भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
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Tuesday, January 13, 2009
विदेह १ नवम्बर २००८ वर्ष १ मास ११ अंक २१-part-iii
२.हिमांशु चौधरी
विष-वृक्ष
धरतीमे आबि
आकाश दिश ताकऽ बला
स्थितिसँ
काँपि रहल छी
हसोन्मुख प्राप्तिकँ लऽ कऽ
दुःखक अन्तिम परीक्षा भऽ रहल अछि
देवता रहितौ
देवता मरि गेलाक कारणें
आस्था
मन्दिरमे सूतल अछि
सुषुप्त आस्थाकेँ
जगओनाइ कठिन भऽ रहल अछि
दिनानुदिन आ उपचारहीन
युगक अवैध घाओक
पीजमे पिछड़ि कऽ
हरेक अंगकेँ
क्यान्सर कहि
नियतिमे दिन बिताबऽ पड़ि रहल अछि
घाओक टनकनाइसँ बेसी
घाओक परिकल्पनासँ
अवरुद्ध अछि- कण्ठ आ छाती
आड़ि-आड़िमे
शरीरक अंग भेटऽ लागल अछि
हर जोतबाक
सहास नहि भऽ रहल अछि
मानचित्रसँ
हिमालक छाह भागल जा रहल अछि
पहाड़ आ मधेशमे
अन्हार बढ़ल जा रहल अछि
पीयर गजुरक नीचाँ
हवाक वेगसँ
बुर्जाक घण्टीमे
सेहो घृणा चिचिया रहल अछि
उड़ैत परबाक पाँखिमे
सेहो बारुद बान्हल अछि
फरिच्छेमे
मृत्युदण्डक क्रम बढ़ैत गेलासँ
मृत्युक खातामे
मूल्यवान छाती
छाउर भेल जा रहल अछि
भोर आ राति
गर्भाधान कएनाइ
छोड़ने जा रहल अछि
छीः छीः
एहनेमे विष वृक्ष रोपनाइ नहि
बन्द भऽ रहले अछि।
कला आ संगीत शिक्षा
चित्रकार : ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
छठि पूजापर विशेष
बालानां कृते
१.प्रकाश झा- बाल कविता २. बालकथा- गजेन्द्र ठाकुर
३. देवीजी: ज्योति झा चौधरी
प्रकाश झा, सुपरिचित रंगकर्मी। राष्ट्रीय स्तरक सांस्कृतिक संस्था सभक संग कार्यक अनुभव। शोध आलेख (लोकनाट्य एवं रंगमंच) आऽ कथा लेखन। राष्ट्रीय जूनियर फेलोशिप, भारत सरकार प्राप्त। राजधानी दिल्लीमे मैथिली लोक रंग महोत्सवक शुरुआत। मैथिली लोककला आऽ संस्कृतिक प्रलेखन आऽ विश्व फलकपर विस्तारक लेल प्रतिबद्ध। अपन कर्मठ संगीक संग मैलोरंगक संस्थापक, निदेशक। मैलोरंग पत्रिकाक सम्पादन। संप्रति राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्लीक रंगमंचीय शोध पत्रिका रंग-प्रसंगक सहयोगी संपादकक रूपमे कार्यरत।
( मिथिलामे सभस’ उपेक्षित अछि मिथिलाक भविष्य ; यानी मिथिलाक बच्चा । मैथिली भाषामे बाल-बुदरुक लेल किछु गीतमय रचना अखन तक नहि भेल अछि जकरा बच्चा रटिक’ हरदम गावे-गुनगुनावे जाहिसँ बच्चा मस्तीमे रहै आ ओकर मानसिक विकास दृढ़ हुऎ । एहि ठाम प्रस्तुत अछि बौआ-बच्चाक लेल किछु बाल कविता । )
१. प्रकाश झा
बाल-बुदरुकक लेल कविता
चित्र: प्रीति ठाकुर
चिड़ै/जानवर
सुग्गा, मेना, कौआ, बगरा,
चिड़ै-चुनमुन के नाम छै ।
गैया, बरद, बिलाड़ि, कुतबा
सभके दादी पोसै छै
कौवा
चार पर बैसलौ कार कौआ,
कारी खटखट देह कौआ ।
कॉव-कॉव कुचरौ कौआ ,
रोटी ल’ क’ उड़तौ बौआ ॥
सुग्गा
हरियर सुग्गा पिजड़ामे
राम राम रटै छै ।
कुतरि-कुतरि क’ ठोर स’
मिरचाई लोंगिया खाई छै ॥
मेघ
कारी-कारी मेघ लगै छै,
झर-झर झिस्सी झहरै छै ।
लक-लक लौका लौकै छै,
झमझम-झमझम बरसै छै ।
फह-फह फूँही पड़ै छै,
टपटप-टपटप टपकै छै ।
दीयाबाती
सुक-सुकराती दीयाबाती, दादी सूप पिटतै ।
छुड़छुड़ी, अनार, मिरचैया, खूब फटक्का फोड़बै ।
जगमग जगमग दीप जराक’ हुक्का लोली भँजबै ।
नानी
माँ के माँ हमरे नानी,
मामा के माँ हमरे नानी ।
मौसी के माँ हमरे नानी,
खिस्सा सुनाबै हमरा नानी ।
२. बालकथा- गजेन्द्र ठाकुर
बड़ सख सार पाओल तुअ तीरे
चित्र ज्योति झा चौधरी
मिथिलाक राजाक दरबारमे रहथि बोधि कायस्थ। राजा दरमाहा देथिन्ह ताहिसँ गुजर बसर होइत छलन्हि बोधि कायस्थक। दोसाराक प्रति हिंसा, दोसरक स्त्री वा धनक लालसा एहि सभसँ भरि जन्म दूर रहलाह बोधि कायस्थ। आजीविकासँ अतिरिक्त जे राशि भेटन्हि से दान-पुण्यमे खरचा भऽ जाइत छलन्हि। भोलाबाबाक भक्त छलाह।
जेना सभकेँ बुढ़ापा अबैत छैक तहिना बोधि कायस्थक मृत्यु सेहो हुनकर निकट अएलन्हि आऽ ओऽ घर-द्वार छोड़ि गंगा-लाभ करबाक लेल घरसँ निकलि गेलाह। जखन गंगा धार अदहा कोसपर छलीह तखन परीक्षाक लेल बोधि कायस्थ गंगाकेँ सम्बोधित कए अपनाकेँ पवित्र करबाक अनुरोध कएलन्हि। गंगा माय तट तोड़ि आबि बोधि कायस्थकेँ अपनामे समाहित कएलन्हि। बोधि कायस्थकेँ सोझे स्वर्ग भेटलन्हि।
बोधि कायस्थ विद्यापतिसँ पूर्व भेल छलाह कारण ई घटना विद्यापति रचित संस्कृत ग्रंथ पुरुष-परीक्षामे वर्णित अछि। फेर विद्यापति अपन मैथिली पद बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे लिखलन्हि- आऽ बोधि-कायस्थ जेकाँ गंगा लाभ कएलन्हि।
