भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Monday, July 28, 2008

'विदेह' १ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक६. पद्य अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरीश्री गंगेश गुंजनज्योति झा चौधरीगजेन्द्र ठाकुर शैलेन्द्र मोहन झा

६. पद्य
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ. श्री गंगेश गुंजन
आ.पद्य ज्योति झा चौधरी
इ.पद्य गजेन्द्र ठाकुर शैलेन्द्र मोहन झा
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
18.
भजन विनय

सुनू-सुनू औ भगवान,
अहाँक बिना जाइ अछि
आब अधम मोरा प्राण॥
कतेक शुरके मनाबल निशिदिन
कियो न सुनलनि कान,
अति दयालु सूनि अहाँक शरण अयलहुँ जानि॥
बन्धु वर्ग कुटुम्ब सभ छथि बहुत धनवान,
हमर दुःख देखि-देखि हुनकौ होइ छनि हानि।।
रामजी निरास एक अहाँक आशा जानि,
कृपा करी हेरु नाथ,
अशरण जन जानि॥

19.

महेशवाणी

देखु देखु ऐ मैना,
गौरी दाइक वर आयल छथि,
परिछब हम कोना।
अंगमे भसम छनि,भाल चन्द्रमा
विषधर सभ अंगमे,
हम निकट जायब कोना॥
बाघ छाल ऊपर शोभनि,मुण्डमाल गहना,
भूत प्रेत संग अयलनि,बरियाती कोना॥
कर त्रिशूल डामरु बघछाला नीन नयना
हाथी घोड़ा छड़ि पालकी वाहन बरद बौना॥
कहथि रामजी सुनु ऐ मनाइन,
इहो छथि परम प्रवीणा,
तीन लोकके मालिक थीका,
करु जमाय अपना॥

20.

महेशवानी

एहेन वर करब हम गौरी दाइके कोना॥
सगर देह साँप छनि, बाघ छाल ओढ़ना,
भस्म छनि देहमे,विकट लगनि कोना॥
जटामे गंगाजी हुहुआइ छथि जेना,
कण्ठमे मुण्डमाल शोभए छनि कोना॥
माथे पर चन्द्रमा विराजथि तिलक जेकाँ,
हाथि घोड़ा छाड़ि पालकी,बड़द चढ़ल बौना॥
भनथि रामजी सुनु ऐ मैना, गौरी दाइ बड़े भागे,
पौलनि कैलाशपति ऐना॥

21.

भजन विहाग

राम बिनु विपति हरे को मोर॥

अति दयालु कोशल पै प्रभुजी,

जानत सभ निचोर,

मो सम अधम कुटिल कायर खल,

भेटत नहि क्यो ओर॥

ता’ नञ शरण आइ हरिके हेरू प्लक एक बेर,

गणिका गिद्ध अजामिल तारो

पतित अनेको ढेर॥

दुःख सागरमे हम पड़ल छी,

जौँ न करब प्रभु खोज,

नौँ मेरो दुःख कौन हारावन,

छड़ि अहाँ के और॥

विपति निदान पड़ल अछि निशि दिन नाहि सहायक और,

रामजी अशरण शरण राखु प्रभु,

कृपा दृष्टि अब हेरि॥

(अनुवर्तते)
2. गंगेश गुंजन श्री गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ' शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
बीच बाट पर खसल लाल गमछा

हमरा सं पहिने गेनहार लोक देखि , बढ़ि गेल हएत
सड़क पर आगां। राजधानी जेना प्रतिदिन बढ़ि जाइत अछि
अपनहि पिछड़ल प्रदेश सभकें छोड़ि क'
प्रगति जकां अमूर्त्त आगां।
हम देखलियैक चिन्हवाक कयलियैक यत्न
कोनो दुर्घटनाक शिकार नेना जकां बुझायल -
हवा मे छटपटाइत-उधियाइत-धूल धूसरित भेल।
एक क्षण रुकि क' उठा लेवाक चाही एकरा, हमरा।
मुदा पीठ पर , बामा दहिना पांतीक पांती गाड़ीक
संहार प्रलापी चीत्कार करैत पथियाक पथिया
सड़कक भड़ भड़ हल्ला पाछां सं ठोकर जे मारि दैत।
सेकेण्डक दशांशो रुकवाक विचार कयलौं कि
स्वयं भ' जायब, बीच सड़क पर ओहिना थकुचा-थकुचा।

