भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Thursday, July 17, 2008

पेटार १०

ई संग्रह इलारानी सिंह, श्रीकान्त वर्मा, गजेन्द्र ठाकुर, राजकमल चौधरी आदि कविक पंकज पराशर द्वारा चोराएल रचनाक कारण बैन कए देल गेल। "रचना"पत्रिकाक  कथित अतिथि सम्पादकक रूपमे पंकज पराशर द्वारा कवि-कहानीकार सभसँ रचना मँगबाओल गेल आ तकरा अपना नामसँ छपबाओल गेल। पाठकक आग्रहपर आर्काइवमे ई तथ्य राखल जा रहल अछि।- सम्पादक
कविताक पूर्वरंग
आजुक समय, समाज आ सभ्यतताक जटिलता जेना-जेना बढ़ल अछि, तदनुसारेँ कवि कर्म कठिन भेल जा रहल अछि। कविता सन जीवन बहुत कम बाँचल अछि, मुदा जीवन सन कविता एखनो संभव भ’ रहल अछि। आश्त वित्जन के बाद कविताक सृजन आ सार्थकताक मादे थियोडोर वाइजेनगुंद अडोर्नो कहनेँ छलाह कि आब कविता संभव नहि भ’ सकैत अछि। अखि‍ल भारतीय संदर्भ मे सेहो जाहि तरहक रक्तररंजित आ सर्वथा खंडित स्वातंत्रता हमरा लोकनि केँ भेटल, ताहि पर मैथि‍लीये टा नहि, हिंदीक विशाल काव्या-संसार मे सेहो एहि त्रासदी केँ उल्लेैखनीय ढंग सँ शब्द‍बद्ध नहि कयल जा सकल। की एकरा मात्र संयोग कहल जा सकैत अछि? देश तकर बादो जाहि-‍जा‍हि नृशंस दौर केर सामना कयलक, स्व प्नक-भंगक शिकार भेल, से बहुत रास लोकक संग-संग किछु कविगण केँ सेहो निराशाक शिकार बनौलक तँ किछु कविगण आवेश मे लिखल शब्दं-समूह केँ कविताक नाम पर रचबाक क्रिया केँ सार्थक कवि-कर्म बुझि वायवीय लोक मे जीबैत रहलाह। जखन बर्तोल्ते ब्रेख्ता, सिल्विया प्लॉशथ, स्टीरफन ज्विग, अर्नेस्ट हेंमिग्वेि, काजी नजरूल इस्लारम, निराला, मंटो, बैक्क्म मोहम्मजद बशीर इत्यावदि मोन पड़ैत छथि, तँ सोचैत छी जे जीवन-राग रचबाक आकांक्षी हिनका लोकनि मे सँ किछु कोन मनोदशा मे आत्मैहत्यानक मार्ग चुनलनि आ बहुत रास कवि दुनियाक व्यााकरण सँ बाहर होइत मानसिक असंतुलनक शिकार भ’ गेलाह ?
ज्यांव पॉल सार्त्र केर कृति ‘आउटसाइडर’ केँ मोन पाड़ी, तँ कवि-लेखक अपन मोन मे जाहि तरहक जीवन आ जीवन–विवेक केर यूटोपिया बनौने रहैत छथि, से बेशी काल हुनका नहि भेटैत छनि। तकर परिणामस्वोरूप ओ अनंत निर्वासन आ अछोर आकुलताक शिकार भ’ जाइत छथि। बौआइत रहबाक लेल अभिशप्तव मरीचिकाक पाछां दौड़ैत मृग जकां अपस्यांात भेल एहि असार संसार सँ विदा भ’ जाइत छथि आ मोनक सेहंता मोने लागल रहि जाइत छनि।
एहि परिदृश्यत केर दोसर पक्ष देखी तँ बिरकेनाऊ, बुखेनवाल्डथ आ डखाऊ केर यातना शिविर मे कविताक केहेन भूमिका रहल से ताद्युश बोरोवस्कीे, कॉरडेलिया एडवार्डसन, जॉन अमेरी, प्रीमो लेवी, रूथ क्लोगर आ नीको रॉस्टन केर कविता मे देखल जा सकैत अछि। आत्मनहत्यामजन्य परिस्थिति मे हुनका लोकनिक लेल कोना कविता प्राण आ सखी सन साबित भेलीह, इएह कवि आ कविताक द्वंद्वात्मोकता केँ रेखांकित करैत अछि। बगदाद केर अल-मुतनबी स्ट्री ट पोथी-पत्रिकाक दोकान आ लेखक-बुद्धिजीवीक बैसार लेल चर्चित छल। मुदा अमेरिकी अभियान आ निरंतर बम-विस्फोिटक बाद आब ओहिठाम ढहल-ढनमनाएल मकान आ फाटल-अधजरू पोथी-पत्रिका उ‍‍िड़याइत रहैत अछि। समकालीन अरबी कविताक चर्चित कवि अहमद अब्देाल सारा एहि तरहक परिस्थितिक अछैतो हालाहि मे विराट जनसमूहक सोझां काव्यक पाठ कएनेँ छलाह। हमरा लगैत अछि जे संभवत: एहने परिस्थिति आ परिदृश्यी केँ देखैत जे. एम. सिंज कहनेँ हेताह, “एहि सँ पूर्व कि कविता पुन: मानवता सँ परिपूरित भ’ सकए, कविता केँ आब नृशंस होयब सीख’ पड़तैक। अन्य:था एहि नृशंस दौर केर अभिव्यहक्ति कोमलकांत पदावली आ रस-छंद-अलंकार मे संभव नहि भ’ सकतैक।''
कविताक सोझां आइ कइक तरहक संकट उपस्थित अछि। किछु गोटेँ अपन प्रवृत्तिये सँ कविता-विरोधी, तँ किछु कविताक नाम पर काव्या’भासी रचनाक बहुलताक कारण सँ कविताक भूमिका आ सार्थकता पर प्रश्नउ ठाढ़ क’ रहल छथि। कइक दशक पूर्व सेहो एहि तरहक प्रश्नश कयल जाइत रहल, जे दांते केर कविता विश्वसयुद्धक यातना केँ कोनो तरहेँ कम क’ सकल? गेटे केर रचना नाजी सबहक क्रूरता आ फासीवादक भय केँ प्रभावित क’ सकल? मैथिली कविता पर बहस करैत जखन किछु स्व यंभू आलोचक सेहो एहि तरहक प्रश्नस केँ अपन मौलिक अवधारणा कहि कए प्रचारित करैत छथिन, तँ हम एकरा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य मे देखबाक विनम्र चेष्टाा करैत छी। कांचीनाथ झा ‘किरण’ अपन मिथिला केँ, केन सारो वीवा अपन नाईजीरिया केँ, क्ला‘द मैक्कै आ लैग्ट्र न ह्यूज श्वेटत अमेरिकी समाज केँ जतेक दूर धरि आलो‍िड़त करबा मे सफल भेलाह, तकरा मादे कोनो तरहक संदेह व्यैक्त‍ कएल जा सकैत अछि? मुदा से एमहर कएल जा रहल अछि। दुखद ई जे एकर प्रतिपक्षी स्वरर मे ओ तेज आ त्वफरा नहि देखल जा रहल अछि।
जाहि तरहक इतिहास-दृष्टि सँ प्रत्य क्ष आ अप्रत्येक्ष तौर पर संचालित भ’ रहल अछि मैथिली आलोचना, ताहि सँ स्प्ष्टयत: ज्ञानशून्यच अंधत्व देखार पड़ैत अछि। अद्भुत विडंबना अछि जे ज्ञानगर्भित भाषिक आवरण मे अज्ञानता केँ अलंकार जकॉं धारण क’ कए अहं मे चूर रहबाक प्रवृत्ति चिंताजनक रूप सँ मैथिली आलोचना मे बढ़ल अछि। विचारधारा केँ बुझबाक, गुनबाक आ निरंतर अध्यपयनशील रहबाक बेगरता जेना-जेना बढ़ल अछि, तहिना-तहिना एहि सँ विमुखता सेहो बढ़ल अछि। विश्वब-कविताक प्रवृत्ति, चिंता-धारा आ नव-नव चिंतन-परंपरा सँ अनजान आलोचना जँ एहि नितांत छंद हीनो समय मे आठम-नवम दशकक निकष पर समकालीन कविताक आलोचना करबाक आग्रही हुअए तँ ताहि तेल माथ धुनैत रहबा सँ कौन लाभ? साहित्ये तर लाभ-हानि सँ संचालित आलोचना सँ विशिष्टहताक कोन अपेक्षा? मुदा नहि जानि किएक मोन आइयो कहैत अछि कि मैथिली आलोचनाक शिखर पुरूष लोकनि जँ तात्काालिक लाभ आ निजी संबंधक समीकरण सँ ऊपर उठि जाथि, तँ आशा यथार्थक धरातल पर आइयो मूर्त्त रूप ल’ सकैत अछि।
अपन भूमि आ भूमिका सँ अनभिज्ञ मैथिली आलोचना एखन जाहि तरहक कविताक व्याभख्यान आ प्रशस्ति मे लहालोट होइत विशेषणक भंडार लुटा रहल अछि, ताहि कारण सँ विगत दस बर्ख मे जतेक कविता-संग्रह आयल अछि, तकर सार्थकता-निरर्थकता, रागात्म कता, महत्ता आदि पर विचार नहि कयल जा सकल अछि। दोसर दिस मैथिली काव्यतधारा मे एखनो किछु कविगण अतीत केर गौरव-गानक नाम पर काव्यथशास्त्रीमय रूप-बंध मे धीरोदात्त नायकक गान आठ सर्ग मे करैत प्रमुदित होइत रहैत छथि। विस्मिय होइत अछि जे आजुक छं‍दहीीन समय मे किछु कविगण जगण, मगण, तगण केर आधार पर काव्यक-रचना क’ कए कोना समकालीन यथार्थ केर जटिलता केँ पकड़बा मे सफल भ’ जाइत छथि? दोसर दिस छंदबद्धताक आग्रही विद्वान कविताक वर्गीकरणक नाम पर ‘छांदोग्य ’ आ’ ‘वाजसनेयिनां’ केर विभाजन मे एखनो पूर्ण निष्ठा सँ व्यकस्त छथि। आजुक समय केर भयावह आ ह्दयविदारक यथार्थक बीच जीबैत कविता एहि दबाव सब सँ मुक्त , एकदम तटस्थर आ निरपेक्ष भ’ कए कोना संभव होइत अछि-से हमरा लेल विस्मचयकारी बात थिक। निरपेक्ष कविता आ तटस्थ आलोचना कोना संभव भ' सकैए?
छंदमुक्तसताक नाम पर आइ अधिकांश कविता रस, आं‍तरिक अन्विति, नाद-सौंदर्य आ अभिव्यकक्तिक कला-कौशल सँ मुक्तं जकाँ लगैत अछि। स्मृ तिक व्यावमोह सँ थकित कविताक दबाव एमहर मैथिलीक स्मृकतिजीवी शास्ताए लोकनि पर बढ़ल अछि। मुदा ब्रेख्तक केँ जँ स्मथरण करी, “की अन्हायरो मे गीत गाओल जा सकैत अछि, हाँ, अन्हा्रक मादे गीत गाओल जा सकैत अछि!”
सर्वविदित अछि जे प्रत्ये!क युगक काव्यस-संवेदना अपना लेल फराक प्रतिमान आ काव्यछशास्त्र क मांग करैत अछि। अपन इतिहास दृष्टि हमरा निरंतर भाषा-संस्कृतति, जीवन- दृष्टि केर पुन: पुन: परीक्षणक लेल उत्प्रे रित करैत रहला। अनेक स्वहर आ अनेक स्त-र पर अपन बात कहबाक आकांक्षा आत्मासंघर्ष केँ बढ़बैत रहल। एहि संग्रह केर प्रत्येछक कविता हमर सर्वथा अलग-अलग काव्यस-यात्राक साक्षी अछि। संभवत: एहू दृष्टि सँ ‘समय केँ अकानैत’ सँ एहि संग्रह मे व्याापक स्तसर पर नवता आ परिवर्तित काव्या नुभव केँ लक्षित कयल जा सकैत अछि।
हम जतय, जाहि जीवन–स्थिति आ देशकाल मे रहलहुँ, ताहि सँ आबद्ध रहल हमर शैली, शिल्पा आ काव्य्–भूमि। जकर परिणामस्वेरूप जखन हम बनारस मे छलहुँ, तँ महात्मास बुद्ध सँ संबंधित किछु कविता ‘समय केँ अकानैत’ मे आयल। एमहर किछु वर्ष सँ हिंदुस्तािनी शास्त्री य संगीत केर विभिन्नर घरानाक गायक लोकनिक संपर्क मे अयलहुँ, तँ संगीत आ कविताक संग-संग आजुक दुनिया केँ एकदम फराक दृष्टि सँ देखबाक सुयोग भेटल। एहि संग्रह मे संगीतक संदर्भ, पृष्ठरभूमि आ शब्दासवली मे हमर काव्यग-विवेक आ जीवन-विवेक केँ सेहो देखल जा सकैत अछि। तहिना पािकस्ता न सँ संबंधित किछु कविता अन्हा-रक वर्तमान आ वर्तमानक अतीेत के जाहि दृष्टि सँ देखबाक प्रयत्न स्वारूप संभव भ’ सकल अछि, से हमरा जनैत मैथिली कविता मे नव प्रयास मानल जयबाक चाही। एहि पृष्ठिभूमि आ काव्य्-भूमिक कोनो आन उदाहरण मैथिली कविता मे संभवत: और नहि भेटैत अछि।
हमर पहिल संग्रह ‘समय केँ अकानैत’ मे बहुत रास एहन कविता अछि जकर दू-तीन टा पाठ (Text) भेटि सकैत अछि। पत्रिका मे प्रकाशित भ’ गेलाक बादो संग्रह मे संकलित करबाक समय मे बहुत रास कविता संपादन आ संशोधनक प्रक्रिया सँ गुजरि क’ फराक रूप मे प्रकाशित भेल अछि। अनेक कविता एहन अछि जकरा पूर्णतया री-राइट कएनेँ छी। प्रस्तुेत संग्रह ‘विलंबित कइक युग मे निबद्ध’ मे सेहो पर्याप्त संख्या मे एहेन कविता अछि, जकरा कइक बेर हम लिखनेँ छी आ पत्रिका वा संकलन आदि मे प्रकाशनक बादो तीन-चारि तरहक पाठ भेटि जाइ तँ कोनो आश्चर्य नहि। शब्द -स्फीीति, अभिव्याक्तिगत त्रुटि हमरा एकदम पसिन्न। नहि अछि। प्रयास रहैत अछि कि से न्यू्नतमो सँ न्यू नतम रहए। मुदा छी तँ मनुक्खेग, से संशोधन-परिवर्द्धनक गुंजाइश बचले रहि जाइत अछि।

