संगीत
“गबैया परिबार छैक। तान जँ चढ़ैत छैक तँ उतरिते नञि छैक”।
“एकसँ एक कबिकाठी सभटा, परिबारमे क्यो गप छोड़बामे ककरोसँ कम नहि”।
“से की कहैत छियैक। परिबारक कोन कथा, सौँसे टोल मे सभटा कबिकाठिये भेटत”।
उदितक हारमोनियमक तानक विवेचन सौँसे गाम कए रहल छल।
उदितक बाबू आऽ काका दुनू गोटे बड्ड पैघ गबैय्या रहथि। खानदानी गायन आऽ वादन प्रतिभा हुनका लोकनिक रक्त्तमे छलन्हि। उदित पाँचे वर्षसँ संगीत सीखय लागल छलाह, हुनकर स्वरक स्वाभाविक उदात्त आऽ अनुदात्त स्वरूपसँ पिता मुग्ध भए जाइत छलाह। मुदा गामक लोकक संगीतक ज्ञान अष्टजाममे मृदंग, झाइल आऽ हारमोनियम बजेबा तक आऽ निर्दिष्ट वाक्यकेँ गएबा तक सीमित छल, आऽ से प्रायः सभ गोटे सहज रूपेँ कए लैत छलाह। आङ्ल लोकनिक राज्य छ्ल, मैकाले महोदय संस्कृत शिक्षाक स्थान पर आङ्ल भाषा अनबा पर उतारू छलाह। उदितक पिताजी एहिसँ संबंधित एकटा कथा कहैत छलाह। मैकाले महोदय जखन भारत अएलाह तँ एकटा गेस्ट हाउसमे ठहरल छलाह। खिड़कीसँ बाहर देखि रहल छलाह तँ देखलन्हि जे गेस्ट हाउसक मैनेजर परिसरमे प्रवेश कए रहल छलाह, आऽ प्रवेश कएला उत्तर गेस्ट हाउसक दरबानकेँ पैर छुबि कए प्रणाम कएलन्हि। बादमे जखन मैकाले हुनकासँ पुछलन्हि, जे अहाँ मैनेजर छी आऽ तखन सामान्य दरबानकेँ पैर छुबि किएक प्रणाम कए रहल छलहुँ। एहि पर हुनका प्रत्युत्तर भेटलन्हि, जे ओऽ सामान्य दरबान नञि छल वरन् संस्कृतज्ञ सेहो छल। ताहि दिन मैकाले सोचि लेलन्हि जे भारतकेँ पराजित करबाक लेल भारतक संस्कृतिकेँ नष्ट करए पड़त। आऽ एहि लेल संस्कृतकेँ नष्ट करबाक प्रण लेलन्हि, जकर अछैत भारतीय कला संगीत आऽ संस्कृतिसँ पराङमुख भए जएताह। अस्तु तावत, उदित एहि तरहक वातावरणमे आगाँ बढ़ए लगलाह। अङरेज लोकनि द्वारा पाश्चात्य सङ्गीतकेँ अनबाक प्रयासक पलुस्कर, भातखण्डे आऽ रामामात्य द्वारा देल गेल समीचीन उत्तर शिक्षाक क्षेत्रमे किएक नञि भए सकल, उदितक बाल मोन अकुलाइत छल। अस्तु तावत उदित संगीतोद्धारक भातखण्डेकेँ आदर्श बनाए आगाँ बढ़ए लगलाह। लोक गबैय्या कहए तँ कोनो बात नहि, एक दिन आएत जखन एहि गबैय्याक सोझाँ समस्त अखण्ड भारतक मनसि श्रद्धासँ देखत, अस्तु तावत।
