भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, October 26, 2008

'विदेह' ०१ सितम्बर २००८ ( वर्ष १ मास ९ अंक १७ ) - part-III

'विदेह' ०१ सितम्बर २००८ ( वर्ष १ मास ९ अंक १७ ) - part-III

जितमोहन झा घरक नाम "जितू" जन्मतिथि ०२/०३/१९८५ भेल, श्री बैद्यनाथ झा आ श्रीमति शांति देवी केँ सभ स छोट (द्वितीय) सुपूत्र। स्व.रामेश्वर झा पितामह आ स्व.शोभाकांत झा दास मातृमह। गाम-बनगाँव, सहरसा जिला। एखन मुम्बईमे एक लिमिटेड कंपनी में पद्स्थापित।रुचि : अध्ययन आ लेखन खास कs मैथिली ।पसंद : हर मिथिलावासी के पसंद पान, माखन, और माछ हमरो पसंद अछि।
कन्या भ्रूण हत्या, प्रकृतिक संग खिलवार
पिछला छुट्टीमे एक सालपर हम गाम गेल छलहुँ, जहियाँ गाम पहुँचलहुँ ओकर दोसरे दिन पता चलल की हमर बच्चपनक दोस्तक बहुत जोर तबियत ख़राब छनि ! आर ओऽ अस्पतालमे भरती छथि! खबर जहिना हम सुनलहुँ अस्पतालक लेल चलि देलहुँ ! हमरा संग हमर पत्नी सेहो चलि देलीह, अस्पताल पहुंचला पर पता चलल जे कुनू चिंताक बात नै सब ठीक ठाक अछि! एक घंटाक बाद हुनका (हमर दोस्त) छुट्टी मिल जेतेंन, बहुत दिनक बाद अस्पताल आयल छलहुँ, इच्छा भेल कनि चारो तरफ घुमि - फिर ली मनमे अस्पताल के लेल बहुत जिज्ञासा छलए ! हम आर हमर पत्नी जहिना दोस्त के वाडसँ बाहर निकललहुँ हमर नज़रि अपन पितयौत भैया- भाभी पर परल, अचानक हुनका सभकेँ अस्पतालमे देखिकेँ हम चौक गेलहुँ ! हमर नज़रि एकाएक भाभीक उदास, कनमुँह चेहरा पर परल .....पुछलियनि की बात ... मुदा ओ किछ जबाब नञि देलीह, हमर पत्नी कातमे बजाकए हुनकर पीड़ा सुनलन्हि ! दुबारा पुछलासँ भाभी अपन पीड़ा नञि रोकि सकलीह, हुनकर पीड़ा हुनकर आँखिसँ छलैक उठ्लैन पता चलल जे दू गोट कन्याक जन्मक बाद आब तेसर बेर फेरसँ कन्या कs नै बर्दाश्त करबाक चेतावनी भैया हुनका पहिने दऽ चुकल्खिन-ए ....पता चलल गर्भ परीक्षण लेल भैया भाभीकेँ अस्पताल अनने छथि ! गर्भमे पलि रहल बच्चाक प्रति पिताक खौफनाक इरादासें उपजल भयक भाव भाभीक चेहरा पर साफ-साफ देखलहुँ! बादमे हमरा आर हमर पत्नीक कतेक समझेला पर भैया भाभीकेँ वापस घर लऽ गेलखिन! संयोगवश अगला संतानक रूपमे हुनका बालकक प्राप्ति भेलनि ....

बेशक भ्रूण परिक्षण प्रतिबंधित अछि आर सरकार एकरा लेल बाकायदा कानूनों बनने अछि! लेकिन ई की ? लागैत अछि पिछला दरवाजाक संस्कृति अस्पतालों के नै छोरने छनि, तखनेतँ भैया बहुत आसानीसँ भाभी केँ गर्भ परिक्षण कराबए लेल चलि देने छलथि, हमतँ कहए छी चाहे सरकार लाखो कानून बनबथि, लाखो कड़ासँ कड़ा सजा तय करथि लेकिन जाऽ तक हम सब स्वयं अपना तरफसँ कुनू कदम नञि उठायब ई कानूनक हेब नञि ह्एब एके समान अछि ! आइ तक भ्रष्ट्राचार, बालश्रम, शोषणक विरुधो सरकार बहुत कानून लागू केलथि, मुदा कि समाजमे एकर रोकथाम भs सकल? नञि! आर यदि अपने एकर कारणक पता करब तँ पायब कि शायद हम खुद कतो न कतो कुनू न कुनू प्रकारे एकर दोषी छी ! हम सब परिस्थितिक साथ कुनू तरहक समझौता करबाक वजाय ओकरा सदा बदलबाक फिराकमे रहैत छलहुँ चाहे ओकरा लेल हमरा सभ केँ कुनू तरहक हथकंडा कियेक नञि अपनाबऽ परए .... हम सब चुकए नञि छी्! हमतँ पूछए छी जे कि कारण अछि जे लड़कीक जन्म भेला पर आइयो मुँह सिकोरल जाइत अछि? शायद हुनकर परवरिश, शिक्षा, विवाह आदिमे आबै वाला तमाम मुश्किलक कारण एहि तरहक व्यवहार केल जैत अछि ! मुदा कि लड़का के जन्म भेनेसँ ई तमाम समस्या समाप्त भs जाइत अछि? लड़को केँ तँ परवरिश करए परै यऽ ? हुनकरो शिक्षा,नौकरीक लेल दर-दर भटकए परैत अछि ! आर विवाह ........!

यदि ईएह गतिसँ कन्या भ्रूण हत्या होइत रहत तँ बूझि लिअ जे सब लड़का के कुंआरे रहए परत ! उदहारण स्वरूप अपने हरियाणामे लड़कीक संख्यामे लगातार दर्ज केल गेल कमी देख सकैत छी, हरियाणामे विवाह लेल लड़की नञि भेटैत छन्हि ओई ठामक लोककेँ दोसर राज्यमे लड़कीक तलाश करए पड़ैत छनि .....

कनि सोचु अगर पूरा देशमे ईएह स्थिति भs जैत तँ कि हैत ?

हम निक जेकाँ जानैत छी जे अपने ई बातकेँ ध्यानमे नञि राखब आर यदि राखबो करब तँ दोसर केँ उदाहरण दैक लेल ! लेकिन कि अपने खुद कन्या भ्रूण हत्या रोकेऽ मे दोसरकेँ जागरूक करब ? अपनेकेँ नञि लागैत अछि जे प्रकृति द्वारा निर्धारित जीवनकेँ सुचारू रूपसँ चलबै लेल ई गाड़ीक दुनु पहियाँ समान रूपसँ आवश्यक अछि ! आर कन्या भ्रूण हत्या यानी कि प्रकृतिक संग खिलवाड़ अछि ! अई खिलवाड़केँ रोकऽ लेल हमरा सभकेँ एकजुट हेबअए परत आर एतबे नञि एहि मानसिकतोकेँ बदलए परत कि वंशबेल खाली आर खाली लड़के चलेता, तखने हम सही मायनेमे आधुनिक कहाएब।
बालानां कृते
१.जट-जटिन-गजेन्द्र ठाकुर
२. देवीजी:शिक्षक दिवस- ज्योति झा चौधरी

चित्र: ज्योति झा चौधरी
जट-जटिन

महाराज सिव सिंह (१४१२-१४४६) मिथिलाक राजा छलाह। विद्यापति हुनके शासनकालमे भेल छलाह आऽ राजा शिव सिंह आऽ हुनकर रानी लखिमा रानी हुनकासँ बड़ प्रेम करैत रहथि। एक टा जयट वा जट नाम्ना बड़ पैघ संगीतकार सेहो छलाह ओहि समयमे। राजा शिव सिंह हुनकासँ विद्यापतिक गीतकेँ राग-रागिनीमे बन्हबाक लेल कहने रहथि। वैह जयट जट-जटिन नाटकक रचना कएलन्हि आऽ जटक भूमिका सेहो कएने छलाह। साओन-भादवक शुक्ल-पक्षक रातिमे ई नाटक स्त्रीगण द्वारा होइत अछि।
जट छथि पहिरने पुरुष-परिधान आऽ जटिन पहिरने छथि छिटगर नूआ। आऽ देखू दुनू गोटे अपना संग अपन-अपन संगीकेँ लए आबि गेल छथि।
बियाहक पहिल सालक साओन, जटिन जाए चाहैत छथि नैहर मुदा धारमे बाढ़ि छैक, हे माय कोनो नौआ-ठाकुर-ब्राह्मण आकि पैघ भाए केर बदलामे छोटका भायकेँ पठबिहँ बिदागरीक लेल नञि तँ सासुर बला सभ बिदागरी आपिस कए देत। जाहि नवकनियाँकेँ नैहर नहि जाय देल गेल ओऽ अपन पतिकेँ कहैत छथि जे जट-जटिनक नृत्यमे तँ भाग लेबए दिअ। मुदा वर झूमर खेलाएबसँ मना कए दैत छथि, तखन ओऽ घामक बहन्ना बनाए दूर भए जाइत छथि।
जट-जटिन बीचमे छथि आऽ दुनूक संगीमे बहस चलि रहल अछि।
-चलू झूमर खेलाए।
-कोन पातपर चढ़ि कए।
-पुरैनीक।
जट-जटिनमे विआह होए बला अछि, मुदा जट किछु बातपर अड़ि गेल, जेना धानक शीस जेकाँ लीबि कए चलत जटिन, किछु देखावटी विरोधक बाद जटिन सभटा मानि जाइत छथि। फेर दुनू गोटे विआह कए लैत छथि। फेर भोर होइत अछि, जटिन कहित छथि जे जाए दिअ, अँगना बहारबाक अछि, मुदा जटा कहैत छथि जे अँगना मए-बहिन बहाड़ि लेत।
फेर दिन बितैत अछि तँ जटिन कहैत छथि जे गहना किएक नहि बनबाए रहल छी हमरा लेल, आर बहन्ना करब तँ हम सोनारक घर चलि जाएब।
जटिन ततेक खरचा करबैत छन्हि जे जटाक हाथी तक बिकाऽ जाइत छन्हि आऽ हाथीक सिकड़ि मात्र बचल रहि जाइत छन्हि।
जटिन कहैत छथि जे हमरा नैहर जएबाक अछि, तँ जटा कहैत छथि जे धानक फसिल तैयार अछि, तकरा काटि कए जाऊ। जटिन नहि मानैत छथि कहैत छथि जे एहि बेर जे हम जाएब तँ घुरि कए नहि आएब। मुदा सौतिनक गप सुनि कए डेराए जाइत छथि। बीचमे स्वांग जेना कोनो रोगीक इलाज आदि सेहो होइत रहैत अछि।
जट मोरंग बिदा भए जाइत छथि कमाए। जटिनकेँ सोनार प्रलोभन दैत छन्हि गहनाक, मुदा जटिन जटाक सुन्दरताक वर्णन करैत छथि।
फेर जटा घुरि अबैत अछि। एक दिन दुनू गोटेमे कोनो गप लऽ कए झगड़ा भए जाइत छन्हि। जट छौँकीसँ जटिनकेँ छूबि दैत छथि। जटिन रूसि कए घर छोड़ि दैत छथि। जटा गोपी, मनिहारिन आऽ आन-आन रूप धरि ताकैत छथि हुनका। मुदा जटाक घरमे झोल-मकड़ा भरि जाइत छन्हि आऽ अंगनामे दूभि उगि जाइत छन्हि। तखन जटिन हुनका
लग आबि जाइत छथि। फेर स्त्रीगण लोकनि बेंगकेँ एकटा खद्धा खुनि कए ओहिमे दए दैत छथि आऽ ऊपरसँ ओकरा कूटैत छथि आऽ मरल बेंगकेँ झगराहि स्त्रीक दरबज्जपर फेकि अबैत छथि। ओऽ स्त्री भोरमे मरल बेंगकेँ देखला उत्तर जतेक गारि पढ़ैत छथि, ततेक बेशी बरखा होइत अछि।
२. देवीजी: ज्योति झा चौधरी
देवीजी : शिक्षक दिवस

