भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, August 01, 2008

'विदेह' १५ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १४ )९. पाबनि संस्कार तीर्थ/पंचदेवोपासक भूमि मिथिला‘मौन’रक्षाबन्धननूतन झा;

९. पाबनि संस्कार तीर्थ
डॉ प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’ (1938- )- ग्राम+पोस्ट- हसनपुर, जिला-समस्तीपुर। नेपाल आऽ भारतमे प्राध्यापन। मैथिलीमे १.नेपालक मैथिली साहित्यक इतिहास(विराटनगर,१९७२ई.), २.ब्रह्मग्राम(रिपोर्ताज दरभंगा १९७२ ई.), ३.’मैथिली’ त्रैमासिकक सम्पादन (विराटनगर,नेपाल १९७०-७३ई.), ४.मैथिलीक नेनागीत (पटना, १९८८ ई.), ५.नेपालक आधुनिक मैथिली साहित्य (पटना, १९९८ ई.), ६. प्रेमचन्द चयनित कथा, भाग- १ आऽ २ (अनुवाद), ७. वाल्मीकिक देशमे (महनार, २००५ ई.)। मौन जीकेँ साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार, २००४ ई., मिथिला विभूति सम्मान, दरभंगा, रेणु सम्मान, विराटनगर, नेपाल, मैथिली इतिहास सम्मान, वीरगंज, नेपाल, लोक-संस्कृति सम्मान, जनकपुरधाम,नेपाल, सलहेस शिखर सम्मान, सिरहा नेपाल, पूर्वोत्तर मैथिल सम्मान, गौहाटी, सरहपाद शिखर सम्मान, रानी, बेगूसराय आऽ चेतना समिति, पटनाक सम्मान भेटल छन्हि। वर्तमानमे मौनजी अपन गाममे साहित्य शोध आऽ रचनामे लीन छथि।
पंचदेवोपासक भूमि मिथिला
भारतीय देवभावनाक उद्भव एवं विकासक अनुक्रम शास्त्र-पुराणमे अभिव्यंजित अछि, जकर प्रत्यक्ष दर्शन मिथिलांचलमे प्राप्य देवी-देवताक ऐतिहासिक मूर्ति सभमे होइछ। एकटा ब्रह्म (आदिब्रह्म, परब्रह्म)क परिकल्पनासँ सृष्टि संभव नहि। अतः मातृब्रह्मक अवधारणाक जन्म भेल, मुदा ओऽ संयुक्त अर्थात् अर्धनारीश्वरक रूपमे पैकल्पित भेलाह।, जे कुर्सी नदियामी (बेनीपुर, दरभंगा/ राजनगर, मधुबनी) गामक अघोषित प्राचीन मूर्ति संग्रहालयमे संरक्षित अछि। एहि षटभुजी प्रस्तर मूर्तिक वाम भाग नारीक एवं दहिन भाग पुरुषक अछि। एहि षटभुजी प्रस्तर मूर्तिक वाम भाग नारीक एवं दहिन भाग पुरुषक अछि। हिनक हाथ सभमे त्रिदेव (ब्रह्मा-विष्णु-महेश)क आयुध व उपकरण सभ शोभित अछि- अक्षमाला, त्रिशल ओ वरमुदा एवं पोथी, गदा ओ भयमुद्रा। मुदा सृष्टिक लेल पार्थक्यक आवश्यकता अनुभूत कएल गेल। फलतः देवस्वरूप ब्रह्मा-विष्णु-महेश (त्रिदेव)क परिकल्पना मूर्त कयल गेल। भच्छी (बहेड़ी, दरभंगा)क त्रिमूर्ति एकर उत्कृष्ट उदाहरण अछि। आलोच्य त्रिमूर्तिक मुख्य रूप ब्रह्माक थिक। रूपविन्यासमे दाढ़ी, हाथमे अक्षमाला ओ कमण्डलु, यज्ञोपवीत, मुकुट ओ वाहनक रूपमे हंस उत्कीर्ण अछि। मूर्ति चतुर्भुजी अछि। भच्छीक शिवमन्दिरमे पूजित आलोच्य मूर्ति यद्यपि मूलरूपमे ब्रह्माक अलावा शिव ओ विष्णुक प्रतीकसँ अलंकृत अछि। मिथिलांचलमे ब्रह्माक पूजा प्रायः वर्जित मानल गेल अछि, तथापि ब्रह्मा भच्छी (दरभंगा) ओ विथान (समस्तीपुर)मे अवशिष्ट छथि। भारतीय प्रतिमा विज्ञानमे कल्याणसुन्दर (शिवपार्वती परिणय)क मूर्तिमे ब्रह्मा पुरोहितक रूपमे उत्कीर्ण छथि।

संयुक्त मूर्तिक एहि परम्परामे हरिहर (विष्णु-शिव)क उल्लेख आवश्यक अछि। मूर्तिक दहिन भागमे शिव ओ वाम भागमे विष्णु उत्कीर्ण भेल छथि। शिवक अर्द्धाङ्गक सूचक अछि जटा, त्रिशूल ओ नाग एवं अर्द्धाङ्ग विष्णु बोधक किरीट, चक्र ओ शंख अछि। हरिहरक सर्वांग सुन्दर ओ अक्षत पालकालीन प्रस्तर प्रतिमा वाल्मीकिनगर (नेपाल दिस) एवं हरिहरक्षेत्र (सारण)मे संरक्षित अछि। शैव ओ वैष्णव सम्प्रदाय मध्य समन्वयक एकटा उपक्रम बनि गेल हरिहरक परिकल्पना। हरि ओ हर वस्तुतः एके छथि- “भल हर, भल हरि, भल तुअ कला। खनहि पीतवसन, खनहि बघछला”। हरिहर क्षेत्र संगम तीर्थ बनल अछि। एहि ठाम प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमाक अवसरपर विशाल मेला लगैत अछि। पौराणिक कथाक अनुसार एहिठाम गज-ग्राहक संघर्षक अंत विष्णुक हाथे भेल छल। एवं प्रकारे त्रिमूर्तिक परिकल्पनामे प्रतीकात्मक तत्व निहित अछि- सृजन, पालन ओ संहारक शक्ति। ब्रह्मचार्य, गार्हस्थ्य ओ संन्यासक संग-संग सात्विक राजसी ओ तामसी वृत्तिक समन्वय। तहिना हरिहरक परिकल्पनाक पृष्ठभूमिमे अन्तर्निहित अछि साम्प्रदायिक सद्भाव, जे ओहि युगक लेल अनिवार्य बनि गेल छल। साम्प्रदायिक विखण्डनसँ सामाजिक एकता खण्डित होइत अछि।

आलोच्य त्रिदेवमे देवाधिदेव महादेव शिवक स्थान सर्वोच्च अछि। शिवक पुरातात्विक सर्वप्राचीन अवशेषक रूपमे मोहनजोदड़ोक पशुपति शिव अछि, जे समस्त जीव-जन्तुक अधिपति बनल छथि। शिवकेँ गार्हस्थ जीवनक अधिष्ठाता मानल गेल अछि, फलतः ओ समस्त गृहस्थ लोकनिक पूज्य बनल छथि। हिनक लीला विस्तार पुराण-साहित्यक अतिरिक्त भारतीय मूर्तिकलामे सेहो देखना जाइछ। शैव परिवारमे शिवक अलावा पार्वती, गणेश ओ कार्तिकेय सेहो शास्त्र ओ लोकपूजित बनल छथि। त्रिदेवमे मात्र शिवक गार्हस्थ्य जीवनक एकटा विलक्षण अवधारणा बनल अछि। शिव औघरदानी छथि, कल्याणकारी देवता छथि एवं कालानुसार प्रलयंकर शिव अत्यंत प्राचीन एवं मिथिलांचलक सर्वप्रिय देवता छथि। ओना तँ शिवक परिकल्पना वैदिक थिक तथापि शिव-शक्तिक गौरवगान शैव पुराण सभमे विशेष रूपेँ भेल अछि। तदनुसार शिव स्वरूपक परिकल्पना प्राचीन मुदा अहिमे प्रत्यक्ष रूपे अंकित अछि। कुषाणराज वसुदेवक मुद्रापर शिव ओ हुनक वाहन वृषभ उत्कीर्ण अछि। हिनक सौम्य ओ रौद्ररूप दुनू प्रत्यंकित अछि। माथपर चन्द्रमा, हाथमे त्रिशूल, पिनाक व डमरू, त्रिनेत्र, बघछला, रुद्राक्ष, नागभूषण, वृषभ वाहन आदि विशिष्ट पहिचान बनल अछि। हुनक सौम्य रूप कल्याणसुन्दर, ललितरूप उमामाहेश्वर ओ रौद्ररूप महाकालमे अभिव्यंजित अछि। शिव नृत्य देवता नरेशक रूपमे सेहो विन्यस्त छथि। नटराज शिवक एकटा विलक्षण पालकालीन प्रस्तर मूर्ति तारालाही (दरभंगा)मे पूजित अछि। एहि मूर्तिमे नटराज शिव दैत्यपुत्र अपस्मारक कान्हपर ठाढ़ भऽ नृत्यरत छथि। चतुर्भुजी शिवक उपरका दुनू हाथमे गजासुरक वध निर्दिष्ट अछि। गजक पीठपर गणेश आसीन छथि। शेष चारिटा हाथमे त्रिशूल, डमरू ओ नृत्यमुद्रा सूचित अछि। एहि तरहक एकटा पालयुगीन प्रस्तर मूर्ति पपौर(सिवान)मे सेहो हम देखने छलहुँ। मूर्ति साढ़े चारि फीटक अछि।
मध्यकालीन परिवेशमे शैव प्रतिमामे सर्वाधिक लोकप्रियता उमा-माहेश्वरकेँ प्राप्त भेलैक। एहि तरहक मूर्ति सभ मिथिलांचलक भीठ-भगवानपुर, रक्सौल राजेश्वर, बाथे, महादेवमठ, तिरहुता, सौराठ, भोजपरौल, वनवारी, गाण्डीवेश्वर, कोर्थ, सिमरिया-भिण्डी, डोकहर, मंगरौनी ओ वसुदेवामे प्राप्त अछि। एहि मूर्तिमे उमा(पार्वती) शिवक वाम जांघपर बैसल छथि। शिव वाम हाथसँ उमाक आलिंगन कऽ रहल छथि। शिवक दहिन हाथमे त्रिशूल ओ वामहाथसँ देवीक वाम अंगक स्पर्श कऽ रहल छथि। पाठपीठमे शिव-पार्वतीक वाहन क्रमशः वृषभ ओ सिंह विश्रामक स्थितिमे उत्कीर्ण अछि। संभवतः एहि मूर्तिक परिकल्पना शंकराचार्यक सन्यासक विपरीत गृहस्थाश्रम दिस उत्प्रेरित करैत अछि।
पार्वतीक अभिशिल्पन स्वतँत्र रूपेँ सेहो भेल अछि। फुलहर (गिरिजा स्थान, मधुबनी), मिरजापुर (दरभंगा) ओ भरवारी (समस्तीपुर) क मन्दिर सभमे स्थापित ओ पूजित गिरिजा वस्तुतः पार्वतीक प्रतिरोप छथि, जाहिमे फुलहर ओ मिरजापुरक गिरीजाक मध्यकालीन प्रस्तर प्रतिमा सभक पार्श्वमे गणेश ओ कार्तिकेय सेहो प्रतिष्ठित छथि। दर्पण गिरिजाक विशिष्ट पहचान बनल अछि। किछु उमा-माहेश्वरक प्राचीन प्रतिमामे सेहो पार्वतीक हाथमे दर्पण सुशोभित छनि। दर्पण श्रृंगार सूचक प्रतीक अछि। सभटा मूर्ति स्थानक मुद्रामे बनल अछि एवं नख-शिख विभिन्न आभूषणसभसँ अलंकृत अछि। मूर्तिमे गणेश ओ कार्तिकेयक उपस्थिति हुनक वात्सल्य बोधक अछि। दरभंगाक मिरजापुर मोहल्लामे अवस्थित एवं म्लेच्छमर्दनीक रूपे लोकख्यात ई , मूर्ति सर्वांग सुन्दर ओ कलात्मक अछि। फुलहरक गिरीजा रूपेँ पूजित पार्वतीक विशेष पूजा जानकी करैत छलीह। ’रामचरित मानस’क फुलवारी प्रसंगक अनुरूपेँ गिरीजा आइयो कुमारी कन्या लोकनिक अभीष्ट बनल छथि।

