भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Monday, February 23, 2009
मैथिली के ल क किछु असुविधाजनक प्रश्न...
अगर एकर तह में जाई त एहि भाषाके संग सबसं पैघ अन्याय ई भेलैक जे एकरा किछु खास इलाका के मैथिली बनयबा के आ किछु खास लोकक भाषा बनयबाके प्रयास कयल गैलैक। मैथिली के दरभंगा मधुबनी आ खासक ओतुक्का ब्राह्मण के भाषा बनाक राखि देल गेलैक। मधेपुरा-पूर्णिया के बात त दूर दरभंगो मधुबनी के विशाल जनसमुदाय ओ भाषा नहि बजैत अछि जे किताबी मैथिली के रुप में दर्ज छैक। ओना ई बात दोसरो भाषा के संगे सत्य छैक लेकिन कमसं कम ओतय ओहि भाषा के स्थानीय रुप के हिकारत या हेय दृष्टि सं नहिं देखल जाई छैक। मैथिली में एहि तरहक कोनो प्रयोग के बर्जित कय देल गेलैक। मिथिला के खेतिहर,मजूर, मुसलमान आ निम्नवर्ग ओहि भाषा में तस्वीर कहियो नहि देखि सकल। जखन मिथिला राज्य के मांग उठल त हमसब मुंगेर तक के अपना में गनि लैत छी, लेकिन जखन भाषा के बात हेतैक त ओ सिर्फ मधुबनी के पंचकोसी या मधुबनी झंझारपुर तक सिमटि कय रहि जाईछ।
हमरा याद अछि जे कोना सहरसा या पूर्णिया के लोकके भाषा के मधुबनी के इलाका में एकटा अलग दृष्टि स देखल जाई छैक। इलाकाई भिन्नता कोनो भाषा में स्वभाविक छैक लेकिन यदि ओ अहंकारवोध सं ग्रस्त भ जाई त ओहि भाषा के भगवाने मालिक। फलस्वरुप जखन भाषाई आधार पर राज्यके मांग उठलैक त मिथिलांचलक विराट जनसमुदाय ओहि स अपना के नहि जोड़ि सकल आ ओ आन्दोलन लाख संभावना के बावजूद नहि उठि सकल। रहल सहल कसरि राज्यसरकार क मैथिली विरोधी रवैया पूरा कय देलक। मैथिली के बीपीएससी स हटा देल गैलैक, आ मैथिली अकादमी के निर्जीवप्राय कय देल गेलैक। लेकिन एहि के लेल सत्ता के दोष कियेक देबै, जखन जनता के दिस सं कोनो प्रवल प्रतिरोध नहि छलैक त सत्ता त अपन खेल करबे करत।
ओना त ई कहिनाई मुनासिब नहि जे मैथिली में आम जनता के लेल या प्रगतिशील चेतना के स्वर नहि मुखरित भेलैक लेकिन ओ ओहि तरीका सं व्यापक नहि भ सकलै जेना आन भाषा में भेलैक। मैथिली के रचना में ओ मुख्यधारा नहि भ सकलै। दोसरबात ई जे कहियो मिथिला में कोनो समाजसुधार के आंदोलन नहि भेलैक जेना बंगाल वा महाराष्ट्र में देखल गेलैक। तखन ई कोना भ सकैछ जे सिर्फ भाषा के त विकास भय जाय लेकिन समाज के दोसर क्षेत्र में ओहिना जड़ता पसरल रहैक। मिथिला के इतिहास के देखियौक त एतय येह भेलैक। दोसर बात ई जे मिथिला या मैथिली के लेल जे संस्था सब बनल ओकर कामकाज के समीक्षा सेहो परम आवश्यक। मैथिली के विकास के लेल दर्जनों संस्था बनल जाहि में चेतना समिति के नाम अग्रगण्य अछि। लेकिन ओ चेतना समिति की कय रहल अछि आ जनता सं कतेक जुड़ल अछि एकर विशद विवेचना हुअक चाही। सालाना जलसा आ सेमिनार के अलावा एकर मैथिली भाषा के लेल की योगदान छैक तकर विशद समीक्षा हुअके चाही। मैथिली के बजनिहार भारते में नहि नेपालों में छथि, लेकिन दूनू दिसके भाषाभाषी के जोड़य के कोनो ठोस उपाय एखन तक दृष्टिगोचर नहि।
