भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Tuesday, January 13, 2009

विदेह १५ दिसम्बर २००८ वर्ष १ मास १२ अंक २४- part iii

विदेह १५ दिसम्बर २००८ वर्ष १ मास १२ अंक २४- part iii


१.पंकज पराशर, २.भवनाथ दीपक ३.मयानन्द्र मिश्र ४.सूर्यनाथ गोप

डॉ पंकज पराशरश्री डॉ. पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। रघुवीर सहायक साहित्यपर जे.एन.यू.सँ पी.एच.डी.।
इतिहास
फिल्म निर्माणमे सहयोग कयनिहारक सूचीसँ
जे गायब अछि- डमी के रूपमे मारि खाइत
चक्कू आ गोलीसँ वास्तविक रूपेँ प्रहार सहैत

अभिनेत्री संग-संग दर्जनो भरि छौंड़ी सब
जे सुर आ अंगक समन्वित प्रदर्शनमे रहैत अछि अपस्याँत
तकरा सबहक स्थान कतय अछि रजत पटक इतिहासमे?

नायक केर नेनपनक संगी बनबाक निमित्त
जे आयल छल नेना सबहक झुंड रजत पटपर
आइ कतय छथि ओ लोकनि?

भरि-भरि राति जागि कए जे बनौने छल अभिनेत्रीक परिधान
एकसँ एक कर्णप्रिय गीतमे बाजा बजौनिहार वादक सब
कतय अछि आइ सिनेमाक इतिहासमे?
२.
खबरि बनौनिहारसँ लिखनिहार धरिक नाम अछि अखबारमे
मुदा कतहु नहि अछि ओकर सबहक नाम
जे छापलक भरि राति जागि कए उघलक माथपर खबरिक बोझ
आ पहुँचेलक जे घरे-घर, हाथे-हाथ

दुनिया भरिक दार्शनिक सबहक सुदर्शन पोथीक लेल
जे लोकनि कयलनि अपन हाथ आ स्वास्थ्यक नाश,
जाकिर हुसैनक तबलाक लेल जे हाथ सानलक माटि
आ गढ़लक अपन अँगुरीसँ तालजन्मा आकृति
तकर कतय उल्लेख अछि संगीतक इतिहासमे?

मकबूल फिदा हुसेनक लेल ले बनेलक कूँची-ब्रश
बनेलक अनेक तरहक रंग
ओकरा सबहक स्थान कतय अछि करोड़ो टाकामे नीलाम होइत पेंटिंक केर इतिहासमे?
ई सब अनुल्लेखनीय व्यक्ति सब जीवित छथि
जेना जन्म-जन्म के क्षुधित करौट लागल
अपमानित होइत इतिहास नियन्ता द्वारा
...से कहैत छी भाइ
तखन मुइल लोकक इतिहासक कथे कोन?

विलम्बित कइक युगमे निबद्ध
(कन्याकुमारीमे महासागरक मिलन देखैत)
एतय जमीन केर अन्त भऽ गेल अछि
आ अनन्त जलराशिक फेनिल उर्मि-यात्रामे संग भऽ गेल छथि

अस्ताचलगामी सूर्य हमरा मोनक आकाशमे झमारल
कमलामे, कोशीमे, बागमती आ गंडकमे
कोनो माघ कोनो कातिकक पूर्णिमा आ संक्रांतिमे
स्नान-दान, कल्पवास कयनिहार स्वर्गाकांक्षी हमर पूर्वज सबहक
देहगंधी जल आइ कतय, कोन अवस्थामे अछि समुद्र?
हुनका लोकनिक अस्थिपुष्प अहाँक कोन कोषमे अछि
ओ करुण प्रार्थना?
आ ओ आकुल हाक कोन तरंगमे निबद्ध अछि हवा?

युद्धमे हत मनुक्ख आ अश्व-गज केर प्राणांतक स्वर
जे तलवारक टंकारमे मिज्झर होइत कालक प्रवाह बदलैत छल
दलमलित गाम सबहक नोरक टघार जहिया नदीक धार बनल
तँ कतेक बढ़ल छल अहाँक अश्रुगंधी नोनक भंडार
आ हाहाकारी आवाज?

अशेष जलराशिसँ पूरित पृथ्वीक आन-आन भागमे बसल लोकसँ
परिचयक लेल कोलंबसी सफलतासँ पूर्व जे नाविक समा गेलाह
अहाँक विशाल उदरमे
तिनका सबहक असफल यात्राक कलपल स्वर आइ
कोन अवस्थामे बाँचल अछि समुद्र?

