्त : मुदा ई त’ बताऊ- ओना ओत’ कतार बना कए ठाढ़ कियै छी ?
पॉकिट-मार : हुजूर स्वर्ग जाय चाहै छी....
उचक्का : ई ! लुच्चा नहितन, मोन भेल त’ ‘चलल मुरारी हीरो बनय’.... स्वर्ग जैताह...मुँह त’ देखू !
चित्रगुप्त : (थम्हबैत) जाय दियन्हु हिनकर बात... मुदा ई बताऊ—एत’ कतारक तात्पर्य की ?
चोर : नञि बुझलहुँ...कतार लगायब त’ हमर सभक आदतिये बनि गेल अछि..
पॉकिट-मार : (उचक्का दिसि दैखबैत) आ कतार तोड़ब सेहो....
नेताजी : (जेना आब फुरलनि) ई सब त’ हमर सभक सभ्य समाजक नियमे बनि गेल अछि... धीरज धरी, अपन बेरी आबय तखने अहाँ केँ सेवा भेटत...
अनुचर 1 : चाहे ओ रेलक टिकट हो...
अनुचर 2 : चाहे बिजली-पानिक बिल...
चोर : कतहु फोन करू त’ कहत “अब आप क्यू में हैं”... आ कि बस बाजा बजबै लागत... (पॉकिट-मार टेलिफोनक ‘कॉल होल्डिंग’ क कोनो सुर केँ मुँह सँ बजा दैत छथि।)
चित्रगुप्त : मुदा एत’ कोन सेवाक अपेक्षा छल ?
नेताजी : माने ?
चोर : नञि बुझलियैक ?
अनुचर 1 : अहाँ बुझल ?
अनुचर 2 : जेना ई सब बात बुझै छथि !
चोर : सब बात त’ नहिये बुझै छी—मुदा ई पूछि रहल छथि, एत’ कोन लड्डू लेल कतार मे ठाढ़ छी अहाँ सभ ?
चित्रगुप्त : हम सैह जानै चाहै छलहुँ... कोन बातक प्रतीक्षा करै छलाह ई सब गोटे ?
चोर : (अनुचर 1 केँ) अहाँ बताउ ने कियैक ठाढ़ छलहुँ ?
अनुचर 1 : (तोतराबै लागै छथि) हम..माने...
चोर : (अनुचर 2 सँ) अच्छा त’ अहीं बताउ.... कथी लेल ठाढ़ छी एत’ क्यू मे...?
अनुचर 2 : सब क्यो ठाढ़ छथि तँ हमहूँ ...
अनुचर 1 : हमर सभक महान नेता बदरी बाबू जखन कतार मे ठाढ़ रहि कए प्रतीक्षा क’ सकै छथि, तखन हम सब कियैक नहि ?
चित्रगुप्त : (हुनक बात केँ समाप्त होमै नहि द’ कए) मुदा प्रतीक्षा कथीक छलनि ?
चोर : किनकर प्रतीक्षा ?...सेहो कहि सकै छी !
पॉकिट-मार : ई सब त’ कहै छलाह—रंभा—संभा...
चोर : (हँसैत) धत् ! मेनका रंभा, उर्वशी...(हँसैत छथि)
चित्रगुप्त : ओ ! त’ प्रतीक्षा करै छलहुँ कखन दरबज्जा खुजत आ
अप्सरा सबटा अयतीह ? (हँसैत छथि।)
नेता : (प्रतिवादक स्वरमे) नहि-नहि... हम सब त’ इयैह प्रतीक्षा क’ रहल छलहुँ जे...
अनुचर 1 : .....कखन अपने लोकनि आयब...
अनुचर 2 : .....आ कखन स्वर्गक द्वार खुजत....
नेता : आ कखन ओ घड़ी आओत जखन हम सब स्वर्ग जा’ सकब !

[कहैत-कहैत मंचक परिवेश स्वपनिल बनि गेल आ कैकटा नृत्यांगना/अप्सरा नाचैत-गाबैत मंच पर आबि जाइत छथि.... नृत्य-गीतक संगहि धीरे-धीरे अन्हार भ’ जाइछ।]
(क्रमश:)

२.शोध लेख
मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे
श्री मायानान्द मिश्रक जन्म सहरसा जिलाक बनैनिया गाममे 17 अगस्त 1934 ई.केँ भेलन्हि। मैथिलीमे एम.ए. कएलाक बाद किछु दिन ई आकाशवानी पटनाक चौपाल सँ संबद्ध रहलाह । तकरा बाद सहरसा कॉलेजमे मैथिलीक व्याख्याता आ’ विभागाध्यक्ष रहलाह। पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।
मायानन्द मिश्र जीक इतिहास बोध
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे

पुरोहित
मायानन्दजी महाभारतक समस्याक समाधानमे सेहो पाश्चात्य विचारक लोकनिक अनुसरण करैत बुझना जाइत छथि। प्रोफेसर वेबर पहिल बेर एहि सिद्धांतकेँ लए कए आयल छलाह। ओऽ अपन विचार व्यक्त कएने छलाह जे ८८०० पद्यक जय संहिता छल आऽ पहिने युद्ध पर्व (१८ पर्व मे चारि पर्व भीष्म, द्रोण, कर्ण आऽ शल्य पर्व) मात्र छल। ओकर आधार ओऽ बनेने छलाह एकटा श्लोककेँ-
अष्टौश्लोक सहस्राणि..... अहं वेद्मि शुको वेत्ति सञ्जयो वेत्ति वा न वा

संजय, व्यास आऽ शुक तीनू गोटे ८८००-८८०० प्रत्येक कए भारतक श्लोक मात्र यादि कए सकल छलाह। माने भारत एतेक विशाल छल जे प्रत्येक गोटे सम्पूर्ण यादि नहि कए सकल छलाह, आऽ ताहि दृष्टिसँ भारत कहियो २६४०० श्लोकसँ कम नहि छल, जकरा व्यास लिखने छलाह। जय संहिता भारत आऽ महाभारत दुनूकेँ कहल जाइत छैक। युद्ध पर्व (१८ पर्व मे चारि पर्व भीष्म, द्रोण, कर्ण आऽ शल्य पर्व) तेना नञि परस्पर पुरान पर्व सभसँ जुड़ल अछि, जे बिना पछिला पर्व पढ़ने अगिलाक कोनो भाँज नहि लगैत छैक। इलियडक युद्ध १० साल धरि चलल छल, आऽ इलियड मात्र ट्रॉयक घेरा धरि सीमित छल, मुदा महाभारत बहुत पहिने सँ १८ दिनुका युद्धक कारणसँ शुरु होइत अछि।भीष्म पर्व छठम पर्व अछि, द्रोण पर्व सातम, कर्ण पर्व आठम आऽ शल्य पर्व नवम। तकरा बाद ९ टा पर्व आर अछि।
किएक तँ कैक बैसारीमे महाभारत केर पाठ सुनाओल जाइत छल ताहि द्वारे ई स्वाभाविक अछि जे पुरान पाठ सभ जे भए चुकल छल केर फेरसँ पुनःस्मरण बेर-बेर कएल जाइत छल। ताहिसँ ई अर्थ निकालब जे ई क्षेपक अछि, अनर्गल होयत। तहिना गीता सेहो पाश्चात्य विद्वान लोकनिक लेल क्षेपक अछि कारण ओऽ लोकनि भारतीय संस्कृति, साहित्य आऽ कलाक अनुभव विदेशी मानसिकतासँ करबाक कारण गलती करैत छथि। विदेशी विद्वान ई मानबामे कष्ट अनुभव करैत छथि जे महाभारत ओतेक पुरान भेलाक बादो ओतेक वृहत् अछि, आऽ इलियड ओकर सोझाँ किछु नहि अछि। से एक गोट पद्यक वेबर द्वारा कएल गेल मिथ्या व्याख्याक आधार पर जय संहिता केर संकल्पना आयल। मात्र भारत आऽ महाभारत केर रूपमे एहि महाकाव्यक विकासकेँ बिना कोनो कारणसँ जय संहिता, भारत आऽ महाभारत रूपी तीन चरणमे प्रस्तुत कएल गेल। महाभारत केर सभसँ छोट रूपमे सेहो २४६०० सँ कम श्लोक नहि छल, आऽ जय संहिता भारत आऽ महाभारतकेँ सम्मिलित रूपसँ कहल जाइत छल।

स्त्रीधन
(अनुवर्तते)


३.उपन्यास
सहस्रबाढ़नि -गजेन्द्र ठाकुर

एहि घटनाक चरचा बहुत दिन धरि होइत रहल। नन्दक आदर अपन नीचाँक कर्मचारीक बीच एहि घटनासँ बढ़ि गेल छलन्हि, मुदा आब ठिकेदार आऽ अभियन्ता लोकनिक बीच नन्द रावण बनि गेल छलाह।
सभ टा चीज ठीक-ठाक चलि रहल छल। नन्दक बच्चा सभ गणित आऽ विज्ञानक अंकगणितीय प्रश्न सभ जनबरीसँ मार्च धरि बना लैत छलन्हि। मुदा घरक सभ काज किएक तँ नन्द स्वयं कए लैत छलाह, नन्दक बच्चा सभ स्कूल गेनाइ आऽ घर अएनाइक अतिरिक्त्त बाहरी दुनियासँ अनभिज्ञ छलाह। कतओ घुमए जाथि तँ नन्दक संगे, एक तरहेँ बुझू जे नन्दक बच्चा सभक व्यक्त्तित्व एकटा विभिन्न प्रकारसँ निर्मित भए रहल छलन्हि। नञि तँ कोनो दोस्त-महीम, नञि तँ कोनो दोस्तक घर अएनाइ-गेनाइ। ओहि समयमे मीडिअम वेभक एकटा जापानी ट्रांजिस्टर नन्दक घरमे छलन्हि, वैह मनोरंजनक एकमात्र साधन छल। हुनकर बच्चा सभ एकरा रेडियो कहैत जाइ छलाह, आऽ नन्द बुझबैत छलखिन्ह जे रेडियो बड्ड पैघ होइत अछि, ट्रांजिस्टर आकारमे छोट होइत अछि। नन्द जखन नोकरी शुरू कएने रहथि तँ बुश कम्पनीक एकटा रेडियो गाम लए गेल छलाह। सौँसे टोलबैय्याक भीड़ जुमि गेल छल रेडियो सुनबाक लेल। ओऽ जापानी मीडिअम वेभ रेडियो मझोला आकारक बैटरीसँ चलैत छल, खूब बैटरी खाइत छल ई ट्रांजिस्टर। बैटरी प्रायशः महिनाक दस तिथि धरि चलैत छल। बैटरी एक महिनामे एक बेर अबैत छल, महिनबारी किरानाक वस्तुजातक संग। से नन्दक बच्चा लोकनिक मनोरंजनक ओऽ साधन महिनामे बीस दिन काज नहि करैत छल, आऽ ताहि लेल बच्चा सभ पलंगक दुनू कात दू टा गोल पोस्ट बनबैत छलाह। ई गोल पोस्ट प्लास्टिकक एक-दोसरामे जुड़य बला खेल सामग्रीसँ बनैत छल, ई खेल सामग्री पता नहि कतेक दिनसँ घरमे पड़ल छल, प्रायः गंगा ब्रिज कॉलोनीमे क्यो गोटे देने छलखिन्ह। नन्दक दुनू बेटा दुनू दिशि ककबाक स्टिकसँ खेलाइत छलाह। ए बी सी डी क कचकाराक खेल सामग्री बॉल बनैत छल। खेलक निअम सेहो भिन्न छल। मात्र एक शॉटमे एक गोल पोस्टसँ दोसर गोल पोस्टमे गोल करए पड़ैत छल। एहि तरहक कैकटा नूतन क्रीड़ाक जनक छलाह नन्दक दुनू पुत्र।
नन्द सामान्य जीवन व्यतीत कए रहल छलाह, मुदा गंगा पुलक कोनो चरचा हुनकर अन्तरमनमे हुलिमालि शुरू कए दैत छलन्हि।

