भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
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(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Sunday, April 05, 2009
विदेह ३१ म अंक ०१ अप्रैल २००९ (वर्ष २ मास १६ अंक ३१)-PART- I
विदेह ३१ म अंक ०१ अप्रैल २००९ (वर्ष २ मास १६ अंक ३१)
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश
२. गद्य
२.१.कथा- साकेतानन्द.कालरात्रिश्च दारुणा-
२.२. कथा- सुभाषचन्द्र यादव- तृष्णा /
२.३.कामिनी कामायिनी-विलायत वाली कनिया
२.४. उपन्यास- प्रत्यावर्तन - पहिल खेप- कुसुम ठाकुर
२.५. बलचन्दा (मैथिली नाटक)- विभा रानी (पहिल खेप)
२.६. सुखमे सब साथी दुखमे न कोय- सुरेन्द्र किशोर झा-
२.७. डा.रमानन्द झा ‘रमण‘-मिथिलांचलक दलित समाजमे लोकगाथा
मैथिली लोकगाथामे दीनाभद्री
२.८. सार्वभौम मानवाधिकार घोषण: मैथिली अनुवाद रमानन्द झा 'रमण' : भाषा सम्पादन गोविन्द झा
२.९. गजेन्द्र ठाकुरक मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोशपर- उदय नारायण सिंह "नचिकेता"
३. पद्य
३.१. कामिनी कामायनी: भाषा
३.२. डॉ. शंभु कुमार सिंह-लोरी
३.३. सतीश चन्द्र झा- तीन टा कविता
३.४ माय (कविता) - मनीष झा "बौआभाई"
३.५. ज्योति- मिठगर राैद
३.६. सुबोध ठाकुर- केना होएत मिथिलाक जीर्णोद्धार
४. बालानां कृते-मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी
५. भाषापाक रचना-लेखन - पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
६.. VIDEHA MAITHILI SAMSKRIT EDUCATION(contd.)
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी रूपमे
Videha e journal's all old issues in Braille Tirhuta and Devanagari versions
संपादकीय
२९ मार्च २००९ केँ मैथिली-भोजपुरी अकादमी द्वारा दिल्लीमे सेमीनार भेल, जाहिमे समकालीन रचनाकारक दायित्वपर गोष्ठी भेल। मोहन भारद्वाज, विदित, प्रदीप बिहारी, नीता झा आदि वक्ता भाग लेलन्हि। सांझमे मिथिलांगन द्वारा रोहिणी रमण झा लिखित आ संजय चौधरी द्वारा निर्देशित नाटक "किंकर्तव्यविमूढ्" मंचित भेल।
दिल्लीमे होली आओर महिला दिवसक अवसर पर बिहार उत्सवक आयोजन कएल गेल। लोक बिहारक लोकगीत आओर लोकनाटकक संग कत्थक नृत्यक आनंद उठएलन्हि। नृत्यांगना पुनीता शर्मा अपन कत्थक नृत्य यात्रा थीमक नृत्यसँ तँ युवा कलाकार अंशुमाला बिहारमे पावनि-तिहारपर गाबय जाए वाला गीत जेना कजरी-जट-जटिन-शादी-विवाह आओर होली पर गाबय जाय वाला गीतसँ लोककेँ झुमा देलन्हि। लोक नाटक वाला हिस्सामे जयशंकरजी खुशबू आओर वंदनाक संग 'जट-जटिन' प्रस्तुत कएलन्हि।ई कार्यक्रम दिल्लीक सामाजिक संस्था राग विराग एजुकेशनल एंड कल्चरल सोसाइटीक दिससँ कएल गेल।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ ३० मार्च २००९) ७८ देशक ७८१ ठामसँ १,६६,७८७ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर, नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in ggajendra@yahoo.co.in
२. गद्य
२.१.कथा- साकेतानन्द.कालरात्रिश्च दारुणा-
२.२. कथा- सुभाषचन्द्र यादव- तृष्णा /
२.३.कामिनी कामायिनी-विलायत वाली कनिया
२.४. उपन्यास- प्रत्यावर्तन - पहिल खेप- कुसुम ठाकुर
२.५. बलचन्दा (मैथिली नाटक)- विभा रानी (पहिल खेप)
२.६. सुखमे सब साथी दुखमे न कोय- सुरेन्द्र किशोर झा-
२.७. डा.रमानन्द झा ‘रमण‘-मिथिलांचलक दलित समाजमे लोकगाथा
मैथिली लोकगाथामे दीनाभद्री
२.८. सार्वभौम मानवाधिकार घोषण: मैथिली अनुवाद रमानन्द झा 'रमण' : भाषा सम्पादन गोविन्द झा
२.९. गजेन्द्र ठाकुरक मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोशपर- उदय नारायण सिंह "नचिकेता"
साकेतानन्द 1941-
वरिष्ठ कथाकार, गणनायक (कथा-संग्रह) लेल साहित्य अकादेमी पुरस्कारसँ सम्मानित। प्रकाशित कृति: गणनायक (कथासंग्रह), सर्वस्वांत (उपन्यास)।
कालरात्रिश्च दारुणा * साकेतानन्द.
“ की कहैत रही..? छोडू घरक माया_मोह...भागि चलू...?” हुनकर स्वर मे प्राण_भय भरल रहनि. ”ओह, तखनि तक तक त’ बौअनिक ट्रैक्टरो चलिते रहै...जरलाहा के अक्किल पर पाथर पडि गेल रहय...” ओ सिसक’ लागल रहथि. ”आब पछताइये क’ की हैत..? हे एना कानू नंई ! मोन आर घबडा जाइ छै.”
“ कानू नंइ त’ की करू यौ ? घर देने धार बहैयै...अहां कहै छी कानू नंहि ?” बंटू झाक हाथ मे एकटा हरवाही पैना रहनि. दू टा जोडल चौंकी, जाहि पर दुनू गोटे बैसल छला, तै पर स’ हाथ लटका क’ पैना पानि मे देलखिन ! कत्तौ नंहि ठेकलनि. ” सांझ स’ डेढ फीट बढि गेलै! निचला चौंकी बुझू डूबि गेल !” ” दैब हौ दैब ! आब हम कोन उपाय करबै ?” ओ विलाप कर’ लगै छथि. घौना करैत बांधक ठीकेदार, इंजीनियर के सराप’ लगै छथिन. बंटूझा नंहि रोकै छथिन. रोकैक आब एकदम इच्छा नंहि छनि.हुनकर पत्नी; बरसाम बालीक घौना आ अई कोठली, ओई कोठली देने बहैत कोसीक कलकल, एकटा अद्भुत स्वर_ श्रृष्टि क’ रहल छलै. जं’ जं’ सांझ गहराय लागल छलै___तौं_तौं कोसीक हाहाकार बढ’ लागल छलै. एत्ते तक जे बगल मे बैसल पत्नी स’ आब चिकडि क़’ गप्प’ कर’ पडै छलनि. ओ कानिये रहल छली__ ” कत्त’ पडेलें रे ठीकेदरबा सब ? कत्त’ छ’ हौ सरकार साहेब ? बान्ह तोडबाक छलौ त’ कहितें ने रे डकूबा सब...पडा क’ चल जैतौं डिल्ली ! अपन बौआ लग चल जैतौं...कहिते किने रे ... आब के बचेलकै हमरा सब के रौ दैब ?” ओ बच्चा सब जेकां भोकाडि पाडि क’ कान’ लागल रहथि. “ आइ तेसर राति छियै... आब की हेतै रौ दैब !” ” हे, कहने रही ने, कनै छी त’ मोन सुन्न भ’ जाइये.” ” कियैक ने भागि क’ वीरपुर चल गेलौं, किछु छियै त’ शहर छियै; ओइ ठाम स’ कत्तौ भागि सकै छलौं...माथपर कोन गिरगिटिया सवार भ’ गेल रहय यौ...गाम स’ कैक बेर ट्रैक्टर गेलै.” हुनका ई नहि बूझल छलनि जे वीरपुर आब वैह रहलै ? ओ आब सुन्न, मसान, भकोभन्न भ’ गेल छै. ओहि ठाम भरि छाती पानि बहि रहल छै. सब किछु के उपर देने, सब किछु के चपोडंड करैत कोसी बहि रहल छै. ओत्तुक्का लोक ? ओत्ते टा कस्बाक ओत्ते लोक कत’ गेलै ? कत’ गेल हेतै लोक सब हौ भोलेनाथ ? बंटूझा के किछु नहि बूझल छनि, किछु नहि. लोक त’ बेर पडला पर चिडैयो स’ बेसी उडान भरि सकैये...मखानक लाबा जकां छिडिया सकैये, देश्_विदेश पडा सकैत अछि.वीरपुर मे आब ध्वंस हेबाक प्रक्रिया मे सब किछु छै.
अही बीच लक्ष केलखिन त’ पत्नीक कपसनाइ बन्द बुझेलनि. शाइत सुति रहली की...जं सूति रहल होथि..त’ हुनका नल राज जकां छोडि क’ गेल हेतनि ? छिः छिः की सोचि रहल छथि ओ ? मुदा बात मोन मे घुमडैत रहै छनि जे ई नंहि रहितथि त’ बंटूझा के पडाइक कैक टा बाट रहनि. अगल_बगलक कैकटा उंच स्थान सब मोन पडलनि...नेपाले भागि जैतथि. डेढ_दू किलोमीटर दूर परहक कैक टा ऊंच डीह सब मोनमे चमकि उठलनि. असकर रहितथि त’ कैक टा उपाय रहै... तैं तीन दिन स’ यैह चौंकी भरि सुखायल स्थान पर लटकल छथि दुनू व्यक्ति ! सत्ते माया चंडाल होई छै. मुदा ककरो की पता रहै जे एत्ते भरबा क’ ऊंच पर बनल घरक ई गति हेतै ! हे एकरा क्यो बाढिक पानि नहि कहै जेबै कहियो, ई प्रलयक प्रबल प्रवाह छियै, बलौं स’ बान्हल बान्ह तोडि क’ निकलल पानि छियै कोसिक, सब के रिद्द_छिद्द कइयेक’ छोडतै, बेरबाद क’ देतै सबके, अइ बेर नहि छोडतै. बंटूझा के साफ
लागि रहल छलै जे कोसी अइ बेर नहि मानतै, बदला लइयेक’ रहतै .
“ सुनै छियै, कत्ती राति भेल हतै ? भूख नहि लागल अछि ?” ”लागल त’ अछि, त’ देब खाइलय ?” हुनकर स्वर खौंझायल रहनि, जेना चैलेंज क’ रहल होथिन. ” कने ज’ साहस करी, त’ भंसाघरक ताख पर चाउरक टिन धैल छै, ताख डूबल छै की ?” ”ओह, चुप रहूने, जँ नहियो डूबल छै त’ भंसाघर गेल हेतै, अइ अन्हार रातिमे जखन घर देने कोसी बहि रहल हो...” ”घर कहाँ रहलै यौ, अपन घर देने त’ कोसी बहैये आब.” ”बीच नदी मे यै ?” ”हँ यौ, नदीक गुंगुएनाइ नहि सुनै छियै ?” ”सब सुनै छियै, तखन कहै छी जाइ लए ?” ”चाउरक टिन ज’ नहि आनब... आइ तेसर दिन छियै. टिन टा आबि जाय ने कोनो तरहे, दैब हौ दैब !
वेगो बढल जा रहल छै... एहन ठोसगर पक्को घर के तोडि सकयै कोसी ?” ”किछु घंटा लगतै ओकरा, डीह पर घर नहि सौ दू सै ट्रक राबिश पडल रहत.” ई कहि ओ चुप भ’ गेला. दुनू वेकती बडी काल तक चुप छला. ”अच्छा, नहि आनब त’ खायब की ?”
“अहीं उतरू ने.” ”नै हौ बाप, वेग देखै छियै ? हम त’ एक्के डेग मे लटपटा_सटपटा क’ चपोडंड.... देखियौ, दरबज्जे_दरबज्जे, कोठलिये_कोठलिये कोना खलखला क’ बहि रहल छै !” ”नै उतरब त’ दुनु गोटे भूखे मरब!” ”मरि जायब, अही कोसी मे भांसि जायब! भांसि क’ कोपरिया कुर्सेला मे लहास लागत...गिध्ध_कौआ खायत!!”
“ओह, चुप रहू ने!” बंटूझा बडी कालक बाद चौंकी आ छतक बीच हवा के संबोधित करैत बजला_” आइ तेसर दिन छियै ! आइ तक पटनां_डिल्ली के हमरा सबहक सुधि नहि एलै ?”
“अहूं त’ हद करै छी...अहि बोह मे बौआ अबिते हमरा सबके बचबैलय ?” हुनका दिल्ली सुनिते अपन बेटा टा मोन पडै छनि, आर किछु नहि.सत्ते, हुनका लोकनि सनक हजार_दस हजार नहि लाखों लोक, आइ तीन__दिन स’ फंसल अछि, एकर खबरि ककरो नहि लगलैयै ? एहनो कत्तौ होई ? ओ जेना पत्नीक बात नहि सुनने होथि, भोर मे आंटा सानि क’ ओकर गोली खेने रहथि. आइ, तेसर बेर राति गहरा रहल छनि. हिनका दुनू व्यक्तिक अतिरिक्त कोनो चिडियो_चुनमुनीक आवाज़ कहां सुनै छियै ? एखन त’ कुसहा मे बान्ह तोडि क’ बहैत कोसियेक आवाज़ छै चारू भर...बान्ह, छहर, नहर, सडक, रेल, गाछी_बिरछी के मटियामेट करबाक स्वर ! सब किछु के ध्वस्त करबाक घुमडल मौन स्वर__गडर_गडर_गडर...ह’ ह’ ह’..हहा_हहा_हहा; विजयिनी कोसीक अट्टहास स’ हिनका दुनूक कान तीन दिन तीन राति स’ बहीर भेल छनि ! …मोबाइल. इंटरनेटक युगमे तीन दिन बीत गेल आ क्यो सुधि लै बला नंहि ? ..... काल्हि तक त’ दुनू व्यक्ति छत पर चादरि टांगि क’ रहथि . जखन सोपाने बरिस’ लगलनि, आ ओत्ते मेहनति स’ उपर आनल सब वस्तु जात भीज’ लगलनि; अपनो दुनू गोटे सनगिद्द भ’ गेला त’ भगि क’ कोठली मे एला त’ अपन कोठरी मे भरि जांघ रहनि.. चौंकिक ऊपर चौंकी धयलनि; त’ तखन स’ ओही पर बैसल छथि. आब त’ निचला चौंकी डूब’ लागल छलनि ! “दैब रौ दैब ! काल्हि मंचेनमाक नाव के की हाल भेलै हौ दैब...सत्तरि अस्सी गोटे, बाले बच्चा व्मिला क’ हेतै, नाव पलटिते कोना हाक्रोश करैत बेरा_बेरी डुबैत....हौ दैब, कोना हाथ उठाउठा जान बचेबाक गोहारि करैत रहै यौ !” ओ पुक्का फाडि क नेना सब जेकां कान’ लगली. पानिक हहास मे हुनकर रुदन बडा भयौन लगैत रहै. ” जुनि मोन पाडू यै... असहाय लोकके डुबबाक दृष्य नहि मोन पाडू !” ”मोन होति रहय ओत्तेटा कोनो रस्सा रहिते की आने कोनो ओत्तेटा वस्तु__त’ फेक दितियै...मुदा किछु नहि क’ भेल... ओत्ते लोक चल गेलै आ जा रहल छै, से छै ककरो परवाहि...बज्जर खसतौ रे पपियाहा सरकार बज्जर !” ”यै ई कयैक ने सोचै छी जे हमरा सब जीविते छी, जं मंचेनमाक नाव पर हमरो सब चढि गेल रहितौं त’ आइ कोन गति भेल रहिते ? अपना सब नहि चढलहुं त’ प्राण बांचि गेल ने !” ”देखैत रहियै, लोक कोना छटपटाइत रहै...? छत पर स’ त’ स्पष्ट देखाइ पडैत रहै!” ”सब टा देखैत रहियै ! बगल मे चुनौटी हैत दिय” त’ !” ”कत्ते खैनी खायब ?” ”भूख लागल यै.” ”तैं त’ कहैत रही... कनी साहस करू. भंसाघर मे घुसिते, सामने ताख पर चाउरक टिन छै; बगल मे नोनो छै.” ”अहां आयब पीठ पर ?” ”नै यौ, हमरा बड डर लगैये. हे ओ भीतर बला चौकठि के देखियौ त’... देवाल छोडने जाइ छै ?” ”हँ यै बरसामबाली! ई त’ देवाल छोडि देलक.” ”त’ आब घर खसतै की यौ ?” ..चुप्पी, संगहिं नदीक हहास! पानि मे कोनो जीव के कुदबाक छपाक ध्वनि ! ने त’ सगरे पसरल पानि... तै पर अन्धकार. ”किछु बजै कियैक ने छी ? सुनू , आब हमरो बड्ड भूख लागि गेल अछि...” ”देखै छियै, करेंट स’ आब चौंकीक पौआ सब दलकै छै; एखनो हम चाउरक टिन आनि सकैत छी. आयब हमर पीठ पर, उतरी हम ?” फेर चुप्पी. दुनू चुप छथि. बीच मे वैह अलगटेंट हरजाइ बाजि रहल अछि__कोसी बाजि नहि डिकरि रहल अछि !
“ठीक छै, हम उतरै छी...आब जे हुए, आब नहि सहल जाइये...!” ”नै यौ! हम अहांके ऐ अन्हार राति मे पानि मे नहि पैस’ देब. सांझ मे ओ सांप के देखने रहियै...मोन अछि कि नहि ?” ”ओ एत्तै हेतै ? नहि हम उतरै छी, किछु भेल हुए, आखिर अपने घर ने छियै यै ?” ”उतरबै ?”कहि बरसामबाली कनी काल चुप भ’ जाइ छथि; फेर कहै छथिन__”बुझलौं यौ, मोन होइयै गरम_गरम चाह पिबितौं; एकदम भफाइत.” “अच्छा, कत्ते राति भेल हेतै ?” ”देवाल पर घडी त’ लटकले छै, देखियौ ने.” ”एंह, ओहो साला बन्द भ गेल छै.” ”ठहरू, कने पानि के देखियै ! अरौ तोरी के, निचला चौंकी त’ डूबल बरसामबाली.” ”हे यौ, कने एम्हर आउ, हमरा डर लागि रहल अछि. हमरा लग आउ ने.” ”छीहे त’ ?” ”नै हमर लग आउ सब चिंता_फिकिर बिसरि क’ दुनू गोटे सूति रही. जे हेतै से परात देखल जेतै.!” ”भने कहै छी, दलकैत चौंकी आ भसकैत घर मे निश्चिंत भ’ क’ सुतै लए कहै छी...नीचा कोसी बहि रहल अछि ! भने कहैत छी.” ”खिडकी स’ देखियौ, भोरुकवा उगलै ? घडियो जरलाहा के बन्द भ’ गेलै....” ”कथी लए कचकचाइ छी, ई कालरात्रि छियै, अइ मे क्यो ने बचत...” ”ठीके कहै छियै यौ; ऐ बेर क्यो ने बचतै.” ”मारू गोली. जत्ते बजबाक हेतै, बाजल हेतै. सुनै छियै?सुति रहलियै ?” ”धुर जो, एहन परलय मे पल लगतै ? हम कहैत रही डिल्ली ठीक छै ने ? ओकरा खबरि भेल हेतै ? ओत्त’ बौआ अंगुनाइत हेतै...हे अइ बेर नहि अनठबियौ, अगिला सुद्ध मे करा दियौ. नहि करब आड्वाल; नहि गनायब. मुदा पुतहु चाही हमरा पढलि_लिखलि. एकदम स्मार्ट, अपन बौए जेकां.” बंटूझा के लगलनि जे एहन समय आ ताहि मे बियाहक गप, जरूर हिनकर दिमाग भांसि रहल छनि. कल्हुका भोर देखती की नहि तकर ठेकाने ने, चलली है बेटाक बियाह नेयार करै लए.मुदा बरसामबालीक त’ टाइम पास रहनि__बेटाक बियाहक प्लैन बनायब. हुनको मोन भेलनि जे ओ कथाक मादे कहथिन जे हाले मे यार अनने रहथिन. मुदा ओ चौंकी आ छतक दूरी के एकटक देखैत रहला. पानिक स्वर हुनकर कान के बहीर बना रहल छलनित त’ माथ मे कोनो धुंध, कोनो धुआं सन भरल बुझाइ छलनि. बरसामबालीक बुद्धि ठीके भांसि गेल छलनि, नहि त’ एहन मे बेटाक बियाहक नेयार करब ! ”से चाहे जे हुए, पुतहु हमरा सुन्नरि आ पढल चाही.” ”अहां के बड्ड भूख लागि रहल अछि की ?” ”हं यौ !” ”सुनू, अहां घबडायब नहि ! हम यैह चाउरक टिन नेने अबै छी ! ”नै जाउ यौ...नै उतरू यौ...नै जाउ यौ !”बरसामबाली अनघोल करिते रहली, जाबे तक हुनकर मुंह मे गर्दा नहि उडियाय लगलनि. मुदा बंटूझा फेर कोनो उतारा नहि देलखिन.
