भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Friday, August 01, 2008
'विदेह' १५ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १४ )श्री उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ नो एंट्री : मा प्रविश
श्री उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ जन्म-१९५१ ई. कलकत्तामे। १९६६ मे १५ वर्षक उम्रमे पहिल काव्य संग्रह ‘कवयो वदन्ति’। १९७१ ‘अमृतस्य पुत्राः’ (कविता संकलन) आऽ ‘नायकक नाम जीवन’ (नाटक)| १९७४ मे ‘एक छल राजा’/ ’नाटकक लेल’ (नाटक)। १९७६-७७ ‘प्रत्यावर्त्तन’/ ’रामलीला’(नाटक)। १९७८मे जनक आऽ अन्य एकांकी। १९८१ ‘अनुत्तरण’(कविता-संकलन)। १९८८ ‘प्रियंवदा’ (नाटिका)। १९९७-‘रवीन्द्रनाथक बाल-साहित्य’(अनुवाद)। १९९८ ‘अनुकृति’- आधुनिक मैथिली कविताक बंगलामे अनुवाद, संगहि बंगलामे दूटा कविता संकलन। १९९९ ‘अश्रु ओ परिहास’। २००२ ‘खाम खेयाली’। २००६मे ‘मध्यमपुरुष एकवचन’(कविता संग्रह। भाषा-विज्ञानक क्षेत्रमे दसटा पोथी आऽ दू सयसँ बेशी शोध-पत्र प्रकाशित। १४ टा पी.एच.डी. आऽ २९ टा एम.फिल. शोध-कर्मक दिशा निर्देश। बड़ौदा, सूरत, दिल्ली आऽ हैदराबाद वि.वि.मे अध्यापन। संप्रति निदेशक, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर।
नो एंट्री : मा प्रविश
(चारि-अंकीय मैथिली नाटक)
नाटककार उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ निदेशक, केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर
(मैथिली साहित्यक सुप्रसिद्ध प्रयोगधर्मी नाटककार श्री नचिकेताजीक टटका नाटक, जे विगत २५ वर्षक मौन भंगक पश्चात् पाठकक सम्मुख प्रस्तुत भ’ रहल अछि।)
चारिम कल्लोलक पहिल खेप जारी....विदेहक एहि चौदहम अंक १५ जुलाई २००८ सँ।
नो एंट्री : मा प्रविश
चारिम कल्लोल पहिल खेप
चतुर्थ कल्लोल
[जेना-जेना मंच पर प्रकाश उजागर होइत अछि त’ देखल जायत जे यमराज चित्रगुप्तक रजिष्टर केर चेकिंग क’ रहल छथि। आ बाँकी सब गोटे सशंक चित्र लए ठाढ़ छथि। किछुये देर मे यमराजक सबटा ‘चेकिंग’ भ’ जाइत छनि। ओ रजिष्टर पर सँ मुड़ी उठौने अपन चश्मा केँ खोलैत नंदी केँ किछु इशारा करैत छथि।]
नंदी : (सीना तानि कए मलेट्रीक कप्तान जकाँ उच्च स्वरमे) सब क्यो सुनै....
भृंगी : (आर जोर सँ) सुनू....सुनू...सनू- उ-उ-उ !
नंदी : (आदेश करैत छथि) “आगे देखेगा....! आगे देख !”
(कहैत देरी सब क्यो अगुआ कए सचेत भेने सामने देखै लागैत छथि ; मात्र यमराज आ चित्रगुप्त विश्रान्तिक मुद्रा मे छथि।)
भृंगी : (जे एक-दू गोटे भूल क’ रहल छथि हुनका सम्हारैत छथि---) ‘हे यू ! स्टैंड इरेक्ट... स्टैंड इन आ रो !’ (जे कनेको टेढ़-घोंच जकाँ ठाढ़ो छलाह, से सोझ भ’ जाइत छथि, सचेत सेहो आ लगैछ जेना एकटा दर्शक दिसि मुँह कैने ठाढ़ पंक्ति बना नेने होथि।)
नंदी : (पुनः सेनाकेँ आदेश देबाक स्वर मे) सा-व-धा-न! (सब क्यो ‘सावधान’ अर्थात् ‘अटेनशन’ केर भंगिमा मे ठाढ़ भ’ जाइत छथि।) वि-श्रा-म! (सब क्यो ‘विश्राम’ क अवस्थामे आबि जाइत छथि।)
भृंगी : (दहिना दिसि ‘मार्च’ क’ कए चलबाक आदेश दैत) दाहिने मुड़ेगा--दाहिने मोड़ ! (सभ क्यो तत्क्षण दहिना दिसि घुरि जाइत छथि।)
नंदी : (आदेश करैत) आगे बढ़ेगा ! आ-गे-ए-ए बढ ! (सब क्यो बढ़ि जाइत छथि।) एक-दो-एक-दो-एक-दो-एक ! एक ! एक !
[सब गोटे मार्च करैत मंचक दहिना दिसि होइत यमराज-चित्रगुप्त केँ पार करैत संपूर्ण मंचक आगाँ सँ पाछाँ होइत घुरि बाम दिसि होइत पुनः जे जतय छल तत्तहि आबि जाइत छथि। तखनहि भृंगीक स्वर सुनल जाइछ ‘हॉल्ट’ त’ सब थम्हि जाइत छथि.... नहि त’ नंदी एक - दो चलिये रहल छल।]
चित्रगुप्त : (सभक ‘मार्च’ समाप्त भ’ गेलाक बाद) उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति सँ हम कहै चाहैत छियनि जे एत’ उपस्थित सब क्यो एकटा मूल धारणाक शिकार भेल छथि—सभक मोन मे एकटा भ्रम छनि जे पृथ्वी पर सँ एतय एक बेरि आबि गेलाक मतलबे इयैह जे आब ओ स्वर्गक द्वार मे आबि गेल छथि। आब मात्र प्रतीक्षा करै पड़तनि... धीरज ध’ लेताह आ तकर बादे सभकेँ भेटतनि ओ पुरस्कार जकरा लेल कतेको श्रम ,कतेको कष्ट—सबटा स्वीकार्य भ’ जाइछ।
नेताजी : (आश्चर्य होइत) तखन की ई सबटा भ्रम मात्र छल, एकटा भूल धारणा छल---जे कहियो सत्य भ’ नहि सकैत अछि ?
चित्रगुप्त : ठीक बुझलहुँ आब---ई सबटा भ्रम छल।
नंदी : सपना नहि...
भृंगी : मात्र बुझबाक दोष छल...
वामपंथी : तखन ई दरबज्जा, दरबज्जा नहि छल....किछु आन वस्तु छल....?
चित्रगुप्त : ई दरबज्जा कोनो माया- द्वार नहि थिक....आई सँ कतेको युग पहिने ई खुजतो छल, बंदो होइत छल...!
नेताजी : मुदा आब?
अनुचर 1 : आब ई नञि खुजैत अछि की ?
अनचर 2 : जँ हम सब सामने जा कए तारस्वर मे पुकारि- पुकारि कए कही—‘खुलि जो सिमसिम्’ तैयहु नहि किछु हैत!
नंदी : ई कोनो ‘अलीबाबा चालीस चोर’ क खिस्सा थिक थोड़े…
भृंगी : आ ई कोनो धन-रत्नक गुफा थिक थोड़े !
वामपंथी : त’ ई दरबज्जाक पाछाँ छइ कोन चीज ?
नेता : की छइ ओहि पार ?
अनुचर 1 : मंदाकिनी ?
अनुचर 2 : वैतरिणी ?
अभिनेता : आ कि बड़का टा किला जकर सबटा कोठरी सँ आबि रहल हो दबल स्वरेँ ककरहु क्रन्दनक आहटि...नोर बहाबैत आत्मा सब...!