चित्र: ज्योति झा चौधरी
देवीजी : शिक्षक दिवस
आई ५ सितम्बर कऽ विद्यालयमे शिक्षक दिवसके आयोजन छल। सब शिक्षक-शिक्षिका अतिथि रहैत आ सब कार्यक्रम विद्यार्थी उारा प्रस्तुत छल। तरह - तरहक रंगारंग कार्यक्रम देखायल गेल जाहि स सब अध्यापक बहुत प्रसन्न भेलैथ।अहिबातक चर्चा विस्तृत रूपसऽ भेल जे ई तिथि देशकेप्रथम उपराष्ट्रपति एवम्‌ उितीय राष्ट्रपति स्वर्गीय सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मतिथि छैन।भारतीय दर्शनके पश्चिमी सभ्यतामे मान्यता दियाबऽमे हुनकर योगदान अविस्मरणीय छैन।1952 – 1962 मे उपराष्ट्रपति रहला आ १३ मई १९६२ सॅअगिला पॉंच साल तक राष्ट्रपति रहला।जहन ओ राष्ट्रपति भेला तऽ हुनकर विद्यार्थी हुनकर जन्मदिवस मनाबऽके अनुमति मॉंगऽ गेलैन।ओ कहलखिन जे हमर जन्मदिन के आडम्बर के बदले अहि दिनके शिक्षक दिवस के रूपमे मनाकऽ हमरा गर्वित करू। तहियासॅं ई प््राथा प््राारंभ भेल।
अहि दिन सब विद्यार्थी अपन शिक्षकसभके प््राति अपन आभार प््राकट करैत छथि। करैयो के चाही कारण कहल गेल अछि -
''गुरु गोविन्द दोनो खड़े़,काको लागूं पाय।
धन्य गुरु आपणो ,गोविन्द दियो दिखाय॥
सबकियो अन्य शिक्षक - शिक्षिका संगे देवीजीके प्रति विशेष आभार प्रकट केलक ।अंतमे प्रधानाचार्य अपन भाषणमे विद्यार्थीक प्रशंसाक अतिरिक्त अहि बात पर विशेष जोर देलखिन जे शिक्षक देशक भविष्यक निर्माता होइत छैथ तैं हुनका विद्यार्थी लग इक आदर्श प्रस्तुत करैके चाही। शिक्षकके जिम्मेवारीक महत्व पर जोर देलाक बाद कार्यक्रम समाप्त भेल।सब सहर्ष अपन घर दिस विदा भेला कारण आहि अवकास छल।


बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥

१२. पञ्जी प्रबंध-गजेन्द्र ठाकुर
पञ्जी प्रबंध

पंजी-संग्राहक- श्री विद्यानंद झा पञ्जीकार (प्रसिद्ध मोहनजी)
श्री विद्यानन्द झा पञीकार (प्रसिद्ध मोहनजी) जन्म-09.04.1957,पण्डुआ, ततैल, ककरौड़(मधुबनी), रशाढ़य(पूर्णिया), शिवनगर (अररिया) आ’ सम्प्रति पूर्णिया। पिता लब्ध धौत पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड पञ्जीकार मोदानन्द झा, शिवनगर, अररिया, पूर्णिया|पितामह-स्व. श्री भिखिया झा | पञ्जीशास्त्रक दस वर्ष धरि 1970 ई.सँ 1979 ई. धरि अध्ययन,32 वर्षक वयससँ पञ्जी-प्रबंधक संवर्द्धन आ' संरक्षणमे संल्गन। कृति- पञ्जी शाखा पुस्तकक लिप्यांतरण आ' संवर्द्धन- 800 पृष्ठसँ अधिक अंकन सहित। पञ्जी नगरमिक लिप्यान्तरण ओ' संवर्द्धन- लगभग 600 पृष्ठसँ ऊपर(तिरहुता लिपिसँ देवनागरी लिपिमे)। गुरु- पञ्जीकार मोदानन्द झा। गुरुक गुरु- पञ्जीकार भिखिया झा, पञ्जीकार निरसू झा प्रसिद्ध विश्वनाथ झा- सौराठ, पञ्जीकार लूटन झा, सौराठ। गुरुक शास्त्रार्थ परीक्षा- दरभंगा महाराज कुमार जीवेश्वर सिंहक यज्ञोपवीत संस्कारक अवसर पर महाराजाधिराज(दरभंगा) कामेश्वर सिंह द्वारा आयोजित परीक्षा-1937 ई. जाहिमे मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक म.म. डॉ. सर गंगानाथ झा छलाह।
शाखा पञ्जीक विशेषता

शाखा पञ्जी एक अभूतपूर्व पुस्तक छी। एहि तरहक पुस्तक हमरा बुझने संसारक कोनो देश कोनो सम्प्रदाय वा कोनो वर्गमे नहि पाओल गेल अछि। यद्यपि ई वर्ग विशेषक पुस्तक थिक, परञ्च एहि प्रकारक पुस्तक कोनो सम्प्रदाय वा कोनो वर्गक लेल शुरू कएल जाऽ सकैत छैक। मिथिलाक ई अद्वितीय देन सिद्ध भऽ सकैछ, जाहिमे १००० वर्षसँ परिचयक जाल जकाँ निर्मित कएल गेल अछि। जेना कवि कोकिल विद्यापति ठाकुरक परिचय हुनक पुरुषाक उल्लेख ७ पीढ़ी पहिनेसँ लऽकेँ विद्यापतिक वंशधर वर्तमान धरि, सभक साङ्गोपाङ्ग (विद्या, उपाधि, विशिष्टता, कार्य परिवर्तन, मातृकुलक परिचय) परिचय भेटत। एहन परिचय मात्र विद्यापतिये नहि समस्त मैथिल ब्राह्मणक भेटत, एहि प्रकारक आधारपर विभिन्न विद्वान ब्राह्मणक काल निर्धारण सेहो कएल जाऽ सकैछ।
शाखा पञ्जीक मादे: हम पञ्जीकारक वंशज थिकहुँ। संगहि ग्यारह वर्ष धरि मैथिल पञ्जी प्रबंधक साङ्गोपाङ्ग अध्ययन कएलहुँ। गुरु छलाह स्वयं हमर पिता पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड धौत परीक्षामे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान पाबि महाराजाधिराज कामेश्वर सिंहक हाथें दोशाला पओनिहार स्वनाम धन्य पञ्जीकार मोदानन्द झा- हुनक मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक छलाह महामहोपाध्याय डॉ सर गङ्गानाथ झा। पञ्जी प्र्बन्धक जे इतिहास अछि ताहिमे वर्णित अछि जे पञ्जी प्रबंधक वर्तमान स्वरूपक प्रणेता छलाह सदुपाध्याय गुणाकर झा, जनिक हम उन्नैसम पीढ़ीमे छी। आइसँ उन्नैस पुस्त पहिने जे मैथिलक वंशावलीक संकलन संवर्द्धन ओऽ संरक्षणक व्रत दृढ़ निष्ठासँ सदुपाध्याय गुणाकर झा लेलन्हि वा तत्कालीन विद्वत वर्ग द्वारा विश्वासपूर्वक देल गेलन्हि, से अद्यावधि निष्ठापूर्वक हमरा धरि सुरक्षित ओ संवर्द्धित अछि।
पञ्जीक समस्त पुस्तक मिथिलाक लिपि तिरहुतामे लिखित अछि/ लिखल जाऽ रहल अछि। आऽ बुझू तँ तिरहुता लिपिक प्राणाधार थिक पञ्जी प्रबन्ध।
परन्तु वर्तमान पञ्जीक कार्य करैत अनुभव कएल जे एहि शास्त्रसँ सम्बद्ध पक्ष एहि लिपिक ज्ञानक अभावमे सामने बैसियौकऽ विषय वस्तुसँ अनभिज्ञ रहि जाइत छथि। फलस्वरूप एकर संरक्षणक प्रति सहयोग घटल जाऽ रहल छैक।
एहिना स्थितिमे भेल जे कियैक नहि देवनागरीमे अनुवाद कएल जाए। सोचि तँ लेलहुँ मुदा कार्य बड्ड दुरूह। संगहि आबादीक विस्तार संग शाखाक विस्तार सेहो आवश्यक तँय ई एकटा पूर्णकालिक कार्य भेल लगभग ६-७ वर्ष धरि एहिना स्थितिमे पारिवारिक दायित्वक निर्वहन करैत एहि गुरुतर कार्यक सम्पादन करब एकटा असाध्य साधने भेल एहि युगमे। परञ्च उत्साही युवक लोकनिक श्रीमान् गजेन्द्र ठाकुर, मेहथ, मधुबनीक आऽ श्री नागेन्द्र कुमार झाक सहयोग एहि कार्यमे भेटल।
धर्मपत्नी श्रीमति गीता झा द्वारा देल गेल मानसिक संवलक कारणेँ हम यथा संभव एहि कार्यकेँ सम्पन्न कऽ सकलहुँ। सुधीजन त्रूटिक हेतु क्षमा करताह एहि आशाक संगे।

शाखा पुस्तक देखबाक अवगति

शाखा पुस्तकमे सभसँ पहिने -वर्णाक्रमसँ अ सँ ऐ धरिक पातमे पत्र पञ्जी अछि। जकर विषय थिक कतेक गोत्र- गोत्रक अधीन कतेक मूल, मूलक विभेद मूलग्राम ओ तकर- ताहि मूलग्रामक अछि पुरुष। पृ. १ सँ ३३८ धरि शाखाक विस्तार अछि, प्रारम्भ भेल अछि शाण्डिल्य गोत्रक गंगोली मूलसँ आऽ जकर आदि पुरुष थिकाह गंगाधर। अगलहि पीढीमे हुनक एक विवाहक दू संतान १.वीर झा आऽ २.नारायण। वीरक सन्तान पर्व पल्ली/ पवौली मूलक बीजी। आऽ नारायणक संतान आगाँ संकर्षणसँ खण्डवला (खडौरे) मूलक संस्थापक भेलाह। एहिना क्रमे प्रायः प्रल्लित मूलक बीजी पुरुष ठाम-ठाम भेटताह-
यथा पृष्ठ-संख्या १/३- गंगोली बीजी गंगाधर
पृ.सं. १/१२- एकमा वलियारु वीजी धरनीधर
पृ.सं. १/१४- वरुआली मराढ़ वीजी- दिवाकर
पृ.सं.- १/१७- मंगरौनी माण्डर वीजी त्रिनयन भट्ट इत्यादि।

शाखा पुस्तकक मुख्य विशेषता अछि- प्रयोजनक अनुसार विस्तार, पूर्वापरक ज्ञान हेतु अंकनक व्यवस्था कएल गेल अछि।
यथा पृष्ठ संख्या- ८३/०६ (पंजीकार वाला अंक) १८१-६ (श्री ठाकुरजी वाला अंक) मे
कमल मणि ठाकुरक विवाहक उल्लेख अछि- हुनका एक बालक- कुलमणि प्रसिद्ध फेकन ठाकुर। कमलमणि ठाकुरक विवाह दरिहरा मूलक रतौली शाखामे अभयनाथ झाक बालक भीखर झाक पुत्रीसँ। आब पढ़निहारकेँ समस्या हेतन्हि जे ई अभयनाथ सुत भीखरक पूर्व परिचय की छन्हि तँ हम देखैत छी जे भीखरक आगाँ मे ३८/५ लिखिकऽ हरिनन्दन झाक पिता रामचन्द्र झा छथि, जिनकर विवाहक उल्लेख ३८ पत्रक पहिल पारमे ५म पंक्ति रामचन्द्र झाक विवाह लिखल छन्हि। रामचन्द्र झाक दू गोट बालक रघुनन्दन आऽ दोसर हरिनन्दन। ई दुनू भाय खण्डबला मूलक रतिनाथ ठाकुरक दौहित्र छथि। एहि रतिनाथक परिचयक हेतु ३३॥२ अर्थात् पात संख्या ३३क दोसर पृष्ठ पर तेसर पंक्तिमे जीवे छथि खण्डबला मूलक। एहि जीवेकेँ उठाकऽ ३८ पातक पहिल पारक पाँचम पंक्तिमे अनैत छियन्हि। एहि ठाम देखैत छी जे जीवेक बालक छथि रामनाथ आऽ पाँथू। एहि पाँथूक बालक छथि रतिनाथ। एहि रतिनाथक विवाह छन्हि महिषी बुधवाल मूलक डालूक पौत्री ओऽ श्रीदत्तक पुत्रीमे। रतिनाथक विवाहक वर्णन एहि ३८ पातक पहिल पारक आठम पंक्तिमे। अस्तु एहि प्रकारेँ सभटा अंकक सहारासँ परिचय आगाँ बढ़ैत अछि। जाहि ठामसँ उद्धरण लेल जाइत छथि। ताहि ठाम नामक ऊपरमे माथपर अंक लिखल जाइत अछि। ई अंक थिक, जतऽ नाम लए जएबाक अछि ओहि पातक संख्या ओऽ पंक्ति जतऽ नाम आनल जाएत अछि। ओहि ठाम नामसँ पहिने जतऽ सँ नाम आनल गेल ओहि पत्रक संख्या ओ पंक्ति।
यदि परिचय् पूर्ण अछि तऽ नाम अनबाक प्रयोजन नहि, मात्र जतऽ पूर्व परिचय लिखल अछि, ओहि पातक संख्या ओ पंक्तिक अंक मात्र लिखि देल जाइत अछि। जेना ११४ पातक पहिल पृष्ठपर चारिम पंक्तिमे अर्थात् ११४/४ मे वलियास मूलक राव शंकरक विवाहक उल्लेख भेल अछि। हुनक विवाह छल पवौली मूलक प्रितिनाथक कन्यामे। प्रितिनाथक विवाहक वर्णन १०३/२ मे भऽ चुकल अछि। हुनक विवाह छल कुजौली मूलक गोपीनाथक कन्यामे तँ मात्र १०३/०२ लिखि परिचय पूरा कऽ देल गेल, आब जिनका परिचय बुझबाक होएतन्हि तँ ओ १०३/०२ मे जाऽ कऽ देख लेताह, अस्तु।
बहुत ठाम पूर्ण परिचय नहि रहलासँ अंकक उपयोग नहि कएल गेल अछि। एहि प्रकारेँ अंक लिखबाक प्रयोजन सिद्ध होएत अछि।
किछि सांकेतिक शब्द:
दौ- अर्थात् मातामह (नानाक नाम)
सँ- मूलक परिचायक
दौहित्र दौ (द्दौ.) माइक (मायक) नाना मातृ मातामह
सदु.- सदुपाध्याय
म.म.उ.- महामहोपाध्याय
वैया.- वैयाकरण
वै.- वैदिक
ज्यो.- ज्योतिष शास्त्रक ज्ञाता
बीजी- अर्थात् कोनो मूलक प्रारम्भिक ज्ञात पुरुष

हरिनाथ (१३००-१४०० ई.)
हरिनाथ गंगौर मूलक मैथिल ब्राह्मणक छलाह आऽ हुनकर पौत्र शिवनाथक विवाह पाली मूलक ज्योतिरीश्वर ठाकुरक पुत्रीसँ भेल छलन्हि। हिनकर विवाह गलतीसँ अपन पुरखाक वंशजसँ भऽ गेलन्हि, ताहि द्वारे हरसिंहदेव पञ्जी व्यवस्थाक प्रारम्भ केलन्हि।
हरिनाथ स्मृतिसार लिखलन्हि, जे धर्मशास्त्रक विभिन्न अध्यायपर आधारित छल। हरिनाथ संस्कारक ८ भेद करैत छथि। आचार खण्डमे संस्कारक अतिरिक्त आह्निका- द्विजक नित्यकर्म, श्राद्ध आऽ प्रायश्चितक विवरण अछि।
विवाद, व्यवहार आऽ उत्तराधिकारपर सेहो हरिनाथ लिखने छथि। ज्येष्ठ पुत्रकेँ जेठांश, स्त्रीधन, पुत्रक विभिन्न प्रकार, विभिन्न प्रकारक दण्ड इत्यादिक वर्णन हरिनाथ कएने छथि। विधिमे कोना कम्प्लेन फाइल करी, ओकर उत्तर, न्याय आऽ न्यायक आधार आऽ न्यायक पुनरीक्षण, एहि सभक चरचा अछि। विवादक १८ टा प्रकार आऽ सिविल आऽ आपराधिक विधि जे न्यायालयमे अपनाओल जाइत अछि, तकर विवरण हरिनाथ देने छथि।



संस्कृत मिथिला
-गजेन्द्र ठाकुर
लक्ष्मीधर
कृत्यकल्पतरुक लेखक लक्ष्मीधर भट्ट हृदयधरक पुत्र छलाह। हुनकर पिता राजा गोविन्दचन्द्रक दरबारमे शान्ति आऽ युद्धक मंत्री छलाह। लक्ष्मीधर मीमांसक छलाह। चण्डेश्वर, वाचस्पति आऽ रुद्रधर अपन-अपन रचनामे लक्ष्मीधरक उद्धरण प्रचुर मात्रामे देने छथि। लक्ष्मीधर एगारहम शताब्दीक दोसर भाग आऽ बारहम शताब्दीक पहिल भागमे अवतरित भेल छलाह।
लक्ष्मीधरक कृत्यकल्पतरु महाभारतक एक तिहाइ आकारक अछि आऽ जीवन जीबाक कला आऽ निअमक वर्णन करैत अछि। मैथिल-स्मृतिशास्त्रक ई श्रेष्ठतम योगदान अछि। चण्डेश्वरक विवाद रत्नाकर पूर्ण रूपसँ कृत्यकल्पतरुपर आधारित अछि, विद्यापतिक विभागसार सेहो कल्पतरुक विषयसूचीक प्रयोग करैत अछि।
लक्ष्मीधरक विचार- राजाक कार्य कानून आऽ न्याय प्रदान केनाइ छैक। व्यवहार तार्किक रूपसँ राजधर्मक रूपमे बुझल जाऽ सकैत अछि। राज्यक सात टा पारम्परिक तत्त्वक सेहो चरचा अबैत अछि। राजाक कर्तव्यक छह प्रकारक षडगुण्यम केर सेहो चर्च अछि। राजशाहीकेँ ओऽ सरकारक एकमात्र विकल्प कहैत छथि। मुदा लक्ष्मीधर राजाक दैविक उत्पत्तिमे विश्वास नहि करैत छथि। राजा जनताक ट्रस्टी अछि, न्यायी अछि आऽ धर्मक अनुसार कार्य करैत अछि। मुदा राजाकेँ धार्मिक-कानून बदलबाक कोनो अधिकार नहि छल। सर्वभौमिकताक अभिषेकक बाद राजाक शिक्षा-दीक्षा आऽ जनताक प्रति आदरपर ओऽ बहुत जोड़ देलन्हि। लक्ष्मीधर राजकर्मचारीक आचार-संहितापर बड़ जोर दैत छथि। दुर्गक विवरण ओऽ राजमहल आऽ किलाक रूपमे करैत छथि।

