काठमाण्डूकेँ टुंडीखेलमे हम आ दुटा आओर हमर साथी बैसल छलहुँ । ताबते एकटा छौरी आबिकऽ हमरा सबके मुमफली खाएला कहलक । जेना मंगनीए दऽदेतै तहिना ओ हमरा आगुमे दु डिबा ममफली धऽ देलक । हम पाइकेँ लेल पुछली त बिस रुपैया कहलक । ममफली खाएवाक इच्छा त नहि, रहे मुदा साथी सबलग प्रतिष्ठाके देखकऽ जेबसँ पाइ निकालिकऽ दऽ देलहँु । करीब एक–डेढ घण्टाक बाद ममफली खतम भऽ गेल त हमसब ओतऽ सँ उठिकऽ रौदमे वैसऽ चैल गेलहु । फेर, एकटा दोसर छौरी आबिकऽ कागज निकालिकऽ ममफली छोटका डिब्वा सँ एक डिब्वा धऽ देलकै । हमहुँ सब ममफली खाए लगलहँु । ओ छौरी हमरा सवहक नजदिक बैसिकँ गीत गाबऽ लागल "यो मायाको सागर.....।" हमर साथी ओकरा भऽगाब केँ लेल "तो बड सुन्दर गीत गवैछ"े कह लगलैक । ई सुनिकऽ ओ छौरी कहैछै "एह, हम त........ गीते नहि नेपाली, हिन्दी, अंग्रेजी गीतमे डान्सो करैछी ।"फेर ओ अपन कुर्तीके उपरका बट्टम खोलिकऽ कहैय "आई कते गर्मी छै.........।"ई देखकऽ हमर साथी पुछलकै "एक दिनमे कते.......कमालैछही ।"ओ ढिठेसँ जाबाव देलक "मुला जौ फसिगेल त........हजारो भऽ जाइए ।"हम व्यंग करित कहलि " तब त हम अपनो घरवालीके ममफलीके व्यपार कऽ देबै.....।"फेर ओ कहली "आँहा सब तिन आदमी छि ..........मात्र तिन सय रुपैया जँ खर्च करब तऽ आइ राति आँहा सब साथे हम चैल सकैत छि ।"हम फेर व्यंग कैलिए "तोहर वाप कमाकऽ धऽ गेलछौ से......... ।"ओ हसऽ लगली आ फेरु थेथरियाएल जका बसिगेली । हमरा त बुझले नहि छल जे ओकर ई व्यपार होतैक । आ ओकर पहिरन–ओढ्न सँऽ बुझाय परैक जेना ओ कानो सेठकेँ वेटी होतैक । हमर साथी रामबाबु अपन जेबमे हाथ दैत कहैय "हे यो......हमरा लग त दु सय टका अछि.......आँहा लग एक सय अछि त दिअनै पैचे सही.....।"मुदा हम बड डटली ओ ओतऽ सँ उठिक तिनु आदमी भद्रकाली दने जाइत रही । भद्रकाली मन्दिर सँऽ कनिकें आगु आवीक रामबाबु कहलनि "अाँहा सब बढु ...........हम एक आदमी सँ भेटने अवैछी ।" हम आ संजय त बुझिगेलहु कि ई कतऽ गेल होएत ।करिब एक महिना वाद जखन हम ओहि दकऽ जाइत रही त ओही छौरी पर नजरि परल ओकर कपडा फटल रहैक मुदा ठोह् मे लाली बड. मोटसँऽ लगौने रहैक । आ जतेक आदमी ओइ दऽ कऽ जाइक सबके मुह पर तकै । ओही साँझमे हमर साथीरामबाबूकें फोन आयल आ कहलनि "हमर मोन खराब अछि ।"भोरमे हम ओकर डेरालग जाक ओकरा टिचिङ्ग अस्पताल जचाव लऽ गेलहु । डाक्टर बोखारक दवाइ दऽ पठादेलनि आ कहलनि जे एक हप्तावाद भेट करला । ओ, दवाइ खाइ, मुदा ओकर वोखार त ठिके नहि होइक । दिनदिने कमजोर भेल जाइक । फेर ओकरा लऽकऽ हम अस्पताल गेलहुँ । डाक्टर खुन, दिशा, पेशाब जचाबऽ लेल कहलनि । दिशा आ पिसाबक रिर्पोट तऽ तुरते दऽ देलक मुदा खुनक रिर्पोट ४२ दिनक वाद देबऽ कहलनि । ४२ दिन बाध हम रिर्पोट लऽकऽ डाक्टर लग गेलहुँ । वै दिन डाक्टर सब सँ अन्तमे हमरा बजौलनि । मितकेँ पकरिक डाक्टर लग लगेलियन । डाक्टर मित सँऽ पुछलनि "आहाँ बजारक लैरकी सँ..........सम्बन्ध रखैछी ।"किछ नहि बाजिकऽ ओ मुरी निचा कैने रहि गेलैक । आ, ई, सुनिक हम कहलियनि "डाक्टर साहेब,..................."डाक्टर हमरा किछ बाजऽ नहि देलनि आ हमरा कहलनि कृपया बिचमे नई, बाजल करी ।"फेर डाक्टर आवेशमे आविक कहलनि "हिनका छैन एड्स लागीगेल ।"