चोर : आ कि एकटा नदी-किनारक विशाल शमशान - घाट,जतय जरि रहल हो हजारक हजार चिता...हक्कन कानैत आत्मीय जन...?
बाजारी : नहि त’ भ’ सकैछ एकटा बड़का बजारे छइ जतय दिन-राति जबरदस्त खरीद-बिक्री चलि रहल हो।
भिख-मंगनी : इहो त’ भ’ सकैछ जे घुरिते भेटत एकटा बड़का टा सड़क बाट काटैत एकटा आन राजपथक आ दुनूक मोड़ पर हाथ आ झोरा पसारैत ठाढ़ अछि लाखो लोग- भुखमरी, बाढ़ि , दंगा फसाद सँ उजड़ल उपटल लोग....
रद्दीवला : नञि त’ एकटा ब-ड़-की टा केर ‘डम्पिंग ग्राउंड’ जतय सबटा वस्तु व्यवहार क’ क’ कए लोग सब फेकै जाय होइक—रद्दी सँ ल’ कए जूठ-काँट, पुरनका टूटल भाँगल चीज सँ ल’ कए ताजा बिना वारिसक लहास...
प्रेमिका : कि आयातित अवांछित सद्यः जनमल कोनो शिशु...
प्रेमी : कन्या शिशु, हजारोक हजार, जकरा सबकेँ भ्रुणे केँ कोखिसँ उपारि कए फेंकल गेल हो...
वामपंथी : अथवा हजारो हजार बंद होइत कारखानाक बजैत सीटी आ लाखो परिवारक जरैत भूखल-थाकल चूल्हि-चपाटी....
नेताजी : ई त’ अहीं जानै छी जे दरबज्जाक ओहि पार की छइ... हम सब त’ मात्र अन्दाजे क’ सकै छी जे भरिसक ओम्हर हजारोक हजार अनकहल दुःखक कथा उमड़ि-घुमड़ि रहल छइ अथवा छइ एकटा विशाल आनन्दक लहर जे अपनाकेँ रोकि नेने होइक ई देखबाक लेल जे दरबज्जा देने के आओत अगिला बेरि...
चित्रगुप्त : ई सबटा एक साथ छैक ओहि पार, ठीक जेना पृथ्वी पर रचल जाय छइ स्वर्ग सँ ल’ कए नर्क - सबटा ठाम ! जे क्यो नदीक एहि पार छइ तकरा लागै छइ ने जानि सबटा खुशी भरिसक छइ ओहि पार !
नंदी : भरिसक नीक जकाँ देखने नहि हैब ओहि दरबज्जा आ देबार दिसि !
भृंगी : एखनहु देखब त’ ऊपर एकटा कोना मे लटकि रहल अछि बोर्ड—“नो एन्ट्री!”
नेताजी : (आश्चर्य होइत) आँय!
(सब क्यो घुरि कय दरबज्जा दिस दैखैत छथि)
सब क्यो : “नो एंट्री ?”
(प्रकाश अथवा स्पॉट-लाइट ओहि बोर्ड पर पड़ैत अछि)
नेताजी : ई त’ नञि छल पता ककरहु.. नहि त’...
चित्रगुप्त : नहि त?
नेताजी : (विमर्ष होइत) नहि त’....पता नहि....नहि त’ की करितहुँ....
वामपंथी : मुदा आब ? आब की हैत ?
अभिनेता : आब की करब हम सब ?
नेता : आब की हैत ?
(चित्रगुप्त किछु नहि बाजैत छथि आ नंदी-भृंगी सेहो चुप रहैत छथि । एक पल केर लेल जेना समय थम्हि गेल होइक।)
अनुचर 1 : यमराजेसँ पूछल जाइन !