(अनुवर्तते)
४.महाकाव्य
महाभारत –गजेन्द्र ठाकुर(आगाँ) ------
५.उद्योग पर्व
करए लगलाह पांडव युद्धक तैयारी विराट द्रुपदक संग पाबि
लगाए कुरुक्षेत्र लग पांडव रुकलाह शिविर पसारि।
दुर्योधनकेँ जखन लागल खबरि ओहो कएलक तैयारी,
संदेश पठाओल राजा सभकेँ कौरव पांडव तखन,
अपन पक्षमे करबा लेल युद्ध शुरु होएत जखन।
कुरुक्षेत्रक स्थलीमे सभटा जुटान लागल होए शुरू,
यादव गणकेँ पक्ष करबा लए दुर्योधन द्वारका गेल स्वयं।
पहुँचि दुर्योधन गेल देखल कॄष्ण छलाह सुतल ओतए,
अर्जुन सेहो पहुँचल पैर दिशि बैसि गेल ओऽ ओतए।
कृष्ण जखन उठि देखल अर्जुन छल ओतए,
कहू वत्स की चाही अहाँ आयल छी एतए।
युद्धमे संग अहाँक हमरा चाही हे नारायण,
अर्जुनकेँ बजिते दुर्योधन टोकल अएलहुँ पहिने एतए।
कृष्ण कहल हम शस्त्र नहि उठाएब युद्धमे,
नारायणी सेना चाही वा हमरा करब अँह पक्षमे।
दुर्योधन नारायणी सेना चुनि भेल संतुष्ट ऒऽ,
अर्जुनकेँ नारायण भेटल छल प्रफुल्लित सेहो।
पांडव मामा छलाह शल्य माद्रीक भाइ जे,
आबि रहल युद्धक लेल दुर्योधन सुनि गेल ओतए।
रस्तामे व्यवस्था-बात कएल तेहन छल,
शल्य कहल अछि मोन पुरस्कृत करी काज जकर।
दुर्योधन भेख बना जाए रहल छल ओतए,
प्रकट भए माँगल युद्धमे होऊ साहाय्य हमर,
एहि सभ व्यवस्थाक छी हमही निर्माण कएल।
शल्य दए स्वस्ति पहुँचलाह जखन कुरुक्षेत्र,
युधिष्ठिर सुनू छल भेल हमरा संग अतए।
कौरवक पक्षमे युद्ध करबा लए वचन बद्ध,
कहू कोन विध होए साहाय्य अहाँक व्त्स।
युधिष्ठिर कहल बनू सारथी कर्णक आऽ कर्रू,
हतोत्साहित कर्णकेँ गुणगान गाबि पांडवक।
शल्य कौरवक शिविर दिशि चललाह तखन,
युद्ध सन्निकट अछि कृष्ण अएलाह जानि सेहो,
एतए सुनल द्रुपदक पुरहित गेल छल धृतराष्ट्र लग।
संधिक प्रस्ताव पर देलक क्यो नहि टेर ओतए,
दुर्योधन कहल राज्य छोड़ू सुइयाक नोक देखने छी?
नहि भेटत पृथ्वी ओतबो राज्यक तँ छोड़ू बात ई।
युधिष्ठिर कहल श्रीकृष्णकेँ आध राज्य छोड़ैत छी,
जाऊ कृष्ण पाँच गाम दुर्योधन देत जौँ राखू ई प्रस्ताव,
ओतबहिमे करब हम सभ भाँय मायक संग निर्वाह।
सात्यकीक संग कृष्ण हस्तिनापुरक लेल चलला जखन,
द्रौपदी कहलन्हि देखू केश फुजले अछि ओहिना धरि एखन,
कानि कहल सँधि होयत युद्ध बिन खुजले रहत वेणी तखन।

कृष्ण कहल मानत नहि सँधिक गप कखनहु दुर्योधन,
युद्ध अछि अनिवार्य मनोरथ पूर्ण होयत द्रौपदीक अहँक।

कृष्ण जखन गेलाह हस्तिनापुर सभ प्रसन्न छल,
धृतराष्ट्र, दुःशासन-दुर्योधनक संग स्वागत कएल।
मुदा कृष्ण ओतए नहि ठहरि दीदी कुन्तीक लग गेलाह,
विदुरक गृहमे छलीह ओतए गप विस्तृत भेल आब।
कहल कुन्ती दीदी जाऽ कए कर्णकेँ परिचए दिअ,
आबि जाएत भ्रातृ-पाण्डव लग सत्य ओऽ जानि कए।

दोसर दिन सभामे पहुँचलाह कृष्ण छल ओतए मुदा,
दुर्योधन विचारल बान्हि राखब कृष्णकेँ अएताह जौँ।
भीष्म धृतराष्ट द्रोण कृप कर्ण शकुनि दुःशासन ओतए,
कृष्ण कहल शकुनिक चौपड़ दुर्योधनक दिशिसँ फेकब,
अन्यायपूर्ण छल ओहिना द्रौपदीक अपमान छल करब।
विराट पर आक्रमण पाण्डवकेँ सतेबाक उपक्रम बनल,
आध राज्य जौँ दए दी तखनो शान्तिसँ रहि सकैछ सभ।
सभ कएल स्वागत एकर दुर्योधन मुदा क्रोधित बनल,
कृष्णकेँ बन्हबाक आज्ञा देलक भीष्म तमसयलाह बड़।
तेज कृष्णक मुखक देखि कौरव भयसँ छल सिहरल।
दुर्योधन कहल पिता ज्येष्ठ हमर अंध छलाह से राज्य नहि भेटलन्हि,
हुनक पुत्र ज्येष्ठ हम से अधिकार हस्तिनापुर पर अछि सुनलहुँ।
पाण्डव अन्यायसँ लए राज्य करए छथि तैय्यारी युद्धक,
कृष्ण अछि पाछाँ ओकर हम तँ रक्षा राज्यक करए छी।
कृष्ण कहलन्हि तखन पाँच गाम दिअ करबाऽ लए निर्वाह,
मुदा दुर्योधन कहल राज्यक भाग नहि होएत गए आब।
कृष्ण बाजि जे हे दुर्योधन मदान्ध छी बनल अहाँ,
पाण्डवक शक्त्तिक सोझाँ नाश निश्चित बुझू अहाँक।

कुन्ती बादमे गेलीह कर्णकेँ कहल दुर्वासाक मंत्र भेटल,
पढ़ल सूर्यकेँ स्मरण कए पुत्र हमर भेलहुँ अहाँ तखन।
प्रणाम कएल माताकेँ कर्ण तखन बजलीह सुनू ई,
ज्येष्ठ पाण्डव छी अहाँ राज्य युधिष्ठिर देत अहीकेँ।
जखन नहि मानल कर्ण कुन्ती पुछल मातृऋणसँ,
उबड़ब कोना कर्ण बाजल हे माता तखन सुनू ई।
अर्जुनकेँ छोड़ि चारू पाण्डवसँ नहि लड़ब पूर्ण शक्त्तियेँ,
अर्जुनकेँ मारब तखन बनब पुत्र अहीकेँ।
वा मरब हम पुत्र तैयो पाँच टा रहबे करत,
ई प्रतिज्ञा हम करए छी माता कुन्ती अएलीह घुरि।

कृष्ण आबि घुरि पहुँचि शिविर पाण्डवक जखन,
पाण्डव युद्धक कएल प्रक्रिया शुरू ओतए तखन।
सात अक्षौहिणी सेना घोड़ा, रथ, हाथी, सैनिकक,
अर्जुन भीम सात्यिकि धृष्टद्युम्न द्रुपद विराट लग।
कौरव सेहो एगारह अक्षौहिणी सेना कृपाचार्य शल्य भूरिश्रवा,
भीष्म द्रोण कर्ण अश्वत्थामा जयद्रथ कृतवर्मा भगदत्त छल।
धृष्टद्युम्न सेनापति पाण्डवक भीष्म कौरवक बनल,
कर्ण शस्त्र नहि उठेबाक कएल प्रतिज्ञा
भीष्म यावत युद्धक्षेत्रमे रहताह गए।
भीष्म कहल मारब नहि पाण्डवकेँ एकोटा,
सेनाक संहार करब यथा संभव होएत।

ब्यास धृतराष्ट्रक लग गेलाह कहल ब्यासजी सुनू,
अंधत्व भेल वर हमर कुल संहार देखब नहि किएक।
मुदा वीरक गाथा सुनबाक अछि इच्छा बहुत,
ब्यास देल योगसँ दिव्यदृष्टि संजयकेँ कहल,
बैसले-बैसल देखि संजय वर्णन करताह युद्धक,
बाजि ई ब्यास बिदा भए गेलाह ओतएसँ।

६. भीष्म पर्व
(अनुवर्तते)
५कथा
गजेन्द्र ठाकुर-
बैसाखी
“गरमी तातिलक छुट्टीक बाद कॉलेज कहिया खुजतैक”। एकटा विद्यार्थी कॉलेजक एकटा कर्मचारीकेँ पुछने छलाह।
“हमरा कपार पर लिखल छैक आकि नोटिस बोर्ड पर जाऽ कए देखबैक”। ओल सनक बोल बाजल ओऽ कर्मचारी जकर नाम गुणदेव छल।
“ओहो गुणदेबा भयङ्करे छल। एडमिशन क्लर्क छल, ताहि द्वारे चलतीमे छल”।
“नञि यौ। चपरासी छल। एडमिशन क्लर्क तँ मुँहदुब्बर छल आऽ ताहि द्वारे सभ ओकरे एडमिशन क्लर्क बुझैत छलाह”।
रतीश आऽ फूलक बीचमे ई वार्त्तालाप चलि रहल छल। बहुत दिनका बाद दुनू गोटेकेँ एक दोसरासँ भेँट भेल छलन्हि। स्कूल आऽ कॉलेजमे संगे-संग दुनू गोटे पढ़ने छलाह। मुदा तकरा बाद सालक साल बीति गेल छल, आऽ आइ चन्द्रधारी मिथिला कॉलेजमे अपन-अपन बेटाकेँ अभियान्त्रिकीक प्रवेश परीक्षा दिअएबाक लेल दुनू गोटे आयल छलाह आकि अनायासहि एक-दोसरासँ भेँट भए गेलन्हि। दुनू गोटेक बालक परीक्षा हॉलमे रहथि से दुनू गोटेक लग गप करबाक लेल तीन घण्टा समय छलन्हि।

