भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
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Tuesday, January 13, 2009
विदेह १ नवम्बर २००८ वर्ष १ मास ११ अंक २१
'विदेह' १ नवम्बर २००८ ( वर्ष १ मास ११ अंक २१ ) एहि अंकमे अछि:-
१.संपादकीय संदेश
२.गद्य
२.१.कथा 1.सुभाषचन्द्र यादव(असुरक्षित) 2.रामभरोस कापड़ि "भ्रमर" (हुगलीपर बहैत गंगा)
२.२.मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना-धीरेन्द्र प्रेमर्षि
२.३.प्रकाश चन्द्र झा : मैथिली रंगकर्ममे थ्री-इन-वन- महेन्द्र मलंगिया
२.४. १.जीवन झाक नाटकक सामाजिक विवर्तन- प्रेमशंकर सिंह (आगाँ)२.स्व. राजकमल चौधरी पर - डॉ. देवशंकर नवीन (आगाँ)
२.५.यायावरी- कैलाश कुमार मिश्र (लोअर दिवांग घाटी: इदु-मिसमी जनजातिक अनुपम संसार)
२.६. १.लघुकथा- कुमार मनोज कश्यप २. दैनिकी- ज्योति ३. उपन्यास
२.७. चौकपर आणविक समझौता:- कृपानन्द झा
२.८. १.नवेन्दु कुमार झा छठिपर २.नूतन झा भ्रातृद्वितियापर
३.पद्य
३.१.१.रामलोचन ठाकुर २.निमिष झा ३. जितमोहन झा
३.२. १.श्री गंगेश गुंजनक- राधा (छठम खेप)२. श्यामल सुमन
३.३. १.राजेन्द्र विमल २.रेवतीरमण लाल ३.दिगम्बर झा "दिनमणि"४.बुद्ध-चरित
३.४. १.रूपा धीरू २.ज्योति
३.५. १.विद्यानन्द झा २.नवीननाथ झा ३.विनीत उत्पल
३.६. १.वृषेश चन्द्र लाल २. धीरेन्द्र प्रेमर्षि ३. विभूति
३.७. १. रामभरोस कापड़ि २. रोशन जनकपुरी ३.पंकज पराशर
३.८. १.वैकुण्ठ झा २. हिमांशु चौधरी
४. मिथिला कला-संगीत(आगाँ)
५. महिला-स्तंभ
६. बालानां कृते- १.प्रकाश झा- बाल कविता २. बालकथा- गजेन्द्र ठाकुर ३. देवीजी: ज्योति झा चौधरी
७. भाषापाक रचना लेखन (आगाँ)
8. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)-
8.1. Original Maithili story "Sinurhar" by Shri Shivshankar Srinivas translated into English by GAJENDRA THAKUR
8.2.The Comet-English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani by jyoti
9. VIDEHA MAITHILI SAMSKRIT EDUCATION(contd.)
विदेह (दिनांक १ नवम्बर २००८)
१.संपादकीय (वर्ष: १ मास:११ अंक:२१)
मान्यवर,
विदेहक नव अंक (अंक २१, दिनांक १ नवम्बर २००८) ई पब्लिश भऽ गेल अछि। एहि हेतु लॉग ऑन करू http://www.videha.co.in |
पहिल कीर्तिनारायण मिश्र सम्मान कवि हरेकृष्ण झाकेँ कविता संग्रह "एना कतेक दिन" पर ११.११.२००८ केँ विद्यापति पर्वक अवसरपर देल जएतन्हि। एहि बेरक यात्री चेतना पुरस्कार श्री मन्त्रेश्वर झाकेँ भेटलन्हि।
कीर्तिनारायण मिश्रक जन्म १७ जुलाई १९३७ ई. केँ ग्राम शोकहारा (बरौनी), जिला बेगूसरायमे भेलन्हि। हुनकर प्रकाशित कृति अछि सीमान्त, हम स्तवन नहि लिखब (कविता संग्रह)। आखर पत्रिकाक लब्धप्रतिष्ठ सम्पादक।
मंत्रेश्वर झा-जन्म ६ जनवरी १९४४ ई.ग्राम-लालगंज, जिला-मधुबनीमे। प्रकाशित कृति: खाधि, अन्चिनहार गाम, बहसल रातिक इजोत (कविता संग्रह); एक बटे दू (कथा संग्रह), ओझा लेखे गाम बताह (ललित निबन्ध)। मैथिली कथा संग्रहक हिन्दी अनुवाद “कुंडली” नामसँ प्रकाशित। दि फूल्स पैराडाइज (अंग्रेजीमे ललित निबन्ध), कतेक डारि पर।
हरेकृष्ण झा, जन्म १० जुलाई १९५० ई. गाम- कोइलखमे। अभियंत्रणक अध्ययण छोड़ि मार्क्सवादी राजनीतिमे सक्रिय। अनेक कविता आ आलोचनात्मक निबन्ध प्रकाशित। अनुवाद एवं विकास विषयक शोध कार्यमे रुचि। स्वतंत्र लेखन। प्रकृति एवं जीवनक तादात्म्य बोधक अग्रणी कवि। एना कतेक दिन (कविता संग्रह)।
बुकर पुरस्कार: आस्ट्रेलियन पिता आऽ भारतीय माताक सन्तान ३३ वर्षीय बैचेलर श्री अरविन्द अडिग ऑक्सफोर्डसँ शिक्षा प्राप्त कएने छथि आऽ सम्प्रति मुम्बईमे रहैत छथि। हिनकर पहिल अंग्रेजी उपन्यास छन्हि द ह्वाइट टाइगर जाहि पर बिटेन, आयरलैण्ड आऽ कॉमनवेल्थ देशक वासी केँ देल जा रहल अंग्रेजी भाषाक उपन्यासक ५०,००० पौन्डक “मैन बुकर” पुरस्कार भेटलन्हि अछि आऽ बेन ओकेरीक बाद ई पुरस्कार प्राप्त केनिहार ई सभसँ कम उम्र केर लेखक छथि।
द ह्वाइट टाइगर- ई उपन्यास हार्पर कॉलिन्स-रैन्डम हाउस द्वारा प्रकाशित भेल आऽ प्रकाश आऽ अन्हारक दू तरहक भारतक ई वर्णन करैत अछि। एकटा फर्मक मालिक बलराम जे शुरूमे गयासँ आयल बलराम हलवाई छलाह चीनी प्रधानमंत्री वेन जिआबाओक भारत आगमनपर अपन अनुत्तरित सात पत्र (हरिमोहन झाक पाँच पत्र आ ब्यासजीक दू पत्र जकाँ) केर माध्यमसँ अपन खिस्सा कहैत छथि। ओऽ एकटा रिक्शा चालकक बेटा छथि जे चाहक दोकानपर किछु दिन काज केलाक बाद दिल्लीमे एकटा धनिकक ड्राइवर बनैत छथि। फेर ओकरा मारि कय उद्योगपति बनि जाइत छथि।
ड्राइवर सभ गप मालिकक सुनैत रहैत अछि, कलकत्ताक रिक्शाबला सभक खिस्सा सेहो अडिग सुनलन्हि आऽ दिल्लीक ड्राइवर लोकनिक सेहो आऽ खिस्साक प्लॊट बना लेलन्हि।
समालोचनाक स्थिति: हिन्दीक अखबार सभ ई पुरस्कार प्राप्त भेलाक बादो एहि पुस्तकक समीक्षा एकटा चीप टी.वी. सीरियलक पटकथाक रूपमे कएलन्हि। मैथिलीक समालोचनाक तँ गपे छोड़ू, अंग्रेजीक अखबार सभ मुदा नीक समीक्षा कएलक।
दिल्लीक चिड़ियाघरमे एकटा ह्वाइट टाइगर छैक गेनेटिक म्युटेशनक परिणाम जे एक पीढ़ीमे एक बेर अबैत छैक नहियो अबैत छैक। बलराम हलवाईक खिस्सा सेहो ह्वाइट टाइगर जकाँ विरल भेटत बेशी तँ कमाइ-खाइमे जिनगी बिता दैत छथि। एकर हार्डबाउन्ड किताब २०,००० कॉपी बिका चुकल अछि। पेन्गुइन इण्डिया जे ई किताब छपबासँ इन्कार कएने छल कहलक जे क्रॉसवर्ड पुरस्कारसँ किताबक बिक्रीमे १००० कॉपीक वृद्धि होइत छैक, बुकर भेटलापर १०,००० कॉपी बेशी बिकाइत छैक आऽ साहित्य अकादमी भेटलापर अंग्रेजी किताब १० कॉपी बेशी बिकाइत अछि!
एहि अंकमे:
श्री गगेबश गुंजन जीक गद्य-पद्य मिश्रित "राधा" जे कि मैथिली साहित्यक एकटा नव कीर्तिमान सिद्ध होएत, केर छठम खेप पढ़ू। सुभाष चन्द्र यादव आऽ भ्रमर जीक कथा, महेश मिश्र "विभूति"-श्री पंकज पराशर- विनीत उत्पल- श्यामल जीक पद्य आऽ प्रेमशंकर सिंह जीक शोध लेख अछि।, जितमोहन, रामलोचन ठाकुर,निमिष झा,राजेन्द्र विमल, रेवतीरमण लाल, दिगम्बर झा "दिनमणि", रूपा धीरू, ज्योति,विद्यानन्द झा, नवीननाथ झा, विनीत उत्पल,वृषेश चन्द्र लाल, धीरेन्द्र प्रेमर्षि,विभूति,महेन्द्र मलंगिया, कुमार मनोज कश्यप, कृपानन्द झा. रामभरोस कापड़ि रोशन जनकपुरी, पंकज पराशर,वैकुण्ठ झा, प्रकाश झा आ हिमांशु चौधरी जीक रचनासँ सुशोभित ई अंक अछि।
श्री राजकमल चौधरीक रचनाक विवेचन कए रहल छथि श्री देवशंकर नवीन जी।
ज्योतिजी पद्य, बालानांकृते केर देवीजी शृंखला, बालानांकृते लेल चित्रकला आऽ सहस्रबाढ़निक अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत कएने छथि।
शिवशंकर श्रीनिवास केर मैथिली कथाक अग्रे जी अनुवाद सेहो प्रस्तुत कएल गेल अछि।
भारतक विश्वनाथन आनन्द वर्ल्ड चेस प्रतियोगिता जितलन्हि तँ भारत अपन चन्द्रयान-१ यात्रा सेहो शुरु कएलक। मुदा संगमे असमक बम विस्फोट, उड़ीसाक नन बलात्कार आ मालेगाँव विस्फोट मोरक पएर सिद्ध भेल।
शेष स्थायी स्तंभ यथावत अछि।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ ३० अक्टूबर २००८) ६२ देशसँ १,०८,३१२ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आऽ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.co.in ggajendra@yahoo.co.in
अंतिका प्रकाशन की नवीनतम पुस्तकें
सजिल्द
मीडिया, समाज, राजनीति और इतिहास
डिज़ास्टर : मीडिया एण्ड पॉलिटिक्स: पुण्य प्रसून वाजपेयी 2008 मूल्य रु. 200.00
राजनीति मेरी जान : पुण्य प्रसून वाजपेयी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.300.00
पालकालीन संस्कृति : मंजु कुमारी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 225.00
स्त्री : संघर्ष और सृजन : श्रीधरम प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.200.00
अथ निषाद कथा : भवदेव पाण्डेय प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.180.00
उपन्यास
मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
कहानी-संग्रह
रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.125.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 180.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
बडक़ू चाचा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 195.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
कविता-संग्रह
या : शैलेय प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 160.00
जीना चाहता हूँ : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 300.00
कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 225.00
लाल रिब्बन का फुलबा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.190.00
लूओं के बेहाल दिनों में : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 195.00
फैंटेसी : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 190.00
दु:खमय अराकचक्र : श्याम चैतन्य प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 190.00
कुर्आन कविताएँ : मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 150.00
मैथिली पोथी
विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष 2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 165.00
पुस्तक मंगवाने के लिए मनीआर्डर/ चेक/ ड्राफ्ट अंतिका प्रकाशन के नाम से भेजें। दिल्ली से बाहर के एट पार बैंकिंग (at par banking) चेक के अलावा अन्य चेक एक हजार से कम का न भेजें। रु.200/- से ज्यादा की पुस्तकों पर डाक खर्च हमारा वहन करेंगे। रु.300/- से रु.500/- तक की पुस्तकों पर 10% की छूट, रु.500/- से ऊपर रु.1000/- तक 15% और उससे ज्यादा की किताबों पर 20% की छूट व्यक्तिगत खरीद पर दी जाएगी ।
अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन, एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
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बया, हिन्दी छमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ
संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन, एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
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पेपरबैक संस्करण
उपन्यास
मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00
कहानी-संग्रह
रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
शीघ्र प्रकाश्य
आलोचना
इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक
बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन
सामाजिक चिंतन
किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा
शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र
उपन्यास
माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन
कहानी-संग्रह
धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम
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२.संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आऽ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आऽ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भ' गेल।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आऽ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आऽ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-) मे श्रुति प्रकाशन, १/७, द्वितीय तल, पटेल नगर (प.) नई दिल्ली-११०००८ द्वारा छापल गेल अछि। e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com website: http://www.shruti-publication.com
महत्त्वपूर्ण सूचना:(२) 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आऽ ३.मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण-पञ्जी-प्रबन्ध डाटाबेश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(३) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक 'सहस्रबाढ़नि'(उपन्यास), 'गल्प-गुच्छ'(कथा संग्रह) , 'भालसरि' (पद्य संग्रह), 'बालानां कृते', 'एकाङ्की संग्रह', 'महाभारत' 'बुद्ध चरित' (महाकाव्य)आऽ 'यात्रा वृत्तांत' विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे प्रकाशित होएत। प्रकाशकक, प्रकाशन तिथिक, पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना (४): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, ई-प्रकाशित तँ होएबे करत, संगमे एकर प्रिंट संस्करण सेहो निकलत जाहिमे पुरान २४ अंकक चुनल रचना सम्मिलित कएल जाएत।
महत्वपूर्ण सूचना (५): १५-१६ सितम्बर २००८ केँ इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, मान सिंह रोड नई दिल्लीमे होअयबला बिहार महोत्सवक आयोजन बाढ़िक कारण अनिश्चितकाल लेल स्थगित कए देल गेल अछि।
मैलोरंग अपन सांस्कृतिक कार्यक्रमकेँ बाढ़िकेँ देखैत अगिला सूचना धरि स्थगित कए देलक अछि।
२.गद्य
२.१.कथा 1.सुभाषचन्द्र यादव(असुरक्षित) 2.रामभरोस कापड़ि "भ्रमर" (हुगलीपर बहैत गंगा)
२.२.मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना-धीरेन्द्र प्रेमर्षि
२.३.प्रकाश चन्द्र झा : मैथिली रंगकर्ममे थ्री-इन-वन- महेन्द्र मलंगिया
२.४. १.जीवन झाक नाटकक सामाजिक विवर्तन- प्रेमशंकर सिंह (आगाँ)२.स्व. राजकमल चौधरी पर - डॉ. देवशंकर नवीन (आगाँ)
२.५.यायावरी- कैलाश कुमार मिश्र (लोअर दिवांग घाटी: इदु-मिसमी जनजातिक अनुपम संसार)
२.६. १.लघुकथा- कुमार मनोज कश्यप २. दैनिकी- ज्योति ३. उपन्यास
२.७. चौकपर आणविक समझौता:- कृपानन्द झा
२.८. १.नवेन्दु कुमार झा छठिपर २.नूतन झा भ्रातृद्वितियापर
कथा
१. सुभाषचन्द्र यादव २. श्री रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल- मधुबनी। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
असुरक्षित
ट्रेनसँ उतरि कs ओ स्टेशनमे टांगल घड़ी देखलक। पौने दू। ओ ठमकि कs सोचय लागल । की करय ? चलि जाय ? या राति एत्तहि बिता लिअय? भरि रस्ता ओ अही गुनधुन मे पड़ल रहल आ अखनो छ पाँच कS रहल अछि। स्टेशन सँ घरक बीस-पच्चीस मिनटक रस्ता ओकरा बड्ड भारी लागि रहल छलै। जाड़क एहि निसबद राति मे सड़क़ एकदम सुनसान हेतै। समय साल बड्ड खराब छै। कखन की भS जेतै तकर कोनो ठेकान नहि।
ओना ओकरा लग तेहन किछु नहि रहै। पचास-साठि टा टाका, एगो दामी चद्दरि आ पिन्हनावला कपड़ा। लेकिन जँ ईहो सब छिना गेलै तऽ फेर ओ जल्दी कीनि नहि सकत। ओ स्टेशनक सिमटीवला ठरल बेंच पर बैसि गेल आ सोचय लागल।
परसू खन जाइतो काल ओ रातिए मे गेल रहय। जतय गेल रहय, ओतुक्का सीधा गाड़ी रातिए मे भेटै छै आ ओतय सँ साँझमे चलि कS एतय अखन दू बजे रातिमे पहुँचल अछि। जहिया जाइत रहय, तहिया साँझे सँ ओकर मन भारी रहै। मनमे अनेक तरहक आशंका आ भय समा गेल रहै। ट्रेन एक बजे रातिमे रहै। एहि जड़कालामे एतेक रातिकेँ स्टेशन गेनाइ ओकरा पहाड़ बुझाइत रहै। ओना ओ जतेक बेर निकलैत अछि, ओकरा लगैत रहैत छैक भS सकैत छै ई ओकर अंतिम यात्रा होइ।
जाइत काल ओ बहुत चिन्तित आ उद्विग्न रहय । घरक लोक ओकरा खा-पी कS थोड़े काल सूति रहS कहलकै। फेर बारह बजे उठत आ चल जायत। लेकिन ओ बुझैत रहय ओकरा निन्न नहि हेतै। जँ कदाचित निन्न पड़ियो गेल तS बारह बजे उठि जायत तकर कोन गारंटी! आ जँ उठियो गेल तS सीड़क तर गरमा गेला पर बिछौन छोड़ S मे कतेक आलस आ कष्ट हेतै ! मुदा ई सब बात कोनो तेहन बात नहि रहै। ओकरा सबसँ बेसी चिन्ता एहि बातक रहै जे एतेक राति कS ओ जायत कोना? जाड़क एहि सुनसान रातिमे असकरे स्टेशन जायब ओकरा भयावह बुझाइत रहै। एतेक राति कS ने रिक्शा भेटै छै, ने सड़क पर एक्को टा आदमी।
ओ तय केलक जे आठ बजे निकलि जायत। स्टेशनक बगल वला हॉलमे आखिरी शो सिनेमा देखत आ ट्रेन पकड़ि लेत। हॉलमे जाड़ो सँ बचल रहत। घरक लोक ओकर एहि निर्णय सँ अचंभित भेल। पहिने कहियो ओ एना नहि कयने रहय। ओकर चिंता आ डर देखि कS घरक लोक विरोध नहि केलकै। ओ अपन निश्चित कयल कार्यक्रमक अनुसार घरसँ आठ बजे निकलि गेल। सितलहरी तेहन रहै जे एतेक सबेरे सबटा दोकान बन्न भऽ गेल छलै। सड़क पर ओकरा दुइए टा आदमी भेटलै। एकटा के भेदी दृष्टि सँ तऽ ओ डेराइयो गेल रहय। हॉल पर ओ सवा आठ बजे पहुँचि गेल आ नौ बजे धारि टौआइत रहल। घर पर रहितय तऽ आराम करैत रहितय। हॉल पर बइसइयोक ठहार नहि रहै। ओ देबालक टेक लेने ठाढ़ रहल। आब ओकरा ट्रेन छुटबाक चिंता हुअय लगलैक। खोंचावला, पानवला आ गेटकी सँ पता लगेलक सिनेमा कखन खतम हेतै; फ़िलिम लंबा तऽ ने छै?