३. देवीजी: ज्योति झा चौधरी
देवीजी :
चित्र ज्योति झा चौधरी
देवीजी : बाल-दिवस
१४ नवम्बर कऽ बाल दिवस समारोह छल। अहि दिन गामक विद्यालयमे विशेष आयोजन कैल गेल छल।सब अध्यापक अध्यापिका सब मिलिकऽ बच्चा सबलेल सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कऽ रहल छलैथ। देवीजी बच्चा सबके ईश्वरक रूप मानैत बहुत सुन्दर गीत सुनौली। ओ कहलथि जे बच्चा सब देशक भविष्य होइत छथि । तैं हुन्का सबके अपन जिम्मेवारीक अनुभव रहैके चाही। बेकार मे समय नष्ट केनाई छोड़ि ध्यान सऽ पढ़ाई कऽ अपन विद्यालय व अपन अभिभावक के गर्वित करैके चाही। जे विद्यार्थी पढ़ाईके समयमे मज़ा करैमे व्यस्त रहैत छैथ तिनका भविष्यमे कानऽ पड़ै छैन आऽ जे विद्यार्थी जीवनमे मिहनत करै छैथ से भविष्यमे सुख करै छैथ।
तकर बाद प्रधानाध्यापक अहि बातक उल्लेख केला जे गॉंधीवादी विचार सऽ उत्प्रेरित महान स्वतंत्रता सेनानी एवम् स्वतंत्र भारतके प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के बच्चा सबसऽ बहुत प्रेम छलैन। तैं हुनक जन्मदिवस के भारतमे प्रतिवर्ष बाल दिवसके रूपमे मनाओल जाइत छै। नेहरूजी के स्नेहसऽ चाचा नेहरू कहल जाइत छलैन। हुनक जन्म १४ नवम्बर १८८९ के दिन आ मृत्यु २७ मई १९६४ के दिन भेल रहैन । ओ सबसऽ लम्बा अवधि तक भारतक प्रधानमंत्रीक पद पर रहलैथ।
हलांकि यूनाइटेड नेशन्स २० नवम्बर के युनिवर्सल चिल्ड्रेन्स डे के रूपमे घोषित केने अछि लेकिन बहुत देश अलग तिथि कऽ ई मनाबैत छैथ। जेनाकि चीन आऽ हांगकांगमे ४ अप्रिल कऽ मेक्सिकोमे ३० अप्रिल कऽ जापानमे ५ मई क तथा मलेशियामे 1 अक्टूबर कऽ बाल दिवस मनायल जाएत अछि।
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
इंग्लिश-मैथिली कोष मैथिली-इंग्लिश कोष
इंग्लिश-मैथिली कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आऽ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@yahoo.co.in वा ggajendra@videha.co.in पर पठाऊ।
मैथिली-इंग्लिश कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आऽ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@yahoo.co.in वा ggajendra@videha.co.in पर पठाऊ।
भारत आऽ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीक मानक लेखन-शैली
१.मैथिली अकादमी, पटना आऽ २.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली।
१.मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य
एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि
अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।
21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।
ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
२.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन
१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।
२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।
३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।
४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।
५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।
७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।
८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।
९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।
१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए। हमसभ हुनक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।
पोथीक वर्णविन्यास कक्षा ९ क पोथीसँ किछु मात्रामे भिन्न अछि। निरन्तर अध्ययन, अनुसन्धान आ विश्लेषणक कारणे ई सुधारात्मक भिन्नता आएल अछि। भविष्यमे आनहु पोथीकेँ परिमार्जित करैत मैथिली पाठ्यपुस्तकक वर्णविन्यासमे पूर्णरूपेण एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।
कक्षा १० मैथिली लेखन तथा परिमार्जन महेन्द्र मलंगिया/ धीरेन्द्र प्रेमर्षि संयोजन- गणेशप्रसाद भट्टराई
प्रकाशक शिक्षा तथा खेलकूद मन्त्रालय, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र,सानोठिमी, भक्तपुर
सर्वाधिकार पाठ्यक्रम विकास केन्द्र एवं जनक शिक्षा सामग्री केन्द्र, सानोठिमी, भक्तपुर।
पहिल संस्करण २०५८ बैशाख (२००२ ई.)
