भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, July 18, 2008

'विदेह' १ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १३ ) भाग ४ http://www.videha.co.in/



'विदेह' १ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १३ )
http://www.videha.co.in/

१६. रचना लेखन-गजेन्द्र ठाकुर
विद्यापति शब्दावली
एहि अंकमे विद्यापतिक मैथिली पदावलीसँ हुनकर शब्दावलीसँ परिचित करबाओल जाऽ रहल अछि जाहिसँ अहाँक लेखनी मृगमदमय भए जायत।
मृगमद = कस्तूरी
वासर = दिन
रैन = राति
लिधुर = रक्त
पुर नटी = नागर नटी
अवतरु = अवतरित होऊ
कनक भूधर = सुमेरु पर्वत
चन्द्रिका चय = चन्द्रिकाक समूह
निपातिनि = नाश करएबाली
भक्त भयापनोदन = भक्तक भए दूर करएबाली
दुरित हारिणि = विपत्तिक भार हरण करएबाली
दुर्गमारि = भयङ्कर शत्रु
विमर्द = विनष्ट
गाहिनी = विचरण करएबाली
सायक = वाण
सुकर = सुन्दर
पिसित = काँच मौस
पारणा = तृप्ति
रभसे = आनन्दित करएबाली
कृशानु = अग्नि
चुम्ब्यमान = चुम्बन करैत अछि
परिच्युति = नष्ट करैत अछि
आड़ = लाल
भागि = वक्र
गोए = नुका कए
सुधाए = अमृत
कुशेशय = शतपत्र कमल
अधबोली = असंपूर्ण वाक्य
खनेखन = क्षणे-क्षण
उचिक = चकित भावेँ
आरति = पीड़ा
अनानि = अज्ञानी
दन्द = झगड़ा
हेरैत = देखैत
मनसिज = कामदेव
गौरव = गुरुता
खीन = क्षीण
अओके = दोसराक
लहु = लघु
परगास = प्रकाश
सुरत विहार = काम-क्रीड़ा
नवरङ्ग = संतोला
सन्तापलि = कष्ट देनाइ
बाङ्क = वक्र
पसाह = प्रसाधन
भीति = भयसँ
तिष = तीक्ष्ण
सिझल = सिद्ध भेल
कोरि = बैर फल
ससन = वायु
धनि = नायिका
अम्बर = वस्त्र
रेह = रेखा
रङ्ग = आनन्द
अलका = लेप
मसि = सियाही
समरा = श्यामल
कचोरा = कटोरा
पहू = प्रभू
ससधर = चन्द्रमा
मनोभव = कामदेव
सउदामिनी = विद्युत
करिनि = हस्तिनी
वयन = मुख
परिमल = सुगन्धि
तनरुचि = शरीरक गोराइ
अरुझायल = ओझरा गेल
बिलास-कानन = प्रमद-वन
निविल = घनगर
विहि = विधि
निञ = निज
विद्रुम दले = मौसरीक पातमे
तिहुअन = त्रिभुवन
मल्ल = पहलबान
हाटक = सोना
थम्भ = स्तम्भ
चिकुर-निकर = केशपाश
विचरित = निअम विरुद्ध
कवरी = केशपाश
चामरि = चँवर गाय
सम्भसि = सम्भाषण
न जासि = नहि कएल जाऽ सकैछ
हुतासे = अग्नि
मो = हम
पीहलि = झाँपि देलक
पीहित = आच्छादित
कुहुकि = मायाविनी
जुड़ायब = शीतल करब
दहइ = जड़ायब
अवनत = नीचाँ झुकल
बारल = निवारण कएल
धाओल = दौगि पड़ल
पसाहिम = प्रसाधन
फुलग = रोमांच
बलाअ = वलय
पेखलि = देखल
बेढ़लि = लिपटल
थीर = स्थिर
पुछसि = पुछैत छह
परस = स्पर्श
झुरए = व्याकुल होइत अछि
अम्बुद = मेघ
धन्दा = संदेह
पुतलि = मूर्ति
इन्दु = चन्द्रमा
महि = पृथ्वी
माझ = मध्य
खिन = क्षीण
मधु = पुष्प रस
उपेखि = उपेक्षा करके
तरुअर = तरुवर
लेख = उल्लेख
परिहरि = छोड़कर
तोरिए = तोहर
पाछिलि = पाछाँक
सनि = सदृश
अछलिहुँ = हम छलहुँ
छाजत = शोभित होएत
घोसिनी – ग्वालिन
बथु = वस्तु
अरतल = अनुरक्त