शो टुटिते एक गोटय सँ टाइम पुछलक। सवा बारह। गाड़ी नहि छुटतै । तइयो ओ अपन चालि तेज केलक आ स्टेशन दिस जाइ वला रेलामे सन्हिया गेल। स्टेशन पहुँचि कऽ ओकरा पता चललै गाड़ी बहुत लेट छै। दू सँ पहिने नहि खुलतै। ओ टिकट कटेलक आ सिमटी वला बेंच पर बइस कऽ प्रतीक्षा करय लागल। भरिसक इएह बेंच रहै, जइ पर अखन बइसल सोचि रहल अछि। आ सोचि की रहल अछि, परसुक्का बात मोन पाड़ि रहल अछि।
सोचबाक लेल छइहो की? गुंडा-बदमाशक डर। पहिने कोनो डर नहि रहै। ओ बहुत-बहुत राति कऽ कतयसँ कतय गेल अछि। नि:शंक। बेधड़क। लेकिन आब राति कऽ निकलबाक साहस नहि होइत छै। अखबारमे रोज लूटपाट आ हत्याक समाचार पढ़ि-पढ़ि कऽ आ लोकक अनुभव सुनि-सुनि कऽ जी मे डर समा गेल छै।
ओ उधेड़बुन मे पड़ल किछु तय नहि कऽ पाबि रहल अछि जे की करय। घर चलि जाय कि स्टेशने पर भोर कऽ लिअय। रिक्शा भरिसक्के भेटतै। भेटियो जेतै तऽ रिक्शावलाकेँ गुंडा की
गुदानतै ! जँ रिक्शेवला गुंडा निकलि गेल, तखन ओ की करत ? आब ककरो पर भरोस नहि रहलै।
ढील पड़ि गेल मफलरकेँ ओ कसि कऽ लपेटलक आ चद्दरिसँ मूड़ी आ टांगकेँ नीक जकाँ झाँपलक । मुदा एहि झाँप-तोपसँ जाड़ नहि भागलै। निफाह प्लेटफार्म पर पछिया सट-सट लगै आ सौंसे शरीर केँ छेदने चल जाइत रहै । पोन ठरि कऽ पानि भऽ गेल छलै । ओ छने-छन अपन आसन बदलि रहल छल। पछिला दू राति सँ ओ सूति नहि सकल आ ट्रेनमे झमारल गेल। थकनी आ जगरनामे और बेसी जाड़ होइ छै। घर चल जइतय तऽ सीड़कमे गरमा कऽ सूति रहियत।
ओ विचारलक जे टहलि कऽ रिक्शा देख आबय । भेटलै तऽ चल जायत । लेकिन रिक्शा पड़ाव पर क्यो कत्तहु नहि रहै । अन्हारमे एकटा रिक्शा लागल छलै । देखलक सीट पर एक गोटय घोकड़ी लगा कऽ पड़ल अछि । ओ एक-दू बेर हाक देलकै । मुदा ओ आदमी नहि उठलै । ओ फेर पेशोपेश मे पड़ि गेल । कनेक दूर पर एक आदमी असकरे चलल जाइत रहै । ओकरा पर नजरि पड़िते ओ झटकि कऽ विदा भेल जेना ओकरा पकड़ि लेत आ संग-संग घर धरि पहुँचि जायत । ओ थोड़बे दूर झटकल गेल होयत कि ओकर चालि मंद पड़ि गेलै । कोनो जरूरी नहि जे ओ आदमी ओम्हरे जेतै, जेम्हर ओकरा गेनाइ छै । लेकिन कोनो अज्ञात प्रेरणावश ओ धीरे-धीरे बढ़ैत गेल । आगाँ जा कऽ एकटा मोड़ रहै । जखन ओ मोड़ पर घूमल आ हियासलक तऽ ओहि आदमी के दूर-दूर धरि कोनो पता नहि रहै । नहि जानि ओ आदमी कतय अलोपित भऽ गेलै । कतहु नुकायल ओकर प्रतीक्षा तऽ ने कऽ रहल छै ! अचानक ओकर देह डरसँ सिहरि उठलै । ई डर बेसी काल टिकलै नहि । ओ कनेक और आगाँ बढ़ल तऽ ओकर कलेजा थिर हुअय लगलै ।
जाड़क पीयर मलिन इजोरिया पसरल छलै । भरिसक पछियाक कारणे कुहेस नहि रहै । स्टैण्ड मे लागल भोरका बस दूरे सँ देखा रहल छलै । अपराधक एकटा अड्डा ईहो रहै । एहिठाम कैक बेर कैक आदमी के सामान धिनायल रहै । स्टैण्डक घेरा लग पहुँचिते ओकर आशंका बढ़ि गेलै । स्टैण्ड निर्जन आ सुनसान पड़ल छलै । राति कऽ ई जगह बड़ भयाओन लगैत रहै ।
स्टैण्ड सँ निकलि गेला पर ओकर डर कमि गेलै ।लेकिन अखन ओ अदहे दूर आयल छल । बचलहा रस्ता बहुत दूर बुभाइत रहै । पुलिसो कतहु नहि छलै । सड़क कातक दोकान दौड़ी, घर-दुआर सब बंद रहै । एक्को टा कुकूरो नहि देखाइत रहै । जाड़मे ओहो सब दुबकल होयत । नमडोरिया सड़क पर ओ असकरे चल जा रहल छल । कैक बेर अपनो जुत्ताक आवाज सुनि कऽ लगै क्यो पछुअयने आबि रहल अछि आ जी सन्न सिन रहि जाइ । खट-खट सुनि कऽ छाती धड़कि उठै ।
ओकर घर अदहोक अदहा रहि गेल छलै । ओकरा भरोस भेल चल जाइत रहै जे आब ओ बचि गेल । आब किछु नहि हेतै । ओ सकुशल घर पहुँचि जायत । ठीक तखने ओ आवाज सुनलक । आवाज पाछाँ सँ आयल छलै । क्यो किछु बाजल रहै । ओकर जी सनाक सिन उठलै । ओ पलटि कऽ ताकलक। मुदा क्यो देखेलै नहि । ओकरा भेलै क्यो अपन घरमे किछु बाजल होयत। ओ बढ़ैत गेल। ’
“के छी ?” - पाछाँ सँ क्यो पुछलकै ।
ओ धुमि कऽ देखलक । एक आदमी ठाढ़ छलै । ओ कोनो जवाब नहि देलक आ बढ़ैत रहल।
’अय के छिअय ? ठाढ़ रहऽ।’ - ओकर एहि आदेशसँ ओ भयभीत भऽ गेल आ अपन चालि तेज कऽ देलक । ओ आदमी अपराधी बुझा रहल छ्लै । अखन जँ ओ आदमी आबिकऽ ओकरा घेरि लै तऽ ओ कतबो चिचिआयत क्यो नहि एतै। आब राति-बिराति मुसीबत मे पड़ल लोकक लेल क्यो नहि निकलै छै । ओ दसे डेग आगू बढ़ल होयत कि पलटि कऽ ताकलक। ताकिते ओ आतंकित भऽ उठल। ओ आदमी दौड़ल आबि रहल छलै ।
ओ भागल । ओ भागल जा रहल अछि ।
श्री रामभरोस कापड़ि “भ्रमर” (१९५१- ) जन्म-बघचौरा, जिला धनुषा (नेपाल)। सम्प्रति-जनकपुरधाम, नेपाल। त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ एम.ए., पी.एच.डी. (मानद)।
हाल: प्रधान सम्पादक: गामघर साप्ताहिक, जनकपुर एक्सप्रेस दैनिक, आंजुर मासिक, आंगन अर्द्धवार्षिक (प्रकाशक नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, कमलादी)।
मौलिक कृति: बन्नकोठरी: औनाइत धुँआ (कविता संग्रह), नहि, आब नहि (दीर्घ कविता), तोरा संगे जएबौ रे कुजबा (कथा संग्रह, मैथिली अकादमी पटना, १९८४), मोमक पघलैत अधर (गीत, गजल संग्रह, १९८३), अप्पन अनचिन्हार (कविता संग्रह, १९९० ई.), रानी चन्द्रावती (नाटक), एकटा आओर बसन्त (नाटक), महिषासुर मुर्दाबाद एवं अन्य नाटक (नाटक संग्रह), अन्ततः (कथा-संग्रह), मैथिली संस्कृति बीच रमाउंदा (सांस्कृतिक निबन्ध सभक संग्रह), बिसरल-बिसरल सन (कविता-संग्रह), जनकपुर लोक चित्र (मिथिला पेंटिङ्गस), लोक नाट्य: जट-जटिन (अनुसन्धान)।
नेपाली कृति: आजको धनुषा, जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका सांस्कृतिक सम्पदाहरु (आलेख-संग्रह), भ्रमरका उत्कृष्ट नाटकहरु (अनुवाद)।
सम्पादन: मैथिली पद्य संग्रह (नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान), लाबाक धान (कविता संग्रह), माथुरजीक “त्रिशुली” खण्डकाव्य (कवि स्व. मथुरानन्द चौधरी “माथुर”), नेपालमे मैथिली पत्रकारिता, मैथिली लोक नृत्य: भाव, भंगिमा एवं स्वरूप (आलेख संग्रह)। गामघर साप्ताहिकक २६ वर्षसँ सम्पादन-प्रकाशन, “अर्चना” साहित्यिक संग्रहक १५ वर्ष धरि सम्पादन-प्रकाशन। “आँजुर” मैथिली मासिकक सम्पादन प्रकाशन, “अंजुली” नेपाली मासिक/ पाक्षिकक सम्पादन प्रकाशन।
अनुवाद: भयो, अब भयो (“नहि आब नहि”क मनु ब्राजाकीद्वारा कयल नेपाली अनुवाद)
सम्मान: नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान द्वारा पहिल बेर १९९५ ई.मे घोषित ५० हजार टाकाक मायादेवी प्रज्ञा पुरस्कारक पहिल प्राप्तकर्ता। प्रधानमंत्रीद्वारा प्रशस्तिपत्र एवं पुरस्कार प्रदान। विद्यापति सेवा संस्थान दरिभङ्गाद्वारा सम्मानित, मैथिली साहित्य परिषद, वीरगंजद्वारा सम्मानित, “आकृति” जनकपुर द्वारा सम्मानित, दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल नेपाल पत्रकार महासंघ धनुषाद्वारा सम्मानित, जिल्ला विकास समिति धनुषा द्वारा दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल पुरस्कृत एवं सम्मानित, नेपाली मैथिली साहित्य परिषद द्वारा २०५९ सालक अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन मुम्वई द्वारा “मिथिला रत्न” द्वारा सम्मानित, शेखर प्रकाशन “पटना” द्वारा “शेखर सम्मान”, मधुरिमा नेपाल (काठमाण्डौ) द्वारा २०६३ सालक मधुरिमा सम्मान प्राप्त। काठमाण्डूमे आयोजित सार्कस्तरीय कवि गोष्ठीमे मैथिली भाषाक प्रतिनिधित्व।
सामाजिक सेवा : अध्यक्ष-तराई जनजाति अध्ययन प्रतिष्ठान, जनकपुर, अध्यक्ष- जनकपुर ललित कला प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपाध्यक्ष- मैथिली प्रज्ञा प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपकुलपति- मैथिली अकादमी, नेपाल, उपाध्यक्ष- नेपाल मैथिली थाई सांस्कृतिक परिषद, सचिव- दीनानाथ भगवती समाज कल्याण गुठी, जनकपुर, सदस्य- जिल्ला वाल कल्याण समिति, धनुषा, सदस्य- मैथिली विकास कोष, धनुषा, राष्ट्रीय पार्षद- नेपाल पत्रकार महासंघ, धनुषा।
हुगली पर बहैत गंगा- रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”
हीरामन आइ फंसि गेल अछि ठेठर बाली बाईक संग। ओहि ठाम तं हीरामनक प्रेम एक तरफा रहैक, ठेठरबाली बाई मात्र सहानुभुति देखौने रहैक। एत्त तं बात बीगड़ि गेल छै। दुनू दिश आगि लागि गेल छै आ हीरबाके भितर छट-पट्टी उठि गेल छै- आब कोना कऽ रहत ग सोनाबाईके विना ओ...।
कएकटा सिनेमा देखने रहय जाहिमे बाइक प्रेम बरोवरि असपल होइत गेलै आ कतेक त एहि संसारे सं विदा भऽ गेल रहय। आ तएँ एम्हर टपबासं पहिने ओ कएक बेर सोचने रहय। कतौ मन मीलि गेल तं...।
दुत्-हमरा सन सनके के पतिअएतै। कनी मनोरंजन करब आ घुरि आएब- हीरा मनके तोष दैत...स्ट्रीटक वंगला नं.४ मे पैसि गेल रहय। समय अपरान्हक तीन बजेक रहैक। दरबज्जा पर एकसरि ठाढ़ि सोना ओकरा किए नीक लागल रहैक। सम्भवतः एहु दुआरे जे आन दरबज्जाक बाई सभ बटोहीकेँ जवर्दस्ती हाक पाड़ैक। नहि आब चाहवलाक देहमे रगड़ा लैक, जेबीमे हाथ धरैक, धक्का मारैक मुदा जखन ओ एहि दुहारि पर आएल त गुम सुम ठाढ़ अठार- उन्नैस वर्षक पीण्डश्याम सन अत्यन्त सुभग हीरा ओकरा अपना दिश आकर्षित कऽ लेलकै आ ओ ओत्त ठमकि गेल रहय। हीराके एखनो मोन गुद-गुदा जाइछै सोनाक तखनका मुस्कीके स्मरण करैत। ओ लोटपोट भऽ गेल रहय आ आंखिक दरबज्जा दऽ सोनाक हृदयमे जेना पैसि जाए चाहने रहय।
सोना ओकरा लऽ दू महला पर सजाओल एकटा कोठरीमे लऽ गेलै। ओ कोठरीमे जएबासं पूर्व घरक वातावरणके जंचबाक लेल नजरि खिरौने रहय- आठ, दश कोठरी आर रहैक, जाहिमे हंसी, मजाकक स्वर आबि रहल छलैक। माने ग्राहक ओम्हरो फंसल रहैक। सोना वांचल छलीह एहु दुआरे जे ओकर रंग ओतेक साफ नहि रहैक, आ ने आन छौड़ी जकां लब-लब ओ करैत छल। ग्राहककें बुझाइक एहि मन्हुआएल छौड़ीमे कोनो जान नहि हयतैक सम्भवतः, तएं ओ चुपचाप ग्राहकक प्रतीक्षामे सभसँ अन्त धरि बैसल करए। बादमे ओकरा सोना सँ पता चललै, सभ के ग्राहक भेटि गेलाक वादे हारल-फुरल लोक ओकरा लग अबैक। एहिसं एक बात त जरूर रहैक- सोना आन बाई जकां तोड़ल-मचोड़ल नहि गेलि रहय, वांचल छलीह। ओकर अनुहारक तेज एखनो दपदप करैक आ सएह तेज हीराके ओकरा दिश आकर्षित कएने रहैक।
पहिल सांझ सोनाक संग महज ग्राहक भऽ वीतबऽ चाहैत रहय हीरा। थाकि हारि गेल छल एहि महानगरमे। बाप मायके कमाएक नाम पर दू हजार टका लऽ कलकत्ता आबि गेल रहय। ओकर गौंआ सभ एत्त कमाइ छै, कहने रहैक कोनो सेठक बंगलापर लिखापढ़ी के काम छै दिआ देबौ।
मन त रहै जे विदेशे उड़ि जाइ, बड़ लोक ओकरो गामके अरब गेलैए। विदेशमे पाइ त होइ छै, मुदा कष्टो कम नहि छैक। घर-परिवार सँ दूर। ओ सोचने रहय- उड़ानक बात बादमे देखल जएतै। एक बेर गौंएँ सभक बातके भजा ली आ कलकत्ता चलि आएल, से आइ पन्द्रह दिन भऽ गेल छै, मुदा ओइ सेठक ओइ ठाम काम नहि भऽ सकल। ओ आबे-आबे ताबे दोसरके रखि लेने रहय। ओ बौआ गेल रहय आ फेरसं सरिआ कऽ काम खोजऽ पड़ि रहल छलैक। रहबालेऽ गौआक खोली रहैक आ खएबा ले सेहो कहियो काल ओकरे सभके ओहि ठाम खा लैक। मुदा कलकत्तामे खर्च त होइते छैक। काम नहि भेटौक त कतेक दिन टिकत ओ...।
सोना बाई टोकैत छै त ओकर तंद्रा भंग भऽ जाइत छै- की सोचऽ लगलहु। आउने, आनो ग्राहक खोज पड़तै ने।
हीरा बच्चेसं भावुक स्वभावक रहल अछि। चौबीस-पच्चीस वर्षक उमेर भऽ गेलै, बाप-माय कतबो वीआहक लेल कहैत छैक ओकरा अपन मनमे की फुरै छै की नहि, वरोबरि मना करैत आएल अछि। नारीक प्रति अत्यन्त सम्मान रखैत अछि हीरा...। आइ उएह नारीक संग...।
“की भेल बाबू साहेब, आउ सेज पर”- कहैत सोना अपन साड़ी खोलऽ लागल। साड़ी खोललाक बाद ब्लाउज खोललक आ निचांक साया सेहो। हीरा एखनो चुपचाप ठाढ़ सोनाक देहयष्टि निहारि रहल छलै। ओ भरल। बजैत अछि- ओहने हवसी सभ अबैत अछि। दारु पीबैत अछि, सिकरेट जड़बैत अछि आ ठुठ्ठा कखनो कऽ सम्वेदनशील अंग पर रगड़ि छिलमिला दैत अछि। नोचैत अछि, निछोड़ैत अछि आ घंटो तबाह कएने रहैछ। ओकरा ने हम किछु कहि सकैत छिऐक ने हमर बाई। मोट पाइ देने रहैछ ओ। इएह छै एहि गल्लीक जीवन आ सत्य...।’ कनेक काल चुप्प भऽ सोना हीरा दिश तकैत बजैत अछि- अहाँ एहि थालो कादोसँ भरल विशाल दलदली मैदानमे अपना वैसबाले एक हाथ सुक्खल ठाम खोजऽ आएल छी- ई अहांक भोलापन अछि आ अहांक इएह भोलापन हमरा भितर धरि हिला देलक अछि। हम एखन धरि सिहरन महशूस कऽ रहल छी। ई सुखानुभूतिक सिहरन थिक जे आइ धरि हमरा नहि भेटल छल, पता नहि अहाँमे की अछि, आइसँ अहाँ हमर गहिंकी छी, हम चाहब अहाँ नित्य आबी, कमसँ कम एक बेर।
हीरा त आर सर्द भऽ जाइत अछि। ई की भऽ रहल छैक। उनटा हुगली बहऽ लगलै एत्त। हम कोना एत्त आबि सकै छी। आइ एक दिन अएबाले कतेक हिम्मत जुटौने छी, ई त सभ दिन कहैत अछि। नहि, कतहु फेर सँ त्रिया चरित देखाओत त ने ई...।
सोना हीराके गुनधुन करैत देखि फेर टोकैत छैक- अहाँ सोचैत हयब, हमर फीश दिनहुं कोना दऽ सकब। बाबूजी, हमरा लेल आनो ग्राहक सभ छैक ने। हम ताहि महक अपन हिस्सासँ बाइके अहाँक हिस्साक पाइ दऽ देबै, अहाँ ओहिना अबियौ, हमरा नीक लागत।
आब हीराके मोन मानि जाइत छैक जे कोनो लाइ-लपेट सोनाक मनमे नहि छै। सांचे ओ बाघ, सिंहक हेंजक विच कोनो अपने सन हरिन खोजऽ चाहैत अछि, जकरा संग सुख दुखक गप कऽ सकए, मोनक पीड़ाकेँ बाँटि सकए।
ओ आश्वस्ति दऽ दैत छैक। ओकर नोकरी, संगमे घटल जाइत पाइ, किछु सुधि नहि रहैछ ओकरा। ओ सोनाकें छातीसँ सटा लैत अछि। पहिल बेर सोनाकें छातीसँ लगा ओकरा अपनत्वक बोध होइत छैक, राहत भेटैत छैक।
मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना
धीरेन्द्र प्रेमर्षि (१९६७- )मैथिली भाषा, साहित्य, कला, संस्कृति आदि विभिन्न क्षेत्रक काजमे समान रूपेँ निरन्तर सक्रिय व्यक्तिक रूपमे चिन्हल जाइत छथि धीरेन्द्र प्रेमर्षि। वि.सं.२०२४ साल भादब १८ गते सिरहा जिलाक गोविन्दपुर-१, बस्तीपुर गाममे जन्म लेनिहार प्रेमर्षिक पूर्ण नाम धीरेन्द्र झा छियनि। सरल आ सुस्पष्ट भाषा-शैलीमे लिखनिहार प्रेमर्षि कथा, कविताक अतिरिक्त लेख, निबन्ध, अनुवाद आ पत्रकारिताक माध्यमसँ मैथिली आ नेपाली दुनू भाषाक क्षेत्रमे सुपरिचित छथि। नेपालक स्कूली कक्षा १,२,३,४,९ आ १०क ऐच्छिक मैथिली तथा १० कक्षाक ऐच्छिक हिन्दी विषयक पाठ्यपुस्तकक लेखन सेहो कएने छथि। साहित्यिक ग्रन्थमे हिनक एक सम्पादित आ एक अनूदित कृति प्रकाशित छनि। प्रेमर्षि लेखनक अतिरिक्त सङ्गीत, अभिनय आ समाचार-वाचन क्षेत्रसँ सेहो सम्बद्ध छथि। नेपालक पहिल मैथिली टेलिफिल्म मिथिलाक व्यथा आ ऐतिहासिक मैथिली टेलिश्रृङ्खला महाकवि विद्यापति सहित अनेको नाटकमे अभिनय आ निर्देशन कऽ चुकल प्रेमर्षिकेँ नेपालसँ पहिलबेर मैथिली गीतक कैसेट कलियुगी दुनिया निकालबाक श्रेय सेहो जाइत छनि। हिनक स्वर सङ्गीतमे आधा दर्जनसँ अधिक कैसेट एलबम बाहर भऽ चुकल अछि। कान्तिपुरसँ हेल्लो मिथिला कार्यक्रम प्रस्तुत कर्ता जोड़ी रूपा-धीरेन्द्रक धीरेन्द्रक अबाज गामक बच्चा-बच्चा चिन्हैत अछि। “पल्लव” मैथिली साहित्यिक पत्रिका आ “समाज” मैथिली सामाजिक पत्रिकाक सम्पादन।
मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना-धीरेन्द्र प्रेमर्षि
रूप-रङ्ग एवं चालि-प्रकृति देखलापर गीत आ गजल दुनू सहोदरे बुझाइत छैक। मुदा मैथिलीमे गीत अति प्राचीन काव्यशैलीक रूपमे चलैत आएल अछि, जखन कि गजल अपेक्षाकृत अत्यन्त नवीन रूपमे। एखन दुनूकेँ एकठाम देखलापर एना लगैत छैक जेना गीत-गजल कोनो कुम्भक मेलामे एक-दोसरासँ बिछुड़ि गेल छल। मेलामे भोतिआइत-भासैत गजल अरबदिस पहुँचि गेल। गजल ओम्हरे पलल-बढ़ल आ जखन बेस जुआन भऽ गेल तँ अपन बिछुड़ल सहोदरकेँ तकैत गीतक गाम मिथिलाधरि सेहो पहुँचि गेल। जखन दुनूक भेट भेलैक तँ किछु समय दुनूमे अपरिचयक अवस्था बनल रहलैक। मिथिलाक माटिमे पोसाएल गीत एकरा अपन जगह कब्जा करऽ आएल प्रतिद्वन्दीक रूपमे सेहो देखलक। मुदा जखन दुनू एक-दोसराकेँ लगसँ हियाकऽ देखलक तखन बुझबामे अएलैक-आहि रे बा, हमरासभमे एना बैर किएक, हम दुनू तँ सहोदरे छी! तकरा बाद मिथिलाक धरतीपर डेगसँ डेग मिला दुनू पूर्ण भ्रातृत्व भावेँ निरन्तर आगाँ बढ़ैत रहल अछि।