कथा
सुभाषचन्द्र यादव- तृष्णा / कामिनी कामायिनी-विलायत वाली कनिया
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल- मधुबनी। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
तृष्णा
हमरा लागल अखिलनकेँ किछु भेल छैक । जखन ओ कलकत्तासँ घुरि कऽ आयल रहय, हमरा तखने खटकल छल । मुदा ओ थाकल – झमारल रहय, तेँ हम किछु नहि पुछलिऐक । ओ बदलि गेल छल । कोनो गप्प नहि करय; चुप आ उदास रहय । ओकर चेहरा देखला सँ बुझाइ जेना ओ कोनो विचार या स्मृतिमे डूबल – हेरायल हो । 'की भेल छौ?' पुछला पर ओ बाजल –'नहि, किछु नहि ।' लेकिन ओकर स्वरमे आ ओकर चेहरा पर हमरा वेदनाक स्पष्ट अनुभूति बुझायल । फेर दिन भरि अखिलन सँ कोनो गप्प नहि भेल ।
रातिमे अचानक कोनो सपनासँ निन्न टूटि गेल । सपनाकेँ मोन पाड़ैत चाहलहुँ, जे सूति जाइ । ठीक तखने चौंकि गेलहुँ । अखिलन, जे बगल वला बिछौन पर सुतल रहय, कुहरैत बाजल—'ओह, श्रीलता !' लागल जेना ओकरा कोनो पीड़ा भऽ रहल हो आ सहायता लेल ओ श्रीलताकेँ सोर पाड़ैत हो । चकित भेल हम ओकर बिछौन दिस तकलहुँ । इजोरियाक् हल्लुक इजोतमे देखल मूड़ी तर पड़ल गेड़ुआकेँ अखिलन बेर-बेर हाथसँ मीड़ि रहल अछि । ओ निश्चय जागल छल आ कोनो बेचैनीमे छटपट कऽ रहल छल ।
ओहि राति फेर सूति नहि भेल । बहुत जिद्द कयला पर अखिलन जे खिस्सा सुनौलक ताहिसँ मन भारी आ उदास भऽ गेल । खिस्सा सुनबैत ओ रहि –रहि कऽ अपन छातीकेँ मुट्ठी मे पकड़ि लैत छल जेना छातीमे दर्दक हूक उठैत हो ।
अखिलन कहऽ लागल –भोरे –भोर कलकत्ता लेल गाड़ीमे सवार भेलहुँ तँ सामने वला बर्थ पर एकटा अधवयसू बैसल सिगरेट पिबैत रहय । बादमे जानल जे ओकर नाम संतोष कुमार मंडल छल । ओ बंगाली रहय आ शौकिया चित्रकार । हैदराबादमे कोनो नौकरी करैत रहय । ओ हमरा बहुत ध्यानसँ देखलक आ पुछलक जे हम कतऽ जायब । फेर अपने कहऽ लागल—गाड़ीमे सवार होइसँ पहिने हम रिजर्वेशन चार्टमे अगल –बगल वला यात्रीक नाम, उमर आ गंतव्य जरूर देखि लैत छी । ओकर ई सतर्कता पहिने तँ प्रभावित कयलक , मुदा लगले जासूसी – सन बुझायल ।
धीरे – धीरे आओर मोसाफिर आयल—एकटा नव दम्पत्ति, युवक सुधीर आ एकटा प्रौढ़ महिला । मंडल बहुत गप्पी आ सहमिल्लू रहय । ओ जल्दिए सभसँ परिचय कऽ लेलक आ गपसपमे लागि गेल । नव दम्पत्ति हनीमून लेल दार्जिलिंग जाइत रहय । सुधीर अपन भाइसँ भेंट करऽ कलकत्ता जाइत रहय । प्रौढ़ महिला पता नहि कतय जाइत रहय । ओ बेसी काल गंभीरे बनलि रहलि । खाली बीच-बीच मे कोनो हँसी वला गप्प पर मुसकाइत रहय । बादमे कोनो स्टेशन पर ओ एकटा तेलुगू पत्रिका कीनलक आ ओहिमे व्यस्त भऽ गेलि ।
स्थिर रहब मंडलक स्वभाव नहि रहैक । ओ कखनो पानि पीबा लेल उठय तँ कखनो चाह पीबा लेल । कखनो सिगरेट जराबऽ लेल सलाइ ताकऽ लागय तँ कखनो दोसर कातक बर्थपर बैसल बंगाली परिवार सँ गपसप मारि आबय । अही सभक बीच पता नहि कतय वारंगल कि विजयवाड़ामे एकटा युवती हमर सभक बर्थ लग आयलि । एकटा सामान्य साधारण युवती । हमर बर्थ पर बैसलि महिला सँ बैसबाक अनुमति मँगलक । बर्थ अपन नहि रहबाक कारणे महिला असमर्थता प्रकट केलक तँ हम ओहि युवतीकेँ बैसि जयबाक इशारा कयल । मंडल, जे ऊपरका बर्थ पर पड़ल छल, ओहि युवतीकेँ गौर सँ देखलक । युवती थोड़े काल धरि असहज बनलि रहलि, फेर सामान्य भऽ गेलि । जखन कंडक्टर टिकट जाँचय आयल तँ युवती कने आशंकित भेलि, मुदा जुरमाना दऽ कऽ फेर निश्चिन्त भऽ गेलि । ओ जुरमाना दैत रहय, ठीक तखनहि ओ पहिल बेर आकृष्ट कयलक । कंडक्टर नोट पकड़ि लेलक आ टिकट बनबैत रहल । टिकट देखला पर युवती चौंकि उठलि । अपन गलतीक अनुभव कयलक आ पर्स सँ आओर पाइ निकालि कंडक्टरकेँ देलक।
'लेकिन एहिमे आकृष्ट करऽ वला कोन चीज रहैक ?’- अखिलनसँ हम पुछलिऐक ।
अखिलन कहलक - 'भगिमा। ओकर भंगिमामे किछु एहन सौन्दर्य रहैक, जकरा मात्र अनुभव कयल जा सकैत अछि; कहल नहि जा सकैछ ।’
अखिलन कने काल चुप भऽ गेल । हमरा लागल ओ श्रीलताक ओहि अदाकेँ फेर सँ पकड़बाक प्रयत्न। कऽ रहल अछि जेओकर हृदयमे सीधे उतरि गेल रहैक ।
टोकि देलासँ खिस्साक प्रवाह टूटि गेलैक । ओकर छोर पकड़ि आगू बढ़ेबामे अखिलनकेँ थोड़े समय लगलैक।
हमरा बुझेबाक प्रयास करैत ओ बाजल – 'युवतीक व्यढक्तित्वे मे किछु एहन लय आ गति छलैक, जे हमरा आकृष्ट कयने छल । ओ बहुत संवेदनशील आ सलज्ज छलि । खैर ।’
हमरा लागल अखिलनक हृदय दर्दसँ टीसि उठल होइ ।
परिचय आ गप करबामे प्रवीण मंडल जखन नीचा उतरल तँ ज्ञात भेल ओहि युवतीक नाम श्रीलता छलैक ।
'खूब भालो नाम ।’ – मंडल बाजल ।
श्रीलता बिजनेस मैनेजमेंटक कोर्स करैत रहय । ओकर हाथमे मैनेजमेंटक कोनो किताब रहैक जे सुधीर लऽ कऽ देखऽ लागल । मंडल दोसर कातक बंगाली परिवार लग चल गेल आ ओहि परिवारक एकटा किशोरीक चित्र बनबऽ लागल । अपन चित्र पर प्रसन्न होइत किशोरी बाजलि –'थैंक यू अंकल ।' परिवारक सभ सदस्य चित्र देखलक आ मंडलक प्रति कृतज्ञ भेल । किशोरक माय बाजलि— 'ओ माँ, आपनी तो खूब भालो स्केच तूल छेन ।’
मंडल अपन बर्थ पर घुरि आयल। सिगरेट पीलक आ ओहि नव विवाहिताक चित्र बनबऽ लागल जे हनीमून लेल दार्जिलिंग जाइत रहय । नव विवाहिता मंडलक ठीक सामने बैसलि छलि । मंडल किछु रेखा खींचय आ रूकि कऽ नव विवाहिता दिस ताकऽ लागय । चित्रक प्रति सभ क्यो उत्सुक रहय । तैयार होइते ओ एक हाथसँ दोसर हाथ जाय लागल । जखन ओ हमरा लग आयल तँ चित्र देखि धक्का सन लागल । नव विवाहिताक चित्र एहन छलैक जाहिसँ ओकरा चिन्हल जा सकैत रहय । मुदा ओकर नीचा एकटा दोसरो चित्र रहैक—स्त्री –पुरुषक; पुरुष स्त्री दिस टकटकी लगा कऽ देखैत । यद्यपि चीन्हऽ योग्य स्पष्टता आकृतिमे नहि रहैक, तथापि हमरा बूझऽ मे भांगठ नहि भेल जे ई दुनू आकृति हमर आ श्रीलताक अछि । हम मंडल दिस तकलिऐक । ओ पहिनहि सँ हमरा दिस तकैत छल आ नजरि मिलिते बाजल –'इटस नोट यू ।’ जेना ओकर मोनमे कोनो चोर होइ ।
श्रीलता खिड़की सँ बाहर तकैत छलि । साँझ पड़ि रहल छलैक । मंडलो सिगरेट पिबैत खिड़की सँ बाहरक दृश्य देखऽ लागल । तखने पता नहि कोम्हरसँ एकटा बंगाली युवक आयल आ मंडल संगे गपमे लागि गेल। ओ हैदराबाद विश्वविधालयमे नाम लिखा कऽ घर जाइत रहय आ बहुत उत्साहमे रहय । रवीन्द्र संगीतक चर्चा भेलै तँ मंडल श्रीलता सँ पुछलकै –'डू यू नो रवीन्द्र नाथ टैगोर ?'
'आइ एम अफ्रेड, आइ डोंट ।'-श्रीलता कने संकुचित भेलि ।
'शी मस्ट बी नोयिंग पोतन्नाइ ।’- जेना हम श्रीलता केँ सहारा देबा लेल बाजल होइ ।
'याह, आइ नो पोतन्ना वेरी वेल ।’- श्रीलता उत्साहित भऽ उठलि ।
बंगाली युवक आ मंडल रवीन्द्र संगीत गाबऽ लागल । मंडलक गला नीक रहैक ।
हमरा भूख लागि गेल छल । दूपहरमे जे केरा किनने रही से पड़ले रहय । ओहि मे सँ दू टा छीमी तोड़ि हम श्रीलता दिस बढ़ाओल, मुदा ओ लेलक नहि । सुधीर, मंडल, युवक आ नव दम्पत्तिकेँ केरा देलाक बाद हम श्रीलता दिस फेर ताकल ।
'हैव इट श्रीलता । यू मस्ट बी हंग्री ।’-हमरा स्वरमे किछु एहन उत्कट स्नेह आ याचना रहय, जे ओ चौंकि कऽ हमरा दिस देखऽ लागलि । फेर एकटा केरा लेलक आ संकोच तथा लज्जावश धीरे-धीरे खाय लागलि । श्रीलता विजयवाड़ामे पढ़ैत छलि आ अखन चारि दिनक छुट्टीमे घर विशाखापतनम जाइत छलि । ट्रेन लेट भेल जाइत रहैक आ ओहि संग श्रीलताक बेचैनी बढ़ल जाइक । श्रीलता सँ आओर गपसप भेल । ओ पाँचम दिन घूरति ।
'अहाँ कहिया घुरब ?'-ओ हमरासँ पुछने छलि ।
विशाखापतनम आबि रहल छलैक । ओ उठि कऽ ठाढ़ भऽ गेलि । परिचित शहर-घर आबि गेलाक निश्चिन्तता आ दिन नीक तरहेँ कटि जयबाक संतोषसँ ओकर चेहरापर प्रसन्नताक लहरि अयलैक । कृतज्ञता आ सदभावना प्रकट करैत ओ मुस्कुरायल आ सभसँ विदा मँगलक । मुदा ओकरा दिस क्यो ध्यान नहि देलकै । सभ गप्पमे बाझल छल । ओ हमरा दिस तकलक आ एकटा स्निग्घ कोमलताक भाव चेहरा पर लेने विदा भऽ गेलि ।
तीन-चारि मिनट बीति गेल । स्टेशन अखनो आयल नहि छल । हमरा आश्चर्य भेल ओ एतेक पहिनहि गेट पर किएक चल गेलि । हमरा अचानक एकटा विकलता घेरि लेलक । ओकरा देखबाक विकलता, गप्प करबाक विकलता । आ ठीके, हम सीटपरसँ उठि गेलहुँ । गेट लग पहुँचिते ओ हमरा देखलक आ देखते मुस्कुरायलि । ओकर मुस्की औपचारिकताक कारणे आनल गेल बलात् मुस्की नहि छल; ओ स्वत: स्फूर्त्त आ हार्दिक छल ।
मंत्रमुग्ध सन ओकरा दिस तकैत हम आगाँ बढ़लहुँ आ कनेक दूरी पर डिब्बासँ सटिकऽ ठाढ़ भऽ गेलहुँ । ठाढ़ होइते ओ पल भरिक लेल हमरा दिस मुस्कुराइत तकलक आ संकोच तथा लज्जावश मूड़ी झुका लेलक। फेर पता नहि कोन प्रबल आन्तरिक प्रेरणासँ अगिले क्षण हमरा देखऽ लागलि । आँखिमे आ ठोर पर वैह मधुर आ कोमल मुस्की लेने । ओकर माधुर्य आ कोमलतामे नहाइत हम निरन्तर ओकरा देखने चल जाइत रही । बुझाइत रहय हृदयमे प्रेमक स्रोत फूटि पड़ल हो आ हम ओकर अनन्त प्रवाहमे भसिआयल चल जाइत होइ ।
गेट लग श्रीलताक आसपास किछु आओर लोक ठाढ़ रहय । भरिसक अहीसँ घबरा कऽ श्रीलता बाजलि – 'इट वाज ए नाइस कम्पनी ।' हम सहटि कऽ ओकर आओर लग चल अयलहुँ । कहऽ चाहलहुँ – 'आइ वांटेड टू हैव ए लास्ट लुक ऑफ यू । मुदा लोक-भयक कारणे कहा गेल –'आइ वांटेड टू सी यू ऑफ ।'
श्रीलता किछु नहि बाजलि ।
'अहाँ चारिम दिन नहि घुरि सकैत छी, श्रीलता ?'
'नहि, हमरा कैकटा काज करऽ पड़त । मजबूर छी ।'
गाड़ी प्लेटफार्म पर लागि रहल छल । संग छूटि जेबाक आसन्न अवश्यम्भाविता सँ हम अस्थिर भऽ गेल रही ।
'अहाँकेँ स्टेशनक गेट धरि छोड़ि आबी ?'- हमर एहि प्रस्तावसँ श्रीलता डेरा गेलि । गेटपर ओकर भाइ प्रतीक्षा करैत हेतैक ।
'नो, नो । थैंक्स ।’- श्रीलता घबराइत बाजलि आ एहि तरहेँ धड़फड़ायल चलिदेलक जेना हम ओकरा खेहारने अबैत होइएक । ओकर एहि व्यवहारसँ स्तम्भित आ विमूढ़ भेल कने काल हम ठाढ़े रहि गेल रही । फेर तेजीसँ चलैत जखन प्लेटफॉर्मक गेट लग पहुँचल रही तँ ओतय क्यो नहि रहय । श्रीलता चल गेल छलि ।
भारी मने धीरे – धीरे डेग उठबैत हम अपन डिब्बामे घुरि आयल रही ।
अचानक लागल जेना बहुत थाकि गेल छी । जा कऽ ऊपरका बर्थपर पड़ि रहलहुँ । पड़िते करेज टीसि उठल । नीचा गपसपसँ जे हल्ला होइत रहैक से असहनीय लागऽ लागल । होइत रहय सभकिछु निस्तब्ध आ शांत भऽ जाय । फेर लागल जेना हल्ला बहुत पाछू छूटि गेल अछि आ सामने श्रीलताक दिव्य आ कोमल चेहरा आबि गेल अछि –शीतल आ स्निग्ध ज्योत्सना सन निर्मल मुस्की छिटकबैत । फेर ओकर भयभीत आकृति मोन पड़ैत रहल । फेर श्रीलता ... शून्य प्लेटफॉर्मक गेट ।
भोरमे निन्न टुटिते श्रीलता मोन पड़ल आ बड़ी काल धरि उदासी आ अवसाद घेरने रहल ।
कलकत्तासँ हम चारिम दिन नहि घुरलहुँ। पाँचम दिन घुरल रही, जाहि सँ श्रीलतासँ फेर भेंट भऽ सकय । विशाखापतनम आबि हम हरेक डिब्बा आ प्लेटफॉर्म सगरे श्रीलताकेँ तकलहुँ ; एकबेर नहिकैक बेर । ओ कतहु नहि छलि । की भऽ गेलैक श्रीलताकेँ ? दुखित तँ ने पड़ि गेल? या हमरे कारणे काल्हिए चल गेलि ?