विश्व विजय केर निमित्त अश्वमेधक सरंजाम जुटबैत
मनुक्खक निश्चित मृत्युक लेल हथियारी पुष्टिमार्गक निर्माता
सिकंदरी आकांक्षाकेँ सभ्यताक संघर्षमे निबद्ध कऽ रहल अछि

कहियो ईश्वर केर मृत्युक जे लोकनि कयनेँ छलाह घोषणा
आइ इतिहासक अंत के कऽ रहल छथि पुष्टि
पुष्टिमार्गक अंतवादी उत्तर-आधुनिक सिकंदर सबहक खरहू
अश्वमेधी वांछाक लेल निट्ठाह नरमेधी अभियानकेँ नाम देलक अछि-
ईश्वरीय आदेशक पालन

प्रलय-कालक इतिहास-पुरुष समुद्र हमरा कहू
कतेक वर्खसँ कतेक सभ्यता कतेक संस्कृति आ कतेक साम्राज्यक प्रत्यक्ष गवाह अहाँ
कतेक रास सिकन्दर सबहक देखनेँ छी इतिहास!

मनुक्खक प्राण लैत मनुक्ख सभ्य बनैत नगर बसबैत सिकन्दर बनैत
बनबैत रहल अछि पृथ्वीपर इतिहासक अन्हार-घर
जतय कलपैत स्त्रीगणक नोरक टघार अहाँकेँ घीचैत रहल
कलिंगसँ तुगलक आ नादिरशाही धरि
रक्त-रंजित सभ्यताक नोनछाह समुद्र
हमरा इतिहासक कारागारसँ क्यो निरन्तर हाक दऽ रहल अछि

इतिहासक कतेक रास हाक अहाँक हृदयमे हाहाकार बनल
बेटाक लहासपर खसैत माय
पतिक लहासपर खसैत सैनिक सबहक स्त्रीक वेदना समाहित कएनेँ
अहाँक खसैत आबि रहल छी लहरि बनि कऽ कइक सदीसँ कटल गाछ जकाँ

कइक शताब्दीसँ हमरा क्यो हाक दऽ रहल अछि
अत्यंत आकुल स्वरमे बेर-बेर क्यो हमरा
सोर कऽ रहल अछि कहबाक लेल मोनक व्यथा
मुद्रा आ मोंछक कारणसँ मेटायल अनेक इतिहासक कथा
हमरा कहबाक लेल कतेक दिनसँ कतेक रास हाक
हमरा सोर कऽ रहल अछि

साक्षी छथि आइ अस्ताचलगामी सूर्य आ स्वयं अहाँ समुद्र
हम आइ सुनि रहल छी कइक सदीक सबटा हाक
सभ्यताक सबटा मर्मांतक पुकार


अभियान गीत-भवनाथ ‘दीपक’
उठह, उठह, उठह
चलह, चलह, भलह
बढह, बढह, बढह
घरक भेदभाव बूझि शत्रु आबि गेल
बुझा दियौक आन सँग एक बुद्धि भेल
विश्वद मंच मध्यु हम उचित जगह लेल
विशद विविध भेष
हरित भरित देश
जाति–पाँति वर्ण धर्म भेद–भाव हीन
राज–पाट कर्म काज सब अपन अधीन
श्रमिक कृषक बुद्धिजीव, उद्यमी उदार
ग्रथित एक सूत्र मध्यव व्यदक्ति शत प्रकार
भुक्ति मुक्ति हेतु
वृत्त आइ एकताक सेतु
जनैत हित मिलैत माँटि
के सकत अनेर डाँटि !
सब प्रबुद्ध, सब सचेत
पैर पाछु क्योा न देत
देखाय देत शत्रुकेँ भैरवक स्व रुप
के अलच्छत निन्दकमे रहत भसैत चूप ?
तिर्हुतिक माटिपर रहनिहार भाइ !
जन्मह भूमि प्राण हेतु ठाढ हुअह आइ
लाख–लाख कोटि–कोटि केर प्रयाण
के कहैछ, मैंथिलीक पुत्र अल्परप्राण ?
लक्ष्यछ चीन्हिम–लेल आब निधि चीन्हिर लेल
शत्रु–मित्र केर भेद–विधि चीन्हि लेल
उठह, उठह, उठह
चलह, चलह, चलह
बढह, बढह, बढह.....।

