भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Saturday, November 01, 2008
कारी पौलनि करिखा- सन्तोष मिश्र, काठमाण्डू
भोगेन्द्रजी अपन गामक आंगुर पर गनाए बला धनीक मे सँ छथि । ओना त भोगेन्द्रजी बेशी पढला–लिखला नहि मुदा अपन दुनु पुत्र सुबोध आ विनोदकेँ एम. ए. तक पहुचैलनि । भोगेन्द्रजीक पुत्री आशा जखन आइ.ए. पास कऽ लेलनि तकर बाद हुनका लेल बर तकाय लगलनि। वर भेटलनि । गामक धनिक आ बि.ए. अनर्स कैल बरक माँग भेलनि तीन लाख पचहत्तर हजार भा.रु. । बड धुमधाम सँ विवाह भेलैक आ साते दिनपर विदागरी सेहो ।
आशाक स्वभाव आ विचारकेँ बारेमे जते वर्णन कैल जाए कमे रहत । आशाक स्वभाव सँ सब गोटे बड खुसी रहथि । समय वितैत गेल । आशाक गर्भ सँ एकटा पुत्रीक जन्म भेलैक । आशाक बर (बलराम) के कनिको अपनेसँ किछु अर्जन करय के चिन्ते नइ । पाईके जौं जरुरी बुझाय तँ गहना त छलैहे । भोर आ साँझ बिना दारुके नहि रहऽ वाला बलरामकेँ आशा कते सम्झा वुझाकऽ किछ अर्जन करबाक हेतु धनवाद पठौली । करिब डेढ महिनाक वाद बलराम गाम अएलाह । अगहन मास रहैक । दौनी, कटनी सब सेहो करबा के छलैक । मुदा एको सप्ताह नहि वितलै । बलराम तैयार भेलाह फेरु जएवाक लेल । आ आशाके सेहो चलए लेल कहलनि । बलरामकेँ बाबुजी घरक काजक बारेमे कते समझौलनि मुदा बलराम किछु मानऽ लेल तैयार नइं भेलाह । अन्ततः आशाके जाएबाक लेल तैयार होबहे परलनि ।
तीने दिन बितल रहैक बलरामकेँ गेला । चारिटा पुलिस सबसँ पुछैत रहैक बलरामक घरक बारेमे । ओमहर सँ अपन गम्छा मे तरकारी बन्हने बलरामक बाबुजी अवैत रहथि । एकटा पुलिश हुनकें सँ बलरामक घरक बारेमे पुछलकनि । बलरामक बाबुजी अपन परिचय देलथि । तखन जा कए ओ पुलिस सब कामेश्वर (बलरामक बाबुजी) के सब बात कहलनि आ ई सब सुनिते ओ लगला छाती–कपार पिटक कानऽ । कनिते–कनिते आँगन अएलाह आ कामेश्वर बाबुकेँ कनैत देखिकऽ घरक सब गोटा लग आबिकऽ सेहो कानय लगलाह । आ कनिते–कनिते बलरामक माय पुछलनि-
“आहाँ किया .......कनै छी ..........?”