रव = हल्ला
राहि = राधा
तापिनि = ज्वाला
बयने = वाणी
धरनि = पृथ्वी
इथि = एकर
जोतिअ = ज्योतिष
मुरछइ = मूर्च्छा
आइति = अधीनता
महते = महावतसँ
नव = झुकैत अछि
एहो = ई
बटमारी = रस्तामे लुटनाइ
तुलाएल = बढ़ाओल
पसार = दोकान
पढ़ओंक = बोहनी
कुंगयाँ = गमार (कुगामक)
आजि = लगा देब
आग = अङ्ग
गोए = नुका कए
इन्दुमुखी = चन्द्रमुखी
तहु = ताहि परसँ
परिहरिहह = त्यागि देब
सारी = सारिका
सेचान = बाज
भामि-भामि = भ्रमण कए
विरडा = विडाल
सुरते = काम-क्रीड़ा
काहिअ अवधारि = विश्वासपूर्वक कहैत अछि
अन्तर नारी = नारीक हृदय
रोखए = रोष
गंजए = गंजन
रंजए = प्रसन्न
साह = ओऽ
तरासे = भए
परुष = कठिन
सोस = शुष्क
चेतन = समर्थ
आथि = अछि
सारी = संग
दूषलि = दुःख
निमाल = निर्माल्य
अंसुक = वस्त्र
वाँलभु = वल्लभ
नठल = नष्ट
परबोध = प्रबोध
पांगुर = पैरक आंगुर
खिति = क्षिति
गीभ = ग्रीवा
अनुसए = पश्चाताप
अनुरञ्जब = हम सम्हारि सकब
विरमाने = विराम-स्थल
एहो पय = इस पर भी
जार = जलाकर
नखत = नक्षत्र
जुगुतिहि = तर्कसँ
दोहाए = शपथ
रङ्ग = अनुराग
गरुअ = गुरुतर
पिसुन = चुगलखोर
अरुझओहल = ओझरायल
कञोनकँ = ककर ऊपर
बारि = बचा कए
फुलधालि = फूल धारण कए
कैतवे = छलसँ
अह = दिन
सपजत = सपरज
वथु = वस्तु
मोन्ति = मोती
धम्मिल = केशपाश
धोएल = स्थापित कएल
अङ्गिरि = अंगीकार करब
पुनिमाँ = पूर्णिमा
विभिनावए = अलग कए सकैत अछि
आनन = मुख
तिमिशरि = अंधकारक बैरी
चालक = प्रेरक
बम = उगलि रहल
भीभ = भआवोन
ओल = अन्त
कवल = ग्रास
सरूप = सत्य
निसिअर = निशाचर
भुअङ्गम = भुजङ्गम
उजोर = प्रकाश
झाप = डुबनाइ
मेंदुर = घन
मुदिर = मेघ
पाउस = पावस
निसा = निशा
निबिल = निविड़
निचोल = साड़ी
जामिक = प्रहरी
थैरेज = स्थैर्य
थोइआ = स्थापयित्वा
रञनि = रात्रि
सिरहि = शोभामे
असिलाइ = म्लान भऽ गेलाइ
वालँभू = स्वामी
मुसए = चोरि करबाक लेल
छैलरि = छलियाक
अरथित = याचनासँ
जड़ाइअ = ठण्डा करू
विरत रस = जकर स्वाद खतम भए गेल
अचेतन = मूर्ख
कके = किएक
लाघव = अनादर
चिटि-गुड़े = गुड़-चीटी
चुपड़लि = ब्याज
लओले लोथे = बहन्ना करलो उपरान्त
झाल = शुष्क
दरनि = दरारि
असेखि = अशेष
असहति = असहनशील
तत्न = तन्त्र
भाझहि = मध्य
खीनी = क्षीण
झपावह = ढ़कैत होए
परिरम्भि = आलिङ्गन कए
फुजलि = खुजि गेल
घोषसि = घोषणा
नखर = नख
पाँच पाँच गुन दस गुन चौगुन आठ दुगुन = ५*५*१०*४*८*२=१६०००
नखर = नख
छाँद = शोभा
हिया = हृदय
सदय = सहाय
कानुक = कृष्णाक
निरसाओल = नीरस कएल
सखिता = साक्षित कएल
करवाल = तलवार
काँढ़ = निकलैत अछि
कार = कारी
उजागरि = उज्जर
परिपन्तिहि = प्रतिपक्षीकेँ
पयगन्ड = प्रौढ़
मधुमखिका = मधुमक्षिका
उधारल = उद्धार कएल
लागर = युक्त
पुरहर = विवाह अवसर पर मांगलिक कलश
मन्दाकिनी = गङ्गाजल
केसु = किंशुक
विथुरलहु = पसारि देल
भिति = दीवारि
पौञनाल = कमलनाल
रात = लाल
ऐपन = अरिपन
हथोदक = हस्तोदक
विधु = रस्ताक ठकान
कनए-केआ = चम्पा+केरा = कनक+कदली