करची कलमसँ लिखना लिखैत-लिखैत रतीश आऽ फूल दुनू गोटेक अक्षर सुन्दर भए गेल छलन्हि। रोशनाइक गोटीकेँ गरम पानिमे दए दवातमे दए ओहिमे करची कलम डुबा कए लिखना लिखैत छलाह दुनू गोटा। अपन-अपन गामसँ केजरीबाल हाइ स्कूल पहुँचैत छ्लाह दुनू गोटे। विज्ञानक प्रायोगिक कक्षाक कॉपी रतीशक सेहो साफ आऽ स्पष्ट होइत छलन्हि, मुदा फूलक अक्षर फूल सन सुन्दर होइत छलन्हि। मैट्रिकमे रतीशकेँ प्रथम श्रेणी आयल छलन्हि मुदा पूलकेँ द्वितीय श्रेणी अएलन्हि। आ.एस.सी. केर बाद रतीशतँ इंजीनियरिङमे नाम लिखा लेलन्हि मुदा रतीश पोस्टऑफिसमे किरानीक नोकरी पकड़ि लेने छलाह। आऽ तकर बाद १८ साल धरि दुनू गोटेकेँ एक दोसरासँ भेँट नहि भेल छलन्हि। नोकरी लगलाक बाद फूलक विवाह भए गेलन्हि।
“विवाहक बाद की भेल। हम तँ विवाहोमे नहि जाऽ सकल छलहुँ। पहिने ओतेक फोन-फानक सेहो प्रचलन नहि छल। ताहि द्वारे सम्पर्क सेहो नहि रहल”।
“नोकरीक बाद छोट भाय आऽ कनियाँकेँ लए नोकरी पर कोहिमा चल गेलहुँ। छोट भाए एकटा हाथसँ लुल्ह रहथि। दोसर हाथे प्रयाससँ लिखैत छलाह। किछु दिनुका बाद विकलांगक लेल आरक्षणक अंतर्गत हुनका सेहो किरानीमे केन्द्र सरकारक अंतर्गत नोकरी लागि गेलन्हि, आऽ ओऽ पटना चलि गेलाह। हमर माएकेँ हुनकर विवाहक बड़ सौख छलन्हि। मुदा घटको आबए तखन ने। से कतेक दिनुका बाद जखन माए हमरा ओहिठाम आएल छलीह, तँ एक गोट मैथिल परिवार हमरा ओहिठाम घुमए लेल आयल रहथि। हमर मायक वयसक एक गोट महिला छलीह जे अपन पुतोहुक संग आयल छलीह। गपे-शपमे हुनका पता चलि गेलन्हि, जे एहि घरमे एकटा विकलांग सरकारी नोकरी बला विवाहयोग्य बालक छैक। से ओऽ हठात् अपन पुत्रीक विवाहक प्रस्ताव सोझाँ आनि रखलन्हि।
हमर माय बजलीह, “बहिनदाइ। अछि तँ हमर बेटा सरकारी नोकरी करैत मुदा ई पहिनहिये कहि देनाइ ठीक बुझैत छी जे बादमे अहाँ नहि कही। शील-स्वभाव सभमे कोनो कमी नहि छैक, मुदा नहि जानि किएक भगवान एक हाथसँ लुल्ह कए देलखिन्ह। गाममे लोक सभ लुल्हा-लुल्हा कहि कए सोर करैत छैक। शुरूमे तँ हमरा बरदास्त नहि होइत छल, एहि गप पर झगड़ा भए जाइत छल। मुदा बादमे हमहू ई सोचि धैर्य धए लेलहुँ जे जखन भगवाने नजरि घुमा लेलन्हि, तँ ककरा की कहबैक”।
“से तँ हमरा गप-शपमे बुझबामे आबि गेल छल। आऽ ताहि द्वारे ई कथा करबाक साहसो भेल। अहाँ सँ की कहू। हमर बेटी पेदार अछि। पैर छोट-पैघ छैक। से सौँसे तेहल्लाकेँ बुझल छैक। इलाकामे ककरो लग कथाक लेल जायब सेहो हिम्मत नहि होइत अछि। भगवान छथिन्ह, नञि नैहरे आऽ नहिये सासुरमे क्यो पेदार भेल छल। भगवान भल करथिन्ह, देखबैक हमर बुचियाक बच्चा सर्वगुण सम्पन्न होयत”।
ई गप सुनिते हमर माय तँ सन्न दए रहि गेलीह। कनेक काल धरि गुम-सुम रहलाक बाद कहलन्हि जे सोचि कए खबरि पठाएब। घरमे किछु दिन धरि एहि गप पर चरचा भेल आऽ आगाँ जाऽ कए मायक विचार भेलन्हि, जे विवाह भए जएबाक चाही। विवाहक उपरान्त कताक बेर बच्चा खराप भए जाइत छल। तीन चारि बेर एहिना भेल। हमर भाए तँ मोनकेँ बुझा लेलन्हि मुदा, भाबहु विक्षिप्त जेकाँ भए गेलीह। राति-दिन घरमे उठा-पटकक अबाज पड़ोसी सभ सुनैत छल। मुदा आस्ते-आस्ते ओहो मोनकेँ बहटारि लेलन्हि। मुदा दस बरखक बाद भगवानक कृपा जे एकटा बच्चा भेलन्हि, सभ अंग दुरुस्त। मुदा एक दिन तेल-कूर लगा कए बाहर हबामे देलखिन्ह भाबहु। भाए हमर कहबो कएलन्हि, जे बच्चाकेँ भीतर कए लिअ, मुदा होनी जे कहैत छैक। साँझसँ बच्चाकेँ हुकहुक्की लागि गेलैक। अगिला दिन भोर धरि ओऽ एहि जगकेँ छोड़ि चलि गेल। हमरो पदस्थापन ताधरि पटने भए गेल छल, आऽ सभ गोटे संगे रहैत छलहुँ। मुदा भगवानोक लीला। जखन सभ आस छोड़ि देने छल, तखन फेर एकटा बालक भेलन्हि छोट भाँयकेँ। एहि बेर हुनकर सासु सेहो बच्चाक टहल-टिकोर करबाक लेल आबि गेलखिन्ह। आब तँ बेश टल्हगर भए गेल अछि, हृष्ट-पुष्ट कोनो पैअ नहि”। फूल बजिते रहलाह।
रतीश कहलन्हि-“अहाँ परेशानीयेमे रहलहुँ एतेक दिन धरि। मुदा अहाँकेँ कैकटा बच्चा अछि, की करए जाइत छथि से नहि कहलहुँ”।
“एकेटा अछि, से परीक्षा हॉलमे छथि, कनेक कालमे देखिए लेबन्हि। मुदा अहाँ अपन बच्चाकेँ परीक्षा दिआबए किएक आयल छी। आइ.एस.सी. पास कएने छथि, बेश चेतनगर भए गेल होएताह”। फूल भाए कहलन्हि।
“मुदा अहूँ तँ आएल छी...”।
रतीश बजैत चुप भए गेलाह। कारण एक गोट बालक वैशाखी पर चलि फूलक लग आबि ठाढ़ भए गेल छल। परीक्षा खतम भए गेल छल, आऽ रतीशकेँ ई बुझबामे बाङठ नहि रहलन्हि, जे ई बालक फूलक छियन्हि। कालक विचित्र गति, भाए-भाबहु विकलांग छन्हि, मुदा तत्ता-सिहर देखेलाक बादो भगवान हृष्ट-पुष्ट नेना देलखिन्ह, आऽ फूल सन लिखनहार फूल भाइक लेल विधनाक कलम नहि चललन्हि। मुदा फूल भाए शांत-धैर्य धए बेटासँ परीक्षाक विषयमे पूछि रहल छलाह।
६. पद्य
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ. श्री गंगेश गुंजन
आ.पद्य ज्योति झा चौधरी
इ.पद्य गजेन्द्र ठाकुर शैलेन्द्र मोहन झा
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
18.
भजन विनय

सुनू-सुनू औ भगवान,
अहाँक बिना जाइ अछि
आब अधम मोरा प्राण॥
कतेक शुरके मनाबल निशिदिन
कियो न सुनलनि कान,
अति दयालु सूनि अहाँक शरण अयलहुँ जानि॥
बन्धु वर्ग कुटुम्ब सभ छथि बहुत धनवान,
हमर दुःख देखि-देखि हुनकौ होइ छनि हानि।।
रामजी निरास एक अहाँक आशा जानि,
कृपा करी हेरु नाथ,
अशरण जन जानि॥

19.

महेशवाणी

देखु देखु ऐ मैना,
गौरी दाइक वर आयल छथि,
परिछब हम कोना।
अंगमे भसम छनि,भाल चन्द्रमा
विषधर सभ अंगमे,
हम निकट जायब कोना॥
बाघ छाल ऊपर शोभनि,मुण्डमाल गहना,
भूत प्रेत संग अयलनि,बरियाती कोना॥
कर त्रिशूल डामरु बघछाला नीन नयना
हाथी घोड़ा छड़ि पालकी वाहन बरद बौना॥
कहथि रामजी सुनु ऐ मनाइन,
इहो छथि परम प्रवीणा,
तीन लोकके मालिक थीका,
करु जमाय अपना॥

20.

महेशवानी

एहेन वर करब हम गौरी दाइके कोना॥
सगर देह साँप छनि, बाघ छाल ओढ़ना,
भस्म छनि देहमे,विकट लगनि कोना॥
जटामे गंगाजी हुहुआइ छथि जेना,
कण्ठमे मुण्डमाल शोभए छनि कोना॥
माथे पर चन्द्रमा विराजथि तिलक जेकाँ,
हाथि घोड़ा छाड़ि पालकी,बड़द चढ़ल बौना॥
भनथि रामजी सुनु ऐ मैना, गौरी दाइ बड़े भागे,
पौलनि कैलाशपति ऐना॥

21.