हम खिन्न आ निराश भऽ कऽ अपन बर्थपर चल आयल रही । गाड़ी खुजैत काल लगैत रहल श्रीलता अखने दौड़लि आओति आ कूदिकऽ डिब्बामे चढ़ि जायत । विशाखापतनमक छुटैत हरेक घरक खिड़की आ बालकोनीकेँ हम एहि आशासँ देखने चल जाइत रही जे श्रीलताक झलक भेटि जाय । लेकिन ओ हमर दुराशा मात्र छल । पता नहि आब कहियो श्रीलतासँ भेंट होयत कि नहि।
अखिलन ई कहि चुप भऽ गेल । हमरा किछु नहि फुरायल अखिलनकेँ की कहिऐक । हम सोचऽ लगलहुँ अखिलन आब की करत । भऽ सकैत अछि ओ विजयवाड़ा आ विशाखापतनमक चक्कर काटऽ लागय आ अखबारमे विज्ञापन बहार करबाबय । ओ आओर की कऽ सकैत अछि ? हमरा लागल अखिलन केँ श्रीलता नहियो भेटतैक, तइयो ओकर स्नेहक स्मृति रहि जेतैक आ अखिलनक आत्माकेँ आलोकित करैत रहतैक ।
विलायत वाली कनिया- कामिनी कामायनी
अप्पयन माॅटि पानि सॅ दूर ़बागमती सॅ बङ दूर ़आेहि जमाना के हिसाब सॅ ़बरखाें पहिने ़नर्मदा के क्षेत्र विदिशा में आबि क’ चिरंजीब बाबू बसि रहलाह। प्िाहने त’
किराए के मकान में रहैत छलाह़ ़मुदा किन्ए दिन में पाॅच कटठा क’ सुन्दर चाकर चाैरस प्ला ॅट कीनि अपन मनाेरथ के पूर्ण करैत बङका टा के हवेली सन ठाढ कए लेलन्हि।एकदम पूरना रइर्स सभक नक्कारशी दार झराेखा वाला हवेली ़बङ सुन्दर
ऊज्जर झक झक करैत संगमरमरक हवेली ।धीरे धीरे आगाॅ पाॅछा के किछु आआेर
जमीन सेहाे खरिदलन्हि ।
मुदा तखन इर् घर भरल रहैत छल ।मैंया छली ़बाबा छलाह ़यानि की चिरंजीबि बाबू के मा ़बाबू ़एकटा छाेट भाए ़आ’ दू टा छाेट बहिन क संग अपन पेलवार में
दू टा बेटा आ’ तीन कन्या ।नाैकर चाकरक सेहाे कमी नहिं छल ।जतए गुङ रहैत
छैक ़चुटी आेतए आबिए जाए छै ससरति ।
दूनू बहिनीक विवाह भ’ गेलए बेटी सब सेहाे अपन अपन घर
चलि गेलन्हि ।म्ैांया आ’ बाबा एकाएकी अपन आखिरी जतरा प’ चलि गेलाह ।भाइर्
मद्रास आ’ छाेटका दूनू बालक बाहरे पढैन्ह ़घर एकदम सुन भ’ गेलए ।नाैकर चाकरक गिनती सेहाे कम हाेमए लगलैन्ह चिरंजीब बाबू के वकालत सेहाे कम
हाेमय लगलैन्ह ।अपन आ स्त्री दूनू व्यक्तिल के स्वास्थ खराप ।घरवाली के डायबिटिज छलैन्ह़ ़गठिया सेहाे । अपन बी ़पी ़ हार्ट प्राब्लम ।
घरक सुन दूर करय लेल ज्येष्ठ बालक विभूति बाबू के विवाहक’
याेजना बनाआेल गेल ।आेहाे वकालत पढने छलाह ।पिता के हाथ बॅटबए आबि गेलाह
विवाह भ’ गेलन्हि ।कनियाके जाैं चानक टुकङा कहि त’ इर् हुनक अपमान हाेएतन्हि आे त साक्षात चान छलीह ।पढल गुनल कनि कम्मे मात्र बीए पास ।मुदा हुनका सब के अपन पूताैह सॅ नाैकरी त’ नहिं करेबाक छलैन्ह ़तााहि लेल कन्याक गुण आ
खानदान प’ विशेष ध्यान देल गेलए ।
पुताैह के आबए सॅ पहिने जेना आेहि घर में चुहचुही फेर सॅ आबि गेल रहै़
।ङ्राइर्ंग रूमक साेफा आ झाङफानूस के नवीनीकरण कराआेल गेल ।बरखाें बाद आेहि मकान में रंगाइर् पाेताइर् भेल छल ।चिरंजीब बाब्ूा क’ प्रसन्नताक काेनेा ठेकाने नहि छल ।बङ गुणवान ़ सुशील लक्ष्मी कनिया घर में आबि गेलीह ।
विभुति बाब्ूा के माए सेहाे ब्ङ प्रसन्न ।पूताैह के बेटिए जेकाॅ नाम सॅ बजाबथि ‘भारती’ ।आ’ भारती साल भरि क’ भीतरे हुनका सब के चान सन पाेता सेहाे
दए देलन्हि ।
मुदा खिस्सा इर् नहि थीक ।नै हुनक दाैलतक ़नै साेहरतक ।खिस्सा क’ विषय छल विभ्ूाति बाबू के छाेट भाए ़जे इंजीनियर छलाह ।आ’अपना पसिन्नक’
आन जातिक कन्या सॅ विवाह करि लंदन चलि गेल छलाह ़सेहाे कियाे आने कहलकैन्ह ।
कत्तेक दिन धरि माए बाबू के तामस ़दुःख ़दर्द काेढ करेज में हिलकाेर मारैत रहलैन्ह ।पीर रहि रहि क’ टसि मारै ।आ’ कानैत कानैत ़माए बताहि भ’ जाइथ ।तखन चिरंजीब बाबू समझा बूझा क’ चुप्पस करबथि ।पूर्व जन्मक पाप कहैथ
आ” आन धिया पुता दिस ़पाेता पाेती दिस धियान लगाब’ कहैथ ।पूजा पाठ ़रामायाण
़भागवत सब त’ चलिए रहल छल ।
सप्ताुह पन्दरह दिन प’ महाकालक’ दर्शन करि आे खूब मिनती करैथ
‘महाकाल ़सब सुख देने छी।छाेटका बेटा घूइर आबए ़़़़़़़़ ़़बस एक बेर मुॅह देख ली ़
फेर जतए रहै ़आहाॅ खुस रखबै ।’
प्रवासी क’ जीनगी भले सुख चैन सॅ ़ग्रामीणक’ हङ हङ खट खट सॅ
दूर लगैत अछि ़मुदा इर् एकटा काल काेठरी के सजा जेना भ’ जाइत अछि ।अपन समाज क’ नीक बेजाय सॅ दूर ़संस्कृति आ’ रीति रिवाज सॅ मिलबाक लेल कखनाे
क माेन आेइना जाए ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़फूसियाही गप ़़़़़़़…आहे माहे ़़़़……इतियाैत पितियाैत ़़़़़़़़।आेहि में एकटा फराक सिनेह छै ।असगर ़असगर नहि लगैत अछि ।ज्याें ज्याें उमरि बढए लगलन्हि
दूनू व्यक्ति के अपन गाम माेन पङय लागल।चिरंजीबी बाबू के स्त्री साेन दाय त’अपन मातृभूमि लेल आेहिना बेकल भ’ जायथ ़जहिना छाेटका पुत्र लेल ।
अहिना करैत करैत दिन बीतैत रहलै ।तीनाे बेटी के विवाह ़जबलपुर ़भाेपाल
आ” इंदाैर मे भेल रहै ।अहि प्रकारे मिथिला सॅ संपर्क टूटले जकाॅ छलैन्ह ।कहु त’
करीब करीब सबटा लगक’ संबंधी इम्हरे उम्हर छल ।मुदा सब अपन अपन
काज मे व्यस्त ।पूताैह भारती अहिना बङ कम बजैत छली ़आ’ मैथिली त’ बिसरिए गेल छलथि ।अहि मे हुनक काेन दाेख ।नैहराे मे सब कियाे हिन्दीए बजैत छल ।
आैनाइत बाैआइत माेन ़साेनदाय के बङ दिक करैन्ह ़त’ शारीरिक व्याधि
आआेर बढि जाय ।गठिया के प्रकाेप एत्तेक बढि गेलन्हि कि दुनु ठेहुन जेना जकङि
लेलकैन्ह ।जाङ मास में घरक बाहैर बगीचा मे लागल झूला प’ भारती बैसा दैत
छलैन्ह ़़़़़़खवासिन चुप चाप हुनका मालिस करैन्ह ।दूर दूर ़़़़़़़़ ़ ़़ धरि हुनक दृष्टि घुइम फिर क’ वापस माली वाली प’ टिक जाए ।आदिवासी छैक ़हिन्दी बस दू
चारि आखर जनैत अछि ।छत्तीस गढी बाेली बाजए लागैत छै ़जे साेनदाय के ब्ङ कम
आबै ।आेकरा सॅ फालतु के गप केनाए सेहाे व्यर्थ ।पाॅच बीघा मे पसरल हुनक काेठी
खे आगाॅ पाॅछा गाछिए गाछ ़़़ ़ ़़सब तरहकफल फूलक’ जेना आधुन्कि कण्व आश्रम हाे ।चिरू बाबू के पेङ पाैधा सॅ बङ लगाव ।
सङकक दाेसर कात सिन्धी ़पंजाबी सबहक काेठी छलैक ़़़़़़़़़़ ़़़कखनाे काल
निमंत्रण प’ एनाय जेनाय हाेइत छल ।मुदा आब आे ़़़़़़़ ़़़़़़ ़़़नाटक बाज जिनगी सॅ तंग आबि गेल छलीह ।
विभुति बाबू पिता संग काेट चलि जायथि आ’ भारती दूनू बच्चा के स्कूल पठा
क’ साैस लग बैस कखनाे कल्याण पढि कए सुनाबथि ़कखनाे गीता ़ कखनेा हिन्दी के एकबार ़़़ ़़ ़ ़ मुदा नब नुकूत आजू क’ जुबती कखनाे बाेर भ जाइत छली ़़ ़़़ ़।कतेक बेर घर वला के कहलन्हि ़बी़ एड’ करि लैत छी ़मुदा आे अनठबैत गेला़ ‘फुरसत कत्तए अहाॅ के ।बच्चा सब ़माॅ ़ ़़ बाबूजी हम ़घर दुआर ।” आ’ अहि घर दुआरक गिरहस्थी क’ तिलिस्म में हुनका आेझरा क’ राखि देने छलाह ।
एक दिन भिनसरे भिनसर जुलाइर् मास क’ घनघाेर बादरि आ’ बिजुरि आकाश मे हाेड लगाैने छल ।पानि अखन पडबा सुरू नहि भेल छलै कि घरक घंटी
बङ जाेर सॅ बजलै ।नाैकर सूतले छल । चिरू बाबू चाैकला ।आेना त’आे चारिए बजे
आे उठि जाएत छला मुदा आए कनि अस्वस्थ सन माेन लागैत छलैन्ह ़़़़़ ़़ ़ ़ ‘एखन
के भ’ सकैत अछि’ ।उठि क दरवज्जा खाेलला ़़ ़़ ़ ़ ़। अन्हार छलै ।बिजुरि से चमकै ।बरांडा के लाइट जराैला त’ धक सॅ रहि गेला ़़़़़़ ़़ ़ वरूण छलाह ़़ ़ ़़हु
नक करेज त’ ततेक जाेर सॅ धक धक करए लगलन्हि कि आे एक क्षण विलैम क’ इहाे नहि देखला’ जे हुनक संग आर कियाे छन्हि वा’ नहि ।नेना जेका
चिकरैत ़़ ़ ‘ सुनै छी वरूनक’ माए ़़़़़ ़़ ़यै उठु यै ़़़़़़ ़़देखू बाैआ आयल ़़़़़़ ़़़।’आ’ भाैकासी पाङि क कानय लगला ।साेन दाय हङब्ङा क’ उठि गेलीह आ बिन गप बूझने हुनका कनैत देखि क’अ अपनाे कानय लगलीह ।ताबैत वरूण आ’ हुनक स्त्री
पाॅच बरक कन्या सॅग घरक भीतर प्रवेश क चुकल छला ।माए बाबू के कनैत देखि
हुनक पएर छूबैत बजला ़ ‘कथि लेल कनैत छी ।आब’ त हम आबिए गेलहू।’
उम्हर कनबा के साेर सुनि विभ्ुाति बाबू आ’ भारती से हाे अपन काेठरी सॅ बहरैला ।सबहक धियान वरूण प छल ।भाए भायक’ गल लगला ्र।पाॅच हाथक
गाैर वर्ण वरूण ़़़़़़़ ़़आआेर सुन्नर लगैत छला
कनि विलंब सॅ हुनक सबहक नजरि संग आयल स्त्री प’ पङल्ैान्ह ।
तखन आे हङब्ङा क’ बजला ‘इर् हीना़ ़ ़़ ़़ ‘हीना माॅ बाबूजी ़भैया भाैजी के प्रणाम करियाै’।अंगरेजी मे बजलाह ।भाउज के कहला ‘इर् हिन्दी बेसी नहि जनैत अछि ।
सब अवाक भ हुनका देखय लागल ।छाेट सन ़दूबर पातरि ़़़़़़़़़़़़ ़ ़़ ़पिरस्याम ़़ ़ ़ ़ नाक नक्सह सेहाे नीक नहि ।नै जानि कि देखला वरून अहि मे ़़़़़़ ़़ ़़ ़़घर पेलपेलवार सब के बिसरि गेला ़़़़़ ़़ ़़साेन दाय माेने माेन साेचए लागल छलीह ।
आ” पाॅच वर्खक स्वीटी एनमेन वरूण जेकाॅ ।वएह छूरी सन नाक ़ बङका बङका आॅखि आ’ दप दप करैत गाैर वर्ण ़ ़ ़ ़।चिरू बाबू आेकरा अपन काेरा मे
बैसब के काेशिश केलाह त’ कनि कनि सकपकाएल सन ़आे हुनक कात मे राखल
कुर्सी प’ संच मंच भ” क बैस गेल ।
पन्दरह दिनक प्राेग्राम छल ़़़़़ ़ ़़ आे सब इंडिया घूमय आएल छलाह ।बाबूजी लेल पाइर्प ़जे आे हुनके वियाेग मे छाेङि चुकल छलाह़ ़़़़़ ़़मॅा लेल दुशाला ़़़़ ़़
भैया भाैजी आ’ बच्चा सब लेल अंदाजे सॅ किछ किछ सनेस ।
हिना क नाम सकीना छल ़आै केरल के छलीह ़़़़़ ़ ़़लंदन के एक गाेट
नर्सिग हाेम मे काज करैत छलीह ।रूप रंग जे हाेयन्हि ़़़ ़ ़ ़पूर्ण व्यहवार कुशल ़़़़ ़़ ़़हिन्दी बाजए नहि आबए ़मुदा बाजए के काेशिश करथि ।
घुमनाए फिर नाए सॅ जे टैम बचै ़साैस लग बैसथि ़़़हुनक गेठिया के
दवाए आनैत कि खेबाक चाही कि नै ़़़़ ़़ ़ ़ ।पथ परहेज ़़़़़ ़ ़़ एकटा चार्ट बना क’
डायनिंग रूम मे टाॅगि देलखिन्ह ।
शाेन दाए के दम्मा सेहाे रहैन्ह ़़़़़ ़़कखनाे क’ ततेक माेसकील भ’ जाए कि
उपरक’ सांस उपरे रहि जाए ।घबङाक’ चीरू बाबू के राति बिराति डाक्टार बजब
पङैन्ह ।हीना आक्सींजन वाला छाेटका़ मशीन आनने छलीह अपन काेने रिश्तेदारक
लेल ़ ़़़़़ ़़ माॅजी के देलथि ।इर् दवाइर् उ दवाइर् ़़़़ ़़ ़ ़ एना सेवा आेना सेवा ़़़ ़़ ़एना उठू एना बैसू ़़़़़़ ़ ़़़’आ’ साेन दाय नेना जेकाॅ हुनक गप्प मानि सबटा करैथ ।हिना
राेज भाेर सांझ हुनका रक्सगर साइज सेहाे कराबथि ।
आ सत्ते ़सप्तासह भरि मे साेन दाए बङ स्व्स्थ भ’ गेलीह ।आब कनि कनि दूर
बिन मददि के चलि लैत छलीह ।आक्सीाजन मशीन सॅ चिरू बाबू के दुश्चिन्ता से दूर भ गेलन्हि ़़़ ़ ़़ राति बिराति कखन की हाेयत ़़़़़़ ़ ़़ प्राण अधर मे लटकल रहैत
छलैन्ह ़़।
पन्दरह दिन काेना बीतलै ़़़़़़़़ ़ कियाे नहि जानि सकल ।जेबा के दिन
वरूण माए बाबू सॅ कहला ‘हमरा माफ करि देलहू नै ।हम फेर आयब ़ मुदा जाै
जाै अहाॅ सब कानब त’ नै आयब ।’ आ सत्ते जयबा काल हुनका दूनू मै सॅ कियाे
नहि कानल छल ।
वरूण के गेनाए सप्ताआह भरि भेल हेतैक कि पहिल फाेन आयल छल ़़ ़ ़
‘अहाॅ सब काेना छी ़ ़ ़ ़’ हीना से माॅजी सॅ बीस मिनट गप्पफ करि सबटा हाल
चाल पुछलकैन्ह़ ़़’हुनका सबहक आॅखि मे जे चमक आबि गेल छल से दूरै सॅ
देखार भ’ गेल छल ।मास दिन प’ दाेसर फाेन ।़ ़ ़ ़ ़छह मास प’ तेसर ।
आ’ आब दू बरक भ’ गेलए ़़़़़़एखन धरि काेनाे फाेन नहि आयल छल ।
इम्हर साेनदाए के बेटी जमाए सब भेंट करए लेल आबैत रहलैन्ह ।
भारती परछाइर् जकाॅ भरि दिन पाछाॅ पाछाॅ।साैस लग इर् दबाइर् ़़ ़ ़ इर् दारू ़़़ ़़ ़ इर् गाेटी नेने ठाढ ।हुनक माेन कनि बेसी असक्तन भ’ गेल छलैन्ह ।पकङि कए टहलाबए उठाबए पङै ।कखन की खेतीह ़़़़़ ़़आ” संगहि संग पाहुन पङकक आवभगत सेहाे ।काेना इंदाैर वाला आेझा खेताह ़ ़़ ़कत्त सूतता ़़़़ ़़ ़ रायपुर वाला पीसा खेला कि नहि ़़़़नाैकर बाबू जी के पान लगा क पनबटा मे देलकन्हि की नहि ।आ’ अपन दूनू छाेट नेना भुटकाक’ दिनचर्या ़ पढाय लिखाए ़़़ ़ ़़।दूनू अपन अपन क्लानस मे फर्स्ट आबैत छल ।
भरि दिन घिरनी जेका घूमैत भारती
के देखिक भाेपाल वाला जमाए बाजि उठला ़ ‘माॅजी ़हिनका
््््््््््््््््् पुताैह महाकालक कृपा सॅ बङ नीक भैटले्े्ैन्ह ।कतैक सेवा करैत छन्हि ।हिनकाे आ
प्ूृृृरा घर क देखभाल सेहाे ।’ आब साेन दाए के गठिया के सं ग हार्ट के बिंमारी सेहाे धए नेने छल
धए नेने छल । बङी काल धरि कुर्सी प’ गुम सुम बैसल ़किछु साेचैत साेचैत ़ ़़ ़
खनि देर मे साेन दाए बाजल छली़़़़़़ ़ ़़ “आेझा ़़़़़़़़ ़़ विलाएत वाली कनिया बङ नीक’ ।
कामिनी कामायनी
25।3।09
उपन्यास-
प्रत्यावर्तन - पहिल खेप
-कुसुम ठाकुर
१
एक बेर हमरा एकटा पत्रिकामे किछु लिखय लेल कहल गेल छल, ई सन् १९९६ क गप्प थिक। हम बस एतबे लिखि सकलहुँ-
"हम की लिखी हमर त लेखनिये हेरा गेल"।
मुदा आइ बुझना जाइत अछि जे नञि, हमरा एकटा कर्तव्यक निर्वाहण करबाक अछि।
२
हम सदिखन अपनाकेँ हुनकर शिष्या सहचरी आ नहि जानि कि सब बुझैत रही। हुनक कि एकोटा एहन रचना छलनि जकरा कि हम पूरा होमसँ पहिने कै-एक बेर नहि सुनइत रही। हम तँ हुनक एक- एक रचनाकेँ ततेक बेर सुनइत रही जे करीब करीब कंठस्त भऽ जाइत छल। एक एक संवाद आइ धरि ओहिना हमर कानमे गूंजैत रहैत अछि। हम तँ हुनक सबसँ पैघ आलोचक, सबसँ पैघ प्रशंसक रही। अद्भुत कलाकार छलाह, एक कलाकारमे एक संग एतेक रास गुण भरिसक नहि होइत छैक। लेखक, निर्देशक, अभिनेता,गीतकार, संगीतकार, सब गुण विद्यमान छलन्हि। हमरा कि बुझल रहए जे नीक लोकक संग बेसी दिनक नहि होइत छैक। भगवनोकेँ नीक लोकक ओतबे काज होइत छैन्ह जतबा कि मनुष्य केँ। हम तँ भगवानसँ कहियो किछु नञि माँगलियनि, बस हुनक संग सदा भेंटय- यैह टा कामना छल। मुदा एक टा बात निश्चित अछि जे जओँ भगवान छथि आ कहियो भेटलथि तँ अवश्य पुछ्बन्हि जे ओ हमरा कोन गलतीक सजा देलथि, हम तँ कहियो ककरो ख़राब नञि चाहलियैक।
एतेक कम दिनक संग, परंच ओ जे हमरा पर विश्वास केलन्हि आ हमरा स्नेह देलन्हि, शायद हमरा सात जन्मोमे नहि भेट सकैत छल। एखनो जँ हम हुनक फोटोक सोझाँ ठाढ़ भऽ जाइत छी तँ बुझाइत अछि जे ओ कहि रहल छथि- हम सदिखन अहाँक संग छी।
३
जाहि दिन हम पन्द्रह बरखक भेलहुँ ओकर दोसरे दिन हमर विवाह भऽ गेल। ओहि समय हम विवाहक अर्थ की होइत छैक सेहो नञि बुझैत छलियैक। हम तँ मैट्रिक केर परीक्षा दऽ अपन पितिऔत बहिन केर विवाह देखय लेल गाम गेल रही। हमरा की बुझल छल जे हमरो विवाह भऽ जायत। ओहि समय हमर बाबूजी अरुणाचल (ओहि समय केर नेफा ) मे पदासीन छलाह, हम रांचीमे अपन छोटका काका लग रहि कऽ पढ़ैत रही ।
हमर पितिऔत बहिन केर विवाह भेलाक तुरंत बाद हमर बाबूजी आ छोटका काका कत्तहु बाहर चलि गेलाह, कतय गेलाह से हम नञि बुझलियैक। हम सब भाइ-बहिन आ हमर छोटका काकाक बड़की बेटी, अर्थात हमर पितिऔत बहिन सेहो हमरा सब संग गाम पर रहि गेलि, कारण हमरा सबहक स्कूलमे गर्मी छुट्टी छलैक , हम सब खूब आम खाइ आ खेलाइ। मुदा हम देखी जे हमर दादी हमरा किछु बेसी मानथि। अचानक एक दिन भोरमे जखनि हम उठलहुँ तँ देखैत छी जे सब कियो व्यस्त छथि। हमर दादी सब काज करनिहार सबकेँ डाँटि रहल छलीह, कहैत छलीह-
" आब समय नञि छैक, जल्दी जल्दी काज करए जो"।
हमरा किछु नञि फ़ुराइत छल जे ई की भऽ रहल अछि। हमरा देखिते हमर दादी कहलथि-
"हे देखियौ, अखनि तक ई तँ फराके पहिर कऽ घूमि रहल छथि"।
हमरा किछु बूझयमे नञि आबि रहल छल जे ओ की बजैत छलीह। तखनि हमरा ध्यान आयल जे किंसाइत हमर जन्मदिन काल्हि छैक ताहि दुआरे दादी कहैत हेतीह- हमरा किचकिचाबए लेल। ओ सब दिन कहैत छलीह जे अइ बेर जन्मदिनमे अहाँकेँ साड़ी पहिरय पड़त आ हम खौँझा जाइत छलहुँ। ई सब सोचिते छलहुँ ताबत देखलियैक जे छोटका काका आँगन दिस आबि रहल छलाह। हुनका संग हमर बाबा सेहो छलाह । ओ दुनु गोटे दलान पर सँ आबि रहल छलाह , से बाबा के देखला सँ बुझयमे आबि गेल । हुनका सबके देखिते हमर माँ आ दादी दुनु गोटे आगू बढ़ि कऽ हुनकर स्वागत केलथि आ माँ केँ हम कहैत सुनलियैन्ह-
"आब कहू जल्दी सँ जे लड़का केहेन छथि"।
हमरा किछु नञि बुझना जाइत छल, तावत हमर काका हमरा दिस देखलथि आ देखिते देरी कहलथि-
“ अरे तोहर बियाह ठीक कऽ कए आयल छियहु, मिठाइ खुआ”।
हम तँ एकदम अवाक रहि गेलहुँ। हम ओतय सँ भागि कऽ अपन कोठरी मे आबि बैसि कऽ सोचय लगलियैक, आब की होयत हम तँ अपन दोस्त सब केँ कहि कऽ आयल रही जे अपन दीदीक बियाह मे जा रहल छी , ओ सब की सोचत। हमरा एतबो ज्ञान नहि छल जे हम बियाहक विषय मे सोचितहुँ।, हमरा चिंता छल जे दोस्त सब चिढायत। बेश, कनि कालक बाद सँ हमर भाय बहिन सब खुशी खुशी हमरा लग अबथि आ सब गोटे खुशी खुशी कहथि,
" हम सब नबका कपड़ा पहिरबय"।
ओ सब त आर बहुत छोट छोट छलथि, हमही सबसँ पैघ छी।
हमर काका जल्दी जल्दी स्नान ध्यानक बाद भोजन कऽ तुरंत चलि गेलाह, पता चलल जे ओ बरियाती आनय लेल गेलाह। ओहि दिन, दिनभरि सब व्यस्त छलथि। हम अपन माँ केँ व्यस्त देखियन्हि, परंच खुश नञि लगलीह । भरि गामक लोकक एनाइ-गेनाइ लागल छलय। दोसर दिन भोरे हमर बाबूजी अयलाह । हुनका चाय देलाक बाद आ हुनका सँ गप्प केलाक बाद माँ केँ हम प्रसन्न देखलियन्हि। तावत धरि हमहूँ बूझि गेल छलियैक जे आब सत्ते हमर विवाह भऽ रहल अछि आ हमरा दोस्त सब सँ बात सुनइये पड़त आ ओ सब चिढायत तकरा सँ हम नहि बचि सकैत छी। ओहि दिन हमर जन्मदिन सेहो छलय, साँझमे दादीकेँ मोन रहि गेलन्हि आ हमरा साड़ी पहिरय पड़ल।
४
खैर हमर विवाह बड़ धूम धाम सँ भेल आ हम तेहेन लोकक जीवन संगनी बनलहुँ जे हमर जीवन धन्य भऽ गेल।
गामक ओ समय हम कहियो नञि बिसरि सकैत छी। ई ओहि समयक गप्प थिक जखनि कि हमर बहिनक विवाह भऽ गेल छलन्हि आ ओ सभ चलि गेल छलीह। हमर बाबूजी आ छोटका काका हमरा लेल वर ताकय लेल गेल छलथि। आइ-काल्हिक हिसाब सँ तँ हम ओहि समय एकदम बच्चा रही आ शहरमे रहलाक कारणेँ हम गाम घरक बहुत किछु नहि बुझैत छलहुँ। सब सँ बेसी विवाह बैसाख, जेठ आ आषाढ़ मे होइत छैक, अर्थात शुद्ध रहैत छैक। ओहि ज़मानामे अर्थात १९७२ ईस्वी मे गामक रौनक किछु आर रहैत छलय। प्रतिदिन कतो ने कतो विवाह होइत छलैक जाहिमे दादी हमरा लय जयबाक आग्रह अवश्य करैत छलीह। हमहूँ कहियो विवाह नय देखने छलहुँ, पहिल विवाह हम अपन दीदीक (पितिऔत ) देखलियन्हि।
ओही समय मे बेसी विवाह सभा सँ ठीक भेलहा सब रहैत छलैक जाहि कारणेँ हरबड़ी वाला विवाह हमरा देखय कs ओतेक इच्छा नञि होइत छल, मुदा दादी केँ मोन रखबाक लेल हुनका संग कतहु-कतहु चलि जाइत छलहुँ। ओहि समय हम परीक्षा फलक प्रतीक्षामे रही आर कोनो काजो तँ हमरा नहि छल ।
एक दिन हम, माँ आ दादी आंगनमे बैसल छलियै कि एकटा खबासनी आयल आ दादी केँ कहलकन्हि-
" मलिकैन कनि एम्हर आयल जाओ "।
ई सुनतहि दादी ओकरा लग चलि गेलीह, पता नञि ओ हुनका कि कहलकन्हि। कनि कालक बाद दादी हमरा कहलथि-
"चलऽ हम तोरा एकटा सोलकनि सबहक विवाह देखाबैत छियौक"।
हमरा आश्चर्य भेल जे आइ दादी केँ की भेल छन्हि जे ओ हमरा सोलकनिक विवाह देखय लेल कहैत छथि। हम आश्चर्य सँ पुछलियन्हि-
"अहाँ सोलकनिक विवाह देखय लेल जायब "?
दादी मुसकैत हमरा कहलथि-
"चलहि नय अहि ठाम, ब्रम्ह-स्थान लग बरियाती छैक, दूरे सँ खाली बरियाती देखि चलि आयब दूनू गोटे"।
हमारा मोन तँ नहि होइत छलय बरियाती देखबाक मुदा हम दादी केँ संग जएबाक लेल तैयार भऽ गेलियन्हि। ब्रम्ह-स्थान लगे छलय, हम दुनु गोटे जखन ओतहि पहुँचलहुँ तँ देखलियए जे ओतहि बीच मे पालकी राखल आ ढोल पिपही बाजैत छल, जों आगु बढ़लहुँ तँ देखैत छी जे ओहि पालकी मे वर मुँह पर रूमाल देने बैसल छथि आ एकटा बच्चा हुनका आगू मे बैसल छलन्हि, बरियाती सब सेहो बैसल छलैक। खैर हम सब आगू बढिकऽ बरियाती लग पहुँचि गेलियैक। हमरा निक भलहि नञि लागैत छल मुदा पहिल बेर अहि तरहक बरियाती देखैत रही। हम आश्चर्य सँ बरियाती देखैत रही कि कनिये कालक बाद सब बरियाती ठाढ़ भऽ गेलथि आ पिपही ढोल जोर सँ बाजय लगलय। हम सब कनि पाछू भऽ गेलहुँ, जहिना पालकी उठलय कि हमरा माथ पर कियो पानि ढ़ारि देने छल। हम तँ हक्का बक्का भऽ कऽ एम्हर-ओम्हर ताकय लगलहुँ, तँ देखैत छी दादीक हाथमे गिलास छलन्हि। हम कानय लगलियए। ई देखि कऽ दादी हँसैत तुरंत हमरा कहलथि-
“गर्मी छलैक ताहि द्वारे ठंढा कऽ देलियौक।“
हमरा बड़ तामस भेल।
हम सब जखनि घर पहुँचलहुँ, हम कानइत माँ सँ कहलियए-
“ हम कहियो दादी संग विवाह देखैक लेल नञि जायब”।
हमर एकटा पीसी ओहि ठाम बैसल रहथि, कहि उठलीह,
" नञि कानी, तोहरे निक लेल केलथुन"।
हमरा किछु नञि बुझय मे आयल आ बकलेल जकां हुनकर मुंह देखैत पुछलियन्हि- "कि नीक भेल, सभटा कपड़ा भीजि गेल"।
ई सुनि कऽ ओ कहलथि-
"गय बरियातीक जेबा काल पानि माथ पर देला सँ लोकक विवाह जल्दी होइत छैक, ताहि लेल तोरा पानि देलथुन "।
हम आर जलि भुनि कऽ ओतए सँ चलि गेलहुँ। ओकर कनिये दिनक बाद हमर विवाह भऽ गेल।
५
जहिया हमर विवाह भेल ओहि समय हमर घरवाला श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर इंजीनियरिंगक अन्तिम बरखमे पढैत छलाह। हम मैट्रिकक परीक्षा देने रही आ परीक्षा फल सेहो निकलि गेल छल। हमर विवाह आषाढ़ मास मे (दिनांक १३ जुलाईकेँ भेल छल। विवाहक तुंरत बाद मधुश्रावणी छलैक ताहि द्वारे हम गाम पर रही गेलहुँ आ हमर काका मधु-हमर पितिऔत बहिन-के संग राँची चलि गेलाह । काका हमरा कहैत गेलाह जे ओ हमर परीक्षा फल आदि स्कूल सँ लऽ कॉलेज मे हमर नाम लिखवा देताह। तैं हम निश्चिन्त रही। हमर काका नाम लिखवेलाक बाद हमरा खबरि सेहो कऽ देलन्हि। हमर नाम "निर्मला कॉलेज रांची" मे लिखायल छल।
दादीक आग्रहपर हमरा गामपर रहि मधुश्रावनी करवाक छल, बहिनक विवाह सँ अपन विवाह आ मधुश्रावनी धरि करिब दू मास सँ बेसी रहय पड़ल छल। हम पहिल बेर अपना होश मे एतेक दिन गाम पर एक संग रहल रही। ओना तँ हम सब, सब साल गाम जाइत रही, मुदा एक संग एतेक दिन नञि रहैत रही। ओ पहिल आ अन्तिम बेर छल जे हम गामक मजा निक जकां ल सकलियैक।
चतुर्थी आ दहनहीक बाद सब गोटे चलि गेलाह। हिनको कॉलेज खुजल छलन्हि, ईहो- हमर घर वाला- मुजफ्फरपुर, अपन कॉलेज चलि गेलाह। आनक गेलापर ओतेक सुन्न नञि लागल, मुदा जहिया ई गेलाह ओहि दिन बड़ सुन लागल। ई किएक होइत छैक नहि जानि, विवाह होइतेक संग एतेक प्रगाढ़ सम्बन्ध कोना भऽ जाइत छैक जे एक दोसरा सँ अलग रहनाइ निक नञि लागैत छैक। दादी हिनका सँ करार करवा लेलथिन जे मधुश्रावणीमे अवश्य अओताह। दादी केँ तँ हँ कहि देलथि मुदा हमरा सँ कहलथि ओ नहि आबि सकताह। हमर मोन तँ छोट भऽ गेल मुदा फेर सोचलहुँ हमर तँ क्लास छूटिये रहल अछि हिनकर किएक छूटन्हि। हम कहलियन्हि किछु नञि, ओहि समय मे हम हिनकर बातक हँ वा नञि मे जवाब दैत रहियन्हि। ओनाहुँ हम कम बाजैत रही आ हिनका सँ तँ निक जकाँ बाजय मे हमरा एक साल लागि गेल।
गाम पर बाबा दादीकेँ छोड़िकऽ घर मे, हमर माँ बाबुजी आ हम छहु भाय बहिन रही। ओहि समय मे असगरो जे सभ गाम पर रहैत छलाह वा छलीह, किनको ई नञि बुझाइन्ह जे असगर छथि । आ हमर घर मे तँ विवाह भेल छल। रोज भोर साँझ गाम घरक लोकक अएनाइ-गेनाइ लागल रहैत छलैक। एक तँ अहुना जहिया जहिया हम सब गाम जाइ, लोक सबहक एनाइ-गेनाइ लागल रहैत छलैक आ अहि बेर तँ हमर विवाह भेल छल। अहि बेर कनि बिशेष लोकक एनाइ-गेनाइ रहैत छल आ हमर कनि विशेष मान-दान सेहो होइत छल। कहियो कतहुँ सँ खेनाइ आबय कतहुसँ खोइंछ भरय कऽ लेल कियो कहय लेल आबथि , सभ कियो एतबा अवश्य कहथि, ठाकुरजी बड़ जल्दी चलि गेलथि। दादी सभकेँ कहथि-“ फेर जल्दिये अओताह, पंचमी सँ मधुश्रावणी धरि रहताह”। हुनका सभ केँ की बुझल जे ठाकुर जी नञि आबि रहल छथि, हम सुनि कऽ चुप रही, किनको किछु नञि कहियन्हि, माँ तक केँ नञि कहने रही, मुदा जखन हिनकर एनाइ-गेनाइक गप्प सुनि मोन उदास भऽ जाय।
हमर जहिया विवाह भेल हम ओहि समय फ्राक या स्कर्ट ब्लाउज पहिरै रही। अचानक हमरा साड़ी पहिरय पड़ि गेल। जहाँ कियो आबथि, ख़ास कऽ मौगी महाल महक तँ हमरा बजायल जाय। हमर बहिन सभ दौड़ कऽ हमरा लग अबथि कहय कऽ लेल, ओकर बाद हम जल्दी सँ ककरो सँ साड़ी ठीक करवाबी आ तखन्हि हम हुनका सभ लग जाइ। दियादि महक काकी-पीसी सभ गोटेमे सँ बराबरि कियो ने कियो रहैत छलीह, ओ सभ ठीक कऽ देथि, तइयो कैक बेर हमर पैर साड़ी मे फँसल होयत आ हम खसल होयब । जे कियो आबथि एतवा अवश्य कहथि,
" देखियौ कुसुम केहेन लागैत छथि"।
आ देखलाक बाद कहथि-
"बड़ सीरी चढ़ल छैक"।
कतेक निश्छल भावना आ कतेक अपनापन रहैत छलैक हुनका लोकनि मे।
हमर दु तीन टा पीसी सेहो ओहि समयमे ओतहि रहैत छलीह, जिनकर सबहक विवाह ओहि बरख भेल छलन्हि आ ओ सभ हमर संग तुरिया छलीह। भरि-दुपहरिया घर भरल रहैत छल, हुनका सभ संग ओहिना समय बीति गेल आ पंचमी आबि गेल। पंचमी सँ एक दिन पहिने भोरे भोर हमर सासुर सँ भार आयल, ओहि मे सब किछु बिधक ओरिओन सँ आयल छल। भरि गामक लोक केँ दादी हकार दियवा देलथिन, सभ भार देखैक लेल आबथि आ जे देखथि से कहथि, एतेक निक भार किनको ओतहुसँ नञि आयल छलैक, गाम पर सभ गोटे भार देखि कऽ बड़ प्रशंसा करथि, हमरा ई सुनि बड़ निक लागय। जिनका हम कहियो देखने सुनने नय- हुनकर प्रशंसा सुनि हम खुश होइ। हमर दादी सेहो खुशी सँ सबकेँ कहथि-
“अरे महादेव झा ओतय सँ भार आयल अछि”।
हमरा ओहि समय मे किछु नञि बुझाय, हम सोची हमर ससुरक नाम तँ हीरानंद ठाकुर छन्हि, दादी बेर बेर किएक कहैत छथि महादेव झा ओतय सँ आयल अछि। हम पुछऽ चाही किनको सँ मुदा एम्हर ओम्हर मे बिसरि जाइ।
कॉलेज सँ हमरा ई प्रतिदिन एकटा चिट्ठी लिखथि, ओहि मे सब दिन जवाब देवाक लेल लिखैत छलथि, मुदा हमरा जवाब देबय मे लाज होइत छल। एक दिन हमर भाय आ बाबुजी कोनो काज सँ मुजफ्फरपुर जाइत छलाह। ओहि दिन हम पहिल चिट्ठी लिखि कऽ भाय केँ देलियन्हि जे हुनका दऽ देबाक लेल।
पंचमी सँ एक दिन पहिनहि भोर मे भार आयल छल, साँझ मे बाबुजी सब केँ सेहो अयबाक छलन्हि। हमरा अपन संगी आ पीसी सब संगे फूल लोढ़य लेल जयबाक छल। दादी सब ट्रेन सँ हिनकर बाट ताकथि अंत मे हमर बहिन सब सँ कहि पुछओलथिन, हम बहिन सबकेँ कहि देलियन्हि- हमरा किछु नञि लिखने छथि। दादी तकर बाद सँ निश्चिंत भऽ गेलीह आ तखन सँ कहथि जे तोहर बाबुजी सब संग अवश्य अओताह।
साँझ मे सब घाँउझ बान्हि कऽ हमरा ओतहि आयल देखए लय- सबहक हाथ मे फूल डालि आ पथिया छलैक कियो-कियो अपन खबासिनीकेँ सेहो संग मे लऽ लेने छलथि किछु कुमारि सब सेहो संग मे छलथि । हमरो संग दादी एकटा खबासिनी लगा देलथि ओ हमर फूल डालि आ पथिया लऽ लेलथि। हमसब पूरा टोलक सब गोटे गीत गाबैत हँसी मजाक करैत अपन अपन फूल डालि पथिया लेने पहिने गाछी दिस गेलहुँ। दादी हमरा हिदाइत देने रहथि- जे बाँस वा अन्य पैघ गाछक पात कियो तोरय, जाहि जूही कऽ पात आ फूल सभ हम अपने तोड़ी। हमरा बड़ पोल्हा कs कहलथि-
"हे मधुश्रावणी लोक केँ एकय बेर होइत छैक जहिना कहैत छी कयने जाउ"। हमहुँ निक बच्चा जकाँ मुरी हिला कऽ हँ कहि देलियनि।
हम सब, सब सँ पहिने बंसबट्टी दिस बिदा भेलहुँ। बाँसक पात तोड़लाक बाद हम सब जाहि जूही आ अन्य अन्य पात आ फुलक खोजि मे सबहक बाड़ी-बाड़ी जाइ आ सभ तरि सँ फूल सभ बटोरैत जाइ। हमरा तँ बुझलो नञि छल जे कोन - कोन फूल आ कोन-कोन पात चाही। जेना जेना सभ कियो तोड़थि हमहुँ तोरैत जाइ। दादीक हिदाइत हमरा मोन छल। हम पथिया टा नहि उठा पाबैत रही, सेहो हमर पितिऔत बहिन, देयादि महक छलीह - से उठा दैत छलीह। जखन्हि हमरा सभ गोटे कहलथि जे आब भऽ गेल, हमहुँ हुनका सभ संगे आपस हेबाक लेल चलि देलियन्हि। हमरा देखि कऽ ततेक आश्चर्य भेल, हमसभ एक-एक पथिया भरि कऽ पात जाही जूही लऽ लेने रहि।
आब ओ हमरा बसक नहि छलैक जे ओ हम उठा कऽ एको डेग आगू बढितहुँ। हमर पितिऔत बहिन ओकरा अपन माथ पर लऽ कऽ चललीह। रास्ता भरि हँसी मजाक होइत छलैक, ओही मे सँ बेसी मजाक हम नहि बुझैत रही। बिच-बिचमे बटगमनी सेहो हैत छलैक। इहो गप्प होइत छलैक जे किनकर सभहक वर आयल छथि आ किनकर सभहक बाद मे अर्थात मधुश्रावणी सँ पहिने अओताह। हमारो सँ सब पुछथि, हम किछु नञि, बाजी हमरा लाज होइत छल। नहि बजला पर सभ हमर आर मजाक उड़ाबथि, हम अहिना दुखी छलहुँ ताहि पर ई सभ मजाक करथि। कखनो मोन होइत छल बेकारे सभ संग अयलहुँ। हमरा होइत छल हम कहुना घर पहुँची, हम मजाक सँ तंग आबि कऽ अपन बहिन सँ जे पथिया लेने रहथि, कहलियन्हि, अपना सब आगू चलू। हम सभ आगू जल्दी जल्दी बढि रहल छलियैक मुदा कथी लेल हमरा कियो जल्दी जाय देत पकड़ि कऽ बिच मे हमरा सभ गोटे कऽ लेलथि।
ओहिना करैत हम सब मुखिया बाबाक घर लग पहुँचि गेलहुँ । हमर घर ओकर बाद छलैक हम हाथ मे फुलक डाली लेने सभ संग बिच मे चलैत रहि। घर लग पहुँचि सभ गोटे जोर जोर सँ हंसथि हमरा ई कहि आगू कऽ देलथि जे आब हमर दादी देख लितथि तँ हुनका सभकेँ डाँटि परतन्हि। हम आगु आबि जहिना बरामदा दिस बढलहुँ देखैत छी कुर्सी पर बाबा आर बाबुजीक संग ई बैसल छथि आ तीनू गोटे चाह पीबि रहल छथि। हम लाज सँ जल्दी-जल्दी आँगन दिस भागि गेलहुँ।
आँगन पहुँचि देखैत छी दादी आ माँ व्यस्त छथि। एक तँ पाबनिक ओरियाओन होइत छलैक, दोसर जमाय विवाहक बाद पहिल बेर आयल छलथि, तेसर समधियोनि सँ पाहुन भार लऽ कऽ से आयल छलथि। हमरा देखितहि दादी कहय छथि-
"यै अहाँ बिना माथ झपने अहिना बाबा आ बाबुजीक सोंझा सँ आबि गेलहुँ"।
हम किछु नञि बजलियन्हि, हम आ हमर बहिन चुप-चाप कोहबर घर जाय कऽ फुल डालि आ पथिया राखि देलियैक। ओहि समय मे हमरा माथ झांपय मे बड़ लाज होइत छल। हम बाहरि आबि कऽ माँ सँ पुछलियैक,
" बाबुजी मुजफ्फरपुर सँs कखन्हि एलथि"
जकर जवाब दादी सँ भेटल,
"अहांक बाबुजी कॉलेज सँ ठाकुर जी केँ पकड़ि कऽ लऽ अनलथि "।
साँझ मे किछु-किछु बिधक ओरिओन आ गीत भेलैक आ दादी कहलथि सब गोटे जल्दी सुतय जो भोरे उठय परत। राति मे सुतय काल पता नञि हमरा कोना मोन छल, हम हिनका सँ पुछलियन्हि-
"भार कतय सँ आयल छैक "?
हिनका किछु बुझय मे नञि अयलन्हिन्ह, हमरा कहलाह-
"मतलब.... कोन भार "?
फेर मुस्कुरैत हमरा कहलाह-
"अहाँ के हमरा देखि कऽ खुशी नञि भेल जे अहाँ हमारा सँ भारक विषय मे पुछैत छी "।
हम मुड़ी हिला कऽ हाँ कहि देलियन्हि मुदा फेर आस्ते सँ कहलियन्हि-
" दादी सब सँ कहैत छथि महादेव झा ओतय सँ भार आयल छैक। ई सुनतहि जोर सँs ठट्ठा कऽ हँसैत हमरा कहलाह-
"ओ.., अच्छा..., ओ महादेव झा, ओ हमर सबहक पाँज़ि अछि ताहि लेल बाजैत होयतीह"।
तकर बाद हमरा पाँज़िक विषय मे सेहो बता देलथि। हमरा अपना पर हँसी लागल-कहु तँ भोर सँ हम ई सोचि कऽ परेशान छलहुँ जे महादेव झा के छथि।
(अगिला अंकमे)
बलचन्दा
(मैथिली नाटक)
विभा रानी
(मंच पर अत्यन्त मद्घम प्रकाश.. मद्घम स्वर में एक गोट रहस्यमय संगीतक धुन, ब्रह्मांडक प्रतीत कराबइत.. प्रकाश सेहो समाप्त । मंच पर घोर अंधकार। लगभग एक मिनट धरि अंधकार आ पूर्ण शांतिक बाद एकगोट नवजातक क्रन्दन। क्रन्दन तेज होबैत-होबैत अंत में शनै.. शनै विलीन भ' जाइत अछि ..। मंच पर पूर्ण शान्ति आ एखनो अंधकार अछि। पुन: लगभग एक मिनटक बाद एकटा पातर लकीर सनक प्रकाश मंचक एक सीध स' दोसर सीध धरि अबैत अछि। ओ प्रकाश बढ़ैत-बढ़ैत एकटा वृत्त मे बदलैत अछि। एक स्त्रीक ओहि वृत्त मे कोरा मे एकटा गुड़ियाक संगे प्रवेश ..। गुड़िया के सोझा मे राखि ओ ओकरा पाछां ठाढ भ' जाएत अछि आ बाजैत अछि। ओकर स्वर मे प्रसन्नता आ आत्म-गौरवक भाव छै)
स्त्री: हम धरिणी.. हम धरित्री
सीता हम - हम सावित्री
हम द्रौपदी - रम्भा, मेनका
श्रद्घा हम, हमही इड़ा
प्रेमक सुख, विछोहक पीड़ा
समस्त विश्र्व मे हमरे स' त्राण
देवी, माँ, सहचरी, प्राण
देवी हम
दुर्गा, काली, गौरी, शक्ति,
बिनु हमरा, नञि ई सृष्टि
(विद्यापतिक भजन आरंभ होइत अछि.. स्त्री कोरा मे बच्ची के ल' क' ई गीत गबैत अछि। गीतक संगे-संग ओ गुड़िया के दुलारैत-मलारैत अछि।)
जय, जय भैरवि असुर भयाउनि
पशुपति भामिनी माया..
