भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Thursday, April 16, 2009

समीक्षा श्रृंखला-६ : नचिकेताक नाटकपर गजेन्द्र ठाकुर

नचिकेताक नाटक
नो एण्ट्री: मा प्रविश
नाटकक कथानक: प्रथम कल्लोल: ई नाटक ज्योतिरीश्वरक परम्परामे कल्लोलमे (हुनकर वर्ण रत्नाकर कल्लोलमे विभक्त अछि जे नाटक नहि छी, धूर्त-समागम जे ज्योतिरीश्वर लिखित नाटक अछि- अंकमे विभक्त अछि) विभाजित अछि। चारि कल्लोलक विभाजनक प्रथम कल्लोल स्वर्ग (वा नरक) केर द्वारपर आरम्भ होइत अछि। ओतए बहुत रास मुइल लोक द्वारक भीतर प्रवेशक लेल पंक्तिबद्ध छथि। क्यो पथ दुर्घटनामे शिकार भेल बाजारी छथि तँ संगमे युद्दमे मृत भेल सैनिक आ चोरि करए काल मारल गेल चोर, उच्चक्का आ पॉकिटमार सेहो छथि। ज्योतिरीश्वरक धूर्तसमागममे जे अति आधुनिक अब्सर्डिटी अछि से नो एण्ट्री: मा प्रविश मे सेहो देखबामे अबैत अछि। प्रथम कल्लोलमे जे बाजारी छथि से, पंक्ति तोड़ि आगाँ बढ़ला उत्तर, चोर आ उचक्का दुनू गोटेकेँ, कॉलर पकड़ि पुनः हुनकर सभक मूल स्थानपर दए अबैत छथि। उचक्का जे बादमे पता चलैत अछि जे गुण्डा-दादा थिक मुदा बाजारी लग सञ्च-मञ्च रहैत अछि, हुनकासँ अंगा छोड़बाक लेल कहैत अछि। मुदा जखन पॉकेटमार बाजारी दिससँ चोरक विपक्षमे बजैत अछि तखन उचक्का चक्कू निकालि अपन असल रूपमे आबि जाइत अछि आ पॉकेटमारपर मारि-मारि कए उठैत अछि। मुदा जखन चोर कहैत छनि जे ई सेहो अपने बिरादरीक अछि जे छोट-छीन पॉकेटमार मात्र बनि सकल, ओकर जकाँ माँजल चोर नहि, आ उचक्का जेकाँ गुण्डा-बदमाश बनबाक तँ सोचिओ नञि सकल, तखन उचक्का महराज चोरक पाछाँ पड़ि जाइत छथि, जे बदमाश ककरा कहलँह। आब पॉकेटमार मौका देखि पक्ष बदलैत अछि आ उचक्काकेँ कहैत छन्हि जे अहाँकेँ नहि हमरा कहलक। संगे ईहो कहैत अछि जे चोरि तँ ई तेहन करए जनैत अछि, जे गिरहथक बेटा आ कुकुर सभ चोरि करैत काल पीटैत-पीटैत एतऽ पठा देलकए आ हमर खिधांश करैत अछि, बड़का चोर भेला हँ। भद्र व्यक्ति चोरक बगेबानी देखि ई विश्वास नहि कए पबैत छथि जे ओ चोर थिकाह। ताहिपर पॉकेटमार, चोर महाराजकेँ आर किचकिचबैत छन्हि। तखन ओ चोर महराज एहि गपपर दुख प्रकट करैत छथि जे नहि तँ ओहि राति एहि पॉकेटमारकेँ चोरिपर लए जएतथि आ ने ओ हुनका पिटैत देखि सकैत। एम्हर बजारी जे पहिने चोर आ उच्क्काकेँ कॉलर पकड़ि घिसिया चुकल छलाह, गुम्म भेल सभटा सुनैत छथि आ दुख प्रकट करैत छथि जे एकरा सभक संग स्वर्गमे रहब, तँ स्वर्ग केहन होएत से नहि जानि। आब बजारी महराज गीतक एकटा टुकड़ी एहि विषयपर पढ़ैत छथि। जेना धूर्तसमागममे गीत अछि तहिना नो एण्ट्री: मा प्रविश मे सेहो, ई एहि स्थलपर प्रारम्भ होइत अछि जे एहि नाटककेँ संगीतक बना दैत अछि। ओम्हर पॉकेटमारजी सभक पॉकेट काटि लैत छथि आ बटुआ साफ कए दैत छथि। आब फेर गीतमय फकड़ा शुरू भए जाइत अछि मुदा तखने एकटा मृत रद्दीबला