भजन विहाग

राम बिनु विपति हरे को मोर॥

अति दयालु कोशल पै प्रभुजी,

जानत सभ निचोर,

मो सम अधम कुटिल कायर खल,

भेटत नहि क्यो ओर॥

ता’ नञ शरण आइ हरिके हेरू प्लक एक बेर,

गणिका गिद्ध अजामिल तारो

पतित अनेको ढेर॥

दुःख सागरमे हम पड़ल छी,

जौँ न करब प्रभु खोज,

नौँ मेरो दुःख कौन हारावन,

छड़ि अहाँ के और॥

विपति निदान पड़ल अछि निशि दिन नाहि सहायक और,

रामजी अशरण शरण राखु प्रभु,

कृपा दृष्टि अब हेरि॥

(अनुवर्तते)
2. गंगेश गुंजन श्री गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ' शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
बीच बाट पर खसल लाल गमछा

हमरा सं पहिने गेनहार लोक देखि , बढ़ि गेल हएत
सड़क पर आगां। राजधानी जेना प्रतिदिन बढ़ि जाइत अछि
अपनहि पिछड़ल प्रदेश सभकें छोड़ि क'
प्रगति जकां अमूर्त्त आगां।
हम देखलियैक चिन्हवाक कयलियैक यत्न
कोनो दुर्घटनाक शिकार नेना जकां बुझायल -
हवा मे छटपटाइत-उधियाइत-धूल धूसरित भेल।
एक क्षण रुकि क' उठा लेवाक चाही एकरा, हमरा।
मुदा पीठ पर , बामा दहिना पांतीक पांती गाड़ीक
संहार प्रलापी चीत्कार करैत पथियाक पथिया
सड़कक भड़ भड़ हल्ला पाछां सं ठोकर जे मारि दैत।
सेकेण्डक दशांशो रुकवाक विचार कयलौं कि
स्वयं भ' जायब, बीच सड़क पर ओहिना थकुचा-थकुचा।

उठा लियैक ओकरा कोरा, मन मे आयलए-
एना कोना पड़ल रहि जाय दियैक असहाय-अनाथ!
असंभव बनल जा रहल, राजधानीक खुंखार व्यस्त सड़क पर।
ममता आ चिन्ता आब ?
आब ओ गाड़ी सभक गुड़कैत पहिया सभ सं आंदोलित हवाक
दबाब मे दुर्घटना सं चोटायल बीच बाट पर ओंघड़ाएल
छटपटा रहल अछि। मोड़ाइत-थकुचाइत-उधियाइत परिधि मे
असकर बिरड़ो जकां घुरमैत।
विचित्रे आयल अनचोखे एकटा विचार
ओ हमरा सोवियत रूस बुझाय लागल।
आब हमरा रूसे देखाइत रहल ....
मुदा से कोना संभव अछि ?
तखन की , थिक ई ढहल ओकर महान ध्वजा ?
भू-लुंठित लाल ई ? की ?
सोझां मे भूमि पर होइत लतखुर्दनि !
सभक लेखें धनि सन ,
बेशी सभ्य लोकनि कें एतवो ने फिकिर-
जे पैर नहि पड़वाक चाही कथमपि ध्वजा पर ।
एतवो नहि ध्यान !
बहुत आगां धरि जा क' भ' पओलहुं कनीक धीमा, फेर ठाढ़,
घुमैत पाछां,-चेष्टा, फेर चेष्टा मुदा, जाः आब तं ओ
कोनो गाड़ीक पहिया संगे लेपटाइत-लेढ़ाइत
कतहु आगां चलि गेल। आब ?
सोचैत छी, मने मन मूड़ी झंटैत छी,
छातीफाड़ पछताइत छी-नाभि लग सं
नाक-श्वांस नली धरि औंनाइत छी,
अपन कोन हाथ ?
उठा क' माथ सं लगाब' चौहत छी ,
दिल्लीक एहि सड़क पर गामक मुरेठा जकां
बान्ह'चाहैत छी ओकरा,
सड़क पर खसल ई लावारिस लाल गमछा ।

मस्तके पर शोभैत छैक लाल रंग,
ध्वजेक रूप मे रहैत छैक ओकर मान-मर्यादा ।
भने से कोनो हाड़तोड़ श्रम सं
ड्यूटीक झमारल बस पर ओंघाइत जाइत मजूरक कान्ह पर सं
उधिया क'खसि पड़ल हो, चलि गेल होइ खिड़की सं बाहर,
बाट मे,लेढ़ा रहल ललका गमछा-
सड़क पर धांगल जाइत राक्षस ट््रैफिक सं।

आत्मा, झकझोरि एना कियेक क' गेल , उद्विग्न हमरा -
माथ पर बान्हि लेबा लेए मुरेठा
सड़क पर भू-लुंठित ई रक्तधूरि वर्ण गमछा !



ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

बरखा तू आब कहिया जेबैं
1
बरखा तू आब कहिया जेबै
अकच्छ भेलौ सब तोरा सॅं
बुझलियौ तू छै बड जरूरी
लेकिन अतीव सर्वत्र वर्जित छै
आर कतेक तंग तू करबैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

बेंग सब फुदकि फुदकि कऽ
घुसि रहल घर - ऑंगन में
ओकरा खिहारैत सॉंपो आयत
तरह - तरह के बिमारीक जड़ि
मच्छड़ सभके खुशहाल केलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

कतौ बाढ़ि सॅं घर दहाइत अछि
कतौ गाछ उखड़ि खसि पड़ल
कतेक खतरा तोरा संग आयल
आन-जान दुर्लभ तोरा कारण
आढ़ि सभ कादो सऽ भरलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

टूटल फूटल खपरी सऽ छाड़ल
गरीबक कुटिया कोनाक सहत
तोहर निरन्तर प््रावाहक मारि
पशु-पक्षी सेहो आश्रयहीन भेल
नञहर के तू सासुर बुझलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

तोहर जाइत देरी शीतलहरी
अप्पन प््राकोप देखाबऽचाहत
मुदा पहिने आयत शरद ऋतु
कनिके दिनक आनन्दी लऽ कऽ
पनिसोखा देखेनाई नञ बिसरिहैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं।
*****

1. शैलेन्द्र मोहन झा 2. गजेन्द्र ठाकुर
1. शैलेन्द्र मोहन झा

सौभाग्यसँ हम ओहि गोनू झाक गाम, भरवारासँ छी, जिनका सम्पूर्ण भारत, हास्यशिरोमणिक नामसँ जनैत अछि। वर्तमानमे हम टाटा मोटर्स फाइनेन्स लिमिटेड, सम्बलपुरमे प्रबन्धकक रूपमे कार्यरत छी।
चलला मुरारी छौरी फ़ँसबय !

एक दिनक गप्प अछि, हमर मित्रगण हमरा कहय लगला -
शैलेन्द्र, अन्हां के कोनो गर्ल फ़्रैन्ड नहिं?

हम कहलियनि - दोस, ई भारत अछि, इन्गलैन्ड नहिं!
अखन गर्ल फ़्रैन्ड क जरूरत नहिं,
अखन त पढय - लिखय के दिन अछि, प्रेम करय के मुहुरत नहिं!!

सब मित्र कहय लगला, हम अनाडी छी
जौं कोनो छौरी फ़ंसाबी, तहने हम खिलाडी छी

ई सब हमरा सहल नहिं गेल,
बिना ई दुस्कर्म कयने रहल नहिं गेल
फ़ेर की छ्ल? हम ताकय लगलहुं एकटा फ़्रैन्ड,
फ़्रैन्ड नहिं, गर्ल फ़्रैन्ड......

मुदा एकटा मुश्किल छ्ल -
हमरा छौरी सब स लगैत छ्ल बड्ड डर
जौं हुनक सैन्डल गेल पडि, त इज्जत जायत उतरि
तैयो हमरा प्रमाणित करय के छ्ल, कहुना कय एकटा छौडी पटबय के छ्ल

त कुदि पडलौं मैदान में, या ई कहु श्मशान में,
कियाकि, पिटला के बाद ओत्तहि जायब, फ़ीरि क मुंह नहिं देखायब
बन्हलहुं माथ पर कफन, कय सब डर के करेज में दफन
निकलि पडलहुं हम बाट में, एक छौरी के ताक में

सब सं पहिने प्रार्थना कयलहुं -
हे किशन कन्हैया! आंहां त अहि कर्म में खिलाडी छी
हमरो खिलाडी बना दिअ,
हमरा सोलह हजार गोपी नहिं, केवल एकटा छौडी फ़ंसवा दिअ
आंहाके बड्ड गुणगान करब,
फ़ंसिते छौरी, सवा रुपैया के प्रसाद चढायब

हम सोचलहुं, शायद आंखि मारला सं छौरी पटै छैक!
हमरा कि बुझल छल, आंखि मारला सं छौरी पीटै छैक
भागि कय घर अयलहुं, आर पहिल सप्पत खेलहुं
फ़ेर कहियो आंखि नहिं मारब.

फ़ेर सोचलहुं - पहिने बतियायब, फ़ेर घुमायब तहन फ़ंसायब
हं, ई ठीक रहत!

देखलहुं एकटा छौरी, त आंखि हमर फ़रकल....
फ़ेर की छ्ल? हम कहलौं-
पोखरि सन आंखि तोहर, केश जेना मेघ,
फ़ूल सन ठोढ तोहर, कहियो असगर में त भेट!

कहलहुं हम एतबे की भय गेली ओ लाल,
ओ मारलीह एहन थप्पड, भेल गाल हमर लाल
कनबोज सुन्न भेल हमर, आंखि भेल अन्हार
सूझय लागल तरेगन, भेल दुपहरिया में अन्हार
सरधुआ, करमघट्टु, बपटुगरा आर अभागल
देखू कपार हम्मर, ई विशेषण हाथ लागल

एतबे नहिं........
ओ करय लगलीह हल्ला, जूटय लागल मोहल्ला
हम कहलौं - ई कोन काज केलहुं? कियक गाम के बजेलहुं
नहिं पटितौं हमरा सं, ई आफ़त कियक बजेलहुं

फ़ेर की छल?
पिटय लगलहुं हम आर पीटय लगला गौंआं
मुंह कान तोडि देलक, अधमरु कय क छोरलक
ई कोन काल घेरलक, मरय में नहिं छल भांगठ,

हम भागि घर एलहुं, दुबारा सप्पत खेलहुं -
फ़ेर आंखि नहिं मारब, नै गीत हम गायब,
फ़ेर छौरी नहिं फ़ंसायब, नै जान हम गमायब,
आर भूलि कय अंग्रेजी, हम मैथिल बनि जायब!
आर भूलि कय अंग्रेजी, हम मैथिल बनि जायब!!



2. गजेन्द्र ठाकुर


पुनः स्मृति

बितल बर्ख बितल युग,
बितल सहस्राब्दि आब,
मोन पाड़ि थाकल की,
होयत स्मृतिक शाप।

वैह पुनः पुनः घटित,
हारि हमर विजय ओकर,
नहि लेलहुँ पाठ कोनो,
स्मृतिसँ पुनः पुनः।

सभक योग यावत नहि,
होएत गए सम्मिलन,
हारि हमर विजए ओकर,
होएत कखनहु नहि बन्द।






7.
संस्कृत शिक्षा च मैथिली शिक्षा च
(मैथिली भाषा जगज्जननी सीतायाः भाषा आसीत् - हनुमन्तः उक्तवान- मानुषीमिह संस्कृताम्)
(आगाँ)
-गजेन्द्र ठाकुर

वयम् इदानीम् एकं सुभाषितं श्रुण्मः

अमन्त्रमक्षरं नास्ति
नास्ति मूलमनौषधम्।
अयोग्यः पुरुषो नास्ति
योजकस्तत्र दुर्लभः।

वयं इदानीम् एकं सुभाषितं श्रुतवन्तः। तस्य अर्थः एवम् अस्ति।
वर्णमालायां बहूणि अक्षराणि सन्ति। तादृशम् एकम् अपि अक्षरं नास्ति मंत्राय उपयोगः न भवति इति। एवमेव प्रपंचे बहुमूलानि सन्ति। तादृशम् एकमपि मूलं नास्ति औषधाय योग्यं न इति। एवमेव प्रपंचे बहुजनाः सन्ति- ते सर्वे अयोग्याः न। यदि कश्चन् योजकः मिलति तर्हि ते सर्वे योग्याः भवितुम अर्हन्ति।