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गोविन्ददास (१५७०-१६४०) शब्दावली (साभार-गोविन्ददास-भजनावली, सम्पादक गोविन्द झा)
अंगुलिवलय- औँठी
अंचल- आँचर;कोर
अकरुण- निर्दय
अकाज- विघटन
अगुसरि- आगाँ बढ़ि
अछोरब- त्यागब
अतनु- कामदेव
अतसी- तीसी
अनंग- कामदेव
अनत- अन्यत्र
अनल- आगि
अनुखन- हरदम
अनुगत- सेवक
अनुबन्ध- संगति
अनुसय- पश्चात्ताप
अनुसरब- पाछु चलब
अन्तराय- विघ्न
अपरूप- अपूर्व
अबगाह- पैसब
अवतंस- मनटीका
अवधान- होस
अवनत- झुकल
अवश- विवश, बाध्य
अविरत- लगातार
अविरल- घनगर
अविराम- निरन्तर
अबुध- बकलेल
अभागि- अभाग्य
अभिसार- प्रेमीसँ मिलए जाएब
अमरतरु- कल्पवृक्ष
अमिअ- अमृत
अम्बर- आकाश, वस्त्र
अरविन्द- कमल
अरुणिम- लाल, ललाओन
अरुण-लाल
अलक- लट
तिलक- पसाहिन
अलखित- अलक्षित, अनचोक
अलस- अलसाएल, शिथिल
अलि- भ्रमर
असार- आसार, वर्षा
अहनिस- दिनराति
अहेर- आखेटक, शिकारी
आकुर- ओझराएल; घबराएल
आगर- आकर, भंडार, खजाना
आतप- रौद
आनआन- अन्योन्य, परस्पर
आनन- मुख, चेहरा
आमोद- सौरभ
आरकत- आरत, आलता
आरति- आर्ति, आतुरता
आसोआस- आश्वास
इन्द्रफाँस- एक प्रकारक बन्धन
इन्दु- चन्द्रमा
इषदवलोकन- अझकहि देखब
उजागरि- जागरण
उजोल- प्रकाश
उतपत- उत्तप्त, धीपल
उतरोल- कोलाहल
उर- हृदय, छाती, स्तन
उरु- जाँघ
उरोज- स्तन
उलसित- उल्लसित
ऊजर- उज्जवल
कंज- कमल
कंटक- काँट
कटाख- कटाक्ष, कनखी
कनकाचल- सोनाक पर्वत
कनय- कनक, सोन
कपाट- केबाड़
कबरी- खोपा
कमान- धनुष
कम्बु- शंख
करहाथ- सूढ़, हाथ
करतल- तरहत्थी
करतँह- करैत छथि
करयुग- जोड़ल हाथ
कल- शान्ति; मधुर (ध्वनि)
कलप- कल्प
कलप तरु- पारिजात
कलरव- घोल
कलहंस- एक पक्षी
कलावती- रसिक रमणी
कल्पतरु- पारिजात
कहतहँ- कहैत छथि
कांचन- सोनाक
कातर- दीन
कान- कृष्ण; कार्ण
कानन- वन
काँबलि- साँगि
कामिनि- रमणी
कालिन्दी- यमुना नदी
कालिय- एक नाग जकरा कृष्ण नथलनि
काहिनी- कथा
किंकिर- चाकर, सेवक
किंकिणि- घुघरू
किसलय- नब पात, पल्लव
कुंकुम- सौन्दर्य प्रसाधनक लाल लेप वा चूर्ण
कंटक- काँट
कुंचित- संकुचल
कुंजर- हाथी
कुच- स्तन
कुन्दल- लट
कुन्दल- खराजल, सोधल
कुवलय- नील कमल
कुमुद- श्वेत कमल, भेँट
कुमुदिनि- श्वेत कमलक लता
कुसुम- फूल
कुसुमबान कामदेव
कुसुमसर- कामदेव
कुसुमसायक- कामदेव
कुहू- अमावस्या
कुल- तीर
केलि- काम-विलास
केसरि- सिंह
कोक- एक पक्षी, चकबा
खचित- खोँसल
खर- तेज, तीक्ष्ण
खरतर- तीक्ष्णतर
गंड- गाल; हाथीक मस्तक
गगन- आकाश
गज- हाथी
गजमोति- ओ मोति जे हाथीक मस्तिष्कमे रहैछ
गणक- जोतखी
गरगर- गद् गद, विह्वल
गरब- घमंड
गरल- विष
गरुअ- भारी
गलित- नमड़ल
गहन- नव
गहीन- गँहीर
गात- देह
गाहनी- प्रवेश कएनिहारि
गिम- ग्रीवा, गरदनि
गुनगाम- गुणग्राम, गुणावली
गुनि- बिचारि, सोचि
गुहक- ओझा-गुनी
गेह- घर
गैरिक- गेरु
गोए –छिपाए
गोचर- बाध
ग्रीम-ग्रीवा, गरदनि
धन- प्रबल,तेज ;अविरल, लगलग, लगले लागल
घनरस- जल; गाढ़ रस
घनसार- कर्पूर
घाघर- झाँप
घामकिरन- सूर्य
घुमाएब- सूतब
घूम- निद्रा
घोर- विकट
घोस- गोप
चकोर- एक पक्षी
चतुरानन- ब्रह्मा
चन्द्रक- मयूरक पाँखि
चरमाचल- अस्ताचल
चलतँह- चलैत अछि
चाँचर- चञ्चल
चारु- सुन्दर
चाह- निहारनाइ, अवलोकन
चाहनी- अवलोकन
चाहब- निहारब
चिबुक- दाढ़ी
चिर- दीर्घकाल
चीतपुतरि- चित्रमे लिखल मूर्ति
चूड़- शिखर, जूड़ा
चूड़क- पुरुषक खोपा
चेतन- चैतन्य, होस
चोआ- धूमनक तेल जे सुगन्धित होइत अछि
छन्द- गति, प्रवृत्ति, इच्छा; शोभा
छाँद- शोभा
जघन- जाँघ
जदुपति- कृष्ण
जर- ज्वर, सन्ताप
जलजात- कमल
जसु- जकर
जानु- ठेहुन
जाबक- आरत, आलता
जाम- याम, पहर
जामिनि- राति
जामुन- यमुना
जूथ- दल
जूथि- जूही फूल
जोर- युगल, जोड़ा
जौबति- युवती
झंक- दीन वचन, दुःख
झंझर- झटक, वृष्टि
झपान- खटुली
झष- माछ
झामर- श्यामल, कारी
झिल्ली- एक कीड़ा
झूर- विखिन्न
टलमल- अस्थिर
ठान- स्थान
डमक- डम्फा
डम्बर- आटोप
ढरढर- निरन्तर (प्रवाह)
ढलमल- डगमग
तटिनी- नदी
तड़ितलता- बिजुलोका
तन्त्री- वीणा
तपन- सूर्य
तमाल- एकवृक्ष
तरंगिनी- नदी
तरल- द्रुत
तरुकोर- गाछक स्तंभ
तरुन- टटका; युवा
तरुणी- युवती
ताटंक- तड़का, कानक एक गहना
ताड़- एक गहना
तापनि- यमुना
ताम्बूल- पान
तार- तारा
तिआस- पिपासा
तिमित- स्थिर
तिमित- अन्धकार
तिरिवध- नारीक हत्याक पाप
तिलतिल- छन-छन
तुंग- ऊँच
तमुल- तेज (ध्वनि)
तुषदह- भूसाक आगि
तुहिनकर- चन्द्रमा
तूण- तरकस
तोरित- तुरन्त, शीघ्र
त्रिवलि- नारीक पेटपरक सिकुड़न
त्रिभंग- नाचक एक मुद्रा
दन्ती- हाथी
दन्द- द्वन्द, भिड़न्त; झगड़ा; चिन्ता
दरस- दर्शन
दलितांजन- एक प्रकारक अंजन
दसन- दाँत
दसबान- दस बेर गलाए शुद्ध कएल सोन
दहन- आगि
दादुर- बेङ
दाम- डोरी
दामिनि- बिजुली
दारिद- दरिद्र
दारुन- भयानक
दिगम्बर- नाङट; शिव
दिठि- दृष्टि, नजरि
दिनमणि- सूर्य
दीगभरम- दिग् भ्रम
दीघ- दीर्घ, पैघ
दुरगह- दुर्धारणा, भ्रान्ति
दुरदिन- अधलाह दिन; वर्षाबाला दिन।
दुलह- दुर्लभ
दैव- जोतखी
दोषाकर- चन्द्रमा; अनेक दोषबाला (व्यक्ति)
द्विजराज- चन्द्रमा
धनि- धन्य; सजनी, नारीक शिष्ट सम्बोधन
छन्द- चिन्ता
धबल- उज्जर
धवलिम- उज्जर
धरनि- धरणी, पृथ्वी
धराधर- पर्वत
धाब- दौड़नाइ
धूसर- भुल रंग
नखपद- नखसँ स्तनपर कएल चिन्ह
नखर- नह
नखरंजनि- नहरनी
नखरेख- नखच्छद
नन्दन- पुत्र
नवल- नूतन
नबेलि- नवीना
नभ- आकाश
नयान- नयन, आँखि
नलिनी- कमल-लता
नागदमन- कालियनागकेँ नथनिहार (कृष्ण)
नागर- रसिक (पुरुष)
नाह- नाथ, पति
निअ- निज, अपन
निअर- निकट
निकर- समूह, बहुत्वसूचक
निकरुन- निष्करुण, निर्दय
निकुंज- लतावृक्षसँ घैरल स्थान
निकेतन- घर
निगमन- निमग्न, डूबल
निचोर- चोली
निछोरि- छीन (लेब)
निज- अपन
नितम्बिनि- पुष्ट नितम्ब वाली सुन्दरी
निदान- दुरवस्था, दुखद स्थिति
निधुवन- रति, सम्भोग
निनाद- ध्वनि
निविड़- घनगर, गहन
निभृत- छिपल
निमिष- छन
निरखब- निहारब
निरुपम- अनुपम, अपूर्व
निसान- ध्वनि
निसित- पिजाओल, तेज
नीति- नित्य
नीप- कदम्ब
नीवी- जारबन्द
नीलिम- नील रंगक
नीर- पानि
नीरद- मेघ
नीलमणि- नीलम
पउरब- हेलिकेँ पार करब
पखान- पाषाण, पाथर
पखावज- एक बाजा
पतनि- चादर
पद- पाएर
पदतल- तरबा
पदुमनि- कमललता; उत्कृष्ट,नायिका
पन- पण, पारिश्रमिक
पवार- प्रवाल, मूँगा
पय- पाएर
पयान- प्रयाण, प्रस्थान
पयोधर- मेघ;स्तन
परजंक- पर्यंक, पलंग
परतेक- प्रत्यक्ष
परबोधब- बौँसब
परमाद- प्रमाद, चूक
परमान- प्रमाण; साक्षी
परस- स्पर्श
परसंग- चर्चा
परिबादसि- आरोपह
परिमल- सौरभ
परिरम्भ- आलिंगन
परिहार- त्याग
पहु- प्रभू, स्वामी
पात- जयपत्र, डिक्री
पादुक- खड़ाओँ
पानि- हाथ
पिक- कोइली
पीछ- मयूरक पाँखि
पीन- पुष्ट
पुनफल- पुण्य़क सुपरिणाम
पुलक- रोमांच
पुलकायित- रोमांचित
पुलकित- रोमांचित
फटिक- स्फटिक, एक प्रकारक पाथर
फनिमनि- ओ मणि जे नागक फेँच मे उत्पन्न कहल जाइछ।
फागु- अबीर
फुलधनु- कामदेव
फुलसर- कामदेव
फूर- सत्य; मन मे आएब
फोइ- खोलिकेँ
बंजुल- एक लता
बकुल- एक फूल, भालसरी
बजर- वज्र
बदरिकोर- बैरक गाछक जड़ि
बदि- बूझिकेँ
बन्धुक- मधुरी
वयन- वचन, बोल
वलय- कगना, माठा, औँठी
बलाकिनी- बकक पाँती
वलित- वेष्टित
वल्लरि- लता
वसन- वस्त्र, परिधान
बहुवल्लभ- बहुत नारीसँ प्रेम कएनिहार
बाए- वायु
बात- हवा
वाद- झगड़ा
बादर- मेघ
बानि- वाणी
वारि- जल
वासित- सुरभित
विकच- विकसित, फुलाएल
विगलित- खसल, नमड़ल
बिछेद- वियोग
बिजन- बीअनि, पंखा
वितान- चनबा
बिथार- विस्तार
बिदग्ध- रसिक
विधु- चन्द्रमा
विधुन्तुद- राहु
विपथ- कुमार्ग
विपाक- कुफल
विपिन- वन
विलुलित- लटकल, डोलैत
विलोकन- नजरि
विशिख- बाण
विषम- विकट, दुखद
विहंग- पक्षी
बिहि- विधाता
बीजन- बीअनि, पंखा
बीजुरि- बिजलोका
बेणि- जूटी
बेल- तट
बेलि- बेर
बेश- सिङार, प्रसाधन
भंग- भंगिमा
भनतँह- कहैत छथि
भव- संसार
भमइ- भ्रमण करैछ
भाबिनि- कामिनी, भद्र महिलाक सम्बोधन
भाल- ललाट
भास- शोभा पाएब
भीतपुतरि- भित्तिमे बनाओल मूर्ति
भुज- बाँहि
भुजंग- साप
भुजमास- पाँज
भूरि- बहुत
भूषित- अलंकृत
भोर- भ्रान्ति; सुधिहीन
मंजुल- सुन्दर
मगन- मग्न, डूबल
मणि- बीचमे छेदबाला रत्न
मणिमन्त्र- जड़ी-बूटी आ झाड़फूक
मत- मत्त, आकुल
मधु- वसन्त
मधुकर- भ्रमर
मधुप- भ्रमर
मधुपुर- मथुरा
मधुरिपु- कृष्ण, मधूसूदन
मधुरिम- मधुर, मनोरम
मनमथ- कामदेव; मनकेँ मथनिहार
मनसिज- कामदेव
मनोभव- कामदेव
मन्थर- मन्द
मन्दिर- घर, निवासगृह
मरकत- एक रत्न
मरजाद- सीमा
मरम- हृदय, अन्तर्मन
मराल- हंस
मलयज- चन्दन
मल्लि- बेली फूल
मसृण- चिक्कन, कोमल
महि- पृथ्वी
महितल- धरती
महिपंक- कादो
मही- धरती
माधवि- एक फूल
मान- नारीक स्वाभिमान
मानि- मान्य
मानिनि- मानवती
मारग- मार्ग, बाट
मालति- एक फूल
मिछहि- फुसिए
मिहिरजा- यमुना
मीन- माछ
मुकुटमणि- श्रेष्ठ
मुकुर- दर्पण
मुकुलित- कोँढिआएल, संकुचित
मुखर- अधिक बजनिहार
मुदिर- मेघ
मुगुधि- मोहित, अल्पमति
मुन्दरी- मुद्रिका, औँठी
मृगयति- जोहब
मृदु- कोमल
मेह- मेघ
मोतिम- मोतिक बनल
मौलि- शिखर, सिर
रंग- केलिविलास
रंगिनि- विलासिनी
रजनीकर- चन्द्रमा
रणित- झमझम ध्वनि
रत- प्रेमासक्त
रति- सम्भोग; कामदेवक स्त्री
रव- शब्द
रबाब- एक बाजा
रभस- हठकेलि
रसना- जीह; मेखला
रसनारोचन- उत्कृष्ट रसक कारणेँ रुचिकर
रसबति- रसिक (रमणी)
रसायन- रसक भंडार; सुखद प्रभावबाला
रसाल- रसयुक्त, रसिक
राइ- राधिका
राग- आसक्ति, प्रेम
रातुल- लाल
राव- ध्वनि
राही- राधिका
रितुपति- वसन्त
रुचि- अनुराग
रुचिर- प्रिय, आनन्ददायक
रेणु- धूरा, गरदा
रेह- रेखा
रोचन- रुचिकर, प्रिय
रोमाबलि- नारीक नाभिलगक रोइआँ
रोष- तामस
ललित- सुन्दर
लाज- लाबा; लज्जा, संकोच
लाबनि- लावण्य
लालस- लालच लोभ
लोचन- आँखि
लोल- चंचल
संकेत- इशारा, इंगित
संघात- ढेर
संघाति- मेल
संवरु- समेटक
सचकित- विस्मित
सजल- नोराएल, भीजल
सति- सत्य
सन्धान- निशाना
सफरी- पोठी माछ
समागम- संगम
समाधि- ध्यान लगाएब
समीर- वायु
सयान- सज्ञान- बुधिआर
सरबस- सर्वस्व
सरम- श्रान्ति
सरसिज- कमल
सरूप- सत्य
सरोरुह- कमल
ससधर- चन्द्रमा
साखि- साक्षी, प्रत्यक्षद्रष्टा
साति- शास्ति, सजाए, कुपरिणाम
साद- शब्द, साध, मनोरथ
साध- मनोरथ, कामन
सामर- शामल, श्यामवर्ण
सारि- मएना
सारी- मएना
शिखंड- मयूरक पाँखि
शिखंडक- मयूरक पाँखि
शिखिचचन्द्रक- मयूरक पाँखि
सिरिस- सिरीष वृक्ष
सिसिर- शिशिर ऋतु
सुधाकर- चन्द्रमा
सुधीर- स्थिर, गम्भीर
सुरतरु- पारिजात वृक्ष
सुरपति- इन्द्र
सीकर- फुहार, जलकण
शेखर- शीर्ष स्थान
सेल- शल्य, आन्तरिक वेदना
सोहन- शोभन, सुरूप
सोहागि- सौभाग्य
स्रवन- कान
श्रमजल- धाम
श्रील- श्रीयुत
श्रुति- कान
हरि- सिंह, कृष्ण
हाम- हम
हिअ- हृदय, उर
हिमकर- चन्द्रमा
हुतास- अग्नि
हेम- सोन
हेमन्त- पाँचम ऋतु, अगहन-पूस
बद्रीनाथ झा शब्दावली
मिलिन- मधुमक्खी, भौरा
रसाल- आमक गाछ, कुसियार
अतन्द्र- सावधान, जागरूक
खद्योत- भगजोगनी
दुर्वार- कठिन
यति- प्रतिबंध, जतेक बेर
अचलसेतु- अदृष्टलेख
विपिन- जंगल
तरणि- नाओ
अवाम- दहिन
गरुड़केतु- विष्णु
बौड़ि- उन्मत्त
तुषार- शीतल
ब्रह्मर्षिसुत- कश्यप
वारुणी- पश्चिम दिशा
कश्यप- मुनि ओ मद्यप
प्रतीची- पश्चिम दिशा
कुलाय- खोंता
साँझ- समाधि वा समुच्चय
जीव-अभिदान- नाम
कमान- धनुष
विधु- चन्द्रमा
हय- थोड़ा
नमि- नमस्कार
नीराजन- प्रातःकालक आरती
मानर- मृदङ
काहल- वाद्यविशेष