जेना जीवनक पोथी मे निरंतर संपादन-संशोधन आ परिवर्द्धनक आवश्य्कता रहैत अछि, तहिना कवितो मे। हम जीवन आ कविता दुनूक संदर्भ मे स्फी ति-विरोधी छी। भाषाक प्रश्नो हमर जीवनक प्रश्न सँ नाभिनालबद्ध अछि। हमर भाषिक साकांक्षता, जीवन-रागक प्रति आबद्धता जँ कइक युग मे निबद्ध संवेदनाक विलंबित केर निदर्शन करबा सकए, तँ अपन प्रयास सार्थक लागत।

दिल्लीक: 28.06.2009 पंकज पराशर


अनुक्रम
कविताक पूर्वरंग / 9
स्वर / 17
राग माल-कोष / 20
मारू(ख) विहाग / 22
सोहर / 24
ध्रुपद / 26
खयाल / 28
राग सामंती पचगछिया / 30
विलंबित कइक युग मे निबद्ध / 33
सत्तनजीब / 36
पुरइनि / 38
पृथकावलि / 39
बखरी / 42
धानक खेत / 44
एमहर गाम / 46
पएर / 49
हिसाब / 51
सरकार / 52
शनिचरा / 54
बोनिहारी मोनक आर्तनाद / 57
मूल / 61
पहिया / 64
बिहाड़िक बीच बाट तकैत / 67

इतिहास / 69
भूत / 71
न्याय जारी अछि / 72
बसरा / 74
गरुड़-कागभुशुंडी संवाद / 76
लाहौर / 79
रावलपिंडी / 81
पेशावर / 84
फैसलाबाद / 86
तक्षशिला / 89
ननकाना साहिब / 91
कराची / 92
सरगोधा / 93
वसीयत / 95
जानि नहि किएक / 96
अंत्येह‍िष्ट9 / 97
जखन नहि रहब / 99
समयोर्मि / 100



स्वर
सुर साधनाक शूर सबहक दाबी छनि
कि संपूर्ण ब्रह्माण्डक स्वर
मात्र साते टा स्वर मे अछि मिज्झर

दाबीक निसां मे मांतल ओ लोकनि नहि जनैत छथि
आइ कतेक तरहक रंग बनाकए रसायनज्ञ लोकनि
हटा चुकल छथि सतरंगा अवधारणाक आवरण

सुरक शूरवीर सब किएक नहि सुनि पबैत छथि
गर्भक सुरक्षित लोक सँ आगि मे झोंकाइत
ओहि शिशुक आकुल पुकार
जकर मायक भयाक्रान्त स्वर
सत्ताक चक्रवर्तीत्वक अनघोल मे हेरा गेल?

ओहो चिल्का दुनियाक सारेगामा मे क' सकैत छल निबद्ध
अपन दुधहा किलकारीक स्वर
धैवत आ पंचम मे

कोना अश्लील गर्वोक्ति करैत गछलक अछि भाइ
विशाल अश्वमेधी अभियान मे अपस्‍याँत सम्राट बुश
जे जँ ईराक पर ओ नइ कएनेँ रहितियैक आक्रमण
तँ छओ लाख पचपन हजार इराकी आइ जीवैत रहितथि
तकर सबहक प्राणांतक स्वर सुनलियै गबैया लोकनि?


कलस्टर बम केर विस्फोटक बाद छिड़ियाएल सहस्रो लोकक
अंग-अंग सँ बहराएल जीवनक सेहंता
आ लेबनान मे उड़ैत बमवर्षक यानक आसुरी स्वर
संगीतक कोन स्वर लिपि मे लिपिबद्ध करबैक
मियाँ तानसेन?

कोन राग-भासमे गाओल जा सकैत अछि
सल्फास खा-खा कए आत्महत्या कएनिहार किसानक व्यतथा
कोन ताल मे बजतै छटपटाहटिक तबला?

ओहि संगीत केर संचारी भाव केर की हेतैक स्थायी भाव?

* * *

ककरा-ककरा लग नहि हाथ पसारलक लगमावाली
दू सय टाकाक लेल हैजा मे रद-दस करैत घरवलाक लेल
जिनका अठारह धूर बाड़ीयो पर क्यो नहि देलकनि
डागडर केँ बजेबाक लेल दू सय टाका
आ नहि फटलैक गामक छाती ओकर मुइलो पर
आसन जमा कए श्राद्धक भोज खाइत

हाक्रोस केँ कोन राग आ कोन ताल मे
गाओल जा सकैए बाबा हरिदास?

जकर साओनो मे जाँकल रहैत छलै गोठुल्ला
ताहि मालिनक लहास दस टा गोइठा मे झरका कए
भसा देल गेल गामक डबरा मे
दू टा घैल मे पाथर भरि क ग'र मे
लहास डुबबाक ओ स्वर कोन जलतरंगक छल
अमता घरानाक गायक लोकनि कनेँ कहबैक?


स्वर साधनाक ओ कोन अवस्था थिक जाहि मे
भोलानाथ सँ दुःख हरबाक निहोरा करैत
असंख्य मैथिल नोर-झोर भेल
गीत सँ इतिहासक अन्हार मे हेरा जाइत छथि
जतय सँ सुरहीन भेल घुरैत छथि
आँखि पोछैत, नाक सुड़कैत
एहि असार संसार मे

विचित्रवीणा पर ई कोन राग बाजि रहल अछि
जकर श्मशानोन्मुखी स्वर मार्ग पर तांडव करैत
हेंजक-हेंज लोक केँ ओ ल' जा रहल अछि
ओहि गुफा मे
जतय सँ घुरबाक सभटा हाहाकारी स्वर
अश्वमेधी आकांक्षा मे बिलाइत रहैत अछि!
2006


राग माल-कोष
दूपहर राति धरि लैपटाॅप पर अपस्यांत ओ बिसरि चुकल अछि
अपन पत्नीक सेहंता
आ गर्भस्थ शिशुक चिंता

योग्यताक समुद्र-मंथन मे एकाग्रचित्त ओ
अंतरिक्षो सँ आगू जेबा पर अछि बिर्त

खेनाइ बनेबा मे नितांत अपटु ओकर रोबोट
फोन क' चुकल छैक फास्ट फूडक दोकान केँ
त्वरित होम डिलिवरीक निमित्त

उच्च तकनीक सँ संपन्नस संचार व्यवस्थाक बीच
ओकर मुट्ठी सँ बिलाइत रहैत छैक समय
समय-प्रबंधनक उच्च डिग्री केर अछैतो

ओकर किन्नहु सक्कक नहि चलैत छैक समय पर
नहि दिन बिलमैत अछि
नहि राति रुकैत अछि
कोनो अदृश्य लोक पर ओ अनेरो
खौंझाइत रहि जाइत अछि

थ्री-जी मोबाइल पर अठबारेँ-अठबारेँ फोन कयनिहारि
ओकर निरक्षर मायक स्वमर
जेना कोनो नरहा इनार सँ अबैत अछि आह्लादित-
हाई लेवल मीटिंगक व्यंग्योत्रीक बीच मे
निराशाक सीमांत धरि व्यथित मायक स्वर
पुत्र केर एक्सक्यूज मीक खिसियायल
द्रुत विलंबित मे हेराइत रहैत अछि

जकरा लेल चोरि कयलहुँ सएह कहलक चोरा...
आ तकर तुरत्ते पंचम स्वर
बाट धरैत अछि धैवत दिस...
हमर अभाग हुनक नहि दोष
हमर अभाग...हुनक...नहि...दोष...।
2007

मारु(ख) विहाग
श्मशान सँ घुरि क’ लोह-पाथर छुबैत
बारंबार करैत छी प्रयत्न एहि असार संसार मे
हृदय केँ पाथर बनेबाक
मुदा चचरी मे बान्हल एकटा और लहास
हमर कान्ह केर प्रतीक्षा मे
पहिनहि सँ रहैत अछि रुदनांजलि सँ सिक्त भेल

कोना फड़फड़ाएल बमवर्षक विहग सभ
महाशक्ति विरोधी आकाश मे-
तड़ित लय मे खसैत रहल कलस्टर बम
निरीह जन-अरण्य पर
आ हर्षित होइत रहलाह
हाहाकारी स्वर-साधना मे निष्णात गायकवृंद!

मृत्यु-राग मे निष्णात नाटो देशक संगतिया सभ
अपन-अपन तानपुराक संग
संकेतक प्रतीक्षा क’ रहल अछि मंच पर तैयार

थाटक बाट बिसरल अपन अश्वमेधी टैंक सँ
मीडिया केँ जवाब दैत
सभटा कोमल स्वर केँ बजेबाक भार दैत अछि
“एंबेडेड जर्नलिज्म” केर नव-नव स्वरोत्सर्गी
साधक लोकनि केँ
संपूर्ण विश्व केर संगीत-पिता(ह)

कहरबा पर कुहरबाक साधना मे
दीक्षित करौनिहार संगीताचार्य
नगर-नगर मे पहिनहि खोलि चुकल छथि
हँसी मापक दोकान
धोधि लुप्तक मशीन सभ सँ भरल
अनेक तरहक अंगतराश
एमहर कइक बरख सँ खाली अफ्रीका
आ एशिया मे ताकि रहल छथि
विश्व-सुन्दरी आ ब्रह्माण्ड-सुन्दरी
सितारक तारपर सुता क’ अखबारक पेज-थ्री पर

कोन-कोन राग बाबा हरिदास नहि सिखौलनि तानसेन केँ
मुदा अतृप्त अकबर आब ठोंठ पर चढ़ि कए
निकालि रहल छनि सभटा राग
पेटेंटक सॉफ्टवेअर मे संरक्षित करबाक लेल

छोट-छोट तानसेन सभ आँखि मुननेँ
निमग्न भ’ कए गाबि रहल अछि
मिनट-मिनट पर राग-मारू(ख) विहाग
गुरुहंत दिवस केर पूर्व संध्या पर
विकासशील श्रोता समूह केर नव-नव सेनाध्यक्षक
फरमाइश केँ ध्यान मे रखैत।
2006
सोहर
हहारोह करैत कोशीक कछेर मे
गुड़गुड़िया कटैत पानि केँ देखि
नहि जानि मोन कतेक दिन सँ
गाबि रहल अछि
साओन मासक एहि बेकालो मे
दू बीत रुक्ख ठाम तकैत
समदाओनक भास मे सोहर
कहरबा पर कूही होइत

ककरा देबैक छठिहारक हकार बाउ,
जनविहीन एहि जलप्लावित गाम मे
जतय डेग-डेग पर चारि टा कान्हक लेल
कंकालवत लहास जन्मोत्सवी सोहरक ध्वनि तरंग मे
एहि असार संसार मे आगमन
आ प्रस्थानक बीच बीतल जिनगी केर अर्थ
तकैत रहैत अछि मृत्युक भृतकवीथी मे बौआइत...

एहि अर्थोत्कर्षी समय मे हमरा गामक
कतेक लोक छथि अर्थसंपन्न?
शेयर बाजार मे उठैत सें-सैक्सी लहरिक किछु अर्थांश
जेना कोनो प्लूटो ग्रह सँ चलल प्रकाश जकाँ
कइक युग पहिनहि चलल छल
और कइक युग धरि बाटे मे रहत
तकर कोन ठेकान?