अहाँ की छी—मयानन्द मिश्र
अहाँ प्रलोभनक नाक काट’बला मर्यादा नञि छी
नग्न ताकेँ आवरण दैबला नञि छी
सँतुलन राख’बला
ट्रैफिक गाइड जकाँ चौबटियापर ठाढ
दुनू हाथ उठौने अहिँसा नञि छी ।
अहाँ छी
कोडोपैरीन खा–खा कऽ तत्काछल अपन मथदुखी केँ दबबऽ बला क्षुब्धअ हिमालय ।
अहाँ छी अपन खण्डिित रसनाकेँ दाबि
चुपचाप कान’बला सिन्धुन ।
वस्तुपतः अहाँ छी एकटा बिन्दुध
जाहिठामसँ अनेक रेखा तँ खीचल जा सकैछ
किन्तुम ओ सबटा दुर्जेय चट्टानक
कोनो विराट अन्हा र गुफाक अंतहीन घाटीमे
जा क’ समाप्तद भ’ जाइत अछि
सरिपहुँ ई प्रश्नस अछि जे अहाँ की छी?

आत्मा –डाक्टअर सुर्यनाथ गोप,दिघवा, सप्तमरी

मैथिलीकेँ बेचिकऽ
पैन्टी सर्टपर टाईकोट कसिकऽ
माथपर ढाका टोपी चढाकऽ
बगलमे भारतीय दुतावासक झोरा लटकाकऽ
एहि युगक सभसँ बडका विसंगति–
डाक्टुर सुर्यनाथ गोप
एक हाथमे पासपोर्ट–भिसा मुठियबैत
दोसर हाथमे हिन्दीरक झण्डाय फहरबैत
हिनहिनाईत
गिनगिनाईत
जारहल छथि
मौरिसस
अन्तसर्राष्ट्रि य हिन्दीड सम्मे लनमे ।
कुमार मनोज कश्यप।जन्म-१९६९ ई़ मे मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। स्कूली शिक्षा गाम मे आ उच्च शिक्षा मधुबनी मे। बाल्य काले सँ लेखन मे अभिरुचि। कैक गोट रचना आकाशवाणी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।
गजल
धज्जी रातुक श्याह आँचर मे, अहल भोर के ताकि रहल छि।
अपन आंगन मे ठाढ़ हम, आई अपने घर के ताकि रहल छि ।

आहत मोनक घायल तड़पन, पेᆬरो आई कनाबऽ आयल।
जतऽ जलन के पीड़ा कम हो, ओहन छाँह के ताकि रहल छि।

दोसरा कें कि दोष देबई हम, अपनो सभ तऽ अंठिये बनला ।
याद ने कोनो बाँचल रहि जाय, ओहन ठौर के ताकि रहल छि।

बगबाहो अपनहिं हाथें, आई कलम-बाग सभ जारऽ आयल।
तड़पन जतऽ तड़पि रहि जायत, ओहने कहर के ताकि रहल छि।

बिसरि गेल जे याद छलै, से सपना कियैक याद दियौलक?
नोर ने ढ़रकय जाहि पलक सँ, एहन आँखि के ताकि रहल छि।

निकलि गेलहुँ आछ सुन्न राह पर, अन्हारेक टा सम्बल केवल।
अपन-आन केयो कतहु नहि, आई ओहन दर के ताकि रहल छि।
अन्हार- अशोक हेगड़े
कन्नड़मे तीन टा कथा संग्रह आ एकटा उपन्यास। प्रशिक्षणसँ अर्थशास्त्री आऽ व्यवसायसँ वित्त प्रबम्धक श्री हेगड़े अपन दोसर उपन्यासपर कार्य कऽ रहल छथि।
अनुवाद कमलाकर भट्ट (कन्नड़सँ अग्रेजी)- श्री भट्टक अनुवादक अतिरिक्त मूल कन्नड़ कविता संग्रह सेहो प्रकाशित छन्हि जकरा २००६ ई.क पुटीणा कविता पुरस्कार भेटि चुकल अछि।
आऽ गजेन्द्र ठाकुर (अग्रेजीसँ मैथिली)।