गीत आ गजलक स्वरूप देखलापर दुनूक स्वभावमे अपन पोसुआ जगहक स्थानीयताक असरि पूरापूर देखबामे अबैत अछि। गीत एना लगैत छैक जेना रङ्गबिरङ्गी फूलकेँ सैँतिकऽ सजाओल सेजौट हो। मिथिलाक गीतमे काँटोसन बात जँ कहल जाइछ तँ फूलेसन मोलायम भावमे। एकरा हम एहू तरहेँ कहि सकैत छी जे गीत फूलक लतमारापर चलबैत लोककेँ भावक ऊँचाइधरि पहुँचबैत अछि। एहिमे मिथिलाक लोकव्यवहार एवं मानवीय भाव प्रमुख भूमिका निर्वाह करैत आएल अछि। जाहि भाषाक गारियोमे रिदम आ मधुरता होइत छैक, ओहि भूमिपर पोसाएल गीतक स्वरूप कटाह-धराह भइए नहि सकैत अछि। कही जे गीतमे तँ लालीगुराँसक फूलजकाँ ओ ताकत विद्यमान छैक जे माछ खाइत काल जँ गऽरमे काँट अटकि गेल तँ तकरो गलाकऽ समाप्त कऽ दैत छैक।
गजलक बगय-बानि देखबामे भलहि गीतेजकाँ सुरेबगर लगैक, एहिमे गीतसन नरमाहटि नहि होइत छैक। उसराह मरुभूमिमे पोसाएल भेलाक कारणे गजलक स्वभाव किछु उस्सठ होइत छैक। ई कट्टर इस्लामीसभक सङ्गतिमे बेसी रहल अछि, तेँ एकर स्वभावमे “जब कुछ न चलेगी तो ये तलवार चलेगा” सन तेज तेवरबेसी देखबामे अबैत छैक। यद्यपि गजलकेँ प्रेमक अभिव्यक्तिक सशक्त माध्यम मानल जाइत छैक। गजल कहितहिँदेरी लोकक मन-मस्तिष्कमे प्रेममय माहौल नाचि उठैत छैक, एहि बातसँ हम कतहु असहमत नहि छी। मुदा गजलमे प्रेमक बात सेहो बेस धरगर अन्दाजमे कहल जाइत छैक। कहबाक तात्पर्य जे गजल तरुआरिजकाँ सीधे बेध दैत छैक लक्ष्यकेँ। लाइलपटमे बेसी नहि रहैत छैक गजल। मिथिलाक सन्दर्भमे गीत आ गजलक एक्कहि तरहेँ जँ अन्तर देखबऽ चाही तँ ई कहल जा सकैत अछि जे गजल फूलक प्रक्षेपणपर्यन्त तरुआरिजकाँ करैत अछि, जखन कि गीत तरुआरि सेहो फूलजकाँ भँजैत अछि।
मैथिलीमे संख्यात्मक रूपेँ गजल आनहि विधाजकाँ भलहि कम लिखल जाइत रहल हो, मुदा गुणवत्ताक दृष्टिएँ ई हिन्दी वा नेपाली गजलसँ कतहु कनेको झूस नहि देखबामे अबैत अछि। एकर कारण इहो भऽ सकैत छैक जे हिन्दी, नेपाली आ मैथिली तीनू भाषामे गजलक प्रवेश एक्कहि मुहूर्त्तमे भेल छैक। गजलक श्रीगणेश करौनिहार हिन्दीक भारतेन्दु, नेपालीक मोतीराम भट्ट आ मैथिलीक पं. जीवन झा एक्कहि कालखण्डक स्रष्टासभ छथि।
मैथिलीयोमे गजल आब एतबा लिखल जा चुकल अछि जे एकर संरचनाक मादे किछु कहनाइ दिनहिमे डिबिया बारबजकाँ लगैत अछि। एहनोमे यदाकदा गजलक नामपर किछु एहनो पाँतिसभ पत्रपत्रिकामे अभरि जाइत अछि, जकरा देखलापर मोन किछु झुझुआन भइए जाइत छैक। कतेकोगोटेक रचना देखलापर एहनो बुझाइत अछि, जेना ओलोकनि दू-दू पाँतिवला तुकबन्दीक एकटा समूहकेँ गजल बूझैत छथि। हमरा जनैत ओलोकनि गजलकेँ दूरेसँ देखिकऽ ओहिमे अपन पाण्डित्य छाँटब शुरू कऽ दैत छथि। जँ मैथिली साहित्यक गुणधर्मकेँ आत्मसात कऽ चलैत कोनो व्यक्ति एकबेर दू-चारिटा गजल ढङ्गसँ देखि लिअए, तँ हमरा जनैत ओकरामे गजलक संरचनाप्रति कोनो तरहक द्विविधा नहि रहि जएतैक।
तेँ सामान्यतः गजलक सम्बन्धमे नव जिज्ञासुक लेल जँ किछु कहल जाए तँ विना कोनो पारिभाषिक शब्दक प्रयोग कएने हम एहि तरहेँ अपन विचार राखऽ चाहैत छी- गजलक पहिल दू पाँतिक अन्त्यानुप्रास मिलल रहैत छैक। अन्तिम एक, दू वा अधिक शब्द सभ पाँतिमे सझिया रहलहुपर साझी शब्दसँ पहिनुक शब्दमेअनुप्रास वा कही तुकबन्दी मिलल रहबाक चाही। अन्य दू-दू पाँतिमे पहिल पाँति अनुप्रासक दृष्टिएँ स्वच्छन्द रहैत अछि। मुदा दोसर पाँति वा कही जे पछिला पाँति स्थायीवला अनुप्रासकेँ पछुअबैत चलैत छैक।
ई तँ भेल गजलक मुह-कानक संरचनासम्बन्धी बात। मुदा खालि मुहे-कानपर ध्यान देल जाए आ ओकर कथ्य जँ गोङिआइत वा बौआइत रहि जाए तँ देखबामे गजल लगितो यथार्थमे ओ गीजल भऽ जाइत अछि। तेँ प्रस्तुतिकरणमे किछु रहस्य, किछु रोमाञ्चक सङ्ग समधानल चोटजकाँ गजलक शब्दसभ ताल-मात्राक प्रवाहमय साँचमे खचाखच बैसैत चलि जएबाक चाही। गजलक पाँतिकेँ अर्थवत्ताक हिसाबेँ जँ देखल जाए तँ कहि सकैत छी जे हऽरक सिराउरजकाँ ई चलैत चलि जाइत छैक। हऽरक पहिल सिराउर जाहि तरहेँ धरतीक छाती चीरिकऽ ओहिमे कोनो चीज जनमाओल जा सकबाक आधार प्रदान करैत छैक, तहिना गजलक पहिल पाँति कल्पना वा विषयवस्तुक उठान करैत अछि, दोसर पाँति हऽरक दोसर सिराउरक कार्यशैलीक अनुकरण करैत पहिलमे खसाओल बीजकेँ आवश्यक मात्रमे तोपन दऽकऽ पुनः आगू बढ़बाक मार्ग प्रशस्त्र करैत अछि। गजलक प्रत्येक दू-पाँति अपनहुमे स्वतन्त्र रहैत अछि आ एक-दोसराक सङ्ग तादात्म्य स्थापित करैत समग्रमे सेहो एकटा विशिष्ट अर्थ दैत अछि। एकरा दोसर तरहेँ एहुना कहल जा सकैत अछि जे गजलक पहिल पाँति कनसारसँ निकालल लालोलाल लोह रहैत अछि, दोसर पाँति ओकरा निर्दिष्ट आकारदिस बढ़एबाक लेल पड़ऽ वला घनक समधानल चोट भेल करैत अछि।
गीतक सृजनमे सिद्धहस्त मैथिलसभ थोड़े बगय-बानि बुझितहिँ आसानीसँ गजलक सृजन करऽ लगैत छथि। सम्भवतः तेँ आरसीप्रसाद सिंह, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, डॉ महेन्द्र, मार्कण्डेय प्रवासी, डॉ. गङ्गेश गुञ्जन, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र आदि मूलतः गीत क्षेत्रक व्यक्तित्व रहितहु गजलमे सेहो कलम चलौलनि। ओहन सिद्धहस्त व्यक्तिसभक लेल हमर ई गजल लिखबाक तौर-तरिकाक मादे किछु कहब हास्यास्पद भऽ सकैत अछि, मुदा नवसिखुआसभकेँ भरिसक ई किछु सहज बुझाइक।
मैथिलीमेकलम चलौनिहारसभमध्य प्रायः सभ एक-आध हाथ गजलोमे अजमबैत पाओल गेलाह अछि। जनकवि वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” सेहो “भगवान हमर ई मिथिला” शीर्षक कविता पूर्णतः गजलक संरचनामे लिखने छथि। मुदा सियाराम झा “सरस”, स्व. कलानन्द भट्ट, डॉ.राजेन्द्र विमल सन किछु साहित्यकार खाँटी गजलकारक रूपमे चिन्हल जाइत छथि। ओना सोमदेव, डॉ.केदारनाथ लाभ, डॉ.तारानन्द वियोगी, डॉ.रामचैतन्य धीरज, बाबा वैद्यनाथ, डॉ. विभूति आनन्द, डा.धीरेन्द्र धीर, फजलुर्रहमान हाशमी, रमेश, बैकुण्ठ विदेह, डा.रामदेव झा, रोशन जनकपुरी, पं. नित्यानन्द मिश्र, देवशङ्कर नवीन, श्यामसुन्दर शशि, जनार्दन ललन, जियाउर्ररहमान जाफरी, अजितकुमार आजाद, अशोक दत्त आदिसमेत कतेको स्रष्टाक गजल मैथिली गजल-संसारकेँ विस्तृति दैत आएल अछि।
गजलमे महिला हस्ताक्षर बहुत कम देखल जाइत अछि। मैथिली विकास मञ्चद्वारा बहराइत पल्लवक पूर्णाङ्क १५, २०५१ चैतक अङ्क गजल अङ्कक रूपमे बहराएल अछि। सम्भवतः ३४ गोट अलग-अलग गजलकारक एकठाम भेल समायोजनक ई पहिल वानगी हएत। एहि अङ्कमे डा. शेफालिका वर्मा एक मात्र महिला हस्ताक्षरक रूपमे गजलक सङ्ग प्रस्तुत भेलीह अछि। एही अङ्कक आधारपर नेपालीमे मैथिली गजल सम्बन्धी दूगोट समालोचनात्मक आलेख सेहो लिखाएल अछि। पहिल मनु ब्राजाकीद्वारा कान्तिपुर २०५२ जेठ २७ गतेक अङ्कमे आ दोसर डा. रामदयाल राकेशद्वारा गोरखापत्र २०५२ फागुन २६ गतेक अङ्कमे। छिटफुट आनहु गजल सङ्कलन बहराएल होएत, मुदा तकर जानकारी एहि लेखककेँ नहि छैक। हँ, सियाराम झा “सरस”क सम्पादनमे बहराएल “लोकवेद आ लालकिला” मैथिली गजलक गन्तव्य आ स्वरूप दऽ बहुत किछु फरिछाकऽ कहैत पाओल गेल अछि। एहिमे सरससहित तारानन्द वियोगी आ देवशङ्कर नवीनद्वारा प्रस्तुत गजलसम्बन्धी आलेख सेहो मैथिली गजलक तत्कालीन अवस्थाधरिक साङ्गोपाङ्ग चित्र प्रस्तुत करबामे सफल भेल अछि।
समग्रमे मैथिली गजलक विषयमे ई कहि सकैत छी जे मैथिली गीतक खेतसँ प्राप्त हलगर माटिमे गुणवत्ताक दृष्टिएँ मैथिली गजल निरन्तर बढ़िरहल अछि, बढ़िएरहल अछि।
गजल १
झुट्ठो जे नहि डाइन नचौलक ओ भगता ओ धामी की
एको गाम जँ डाहि ने सकलहुँ तँ ओढ़ने रमनामी की
अक्षत-चानन धूप-दीपसँ जतऽ यज्ञ सम्पूर्ण हुअए-
ततऽ जँ क्यो हड्डी रगड़ैए, ओ कामी ओ कलामी की
बाप-माएपर्यन्त परोसै स्नेह जखन बटखारासँ-
नकली सभक दुलार लगैए, से काकी, से मामी की
सोनित सेहो शराब बनै छै शासनकेर सनकी भट्ठी
दियौ घटाघटि जे भेटए से, फुसियाही की दामी की
पोखरिक रखबारी पएबालए कण्ठी खालि बान्हि लिअ
फेर गटागटि घोँटने चलियौ, से पोठिया से बामी की
पाग उतारिकऽ कूदि गेल “प्रेमर्षि” सेहो अखाड़ामे
ढाहि सकल ने जुल्म-इमारत करतै ओहन सुनामी की
(वि.२०६२/०५/३०)
गजल २
मोन जँ कारी अछि तँ चमड़ी गोरे की करतै?
ममते जँ अरुआएल तँ माएक कोरे की करतै?
गगनसँ उतरै मेघ नयनमे जखन साँचिकऽ शङ्का
केहनो अन्हार चीरिकऽ जनमल भोरे की करतै?
नीम पीबिकऽ माहुर सेहो पचाबैत आएल छी तँ
काँटकेँ धाङैत डेगकेँ थोड़े अङोरे की करतै?
घामक सिँचल धरती छोड़ि ने जकरा कतौ भरोसा
तकरा लेल बनसीक सुअदगर बोरे की करतै?
आगि पीबिकऽ बज्र बनौने छै जे अप्पन छाती
तकरा आगाँ गोहिया आँखिक नोरे की करतै?
तैयो लागल “प्रेमर्षि” अछि बस प्रेमक खेतीमे
प्रेमक धन भेल घरमे जाबिड़ चोरे की करतै?
(वि.२०६२/०५/२०)
शुभकामना दिआबातीक- धीरेन्द्र प्रेमर्षि
चमकैत दीपकेँ देखिकऽ
जेना झुण्ड कीड़ा-मकोड़ा
कऽ दैछ न्यौछावर अपन अस्तित्व
दुर्गुण वा खलतत्त्वरूपी कीड़ा-मकोड़ाकेँ
नष्ट करबाक लेल चाही ने आओर किछु
अपना भीतरक मानवीय इजोतक टेमी
कने आओर उसका ली
अपनाकेँ सभक मन-मनमे मुसका ली
इएह अछि शुभकामना दिआबातीक-
देहरि दीप जरए ने जरए
मनधरि सदति रहए झिलमिल
किएक तँ अपना मात्र इजोतमे रहने
मेटा नहि सकैछ संसारसँ अन्हार (अगिला अँकमे धीरेन्द्र जीक गजल पद्य स्तंभमे)
महेन्द्र मलंगिया प्रकाश झापर
महेन्द्र मलंगिया :
मैथिलीक सुपरिचित नाटककार, रंग निर्देशक एवं मैलोरंगक संस्थापक अध्यक्ष । लोक साहित्य पर गंभीर शोध आलेख । मैथिलीमे 13टा नाटक, 19टा एकांकी, 14टा नुक्कड़ आ 10टा रेडियो नाटक प्रकाशित आ आकाशवाणी सँ प्रसारित । सीनियर फेलोशिप (भारत सरकार), इंटरनेशनल थिएटर इंस्टिच्यूट (नेपाल), प्रबोध साहित्य सम्मान आदि सँ सम्मानित । संप्रति ज्योतिरीश्वर लिखित मैथिलीक प्रथम पुस्तक वर्णरत्नाकर पर शोध कार्य । श्री महेन्द्र मलगियाक जन्म २० जनबरी १९४६ मे मधुबनी जिलाक मलंगिया गाममे भेलन्हि। मलंगियाजी मैथिली हिन्दी, अंग्रेजी आ नेपाली भाषाक जानकार आ थियेटर शिक्षण, पटकथा लेखन आ तत्सम्बन्धी शोधक फ्रीलान्स शिक्षक छथि। सम्मान, उपाधि आ पुरस्कार: २००६(सीनियर फ़ेलो, मानव ससाधन विकास विभाग, भारत सरकार), २००५ ई. मे मैथिली भाषाक सर्वाधिक प्रतिष्ठित प्रबोध सम्मान, उनाप सम्मान, परवाहा (उवा नाट्य परिषद, परवाहा), भानु कला पुरस्कार (कला जानकी संस्थान, जनकपुर), २००४- पाटलिपुत्र पुरस्कार ( प्रांगन थिएटर, पटना), इप्टा पुरस्कार (कटिहार इप्टा, कटिहार), २००३- गोपीनाथ आर्यल पुरस्कार (इन्टरनेशनल थिएटर इन्स्टीट्यूट, नेपाल), यात्री चेतना पुरस्कार (चेतना समिति, पटना), बैद्यनाथ सियादेवी पुरस्कार (बी.एस.डी.पी. काठमाण्डू), २०००- चेतना समिति सम्मान (चेतना समिति, पटना), जिला विकास धनुषा साहित्य पुरस्कार (जिला विकास समिति, जनकपुर), १९९९- विद्यापति सेवा संस्थान सम्मान (विद्यापति सेवा संस्थान सम्मान, दरभंगा), १९९८- रंग रत्न उपाधि (अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली साहित्य परिषद, राँची), १९९७- सर्वोत्तम निर्देशक पुरस्कार (सांस्कृतिक संस्थान, काठमाण्डू), १९९१- भानु कला पुरस्कार, विराटनगर (भानु कला परिषद, बिराटनगर),१९९०- सर्वनाम पुरस्कार (सर्वनाम समिति, काठमाण्डू), १९८५- आरोहण सम्मान, काठमाण्डू, १९८३- वैदेही पुरस्कार (विद्यापति स्मारक समिति, राँची),
शोध कार्य: सलहेस: एकटा ऐतिहासिक अध्ययन, विरहा: मिथिलाक एकटा लोकरूप, सामा चकेबा: लोकनाट्यक एक अवलोकन, सलहेसक काल निर्धारण, व्इद्यापतिक उगना, शिवक गण, मधुबनी एकटा नगर अछि, हम जनकपुर छी, ई जनकपुर अछि।
हिनकर दू टा पोथी “ओकरा आँगनक बारहमासा” आ “काठक लोक” ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगाक मैथिली पाठ्यक्रममे अछि। हिनकर दू टा पोथी त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमाण्डू केर एम.ए. पाठ्यक्रममे अछि। हिनकर कैकटा आलेख आ किताब सेकेण्डरी आ हायर सेकेण्डरी पाठ्यक्रममे अछि।
प्रकाशित पोथी: नाटक: ओकरा आँगनक बारहमासा, जुआयल कंकनी, गाम नञि सुतय, काठक लोक, ओरिजनल काम, राजा सलहेस, कमला कातक राम, लक्ष्मण आ सीता, लक्ष्मण रेखा खण्डित, एक कमल नोरमे, पूष जाड़ कि माघ जाड़, खिच्चड़ि, छुतहा घैल, ओ खाली मुँह देखै छै। ई सभटा कैक बेर आ कैक ठाम खेलाएल गेल अछि। एकाङ्की: टूटल तागक एकटा ओर, लेवराह आन्हरमे एकटा इजोत, गोनूक गबाह, हमरो जे साम्ब भैया, “बिरजू, बिलटू आओर बाबू”, मामा सावधान, देहपर कोठी खसा दिअ, नसबन्दी, आलूक बोरी, भूतहा घर, प्रेत चाहे असौच, फोनक करामात, एकटा बताहि आयल छलय, मालिक सभ चल गेलाह, भाषणक दोकान, फगुआ आयोजन आ भाषण, भूत, एक टुकड़ा पाप, मुहक कात, प्राण बचाबह सीता राम, ओ खाली घैल फोड़य छै। ई सभटा मंचित भऽ चुकल अछि। २५ टा चौबटिया नाटक: चक्रव्युह, लटर पटर अहाँ बन्द करू, बाढ़ि फेर औतय, एक घर कानन एक घर गीत, सेर पर सवा सेर, ई गुर खेने कान छेदेने, आब कहू मन केहेन लगैए, नव घर, हमर बौआ स्कूल जेतए, बेचना गेलए बीतमोहना गबए गीत, मोड़ पर, ककर लाल आदि। ई सभटा चौबटिया वीथीपर खेलायल गेल अछि। ११ टा रेडियो नाटक: आलूक बोरी, ई जनम हम व्यर्थ गमाओल, नाकक पूरा, फटफटिया काका आदि। ई सभटा टा पटना, दरभंगा आ नेपालक रेडियो स्टेशनसँ प्रसारित भेल अछि। सम्पादन: मैथिली एकाङ्की (साहित्य अकादमी, नई दिल्ली), विदेहक नगरीसँ (कविता संग्रह), मैथिली भाषा पुस्तक (सेकेण्डरी स्कूल पोथी), लोकवेद (मैथिली पत्रिका)। कथा: प्रह्लाद जड़ि गेल, धार, एक दिनक जिनगी, बनैया सुगा, बालूक भीत, बुलबुल्ला आदि। लघुकथा: डपोरशंख, मुहचिड़ा आदि। सदस्यता: अध्यक्ष, मैथिली लोक रंग, सदस्य कार्यकारी बोर्ड, मिनाप, जनकपुर, यात्री मधुबनी, मिथिला सांस्कृतिक मंच, मधुबनी। राष्ट्रीय आ अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार सभमे सहभागिता।
प्रकाश चन्द्र झा : मैथिली रंगकर्ममे थ्री-इन-वन- महेन्द्र मलंगिया
प्रकाश झा
१९७५ ई. मे हम जुआयल कनकनी नामक एकटा नाटक लिखने रही, जे ओही साल प्रकाशित भेल रहय । एहि नाटकक प्रसंगमे मैथिलीक सुप्रसिद्ध साहित्यकार जीवकांतजी अपन प्रतिक्रिया व्यक्त करैत लिखने रहथि – मलंगियाजी, मिथिलांचलमे एखन ओहन अभिनेता नहि जन्म लेलक अछि, जे एकर तेजकेँ सम्हारि सकत । ई बात हम अपनहुँ महसूस कएने रही आ तहिए सँ हमर आँखि एहि बातक खोज करैत रहल, जे ओहि नाटकक अनुरूप कोनो अभिनेता भेटितए ।
ओना मिथिलांचलमे अभिनेताक कमी नहि रहलैक अछि, मुदा सभक जिनगी अल्पकालीन । किएक तँ एहिठाम एकरा टाइमपासक रूपमे देखैत अछि । तेँ जहाँ कतहु नोकरी भेटि गेलैक कि ओ रंगकर्म केँ तिलांजली द’ दैत अछि । दोसर कोनो गार्जियन ई नहि चाहैत छैक, जे हमर बेटा रंगमंचसँ जुड़ल रहय । किएक तँ मैथिली रंगमंच केँ ओ सामर्थ्य नहि छैक जे ओकरा रोजी – रोटी द’ सकतै । तेँ रंगमंच के छोड़’ बाला नाम अनगिनत अछि आ जुटल रह’ बाला नाम आँगुरे पर गनल । एहन आँगुरेपर गन’ बाला नाम अछि – अभिषेक, चन्द्रशेखर, मुकुल, संतोष ( मधुबनीसँ ), रवीन्द्र, ओमप्रकाश, रंजू, प्रियंका ( जनकपुरसँ ), संजीव, किशोर केशव, गुड़िया, स्वाति, जितेन्द्रनाथ, प्रियंका ( पटनासँ ), मुकेश, उत्पल, प्रकाश, ज्योति, जीतू, कमल, दुर्गेश, भास्करानंद ( दिल्लीसँ ) आदि ।
एहि सभमे प्रकाश कहिया हमरा भेटल - स्मरण नहि अछि, मुदा एतेक धरि अवश्य स्मरण अछि, जे ओ कहने रहय-
“सर, हमर घर घोंघौर अछि आ हम आर. के. कॉलेज मधुबनी में पढैत छी” ।
“ कोन कक्षामे ?”