सभक तंद्राकेँ तोड़ि दैत छथि, ई कहि जे यमालयक बन्द दरबज्जाक ओहि पार, ई बटुआ आ पाइ-कौड़ी कोनो काजक नहि अछि। आब दुनू मृत भद्र व्यक्ति सेहो बजैत छथि, जे हँ दोसर देसमे दोसर देसक सिक्का कहाँ चलैत अछि। आब एकटा रमणीमोहन नाम्ना मृत रसिक भद्र व्यक्तिक दोसर देसक सिक्का नहि चलबाक विषयमे टीप दैत छथि, जे हँ ई तँ ओहिना अछि जेना प्रेयसीक दोसरक पत्नी बनब। आब एहि गपपर घमर्थन शुरू भए जाइत अछि। तखन रमणी मोहन गपक रुखि घुमा दैत छथि जे दरबज्जाक भीतर रम्भा-मेनका सभ हेतीह। भिखमंगनी जे तावत अपन कोरामे लेल एकटा पुतराकेँ दोसराक हाथमे दए बहसमे शामिल भऽ गेल छथि, ईर्ष्यावश रम्भा-मेनकाकेँ मुँहझड़की इत्यादि कहैत छथि। मुदा पॉकेटमार कहैत अछि जे भीतरमे सुख नहि दुखो भए सकैत अछि। एहिपर बीमा बाबू अपन कार्यक स्कोप देखि प्रसन्न भए जाइत छथि। आब पॉकेटमार इन्द्रक वज्र पर रुपैय्याक बोली शुरू करैत अछि। एहि बेर बजारी तन्द्रा भंग करैत अछि आ दुनू भद्र व्यक्ति हुनकर समर्थन करैत कहैत अछि, जे ई अद्भुत नीलामी अछि, जे करबा रहल अछि से पॉकेटमार आ ओहिमे शामिल अछि चोर आ भिखमंगनी, पहिले-पहिल सुनल अछि आ फेर संगीतमय फकड़ा सभ शुरू भए जाइत अछि। मुदा तखने नंदी-भृंगी शास्त्रीय संगीतपर नचैत प्रवेश करैत छथि। आब नंदी-भृंगीक ई पुछलापर जे दरबज्जाक भीतर की अछि, सभ गोटे अपना-अपना हिसाबसँ स्वर्ग-नरक आ अकास-पताल कहैत छथि। मुदा नंदी-भृंगी कहैत छथि जे सभ गोटे सत्य कहैत छी आ क्यो गोटे पूर्ण सत्य नहि बजलहुँ। फेर बजैत-बजैत ओ कहए लगैत छथि, क्यो चोरि काल मारल गेलाह (चोर ई सुनि भागए लगैत छथि तँ दु-तीन गोटे पकड़ि सोझाँ लए अनैत छन्हि!) तँ क्यो एक्सीडेन्टसँ, आ एहि तरहेँ सभटा गनबए लगैत छथि, मुदा बीमा-बाबू कोना बिन मृत्युक एतए आयल छथि से हुनकहु लोकनिकेँ नहि बुझल छन्हि ! बीमा बाबू कहैत छथि जे ओ नव मार्केटक अन्वेषणमे आएल छथि ! से बिन मरल सेहो एक गोटे ओतए छथि ! भृंगी नंदीकेँ ढ़ेर रास बीमा कम्पनीक आगमनसँ आएल कम्पीटिशनक विषयमे बुझबैत छथि ! एम्हर प्रेमी-प्रेमिकामे घोंघाउज शुरू होइत छन्हि, कारण प्रेमी आब घुरि जाए चाहैत छथि। रमणी मोहन प्रेमीक गमनसँ प्रसन्न होइत छथि जे प्रेमिका आब असगरे रहतीह आ हुनका लेल मौका छन्हि। मुदा भृंगी ई कहि जे एतएसँ गेनाइ तँ संभव नहि मुदा ई भऽ सकैत अछि जे दुनू जोड़ी माय-बाप (!) केँ एक्सीडेन्ट करबाए एतहि बजबा लेल जाए। मुदा अपना लेल माए-बापक बलि लेल प्रेमी-प्रेमिका तैयार नहि छथि। तखन नंदी भृंगी दुनू गोटेक विवाह गाजा-बाजाक संग करा दैत छथि आ कन्यादान करैत छथि बजारी।