कोनो दिन एना शुरू नहि हेबाक चाही, ओकरा सभदिन लगैत छैक। आऽ एकटा आर एहने दिनक प्रारम्भ भेल, प्ररम्भ होएबासँ पहिने हड़बड़-दड़बड़मे कार्य सभ। दूधबला दूध नहि दऽ गेल से ओ बगलमे धरफड़ीमे गेलाह पैकेट बला दूध अनबाक लेल। कमोडपर बैसल ओऽ भोरुका अखबारक सम्पूर्ण रिपोर्ट पढ़लन्हि निकृष्ट भ्रष्टाचारी आऽ हुनकर संगी सभक विषयमे। एकटा विज्ञापन छल जाहिमे एकटा फिल्म अभिनेताक हालमे जनमल बच्चाक नामक सुझाव दऽ कऽ पुरस्कार जितबाक प्रेरणा छल। एहि सभ जल्दीबाजीमे ओऽ अपन पुत्रकेँ नहेलक आऽ ब्लैकबेरीपर किछु कार्य सम्पन्न केलक, जलखै सोझाँ छल आऽ आब एतेक थाकि गेल जे बजबाक इच्छो धरि नहि रहलैक। ओकर पत्नी कहलकाइक जे माँक फोन आयल रहए गप कए लिअन्हु। माँ पुछि रहल छलीह जे ई सभ छुट्टीमे गाम अएताह की? ओकरा आब एतेक धैर्य नहि बचलैक जे ओ माँसँ गप करि सकितए। मनोहर कनियासँ झझकारि कए बाजल- “उत्तर हमरे द्वारा देब जरूरी अछि। फोनपर अहाँ गप नहि सम्हारि सकैत छलहुँ?”

कनियाँ सिन्कमे अपन हाथ धो रहल छलीह, “आइ काल्हि अहाँक संग की भऽ रहल अछि? अहाँसँ अहाँक बिनु हमरापर गुम्हरेने गप नहि कऽ सकैत छी? अहाँ आऽ अहाँ माय..हम किएक बीचमे आऊ? मोन अछि तँ हुनका फोन करू नहि तँ नहि करू। हम काजपर जेबामे देरी भऽ रहल छी”। पत्नी ओकरा जलखै करैत छोड़ि ऑफिस बिदा भऽ गेलीह।
जहिना ओऽ रोड धेलक तँ कनेक घुरमी अएलैक। एफ.एम.पर सुनयना रूट वन होस्ट कऽ रहल छलीह आऽ बड़बड़ा रहल छलीह। तरह-तरहक विज्ञापन, फोनक एनाइ, ई गीत हमरा भाए लेल बजाऊ, ओऽ गीत हमर प्रेमी लेल, ओतेक छुन्दर-मुन्दर माधुरीक तेसर बच्चाक नाम बताऊ, फोरम मालपर सलमान खानक संग आइसक्रीम खएबाक मौका जीतू.. ओकर घुरमी बढ़ि गेलैक। रेडियो बन्न कऽ ओ बाहर देखलक, ट्रैफिक जाम, धुँआ, गरदा, यातायात पुलिस सीटी बजबैत...पिरररर्र, भीतर घुसैत गाड़ी सभ द्वारा अवहेलना सहैत, सभ दस गजपर लाल-बत्ती, बी.टी.एस.बस सभ दौगैत भगवाने जानथि कतएसँ आऽ कोना कए, स्कूटर, रिक्शा, साइकिल, लॉरी, आऽ एहि सभक बीच बूढ़ बरद सभ पुरजोड़ लगा कए भरल कटही गाड़ीकेँ घीचैत, लोक सभ लहराइत पैसैत अबैत.. ओऽ ई सभ खौँझाहटि नहि बरदास्त कए सकल।
डॉ वी.वी.बी.रामाराव (१९३८- ) हिनकर ३४ टा रचना प्रकाशित छन्हि जाहिमे मौलिक अंग्रेजी आऽ तेलुगु रचना सम्मिलित अछि।
अनुवाद मूल लेखक द्वारा तेलुगुसँ अग्रेजी आऽ
गजेन्द्र ठाकुर द्वारा अंग्रेजीसँ मैथिली।

अभाग

शीतलहरि सरसरा कए बहि रहल छल। घटाटोप बरखा धमगिज्जर मचेने छल। बिर्रोक बाद।
ई बीच रातिक बादक पहरि छल। घुप्प अन्हरियामे हमर माथक ऊपरका करवस्त्र कोनो सुरक्षा नहि छल। कपड़ा बड्ड अबाज कए रहल रहए आऽ हम सुन्न सड़कपर संघर्ष कए आगाँ बढ़ि रहल छलहुँ। सड़कक स्ट्रीट लाइट काज नहि कए रहल छल।
हम अपन कोठली कोनहुना पहुँचलहुँ मुदा ओतए ताला हथोड़िया देलासँ नहि भेटल। हमर थाकल हृदयसँ बान्हल मुट्ठी एड्रीनेलिनक प्रवाह केलक आऽ हम शीत घामसँ नहा गेलहुँ। हम केवाड़ीकेँ धक्का देलहुँ आऽ किएक तँ ई भीतरसँ बन्न नहि छल से कर्रसँ खुजल। हम भीतर गेलहुँ आऽ बत्ती जरेलहुँ। आश्चर्य, बत्ती प्रवासँ जरल। चलू कमसँ कम ई तँ बचल, हम निशास लेलहुँ।