कथा

पूर्वं कलिंगदेशं अशोकमहाराजः पालयति स्म। एकदा सह मंत्रिणा सह विहारार्थं बहिर्गतवान् आसीत्। तत्र मार्गे काचित् बौद्ध भिक्षुः सह दृष्टवान्। सः भिक्षोः समीपं गतवान्। भक्तया तस्य पादारविन्दयोः शिरः स्थापयित्वा नमस्कारं कृतवान्। भिक्षुः आशीरवादं कृतवान्। परन्तु एतत् सर्वमपि तस्य मंत्री आश्चर्येण पश्यन् आसीत्। एतद् तस्मै न अरोचत्। सः महाराजं पृष्टवान्- भोः महाराज। भवान् एतस्य राजस्य चक्रवर्ती अस्ति। भवान् किमर्थम् तस्य पादारविन्दयोः शिरः स्थापितवान्। इति। तदा महाराजः किमपि न उक्तवान्। मौनं हसितवान्। काचन् दिनानि अतीतानि एकदा अशोकः मंत्रिणं उक्तवान्। भोः मंत्रिण। भवान् इदानीम् एव गत्वा एकस्य अजस्य एकस्य व्याघ्रस्य एकस्य मनुष्यस्य शिरः आनयतु। तदा मंत्री अरण्यं गतवान्। एकस्य व्याघ्रस्य शिरः आनीतवान्। मांस्वापणं गतवान। तत्र एकस्य अजस्य शिरः आनीतवान्। तथा एव स्मसानं गतवान्। तत्र एकः मनुष्यः मृतः आसीत्। तस्य शिरः अपि आनीतवान्- महाराजाय दत्तवान्। महाराजः उक्तवान्। भोः एतत् सर्वम् अपि भवान् नीत्वा विक्रीय आगच्छतु। मंत्री विपणीम् गतवान्। तत्र कश्चन् मांसभक्षकः अजस्य शिरः क्रीतवान्। अन्यः कश्चन् अलंकारप्रियः व्याघ्रस्य शिरः क्रीतवान्। परन्तु मनुष्यस्य शिरः कोपि न क्रीतवान्। अनन्तरं मंत्री निराशया महाराजस्य समीपम् आगत्य निवेदितवान्। महाराजः उक्तवान्- भवतु भवान् एतद् शिरः दानरूपेण ददातु। इति। पुनः मंत्री विपणीम् गतवान्। तत्र सर्वाण उक्तवान्- भोः एतद् शिरः दानरूपेण ददामि। स्वीकुर्वन्तु- स्वीकुर्वन्तु। परन्तु कोपि न स्वीकृतवान्। मंत्री आगत्य-महाराजं सर्वं निवेदितवान्। महाराजः उक्तवान्- इदानीं ज्ञातवान् खलु। यावत् जीवामः तावदेव मनुष्यस्य शरीरस्य महत्वं भवति। जीवाभावे मनुष्यशरीरं व्यर्थं भवति। तदा शिरसः अपि महत्वं न भवति। अतः जीवितकालेएव वयं यदि सज्जनानां श्रेष्ठानां पादारबिन्दयोः शिरः संस्थाप्य आशीर्वादं स्वीकुर्मः तर्हि जीवनं सार्थकं भवति। एतत् श्रुत्वा मंत्री समाहितः अभवत्।

कथायाः अर्थं ज्ञातवन्तः खलु।

सम्भाषणम्

स्वराज्यं जन्मसिद्ध अधिकारः- इति तिलकः उक्तवान्।
स्वराज्य जन्मसिद्ध अधिकार अछि- ई तिलक कहलन्हि।

एतदैव वाक्यं वयं परिवर्तनं कृत्वा वक्तुं शक्नुमः।

माता उक्तवती यत् एकाग्रतया पठतु।
माता कहलन्हि जे एकाग्रतासँ पढ़ू।

शिक्षकः उक्तवान् यत् द्वारं पिदधातु।
शिक्षक कहलन्हि जे द्वार सटा दिअ।

अहं वदामि यत् संस्कृतं पठतु।
हम बजैत छी जे संस्कृत पढ़ू।

सेवकं वदति यत् द्वीपं ज्वालयतु।
सेवक कहैत छथि जे दीप जड़ाऊ।

इदानीम् एकम् अभ्यासं कुर्मः।

वैद्यम् उक्तवान् यत् फलं खादतु।
वैद्य कहलन्हि जे फल खाऊ।
वैद्यम् उक्तवान् यत् सत्यं वद धर्मं चर।
वैद्य कहलन्हि जे सत्य बाजू धर्म पर चलू।

बालकः शालां गच्छति।
बालाक पाठशाला जाइत छथि।

अहमपि शालां गच्छामि।
हम सेहो पाठशाला जाइत छी।

अहं चायं पिबामि। अहमपि चायं पिबामि।
हम चाह पिबैत छी। हम सेहो चाह पिबैत छी।

रोगी चिकित्सालयं गच्छति। अहमपि चिकित्सालयं गच्छामि।
रोगी चिकित्सालय जाइत छथि। हम सेहो चिकित्सालय जाइत छी।

मम नाम गजेन्द्रः। अहं शिक्षकः/ युवकः/ देशभक्तः अस्मि।
अहं बुद्धिमान्/ क्रीडापटु/ ब्रह्म अस्मि।
हमर नाम गजेन्द्र छी। हम शिक्षक/ युवक/ देशभक्त छी।
हम बुद्धिमान/ क्रीडापटु/ ब्रह्म छी।
कृष्णफलके कतिचन् शब्दाः सन्ति।

अहं वैद्यः/ कृषकः/ चालकः/ गायिका/ वैज्ञानिकः/ धनिकः/ अध्यापकः/ अस्मि।
हम वैद्य/ कृषक/ चालक/ गायिका/ वैज्ञानिक/ धनिक/ अध्यापक छी।

भवान् शिक्षकः अस्ति। अहं शिक्षकः अस्मि।
अहाँ शिक्षक छी। हम शिक्षक छी।

अहं नायकः अस्मि। वयं नायकाः स्मः।
हम नायक छी। हम सभ नायक छी।

अहं देशभक्तः अस्मि। वयं देशभक्ताः स्मः।
हम देशभक्त छी। हम सभ देशभक्त छी।

अहं भारतीयः अस्मि। वयं भारतीयाः स्मः।
हम भारतीय छी। हम सभ भारतीय छी।

अहं गायकः अस्मि। वयं गायकाः स्मः।
हम गायक छी। हम सभ गायक छी।

अहं वैद्यः अस्मि। वयं वैद्याः स्मः।
हम वैद्य छी। हम सभा वैद्य छी।

वार्ता

-हरिओम्।
-हरिः ओम्। श्रीधरः खलु।
-आम्।
-अहं ललितकुमारः वदामि।
-अहो ललितकुमारः। कुतः वदति।
-अहं भोपालतः वदामि। भवान् इदानीं कुत्र अस्ति।
-अहं बेङ्गलूर नगरैव अस्मि।
-बेङ्लूरनगरे कुत्र अस्ति।
-गिरिनगरैव अस्मि।
-तन्नमा गृहैव अस्ति।
-गृहतः प्रस्थितवान्। मार्गे अस्मि।
-एवं भवन्तः सर्वे कथं सन्ति।
-वयं सर्वे कुशलिनः। भवन्तः।
-वयं सर्वे कुशलिनः स्मः।
-एवं कः विशेषः।
-विशेषः कोपि नास्ति। कुशल वार्तां ज्ञातमेव दूरभाषं कृतवान्। एवं धन्यवादः।
-नमोनमः।

चाकलेहः। चाकलेहम् इच्छन्ति।
चाकलेट। चाकलेट लेबाक इच्छा अछि।
आम्। इच्छामः।
हँ। इच्छा अछि।
अत्र का इच्छति। यदि चाकलेहम् इच्छति तर्हि अत्र आगच्छतु।
एतए की इच्छा अछि। जौँ चॉकलेट लेबाक इच्छा अछि तखन एतए आऊ।

यदि अहं तत्र आगच्छामि भवान् ददाति वा।
जौँ हम ओतए अबैत छी अहाँ देब की।

आम्। अवश्यं ददामि।
हँ। अवश्य देब।

धन्यवादः।
धन्यवाद।

स्वागतम्।
स्वागत अछि।

फलम् इच्छन्ति।
फलक इच्छा अछि?

आम्। इच्छामः।
हँ। इच्छा अछि।

कः फलम् इच्छति।
के फलक इच्छा करैत अछि।

अहम् इच्छामि।
हम इच्छा करैत छी।

यदि फलम् इच्छति तर्हि अत्र आगच्छतु।
जौँ फलक इच्छा अछि तखन एतए आऊ।

यदि अहम् अत्रैव भवामि तर्हि तत् फलं न ददाति वा।
जौँ हम एतहि रहैत छी तखन अहाँ फल नहि देब की?

न ददामि। यदि फलम् आवश्यकम् अत्र आगच्छतु।
नहि देब। जौँ फल आवश्यक अछि तखन एतए आऊ।

आगच्छामि।
अबैत छी।

स्वीकरोतु।
स्वीकार करू।

धन्यवादम्।
धन्यवाद।

स्वागतम्।
स्वागत अछि।

पिपासा अस्ति वा।
पियास लागल अछि की?

न पिपासा नास्ति।
नहि। पियास नहि लागल अछि।

अस्ति।
लागल अछि।

कस्य पिपासा अस्ति।
किनका पियास लागल छन्हि।

यदि पिपासा अस्ति तर्हि जलं पिबतु।
जौँ पियास लागल अछि तखन जल पीबू।

आगच्छतु। स्वीकरोतु।
आऊ। पीबू।

धन्यवादः।
धन्यवाद।

यदि व्याघ्रः आगच्छति तर्हि भवान् किं करोति।
जौँ बाघ आएत तँ अहाँ की करब।

यदि व्याघ्रः आगच्छति तर्हि अहं व्याघ्रं ताडयामि।
जौँ बाघ आएत तँ हम ओकरा मारब।

यदि व्याघ्रः आगच्छति तर्हि अहं तत्रैव उपविशामि।
जौँ बाघ आएत तँ हम ओतहि बैसल रहब।

यदि व्याघ्रः आगच्छति तर्हि अहं धावामि।
जौँ बाघ आएत तँ हम भागब।

यदि व्याघ्रः आगच्छति तर्हि अहं शवासनं करोमि।
जौँ बाघ आएत तँ हम शवासन करब।

भवान् किम करोति? भवती किम् करोति?
अहाँ की करब? अहाँ की करब?