जैतुक = दहेज
डिठि = दृष्टि
तुलइलिहुँ = शीघ्रतासँ
अनुबन्ध = लगओनाइ
बोल छड़ = मिथ्यावादी
मज्जि = मज्जन कए
विथरओ = पसरि जाय
पाड़रि = गुलाब = पाटली
भोपति = हमरा लेल
वाउलि = पगली
विधुन्तुद = राहु
सेरी = शरणार्थी
परभृतक = कोकिल
मतेँ = मन्त्र
कि रहसि बोरि = की हास्यमे बाजि रहल छी
बालहि तोरि = अहाँक प्रेमिकाकेँ
भर बादर = मेघसँ भरल
झम्पि = रहि-रहि जोरसँ
सघने खर = तीव्र आऽ घन खर
डाहुकि = जोरसँ
थेघा = टेक कए
पख = पक्ष
पिआञे = प्रियतम
पङ्का = लेप
तथुहु = ओहिमे सेहो
दर = अपूर्व
अपद = बिना कारणक
साती = तीव्र वेदना
अवथाञे = अवस्था
पसाइल = पसारल
रासे = रोष
बालभु = वल्लभ
आएत = अधीन
सपूने = सम्पूर्ण
दिगन्तर = दूर देशमे
अरुझाए = ओझरल
आधिन = अधीन
पललि = भेल
खेञोब = क्षमा
जल आजुरि = जलाञ्जलि
सुसेरा = सुन्दर आश्रय
गोए = नुका कए
सम्भ्रम = अतर्कित
कराडहार = कड़ुआर (तकड़ा पकड़ि यमुना पार करब)
लहु-लहु आखरे = लघु-लघु अक्षर
तामरस = कमल
घनसार = कर्पूर
वेपथु = कम्प
मसृण = चिक्कन
सुदति = सुन्दर दाँतबाली
सुति = श्रुति
जति = जतेक
घमिअ = फूँकल जाइत अछि
आनइति = परवशता
दीब = शपथ
बड़इ = बहुत
देव देयासिनि = झाड़-फूँक करए बाली स्त्री
जटिला = कर्कशा
फुकरि = चिकरि
बहुरि = पुत्रवधू
अङ्गा = चिन्ह
बेसर = नाकक आभूषण
यन्त्रिया = वीणा बजाबए बला
यन्त्र = वीणा
फोटा = ठीका
समत = सम्मत
मौलि = मस्तकमे
मुसरेँ = मूसल
जेमाओव = भोजन
नवइते = उतरैत
पडिचाँ = पटिआ
माड़व = मड़बा
उगारल = घेरिकए पकड़ब
आँजल = अंजन
डाढ़ल = दग्ध कएल
गौह = खोह/ गुफा
बिलुविअ = बाँटल जाए
मउल = मुकुट
डाढ़ति = जरि जायत
श्मश्रु = दाढ़ी (मुँह बला खए बला नहि)
अधँगँ = अर्धाङ्ग
गरुअ = अधिक
अभरन = पहिरबाक वस्त्र
बड़ाव = प्रशंसा
तौँ = तथापि
निसाकर = चन्द्रमा
सरिस = सदृश
तांतल = उत्तप्त
सैकत = बालू
हब = होएत
निधुवन = संभोग
आरा = आन
कहाओसि = कहबैत छथि
राजमराल = राजहंस
सारङ्ग = हाथी
सारङ्गवदन = गणेश
(अनुवर्तते)
मैथिलीक मानक लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य अग्राह्य
एखन अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठाम ठिमा,ठिना,ठमा जकर,तकर जेकर, तेकर तनिकर तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य) अछि ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय: भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत: जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:- हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय(अपवाद-संसार सन्सार नहि), किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि।यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20.
ग्राह्य अग्राह्य
1. होयबला/होबयबला/होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला होयबाक/होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए
61. भाय भै
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
किछु आर शब्द
मानक मैथिली_३
तका’ कए तकाय तकाए
पैरे (on foot) पएरे
ताहुमे ताहूमे
पुत्रीक
बजा कय/ कए
बननाय
कोला
दिनुका दिनका
ततहिसँ
गरबओलन्हि गरबेलन्हि
बालु बालू
चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
जे जे’
से/ के से’/के’
एखुनका अखनुका
भुमिहार भूमिहार
सुगर सूगर
झठहाक झटहाक
छूबि
करइयो/ओ करैयो
पुबारि पुबाइ
झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
पएरे-पएरे पैरे-पैरे
खेलएबाक खेलेबाक
खेलाएबाक
लगा’
होए- हो
बुझल बूझल
बूझल (संबोधन अर्थमे)
यैह यएह
तातिल
अयनाय- अयनाइ
निन्न- निन्द
बिनु बिन
जाए जाइ
जाइ(in different sense)-last word of sentence
छत पर आबि जाइ
ने
खेलाए (play) –खेलाइ
शिकाइत- शिकायत
ढप- ढ़प
पढ़- पढ
कनिए/ कनिये कनिञे
राकस- राकश
होए/ होय होइ
अउरदा- औरदा
बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
चलि- चल
खधाइ- खधाय
मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
कैक- कएक- कइएक
लग ल’ग
जरेनाइ
जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
होइत
गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
चिखैत- (to test)चिखइत
करइयो(willing to do) करैयो
जेकरा- जकरा
तकरा- तेकरा
बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
हारिक (उच्चारण हाइरक)
ओजन वजन
आधे भाग/ आध-भागे
पिचा’/ पिचाय/पिचाए
नञ/ ने
बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
तखन ने (नञ) कहैत अछि।
कतेक गोटे/ कताक गोटे
कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
लग ल’ग
खेलाइ (for playing)
छथिन्ह छथिन
होइत होइ
क्यो कियो
केश (hair)
केस (court-case)
बननाइ/ बननाय/ बननाए
जरेनाइ
कुरसी कुर्सी
चरचा चर्चा
कर्म करम
डुबाबय/ डुमाबय
एखुनका/ अखुनका
लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
कएलक केलक
गरमी गर्मी
बरदी वर्दी
सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
एनाइ-गेनाइ
तेनाने घेरलन्हि
नञ
डरो ड’रो
कतहु- कहीं
उमरिगर- उमरगर
भरिगर
धोल/धोअल धोएल
गप/गप्प
के के’
दरबज्जा/ दरबजा
ठाम
धरि तक
घूरि लौटि
थोरबेक
बड्ड
तोँ/ तूँ
तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
तोँही/तोँहि
करबाइए करबाइये
एकेटा
करितथि करतथि
पहुँचि पहुँच
राखलन्हि रखलन्हि
लगलन्हि लागलन्हि
सुनि (उच्चारण सुइन)
अछि (उच्चारण अइछ)
एलथि गेलथि
बितओने बितेने
करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
करएलन्हि
आकि कि
पहुँचि पहुँच
जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
से से’
हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
फेल फैल
फइल(spacious) फैल
होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
फेका फेंका
देखाए देखा’
देखाय देखा’
सत्तरि सत्तर
साहेब साहब