सरोजिनी साहूक ओड़िया कथा “दुःख अपरिमित” केर मैथिली अनुवाद
गोपा नायक (ओड़ियासँ अंग्रेजी) आऽ गजेन्द्र ठाकुर (अंग्रेजीसँ मैथिली) द्वारा।
सरोजिनी साहू (१९५६- ), ओड़िया साहित्यमे पी.एच.डी., बेलपहाड़, झारसुगुड़ा, उड़ीसामे अध्यापन। महिला साहित्यक अग्रणी लेखिका, पाँच टा उपन्यास आऽ सात टा कथा संग्रह प्रकाशित। १९९२ मे झंकार पुरस्कार आऽ १९९३ मे उड़ीसा साहित्य अकादमी पुरस्कार।
गोपा नायकक जन्म भुवनेश्वरमे भेलन्हि आऽ ओतहि आरम्भिक जीवन बितलन्हि। सम्प्रति ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयसँ डी.फिल. कए रहल छथि।

दुःख अपरिमित

कथाक शीर्षक दुःख अपरिमित उड़ीसाक सन्त आऽ कवि भीमा भोइक ऋचासँ लेल गेल अछि।

प्राणीर अरात दुःख अपरिमित
जानु जानु केबा साहु
ये जीवन पाछे नरके पदिथौ
जगत उधार हेउ

जीवनक दुख
जीनाइ, काटनाइ, सहनाइ,
किएक?
हमरा जरए दिअ होमक ज्वालमे
संसार जीबए
दुःख अपरिमित

पेन नहि खसितए यदि सोनाली एकरा हमरा हाथसँ नहि छिनितए। हमर माय बेर-बेर हमरा कहलन्हि जे पेन स्कूल नहि लऽ जाइ, मुदा पेन एतेक सुन्दर रहए जे हम एकरा अपन संगी सभकेँ देखबए चाहैत रही। सभ दिन हम पेनसँ किछु काल धरि खेलाइत रही आऽ फेर ओकरा आपस दराजमे ओद्इया कए राखि दैत छलहुँ। हमर एकटा काकी एकरा विदेशसँ अनने रहथि आऽ हमरा सनेसमे देने रहथि। हमर माय कहलक जे ई पेन सत्ते बड्ड महग रहए। पेन लिखैत काल चमकैत छल। पेनक एक कात एकटा छोट घड़ी रहए। हम पेन स्कूल अनने रही प्रेमलताकेँ देखबए लेल। ओकरा होइत रहए जे हम पेनक विषयमे झूठ बाजल रही। ओऽ कहने रहए जे एहन पेन एहि विश्वमे नहि उपलब्ध छैक। आऽ ताहि द्वारे ओकरा देखबए लेल हम एकरा स्कूल अनने रही। हम ओकरा स्कूलक क्रीडाक्षेत्रक एक कात लए गेलहुँ आऽ ओकरा ई पेन देखेने रही। हम बीचमे टिफिनमे बाहर खेलाइ लेल नहि गेलहुँ कारण ई अंदेशा रहए जे क्यो एकरा चोरा नहि लए। प्रेमलता कहलक जे ई रहस्य ओ ककरो नहि बताएत मुदा सोनालीकेँ ओऽ कहि देलक। स्कूलक छुट्टीक बाद सोनाली हमरा पेन देखबए लेल कहलक।
शीला सुभद्रा देवी (१९४९- ) कैकटा तेलुगु पद्य संग्रह प्रकाशित। १९९७ ई. मे तेलुगु विश्वविद्यालयसँ उत्तम लेखकक पुरस्कार प्राप्त।

जयलक्ष्मी पोपुरी, निजाम कॉलेज, ओस्मानिया विश्वविद्यालयमे अध्यापन।
तेलुगुसँ अंग्रेजी अनुवाद
गजेन्द्र ठाकुर (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद)।

पसीझक काँट

बाड़ीमे लगाओल पसीझक काँट गहना लेल
केना ओऽ सभ पसरैतत अछि सोहड़ैत!
चुपचाप बुनैत रस्ता आच्छादित करैत स्थान।

