हम नहि जायब विदेश
“यौ भैय्या। कनेक काकासँ भेँट नहि करा देब”।
“काका छथि अहाँक। आ’ भेँट करा दिअ हम”।
“यौ। ओ’ तँ हमरा सभकेँ चिन्हितो नहि छथि। बच्चेमे गामसँ निकलि गेलथि , से घुरि कए कहाँ अएलाह”।
“बेश। तखन चलू भेँट करबा’ दैत छी। मुदा कोनो पैरवी आकि काज होय तँ पहिने कहि दैत छी, से ओ’ नहि करताह”।
“नहि। कोनो काज नहि अछि। मात्र भेँट करबाक इच्छा अछि। भारत वर्षमे एतेक नाम छन्हि, सभ चिन्हैत छन्हि, मुदा नहिये हमरा सभ चिन्हैत छियन्हि , आऽ नहि वैह चिन्हैत छथि”।
लाल गेल छलाह दस दिन पहिने, द्विजेन्द्र जीक घर पर। जाइते देरी लालक कटाक्ष शुरू भ’ जाइत छन्हि। गामकेँ बिसरि गेलियैक। घुरि क’ देखबो नहि कएलहुँ। खोपड़ीकेँ घर त’ बना लैतहुँ।आ’ जबाबो भेटन्हि, ओहिना बनल बनाओल।जे जा’ कय की करब। एक कट्ठाक घरारी आ’ ताहि पर कतेक बाबूक कतेक भाँय। आ’ फेर वामपंथी विचारधाराक चिन्तन शुरू भ’ जाइत छलन्हि। गाम अछि धनीकक लेल। यावत गामक जनसंख्या कम नहि होयत तावत धरि तँ अवश्ये। गरीबीमे लोककेँ लोक नहि बुझैत अछि क्यो। मुदा नगर मात्र दिल्ली, कलकत्ता नहि अछि। यावत मधेपुर, मधेपुरा, बनैली आ’ झंझारपुरक विकास नहि होयत, शोषित वर्ग रहबे करत। तावत द्विजेन्द्र जीक कनियाँ चाह राखि गेलथि।
द्विजेन्द्रजी गामेमे प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कएलन्हि।झंझारपुरमे मिड्ल स्कूल आ’ हाइ स्कूल पैरे जाथि। पिताजी राँचीमे ठिकेदारी करैत छलखिन्ह। माय पढ़ल-लिखल छलीह। लोक कहैत छल जे उपन्यास सेहो पढ़ैत छलीह।
दरभंगासँ सोझे प्रयाग पहुँचि गेलाह द्विजेन्द्र। पिता छलाह नबका बसातक लोक। खूब कमाथि आ’ खूब खर्च करथि। गामसँ कोनो सरोकार नहि। कनियाँक खोजो-खबरि नहि लैत छलाह। लोक कहैत छल जे दोसर बिआह क’ लेने छलाह राँचीमे। लोक ईहो कहैत अछि, जे यावत गाममे छलाह ओ’ तावतो वैह हाल छलन्हि। बेरू पहर तीन बजेसँ कनियाँ हुनका लेल भाङ पीसब प्रारम्भ क’ दैत छलीह। मुदा बड़का बेटाकेँ खूब मानैत छलाह। छोटका बेटा हुनके पर गेल छलन्हि। नाम छल हरेन्द्र आ’ लोक कहैत अछि, जे पटनाक कोनो गैराजमे काज करैत रहथि। द्विजेन्द्र गुरु-गम्भीर, पढ़बामे तेज, सभ विषयमे पितासँ विपरीत। आ’ ताहि द्वारे पिता हुनकर खर्च पठेबामे कोनो विलम्ब नहि करैत छलाह। एहि पठाओल पाइसँ द्विजेन्द्र छोट भाइकेँ सेहो नुकाकेँ पाइ पठा दैत छलाह। मायक सुधि मुदा हुनको नहि रहैत छलन्हि, आकि भ’ सकैत अछि जे ओतेक पाइ आ’ समय नहि रहैत होयतन्हि।
माय बेचारीकेँ क्यो कहि दएन्हि, जे बेटाकेँ फेर फर्स्ट डिवीजन भेल छन्हि, आकि पतिकेँ हाइवे केर ठेका भेटि गेल छन्हि, तँ ओ’ तिरपित भ’ जाइत छलीह। गाममे बटाइदार सभ जे किछु द’ दएन्हि ताहिसँ कोनो तरहेँ गुजर चलि जाइत छलन्हि। नील रंगक नूआ, रुबिया वाइल कहैत छल कोटाक दोकान बला सभ ओहि नूआकेँ, सेहो सस्तमे भेटि जाइत छलन्हि, ओहि कोटा बला दोकानसँ। रने-बने गाछीमे घुमय पड़ैत छलन्हि जारनिक हेतु। गाममे सभक गुजर कोहुनाकेँ भ’ जाइत छैक ।