काका आऽ पिताक संरक्षणमे गामक रामलीला मंडली द्वारा प्रस्तुत कएल जायबला नाटकमे सेहो उदित भाग लैत छलाह, हुनकर गाओल गीत गाममे सभक ठोर पर आबि गेल छल। मुदा खेती बारी तेहन सन नहि छलन्हि। एक बीघा बटाइ करैत जाइत छलाह, सेहो सुनए पड़न्हि जे गबैय्याजी बुते की खेती कएल होएतन्हि, मुँहसँ गओनाइ आऽ हाथसँ काज करबामे बड्ड अंतर छैक।
जीवनक रथ आगाँ बढ़ैत रहैत मुदा विदेशीक शासनमे सेहो धरि संभव नहि होइत छल। कखनो हैजा तँ कखनो प्लेग तँ कखनो मलेरिआ। अहिना एक बेर गाममे प्लेग पसरल। लोक एक गोटाकेँ डाहि कए आबय तँ गाम पर दोसर व्यक्ति मृत पड़ल रहैत छल। उदितक मायकेँ सेहो पेट आऽ नाक चलय लगलन्हि, देह आगि जेकाँ जड़ैत रहन्हि, मुदा बेटाकेँ लग नहि आबय देथिन्ह जे कतहु हुनको प्लेग नहि भए जाइन्ह। दू दिनुका बाद बेचारी दुनियाँ छोड़ि देलन्हि। दुनू-बाप बेटा दाह संस्कार कए अएलाह। दुनू गोटेक आँखिमे नोर जेना सुखा गेल छलन्हि। पिता गुम-सुम रहए लगलाह। कण्ठसँ स्वर नहि निकलन्हि, मुदा हस्त परिचालनसँ बेटाकेँ अभ्यास कराबथि। दू-तीन बर्ष बीतल उदितक बयस वैह १०-११ साल होएतन्हि आकि पिताकेँ मलेरिआ पकड़ि लेलकन्हि।
रातिमे निन्द नहि होइन्ह। सिरमामे भातखण्डे स्वरलिपि रहैत छलन्हि, ताहि आधार पर बेटाकेँ किछु गाबि सुनाबए कहैत छलखिन्ह। उदितकेँ आभास भए गेलन्हि जे माताक संग पिता सेहो दूर भए जएताह। ई सोचि कोढ़ फाटि जाइन्ह। कुनैनक प्रभाव सेहो आब पिता पर नहि होइत छलन्हि। रातिमे थरथरी पैस जाइत छलन्हि। उदित सभटा केथरी-ओढ़ना सभ ओढ़ा दैत छलखिन्ह, मुदा तैयो थरथरी नहि जाइत छलन्हि। लोक सभ दिनमे आबि खोज-पुछाड़ी कए जाइत छलन्हि। गामक नाटक मण्डली सेहो बन्दे छल कारण मुख्य कार्यकर्त्ता हर्षित नारायण छलाह आऽ ओऽ बनारस चलि गेल छलाह कोनो नाटक मण्डलीमे। ओऽ गाम आयल छलाह आऽ जखन सुनलन्हि, जे उदितक पिताक मोन खराप छन्हि तँ पुछाड़ी करए अएलाह।
“हर्षित। हम तँ आब जाऽ रहल छी। उदित नेना छथि। काका पर बोझ बनताह ताहिसँ नीक जे अपन पैर पर ठाढ़ भए जाथि, संगीत साधना करथि। ई देवक लीला अछि जे एहि समय पर अहाँ गाम आबि गेलहुँ। गामक हबामे जेना रोगक कीटाणु आबि गेल छैक। एतए मत्यु टा निश्चित छैक आर किछु नहि। एहना स्थितिमे संगीतक मृत्यु भए जाए ताहिसँ नीक जे उदित अहाँक संग बनारस नाटक मण्डलीमे चलि जाथि। अहाँ बुते ई होएत हर्षित”?