भीड़-भाड़ सभठाम
सभ कोणमे काँटबला पसीझक झाड़
सभ, सभ रोकैत स्नेहक अनवरुद्ध प्रवाह
चिन्तन विखण्डित पड़ि काँटक मध्य
वाणी अवरुद्ध फँसि कोनो झाड़
मस्तिष्क उर्ध्वपतित चुपचाप
हृदय बनैछ मात्र एकटा अंग
आऽ मौन करैत राज यांत्रिक रूपे॥

मुनैत, बहत नहि हवा एकताक
तेनाकेँ ठुसैत
सभक आश कोनहुना निकसी आकाश।

मुदा की अछि विस्तृत खेत मध्य?
कतए गेल फूलक क्यारी फुनगैत मित्रताक
हिलबैत अपन माथ आमंत्रणमे?

कतए गेल ओ चाली सभ अपन तन्तुसँ बढ़ैत?
सभकेँ समेटैत ओ लता-कुञ्जक मंडप कतए गेल
छोड़ि मात्र अशोक आऽ साखुक वृक्ष
जे पसारि रहल आकाश मध्य अपन हाथ
नीचाँ देखैत विश्वकेँ
घासक पात सन तुच्छ?
यदि हम मोड़ी आऽ घुमी घोरैत अपनाकेँ नोरमे
वेधए बला मोथा नहि भोकैत अछि मात्र पएर वरन् आँखि सेहो।
सभठाम लोक उन्मुक्त ठाममे
मानवीय सम्पर्कसँ घृणा करैत
परिवर्तित कएलक नगरकेँ सेहो बोनमे।
पसारैत काँट सभ ठाम
परिवर्तित भेल पसीझक झाड़मे
साँसक फुलब पसरैत चारू दिश
दोसराक संवेदना नहि आबए दैछ विचार
जिनगी भेल उसनाइत खेत सन।
इच्छा भागबाक पएर केने आगाँ।
आश्चर्य, मथि नहि सकैत छी, औँठा धरि।
देखि सकी जौँ अपनेकेँ मात्र
भीतरसँ बाहर पसीझक काँट मात्र।

एन. अरुणाक जन्म निजामाबाद लग एकटा गाममे १९४९ ई.मे देलन्हि। तेलुगुमे पाँचटा कविता संग्रह प्रकाशित।
जयलक्ष्मी पोपुरी, निजाम कॉलेज, ओस्मानिया विश्वविद्यालयमे अध्यापन।
तेलुगुसँ अंग्रेजी अनुवाद
गजेन्द्र ठाकुर (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद)।

ई सेहो अछि प्रवास

अहाँ नहि छी मानैत
मोटा-मोटी ईहो छी प्रवास
एकर गुण
षडयन्त्र जेकाँ
मूल जन्मकालेसँ
“तैयो अछि तँ बेटीये” अछि ने ई?
कोनो पुरुषक हाथमे तँ जएबाके छैक ने एक दिन
प्रवास
मात्र अमेरिके टा प्रवासक नहिक नहि
नारी सेहो अछि एकटा ई।
अहाँ एकर अवहेलना कए सकैत छी सुविधासँ।
तैयो कतेक कठिन
छोड़ब जिनगी भरिक लेल अपन जन्मस्थान
पाएब एकटा अनचिन्हारक आँगुर?
अहाँ घुरि सकैत छी कखनो काल
मुदा बनि मात्र पाहुन।
जखने हम पएर राखब
कतेक काल धरि अहाँ रहब पुछब हमर लोककेँ।
“जाऽ धरि हम चाही”
इच्छा अछि कहबाक
मुदा श्रृंखला ससरल हमर इच्छापर बहुत पहिनहि।

प्रवास नहि अछि हर्खक वस्तु।
छोड़ि ई मात्र जे समय बितने
बढ़ैत अछि ई बनैत अछि अभ्यास।



मोहम्मद खदीर बाबू (१९७२- ) नेल्लूर जिलाक कवालीमे जन्म। तेलुगुमे तीन टा कथा संग्रह। भाषा सम्मान आऽ कथा पुरस्कारसँ सम्मानित।
जयलक्ष्मी पोपुरी, निजाम कॉलेज, ओस्मानिया विश्वविद्यालयमे अध्यापन।
तेलुगुसँ अंग्रेजी अनुवाद
गजेन्द्र ठाकुर (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद)।