अनुचर 2 : (घबड़ा कए) के पूछत गय ? अहीं जाउ ने ! (केहुँनी सँ ठेलैत छथि।)
अनुचर 1 : नञि-नञि.... हम नञि ? (पछुआ अबैत छथि।)
अनुचर 2 : तखन नेताजीए सँ कहियनि जे ओ फरिछा लेथि !
अनुचर द्वय : नेताजी ! (नेताजीकेँ घुरि कए देखैते देरी दुनू जेना इशारा क’ कए कहैत होथि पूछबा दय।
नेताजी : (विचित्र शब्द बजैत छथि- कंठ सूखि जाइत छनि) ह..ह...!
[नेताजी किछु ने बाजि पबैत छथि आ ने पुछिए सकैत छथि। मात्र यमराजक लग जा कए
ठाढ़ भ’ जाइत छथि। यमराज रजिष्टर मे एक बेरि दैखैत छथि, एक बेरि नेताजी दिस]
यमराज : बदरी विशाल मिसर !
नेताजी : (जेना कठघरामे ठाढ़ अपन स्वीकारोक्ति दैत होथि) जी !
यमराज : आयु पचपन !
नेताजी : (अस्पष्ट स्वरेँ) साढ़े तिरपन !
नंदी : असली उमरि बताउ !
भृंगी : सर्टिफिकेट-बला नञि !
नेताजी : जी पचपन !
यमराज : जन्म भाद्र मासे, कृष्ण पक्षे, त्रयोदश घटिका, षड्-त्रिशंति पल, पंचदश विपल... जन्म-राशि धनु...लग्न-वृश्चिक, रोहिणी नक्षत्र, गण-मनुष्य, योनि-सर्प, योग-शुक्ल, वर्ग मार्जार, करण- शकुनि!
[जेना-जेना यमराज बाजैत चलि जाइत छथि—प्रकाश कम होइत मंचक बामे दिसि मात्र रहैत अछि जाहि आलोक मे यमराज आ मुड़ी झुकौने नेताजी स्पष्ट लखा दैत छथि। बाँकी सभक उपर मद्धिम प्रकाश। नंदी यमराजक दंड केँ धैने हुनकर पाछाँ सीना तानि कए ठाढ़ छथि, भृंगी टूल पर पोथीक विशेष पृष्ठ पर आँगुर रखने रजिष्टरकेँ धैने छथि। चित्रगुप्त लगे मे ठाढ़ छथि, यमराजक स्वर मे धीरे-धीरे जेना प्रतिध्वनि सुनल जाइत छनि-एना लागि रहल हो।]
नेताजी : जी !
यमराज : (हुंकार दैत) अहाँ केँ दैखैत छी ‘शश योग’ छैक...(श्लोक पढ़ैत छथि अथवा पाछाँ सँ प्रतिध्वन्त स्वरेँ ‘प्रि रिकॉर्डेड’ उच्चारण सुनल जाइत अछि-)
“भूपो वा सचिवो वनाचलरतः सेनापतिः क्रकूरधीःधातोर्वाद-विनोद-वंचनपरो दाता सरोषेक्षणः।
तेजस्वी निजमातृभक्तिनिरत¬: शूरोऽसितांग सुखी
जातः सप्ततिमायुरेति शशके जारक्रियाशीलवान्
अर्थात—नेता बनब त’ अहाँक भागमे लिखल अछि आ सदिखन सेवक आ अनुचर-अनुयायी सँ घेरल रहब सेहो लिखल अछि.... छोट-मोट अन्याय नहि कैने होइ—से नहि...मुदा बहुत गोटे अहाँक नाम ल’ कए अपराध करै जाइ छल—से बात स्पष्ट। वैह जे कतेको जननेता केँ होइ छनि..कखनहु देखियो कए अनठा दैत छलहुँ। बाजै मे बड़ पटु छी से त’ स्पष्टे अछि.. मुदा ई की देखि रहल छी—नुका चोरा कए विवाहक अतिरिक्तो प्रेम करबा दय.. सत्ये एहन किछु चलि रहल अछि की?”