चतुविध- आङ्गिक, वाचिक, सात्विक, आहार्य
उड़ुगण- तारा
दैवज्ञ- ज्योतिषी
पाटल- लाल
पाटल- व्याप्त भेल
अविद्या- अज्ञान
अधित्यका- पर्वतक ऊपरक देश
कुशण्डिका- वेदिसम्मार्जनादि
मेधा- धारणावती बुद्धि
सम्भार- सामग्री
कज्जल- कारी (काजर)
भूयसी- एक प्रकारक दक्षिणा
दीठि- दृष्टि
नृपदार- रानी
परिचार- परिचर्या
फुलहरा- कोढ़िलाक झाड़
राजीव- कमल
मुदवारि- आनन्दक नोर
तृष- तृष्णा
पाञ्चजन्य- शङ्ख
जगत्ताताक- विष्णु
प्रत्यभिवादन- प्रतिप्रणाम
जूटिका- शिखा
गोए- नुकाए
गुरु-सन्तोख- दक्षिणाद्रव्य
अवसित- पूर्ण
श्रुतिवेध- कर्णवेध
प्रभाक- प्रतिभा
गुरु-शुद्धि- बृहस्पतिक शुद्धि
औड़ि- आग्रहविशेष
शिविका- पालकी
पूर्वाङ्ग-कृत्य- मातृकापूजादि
अदम्भ- निश्छल
वैजयन्त- इन्द्रक कोठा
कौशेय वसन- पाटक वस्त्र
भक्ष्य चतुर्विध- भक्ष्य-भात आदि भोज्य लाबाआदि, लेह्य चटनी आदि, चोस्य आमाअदि
नीवार- ओइरी
अनुताप- पश्चाताप
बद्धकर- कृपण
विमति- विरक्ति
वैमत्य- मतभेद
प्रसाद- प्रसन्नता
अनुरोध- रोच
आर्य- श्रेष्ठ
जाचल- परीक्षित
सुभगप्रक्रिय- सुयश सुव्यवहार
अचलेश- भूपति
बिहान- प्रभात
पट्टपटसार- उत्तम पाटक वस्त्र
विभूतिवत- ऐश्वर्य
एकतान- एकाग्र
वनी- वानप्रस्थ
और्ध्वदैहिक- परलोकोपकारक श्राद्ध
भोज-ओज- कृपणता
चञ्चरीक- भ्रमर
सोहल- शोभित भेल
छान- कलङ्क
अदक्षिण- प्रतिकूल
इन्दीवर- नील कमल
कीर- सूगा
अकानल- सूगा
अकानल- सुनल
पोषक-द्वेषक- पोसनिहार (कौआक) द्वेषी
श्मश्रु- दाढ़ी-मोछ
शैवाल-लतिका- सेमारक लत्ती
कुण्डलित- लपेटल
कर्णिकार- कनैल
ग्रीवा- गरदनि
इन्द्रायुध- वज्र
तमाल-साल- साँखु
शम्पा- विद्युल्लता
सहकार- आम
वकुलमुकुल- भालसरीक कली
पखान- पाथर
दमनक- दोनाफूल
अंसयुगल- दुहूस्कन्ध
अश्मसार- लोह
मणिबन्ध- पहुँचा
अबलासव- विरोध
दुहिण- ब्रह्मा
जम्भरिपु- इन्द्र
ऊरु- जाँघ
आरत- विरोध
नीरज- जलमे अनुत्पन्न, धुलि रहित, विरोध
इलातनय- पुरुरवा
सुरवैद्ययुगल- दुहू अश्विनीकुमार
क्षितिहरिहम- पृथ्वीन्द्र
परपुष्ट- कोयल, कोकिल, पसान्तरमे परिपुष्टा वैश्या
मधुप- भ्रमर, मद्यप
आतङ्करङ्क- निर्भय
काव्यक- शुकक
मधुभरि- बसन्तपर्यन्त
सुरभिमग- कामधेनुक मार्ग
अनीति- अतिवृष्ट्यादिरहित
शिक्षालोक- प्रकाश
तास्रव- उच्चध्वनि
जनपद- अपन देश
साभिनिवेश- आग्रहपूर्वक
धारणा-ध्याण- अष्टाङ्गयोगक छठम ओ सातम अङ्ग
प्रकृति- स्वभाव, प्रजा
पीयूष-यूष- अमृतसार
मार्तण्ड- सूर्य
सत्वक- सत्वगुण
सौम्य- बुधग्रह
वाक्पति- बृहस्पति
रवि-कल्प- सूर्य-सदृश
याचना-परायण- याचक
अभियोगी- अभियोग कएनिहार
कैरवामोद- कुमुदक सौरभ, शत्रुक आनन्द
अनुदार- स्त्रीसँ अनुगत
पुत्रेष्टिक- पुत्रोत्पादक यज्ञ
एकावली- मोतीक माला
मत्सरिता- अन्यशुभद्वेष
लालनसुहिता- लालने तृप्त वा अनुकूल
परिणाह- वृद्धि
प्रमत्त- असावधान वा उन्मत्त
बालवशामे- नवीन हथिनी
आविल- पङ्किल
अर्धचन्द्र- चन्द्रक ओ गड़हत्था
शिखिकलाप- मयूरक पिच्छ, विषम
बलाहक- मेघ
सरणी- आकाश
जड़भाव- शैत्य वा जलत्व
मेचक- नील
द्विरद- हाथी
धम्मिल्ल- केशपाश
विलक्ष- लज्जित
पथिक-चक्र- चक्रबाक ओ समुदाय
काली- कारीरङ्ग
तारा- आँखिक पुतड़ी
काली- प्रथमा महाविद्या
तारा- द्वितीया
चतुश्रुति- श्रुतिवेद, पढ़निहार ब्रह्मा
श्रुति- कान, सुनब
विश्रुति- सिद्धि
छीजक- नष्ट होएबाक
कलकण्ठी- कोकिला
तप्त-तपनीय- सोना, स्वर्ण
चिवुक- दाढ़ी
परिस्फुर- चञ्चल
लेखा- गणना
जूझल- लड़ल
महायति- अतिविस्तीर्ण
आहित- स्थापित
स्तूप- माटिक ढेरी
लिकुचक- बड़हड़क
श्रीफल-मद- विल्वफलक गर्व
गर्त- खत्ता
कुलाल- कुम्हार
नाभिभव- ब्रह्मा
शारदा- अदृश्या सरस्वती नदी (अलखरूप शारदा)
त्रिदिवस सारिणी- गङ्गा
वली- उदररेखा (तीनिवली)
बली- बलवान
पाटच्चर- चोर
केहरि- सिंह
नितम्बक- पर्वतक मध्य भागक
विधिओजक- प्रतापक
कृष-नीच- नीचाँदिसिसँ क्रमहि पातर (जङ्घा-क्रम-कृष-नीच)
वेत्र-दण्ड- सोनाक अधिकार दण्ड
हंसक- नुपूर
दश-शशधर- नखरूप-दशचन्द्रक
लाजें बीतल- संकुचित भेल
अनृत-दूषण-कृपाणी- मिथ्यादोषक छुरी जेकाँ नाशक
कथाऽवशेष- अवशिष्ट वक्तव्य
हर्ष-नृत्त- गात्रविक्षेप
सभीक- भीत
सागर-परिपन्थी- सागरक प्रतिस्पर्धा कएनिहार
सम्पुटित- सङ्कुचित
विगेय- निन्दनीय
विजीहीर्षा- विहारक इच्छा
दलतर- पातक नीचाँ
अतिसुकवि- ऊह- सुकवि तर्कक अगोचर
कुवलय-रम्भा-समान- पृथ्वी-मण्डलक रम्भा सदृश
देवाङ्गनीय- देवाङ्गना-सम्बन्धी
रास- मण्डलाकार नृत्य
श्यामा- प्रियङ्गु
व्यामोहक- सम्मोहक
काल- यमराज
सारग्ङ- हरिण
कृतयुग- सत्ययुग
रण-एकतान- युद्धमे सर्वदा विजय पओनिहार
नृपति-पताकिनीक- राजसेनाक
विकटप्रतीक- दारुणाकार
पुण्डरीक- बाघ
दिनेन्दु-दीन- दिनक चन्द्र सदृश मलिन
सर्वसहाक- पृथ्वीक
लीन- प्रलयमे प्राप्त
विलीन- विलाएल
गोए- राखि
तदनुसार- पाछाँ
विदग्धताक- रसिकताक
गरुअ- पैघ
भूरमाक- भूतल लक्ष्मीक
शर्म- सुख
दलितपांशु- निष्पाप वा निर्दोष
भवितव्यवश्य- भाग्याधीन
अननुरूप- प्रतिकूल
प्रणिधानलीन- ध्यानमग्न
द्विजदत्त- सिद्धब्राह्मणसँ देल
दत्त-प्रदत्त- दत्तत्रेयसँ देल
उदेष- अन्वेषण
स्वरति- स्वविषयक प्रेम
धैर्य-कदर्य- अधीर
चरमदशाक- मृत्युक
अवगाह- आलोड़न
ओज- तेज
यशस्य- यशोजनक
अलेश- निश्छल
विजिगीषा- विजयक इच्छा
पुटपाक- दुइ सरबाक सम्पुटमे वस्तुकेँ मूनि पक
हयग्रीव- राक्षस जेकरा विष्णु मारल
अनन्त- अन्त-रहित
व्यपाय- परिपूर्ण
भङ्ग- पराजय
सङ्गर- युद्ध
तनु- कोमल
आश्रित-दुर्ग- दुर्गोपासक
दुर्ग- दैत्यसँ सेवित दुर्गम
सर्वसहा- पृथ्वी, तितिक्षा, सभ सहनिहारि पृथ्वी
मनु- मन्त्र
शिव- कल्याणकारक
कूर्च- ह्रीँ
शिखिजाया- स्वाहा
आखर- ह्रीँ गौरि! रुद्रदयिते! योगेश्वरी। हूँ फट स्वाहा
अन्वर्थाख्य- यथार्थनामा
सिद्धि- सिद्धिकेँ प्राप्त, सम्पन्न
ब्राह्मण-भोज-पञ्चाङ्ग पुरश्चरण (तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोज नृसोम)
वैन्य- राजा पृथु
फलक- ढाल
शिशुमार- सोँस
धन-शाद- पाँक
क्षेपणी- करुआर
पटमण्डप- तम्बू
यादस्स्वन- जलजन्तुक शब्द
पूत- पवित्र
द्विरदकाँ- हाथीकेँ
दानजल- मदजल
मन-अवसाद- दुःख
भव्य- शुभ, सुन्दर
आयुधराजि- चञ्चला, विद्युत
चैत्य- प्रसिद्ध गृह
दुर्ग- किला
सुचतुष्पश- चौबट्टी
अहम्पूविका- हम पहिने तँ हम पहिने एहि स्पर्धासँ दौगब
पवि- वज्र
अर्थ- प्रयोजन
प्रभूत- बहुत
लाघव- शीघ्रता
दनुज-तनुज- शरीरमे उत्पन्न
अर्भ- नेना
सुरसरणी- आकाश
शारिका- मएना
मेकल- नर्मदा नदीक उत्पादक पर्वत
परिपाटी- परम्परा
उत्कोच- घूस
वितान- विस्तार
प्रकोष्ठ- पहुँचा
अङ्गुरीय- अङ्गुठी
केतन- ध्वजा
निर्मम- ममताहीन
उदिखर- उदित
दीधिति- चन्द्रकिरण
दक्षिण- अनेकमे समानानुरागी ओ दहिन
मत्सरी- द्वेषी
विनिपातोन्मुख- अवनति दिस प्रवृत्त
मधु-सञ्जेँ- नामसँ
नृपदारक- राजकन्या
प्रमोद-निबन्धन- कारण
वन्दी- कैदी
पुरुषार्थ चतुष्ट्य- धर्म, धन, काम ओ मोक्ष
दीधिति-माली- सूर्य
नरनाथ- परिकर
औरस-सुत- अपनासँ धर्मपत्नीमे उत्पन्न पुत्र
चक्रधर- नारायण
ईषत्कर- सुकर
कुलिशायुधसँ- इन्द्रसँ
प्रमा-सालित- यथार्थज्ञानसँ स्फीत
उक्ति-प्रगल्भ- बजबामे प्रौढ़
शमन- यमराज
विधेय- कर्तव्य
दुर्विपाक- अधलाह फल
सङ्कल्प-कल्पना- मानस कर्मक रचना
स्तम्भित- जड़ीभूत
सकल-करण-परिवारक- इन्द्रिय वर्गक
भव-झरिणी- संसार नदी
शशिकान्त- चन्द्रकान्त मणि
रजनिकर- रुचिएँ- कान्तिएँ
निष्कपट- रुचिएँ-प्रीतिएँ
द्रुत- शीघ्र
विद्रुत- पघिलल
मानसिक- व्यतिक्रमहुक-मानस-व्यभिचारहुक
उन्मिषित- बढ़ल
प्रकृतिस्थ- चैतन्य-युक्त
कालासुर- कालकेतु राक्षस
अमान- अपरिमित
अमानव- अलौकिक
कुरङ्गित- हरिण जेकाँ उछलैत
विक्रम- विलक्षण वा विगत छैक क्रम जाहिमे
पञ्चानन- सिंह
आरभटी- आडम्बरपूर्ण चेष्टा
दुरभिसन्धि- दुराशय
कान्दिशीक- भयसँ पढ़ैनिहार
अनाथ- विधवा
धृष्ट- प्रौढ़
निकृष्ट- नीच, छोट
उपरोधन- धैरव
अनारम्भ- आरम्भ नहि करब
भानुमान- सूर्य
कृकलाश- गिरगिट
सन्नाह- युद्धक उद्योग
मधु-मधुरिमार्ह- द्राक्षासदृश-मधुर सम मधुर, दाखसन
सर्वज्ञम्मन्य- अपनाकेँ सर्वज्ञ माननिहार
वीरमानी- अपनाकेँ वीर माननिहार
नृशंस- क्रूर (वातक)
अपलापपरा- लाथ करबामे तत्पर
प्राथमिक- पहिलेबेरुक
प्रकार- दिवारक
अज- बत्तू
कुरङ्ग- हरिण
गवय- गो सदृश नीलगाय
शार्दूल- बाघ
साम्हर- हरिणसन जन्तु
भूतनाथ- महादेव
प्रमथराजि- गणसमूह
शृङ्गी- शृङ्गवाला
जटी- जटाधारी
वारणरद- हाथीकसन दाँतबाला
पुच्छी- नाङ्गरि
कृत्तिपटी- बाघक चाम पहिरनिहार
चत्वर- चट्टान
भीरुभीमा- भीरुक भयङ्कर
पटल- पटि गेल
जन्य- युद्ध
राजन्य- क्षत्रिय
भिन्दिपाल- ढेलमासु सन गुल्ली फेंकबाक अस्त्र
तोमर- मन्थन दण्डसन अस्त्र
कृपाण- तरुआरि
परशु- फरुसा
असि धेनु- खाँड़, छूड़ा
भुशुण्डी- अग्निप्रधान अस्त्र
परिध- हथौड़ी
दनुजभुवन- पाताल
जलद-छाया- मेघक छाहरि,तत्सदृश अस्थिर
मृत्युशक्ति-उत्क्रान्तिदा- मृत्युकेँ ’उत्क्रान्तिदा’ नामक शक्ति छन्हि जाहिसँ जीवोत्क्रमण करैत छथि
वृन्दारक-वृन्दक- देवसमूहक
निजचमू- सेना
पताल- अतल, वितल, सुतल,तलातल,महातल, रसातल,पाताल
सन्देश- संवाद (समाद)
त्रिदिवहुँ- स्वर्गहुँ
प्रत्यूष- प्रातः काल
दानव-भोगिनी- राजाक सामान्य स्त्री
अभ्यास- योगाभ्यास
क्लेश- अविद्या-स्मिता-राग-द्वेष ओ अभिनिवेश
जनि- जन्म
भोगभू- भोगस्थान वा भूमि
भुजगभुवन- पाताल
नाक- स्वर्ग
सहस्रार- शिर स्थित सहस्रदल- कमलाकार चक्र
निर्मन्तु- निरपराध (निर्दोष)
फेरि- घुमाए
फेरि- पुनि
अन्तराय- विघ्न
याचकपटलीकल्प- याचकसमूहजेकाँ
रहस्योद्भेदसँ- गुप्तप्रीतिक प्रकाशसँ
लोकपति- नरेश
मध्यमलोक- मर्त्यभुवन
अधोभुवन- पाताल
नररिक्त- मनुष्यसँ रहित
तूर्ण- शीघ्र
उद्देश- उच्चारण
उपेन्द्र- वामन भगवान्
कन्याक- शुक्रक पुत्री देवयानीक
अर्थना- याचना
सपरिकर- परिवार परिजन सहित
पुरुषसूक्त- “ओँ सहस्रशीर्षा” इत्यादि सोड़ह ऋचा
दुइ- नारायण ओ तुर्वसु (निज दुइ बापक परिचय)
प्रतिग्रह- दान लेब
लाजहोम- लज्जाक हवन
लाजहोममे- लावासँ हवनमे
प्रणयकोपक- मानक
अपसारण-गति- हटएबाक उपाय
परमाणु- सूर्यक प्रभामे दृश्य रेणुक छठम भाग
द्वयणुक- दू परमाणु
पूगीफल- सुपारी
व्यङ्गयवचन- व्यङ्ग्यार्थ-बोधक वचन
दिवसचतुष्टय- चारि
गानचातुरी-विवरण- प्रकाशन
कान-सुधारस-वितरण- दान
चारिमशुचि- चारुतासँ भूषित
पाँकल- पाँकमे लागल
निमीलित- सङ्कुचित
कीलित- बद्ध (पीड़ित)
मदन-रुजा- रोग
निर्वांप- शान्ति करब
समाजित- पूजित
उद्भेद- विकास
चलदल- पीपड़
मन्मथ-घर्षण- प्रगल्भता
कल्पकल्प- कल्पसदृश
आशा-दिशा
विदग्ध- विकल, रसिक
सुरतवितान- क्रीड़ा-कलाप
वितानल- विस्तीर्ण कएल
संभोग- शृंगारक पूर्वाङ्ग वा केलि
विप्रलम्भ- शृङ्गारक उत्तराङ्ग वा विरह
अवसित- समाप्त
विधुर- विरहित (दीपक-विधु-विधुर)
अनवम- निर्दोष
विरस- निःस्पृह (विमुख)
पञ्चयज्ञ-ब्रह्मयज्ञ(वेद अध्ययन-अध्यापन),पितृयज्ञ (पितरक तर्पण ओ नित्यश्राद्ध),देवयज्ञ(हवन),भूतयज्ञ(वैश्वदेववलि), नृपज्ञ (अतिथि-सत्कार)
पर्व- पाबनि
आन्तरिक- अन्तःकरण
मञ्जूषा- पेटी
भूमिनेता- पृथ्वीपति
जरती- बृद्धा
वैजयन्त- इन्द्राणीसँ भूषित इन्द्रप्रासादक
पति-परिचार- स्वामीक सेवा
मन्त्र- विचार
कान्त- प्रिय
श्लाधापरायण- प्रशंसामे तत्पर
धव- धावा
मधुपा- मद्यपायिनी
भूरि- बहुत
सर्वसहासमेत- सभ (दुःखकेँ) सहनिहारि पृथ्वी सहित
कासर- महिसा
हिण्डोर- मचकी
शैलूष-कुहना- नटक माया