“ बी.एस सी.क फर्स्ट पार्टमे ” । हमरा दिससँ कोनो प्रतिक्रिया नहि अएबाक कारणें किछु कालक बाद पुन: बाजल –
“ हम नाटकसँ सेहो जुड़ल छी ” ।
“ कोन संस्थासँ ?”
“ मधुबनी इप्टासँ ”
“ बहुत खुशीक बात ”
प्रकाश कोन अपेक्षा ल’ क’ हमरा लग आएल रहय से ओ ने कहि पओलक आ ने हम बूझि सकलिऎ । मुदा, एतेक अवश्य जानकारी भेटैत रहल जे नुक्कड़ नाटककेँ मधुबनी जिलामे बहुत लोकप्रिय बना देलक अछि । एक्केटा बिजुलिया भौजीक पचासटा शो कएलक अछि आ सभमे एकर अनिवार्य सहभागिता छैक । मुदा, ई हमर दुर्भाग्य रहल जे एकर एकोटा शो हम नइ देख सकलिऎ । तथापि एतेक विश्वास भैए गेल जे नाटकक प्रति एकर लगन बेजोड़ छैक ।
हमहूँ रहबे कएलहुँ आ इहो नाटक करिते रहल आ तखन जँ मंच पर भेट नइ होइतए तँ इहो असंभवे बाला बात भ’ जइतै । से भेलैक नहि, एकरासँ मंचपर भेट भैए गेल, मुदा कहिया से स्मरण नहि अछि । हँ, एतेक अवश्य स्मरण अछि जे प्राय: 1995 ई. मे मिथिला सांस्कृतिक पर्व समारोहक अवसर पर हमरे नाटक ओरिजनल कामक मंचन नगर भवन, मधुबनीमे होइत रहय । हमहूँ आमंत्रित रही । जाहि मे दरोगाक भूमिका प्रकाशे केने छल । ओहि नाटकमे ई प्रशंसाक पात्र बनल रहय जकर उल्लेख दैनिक जागरण आ दैनिक हिन्दुस्तान सेहो कएने रहैक । किछु दिनक बाद गाम नइ सुतैए’क मंचन देखलियैक ओहो मे गामक तीनटा बिगड़ल युवकमे सँ एकटा बिगड़ल युवकक भूमिका यैह कएने छल । ओही दुनू मे कयलगेल अभिनयक बदैलत ई हमरो मोन मे बैसि गेल । बादमे बिहार सरकार युवा मंत्रालय, पटना दिस सँ आयोजित कार्यक्रम मे एक बेर फेर हमरे लिखल नाटक हमरो जे साम भैयाक मंचन नगर भवन, मधुबनीमे होइत रहय । हमहूँ आमंत्रित रही । जाहि मे चारुवक्य के भूमिका मे प्रकाश रहै । मंचपर एकरा देखलाक बाद हमरा बड़ अपसोच भेल रहय जे जीवकांतजी एहिठाम नइ छथि । ओ जँ आइ एहिठाम रहितथि तँ एकर अभिनय देखिक’ निश्चित अपन बात घुरा लितथि जे ‘मिथिलांचलमे एखन ओहन अभिनेता नहि जन्म लेलक अछि’ । बहुत विलक्षण आ मुग्ध कर’ बाला अभिनय कएने रहएअ । तेँ हमरा कह’ पड़ल जे चारुवक्य के भूमिका एहन दोसर नइ क’ सकैए ।
एकर बाद करगिल समस्यापर आधारित नाटक दुलहा पागल भ’ गैलै मे सेहो अभिनय कएलक जे हम नइ देख सकलिऎक । हँ, मधुबनीक डिप्टी कलक्टर श्री दीपनारायण सिंह जी सँ जखन बात भेल तँ कहलनि जे खासक’ प्रकाशचन्द्र बड्ड नीक अभिनय कएने छल ।
ओना एहि बातक घमर्थन कखनो-कखनो उठिए जाइत अछि जे अभिनेता तँ निर्देशकक हाथक कठपुतली होइत अछि । ओकरा जेना-जेना निर्देशक कहैत छैक तेना-तेना ओ मंचपर करैत अछि । जँ इएह बात सत्य छैक तँ एक्केटा भूमिका जखन दू आदमी करैत अछि तखन किएक ककरो नीक आ ककरो बेजाए भ’ जाइत छैक ? एहि आधार पर तँ सृजनात्मक प्रतिभा अपन होइत छैक से मानहिटा पड़त । आ तेँ ओ ओहन चारुवक्य क सृजन कएने रहय ।
फेर 2005 ई. मे रामाननद युवा क्लब, जनकपुर धाम ( नेपाल ) द्वारा आयोजित नाट्य समारोह मे नेपालक अतिरिक्त कोलकाता , दिल्ली, दरभंगा आ मधुबनीक टीमसभ भाग लेने छल । मधुबनीक यात्री संस्था , दिल्लीक यात्री संस्थाक रूप मे प्रवेश पओने छल । कारण , ओहि समयमे अधिकांश यात्रीक अभिनेतासभ दिल्लीए मे रहैत छल तेँ किछुए नवकेँ समावेश कर’ पड़लै आ काश्यप कमलक नाटक गोरखधंधा तैयार भ’ गेलै । एहि नाटक मे ओ सूत्रधारक भूमिका कएने रहय जे काफी चर्चित रहलै ।
मैथिली रंग जगतमे नव पीढीक कतेको लोक छथि, जे लगातार काज क’ रहल छथि मुदा, ओहि जमातमे प्रकाश कतेको कारणे सभहक ध्यान अपना दिस खींचैत अछि । एक त’ अपन रंग कालमे , प्रकाशक रंग प्रवाह बड्ड महत्वपूर्ण छैक । दोसर ई जे – प्रकाशक द्वारा जराओल गेल सर्वरंग अभियानक दीपक जे प्रभाव मैथिली रंग जगत पर पड़ल अछि ओ आरो बेसी प्रशंसाक पात्र छैक । प्रकाशक रंग प्रवाहक शुरुआत मिथिलाक एकटा छोट छीन गाम घोंघौर स’ शुरु होइत छैक । अपन नेनपने सँ गामक रंगमंच सँ जुड़ैत, अपन जिला मधुबनीक नगर इप्टाक कार्यालय सचिव बनल आ इप्टा मे एकर पाँच सालक कार्यकाल अखन तक के ओकर स्वर्णकाल कहल जा सकैत छैक । ओत’ सँ निकलिक’ विश्वविद्यालय स्तर पर अभिनय मे प्रथम सम्मान सँ सम्मानित होइत राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली मे प्रवेशक चयन प्रक्रियाक अंतिम प्रक्रिया तक शामिल भेल । ओहो कोनो नामी-गिरामी निर्देशकक संग कार्य करबाक अनुभवक बिना । फेर संगीत नाटक अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा प्रशिक्षण ल’क’ ओकरे बाकी कार्यशाला मे कार्यशाला सहायकक रूप मे कतेको राज्य मे अपन ज़िम्मेदारी केँ सफलतापूर्वक निभाबैत, साहित्य कला परिषद, दिल्लीक रंगमण्डल सँ गुजरैत, सॉग एण्ड ड्रामा डिविजन, नई दिल्ली मे कैजुअल आर्टिस्टक रूप मे चुनबैत आई राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नाई दिल्ली द्वारा अखिल भारतीय स्तरक श्रेष्ठतम रंगशोध पत्रिका रंग प्रसंगक संपादन सहयोगीक रूपमे अपन महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभा रहल अछि । ई त’ छल प्रकाशक अपन रंगपक्ष , जे कि हमरा सभ केँ सीधे-सीधे देखाइत अछि । जे दोसर रूप छै ओ ई जे मधुबनी सन छोट जगह मे प्रकाश जे रंगदीप जरौलक अछिओकर परिणाम ई छैक जे आई एहि छोट शहर मे सात-सात टा रंगकर्मी रंगकर्म मे प्रशिक्षणक लेल राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति ल’ चुकल अछि । कतेको रंगकर्मी राष्ट्रीय स्तरक रंगप्रशिक्षण संस्थान सँ प्रशिक्षण प्राप्त केलन्हि अछि ।
2006 ई. मे मैथिली लोक रंग, दिल्ली ( मैलोरंग ) त्रिदिवसीय नाट्य सहोत्सवक आयोजन कएने रहय जाहिमे सहरसा, पटना आ दिल्लीक टीम ( मैथिली लोक रंग ) भाग लेने रहैक । ई तीनू टीम क्रमश: कनियाँ-पुतरा, पारिजात हरण आ काठक लोक क्रमश: उत्पल झा, कुणाल तथा प्रकाश झा क निर्देशनमे प्रस्तुत कएने रहय । उत्पल झा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली सँ उत्तीर्ण छात्र, कुणाल केँ दस-पन्द्रह नाटकक निर्देशनक अनुभव आ प्रकाश झा केँ अभिनय छोड़ि निर्देशनक कोनो अनुभव नहि । तेँ लागल जे एहि दुनू निर्देशकक बीचमे प्रकाश ओहिना दरड़ा जाएत जहिना जाँतक दुनू पट्टाक बीचमे दालि । मुदा से भेलैक नहि, प्रकाश झा आँकड़ जकाँ अड़ले रहि गेल । प्रेक्षक गुम्मी लाधिक’ नाटक देखैत रहलाह । मुदा, जत’ हँस’क अवसर छलैक ओत’ हँसबो कएलाह ।
नाटक समाप्त भेलाक बाद प्रकाश दू शब्द कहबाक हेतु हमरा मंच पर बजा लेलक । ओ किएक हमरा बजौलक तकर अनुमान एहि रूपमे लगौलिऎक – प्राय: नाटक मे कएल गेल किछु फेर-बदलक मादे किछु कहताह । मुदा ताहि प्रसंगमे हम किछु कहि नइ सकलिऎक । कारण, प्रेक्षक हमर मुँह बन्द क’ देने छल । तेँ हम ई बात कहबाक लेल बाध्य भ’ गेल छलहुँ जे दुलहन वही जो पिया मन भाए अर्थात नाटक वएह नीक वा निर्देशक वएह नीक जकरा प्रेक्षक गम्भीरता सँ देखलक आ बुझलक । एतेक कहलाक बाद ओ राम गोपाल बजाज जी केँ बजा लेलकनि । हुनका मंचपर बजएबाक दूटा कारण भ’ सकैत अछि – पहिल, ओ भारतीय रंगमंचक एकटा दिग्गज रंगकर्मी छथि जे मिथिलांचलक सपूत छथि आ दोसर, पहिल बेर निर्देशनक क्षेत्रमे आयल छल तेँ हुनक आशीर्वाद प्रकाशक लेल आवश्यक छलैक । तेँ बजाजजी मंचपर अएलाह आ हमर बातक समर्थन करैत कहलथिन – मलंगियाजी जे बात कहलनि अछि ताहिसँ हम सहमत छी । प्रकाश केँ जखन दर्शके सर्टिफिकेट प्रदान क’ देलकै तखन हम ओहिपर हस्ताक्षर नइ करिऎ से उचित नइ होएत ।
एहि प्रस्तुति के देखलाक बाद हिन्दीक युवा आ संवेदनशील रंगदृष्टि रखनिहार रंग समीक्षक संगम पाण्डे जनसत्ता में लिखने रहथि -
... मंच पर ये सभी पात्र चरित्र के कई बारीक विन्यासों के साथ दिखाई देते हैं । उनके भदेस में कहीं भी कुछ बनाबटी नहीं लगता । और यही वजह है कि कथावस्तु में स्थितियाँ कई बार दोहराई जाकर भी अपनी रोचकता नहीं खोतीं । मंच पर पीछे की ओर दाएँ मंदिर का चबूतरा है । बाईं ओर एक पूरा का पूरा वृक्ष, और चबूतरा एक पूरा परिवेश बनाते हैं । इस परिवेश में साधु की पीतांबरी वेशभूषा एक दिलचस्प कंट्रास्ट बनाती है” ।
संगम पाण्डेक उपर्युक्त कथन निश्चित रूपे प्रकाशक नाट्य निर्देशक संग ओकर मंच परिकल्पना आ वस्त्र विन्यासक दृष्टिक सेहो मजबूती प्रदान करैत छैक ।
2005 ई. मे स्वास्ति फाउण्डेशन, दिल्ली हमरा प्रबोध साहित्य सम्मान देने छल, जे कलकत्तामे प्रदान कएल गेल । उक्त सम्मानक अवसर पर डॉ. उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ द्वारा रचित एक छ्ल राजा नामक नाटकक मंचन कोकिल मंच, कोलकाता द्वारा कएल गेल छल । हमरा बगलमे बैसलि हमर पत्नी जिनका साक्षर मात्र कहल जा सकैए पूछि बैसलीह
“कखन नाटक समाप्त होएतैक” ?
एहिपर हम कहलिएनि जे एक चौथाई बाँकी अछि । अवलोकनजन्य थकान सँ ओ अपने-अपने बाजि उठलीह
“एह, तखन तँ आधा घंटा सँ बेसिए बैस’ पड़त” ।
आब कोनो प्रेक्षकक मुँहसँ निकलल “बैस’ पड़त” शब्द नाटक प्रदर्शनपर एकटा पैघ प्रश्नचिन्ह लगबैत अछि ।
इएह सम्मान 2007 मे मयानन्द मिश्र केँ भेटलनि । ओहि सम्मानक अवसरपर डॉ. नचिकेता द्वारा रचित नायकक नाम जीवन, एक छल राजा , रामलीला, प्रत्यावर्तन आदिमे सँ कोनो एकटा नाटकक मंचन होएबाक चाही से विचार कएल गेल छल । संगहि स्थान बदलिक’ दिल्ली पर मोहर लागि गेल छल । उक्त आयोजनक सम्पूर्ण अभिभारा प्रकाश चन्द्र झा केँ भेटल छलैक । तेँ ओ नचिकेताक सभ नाटक मंगौलक । गम्भीरता सँ पढलक आ अंतमे एक छल राजापर आबिक’ केन्द्रित भ’ गेल ।
नचिकेताक जतेक नाटक छैक ओहिमे सँ सभसँ नीक नाटक एक छल राजा अछि जे प्राय: 1970 क दसकमे प्रकाशित भेल रहैक । एकरा जँ एना बूझी तँ कहि सकैत छी जे जहिया प्रकाश जन्मों नहि लेने होयत तहिए ई नाटक प्रकाशित भेल रहैक । तेँ जतेक जे एहि नाटकक मादे प्रकाशित भेल छल होएतैक ताहिसँ ओ परिचित नहि छल । तथापि ओहिमे सँ एक छल राजा केँ चूनि लेलक से ओकर निर्देशकीय दृष्टिक प्रमाण दैत छैक । कारण, निर्देशक वास्ते नाटक चयन एकटा अहम मुद्दा रखैत छैक ।
जँ सत्य पुछल जाए तँ ओ नाटक प्रकाश चन्द्र झाक हेतु एकटा चुनौती भरल काज छलैक । एखन धरि जतेक निर्देशक ओकरा प्रस्तुत कएने छल ओकरा कओमा आ पूर्णविराम सहित मंचपर उतारि दैत छल तेँ प्रेक्षककेँ पुछ’ पड़ैत छलैक जे आब कतेक नाटक बाँकी अछि । एहन स्थिति उत्पन्न होएबाक कारणपर विचार करबासँ पहिने हमरा नाटक कथानकपर विचार सेहो कर’ पड़त ।
एहि नाटकमे राजा साहेब नामक एकटा जमीन्दार अछि जकर जमीन्दारी पुर्खेक समयसँ धीरे-धीरे कमल जाइत छै । राजा साहेब लग आबिक’ विपन्नता पराकाष्ठापर पहुँच जाइत छै । कर्जक बोझ ततेक ने बढि जाइत छै जकरा सधाएब मश्किल भ’ जाइत छैक । फजूल खर्ची आ विलासिताक कारणेँ एहि स्थितिमे पहुँचब एकटा नियति छैक । फेर ओही जमीन्दारीमे पलल राजा साहेबक पिताक अवैध संतान धनिकलाल शहर जाइत अछि । ओहिठाम अपन लगन आ परिश्रमसँ काफी धनोपार्जन करैत अछि आ राजा साहेबक हवेली कीनैत अछि । फेर ओहो वएह काजसभ कर’ लगैत अछि जे राजा साहेब करैत छलाह ।
आब प्रश्न ई उठैत अछि जे एकटा जमीन्दारकेँ तोड़िक’ दोसर जमीन्दारकेँ ठाढ करबाक की औचित्य छैक ? जँ ठाढ भइए जाइत छैक तँ दरबारमे राजा साहेब जकाँ हवेलीमे मोजराक आयोजन करबाक की प्रयोजन छैक ? जखन ई बात स्पष्ट भ’ जाइत छैक जे राजा साहेब अपन बेटी मोहिनीक विवाह आर्थिक तंगीक कारणेँ नइ करा रहल छथि तखन ओकर प्रेम प्रसंगक एतेक दृश्यसभ रखबाक कोन प्रयोजन छैक आ अंतमे ओकरा प्रेमीकेँ खलपात्र बनएबाक कोन औचित्य छैक ? कोनो नियतिक विरुद्ध बेर-बेर धनिक लालक मुँह सँ प्रतिशोध लेब कहयबाक कोन जरूरी छैक ? राजा साहेब तँ अपन करनीक फल पाबिए गेल छलाह जे हवेली बेचिक’ सड़कपर आबि गेल छलाह ।
उपर्युक्त सभ प्रश्नपर प्रकाश नीक जकाँ विचार कएने छल । ओकर प्रदर्शन स्क्रिप्ट देखिक’ हमरा लागल जे ओकरामे नाटक प्रदर्शनक समझदारी छैक ।
नाटकसँ एक दिन पहिने हमरा डेरापर एकटा कार्ड आएल रहय । ओहिपर सपरिवार लिखल रहैक । तेँ हम पत्नीसँ पुछलियनि -
“नाटक देख’ जएबैक” ?
“कोन नाटक छै” ? प्रश्नपर प्रश्न ओ रखलनि ।
“एक छल राजा”
“नइ जाएब”।
“किएक”?
“कलकत्ता मे देखने छी । हमरा नइ नीक लागल रहय” ।
“चलू ने, निर्देशक बदलल छै, अभिनेता बदलल छै” ।
“मुदा नाटक तँ वएह रहतै ने” ।
“तैयो देखि लियौ ने” ।
नाटक भेलैक । नाटक समाप्त भेलाक बाद नचिकेताजी केँ काफी खुश देखलियनि । एकर मतलब छलैक जे नाटक अपन ऊँचाई पाबि गेल छल । वस्तुत: हमरो बड्ड नीक लागल रहय ई प्रस्तुति । हमर मोन मानि गेल छल जे एकरा नीक निर्देशकक पाँतीमे राखल जा सकैए । जँसे बात नइ रहितै तँ नाटक एहि रूपमे नइ चमकितै । रास्तामे हम पत्नीसँ पुछ्लियनि -
“केहन लागल नाटक” ?