शिव-पार्वतीक प्रतीकपूजन जलढरीमे अवस्थित शिवलिंगक रूपमे सेहो लोकप्रचलित अछि। मुदा शिवलिंगमे पार्वतीमुखक अभिशिल्पन एकमुखी शिवलिंग अथवा गौरीशंकरक रूपेँ अभिज्ञात अछि। एकमुखी शिवलिंगक सर्वप्राचीन प्रस्तर मूर्ति (कुषाणकालीन) चण्डीस्थान (अरेराज, प. चम्पारण) मे हम देखने छलहुँ। एकमुखी शिवलिंग जमथरि (मधुबनी), हाजीपुर (वैशाली), आदिक अतिरिक्त चतुर्मुखी शिवलिंगक गुप्तकालीन प्रतिमा कम्मन छपरा ( अभिलेखयुक्त, वैशाली)क अलावा बनियाँ (वैशाली)क पालयुगीन चतुर्मुखी शिवलिंगक परम्परामे अरेराज (प.चम्पारण)क शिवमन्दिरमे चतुर्मुखी पशुपति शिवलिंग संपूजित अछि। एम्हर गढपुरा (बेगुसराय)क मंदिरमे एकटा प्राचीन चौमुखी महादेवक लोकपूजन परम्परीत अछि।

शिवलिंगक परिकल्पना ज्योतिलिंग (द्वादश ज्योतिर्लिंग), एकादशरुद्र (मंगरौनी), सहस्रमुखलिंग (कटहरिया, वैशाली/ वारी, समस्तीपुर)क अतिरिक्त विशाल शिवलिंग (तिलकेश्वर, दरभंगा/ चेचर, वैशाली), घूर्णित, शिवलिंग (जमथरि, मधुबनी) आदि सूचित अछि। कुशध्वज जनक द्वारा स्थापित कुशेश्वर, सीरध्वज जनक द्वारा प्रतिष्ठापित तिलकेश्वर, कपिल द्वारा स्थापित कपिलेश्वर, विदेश्वरक अंकुरित शिवलिंग, अरेराजक सोमेश्वरनाथ, कलनाक कल्याणेश्वर शिव, ऋषिशृंग द्वारा स्थापित सिंहेश्वरनाथ, नेपाल तराइक जलेश्वर आदि प्रसिद्ध शिवतीर्थ अछि, जाहिठाम प्रायः प्रत्येक रविवार शिवरात्रि आदिक अलावा सावनमे भरि मास शिवक जलाभिषेक होइछ। परिसरमे शिवभक्तक बोलबमक जयघोष, कांवरिया सभक तीर्थवास, मेलादि लगैत अछि। शिवरात्रिक मेला विशेष महत्वक होइछ। सद्योजात (अलौलीगढ़, बेगुसराय/ जनकपुर, नेपाल) मे शिव शिशु रूपमे ओ पार्वती माता रूपमे उत्कीर्ण अछि, तांत्रिक मूर्ति। गणेश यद्यपि शिवपुत्र छथि, मुदा पंचदेवोपासनामे ओ प्रथम छथि। कोनो शुभ कार्यक आरम्भमे गणेश पूजन कयल जाइछ। कियेक तँ ओ विघ्ननाशक ओ सिद्धि दाता देव मानल जाइत छथि। मुख्य लक्षण मानल जाइछ-ठिगना कद, लम्बोदर, सूढ़, हाथमे अंकुश (परशु), कलम एवं लड्डू। हाथ सभक संख्या चारिसँ बारह धरि मानल जाइछ। ओ स्थानक ललितासनमे बैसल अथवा नृत्य मुद्रामे निर्मित पाओल जाइछ। मन्दिरक प्रवेश द्वारपर गणेशक प्रतिष्ठा देल जाइछ। गणेशक स्वतंत्र प्रतिमा कोर्थू, हावीडीह, भीठ-भगवानपुर, सौराठ, देकुली, फुलहर, करियन, भोज