भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Thursday, August 07, 2008
आयल गामक याद, आत्म कथा - मदन कुमार ठाकुर
भैयाक मुखसँ निकलल बास्तविक सच ई अछि !
हम आठ सालक छलहुँ, बाबू काका सभ स्कूल जाय के लेल कहलथि, तँ हम आन गाम भागि जाइत छलहुँ ! एहिना सभ दिन कुनू न कुनू बहाने कतहु ने कतहु चलि जाइत छलहुँ ! एक दिन स्कुलक खातिर काका आओर बाबू बड़ मारि मारलथि, हम किताब कॉपी लए स्कुल चलि गेलहुँ, ओम्हरसँ अबैत काल किताब कोपीकेँ एगो बोनमे फेक देलियैक आर गाम छोरि देलियैक ! भगिते - भगिते विदेश्वरस्थान एलहुँ, पटना बला बसक पाछाँमे हम लटकि गेलहुँ। जतए टोकैत छल ओतय हम उतरि जाइत छलहुँ ! एहिना कऽ कए पटना पहुँचि गेलहुँ, पटना जाइत जाइत हमरा भूख बहुत जोर लागि गेल छल ! हम एकटा मारवाड़ी होटलक सामने गेलहुँ, जाऽ कए ठार भऽ गेलहुँ ! हमरा जेबमे एकोटा फुटल कौरी नञि छल, जे हम भोजन करितहुँ, आधा घंटा हम होटलक सामने ठार छलहुँ, तँ ओकर मालिक कहलक, जे "बेटा तोहार के भूख लागल बा का?" हम चुप - चाप मूड़ी डोलाऽ देलियनि। ओऽ हमरा रोटी आर तरकारी देलक, हम भरि पेट भोजन केलहुँ ! बादमे कहलियनि, जे हमरा होटलमे नोकरी देब की ? ओऽ हमरा ८५ रुपैया महिनाक हिसाबसँ नोकरी पर रखलक ! हम होटलमे तीन मास काज केलहुँ, ओतय एक दिन कारीगरसँ झगड़ा भऽ गेल, तँ हम स्टेसन पर आबि कए बैसि गेलहुँ, ओतय आठ घंटा बैसल छलहुँ ! चारिटा आदमी सेहो बैसल छलथि, ओऽ आपसमे बात करैत छलथि, जे गुजरातमे बड़ नीक नोकरी भेटैत छैक, से सभ आदमी ओतय चलितहुँ ! हम ई बात अपन कानसँ सुनलहुँ आर हुनका सभकेँ कहलियनि, हमहूँ अपने सभक संग चली? लेने जाएब ? ओ सब कहलथि, चलू। किए नञि लऽ जाएब ! हुनका सभक संग गुजरात पहुचलहुँ, ओइठाम सभ आदमी कपड़ा छपाई केर कंपनीमे काज पकड़लहुँ ! ओतय हमरा १६० रुपैआ महिनाक हिसाबसँ तनखा भेटए लागल ! दिन , महिना , साल बीति गेल, हम सेहो २० सालक भऽ गेलहुँ ! सोचलहुँ जे गाम चलि जाइत छी, ओतय बाबू काकाकेँ कह्बनि, विवाह दान कराऽ देताह, आऽ गामेमे रहब, खेती बारी करब ! फेर एक दिन अचानक मोन पड़ल, जे हमरा बाबु आऽ काका बड़ मारि मारलथि, आऽ घरसँ भगा देलथि। हम गाम नञि जायब ! समय बितल गेल, अचानक एक दिन दरभंगाक एक व्यक्ति भेटलाह, पुछलथि, जे अपनेक घर कतए भेल ? हम अपन घरक पता बिसरि गेल छलहुँ ! केवल अपन गामक नाम बतेलियनि आऽ बाबुक नाम ! ओऽ कहलथि, जे ओहि गाममे तँ १९८७ मे बड़ बाढ़ि आयल छल, ओहि गाममे बहुत लोक भसिया गेल, कतेक घर सेहो उजरि गेल ! पता नञि अहाँक घरक की भेल ! हम कहलियनि, जे हमरो घर फूसेक छल ! पता नञि, ओहो भासि गेल की ठीक अछि ! सुनि कऽ बड़ दुःख भेल, सोचलहुँ, आब की कएल जाय ! ओहि व्यक्तिसँ पुछलियनि ! जबाब भेटल, जे अहाँ एतहि विवाह दान कs लियऽ, हमरा एकटा सुपुत्री अछि हुनकेसँ ! ओहिठाम विवाह केलहुँ, दुटा संतान सेहो उत्पन्न भेल, लक्ष्मी आर आनंद ! दुनुकेँ अएलासँ हमरा अपन परिवार , अपन घर , अपन गाम सभ बेर-बेर मोन आबए लागल, मुदा करब तँ करब की ! दुनुटा आठ आर छः सालक भऽ गेल छल ! ओऽ सभ बेर-बेर पुछैत छल, जे हमर बाबा आऽ मैयाँ कतए छथि ! हम मोनमे मात्र ईएह सोची, जे माई आर बाबु आब कतए हेथिन आऽ कोना ई जीबैत हेताह ! जेना हम लक्ष्मी आऽ आनंदक लेल जान प्राण दैत छी, तहिना हमरो माई आर बाबु हमरा लेल प्राण दैत हेताह ! नञि, हमरासँ बड़का भूल भेल, जे हम अपन गामकेँ त्यागलहुँ ! मोनमे मात्र माञि आर बाबुक याद अबैत छल ! जे बाबु केना हेताह, माई हमर कतए हेतीह ! पता नञि काका आऽ काकी कतय हेताह, बेर-बेर मोनमे ईएह खयाल अबैत छल ! सोचलहुँ जे एक महिनाक छुट्टी लए गामसँ घूमि आबी ! आऽ सभ धिया-पुताकेँ सेहो घुमा देबए ! जे कमसँ कम गामक याद तँ अबिते रह्तए ! सभ परिवार मिलि कए हम दरभंगा पहुचलहुँ ! ओतयसँ टेकर कऽ कए बिदेश्वर स्थान पहुचलहुँ, ओतयसँ हम ई नञि जानैत छलहुँ, जे हमर गाम किमहर अछि आऽ हम कतय जायब , हम की करब ! ओतय बाबा बिदेश्वरक पोखरिमे स्नान केलहुँ आऽ बाबाकेँ सेहो प्रणाम केलहुँ ! सभ बच्चा सभकेँ भूख सेहो लागि गेल छल ! सोचलहुँ जे गामक पवित्र भोजन चूडा दही चीनी होइत छञि, से ग्रहण करी ! भोजन केलाक उपरांत होटल मालिकसँ पुछलियनि, जे यौ हमरा पट्टीटोल जेबाक अछि, से हम केना जाएब ! ओऽ हमरा कहलथि जे अहिठामसँ रिक्सा भेटत, ओऽ अहाँकेँ घर तक छोड़ि देत ! हम सभ रिक्सापर बैसलहुँ, रिक्सा बाला भरि रस्ता ईएह पुछैत छल, जे मालिक अहाँक कोन टोल घर अछि ! जबाब किछु नञि भेटैत छल, जे हम रिक्साबाला के कहबइ ! जौँ जौँ हम अपन घरक दिस जाइत छलहुँ, किछु नञि किछु याद जरुर अबैत छल ! रिक्सा बालासँ बस केवल ईएह कहैत छलहुँ, जे कनिक दूर घर आर अछि ! अपन घरक लग जखन गेलहुँ तँ छोटका काका नज़र पड़लाह, हम हुनका चीन्हि गेलियनि, मुदा हमरा ओऽ नञि चीन्हि सकलाह। किएक तँ २६ साल भऽ गेल छल ओऽ बहुत जरुरी काजसँ हाथमे टेंगारी लए जाइत छलथि ! कनेक दूर जखन आगू गेलहुँ, देखलहुँ जे ओऽ फूसिक घर ओहि दिशामे अछि जाहि दिशामे हमरा सभ किछु यादि छल ! सभ ठीक-ठाकसँ याद आबए लागल ! हम जखन दलान पर पहुंचलहुँ, सब हमरा दिस घुरि-घुरि कए देखैत छल, जे ई व्यक्ति अपन परिवारक संग के थिकाह ! हम रिक्सा बालाकेँ पाइ दऽ देलियनि आऽ एकटा छोट बुच्चीसँ पुछलियनि, अपन बाबुक नाम लऽ कए, जे हुनकर