सहज सुमति बर दिउऊ गोसाउनि
अनुगति, गति तुअ पाया।
(भजन समाप्त होइत-होइत ओ गुड़िया के मंचक पाछां राखि अबैत अछि आ फेर सासुक चरित्र मे आबि क' बाजैत अछि। स्त्री सासु, पति आदिक पात्र नेमाहइत अछि।)
सासु एक त' आनि जातिक माउगि आ ओहि पर स' पहिल बच्चा बेटी? किन्नहु नञि।
पहिल संतान त' बेटे।
पति मां, किऐक अहां अतेक अपस्यांत होइत छी? अरे, निचिन्त रहू ने। जे अहां कहबै, सएह हेतै।
स्त्री रोहित, ई हमर आ अहांक प्रेमक प्रथम पुष्प अछि। एना जुनि करू। एना जुनि करू प्लीज़।
पति हमरा लेल मांकेर इच्छा सर्वोपरि। ..चलू, अहांक मोन राख' लेल एकटा बेटीक मंजूरी सेहो। मुदा पहिल बेर त' बेटे।
स्त्री (स्त्रीक नज़रि जेना अपन पिता पर पड़ैत छै। ओ चिकरइत अछि) बाउजी, हमरा बचा लिय'। हमर बेटी के बचा..
बाउजी बेटी, चल हमरा संगे। एक बेर बच्चाक मुंह देखि लेतीह समधीनी जी त' अपनहि ममति उठि एतै।
सासु खबरदार समधि। बेटी के उकसाऊ जुनि। मुंहे देखला स' ममति उपजितिऐक त' अपनही हाथे अपनही तीन- तीनटाक नरेटी नञि टीपने रहितियहुं। ई हमर घर अछि। अहांक बेटी ओ जहिया छली, तहिया छली। आब ओ ई घरक पुतौहु छथि। हुनका अइठांक केदा- कानूनक मोताबिक चल' पड़त, वरना हमर बेटा लेल त' एखनो एकटा के बजाऊ त' दस टा दौगलि आएत। एह..एक त' जाने कत' स' उठा आनल आनि जातिक रांड़ि..
बाउजी मुदा बेटा -बेटी त' अपना हाथक गप्प नञि छै ने?
सासु मर्र। तहन ककरा हाथ मे छै?
बउ. विज्ञानक हाथ मे। डाक्टर लग जाउ। ओ अहां के बता देत, जे बेटा बेटी बिधिक लिखलाहा नञि होइत छै।
सासु हे, हमरा ई डागदरी फ़ागदरी नञि सिखाऊ।
बाउ सीख' पड़त समधीनी जी। वरना भगवानक लेख मानि क' जनम जनम स' लोक आओर स्त्री के एकरा लेल दोषी बनबैत आएल अछि। आ जनम जनम धरि ओकरा बनबिते रहत।
सासु हमरा एतेक कपड़फ़ेंच मे पड़' नञि अबैत अछि। आइ काल्हि डाक्टर आओर के सभ बूझल रहैत छै। हाथ लगबितहिं बता दइत छै जे बेटा कि बेटी..।
बाउ त' समधीनी जी, वएह डाक्टर ईहो बता देत जे बेटा- बेटी जनमाब' मे स्त्रीक अपन कोनो विशेष भूमिका नञि होइत छै। ओ त' मात्र धरती अछि, बीज धारण करएवाली। आ जेहेन बीज, तेहेन फ़सील।
(सासु किछु नञि बाजि कड़गर नज़रि स' बाउजी के आ फ़ेर स्त्री दिस देखैत अछि।)
स्त्री नञि, हम नञि हटाएब। (पति स') रोहित, बेटी स' एतबहि दुश्मनी छल त' कियै केलहुं हमरा स' विवाह? अरे, अहूं त' एक गोट स्त्रीएक कोखि स' जनम लेने छी। अहांक माइयो त' एक गोट स्त्रीए छथि ने.. आ सभ किओ जौं अहिना बेटी स' छुट्टी चाहत त' कोना चलतै ई सृष्टि? कहू ने, कोना क' चलतै ई सृष्टि?
(स्त्री भहराक' खसि पड़ैत अछि। पार्श्र्व स' करूण संगीत। स्त्री रसे- रसे उठैत अछि आ रसे- रसे सामान्य लड़की सनक व्यवहार करैत अछि। ओकर व्यवहार में कॉलेज जाएवाली लड़कीक अभिनय अछि। ओ हड़बड़ी मे अछि। ओ स्कर्ट पहिरबाक, कंघी करबाक, किताब- कॉपी हेरबाक, चप्पल पहिरबाक, बैग कन्हा पर टँगबाक आदिक अभिनय करैत अछि- ई सभ करैत-करैत ओ हबड़ि हबड़ि बाजियो रहल अछि -
स्त्री : माँ, हम कॉलेज जा रहल छी..। बाउजी के कहि देबन्हि आब' लेल..। आ अहँू आएब हमर नाटक देख'। आ हं मां, भौजी के सेहो नेने आयब.. माँ, भौजीक मुंह पर स' कनेक घोघ हटब' दियऊ ने! हे देखियौ- देखियौ, अन्हरिया मे पूर्णिमा भ' गेलीह.. (नकली डर) नञि.. मारू। नञि.. नञि, हम दूध नञि पीब.. बाप रौ, उन्टी होब' लागैत अछि.. बाउजी के कहि देबन्हि ने.. जे हम पी लेलहुँ दूध.. हमर सुन्नर- सुन्नर, नीक नीक मां.. अछा, आब हम चलै छी। हमरा देर भ' रहल अछि। (कहैत-कहैत मंच स' निकलि जाइत अछि। संगीत.. शहनाईक धुन..। मंच पर कोनो कार्यक्रम होयबा सनक हलचल। स्त्रीक उद्घोषिकाक रूप मे प्रवेश। ओ मंचक एक कोना मे ठाढ़ भ' क' उद्घोषणा करैत अछि।)
स्त्री/पु. नमस्कार। हमर कॉलेजक वार्षिकोत्सव मे अपने सभक हार्दिक स्वागत आ अभिनन्दन। मनोरंजन, आमोद आ आनन्दक संगे- संग अई वार्षिकोत्सव मे हम सभ सामाजिक सरोकार स' सम्बन्धित बहुत रास कार्यक्रम सेहो केलहुं अछि, जेना सड़क सफ़ाई अभियान, वृक्षारोपण, महत्वपूर्ण साहित्यकारक सम्मान, वंचित वर्गक नेन्ना लेल विभिन्न क्रिएटिव वर्कशॉप, आदि- आदि। आइ एकरे अगिला कड़ी मे प्रस्तुत अछि, समाजक एक गोट आओर ज्वलन्त समस्या स' अहां सभ के दू-चारि करबइत ई नाटक- बलचन्दा।
(मद्घम अंधकार.. अंधकारे मे गीत ..)
'गै मैना, अंगना ओकरा जइहें
रसे-रसे, कहिहें खिस्सा
जोर स' जुनि बजिहें, गे मैना..
(स्त्री मंच पर अबैत अछि.. संवाद बजैत अछि, जेना मंच पर अभिनय क' रहल हुअए।)
स्त्री धिक्कार अछि ओहि समाज पर, जे बेटी के अस्तित्व मे ऐबाक पहिनही ओकरा नष्ट क' देब' चाहैत अछि.. ई धरती.. ई धरतीयो त' एक गोट स्त्रीए अछि।.. देखियौ एकरा, सभ किओ एकरा दिन-राति धांगैत रहैत छथि, एकर करेज कोढ़ि के काटि-काटिक' बड़का-बड़का इमारत बनबैत छथि.. अमृत स' भरल एकर नदीक धार के अपना मर्जी स' एम्हर स' ओम्हर क' देइत छथि.. एकर कामनाक ज्वार के बाँध मे बाँधि दइत छथि.. मुदा तइयो ई धरती, उन्टे हमरा रौद, पानि, छाँहरि, अनाज सभ किछु दइत रहैत अछि.. कहियौ, जे जौं ई धरती ई सभ नञि करतीह त' हमर सभक अस्तित्व रहत की? हम- कन्या, स्त्री, माय, बहीन, बेटी- हमहूँ त' धरतीए छी.. धारण करयवाली.. आ देखियौ, आइयो कएलहुँए धारण- अई परंपरा के आगाँ बढ़ाब'वाली के..। आब दियऊ एकरा अहि संसार मे- अहांके धारण कर' लेल, अहि सृष्टि के आगां बढाब' लेल। अरे, वीर-विहीन धरती से सृष्टि त' चलि जाएत, मुदा बेटी- विहीन धरती स' सृष्टि नष्ट भ' जाएत। आब दियऊ एकरा। हमरा लागल जे हमर अजन्मल संतानक संगे-संग अई धरती परक अनेक अजन्मल बेटी सभ सेहो अपना- अपना माता-पिता स' कहि रहल अछि (स्त्रीक कविता वाचन बालिकाक स्वर मे।)
हे हमर भावी माता-पिता
हमरा पर नञि
त' करू हुनका आओर पर किरपा
जिनगी जनिक आरंभ भ' क' हमरा स'
समाप्त होइत अछि हमरे पर..
सोचू, जे नञि हएब हम
त' के धोअत भरि-भरि छिट्टा ऐंठ बासन
के खाएत भाईक अवशिष्ट भोजन
कोना नेबाहेम हिंदू धर्मक महादान - कन्यादान!
कोना मेटायत नोचनी हमर सासु, ननद, स्वामीकेर
जौं नञि भेटत दहेज मे डिबिया माचिस केर।
कोना चलत अखबारक कार्य-ब्यौपार
जाधरि छपत नञि,
नान्हि-नान्हिटा स' अपनही लोकक बलात्कार!
आ सोचू कने, नञि हएब हम',
त' कोना मनाएब अतंर्राष्ट्रीय महिला दिवस
बालिका वर्ष, नारी सशक्तीकरण
ककरा राखब पर्दा मे कि बुर्का मे
ककरा जोखब सोनाक सिक्का मे?
हमहीं त' छी अमीना वा सोनाबाई!
तैं, आब' दिय' हमरा, आब' दिय' हमरा,
जाहि स' बदस्तूर चलैत रहय
अहाँक नाम-सुनाम
आओर किछुओ नञि त'
घरे-घर त' पूजल जाएब
जहन लाल चूनर, भरि माँग सेनूर
आ सोलह सिंगारक संग
हमरा अहां रूप कुँवर बनाएब.. '
(तेज संगीत आ तकरा बाद एकदम शान्ति.. स्त्री मंच पर आबि सभके नमस्कार करैत अछि.. हॉल मे थपड़ी..।)
(अगिला अंकमे)
साथी दुखमे न कोय - सुरेन्द्र किशोर झा- गाम कठरा-जिला दरभगाद
एक साधारण मध्यमवगीर्य कुलीना परिवारमेंजन्म (कलयुग मे कुलीन परिवारक परंपराके निमायब बड़ कठिन, तकलीफ होयत परंतु मुंह सं उफ आ आह तक नहिं उच्चारित कय सकैत छी कारण काट वाकील मोकयवला और बेशी मजाक उड़ेताह, कहताह की भेल ? आ कहिकहकहा लगओताहा)।
अस्तु, जन्म आ बालकपन लगभग सभ मध्यमवगीर्य व्यक्तिक परिवार में थोड़बेक उनैस बीस ढ़ग से व्यतीत छोरंत छैक । आ हिनकहु बीतकनि नीकहिं रूप में । माय-बाप आ परिवारक नीक प्रतिष्ठा और आवश्यकतानुकूल पर्याप्त संपति तथा गामक चारिटा जेठ रै यत में सं एक हिनकहु पितामह हेबाक कारण हिनक बाल्यकाल बहुत नीक लाड़ प्यार में बाल-कीड़ा करैत बितलनि ।
पश्चात विद्यार्थी जीवन शुरु भेलनि । किछु हिन गाममे पचकौड़ी मास्टर साहबक ओहिठाम भठ्ठा पकरलाक बाद लहेरियासराय ( दरभंगा ) एलाह । एतय पोख-रिया स्कूल मे प्राथमिक कक्षाक पढ़ाई कय पुन सर–स्वती स्कूल सं मैट्रिक कयल । प्राथमिक कक्षाक पढाई के समय , एक नेगरा मास्टर साहब सेहो गाम सं बलभद्पुर आयल रहथि । सौसे मुहल्लाक विद्यार्थी सब भोहि समय में हुनके सं ट्यूशन पढ़थ्रि इहो हुनका लग जाय लगलाह । विद्यार्थीक बीच स्पर्धा और पढ़बाक प्रति अभिरूचि और ओहि सं एक नीक विद्यार्थीक रूप में इज्जत भेटब ओही ठाम सं शुरु भेलनि।
बाल्यकालवा विद्यार्थी अवस्थाक हर रोमांचकरी समय हुनका आइयो याद अबैत छनि त आंखि सं नोर बहय लगैत छनि । एक ओकर याद आ दोसर जिंदगीक रथक दो सर पहिया के रूप मे भेटल
सुलक्षणा नारी (पत्नी) । आहा हार रे भाग्य हुनकसतत् मुस्कुराईत छेहरा आई एकटा हथिनीक लग मे मृगपुरुष सं बेशी नहि रहि गेल छनि । अस्तु, उपरोक्त किछु बात भावावेश मे कालक्रम के व्यतीत हेबा सं पूर्व लिखा गेल आहि ।
हुनक प्राथमिक शिक्षा बहुत नीक बितलनि । नेंगरा मास्टर साहब (श्री राजेन्द्र झा, सोंथा, बेनीपद्दी ) ओहि समय में कोना दोसर विद्यार्थी के जौं विद्यार्थीक आदर्श बुझबैत रहथि त हिनकहिं नाम लय । हिनका अपन पाठ्यपुस्तकक अधिकांश विषय त बुझले रहनि जे दोसरो बच्चा वाविद्यार्थी सभक जोर सं पढ़ल गेल विषय कंठाग्र भय जाईत रहनि । जाहि सं विद्यार्थी मध्य एवं मुहल्ला में सभ नीक नजरि सं एवं प्यार सं देखन्हि ।
पश्चात् एम. एल. एकेडमी (सरस्वती स्कूल) लहेरिया सराय सं १९७४ ई० में मैट्रिक (११ वलास) पास कयलनि । ओहिवर्ष मैट्रिक में गामक गाम रिजल्टक बाद सन्नाटा पसरल छल।
कारण कोनो गाम में १५ मे सं २-३ त कतहु २० में सं २- विद्यार्थी मात्र पास भेल रहथि । हिनको पर माँ भगवातीक कृपा रहनि मैट्रिक पास केलथि।
पुन: मैट्रिकक बाद घर सं लग हेबाक कारण आई.एस. सी(फिजिक्स, केमिस्ट्रीई एवं गणित विषय ) १९७७ ई० में पास कयल । तावत रिजल्ट सब निकलबा सं पहिनहि एकटा आई.एस. सी. के विद्याथी मात्र के रूप में गाम सं पश्चिम २ कोस के करीबक दूरी पर विवाह बय गेलनि । कारण हिनकर पिताजी एकटा साधारण गृहस्थ रहथिन्ह जिनका मात्र खेती गृहस्थीक आमदनी पर हिनका सं जेठ तीन टा बेटीक विवाहक खर्चक भर परि चुकल रहनि संगहि ईआहिनक छोट भाएक पढ़ाई लिखाई आ पुन: एकट कुमारी बेटीक विवाह-दुरा-गमनक भविष्यं भावी खर्चक बोझ जेहन जीर्ण – शीर्ण बना देने होइन्हि एहि विषय् कें केवल एकटा सत्पुरुष आ स्च्चरित्र नारी मात्र बूझि सकैत छथि । एहने एक महात्मा गृहस्थ ब्राहमनक छ: संतान में सं चारिम एवं प्रथम पुत्र इहो रहथि जे पित्ती-पितियाइन के ओहिठाम रहि बलभद्रपुर मे पढ़ाई – लिखाई केलनि ।
एहि तरहक एकटा गृहस्थ कें अपन तीनटा पुत्रीक विवाह-दुरागमनक बाद पुत्रक विवाह करबाक केहन अभिलाषा रहैत हेतैक अंदाज लगायल जा सकैत अछि । एहने समय में समयानुकूल बहुत लोक हिनकहु ओहिठाम कुटुमैतीक प्रसंग में एलनि । एक-दू ठाम परिवार नीक पसंद परलनि त समगोत्री उहरि गेलनि । पश्चात् एकटा मास्टर साहेब (हेड मास्टर ) सेहो आबि अपन प्रस्ताव (पुत्रीक, जेठपुत्रीक प्रति ) रखलन्हि । हिनक गृहस्थ पिता बिना कोना विशेब मंथन आ मंत्रना के हेड मास्टर साहेबक प्रस्ताव स्वीकार कय लेलनि । हेडमास्टर साहेब कथाक प्रसंग में इहो कहलखिन्ह जे हमरा परिवार में तीन पीढ़ीक बाद बेटी जन्म लेलनि आछि आ ई हमर तीनटा बेटी में प्रथम बेटी थिकीह, जिनकर विवाह तीन पीढ़ीक बाद पायल बेटीक रूप में हेतनि । बस हिनकर सोझ लोक पिता के और की चाही मन गद्गद भय गोलनि एवं कथा स्वीकार कय लेलनि । पश्चात् हिनका (अपन जेठ बेटा) संकहल, बौआ आब खेती सं बहुत नीक आमदनी नहि भय रहल अछि । अहांक छोट भाई सेहो बच्चे छथि आ पढ़ाई – लिखाई बांकीये छनि । संगहि अहांक एकटा छोट बहिन सेहो कुमारि छथि । अहांक पित्ती खर्चक भय सं परिवार भिन्न कय नेने छथि । एहेन हालत मे हेड-मास्टर साहवक बेटी सं विवाह बहुत नीक रहक चाही । अपने बहुत पढ़ल – लिखल, विद्वान हेड-मास्टर साहब छथि तें हेतु बेटीयो के जरूर नीक पढ़ेने लिखेने हेथिन्ह । एहि सं अहांक आगांक पढ़ाई लिखाई में नीक मदद भेटत । ई सब सोचि हम हुनका कुटुमैतीक लेल हं कहि देलियनि ।
हिनका लेल माता-पिताक वचन भगवान रामक लेल माए-बापक वचन सं किछु ओ कमं महप्तक नहिं छल । नीक सौख – मनोरथ सं हिनको बिवाह भेल । बड़ बढ़िया शुभारंभ भेला सुलक्षणा पत्नीक सुलक्षण व्यवहार क्रमवत प्रहर्शित होयत ।
