भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Wednesday, August 13, 2008
छोटका भैया (रक्षाबंधनपर विशेष)
"अपनेकेँ घरक लोक किछु कहलथि की ?"
हम हुनकर बातकेँ बीचेमे काटैत हुनका कहलहुँ-
"कुनू खास बात नञि छल भईया, घरमे ई छोट-मोट बात होइते रहैत अछि !"
एहिपर ओऽ भीजल आवाज़मे कहलथि-
"यदि छोट-मोट बात अछि, तँ हमरा उम्मीद छल जे अपने समझदार छी, सम्हारि लेब, मुदा अगर हमर जरुरत पड़ए तँ बिना चिन्ताक कहब जे हम आबि जाञि ? ई नञि जे अहाँ असगर छी। हम सर्वदा अपनेक संग छलहुँ।"
ई गप सुनैत हमर आँखि डबडबा उठल ! लागल जेना भाइक सांत्वना भरल स्पर्श हमर पीठ थपथपा रहल अछि! ओही भाइक, जिनकर स्थानपर हम सर्वदा बहिनक कामना करैत छलहुँ !
हम चारि भाइ-बहिनमे सभसँ छोट रही। माँ बतबैत छलीह, जखन हमर जन्म भेल छल तीनो भईया हमरा (बहिन) पाबिकेँ बहुत खुश भेलथि ! सत्य पुछू तँ हम तीनो भईयाक आँखिक तरेगण रही! मुदा समयक संग-संग बड़का वा मंझिला भइयासँ दूर छोटका भईयाक हम बहुत करीब आबि गेलहुँ !किएक ई तँ पता नञि, मुदा अपन बचपनक जतेक गप हमरा मोन अछि,ओहिमे बेसी छोटके भईया शामिल छथि ! कुमर काकाक कलममे ठीक्-ठीक दुफरियाकेँ छोटका भईया जखन खजूर,जोम बिछबाक लेल जाइत रहथि, तँ हमरो अपन कान्हपर बैसाऽ कए लऽ जाइत रहथि !कन्हापर बैसेबाक कारण ई रहनि, की हमर पएर नञि पाकए! ओहि समय हमरा ओतेक ज्ञान कतए, की सोचि सकितहुँ आखिर भइयोक पएर पाकैत होएतन्हि!ई सभ बचपनक बात भेल, आगाँ चलि कए कनेक पैघ भेलहुँ, तँ भईया फाटल मोजामे रद्दी-चिन्द्दी भरि कए, गेंद बना कए हमरा संग खेलाइत छलाह ! हुनकर अथाह प्रेम भेटलाक बादो हम सोची, भगवान् हुनकर स्थानपर यदि हमर बहिन होएतथि तँ हम हुनका संग कपड़ाक गुरियासँ खेलाइतहुँ। तीनो भईया हमरासँ बहुत प्रेम करैत छलथि, बेशी कऽ कए छोटका भईया हमरा सदिखन अपने संग राखैत रहथि! माँ-बाबूजी दुनु नोकरी करैत छलाह, एक तरहेँ हम हुनके (छोटका भईया) जिम्मेदारी रही। सत्य पुछू तँ घरक सभ काज करब हमरा छोटके भईया सिखेलथि! किशोरावस्था आबैते-आबैत हमरा अपन सहेली वा मौसी/काकीक बेटीक संग निक लागए लागल! ईएह स्थिति युवावस्था तक रहल। हम सदैव एक बहिनक कमी अनुभव करैत रहलहुँ, आर एक छोटका भईया रहथि जे सदिखन एहि बातसँ दूर-अनभिज्ञ हमर साथ दैत रहलाह! हम अपन पसंदसँ प्रेम-विवाह केलहुँ, हम अपन पसंद हुनके लग बतेलिनि। छोटके भईया सभ-परिजनकेँ विवाहक लेल मनेलखिन। विवाहक उपरांत ओऽ हमरा सँ कहैत छलाह-
"कखनो कुनू तरहक तकलीफ हएत तँ ई नञि सोचब की अपने अपन पसंदसँ विवाह केलहुँ तँ हमरा नझि कहि सकैत छी। .... हम सदा अपनेक संग छी।"
आर ओऽ ठीकेमे सर्वदा हमर साथ रहलथि। समय बीतल गेल, बादमे हम सासुर बसए लागलहुँ। सासुरमे देखलहुँ की हमर दुनू ननदि आर हुनकर भईयामे कखनो पटरी नञि खाइत छनि। अनायासहि हमरा अपन भईयाक मोन आबि गेल, हमर आँखि भरि उठल। आई जखन हमर आँखि खुजल तँ एक हम बताहि रही जे सर्वदा भईयाक प्रेमसँ अनभिज्ञ एक बहिनक लेल दुखी रहैत छलहुँ, आइ हम छोटका भईयाक स्नेहक महत्त्वकेँ बुझलहुँ! ओना तँ जीवनक सभ मोड़पर पतिदेव सदा हमर साथ दैत छथि, मुदा जरुरत परलापर छोटका भईया माँ-बाबूजी, भाई-बहिन, सभक जिम्मेदारी सभ-तरहेँ निभबैत छथि! आइ रक्षा बंधनक उपलक्ष्यमे हुनकर चर्चा करैत हमरा बड़ गर्वक अनुभूति भए रहल अछि !
एहि पावन अवसरपर हुनका जेहेन हर भैयाक प्यारी-प्यारी बहिनियाकेँ सलाम .....
6 comments:
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
ममताजी,
ReplyDeleteहमर एकटा मित्र आएल रहथि, कैलिफोर्निआ विश्वविद्यालयमे पढैत छथि, हम-सभ तिरहुता लिपिक-मैथिली यूनीकोड फोंट लेल संगे काज कए रहल छी। ओऽ कहलन्हि जे यू.एस.केर लाइब्रेरीमे मैथिली किताबक विभागमे मात्र गद्य-पद्य,खिस्सा आऽ उपन्यास भरल अछि। सामाजिक-आर्थिक-मनोवज्ञानिक निबन्ध-पोथी मैथिलीमे नहि लिखल जाइत अछि की? आऽ ई बात हमहुँ अनुभव करैत रही?
हम पहिनहियो लिखने रही जे अहाँक लेखनी जे एहि मंचपर अछि ओऽ एहि समस्त अभावक पूर्ति कए देने अछि।
आजुक प्रस्तुति जे सामयिक सेहो अछि एहि दिशामे एकटा आर डेग अछि। एहिसँ नीक एहि विषयपर निबन्ध लिखनाइ एकटा स्पर्धाक समानहि होएत।
গজেন্দ্র ঠাকুব
baDDa nik blog achhi ee
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी लेख।
ReplyDeletebahin ke mon pari gel
ReplyDeleteलेखकदलकें प्रोत्साहित करे हेतु अपने लोकनिक बहुत बहुत धन्यवाद ...
ReplyDeleteee blog samanya aa gambhir dunu tarahak pathakak lel achhi, maithilik bahut paigh seva ahan lokani kay rahal chhi, takar jatek charchaa hoy se kam achhi.
ReplyDeletedr palan jha