योगदान: शिवप्रसाद सत्याल, जगन्नाथ अवा, गोरखबहादुर सिंह, गणेशप्रसाद भट्टराई, डा. रामावतार यादव, डा. राजेन्द्र विमल, डा. रामदयाल राकेश, धर्मेन्द्र विह्वल, रूपा धीरू, नीरज कर्ण, रमेश रञ्जन
भाषा सम्पादन- नीरज कर्ण, रूपा झा
आब १.मैथिली अकादमी, पटना आऽ २.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैलीक अध्ययनक उपरान्त निम्न बिन्दु सभपर मनन कए निर्णय करू।
ग्राह्य/अग्राह्य
1. होयबला/होबयबला/होमयबला/ हेब’बला, हेम’बलाहोयबाक/होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए
61. भाय भै
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका’ कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे
71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा’
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो(willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा’/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि
181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा’
201. देखाय देखा’
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.Original Maithili story "Sinurhar" by Shri Shivshankar Srinivas translated into English by GAJENDRA THAKUR
8.2.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated by Jyoti.
Sri Shivshankar Srinivas (b.02.07.1953), village-Lohana, Madhubani| Famous story writer| Published works: Trikona, adahan, gaachh paatha (story-collections).
SINURHAR (putting vermillon on married women by host)
It was occasion of investiture ceremony of Rambhadra Jha’s son. The family came to village from Hyderabad. Kalyani also came with them. Kalyani was only daughter of Rambhadra jha, ten year younger was the son whose investiture ceremony was occasioned.
Kalyani had come, the discussion was there all over the Tola of village. That had a reason. Reason was that the Brahmin-daughter re-married after being widowed. She has come to village! And that for participating in the investiture ceremony? That has reason of amazement. Those members of Tola among whom widow-remarriage was permissible were also amazed! Different types of gossip was in vogue. Much gossip was among the women folk. Alongwith different arguments and logical deductions the major point of discussion turned towards her groom. Someone was talking-“Groom is excellent.Smiling face.”
Second one asking-“To which caste you belong.”
On that third one telling-“whatever be, when married with a widow itself, then whatever he be.”
“what type of job you do?”
“He is in Bank.”
“Then it is good.”
“Whatever be, Kalyani would remain happy.”
In that way different types of talk and gossip was prevailing in society.
Kalyani’s this type of marriage was not something that was never-happened incident but for this lineage it was certainly a new type event.
That marriage was solemnized not in village but in Hyderabad. Rambhadra is working there, lives their with family.
Kalyani’s first marriage was solemnized five year’s ago, wedding took place in village only. With much pomp and gaity. Good groom of a respectable family but the luck was not in favour. Only after four months the groom died in a rail accident. Died on spot. Rambhadra alongwith his family was at village itself. Upheaval like situation arose as soon as the news came. The whole family dipped into mourning. Understand that the whole village was weeping. Variegated situation was that!
Rambhadra Jha did not think to leave Kalyani at village for any reason. Only three day after the incident all left for Hyderabad, were much critisised by society.
After some time mother of Kalyani started creating an environment in which Kalyani should understand that her marriage itself had never took place. What happened, happened. That was like a dream. But Kalyani was finding it uneasy to remain straight. She remained trembling for quite some time. As she was living in Hyderabad town, the place has its own activity. A separate environment was their that started constantly giving freshness to Kalyani . Slowly-slowly she started getting life.
Those days she was studying in B.A. , was attending college. One day her classmate Preeta introduced her to her (Preeta’s) elder brother. First Kalyani winced, but Preeta impressed her softly and slowly, gave her energy to come out, breaking the shackles of nurture. Preeta’s family was from Uttar Pradesh. Earlier they were all Brahmins but now for them there was no caste bondage. For this marriage of choice the whole family consented. The matter got forward. Kalyani’s mother took the proposal in an ecstatic way. She always wanted to re-marry Kalyani. She came forward. The environment of enthusiasm became aromatic. Kalyani got married.
The news travelled to Village without delay. Many people of this village reside there. Some of the people came to village during those days. They all told this. In a flash the news spread over the village. For some time great discussion ensued and that not only in the village but in the whole area, but after some time everything started to be calmed. Some people spoke this thing-that thing but most took it in right spirit. The same discussion has re-surfaced when Rambhadra Jha’s family had came here for ceremony of investiture with sacred thread.