यदि अहं विदेशं गच्छामि तर्हि अहं तत्र जनानां संस्कृतं पाठयामि।
जौँ हम विदेश जाएब तखन हम लोक सभकेँ संस्कृत पढ़ाएब।

यदि माता तर्जयति तर्हि अहं पितरम् आश्रयामि।
जौँ माता मारैत छथि तखन हम पिताक शरणमे जाइत छी।

भवन्तः तर्हि योजयन्ति।

यदि धनम् अस्ति तर्हि ददातु।
जौँ धन अछि तखन दिअ।

यदि वृष्टिः भवति तर्हि शस्यानि आरोपयतु।
जौँ बरखा होए तखन फसिल रोपू।

यदि परीक्षा आगच्छति तर्हि सम्यक पठति।
जखन परीक्षा अबैत अछि तखन नीक जेकाँ पढ़ैत अछि।

यदि जलम् अस्ति तर्हि स्नानं करोति।
जखन जल रहैत अछि तखन स्नान करैत छथि।

यदि प्रवासं करोमि तर्हि ज्ञानं सम्पादयामि।
जौँ प्रवास करब तखन ज्ञानक सम्पादन कए सकब।

यदि शान्तिम् इच्छामि तर्हि भगवदगीतां पठामि।
जखन शान्तिक इच्छा होइत अछि भगवदगीता पढ़ैत छी।

यदि ज्ञानम् इच्छति तर्हि वेदं पठतु।
जौँ ज्ञानक इच्छा अछि तखन वेद पढ़ू।

यदि देशसेवां करोति तर्हि संतोषः भवति।
जखन देशसेवा करैत छी तखन संतोष भेटैत अछि।

यदि उत्तमा लेखनी अस्ति तर्हि मम कृते ददातु।
जौँ उत्तम कलम अछि हमरा लेल दिअ।

यदि संस्कृतं पठति तर्हि आनन्दः भवति।
जखन संस्कृर पढ़ैत छी तखखन आनन्द पबैत छी।
(अनुवर्तते)
८. मिथिला कला (आगां) श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर, उम्र 60 वर्ष, ग्राम- हैँठी-बाली, जिला मधुबनी।
विभिन्न तरहक भार सभक चित्र नीचाँमे देल गेल अछि।




अनुवर्तते)
९. पाबनि संस्कार तीर्थ
डॉ प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’ (1938- )- ग्राम+पोस्ट- हसनपुर, जिला-समस्तीपुर। नेपाल आऽ भारतमे प्राध्यापन। मैथिलीमे १.नेपालक मैथिली साहित्यक इतिहास(विराटनगर,१९७२ई.), २.ब्रह्मग्राम(रिपोर्ताज दरभंगा १९७२ ई.), ३.’मैथिली’ त्रैमासिकक सम्पादन (विराटनगर,नेपाल १९७०-७३ई.), ४.मैथिलीक नेनागीत (पटना, १९८८ ई.), ५.नेपालक आधुनिक मैथिली साहित्य (पटना, १९९८ ई.), ६. प्रेमचन्द चयनित कथा, भाग- १ आऽ २ (अनुवाद), ७. वाल्मीकिक देशमे (महनार, २००५ ई.)। मौन जीकेँ साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार, २००४ ई., मिथिला विभूति सम्मान, दरभंगा, रेणु सम्मान, विराटनगर, नेपाल, मैथिली इतिहास सम्मान, वीरगंज, नेपाल, लोक-संस्कृति सम्मान, जनकपुरधाम,नेपाल, सलहेस शिखर सम्मान, सिरहा नेपाल, पूर्वोत्तर मैथिल सम्मान, गौहाटी, सरहपाद शिखर सम्मान, रानी, बेगूसराय आऽ चेतना समिति, पटनाक सम्मान भेटल छन्हि। वर्तमानमे मौनजी अपन गाममे साहित्य शोध आऽ रचनामे लीन छथि।
पंचदेवोपासक भूमि मिथिला
-डॉ प्रफुल्ल कुमार सिंह ’मौन’

हिमालयक पादप्रदेशमे गंगासँ उत्तर, कोशीसँ पश्चिम एवं गण्डकसँ पूर्वक भूभाग सांस्कृतिक मिथिलांचलक नामे ख्यात अछि। मिथिलांचलक ई सीमा लोकमान्य, शास्त्रसम्म्त ओऽ परम्परित अछि। सत्पथब्राह्मणक अंतःसाक्ष्यक अनुसारे आर्यलोकनिक एक पूर्वाभिमुखी शाखा विदेह माथवक नेतृत्वमे सदानीरा (गण्डक) पार कऽ एहि भूमिक अग्नि संस्कार कऽ बसिवास कएलनि, जे विदेहक नामे प्रतिष्ठित भेल। कालान्तरमे एकर विस्तार सुविदेह, पूर्व विदेह, ओऽ अपर विदेहक रूपेँ अभिज्ञात अछि। विदेहक ओऽ प्राथमिक स्थलक रूपमे पश्चिम चम्पारणक लौरियानन्दनगढ़क पहिचान सुनिश्चित भेल अछि। आजुक लौरियानन्दनगढ़ प्राचीन आर्य राजा लोकनि एवं बौद्धलोकनिक स्तूपाकार समाधिस्थल सभक संगम बनल अछि। कालक्रमे अहि इक्षवाकु आर्यवंशक निमि पुत्र मिथि मिथिलापुत्रक स्थापना कयलनि। प्राचीन बौद्धसाहित्यमे विदेहकेँ राष्ट्र (देश) ओऽ मिथिलाकेँ राजधानीनगर कहल गेल अछि। अर्थात् मिथिला विदेहक राजधानी छल। मुदा ओहि भव्य मिथिलापुरीक अभिज्ञान एखन धरि सुनिश्चित नहि भेल अछि। तथापि प्राचीन विदेहक सम्पूर्ण जनपदकेँ आइ मिथिलांचल कहल जाइछ।

ओऽ मिथिलांचलक भूमि महान अछि, जकर माथेपर तपस्वी हिमालयक सतत वरदहस्त हो, पादप्रदेशमे पुण्यतोया गंगा, पार्श्ववाहिनी अमृत कलश धारिणी गंडक ओऽ कलकल निनादिनी कौशिकीक धारसँ प्रक्षालित हो। एहि नदी मातृक जनपदकेँ पूर्व मध्यकालीन ऐतिहासिक परिवेशमे तीरभुक्ति अर्थात् तिरहुत कहल गेल, जकर सांस्कितिक मूलमे धर्म ओऽ दर्शनक गांभीर्य, कलासभक रागात्मक उत्कर्ष, ज्ञान-विज्ञानक गरिमा ओऽ भाषा-साहित्यक समृद्ध परम्पराक अंतः सलिला अंतर्प्रवाहित अछि। एहि सभक साक्षात् मिथिलाक शैव-शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, सौर (सूर्य) ओऽ बौद्ध-जैनक आस्था केन्द्र एवं ऋषि-मुनिक साधना परम्परामे उपलभ्य अछि। प्रकारान्तरसँ ओहि स्थल सभकेँ सांस्कृतिक चेतनाक ऐतिहासिक स्थलक संज्ञा देल जाऽ सकैछ, जकर आइ-काल्हि पर्यटनक दृष्टिसँ महत्व बढ़ि गेल अछि।
मिथिलाक प्रसिद्धि ओकर पाण्डित्य परम्परा, दार्शनिक-नैयायिक चिन्तन, साहित्य-संगीतक रागात्मक परिवेश, लोकचित्रक बहुआयामी विस्तार, धार्मिक आस्थाक स्थल, ऐतिहासिक धरोहर आदिक कारणे विशेष अनुशीलनीय अछि। जनक-याज्ञवल्क्य, कपिल, गौतम, कणाद, मंडन, उदयन, वाचस्पति, कुमारिल आदि सदृष विभूति, गार्गी, मैत्रेयी, भारती, लखिमा आदि सन आदर्श नारी चरित, ज्योतिरीश्वर, विद्यापति, विनयश्री, चन्दा झा, लाल दास आदि सन आलोकवाही साधक लोकनिक प्रसादे एहि ठामक जीवन-जगतमे आध्यात्मिक सुखानुभूति ओऽ सारस्वत चेतनादिक मणिकांचन संयोग देखना जाइछ। मिथिला आध्यात्म विद्याक केन्द्र मानल जाइछ।
आजुक मिथिलांचलक संस्कृति उत्तर बिहारमे अवस्थित वाल्मीकिनगर (भैँसालोटन, पश्चिम चम्पारण) सँ मंदार (बाँका, भागलपुर) धरि, चतरा-वाराह क्षेत्र (कोशी-अंचल, नेपाल) सँ जनकपुर-धनुषा (नेपाल) धरि ओऽ कटरा (चामुण्डा, मुजफ्फरपुर), वनगाँव-महिषी, जयमंगला (बेगूसराय), वारी-बसुदेवा (समस्तीपुर), कपिलेश्वर-कुशेश्वर-तिलकेश्वर (दरभंगा), अहियारी-अकौर-कोर्थु(मधुबनी), आमी(अम्बिकास्थान, सारण), हरिहरक्षेत्र (सोनपुर, सारण) वैशाली आदि धरि सूत्रबद्ध अछि। एहि सभ धार्मिक तीर्थस्थल सभक परिवेक्षणसँ प्रमाणित होइछ जे मिथिलांचल पंचदेवोपासक क्षेत्र अछि। कालान्तरमे एहिसँ बौद्ध ओऽ जैन स्थल सभ सेहो अंतर्मुक्त भऽ आलोच्य भूभागकेँ गौर्वान्वित कयलनि।

पंचदेवोपासक क्षेत्रक अर्थ भेल- गणेश, विष्णु, सूर्य, शिव ओऽ भगवतीक क्षेत्र। एहिमे सूर्य सर्वप्राचीन देव छथि एवं शिव सर्वप्राचीन ऐतिहासिक देवता छथि। विघ्नांतक गणेशक पूजन प्राथमिक रूपेँ कयल जाइछ एवं मातृपूजनक संदर्भमे भगवती अपन तीनू रूपमे लोकपूजित छथि अर्थात् दुर्गा, काली, महालक्ष्मी एवं सरस्वती। भगवती शक्तिक आदि श्रोत छथि, जनिकामे सृष्टि, पोषण ओऽ संहार (लय) तीनू शक्ति निहित अछि। मुदा लोकक लेल ओऽ कल्याणकारिणी छथि। धनदेवी लक्ष्मीक परिकल्पना वैष्णव धर्मक उत्कर्ष कालमे भेल छल एवं ओऽ विष्णुक सेविका (अनंतशायी विष्णु), विष्णुक शक्ति (लक्ष्मी नारायण) एवं देवाभिषिक्त (गजलक्ष्मी) भगवतीक रूपमे अपन स्वरूपक विस्तार कयलनि। ओना तँ लक्ष्मी ओऽ सरस्वतीकेँ विष्णुक पर्श्वदेवीक रूपमे परिकल्पना सर्वव्यापक अछि। लक्ष्मी ओऽ गणेशक पूजन सुख-समृद्धिक लेल कयल जाइछ। प्राचीन राजकीय स्थापत्यक सोहावटीमे प्रायः गणेश अथवा लक्ष्मीक मूर्ति उत्कीर्ण अछि।