“की कहैत छी गुलाब भाइ। उदित अहाँक पुत्र छी आऽ हमर क्यो नहि? मुदा संगीतक पारखीक प्रतिभा नाटक मण्डलीमे कुण्ठित नहि भए जएतैक। नाटक मण्डली तँ हमरा लोकनिक सनक अल्प ज्ञानीक लेल छैक”।
“नहि हर्षित। ओतए उदितकेँ हनुमानक आऽ रामक आशीर्वाद भेटतन्हि। संगीतक कतेक रास पक्ष छैक। नव-नव बाधा पार करताह आऽ अल्प समयमे संगीत फुरेतन्हि। ओतएसँ हिनकर साधना आगाँ बढ़तन्हि”।
गुलाब जेना हर्षितक बाट जोहि रहल छलाह। बजिते-बजिते प्राण जेना उखड़ए लगलन्हि। बेटाक माथ पर थरथराइत हाथ रखलन्हि, तँ दौगि कए हर्षित गंगा जल आनि मुँहमे एक दिशिसँ देलन्हि मुदा जल मुँहक दोसर दिशिसँ टघरि कए बाहर आबि गेल।
काशीक तट पर विद्यापतिक बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे सँ लऽ कए भिन्न-भिन्न धार्मिक आऽ लौकिक गीत गाबथि ओकर सुर बनाबथि आऽ ताहि लेल उदितकेँ प्रशंसा सेहो भेटन्हि। आयुक न्यूनता सेहो कहियो काल उपलब्धिक मार्गकेँ रोकि दैत छैक। उदित मात्र ११ वर्षमे काशी गेलाह आऽ ताहि द्वारे हुनकर स्वरक आऽ सुरक बहुत गोटे ग्राहक बनि गेलन्हि, ग्राहक नञि शोषक कहू। सभटा परिश्रम हिनकासँ करबाए लैत छलन्हि आऽ नाम अपन दऽ दए जाइत छलाह। मुदा उदित समय, आयु आऽ गुरुक आसमे दिन काटि रहल छलाह। दिन बड़ मुशकिलसँ कटैत छैक मुदा फेर लागए लगैत छैक, मुदा जौँ एकहि ढर्रा पर चलैत जाइत छैक तँ लागए लगैत छैक जे सालक साल कोना बीति गेल। उदित ११ वर्षसँ २६ वर्ष धरि नाटक कम्पनीमे काज करैत रहलाह।
“शास्त्री जी। ई सुर तँ हमही बनओने छी, मुदा मोन कनेक विचलित अछि ताहि द्वारे दोसर सुर नञि बनि पाबि रहल अछि। उदितकेँ बजाऽ लैत छी। ओहो हमरासँ किछु सिखने अछि, किछु समाधान निकालि लेत”। महान संगीत उपासक भट्ट जीक सोझाँ हर्षित बाजि रहल छलाह।
“हँ हँ। अवश्य बजा लिऔक”। भट्ट जी बजलाह।
मुदा उदित जखन आबि कए संगीतकेँ जाहि सरलतासँ सिद्ध कए सुर गाबि देलन्हि, ताहिसँ भट्टजीकेँ बुझबामे भाँगठ नहि रहलन्हि, जे वास्तविक कलाकार हर्षित नहि उदित छथि। भट्ट जी एकटा एहन शिष्यक ताकिमे छलाह जे प्रतिभावान आऽ साधक होथि, जिनका भट्टजी अपन सभटा कला सौँपि निश्चिन्त भए दए सकथि। आइ से शिष्य भेटि गेलन्हि हुनका। उदितकेँ अपना आश्रममे चलबाक जखन ओऽ नोत देलन्हि तँ उदित दौगि कए अपन प्रकोष्ठ चलि गेलाह, आऽ पिताक फोटोकेँ निकालि कए जे कननाइ शुरू कएलन्हि, तँ १५ सालसँ रोकल धार छहर तोड़ि बहराए लागल।