In Hyderabad, when the date for investiture ceremony was fixed then itself the matter of inviting or not Kalyani came in front. It was amazing that the mother herself did not want that Kalyani should go to village. Internally she feared village people. In the mind was the fear that the people may outcast them at the time of investiture ceremony. In the ceremonial rituals the participation of people is necessary and then for eight-bhrahmin feast also people are required. She put her fear before Kalyani’s father, husband. Rambhadra was not in agreement with wife’s viewpoint. He gave logic- “Even when Kalyani would not accompany us even then people would outcaste us if they had decided. The more we would fear the more they would threaten.” But the heart of wife was not solaced. Rambhadra Jha kept silence then.
Time came nearby. One day, in the morning, Rambhadra was reading newspaper. Inquisitive wife came and sat near him. Rambhadra knew what she would tell and she told same thing- “When you go to office today then return by Kalyani’s house. Tell her about the investiture ceremony of Bauwa and tell also to come with us. How could we leave her? She is our child. Bauwa is sibling of her’s and that also the only one. She would accompany, whatever be…”. While speaking tear came to her eyes, could not speak any further. When in the evening he returned wife asked- “what she answered? You went there or not?” Rambhadra Jha spoke in pleasant mood- “You know after hearing the news she started dancing with excitement, started making programmes of different types.”
“And he!” wife asked with certain fear.
“who?” Rambhadra Jha questioned.
“Son-in-Law!”
“Not ask that , on his face I felt a distinct type of contentment. he is gem, really.” Rambhadra Jha while replying looked at his wife. He saw that expression of her face has changed suddenly. He felt that wife had not become happy on the news of son-in-law also going. She wants to take along only her daughter, but he did not say anything.
That only when Rambhadra Jha and all came to village, people saw that Kalyani and her husband both had come. They saw it, then why they would remain silent? Gossiping started. Different types of talking was in air but all was within. Rambhadra did not get any non-cooperation from anybody. Not say about the feast and feast servers. All work started with the help of the people. Despite getting social harmony Kalyani’s mother felt that whenever a man or women comes his or her eyes look for Kalyani. Look towards Kalyani’s husband. Feeling this she feared people from her inner, felted restlessness. Had it been in her capacity, had she known some magic-spell she would have turned both of them invisible so that they would see all without being seen by anybody. But that was not possible for her. Powerless, she would start imbalancing. She would start thinking many type of things and would fear.
For Kalyani all this was nothing. She was completely normal. Her husband was enjoying by being care-free. People were coming, mostly the daughters and ladies and joke and comic topics took rounds. Kalyani would become hilarious. The hight-pitch laughing would make mother startled. Like hunter being hit at her head. Thinked in mind- “Somebody would feel uneasy at her laugh and would start putting hurdles. She should remain calm and disciplined but it would not be. When she would go to Hyderabad should live in whatever way she likes.” After sometime her mind started becoming abashed. And one day could not control and told, “ You would not remain disciplined. You are swallowing poison and sleeping in east-wind. This is village, that you understand. People may object to all this any time, think of that.” Hearing mother’s talk Kalyani became surprised. Seeing and thinking of her new face she became exhausted. The enthusiasm like rice-soup started cooling down. Suddenly she became lazy, and likewise time started being passed. The work relating to investiture ceremony of sacred thread began.
The preparation ensued. The sacred Marba (rostrum) was erected. The ceremony of bringing clay for auspicious rite was performed. The rostrum was repaired, smeared and polished with dung. Then rostrum was written and painted.
The day was the day before the sacred investiture ceremony. On that day was to be held the sacred bathing ceremony. The drum was being drummed and pipe was being blown. The preparation for worship and invocation of family deity was underway. The ladies old and young were singing good-omen songs. The fragrance of festivity had spread all over. The whole environment became musical.
Here now the rite of Sinurhar (putting vermillon on married women by host) was to be performed. The preparation was underway for putting oil and vermillon by host to the women who took part in the ceremony. The ladies would be given gift in their saree and rice cooked in milk alongwith fried chapati would be given in their hands. The married participates in this and feel the happiness about the well-being of their husband, therefore the nearest and dearest relatives are called for this ceremony. So the boy’s mother invited the nearest clans-women. Any newly-married, daughter-bride would not generally come. But why anyone should feel neglected? Minimum five married are essential, if all are called then also it would be seventeen. She invited one and all. She invited all but among them Kalyani’s name did not figure. She was not invited.
The function of Sinurhar was to be held before the room of home-goddess., the boy’s mother was busy in arrangements. Kalyani was in eastern house’s southern partition. Kalyani was sitting in front of window. From there she was hearing and looking everything. The newly-weds, daughters, women were making line for Sinurhar. The joyous mood was all-over and was resulting in springs of laughter now and then, was enough for changing mood of anyone to a pleasant one.
Onlooking and overhearing Kalyani now and then was trembling. She could not imagine that in Sinurhar function of his own brother’s investiture ceremony she would not be present. She stoods and stands up in front of mirror. Other day she would feel shy by looking at her own image. That look today seemed unrecognizable. She thought- “Why came here? For what enjoyment?”
Her concentration moved towards her mother. At once she remembered her grand mother. By her name she remembers more of silly rituals then of her affection. Everybody, her mother and aunt including, were in dominance of her disciplinary rituals! What would got touched? On what matter she would get angry! Her grand mother thought that the unmarried and married having husband both were contaminated. She ate food cooked by men or widow only. Among men the widowed were also not debarred.