हमरा सभक चित्रकला शिक्षक हमरा सभक भगवान छथि

कोनो स्कूलमे सभसँ उत्साही आऽ सभसँ दुष्ट आर क्यो नहि वरन् सीनियर होइत छथि।
की! सोचि रहल छी जे एक्के समयमे हम ककरो उत्साही आ दुष्ट कोना कहि रहल छी! थम्हू अहाँकेँ कहैत छी।
जखन हम सभ अठमामे छलहुँ तँ दू टा क्रिश्चियन छौड़ा सेहो , एबनेजर आऽ डेविड दसमामे। ओ दुनू एतेक नमगर छल आऽ ओकर सभक जाँघ तेहेन रहैक मुदा तैयो दुनू टा हाफ पैंटमे अबैत रहए।


शेख मोहम्मद शरीफ प्रसिद्ध वेमपल्ली शरीफक जन्म आन्ध्र प्रदेशक कडापा जिलामे भेल छल।
जयलक्ष्मी पोपुरी, निजाम कॉलेज, ओस्मानिया विश्वविद्यालयमे अध्यापन।
तेलुगुसँ अंग्रेजी अनुवाद
गजेन्द्र ठाकुर (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद)।

जुम्मा

हमर मायक निर्दोष मुखमंदल अबैत अछि हमर आँखिक सोझाँ, चाहे आँखि बन्द रहए वा खुजल रहए। ओहि मुखक डर हमर विचलित करैत अछि। एखनो हुनकर डराएल कहल बोल हमर कानमे बजैत रहए-ए। ई दिन रहए जुम्माक जाहि दिन मक्का मस्जिदक बीचमे बम विस्फोट भेल रहए। सभ दिस कोलाहल, टी.वी. चैनल सभपर घबराहटिक संग हल्ला, पाथरक बरखा, आदंक आऽ खुनाहनि।
बालानां कृते

देवीजी: ज्योति झा चौधरी
देवीजी :
देवीजी परीक्षाक परिणाम
बच्चा सबहक मेहनत आहि परीक्षाफल के रूपमे घोषित हुअ वला छल।देवीजी आ अन्य शिक्षकगण परिणाम लऽ तैयार छलैथ।प्रधानाध्यापक बच्चा सबके अपन अभिभावक संगे बजेने छलैथ।अर्द्धवार्षिक तथा अन्य टेस्ट सब सऽ बेसी महत्वपूर्ण छल वार्षिक परीक्षाक परिणाम।

देवीजी सबसऽ पहिने सर्वोच्च स्थान पाब वला छात्रक नाम घोषित केली आऽ ओकर प्रशंसा सहित ओकरामे कतऽ सुधारक आवश्यकता अछि ताहि सऽ अभिभावकके ज्ञात करौली।तकर बाद सामान्य विद्यार्थी सबहक परिणाम घोषित भेल।जे सब पहिने सऽ नीक केने रहैथ तिनका सबके आर नीक करैके प्रोत्साहन देल गेल आ जे सब पहिने सऽ खराप केने रहैथ तिनका सबके बहुत निंदित कैल गेलैन।
अंत मे एहेन विद्यार्थीक पारी आयल जे अनुत्तीर्ण भेल छलैथ। देवीजी हुनक अभिभावकके सेहो निंदा केली जे ओ सब प्रोत्साहन आ सुविधा नहि दैत छथिन जाहि लेल हुनक बच्चा अनुत्तीर्ण भेलैन।
कहल गेल छै-
''माता शत्रु पिता बैरी येन बाले पाठित:।
मा शोभते सभा मध्ये हंसमध्ये वको यथा॥
अर्थात्‌ एहेन माता-पिता शत्रु होएत अछि जे अपन बच्चा के नहिं पढ़ाबैत अछि। अनपढ़ बच्चा विद्वानक सभामे ओहिना लागैत अछि जेना हंसक बीच बगुला।
देवीजी एहेन बच्चा सबके हतोत्साहित नहि हुअ कहलखिन।कहलखिन जे असफलता सफलताक सीढ़ी होइत छै तैं अपन असफलता सऽ शिक्षा लिय आ आगॉं मिहनत करू।
तकर बाद विद्यालय बन्द रहक घोषणा भेल।अगिला साल २ जनवरी सऽ सबके आब लेल कहल गेल।बीचक अवकासमे सब बच्चा सबके प्रतिदिन दैनिकी लिखक कार्य देल गेल। तदोपरान्त अपन संगी साथी परिवार संगे सौहाद्रपूर्वक छुट्टी मनाबक शुभकामना दैत शिक्षक सब विदा लेला।

बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०.विश्वक प्रथम देशभक्त्ति गीत
(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।

English Translation of Gajendra Thakur's (Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in )Maithili Novel Sahasrabadhani by Smt. Jyoti Jha Chaudhary
Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.com and her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.