नेता : (स्पष्टत¬: एहन गोपनीय बात सब सुनि कए अत्यंत लज्जित भ’ जाइत छथि। हुनक दुनू बगल मे ठाढ़ दुनू अनुचर अकास दिसि मूड़ी उठा कए एम्हर-ओम्हर देखै लागै छथि जेना ओसब किछु नहि सुनि रहल छथि) नहि...माने ..तेहन किछु नहि..
चित्रगुप्त : (मुस्की दैत) मुदा कनी-मनी...?.नहि?
नेता : हँ, वैह.... बुझू जे...
यमराज : सब बुझि गेलहुँ....
चित्रगुप्त : मुदा ओ कहै छथि हुनकर उमर भेलनि पचपन और शश-योग कहै छइ जीवित रहताह सत्तरि सँ बेसी उमरि धरि तखन ?
यमराज : तखन बात त’ स्पष्ट जे समय सँ पहिनहि अहाँ कोनो घृण्य राजनैतिक चक्रांतक शिकार बनैत एतय पठाओल गेल छी। (मोटका रजिष्टर केँ बन्न करैत छथि--)
नेता : तकर माने ?
यमराज : तकर माने ठीक तहिना जेना एहि चारि गोट सैनिक केँ एत’ ऐबाक आवश्यकता नहि छल... ओहो सब अहीं जकाँ .. माने इयैह जे अहाँ मुक्त छी, घुरि सकै छी राजनीतिक जगत मे... एतय कतारमे ठाढ़ रहबाक कोनो दरकारे नहि...
नेता : आँय ! (कहैत देरी दुनू अनुचर आनन्दक अतिरिक्त प्रकाश करैत हुनका भरिपाँज पकड़ि लैत छथि। संगहि कनेक देर मे नारेबाजी सेहो शुरू क दैत छथि।)
[नेताजीक आगाँ दूटा सैनिक सेहो मंच सँ निष्क्रांत होइत छथि।]
यमराज : (नेताजीक संगहि खिसकि जा रहै चाहै छथि से देखि कए, दुनू अनुचर सँ) अहाँ सभ कत’ जा रहल छी ? (दुनूक पैर थम्हि जाइत छनि।) की ? नहि बाजलहुँ किछु ?
अनुचर 1 : आ.. जी.. हम सब..नेताजी... जा रहल छथि तैं...
यमराज : कोनो तैं-वैं नहि चलत..(घुरि कए) चित्रगुप्त !
चित्रगुप्त : जी ?
यमराज : नीक जकाँ उल्टा-पुल्टा कए, देखू त’ रजिष्टर मे हिनका सब दय की लिखल छनि...
चित्रगुप्त : जी !....(अनुचर 1 केँ देखा कए) राजनीतिक जगतमे बदरी विशाल बाबू जतेक मार-काट कैने- करौने छथि—से सबटा हिनके दुनूक कृपासँ होइ छलनि....
अनुचर 1 : (आपत्ति जताबैत) नहि... माने...
यमराज : (डाँटैत) चोप! कोनो-माने ताने नहि...
चित्रगुप्त : (आदेश दैत) सोझे भुनै केर कड़ाही मे ल’ जा कए फेंकल जाय !
(कहैत देरी नंदी आ भृंगी अनुचर 1 आ अनुचर 2 केँ दुनू दिसि सँ ध’ कए बाहर ल’ जाइत छथि—ओम्हर बाँकी मृत सैनिक मे सँ दू गोटे हिनका ल’ कए आगाँ बढ़ैत छथि आ नंदी-भृंगी अपन-अपन स्थान पर घुरि आबैत छथि।)
प्रेमी युगल : (दुनू आर धीरज नहि राखि पबैत छथि) आ हम सब ?
प्रेमी : हमरा दुनूकेँ की हैत ?
प्रेमिका : ई हमरा कतेको कालसँ घुरि चलबा लेल कहैत छलाह... मुदा हमही नहि सुनि रहल छलियनि !