जकरा सबहक भाषा
आँखिक कोर बाटे सभ दिन बहैत रहैत अछि
जकरा सबहक जीवने एकटा अनंत साओन बनल अछि
जकरा सबहक कंठ सँ फूटल बकार
हाहाकार मे बदलि जाइत अछि
जकरा सबहक औंठा
कबाला पर निशानक पर्याय बनि गेल अछि
तकरा सबहक कइक पुरखाक जन्मोत्सवी सोहर
समदाओनक पर्याय बनि जाइत अछि

नहि जानि कोन बाटे अबैत अछि पानि
पानि-पानि भेल जिनगी सबहक
शेष दिवस केँ गलेबाक लेल सभ बेर

खराँतक लेल गमछी ओछबैत रहरहाँ हूक उठैत अछि
आ बाबू-भैयाक लठैत बहा दैत अछि
कोशी पुत्रक कंकालवत लहास उदारता सँ

वृद्धाक कंठ सँ कतेक प्रयत्नक पश्चात
निकसैत सोहरक खाँटी धुन
कमला-कोशीक कछेर मे
नोरक संग मिज्झर होइत
समदाओन मे बदलि रहल अछि

नहि जानि ओ के छथि जे आइयो
मिथिलाक गाम-गाम मे पाग पहिरनेँ
जनम अवधि धरि रूप निहारैत रहैत छथि
आ कहियो तिरपित नहि होइत छथि?
2008
ध्रुपद
घरवलाक मारि वा सासुक तेखायल बात पर खौंझा कए
बोनगामवाली भौजी कांख त'र नुआ ल’ कए
विदा होइत छलीह नैहरक लेल
आ गामक क्यो ने क्यो आइ-माइ
घुरा अनैत रहनि हुनका
किरिया-सप्पत दैत,
नेहोरा-मिनती करैत बीच बाट सँ

नैहरक बाटपर जखन जनमि गेलनि दूबि
तँ तामसेँ आन्हर भेल धी-पूत सँ भरल परिवारक
बोनगामवाली भौजी
धार मे डुबबाक लेल बहराइत रहथिन
घर सँ दहो-बहो भेल
आ तकर बादो क्यो ने क्यो
कहि-सुनि केँ हुनका
घुरा अनैत छलनि बीच बाट सँ

एकटा दीर्घ आलापक आरोह उठैत छल
नादक ओर धरि टहंकार सँ
जकर छोर पकड़ि केँ घुरा लैत छलनि
अवरोह केर मान
स्त्रीत्व केर आहत मोन पर
सम्मानक लेपन करैत सुदीर्घ सरगम सँ


अंतरा केर अंतराल भसिआइत चल जाइत अछि
दूर-दूर धरि
संबंधक रेगिस्तान मे पानिक दू बुन्न लेल
टप्पा दिस घीचैत

जीवन-रागक तान कोनहुना घुरैत छनि सम पर
एहि विषम युग केर अजगुत थाट केँ मोन पाड़ैत

आइ मोतियाबिन्न सँ आन्हर भेल बोनगामवाली भौजी
थाहैत छथिन स्वर-धार पार करबाक निमित्त
साधंसी पानि मे कोनो बिसरल तराना केर
एको क्षणक असरा
मुदा जीवन पंचमक थाल मे लसकल
बदलि रहल छनि एक गोट अनंत आकुल पुकार मे

विलम्बित केर बिसरल ताल केँ मोन पाड़ैत आब ओ
गनैत रहैत छथिन मृत्युशय्या पर पड़ल-पड़ल
एक...दू...तीन...
एक...दू...तीन...!!
2007
खयाल
श्मशान मे फुलायल फूलक गंध मिज्झर होइत
रातरानी फूलक गंध मे पसरैत अछि दहो-दिस
तीब्र गंधी चिरायंध गंध जकां

भैरवीक तान पर तबला मिलबैत काल क्यो हमरा
हाक द’ रहल अछि
कइक युग सँ ओलती मे ठाढ़ घोघ त’र सँ

उतप्त श्वास केर परागकण सन्हियाइत अछि
मोनक कोन मे
उठैत बोल खसैत अछि
स्मृतिक तीब्र धार मे
आ भसियाइत चलि जाइत अछि
हमर अधजरु लहास
कपरजरू केर विशेषण सुनैत-सुनैत

अहाँक एहि यमन-काल मे
हम नहि क’ सकलहुँ संगत
से ठीके भेल बहुत असंगत
कहरबा बजबैत ठोह पाड़ि केँ कनैत
एहि मरुभूमि मे मुखड़ा केर मृगतृष्णाक पाछाँ


बौआइत रहि जाइत छी संतापित
कइक योजन धरि
अवरोहणक प्रवाह मे।
2006
राग सामंती पचगछिया
(मांगैन गवैया केर स्मृपति केँ नमन करैत)

रामचतुर मल्लिक आ अभय नारायण मल्लिक जी
क्षमा करू हमरा मोन नहि पड़बाक लेल
आ हौ मांगैन तोरा सँ की क्षमा
तों तँ अल्हैया-बिलावल बनल छह हमरा मोन मे

मालकौंस गबैत एकाकार भेल वाद्ययंत्रक ध्वनि मे
हमरा लेल तँ गबिते रहअ आ अपना लेल सेहो

मारबा राग केर आलाप सँ विह्वलित तोहर मुखाकृति
आइ मोन पड़ैत अछि पंडित जसराज केँ सुनैत
तोहर स्वर-संपन्न कंठक भीमपलाशी
आ कोशीक कछेर मे साकार होइत
रेगिस्तानक नादसंपन्न टप्पा

राजधानी दिल्लीसक कमानी सभागार मे
इत्रगंधित श्रोता सबहक नजरि सँ
जखन देखैत छी स्वयं केँ अवांछित
तँ बेर-बेर मोन पड़ैत अछि
मिथिलाक गंध सँ परिपूरित ठुमरी
एहिठामक गंधहीन ठुमरीक पश्चाूत
राग मारबा केर अमारक आलाप
अकूत धनक ताल मे निबद्ध

निकट दर्शनक अभ्यस्त हमरा
कहियो नहि सोहायल दूर-दर्शन
आ एहि अस्सी बर्खक वयस मे सिनेमा-तिनेमा आब की...
तोरा बूझले छह हमर सबटा रुचि आ व्यवहार

धिया-पूताक लेल आउटडेटेड हम पचगछिया ड्योढ़ी छोड़ि
एतय स्टोर रूम मे रखैत छी अपन अशक्त शरीरक विष्णण दुर्दशा
आ तोरे मादे सोचैत रहैत छी एहि विशाल सभागार मे

आइ क्यो चीन्हि सकतह तोरा
पाँच सय टाकाक टिकट ल’ कए बैसल
विश्वमोहन भट्ट आ शुभा मुद्गलक श्रोता?

तों जखन शुरुह करैत रहह राग जैजैवन्ती
पंचम केर असीमित सीमांत धरि
तँ महाराज दड़िभंगोक ठोर पर आबि जाइत छलनि
आनन्दक मुस्की
आ एतय तँ हौ मांगैन
जखन-जखन दलमलित होइए पोकरण
आ मुस्कियाइत छथिन बुद्ध
तँ मियाँ तानसेन सेहो लाजेँ काठ भ’ जाइत हेताह
सदल-बल दिल्लीश्वरक एहि सभागार मे जखन गबैत छथिन
पंचम मे अपस्याँत एहि बुढ़ारियो मे पंडित भीमसेन जोशी

भैरवीक समय मे जखन हम जागि गेल छी
तँ अपनहि घरसँ अबैत अछि निर्लज्ज फुसफुसाहटि
हौ मांगैन! कहिया आओत यमराजक बजाहटि?


आब तँ पचगछिया पॉपगछिया बनि गेल अछि
भग्नावशेष टा बाँचल अछि हमर बाहर आ भीतर
राग दीपक सँ प्रदीप्त हमर आत्मा मे
आत्मस्थ अछि ओ समय
जे नहि घुरत आब कहियो

जकर पोता केँ ठुमरीक नाम सँ घुमरी लगैत होइ
आ दादरा केर अर्थ लगबैत होइ मुंबई शहर केर दादर
तकरा सबहक लेल ध्रुपद केर कथे कोन हौ मांगैन
जकर आलाप अक्षांश सँ देशान्तर धरि
चलैत छल अटूट एक पहर धरि

जाहि भूगोल मे जनम अवधि हम रूप निहारल
आ उत्कीर्णित भेल आत्म-पटल पर बिदापत नाच केर छवि
संग्रहीत भेल कर्ण-कुहर मे राग मारू विहाग
आ खचित अछि मोन मे स्वरविद्ध आसावरी

दीर्घ अनिद्रा सँ पीड़ित आब भरि राति हम
बौआइत छी तोहर स्वर-संस्मरणक
सांगीतिक बाट पर भसियाइत
आइयो व्याकुल कयनेँ अछि तोहर स्वर मे
राग यमन केर आकुल आलाप।
2007
विलंबित कइक युग मे निबद्ध
(कन्याकुमारी मे महासागरक मिलन देखैत)

एतय जमीन केर अंत भ’ गेल अछि
आ अनंत जलराशिक फेनिल उर्मि-यात्रा मे
संग भ' गेल छथि
अस्ताचलगामी सूर्य हमरा मोनक आकाश मे झमारल

कमला मे, कोशी मे, बागमती आ गंडक मे
कोनो माघ कोनो कार्तिकक पूर्णिमा आ संक्रांति मे
स्नान-दान, कल्पवास कयनिहार स्वर्गाकांक्षी हमर पूर्वज सबहक
देहगंधी जल आइ कतय, कोन अवस्था मे अछि समुद्र?

हुनका लोकनिक अस्थिपुष्प
अहाँक कोन कोष मे अछि
ओ करुण प्रार्थना सब ?
ओ आकुल हाक सब कोन तरंग मे निबद्ध अछि हवा?

युद्ध मे हत मनुक्ख आ अश्व-गज केर प्राणांतक स्वर
जे तलवारक टंकार मे मिज्झर होइत
कालक प्रवाह बदलैत छल

दलमलित गाम सबहक नोरक टघार
जहिया नदीक धार बनल
तँ कतेक बढ़ल छल अहाँक अश्रुगंधी नोनक भंडार
आ हाहाकारी आवाज?
अशेष जलराशि सँ पूरित पृथ्वीक
आन-आन भाग मे बसल लोक सँ
परिचयक लेल कोलंबसी सफलता सँ पूर्व
जे नाविक सब समा गेलाह
अहाँक विशाल उदर मे
तिनका सबहक असफल यात्राक कलपल स्वर
आइ कोन अवस्था मे बाँचल अछि समुद्र?

विश्व विजय केर निमित्त अश्वमेधक सरंजाम जुटबैत
मनुक्खक निश्चित मृत्युक लेल हथियारी पुष्टिमार्गक निर्माता
सिकंदरी आकांक्षा केँ सभ्यताक संघर्ष मे निबद्ध क’ रहल अछि

कहियो ईश्वर केर मृत्युक जे लोकनि कयने छलाह घोषणा
आइ इतिहासक अंत के क’ रहल छथि पुष्टि
पुष्टिमार्गक अंतवादी उत्तर-आधुनिक सिकंदर सबहक नेना
अश्वमेधी वांछाक लेल निट्ठाह नरमेधी अभियान केँ
नाम देलक अछि-ईश्वरीय आदेशक पालन

प्रलय-कालक इतिहास-पुरुष समुद्र हमरा कहू
कतेक बर्ख सँ कतेक सभ्यता कतेक संस्कृति
आ कतेक साम्राज्यक प्रत्यक्ष गवाह अहाँ
कतेक रास सिकंदर सबहक देखनेँ छी इतिहास

मनुक्खक प्राण लैत मनुक्ख
सभ्य बनैत नगर बसबैत
सिकंदर बनैत
बनबैत रहल अछि पृथ्वी पर इतिहासक अन्हार-घर
जतय कलपैत स्त्रीगणक नोरक टघार अहाँ केँ घीचैत रहल
कलिंग सँ तुगलकी आ नादिरशाही धरि

रक्त-रंजित सभ्यताक नोनछाह समुद्र
हमरा इतिहासक कारागार सँ
क्यो निरंतर हाक द’ रहल अछि

इतिहासक कतेक रास हाक
अहाँक हृदय मे हाहाकार बनल
बेटाक लहास पर खसैत माय
पतिक लहास पर खसैत
सैनिक सबहक स्त्रीक वेदना समाहित कएनेँ
अहाँ खसैत आबि रहल छी लहरि बनि कए
कइक सदी सँ कटल गाछ जकाँ

कइक सदी सँ हमरा क्यो हाक द’ रहल अछि
अत्यंत आकुल स्वर मे बेर-बेर क्यो हमरा
सोर क’ रहल अछि कहबाक लेल मोनक व्यथा
मुद्रा आ मोंछक कारण सँ मेटायल
अनेक इतिहासक कथा
हमरा कहबाक लेल कतेक दिन सँ
कतेक रास हाक औना रहल अछि

साक्षी छथि अस्ताचलगामी सूर्य
आ स्वयं अहाँ समुद्र
हम सुनि रहल छी कइक सदीक सबटा हाक
सभ्यताक सबटा मर्मांतक पुकार !
2006
सत्तनजीब
एहि अकादारुण कंक्रीटक बोन मे बौआइत
तकैत छी एकटा कोर
एकटा स्नेहिल गाछ सन चतरल तरहत्थ
जतय बिसरि सकी जा कए
एहि भविष्यहीन समय केर सबटा संताप

एकटा अदद चाकरी केँ सुरक्षित बचौनेँ रखबाक लेल
अव्यक्त आक्रोश केँ चाँपैत-चाँपैत
रक्तक भयंकर चाप सँ चापित
एहि नव साम्राज्यवादी लोकतंत्रक
अभिशापित एकटा नागरिक
कथी लेल जीबैत छी
ककरा लेल जीबैत छी
जीबि कए की करैत छी?