दोसर कल्लोल: दोसर कल्लोलक आरम्भ होइत अछि एहि आभाससँ, जे क्यो नेता मरलाक बाद आबएबला छथि, हुनकर दुनू अनुचर मृत भए आबि चुकल छथि आ नेताजीक अएबाक सभ क्यो प्रतीक्षा कए रहल छथि, दुनू अनुचर छोट-मोट भाषण दए नेताजीक विलम्बसँ अएबाक (मृत्युक बादो !) क्षतिपूर्ति कए रहल छथि, गीतक योग दए। एकटा गीत चोर नहि बुझैत छथि मुदा भिखमंगनी आ रद्दीबला बुझि जाइत छथि, ताहि पर बहस शुरू होइत अछि। चोरकेँ अपनाकेँ चोर कहलापर आपत्ति अछि आ भिखमंगनीकेँ ओ भिख-मंग कहैत अछि तँ भिखमंगनी ओकरा रोकि कहैत छथि जे ओ सरिसवपाहीक अनसूया छथि, मिथिला-चित्रकार, मुदा दिल्लीक अशोकबस्ती आबि बुझलन्हि जे एहि नगरमे कला-वस्तु क्यो नहि किनैत अछि आ तखन चौबटियाक भिखमंगनी बनि रहि गेलीह। चोर कहैत अछि जे मात्र ओ बदनाम छथि, चोरि तँ सभ करैत अछि। नव बात कोनो नहि अछि, सभ अछि पुरनकाक चोरि। तकर बाद नेताजी पहुँचि जाइत छथि आ लोकक चोर, उचक्का आ पॉकेटमार होएबाक कारण समाजक स्थितिकेँ कहैत छथि। तखने एकटा वामपंथी अबैत छथि आ ओ ई देखि क्षुब्ध छथि जे नेताजी चोर, उचक्का आ पॉकेटमारसँ घिरल छथि। मुदा चोर अपन तर्क लए पुनः प्रस्तुत होइत अछि आ नेताजीक राखल “चोर-पुराण” नामक आधारपर बजारी जी गीत शुरू कए दैत छथि।
तेसर कल्लोल: आब नेताजी आ वामपंथीमे गठबंधन आ वामपंथी द्वारा सरकारक बाहरसँ देल समर्थनपर चरचा शुरू भए जाइत अछि। नेताजी फेर गीतमय होइत छथि आकि तखने स्टंट-सीन करैत एकटा मुइल अभिनेता विवेक कुमारक अएलासँ आकर्षण ओम्हर चलि जाइत अछि। टटका-ब्रेकिंग न्यूज देबाक मजबूरीपर नेताजी व्यंग्य करैत छथि। वामपंथी दू बेर दू गोट गप- नव गप कहि जाइत छथि, एक जे बिन अभिनेता बनने क्यो नेता नहि बनि सकैत अछि आ दोसर जे चोर नेता नहि बनि सकैछ (ई चोर कहैत अछि) मुदा नेता सभ तँ चोरि करबामे ककरोसँ पाछाँ नहि छथि। तखने एकटा उच्च वंशीय महिला अबैत छथि आ हुनकर प्रश्नोत्तरक बाद एकटा सामान्य क्यूक संग एकटा वी.आइ.पी.क्यू बनि जाइत अछि। अभिनेता, नेता आ वामपंथी सभ वी.आइ.पी.क्यूमे ठाढ़ भऽ जाइत छथि ! ई पुछलापर जे पंक्ति किएक बनल अछि (?) ताहिपर चोर-पॉकेटमार कहैत छथि जे हुनका लोकनिकेँ पंक्ति बनएबाक (आ तोड़बाक सेहो) अभ्यास छन्हि।
चतुर्थ कल्लोल: यमराज सभक खाता-खेसरा देखि लैत छथि आ चित्रगुप्त ई रहस्योद्घाटन करैत छथि जे एक युग छल जखन सोझाँक दरबज्जा खुजितो छल आ बन्न सेहो होइत छल। नंदी भृंगी पहिनहि सूचित कए देलन्हि जे सोझाँक दरबज्जा स्वप्न नहि, मात्र बुझबाक दोष छल। दरबज्जाक ओहि पार की अछि ताहि विषयमे सभ क्यो अपना-अपना हिसाबसँ उत्तर दैत छथि। चित्रगुप्त कहैत छथि जे सभक वर्णनक सभ वस्तु छै ओहिपार। नंदी-भृंगी सूचित करैत छथि जे एहि गेटमे प्रवेश निषेध छै, नो एण्ट्री केर बोर्ड लागल छै। आहि रे ब्बा! आब की होअए ! नेताजीकेँ पठाओल जाइत छन्हि यमराजक सोझाँ, मुदा हुनकर सरस्वती ओतए मन्द भए जाइत छन्हि। बदरी विशाल मिश्र प्रसिद्ध नेताजी, केर खिंचाई शुरू होइत छन्हि असली केर बदला सर्टिफिकेट बला कम कए लिखाओल उमरिपर। पचपन बरिख आयु आ शश योग कहैत अछि जे सत्तरि से ऊपर जीताह से ओ आ संगमे मृत चारू