She remembers that when she was child, during her arrival and departure to village from Hyderabad, when she would visit other’s home on invitation, people would indulge after indicating towards her in slow-voice talking. Although she was a little child even then she understood that they had been talking about her also. Later on she knew that they were talking about her grand mother. Among the whisper maker were all the married women whose husband were alive. Those days she was not that much mature but later on she knew that in her society people regard widow as bad-omen. So most of the time, among themselves, those married women whose husband were alive criticized widows . They regarded the look of widows as bad-omen. No men look towards other man in this way nor do the women look towards widower in this manner. Today Kalyani remembers the hawk of a story of a fowler which hunted and brought fowls for the fowler. Even later on when the fowler remained asleep then also would hunt even without getting any provocation
The hawk hunted fawls. She thought that men were fowlers and the ladies were hawks. The women hunting the women. She felt uneasiness. She felt that somebody has enflamed her body.
See, mother did not invite her? Who cares. From this what is going to happen? But in the investiture ceremony of her brother itself she was not invited? Not for any other reason, but simply for the sake of enjoyment, for feeling the satisfaction to have participated in the function alongwith the brides and daughters, this continued haunting her. Not only haunted but now she felt awkward. Then her eyes moved towards her husband. He too was seeing the Sinurhar episode. She felt what her husband had been feeling! At then she saw her mother was coming towards her. Her heart started beating fast. The whole body became lighter. She felt suddenly that she had transformed into a child. But mother did not come to her. She stopped at aeves, Kalyani stood and came near door, saw that her father was standing there. Kalyani stood behind an obstruction.
“What are you asking”? She heard her mother asking.
His father said- “I am not seeing Kalyani in the Sinurhar function.”
“Oh God, You will not get intelligence ever.” The wife told in high-pitch and angrily.
“That’s how?” The husband also asked in high-pitched voice.
“She is my daughter. Her fate was bad that we repaired. We did not think over the Dharma and Adharma.” She told angrily to her husband- “This is a pooja of home-Goddess for those married whose husband has not died.”
“But Kalyani is not in that category.”
The Wife’s voice became harsh- “Not ask any false queries. Because of her I will not allow any wrong to happen to my son.” The wife left while replying. Rambhadra Jha’s senses came to a halt.
The whole courtyard came to standstill. Many did not like Kalyani’s mother’s attitude but mere whispering and no protest came forward. But Kalyani became restless. Her mother thinks of her as bad-omen. Her head felt like cracking. What should she do? She should not stay here any more. She resolved internally.
But that resolve did not remain as such for long. Before she would take any decision, her eye looked to her brother who was sitting on verandah. She onlooked him from there itself. She remembered the events right from his childhood to till date. The sibling bondage trembled her heart. She thought like weeping in the laps of her father. The tears came out of her eyes. But how should she weep? How should she weep on the auspicious day of his brother? She wiped her eyes with saree.
She looked towards her mother. Mother was performing the rites of Sinurhar. Mother once turned towards one side for putting something and then Kalyani saw that Mother’s face also there was no peace. Kalyani saw that she moved downwards and took the vermillon. After putting oil in head of the married she would now put vermillon. Kalyani turned and came in front of mirror, saw the vermillon line at her head and this enthused energy into her.
She thought- “She won’t go. She won’t go leaving the function of her brother?” Looking towards the innocent face of her brother her heart got filled with affection. She thought- her mother thinks that she is bad-omen. But her father does not thinks so. And brother? What would he think at this tender age? He is a boy. He is her sibling. She won’t go. But how she would remain as such? Thinking of this she onlooked the Sinurhar function for some time. Her mother was putting vermillon on the heads of the lucky married ones. She thought that the function of Sinurhar would be performed by some married whose husband is alive! She got strengthened at this thought. From room she came to courtyard and moved towards Sinurhar. She took in hand the plate containing rice cooked in milk and fried chapati. She moved forward and gave rice cooked in milk and fried chapati in the hands of her sister-in-law who was lined up in front. The sister-in-law accepted it joyfully. Then Kalyani’s cousin sister Lalita took hold of her and put her in line. She took the vermillon plate from Kalyani’s mother and put vermillon on Kalyani’s head. The mother felt awkward. The people also. But the glaring face of Kalyani standing in the row filled her with emotion. See everybody liked it. Kalyani’s mother surprisingly looked backwards and saw her husband smiling with closed lip looking at his daughter. Kalyani onlooked and saw that her husband ‘s face is full with affection. He was seeing at her joyfully.
Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.com and her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). She had been honorary teacher at National Association For Blind, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.
SahasraBarhani:The Comet
translated by Jyoti
They said that the boy they quarrelled with was approached for the marriage of Buchia by an old man of our village and they denied that. That was the reason behind the created reason of quarrel for the quarrel. I said that if that marriage were successful then he would be son-in-law of this village and would be respected by us but everyone said that I am diverting the fact.