कामेश्वर बाबु जवाब देलनि-
“कनियाँ त......... ट्रेनमे पिचा गेलीह ।”
किछ पत्ता लगावक क्रममे ओहि पुलिस सबमे सँ किछु आशाक नैहर गेल । भोगेन्द्र जी सँ भेंटक पूरा घटना बतौलक । ई तँ सुनिते भोगेन्द्रजीक देहमे झुनझुनी भरि गेलनि आ गारा भुकुर सेहो लागि गेलनि । पुलिस भोगेन्द्रजी सँ पुछलक–
“..........आहाकेँ किछ कहवाक अछि ?....... बलराम त थानामे अछि ।”
त भोगेन्द्रजी जवाब देलनि–
“जी .......नहि हमर बेटिए बदमाश छल ।”
आशाकऽ नैहर पहुँचल पुलिस सब आशाक सासुर पहुँचल आ ओ कामेश्वर बाबुकेँ हथकड़ी लगाकऽ गामसँ लऽ गेलनि । गामसँ आगु एकटा बजार छलैक ओत स एकवेर कामेश्वर बाबु फोन कैलनि तँ ओहि पुलिस सबके एकटा आदेश भेटलैक जे ओ हथकड़ी खोलिकऽ इज्जतक संग लऽ जाइथ । पुलिस सब कामेश्वर बाबुकेँ इज्जत सँ थाना लऽ गेलनि ।
थानामे कामेश्वर बाबुक नजरि अपन पोती पर पड़लनि। ओ एक–एकटा कऽ मुरही पात परसँ विछ–विछक खाइत रहैक । कामेश्वर बाबु तुरते दुध मंगवौलनि आ वाद मे वेटालेल सेहो बहुत पाई खर्च कैलनि तखन जा कए हुनक वेटा थाना सँ छुटलनि । कामेश्वर बाबु अपन वेटा, आ पोती दुनुके लऽ कऽ गाम जाइत रहथि । वाटमे एक ठाम जखन ट्रेन रुकलैक तँ कामेश्वर बाबु अपन भेटासँ पुछलनि-
“तोहर .....सर–समान कि भेलौं ?”
बलराम बड सान सँ जबाब देलकै-
“बेचलिया । आ........ गहना नहि दिया तो ट्रेनमे धकेल दिया ।”
कामेश्वर बाबुके ई सुनिक बड दुःख लगलनि आ ओ कहलनि-
“जो ! रे कुपात्र । ......... तु जे मैरते त हम नौहकेश नहि करैबति ।”
गाममे सगरो ई बातक चर्चा भेलै आ अहि बेटाक कारण गामक लोक हिनका–सबकेँ बारि देलनि । लोकसब घृणा करऽ लगलनि ।
एक राति करिब बारह बजे बलराम चिचियाति घर सँ भागल । आ दलानपर अबैत–अबैत ओ बेहोस भऽ खसि पड़ल । हल्ला सुनि कय बलरामक बाबु आ माँ दुनु बाहर निकललनि । अन्हारक कारण सँ किछ सुझबो नहि करै । तावते मे एकटा महिला हाथमे लालटेन लेने, धोघ तनने अवैत रहै छै । इजोत पर बुढा–बुढी अप्पन बेटाकेँ देखलनि आ बेटाक दिस दौड़लनि । बेटा लग पहुँचते अन्हार फेर भ गेलैक । ई देखि कए बलरामक बाबुजी परोसी धामीके बजाब गेलाह । मानवताकेँ प्रथम स्थानपर रखैत ओ धामी अपन कर्तब्य पुरा करऽ अबए छैक । बलरामकेँ देखक धामी भुतक आशंका व्यक्त करैत छैक । तावतेमे फेरु बलराम होसमेँ अवैत छैक आ खुब जोर जोर स हल्ला आ बदमाशी कर लगैछै । हल्ला सुनिकऽपरोसक दु–तिन आदमी आरो अवैत छैक आ बलरामके बान्हिक राखि दैत छैक ।
दु–तीन आदमी सँ बलरामके जचाँबऽ लेल राँची ल जाइत छैक । डाक्टर के कहलापर पागलखानामे बलरामके भर्ना कर परैछनि ।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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katha me kanek kasavati hebak chahi, ghatna kram ke kanek aar pharichha kay dekhebak jaroorat achhi,
ReplyDeleteona pratibha me kono kami nahi
katha ke pharichha kay likhba me pathak ke bujhba me suvidha hoytanhi,
ReplyDeleteona nik lagal
santosh ji pahine ahan kathmandu se chhi se ee blog me ahank rachna dekhi harshit bhel, rachna seho nik lagal.
ReplyDeleteइंटरनेटपर रंगबिरंगक रचना देखि मैथिलीमे लिखबा के सख हमरो भ गेल। बड्ड नीक संतोषजी, कथामे कसावट कनी चाही मुदा तैयो नीक।
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