डॉक्टरक बताओल पथ्य आ दवाइक सोंगर पर टिकल
एहि जीवनक कोन उपयोगिता, कोन सार्थकता
मैञा, किएक उकासियो लेल कहैत छलेँ सत्तनजीब

हमरा सन-सन सहस्रो लोकक मोन मे
निरंतर बढ़ल जाइत व्यर्थता-बोध
एक अदद चाकरीक लेल जीबैत लोकक मोन मे
अपने प्रति घृणा आ विरोध

जे लोकनि अपस्याँत छथि जीवनोत्सवक समारोह मे
लहालोट छथि रागात्मक काव्यक उत्पादन मे
हुनकर आँखिक रेटिना पर खचित नहि भ’ सकैत छनि
आयकरदाताक सूची सँ बाहर
विशाल जनसमूह केर पिरौंछ मुँह

एहि समय केर विभिन्न तंत्र सब सँ
बारंबार पुछैत अछि लोक
भिन्न-भिन्न परिभाषाक कोन व्याख्या मे
निपत्ता भ’ जाइत अछि
हमर मैञाक सत्तनजीब
हमर पिताक देल दीर्घायु हेबाक आशीष?
लोक पुछैत अछि भिन्न-भिन्न तंत्र केर व्याख्याकार सँ ई प्रश्न
आ मारल जाइत अछि अचक्केभ
राष्ट्रद्रोहक नाम पर

जे किछु नहि पुछैत अछि
किछु नहि बजैत अछि
ओ एक अदद चाकरीक रक्षा मे
तिल-तिल कए जीबैत
निरंतर मृत्युक आवाहन करैत रहैत अछि।
2006
पुरइनि
जन्म कालहि सँ छुटैत रहल अछि
हमर जीवन केर एक-एकटा खोंइचा
अपने देहक एक-एकटा अंग
छोड़ैत रहल अछि हमर संग साँपक केचुआ जकाँ

जीवनदाता नाभि सँ नालबद्ध पुरइनि समा गेल
मायक कोखि सँ धरतीक कोखि‍ मे

कारी-कारी हमर जन्मौटी केश
लाल मोलायम हाथक न’ह छुटि गेल
हमरा देह सँ रोज-रोज छुटैत जा रहल दुनिया जकाँ

उज्जर दुधहा दाँत हमर
पृथ्वीक कोन काज आयल हेतनि?
मासे-मास कटैत केश आ अठवारे कटैत न’ह
भरिसक काज अओतनि कोनो इतिहासवेत्ता केर

हमर केश, हमर न’ह आ दुधहा दाँत
दुनिया मे अबिते देरी अलग भ’ गेल हमरा सँ
संग-संग संसार मे आयल पुरइनि जखन
संग नहि देलक
तँ ककरो सँ कोन याचना
कोन अपेक्षा!
2006
पृथकावली
दिल्लीक शरणागत अहल भोरे सँ साँझ धरि
डेग-डेगपर अर्पित करैत छी अपन आत्म
आैर अपन सम्मान
आ जिनगी मे अर्जित कयल सबटा ज्ञान

चारि कौर अन्न आ पाँच हाथ वस्त्रन लेल
रने-बने बौआइत
भाइ आ बहीन सब हमर
देशक कोन-कोन मे अभ्यर्थित आँखि सँ
बेस उताहुल
बेर-बेर भरोस दियबैत अछि नियोक्ता केँ
अपन बुत्ता भरि

जे कहियो नहि धयलक ह'रक लागन जिनगी मे
से मोंछगर हमर भाइ सब आइ खूब हरखित मोनेँ
रोपैत छथि धान आ बेचैत छथि पान
देशक कोन-कोनमे बिहरल अहराक खोज मे

दूरभाषिक वार्तालाप मे सबटा खेरहा सुनबैत
बिहरैत परिवारक गाथाक बीच बढ़ैत सदस्य सबहक
बिलहैत अछि सूचना मुक्त मोनेँ,
संचारी साधन केर स्थायी अर्थाभावक बिना कोनो चिंता कयनेँ-
गामक खिस्सा सबहक बीच-बीच मे

कइक साल सँ कलकत्ता मे निपत्ता
बड़का काका केँ तकबाक
सबटा व्यर्थ भेल प्रयास केर खिस्सा हमरा सुनल अछि
काकीक एकादशी-हरिबासन
आ गंगामे एकटंगा देबाक आख्यान सेहो

सबहक पता-ठेकान जनितो हमरा लोकनि आब
जोखैत रहैत छी भेंट-घाँटक आकुलता केँ मासूलक पाइ सँ

नहि जानि आपात चिकित्सा कक्ष मे हमरा
किएक मोन पड़ैत रहैत अछि
बाबीक गाओल सोहर आ साँझक गीत
जखन कि बाबी केँ मुइना
आइ तीस-पैंतीस बरख सँ बेशी भ’ गेलनि

एक भाइ दिल्ली आ एक कलकत्ता
एक बहीन पंजाब
आ दोसर राजस्थानक रेगिस्तान मे अभिशापित
नैहर मे सुनल फकड़ा दोहरबैत रहैत अछि-
जाहि बाटे गेली बेटी दूबिया जनमि गेलइ...

पृथ्वीक कोने-कोन बौआइत हम देखैत छी
गरीबक अहरा पर गहन पहरा दैत महाशक्ति केँ करे-कमान
कतेक गाम नापब एखनो बाकी छनि वामनावतार प्रभु केँ?

जरीब-कड़ी केँ उघबाक लेल जनमल हमरा लोकनि
कोन-कोन नक्शाक लेल पृथ्वी पर घीचैत रहब डाँड़ि
आ लड़ैत रहब ओहि राष्ट्र केर गौरवक लेल
जकर झटहा कइक पुस्त सँ हमरा लोकनि केँ
खेहारि रहल अछि
जंगल सँ गाम आ गाम सँ शहरक नहर-छहर पर बसल
जलहीन मलिन बस्तीक
मल-जलक असह्य दुर्गंधक बीच

बाबाक अपार्थिव इच्छा
हुनक पार्थिव शरीरक संगे चलि गेलनि
क्यो काका ईर घाट
तँ क्यो काका बीर घाट मे बसल
दसकठबा डीह केँ पियाजुक क्यारी मे बाँटि केँ संतुष्ट आब
कोनो काज-परोजनक अवसर पर
गामक स्मृति-संपदा केँ दूरभाषिक
आ ई-मेली चँगेरा मे बिलहैत छथिन

नहि जानि कहिया धरि अपने देशक अमेरिका आ इजराइल मे
कहुखन अफ्रीकी तँ कहुखन फिलिस्तीनी बनल
मातृभूमि सँ तिरस्कृत संज्ञा केँ
घृणा और घृणा केँ जीवनक प्रसाद बुझि
बौआइत रहब अनौन-बिसौन भेल
जिनगीक फागुने मे
साओन-भादब भेल...
थाल-कादो भेल...!
2007
बखरी
गै दाइ बखरी!
बखरी के तँ बकरियो होइत छैक हक्कपलि डाइन
आ बूझल नहि छौक जे निःशब्दा राति मे
गाछ हँकैत छैक ओहिठामक मौगी!

कान मे जड़ी द’ कए बंगालिन सब
राखि लैत छैक भेंड़ा बना कए पुरुख-पात केँ
से तँ बूझले हेतौ ने!

एहि लोकाख्यानक बीच बौआइत हम सोचैत छी
जँ बखरीक बकरियो धरि होइत छैक डाइनि
तँ बखरीक अस्मिता सँ जुड़ल सलोना
कोना एखन धरि बाँचल अछि एतेक सलोना!
जा हे बखरी-सलोना!

अनंत काल सँ अभिशापित बखरीक अतीत खाहे जे रहल हो
मुदा आजुक बखरी तँ भाइ!
एकदम अछि खखरी!

खखरी-पटभड़ भेल बखरी आइ छुछुआइत अछि
बकरी-छकरी जकाँ एहि बाध सँ ओहि बाध
एहि खेत सँ ओहि खेत
दू गाल अहरा लेल अपस्याँत
बखरीक चिल्का सब देसक कोन-कोन मे

भूगोल मे रहितो मिथिलाक इतिहास सँ अभिशापित
मैथिल-संस्कृतिक अवैध संतान बखरी
किएक नहि भ’ सकल कहियो तेहेन जेहेन अछि सकरी?
जेहेन कोइलख जेहेन राँटी जेहेन मँगरौनी
सलोनाक अछैतो तेहेन किएक नहि बखरी?
खखरी सन आइयो किएक फटकल अछि बखरी
मिथिलाक इतिहास सँ बाहर?
2007
धानक खेत
गम्हरल धानक खेत मे जखन बहराइत अछि पहिल शीश
दुधमुँह नेना सन तन्नुक-तन्नुक
आ बसातक पहिल झोंक जकाँ खसैत अछि खेत मे
लाखक-लाख भंख
तँ दू टा पुत्र केँ जन्म दइयो कए निःपुत्र भेल
मुनिया मायक मुँह पर पिरी छिटकि जाइत छनि

एतय हम बेटीक कन्यादानक चिंता मे डूबल छी
मुदा मुनिया बापक करेज देखियनु बाऊ
जे बैसल छथिन निश्चिन्त भ’ कए
डेढ़ बरख सँ डिल्ली मे

ने कोनो चिट्ठी-पतरी ने गाम अयबाक गप
छुच्छे फोन टा करैत छथि
पल्टी मायक ओहिठाम मासक कोनो रवि केँ
ओंघायल जकाँ गाम-घरक चिन्ता सँ उदासीन

बटेदारक कृपा सँ कोनहुना रोपायल
एहि बेर दस कट्ठा खेत
जे जीबैत छी अगहनक आस मे
नहि तँ सिदहा के चिन्ता मे पड़ल रहितहुँ
बाले-बच्चे उपास


एहि सबटा खेरहाक बीच उड़ैत रहल
मुनिया मायक आँखि मे हॉंजक-हॉंज भंख
शीश सँ आच्छादित दूध भरल धानक खेत मे।
2007

एमहर गाम
कइक बरख सँ एमहर नहि सुनगल अछि
सोनाय कमारक भाठि कचिया-खुरपी मे बेंट लगेबाक लेल
आ हरक फाड़ पिटयबाक लेल धुरियायले पएरे कोनो हरबाह
नहि आयल अछि एमहर कइक बरख सँ

कहलनि बीसो बाबू-के जोतत ह’र एहि ट्रैक्टर युग मे
अटंट दूपहर मे पितायल बड़दक संग सुखायल देह लेने
के घुरत आब हराठ सँ
कान्ह पर कटही हर मे लाधल पालो केर
बोझ सँ स्वयं बड़द भेल

जखन ह’र नहि तँ हरबाहक कोन बेगरता
फाड़ पिटयबाक कोन चिन्ता
एहि ट्रैक्टर युग मे मनुक्खक कोन आवश्यकता?

...से कहैत छी भाइ
जे एहि बेर नहि मानलक ककरो बात
आ चलि गेल पैंजाब
हमरा गामक एकघरा हज्जाम कंतलाल ठाकुर
माय पर तामस सँ बड़बड़ाइत-
कमाय नहि धमाय
अनेरो फाटय बेमाय


बड़की काकी केर श्राद्ध मे एहि बेर
जखन नहि आयल क्यो हज्जाम
तँ आन गाम विदा होइत झूर-झमान छलाह हमर पित्ती
कालबिद्ध उदासीक खोह मे

पानक सरंजाम मोटरी बन्हनेँ खेते-खेत बौआइत
सुमरित तमोली आब नहि करैत अछि ढोनि
एमहर विलुप्त भेल अछि
गामक भाषा सँ ज’न आ बोनि

थथमारि केँ किछु चीज केँ जोगयबाक प्रयास मे
उपहासक पात्र बनल हमर बाबा
लिखलनि चिट्ठी जे ओहो एताह दिल्ली
किछु काज-उदेम करताह एहू उमेर मे
किछु नहि तँ पानिये भरताह
ककरो चिल्के केँ डेबताह
मुदा गाम मे आब किन्नहु नहि रहताह

भकोभन्न देहरि पर जरैत माटिक दीपक इजोत मे
तकैत छी सुन्न घरक नीरवता
सुकरातीक ओरियाओन ज्योतिक्षीण आँखिक प्रत्याशा केर
खंड-खंड चिनगी अपन गाम मे

सिरपंचमी मे आब ठाढ़ नहि होइत अछि ककरो ह’र
आ ने जाइत अछि डाली ल’ कए कमरसारि ककरो हरबाह
एमहर कइक बरख सँ एहिना बीतल अछि सिरपंचमी
कहलनि बीसो भाइ
भोथ भेल कोदारि-खुरपी
आ ह'र-फाड़क मादे


जूड़शीतल मे आब जुड़ाइत अछि ट्रैक्टरक पहिया
आ गाम मे नहि बाँचल अछि एहेन कोनो घर
जकर खेत नहि लागल हो भरना आ नहि बटैया।
2006
पएर
बेमाय सँ कांट बनल
जकरा लेल नहि जुड़ल कहियो
केहनो सन पनही
नहि किनुआं
नहि दनही

2.
चाननक ठोप लगौने कहैत छथिन पंडितजी
मुँह सँ ब्राह्मण आ पएर सँ शूद्रोत्पत्तिक कथा
एकटा केर उगिलल
आ दोसर केर मर्दनक कथा

3.
बाध-बोन, खत्ता-खुत्ती
बाजार-हाट सँ गाम-गमाइत बौआइत
कतय-कतय नहि जाइत अछि पएर
मुदा पाहुन बनल भरि पोख नौ-छओ
पबैत अछि मुँहें टा

4.
पएरदुक्खीक कथा कहैत
कतेक मधुराह भ’ जाइत छनि
आइ-माइक बोल
आ अपन मथदुक्खीक व्यथा केँ

मोनेँ मे नुकौने रहि जाइत छथिन
सासुक पएर जँतैत
सोहाग-सुन्नरि बहुआसिन।
2006
हिसाब
हिसाब कहिते देरी ठोर पर
उताहुल भेल रहैत अछि
किताब

जे भरि जिनगी लगबैत रहैत छथि
राइ-राइ के हिसाब-
दुनिया-जहान सँ फराक बनल
अंततः बनि क’ रहि जाइत छथि
हिसाबक किताब।
2006
सरकार
एक तम्मा चाउर मँगबा लेल अंगने-अंगने बौआइत बाबी
लोकतंत्रक महान (!) मतदान पर्व दिन सेहो
उपासले जाइत छथि वोट खसाब’ लेल
बुढ़ारियो मे मरौत काढ़नेँ