सैनिककेँ आपिस पठा देल जाइत अछि। दूटा सैनिक नेताजीक संग चलि जाइत छथि आ दू टा अनुचर सेहो जाए चाहैत अछि। मुदा नेताजीक अनुचर सभक अपराध बड़ भारी, से चित्रगुप्तक आदेशपर नंदी-भृंगी हुनका लए, कराहीमे भुजबाक लेल बाहर लए जाइत छथि तँ बाँचल दुनू सैनिक हुनका पकड़ि केँ लए जाइत छथि आ नंदी-भृंगी फेर मंचपर घुरि अबैत छथि। तहिना तर्कक बाद प्रेमी-प्रेमिका, दुनू भद्र पुरुष आ बजारीकेँ सेहो त्राण भेटैत छन्हि ढोल-पिपहीक संग हुनका बाहर लए गेल जाइत अछि। आब नन्दी जखन अभिनेताक नाम विवेक कुमार उर्फ...बजैत छथि तँ अभिनेता जी रोकि दैत छथि, जे कतेक मेहनतिसँ जाति हुनकर पाछाँ छोड़ि सकल अछि, से उर्फ तँ छोड़िए देल जाए। वामपंथी गोष्ठीकेँ अभिनेता द्वारा मदति केर विवरणपर वामपंथी प्रतिवाद करैत छथि। हुनको पठा देल जाइत छनि। वामपंथीक की हेतन्हि, हुनकर कथामे तँ ने स्वर्ग-नर्क अछि आ ने यमराज-चित्रगुप्त। हुनका अपन भविष्यक निर्णय स्वयं करबाक अवसर देल जाइत छन्हि। मुदा वामपंथी कहैत छथि जे हुनकर शिक्षा आन प्रकारक छलन्हि, मुदा एखन जे सोझाँ घटित भए रहल छन्हि ताहिपर कोना अविश्वास करथु? मुदा यमराज कहैत छथि जे- भऽ सकैत अछि, जे अहाँ देखि रहल छी से दुःस्वप्न होअए, जतए पैसैत जाएब ओतए लिखल अछि नो एण्ट्री। आब यमराज प्रश्न पुछैत छथि जे विषम के, मनुक्ख आकि प्रकृति ? वामपंथी कहैत छथि जे दुनू, मुदा प्रकृतिमे तँ नेचुरल जस्टिस कदाचित् होइतो छै मुदा मनुक्खक स्वभावमे से गुन्जाइश कतए ? मुदा वामपंथी राजनीति एकर (समानताक, सुधार केर) प्रयास करैत अछि। ताहिपर हुनका संग चोर-उचक्का आ पॉकेटमारकेँ पठाओल जाइत अछि, ई अवसर दैत जे हिनका सभकेँ बदलू। चोर कनेक जाएमे इतस्तः करैत अछि आ ई जिज्ञासा करैत अछि जे हम सभ तँ जाइए रहल छी मुदा एहिसँ आगाँ ? नंदी-चित्रगुप्त-यमराज समवेत स्वरमे कहैत छथि- नो एण्ट्री। भृंगी तखने अबैत छथि, अभिनेताकेँ छोड़ने। यमराज कहैत छथि - मा प्रविश। भृंगी नीचाँमे होइत चरचाक गप कहैत अछि, जे एतुक्का निअम बदलल जएबाक आ कतेक गोटेकेँ पृथ्वीपर घुरए देल जएबाक चरचा सर्वत्र भए रहल अछि। यमदूत सभ अनेरे कड़ाह लग ठाढ़ छथि क्यो भुजए लेल कहाँ भेटल छन्हि (मात्र दू टा अनुचर छोड़ि)। आब क्यो नहि आबए बला बचल अछि, से सभ कहैत छथि। चित्रगुप्त अपन नमहर दाढ़ी आ यमराज अपन मुकुट उतारि लैत छथि आ स्वाभाविक मनुक्ख रूपमे आबि जाइत छथि! मुदा चित्रगुप्तक मेकप बला नमहर दाढ़ी देखि भिखमंगनी जे ओतए छलीह, हँसि दैत छथि। भृंगी उद्घाटन करैत छथि जे भिखमंगनी हुनके सभ जेकाँ कलाकार छथि ! कोन अभिनय ! तकर विवरण मुहब्बत आ गुदगुदीपर खतम होइत अछि, तँ भिखमंगनी कहैत छथि जे नहि एहि तरहक अभिनय तँ ओतए (देखा कए) भऽ रहल अछि। ओत्तऽ रमणी मोहन आ उच्चवंशीय महिला निभाक रोमांस चलि रहल अछि। मुदा निभाजी तँ बजिते नहि छथि। भिखमंगनी यमराजसँ कहैत छथि जे ओ तखने बजतीह जखन एहि दरबज्जाक तालाक चाभी हुनका भेटतन्हि, बुझतीह जे अपसरा बनबामे यमराज मदति दए सकैत छथि, ई रमणीक हृदय थिक एतहु नो एण्ट्री ! यमराज खखसैत छथि, तँ चित्रगुप्त बुझि जाइत छथि जे यमराज “पंचशर”सँ ग्रसित भए गेल छथि ! चित्रगुप्तक कहला उत्तर सभ क्यो एक कात लए जाओल जाइत छथि मात्र यमराज आ निभा मंचपर रहि जाइत छथि। यमराज निभाक सोझाँ- सुनू ने निभा... कहि रुकि जाइत छथि। सभक उत्साहित कएलापर यमराज बड़का चाभी हुनका दैत छथि, मुदा निभा चाभी भेटलापर रमणी मोहनक संग तेना आगाँ बढ़ैत छथि जेना ककरो अनका चिन्हिते नहि होथि ! ओ चाभी रमणी मोहनकेँ दए दैत छथि मुदा ओ ताला नहि खोलि पबैत छथि। फेर निभा अपने प्रयास करए लेल आगाँ बढ़ैत छथि मुदा चित्रगुप्त कहैत छथि जे ई मोनक दरबज्जा थिक, ओना नहि खुजत। महिला ठकए लेल चाभी देबाक (!) गप कहैत छथि। सभ क्यो हँसी करैत छनि जे मोन कतए छोड़ि अएलहुँ ? ताहिपर एकबेर पुनः रमणी मोहन आ निभा मोन संजोगि कए ताला खोलबाक असफल प्रयास करैत छथि। नंदी-भृंगी-भिखमंगनी गीत गाबए लगैत छथि जकर तात्पर्य ईएह जे मोनक ताला अछि लागल, मुदा ओतए अछि नो एण्ट्री। मुदा ऋतु वसन्तमे प्रेम होइछ अनन्त आ करेज कहैत अछि मैना-मैना । तँ एतहि नो एण्ट्री दरबज्जापर धरना देल जाए।


विवेचन: भारत आ पाश्चात्य नाट्य सिद्धांतक तुलनात्मक अध्ययनसँ ई ज्ञात होइत अछि मानवक चिन्तन भौगोलिक दूरीकक अछैत कतेक समानता लेने रहैत अछि। भारतीय नाट्यशास्त्र मुख्यतः भरतक “नाट्यशास्त्र” आ धनंजयक दशरूपकपर आधारित अछि। पाश्चात्य नाट्यशास्त्रक प्रामाणिक ग्रंथ अछि अरस्तूक “काव्यशास्त्र”।
भरत नाट्यकेँ “कृतानुसार” “भावानुकार” कहैत छथि, धनंजय अवस्थाक अनुकृतिकेँ नाट्य कहैत छथि। भारतीय साहित्यशास्त्रमे अनुकरण नट कर्म अछि, कवि कर्म नहि। पश्चिममे अनुकरण कर्म थिक कवि कर्म, नटक कतहु चरचा नहि अछि।
अरस्तू नाटकमे कथानकपर विशेष बल दैत छथि। ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना, विचार तत्व, दृश्य विधान आ गीत रहैत अछि। भरत कहैत छथि जे नायकसँ संबंधित कथावस्तु आधिकारिक आ आधिकारिक कथावस्तुकेँ सहायता पहुँचाबएबला कथा प्रासंगिक कहल जाएत। मुदा सभ नाटकमे प्रासंगिक कथावस्तु होअए से आवश्यक नहि, नो एण्ट्री: मा प्रविश मे नहि तँ कोनो तेहन आधिकारिक कथावस्तु अछि आ नहिए कोनो प्रासांगिक, कारण एहिमे नायक कोनो सर्वमान्य नायक नहि अछि। जे बजारी उच्क्काकेँ कॉलर पकड़ैत छथि से कनेक कालक बाद गौण पड़ि जाइत छथि। जाहि उच्क्काक सोझाँ चोर सकदम रहैत अछि से किछु कालक बाद, किछु नव नहि होइछ केर दर्शनपर गप करैत सोझाँ अबैत छथि। जे यमराज सभकेँ थर्रेने छथि, से स्वयं निभाक सोझाँमे अपन तेज मध्यम होइत देखैत छथि। भिखमंगनी हुनका दैवी स्वरूप उतारने देखैत हँसैत छथि तँ रमणी मोहन आ निभा सेहो हुनका आ चित्रगुप्तकेँ अन्तमे अपशब्द कहैत छथि। वामपंथीक आ अभिनेताक सएह हाल छन्हि। कोनो पात्र कमजोर नहि छथि आ समय-परिस्थितिपर रिबाउन्ड करैत छथि।