हिनक एवं हिनक पिताक मनोरथ दिनक दिनानुदिन हवा मे पूरब शुरु भय गेल । कहब छैक भगवान सभक आश ओ अपन हिसाब सं पुरबैत छथिन्ह आ हिनकहु मनोरथ आकाशक हवा में पूरब शुरु भेल । ओहि संमय में हवागाड़ी आ टीवी आदि के चलन नहिं छल पर्तु जतेक ठीक-ठाकपरिवारक पढ़य-लिखय पला लड़काक विइवाह भेल रहनि सभकें साईकिल, घड़ी आ एकटा रेडियो भेटब आमं बात रहनि । हिनको दुनू बापूत के बड़ शौक रहनि जे तीन पुश्त के बाद हेडमास्टर साहब बेटीक विवाह केलनि अछि ते एहि मास में नहिं त अगिला मास में त साईकिल घड़ी आ रेडियो देबे करथिन्ह । ओहि समय में प्राय: विवाह सं तेसर साल में द्विरागमन होईत छलैक । तें आश रहनि जे एहि महीना में नहि त आगिला महिना में, अगिलामहिना नहित अगिल पावनिक उपलक्ष्य में । एहि तरहै आशक आ पूरब हवा में पूरब आश्वासन शुह भय गेलनि । परंतु अपनेक लोकनि कें एहि कथाक आरंभहि में कहल गेल अछि जे कलियुग मे कुलीन मैथिल ब्राहमण कें कुलीन रीति सं जीवन बितायब बड़ कटिन होईत छैक । हिनको लेल इएह भेलनि । कस्ट बहुत भेल हेतनि लेकिन मुंह सं उक नहिं कय सकैत छलाह । जीवन छिएक “नाव कागज का गहरा है पानी , फिर भी हर हाल में (दु:ख, अपूरित आश आ सुलक्षणा पत्नी, पैघ बापक पैघ बेटी द्वारा हेय दृस्ति सं देखब सदृश दु:ख तकलीक के सहैत) मुस्कुराकर दुनियादारी पडेगी निभानी ।“ एहि कहावत कें सत्य करैत जिनगी बिताबैत रहलनि । पती द्वारा कहियो सुलक्षणा पत्नी कें सुझावक क्रम में “ आँखो का भूषण कज्जल है ये अनुचित ऐसा कहना है, ललना लोचन में लाज रहे लज्जा नारी का गहना है । पतिब्रता स्वयं तगड़ी होती फिर तगड़ी का क्या करना है, सबसे अच्छी पति सेवा ही भव से तारने की तरनी है । किन्तु आजकल है नही’ इसमे कुछ विश्वास, पतिदासा स्थान पर किये स्वयं पति दास // “ सुनेबा पर हिनक बहिन आ भाउज सब द्वारा हर्ष पूर्वक सुनल गेल परंतु हिनका (सुलक्षणा) द्वारा उपहास सुनबा लेल भेटलनि । तथास्तु उपहास सुनियो भविष्य मे सुलक्षणा (जीवन रूपी रथक दोसर पहिया) के ब्यवहार में सुधारक आश के कोनहुना मनक दु:ख मनहि में राखि (ये ऐसी आग है जिसमें धुआं नही होता, और मणुष्य जलकर समाप्त हो जाता है ।) आश कय स्वीकार कायलनि ।
अस्तु, समय बीत्तेत रहल । विवाह भेलनि । आइ-एस सी के परीक्षा देलनि । आई एस सी पासो केलनि ।
तावत, आई-एस.सी.के परीक्षे देने रहथि, रिजल्ट नहिं आयल रहनि आ ओही बीच कामे-श्वरसिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में बी.ए.एम. एस (एम्.बी.बी.एस के समतुल्य आयुर्वेद-शास्त्रक चिकित्सा पद्धतिक डॉक्टर) वला पढ़ाई शुरु भेल रहैक। एहि में मैट्रिक सर्टिकिकेट वला के लेल सात वर्ष आ आई एस.सी.पास वल के पांच वर्ष पढ़य पड़ैत छलैक । गणितकविद्यार्थी के डॉक्टरी पढ़बाक लेल ई बहुत्त नीक पढ़ाई रहैक । बहुत रास विद्यार्थी ओकर परीक्षा में बैसलाह । हिनकर मित्र प्रो-फेशर सोमदेवजीक बालक वर्त्तमान में डॉक्टर अमित वर्धन हिनकहु ओहि परीक्षा में बैसय लेल सुझाव देलकन्हि इहो परीक्षा देलनि । कंपी-टीशन में पास भेलथि । पुन: इंटरव्यू भेलनि ओहू में ६०-६५ टा चुनल गेल विद्यार्थी में सातम स्थान पर चुनल गेलाह । सेलेक्शन में नाम एलापर अपना परिवार में अपन ईष्ट मित्र में एवं समाज में तथा सासुर सभ में थोड़ेक खुशी त्त जरुर भेल हेतनि ।
पश्चात एडमिशन के समय नजदीक ऐलनि । पिताजी सं एडमिशन लेल पुछलखिन । पिताजी कहलखिन “ बौआ! सात सालक पढ़ाई बहुत लंबा भय जायत । आई.एस.सी के रिजल्ट पर जौ कतहु नौकड़ी पकरि लितहुं तऽ बेशी नीक रहैत ।“ पिताजीक बात सिर-माथ पर लेलनि । पुन: एक दिन सासुरो गेलाह । ओतहु एहिबातक चर्चा अपन ह्र्ड मास्टर ससुरजी लग सेहो केलनि । मुंह खोलिके किछु मांगब सेहो स्वीकार्य नहिं रहनि । आ कतेको उत्सप पर जे नव जमाय के किछु भेटैत छैक ताहू सब में साड़ि – सरहो जि सब मजाक उड़ाबनि जे कलां सं मांगि यौन कलां सं कला वस्तु मागि लिय परंतु हिनका त सोमदेव जीक ओहि-ठाम पुस्तक में पढ़ल रहनि जे राजा अकबरकेसेहो खुदा सं दुआ मंगैत देखि जे गड़ेड़िया ३ गाम मंगय आयल छल ओ किछु नहि मांगि “ बकड़ी ३ गांव खागई के बदला, खुदा देंगे तो लूंगा “ के पाठ पढ़य लगलाह । आ एहिबातक जानकारी राजा अकबर के भेलापर ओ तीन गामक बदला में इ गाम हुनका खयं बजा के ससम्मान देने रहथिन्ह से कहावत चरितार्थ होमय लगैत छलनि । एहित रहै परि स्थिति वशात् ओ बी.ए. म्. एस में एडामिशन नहि होलथि । हुनकर संगी आमितवर्धन जी आई वएह कोर्स कय डॉक्टर छथि सम विद्याताक लिखल कपाड़क फेर - - भाग्य आ कर्मक लुकका छिप्पी खेल पाछां परिस्थितवश नौकडीक तलाश शुरु भेल । एहिक्रम में ईंप्लायमेंट एक्शचेंज लहेरियासराय में नाम द्रर्ज करेलनि । क्रमश: एयर इंडिया में ट्रेनी टेकनिशियन, पुन: एयर फोर्स के दफ्तर कदम कुआं में एयर मैनलेल आ ब्रांच रिक्रूटिंग ऑफिस मुज्फ्फरपुर में आर्मी वा नेवी के भर्ती लेल पयास शुरु केलनि ।
दुबर-पातर शरीर लय जखन ई भोड़ मे १००-२०० के भीड़ में ठाढ़ होथि आ सांझ तक ओहि में सं मात्र २०-३० विद्यार्थी सेलेक्शन लेल बाचथि आ इहो ओहि में बंचल रहथि त ईश्वरक धन्य-वाद बापन के अलावा हिनका मुह पर और कोनो श्ब्द नहि बचनि । कहब छैक निर्बल के बल राम “। हिनकर स्थिति जखन कमजोर होमय लग्लनि, दु:खक स्थिति अपन आ आनके ज्ञान करा दैत छैक । विद्यार्थीये जीवन में विवाह भय गेल रहनि । न अपन जेब खर्च लेल पाई रहनि न सुलक्षणा पत्नी कें श्रृंगारक वसु लेल किछु कय सकैत छलाह । बहुत विलक्षण स्थिति मे ईश्वर पहुचा हेने रहथिन्ह । परंतु शास्त कहैत छथि जे ईश्वर जं दु:ख दैत छथिन्ह त सुखहु दैत छथिन्ह । आ मणुष्यक लेल जौं आधिकांश द्वारा बंद कय दैत छथिन्ह उन्नति हेतु, त त्तैयो ओ सभटा द्वार बंद नहिं करैत छथिन्ह । आ हिनको संग त्तहिन भेलनि । हिनक मकरन्दा वाली बहिन हिनका आग्रह पर हिनका बहिनो के आग्रह केलखिन जे जेठ साढ़ थिकाह । हमर छोट भाई थिकाह । हिनका अही अपने संग लय जैतियन्हि । किछु अपनेक प्रयास । मददनैकड़ी लेल कय देवनि किछु अपने करताह ।
भगवान कराथीन्ह कतहु अपना पैर पर ठाढ़ भय जेताह तऽ नीक हेतनि । ओहि समय ओ सोनपुर जी आरपीमें जमादार (ए.एस. आई ) रहथि । दु:खक ओहि घड़ी में जग सं परेशान डूबैत कैं ईश्वरक कृपा सं तिनकाक सहारा भेटलनि । बाबूजी थोड़ बहुत जेब खर्च हेतु कोनहुना इंतजाम कय द्इये दैत छलखिन्ह । बस प्तहि सं एयर फोर्स लेल, पटना एक दूबेर गेलाह । ओतय पता लगलनि जे एअर फोर्सक बहाली में एखन दू-तीन महीनाक देरी छैक । एहि कम में ओ एक दिन अपना बहिनो के आग्रह केलखिन जे हुनका गाम में एक सज्जन जे बिहार होमगार्ड में नौकड़ी करैत रहथि कहने रहनि जे मुजफ्फरपुर में चक्कर मैदान में आर्मीक भर्ती होईत रहैत छैक से हमरा जेबाक अनुमति दितौंह । हिनकर बहिनो बहुत प्रसन्न मन सं आशीर्वाद दैत हिनका जेबाक इंतजाम केलनि । एकटा सिपाहीक संग (डयूटीवला सिपाही) मुजफ्फरपुर गेलाह । सिपाहीजी चककर मैदानक कोनापर हिनका पहुंचा देल जतय सं ओ रिक्रूटिंग ऑफिस पहुंचलाह । ओतय बच्चा (विद्यार्थी) सब लाईन में लागि गेट के अंदर जाईत रहथि । इहो लाईन (कतार) में लगलाह । गेट पर पहुंचलापर हिनका सं मौट्रिकक सर्टिफिकेट मंगल-कनि । ई पुरना समय बला हाथ सं लिखल अटेस्टेड कापी सर्टिफिके टक देखय देलखिन जाहि पर हिनका गेट सं अंदर नहिं जाय देलकनि जे ऑरिजिनल सर्टिफिकेट होने पर ही गेटके अंदर जाने दिया जाता है । अस्तु, ई आग्रह केलखिन्ह जे मेरे पास घर पर मूल सर्टिफिकेट भी है जिसे देखकर किसी ने यह अटेस्ट किया है अत: आपके अफसर-इन-चार्ज से मिलना चाहता हुँ । थोड़ेक कालकबाद अफसर इं चार्ज सं भेट करा ओल गेल । हुनकहु वएह बात कहल –खिन्ह । ओ पूछलखिन्ह –कहां तक पढे है । सर-आई एस.सी पुन: प्रतिशत आदि पूछि अगिला सप्ताह आबय कहलखिन्ह । ई आग्रह केलसिन्ह जे सर आज फिजिकल चेक अप हो जाने से एक सप्ताह का समय बच जाता । हुनकर कहब रहनि – घबराने की । कोई बात नहीं है । अभी काफी समय है आपका सबकाम हो जायगा । क्रमश: फीजिकल आदि के छंटैया सब सं ईश्वरक कृपा सं २००० में सं ३०० बंचल विद्यार्थी में इहो रहलथि । पुन: लिखित परीक्षा भेलैक । मेरिट लिस्ट में एके.साही प्रथम रहथि आ हिनकर दोसर स्थान रहनि । भत्तीं भेलाह । नेवी एं नौकड़ी भेलनि ।
एहि दरभ्यान एकटा लक्ष्मी रूपी बालिका क पिता सेहो बनलाह । विवाहक तेसर वर्ष में नौकड़ी में चलि गेलाक कारण द्विरागमन नर्हि भेल रहनि ।
संगहिं कहियो विवाहक बाद सासुर-सुलभ कोनो सौख –मनोरथ पुरलनि वा नहिं तकर हेतु कहियो सुलक्षणा पत्नी कें किछु नहिं ककलसिन्ह जे हुनका कोनो तर्हक तकलीफ नहिं होईन्ह बस ईश्वरक लीला बूझि अपन कर्त्तब्य पथ पर ईश्वर के याद करैत आ मन में धारणा खुदा देंगे तो लूगा “” क्या जानेगा अमीर फकीरी में मजा है वो कांटा भी है फूल जो मालिक ने दिया है । रखने कर्म पथक हर एक कांट भरल मार्ग के हँसैत पार करैत रहलाह । भगवानक कृपा होईत छनि त कांट भरल-मार्ग सेहो फूल सं भरल भय जाईत छैक यथा “गोपद सिंधु अनल सितलाई, गरल सुधा रिपु करहिं मिताई”। अथवा कांटक दर्द देबो करैत हेतनि त जिहवा पर तैयो निकलैत रहनि “ कांटा भीहै फूल जो मालिकने दिया है ।“
समय बीत्तैत रोलनि । विवाहक तेसर साल बितलनि । पतो नहि लगलनि आ चारिमो साल बीत गेलनि आ चारिम में द्विरागमन मिथिला में नहि होईत छैक । पांचम वर्षक सेहो प्रारंभ भेल ।
अकस्मात हुनकर दु:खक समय के माय-बापक अलावा ओ एकमात्र सप्तुरुष सहारा भगवानक प्यारा भय गेलसिन्ह आ (हमरा मित्र) हुनका सभ कें एहि मरा संसार (मृत्युलोक) में छोड़ि विदा भय गेलसिन्ह । हुनका घरक लोक ई शोक संदेश समय पर नहिं देलसिन्ह जे दु:खक संदेश अल्पवयस के एकसरमें रहयवला के नहिं देल जाय । परंतु सत्य कतहु नुकायल रहलैक अछि । लगभग दू महीना पश्चात् हुनका सूचना भेटैत छनि जे अहांक प्रिय बहिनो आब नहिं रह्लथि । हुनका काटूत खून नहिं बला हालत भय गेलनि । शोकाकुल अवस्था में तुरंत छुट्टी लथ अपन प्रिय बहिन के सात्वना देभय एवं भेंट करय गेलाह । ओही समय में पता लगलनि जे छुट्टी बढ़ेलापर द्विरागमन सेहो भय सकैत छनि । मात्र ढ़ाईपर्षक नौकड़ी में रिस्क लय द्विरागमन हेतु छुट्टीक दरखास्त डाका तार द्वारा भेजि द्विरागमन करभोलनि । पुन: वापस ड्यूटी ज्वाईएन केलथि । वहुत रास परेशानी एहि सभक कारण उठाबय पड़लनि परंच हँसि के सहैत रहलाह । क्रमेण समय बीतैत रहलनि । बहुत रास सुख –दुख बोगलनि । समय बीतैत रहल ....
पुन: एकटा पुत्र रत्न सेहो प्राप्त भेलनि । समय बीतल
- - पुन: एकटा कोर्स करय हेतु गुजरात गेलाह । ईच्छा भेलनि जे आब दूटा बच्चा सेहो भय गेलनि तें सपरिवार ट्रेनिंग करय गुजरात जाथि माँ-बाबूजी सं आदेश लेलनि । आदेश स्वीकृत भेलनि सहर्४ष । स्स्सु-ससुर सं शिष्टचाखश पूछलसिन ओहो लोकनि आदेश देलखिन्ह । दिल्ली में पत्नी, पुत्र एवं मित्रादि के संग पर्यटन करैत गुजरात पहुचलाह । ओतय पहुंचि घर गृहस्थीक सामान सब खरीदैत – खरीदैत बहुत थाकि गेलाह आ ६ अगस्त के ट्रेनिग आरंभक पहिले दिन जौडिस के शिकार भय अस्पताल एडमिट भेलाह । उपचार भेलनि ठीक भेलाह । सिक लीव भेटलनि । भेटलनि । छुट्टी में गाम त नहिं गेलाह जे अपन पढ़ाई करताह आ संगे अपन एकमात्र साढ़ जेपढ़य में नीक नहिं रहथिन्ह जखन कि सर्टिकिकेट मैट्रिक फर्स्ट डिविजन रहनि आ हुनका जखन एक दिन गामसभक सहज भाषा में गाड़ि पढ़ने रहथिनत आभास भय गेल रहनि जे हिनका में बहुत आमूल सुधारक आवश्यकता छनितें श्वसुरजीक देल पछिला सुख-दुख के बिसर हुनका आग्रह केलखिन्ह जे जौ हुनका नेवी में भेर्त्ती करेबाक ईच्छा होन्हि त भेजि दियौन्ह । हुनकर स्स्ढ़ एबो केलखिन्ह । पहुंचला उत्तर एकदू दिन बाद ओ अपना साढ़ के पहुंचनामा चिठ्ठी अपना बबूजे कें लिखि भेजबा लेल कहलखिन्ह । अंग्रेजी में । अंग्रेजीमें ओ पत्र लिखबा में असमर्थ रहथि । पश्चात् हुनका पत्रक पता अंगरेजे में लिखय कहलखिन्ह सेहो समर्थ रहथि । एहन आई- काल्हिक मैट्रिक फर्स्ट डिविजनक विद्यार्थी होईत छथिन्ह । अस्तु अपन पढ़ाई शुरु केलनि । दू-चारि दिन कें,दीय विद्यालय सभक शिक्षक लग ट्रयूशन सेहो पढ़य गेलाह । बाद में बहिनो के कहलखिन जे हमरा हुनका सभक पास भेजय सं नीक अपनहिं पढ़बितहुं । अस्तु ...