कोन सरकार बनैत अछि बड़का नगर मे?
कतय सँ अबैत अछि एतेक रास पुलिस-दारोगा?
एतेक हरबा-हथियार
एतेक रास घरतोड़ा मशीन?
एतेक रास चसकल राकस सबहक झुंड?
जे कोनटा-फरका मे हहारोह मचौने
निधोख ब्यौंत लगबैत अछि घरढुक्की?क निमित्त

बाबीक एकमात्र पुत्र मुइलनि हैजा-फौती मे
जमीन गेलनि कोशीक बान्ह मे
भेटलनि दूध महक डाढ़ी
आ सब दिन बाबी रहलीह छुच्छक-छुच्छे

पछिला एक मास सँ प्रखंडक सरकार सब केँ
वृद्धा पेंशनक लेल निहोरा करैत बाबी
काल्हि मुखिये लग बन्हकी लगा केँ अपन हँसुली
कोनहुना कयलनि वृद्धा पेंशनक जोगाड़
आ उपासल पेटक ओरियाओन


मुखिया सरकार, सरपंच सरकार,
गामक सबटा नमधोतिया सरकार
अओ सरकार! कथी लेल पुछैत छी
कोन कलम सँ लिखैत छथिन बिधना
बाबी सबहक कपार?
2006
शनिचरा
गपे-गप मे हमरा मुँह सँ जखन निकलि जाइत अछि
अपन स्कूलक कथा आ मोन पड़ैत अछि
शनिचराक जोगाड़ मे अहुरिया कटैत मायक व्यथा
तँ बुझायब कठिन भ' जाइत अछि बेटा केँ
शनिचरा शब्दक अर्थ आ औचित्य

डीपीएसक विद्यार्थी हमर बेटा
जखन तैयार होइत अछि स्कूलक लेल
हाथ मे थर्मस पीठ पर बस्ता
आ सुस्वादु जलखइ भरल टिफिनक संग
तँ अनायासे हीनभाव सँ ग्रस्त हमर मोनक नेना
तुलना करए लगैत अछि
बेटाक नेनपन सँ अपन नेनपनक

चीनीक मोटका बोरा पर
पीपरक गाछ त’र बैसल
शनिचरा नहि देबाक अपराध मे जहिया
खजूरक कड़ची खा कए घुरी
तँ प्रण करी फेर कहियो स्कूल नहि जयबाक
मुदा बलजोरी पठाओल जाइ स्कूल
जेल सँ भागल कोनो दुर्दांत अपराधी जकाँ
मिसरी नाम धरेबाक लेल
गुरुजीक गंजन सहबाक हेतु

व्याकरण सँ ल’ कए जोड़-घटाव आ बाल भारती धरि
एक्केस संग पढ़बैत भरौलीवला मास्टर
शनिचरा नहि देनिहार विद्यार्थीक ममरखाग्रस्त देह पर
जखन मारैत छलखिन खजूरक कड़ची
तँ दस पैसा हमरा दुनियाक सभ सँ पैघ पाइ बुझाइत छल
जाहि लेल अगिला छओ दिन महाग मोसकिल मे बीतैत छल

हमर ओ दोस सभ जे शनिचरा देबा मे असमर्थ छल
आ परीक्षा फीसक जोगाड़ तँ महाग मोसकिल
से सभ कड़चीक आदंक सँ बिसरैत चल गेल स्कूलक बाट

आदंक सँ कपसैत नोर-झोर भेल हमर ओ दोस सभ
जे फीसक बदला मे पॉंच टा घैल
एकटा कचिया वा दू टा पगहा
सेर भरि दूध वा एकटा परबाक गेल्‍ह देबाक प्रस्ताव रखैत छल
आइ यक्ष्माग्रस्त दिल्ली मे रिक्शा घीचैत अछि

प्रवासक कष्टप्रद जिनगी आ देहक अशक्तताक कथाक बीच
नंगोटिया दोस सभ जखन चर्च करैत अछि
स्कूल आ शनिचरा कांडक तँ हँसैत अछि
यक्ष्मा जर्जरित पाँजर केँ नुकबैत
उकासीक सीमांत धरि

शनिचराक खिस्सा सुनैत जखन देखैत अछि बेटा
हमरा मुँह पर वएह असहायता आ चिंता
तँ हँसैत अछि हमर जीवनक खिस्सा पर

एहि अर्थसंपन्न युग मे जनमल हमर बेटा
एखन नहि जनैत अछि अर्थाभावक अर्थ

जतेक दरमाहा लेल भरि मास खटैत छलाह हमर पिता
घर-आश्रम चलबैत बेर-बेगरता मे
सर-कुटुमक संग ठाढ़
ओतबा टाका आइ बेटाक एक मासक स्कूलक फीस होइत अछि

जहिया-जहिया पुछैत अछि बेटा शनिचरा शब्दक अर्थ
तँ हमरा मोन पड़ैत रहैत अछि एहि अर्थ युग मे
यक्ष्मा जर्जरित दोस सबहक छाती
आ पिताक एक मासक दरमाहा।
2006

बोनिहारि मोनक आर्तनाद
डिल्ली-पैंजाबक लेल जहिया-जहिया निकलैत अछि
झुंडक-झुंड युवक सब बटखर्चाक लेल बान्हल
दालिपुड़ी आ ठकुआ-पकमानक संग
तँ नोसि जकाँ भरि लैत छी नाकक पूरा मे सबटा गंध

लाहक लहठी सँ भरल हाथ सँ बान्हल मोटरी पर
हड़बड़ी मे अभरल हरदियाएल आँगुर
भरिसक साओन-भादवक राति मे हेतैक कनेँ-कनेँ मलिन
वा सेहो नहि से कोना कहि सकब

बाटक बाँचल दुटप्पी
टमटम पर टीसन धरि चलैत अछि अनवरत
ताहि मे बेर-बेर हुलकी मारैत अछि
पैंजाबक खिस्साल के बीच
मासूलवला टाकाक कर्जा
आ पछिले वर्ष सँ सूदभरना लागल
अगदुआरिवला खेतक हियास

मोन कइक युग सँ क’ रहल अछि आर्त्तनाद

बाट सँ बेशी मोन मे चलैत अछि अगदुआरिवला खेतक चर्च
जहिया-जहिया हफीमक निसां मे
बड़द जकाँ खटैत अछि

तीन बहीन परक दुलरुआ हमर दोस
जिला संगरूरक साकिन जस्सिया मे
* * *
शौचालयक कातमे कोनहुना ठाढ़ हेबाक ठाम तकैत
ओ जखन नाकक क्रियाशीलता सँ होइत अछि पीड़ित
तँ तकैत अछि गामसँ ल’ कए ट्रेन धरि कनेको टा स्थान
मुदा स्थानासीन लोकक शंकित दृष्टि सँ आहत
ओ बिलमैत अछि गामहि जकाँ एतहु कोनो करौट मे भरि राति

मोनमे कइक युगसँ दमित अछि स्थानक आस

पिंडदानक संदर्भ मे सुनल पिंडक अर्थ
जखन ओ सुनैत अछि-गाम
तँ गामक बाहर बसनिहार ओकरा एतहु जगह भेटैत छैक
पिंड सँ बाहर खेतक बीच मे बनाओल ‘कोठा’ मे
पुरना ट्रैक्टरक टायर
आ खाद-बियाक बोरा सबहक बीच

दुनिया मायक कोर नहि होइत अछि
आ नहि घरक बिछाओन
जतय कोनो तरहक चिंताक स्थान नहि छल
ओ सोचैत अछि अपन राज्यक संज्ञा केँ
एकटा गारि जकाँ सुनैत

कोनो अताहि हरबाह जकाँ ओकरा बड़द बुझि
जखन मारैत अछि पैंजाबक किसान
‘जल्दी करो, जल्दी करो’ केर रोड़ाह बोलक पेना
तँ अदार बाछा सन मोन पर अभरि अबैत अछि- दाग

ओ सोचैत अछि करनिनिया राति मे
सब लोक सबहक लेल लोके नहि होइत छैक


घरमुहाँ मोन बेर-बेर धरैत अछि
बितलाहा समय केर बाट

जाहि गाम मे ओ जनमल-बाढ़ल
जाहि माटि मे लोटाइत भेल जुआन
ताहि ठाम ककर-ककर नहि कयलक बेगारी आ हरबाही
मुदा तइयो नहि भेटलैक कोनो स्थान, कोनो मान
आ भरि पेट भोजन दुनू साँझ

मासूलवला टाका अगदुआरिवला खेत मे मिज्झर होइत
ट्रेनक यात्रा संग हरदियाएल हाथक कँपकँपी
घिंघोरल रंग जकाँ ओकरा आँखि मे नचैत रहैत छैक
आ निन्न केँ फुसलेबाक ओकर सबटा प्रयास
व्यर्थ भ’ जाइत अछि

तेरह मासक ओकर कन्हकिरबा आब कतेक टा भेल हेतैक
कतेक बदलल हेतैक ओकरा परोक्ष मे गामक भूगोल
चिन्हार चीज सब कतेक भ’ गेल हेतैक अनचिन्हा र
आ आस्ते-आस्ते कतेक भेल हेतैक टोलक पसार

कतेक रास स्वप्न आ कतेक रास प्रश्नक संग
ओ घुरैत अछि मोन मे बसल गाम
असंख्य रातिक हियास लेने
माथपर भारी बक्सा केँ फूल सन हल्लुक बुझैत

बुढ़ियाक खिस्सा सुनू... बुढ़ियाक खिस्सा...
ने ओ नगरी ने ओ ठाम...
ने ओ नगरी ने ओ ठाम...!!


मोन अहर्निश करैत रहैत अछि आर्तनाद
बरगंडी सँ सोलगंडी सेरक यथार्थ धरि बढ़ल गाम
शनैः शनैः होइत गेल अनचिन्हार
आ बोनिहारी मोनक गाम घुरबाक आकुलता पर
होइत गेल वज्रपात।
2006
मूल
बियाहक वेदी पर आतुरता सँ पुछैत छथिन पंडित जी
गोत्रक पश्चात् हमर मूल,
हमर पूर्वजक मूल स्थान
पुछैत छथिन शनैः शनैः उच्च होइत स्वर मे
कर्मकांडज्ञताक अहंकार सँ भरल पंडित जी

पंडित जी बेर-बेर दौड़बैत छथिन हमरा धरि प्रश्न श्व
..मूल कहू बाऊ, मूल
अपन कुलक मूल
केहेन छी अहाँ जे पिता मूलो धरि नहि सिखौलनि
शिक्षा देखू अंगरेजिया युवक सबहक
केहेन आबि तुलायल अछि दुष्काल

कनेक सोचैत हम कहलियनि- सुनू पंडित जी, सुनू
ओना हमर पिता मानैत छथि पंचोभ करियौन अपन मूल
मुदा हम कोना कहि सकब ठीक-ठीक
कि इएह टा थिक हमर मूल?

कोना कहब पंडित जी कि सृष्टिक आरम्भे सँ
पंचोभे मे छलाह हमर पूर्वज
कोना कहब कि दू कौर अन्न आ पाँच हाथ वस्त्र लेल
कतहु आन ठाम सँ नहि आयल हेताह हमर पूर्वज?


कोना कहि सकब पंडित जी
कि हमर पंचोभवला पूर्वजक पूर्वज
मौर्य आ शुंग वंशक पश्चात्
नान्यदेवक काल सँ हरिसिंहदेव
आ अहमद खाँ केर सूबेदार बनबा धरि
पंचोभे मे छलाह?

ओइनवार वंशक उत्थान सँ ल’ कए
दिल्ली सल्तनत केर उठापटक वला समय मे
कतय छलाह, कतय-कतय गेलाह
से कोना कहि सकब हम ठीक-ठीक?

हमर पूर्वज आर्य छलाह कि अनार्य
हम नहि जनैत छी
जँ ओ आर्य छलाह तँ ईरान दिस होयत
हमर मूल
आ ओतहु सँ पूर्व तँ कतहु रहल हेताह
हमर पूर्वज
जाहि मूलक नाम विलुप्त अछि
हमरा सबहक स्मृति-कोष सँ

हमर ओ पूर्वज लोकनि
जे बकरी-छकरी जकाँ ठोंठिया कए
चढ़ाओल गेलाह कुसियारक खेतीक लेल मॉरीशस
फिजी आ सूरीनामक जहाज मे
गदर केर विद्रोहक पश्चात्
हुनका हम कोना अलग क’ देबनि
अपन मूल सँ?

सामूहिक संस्कृतिक इतिहास मे कुहरैत हमर पूर्वज
कोना अलग हेताह हमर मूल सँ पंडित जी?


पंचोभ मूलक हमर पुरखा कहाँदन
पंचोभ सँ अयलाह महिषी
आ ओतय सँ परगना फरकिया केर एकटा गाम मोहनपुर
आ हम पटना-दिल्ली होइत एखन काशी मे बिलमल
एकटा डेग हरदम उठौनहि रहैत छी
कोनो आन नगरक लेल

जाहि-जाहि नगरक बसात मे लेलहुँ साँस
जाहि ठामक अन्न-पानि सँ पोसायल अछि ई देह
जाहि नगरक संस्थान दू कौर भातक लेल दैत अछि मुद्रा
ओ सभटा स्थान मात्र पंचोभे टा मूल मे
कोना समाहित हेतैक पंडित जी?

पंचोभ-करियौन सँ बहुत-बहुत विशाल अछि
हमर आन-आन मूल सभ
एखन बहुत ठाम जयबा लेल विवश करत पेट
आ जाधरि जीयब ताधरि
कतय-कतय जायब
कोन-कोन नगरक थारी मे खायब
से कोना कहि सकब ठीक-ठीक?