घर कोन छियनि। ओऽ बुच्ची कहलथि जे ईएह छियनि हुनकर घर ! अंगनामे कन्नारोहट होइत छल, सभ जोर-जोरसँ कनैत छल, काकी यै काकी, हमरा छोड़ि कऽ कतय चलि गेलहुँ ! आँगन जखन पहुंचलहुँ, देखलहुँ, ओऽ लाश ओऽ मुर्दा हमर माइक छी ! हम अपन आपकेँ सम्हारि नञि सकलहुँ ! जोर-जोरसँ कानए लगलहुँ! लक्ष्मी आर आनंद पुछलक, जे पापा अहाँ किए कनैत छी ! हम कहलियनि, जे ई अहाँक दादी माइ छथि। ई अपना सभकेँ छोड़ि कए चलि गेलीह। बहुत गलती भेल जे हम एको दिन पहिने किएक नञि अएलहुँ ! हमरा आसमे हमर माइ आइ अपन प्राण त्याग कऽ लेलक ! हम बहुत अभागल छी, हम बहुत पापी छी, जे हम अपन माइ बाबुकेँ बात नञि मानलहुँ, हमरासँ आइ बहुत अपराध भेल ! हम आइ कतहु के नञि रहलहुँ ! एतबामे बाबु आऽ काका सभ क्यो बाँस काटि कए आबि गेलाह, माइक अंतिम संस्कार करबाक लेल ....
जय मैथिली, जय मिथिला
मदन कुमार ठाकुर
कोठिया पट्टीटोला
झंझारपुर (मधुबनी)
बिहार - ८४७४०४
मो - ०९३१३०१९९३२
8 comments:
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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मदन ठाकुरजी,
ReplyDeleteनमस्कार। मायक अंतिम संस्कारपर बेटा पहुँचि गेलाह आकि माय हुनका बजा लेलखिन्ह अंतिम समयमे। जीवनक बहुत रास घटना काल्पनिक उपन्याससँ बेशी रोमांचक भए जाइत अछि। लोक अपन इगोमे आइ-काल्हि- परसू करैत साल आऽ युग बिता दैत अछि। १९८७ ई. केर बाढ़िमे हमहुँ गामेमे छलहुँ, आऽ जाहि कमला मैय्याकेँ गरमी मासमे पएरे पार करैत छी, हुनकर विकराल रूप देखने छलहुँ। दुनू छहरक बीच पानि भरि गेल छल आऽ देखिते-देखिते झझा देलक।
धुरझार लिखैत रहू।
গজেন্দ্র ঠাকুব
hamra ta keyboard sa devnagrio nay likha abaya aa.ta ehe ta kahab je orkut ke madhyam sa hum e site par ailoan ahank katha parhi ke lor khasa lagal ta sonchli je do pankti jaroor likhu bhane hi romane me namaskar , prem kewlani
ReplyDeletebaDDa nik blog achhi ee
ReplyDeletekana delahu
ReplyDeleteee blog samanya aa gambhir dunu tarahak pathakak lel achhi, maithilik bahut paigh seva ahan lokani kay rahal chhi, takar jatek charchaa hoy se kam achhi.
ReplyDeletedr palan jha
मदन जी बहुत निक लिखलो आशा अछी अहिना लिखैत रहु ,गामक याद त सब के आबैत अछि
ReplyDeleteजय मैथिल जय मिथिला
बहुत - बहुत धन्यवाद पाठक गन के जे ओ अपन किमती व्क्त हमर रचना में देलैन , हम अपनेक सबक के अभारी छी ----
ReplyDeleteजय मैथिल जय मिथिला
गामक याद त सब के आबैत अछि ,
ReplyDelete----------बहुत - बहुत धन्यवाद
अपनेक के मदन जी