“बहुत बढियाँ”
“तखन कहै छलिऎ जे नइ जाएब” ।
“हमरा थोड़बे बुझल छल जे एहन नाटक हेतै” ।
ई छलैक एकटा साक्षर मात्र लोकक मूल्यांकन । श्री मायानंद मिश्र, डॉ. गंगेश गुंजन, डॉ. देवशंकर नवीन, डॉ. ओमप्रकाश भारती आदि दिग्गज विद्वान लोकनि एहि प्रस्तुतिक प्रशंसा कएलथिन । ओना दशरथ जखन भार जनकपुर पठौलथिन तँ जनकपुरबासी मेसँ क्यो बाजि ऊठल— भार तँ बहुत बढियाँ छनि, मुदा अंकुरीक अखुआ टेढ छनि । एहन अखुआ टेढबाला लोक प्रेक्षकक प्रतिक्रिया देखिक’ अपनाकेँ चुप्पे राखब उचित बुझलक ।
एहि ठाम एकटा बात कह’ चाहब—आदमीक क्षमताक स्थानांतरण दोसर क्षेत्रमे सेहो होइत छैक । यदि हम दहिना हाथसँ ‘अ’ लिखैत छी तँ बामा हाथसँ ‘अ’ सेहो लिखि सकैत छी । कारण, दहिना हाथक क्षमता बामा हाथमे स्थानांतरित भ’ जाइत छैक । एही अवधारणापर लोक कहैत छैक जे बी.ए. भ’ क’ घास छिलतै तँ मूर्खसँ बढिए जकाँ छिलतै किएक तँ ओ अपन पढ’–लिख’ बाला क्षमता घास छील’ मे लगा देतैक । एहि मनोवैज्ञानिक तथ्यक सत्यापन प्रकाश चन्द्र झाक अभिनयात्मक एवं निर्देशकीय क्षमतासँ जोड़िक’ संगठनात्मक क्षमताकेँ सेहो देखल जा सकैए । ओ जतबए नीक अभिनेता तथा निर्देशक अछि ओतबए एकटा सफल संगठनकर्ता सेहो । आ हम सभ कियो जनैत छी जे रंगकर्म मे संगठनात्मक क्षमताक विशेष महत्व छैक ।
एहिठाम संगठनात्मक क्षमताकेँ रंगकर्मसँ जोड़िएक’ देखल जा सकैत अछि कारण, भरतक नाट्यशास्त्रक पैंतिसम अध्यायमे नाट्यदलक चर्चा आएल अछि जाहिमे सूत्रधार, अभिनेता, काष्ठकार, माली(माल्यकार), स्वर्णकार(मुकुट एवं गहना बनब’बाला), सूचिकार(दर्जी), चित्रकार आदिक चर्चा अछि । हमरा जनैत एहि सभ केँ मिलाक’ राख’बाला सूत्रधार छल होएतैक । ईसभ अपन-अपन योगदान नाट्य प्रदर्शनमे दैत छलैक । जँ एकरा सभकेँ मिलाक’ नहि राखल जैतैक तँ नाट्यप्रदर्शन असंभव भ’ जइतैक । अत: एकटा सम्पूर्ण रंगकर्मीक हेतु संगठनात्मक क्षमता आवश्यक भ’ जाइछ ।
2005 ई. मे जनकपुर नाट्य महोत्सवक आयोजन कएल गेल रहैक । एहि आयोजन मे यात्री टीम भाग लिअय से हमर हार्दिक इच्छा रहय । मुदा कलाकारसभ बिखरल रहैक । सभ एकठाम जमा होएत आ नाटक करत से संभव नहि बुझाय । तथापि एकबेर जानकारी देब आवश्यक छल । एतदर्थ बीस-बाइसटा मेम्बरमे सँ प्रकाश केँ टेलीफोन कएलिऎक । कारण, ओकर संगठनात्मक क्षमतासँ हम परिचित छलहुँ । दोसर जँ गछियो लितएअ तँ संगठनात्मक क्षमताक अभावमे जएबो करितएअ कि नहि ताहिपर हमर विश्वास नहि छल । खैर, ओ हमर इच्छाकेँ सहर्ष स्वीकार क’ लेलक आ पन्द्रह-सत्रह आदमीक टीम ल’ क’( दिल्ली सँ ) जनकपुरधाम (नेपाल) पहुँच गेल ।
सम्प्रति प्रकाश दिल्लीमे मैथिली लोक रंग (मैलोरंग) नामक संस्था चला रहल अछि । एहि संस्थाक एकटा सदस्य दिल्ली रहैत अछि तँ दोसर देवगिरी मे, माने एकटा उत्तरी दिल्ली तँ दोसर दक्षिणी दिल्ली । एहना स्थिति मे मैथिली रंगकर्म केँ जियाक’ राखब एकटा कठिन काज भ’ जाइत छैक । तथापि ओ एकरा जिआए क’ नहि, बल्कि जगजियार क’ क’ रखने अछि ।
इम्हर, जहिया सँ प्रकाश रंग प्रसंग सँ जुड़ल अछि आ डॉ. ओमप्रकाश भारती, स्व. जे.एन. कौशल, महेश आनंद, देवेन्द्र राज अंकुर, प्रतिभा अग्रवाल आदि सन शोधकर्ताक सानिद्ध पौलक अछि ओकर रंग-दृष्टि आरो खुजलैक अछि । मैथिली लोकनाट्य आ रंगमंच पर ओकर शोध आलेख उल्लेखनीय होइत छैक । बाल रंगमंच पर भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय फैलोशिप प्राप्त करनिहार प्रकाश कहियो कहियो कथा सेहो लिखैत अछि । एकरा द्वारा लिखल कथा पाथर बेस चर्चा मे छल । ई कथा बुच्चीक मनोरथ नाम सँ अंतिका मे आ पाथर नाम सँ हिन्दी मे समकालीन भारतीय साहित्य मे प्रकाशित भेल रहै ।
हमरा जनैत कर्मठ आ सफल व्यक्ति ओ नहि होइत अछि जे समयक पाछाँ-पाछाँ चलैत अछि, सफल व्यक्ति तँ ओ होइत अछि जे अपन कर्मठतासँ समय केँ अपना लग खींच लैत अछि । इएह गुण हम मृदुभाषी आ मिलनसार प्रकाश मे पबैत छी । किएक तँ एकरासँ पहिने मिथिलांचल सँ कतेको मैथिलीक विद्वानलोकनि दिल्ली अएलाह, मुदा मैथिली रंगकर्मक जड़ि एना भ’ क’ रोपल नहि भेलनि । प्रकाशक लेल दिल्ली मे हिन्दी रंगमंच मे काज करनाइ बहुत आसान छल मुदा ओ मैथिली रंगकर्म के अपनैलक ई बेसी महत्वपूर्ण अछि । हमरा तँ ओहो दिन देखल अछि जहिया मैथिली रंगकर्म कलकत्तामे बहुत जगजियार छलैक, एकरा बाद ई जगजियारी ऊठिक’ पटना आ जनकपुर अएलैक सेहो देखलहुँ आ आइ लगैत अछि जे एहि जगजियारीक एकटा प्रबल दावेदारक रूपमे दिल्ली सेहो ठाढ़ भ’ गेल अछि जकर श्रेय निश्चित रूपे प्रकाश चन्द्र झा केँ जाइत छैक । आइ पटना हो, चाहे जनकपुर, चाहे सहरसा, सभकेँ अपन-अपन क्षमता देखएबाक हेतु दिल्लीमे प्लेटफार्म मैथिली लोक रंग (मैलोरंग) प्रदान कएअलक अछि जकर संचालन प्रकाश चन्द्र झा क’ रहल अछि । हम मैथिली रंगकर्मक हेतु ओकर दीर्घायु आ सफलताक कामना करैत छी ।
१.जीवन झाक नाटकक सामाजिक विवर्तन- प्रेमशंकर सिंह (आगाँ) २.
स्व. राजकमल चौधरी पर-डॉ. देवशंकर नवीन (आगाँ)
१.प्रोफेसर प्रेम शंकर सिंह
डॉ. प्रेमशंकर सिंह (१९४२- ) ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा। 24 ऋचायन, राधारानी सिन्हा रोड, भागलपुर-812001(बिहार)। मैथिलीक वरिष्ठ सृजनशील, मननशील आऽ अध्ययनशील प्रतिभाक धनी साहित्य-चिन्तक, दिशा-बोधक, समालोचक, नाटक ओ रंगमंचक निष्णात गवेषक, मैथिली गद्यकेँ नव-स्वरूप देनिहार, कुशल अनुवादक, प्रवीण सम्पादक, मैथिली, हिन्दी, संस्कृत साहित्यक प्रखर विद्वान् तथा बाङला एवं अंग्रेजी साहित्यक अध्ययन-अन्वेषणमे निरत प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर सिंह ( २० जनवरी १९४२ )क विलक्षण लेखनीसँ एकपर एक अक्षय कृति भेल अछि निःसृत। हिनक बहुमूल्य गवेषणात्मक, मौलिक, अनूदित आऽ सम्पादित कृति रहल अछि अविरल चर्चित-अर्चित। ओऽ अदम्य उत्साह, धैर्य, लगन आऽ संघर्ष कऽ तन्मयताक संग मैथिलीक बहुमूल्य धरोरादिक अन्वेषण कऽ देलनि पुस्तकाकार रूप। हिनक अन्वेषण पूर्ण ग्रन्थ आऽ प्रबन्धकार आलेखादि व्यापक, चिन्तन, मनन, मैथिल संस्कृतिक आऽ परम्पराक थिक धरोहर। हिनक सृजनशीलतासँ अनुप्राणित भऽ चेतना समिति, पटना मिथिला विभूति सम्मान (ताम्र-पत्र) एवं मिथिला-दर्पण, मुम्बई वरिष्ठ लेखक सम्मानसँ कयलक अछि अलंकृत। सम्प्रति चारि दशक धरि भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रोफेसर एवं मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ अभिवर्द्धित करबाक दिशामे संलग्न छथि, स्वतन्त्र सारस्वत-साधनामे।
कृति-
मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८
मौलिक हिन्दी: १.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, प्रथमखण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७१ २.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, द्वितीय खण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७२, ३.हिन्दी नाटक कोश, नेशनल पब्लिकेशन हाउस, दिल्ली १९७६.
अनुवाद: हिन्दी एवं मैथिली- १.श्रीपादकृष्ण कोल्हटकर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली १९८८, २.अरण्य फसिल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१ ३.पागल दुनिया, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१, ४.गोविन्ददास, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००७ ५.रक्तानल, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८.
लिप्यान्तरण-१. अङ्कीयानाट, मनोज प्रकाशन, भागलपुर, १९६७।
सम्पादन- १. गद्यवल्लरी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६६, २. नव एकांकी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६७, ३.पत्र-पुष्प, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९७०, ४.पदलतिका, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९८७, ५. अनमिल आखर, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००० ६.मणिकण, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ७.हुनकासँ भेट भेल छल, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००४, ८. मैथिली लोकगाथाक इतिहास, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ९. भारतीक बिलाड़ि, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, १०.चित्रा-विचित्रा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ११. साहित्यकारक दिन, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाता, २००७. १२. वुआड़िभक्तितरङ्गिणी, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८, १३.मैथिली लोकोक्ति कोश, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, २००८, १४.रूपा सोना हीरा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००८।
पत्रिका सम्पादन- भूमिजा २००२
जीवन झाक नाटकक सामाजिक विवर्तन (आगाँ)
सामवती पुनर्जन्ममे नाटककार समाजमे प्रचलित नवलोकक बीच मदिरापानक परम्परासँ क्षुब्ध भऽ एकर बहिष्कार करबाक उद्घोषणा कयलनि। एहि प्रसंगमे सुमेधाक कथन छनि, “एहि सभ कारणसँ राज्य निषिद्ध थिक। देखू तँ मदिरापान कयनेँ केहन लाल लाल आँखि छलैकय। दीदी आब मन प्रसन्न भेल अछि मह अवग्रहमे पड़ल छलहुँ”। (सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-१९)।
मिथिलांचल निवासीक प्रमुख भोज्य वस्तुमे रहल अछि रेडीमेड चूड़ा आ दही जकर चर्चा पौराणिक साहित्यमे सेहो यत्र-तत्र उपलब्ध होइछ। नर्मदा सागर सट्टकमे एहि भोज्य-सामग्रीक विश्लेषण नाटककारक प्रमुख प्रतिपाद्य अछि जखन घटकराज भोजन करैत छथि:
केव नथर्बै अछि नाकक पूड़ा।
ककरहु केव आगाँ बैसौलेँ थकड़ि बन्है अछि जूड़ा॥
झट झट गट गट घटक गिड़ै छथि सब दही संग चूड़ा।
दुइ एक बेर पानि दै मलि मलि कात पसौलन्हि गूड़ा।
धड़ि एक विछलन्हि पुनि अगुतैला सह-सह कर इछ सूड़ा॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-९९)
कीर्तिपुरुष जीवन झाक नाटकादिक वैशिष्ट्य एहि विषयकेँ लऽ कए अछि जे मिथिलांचलक सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवनक चित्रणक क्रममे वैवाहिक अवसरपर होम आदिक व्यवस्थाक निमित्त लावा, जारनि, धान, घी, जल, कुश, आगि आदिक चित्रण सामवती पुनर्जन्ममे कयलनि अछि। जटिलकेँ सारस्वत आज्ञा दैत छथिन:
लावा जारनि धान धिउ जल कुश विष्टर आगि।
माङव पर सञ्चित करह सब पुरहित सङ्ग लागि॥
(सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-४७)
वैवाहिक विधिमे लौकिक एवं वैदिक दुनू रीतिक परिपालन कयल गेल अछि एहि नाटकान्तर्गत। चतुर्थीक विधि सम्पन्न होइछ संगहि संग भार-दोरक चर्चा सेहो नाटककार कयलनि अछि।
अक्षर पुरुष जीवन झा मिथिलांचलक सामाजिक जीवनक चित्रण अत्यन्त कुशलताक संग कयलनि अछि। सामवती पुनर्जन्म एवं नर्मदा सागर सट्टकमे सामाजिक रीति नीतिक चर्चा करैत नाट्यकार जाहि वैवाहिक प्रथाक उल्लेख कयलनि अछि से अत्यन्त प्राचीन परम्परा अछि। मिथिलांचलमे एहि प्रकारक प्रथा एवं परम्परा प्रचलित अछि जे वैवाहिक अवसरपर वर एवं कन्या पक्षक घटक पजिआड़क मिलान होइछ, जाहिमे पर्याप्त टाकाक प्रयोजन पड़ैछ जाहिसँ विवाहक उचित प्रबन्ध कयल जाऽ सकय। सामवती पुनर्जन्म एहि प्रसंगक विश्लेषण पूर्वमे कयल गेल अछि। नर्मदा सागर सट्टकमे सेहो एहि स्थितिक चित्रण भेल अछि। घटकराज नर्मदाक विवाहार्थ ओ सागरक ओतय प्रस्तुत होइत छथि तँ सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमिमे एहि परम्पराक निर्वाह कोना करैत छथि तकर अवलोकन तँ करू, “भौजी! एहना ठाम घटक जे हयत से लगले कोना विचार देत? पजिआड़केँ जे इच्छा होइन्ह से बूझि लै जाउ”। (कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-९७)।
सामाजिक व्यवस्थाकेँ सुदृढ़ बनयबामे आर्थिक स्थिति दृढ़ता अत्यन्त प्रयोजनीय बुझना जाइछ। वित्त विहीन व्यक्तिक सामाजिक जीवनमे कोनो मूल्य नहि रहि जाइछ। अतएव जाहि समाजक आर्थिक जीवन जतेक सबल रहत ओ उन्नतिक पथपर अग्रसर भऽ समाजकेँ दिशा-निर्देश करबामे सक्षम भऽ सकैछ। जतेक दूर धरि मिथिलांचलक सामाजिक जीवनक आर्थिक स्थितिक प्रश्न अछि ओ सदा सर्वदा आर्थिक विपन्नतासँ संत्रस्त रहल जकर फलस्वरूप कन्या-विक्रय सदृश कुप्रथाक जन्म भेलैक। जीवन झा अपन नाटकादिमे आर्थिक विपन्नताक दिग्दर्शन अनेक स्थलपर करौलनि अछि। सामवती पुनर्जन्ममे सामवान एवं सुमेधाक वैवाहिक प्रसंगमे सामाजिक आर्थिक विपन्नताक दिग्दर्शन होइत अछि जे विवाहक नियोजनार्थ प्रचुर टाकाक प्रयोजनार्थ समाजक विपन्नताक दिग्दर्शन करौलनि अछि। एहि प्रसंगमे बन्धुजीवक कथन समसामयिक समाजक विपन्नताक चित्र दर्शबैत अछि जखन ओ कहैछ, “घरमे तैखन सुख जौं पर्याप्त धन हो। हमरा तँ सतत सभ वस्तुक व्ययता लगले रहैए”। (सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-२०)।
आर्थिक विपन्नताक कारणेँ समसामयिक समाजान्तर्गत भीख मङनी प्रथाक जन्म भेल। नाटककार सामवती पुनर्जन्ममे एहि प्रथाक यथार्थताक संग चित्रण कयलनि अछि। भिक्षुक ब्राह्मणक ओतय भीखक हेतु प्रार्थित होइत छथि किन्तु परिस्थिति वसात हुनका भीख नहि भेटैत छनि।
शलाका पुरुष जीवन झाकेँ सामाजिक जीवनक गम्भीर अनुभव छलनि तेँ ओ स्थल-स्थलपर नारी दोस दिस समाजकेँ साकांक्ष करैत देखल जाइत छथि। सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक पृष्ठभूमिमे नारीकेँ सामाजिक मर्यादाक पालनार्थ मद्यपान, निरर्थक भ्रमणशील बनब, तन्याक आह्वान, पतिपर निष्प्रयोजन रोष, दुर्जन व्यक्तिक संग प्रवास गमन आदिकेँ ओ कुलललनाक निमित्त वर्जित कयलनि। एहि प्रसंगमे ओ नर्मदा सागर सट्टकमे अपन अभिमत प्रगट कयलनि:
मद्यपान पर्य्यटन पुनि तन्द्रा पतिपर रोष।
दुर्जन सङ्ग प्रवास यैह छवटा नारिक दोष॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-११२)
बीसम शताब्दीक प्रथम दशकक मैथिली नाट्य सहित्यक जनक अक्षर पुरुष जीवन झा अपन समयक प्रकाश स्तम्भ रहथि जनिक नाटकादिमे मिथिलाक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक जीवनक जाहि स्वरूपक प्रदर्शन करैछ तकर सार्थकता एहिमे अछि जे नाटककार ओकर समुचित समाधान ओही समस्यान्तर्गत कयलनि। युग विधायक जीवन झा एहि विचारधाराक अत्यन्त व्यापक प्रभाव हुनक समसामयिक साहित्यकार लोकनिपर पड़लनि जे परवर्ती युगक नाटककार लोकनिक हेतु एक प्रकाश-पुञ्ज प्रमाणित भेल। एकर श्रेय आ प्रेय कविवर जीवन झाकेँ छनि जे मिथिलांचलक तत्कालीन सामाजिक सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिस्थितिकेँ नीक जकाँ जानि बूझिकऽ युगक आवश्यकताकेँ ध्यानमे राखिकऽ अपना सम्मुख जनसाधारणक दृष्टिकोणकेँ समन्वित कऽ कए मौलिक नाट्य-रच्नाक सूत्रपात कयलनि तथा नाट्य-प्रणालीक सन्दर्भमे नवीन दृष्टिकोण अपनौलनि। हुनका नाट्य-रचनाक ज्ञान निश्चये विस्तृत छलनि। ओ समसामयिक समाजमे घटित होइत घटनाकेँ अपन अनुभवक आधारपर विश्लेषण कयलनि। आधुनिक मैथिली नाट्य साहित्यान्तर्गत अक्षर पुरुषजीवन झा नाटकक क्षेत्रमे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थितिक प्रसंगमे एक कीर्तिमान स्थापित कयलनि जे एहि साहित्यक निमित्त एक अविस्मरणीय ऐतिहासिक घटना थिक जे अधुनातन सन्दर्भमे मैथिल समाजक हेतु दिशा-बोधक प्रमाणित भेल।