मैथिलीक मानक लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
1.
ग्राह्य अग्राह्य
एखन अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठाम ठिमा,ठिना,ठमा
जकर,तकर जेकर, तेकर
तनिकर तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
अछि ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:
2.भ गेल, भय गेल वा भए गेल।
2.जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि।
2.कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
2.
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
3.
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
4.
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:
5.जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
5.
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
6.
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
7.
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
8.
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
9.
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-
10.हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे।
10.’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
10.
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
11.
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
12.
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय(अपवाद-संसार सन्सार नहि), किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
13.
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
14.
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
15.
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि।यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
17.
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
18.
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20.
ग्राह्य अग्राह्य

1. होयबला/होबयबला/होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला
1.होयबाक/होएबाक
2. आ’/आऽ आ
2.
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/
3.ल’/लऽ/लय/लए
3.
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
4.
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
5.
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
6.
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
7.
8. बला वला
8.
9. आङ्ल आंग्ल
9.
10. प्रायः प्रायह
10.
11. दुःख दुख
11.
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
12.
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
13.
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
14.
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
15.
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
17.
18. बढ़न्हि बढन्हि
18.
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
19.
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
23.
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
24.
25. तखन तँ तखनतँ
25.
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
26.
27. निकलय/निकलए लागल
27. बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
27.
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
28.
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
29.
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
31.
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
33.
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
34.
35. सासु-ससुर सास-ससुर
35.
36. छह/सात छ/छः/सात
36.
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
37.
38. जबाब जवाब
38.
39. करएताह/करयताह करेताह
39.
40. दलान दिशि दलान दिश
40.
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
41.
42. किछु आर किछु और
42.
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
43.
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
44.
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
45.
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
47.
48. एखन/अखने अखन/एखने
48.
49. अहींकेँ अहीँकेँ
49.
50. गहींर गहीँर
50.
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
51.
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
52.
53. तहिना तेहिना
53.
54. एकर अकर
54.
55. बहिनउ बहनोइ
55.
56. बहिन बहिनि
56.
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
57.
58. नहि/नै
58.
59. करबा’/करबाय/करबाए
59.
60. त’/त ऽ तय/तए
60.
61. भाय भै
61.
62. भाँय
63. यावत जावत
63.
64. माय मै
64.
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
65.
66. द’/द ऽ/दए
तका’ कए तकाय तकाए
पैरे (on foot) पएरे
ताहुमे ताहूमे
पुत्रीक
बजा कय/ कए
बननाय
कोला
दिनुका दिनका
ततहिसँ
गरबओलन्हि गरबेलन्हि
बालु बालू
चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
जे जे’
से/ के से’/के’
एखुनका अखनुका
भुमिहार भूमिहार
सुगर सूगर
झठहाक झटहाक
छूबि
करइयो/ओ करैयो
पुबारि पुबाइ
झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
पएरे-पएरे पैरे-पैरे
खेलएबाक खेलेबाक
खेलाएबाक
लगा’
होए- हो
बुझल बूझल
बूझल (संबोधन अर्थमे)
यैह यएह
तातिल
अयनाय- अयनाइ
निन्न- निन्द
बिनु बिन
जाए जाइ
जाइ(in different sense)-last word of sentence
छत पर आबि जाइ
ने
खेलाए (play) –खेलाइ
शिकाइत- शिकायत
ढप- ढ़प
पढ़- पढ
कनिए/ कनिये कनिञे
राकस- राकश
होए/ होय होइ
अउरदा- औरदा
बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
चलि- चल
खधाइ- खधाय
मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
कैक- कएक- कइएक
लग ल’ग
जरेनाइ
जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
होइत
गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
चिखैत- (to test)चिखइत
करइयो(willing to do) करैयो
जेकरा- जकरा
तकरा- तेकरा
बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
हारिक (उच्चारण हाइरक)
ओजन वजन
आधे भाग/ आध-भागे
पिचा’/ पिचाय/पिचाए
नञ/ ने
बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
तखन ने (नञ) कहैत अछि।
कतेक गोटे/ कताक गोटे
कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
लग ल’ग
खेलाइ (for playing)
छथिन्ह छथिन
होइत होइ
क्यो कियो
केश (hair)
केस (court-case)
बननाइ/ बननाय/ बननाए
जरेनाइ
कुरसी कुर्सी
चरचा चर्चा
कर्म करम
डुबाबय/ डुमाबय
एखुनका/ अखुनका
लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
कएलक केलक
गरमी गर्मी
बरदी वर्दी
सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
एनाइ-गेनाइ
तेनाने घेरलन्हि
नञ
डरो ड’रो
कतहु- कहीं
उमरिगर- उमरगर
भरिगर
धोल/धोअल धोएल
गप/गप्प
के के’
दरबज्जा/ दरबजा
ठाम
धरि तक
घूरि लौटि
थोरबेक
बड्ड
तोँ/ तूँ
तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
तोँही/तोँहि
करबाइए करबाइये
एकेटा
करितथि करतथि
पहुँचि पहुँच
राखलन्हि रखलन्हि
लगलन्हि लागलन्हि
सुनि (उच्चारण सुइन)
अछि (उच्चारण अइछ)
एलथि गेलथि
बितओने बितेने
करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
करएलन्हि
आकि कि
पहुँचि पहुँच
जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
से से’
हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
फेल फैल
फइल(spacious) फैल
होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
फेका फेंका
देखाए देखा’
देखाय देखा’
सत्तरि सत्तर
साहेब साहब
VIDEHA FOR NON RESIDENTS

1.VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT

2.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated by Jyoti.- poem by Jyoti.