प्रेमी : की एहन नहि भ’ सकैत अछि जे.....
बाजारी : (आगाँ बढ़ैत) हे.... हिनका दुनू केँ अवश्य एकबेर जिनगी देबाक मौका देल जाइन...
चित्रगुप्त : से कियै ?
बाजारी : देखू...एत त’ हम कन्यादान क’ कए विवाह करबा देलियनि... मुदा वस्तुतः त’ ई दुनू गोटे अपन-अपन परिवारक जे क्यो अभिभावक छथि तनिका सभक आशीर्वाद नहि भेटि सकलनि।
भद्र व्यक्ति 2 : ...आ तैं दुनू गोटे निश्चित कैने छलाह जे जीयब त’ संगहि आ मरब त’ संगहि..मुदा आब त’ हम सब विवाह कैये देने छी...
बाजारी व्यक्ति : तैं हमरा लगैछ जे दुनू परिवारो आब मानि लेताह...
भद्र व्यक्ति 1 : भ’ सकैछ आब पश्चातापो क’ रहल छथि।
यमराज : बड़ बेस...
चित्रगुप्त : आ जँ एखनहु अक्खड़ दैखौता त’ अहाँ सब हुनका लोकनिकेँ समझा बुझा’ सकबनि कि नहि ?
भद्र व्यक्ति 1,2 : अवश्य...अवश्य !
यमराज : बेस... तखन (नंदी-भृंगीकेँ) एहि दुनू बालक-बालिका आ हिनका दुनूक एतहुका अभिभावक लोकनिकेँ रस्ता देखा दियन्हु...
[नंदी-भृंगी प्रेमी-प्रेमिका आ ओहि तीनू गोटेकेँ (दुनू भद्र व्यक्ति आ बाजारी वृद्धकेँ) रस्ता देखा कए बाहर ल’ जाइत छथि...पाछू-पाछू ढोल-पिपही बजा कए ‘मार्च’ करैत बाहर ल’ जाइत छथि। तखन रहि जाइत छथि जेसब ताहि सबमे सँ अभिनेता अगुआ आबै छथि।]
चित्रगुप्त : (जेना यमराज केँ अभिनेताक परिचय द’ रहल छथि) ई विवेक कुमार भेलाह... (नंदी सँ) पृष्ठ पाँच सौ अड़तीस...
अभिनेता : (आश्चर्य-चकित होइत, चित्रगुप्त सँ) अहाँ केँ हमर पृष्ठो मोन अछि...करोड़ो मनुक्खमे....? ई त’ आश्चर्यक गप्प भेल...
चित्रगुप्त : एहि मे अचरजक कोन बात? एतेक किछु करैत रहैत छी जे बेरि-बेरि ओहि पृष्ठ पर ‘एन्ट्री’ करै-टा पड़ै अछि...तैं.....
नंदी : (जेना घोषणा क’ रहल होथि...) पृ. 538, विवेक कुमार उर्फ.....?
अभिनेता : (टोकैत) हे कथी लय दोसर-दोसर नाम सब लै जाइ छी ? बड़ मोसकिल सँ त’ अपन जाति-पाति केँ पाछाँ छोड़ा सकल.... आ तखन एत्तहु आबि कए....?
चित्रगुप्त : आगाँ बढ़’! नाम छोड़ि दहक !
नंदी : आगाँ रिकार्ड त’ ई कहै अछि जे ओना ई छलाह त’ बड्ड मामूली व्यक्ति, तखन अपन कुशलता सँ, आओर सौभाग्यो सँ, पहुँचि गेल छथि शिखर पर... पाइ बहुत कमौलनि.. (झुकि कए नीक जकाँ रजिष्टर मे सँ पढ़ैत...) दान-ध्यान सेहो कैने छथि... ततबा नहि जतबा क’ सकैत छलाह अनेक महिला सँ हिनक नाम केँ जोड़ल जाइ छनि...अफवाहि केँ अपने पसिन्न करै छथि... एहि मामलामे बदनामे रहलाह... आ तैं पारिवारिक जीवन सुखद नहि छलनि... निःसंतान छथि, पत्नीकेँ त्यागि देताह ताहिसँ पहिनहि वैह छोड़ि कए चलि गेलीह...वस्तुतः पत्नीक कहब छलनि ई असलमे नपुंसक छलाह...