१७. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS
VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT---


Basarh seal shows that in Tirabhukti, the Kumaumatya was entrusted with the district administration to the provincial governors called uparika.
The Panchobh copper-plate grant deed of Ramagupta appears to continue the dominance of Later Guptas over the Southern part of the province . Sangramagupta granted a village Vanipama in district Jambuvani to a Brahmana called Kumira Swami of Sandilya Gotra,.learned in Yajurveda and belonging to Kola chanula.
After the Guptas, Mithila formed a part of Harsha's Empire which included Lord of Five Indies have been interpreted as, Lord of Punjab, Kanyakubja, Mithila, Bengal and Orissa.

Harsha left no son to succeed him, Arjuna or Arunusva, in¬charge of Tirabhukti, claimed imperial status and forced neighbouring provinces to submit to him. Madhavagupta who became independent, must have resisted the pretensions of Arjuna. A chinese mission was going to Magadha and Arjuna attacked the mission. This assault brought about the invasion of his kingdom by the Tibetan army swooped down upon Tirhut, the kingdom of Arjuna and stormed his capital and also other towns of the kingdom. He was captured and it was quite possible that Tirabhukti was brought under Tibetan imperialism aided by the Nepalese army. King of Tibet,
established his sway over Mithila, along with Nepal. Tibetan rule in Tirhut lasted only for about half a century A. D. 647-8 to 703 A.D.
Arjuna attacked a Chinese mission killed most of the members of the mission and plundered their property. Want hiuen-tse fled to Nepal, secured 7,000 soldiers from Nepal and 1200 from Tibet and returning to Indian plains, disastrously defeated and imprisoned Arjuna and took him a captive to China.

Gopala : The palas of Bengal extended their influence over the whole of Eastern India¬. The Palas inscriptions of earlier times do not allude at all to any glorious and legendry descent as they were Buddhists. The foundation of the Pala dynasty in Bengal goes back to Gopala, put an end to the state of anarchy which prevailed in Bengal after the death of Sasanka.
Gopala is also credited with the foundation of the Nalanda Vihara , reduced Magadha also under his power.

Dharmapala (c, 783-818 A. D.) really raised the glory of Palas to Imperial heights, Mithila was an integral part of its central stru-cture being directly administered by the king himself. Dharmapala fought with the Pratiharas and made himself the real master of Kanauj and installed his protege chakrayuddha to the throne as a vasal ruler.
The Karnatas and the Latas are mentioned among royal officers in the Nalanda Inscription of Dharmapala.
Devapala (c. 818-850 A D.) continued his hold over Mithila, Mudgagiri (Munger) became an important administrative centre.
Badal pillar inscription of Narayanapala- the victories of the time of Devapala are credited to the hereditary ministerial family, Darbharai and his grandson Kedara Mishra who were Maithil. Devapala's reign is the high water mark of the Pala imperialism.

Bhagalpur Inscription definitely uses the word Tribhukti for Monghyr.