Again my friends attempted to create quarrel with people of other villages while watching the drama. He was teasing those people in that function. He was speaking ruthlessly about them. And if other side was responding anything then he used to threaten them that he would call Naren bhaiya. Then the other side replied that they were not scared of Naren bhaiya. That was not the end of his naughtiness. He started crying loudly unnecessarily. He complained to Naren bhaiya that other people had hit him and said that they didn’t bother about Naren bhaiya. Naren bhaiya came and asked him to point out who was that discourteous person. As soon as my friend pointed that person with torch Naren bhaiya told “ Oh! Bhayar you! I cannot believe this. If he had said this about anyone else then I could have believed but how can I trust this rubbish about you?” Then he asked me whether that boy’s complain was correct or not. I denied. As soon as I confirmed his falsehood his all tears vanished all of a sudden. My friend had to listen to Naren bhaiya’s scold very generously and at the time of leaving Naren bhaiya announced that he was his friend so no one should tell him anything and whispered to me that he was saved today.
ENGLISH SAMSKRIT MAITHILI
In which college do you study. कस्मिन् महाविद्यालये पठति भवती? कोन कॉलेजमे अहाँ पढ़ैत छी?
I study in the Vishweshwaraiya Engineering College. अहं विश्वेश्वरैय्य-अभियान्त्रिक-महाविद्यालये पठामि। हम विश्वेश्वरैय्या अभियान्त्रिक महाविद्यालयमे पढ़ैत छी।
Our physics teacher is very good. अस्माकं भौतिकशास्त्रस्य अध्यापकः उत्तमः अस्ति। हमरा सभक भौतिकीक शिक्षक बड्ड नीक छथि।
You did not come for the first period? प्रथमकालांशं न आगतवान्? अहाँ पहिल कक्षामे नहि अएलहुँ?
I got up late today. अद्य उत्थाने विलम्बः अभवत्। हम आइ देरीसँ उठलहुँ।
I couldn’t get the bus. लोकयानं न प्राप्तम्। हम आइ बस नहि पकड़ि सकलहुँ।
Economics lecturer has not come. अर्थशास्त्रस्य व्याख्याता न आगतवान्। अर्थशास्त्रक व्याख्याता नहि अएलाह।
Today there is a debate-competition in the college. अद्य महाविद्यालये परिचर्चा-स्पर्धा अस्ति। आइ महाविद्यालयमे परिचर्चा-स्पर्धा अछि।
Are you participating? भवती भागं गृह्णाति किम्? अहाँ भाग लऽ रहल छी की?
No, my friend is participating. न, मम सखी भागं गृह्णाति। नहि, हमर संगी भाग लऽ रहल छथि।
I should return this book today, otherwise I’ll have to pay fine. एतत् पुस्तकम् अद्य प्रत्यर्पणीयं भोः, नो चेत् दण्डः दातव्यः भवेत्। हमरा ई पोथी आइ वापस करबाक अछि नहि तँ हमरा फाइन भरय पड़त।
Shall we go for a movie today? अद्य चलच्चित्रं द्रष्टुं गच्छामः किम्? हमरा सभ आइ सिनेमा देखब चली की?
Tomorrow we have Biology practical exam, friend. श्वः जीवशास्त्रस्य प्रात्यक्षिक-परीक्षा अस्ति सखे। काल्हि हमर सभक जीव विज्ञानक प्रायोगिक परीक्षा अछि।
Will you give me your notes? भवत्याः टिप्पणीं ददाति किम्? अहाँ अपन नोट हमरा देबकी?
But Girish took them away yesterday. ह्यः एव गिरीशः स्वीकृतवान्? मुदा गिरीश ई काल्हिय्रे लऽ गेलाह।
Again I left them at home today. अद्य गृहे एव त्यक्त्वा आगतवती। आइ सेहो हम हुनका सभकेँ घरपर छोड़ि अएलहुँ।
I had not come to class on that day. तद्दिने अहं वर्गं न आगतवान् आसम्। हम ओहि दिन वर्ग नहि आएल छलहुँ।
Please give me your pen for a minute friend. एक निमेषार्थं लेखनीं ददातु मित्र। मित्र अपन पेन एक मिनट लेल दिअ।
Don’t forget to give it back. प्रतिदातुं मा विस्मरतु। वापस केनाइ नहि बिसरू।
Come on, let’s play. आगच्छतु भोः क्रीडतु। आउ, हमरा सभ खेलाइ।
Do we have Mr.Joshi’s class today? जोशीमहोदयस्य कक्ष्या अस्ति किम् अद्य? जोशी महोदयक वर्ग आइ अछि की?
Did you complete graduation in the year 1993? पदवी त्रिनवतितमे वर्षे समापिता किम्? अहाँ १९९३मे स्नातक भऽ गेल छलहुँ?
I don’t remember well. सम्यक् न स्मरामि भोः। ठीकसँ मोन नहि अछि।
Did you read this novel. एतां दीर्घकथां पठितवान् किम्? ई उपन्यास पढलहुँ की?