ओ भोर सांझ हुनको पढ़ाबथि, अपनहु पढ़थि आ नया-नया परिवार लय गेल रहथि से हुनको सभ पर ध्यान देथि । कोनहु तरहे सभय बीतैत गेल । हुनकर साढ़ जे अंग्रेजी में बाबूजीक नाम पता नहिं लिखि सकैत रहथि, अंग्रेजी मीडियम सं नेवीक आरटी-किसर अप्रेंटिश के परीक्षा पास कयल । हुनकहु मिहनत के यश भेलनि । ट्रेनिंग सेंटर में २ बैच म् रिजठ्ट निल भेल रहैक जहि कारण हिनका खूब यश भेलनि । सासुर में साढ़क मित्रवर्ग आ ग्रामीण कें आश्चर्य होइन्ह जे ई अंग्रेजी मीडियम सं कोनो परीक्षा पास केलथि ।
एम्हर सुलक्षणजीक सुलक्षण व्यवहार अपन सुप्तावस्था सं जागृतावस्थाक तरफ प्रवेश कय रहल छथिन्ह जकर परिचय समय पर अपनेक लोकनि के भेटत ।
कर्म और भाग्यक क्र्म समय के संग चलैत रहैत छैक । हिनकहु संग चलैत रहलनि । छोट-आ पैघ बहुत रास सुखाअ दु:ख एलैन, अकझो-ड़लकनि आ बीति गेलैन । एही क्रम में हिनका श्वसुरजी कें कुसियार, रस, राव आ गृड़ आदिक बिजनेश लेल पैसाक आवश्यकता भेलनि जे ई कहि के लेलखिन जे एहि धंधा मे पूजी फंसेला सं नीक फायदा छैक आ हुनका सेहो किछु लाभ भेटतनि । अस्तु, मानव-मानवक मदद करथि (यदयपि कलियुग मे नीक लोककें ई शुभ कार्य तकलीफो दैत छनि ) त कोनो गलत नहिं भेलैक । पैसा लेल सेहो बहुत समय बीतल । बीच में हुनकर भगिनी (जे बहिनो हिनका पु:खक समय के एकमात्र सहारा रहथिन्ह हुनक दू पुत्री आ एक पुत्र महक प्रथम्,अ पुत्री ) बढ़ि के विवाह योग्य भय गेल रहनि । आ ई ओहि विवाह में अपन भ्यागीदार बननाबा लेल पूर्ण प्रयलशील रहथि संयोगवशाहहिनकर श्वसुर के सेहो अपन दोसर पुत्री लेल बर ढूंढ़बाक आवश्यकता रहनि । संगहिं हिनका छुट्टीक दरम्यान ओचाहथिन्ह जे अधिक सं अधिक लोक सं संपर्क कयल जाय जाहि सं ओ अपन जमायक प्लस प्वाईट स फायदा उठा सकथि । खैर एहि बात सब लय हिनका हुनका सब सं कोनो शिकायत नहिं रहनि आ इहो त अपन भगिनी खातिर प्रयास में लगले रहथि । एहने एह प्रसंग में हिनक श्वसुर भावी समधि जी कें बुझाबैत रहथिन्ह जे अपनेक बालक के हम नेवी में नौकड़ी धरा देवनि । देखैत छिएक जे पहिले त हमर जमाय नेवी में रहथि त ओ हमर बालक के एवं एकटा अपन ममियौत के नौकड़ी धरेलखिन । आब त हमरा बेटा आ जमाय दूनू नेवी में छथि तें हमरा लेल नेवी में नौकड़ी धरायब कोनो कठिन नहिं अछि। आदि-आदि आश्वासन दय रहल छलखिन । बाद में इहो ओहि लड़का पिता के सभक सोझे में कहल खिन, श्रीमानजी वर्तमान में हमरा एकटा भगिनी छथि आ हमरा दु:खक समय में एकमात्र सहारा हुनकर पिताजी (स्वगीर्य) रहथि । तैहेतु ओहि भागिनी सं जे पर विवाह करताह तनिका लेल पढ़ा लिखा के नेवी लेल तैयार कख हमर पहिल कर्त्तब्य थिक । हिनका लोकनिक बेटी-जमाय सब लेल हम थोड़-बहुत मदद मात्र करबनि आ पूर्ण रूपेण हमर प्रयत्न अपन भगिनीक वरक लेल रहत एहि बात के ध्यान मे राखि अपनेक लोकनि हमरा भगिनी के लेल सेहो वर दूंढ़बा में मदद करब त बड़ पैघ कृपा होयत । बस बरक गृहस्थ बाप के लेल “ प्रत्यक्षं किं प्रमाणं “ वला वाक्य सुनबा में आबि गेलनि आ ओ लोकनि हिनकर वाक्य आ शब्द कें ब्रहमवाक्य सदृश बूझि हिनका परोक्षे में हिनका भगिनी सं विवाह कय देल । थोड़ेक समय लेल बदनामी के दौड़ सेहो शुरु भेल हिनका पर थोड़ेक आरोप दबले जुबान सं हिनकर सासुरक लोक लगेलखिन्ह । जकर ई सोझ जवाब देलसिन्ह जे ई जतय-जतय हुनका (श्वसुर-जी) संग गेलखिन्ह सभठम इएह कहलखिन्ह जे भगिनीक वर हेतु प्रयास हमर कर्तव्य थिक आ हुनकर पुत्रीक वरक प्रति प्रयास हुनका सभक काज छियनि जाहि में हम सीमित मदद मात्र स्वेच्छा सं ईच्छा होयत त करबनि । ई वाक्य ओ सबठाम कहल खिन्ह आ ओकरे ओ परिणाम छल । परंतु हुनक सुलक्षणा पत्नी जे पुर्वहु में शास्त्रो क्त सभ बात सुनि परिहास मात्र करैत छलखिन्ह आ पति कें प्रताड़ित करबा में कोनहु दुश्मन सं कम प्रयास नहिं केलखिन्ह । बार-बार ओ अपन पत्नी के उपरोक्त यथार्थ बात के बुझबैत रहलखिन्ह लेकिन ओहि सुलक्षणा पत्नी पैघ बापक बेटी एवं पैघ पाई वला भाईयक बहिन के अंधकार रूपी अहकारी एवं नास्त्रिक बुद्धि पर कोनो सुधारात्मक प्रभावन्हिं पड़लनि । क्रमश: समय त सुख सं कटय वा दु:ख सं एहिना बीतैत रहैत छैक । हिनका अपन भगिन जमाय हेतु देल वचन कें पूरा करबा में जे तकलीक भेलनि विधाता ककरहु दोसर के नहि देथिन्ह त नीक ।
समय अपन रफ्तार सं बीत रहल छल । किनकहु जखन कनेक समय नीक बीतय लगलनि त इच्छा भेलनि जे गाम में कोनड मेन रोड सभक कात में दू चारि कठ्ठा जमीन लितहुं त नीक छल । ओ अपन मनक बात अपन पिताजी कें कहल खिन । पिताजी हुनकर बात के मानि, जखन एकटा जमीन मेनरोडक कात में पता लगलनि त हिनका सूचित केलखिन्ह । ई ओहि जमीनक बात पिताजी सं कय, कीमत के तैयारी केलनि आ श्वसुर जे के जे पाई काफी समय पूर्व देने रहथिन्ह ताहि में सं एक तिहाई कम सं कम एखन वापस करय कहलखिन । हिनक श्वसुर देवता हिनका वचनो दय देलखिन जे हँ अपनेक विशाखापटनम सं गाम आऊ हम पाई रखने छी । ई गाम गेलाह । बाबूजी सं सब तरहक बात केलनि । बांकी पाई श्वसुरजीक आश्वासन वला पाई छोड़ि ई विशाखा पट्टनम सं लैये गेल रहथि । केवल कनेक पाई जे श्वसुर जी हिनके पाईयक एक तिहाई वापस करबाक वचन देले रहथिन्ह । ओतय गेलापर नहिं देलसिन । मन में दु:ख त बड़ भेलनि, मुदा करताह की” ये ऐस आग है जिसमें धुआं नही होता । छुट्टी गेनाई-एनाई किराया आदि सभ ब्यर्थ गेलनि । सुलक्षणा पत्नी कें कलियुग में जाही तरहक आनंद भेटय चाही वएह भेटलनि”जे नीक भेल “। कहि उत्तर देलखिन्ह कारण जे ओ रोड कातक जमीन त हुनकर पति के कपार पर रहितैन ओहि सं पत्नी आ बाल बच्चा कें कोन सुख? कहब छैक जे कोनहु बात वा वस्तु अपनेक कोन रूपमें ग्रहण करैत छिएक ताहि पर निर्भर आछि । आ हुनका श्वसुर के दोसरहिं क पाई (जमा ईयक पाई) सं घर लग में कोनो घरारीक बात मात्र होईत रहैत ताहि लेल सुरक्षित रखबाक रहनि । जखन कि ओ घरारी ओहि समय में बिकेबो नहिं केलैक । हुनका अपन पाई सं नहिं आपितु जमाई के पाई लेल सेहो जमाई के धोखा देबा में किनहु टा संकोच नहिं भेलनि । आ पत्नी सुलक्षणा जी तैयो हुनके (अपना पति कें) प्रता-ड़ित करबा में कोनो कसर नहिं बांकी रखलनि । अस्तु , समय बितत्ते जाईत छैक । परंतु हुनको घायल हिरणी जकां दर्द त रहबे करनि । ओ अपन दर्द व्यक्त नहिंकरैतव् छथि लाज सं, तैं दर्द नहिं होईत छनि से बात त नहिं । दर्द त बहुत बेशी होइत्ते हेतन्हि । अस्तु “लगा दे आग में पनि जवानी उसको कहते है मिटा दे बाप की दौ-लतफुटानी उसको कहते है।“ ओहो लोकक मुह सं सुनैत रहथि लेकिन ओ ईज्जदार ब्यक्तिके मुह सं उच्चरित नहिं होईत रहनि तें हिनकर उक्ति रहैन्ह “ लगा दो आग में पानी जवानी उसको कहते हैं, मिटा दो खुद अर्जित दौलत को फुटानी उसको कहते हैं “। अनकर कमाई पर फुटानी सब केयो कय सकैत छथि । लेकिन फुटानी लेल स्वयं द्वारा ओतेक धन बिना किनको आश्रय के अर्जित (मावक प्यार – एक असीमीत स्नेह भरल ममता पत्नीक प्यार-बघबा दुलार, ताहू में जौं अज्ञान रूपी अंधकार में डूबल पैघ बापक बेटी होथि)
कय सकी ई इज्जतक विषय थीक । तें हेतु अपन परिश्रम सं “ विद्या ददाति विनयं, विनयात् यात् पात्रतां, पात्रत्वां धन माप्नोति, धनात् धर्म: तत: सुखं “एहि मार्ग पर चलबाक पूर्ण प्रयास कहि कयलनि । बहुत रास विवाह द्विरा गमन के बाद दोसर वर सभकें प्राप्त सुख सब देखि हिनकहु आश- मनोरथ जे ओहि समय पूरा नहिं भेल रहनि अपन परिश्रमक बले आ भगवतीक कृपा सं प्राप्त कयलनि । एकटा घड़ी, शाईकिल आ रेडियो ओहि समयक साधारण मणुष्यक साधारण आवश्यकता, माय-बापक साधाअरण आवश्यकता सब के पूरा करैत, इहो अपन आश पुरौलनि । बाद में पत्नी जी कें पैघबापक पैघबेटी के सेहो ईच्छा भेलनि जे आई काल्हि आ चवन्नी – अठन्नी सभक प्रचलन कम भय गेल छैक तें एकटा चेन लितहु । हुनका लेल पत्नी जीक मनक बात शिरोधार्य भेलनि । दून गोटे बंब ई में बाजार गेलथि और अपन आर्थिक स्थिति के देखैत एकटा चेन लेलथि । बाद में पायल, कान आदि महकजे कोनो पस्तुक आश भेलनि से ई सामर्थ्य के हिसाब सं खरीद-के पत्नी के आश-मनोरथ सेहो पुरेलखिन । कारण जे पैघ बापक बेटी मात्र हेबा सं आश-मनोरथ नहिं पूरैत छैक अपिति पैघ बाप वा एकटा गरीब गृहसथ किसान अपन बेटी के हाथ उठाकऽ की दैत छथिन ताहि सं आश मनोरथ पूरैत छैक । यथा घर में खीर बेनेबा काल खीर में चीनी कतेक दैत छिएक, मिलबैत छिएक ताहि अनुकूल खीर मीठ होयत न कि घर में दू पट्टा पीनी चीनी राखल अछि ताहि सं खीर मीठ अपने आप भय जेतैक । आ एहि छोट बातके सेहो बुझबाक लेल थोरबहु ज्ञान-चक्षु जरूर खूजल हेबाक चाही । पर अफसोस जे हुनकर आभिमानी अज्ञानी बंद आंखि एहि सब में सं कोनो वस्तु बात केन सूझय देलकनि न बूझय देलकनि । कारण जे हुनकर त एकमात्र उद्देश्य कलियुग के अपन जवानी पर हेबाक कारण “ पतिदासा स्थानपर किए स्वयं पति दस “ के साबित करबाक रहनि । पति के देह में आगि लगा अपन हाथ सेकैत छथि । जलन सं की दर्द होईत छैक ओ जलनाहर बूझैत छथिन न कि हाथ सेकनिहार । ताहू में जखन कलियुग अपन पूर्ण शैष्ठव पर हो । यथा=६६ हे उधो बैरी नंद किशोर, प्रसवपीड़ की बांझ परेखत, रवि की बूझत चकोर, हे उधो बैरी नंद किशोर ॥
आद-स्वाद की मरकह जानय, पर हित जानय चोर । अबला (कमजोर) के दुख अबला जानय, अबला घर में शोर, हे उधो तें हेतु जलनाहरक दु:ख, जलनाहरे टा बूझि सकैत छथिन्ह आगि सेकनिहरि हुनकर – सुलक्षणा पत्ने नहिं ।
तथापि समयत देवी-देवताक लेल सेहो जखन नहि रूकल त हिनका सन अबला ब्राहमण लेल सेहो जखन कलियुग अपन पूर्ण जवानी समय अपन गति सं बीतैत रहल ।
हिनका लेल त नियति बनि गेल रहनि जे “ नाव कागज का गहरा है पानी, फिर भी हर हाल में (सभ दु:ख के सहितहु) मुस्कुराकर दुनियादारी पड़ेगी निभानी । “
दुनियादारी कोनहुना हॅसैत बिता रहल रलथि । ताहू में जौं किनको दुश्मन किछु तकलीफ दैत छ्थिन्ह त ओ ओतेक अधिक कष्टदायी नहिं होईत छैक जतेक अपनक देल कष्ट होईत छैक । कष्ट दैत छैक ।
कारण, करैला मणुष्य के जे तीत लगैत छैक त ओतेक तकलीफ नहिं होईत चैक । परंतु जं खीड़ वा रसगुल्ला करैला सदृश तीत लागत त शायद अपनेक लोकनि ग्रहण (स्वीकार) नहिं करबैक । परंतु ओहो सहैत घर यें शाति बनल रहय ताहि लेल शांत रहलाह । लेकिन हुनका पत्नी के भूत अपन अलगे दिशा में नेने जा रहल छनि । हिनका पत्नी के लेल हिनक पिता, माता, भाई आ बहिन बड़ पैघ बोझ छथिन्ह । हिनकर (पत्नीक) पिता, माया, भाय (अपन सहोदर वा पितियौत) या बहिन जे किछु कहनि से सही थिकैक । ओ झूठहू बाजथि, हिनका पति कें ठकि के बेवफूफ बनाबथि, हिनका पति कें घोखा दय अपन ऊंगली सीधा करथि ओ हिनका लेल ईज्जतक बात थिक । कारण हिनक पति के अपमान त हुनकर पति मात्र के प्रभावित करैत छनि । हिनकर ईज्जत पर ओहि सं कोनो फर्क नहिं पड़ैत छनि ई हिनकर बुद्धि के अज्ञान रूपी विशेषता छियनि । नैहर में किनको विवाअह होनि, उपनयन हो, श्राद्धहो, मुंडन हो, द्विरागमन हो भांज पूरब हुनक पत्नी के वड़ पैघ आवश्यक काज भय जाईत छनि । ओहि सभ विषय मे चर्चा लेल हुनका लाख बुझेलाक बावजूदहु सभ सं नीक समय जखन बच्चा दूनू सांझ या भोर में पढ़य लेल बैसल रहतनि, तखनहिं पढ़ाई जाहि सं बाधित हो, ताही समय में हिनका घर में अट्ठा-बज्जर खसायब सबसे बेशी प्रिय छनि
परिणाम आई हुनकर दूनू बच्चा में सं एकोटा ओतेक नीक परिणाम नहिं पाबि सकलथि जकर संपूर्ण परिवार आ समाज के आशा छल । हिनका लग आबि जाहि समय में हिनकर उप्तात एतेक जवानी पर नहिं छल हिनकर सहोदर भाई (पत्नीजीक भाई) एवं एकटा ममियौत भाई मात्र हुनकर निर्देशन में पढ़ाई कय आशातीष सफलता पौने छथि । आ जखन हिनकर अपन बच्चा के पढ़ि-लिखि नीक बनबाक समय एलनि त हिनकर उत्पातक जवानी ओहि लक्ष्य के दूर खिसकबैत चल गेल । आई ओ अपन भाई-वा-बहिन के ओहिठाम कोनो काज में जेबा में कोन कथा जे ओकर चर्चा करबा में भय के अनुभूति करैत छथि । जाहि में मन सं नहिं बाल्कि नाम मात्र लेल गाम जेबाक आग्रह करैत छनि, जेबा लेल ब्याकुल भय जाईत छैथ । बूझल छनि जे ओ पिति यौत मुंडनक समय में एक पेट भोजन के अलावा भोर में चाय-जलपान सेहो नहिं देथिन्ह । बच्चाक लेल सभटा कपड़ा बच्चाक भाई लेल सभटा कपड़ा आ बिधिगत सामान सब भेजिये देने रहथिन आ तैयो बिध पूरय लेल गाम जेबाक लेल पति कें एकटा दास सं सेहो बेशी परेशान कय देने रहथिन ।
ओहिठाम जखन हुनकर माँ हुनका संग में रहथिन्ह तखन हुनका उपर आ हुनका माँ के उपर लांक्षणा उपराग और जुल्म कतेक केलखिन तकर वर्णण जतेक कयल जाय से कम होयत । आवेश में आबि, जवानीक अज्ञानी शब्द मे एतेक तक जे “ रौ पापी , हमरा लग किएक सुतैत छैं, अपना माय लग सूत, आई सं तोहर माय तोहर बहू छियौ, हमरा लेल तू मरि गेलै, हम सिदूर धो लैत छी आ चूड़ी फोरि लैत छी, तोहर भाय सेहो किएक ने माय के खेबा खर्चा जोड़तौक, एही रंडी केहम भार नहिं उठेबै आहि-आदि ततेक तांडव नृत्य ई भोर – सांझ पसारब शुरु कय देलखिन जे अंत में अपना नौकड़ी में छुट्टी नहिं भेटला पर हुनके एक पितियौत भाई के सग, ई अपन माय के अश्रुपूरित नेत्र सं टिकट कटाय विदा केने रहथि । ओ दिन आईयो हिनका याद भेल पर आंखि भरि जाईत छनि । तैयो जिन्दगी छिएक । आखिर मौतहु त एतेक आसानी सं किनको नहिं भेटैत छनि । तें खूनक घूट पीबि जीवैत रहलाह, सब दुख सहैत रहलाह । एहिना समय बीतैत रहल । हिनका लेल घर में चारि आदमी के आश्रम छनि जाहि में मोटा-मोटी एक आदमी के भोजन एक्स्ट्रा ( अतिरि क्त)बनितहि छनि । ओकोनो अतिथि अभ्यागत के एला –पर भोग होईत छनि नहिं त फेकल जाईत अछि । परंतु हिनक माँ ओहि भोजन के एतय ग्रहण करितथिन्ह त ओहि में हिस्सेदारीक प्रश्न आनि बज्रपात कए दैत छलखिनच् । हिनक पिता ओहि सं किछु वर्ष पूर्वहिं गत भय गेल रहथिन जे कथाक प्रसंग मं बिषय याद नहिं रहबाक क्रम में छूटि गेल अछि । जावत तक हिनकर पिता जीवैत रहथिन्ह, हिनकर माता-पिता एक ई ज्जत दार गृहस्थक जिंदगी बितौलनि जे आईयो गाम मे एक आदर्श मानल जाईत आछि । परंतु समय बड़ बलवान होईत छैक । यमराज बाबा एक भाद्र शुक्ल नवमी तिथि केहिनक पिता के उठा लेलखिन । तकरा बादहि सं त कलियुग अपन विकराल रूप हिनका आ हिनका माँ के देखाअयब शुरु केलनि जरर उपरो त्क परिणाम – भोग – लनि । एहिना जिंदगी कखनहु दुखक पहाड़ के शीर्ष पर त कखनहु मध्य में त कखनहु सं योगवशात् किछु शांतियहु सं बीतैत रहल । परंतु एहि क्रम में शांतिके क्षण बहुत कम आयल जहि कारण किछु निश्चित दिशा तय करब बड़ कठिन रहलनि । तथापि कालक गति चलैत रहल, समय बीतैत रहल । पुन: एक बेर गाम में सपरिवार छुट्टी गेलाह । आ पत्नी सं आदेश प्राप्त भेलापर माय के दिल्ली अन-लनि । किछु दिन समय बड़ बढ़िया बीतल । परंतु शांतिक दिन रास्ताक पड़व सदृश कमहिं दिन चलल आ जे जननी हिनका जन्म देने रहथिन्ह, ओहि अबला विधवा जे मड़लापर अपन पतिक छोड़ल जमीन कपाड़ पर नहिं लय जेतीह तनिका पुन: प्रताड़ना पहिले जकां शब्द सब सं शुरु भय गेल । एक दिन भेल, दू दिन बीतल, रोज-रोज एहने आतंक होइंत गेल आ बढ़ैत गेल । अंत में एक दिन हिनका मजबूर भय अपन माय कें अपन छोट भाई लग पहुंचाबय पड़लनि । एहि दुख के एकटा माय, एकटा संतान आ एकटा इंसान मात्र समझि सकैत छथि । एकटा हैवान, सुलक्षाणा नहिं, आ इएह भेल । हुनकर सुलक्षणा व्यवहार नहिं सुधरलनि । हुनकर स्कूल कालेजक पढ़ाई के दरम्यान पढ़ल पंक्ति “ ऐ खुदा तू मौत दे पर बदनशीबी नहिं दे “ एतय फेल भय गेलनि । ओ बदन-शीबक जिन्दगी जीबैत रहलाह आ आइयो जीब रहल छथि । बाद में हुनकर माताक वृद्ध शरीर, पति पहिनहिं स्वगीर्य भय गेल छलखिन, बेटा-पुतोहु के एहने ब्यवहार, एहि सभक कारण बहुत अधिक टूटि चुकल शरीर बहुत कमजोर भय गेलीह । दुखित रहय लग-लीह, होट-बेटा पुतहु गाम में संगमें रहबाक कारण यथासाध्य सेवा शुश्रुषा केलखिन्ह । लेकिन हिनका तीन महीना तक छोट भाई समाद दैत रहि गेलनि । भैया अबियौक-भैया अबियौक , आब माय नहिं बचतीह, मात्र किछु दिनक मेहमान रहि गेल छथि । भौजी कें एतहि रहय पड़नि, हिनका हरदम हरपल सेवा शुश्रुषा के जरूरत छि । ई आबि अबैत छी, काल्हि अबैत छी, करैत रहलखिन । पत्नीजी कहियो जोर नहिं देलखिन जे अहां जैयोकमाताजी थिकीह । हमहू (पत्नी जी लेल) जायब आखिर ओ हमर सासूजी थिकीह । हम हुनकर सेवा करबनि । किछु एहि तरहक सुविचार कलियुगक प्रभाव नहिं उव्पन्न होभय देलखिन । अंत में हुनक माँ बेटा-बेटा करैत, ३ महीनातक असाध्य तकलीक सहैत छ: सतान में सं हिनका सन भाग्यशाली (कलियुगक अनुकूल) संताअन के मुंह बिना देखने वा देखौने एहि नश्वर शरीर के त्यागि चलि गेलीह । हाय रे हिनकर भाग्य ।...