कथा इतिवृत्तिक दृष्टिसँ प्रख्यात, उत्पाद्य आ मिश्र तीन प्रकारक होइत अछि। प्रख्यात कथा इतिहास पुराणसँ लेल जाइत अछि आ उत्पाद्य कल्पित होइत अछि। मिश्रमे दुनूक मेल होइत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे मिश्र इतिवृत्तिक होएबाक कोनो टा गुंजाइश तखने खतम भए जाइत अछि जखन चित्रगुप्त आ यमराज अपन नकली भेष उतारैत छथि आ भिखमंगनीक हँसलापर भृंगी कहैत छथि जे ई भिखमंगनी सेहो हमरे सभ जेकाँ कलाकार छथि ! मात्र यमराज आ चित्रगुप्त नामसँ कथा इतिहास-पुराण सम्बद्ध नहि अछि आ इतिवृत्ति पूर्णतः उत्पाद्य अछि। अरस्तू कथानककेँ सरल आ जटिल दू प्रकारक मानैत छथि। ताहि हिसाबसँ नो एण्ट्री: मा प्रविश मे आकस्मिक घटना जाहि सरलताक संग फ्लोमे अबैत अछि, से ई नाटक सरल कथानक आधारित कहल जाएत। फेर अरस्तू इतिवृत्तकेँ दन्तकथा, कल्पना आ इतिहास एहि तीन प्रकारसँ सम्बन्धित मानैत छथि। नो एण्ट्री: मा प्रविश केँ काल्पनिक मूलक श्रेणीमे एहि हिसाबसँ राखल जाएत। अरस्तूक ट्रेजेडीक चरित्र य़शस्वी आ कुलीन छथि- सत् असत् केर मिश्रण। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे जे चरित्र सभ छथि ताहिमे सभ चरित्रमे सत् असत् केर मिश्रण अछि। निभा उच्चवंशीय छथि मुदा रमणी मोहन, जे बलात्कारक बादक भेल पिटानक बाद मृत भेल छथि, सँ हिलि-मिलि जाइत छथि। भिखमंगनी मिथिला चित्रकार अनसूया छथि। मुदा दुनू भद्रपुरुष, बजारी आ चारू सैनिक एहि प्रकारेँ बिन कलुषताक सोझाँ अबैत छथि। भरत नृत्य संगीतक प्रेमीकेँ धीरललित, शान्त प्रकृतिकेँ धीरप्रशान्त, क्षत्रिय प्रवृत्तिकेँ धीरोदत्त आ ईर्ष्यालूकेँ धीरोद्धत्त कहैत छथि। बजारी आ दुनू भद्रपुरुष संगीतक बेश प्रेमी छथि तँ रमणी मोहन प्रेमी-प्रेमिकाकेँ देखि कए ईर्ष्यालू। सैनिक सभ शान्त छथि क्षत्रियोचित गुण सेहो छन्हि से धीरोदत्त आ धीरप्रशान्त दुनू छथि। मुदा नो एण्ट्री: मा प्रविश मे एहि प्रकारक विभाजन पूर्णतया सम्भव नहि अछि।
भारतीय सिद्धांत कार्यक आरम्भ, प्रयत्न, प्राप्त्याशा, नियताप्ति आ फलागम धरिक पाँच टा अवस्थाक वर्णन करैत अछि। प्राप्त्याशामे फल प्राप्तिक प्रति निराशा अबैत अछि तँ नियताप्तिमे फल प्राप्तिक आशा घुरि अबैत अछि। पाश्चात्य सिद्धांतमे अछि आरम्भ, कार्य-विकास, चरम घटना, निगति आ अन्तिम फल। प्रथम तीन अवस्थामे ओझराहटि अबैत अछि, अन्तिम दू मे सोझराहटि।