परौल, बहेड़ा, भच्छी, विष्णु बरुआर, लहेरियासराय, रतनपुर आदि स्थान सभमे पूजल जाइत छथि। माता शिशुक रूपमे पार्वतीक गोदमे शिशु गणेशक अलावा गणेशक मूर्ति लक्ष्मी (लक्ष्मी गणेश, दिपावली)क संग ओ महिषासुरमर्दिनी दुर्गा (पार्वती रूपा)क पर्श्व देवताक रूपमे संरचनाक लोकपरम्परा अछि। विजयादश्मीक अवसरपर परम्परासँ बनैत महिषासुरमर्दिनी दुर्गाक पार्श्वदेवता गणेश ओ कार्तिकेय मानल जाइत छथि। कार्तिकेयक स्वतंत्र प्रस्तर प्रतिमा सभ (पालयुगीन) बसाढ़ (वैशाली) एवं वसुआरा (मधुबनी)क मन्दिरसभमे प्रतिष्ठित एवं पूजित अछि। कार्तिकेय युद्धक देवता मानल जाइत छथि। हिनका स्कन्द ओ महासेनक रूपमे सेहो जानल जाइत छनि। कार्तिकेयक मूर्तिमे मोरक वाहन एवं हाथमे बरछी (शूल)क विधान अभिहित अछि। दुनू प्रस्तर प्रतिमा पाल कलाक कलात्मक प्रतिमान अछि। पुण्ड्रवर्धनमे कार्तिकेयक मन्दिरक उल्लेख सेहो प्राप्त होइछ। पुण्ड्रवर्धनक भौगोलिक पहिचान पूर्णियाँक(जनपदक)सँ कयल गेल अछि।

शिव परिवारक एकटा विशाल संगमर्मर मूर्ति लालगंज (वैशाली)क शिवमन्दिरमे स्थापित एवं पूजित अछि। वृषभक पीठपर शिव-पार्वती आसीन छथि। गणेश ओ कार्तिकेय अपन माता-पिता (शिव-पार्वती)क गोदीमे बैसल छथि। शिल्प ओ शैलीमे आलोच्य मूर्ति विलक्षण अछि। शिव परिवारक एकटा आर देवता छथि भैरव, जनिक आकृति भयानक, बढ़ल पेट, गरामे मुण्डमाल, नागाभूषण, हाथमे त्रिशूल आदि शोभित अछि। भैरवक विशाल प्रस्तर मूर्ति वठिया (भैरव बलिया, सकरी, दरभंगा)मे पूजित अछि। भैरव ज्वालमुकुट पहिरने छथि। एहि भैरव मूर्तिक दोसर प्रति भमरलपुर संग्रहालयसँ प्राप्त भेल अछि। भैरवकेँ शिवक रौद्ररूप कहल गेल अछि। नेपाल उपत्यका (काठमाण्डू)मे भैरवक मूर्तिसभक अनेक प्रकार देखने छलहुँ- आकाश-भैरव, पाताल भैरव, काल भैरव, उन्मत्त भैरव आदि। कुमारी कन्या लोकनिक हेतु उन्मत्त भैरवक पूजन वर्जित अछि। शिवक काशीमे वर्चस्व छनि (विश्वनाथ) तँ भैरवक वर्चस्व तिरहुतमे मानल गेल अछि। काशीकेँ शिव अपने रखलनि, भैरव तिरहुत देल। मिथिलांचलमे शिव भक्तिक रूपमे नचारी गान ओ नर्त्तनक विधान अछि। मैथिलीमे बहुतरास नचारी रचल गेल। आइने अकबरीमे नचारी गानक उल्लेख प्राप्त होइछ। नचारीक एकटा अर्थ भेल- लचारी, अर्थात् नचारी गीतसभमे दुख-दैन्यक भाव अभिव्यंजित अछि। दोसर अर्थ भेल नृत्यक आचारसँ संवलित गीत अनुष्ठान। नचारी गयनिहार डमरूक संगे नाचि-नाचि कए गबैत छथि। गीत ओ नृत्य एकटा आनुष्ठानिक कृत्य थिक। भक्तिपरक गीतसभमे नचारीक स्थान विशिष्ट अछि। “संगीत भाष्कर”क अनुसार “गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगीतमुच्यते” अर्थात् गीत, नृत्य ओ वाद्य मिलकए संगीत सृजित होइछ। जँ एहिमे नाट्यक समावेश कए देल जाय तँ एहि प्रकारक सांगीतिक रचना कीर्तनियाँ बनि जाइछ। “हरगौरी विवाह” (जगज्योतिर्मल्ल) शिव-भक्ति विषयक एकटा सांगतिक रचना थिक जाहिमे नचारी गीत सेहो प्रतिध्वनित अछि।