एखन जहिया सं मैथिली के संविधान में मान्यता भेटलैक अछि तहिया सं साहित्य अकादमी के किछु बेसी गतिविधि देखय में आबि रहल अछि। लेकिन मैथिली के जखन तक आम जनता आ ओकर सरोकार सं नहि जोड़ल जायत एकर आन्दोलन धार नहि पकड़ि सकैत अछि। एकर सबसं पैघ जिम्मेवारी ओहि बुद्धिजीवी लोकनि पर छन्हि जे मैथिली के पुरोधा कहबै छथि। हुनका सं ई उम्मीद त जरुर कयल जा सकैछ जे ओ एकर ठोस, सर्वग्राही आ समीचीन समाधान सामने लाबथु आ ओहि पर समग्र रुपे चर्चा हो।
8 comments:
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
सुशांत जी, अहाँक ई दोसर लेख सम्पूर्ण रूपेँ पढ़लहुँ, अहाँक लेख समाधान दिस बढैत अछि से नीक लगैत अछि।
ReplyDeletethik kahlahu, ham sunri hamar piya sunra bala pari chhaik, je ham baji se nik, aa dosar pubha, pachhimaha, dachhinaha bhay jait achhi
ReplyDeletemaithilik prati anurag aam janatak yavat nahi hoyat tavat ki hoyat, je gap ham ahan bujhi rahal chhi se pithadhish lokani kiyek nahi bujhi rahal chhathi
ReplyDeletesamaj sudhar aandolan nahi hebak chalate samskrit jeka maithilik hal bhel jai ye
ReplyDeleteee asuvidhajanak prashna satya se karib achhi, yaih chhi mool mudda, jhuthe dosar dis lok ghumait achhi.aankhi munne samasya nahi hati jayat
ReplyDeleteehina lagatar samsya samadhanak sang likhait rahoo,
ReplyDeletesabhta gap samichin lagal
सुशांतजी, तथ्यपरक आ तार्किक विश्लेषण । सत्य कहलहुँ अपने, कमी हमरे सब में अछि, अनका दोष देला सँ पहिनहि अपन कमी दूर करबाक चाही हमरा लोकिनि के । कोनो क्षेत्रक भाषा, संस्कृति आ आधारभूत संरचनाक विकास बहुत किछु ओहि क्षेत्र विशेष के जनता पर निर्भर करैत छैक । माने... ओही क्षेत्र विशेष के लोकक अपन भाषा ओ संस्कृतिक प्रति की नजरिया छैक । ओकरा में गौरवबोध छैक की नहि । उदाहरणस्वरूप, जखन भारत में आर्य संस्कृतिक बोलबाला छल, तखन भारत विश्वगुरू आ संसारक सिरमौर कहाइत छल । परन्तु, अंग्रेजक आगमनक पश्चात भारतीय संस्कृति लुप्त भ गेल आ पश्चिमी संस्कृति हावी । परिणाम सामने अछि । आई भारतवासी बात-बात में पश्चिमक मूँह तकैत अछि । भारत में राष्ट्रभाषा वा राजभाषा कहाइ वाला हिन्दी भाषा के की स्थिति छैक से ककरो सँ छुपल नहि अछि । एशियाई देश जापान, आ चीनक उदाहरण हमरा सभक सामने अछि । इ दुनू देश अपन भाषा आ संस्कृति के सर्वोपरि मानैत अछि । आई देखू, जे अपन देश भारत कतए अछि आ जापान आ चीन विकासक दौर में कतए पहुँचि गेल, यद्यपि इहो दूनू देश एक समय में ब्रिटिश उपनिवेश छल । भारतहि में दोसर –दोसर प्रांतक लोक भाषाई आधार पर एकजूट छथि । अस्तु, इ लम्बा परिचर्चाक विषय थिक । कहबाक तात्पर्य इ जे कोनो क्षेत्रक विकास में भाषाई एकताक योगदान काफी अहम होइत छैक । मैथिली आ मिथिला क्षेत्रक विकास ताबए धरि नहि भ सकैत अछि, जाबए तक मिथिलावासी बंगाली, मराठी, जेकॉं जातिगत आ सीमागत छुद्रभाव सँ दूर भ क सही अर्थ में “मैथिल” नहि हेताह । ताबए धरि, “अलग मिथिला राज्य” एकटा दिवास्वप्न मात्र थिक । “चेतना समिति” के अहॉं जिक्र जे केलहुँ अछि से.... एहि मिथिलाक चेतना जगबैवाला स्वयंभू समितिक चेतना त अपने विलुप्त छैक त इ संस्था दोसर के चेतना की जगेतैक । इ आब चाय, पान आ जलखैक आयोजन करै वाला संस्था मात्र थिक ।
ReplyDeleteबहुत नीक प्रस्तुति।
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