आ’ एम्हर ठेकेदार साहेब पैघ बेटाकेँ समय पर पाइ पठेबाक अतिरिक्त्त अपन सभ कर्त्तव्य बिसरि गेल छलाह। कमाउ आ’ खाउ छल मात्र हुनकर मंत्र। गाम-घरसँ कोनो मतलबे नहि।
द्विजेन्द्र इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे सभक आदर्श बनि गेल छलाह। इतिहास विषयक तिथि सभ हुनकर संगी बनि गेल छल। विश्वविद्यालयमे सर्वप्रथम तँ अबिते रहथि, संगहि हुनकर चालि-चलन, गुरु-गम्भीर स्वभाव, परिपक्व मानसिकता एहि सभसँ सभ क्यो प्रभावित रहैत छल। संगी-साथी सेहो कम्मे छलन्हि। एकटा संगी छलन्हि उपेन्द्र आ’ एकटा आलोक। महिला संगी कोनोटा नहि। ओ’ सभ कहितो छलीह जे द्विजेन्द्र तँ घुरि कय तकितो नहि छथि। ओहिमे एकटा छलीह अरुन्धती।पढ़बामे तेज, राजनीति विज्ञानक विद्यार्थी। प्रतियोगी स्वभावक छलीह। बापक दुलारू, आ’ पिताकेँ हुनका पर सेहो असीम विश्वास छलन्हि।एडवान्स कहि सकैत छी। द्विजेन्द्रसँ बहुत बिन्दु पर सुझावक आकांक्षी छलीह। मुदा द्विजेन्द्र बाबू तँ दोसरे लोक छलाह। घरक कोनो गप तँ ककरो बुझल नहि रहैक। मुदा से कारण छल जे द्विजेन्द्र सभक प्रति निरपेक्ष रहैत छलाह।
“यौ उपेन्द्र। राजनीति विज्ञानमे तँ हमरा कोनो दिक्कत नहि अछि, मुदा इतिहासमे तिथि आ’ दृष्टिकोणसँ बड्ड दिक्कतिमे पड़ि गेल छी”।अरुन्धती उपेन्द्रसँ पुछलन्हि।
आ’ दुनू गोटे इतिहास पर अपन- अपन दृष्टिकोण एक दोसरकेँ देबय लगलथि।रासबिहारी बोस आजाद हिन्द फ्औजक स्थापना कएलन्हि सुभाष चन्द्र बोस नहि आ’ नीलक खेतीक हेतु सरखेज जे गुजरातमे छल बड्ड प्रसिद्ध छल, धोलावीर सभसँ पैघ सिन्धु घाटी आकि सरस्वती नदी सभ्यताक स्थल छल आ’ दारा शिकोहकेँ सभसँ पैघ मनसब देल गेल छल, उपेन्द्र ई सभ गप द्विजेन्द्रसँ पूछि कए आबथि आ’ फेर अरुन्धतीसँ वार्त्तालाप करथि।एहिमे समयक हानि होइत छल। से उपेन्द्र कहलन्हि, जे किएक नहि द्विजेन्द्रकेँ सेहो अपन समूहमे शामिल कए लेल जाय।
” मात्र द्विजेन्द्रकेँ शामिल करू। बेशी गोटेकेँ आनब तँ पढ़ाइ कम आ’ गप सरक्का बेशी होयत”।
उपेन्द्रक कहलासँ द्विजेन्द्र आबय लगलाह, सामूहिक अध्ययनमे।
तावत एक दिन समाचार आयल जे पिताक मोन बड्ड खराब छन्हि। पहुँचलाह तँ लीवर खराब होयबाक समाचार भेटलन्हि। सतमायसँ सेहो भेँट भेलन्हि।गाम-घर पर कोनो खबरि नहि। फेर 15 दिनमे मृत्यु भ’ गेलन्हि पिताक। गाम पर तखन जा’ कय खबरि भेल। नहि तँ कोनो पता,नञ तँ कोनो फोन। माय बेचारी कनैत रहि गेलीह। बेटा दाह-संस्कारक बाद सोझे प्रयाग चलि गेलाह। गाम घुरियो क’ नहि गेलाह।