ओ पुनः हमरा पर ताकिक कहलनि "ओना त एड्सकेँ इलाज त नहि छैक मुदा जौ संयम सँ रही त किछ दिन बाचि सकैछी । आँहा सब नयाँ उमेरक लरिका सब एना कर लगबै त कोना हेतैक ।"डाक्टर हाथमे कलम आ, आगामे सँ पुर्जी लैत कहलनि "देखु, आहाकेँ चित बुझावलेल किछ दवाई लिख दैछि ।"डाक्टर पुर्जी हमरा हाथमे देलाह । आ हम सब ओतऽ सँऽ निकलँहु । हमर मितत वड उदाश रहे भऽ गेल । ई देखक हम कहलियनि "चल वल्की गामे पर रहब ।"तखन त ओ हमरा हँ कहलक मुदा जखन हम तैयारी भऽ ओकरा डेरामे पहुचलहु त देखलहँु ओकरा खिरकी केवार चारु तर्फसँऽ लोक भरल । हमर मन धबरागेल । जखन हम नजदिक पहुचलहुँ त देखलहुँ एकटा हवलदार ओकरा गरदनिमे सँ डोरी खोलैतरहै । ओकरा शव बाहनमे धऽ कऽ अस्पताल लऽ गेलैक । आ हम ओकरा गामपर फोन कऽ कऽ ओकर बावुजीकँ खवर कऽ बजालेलियनि ।
भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Monday, November 10, 2008
मुमफली बाली - सन्तोष मिश्र, काठमाण्डू
काठमाण्डूकेँ टुंडीखेलमे हम आ दुटा आओर हमर साथी बैसल छलहुँ । ताबते एकटा छौरी आबिकऽ हमरा सबके मुमफली खाएला कहलक । जेना मंगनीए दऽदेतै तहिना ओ हमरा आगुमे दु डिबा ममफली धऽ देलक । हम पाइकेँ लेल पुछली त बिस रुपैया कहलक । ममफली खाएवाक इच्छा त नहि, रहे मुदा साथी सबलग प्रतिष्ठाके देखकऽ जेबसँ पाइ निकालिकऽ दऽ देलहँु । करीब एक–डेढ घण्टाक बाद ममफली खतम भऽ गेल त हमसब ओतऽ सँ उठिकऽ रौदमे वैसऽ चैल गेलहु । फेर, एकटा दोसर छौरी आबिकऽ कागज निकालिकऽ ममफली छोटका डिब्वा सँ एक डिब्वा धऽ देलकै । हमहुँ सब ममफली खाए लगलहँु । ओ छौरी हमरा सवहक नजदिक बैसिकँ गीत गाबऽ लागल "यो मायाको सागर.....।" हमर साथी ओकरा भऽगाब केँ लेल "तो बड सुन्दर गीत गवैछ"े कह लगलैक । ई सुनिकऽ ओ छौरी कहैछै "एह, हम त........ गीते नहि नेपाली, हिन्दी, अंग्रेजी गीतमे डान्सो करैछी ।"फेर ओ अपन कुर्तीके उपरका बट्टम खोलिकऽ कहैय "आई कते गर्मी छै.........।"ई देखकऽ हमर साथी पुछलकै "एक दिनमे कते.......कमालैछही ।"ओ ढिठेसँ जाबाव देलक "मुला जौ फसिगेल त........हजारो भऽ जाइए ।"हम व्यंग करित कहलि " तब त हम अपनो घरवालीके ममफलीके व्यपार कऽ देबै.....।"फेर ओ कहली "आँहा सब तिन आदमी छि ..........मात्र तिन सय रुपैया जँ खर्च करब तऽ आइ राति आँहा सब साथे हम चैल सकैत छि ।"हम फेर व्यंग कैलिए "तोहर वाप कमाकऽ धऽ गेलछौ से......... ।"ओ हसऽ लगली आ फेरु थेथरियाएल जका बसिगेली । हमरा त बुझले नहि छल जे ओकर ई व्यपार होतैक । आ ओकर पहिरन–ओढ्न सँऽ बुझाय परैक जेना ओ कानो सेठकेँ वेटी होतैक । हमर साथी रामबाबु अपन जेबमे हाथ दैत कहैय "हे यो......हमरा लग त दु सय टका अछि.......आँहा लग एक सय अछि त दिअनै पैचे सही.....।"मुदा हम बड डटली ओ ओतऽ सँ उठिक तिनु आदमी भद्रकाली दने जाइत रही । भद्रकाली मन्दिर सँऽ कनिकें आगु आवीक रामबाबु कहलनि "अाँहा सब बढु ...........हम एक आदमी सँ भेटने अवैछी ।" हम आ संजय त बुझिगेलहु कि ई कतऽ गेल होएत ।करिब एक महिना वाद जखन हम ओहि दकऽ जाइत रही त ओही छौरी पर नजरि परल ओकर कपडा फटल रहैक मुदा ठोह् मे लाली बड. मोटसँऽ लगौने रहैक । आ जतेक आदमी ओइ दऽ कऽ जाइक सबके मुह पर तकै । ओही साँझमे हमर साथीरामबाबूकें फोन आयल आ कहलनि "हमर मोन खराब अछि ।"