२. डॉ. देवशंकर नवीन
डॉ. देवशंकर नवीन (१९६२- ), ओ ना मा सी (गद्य-पद्य मिश्रित हिन्दी-मैथिलीक प्रारम्भिक सर्जना), चानन-काजर (मैथिली कविता संग्रह), आधुनिक (मैथिली) साहित्यक परिदृश्य, गीतिकाव्य के रूप में विद्यापति पदावली, राजकमल चौधरी का रचनाकर्म (आलोचना), जमाना बदल गया, सोना बाबू का यार, पहचान (हिन्दी कहानी), अभिधा (हिन्दी कविता-संग्रह), हाथी चलए बजार (कथा-संग्रह)।
सम्पादन: प्रतिनिधि कहानियाँ: राजकमल चौधरी, अग्निस्नान एवं अन्य उपन्यास (राजकमल चौधरी), पत्थर के नीचे दबे हुए हाथ (राजकमल की कहानियाँ), विचित्रा (राजकमल चौधरी की अप्रकाशित कविताएँ), साँझक गाछ (राजकमल चौधरी की मैथिली कहानियाँ), राजकमल चौधरी की चुनी हुई कहानियाँ, बन्द कमरे में कब्रगाह (राजकमल की कहानियाँ), शवयात्रा के बाद देहशुद्धि, ऑडिट रिपोर्ट (राजकमल चौधरी की कविताएँ), बर्फ और सफेद कब्र पर एक फूल, उत्तर आधुनिकता कुछ विचार, सद्भाव मिशन (पत्रिका)क किछि अंकक सम्पादन, उदाहरण (मैथिली कथा संग्रह संपादन)।
सम्प्रति नेशनल बुक ट्रस्टमे सम्पादक।
बटुआमे बिहाड़ि आ बिर्ड़ो
(राजकमल चौधरीक उपन्यास) (आगाँ)
भय होइ छनि। मर्यादा आ सामाजिक आदर्शक। आदर्श आ मर्यादा रक्षाक चपेटमे जरैत रहबाक ई उत्कट विवरण वस्तुतः पाठकक मोनमे अइ अयथार्थ आ फोंक परम्पराक प्रति घृणा उत्पन्न करैत अछि।...तुलना करैत देखी तँ अइ मामिलामे सुशीला मुखर छथि, देवकान्त परम लजकोटर, संकोची आ डरपोक छथि, सुलतानगंजमे अजगैबीनाथ मन्दिरक सीढ़ी चढ़ैत एकहि संग सुशीला सोचै छथि कहुना पण्डाक मँुहसँ बहराए जे ÷पति-पत्नीक ई जुगल जोड़ी अमर हो', मुदा देवकान्त भयभीत छथि जे जँ पण्डा एहेन बात कहि देलक तँ लाजें मारि जाएब।... सम्पूर्ण उपन्यासमे एहेन प्रसंग कतोक बेर आएल अछि, जतए देवकान्त संकोची आ सुशीला मुखर बुझाइ छथि। उपन्यासकारेक पंक्तिमे कही तँ वस्तुतः --सुशीलाक जीवन भेलइन, समुद्रक मिलनाकांक्षामे मग्न तीव्रगामिनी गंगाक जीवन। देवकान्तक जीवन भेल, अशान्त चिरप्रतीक्षा विमग्न, तरंगायित किन्तु बाह्यरूपें परम अचंचल समुद्रक जीवन। दुन्नू जीवन एक अबहू आशाक पातर तागसँ बान्हल...उपमा देबाक ई कौशल परम व्याख्येय आ परम प्रशंसनीय अछि।
दरअसल अइ कथामे पात्रो टा नहि, प्रेम शास्त्राक सूक्ष्मतम मनोविज्ञानक चित्राण सेहो अत्यन्त व्यापक, चमत्कृत आ प्रभावकारी रूपें भेल अछि। देवकान्त सोना मामीसँ तते बेसी प्रेम करए लागल छथि, जे आओर ठाम ओ जते बेसी व्यावहारिक आ बुद्धिमान होथु, अइ प्रेम-कथामे अत्यन्त डरपोक, तर्कवादी आ संशयवादी भ' गेल छथि। सौंसे कथामे सुशीलाक समर्पण, सुशीला पर अपन अधिकार, समर्पणक संकेत आ आदर्श-मर्यादाक गुणा-भाग करैत रहि जाइ छथि। खन सोचै छथि जे सुशीला पर हुनकर की अधिकार छनि? फेर सोचै छथि, अधिकार नहि छनि तँ अपन बीमार पतिकें छोड़ि, हुनकर सेवा-सुश्रूषा लेल ओ किऐ पहुँचि गेलीह? खन सोचै छथि--नारी कोनो पुरुखसँ प्रेम नइं क' सकइए? एक पुरुख पर विश्वास नइं क' सकइए? की नारी मात्रा छलना थीक?--ओना विरह आ व्यथाक उद्रेकमे एहि तरहक बात कोनो व्यक्ति जँ सोचि लिअए तँ तकरा स्त्राीक प्रति अमर्यादित धारणा नहि बुझबाक थिक। ओ स्वयं एकर उत्तर दै छथि जे सोना मामीक आचरण मिथिलाक ÷सभ्यता, संस्कृति, परम्परा आ धर्मक एकटा परम उदाहरणक अभिव्यक्ति' थिक। ÷सोना मामी पूर्णतः भारतीय सम्पूर्णतः मैथिल नारी छलीह... जे अपने टूटि जाएत, मुदा, परम्पराक पातर सँ पातर तागकें नइं तोड़त...।'
अलगसँ कहबाक प्रयोजन नहि जे कोनो प्रवृत्ति, आचरण आदिकें राजकमल चौधरी जातिवादी, सम्प्रदायवादी अथवा लिंगवादी नहि मानै छथि। एक दिश सोना मामीक प्रति एतेक उच्च धारणा रखै छथि दोसर दिश अपन मामक दोसर स्त्राी हरिनगरवालीक कनबाक कला देखि सोचै छथि--कहब असम्भव अछि जे हरिनगरवाली कानि रहल छलीह, अथवा अभिनय कए रहल छलीह, नाटक पसारि रहल छलीह। प्रत्येक मैथिल-स्त्राी जकाँ इहो कानब-शास्त्रामे पूर्ण सुरक्षा, पारंगता छथि। ओहुनाँ कानब-खीजब, घाना पसारब, नाटक करबाक अभ्यास सभ स्त्राीकें रहइ छइ। स्त्राी चाहे इन्द्रजीत मेघनादक, शव लग विलाप करइत दानव कन्या सुलोचना सुन्दरी हो, अथवा अर्जुन पुत्रा अभिमन्युक शव लग विलाप करइत पाण्डव कुलवधू उत्तरा-सुन्दरी, सभ स्त्राीकें कानब अबइ छइ, कलात्मक ढंगसँ रुदन करए अबइ छइ।
अइ उपन्यासमे जतबे विविधता पुरुष पात्रामे अछि, ताहिसँ कनेको कम स्त्राी-पात्रामे नहि अछि। मुख्य स्त्राी पात्रा सब छथि -- सुशीला, हरिनगरबाली (अनिरुद्ध बाबूक तृतीया आ द्वितीया), द्रौपदी (कुलानन्दक पत्नी)। हरिनगर वालीक उपस्थिति सौंसे उपन्यासमे ओहने कुटिल आ नाटकीय अछि, जकर चर्चा उक्त उद्धरणमे अछि। मैथिल स्त्राीक समस्त दुर्गुण हिनकर आचरणमे भरल छनि। फूटल ढोल, बिन पेनीक लोटा, चुगलखोरनी, भाभट पसारैमे दक्ष, सौतिनकें दुष्चरित्राा साबित करबामे तल्लीन स्त्राी छथि, हरिनगरवाली।
सौतिया डाह, दुष्ट स्त्राीक आचरण, दोसरकें बदनाम करबाक नेतसँ एकसँ एक दुर्वृत्तिक कल्पना आ आरोपन मिथिलाक कतोक स्त्राीमे पाओल जाइत अछि, सौतिया डाहमे तँ ई कला आओर निखरि उठैत अछि। हरिनगरवाली सुशीला पर कलंक मढ़ै छथि--धरमपुरवाली त डाइन अछि, डाइन! गाछ हँकइए!...दुइयो दिन भिन्न भेनाँ नइं भेल छलइ आ स्वामीकें खा गेल...आब सुतन्त्रा भए गेल अछि...खूब छिड़हड़ा खेलाएत... भागिनक संगे पटना-दिल्ली करत...के रोकइबला छइ...कुलानन्दो त' तेहने छथि। अपन स्त्राीकें नैहर पठा देलइन...आब सतमाइक सेवामे रहइ छथि।--एहेन अश्रद्ध आ अवांछित गारि बर्दाश्त कइयो क' सुशीला कोनो तरहें विचलित नहि होइ छथि। विपरीत परिस्थिति अएला पर मिथिलाक बुझनुक स्त्राी सागर सन गहींर आ गम्भीर भ' जाइ छथि। सुशीला बड्ड गहींर आ बड्ड गम्भीर स्त्राी छथि। समयक उतार-चढ़ाव आ हवा-पानिक रुखि निके ना बुझै छथि। उपन्यासकार अइ उपन्यासमे हुनकर इएह छवि प्रस्तुत कएने छथि। सामाजिक बन्धन आ वैयक्तिक क्रूरता वस्तुतः एते कठोर होइत अछि, जे बिना कोनो दया-धर्मक ओ फूल सन कोमल इच्छाकें मोचारि क' राखि दैत अछि। कुटिल आदर्शसँ भरल सामाजिकता इएह थिक, जाहिमे मानवीय सम्वेदनाकें अक्षुण्ण रखबाक तर्क ताकब
व्यर्थ थिक। आदि कथाक इतिवृत्ति एकर उदाहरण थिक।
सुशीला अइ कथाक आधार चरित्रा थिकीह। कथाक आरम्भमे जखन देवकान्त आदर्श, मर्यादा, प्रतिष्ठा, पाप-पुण्य, नेत-नियम सभसँ डेराएल मामि संगें प्रेम निवेदनमे संकोच करै छलाह; समस्त उत्कट आकांक्षाक अछैत इत-उतमे फँसल छलाह; सुशीला चारि डेग आगू बढ़ि कए मुखर भेलीह; आ अपन कतोक आचरणसँ पूर्ण समर्पणक कतोक संकेत स्पष्ट रूपें देलनि। मुदा विधवा भेलाक बाद कौलिक परम्पराक अनुकूल हुनकर सतौत बेटा कुलानन्द हुनक रक्षक, प्रतिपालक भेलखिन; आ सुशीलाक भावना, मनोवेग, आन्तरिक इच्छा, साहस सब पर सामाजिक अयथार्थ आदर्शक बन्धन विजय प्राप्त क' लेलक; ओ कुलानन्द संग रहि कए अपने टुटैत रहलीह, जर्जर मर्यादाक पातर सूतकें नहि तोड़ि सकलीह।
वृद्ध, अशक्य जमीन्दार अनिरुद्ध बाबूक तेसर पत्नी सुशीला अनिन्द्य सुन्दरी छथि; आ दावानलक ज्वाला सन, अथवा समुद्री तूफान सन, अथवा भदबरिया कोसीक प्रवाह सन वेगमय यौवनक स्वामिनी छथि; अइ वेगकें सम्हारि सकबाक सामर्थ्य हुनका पतिमे नहि छनि। देवकान्तक यौवन, शिष्टता, सौन्दर्य आदि देखि ओ हुनका दिश अनुरक्त भेलीह। एहि अनुरक्तिमे अभिलाषा दैहिके टा नहि, प्रेमक आदर्श स्वरूप सेहो अर्थवन्त छलनि। इमानदारीसँ देखी तँ एहि उपन्यासमे राजकमल चौधरी द्वारा सृजित कथाक नायिका सोना मामी, अर्थात् सुशीला सन स्त्राी; कोनो कल्पना-लोकक स्त्राी नहि छथि, समाजमे एहेन कैकटा सोना मामी ओहि समयमे अही विवरणक संग भेटि सकै छलीह; एहेन स्त्राीक मनोविश्लेषण कोन मनोवैज्ञानिक करत? सुशीलाक जीवन की छल? सुन्दरि, स्वस्थ, जवान, साहसी, बुझनुक, सच्चरित ... की छथि सुशीला? एक दिश देवकान्त सन समुद्रमे मिलनक आकांक्षामे मग्न तीव्रगामिनी गंगा छथि; देवकान्तकें पैघ-पैघ प्रेमाभिसिक्त पत्रा लिखै छथि; अपन अनेक आरचरणमे अनुरक्तिक संकेतो दै छथि; रुग्ण पतिकें अस्पतालमे छोड़ि देवकान्तक परिचर्यामे पहुँचि जाइ छथि; हफीम खएलासँ अथवा कामोन्मादसँ बेहोश हएबाक कथा अपन प्रेमी देवकान्तसँ नुकएबाक प्रयास करै छथि। वृद्ध पति अनिरुद्ध बाबूक प्रति पूर्ण समर्पणक भाव स्पष्ट करै छथि। हुनका रुग्णावस्थामे देखि गाड़ी-बरद पर लादि अस्पताल ल' जाइ छथि; पति जखन अपना लेल वृद्ध वयसक चर्चा करै छथिन तँ विरोध करै छथि-- ÷सै बेर अहाँकें कहि देलऊँए, हमरा सोझाँमे अपनाकें वृद्ध नइं कहल करू...।' अर्थात अपन जवानी पर एतेक आत्मगर्विता जे वृद्ध पतिक पत्नी नहि कहाबए चाहै छथि। वैधव्य प्राप्तिक पश्चात जखन सतबेटा कुलानन्द संग तीर्थवासमे जाइ छथि, तँ धर्मशालाक मैनेजरक मुँहें अपन उच्छृंखल सतबेटाक अनाचारक कथा सुनि कुपित होइ छथि आ मैनेजरकें धोपि कए विदा करै छथि। देवकान्त जखन बलजोरी अपन बासा पर आनि लै छथिन, तँ एकहि संग प्रतिवाद आ विलाप करै छथि।... एकटा सच्चरित्रा स्त्राीकें मर्यादा आ मनोवेगमे; जीवनक सार्थकता आ सामाजिक आदर्शमे तालमेल बैसब'मे कोन-कोन यातना भोगए पड़ै छनि -- एकट अनुमान कते कठिन अछि!
सुशीलाक जीवनक पर्यवस्थिति पर उपन्यासकार नशेरी, विलासी, कुलानन्दक विचार व्यवस्था अत्यन्त सटीक आँकने छथि। सुशीला जखन बेहोश भेलीह, आ लोक हल्ला केलक जे ओ आत्महत्याक निमित्त माहुर खा नेने छथि, तखन सद्पात्राक कोटिमे नहि रहलाक अछैतो भाँगक निशाँमे भसिआएल सुशीलाक सतौत बेटा कुलानन्द, जे हुनकर समवयसी छथिन, सोचै छथि--किअए नइं सुशीलाकें मरि जाए दिअनि? जीबिए कए ओ कोन सुख काटि रहल छथि? जीवनक कोन आशा, कोन इच्छा कोन आवश्यकता आइ धरि हुनका पूर भेल छनि? आबे कोन पूर हेतइन? एहेन अपूर्व सुन्दरी छथि, जेना साक्षाते सरस्वती अथवा लक्ष्मी रहथि। मुदा, भाग्य केहेन दैबक मारल। एकटा बेटा-बेटी नइं छनि, जे तकरे मूँह देख कए जीबि लितथि।... सतमाय बाँचि कए की करती...?
कुलानन्द सन कुपात्राक मोनमे जाहि स्त्राीक प्रति एते व्यथा छनि, तिनका मादे ओहि कालक समाजकें आ सामाजिक मर्यादाकें कोनो दरेग नहि भेलनि। जेना कि पहिनहुँ कहल गेल, एहि पाछू मिथिलाक सामाजिक पर्यवस्थितिक पैघ योगदान छल। राजकमल चौधरी सेहो कथाक पृष्ठभूमिक संकेत दैत सूचना देने छथि जे मिथिलाक लोककें कथा एखनहुँ मोन छै जे एक दिश बंगालक तुर्क नवाब आ दोसर दिश दिल्लीक फिरोजशाह तुगलकक सेना मिथिलाकें घेरि कए सब वस्तु अपहृत, बलत्कृत करै छल। दिल्लीक सेनाक, बंगाल-आसाम-जएबाक बाट आजुक सहरसा-पूर्णियाँ छलै। बंगालक नवाबी पलटन बिहार, अवध आ दिल्ली दिश धावा देबा लेल अही बाटें जाए। अइ इलाकामे कोनो पैघ युद्ध कहियो नहि भेल मुदा बंगालक नवाबी सल्तनत आ दिल्ली शासनक संघर्षसँ सर्वाधिक हानि अही क्षेत्राकें भेलै। जीतल सिपाही प्रसन्नताक आवेगमे इनार पर पानि भरैत ग्रामवधूकें उठाकए घोड़ा पर चढ़ा लिअए; हारल सिपाही दुखक उद्वेगमे खरिहानमे काज करैत किसानकें तरुआरिसँ छपाठि दिअए। पराजयक पीड़ा आ विजयक उल्लास अइ क्षेत्राक जनताकें बिना कोनो युद्धमे गेनहि भेटल छै। अइ क्षेत्रामे यायावरी संस्कृति, बताह निश्चिन्तता,
ग्राम देवी पर अथाह भरोस, जीवनक प्रति उन्मुक्त आलस्य भाव अही कारणें विकसित भेल; आ से उत्तरोत्तर एक पीढ़ीसँ दोसर पीढ़ीमे अबैत गेल।
घनघोर आपद स्थितियहुमे अथाह निश्चिन्तता, धार्मिक आ ईश्वरीय शक्ति पर निश्चेष्ट मुदा दिढ़ आस्था, उत्कट आलस्य, भोजन-मैथुन-दरबारी वृत्ति दिश आसक्ति, चुगलखोरी, चाटुकारिता, दमित वासनाक विकृति, दुष्टाचारसँ भरल मनोवृत्ति, स्त्राी-जातिकें भोगक यन्त्रा बुझबाक प्रवृत्ति, शिथिल चरित्रा...सबो टा आचार मैथिल लोकनिकें अपन अही इतिहाससँ भेटल हो--से बहुत सम्भव अछि।
सुशीला सन स्त्राीक कमी ओहि समय धरि नहि छल मिथिलामे। मुदा पर्यवस्थितिक की कएल जाए! प्रेमातुर सुशीला, देवकान्तक प्रति प्रेम निवेदनक कतोक संकेत भरि उपन्यासमे दैत रहलीह अछि। देवकान्त जखन मातृक अबै छथि, तँ घर-आँगनमे सभक समक्षे दुनूक सम्भाषण आ कथोपकथनमे ई स्पष्ट होइत अछि। देवकान्त बड़े चतुराइसँ ठोकि बजा क' अपन वक्तव्य दै छथि, मुदा सुशीलाक वाक्चातुर्य देवकान्तकें अनुत्तरित क' दै छनि। जखन देवकान्त कहै छथि -- ÷आब मामी जतबा दिन कहतीह, रामपुर रहि जाएब।' तँ सुशीला तत्काल देवकान्तक आँखिमे अपन दून्नू आँखि रखैत जवाब दै छनि--÷हम कहब जे भरि जन्म अही ठाम रहि जाउ त रहि हएत?' देवकान्त निरुत्तर भ' जाइ छथि। एक उखराहा बितलाक बाद हुनका जवाब सूझै छनि, आ तखन साँझमे आबि क' कहै छथिन -- ÷सत्त मोनसँ किओ ककरो राखए चाहत त' ओ कहिओ भागि नइं सकइ छइ।' अइ सम्भाषण पर सोना मामी लजाइ छथि; अपन समस्त जमा-पँूजी भागिनकें अर्पित करैत रहै छथि। ई समर्पण वस्तुतः महादेवक प्रति पार्वतीक सर्वस्वार्पणसँ कम प्रशस्त, कम पवित्रा, कम मूल्यवान नहि अछि। मुदा समाजक नजरिमे ई परकीया समर्पण थिक, अनाचार आ व्यभिचारक समर्पण थिक। समाजक नजरिमे सुशीला आ अनिरुद्ध बाबूक विवाह बर्बरता, अनाचार आ व्यभिचार नहि थिक। हाय रे मिथिला, हाइ रे मैथिल!
मुदा समस्त चातुर्य, समस्त धैर्य, समस्त शीलक अछैत सोना मामी अपन मान-सम्मानक प्रति सावधान आ कतोक बेर उग्र सेहो देखाइ छथि। हफीम खएबाक हिनकर कथा जखन हरिनगरवाली देवकान्तकें सुनबए लगै छथिन, तँ सुशीला तामसें तरंगि उठै छथि, ज्वालामुखी जकाँ आगि-अंगोरा मुँहसँ निकल' लगै छनि; मुदा क्रोधमे प्रेमाधारकें कोनो तरहें आहत नहि करै छथि। शरबत पीबाक हिनकर आग्रह जखन देवकान्त नहि मानै छथिन, तँ ई अपमानित होइ छथि। चोटाएल नागिन सन उधिआइ छथि, मुदा देवकान्तकें आहत नइं करै छथि, लोटा गिलास फेकि कए क्रोध शान्त क' लै छथि।
मिथिलाक स्त्राी जीवनक जतेक सूक्ष्म अध्ययन राजकमल चौधरीकें छलनि, आ हिनकर रचना संसारमे जतेक सूक्ष्म विवरण उपस्थिति अछि, हमरा जनैत कोनो स्त्रिायो एते सूक्ष्मतासँ ओहि मनोविज्ञानकें नहि पकड़ि सकल हेतीह। सुशीलाक विवरणमे तँ लगैत अछि लेखक अपन सम्पूर्ण कला लगा देने छथि। सम्पूर्ण कथामे सुशीलाक चरित्राक बहुमुख अंकित करैत कतहु एकटा खोंच-नोछाड़ नहि लागए देने छथि। जे सुशीला भागिनक प्रति एहि तरहें समर्पित छलीह जे पति-पत्नीक रूपमे अमर हएबाक आशीर्वाद चाहै छलीह, से पतिक देहावसानक पश्चात, कुलानन्दक आश्रित भ' गेलीह। कुलानन्दक कोनो बात पर ÷नइं' कहब बिसरि गेलीह। स्वामीक मुँहें कहियो वर्जना नइं सुननिहारि सुशीला, कुलानन्दक समस्त वर्जनाक पालन करए लगलीह।...