YEAR 2008-09 FESTIVALS OF MITHILAमिथिलाक पाबनि-तिहार
Year 2008
ashunyashayan vrat- 19 july अशून्यशयन व्रत mauna panchmi- 23 july मौना पंचमी

madhusravani vrat samapt 4 august मधुश्रावनी व्रत समाप्त nag panchmi 6 august नाग पंचमी
raksha bandhan/ sravani poornima 16 august रक्षा बन्धन श्रावनी पूर्णिमा kajli tritiya 19 august कजली त्रितीया

sri krishna janmashtami- 23 august श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

srikrishnashtami 24 august श्रीकृष्णाष्टमी


kushotpatan/ kushi amavasya 30 august कुशोत्पाटन / कुशी अमावस्या haritalika vrat 2 september हरितालिका व्रत

chauth chandra 3 september चौठ चन्द्र

Rishi panchmi 4 september ऋषि पंचमी


karma dharma ekadasi vrat 11 september कर्मा धर्मा एकादशी व्रत indrapooja arambh 12 september इन्द्रपूजा आरम्भ anant pooja 14 september अनंत पूजा

agastya ardhdanam 15 september अगस्त्य अर्धदानम
pitripaksh aarambh 16 september पितृपक्ष आरम्भ

vishvakarma pooja 17 september विश्वकर्मा पूजा indr visarjan 18 september इन्द्र विसर्जन

srijimootvahan vrat 22 september श्री जीमूतवाहन व्रत
matrinavmi 23 september मातृनवमी somaavatee amavasya 29 september सोमावती अमावस्या

kalashsthaapana 30 september कलशस्थापन

vilvabhimantra/ belnauti 5 october विल्वाभिमंत्र/ बेलनौति


patrika pravesh 6 october पत्रिका प्रवेश mahashtami 7 october महाष्टमी mahanavmi 8 october महानवमी vijayadasmi 9 october विजयादशमी
kojagra 14 october कोजगरा dhanteras 26 october धनतेरस

deepavali- diyabati-shyamapooj a 28 october दीयाबाती/ श्यामापूजा/ दीयाबाती annakuta-govardhan pooja 29 october अन्नकूट गोवर्धन पूजा


bratridvitiya/ chitragupt pooja 30 october भ्रातृद्वितीया

khashthi kharna 3 november षष्ठी खरना

chhathi sayankalika arghya 4 navamber छठि सायंकालिक अर्घ्य

samaa pooja arambh- chhathi vratak parana 5 november सामा पूजा आरम्भ/ छठि व्रतक पारना


akshaya navmi 7 november अक्षय नवमी

devotthan ekadasi 9 november देवोत्थान एकादशी vidyapati smriti parv11 november विद्यापति स्मृति पर्व कार्तिक धवल त्रयोदशी kaartik poornima 13 november कार्तिक पूर्णिमा
shanmasik ravi vratarambh 30 november षाणमासिक रवि व्रतारम्भ

navan parvan 4 dec. नवान पार्वन

vivah panchmi 2 december विवाह पंचमी



Year 2009
makar sankranti 14 january मकर संक्रांति

narak nivaran chaturdasi 24 january नरक निवारण चतुर्दशी

mauni amavasya 26 january मौनी अमावस्या

sarasvati pooja 31 january सरस्वती पूजा


achla saptmi- 2 february अचला सप्तमी

mahashivratri vrat 23 february महाशिवरात्रि व्रत janakpur parikrama 26 february जनकपुर परिक्रमा holika dahan 10 march होलिका दहन
holi/ saptadora11 march होली सप्ताडोरा varuni yog 24 march वारुणि योग vasant/ navratrarambh 27 march वसंत नवरात्रारम्भ basant sooryashashthi/ chhathi vrat 1 april बसंत सूर्यषष्ठी/ छठि व्रत


ramnavmi 3 april रामनवमी

mesh sankranti 14 april मेष संक्रांति jurisital 15 april जूड़िशीतल

akshya tritiya 27 april अक्षय तृतिया
shanmasik ravivrat samapt 3 may षणमासिक रविव्रत समाप्त

janki navmi 3 may vatsavitri 24 may जानकी नवमी

gangadashhara 2 june गंगादशहरा
somavati amavasya 22 june सोमवती अमावस्या
jagannath rath yatra 24 june जगन्नाथ रथयात्रा saurath sabha arambh 24 june सौराठ सभा आरम्भ


saurath sabha samapti 2 july सौराठ सभा समाप्ति harishayan ekadashi 3 july हरिशयन एकादशी
aashadhi guru poornima 7 july आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा


VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT---
Hussin Shah won Tirhut in A.D. 1466. At Sambhal he arrested Tatar Khan Lodi and sent him to Saran in Tirhut. Saran was a Sirkar of Tirhut.
Contribution of Oinivara Dynasty

During Oinivara Dynasty there was development of Sanskrit learning notable among the scholara being Jagaddhara, Vidyapati and Vardhamana.

Sivasimha and Lakhima, Padmasimha and queen Visvasa Devi, Chandrasimha and his wife were friendly with eminent men of letters.

Between 1527 A.D. to 1557 A.D., when the New Dynasty was established by Maharaja Mahesia Thakura centre shifted to Nepal.


One Kayastha Majumdar ruled for a year A• D. 1544 there was no ruler till A D. 1557.


During Akbar the fort of Hajipur fell and later Bihar was lost to the rebel Daud Khan. Tirhut was included in the Subah of Bihar.

Mahesa Thakura (c. 1557-71 A.D.), Akbar set up a native Hindu family as the ruler of Mithila, he wrote a history of Akbar's reign in Sanskrit. Governor of Bihar, Hajipur and Bengal in those days was Man Singh
It has been pointed out that the actual man to please the Emperor and got the sailed for Mithila Raj was Raghunandana Raya. His regin started on Ramanavnmi Sake 1478, March 1557 A. D.

Chanda Jha writes in the Introductory portion of his Ramayana that Mahesa Thakura ascended the throne in Sake 1478 i.e. 1557 A. D. whereas Mahavaiyakarana Harshanatha Jha has written in his Samakara Dipika 1479 Sake i.e. 1556 A.D. for the same. Mahesa Thakura established himself at Bhaura. Mahesa Thakura had six wives.

He was author of Darpana- A commentary on Jayadeva's commentary called 'Aloka' on Gangesha's celebrated work Tattvachinramani, wrote Aticharanirnaya. Started the Dhautapariksha.
Gopala Thakura (1571-84 A.D.)- While Maharaja Mahesa Thakura was alive, Gopala Thakura, his second son, assumed the charge of the administration, however, abdicated later on, in favour of his youngest brother.
In 1585 Raja Todarmal fixed the annual revenue receipt of Tirhut after measurement at Rs. 11,63,020/-¬per annum¬

Rajarshi Paramananda Thakura the younger son of Mahesa Thakura a great poet encouraged Sanskrit learning, Anandavijaya of Ramadasa and Ragatarangini by Lochana was writeen under his patronage.

Shubhankar Thakur wrote Hastamuktavali, a work on Nritya ,changed the capital of the kingdom from Bhairva to Bhaura.

Purushottama Thakura (1619-1626 A.D.) suppressed rebellious chiefs of Sugauna. He ruled only for six years because he was treachorously murdered by Mirza. , the Imperial Revenue Collector.
Narayana Thakura (1625-1644 A.D ).
Raja Sundara Thakura alias Pritinatha Thakura, was a patron of art and letters patronised one poet namely, Ramadasa Jha and encouraged the traditions set up by his father.
Mahinatha ,Thakura (1670/1-1692/3 A.D.) faught in a battle with Raja Gajasimha of Sugama ,suppression of a revolt in Moranga by his brother Narapati Thakura. Mahinatha himself composed a prayer to goddess Kali in Maithili.
Narapati Thakura (1692-1704 A. D.)’s wife Urvasi Thakura constructed a temple of Saiva.

Raghavasithha (1704-1740 A. D.) received the Khillat and other honours from the Emperor through Subehdar Mahabat Jang and extended favour to his departed father by undertaking a journey to JagannathaPuri and by utilzing the opportunity to visit the Nawab of Bengal. Alivardi Khan, at Mur¬shidabad, obtained the then proud title of Raja surname of Simha for himself.

The Bhaura-garhi was turned into an impre¬gnable garrison and the contemporary poet Gopala Kavi eulogises the prowess of the fort of Bhaura in enthusiatic terms ; its invulnerable character, its four gates, its heights, its temples, its brave warriors and its excellent management.


Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.com and her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). She had been honorary teacher at National Association For Blind, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.
English Translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani by Smt. Jyoti Jha Chaudhary
Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.com and her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). She had been honorary teacher at National Association For Blind, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.
The Dawn Of One Summer Day
Before the birds start chirping
And people will begin rushing
Moments for merely breathing
Not far away from the morning
Tranquilized time of dawn of the day
Diligently waiting for the first sun ray
The sky is yet black and dark grey
Will be brightened without delay
Stars have not gone out of sight
Moon is shining still very bright
But it is not the time of night
The most halcyon time to indite
Cold wind defeating the summer
The dew point is ready to occur
Traffic of the city is at its leisure
Usualy crowded, when day’s sizzler

SahasraBarhani:The Comet
To solve the problem of irrigation Nand installed water boring system. But that was unsuccessful. After digging up to a depth he found that the land he selected for that didn’t have enough water. Due to failure in finding right layer the installation of boring was not completed and the pipes were left there drying. Children started calling that field “boring bala khet” that means a field having boring. Afterwards the Government declared to arrange boring system. When people came to know through Nand’s brother that this boring system would be arranged in those fields having sufficient water instead of fields those need that then they sent their representatives to the Chief Minister with an application. Then the problem was solved. A seven feet tall English man arrived with peculiar machines and finished the installation within two days. But later on someone said that the white man was an American not British. Every white person didn’t need to be British. The dams were constructed in Kamala and Balan rivers. Everything was going very smoothly for next some days but after that sand was filled in dams. The boundary walls were reconstructed higher but that was in vain. The sand level rose up to the bridge of Jhanjharpur. A little flow of water in the river was enough to cross the line of danger and overflow to submerged the path, fields, and ponds. The useless fields of highlands became fertile and the most fertile fields of the low land became useless. The sandy fields between two boundaries of dams had to be sowed twice for a single harvest. People started growing parwals (pointed gourds) and sweet potatoes in sandy grounds. The surrounding area of the Dakahi pond was used to grow rice in informal manner without proper sowing process as that was expensive. The old fertile fields were filled with water. The village of Bhoraha was in very low land between Kothia and Mehath. Perhaps it was a diverted stream of Koshi.
The fact stated above may seem incredulous considering present geographical position of the river Koshi. The bank of the Bhoraha stream had witnessed the fight between villagers of Kothia and Mehath. The story of one old man from the Bhomihar community of west side- people used to tie him with pillar of the house but he used to come out of that to fight with the people of neighbour village. He used to have an axe tied with long bamboo stick for this purpose. Around 60 kilos of churi were broken in that fight.