भोरमे हम ओकर डेरालग जाक ओकरा टिचिङ्ग अस्पताल जचाव लऽ गेलहु । डाक्टर बोखारक दवाइ दऽ पठादेलनि आ कहलनि जे एक हप्तावाद भेट करला । ओ, दवाइ खाइ, मुदा ओकर वोखार त ठिके नहि होइक । दिनदिने कमजोर भेल जाइक । फेर ओकरा लऽकऽ हम अस्पताल गेलहुँ । डाक्टर खुन, दिशा, पेशाब जचाबऽ लेल कहलनि । दिशा आ पिसाबक रिर्पोट तऽ तुरते दऽ देलक मुदा खुनक रिर्पोट ४२ दिनक वाद देबऽ कहलनि । ४२ दिन बाध हम रिर्पोट लऽकऽ डाक्टर लग गेलहुँ । वै दिन डाक्टर सब सँ अन्तमे हमरा बजौलनि । मितकेँ पकरिक डाक्टर लग लगेलियन । डाक्टर मित सँऽ पुछलनि "आहाँ बजारक लैरकी सँ..........सम्बन्ध रखैछी ।"किछ नहि बाजिकऽ ओ मुरी निचा कैने रहि गेलैक । आ, ई, सुनिक हम कहलियनि "डाक्टर साहेब,..................."डाक्टर हमरा किछ बाजऽ नहि देलनि आ हमरा कहलनि कृपया बिचमे नई, बाजल करी ।"फेर डाक्टर आवेशमे आविक कहलनि "हिनका छैन एड्स लागीगेल ।"ओ पुनः हमरा पर ताकिक कहलनि "ओना त एड्सकेँ इलाज त नहि छैक मुदा जौ संयम सँ रही त किछ दिन बाचि सकैछी । आँहा सब नयाँ उमेरक लरिका सब एना कर लगबै त कोना हेतैक ।"डाक्टर हाथमे कलम आ, आगामे सँ पुर्जी लैत कहलनि "देखु, आहाकेँ चित बुझावलेल किछ दवाई लिख दैछि ।"डाक्टर पुर्जी हमरा हाथमे देलाह । आ हम सब ओतऽ सँऽ निकलँहु । हमर मितत वड उदाश रहे भऽ गेल । ई देखक हम कहलियनि "चल वल्की गामे पर रहब ।"तखन त ओ हमरा हँ कहलक मुदा जखन हम तैयारी भऽ ओकरा डेरामे पहुचलहु त देखलहँु ओकरा खिरकी केवार चारु तर्फसँऽ लोक भरल । हमर मन धबरागेल । जखन हम नजदिक पहुचलहुँ त देखलहुँ एकटा हवलदार ओकरा गरदनिमे सँ डोरी खोलैतरहै । ओकरा शव बाहनमे धऽ कऽ अस्पताल लऽ गेलैक । आ हम ओकरा गामपर फोन कऽ कऽ ओकर बावुजीकँ खवर कऽ बजालेलियनि ।
6 comments:
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
-
"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
-
जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
-
खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
internet par maithili ke jiya kay rakhay bala blog achhi ee, dhanyavad santosh ji, kathmandu aa nepalak aan maithili bhashi ke joru ehi blog se.
ReplyDeletenik lagal ahank katha, etek ras likhait chhi saih bad paigh bat achhi, hamra sabh te sochite rahi gelahu,
ReplyDeletemuda khissa kahba me harbari se kaj nahi liya budhiya dadi ke mon pari kay nishinta mon se khissa kahoo,
ona nik prayas achhi.
nik prayas achhi, aa nirantar lokpriyata aa badhait pathak sankhya okar parinam, katha kanek aar nik bhay sakait chhal muda kono nahi, bahut nik lagal.
ReplyDeleteuttam prayas, ehina likhoo santosh ji, likhait likhai lekhni me chamak aayat, ona ekhno khoob likhait chhi
ReplyDeletenik lagal apan madhesak kathakar ke padhait, muda jiti ji ek page par 7 Ta post rahla se site khujba me late hoit achhi, 4 se beshi ek page par nahi rakhoo, pher old post ke badla me agala aabi rahal achhi se confusion paida kay rahal achhi.
ReplyDeleteमार्गदर्शनक लेल बहुत बहुत धन्यवाद राहुलजी अहिना हमर मार्गदर्शन आs लेखकगण केs प्रोत्साहित करैत रहब .....
ReplyDelete