(अगिला अंकमे)
१.लघुकथा- कुमार मनोज कश्यप २. दैनिकी- ज्योति
कुमार मनोज कश्यप।जन्म-१९६९ ई़ मे मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। स्कूली शिक्षा गाम मे आ उच्च शिक्षा मधुबनी मे। बाल्य काले सँ लेखन मे अभिरुचि। कैक गोट रचना आकाशवाणी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।
बी०डी०ओ०
ओकर असली नाम की छलैक से तऽ नहिं कहि; मुदा हम सभ ओकरा 'माने' कहि कऽ बजबैत छलियैक। कारण, ओ बात-बात पर 'माने' शब्दक प्रयोग करैत छलीह। से 'माने' ओकर नामे पड़ि गेलई भरि गामक लोक लै। बाल-विधवा, संतानहीन 'माने' हमर घरक सदस्या जकाँ छलीह। हमरा बाद मे बुझवा मे आयल जे 'माने' हमरा ओहिठाम काज करैत छलीह। बृद्धावस्था के कारणे आब काज तऽ नहिंये कऽ सकैत छलीह; हँ दोसर नोकर-चाकर पर मुस्तैद भऽ काज धरि अवश्य करबैत छलीह।
प्रधान मंत्रीक मधुबनी आगमन के लऽ कऽ लोक मे बेसी उल्लास आ उत्साह छलैक, सभ सक्षात दर्शनक पुण्य उठाबऽ चाहि रहल छल। लोकक एहि ईच्छा के पुरा करबा मे सहयोग दऽ रहल छलाह पार्टी कार्यकर्ता लोकनि जे बेसी-सँ-बेसी लोक के जुटा अपन शक्ति प्रदर्शन करबा लेल मुपत्त सवारी के व्यवस्था केने छलाह। हम मजाक मे 'माने' सँ पुछलियै- '' प्रधान मंत्री मधुबनी मे आबि रहल छथिन। अपन गामक सभ केयो जा रहल अछि देखऽ। अहाँ नहि जायब?''
''के अबैत छथिन?''- माने पुछलनि।
''प्रधान मंत्री।'' - हम उत्तर देलियै।
''धुर! ओ कोनो बी०डी०ओ० छथिन जे 'बिरधा-पेलसुम'(वृद्धावस्था पेंसन) देताह। हम अनेरे की देखऽ जाऊ हुनका ?''
हम अवाक रहि गेलंहु माने के उत्तर सँ।
२. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
आठम दिन :
1 जनवरी १९९१, मंगलवार :
वर्षक पहिल दिन हम ७ बजे उठलहुं। सब छात्रसब मजाकमे कहलक जे हम साल भरि सुतैत रहब। पर उठैत देरी हम अतेक जल्दी तैयार भऽ गेलहुं जे सब हमरा ऑंधी तूफान के उपाधि देलक। पहिने हमसब बकरेश्वर के मंदिर गेलहुं। मंदिरके बाहरी दृष्य देखकर हमसब मुग्ध भऽ छलहुं। अन्दरमे पंडित सब अपना दिस आमंत्रित करैत छल लेकिन हमसब अपने सऽ घुमनाइ पसन्द केलहुं। आगां जाकऽ देखलहुं जे एकटा गर्म कुण्ड अछि। हमसब पहिने तऽ नहा लेने रहुं तैयो नहिं रहल गेल आ किछु सहेलीके अपन कपड़ा आनैलेल पठाकऽ ओतऽ फेर सऽ स्नान केलहुं।
अकर बाद नास्ता कऽ दीग्घा दिस विदा भेलहुं। हमर किछु संगीसब ओतऽ पहुंचैलेल ततेक उत्साहित छलैथ जे ओ सब बीचमे रुकिकऽ भोजन करैके कार्यक्रम छोड़ि देबाक बात करै छलैथ। परन्तु ई नहिं भऽ सकल।भोजनोपरान्त हमसब फेर विदा भेलहुं। राइतके साढ़े एगारह बजे दीग्घाके एक लॉजमे रूकलहुं। ई लॉज समुद्र तट सऽ नजदीक रहै आ बहुत सुविधा सऽ युक्त रहै। पॉंच-पॉंच टा विद्यार्थीके एक टा डबलबेडरूम अटैच्ड बाथरूम आ बालकोनी भेटल रहै। हमसब निश्चय केलहुं जे आई राति भरि जागल रहब जाहिसऽ सुर्योदय देखि सकी लेकिन पता चलल जे आकासमे बादल हुअके कारण सुर्योदय नहिं देख सकब। तखन हमसब सुतैके तैयारीमे लागि गेलहुं।
रिपोर्ताज-
कृपानन्द झा (1970- ), जन्म- समौल, मधुबनी, मिथिला। गणितमे स्नातकोत्तर (एल.एन.एम.यू, दरभंगा), बी.लिब. (जामिया मिलिया इस्लामिया) आऽ सोचाना विज्ञानमे एसोसिएटशिप, आइ.एन.एस.डी.ओ.सी., नई दिल्ली। कृपानन्द जी मीरा बाइ पोलीटेकनिक, महारानी बाग, नई दिल्लीमे व्याखाता छथि। कृपानन्दजी यूथ ऑफ मिथिलाक अध्यक्ष छलाह आऽ एखन अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषदक जेनरल सेक्रेटरी छथि। हिनकर ६ टा शोध पेपर सूचना प्रबन्धनक क्षेत्रमे प्रकाशित छन्हि, संगहि हिन्दी आऽ अग्रेजीमे एक-एकटा कविता सेहो प्रकाशित छन्हि।
चौकपर आणविक समझौता:- कृपानन्द झा
साँझ काल गामक चौकपर गहमा-गहमी छलैक। टोनुआँक दोकानपर चाहक गिलास खनखना रहल छलैक मंडलजी पान लगेवमे व्यस्त छलाह। कनीक दूरपर दुर्गा मन्दिरक पुवरिया कात बनल चबुतरापर दस-बारह युवा आ वृद्ध सम सामयिक चर्चामे मग्न छलाह। बीचमे मन्नू भाइक आवाज जोड़सँ आयल। “हौ! एहन कोन आफद आबि गेलैक अपन देशपर जे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंहजी अपन देशक वैज्ञानिकक लगभग पछिला पचास वर्षक तपस्या आ अनुसंधान तथा भविष्यक आणविक सामरिक अनुसंधानकेँ अमेरिकाक हाथ बंधकी रखबापर उतारु भय गेल छथि।
गगनजी चबुतरापर सँ उचकि पानक पीक कातमे फेकैत कहि उठलाह, “कक्का! एहन बात नहि छैक। ई समझौता मात्र अपन देशक महज ऊर्जा आवश्यकताकेँ ध्यानमे राखि कएल गेल-हँ!..
मन्नू भाई तम्बाकू ठोढ़मे दैत कहलखिन, “है। ई ऊर्जा आवश्यकता महज बहाना छैक। अमेरिका एहि बहाने अपन देशक स्वतन्त्र आणविक कार्यक्रममे टाँग अड़ेबाक फिराकमे बहुत दिनसँ छल। आब ओ अपन मनशामे १२३ समझौता आ ओहिमे हाइड एक्टक प्रावधान सौँ सफल भय रहल अछि”।
गगन जी थोड़ेक चिन्तित मुद्रामे कहलखिन- “देखियौ कक्का, जहाँ तक १२३ समझौता आ भारतक आणविक सामरिक कार्यक्रमक प्रश्न छैक तँ मात्र ओ सब रियेक्टर अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सीक देखरेखमे आनल जेतैक, जे सब रियैक्टर, भारत सरकार चाहतैक। तेँ बाकी कार्यक्रमपर एकर असर नहि परतैक”।
“हाँ हौ! लेकिन ई अनबाक कोन जरूरी छैक?” मन्नू भाई आवेशमे बजलाह। ताधरि बैंकर सैहैब सेहो सहटि कय चबुतरा दिश आबि गेल छलाह। गम्भीर आवाजमे मन्नू भाईकेँ सम्बोधित कय कहलथिन- “भाई, किछु एहन प्रावधान सभ जरूरी छैक एहि समझौतामे, परन्तु ई सभ निर्भर करैत छैक जे भविष्यमे भारतक स्थिति अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर कतेक मजबूत रहैत छैक आ हमर राजनीतिज्ञ सब परिस्थितिसँ कतेक फायदा उठबैत छथि। कारण जे ड्राफ्ट एखन प्रस्तुत कएल गेल छैक ताहिमे कोनो कन्फ्लिक्टक स्थितिमे की कदम उठायल जायत आ ओ भारतक फायदामे होयत वा नुकसानमे से ओहि समयक देशक कूटनीतिज्ञ एवं अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितिपर निर्भर करत। परंच, वर्तमान परिस्थितिकेँ अगर देखल जाय तँ हमर देशक आणविक विद्युत उत्पादनक वर्तमान क्षमता मात्र ४०-५०% उत्पादन भय रहल अछि बाँकी आगू जे योजना छैक ओकरो अगर ध्यानमे राखल जाय तँ कहल जा सकैत अछि जे आणविक इन्धन एवं शान्तिपूर्व आणविकौपयोगसँ जुड़ल किछु तकनीककेँ यथाशीघ्र आवश्यकता छैक।
“हौ बैंकर! ई पक्ष तँ छैक परंच एखनहु अगर सरकार आंतरिक संसाधनकेँ सही ढंगसँ दोहन करय तँ ई आणविक इंधनक समस्या अल्पकालिक साबित होयत”। मन्नू भाई किछु शान्त मुद्रामे बजलाह। अपन बातकेँ आगू बढ़बैत कहलखिन जे – “हौ, एखनहु जे योजना सब झाड़खण्डक (जादूगुड़ा, बन्दूहुरंग, तुरमडीह) आन्ध्र प्रदेशक (तुम्मालापल्ली) कर्णाटक, मेघालय आ राजस्थान आदि राज्यमे चलि रहल छैक ओ अगर सही ढंगसँ कार्यान्वित कयल जाय तँ आणविक इन्धनक ई वर्तमान समस्याक समाधान आसानीसँ कयल जा सकैछ”।
चबुतराक उतरवरिया-पछवरिया कोनापर बैसल टुन्ना बाजि उठल, “यौ कक्का, मंडलजी पानक दोकान आब बन्द करताह! ८ बाजि रहल छैक”।
बैंकर सैहैब जोड़सँ कहलखिन- “यौ मंडलजी! आठटा पान लगाकऽ एमहर पठाऊ”।
चबुतराक पछवरिया कातमे मजहर सोचपूर्ण मुद्रामे साँझेसँ बैसल सबहक गप सुनि रहल छलाह। बैंकर सैहैब मजहरकेँ कहलखिन- “हौ मजहर! तूँ तँ एखन कम्पीटिशन सबहक तैयारी कए रहल छह। तूँ एहि सम्पूर्ण प्रकरण पर बहुत मंथन कयने हेब। आखिर तोहर सोच की छह”?
खखसि गरदनि साफ कय खखाड़ कातमे फेकैत बजलाह- “भाईजी! अंतर्राष्ट्रीय आ आर्थिक नीति काफी संकीर्ण विषय छैक। पहिल बात अछि जे हमरा लोकनि एन.पी.टी.पर हस्ताक्षर केने बिना अंतर्राष्ट्रीय आणविक बाजारमे सेंह मारवाक कोशिश कय रहल छी। एहि हालतमे किछु ने किछु अंतर्राष्ट्रीय बंधन तँ स्वीकार करहिये परत। परन्तु हम एकरा एकटा अवसरक रूपमे देख रहल छियैक। आणविक क्षेत्रक किछु एहन पक्ष छैक जाहिमे हमर देशक अनुसंधान शायद अमेरिकोसँ ऊपर अछि। हालमे एकटा रिपोर्ट पढ़ने रही, जाहिमे कहल गेल छैक जे भारतक वैज्ञानिक २००५ आ २००६ मे प्रकाशित अनुसंधान रिपोर्टक आधारपर तकनीकी रूपसँ समृद्ध देश सबकेँ सेहो पाछू छोड़ि आगू बढ़ि गेल अछि। एहि स्थितिमे आणविक इन्धन आ किछु तकनीकक आयात तँ महज अल्पकालिक छैक। दीर्घकालिक असर हमरा जनैत ई हेतैक जे भारत किछु दिनका बाद आणविक क्षेत्रमे एकटा पैघ निर्यातक भऽ कऽ उभरत। एकरामे तकनीकी क्षमता छैक आ अन्तरि आणविक साधन, जे किछु काल पहिने चर्चा भेल जेना, झारखण्ड, आन्ध्रप्रदेश, मेघालय आदिमे उपलब्ध छैक तथा अंतर्राष्ट्रीय आणविक सहयोगक माध्यमसँ एकटा पैघ निर्यातक भेनाइ सम्भव छैक।
तेँ हेतु हमर तँ एतबय कहब अछि जे जौँ एहि समझौताकेँ सही ढंगसँ उपयोग कयल जाय तँ ई अपन देशक लेल वरदान साबित होयत”।
१.नवेन्दु कुमार झा छठिपर २.नूतन झा भ्रातृद्वितियापर
नवेन्दु कुमार झा,
समाचार वाचक सह अनुवादक (मैथिली), प्रादेशिक समाचार एकांश, आकाशवाणी, पटना
१.बिहारक लोक पर्व – छठि
पावनि-तिहार हमर सभक सभ्यता-संस्कृतिक परिचायक अछि। हिन्दू धर्ममे पाबनिक विशेष महत्व अछि। हिन्दू धर्मावलम्बी सभक कतेको पाबनिमे छठिक विशेष महत्व अछि। ई पाबनि बिहारक लोक पाबनिक संग महापाबनि सेहो अछि। ई सम्पूर्ण बिहारक संग पूर्वी उत्तर प्रदेश आ महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान आ दिल्लीक बिहारी बहुल क्षेत्र सभमे श्रद्धाक संग मनाओल जाइत अछि। पड़ोसी देश नेपालक मैथिली बहुल क्षेत्रमे सेहो एहि पाबनिक आयोजन कएल जाइत अछि। अगाध श्रद्धा, कड़गर व्रत साधना, एकान्त निष्ठा आ आत्म संयम बाला एहि पाबनिक बिहारमे ओतबे महत्व अछि जतेक महाराष्ट्रमे गणपति महोत्सव, पश्चिम बंगालमे दुर्गापूजा तथा पंजाबमे वैशाखीक अछि। बिहारक किछु क्षेत्रमे एहि पाबनिकेँ “डाला छठि” सेहो कहल जाइत अछि।
ई पाबनि सूर्योपासना आ साधनाक महापाबनि अछि। शक्तिक देवी दुर्गाक आराधनाक समाप्तिक बाद प्रदेशमे छठि पाबनिक आगमनक अभास होमए लगैत अछि आ प्रकाशक पाबनि दीया बातीक समाप्तिक बाद लोक एकर तैयारीमे लागि जाइत छथि। एहि पाबनिमे भगवान सूर्य देव आऽ षष्ठी माय (छठि माता)क आराधना एक संग कएल जाइत अछि। ओना तँ सूर्य देवक पूजाक परम्परा अति प्राचीन अछि आऽ कतेको हजार वर्षसँ हमर सभक सांस्कृतिक विरासत अछि मुदा सूर्य देवक संगहि षष्ठी मायक पूजा एक संग कहियासँ शुरू भेल से एखनो रहस्य बनल अछि।
छठि पाबनिक आयोजन वर्षमे दू बेर होइत अछि। पहिल बेर चैत मासमे आ दोसर बेर कार्तिक मासमे छठिक पाबनि होइत अछि। कार्तिक मासमे एहि पाबनिक आयोजन विस्तृत रूपमे होइत अछि। एहि अवसरपर प्रवासी बिहारी आवश्यक रूपसँ अपन प्रदेश आऽ गाम अबैत छथि आऽ अपन घरपर रहि सम्पूर्ण परिवारक संग एहि पाबनिकेँ मनबैत छथि। श्रद्धा आऽ आस्थाक संग एहि पाबनिकेँ कएलासँ मनोबांक्षित फलक प्राप्ति होइत अछि। धार्मिक ग्रन्थ सभमे ई जनतब देल गेल अछि जे सूर्य देवक पूजा प्राचीन कालसँ प्रसिद्ध अछि आऽ बिहारमे एकर प्रसिद्धि सहज रूपमे देखल जाऽ सकैत अछि।
चारि दिन धरि चलै बाला ई धार्मिक अनुष्ठान कार्तिक शुक्ल चतुर्थीसँ शुरु होइत अछि आऽ सप्तमीकेँ समाप्त होइत अछि। पहिल दिन “नहाय-खाय” होइत अछि। एहि दिन पबनैतिन सुविधानुसार नदी, पोखरि आऽ इनार आदिमे स्नान कऽ अरबा चाउरक भात, बुटक दालि आऽ सजिमनिक तरकारी भोजन करैत छथि। पबनैतिनक भोजन कएलाक बाद घरक आन सदस्य भोजन ग्रहण करैत छथि। एहि दिन छठि पाबनि करबाक संकल्प लेल जाइत अछि। दोसर दिन पंचमीकेँ खरना होइत अछि जाहिमे पबनैतिन भरि दिन उपास रहि नदी, पोखरि आ इनारसँ पानि आनि पीतल, ताम्बा अथवा माटिक बर्तनमे खीर, चाउरक आटाक गुलगुला बनबैत छथि आऽ सांसमे नव वस्त्र पहिर चाँद देखि बनल सामग्री, केरा आऽ दूध सूर्य भगवानकेँ समर्पित कऽ शान्त-चित्त भऽ प्रसाद ग्रहण करैत छथि। खरनाक समय कोनो आबाज नहि होमए क चाही। खरनाक विधि विभिन्न स्थानपर बदलैत अछि मुदा मूल रूपमे कोनो परिवर्तन नहि होइत अछि। एकरा बादसँ पबनैतिन उपासमे रहैत छथि आऽ चारिम दिन उगैत सूर्यकेँ अर्घ्य दऽ प्रसाद ग्रहण कऽ उपास तोड़ैत छथि। खरनाकेँ किछु क्षेत्रमे “लोहंडा” सेहो कहल जाइत अछि।
तेसर दिन षष्ठीकेँ पबनैतिन नदी, पोखरि आ इनारमे पानिमे ठाढ़ भऽ कतेको तरहक पकबान, फल-फूल, सुपारी, पान आदिकेँ कांच बासक बनल सूपमे सजा ओहिमे दीप जड़ा डुबैत सूर्य दिस मूँह कऽ भगवान सूर्यकेँ अर्घ्य चढ़बैत छथि। परिवारक आन सदस्य सेहो सूपक आगाँ पानि अथवा दूध ढ़ारि अर्घ्य दैत छथि। षष्ठी दिन भगवान सूर्यकेँ अर्घ्य देलाक बाद प्रदेशक किछु क्षेत्रमे “कोसी भरबाक” परम्परा सेहो अछि। एहि दिन अर्घ्य देलाक बाद स्त्रीगण अपन अंगनाकेँ गोबरसँ निपैत छथि आ ओहिपर अरिपन दैत छथि। एकर बाद चारि टा पैघ कुसियारसँ मंडप बना एकर बीचमे माटिक बनल हाथी रखैत छथि जकर चारु कात दीप बनल रहैत अछि। सभ दीपकेँ मालासँ सजा ओहिमे घी ढ़ारि जड़ाओल जाइत अछि। हाथीक ऊपरमे भगवान भाष्करकेँ अर्पित कएल जाए बाला प्रसाद, ठकुआ, केरा आऽ आन फलकेँ माटिक बर्तनमे राखल जाइत अछि। दीप राति भरि जड़ैत रहैत अछि आ स्त्रीगण मंडपक चारूकात बैसि भरि राति जागल रहि छठि माइक गीत गबैत छथि। भरि राति दीप जड़बऽ आऽ गीत गाबएमे बितैत अछि। षष्ठी जकाँ चारिम दिन सप्तमीकेँ उगैत सूर्यक भिनसरमे समर्पित कएल जाइत अछि। एकर बाद कोसी उठा लेल जाइत अछि। अर्घ्य देलाक बाद सभ लोक पबनैतिनकेँ प्रणाम कऽ आशीर्वाद लैत छथि। लोक पबनैतिनक आशीर्वादकेँ सूर्यदेवक आशीर्वाद मानैत छथि। अमीर-गरीब, बूढ़-जवान, मालिक-नोकर, स्त्री-पुरुष सभ भेदभाव बिसरि पबनैतिनसँ आशीर्वाद लैत छथि। तेजीसँ बदलैत परिवेशक बावजूद ई परम्परा निरन्तर चलि रहल अछि। सप्तमी अर्घ्यक बाद छठि मायक प्रसाद ग्रहण कऽ पबनैतिन अपन उपास समाप्त करैत छथि आ भोजन ग्रहण करैत छथि। एहिक संग चारि दिनक ई धार्मिक अनुष्ठान समाप्त होइत अछि। अन्तिम दिनकेँ पारन सेहो कहल जाइत अछि।
बिहारमे ई पाबनि हिन्दूक संगहि मुसलमान आ सिख सेहो मनबैत अछि। कटिहार जिलाक लक्ष्मीपुर आऽ भोजपुर जिलाक कोइलवर गाममे तीनू धर्मक लोक एहि पाबनिकें मनबैत छथि। लक्ष्मीपुर गामक पश्चिम स्थित नदीक किनारमे तीनू समुदायक श्रद्धालु एकट्ठा होइत छथि आऽ एक संग सूर्यदेवकेँ अर्घ्य दैत छथि, ओतहि, कोइलवर गाममे हिन्दू रोजा रखैत छथि तऽ मुसलमान छठिक पाबनिमे हिन्दू सभक घरमे सूप पठा कऽ एहि पाबनिकेँ मनबैत छथि।