उठा लियैक ओकरा कोरा, मन मे आयलए-
एना कोना पड़ल रहि जाय दियैक असहाय-अनाथ!
असंभव बनल जा रहल, राजधानीक खुंखार व्यस्त सड़क पर।
ममता आ चिन्ता आब ?
आब ओ गाड़ी सभक गुड़कैत पहिया सभ सं आंदोलित हवाक
दबाब मे दुर्घटना सं चोटायल बीच बाट पर ओंघड़ाएल
छटपटा रहल अछि। मोड़ाइत-थकुचाइत-उधियाइत परिधि मे
असकर बिरड़ो जकां घुरमैत।
विचित्रे आयल अनचोखे एकटा विचार
ओ हमरा सोवियत रूस बुझाय लागल।
आब हमरा रूसे देखाइत रहल ....
मुदा से कोना संभव अछि ?
तखन की , थिक ई ढहल ओकर महान ध्वजा ?
भू-लुंठित लाल ई ? की ?
सोझां मे भूमि पर होइत लतखुर्दनि !
सभक लेखें धनि सन ,
बेशी सभ्य लोकनि कें एतवो ने फिकिर-
जे पैर नहि पड़वाक चाही कथमपि ध्वजा पर ।
एतवो नहि ध्यान !
बहुत आगां धरि जा क' भ' पओलहुं कनीक धीमा, फेर ठाढ़,
घुमैत पाछां,-चेष्टा, फेर चेष्टा मुदा, जाः आब तं ओ
कोनो गाड़ीक पहिया संगे लेपटाइत-लेढ़ाइत
कतहु आगां चलि गेल। आब ?
सोचैत छी, मने मन मूड़ी झंटैत छी,
छातीफाड़ पछताइत छी-नाभि लग सं
नाक-श्वांस नली धरि औंनाइत छी,
अपन कोन हाथ ?
उठा क' माथ सं लगाब' चौहत छी ,
दिल्लीक एहि सड़क पर गामक मुरेठा जकां
बान्ह'चाहैत छी ओकरा,
सड़क पर खसल ई लावारिस लाल गमछा ।

मस्तके पर शोभैत छैक लाल रंग,
ध्वजेक रूप मे रहैत छैक ओकर मान-मर्यादा ।
भने से कोनो हाड़तोड़ श्रम सं
ड्यूटीक झमारल बस पर ओंघाइत जाइत मजूरक कान्ह पर सं
उधिया क'खसि पड़ल हो, चलि गेल होइ खिड़की सं बाहर,
बाट मे,लेढ़ा रहल ललका गमछा-
सड़क पर धांगल जाइत राक्षस ट््रैफिक सं।

आत्मा, झकझोरि एना कियेक क' गेल , उद्विग्न हमरा -
माथ पर बान्हि लेबा लेए मुरेठा
सड़क पर भू-लुंठित ई रक्तधूरि वर्ण गमछा !



ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

बरखा तू आब कहिया जेबैं
1
बरखा तू आब कहिया जेबै
अकच्छ भेलौ सब तोरा सॅं
बुझलियौ तू छै बड जरूरी
लेकिन अतीव सर्वत्र वर्जित छै
आर कतेक तंग तू करबैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

बेंग सब फुदकि फुदकि कऽ
घुसि रहल घर - ऑंगन में
ओकरा खिहारैत सॉंपो आयत
तरह - तरह के बिमारीक जड़ि
मच्छड़ सभके खुशहाल केलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

कतौ बाढ़ि सॅं घर दहाइत अछि
कतौ गाछ उखड़ि खसि पड़ल
कतेक खतरा तोरा संग आयल
आन-जान दुर्लभ तोरा कारण
आढ़ि सभ कादो सऽ भरलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

टूटल फूटल खपरी सऽ छाड़ल
गरीबक कुटिया कोनाक सहत
तोहर निरन्तर प््रावाहक मारि
पशु-पक्षी सेहो आश्रयहीन भेल
नञहर के तू सासुर बुझलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

तोहर जाइत देरी शीतलहरी
अप्पन प््राकोप देखाबऽचाहत
मुदा पहिने आयत शरद ऋतु
कनिके दिनक आनन्दी लऽ कऽ
पनिसोखा देखेनाई नञ बिसरिहैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं।
*****

1. शैलेन्द्र मोहन झा 2. गजेन्द्र ठाकुर
1. शैलेन्द्र मोहन झा

सौभाग्यसँ हम ओहि गोनू झाक गाम, भरवारासँ छी, जिनका सम्पूर्ण भारत, हास्यशिरोमणिक नामसँ जनैत अछि। वर्तमानमे हम टाटा मोटर्स फाइनेन्स लिमिटेड, सम्बलपुरमे प्रबन्धकक रूपमे कार्यरत छी।
चलला मुरारी छौरी फ़ँसबय !