Vigrahapala I is the sams as Surapala mentioned in the Hadal Pillar inscription of Guravamisra,, because it is the only name mentioned between Devapala and Narayanpala, and again in the Bhagalpur grant.
Narayanpala (c. 863-916 A.D.) again Pala domination over Mithila. granted from Mudgagiri (Monghyr) a village in Tirabhukti to the Shrine of Siva.

The Bhagalpur copper Plate of Narayana¬pala - Guravamigra was holding a high office-that of a dutaka of a royal grant. After his accession Narayanapala became reconciled with the mini¬sterial family and pardoned Guravamisra for the part that he or his father might have played during the internal troubles in the family.
The Dighwa-Dubauli plate was issued by Mahendrapala -a village grant about 40 Kms. South east of Gopalaganj in the Saran District- , hold of Mahendrapala over North Bihar. His last known date is 907-08 A.D.
Mahipala's authority over Tirabhukti is proved by two identical ima¬ges inscriptions found in the village of Imadpur in the Muzaffarpur.
In 1019 A.D. Kalachuri Gangeyadeva was ruling over Tirhut, and therefore Mahipala I must reconquered it from Kalachuris .
Nanyadevaof Mithila who came to the throne in 10th century AD.

"Gaudadlivaja" -the correct reading being " Garudadhvaja", few possibility of identifying Gatigeyadeva of Tirabhukti with the Kalachuri King.Ganga or Gahga-deva, son of Nanyadeva (1097-1147 A. D.).
Mithila might have passed into the hands of some other ruler than the Palas.

Ramapala attempted a partial rejuvenation. Chedis of Tripuri, the Karnata's of Mithila, the Raivartas of North Bengal. the Rashtrakuta of Pithi (in Bihar), the Chand¬isis of Kanauj and the Senas of Eastern Bengal hammered at the Pala king¬dom, which ultimately disappeared by 12th century A. D.
Ramapala (c. 1084-1130) conquered Mithila from Raja king of Kaivartas.
Vaidyadeva's Kanauli copper-plate refer to the conquest of the land of Rampala's father by the expression "Janakabhu " and not that of Mithila.
Dharmapala founded the famous Vikramasila Vihara .
The His¬tory of the 84 Siddhas and that of the celebrated Maithili poems called Chariapadas clearly show how valuable the influence of the Pala rulers was in the history of Buddhism and its thought.
By storming the capital of the Paramara King Bhoja I , destroying the Kalachuri King Karma, the Chalukya king Somesvara I paved the way for the Karnatic domination in North Indian politics
like Gahadavalas of Kanauj (or Kashi), the Senas of Bengal and Nanyadeva of Mithila.
Vijayasena (c 1095-1158 A.D.) made an attempt to conquer Mithila also. Nanyadeva claimed to have broken the power of Ganda and Venga- Nanyadeva's son Gange¬deva, claimed to be the lord of Gauds , encounter of Vijayasena and Nanyadeva was indecisive and that Vijayasena's attempt to bring under his domination, the whole of the basic Pala Empire met with a failure in so far as Mithila was concerned
Vallalasena
Vallalasena (c. 1158-1179 A. D.)-Vallala Charita - dominations of Vallalasena comprised five province, viz., Vanga, Varendra, Radha, Bagdi and Mithila.
Lakshmanasenu (c. 1179-1205 A. D) was perhaps one of the greatest Kings of Bengal. His court was adorned by emiment poets- Umapatidhara Maithil ,Govardhanuclrarya was certainly a Maithil. Vidyapati records the story of an actor who died while impersonating Rama's viraha before his court , an-era in Mithila after him- one Lakhanackanda in the Ragatarangini of Lochana.
Chronicle of one Mukunda Sena is preserved in Nepal Durbar Library.
Karnata kings were in the modern province of Bihar from even the 6th Cen. A. D,brought with him Karnatic pandits to propagate their culture. Nanyadeva brought scholars rldharadasa, the author of the Sadukti¬karpamrita. A great .scholar and Vidyaguru of Vacha¬spati, Trilochana might have come to Mithi¬la along with the Kings of Karnata .


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