एक्केक टा मूल पंचोभ-करियौन कहि कए
एतेक रास मूल सभ सँ
हम कोना पिंड छोड़ा सकब पंडित जी?
2005
पहिया
कतेक दिन सँ घूमि रहल अछि पृथ्वी
दिन सँ राति आ राति सँ भोर करैत अंतरिक्ष मे
अनंत जीवन चक्रक छोट-छोट घिरनी केँ सम्हारैत
आब तँ बाटक हरानी सँ
जानो जियान भ' गेल हेतैक बतहिया के
आ पहिया सबहक हाल-बेहाल

हओ बाबू!
आइयो तोरा सहबक (अ)ज्ञानभूमि पर
जे घड़कि रहल छह मृच्छकटिकम केर पहिया
ओहि पर कतेक पहिया गेल अछि अनंत धरि
तकरा एहि चक्कााडुबानी के बेर मे
कतेक मोन पाड़बह आब?

तोँ जे सब दिन पहियेक घुमौनी केँ
बुझैत रहलह गति
आइयो धरि नहि क' सकलह
चक्का ठेल शक्तिक साक्षात्कार

जाहि रथ केँ निर्विघ्न आगू बढ़एबाक लेल कहाँदन
अपन आँगुर केँ किल्ली बना कए
धुरी मे लगा देने छलखिन रानी कैकेयी
ताहि पहियाक घुमौनी आइयो घुमा रहल छनि राम केँ
आख्यान सँ वर्तमानक शिलापूजन धरिक रथयात्रा मे
हओ बाबू!
पहिया जे धरती सँ बेशी दिमाग मे चलैत अछि
तकरा सबहक हाल पर आब कतेक धुनबह कपार
पितामह भीष्म पर जे पहिया ल' कए दौड़ल छलाह कृष्ण
जँ क’ सकह साधंस तँ कहक -
माधब! ई नहि उचित विचार!

बाबीक मुहेँ सुनल बितबा भाइक खिस्साक गाड़ी मे
जोतल मुसबा सब घीचनेँ छल जाहि अदभुत पहिया केँ
ताहि पहिया सबहक गति
एतेक मंद किएक भ’ गेल छैक आब
जे राजा धरि पहुँचबा सँ पहिनहि द' दैत छैक जवाब?

बड़दवला गाड़ीक लेल जिनगी भरि पहिया बनौनिहार
हमरा गामक काशी कमार
जीवन भरि नहि पहुँचि सकल समृ‍िद्धक दरबार!
हम सोचैत छी आ लसकि जाइत छी बेर-बेर
अतीतक दलदलित बाट पर
दलमलित हृदय सँ

सभ्यता केँ घीचैत-घीचैत पहिया
आइ जतय धरि पहुँचल अछि
ताहि ठाम सँ जँ अखियासैत छी
तँ वएह सब देखाइत छथि टिकासन पर ठाढ़
जे कोनहुना प्राप्त कयलनि सत्ता आ कमेलनि पाइ

पहिया-पहियाक अंतर देखहक हओ बाबू!
जे ककरो अंतरिक्ष धरि पहुँचल
तँ असंख्य लोकक पहिया
जीवनक कदबे मे लसकल रहि गेल
भरि जिनगी

घरक पहिया केर बहिया बनल
हमरा लगैत अछि
जे जीवन केर गाड़ीक पहिया चर्र-मर्र करैत
यात्राक आरोहणे काल मे
ढरक’ लागल अछि
प्रागैतिहासिक जंगल मे अवरोहणार्थ।
2006

बिहाड़िक बीच बाट तकैत
कोना हहाइत आयल काल-वैशाखी
जे अनसम्हार क' देलक अछि ठाढ़ो रहब-
मांझ बाध मे आड़ि बन्हैत कहलनि जामुन महतो

रंग-बिरंगक झंडा सभ-जे उड़िया रहल अछि
एहि बिहाड़ि मे देखार भ' गेल
जे किछु छल झाँपल-तोपल
एतेक दिन सँ

केहेन-केहेन मोटगर गाछ नहि थम्हि सकल
गाछीक बीचो मे एहि रच्छछा बिहािड़क जोर
मुदा एकसरुआ भेल गोटेक टा पीपरक गाछ
आइयो अछि ओहिना ठाढ़
गामक सीमान पर कइक बरख सँ

हओ बाबू!
गामक ठाम तँ छियह ओएह
मुदा लोक सभ कतय जाइ गेलैक हओ?
-चकोन्ना होइत कहैत छथिन जामुन महतो
आ गाब' लगैत छथिन अकस्मात् आइ-माइ जकाँ
चिकरि-चिकरि कए एक-पर-एक सोहर
आ मूड़न-उपनयनक गीत बेश टहंकार सँ

चकबिदोर भेल हम देखैत छी
हुनकर सभटा किरदानी
..आकि हरो-हरो क' आब' लगैत छथि
कुहेसक धोन्हि फाड़ि क'
हेरायल-भुतियायल गामक सबटा लोक
लोककथा सँ बहरा-बहरा केँ ओहिना करे-कमान

अन्हरिया राति मे गोरिल्ला युद्धक ओरियाओन मे अपस्यांत
गामक युवक सभ सकपंज भेल तकैत अछि
तेहन नजरि सँ जेना फेर नहि घुरि सकत ओ
अपन गाम-ठाम मे कहियो

जानि नहि कहिया होयत उग्रास हओ दिनकर-दीनानाथ!
कहिया शांत होयत काल-वैशाखीक रच्छछा जोर-
पेटकुनिया देने हमर बाबी
लिबलाहा एकचारी मे गोहरबैत छथिन देवता-पितर केँ

जानि नहि कतय-कतय सँ अबैत अछि
ई काल-वैशाखी
कोन हवा केर दाब क्षेत्र मे साजैत अछि
ई एहेन-एहेन मारूख साज-बाज
हम बहार होइत छी तकर उत्सूक खोज मे
मुदा भेटैत नहि अछि कोनहुना बाट।
2007
इतिहास
फिल्म निर्माण मे सहयोग कयनिहारक सूची सँ
जे गायब अछि- डमी के रूप मे मारि खाइत
चक्कूअ आ गोलीक वास्तविक रूपेँ प्रहार सहैत

अभिनेत्री संग-संग दर्जनो भरि छौंड़ी सब
जे सुर आ अंगक समन्वित प्रदर्शन मे
रहैत अछि अपस्याँत
तकरा सबहक स्थान कतय अछि
रजत पटक इतिहास मे?

नायक केर नेनपनक संगी बनबाक निमित्त
जे आयल छल नेना सबहक झुंड
रजत पट पर
आइ कतय छथि ओ लोकनि?

भरि-भरि राति जागि कए
जे बनौने छल अभिनेत्रीक परिधान
एक सँ एक कर्णप्रिय गीत मे
बाजा बजौनिहार वादक सब
कतय अछि आइ सिनेमाक इतिहास मे?

2.
खबरि बनौनिहार सँ लिखनिहार धरिक
नाम अछि अखबार मे
मुदा कतहु नहि अछि ओकर सबहक नाम
जे छापलक भरि राति जागि कए
उघलक माथ पर खबरिक बोझ
आ पहुँचेलक जे घरे-घर, हाथे-हाथ

दुनिया भरिक दार्शनिक सबहक
सुदर्शन पोथीक लेल
जे लोकनि कयलनि अपन हाथ आ स्वास्थ्यक नाश,
जाकिर हुसैनक तबलाक लेल
जे हाथ सानलक माटि
आ गढ़लक अपन अँगुरी सँ
तालजन्मा आकृति
तकर कतय उल्लेख अछि
संगीतक इतिहास मे?

मकबूल फिदा हुसेनक लेल जे बनेलक कूँची-ब्रश
अनेक तरहक रंग
ओकरा सबहक स्थान कतय अछि
करोड़ो टाका मे नीलाम होइत
पेंटिंग केर इतिहास मे?

ई सब अनुल्लेखनीय व्यक्ति सब जीवित छथि
जन्म-जन्म के क्षुधित करौट लागल
अपमानित होइत इतिहास नियंता द्वारा
...से कहैत छी भाइ
तखन मुइल लोकक इतिहासक कथे कोन?
2006
भूत
घैलक-घैलक पानि उघि कए
जे किसुन महतो लगेलनि
कलमी आमक गाछी
आ एतेक टाक परिवार-
से हुनके लेल
आब भ’ गेलनि
दिन केँ गाछी
राति केँ भूत।
2006

न्याय जारी अछि
(सद्दाम हुसैन केँ देल गेल मृत्युदण्ड पर)

सुभाषितानि आ नीतिश्लोकाः मे आब नहि बाँचल
एक्कोन टा न्यायाधीश वानर
अपन इनसाफी बटखराक संग
आब ओ सब देखल जा रहल-ए
आख्यान सँ बहरा कए सुच्चा वर्तमान मे

वर्तमानक अर्थ जँ सुपरसोनिक विमान सँ
गणेशजीक दुग्धतृषा धरि जोड़ि सकी
आ अर्थ लगा सकी कोनहुना उच्च तकनीक सँ संपन्न
सुपर कंप्यूटर पर लागल सेनुरक डांड़ि के बीच
तँ शायद वर्तमान शब्दक किछु अर्थ
ताकल जा सकैत अछि

कलस्टर बमक प्रहार सँ दुनिया भरि मे
लोकतंत्र स्थापित करबा मे अपस्याँत महाशक्ति
क्षणे-क्षण अपन बयान बदलैत एकर कारण
कहुखन ईश्वरीय आदेशक पालन
तँ कहुखन व्यापक विनाशक हथियारक उत्पादन कहैत अछि

जानि नहि कोन-कोन न्यायाधीशक निर्णय आयब
एखनो बाँचल अछि
जानि नहि हमरा सबहक छाती
ककरा-ककरा बंदूकक लेल आरक्षित भ’ चुकल अछि ?
आ घर पेट्रोल बमक घेरा मे आबि चुकल अछि

लोकतंत्र स्थापनाक प्रयास
पर कोनो तरहक टिप्पणी
न्यायालयक गंभीर अवमानना मानल जायत
आ न्यायाधीश केर नियोक्ताक संग नहि देब-शत्रुता

सावधान! दुनियाक खास-ओ-आम
न्यायाधीशक न्याय जारी अछि!
2007

बसरा
नष्ट क’ देल गेल ओहि नगक सबटा खेसरा
कतहु नहि बाँचल आब ओ बसरा

विश्व चौधरीक जुत्ता पर लागल धूरा मे
स्वचालित हथियारक मोनबरहू नली मे
तकैत अछि अपना केँ बसरा

कंधारी कान्ह पर स्थायी कठिहारी बनौनिहार
जुत्ता सबहक नोंक सँ उड़ल धूरा
नष्ट क’ दैत अछि नोरो केर स्वच्छता

नोरक विशाल नदी बहि रहल अछि
बसरा मे बगदाद मे काबुल मे कंधार मे
ईरान मे सीरिया मे क्यूबा मे लीबिया आ फिलिस्तीन मे
जाहि मे हेलडूब करैत कोन भविष्यक आस मे जीबि रहल छी?
पुछैत अछि बसरा केर कोइख-माथ सुन्न स्त्रीगणक समूह

कतेको नेना मानव-कंकाल सँ भयभीत हेबाक वयस मे
बेचि रहल अछि व्यापारी केँ मानव अस्थि

ई कोन युद्ध छल जाहि मे बेर-बेर अश्वत्थामा हाथीक मृत्यु केँ
द्रोणपुत्रक मृत्यु कहि कए प्रचारित कयल गेल
ई कोन युद्ध छल जाहि मे कतहु अस्तित्वे नहि छल
द्रोणपुत्र अश्वत्थामाक

एक दिन जखन साँझ मे घर घुरैत छलीह
फौजिया - अल - सईद
तँ देखलनि कइक हजार सालक
हुनक पुरखाक आँखि सँ खसैत अविरल नोर-प्रपात
आ कखन बिला गेल ओहि मे ओ
से नहि देखि सकल दजला-फुरात!
2005
गरुड़-कागभुशुंडी संवाद

अत्यंत करुण स्वर मे बजलाह कागभुशुंडी जी
-हे पक्षिराज!
मृत्युलोक मे एकटा नदीक नाम थिक नील नदी
क्षमा करब आब नोर नदी
जतय राज्यहरणक बाद रक्ताभिषेकक लेल
विश्व सभ्यताक सैनिक सब रक्ताक्षत आ रक्तदूर्वा सँ
आसुरी गर्जनाक संग कयलक अछि बुशाराधना

हे गरुड़ जी!
ताहि देशक असंख्य लोकक लहास एखनो
कब्र लेल दू बीत भूमिक आस मे सड़ि रहल अछि
हम देखैत छी तँ हमरे आँखि मे उमड़ि अबैत अछि नोर नदी

हे महाभाग!
नील नदी ओहि देश मे छल हैत कहियो
मुदा आब तँ अगबे नोरक नदी बहि रहल अछि
पुरान लोक छी तेँ इतिहासक नील नदी
एखनो मोन पड़ैत अछि
आ हम ओहि दाहबोह मे भसियाइत रहि जाइत छी

तेँ जखन-जखन हम इतिहासक नील नदी मे भसियाब’ लागी
तँ हमरा मोन पाड़ि दी अहाँ
नील नदी नहि, नोर नदी

कागभुशुंडी जीक वर्णन सँ चिंतातुर होइत बजलाह गरुड़ जी
-हे कागभुशुंडी जी!
...और की सब भेलैक अछि मृत्युलोक मे?
सबटा कहू कनेँ फड़िछा कए

कागभुशुंडी जी उवाच-
हे परंतप! मोन पाड़ू अहाँ राजा जनक जीक दरबार मे
परशुराम जीक बात-गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर
आ एकरा त्रेते टा नहि कलियुगो मे कयलनि अक्षरश: सत्य
हुनक वंशज लोकनि