-डॉ प्रफुल्ल कुमार सिंह ’मौन’
नूतन झा; गाम : बेल्हवार, मधुबनी, बिहार; जन्म तिथि : ५ दिसम्बर १९७६; शिक्षा - बी एस सी, कल्याण कॉलेज, भिलाई; एम एस सी, कॉर्पोरेटिव कॉलेज, जमशेदपुर; फैशन डिजाइनिंग, एन.आइ.एफ.डी., जमशेदपुर।“मैथिली भाषा आ' मैथिल संस्कृतिक प्रति आस्था आ' आदर हम्मर मोनमे बच्चेसॅं बसल अछि। इंटरनेट पर तिरहुताक्षर लिपिक उपयोग देखि हम मैथिल संस्कृतिक उज्ज्वल भविष्यक हेतु अति आशान्वित छी।”

रक्षाबन्धन
रक्षाबन्धन के पाबनि, जे भाई बहिनक पाबनि के रूपमे मानल गेल अछि, मिथिलामे मूलतथ अहि रूपमे नहि अछि लेकिन, देखा-देखीमे ई पाबनि मिथिलामे भाय- बहिनक पाबनिक रूपमे बहुप्रचलित भय गेल अछि।साओन पूर्णिमा दिन राखी भगवान-भगवती के अर्पित कऽ लोक में बान्हके प्रथा अपन सबहक राखी कहाइत अछि।स्त्री पुरुष के राखी बान्हैत छैथ आ' बदले में हुनका ओहि पुरुष सॅं संकटमे रक्षाक वचन भेटैत छनि। एक मैथिल पुस्तकक अनुसारे राखी बान्ह बेरमे निम्न मंत्र पढ़ल जाइत अछि-
''येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्र महाबल:।
तेनत्वां प्रातिबध्नामि रक्षे माचल माचल:॥
राखीक प्रथाके उत्पत्ति स सम्बन्धित अनेक कथा प्रचलित अछि।एक कथानुसार इन्द्रदेव वृत्र इन्द्र संग युद्ध केला जाहिसॅं हुनका किछु हानि भेलनि। तखन हुनकर पत्नी हुनका राखी बन्हलखिन जकर बाद हुनका विजय भेटलैन।दोसर कथा प्रसिद्ध अछि द्रौपदी आ' कृष्णक।शिशुपालक बद्ध केलाक बाद कृष्ण भगवानक हाथ सॅं रक्त बहय लगलैन त द्रौपदी के नहि रहल गेलैन ओ अपन ऑंचर सॅं कपड़ा फाड़िक हुनकर हाथमे बॉंधि देलखिन। भगवान हुन्कासॅं ई उधार चुकाबऽ के वचन देलखिन।बादमे जखन छलसॅं कौरव पॉंडवक राजपाट छीन द्रौपदीके अपमानित करऽ चाहल त कृष्ण भगवानक कृपा सॅं हुनकर सारी अनन्त भऽ गेल। तहिना जखन राक्षस राज बलि के भगवती लक्ष्मी राखी बान्हलाक बाद भगवान विष्णु के वापस मंगलखिन तऽ बलि के हुनकर आग्रह मानऽ पड़लैन।
अहि वर्ष राखी अर्थात्‌ साओन पूर्णिमा १६ अगस्त, शनिदिन कऽ अछि।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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