नाटक कम्पनीमे जेहन एकरूपता छल, तकर विपरीत गुरुआश्रममे वैविध्यता छल। सभ दिन उदित सूर्योदयसँ पूर्व उठैत छलाह आऽ संगीत साधनामे लीन भए जाइत छलाह। शिष्य गुरुकेँ पाबि धन्य छल आऽ गुरु शिष्यकेँ पाबि कए। दिन बीतए लागल मुदा भातखण्डे आऽ पलुस्कर महाराज द्वारा संस्कृत साहित्यक आधार पर संगीतक कएल गेल पुनुरोद्धार तँ गङ्गाक धार जेकाँ निर्मल आऽ चिर छल। जतेक गँहीर उदित ओहि धारमे उतरथि, मोन करन्हि जे आर गँहीर जाइ। २५ साल धरि गुरुक आश्रममे उदित रहलाह। ५१ वर्षक जखन भेलाह तँ गुरु ई कहि बिदा कएलन्हि जे उदित आब अहाँ शिष्य नहि गुरुक भूमिका करू। संगीतशास्त्रक पुनरोद्धार भए चुकल छैक, आङ्ल लोकनिक पाश्चात्य संगीत पद्धति अनबाक प्रयास विफल भए चुकल अछि, आऽ आब भारत स्वतंत्र सेहो भए चुकल अछि। जाऊ आऽ शास्त्र द्वारा प्रदत्त संगीतक दोसर पुनर्जागरणक योद्धा बनू।
५१ वर्षक आयुमे स्वतंत्र भारतमे उदित नोकरी तकनाइ शुरू कएलन्हि। काशीक एकटा संगीत विद्यालय सहर्ष हुनका स्वीकार कए लेलकन्हि। मुदा ३६ वर्षक संगीत साधनाक साधल स्वर काशी विश्वविद्यालय तक पहुँचि गेलैक। शिष्यक पंक्त्ति लागए लगलन्हि। श्रद्धाक प्रतीक, मुदा भारतक नव स्वरूपमे कतेको गोटे शास्त्रीय संगीतक व्यापार सेहो शुरु कएलन्हि, मुदा प्रचारसँ दूर मात्र गुरु शिष्य परम्पराकेँ आधार बनाऽ कए आगू बढ़बैत रहलाह् उदित। हुनकर शिष्य सभ देश विदेसमे नाम करए लागल। तखन काशी विश्वविद्यालय शिक्षक रूपमे हिनका नियुक्त्त कए लेलकन्हि। मुदा ओतए नियम छल जे बिना पी.एच.डी. कएने ककरो विभागक अध्यक्ष नहि बनाओल जाऽ सकैत अछि। मुदा विभागमे उदितसँ बेशी श्रेष्ठ तँ क्यो छल नहि। जेना आङ्ल जन कए गेल छलाह, गुरुकुलसँ पढ़निहारकेँ कोनो डिग्री नहि भेटैत छल आऽ ओऽ सरकारी नोकरीक योग्य नहि होइत छल। उदितक लगमे सेहो ताहि प्रकारक कोनो औपचारिक डिग्री नहि छलन्हि। विश्वविद्यालयक सीनेटक बैसकी भेल आऽ ताहिमे विश्वविद्यालय अपन नियमकेँ शिथिल कएलक, आऽ उदितकेँ संगीतक विभागाध्यक्ष बनाओल गेल। ओतए सेवानिवृत्ति धरि उदित अपन प्रशासनिक क्षमताक परिचय देलन्हि। भातखण्डेक अनुरूप कतेक खण्डमे संगीतक शास्त्रक परिचय देलन्हि उदित। उदितक शिष्य सभक दृश्य-श्रव्य रेकार्ड बहरा गेल छलन्हि, मुदा उदित स्टुडियो आऽ जनताक समक्ष अपन कार्यक्रमसँ अपन साधना भंग नहि करैत छलाह। भोरक साधनासँ साँझक सुर भेटन्हि आऽ साँझक साधनासँ भोरक। हुनकर शिष्य सभ उदितकेँ बिना कहने एकटा अभिनन्दन कार्यक्रम रखलन्हि। ओतए रेकार्डिङ्ग केर व्यवस्था छल। उदित अभिनन्दन कार्यक्रममे अएलाह। आयु ७५ वर्षक छलन्हि हुनकर। श्रोता रहथि देशक सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय संगीतकार लोकनि आऽ उदितक शिष्य-मण्डली। जखन उदित शुरू भेलाह तखन हुनकर शिष्य लोकनि चारू दिशि ताकि रहल छलाह। हुनकर लोकनिक गुरुक स्वर हुनका सभकेँ छोड़ि सद्यः आर क्यो नहि सुनने छल। मुदा शिष्य लोकनिकेँ सुनला उत्तर सभकेँ अभिलाषा छलैक जे जखन शिष्य लोकनि एहन छथि तखन गुरु केहन होएताह। ७५ वर्षक एहि योद्धाकेँ सुनैत सुनैत सगीतक महारथी नव रसक संग हँसथि आऽ कानथि, मुदा शिष्य लोकनि विभोर भए मात्र कानथि।
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