अभिनेता : (नंदी केँ थम्हबैत) की सभक सामने अंट-संट पढ़ि रहल छी पोथासँ ? पत्नी छोड़ि कए चलि गेलीह… नीक कैलीह, एखन सुखी छथि एकटा अधेड़ उमरक नवयुवकक संगे.... मीडिया बला सभसँ पाइ भेटलनि आ कि कहानी बनबै लगलीह... ‘अफसाना’.... जे बिकत बड्ड बेसी।
चित्रगुप्त : से ओ सब जाय दहक ...ई कह आर कोन विशेष बात सभ दर्ज छैक..
भृंगी : (ओहो झुकि कए देखि रहल छलाह रजिष्टर मे, आब रहल नहि गेलनि---) हिनक जत्तेक मित्र छनि, शत्रुक संख्या ताहिसँ बहुत गुना बेसी छनि।
यमराज : से त’ स्वाभाविके.....
भृंगी : हिनक शत्रुपक्ष कहैत अछि ई नुका–चोरा कए कतेको वामपंथी गोष्ठी केँ मदति करैत छलाह.... बहुतो ताहि तरहक संगठन केँ ....
वामपंथी : (प्रतिवादक स्वरमे) कथमपि नहि... ई सब फूसि बाजि रहल छी अहाँसब....
भृंगी : बाजि कहाँ रहल छी यौ कामरेड? हम त’ मात्र पढ़ि रहल छी--!
वामपंथी : हिनका सन ‘बुर्जोआ’ गोष्ठीक सदस्य कखनहु करत गै मदति कोनो साम्यवादीक ? असंभव !
अभिनेता : कियै ? साम्यवाद पर अहींसभक जन्मसिद्ध अधिकार छै की ? आन क्यो ‘साम्य’ क कल्पना नहि क’ सकैत अछि ?
वामपंथी : (व्यंग्यात्मक स्वरें) कियैक नहि ? कल्पनाक घोड़ा पर के लगाम लगा सकैत अछि ?
करू, जतेक मर्जी कल्पना करै जाऊ ! मुदा हम सब छी वास्तविक जगत् मे वास्तव केँ भोगि रहल छी...
अभिनेता : वास्तवमे भोगी छी अहाँ सब, भोगक लालसा मे ‘साम्य’ दय गेलहुँ बिसरि ‘वाद’टा मोन रहल ... वाद-विवाद मे काज मे आबैत अछि....!
चित्रगुप्त : वाद-विवाद सँ काज कोन ? कहबाक तात्पर्य ई जे विवेक कुमार जीक विवेक भरिसक बड़ बेसी काज करैत छनि...तैं.....
यमराज : (गंभीर मुद्रामे) हुम्-म्-म् ! (नंदी सँ) तखन देखै छी विपक्ष सँ बैसी सपक्षे मे सबटा पढ़ि रहल छी...
चित्रगुप्त : तकर अलावे ...ई हिनक अकाल आगमन थिकनि.... स्टंटमैनक बालक छल अस्वस्थ, गेल छल छुट्टी ल’ क’ अपन घर... त’ ई अपनहि स्टंट करै लगलाह...
अभिनेता : (बिहुँसैत) कनियें टा चूक भ’ गेलैक कि पहाड़ी पर सँ खसि पड़लहुँ....