संहारक लेल महादेव जीक आवश्यकता आब नहि रहल
प्राण हरणक लेल यमराजक काज नहि रहल
अनेक-अनेक महादेव आ अनेक-अनेक यमराज आब
अवतरित भ’ गेल अछि मृत्युलोक मे
आ अहूँ सँ बेशी विश्वासपात्र सेवक सब
आब अहाँक स्वामीक नाम पर ताल ठोंकि रहल ‍अछि

हे महाभाग!
अहाँ कइक योजन धरि देखि सकैत छी
से अहाँ स्वयं देखि सकैत छी अपन स्वामीक
नवीन सेवक सबहक
नव-नव रुद्रावतार
नव-नव यमावतार

हे पक्षिराज!
मदनोत्सव सँ घुरल सोमरसक निसाँ मे मांतल
पृथ्वीक महाबली सर्वलोक नियंता हेबाक अहंकार मे
बम केर बटन सँ खेलाइत
अट्टहास क’ रहल अछि अपन रंगमहल मे


संपूर्ण मृत्युलोक मे एखन अनंत विस्थापन चलि रहल अछि
एहि नगर सँ ओहि नगर
एहि प्रांत सँ ओहि प्रांत
आ एहि देश सँ ओहि देशक यात्रा मे हकमैत
विशाल विपन्न जन समुदाय

एखन जँ जायब मिथिला
तँ अहाँ केँ लागत कोनो
अकादारुण बोन मे बौआ रहल छी
कोनो सुनसान जनपद मे आबि गेल छी
जतय गामक-गाम मे खाली झींगुर बजैत अछि
आ दू कौर भातक लेल लोक सब
अनन्त विस्थापन-यात्रा मे दौड़ि रहल अछि
हकासल-पियासल
डगर-डगर
नगर-नगर

हे महाभाग!
संपूर्ण मृत्युलोक केँ कइक बेर
नाश क’ देबाक शक्ति सँ संपन्न महाशक्ति
शक्तिक निसाँ मे चूर शुरुह क’ देने अछि
क्रम-क्रम सँ छोट-छोट देशक विनाश

कतहु देवराज इन्द्र केर वज्र जकाँ
बरसि रहल अछि बम
कतहु एहि सब सँ बेपरवाह लोक लड़ि रहल अछि
सोमरसक निसाँ मे नितराइत सर्वलोक-नियंता सँ
अपन जीवनक अंतिम लड़ाइ
अंत-अंत धरि।
2005
लाहौर
(सुन्दर दास रोड, लक्ष्मी चौक आ लाला छतरमल रोड पर टहलैत)
कोनो ध्वनि तरंग केँ अनुमति नहि छैक एहि ठाम
भारत सँ अयबाक
पासपोर्ट पर लागल वीजाक मोहर
अभयदानक मुद्रा मे हाथ पकड़ैत कहैत अछि-
कहियो साठि-पैंसठि बरख पूर्वक रहल वर्तमान
आब इतिहास बनल अछि
जतय सँ बाहर भेल बहुत रास ध्वनि तरंग
आइयो इतिहास पर आंगुर उठबैत अछि

जिस लाहौर नहि वेख्या ओ जम्या ही नइ- के कहैत छल?
के लाहौर सँ जन्म लेबाक सार्थकता केँ जोड़ैत छल?
मोन मे तरंगित प्रश्न असंख्य हिन्दुस्तानीक
जनम अकारथ केर कथा मे ओझराइत
अनारकली सँ निकसैत
ग्वालमंडी मे भुतिया जाइत छल

जखन-जखन इस्लामाबाद सँ उठल बिहाड़ि
बिड़रो बनि पसरैत अछि तरेगन भरल आकाश मे
लहोर-लहोर कहि आर्तनाद क’ उठैत अछि
बिलटल हृदयक हाहाकार

दरबार-दरबार सब मे गिरफ्तार इतिहासक स्वर-पहाड़-
पंजाबी मे, पश्तो मे, उर्दू मे अभिव्यक्तिक अवलंब
अनुगूंजित होइत अछि
बुल्लेशाहक स्वर...लहोर-लहोरक उच्च स्वर मे

कतेक नपना सब सँ नापल गेल पानि
पानि-पानि भेल धरतीक छाती पर फांक-फांकक बखरा मे
जोखल जाइत रहल पूर्वज सबहक संचित नोर
खूनम-खून भेल आत्माक कछेर पर देखैत गिद्धक झुंड
लोल भरि-भरि कए भरैत रहल घोघ नरमुंड सँ

मतिर्भिन्ना लकीर रेड क्लिफक गवाही मे
लाहौरक बताह सब केँ
टोबा टेक सिंह मे रूपांतरित करैत
वधस्थल पर चीत्कारोल्लसित टैंक केर मुंह पर
अमृतसरक अमृतविहीन हेबाक गवाही दैत
आइ धरि हमरा जेबी मे
कोनो रेडियोधर्मी तत्व जकां
पासपोर्ट-वीजा बनल छल।
2008
रावलपिंडी
1.
रावलपिंडी सँ आइयो बहुत दूर लगैत छैक लाहौर
बहुत दूर...
जतय स्वतंत्रता केर समवेत स्वर
प्रचंड नरमेधक इतिहास मे बदलि गेल छल

दूर-दूर होइत समय मे अनघोल करैत
अनंत स्वर-श्रृंखला...
जेहो सब छल निकट
से दूर भेल जा रहल अछि
दूर-दूर होइत बहुत किछु
विलीन भेल जा रहल अछि

चारू दिशा मे टहलैत इंसाफी मरड़ आ छड़ीदार लोकनि
इंसाफ करबाक लेल अपस्यांत वर्तमान सँ भविष्य धरि
अगुताएल छथि इतिहासो मे घुरि कए
इंसाफ करबाक लेल

2.
जखन हम फोन पर होइत छी खांटी मातृभाषी
मायक लेल बजैत चिंताहरण बोल
आ कि टैक्सीै रोकैत हमर ड्राइवर करीम खान
अविश्वास आ आश्चर्य भरल स्वर मे पुछैत अछि-

-भाय तोंय हिंदुस्तानी छहो?
हमरा अब्बाो सँ तनी मिलभो-
हुनि बोलइ छथिन इएह बोली
जे तोंय अखनी बोलइ रहो
आ शनैः शनैः पसरि जाइत अछि
हमरा टैक्सीं मे आकुल-व्याकुल अविभाजित देशक
भागलपुर लाहौरक बाट मे

3.
हमरा डाकघरक मोहर मे आइयो कायम अछि मुंगेर
आ एतय कतरनी धानक चूड़ा मोन पाड़ैत करीम खानक वृद्ध पिता
दुनिया सँ जयबा सँ पूर्व एक बेर जाइ चाहैत छथि
अपन देसकोस
एकटा देश भेटबाक बादो ओ तकैत रहैत छथि
अप्पसन देसकोस!

अपन देस सँ नगर-नगर बौआइत हम
पहुँचल छी रावलपिंडी
जतय आइयो पछोड़ धयनेँ अछि हमर
अप्पचन देसकोस!

कोस-कोस पर परिवर्तित होइत पानि
एतेक दूर ओहिना लगैत अछि
जेहन अपन गाम केर इनारक
आ दस कोस पर परिवर्तित होइत बोली
साठि-एकसठ बरखक बादो ओहने लगैत अछि
जेहन आजुक भागलपुरक

हम तकैत छी इतिहास दिस
आ सामूहिक स्मृति सँ विलीन इतिहास हमरा दिस
जे भेटैत अछि कइक कोस दूर रावलपिंडी मे


4.
एतय एक्केी संग घटि रहल अछि अनेक घटनाचक्र
गहूमक चिक्‍कस लेल तनाइत ए.के-सैंतालिस
सैंतालिस सँ सैंतालिसक चक्रवृद्धि देखैत
ठाम-ठाम सँ आयल रावलपिंडीक किछु वृद्धजन
मंत्र जकां उच्चरित करैत छथि -इस्लामाबाद
इस्लाम-आबाद
आह...बाद.....
आबाद लोक सबहक बीच
सब बर्बाद!

5.
बाघाक बाधा ब्रह्मांडक संपूर्ण बाधा सँ
बेशी मोसकिल छैक नुनू
तोंय अइलहो हमरा सँ मुलाकात करलहो...
मिल विलीन होइत अस्सी बरखक जमकल नोर मे
हमरा मात्र लहो...लहो...लहो...सन
सृष्टिक सब सँ आदिम स्वर पंचम मे विलीन होइत बुझाएल

भागलपुरक सामूहिक स्मृति सँ विलीन
इतिहासक जीवंत कथा
वर्तमानक कैनवास पर पसरि रहल छल।
2009

पेशावर
फजिर केर अजानक स्ववर-पंथ पर बढ़ैत
तकैत छी एहि भूगोल मे इतिहासक पुष्पमपुर मुदा हमर पयर किशमिशी शोणित मे धँसल
सीमांत गाँधीक आकुल पुकार मे हेरा जाइत अछि
अनंत पतझड़ मे झरैत रहैत अछि एहि ठाम पातक संग रंग-बिरंगक कारतूसक खोल
खोल-खोल मे नुकाएल शियाक बंदूक सँ
सुन्नींक बंदूक सँ घृणा केर असमाप्यक श्रृंखला प्रतिदिन अपन-अपन अल्लांही पंथक स्थारपनार्थ
स्था पना आ शिलान्यालसक राजनीति मे राम सियाराम मय सब जग जानी सँ सर्वथा पृथक मात्र जय श्रीराम भ’ कए रहि गेल छथि
आ नहि जानि किएक लोकतांत्रिको अयोध्याक मे हमर मैथिली सीता
रामक संग-संग स्वीतकार्य नहि भ’ पाबि रहल छथि ?

पेशावर मे बेर-बेर मोन पड़ैत छथि अश्रु विगालित सीताक क्रंदित-‍छवि व्यरथित स्व्र मे धरती सँ प्रार्थना करैत इजोरिया रातिक अंतिम पहर मे पंक्तिबद्ध सीता सबहक छाती पर गरजैत अछि आधुनिक बंदूक केर गोली आ रत्न गर्भा पृथ्वीी रक्तपगर्भा भेल
तलातल सँ रसातल धरि
कँपैत रहैत अछि
नहि जानि किएक अहर्निश अबैत रहैत अछि
पृथ्वीन मे समाइत सीता सबहक आकुल पुकार
इजोरिया रातिक अंतिम पहर मे फजिर केर अजान मे मिज्झरर होइत
अयोध्यार सँ ल’ कए पेशावर धरि
आइयो ओहिना।
2009
फैसलाबाद
घुरि आऊ बाऊ, घुरि आऊ
एहि बाट सँ क्योस आइ धरि नहि पहुँचल अछि फैसला धरि
बाट-घाट केँ छेकि कए बैसल पंच-समूह किन्नहहु नहि छोड़त बाट नहि बन्न‍ करत अवघात आ हरान भ’ कए घुरब अहाँ तँ पहिनहि किएक नहि घुरि जाइत छी बाऊ ?

फैसलाक लेल जिद कयनिहार सब आब कहाँ ?
मोकदमा पर मोकदमा गाम सँ ल’ कए दुनिया भरिक पंचायत मे मुदा फैसलाबादो मे फैसला कहाँ ?

अटारिये सीमा सँ हमर पछोड़ धयनेँ
वृद्वा सबहक समूह- रेड क्लिफ...रेड क्लिफ...बुदबुदाइत चकित भेल थकित स्व र मे अश्रुविगलित भेल कहैत रहलीह घुरि आऊ बाऊ, घुरि आऊ एहि ठाम सँ कोनो बाट फैसला धरि नहि पहुँचल अछि आइ धरि
दुनिया भरिक छड़ीदार आ मरड़ लोकनि कोर्ट-कचहरी आ शिखर-सम्मेचलनी ओकील सब फैसला धरि पहुँचबाक पूर्वाभ्याकसे टा क’ कए
रहि जाइत छथि
तारीख-पर-तारीख करैत असोथकित विश्व’ समूह परतारल जाइत रहल-ए कइक सदी सँ
एखन नहि बाद मे फैसला ... बाद मे सब बेर ओहिना फैसलाबाद मे

मंटो भाइक कथा सँ एक्केा बेर चेहाइत पुछैए
पी‍िड़त-क्षुधित-उत्पीै‍िड़त विशाल जन समूह
किएक हमरा लोकनिक फैसला बाद मे ?

अहाँक फैसला एडविना केर काॅफी सन मीठ माऊंटबेटनक दृढ़ता सन अडिग
मुदा टोबा टेक सिंहक बेर मे किएक
फैसला...... बाद मे?