I read it long back. बहु पूर्वमेव पठितवान्। हम ई बहुत पहिनहिये पढ़ने छी।
Today there won’t be any classes. अद्य कक्ष्याः न भविष्यन्ति। आइ आब आर कोनो कक्षा नहि होयत।
The Principal is very strict. प्राचार्यः बहु कठोरः अस्ति भोः। प्रिन्सिपल बड़ कठोर छथि।
70% attendance is compulsory if you want to appear for the examination. परीक्षा लेखनीया चेत् ७०% उपस्थितिः अनिवार्या एव। परीक्षामे बैसबाक लेल ७०% उपस्थिति अनिवार्य अछि।
We are staging a Samskrit-drama in the annual function. वार्षिकोत्सवे वयम् एकं संस्कृतनाटकं कुर्मः। हमरा सभ वार्षिकोत्सवमे एकटा संस्कृत नाटक कऽ रहल छी।
Tomorrow there will be elections for the student’s council. श्वः च्छात्रसंघस्य निर्वाचनं भविष्यति। काल्हि छात्रसंघक चुनाव होएत।
This year the tuition-fees have been increased. एतस्मिन् वर्षे पाठनशुल्कं वर्धितम् अस्ति। एहि साल पाठनशुल्कमे वृद्धि भेल अछि।
पुरातन काले एकः महाराजः आसीत्। सः चित्रकलां बहु –विशेषतः प्राकृतिक चितं तस्य बहि इष्टम्। एकदा सह चित्रं लेखितुम् पर्वतस्य आरोहणं करोति-पर्वतस्य उपरि उपविशति, परितः सुन्दर प्राकृतिक दृश्यं तस्य संतोषः भवति- सः लेखन्-सामग्रीः स्वीकरोति-सर्वम् सम्यक् स्थापयति, चित्रलेखनस्य आरम्भं करोति- बहु सुन्दरतया चित्रम् भवति- इतोपि वर्णः यत आवश्यकः तत्र सर्वत्र वर्णम् लेपयति- महाराजस्य संतोषः भवति, परन्तु दूरतः कथम् दृश्यते चित्रम्- इति द्रष्टुम् पृष्ठतः गच्छति, महाराजः एकं पदं, पद द्वयं, त्रीणि पदानि इति पृष्ठतः-पृष्ठतः गच्छति, महाराजः चित्रमेव पश्यन् अस्ति, बहु सुन्दर दृश्यं, आनन्दः भवति, इतोपि पृष्ठतः गच्छामि- इति चिन्तयति, इतोपि पदद्वयं गच्छति, पश्यति, सुन्दरं दृश्यते, इतोपि पृष्ठतः गच्छति, परन्तु पृष्ठतः किंचित् दूरे एव एकः महान् खातः अस्ति, महान् खातः, यदि महाराजः पदद्वयं स्थापयति, महाराजः पतति, परन्तु तत्र एकः मेषपालः आगच्छति, सः पश्यति, अरे महाराजः पृष्ठतः-पृष्ठतः गच्छति, तत्र महान् खातः अस्ति, इतः परम् महाराजः पतिष्यति- अहं किमपि करोमि, इति मेषपालकः चिन्तयति, किम् करोमि, तदा तस्य प्रत्युत्पन्न मतित्वम् कार्यम् करोति। तस्य हस्ते दण्डः अस्ति। सः मेषपालकः दण्डम् गृहित्वा सम्यक् क्षिपति, चित्रस्य उपरि एवं क्षिपति, चित्रम् भग्नम् भवति, महाराजस्य कोपः आगच्छति, मया बहुसुन्दर चित्रम् लिखति, बहु प्रयत्नम् कृत्वा लिखितवान, परन्तु येषः दुष्टः मेषपालः मम सुन्दर चित्रम् नाशितवान्- तम मारयामि, इति कोपेन मेषपालम् पश्यति, मेषपालः भीत भीते समीपे आगच्छति, तस्य भयं, महाराजस्य कोपः, इदानीम् मा मारयति, इति चिन्तयति, परन्तु तस्य अंतरंगे एकं धैर्यम् अस्ति, महाराजा भवान् सुन्दर चित्रं लिखितवान्, परन्तु भवतः पृष्ठतः एव महान खातः अस्ति, परन्तु भवान् न दृष्टवान् , यदि एकम् पदम् पृष्ठतः स्थापयति भवान् महती खाते पतति, भवान् मृतः भविष्यति, तादृश्य प्रसंगे मया किं करणीयम् अहं चिन्तितवान। दण्डं स्वीकृत्य चित्रं ताडितवान्- चित्रम् नष्टं भवतु , परन्तु अस्माकं महाराजः जीवतु, यदि महाराजः जीवति, सुन्दर चित्राणि बहूणि लेखितुम् शक्नोति, यदि महाराजः न भवति, अस्माकं सर्वेषाम् महत् दुःखम् भवति। महाराजस्य जीवरक्षणम् अस्माकम् महत् कर्तव्यं, तदर्थं अहं दण्डेन चित्रं ताडितवान, यदि दोषः अस्ति, क्षामयतु भोः, मेषपालस्य वचनं श्रृत्वा महाराजस्य महान् संतोषः भवति, सः चिन्तयति, भगवान् एव एतं मेषपालं प्रेषितवान्। मम जीवरक्षणार्थं