एक दिनक गप्प अछि, हमर मित्रगण हमरा कहय लगला -
शैलेन्द्र, अन्हां के कोनो गर्ल फ़्रैन्ड नहिं?

हम कहलियनि - दोस, ई भारत अछि, इन्गलैन्ड नहिं!
अखन गर्ल फ़्रैन्ड क जरूरत नहिं,
अखन त पढय - लिखय के दिन अछि, प्रेम करय के मुहुरत नहिं!!

सब मित्र कहय लगला, हम अनाडी छी
जौं कोनो छौरी फ़ंसाबी, तहने हम खिलाडी छी

ई सब हमरा सहल नहिं गेल,
बिना ई दुस्कर्म कयने रहल नहिं गेल
फ़ेर की छ्ल? हम ताकय लगलहुं एकटा फ़्रैन्ड,
फ़्रैन्ड नहिं, गर्ल फ़्रैन्ड......

मुदा एकटा मुश्किल छ्ल -
हमरा छौरी सब स लगैत छ्ल बड्ड डर
जौं हुनक सैन्डल गेल पडि, त इज्जत जायत उतरि
तैयो हमरा प्रमाणित करय के छ्ल, कहुना कय एकटा छौडी पटबय के छ्ल

त कुदि पडलौं मैदान में, या ई कहु श्मशान में,
कियाकि, पिटला के बाद ओत्तहि जायब, फ़ीरि क मुंह नहिं देखायब
बन्हलहुं माथ पर कफन, कय सब डर के करेज में दफन
निकलि पडलहुं हम बाट में, एक छौरी के ताक में

सब सं पहिने प्रार्थना कयलहुं -
हे किशन कन्हैया! आंहां त अहि कर्म में खिलाडी छी
हमरो खिलाडी बना दिअ,
हमरा सोलह हजार गोपी नहिं, केवल एकटा छौडी फ़ंसवा दिअ
आंहाके बड्ड गुणगान करब,
फ़ंसिते छौरी, सवा रुपैया के प्रसाद चढायब

हम सोचलहुं, शायद आंखि मारला सं छौरी पटै छैक!
हमरा कि बुझल छल, आंखि मारला सं छौरी पीटै छैक
भागि कय घर अयलहुं, आर पहिल सप्पत खेलहुं
फ़ेर कहियो आंखि नहिं मारब.

फ़ेर सोचलहुं - पहिने बतियायब, फ़ेर घुमायब तहन फ़ंसायब
हं, ई ठीक रहत!

देखलहुं एकटा छौरी, त आंखि हमर फ़रकल....
फ़ेर की छ्ल? हम कहलौं-
पोखरि सन आंखि तोहर, केश जेना मेघ,
फ़ूल सन ठोढ तोहर, कहियो असगर में त भेट!

कहलहुं हम एतबे की भय गेली ओ लाल,
ओ मारलीह एहन थप्पड, भेल गाल हमर लाल
कनबोज सुन्न भेल हमर, आंखि भेल अन्हार
सूझय लागल तरेगन, भेल दुपहरिया में अन्हार
सरधुआ, करमघट्टु, बपटुगरा आर अभागल
देखू कपार हम्मर, ई विशेषण हाथ लागल

एतबे नहिं........
ओ करय लगलीह हल्ला, जूटय लागल मोहल्ला
हम कहलौं - ई कोन काज केलहुं? कियक गाम के बजेलहुं
नहिं पटितौं हमरा सं, ई आफ़त कियक बजेलहुं

फ़ेर की छल?
पिटय लगलहुं हम आर पीटय लगला गौंआं
मुंह कान तोडि देलक, अधमरु कय क छोरलक
ई कोन काल घेरलक, मरय में नहिं छल भांगठ,

हम भागि घर एलहुं, दुबारा सप्पत खेलहुं -
फ़ेर आंखि नहिं मारब, नै गीत हम गायब,
फ़ेर छौरी नहिं फ़ंसायब, नै जान हम गमायब,
आर भूलि कय अंग्रेजी, हम मैथिल बनि जायब!
आर भूलि कय अंग्रेजी, हम मैथिल बनि जायब!!



2. गजेन्द्र ठाकुर


पुनः स्मृति

बितल बर्ख बितल युग,
बितल सहस्राब्दि आब,
मोन पाड़ि थाकल की,
होयत स्मृतिक शाप।

वैह पुनः पुनः घटित,
हारि हमर विजय ओकर,
नहि लेलहुँ पाठ कोनो,
स्मृतिसँ पुनः पुनः।

सभक योग यावत नहि,
होएत गए सम्मिलन,
हारि हमर विजए ओकर,
होएत कखनहु नहि बन्द।

(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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