पुस्तट-दर-पुस्त बीति जाइत छैक बाऊ
मोकदमा लड़निहार सँ ल’ कए न्याइयाधीश धरिक मुदा फैसलाक बेर मे कर्फ्यू लागि जाइए शोणितक पमारा बहय लगैए एक्कोक टा काग-पंछी नहि देखार पड़ैए नगर मे आ फैसला आगूक लेल टारि देल जाइए
नीति सँ अनीति सँ अनेक कूटनीति सँ उताहुल जन-समूह केँ राजी क’ लेल जाइए आ आइ-काि‍ल्‍ह केर अनंत-श्रृंखलाक फांस मे शनै: शनै: फैसला विलीन भ’ जाइए
जिन्ना केर फैसला सब लियाकत केँ नहि पसिन्नल पड़लनि लियाकतक हत्याा भेलनि जुल्फिकारक फैसला जिया-उल-हक केँ अनसोहाँत लगलनि भुट्टो केँ फाँसी भेलनि एकक फैसला दोसर केँ अनसोहांत लगैत रहतै आ हत्यालक अनंत श्रृंखला अनवरत चलैत रहतै बाऊ एहना मे ककर बात के सुनतै?
फैसला रहतै फैसले ठाम
मुदा गामक-गाम अनेर भ’ जेतै
अहाँ किएक नहि सुनैत छी हमर हाक?
किएक नहि धरैत छी अपन गामक बाट?
डेगार भेल बढ़ले जा रहल छी फैसलाबाद ...??
2009

तक्षशिला
एकटा कबूतरक पंख आ दू टा सांपक केचुआ हत-प्रतिहत स्व रक अनुगूंज सँ संतप्ति वातावरण शिला सँ आभासित किला केर अतीत चलैत जाइत छी जिज्ञासाक सीमांत धरि बुझाइत अछि ओस सँ नम भूमि पर मर्दित भ' रहल अछि बहुत रास वार्तिक
घुमंतू पएर सब सँ कतेक बरख सँ

शिला पुछैत अछि शिला सँ अतीतक मादे तीत अकत्त भेल अतीतक सुस्वाीदु जिह्वा पर समयांतरित होइत रहैत अछि मूअनजो-दाड़ो केर भंसाघरक पक्व -गंध
कांट-कांट भेल प्रहरी सब चौचंक अछि अतीत केँ संग ल जेबाक आकांक्षी वर्तमान सँ कांटयुक्तस तार सँ घेरल-बेढ़ल अतीत औनाइत रहैत अछि हमरा मोन मे ओहिना

हत-प्रतिहत मनुक्खनक अंतिम स्वीर दसो दिशा मे पसरल अछि हाहाकर जकां
मुदा निर्धारित स्वछर-पंथी कर्ण-कुहर फराक रहैत अछि बहुत रास मिज्झ री स्व र संघनन सँ
श्रुत परंपरा सँ प्राप्त ऋचा अष्टा ध्यारयीयो सँ पूर्वक व्यासकरण मे निबद्ध औनाइत रहैत अछि हमरा कान मे अहर्निश
तक्षशिला मे अक्षविहीन शिला सबहक बीच पक्ष-विपक्षक कोनो तर्क-वितर्क कोनो तरहक जिज्ञासा शमनार्थ वाद-विवाद
असंभव लगैत अछि आब
इजोरिया रातिक नील-धवल आकाश मे अहर्निश खसैत रहैत अछि नहि जानि कतेक ग्रह-उपग्रहक स्वरर केर पग-धूर
आ मलिन होइत रहैत अछि अनेक शिलामुख
झाड़ल-पोछल वर्तमानक बीच तक्षशिला मे !
2009
ननकाना साहिब
चिड़ै डेराइत अछि डेराइत-डेराइत चेहाइत अछि आ उड़ि जाइत अछि निस्सीम गगन मे
एहि भूगोल मे इतिहासक ऑक्टोपसी गछाड़ आ सेहो नहि तँ कोन बात जे तोप केर आवाज सहज लगैए आ चिड़ै केर स्‍वर भयाक्रांत ?

लाउडस्पीसकर सँ गुरू ग्रंथ साहिब केर लयात्मक स्वीर पसरैत अछि अंतरिक्ष मे
आ सड़क पर ओहिना विद्यमान रहैत अछि निस्तकब्धवताक साम्राज्यक
बैग उठबैत बढ़बैत छी डेग कोनो आन नगरक लेल तकैत छी चारू दिस तकैत जाइत छी आकुलता सँ
मुदा देखार नहि पड़ैत अछि चिड़ै-चुनमुनीक किलोल करैत झुंड!
2009
कराची
पछिला साठि बरख सँ उठैत अछि हूक आ समुद्री गर्जना मे विलीन नोनछाह होइत रहैत अछि
एतय विद्यमान अछि बनारस सहारनपुर मेरठ गया आ बुलंदशहर अपने निर्णय सँ बेबस आ उदास
हम अपन बत्तीसम बरख मे करैत छी साठि बरखक साक्षात्काेर
समय पुछैत अछि समय सँ केहेन अछि आब मेरठ ?
केहेन अछि गया आ भागलपुर ?
प्रश्नाछकुल जनसमूह मे ठाढ़ समय बाँटैत अछि समय केँ मात्र किछु बुन्न नोर

आब ओहि समय मे घुरब असंभव ओहि स्मृमति मे घुरब असंभव
आ संभव सँ असंतुष्टत कराची असंभव मे घुरबाक लेल जिद कयनेँ छल !
2009
सरगोधा
निःशब्दा राति मे खुजल पहिले-पहिल चंचु आ हूक उठल पंचम मे?
मोन स्थिर करैत
तकैत छी एहि स्वर-धार केर उत्स मुदा भोरुकबा उगबा लेल जेना उताहुल छल
निःश्वास छोड़लहुं- ह’-ह’ भोर होयत आब भोर
आ मोन केँ भेटत त्राण
मुदा ई कोन चिड़ै थिक
जे ‘ध’ केँ उच्चरित करैत अछि ‘द’ आ कहैत अछि- सरगोदा सरगोदा
गोदा...हाय सरगोदा
निन्न जेना गामे मे रहि गेलीह
संग नहि अयलीह एहि ठाम
भोर होइत अछि करौट फेरैत-फेरैत

होइत अछि अंततः भोर
मुदा भोर भेल शहर मे
औनाइत रहैत अछि राति

अखबारो चिचियाइत अछि
निःशब्दा रातिक स्वर जकां
रक्तगंधी स्वर मे ओहिना सरगोदा

बहराइत छी एहि शहर सँ चरैवेति...चरैवेति आ समवेत स्वर मे सुनैत रहैत छी
चंचु सबहक पंचम स्वर!
2009
वसीयत
कविता हमर हुनका देबनि जे अपन माटि-पानिक गंध सँ परिपूरित होथि कवितामय
ओ जँ बुझि सकताह हमरा आ हमर अनुराग-विराग
तँ हुनका कहबनि मोन राखथि मात्र रचना केँ जे रहत तहियो जखन हम रहब
दुनिया सँ अनुपस्थित!
2009
जानि नहि किएक
मोन मे नुकबैत छी आँखि मे नुकबैत छी
बूझए नहि दुनिया एहि सतर्कता सँ व्या कुल दौड़ैत रहैत छी अपस्याँ त अहाँक छायाक भय सँ अहार्निश!
2009
अंत्ये ष्टि
जे किछु क्योय कहैए सुनि लैत छी जे किछु क्योय बुझैए मानि लैत छी जखन अहीं नहि बुझि सकलहुं
तखन जे लोक कहए जे लोक बुझए हम ककरो सँ किछु नहि कहैत छी
प्रयास करैत छी मुदा हँसि नहि पबैत छी प्रयास करैत छी मुदा सुति नहि पबैत छी
प्रयास करैत छी मुदा मरि नहि पबैत छी एहन फांस मे छी फँसल
जे ने निन्न होइए ने म़ृत्युै होइए
ई कोन जीवन थिक अहीं कहू?
जे दुनिया हमरा जीवित बुझैत अछि आ हम अपने लहास अपन कान्है पर उघि रहल छी ?

किएक एना होइत अछि जे अहाँ केँ बिसरबाक हमर सबटा प्रयास व्यकर्थ होइत रहैत अछि आ जतेक बेशी करैत छी प्रयास बिसरबाक ओतेक बेशी नोर टघरि जाइत अछि ?

नोर पर हमर सक्कघ नहि रहैत अछि
मोन हमर कहल मे नहि रहैत अछि लोक कहैए जीबाक चाही परिवारक लेल प्राण मुदा बोझ लगैत रहैत अछि
मुंहक बोल दुनिया सुनि लैत अछि प्राणक बोल क्योल नहि
क्योण नहि देखैत अछि रातिक अन्हा रघर मे हमर आकुल प्राणक छटपटाहटि जे सब दिन अहीं केँ सोर करैत रहैत अछि भोर धरि स्वरहीन

जीवनक श्म्शान मे अपने चिता पर काठी चढ़बैत हम प्रतीक्षा क’ रहल छी अहांक क्रोधग्नि केर जे अहां आयब कहियो-ने-कहियो अवश्यक
आ पूर्ण भ’ सकत हमर अंत्ये ष्टि! 2009
जखन नहि रहब
अहाँ उठबैत रहि जायब
अहाँ चिकरैत रहि जायब बेर-बेर देह डोलबैत थाकि जायब अहाँ
जखन नहि उठब हम चिरनिद्रा सँ

अहाँ केँ मोन पड़ैत रहत अपन क्रोध मोन पड़ैत रहत सबटा विरोध आ हम क्रोध-विरोध सँ दूर तकैत रहब अहाँ केँ अपलक लहास भेल
जरि जायब अहाँक क्रोधाग्नि सँ

छाउर होइत माटि भ’ जायब
आ समय केर बिहाड़ि मे उड़ि जायब !
2009
समयोर्मि
(शक्तिक विरुद्ध मनुक्खक संघर्ष वस्तुतः विस्मृतिक विरुद्ध स्मृतिक संघर्ष थिक–
मिलान कुंदेरा, “द बुक ऑफ लाउडर एंड फॉरगेटिंग”)

एहि दिवाकालीन राति मे कछमछ करैत फड़िच्छ हेबा धरि
तकैत छी नील-धवल-आकाश
चिड़ै-चुनमुनीक आवाज सुनबा लए आकुल
भोरुकबाक खोज मे होइत छी ठाढ़
लगैत अछि अजगरक फाँस मे कुहरि रहल अछि प्रकाश

निशाकालीन दिवस मे शब्द-सूर सब
मल्लोलित-कल्लोलित-शब्दोद्वेलित करैत निस्पृहता सँ
प्रत्यर्पित करैत अछि अवचेतन मे कूटशब्दांधकार

मातृभाषिक संसार मे लहालोट होइत लेखनी घामे-घाम भेल
अंततः भ’ जाइत अछि ठाढ़
एक-एकटा शब्द केँ निकती पर जोखैत

भृतकवीथी सँ दरिद्रवीथी धरि पसरल
एक दिस देबाल मे
तीन दिस टाट ठाढ़ करैत भृतकगण
सहस्रो वर्ष सँ आइ धरि ओहिना पड़ैत छथि देखार
पतंजलिक आँखि मे खचित–कुड्यीभूतं वृषलकुलभिति


सोतिपुरा आ अग्रहारक बाहर जन्म लेबाक
अभिशापित कालक सांघातिक दंड भोगैत
आदि सभ्यताक अंत पुरुष
आइयो भोगैत अछि आर्याचारक दारुण अरण्याचार
सम-आचार सँ रहित समाचारक नूतन प्रचारक सब
मनुक्ख विरोधी नवाचारक निधोख करैत रहैत अछि
गोयबल्सी शैली मे प्रचार

काल-नियंताक क्षुधित मुखाकृति केर असंख्य प्रतिकृति
बौआइत अछि मिथिलाक गाम-गाम मे
भक्ष्य, भोज्य, चोष्य आ लेह्यक
सांगीतिक गुणानुवाद करैत

उन्नत सभ्यताक सांस्कृतिक साँझ मे
धर्मधारी विशिष्टाद्वैती प्रवचनकर्ता
विषय-कीर्तनक विशेष कीर्तन करैत अछि
सर्वथा विशिष्ट शैली मे
विशिष्ट कक्षक विशिष्ट क्षण मे सोमरस मे रंजित

वृद्धा पृथ्वीक आँखि मे उमड़ैत समुद्रोर्मि
आदि पुरुषक नोर सँ और होइत अछि नोनछाह
आदि नारीक रक्त सँ पाटल अछि
उन्नत सभ्यताक घृणाच्छादित रक्ताकाश

रक्तात सभ्यताक विलुप्त सरस्वती मे अहर्निश कनैत अछि
द्वारबंगक दू टा माछ

मत्स्यप्रेमी द्वारबंगी सामंत आ महाराज मत्स्योपभोगक लेल
आकुल-व्याकुल कुल-कुल के मत्स्यक बिना कोनो मात्सर्यक
करैत रहल अछि शिकार


शिकारित जीव सबहक आर्तनादी हाहाकार सँ
परिपुष्ट होइत रहल अछि आखेटक सबहक क्रूरात्मा

एहि दिवाकालीन राति मे शिकारित जीव सबहक हत आत्मा
पुछैत अछि अपन-अपन अपराध
जैजैवन्ती राग मे निष्णात इतिहास-पुरुष सँ बेर-बेर

उर्वीपुत्रीक दारुण जीवनक व्यथोपकथन सँ द्वारबंगी माछक
अश्रुपूरित आँखि मे अभरि अबैत अछि
ऐतिहासिक सभ्यताक सांस्कृतिक रक्तपात

असंख्य मनुक्खक रक्त सँ पाटल द्वारबंग मे
बनैत रहल उजड़ैत रहल बुभुक्षित साम्राज्य

उर्वीजाक भातिज सबहक रक्त सँ शमित करैत रक्त-पिपासा
उर्मिल नदीक कोर मे खेलाइत माछक प्राणांतक कथा
नहि कहत द्वारबंगक मत्स्यभोगी इतिहास-पुरुष
साओन मासक रातिमे जागि कए प्रात करैत
भृतकवीथीक लोकक व्यथा नहि कहत कापुरुष जयदेव

एहि दिवाकालीन राति मे पतंजलिक बाट तकैत
विदा होइत छी भिनसरे-भिनसर राजघाट दिस

निरन्तर ल’ग अबैत शब्दोर्मि मे डुबैत
असंख्य माछक ऐतिहासिक अश्रुओर्मि
कटैत रहैत अछि हमर हृदय-सिन्धुक पाट!
2005

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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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