मायक खिस्सा यैह अछि, जे फेर ओ’ गुम-शुम रहय लगलीह। कोनो चीजक ठेकान नहि रहन्हि। एक बेर तँ डिबिया सँ चारक घरमे तेहन आगि लागि गेल जे सौँसे टोल जरि गेल। ओहि समयमे सभकेँ चारक घर रहैक। सभ घर एक दोसरसँ सटल। पूरा टोल जरि गेल। सभ कहय जे द्विजेन्द्रक माय उपन्यास पढ़ैत-पढ़ैत सुति गेलीह आ’ डिबियामे हाथ लागि गेलन्हि।सौँसे टोल जरैत रहय, आ’ ओ’ भेर भेल सूतल छलीह। ककरो फुरेलइ तँ हुनका उठा-पुठा क’ बाहर कएलक। बादमे हुनकर आरो अवहेलना होमय लागल। लोक गारि सेहो पढ़ि देने छलन्हि कताक बेर। ओहिनामे एक बेर जारक झपसीमे गुजरि गेलीह। द्विजेन्द्रक पता सेहो नहि छलन्हि ककरो लग। घरारीक लोभमे एक गोट समाङ आगि देलकन्हि।
द्विजेन्द्रक निकटता अरुन्धतीसँ बढ़य लगलन्हि। उपेन्द्रकेँ अरुन्धती एक बेर कहियो देलखिन्ह जे अहाँ सीढ़ी छलहुँ हमर आ’ द्विजेन्द्रक बीचमे। अरुन्धतीक माय सेहो बच्चेमे गुजरि गेल छलीह। पिताक दुलरी छलीहे ओ’। अरुन्धतीक कहला पर द्विजेन्द्र आबि गेलाह हुनका घर पर रहबाक लेल। संगे पढ़लन्हि, आ’ फेर दुनू गोटे प्रयाग विश्वविद्यालयमे प्रोफेसर बनि गेलाह।विवाह सेहो भ’ गेलन्हि। मात्र मधुबनीक एक गोट पीसाकेँ बुझल छलन्हि हिनकर विवाहक बात।पीसा छलाह पत्रकार आ’ मधुबनीक कोनो हॉस्पीटलमे काज केनहारि केरलक नर्स सँ ताहि जमानामे विवाह कएने छलाह।घर परिवार हुनका बारि जेकाँ देने छलन्हि। मुदा छलाह बड्ड नीक लोक।द्विजेन्द्रकेँ वैह बेर-बखत पर कहियो काल मदति करैत छलाह।मुदा विवाहमे ओहो नहि अयलाह।अपन सलाहो देने छलाह एहि विवाहक विरुद्ध। अपन उदाहरण देलन्हि, जे कतेक दिक्कत भेलन्हि।मुदा संगमे ईहो कहलन्हि, जे अहाँकेँ तँ बाहर रहबाक अछि। हम तँ मधुबनीमे रहैत छलहुँ, कहियो कनियाकेँ गामो नहि ल’ जा’ सकलहुँ।
द्विजेंन्द्रकरिसर्च पर रिसर्च प्रकाशित होइत गेलन्हि। देश-विदेशमे सेमीनार पर जाथि। अरुन्धती जेना बेर पर मदति कएने छलीह, तकरा बाद द्विजेन्द्र अपना पर भरोस कएनाइ छोड़ि देने छलाह। वामपंथी इतिहासकारक रूपमे छवि बना’ कय मात्र इतिहास आ’ पुरातत्त्व सँ सम्पर्क बनओने छलाह। सालक-साल बितैत गेल। गामक लोकमे मात्र लाल छलाह जे ओहि नगरमे रहैत छलाह आ’ ताहि द्वारे कहियो काल भेँट क’ अबैत छलखिन्ह। लालक गप पर अनुत्तरित भ’ जाइत छलाह द्विजेन्द्र। मायक कोनो चर्चा पर नोर पीबि जाइत छलाह। सोचने रहथि जे किछु बनि जयताहतँ मायकेँ संग आनि रखितथि आ’ सभ पापक पश्चाताप क’ लितथि। मुदा यावत अपन खर्चा नहि जुमन्हि तवततँ ओ’ जीवित रहलीह आ’ जखन किछु बनलाह तँ तकर पहिनहि छोड़ि गेलीह। कोन मुँह ककरा देखेतथि।
आ’ जखन लाल पहुँचलाह हुनका लगमे ई बजैत जे लियह, भातिज आयल छथि भेँट करबाक हेतु, अहाँ तँ कोनो सरोकार ककरोसँ रखबे नहि कएलहुँ, तँ पहिल बेर बजलाह द्विजेन्द्र-
“कोन सरोकार मायसँ पैघ छल यौ लाल, जे अहाँ कहैत छी जे हम ककरोसँ सरोकार नहि रखने छी”।
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