पंचदेवोपासना वस्तुतः धार्मिक सद्भावक प्रतीक अछि। मिथिलांचलमे एहि पाँचो देवी-देवताक स्वतंत्र विग्रह सेहो प्राप्त होइछ। भारतीय देवभावनाक विस्तारक मूलमे भगवती छथि, जे कतहु सप्तमातृकाक रूपमे पूजित छथि तँ कतहु दशमहाविद्याक रूपमे। सप्तमातृका वस्तुतः सात देवता सभक शक्ति छथि- ब्रह्माणी (ब्रह्मा), वैष्णवी (विष्णु), माहेश्वरी (महेश), इन्द्राणी (इन्द्र), कौमारी (कुमार कार्तिकेय), वाराही (विष्णु-वाराह) ओऽ चामुण्डा (शिव)। एहि सप्तमातृकाक अवधारणा दानव-संहारक लेल संयुक्त शक्तिक रूपमे कयल गेल छल, जे आइ धरि पिण्ड रूपेँ लोकपूजित छथि। मुदा एक फलक पर सप्तमातृकाक शिल्पांकनक आरम्भ कुषाणकालमे भऽ गेल छल। चामुण्डाकेँ छोड़ि सभटा देवी द्विभुजी छथि। सभक एक हाथमे अम्तकलश एवं दोसर अभयमुद्रामे उत्कीर्ण अछि। मिथिलांचलक लोकजीवनमे जनपदीय अवधारणाक अनुसार सप्त मातृकाक नामावली भिन्न अछि। मुदा बिढ्क्षिया माइ (ज्येष्ठा, आदिमाता, मातृब्रह्म) सभमे समान रूपेँ प्रतिष्ठित छथि। यद्य सप्तमातृकाक ऐतिहासिक प्रस्तर शिल्पांकन एहि भूभागसँ अप्राप्य अछि, मुदा दशमहाविद्याक ऐतिहासिक मूर्ति सभ भीठभगवानपुर (मधुबनी) एवं गढ़-बरुआरी (सहरसा)मे उपलभ्य अछि।
१०. संगीत शिक्षा-गजेन्द्र ठाकुर
रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- ) विद्वान, वागयकार, शिक्षक आऽ मंच सम्पादक छथि।
रामरगजीसँ गप शप। (६ जुलाई २००८)

गजेन्द्र ठाकुर: गोर लगैत छी। स्वास्थ्य केहन अछि।
रामरंग: ८० बरख पार केलहुँ। संगीतमे बहटरल रहैत छी।
गजेन्द्र ठाकुर: संगीतक तँ अपन फराक भाषा होइत छैक। मैथिली संगीत विद्यापति आऽ लोचन सँ शुरू भए अहाँ धरि अबैत अछि। मैथिलीमे अहाँ लिखनहिओ छी।
रामरंग: अपन मिथिलासँ सम्बन्धित हम तीन रागक रचना केलहुँ अछि, जकर नाम ऐ प्रकारसँ अच्हि।
१.राग तीरभुक्ति, राग विद्यापति कल्याण तथा राग वैदेही भैरव। ऐ तीनू रागमेसँ तीरभुक्ति आर विद्यापति कल्याणमे मैथिली भाषामे खयाल बनल अछि। हमर संगीत रामायणक बालकाण्डमे रागभूपाली आर बिलावलमे सेहो मैथिली भाषामे खयाल छैक। आर सन्गीत रामायणक पृष्ठ ३ पर बिलावलमे श्री गणेशजीक वन्दना तथा पृष्ठ २० पर राग भूपालीमे श्री शंकरजीक वन्दना अछि। पृष्ठ ८७ पर राग तीरभुक्तिमे मिथिला प्रदेशक वन्दना अछि आर पृष्ठ १२० पर राग वैदेही भैरवक (हिन्दीमे) रचना अछि। “अभिनव गीताञ्जलीक पंचम भागमे २६५ आर २६६ पृष्ठ पर विद्यापति कल्याण रागमे विलम्बित एवं द्रुत खयाल मैथिली भाषामे अछि। मिथिला आऽ मैथिलीमे हम उपरोक्त सामग्री बनओने छी।

गजेन्द्र ठाकुर: मुदा पूर्ण रागशास्त्र विद्यापति कल्याणक, तीरभुक्तिक वा वैदेही भैरवक नञि अछि। मैथिलीमे आरो रचना अहाँ...
रामरंग: बहुत रचना मोन अछि, मुदा के सीखत आऽ के लीखत। हाथ थरथराइत अछि आब हमर।
गजेन्द्र ठाकुर: कमसँ कम ओहि तीनू रागक रचना शास्त्र लिखि दैतियैक तँ हम पुस्तकाकार छापि सकितहुँ।
रामरंग: जे रचना सभ हम देने छी ओकरा छापि दिऔक। हाथ थरथराइत अछि , तैयो हम तीनूक विस्ट्रुत विवरण पठायब, लिखैत छी।
गजेन्द्र ठाकुर: प्रणाम।
रामरंग: निकेना रहू।


११. बालानां कृते-
१.कौआ आऽ फुद्दी-गजेन्द्र ठाकुर
२. देवीजी: विद्यार्थी बनल माली- ज्योति झा चौधरी
1.कौवा आऽ फुद्दी


चित्र: ज्योति झा चौधरी
एकटा छलि कौआ आऽ एकटा छल फुद्दी। दुनूक बीच भजार-सखी केर संबंध। एक बेर दुर्भिक्ष पड़ल। खेनाइक अभाव एहन भेल जे दुनू गोटे अपन-अपन बच्चाकेँ खएबाक निर्णय कएलन्हि। पहिने कोआक बेर आयल। फुद्दी आऽ कौआ दुनू मिलि कए कौआक बच्चाकेँ खाऽ गेल। आब फुद्दीक बेर आयल। मुदा फुद्दी सभ तँ होइते अछि धूर्त्त।
“अहाँ तँ अखाद्य पदार्थ खाइत छी। हमर बच्चा अशुद्ध भए जायत। से अहाँ गंगाजीमे मुँह धोबि कए आबि जाऊ”।
कौआ उड़ैत-उड़ैत जंगाजी लग गेल-
“हे गंगा माय, दिए पानि, धोबि कए ठोढ़, खाइ फुद्दीक बच्चा”।
गंगा माय पानिक लेल चुक्का अनबाक लेल कहलखिन्ह।
आब चुक्का अनबाक लेल कौआ गेल तँ ओतएसँ माटि अनबाक लेल कुम्हार महाराज पठा देलखिन्ह्। खेत पर माटिक लेल कौआ गेल तँ खेत ओकरा माटि खोदबाक लेल हिरणिक सिंघ अनबाक लेल विदा कए देलकन्हि। हिरण कहलकन्हि जे सिंहकेँ बजा कए आनू जाहिसँ ओऽ हमरा मारि कए अहाँकेँ हमर सिंघ दऽ दए। आब जे कौआ गेल सिंघ लग तँ ओऽ सिंह कहलक- “हम भेलहुँ शक्त्तिहीन, बूढ़। गाञक दूध आनू, ओकरा पीबि कए हमरामे ताकति आयत आऽ हम शिकार कए सकब”।
गाञक लग गेल कौआ तँ गाञ ओकरा घास अनबाक लेल पठा देलखिन्ह। घास कौआकेँ कहलक जे हाँसू आनि हमरा काटि लिअ।
कौआ गेल लोहार लग, बाजल-
“हे लोहार भाञ,
दिअ हाँसू, काटब घास, खुआयब गाय, पाबि दूध,
पिआयब सिंहकेँ, ओऽ मारत हरिण,
भेटत हरिणक सिंघ, ताहिसँ कोरब माटि,
माटिसँ कुम्हार बनओताह चुक्का, भरब गङ्गाजल,
धोब ठोर, आऽ खायब फुद्दीक बच्चा”।
लोहार कहलन्हि, “हमरा लग दू टा हाँसू अछि, एकटा कारी आऽ एकटा लाल। जे पसिन्न परए लए लिअ”।
कौआकेँ ललका हाँसू पसिन्न पड़लैक। ओऽ हाँसू धीपल छल, जहाँ कौआ ओकरा अपन लोलमे दबओलक, छरपटा कए मरि गेल।

2.देवीजी विद्यार्थी बनल माली

एकटा बच्चा छलै जे छलै बड़ा खुरापाती।विद्यालय आबैत काल ओ रस्ताक सब फूल पात नोचने आबै छलै।विद्यालयमे सेहो फूलक गाछ के नोइच कऽ राइख दैत छल।अतब्ैा नहि ओ आनो बच्चा सबके उकसाबै छल।ओकर संगी साथी सब सेहो संगतक प््राभावे बड उपद्रवी भऽ गेल।तंग भऽ विद्यालय के माली प््राधानध्यापक लग अपन समस्या बाजल ''महोदय हम बच्चा सबहक खुरापात सऽ बड तंग छी।हम्मर दिन भरिक मिहनत ई सब क्षण भरि मे मटियामेट कऽ दैत अछि आ हम्मर बातक मोजर सेहो नहि दैत अछि।च्च् ताही पर प््राधानाध्यापक ओकरा आश्वासन देलखिन ''हम एहि पर अवश्य कार्यवाही करब।हम एहन बच्चा सभके दंडित करब।च्च्
जखन देवीजी के अहि बातक खबरि लगलैन तऽ ओ स्वयम्‌ माली सॅं बात क बालक के पता केलीह फेर ओकरा सभके बजा कऽ पुछलखिन ''अहॉ सभ एहेन काज कियैक करै छी। बेचारा माली रौद बसात मे काज करैत अछि आ अहॉ सभ उारे ओकर परिणाम नहि आबैत छै। अहॉं सभके नहि ईच्छा होइत अछि विद्यालय के सुन्दर बनाब के।च्च् ताहि पर कियो बजलै ''हमरा सभके तितली पकड़नाई नीक लागैत अछि आ तितली सभत फूले पर बैसैत छै।च्च् आब देवीजीके फसादक जड़ि ज्ञात भेलैन।ओ प््राधानाचार्य सॅं आदेश पाबि सभ बच्चा सभके छुट्रटी वला दिन विद्यालय बजेलखिन। माली सेहो आयल।
देवीजी खेले खेलमे सभके बागवानी सिखेलखिन। सभके मिलकऽ काज केनाइ ततेक नीक लागल जे क्षण भरिमे सभ टूटल मरल गाछ सभ हटा नब फूलक गाछ लागि गेल। देवीजी सभके कहलखिन जे जॅं ई गाछ सबके कियो तोड़त नहि त कञिये दिनमे अहि मे सुन्दर सुन्दर पुष्प लागत जाहि सॅं आकर्षित भऽ तितली के जमौड़ा लागत।संगहि देवीजी तितली के पकड़ सॅ मना केलखिन।ओकरा सुन्दरता दूर स देख के शिक्षा देलखिन।सभ बच्चा आह्‌लादित छल तैं उत्पात बन्द कऽ देलक। प््राधानाचार्य अहि परिवर्तन सॅं प््राभावित भेला।
किछुए दिन बाद गाछमे फूल लाग लगलै।आ संगहि तितलीक आगमण सेहो बढ़ि गेल। आब खाली समय निकाइल कऽ देवीजी संग बच्चा सभ ओहि दृष्यक आनन्द लेब लागल।उपद्रवी बच्चा सभसॅं सकारात्मक काज करबाबऽ लेल देवीजीके सभसॅं प््राशंसा भेटलैन।
------------------------------
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥

१२. पञ्जी प्रबंध-गजेन्द्र ठाकुर
पञ्जी प्रबंध

पंजी-संग्राहक- श्री विद्यानंद झा पञ्जीकार (प्रसिद्ध मोहनजी)
श्री विद्यानन्द झा पञीकार (प्रसिद्ध मोहनजी) जन्म-09.04.1957,पण्डुआ, ततैल, ककरौड़(मधुबनी), रशाढ़य(पूर्णिया), शिवनगर (अररिया) आ’ सम्प्रति पूर्णिया। पिता लब्ध धौत पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड पञ्जीकार मोदानन्द झा, शिवनगर, अररिया, पूर्णिया|पितामह-स्व. श्री भिखिया झा | पञ्जीशास्त्रक दस वर्ष धरि 1970 ई.सँ 1979 ई. धरि अध्ययन,32 वर्षक वयससँ पञ्जी-प्रबंधक संवर्द्धन आ' संरक्षणमे संल्गन। कृति- पञ्जी शाखा पुस्तकक लिप्यांतरण आ' संवर्द्धन- 800 पृष्ठसँ अधिक अंकन सहित। पञ्जी नगरमिक लिप्यान्तरण ओ' संवर्द्धन- लगभग 600 पृष्ठसँ ऊपर(तिरहुता लिपिसँ देवनागरी लिपिमे)। गुरु- पञ्जीकार मोदानन्द झा। गुरुक गुरु- पञ्जीकार भिखिया झा, पञ्जीकार निरसू झा प्रसिद्ध विश्वनाथ झा- सौराठ, पञ्जीकार लूटन झा, सौराठ। गुरुक शास्त्रार्थ परीक्षा- दरभंगा महाराज कुमार जीवेश्वर सिंहक यज्ञोपवीत संस्कारक अवसर पर महाराजाधिराज(दरभंगा) कामेश्वर सिंह द्वारा आयोजित परीक्षा-1937 ई. जाहिमे मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक म.म. डॉ. सर गंगानाथ झा छलाह।
द्वितीय छठि

वृद्ध पितामह राधानाथ झाक श्वसुर माड़रि वलियास मूलक इन्द्रपति झाक बालक धनपति झा होएताह से एहि प्रकारे गणना – धनपति-=१, जमाय=राधानाथ= २, तनिक बालक कंटीर=पीताम्बर=४, शशिनाथ-कन्या=६

तृतीय छठि
(अनुवर्तते)

१३. संस्कृत मिथिला –गजेन्द्र ठाकुर


याज्ञवल्क्य
याज्ञवल्क्य मिथिलाक दार्शनिक राजा कृति जनकक दरबारमे छलाह। हुनकर माताक वा पिताक नाम सम्भवतः वाजसनी छलन्हि। ओना हुनकर पिता देवरातकेँ मानल जाइत छन्हि। हुनकर माता ऋषि वैशम्पायनक बहिन छलीह। वैशम्पायन याज्ञवल्क्यक मामा छलाह संझ्गहि हुनकर गुरु सेहो। हुनकर पिता खेनाइ पुरस्कारक रूपमे बँटैत रहथि आऽ तेँ हुनकर नाम बाजसनि सेहो छन्हि। ब्यासक चारू पुत्रसँ ओऽ चारू वेदक शिक्षा पओलन्हि। यजुर्वेद ओऽ वैशम्पायनसँ सेहो सिखलन्हि, वेदान्त उद्दालक आरुणिसँ आऽ योगक शिक्षा हिरण्यनाभसँ लेलन्हि।
याज्ञवल्क्यक दू टा पत्नी छलथिन्ह, १. कात्यायनी आऽ दोसर मैत्रेयी। मत्रेयी ब्रह्मवादिनी छलीह। कात्यायनीसँ हुनका तीनटा पुत्र छलन्हि- चन्द्रकान्ता, महामेघ आऽ विजय।

याज्ञवल्क्य १. शुक्ल यजुरवेद, २. शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक उपनिषद आऽ याज्ञवल्क्य स्मृतिक दृष्टा/लेखक छथि। याज्ञवल्क्य स्मृतिमे आचार, व्यवहार, आऽ प्रायश्चित अध्याय अछि।राजधर्म, सिविल आऽ क्रिमिनल लॉ एहिमे अछि।कौटिल्य जेकाँ याज्ञवल्क्य सेहो मानैत छथि जे राजा आऽ पुरहित दुनू दण्डनीतिक ज्ञान राखथि। याज्ञवल्क्य राज्यक सप्तांग सिद्धांतक चरचा सेहो विस्तारमे करैत छथि।
१४. पोथी समीक्षा
श्री पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। पराशरजी एखन हिन्दी पत्रिका ’कादम्बिनी’मे वरिष्ठ कॉपी सम्पादक छथि।

समयकेँ अकानैत

पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह ’समयकेँ अकानैत’ मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत अछि। एहिमे युवा कविक ४८ गोट पद्यक संग्रह अछि। एहिमे कविक १९९६ केर ३ टा, १९९८ केर ६ टा १९९९ केर ६ टा, २००० केर ५ टा, २००१ केर ३ टा, २००२ केर ३ टा, २००३ केर ९ टा आऽ २००४ केर १३ टा पद्य संकलित अछि। कवि नहिये जोनापुरकेँ बिसरैत छथि. नहिये द्वारबंगकेँ, नहिये गणेसरकेँ नहिये देवसिंहकेँ। ५ टा पद्यमे ओऽ बुद्धकेँ सेहो सोझाँ अनैत छथि| मुदा एतए ई देखब सेहो उचित होयत जे महावीर विदेहमे छह टा बस्सावास बितेलन्हि मुदा बुद्ध एकोटा नहि। से कवि जैन महावीरक प्रसंग जौँ बिसरल छथि, तँ हमरा सभ आशा करैत छी जे ई प्रसंग सभ कविक दोसर पद्य संग्रहमे सम्मिलित कएल जएतन्हि, कवि ताहि तरहक रचना सेहो रचथु।
एहि संग्रहक ४८म पद्य थीक ’समयकेँ अकानैत’ जकर नाम पर एहि पोथीक नामकरण भेल अछि।

सोहरक धुन पर समदाओन गबैत
पिंडदानक मंत्रकेँ सुभाषितानि कहैत

फेर किसिम-किसिम के तांत्रिक सब
छंदमे दैत अछि बिक्कट-बिक्कट गारि

आऽ अकानैत कवि अन्तमे कहैत छथि

कतेक आश्चर्ययक थिक ई बात
कि एहि छन्दहीन समयमे
छन्देमे निकलैत अछि
ई सबटा आवाज।

१.कजरौटी

काजर बनेबा लेल सरिसबक तेलक दीप जराओल जाइत अछि। कवि कहैत छथि,

काजरक लेल सुन्न हमर आँखि
कतेक दिनसँ तकैए कजरौटी दिस अहर्निश
मुदा मैञाक स्मृति दोषक कारणेँ वा सरिसबक तेलक
अभावक कारणेँ
हमर आँखि जकाँ आब कजरौटीयो
सुखले रहैत अछि सभ दिन

कविक संवेदना मोनकेँ सुन्न आकि झुट्ठ कए दैत अछि, के एहन संवेदनाक अनुभव नहि करत, कविताक पाठक नहि बनत?

२.खबरि

ओहिना खबरि देखैत रहब प्रूफ
भीजल जारनि जेकाँ धुँआइत-धुँआइत
जरि जायब एहिना एक दिन

एकटा समय अबैत अछि सभक जीवननमे जखन अपन कार्यक्षेत्रक नीरसताक प्रति लोक सोचए लगैत अछि, जहिना कवि एहि पद्यमे कएने छथि।

३.महापात्र

अश्पृश्यता जकर प्राचीन ग्रंथमे कोनो चरचा नहि तकर वीभत्स रूपक वर्णन १७ शब्दमे (पंक्ति ओना १२ टा अछि) कवि कएने छथि। चमैन बच्चाक जन्मसँ छठिहारि धरि सेवा करैत अछि आऽ तकर बाद अश्पृश्य भए जाइत अछि।

४.प्रेममे पड़ल लोक

प्रेममे पड़ल लोकक वर्णन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणसँ कवि कएने छथि।

५.हमर गाम
कवि ९ टा शब्दकेँ १० टा पाँतीमे लिखने छथि, दोसर रूपेँ कही तँ ’मोनमे” ई एकटा शब्द अछि मुदा कवि मोन आऽ मे केँ दू पाँतिमे दए गामक दृश्य उपस्थित कए देने छथि।

६. माधव हम परिणाम निरासा

विद्यापतिक जोनापुर (दिल्ली) आगमनक प्रसंग लए कवि विद्यापतिक कविताक शस्त्रक बहन्ने अपन पद्यक शस्त्र सक्षम रूपेँ चला रहल छथि।

शक्तिहीन सत्ताक दृष्टिहीन-चारण टहंकारसँ उठबैत

७.काहुक केओ नहि करए पुछारे

विद्यापतिकेँ तुरंत कयल जाय
देशसँ बाहर...

सदावत्सले मातृभूमिक बदलामे
कामिनीक नांगट देहक आ
नव अनुगामिनी राधाक कोनो बाधा नहि मानबाक
करैत अछि रसपूर्ण वर्णन

८.बोधगया ९.पुनर्निष्कासन ११. वैशाली १२.स्थविर १३.सारनाथ बुद्धक प्रसंग लए उठाओल गेल अछि।

१०.सैनिकोपाख्यानमे सैनिकक मनोव्यथा एहि रूपमे आयल अछि

बिसफीयो वला पंडितजी तँ महाराजे टा प्र लिखलनि..

आऽ

कास-पटपटीक जंगलमे
हम आइयो कटैत छी अहुरिया

१४.जुत्ता
हरिमोहन झाक जमाय पर लिखल कथा मोन पाड़ि दैत अछि।

१५.छठिहारसँ पहिने
छठिहारक राति बिधना भाग्य लिखैत छथि, मुदा कवि कहैत छथि जे जे बिधना की लिखत से हमर चानी आ तरहत्थ चीन्हैत अछि।

१६.बनारस : किछु चित्र
काशीक विश्वनाथक चित्र सोझाँ अबैत अछि वाराणसीक नाम लेने, मुदा कवि बनारसक चित्र खेंचि दैत छथि,
बनारस
बेर-बेर गनैत अछि लहास
१७.मनियाडरक दूपतिया
डाकपीन दू टाका सैकड़ाक दरसँ कमीशन पहिने कटैए
टाका दैत पढ़ि कए सुनबैए-

मनियाडर पाइक संगे संदेश सेहो अनैत अछि, ओहिमे जे छोट स्थान देल रहैत अछि अंदेशक लेल ताहिमे दुइये पाँति लिखल जा सकैत अछि तेँ कवि लिखैत छथि,दूपतिया।

१८.आँखि

नोनछाह नोरक स्वाद बुझनेँ रही अनचोक्के
जखन सिरमा लग बैसल माय कनैत छलीह
गिरैत नोरसँ अनजान..
फेर-
असहाय आ बेबस नजरिसँ दुलार करैत माय
कोना ल’ सकैत छलीह कोरामे हमरा
सबहक सोझाँ
दादी आ दीदीक नजरिसँ बाँचि कए?

आपात चिकित्सा कक्षसँ घुरैत बेटाक मायक प्रति भावनाक स्फोट अछि ई पद्य।

(पोथीक शेष कविता पर समीक्षा अगिला अंकमे- अनुवर्तते)

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