कार्यावस्थाक पंच विभाजन- बीया, बिन्दु, पताका, प्रकरी आ कार्य अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे बीया अछि एकटा द्वन्द - मृत्युक बादक लोकक, बीमा एजेन्ट एतए बिनु मृत्युक पहुँचि जाइत छथि। यमराज आ चित्रगुप्त मेकप आर्टिस्ट बहराइत छथि। विभिन्न बिन्दु द्वारा एकटा चरित्र ऊपर नीचाँ होइत रहैत अछि। पताका आ प्रकरी अवान्तर कथामे होइत अछि से नो एण्ट्री: मा प्रविश मे नहि अछि। बीआक विकसित रूप कार्य अछि मुदा नो एण्ट्री: मा प्रविश मे ओ धरणापर खतम भए जाइत अछि! अरस्तू एकरा बीआ, मध्य आ अवसान कहैत छथि। आब आऊ सन्धिपर, मुख-सन्धि भेल बीज आ आरम्भकेँ जोड़एबला, प्रतिमुख-सन्धि भेल बिन्दु आ प्रयत्नकेँ जोड़एबला, गर्भसन्धि भेल पताका आ प्राप्त्याशाकेँ जोड़एबला, विमर्श सन्धि भेल प्रकरी आ नियताप्तिकेँ जोड़एबला आ निर्वहण सन्धि भेल फलागम आ कार्यकेँ जोड़एबला। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे मुख/ प्रतिमुख आ निर्वहण सन्धि मात्र अछि, शेष दू टा सन्धि नहि अछि।
पाश्चात्य सिद्धांत स्थान, समय आ कार्यक केन्द्र तकैत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे स्थान एकहि अछि, समय लगातार आ कार्य अछि द्वारक भीतर पैसबाक आकांक्षा। दू घण्टाक नाटकमे दुइये घण्टाक घटनाक्रम वर्णित अछि नो एण्ट्री: मा प्रविश मे कार्य सेहो एकेटा अछि। अभिनवगुप्त सेहो कहैत छथि जे एक अंकमे एक दिनक कार्यसँ बेशीक समावेश नहि होअए आ दू अंकमे एक वर्षसँ बेशीक घटनाक समावेश नहि होअए। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे कल्लोलक विभाजन घटनाक निर्दिष्ट समयमे भेल कार्यक आ नव कार्यारम्भमे भेल विलम्बक कारण आनल गेल अछि। मुदा एहि त्रिकक विरोध ड्राइडन कएने छलाह आ शेक्सपिअरक नाटकक स्वच्छन्दताक ओ समर्थन कएलन्हि। मुदा नो एण्ट्री: मा प्रविश मे एहि तरहक कोनो समस्या नहि अबैत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे आपसी गपशपमे- जकरा फ्लैशबैक सेहो कहि सकैत छी- ककर मृत्यु कोना भेल से नीक जेकाँ दर्शित कएल गेल अछि।
भारतमे नाटकक दृश्यत्वक समर्थन कएल गेल मुदा अरस्तू आ प्लेटो एकर विरोध कएलन्हि। मुदा १६म शताब्दीमे लोडोविको कैस्टेलवेट्रो दृश्यत्वक समर्थन कएलन्हि। डिटेटार्ट सेहो दृश्यत्वक समर्थन कएलन्हि तँ ड्राइडज नाटकक पठनीयताक समर्थन कएलन्हि। देसियर पठनीयता आ दृश्यत्व दुनूक समर्थन कएलन्हि। अभिनवगुप्त सेहो कहने छलाह जे पूर्ण रसास्वाद अभिनीत भेला उत्तर भेटैत अछि, मुदा पठनसँ सेहो रसास्वाद भेटैत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे पहिल कल्लोलक प्रारम्भमे ई स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे एतए दृश्यत्वकेँ प्रधानता देल गेल अछि। पश्चिमी रंगमंचक नाट्यविधान वास्तविक अछि मुदा भारतीय रंगमंचपर सांकेतिक। जेना अभिज्ञानशाकुंतलम् मे कालिदास कहैत छथि- इति शरसंधानं नाटयति। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे भारतीय विधानकेँ अंगीकृत कएल गेल- जेना मृत्यु प्राप्त सभ गोटे द्वारा स्वर्ग प्रवेश द्वारक अदृश्य देबारक गपशप आ अभिनय कौशल द्वारा स्पष्टता। अंकिया नाटमे सेहो प्रदर्शन तत्वक प्रधानता छल। कीर्तनियाँ एक तरहेँ संगीतक छल आ एतहु अभिनय तत्वक प्रधानता छल। अंकीया नाटकक प्रारम्भ मृदंग वादनसँ होइत छल। नो एण्ट्री: मा प्रविश मैथिलीक परम्परासँ अपनाकेँ जोड़ने अछि मुदा संगहि इतिहास, पुराण आ समकालीन जीवनचक्रकेँ देखबाक एकटा नव दृष्टिकोण लए आएल अछि, सोचबा लए एकटा नव अंतर्दृष्टि दैत अछि।