मेषपालं भगवान् एव प्रेषितवान् इति। संतोषम् अनुभवति, मेषपालं गृह्णाति, मेषपाल, भवान् सामान्यः न, अद्भुत् कार्यम् कृतवान्, मम जीवरक्षणं कृतवान्, मम महान आनन्दः जातः, भवते अहं पुरस्कारं ददामि, इति तस्य पुरस्कारं करोति, मेषपालस्य वचनं श्रृत्वा महाराजस्य महान् आनन्दः अभवत्, सः मेषपालम् अभिनन्दितवान्, स्वस्थानं नीतवान्, बालकस्य पितरम् अपि आहूतवान्, बालकं पितरञ्च सत्कृतवान्, तयोः प्रोत्साहनं दत्तवान्, बालकं विद्याभ्यासार्थं प्रेरितवान, अग्रे बालकः उत्तम् विद्वान भवति, स एव बालकः अग्रे महाराजस्य स्थाने सचिवः अपि भविष्यति।
भवतां हार्दं स्वागतम्।
अहं वाक्यद्वयं वदामि। भवन्तः एकं वाक्यं कुर्वन्तु। उदाहरणार्थम्-
बालकः शालां गच्छति (गत्वा) पुस्तकं पठति।
सः भजनं करोति (कृत्वा) भोजनं करोति।
सज्जनः श्लोकं पठति (पठित्वा) आहारं स्वीकरोति।
अहं फलं खादितवान् (खादित्वा) जलं पीतवान्।
सा पत्रं लिखितवती प्रेषितवती।
भवान् धनं ददातु पुस्तकं नयतु।
वयं पठामः लिखामः।
सः स्नानं करोति भोजनं करोति।
सः धनं ददाति पुस्तकं स्वीकरोति।
सः क्रीडति पठति।
सः श्लोकं वदति (उक्तवा) उपविशति।
सः चित्रम् पश्यति संतुष्टः भवति।
बालकः विद्यालयं गत्वा पुस्तकं पठित्वा गृहं आगच्छति।
अहं स्नानं कृत्वा पूजां कृत्वा विद्यालयं गच्छामि।
इदानीं वयं मिलित्वा एकैकं वाक्यं दीर्घं वदामः।
भवान् आरम्भं करोतु, रामस्य पिता दशरथः रामस्य माता कौशल्या।
मम पिता कृपानन्दः, भवतः पिता कः/ माता का
भवत्याः पिता कः/ माता का
मम माता लक्ष्मीः
द्रौपदी द्रुपदराजस्य पुत्री, का कस्य पुत्री
लवस्य पिता रामः, लवस्य पितामह दशरथः।
लवस्य पितामही कौशल्या/ पाण्डुराज्य पौत्र अभिमन्युः।
रावणस्य अनुजा शूर्पनखा।
अग्रजः/ अनुजः।
बहि- किञ्चित्
ह्रस्वः-दीर्घः
स्थूलः-कृशः
पुरातन् युतकम्/ नूतन पुस्तकम्
नूतन घटी/ पुरातन घटी
मम गृहे नूतनं कारयानं अस्ति।
मम कारयानं नूतनं अस्ति।
एषा पुरातनं लेखनी।
पुरातनम्- नूतनम्
चषके किंचित् जलम् अस्ति।
कूप्याम् बहु जलम् अस्ति।
अहं किंचित् जलं पिबामि।
जलम् इच्छति वा आम् इच्छति।
किंचित् भवती किंचित् जलं पिबति वा।
बहु जलं पिबति वा एषा बहु क्रीडति।
अद्य बहु गृहपाठः अस्ति।
अहं बहु खादामि, किंचित् कार्यं करोमि।
नगरे बहुजनाः सन्ति।
समुद्रे/ नद्यां बहु जलम् अस्ति।
मम अग्रजस्य नाम् गुरुप्रसादः।
एष दण्डः ह्रस्वः/ दीर्घः अस्ति।
रज्जुः ह्रस्वा/ दीर्घा अस्ति।
एतस्याः वेणी ह्रस्वा/ दीर्घा अस्ति।
कस्याः वेणी दीर्घा अस्ति।
किम् किम् दीर्घम् अस्ति।
रामायणकथा दीर्घा अस्ति।
गङ्गा नदी दीर्घा अस्ति।
सर्पः दीर्घः अस्ति।
गजस्य शुण्डा दीर्घा अस्ति।
दण्डदीपः दीर्घः अस्ति।
गजः/ भवान् स्थूलः अस्ति। शारदयाः शाटिका दीर्घा अस्ति।
मम अनुजा कृशा अस्ति।
गणेशस्य उदरम् स्थूलम् अस्ति।
भीमः कथम् अस्ति।
भीमः स्थूलः अस्ति।
हस्तम् उपरि करोतु।
अरुणस्य हस्तः कृशः अस्ति।
मम हस्तः स्थूलः अस्ति।
सुभाषितम्
यस्य कृत्यं न जानन्ति मंत्रं वा मंत्रितं परे।
कृतमेवास्य जानन्ति सर्वै पण्डिते उच्यते।
सुभाषितस्य अर्थः एवम् अस्ति। महापुरुषाः किम् कुर्वन्ति इति न वदन्ति। ते किम् कार्यं कुर्वन्ति इति न वदन्ति। तेषाम् चिन्तनदिक् का इति न ज्ञायते। तेषाम् चिन्तन् क्रमः इति न ज्ञायते। परन्तु कार्यस्य अनन्तरम् महत् फलं भवति। तद्दृष्टवा तेषां कृतं ज्ञायते। ते किम् कृतवन्तः इति फलस्य दर्शन अनन्तरं ज्ञायेत्।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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