यमराज : कनिये-कनिये भूल-चूक मे बदलि जाइत अछि इतिहास आ पुराण...सबटा पुण्य बहा जाइत अछि तनिके पापसँ ! मुदा जे हो (नंदी सँ) हिनका एखनहुँ अनेक दिन जीबाक छनि.. पठा दियौक पृथ्वी पर...
वामपंथी : (अगुआ कए) आ हम ? हमर की हैत ? (एक बेरि यमराज तँ एक बेरि चित्रगुप्त दिसि देखैत छथि। मात्र भृंगी ससम्मान अभिनेताकेँ बाहर पहुँचाबै जाइत छथि।)
यमराज : अहाँक कथा मे तँ स्वर्ग-नर्क कोनो टा नहि अछि...ने छी हम आ ने चित्रगुप्त...
वामपंथी : जी, से त’...(कहै जाइत छलाह ‘अवश्य !’ मुदा ताहि सँ पहिनहि टोकल जाइत छथि।)
चित्रगुप्त : सैह जखन बात छैक त’ अहाँ अपने विचार करू अपन भविष्य....(पॉकिट सँ एकटा मुद्राकेँ ‘टॉस’ करबाक भंगिमा मे.....) कहु की कहै छी ‘चित’ की ‘पट’?
वामपंथी : हमर विश्वास आ हमर शिक्षा किछु आने तरहक छल, मुदा जे प्रत्यक्ष क’ रहल छी (कहैत देवार....यमराज...चित्रगुप्त आदि केँ देखाबैत छथि) तकरे अस्वीकार कोना करू ?
यमराज : कियैक ? ईहो त’ भ’ सकैछ जे आँखि धोखा द’ रहल अछि...ई सबटा एकटा दुःस्वप्न मात्र थिक... कल्पलोक मात्र थिक...ई, जतय घुसै जायब त’ देखब बोर्ड पर टांगल अछि---‘नो एन्ट्री’!
वामपंथी : तखन ?
चित्रगुप्त : तखन की ?
वामपंथी : तखन हम की करू ?
यमराज : (गंभीर मुद्रामे) पहिने ई कहू... विषम के थिक ? मनुक्ख कि प्रकृति ?
वामपंथी : दुनू...
यमराज : के कम के बेसी ?
वामपंथी : प्रकृति मे तैयहु कत्तहु ‘प्राकृतिक न्याय’ (नैचरल जस्टिस)
काजक’ रहल अछि, मुदा मनुक्खक स्वभावक आधारे
अन्याय पर ठाढ़ अछि...
यमराज : की अहाँक राजनीति एहन अन्याय केँ दूर नहि क’ सकैत अछि ?
वामपंथी : प्रयास करैत अछि...
यमराज : ठीक अछि... तखन हिनको तीनू गोटे केँ नेने जाऊ ! (चोर उचक्का आ पॉकिट-मारक दिसि देखा क’ बाजैत छथि) आ देखू हिनका सब केँ बदलि सकै छी वा नहि ?
वामपंथी : बेस....
[कहैत पॉकिट-मार आ उचक्का हुनका लग चलि आबै छथि। चोर कनेक इतस्ततः करैत छथि आ अंत मे पूछि दैत छथि जाय सँ पूर्व…]
चोर : तखन एहि सँ आगाँ ?
यमराज-चित्रगुप्त-नंदी : (एक्कहि संग) ‘नो एनट्री’...
[कहैत देरी तीनू गोटे केँ साथ ल’ कए वामपंथी युवा वाहर जैबाक लेल उद्यत होइत छथि कि तावत् अभिनेता केँ छोड़ि कए भृंगी घुरि कए मंच पर प्रवेश क’ रहल छलाह।]
यमराज : मा प्रविश....
चित्रगुप्त : कदाचन!
[चारू गोटे एक पलक लेल चौंकैत थम्हैत छथि ....तकर बादे निष्क्रांत होइत छथि। हुनका सभक प्रस्थानक पाछाँ भृंगी आगाँ बढ़ैत छथि यमराजक दिसि।]
(क्रमश:)
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विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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