VIDEHA MAITHILI SAMSKRIT EDUCATION
ENGLISH SAMSKRIT MAITHILI
Etiquettes शिष्टाचारः शिष्टाचार
Hello हरिः ओम् के बजैत छी/ की समाचार
Good morning, Good afternoon/ Good Evening सुप्रभातम्/ नमस्ते/ नमस्कारः सुप्रभात्/ नमस्कार
Good night शुभरात्रिः शुभरात्रि
Thank you धन्यवादः धन्यवाद
Welcome स्वागतम् स्वागत अछि
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Don’t worry चिन्ता मास्तु चिन्ता नहि करू
Please कृपया कृपया कनी
Let us meet again पुनः मिलामः फेर भेंट हएत
All right/ Okay अस्तु ठीक
Sir/ Madam (while addressing only) श्रीमन् श्र्रीमान्
Sir/ Madam (while addressing only) आर्ये/ महोदये श्रीमन्/ महोदया
Very Good साधु-साधु/ समीचीनम् बड्ड नीक
INTRODUCTION परिचयः परिचय
What is your name? (masc.) भवतः नाम किम्? अहाँक नाम की छी?
What is your name?(fem.) भवत्याः नाम किम्? अहाँक नाम की छी?
My name is… मम नाम... हमर नाम..
This is my friend… एषः मम मित्रं.. ई हमर मित्र..
What do you do? भवान् किं करोति? अहाँ की करैत छी?
I am a teacher.(m) अहम् अध्यापकः अस्मि।(पु.) हम अध्यापक छी।
This is my friend. एषा मम सखी..। ई हमर सखी..।
What do you do? भवती किं करोति?(स्त्री.) अहाँ की करैत छी।
I am a student.(f) अहं विद्यार्थिनी अस्मि।(स्त्री.) हम विद्यार्थी छी।
Where do you work? भवान्/ भवती कुत्र कार्यं करोति? अहाँ कत्तऽ काज करैत छी?
I work in a factory. अहं यन्त्रागारे कार्यं करोमि। हम फैक्टरीमे काज करैत छी।
In which class do you study? भवान्/ भवती कस्यां कक्ष्यायां पठति? अहाँ कोन कक्षामे पढ़ैत छी?
I am studying in I/II/III year of graduation. अहं स्नातक प्रथम/ द्वितीय/ तृतीय वर्षे पठामि। हम स्नातक पहिल/ दोसर/ तेसर वर्षमे पढ़ैत छी।
What do you study? भवान्/ भवती किं पठति? अहाँ कोन विषय पढ़ैत छी?
I study science/ commerce/ arts. अहं विज्ञानं/ वाणिज्यं/ कलां पठामि। हम विज्ञान/ वाणिज्य/ कला पढ़ैत छी।
Where is your house? भवतः/ भवत्याः गृहं कुत्र अस्ति? अहाँक घर कतए अछि?
My house is also in Jayanagar. मम गृहमपि जयनगरे अस्ति। हमर घर जयनगरमे अछि।
Where in Jayanagara? जयनगरे कुत्र? जयनगरमे कतए?
In the lane beside the court-building. न्यायालयभवनस्य पार्श्वे या वीथी अस्ति तस्याम्। न्यायालय भवनक बगलमे जे गली अछि ओत्तय।
Come to my house sometime. आगच्छतु कदापि मम गृहम्। कखनो हमर घर आऊ।
Yes, I’ll certainly come. आम्, अवश्यम् आगमिष्यामि। हँ, अवश्य आएब।
How are you? कथम् अस्ति भवान्/ भवती? केहन छी अहाँ?
I am fine. अहं कुशली/ कुशलिनी अस्मि। हम कुशल छी।
How are you? कुशलं किम्? की समाचार?
Yes, I am fine. आम्, कुशलम्। हँ, सभ नीक।
Is everyone fine at home? गृहे सर्वे कुशलिनः किम्? घरपर सभ ठीक छथि ने?
Yes, all are fine. आम्, सर्वे कुशलिनः। हँ, सभ ठीक छथि।
What news? कः विशेषः/ का वार्ता/ कोऽपि विशेषः? कोनो नव समाचार?
You only tell. भवान् एव वदतु। अहीँ बाजू।
Where are you coming from? भवान्/ भवती कुतः आगच्छति? अहाँ कत्तऽ सँ आबि रहल छी?
I am coming from school. अहं शालातः आगच्छामि। हम स्कूलसँ आबि रहल छी।
Where are you going? भवान्/ भवती कुत्र गच्छति? अहाँ कत्तऽ जाऽ रहल छी?
I am going to office. अहं कार्यालयं गच्छामि। हम ऑफिस जाऽ रहल छी।
I’ve heard about you. भवतः/ भवत्याः विषये श्रुतवान् आसम्। हम अहाँक विषयमे सुनने छी।
Happy to meet you. मेलनेन बहु सन्तोषः। अहाँसँ भेँटसँ बड्ड संतोष भेल।
I’ve seen you somewhere. भवन्तं/ भवतीं कुत्राऽपि दृष्टवान्। हम अहाँकेँ कतहु देखने छी।
Did you come from Samskrit conversation class? भवान्/ भवती संस्कृतशिबिरम् आगतवान्/ आगतवती किम्? अहाँ संस्कृतशिविरसँ आएल छी की?
Then where did I see you? तर्हि कुत्र दृष्टवान्? तखन हम अहाँकेँ कतए देखने छी?
Yes, then I saw you there only. आम्, तर्हि तत्रैव दृष्टवान्। हँ, तखन हम अहाँकेँ ओत्तहि देखलहुँ।
संस्कृत शिक्षा च मैथिली शिक्षा च

(मैथिली भाषा जगज्जननी सीतायाः भाषा आसीत् - हनुमन्तः उक्तवान- मानुषीमिह संस्कृताम्)
(आगाँ)
-गजेन्द्र ठाकुर
सुभाषितम्
अकृत्वा परसन्तापम् अगत्वा खलनमताम्।
अनुत्सृज्य सतां वर्त्म यत् स्वल्पमपि तद् बहु॥
इदानीम यत् सुभाषितं श्रुतवन्तः तस्य सुभाषितस्य अर्थः एवम् अस्ति। जीवने सज्जनैः कथं व्यवहारतव्यम् इति एतस्मिन् सुभाषिते उक्तम् अस्ति। यदि एतत् सर्वम् अपि अकृत्वा जीवने अत्यधिकं संपादयति चेदपि तस्य मूल्यमेव न भवति।

एका पत्रिका/ सञ्चिका/ दूरवाणी/ कर्त्तरी/ अङ्कणी एकटा पत्रिका/ संचिका/ टेलीफोन/ कैंची/ पेन्सिल
एकम् पुस्तकम्/ कारयानम् अस्ति।
एकटा पुस्तक/ कार अछि।

एकः दंतकूर्चः/ सुधाखण्डः/ दण्डः/ चमषः/ ग्रंथः/ बालकः/ युवकः/ दण्डदीपः/ विडालः/ दर्पणः/ लेखनी/ मापिनी/ बालिका/ कूपी/ उपनेत्रम्
एकटा दातमनि/ चॉक/ डंटा/ चम्मच/ ग्रन्थ/ बालक/ युवक/ ट्यूबलाइट/ बिलाड़/ अएना/ कलम/ स्केल/ बालिका/ पात्र/ चश्मा

इदानीम वयं पूर्वतन पाठस्य पुनःस्मरणम् कुर्मः।

एकवचन- आसीत् बहुवचन- आसन्
एक.व.- छलए-हँ बहु.व.- छलए-हँ

अहम् एकवचने वदामि भवन्तः बहुवचने परिवर्तनं कुर्वन्तु।

बालकः विद्यालये आसीत्।
बालक विद्यालयमे छलए।

बालकाः विद्यालये आसन्।
बालक सभ विद्यालयमे छलाह।

कर्मकरः वाटिकायाम् आसीत्। जोन वाटिकामे छलाह।
कर्मकराः वाटिकायाम् आसीत्। जोनसभ वाटिकामे छलाह।

गृहिणी मन्दिरे आसीत्। गृहिणी मन्दिरमे छलीह।
गृहण्यः मन्दिरे आसन्। गृहिणीसभ मन्दिरमे छलीह।

बालिका क्रीडाङ्गणे आसीत्। बचिया खेलक मैदानमे छलि।
बालिकाः क्रीडाङ्गणे आसन्। बचियासभ खेलक मैदानमे छलीह।

महिला गृहे आसीत्। महिला घरमे छलथि।
महिलाः गृहे आसन्। महिलासभ घरमे रहथि।

फलम् वृक्षे आसीत्। फल गाछपर छल-ए।
फलानि वृक्षे आसन्। फलसभ गाछपर छल-ए।

मीनः नद्याम् आसीत्। माछ धारमे छल-ए।
मीनाः नद्याम् आसन्। माछसभ धारमे छल।

कर्मकरी मार्गे आसीत्। बोनिहारि रस्तामे छलि।
कर्मकरयः मार्गे आसन्। बोनिहारिसभ् रस्तामे छलीह।

अहं मन्दिरे/ नगरे/ गृहे/ मार्गे/ आसम्।
हम मन्दिरमे/ नगरमे/ घरमे/ रस्तामे छलहुँ।

वयं मन्दिरे/ नगरे/ गृहे/ मार्गे/ आस्म।
हमसभ मन्दिरमे/ नगरमे/ घरमे/ रस्तामे छलहुँ।

पुनः एकवचने अहं वदामि, बहुवचनं परिवर्तनं कुर्वन्तु।

अहं सुधाखण्डेन लिखामि।
दण्डेन् अहं न ताडयामि।
चषकेन् जलं पिबति।
चमषेण शर्कराम् खादति।
हस्तेन स्पर्शं करोमि।
अहं कङ्कतेन् केश प्रसाधनं करोमि।
अहं करवस्त्रेण मार्जनं करोमि।
बालाः कन्दुकेन् क्रीडन्ति।
उपनेत्रेण पश्यामि।
अहं छुरिकया फलं कर्तयामि।
वयं मापिकया मापनं कुर्मः।
अहं कुञ्चिकया तालम् उद्घाटयामि।
मालया अलंकारः कुर्मः।
अहं कर्तर्या कर्तयामि।
अङ्कण्या चित्रं लिखामः।
दर्व्या परिवेशनं करोति।
लेखन्या लिखामः।
मार्जन्या मार्जयामः।
द्रोण्या जलं नयामः।
कृष्णः- कृष्णेन चमषेण
लेखकः- लेखकेन् स्यूतेन
चषकेण फलेन्
पाठेन् पुस्तकेन्
कलशेन् रमा रमया
दंतकूर्चेन राधया
सीतया मापिकया
संचिकया पत्रिकया
छुरिकया पार्वत्या
मालया भगिन्या
द्रोण्या अङ्कन्या
लेखन्या घट्या
कूप्या गदया
वयम् इदानीम् एतेषां शब्दानाम् उपयोगं कृत्वा वाक्यं रचयामः।
बालिका द्विचक्रिकया विद्यालयं गच्छति।
बचिया साइकिलसँ स्कूल जाइत अछि।

सचिवाः विमानेन विदेशं गच्छन्ति।
सचिवसभ हवाई जहाजसँ विदेश जाइत छथि।

नौकया कूर्चेण स्यूतेन कुञ्चिकया लेखन्या लोकयानेन
विमानेन दण्डेन तुलया तोलयामि
व्याधः बाणः शौचिकः कर्तरी शिक्षकः सुधाखण्डः माता वेल्लनी लोहकारः मुद्गरः
अर्चकः माला सैनकः गदा सुरेशः कुञ्चिका वर्णकारः कूर्चः जना वाहनः सर्वः
जिह्वा
सम्भाषणं अभ्यासः
-भो इन्द्राक्षी। आगच्छतु। उपविशतु। सर्वं कुशलं किम्?
-सर्वं कुशलं। किं करोति भवति।
-अहं पाकं करोमि।
-कः विशेषः।
-अद्या बान्धवाः आगच्छन्ति। अतः विशेषः पाकः।
-एवं वा।
-भवती किम् किम् करोति।
-अहम् आलूकं व्यञ्जनं करोमि। कुशमाण्डेन क्वथिनं करोमि।
-बहु मरीचिकाः सन्ति खलु। मरीचिकया किम् करोति भवती।
-एषा महामरीचिका। एषा कटुः नास्ति। एतया भक्ष्म करोमि।
-भवति रोटिकां न करोति वा।
-करोमि। रोटिकया सह दालम् अपि करोमि।
-किमपि मधुरम्।
-करोमि। पायषम् करोमि।
-पायसम वा। घृते पायसस्य रुचिः अधिका भवति। इदानीम् वदतु। अहं किम् सहाय्यं करोमि।
-सहाय्यम् किमपि मास्तु भोः। मया सह सम्भाषणं करोतु। पर्याप्तम्।
-तर्हि भवती एव सर्वं करोतु। अहं सर्वेषां रुचिं पश्यामि।
इदानीम् वयम् एकं सुभाषितं श्रुण्मः।
सम्भाषणं अभ्यासः-२
-वैद्य महोदयः। महती उदरवेदना।
-उदरवेदना वा। शयनं करोतु। परीक्षां करोमि।
-अत्रा वा वा। किञ्चित् उपरि। अत्र वा।
-तत्र ज्ञातम्। उपविशतु।
-दीर्घं श्वास उच्छवासं करोतु।
-ह्यः उदरवेदना आसीत् वा।
-न ह्यः उदरवेदना ना आसीत्। अहं स्वस्थमेव आसन्।
-अद्य प्रातः। अद्य प्रातः अपि न आसीत्। अपराह्ने प्रारब्धम्।
-तदा किम् कृतवान भवान्।
-मम समीपे काश्चन् गुलिकाः आसन्। ताः सर्वाः खादितवान्।
-कति गुलिकाः।
-पञ्च गुलिकाः।
-ताः सर्वाः खादितवान्।
-मादृशाः मूर्खाः पूर्वम् अपि अत्र आगताः आसन् , जानातु। वैद्यस्य परामर्शविना औषधसेवनम् अपायकरम्। पुनः कदापि एवं न करोतु। एतद् औषधं स्वीकरोतु। तथैव भवतु।
(c)२००८.सर्वाधिकार लेखकाधीन आऽ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
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