ज्योतिरीश्वरक धूर्तसमागम, विद्यापतिक गोरक्षविजय, कीर्तनिञा नाटक, अंकीयानाट, मुंशी रघुनन्दन दासक मिथिला नाटक, जीवन झाक सुन्दर संयोग, ईशनाथ झाक चीनीक लड्डू, गोविन्द झाक बसात, मणिपद्मक तेसर कनियाँ, नचिकेताजीक “नायकक नाम जीवन, एक छल राजा”, श्रीशजीक पुरुषार्थ, सुधांशु शेखर चौधरीक भफाइत चाहक जिनगी, महेन्द्र मलंगियाक काठक लोक, राम भरोस कापड़ि भ्रमरक महिषासुर मुर्दाबाद, गंगेश गुंजनक बुधिबधिया केर परम्पराकेँ आगाँ बढ़बैत नचिकेताजीक नो एण्ट्री: मा प्रविश तार्किकता आ आधुनिकताक वस्तुनिष्टताकेँ ठाम-ठाम नकारैत अछि। वामपंथीकेँ यमराज ईहो कहैत छथिन्ह, जे वामपंथी देखि रहल छथि से सत्य नहि, सपनो भए सकैत अछि। विज्ञानक ज्ञानक सम्पूर्णतापर टीका अछि ई नाटक। सत्य-असत्य, सभ अपन-अपन दृष्टिकोणसँ तकर वर्णन करैत छथि। चोरक अपन तर्क छन्हि आ वामपंथी सेहो कहैत छथि जे चोर नेता नहि बनि सकैत छथि, मुदा नेताक चोरिपर उतरि अएलासँ चोरक वृति मारल जाए बला छन्हि। नाटकमे आत्म-केन्द्रित हास्यपूर्ण आ नीक-खराबक भावना रहि-रहि खतम होइत रहैत अछि। यमराज आ चित्रगुप्त धरि मुखौटामे रहि जीबि रहल छथि। उत्तर आधुनिकताक ई सभ लक्षणक संग नो एण्ट्री: मा प्रविश मे एके गोटेक कैक तरहक चरित्र निकलि बाहर अबैत अछि, जेना उच्चवंशीय महिलाक। कोनो घटनाक सम्पूर्ण अर्थ नहि लागि पबैत अछि, सत्य कखन असत्य भए जाएत तकर कोनो ठेकान नहि। उत्तर आधुनिकताक सतही चिन्तन आ तेहन चरित्र सभक नो एण्ट्री: मा प्रविश मे भरमार लागल अछि, आशावादिता तँ नहिए अछि मुदा निराशावादिता सेहो नहि अछि। जे अछि तँ से अछि बतहपनी, कोनो चीज एक तरहेँ नहि कैक तरहेँ सोचल जा सकैत अछि- ई दृष्टिकोण विद्यमान अछि। कारण, नियन्त्रण आ योजनाक उत्तर परिणामपर विश्वास नहि, वरन संयोगक उत्तर परिणामपर बेशी विश्वास दर्शाओल गेल अछि। गणतांत्रिक आ नारीवादी दृष्टिकोण आ लाल झंडा आदिक विचारधाराक संगे प्रतीकक रूपमे हास-परिहास सोझाँ अबैत अछि।
एहि तरहेँ नो एण्ट्री: मा प्रविश मे उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण दर्शित होइत अछि, एतए पाठक कथानकक मध्य उठाओल विभिन्न समस्यासँ अपनाकेँ परिचित पबैत छथि। जे द्वन्द नाटकक अंतमे दर्शित भेल से उत्तर-आधुनिक युगक पाठककेँ आश्चर्यित नहि करैत छन्हि, किएक तँ ओ दैनिक जीवनमे एहि तरहक द्वन्दक नित्य सामना करैत छथि।

6 comments:

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।