प्रदेशक सांस्कृतिक सम्पन्नताक उदाहरण प्रस्तुत करैत एहि पाबनिमे उपयोगमे आबए बाला वस्तु सभ खेतीक व्यवस्थाक अर्थशास्त्रीय स्वरूप प्रस्तुत करैत अछि। ई एकमात्र एहन धार्मिक अनुष्ठान अछि जाहिमे पंडितक कोनो हस्तक्षेप नहि होइत अछि। बिना पंडितक सम्पन्न होमएबाला एहि पाबनिमे भगवान आऽ भक्तक संग सीधा सम्पर्क होइत अछि। एहि पाबनिमे स्त्रीगणक महत्वपूर्ण भूमिका होइत अछि जे अपन शरीरकेँ तपा कऽ पूरा भक्तिक संग नियम-निष्ठा आऽ पवित्रताकेँ बनाएल रखबाक प्रति विशेष रूपसँ सतर्क रखैत छथि। एहन धारणा अछि जे एहि पाबनिकेँ नियम निष्ठा आऽ पवित्रताक संग नहि कएलासँ एकर विपरीत असरि पबनैतिन आऽ ओकर निकट सम्बन्धी आऽ परिवारपर तुरत पड़ैत अछि। ई मान्यता अछि जेऽ पवित्रताक संग ई पाबनि नहि कएलासँ असाध्य रोग उत्पन्न होएबाक संभावना रहैत अछि। दोसर दिस ईहोमानब अछि जे एहि पाबनिकेँ नियमित रूपेँ कएलासँ सफेद दाग जेहन रोगसँ मुक्ति सेहो भेटैत अछि। एहि पाबनिक बढ़ैत लोकप्रियताकेँ देखि आब पुरुष सेहो ई पाबनि करए लगलाह अछि।
भगवान सूर्यक पूजा भारतक संगहि इन्डोनेशिया, जावा, सुमात्रा आदि कतेको देशमे कएल जाइत अछि, मुदा अन्तर अतबा अछि जे स्थानक परिवर्तनक संग एकर स्वरूप बदलि जाइत अछि। सूर्योपासनाक चरचा विश्वक प्रायः सभ प्राचीन साहित्यमे अलग-अलग रूपमे कएल गेल अछि। एकर चर्चा वेदमे तँ अछिए संगहि सूर्योपनिषद, चाक्षुपोपनिषद, अक्ष्युपनिषद आदिमे सेहो अछि मुदा सूर्य देवक संग सूर्य देवक संग षष्ठी देवी पूजा एक संग कहियासँ कएल जाऽ रहल अछि एकर प्रमान एखन धरि अनुपलब्ध अछि।
कार्तिक मासक षष्ठी तिथि षष्ठी देवी कऽ अछि जे भगवान कार्तिकेयक पत्नी छथि। ई पाबनि सूर्य देव आ षष्ठी देवी एक संग करबाक पाबनि अछि जे पूरा भक्तिक भावक संग मनाओल जाइत अछि। छठिक गीतमे सेहो सूर्य देव आऽ षष्ठी मायक स्तुति एक संग कएल गेल अछि।
सूर्योपासनाक संग एहि धार्मिक अनुष्ठानक संबंधमे कतेको कथा प्रचलित अछि। एकटा मान्यता ई अछि जे मधुश्रवामे च्यवन ऋषिक आश्रम छल। ऋषिक पत्नी सुकन्याक पिता जंगलमे शिकार खेलऽ गेलाह तँ हुनका द्वारा छोड़ल गेल तीर च्यवन ऋषिक एकटा आँखिमे लागि गेल जाहिसँ हुनक एकटा आँखि चलि गेल। एहि घटनासँ सुकन्या व्याकुल भऽ गेलीह आऽ जंगलक भ्रमण करए लगलीह। जंगलमे एक दिन एकाएक सूर्य देवक पूजामे लागल एकटा नाग कन्यासँ हुनक भेँट भेल। ओ एहि सम्बन्धमे नागकन्यासँ जनतब लेलनि तँ नागकन्या जनौलक जे षष्ठी आऽ सप्तमीकेँ सूर्य देवक पूजा कएलासँ भक्तक सभ मनोकामना पूरा होइत अछि। एहन चरचा होइत अछि जे च्यवन ऋषि आऽ सुकन्या सूर्य देवक पूजा कएलनि आऽ हुनक आँखि ठीक भऽ गेल। प्राचीन साहित्यसँ ईहो जनतब होइत अछि जे औरंगजेब सेहो औरंगाबाद स्थिति देवक प्रसिद्ध सूर्य मन्दिरमे १६७७ सँ १७०७ ई. धरि नियमित रूपसँ छठिक अवसरपर सूर्य देवक आराधनामे लागि जाइत छल। एहनो चरचा भेटैत अछि जे महाभारतक समय पांडव जखन सभ किछु हारि गेलाह आऽ जंगलमे घुमैत छलाह जखन विपत्ति एहि समयमे द्रौपदी सूर्यदेवक १०८ नामसँ सूर्यक पूजा कएलनि आऽ छठिक व्रत कएलाक बाद पांडवकेँ अपन राज-पाट वापस भेटि गेल। एहि घटनाक बाद लोक सभ एकटा “महाभारत पर्व” सेहो कहए लगलाह। आम जन समूहक मध्य ई धारणा अछि जे एहि धार्मिक अनुष्ठानकेँ निष्ठाक संग कएलासँ मनोवांक्षित फलक प्राप्ति तँ होइते अछि संगहि संतानोत्पत्ति आऽ पारिवारिक शान्ति आऽ चैनक संग असाध्य रोगक निवारण सेहो होइत अछि।
सम्पूर्ण बिहारमे पूरा उत्साह आऽ भक्तिभावक संग मनाओल जाएबाला एहि पाबनिक अतेक महत्व अछि जे गरीब सेहो भीख माँगि कऽ ई पाबनि करैत अछि। कतेको लोक आऽ संगठन एहि अवसरपर फल-फूल आऽ पूजाक सामान बाँटि पुण्यक भागी बनैत छथि। खरना आऽ सप्तमीक दिन लोकसभ माँगियो कऽ प्रसाद जरूर ग्रहण करैत छथि। पबनैतिन सेहो बिना कोनो भेदभावक प्रसाद बँटैत छथि। एहि अवसरपर पूरा प्रदेशमे नदी, पोखरि, कुआ आदिक सफाई कएल जाइत अछि। सम्पूर्ण प्रदेशक शहर गामक सड़क, गली, मोहल्लामे अद्भुत सफाई आऽ प्रकाशक व्यवस्था कएल जाइत अछि। शहर सभमे नदी-पोखरिपर बढ़ैत भीड़ देखि आब लोक सभ अपन मोहल्ला आऽ घरक छत अथवा लग पासमे खाली स्थानपर पोखरि जकाँ संरचना बना ओहिमे पानि जमा दैत छथि आऽ पबनैतिन ओहिमे ठाढ़ भऽ सूर्यदेवकेँ अर्घ्य समर्पित करैत छथि। ई एकमात्र अवसर अछि जखन लोक सभ साक्षात अराध्य देवक पूजा करैत छथि। एहि अवसरपर सम्पूर्ण बिहारमे अमीर-गरीब, ऊँच-नीच आऽ मालिक-मजूरक बीच दूरी समाप्त भऽ जाइत अछि। सभ केओ तन, मन, धनसँ एहि पाबनिमे लागि जाइत अछि आऽ सम्पूर्ण वातावरण छठिमय भऽ जाइत अछि।
२. बिहारमे सूर्योपासनाक प्रमुख केन्द्र-
नवेन्दु कुमार झा,
समाचार वाचक सह अनुवादक (मैथिली), प्रादेशिक समाचार एकांश, आकाशवाणी, पटना
छठि पाबनि बिहारक एकटा लोक पर्व अछि जे प्रायः सभ घरमे मनाओल जाइत अछि। पूरा प्रदेशमे आस्था आऽ श्रद्धाक संग ई चारि दिवसीय अनुष्ठान सम्पन्न होइत अछि। बिहारमे सूर्योपासनाक कतेको केन्द्र अछि। बिहारमे स्थित कतेको सूर्य मन्दिर श्रद्धालु सभकेँ भगवान सूर्यक अर्घ्य देबाक लेल आकर्षित करैत अछि। प्रदेशक संगहि देशक कतेको आन क्षेत्रसँ श्रद्धालु एहि मन्दिर सभमे आबि सूर्य देवक आराधना करैत छथि:-
देवक सूर्य मन्दिर:- औरंगाबाद जिला मुख्यालयसँ बीस किलोमीटरपर देवमे स्थित सूर्य मन्दिर मगध विशिष्ट संस्कृति, आस्था आऽ विश्वासक सर्वाधिक सशक्त आऽ विराट प्रतीक अछि। ई प्राचीन सूर्य मन्दिर अपन शिल्प आऽ स्थापत्यक प्रभावशाली सौम्यक अभिव्यक्त करैत अछि। सूर्य देवक ई विशाल मन्दिर पूर्वाभि,उख नहि भऽ पश्चिमाभिमुख अछि। बिना सिमेन्ट या गार चूनाक आयताकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, गोलाकार आऽ त्रिभुजाकार आदि कतेको रूप आऽ आकारमे काटल पत्थरकेँ जोड़िकऽ बनाओल गेल अछि। गोटेक सौ फीट ऊँच एहि सूर्य मन्दिरमे सूर्य देवक तीन रूपक उदयाचल, मध्यांचल तथा अस्ताचलमे विद्यमान छथि। एहि मन्दिरक कारी पाथरिक नक्कासी, अभिषेक करैत अस्ताचलगामी सूर्यक किरण आऽ एहि मन्दिरक महिमाक कारण लोक सभमे अटूट श्रद्धा अछि। एहि कारण प्रति वर्ष चैत आऽ कातिक मासमे देशक कतेको क्षेत्रसँ पबनैतिन एहि ठाम आबि सूर्यदेवकेँ अर्घ्य दैत छथि।
पोखरामाक सूर्य मन्दिर- लखीसराय जिला सूर्यगढ़ा प्रखण्डक पोखरामा गाममे स्थापित सूर्य मन्दिर सूर्य पंचायतन मन्दिर अछि जतए पाँचो देवता शिव, गणेश, विष्णु आऽ देवी दुर्गाक संग सूर्यदेव विराजमान छथि। एहि तरहक प्रदेशक ई पहिल मन्दिर अछि। एकर निर्माण सूर्य देवक प्रेरणासँ भेल अछि। १२०० फीटमे बनल एहि मन्दिरक बगलमे एकटा पोखरि सेहो अछि जतए भगवान सूर्यकेँ अर्घ्य देल जाइत अछि। लोक सभक मान्यता अछि जे सच हृदय, स्वच्छ भाव आऽ पवित्र मनसँ एहि मन्दिरमे छठिक पूजा कएलासँ दैहिक, दैविक आऽ भौतिक पापसँ मुक्ति तँ भेटैते अछि, सूर्य नारायण मनोनुकूल फल सेहो दैत छथि। पोखरामा गाम किउल-भागलपुर रेल खण्डपर कजरा स्टेशनसँ पाँच किलोमीटर उत्तर पश्चिममे तथा सड़क मार्गसँ ई गाम लखीसराय –मुँगेर पथपर लखीसरायसँ पन्द्रह किलोमीटर आऽ अलीनगरसँ चारि किलोमीटरपर अवस्थित अछि।
उलारक सूर्य मन्दिर- राजधानी पटनासँ पचास किलोमीटर दूर दुल्हिन बाजार आऽ पालीगंजक मध्य उलार मोड़सँ एक किलोमीटर दूर अवस्थित उलारक सूर्य मन्दिर अपन विशिष्ट पहचानक कारण प्रसिद्ध अछि। द्वापर कालमे भगवान श्रीकृष्णक वंशक राजा एहि मन्दिरक निर्माण करौने छलाह। गोटेक तीस फीट ऊँच एहि मन्दिरक इतिहास आऽ महत्वक कारण आइयो सभ रवि दिन कतेको हजार श्रद्धालु पैदल चलि कऽ एहि ठाम पूजा-अर्चना करैत छथि। छठिक अवसरपर एहि ठाम पैघ संख्यामे लोक छठि करऽ अबैत छथि।
मधुश्रवाक सूर्य मन्दिर- राजधानी पटनासँ सटल अरवल जिलाक मधुश्रवामे सेहो एकटा प्राचीन सूर्य मन्दिर अछि। कहल जाइत अछि जे मधुश्रवामे च्यवन ऋषिक आश्रम छल। पौराणिक कथाक अनुसार सुकन्या आऽ च्यवन ऋषिक देवार लागल शरीर एहि ठाम ठीक भऽ गेल छल आऽ हुनक फूटल आँखि पूर्ववत भऽ गेल।
सुवासक सूर्य मूर्ति- मुजफ्फरपुर जिलाक गायघाट प्रखण्ड अन्तर्गत दरभंगा-मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय उच्च पथपर लढ़ौर पंचायतक सुवास गाममे सेहो भगवान सूर्यक एकटा प्राचीन मूर्ति अछि। एहि गामक लोक एकर पूजा अपन ग्राम देवताक रूपमे करैत छथि। जानकारीक अभावमे ई मूर्ति एकटा छोट मन्दिरमे एखनो स्थापित अछि। हालाँकि एखन धरि प्रदेशक सूर्योपासनाक केन्द्रमे एकर पहचान नहि बनि सकल अछि।
उमगाक सूर्य मन्दिर- औरंगाबाद जिलाक मदनपुर उमगा पर्वत श्रृंखलापर चौदह सौ वर्ष पूर्व एकटा सूर्य मन्दिरक निर्माण कराओल गेल छल जकर शिल्प देवक सूर्य मन्दिरसँ मिलैत अछि। गोटेक साठि फीट ऊँच ई मन्दिर बिना सिमेन्टक प्राचीन पाथरसँ बनल अछि। एहि ठाम सात टा घोड़ापर सवार भगवान सूर्यक प्रतिमा स्थापित अछि। देवसँ गोटेक बारह किलोमीटरपर ई मन्दिर अवस्थित अछि।
बेलाउरक सूर्य मन्दिर- भोजपुर जिलाक उदवन्तनगर प्रखण्डक दक्षिण-पूर्व कोनपर आरा-सहार सड़कपर स्थित बेलाउर सूर्य मन्दिरक लेल प्रसिद्ध अछि। बेलाउरक नयनाभिराम एहि मन्दिरमे सूर्य देवक भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित कएल गेल अछि। एहि ठाम प्रदेशक कोन-कोनसँ लोक सभ मनता मानए अबैत छथि।
औंगारीक सूर्य मन्दिर- नालन्दा जिलाक एकंगरसराय प्रखण्डक एकंगरडीह बजारसँ गोटेक पाँच किलोमीटर दक्षिण ऐतिहासिक औगारी गाममे बनल सूर्य मन्दिरमे सूर्य देव आऽ भगवान विष्णुक उनीस टा प्राचीन प्रतिमा अछि। भगवान सूर्यक बारह टा राशि अछि। एहि सभ राशिक प्रतीक देश भरिक बारह टा सूर्य मन्दिरमे सँ एकटा औंगारीक सूर्य मन्दिर अछि। मन्दिरक लग एकटा विशाल पोखरि सेहो अछि। एहि पोखरिमे स्नान कऽ सूर्य देवकेँ एहि ठाम अर्घ्य देबाक विशेष महत्व अछि। छठिक अवसरपर औंगारीमे पैघ मेला सेहो लगैत अछि।
हवेली खड़गपुरक सूर्य मन्दिर- मुंगेर जिलाक हवेली खड़गपुर मुख्यालयसँ गोटेक तीन किलोमीटर उत्तर पश्चिम जमुई-मुंगेर रोडपर अवस्थित सूर्य मन्दिरक निर्माण पाँच दशक पूर्व छात्र सभक पूजा-अर्चनाक लेल बनाओल गेल छल। एकर निर्माण पंडित देवदत्त शर्मा छात्र-छात्रा सभक लेल कएने छलाह जाहिसँ छात्र सभ भगवानक सजीव रूपकेँ महसूस करथि। हालाँकि आब ई मन्दिर भक्त सभक लेल आराधनाक प्रमुख केन्द्र बनि गेल अछि। ई मन्दिरक बाहरी भाग एखनो अर्द्धनिर्मित अछि आऽ स्थानीय जनताक अपेक्षाक शिकार अछि तथापि छठिक अवसरपर पैघ भीड़ एहि ठाम लगैत अछि आऽ चारि दिवसीय एहि अनुष्ठानक अन्तिम दिन “पारण” केँ भगवान सूर्यक प्रतिमापर अर्घ्य चढ़ैबाक लेल होड़ लागल रहैत अछि।
बड़ीजानक सूर्य मन्दिर- किशनगंज जिलाक अररिया-बहादुरगंज रोडसँ दक्षिण बड़ीजानमे भगवान सूर्यक भव्य पुरान मन्दिर अछि। एहि मन्दिरक गर्भ गृहमे उत्तर पालकालीन छओ फीटक सूर्यदेवक प्रतिमा स्थापित अछि।
बड़गावक सूर्य मन्दिर- नालन्दा जिलाक प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालयक खंडहरसँ गोटेक दू किलोमीटर उत्तर-पश्चिममे स्थित बड़गाव नामक स्थानपर भगवान सूर्यक प्राचीन आऽ भव्य मन्दिर अछि। मन्दिरसँ सटल सूर्य तालाब सेहो अछि। मान्यता अछि जे एहि तालाबमे स्नान कएलासँ कुष्ट रोगक निवारण होइत अछि। बेशी संख्यामे लोक एहि ठाम छठि करैत छथि।
देव कुण्डक सूर्य मन्दिर- औरंगाबाद जिलाक पंचरुखिया मोड़सँ पाँच किलोमीटर उत्तर हंसपुरा नामक गामसँ तीन किलोमीटर पूरबमे स्थित अछि देवकुण्डक सूर्य मन्दिर। एहि मन्दिरक दरबाजा पूर्व दिस अछि। चैत आऽ कातिक दुनू मासक छठिमे एहि ठाम भव्य मेला लगैत अछि।
पंडारक सूर्य मन्दिर- पटना जिलाक बाढ़ अनुमंडलसँ गोटेक दस किलोमीटर दूर पंडारक गामक पश्चिम भागमे गंगा नदीक कातमे सूर्य देवक मन्दिर स्थित अछि। एहि मन्दिरक निर्माण द्वापर युगमे श्री कृष्णक अष्ट महिषिमे सँ एक सभसँ सुन्दरी जावन्तीक पुत्र साम्बा करौने छलाह। मन्दिरक गर्भगृहमे कारी पाथरपर पुरान शैलीमे सूर्य देवक सम्मोहक आऽ दुर्लभ प्रतिमा अछि। देशक बारह टा प्रमुख सूर्य मन्दिरमे सँ ईहो एकटा सूर्य मन्दिर अछि।
नूतन झा; गाम : बेल्हवार, मधुबनी, बिहार; जन्म तिथि : ५ दिसम्बर १९७६; शिक्षा - बी एस सी, कल्याण कॉलेज, भिलाई; एम एस सी, कॉर्पोरेटिव कॉलेज, जमशेदपुर; फैशन डिजाइनिंग, एन.आइ.एफ.डी., जमशेदपुर।“मैथिली भाषा आ' मैथिल संस्कृतिक प्रति आस्था आ' आदर हम्मर मोनमे बच्चेसॅं बसल अछि। इंटरनेट पर तिरहुताक्षर लिपिक उपयोग देखि हम मैथिल संस्कृतिक उज्ज्वल भविष्यक हेतु अति आशान्वित छी।”
मिथिलांचलक भ्रातृद्वितीया
भ्रातृद्वितीया हिन्दु समाज मे प्रचलित पाबनि अछि । मिथिलांचल मे सेहो अकर विशिष्ट महत्व अछि । कार्तिक मास मे शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि क ई पाबनि मनाओल जाइत अछि । ई दिन भाय - बहिनक अटूट प्रेम के समर्पित होइत अछि । अहि पाबनि सऽ जुड़ल एक पौराणिक कथा अछि जाहि अनुसारे जमुना अप्पन भाय यम के अहि दिन नोतने रहैथ । बहिन सब अप्पन भाय के पूजा करैत छथि । बहिन अपन घरक ऑंगन नीप कऽपीठार सऽ षष्ठदलक अड़िपन बनाबैत छैथ । भाय के आसन अथवा पीढ़ी पर बैसाबैत छैथ । अड़िपन पर एक गोट बाटी राखै छैथ ।लोटा मे अछिंजल लैत छैथ । पूजा के लेल छह गोट कुम्हरक फूल, पिठार, सिन्दूर, छह गोट डॉंट सहित पानक पात, छह गोट सुपाड़ी, दुनु प्रकारक इलायची आर हरीर आवश्यक होइत अछि । कुम्हरक फूल नहिं भेटला पर गेंदाक फूल सऽ काज लेल जाईत अछि ।
बहिन अपन भाय के आसन पर बैसाकऽ पिठार आ सिन्दूर सऽ तिलक करैत छैथ । तकर बाद भाय दुनु कर पसारिकऽ बाटिक ऊपरि राखैत छैथ आ' बहिन भाय के हाथ मे पिठार सिन्दूर सहित पूजाक सब सामग्री राखैत छथि । पुन जलसॅं भायके हाथ धो दैत छैथ । जलसऽ हाथ धोईत काल बहिन निम्नलिखित फकरा गाबैत छथि
''यमुना नोतली यम के़ हम नोतै छी भाय के,
जते दिन यमुनाक धार रहै तते दिन भाय के अरूदा रहै"
तकर बाद बहिन अपन भाय के वैभवानुसार उपहार दैत छथि । मान्यता अछि जे ई पूजा करै वाली स्त्री वैधव्य एवम् अन्य क्लेश सऽ दूर रहैत छथि ।बचपन मे जतऽ ई पाबनि बहिन सभ लेल उपहारक लालसा आ' भाई सभ लेल पूजा कराबऽ के खुशी दैत अछि ओतई पैघ भेलापर ई पाबनि भाय बहिन के भेंट करबाक अवसर बनि जाईत अछि ।
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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