SahasraBarhani:The Comet
translated by Jyoti
The time spent in my village proved to be very precious memories for me. I was able to run so fast in wooden shoes. I never slipped while running in rain, in muddy ways. When slippers were introduced then many people were falling down and using hot water bags to sooth pain. I often recalled those incidents- fire, standing on queue for kerosene oil, sugar balls, rubber balls, fight between two villages during fishing, crowd to see the flood, gathering of people and discussion for small things, memories of mango groves; would those things change by time?

“Uncle! I have not applied that irritating thing on his skin”. I started crying while giving clarification. Some boys had poured kabkabauch on Banai’s body when he was asleep. Every one was returning from the mango orchard when they saw this plant. Very soon boys started discussing about the affects of Kabkabauch – a plant whose leaves can create irritation if rubbed on skin. No one was ready to try this so when Banai was found sleeping boys tried that on him. All boys ran away and I was caught as I was coming behind them unaware of the fact. Uncle didn’t believe my clarification and he had given me punishment. He had also instructed me to stay with his group and walk around the fields instead of playing with those boys and learning mischief.

It was time of flood. Viewing the sight of flood in a boat and hunting Silli was very adventurous. The Government banned the hunting of that animal later on. But I was missing my friends and I was lost in the imagination of fun my friends would be having by playing and running here and there. That was my first day with my uncle.

Until afternoon, I was in the anticipation that I would have to go with my uncle on the second day too so I tried my best to hide my distress in front of my friends and narrated them the stories of my trip in last day very interestingly. But considering my fainted expression my uncle asked me if I was interested in going with them. I had not denied directly but said that I liked to stay at home. Then uncle showed pity and left me with my friends with the condition that I would not do any mischievous act.
(continued)

९. मानक मैथिली
इंग्लिश-मैथिली कोष मैथिली-इंग्लिश कोष

इंग्लिश-मैथिली कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आऽ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@yahoo.co.in वा ggajendra@videha.co.in पर पठाऊ।

मैथिली-इंग्लिश कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आऽ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@yahoo.co.in वा ggajendra@videha.co.in पर पठाऊ।

भारत आऽ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली

मैथिलीक मानक लेखन-शैली

१.मैथिली अकादमी, पटना आऽ २.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली।

१.मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६

२.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली

मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए। हमसभ हुनक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।
पोथीक वर्णविन्यास कक्षा ९ क पोथीसँ किछु मात्रामे भिन्न अछि। निरन्तर अध्ययन, अनुसन्धान आ विश्लेषणक कारणे ई सुधारात्मक भिन्नता आएल अछि। भविष्यमे आनहु पोथीकेँ परिमार्जित करैत मैथिली पाठ्यपुस्तकक वर्णविन्यासमे पूर्णरूपेण एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।

कक्षा १० मैथिली लेखन तथा परिमार्जन महेन्द्र मलंगिया/ धीरेन्द्र प्रेमर्षि संयोजन- गणेशप्रसाद भट्टराई
प्रकाशक शिक्षा तथा खेलकूद मन्त्रालय, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र,सानोठिमी, भक्तपुर
सर्वाधिकार पाठ्यक्रम विकास केन्द्र एवं जनक शिक्षा सामग्री केन्द्र, सानोठिमी, भक्तपुर।
पहिल संस्करण २०५८ बैशाख (२००२ ई.)
योगदान: शिवप्रसाद सत्याल, जगन्नाथ अवा, गोरखबहादुर सिंह, गणेशप्रसाद भट्टराई, डा. रामावतार यादव, डा. राजेन्द्र विमल, डा. रामदयाल राकेश, धर्मेन्द्र विह्वल, रूपा धीरू, नीरज कर्ण, रमेश रञ्जन
भाषा सम्पादन- नीरज कर्ण, रूपा झा

आब १.मैथिली अकादमी, पटना आऽ २.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैलीक अध्ययनक उपरान्त निम्न बिन्दु सभपर मनन कए निर्णय करू।
ग्राह्य/अग्राह्य

1. होयबला/होबयबला/होमयबला/ हेब’बला, हेम’बलाहोयबाक/होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए
61. भाय भै
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका’ कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे
71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा’
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो(willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा’/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि
181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा’
201. देखाय देखा’
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब

(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु

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