बादमें ई हुनकर श्राद्ध कर्म हेतु अग्नि संस्कार सभक बाद गाम पहुंचलाह । जीवैत में दूटा मधुर बोल वा दू बेर पैर जांति हुनकर सेवा कय आशीर्वाद लितथि से नहिं कय सकलाह । मुदा बाद में मायक श्राद्ध बड़ बढ़ियाँ जकां केलनि । सौंसे गाम में यश भेलनि, सुलक्षणा पत्नीजी सेहो एहि में केनो विरोध नहिं कय पूर्ण सहयोग केलखिन अ पूर्ण यश भेलनि । परंतु की एहि उक्तिक परिचय नहिं देलखिन्ह –कभी प्यासे को पानी पिलाया नहिं । बाद (मृत्यु उपरांत) अमृत पिलाने से कया फायदा ॥ ओ हिनक सासुजी रहथिन, विधवा रहथि, आबला रहथि, हिनकर पतिक माताजी रहथिन्ह । हुनका संग ई ब्यवहार की हिनका अपना बच्चा पर नीक प्रभाव देतन्हि । की ई कुकुरक कथा जे हुनका सूखल हड्डी चिबाबय लेल देल जाईत छनि, हुनका हड्डी सं नहिं अपितु अपने मुंह सं खूब खूननिकलैत छनि आ मालिक, हड्डी देनहार कहैत छथिन, हँसी करैत अओर चुबाऊ देखियौक केहन ताजा मौंस अछि । ली? की हुनका (सुलक्षणा जी) अपन समर्थ बेटा – बेटीक अछैत एहि तरहक करबाक चाही ? की हुनक पितियौत भाईक बच्चाक मुंडन के उपलक्ष्य में गाम जायब, सासुजी के दुखित अवस्था सं बेशी जरूरी रहनि । परंतु के सोचत? ककरा फुर्सत छैक ? एहिना मूर्ख लोकनिक गति छोईते रहतनि । आ अंत में पश्चाताप-पश्चाताप-आ पश्चाताप मात्र हेतनि जखन स्वयं ज्ञान हेतनि आ बजतीह-“अब पछताये होत क्या चिड़िया चुग गई खेत “।
ई लिखल गेल अछि कलियुगक हरओहि व्यक्ति के लेल जे आम खेबाक अभिलाषा सं नीमक गाछ रोपैत छथि|
डा.रमानन्द झा ’रमण‘
जन्म 02 जनबरी,1949,शिक्षा-एम.ए.,पीएच.डी.,
आजीविका-भारतीय रिजर्व बैंक, पटना (सेवा निवृत्त)।
प्रकाशन:
मौलिक- समीक्षा
1.नवीन मैथिली कविता,1982,2.मैथिली नऽव कविता,1993,3.मैथिली साहित्य ओ राजनीति, 1994,4.अखियासल, 1995,5.बेसाहल,2003,6.भजारल,2005.,7.निर्यात कैसे शुरू करें? हिन्दी- रिजर्व बैंक, पटनाक प्रकाशन
सम्पादित
8.मैथिलीक आरम्भिक कथा, 1978 समीक्षा,9.श्यामानन्द रचनावली,1981,10.जनार्दनझा‘जनसीदनकृत निर्दयीसासु (1914) आ पुनर्विवाह(1926),1984
11.चेतनाथझाकृत श्रीजगन्नाथपुरी यात्रा (1910),1994,12.तेजनाथ झाकृत सुरराजविजय नाटक (1919), 1994,13.रासबिहारीलाल दासकृत सुमति (1918),1996,14.जीबछ मिश्रकृत रामेश्वर (1916),1996,15.भेटघॉंट (भेटवार्ता),1998,16.रूचय तँ सत्य ने तँ फूसि,1998
17.पुण्यानन्द झाकृत मिथिला दर्पण(1925), 2003,18.यदुवर रचनावली (1888-1934) 2003
19.श्रीवल्लभ झा(1905-1940)कृत विद्यापति विवरण, 2005,20.मैथिली उपन्यासमे चित्रित समाज, 2003,21.पण्डित गोविन्द झाः अर्चा ओ चर्चा,1997 प्रबन्ध सम्पादक,
22.कवीश्वर चेतना, 2008, चेतना समिति, पटना
अनुवाद
23.मौलियरक दू नाटक,1991, साहित्य अकादमी,24.छओ बिगहा आठ कटठा,1999, साहित्य अकादमी,25.मानवाधिकार घोषणा Universal Declaration of Human
Rights २००७( यूनेसको),26.राजू आ’ टाकाक गाछ, 2008 रिजर्व बेंक -वित्तीय शिक्षा योजना के अन्तर्गत
पत्रिका सम्पादन-सह-सम्पादन
1.प्रयोजन,1993 (मासिक),2.कोषाक्षर (हिन्दी)1982,3.घर बाहर,त्रैमासिक, चेतना समिति, पटना
कार्यशाला
1. National Workshop on Literary Translation,- Dec 20.1991 to January12,02,1992, Sahitya Akademi, New Delhi
2.Bonds Beyond the Borders ( India-Nepal civil society interaction on Cross Border issues) -Consulate General of India, Birgunj, Nepal and B.P.Koirala India-Nepal Foundation-May 27-28, 2006
2.Preparation of Intensive Course in Maithili- ERLC, Bhubneswar
जूरी
6th Inter National Maithili Drama Festival,1992 -Biratnagar, Nepal
पुरस्कार- सम्मान
1.जार्ज ग्रियर्सन पुरस्कार, 1994-95,राजभाषा विभाग,बिहार सरकार, मैथिली नऽव कविता पुस्तक पर,2.भाषा भारती सम्मान, 2004-05 छओ बिगहा आठ कटठा,(अनुवाद) CIIL, मैसूर
डा.रमानन्द झा ‘रमण‘-मिथिलांचलक दलित समाजमे लोकगाथा :मैथिली लोकगाथामे दीनाभद्री
01 एवं 02 मार्च, 2009, भागलपुर
राष्ट्रीय संगोष्ठी-मिथिलांचलक दलित समाजमे लोकगाथा
मैथिली लोकगाथामे दीनाभद्री
हमर प्रतिपाद्य अछि-मैथिली लोकगाथामे दीनाभद्री । राष्ट्रीय संगोष्ठीक विषयक मूल शीर्षकमे दू टा महत्त्वपूर्ण पद,मिथिलाक स्थान पर मिथिलांचल तथा समाजक स्थान पर दलित समाज अछि। मिथिला अथवा समाजसँ सम्पूर्णताक जे बोध होइत रहल अछि, से एहिसँ नहि होइत छैक। किन्तु ई दूनू शब्द सम्प्रति नव अथर्वत्ता प्राप्त कए लेलक अछि। ई अर्थवत्ता थिक निर्वाचनीय लाभक हेतु मिथिलांचल एवं दलित समाजक नामक उदघोषपूर्वक प्रयोगक चालि । आब तँ दलितमे महा शब्द
जोड़ि महादलितक उत्थानक गप्प किछु राजनीतिक दल करय लागल अछि। वस्तुतः इहो फुटाएबे थिक। आ’’ प्रायः एही हेतु दलितक पक्षधर नेतालोकनि महादलितक विरोध कए रहल छथि। किन्तु जे हो, एहिना जँ क्रम चलैत रहल तँ मिथिलांचलमे महादलित समाजक लोक गाथाक पर संगोष्ठी सेहो आवश्यक भए जाएत।
ई लोकतन्त्रक युग थिक। लोकतन्त्रक सुदृढ़ताक हेतु जाहि कोनो तत्त्वक सभसँ अधिक महत्त्व अछि, से थिक
लोकशक्तिक गरिमामय प्रतिष्ठापन। लोकशक्तिक गरिमाक प्रतिष्ठापन लेल समाजक प्रत्येक सदस्यके ँअपन गौरवमय
इतिहासक परिचय कराएब आवश्यक अछि। संगठित लोकशक्तिक उदय आ‘ विस्तारक ओहि परिचयसँ सम्भावना बढ़ि जाइत छैक। प्रतिफल होएत विकासक बाटक प्रशस्त होएब। विकाससँ सुख समृद्धि अबैत अछि। लोकक क्लान्त मुखमण्डल पर सुख
समृद्धिक फूही निरन्तर होइत रहैत छैक। सुख समृद्धिक निरन्तर फूहीसँ सन्तोषक हरितिमाक स्थायी विस्तार भए जाइत अछि।जागरण, संगठन, सामाजिक दायित्वबोध आ’ समन्वित राष्ट्रीय दृष्टिक विकासक अनेक बाट अछि। ओहि बाटमे प्रमुख अछि, स्वर्णिम अतीतक पराक्रमी व्यक्तिक अवदानक परिचय द्वारा लोकके ँउत्प्रेरित करब। मिथिलाक सांस्कृतिक इतिहास पराक्रमी महापुरुषक गौरव गाथासँ परिपूर्ण अछि। गाथा पुरुषक विषयमे जनबाक अनेक स्रोत अछि। ओ स्रोत सभ लिखित आ’ अलिखित दूनू अछि। जे लिखित अछि पढ़ल-लिखल लोक तकरा पढ़ि पढ़ि सामाजिक बोधसँ अभिभूत होइत रहलाह अछि आ’ जे लिखल नहि जा सकल, से लोक कंठहिक माध्यमे आइ धरि सुरक्षित रहि प्रेरणाक अजस्र स्रोत प्रवाहित करैत आबि रहल अछि। एहिठाम चर्चाक विषय समाजक ओहने पराक्रमी लोकक प्रेरणादायी व्यक्तित्व अछि जनिकर गौरव गाथा अलिखित रहल। एम्हर आबि किछु तँ लिपिबद्ध भेल वा भए रहल अछि। किछु काज असम्बद्ध वर्गक लोक द्वारा भेल अछि तथा शिक्षाक
विकासक उपरान्त सम्बद्ध वर्गक लोकहुक द्वारा प्रारम्भ कएल गेल अछि। ओहीमे सँ एक अछि दीनाभद्री लोकगाथा। जकर पराक्रमी नायक छथि भ्रातृद्वय दीना आ’ भद्री।डा. वीरेन्द्रनाथ झा (मैथिली लोक महाकाव्यक आलोचनात्मक अध्ययन,शोधप्रबन्ध,1987, ल.ना.मिथिला विश्वविद्यालय ,अप्रकाशित) मैथिलीक जाहि नओ गोट लोकमहाकाव्यक उल्लेख कएल अछि, ओहिमे अछि-1.दीनाभद्री,2.दुलरादयाल,3.नइका बनिजारा,4.विहुला,5.रूइया रणपाल, 6.लवहरि कुशहरि,7.लोरिक,8.विजयमल्ल एवं 9.सलहेस।
किन्तु एहिमे विजयमल्ल मैथिलीक लोकगाथा नहि थिक, ओ भोजपुरीक लोकगाथा थिक। एकर प्रकाशन जॉर्ज
अब्राहम ग्रियर्सन (जॉर्नल आफ दि एसियाटिक सोसाइटी आफ बंेगाल, 1889-ै
1889&Songs of Bijai Mal)
कएने छथि। एकरा स्पष्ट करैत डा. आशा गुप्त (जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन और बिहारी भाषा साहित्य, 1970)े लिखने छथि जे भौगोलिक दृष्टिसँ अवश्य विजै मलक कथा पटना-गयाक सीमापर स्थित दायापुर पारवती नामक स्थानसँ सम्पृक्त एवं तेली जातिमे बहुप्रचलित
कहल गेल अछि।उपर्युक्त लोकगाथा सभमे मिथिलाक विभिन्न जातिक उत्पीड़न एवं ओहि उत्पीड़नसँ त्राणकर्ताक पराक्रमक जयघोष अछि। ओ नायक सभ पराक्रमी जातीय नेताक रूपमे मान्यता पाबि स्मरणीय एवं पूज्य भए गेल छथि। ई लोकगाथा सभ कहिआसँ अस्तित्वमे अछि, एकर रचना के कएलनि, हुनक काल की थिक, से सभटा तँ अज्ञात एवं अस्पष्ट अछि, परंच एहि
लोक गाथा सभसँ ई तथ्य अवश्य फरिछाइत अछि जे समाजमे विषमता छलैक, शोषण आ’ उत्पीड़नक उजाहि निरन्तर उठैत रहैत छल। वैयक्तिक भावना एवं मानवीय मूल्यक महत्त्व छलैक। बाहुबलक समक्ष आन सभ बल महत्त्वहीन भए जाइत छल। आ’ ओही बीचसँ एक जातीय बाहुबलीक जन्म होइत छलैक जे अपन पराक्रमक बल पर जातीय अस्मिताक अनादरकार्ता एवं शोषक वर्गक विरोधमे तनि कए ठाढ़ भए जाइत छलाह।ओ सभ अपन-अपन जातिक प्रतिष्ठा आ’ जातीय व्यवस्थाके ँ अक्षुण्ण
रखबाक हेतु आजीवन सक्रिय एवं सतर्क रहैत छलाह एवं जातिक प्रतिष्ठा, उन्नति एवं अवनति आदिक सभ छारभार ओही नेता सभ पर निर्भर छलैक। एहि प्रकारक जातीय भावनाक विकास एकपक्षीय नहि छल। जातीय नेता जेना अपन जातिक हितचिन्ता सदिखन करैत रहैत छलाह, ओहिना हुनक जातिक समस्त सदस्य ओहि नेताके ँअपन उद्धारक एवं संरक्षक मानैत आदर एवं सम्मानक पद दैत रहल।हुनक शौर्य एवं पराक्रमके ँ गाबि-गाबि प्रेरणा ग्रहण करैत रहल। जे ँ कि एकर संक्रमण मौखिक होइत छलैक, जातीय नेताक गौरवगाथा, लोकगाथाक प्रतिष्ठा पाबि गेल । जेना कि लोकगाथाक विषयवस्तुसँ स्पष्ट अछि, दीनाभद्रीमे मुसहर, दुलरा दयालमे गो ँढ़ि, नइका बनिजारामे वैश्य, लोरिकमे अहीर, सलहेसमे दुसाध, बिहुलामे बनिआँ जातिक गौरव गाथा अछि। आनहु लोकगाथामे जातीय नायकेक गाथा अछि। सभ लोकगाथाक विषयवस्तु जाति आधारित अछि। मुदा लवहरि कुशहरिके ँ कोनो जातिक जातीय लोकगाथा मानब
उपयुक्त नहि होएत। तखन ई अवश्य जे मलाह जातिक कंठमे सुरक्षित लवहरि कुशहरिक रचयिता मलाह जातिक प्रतिभा सम्पन्न कोना व्यक्ति अवश्य छल होएताह। उपर जाहि लोक गाथाक नामोल्लेख कएल अछि एवं जाहि-जाहि जातिक नेताक पराक्रमक गाथा ओ सभ थिक, से जाति सभ आजुक लोकतन्त्रक शासन व्यवस्थामे दलित समाजक आख्या पाबि गेल छथि। दोसर जे बिन्दु एहि लोक गाथा सभक सन्दर्भमे महत्त्वपूर्ण अछि, से थिक दैविक शक्तिक स्थान पर लोकशक्तिक प्रतिष्ठापन। एहि लोकगाथाक नायकक प्रेम पराक्रम, एवं शौर्यक उदघोष अलौकिकताक संग भेल अछि। किछुमे देवत्वक प्रतिष्ठा सेहो भए गेल छैक। दुलरा दयालक मानसिंहक राजगद्दी प्राप्त करबाक कथा, बिहुलाक द्वारा अपन पतिके ँ जिअएबाक कथा, लोरिक द्वारा हरबा बरबाक पराजयक कथा तथा सलहेस एवं दौना मालिनक प्रेम कथामे अलौकिकताक अंश पर्याप्त अछि। देवत्व प्राप्त करबाक दृष्टिसँ सलहेस, दीनाभद्री आ’बिहुलाक गाथा विश्ेाष उल्लेखनीय अछि। दुसाध द्वारा सलहेस, मुसहर द्वारा दीनाभद्री एवं बनियाँ द्वारा बिहुला लोकगाथाक नायकके ँ देवत्व प्राप्त छनि। ध्यान देबाक थिक जे बिहुलाके ँ छोड़ि समस्त लोकगाथा नायक प्रधान अछि। केवल बिहुला लोकगाथा नायिका प्रधान छैक। एहि तीनू लोकगाथामे
सलहेस एवं दीनाभद्रीक अपेक्षा बिहुलाक क्षेत्र सीमित अछि। मुदा व्यापक क्षेत्र एवं उपलब्ध लोकगाथामे विशाल आकारक होइतो लोरिकके ँ अहीर जातिमे देवत्व प्राप्त नहि छनि। मैथिलीक एहि लोकगाथा सभमे कतेको प्रकारक साम्य भेटैत अछि। ओ साम्य सभ थिक घटना साम्य, कथानक साम्य, नाम साम्य आ’ लोक नायकक दृष्टि एवं पराक्रमकमे साम्य। कतेको लोकगाथामे सलहेस एवं बाघेसरी छथि। दूनूमे पहिने विरोध आ’ पछाति मेलसँ आततायीक विनाश होइत अछि। एकरा शैव( शैलेश) एवं शाक्त( बाघेश्वरी@सिंहवाहिनी)क मतवादीक विवाद एवं वर्चस्वक सन्दर्भमे सेहो देखल जा सकैछ। साम्यक किछु उदाहरण प्रस्तुत अछि। दीनाभद्री जोरावर सिंहके ँ परास्त कए चैन होइत अछि तँ लोरिक हरबा बरबाके ँ पराजित कए। हिरया तमोलिन आ’ जिरिया लोहारिन जहिना
दीना भद्रीक परकिया नायिका थिक तहिना लोरिकमे चनैन अछि। फोटरा नामक गीदर जेना दीनाभद्रीमे अपन करामात देखबैत अछि, ओहिना नइका बनिजारामे तिलंगा बाछा। लोरिकमे जेना सनिका मनिका भागिनक मदति लेल जाइछ ओहिना सलहेसमे कारीकान्तक। अंकक समानता तँ सभ लोकगाथामे भेटत। रचनात्मक स्तर पर सुमिरन ओ बन्हन सेहो प्रायः सभ लोक गाथामे अछिए।
आखिर दीनाभद्री लोकगाथामे एहन कोन बात छैक जे एक पुश्तसँ दोसर पुश्तमे अदौकालसँ संक्रमित होइत आइ
धरि लोकक कंठमे सुरक्षित अछि। की ई आजुक राजनीतिक शब्दावलीमे एक दलित जातिक नायकक गाथा थिक, ते ँ ? की ई लोकगाथा हमरालोकनिक मातृभाषा मैथिलीमे अछि, ते ँ? की एकर संकलन एवं प्रकाशन जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन सन विश्वविश्रुत विद्वान कएलनि,ते ँ? हमरा जनैत दीनाभद्री सन लोकगाथाक महत्त्व एवं युग-युगसँ लोक कंठमे सुरक्षित रहि प्रेरणाक स्रोत बनल रहबाक मूल कारण थिक, एहि लोकगाथामे अनुस्यूत ओ जीवनमूल्य जे लोकके ँ अन्याय, अत्याचार, शोषण
आदि सामाजिक दुर्गुण एवं विकृतिसँ संघर्ष करबाक प्रेरणा दैत अछि। एहिमे अभिव्यक्त ओ जीवनमूल्य जे लोकक स्वाभिमान एवं प्रतिष्ठा पर आघातकर्ताक आचरणक विरुद्ध ठाढ़ होएबाक शक्ति आ’ साहसक स्रोत भरैत रहैछ । एहिमे अभिव्यक्ति हो जीवनमूल्य जे व्यक्तिगत लाभहानि, एवं सुख-सुविधाक त्याग एवं सामाजिक प्रतिष्ठा, आदर सम्मान हेतु संघर्षक लेल लोकके ँ तैआर करैत अछि। वैदिक ऋषिक वचनक अनुसार ओहि जीवन मूल्यक महत्त्व छैक जे कुलक लेल शरीर, गामक लेल कुल,
जनपदक लेल गाम एवं आत्माक लेल पृथ्वी त्याग करबाक प्रेरणा दैत हो। दीनाभद्री लोकगाथाक नायक दीनाराम आ’ भद्रीक चरित्र एहि लोकोपकारिताक एक सर्वोत्तम उदाहरण थिक। दीनाभद्री लोकगाथाक नायक द्वयक लोककामी आचरण एवं संघर्षक किछु उदाहरण प्रस्तुत अछि। दीनाभद्री निर्धन अछि, भैातिक सुख-सुविधा प्राप्त नहि छैक। अपन बाहुबल पर विश्वास कएनिहार दीनाभद्रीमे स्वाभिमान कूटि-कूटि कए भरल अछि। जखन गामक शक्तिसम्पन्न व्यक्ति धामी ई कहैछ जे परोपट्टाक आन-आन लोक ओकर खेतमे काज करब गछि लेलक आ’ ओहो दूनू भाइ ओकर जन भए खेतमे काज करौक तँ दीनाभद्री साहसपूर्वक एवं स्पष्टताक संग अस्वीकार करैत कहि दैत अछि-कबहु नऽ कैल खुरपी कोदारक बोनि,
कहियो नऽ जानिऔ हो धामी, पँचा उधार।ष्
हरिन सूगर मारि जोगिया कैल गुजरान। ( पृ.सं.637)
समाजमे शोषण व्याप्त छलैक। शोषक आ’ अत्याचारीक नजरिमे गरीबक मान मर्यादाक कोनो मोल नहि छल। प्रभुत्व सम्पन्न लोक ककरो घर आङनमे घूसि गरीबक बहु बेटीक मानमर्दन कए सकैत छल। प्रायः एहनहि सामाजिक स्थितिमे कहबी बनि गेल होएत, गरीबक बहु सबहक भौजी। दीनाभद्री धामीक आतंककारी व्यवहारपर आक्रोश प्रकट करैत कहैत अछि- कौन गरू परलौं हो धामी, बड़ भोरे छे ँकल दुआर
अपन बहु बेटीपु रखलन्हि घर सुताय
हमर बेटी पुतहु देखलन्हि नाँगट उघार। ( पृ.सं.636)
धामी, जे समाजक प्रभुत्वशाली वर्गक प्रतिनिधित्व करैत अछि, तकर निर्भीक विरोध समाजक एक दबल कुचल वर्गक सदस्य द्वारा होएब, एक महत्त्वपूर्ण घटना थिक एवं दीनाभद्रीक चरित्रक ई विश्ेाषता नैसर्गिक एवं प्रेरणादायी गरिमा प्राप्त कए लेलक अछि।
दीनाभद्री अपन यात्राक क्रममे ताहिर मियाँक हबेलीक पुछारी करैत अछि। ताहिर मियाँ केहन एकवाली आ’आतंकी छल,जे ओकर नामेसँ धीयापूता सेहो डराइत छलैक। ओसभ दीनाभद्री के ँ चेतबैत अछि-
रे बटोहिया, ताहिर मियाँ गामक गुमस्ता छैक, ओकर नाम
केओ ने बाट बटोही धरैत अछि। ( पृ.सं.650)
ओही ताहिर मियॉँक नोकर छी गुलामी जट। गुलामी जट अपन मालिकक सह पर समाजक निर्बल लोकके ँ
उत्पीड़ित करैत अछि। अपमानित करैत अछि। लोकके ँ अपमानित करबाक अभ्यासी गुलामी जट दीनाभद्रीक अपमान सेहो कए दैत अछि। मुदा तकर फल ओ तुरत्ते पाबि जाइत अछि। गुलामी जट दीनाभद्रीक पराक्रमक समक्ष ठठि नहि सकल, पराजित भए गेल। तेसर उदाहरण अछि जोराबर सिंह सन दुराचारी, समाज विरोधी एवं शोषकक प्रतिकार एवं अन्त करब। एहि प्रसंग
डा.जयकान्त मिश्र विस्तारसँ लिखल अछि।
(In the last chapter Gulami Jata helps them to conquer
Jorabar Singh, a Rajput, who used to enjoy all new brides first when he dares to attack the
marriage march of the spirits of Dina and bhadri (The Folk Literature of Mithila)
एहिठाम देखबाक थिक जे दीनाभद्री समाजविरोधी, अत्याचारी आ’ दुराचारीक विरोध एवं प्रतिकार कोना करैत अछि।तेसर बेर जखन फोटरा गीदर दीनारामके ँ पटकि हत्या कए दैत अछि आ’ अलक्षित रूपे ँ सलहेस भद्रीके ँगाम घूमि जएबाक परामर्श दैत छथिन्ह तँ भद्री हुनक परामर्शके ँ अस्वीकारि, कहैत अछि, जेना जेठ भाइ मुइलाह तहिना हमहु मरब। अर्थात अन्यायीक समक्ष
आत्मसमर्पण नहि करब भनहिँ प्राणक आहुति देमय पड़ैक।
मरब दूनू भाइ कटैया
जाहि मँुहेंँ धैलक फोटरा गीदर जेठ भाइ के
ताहि मुँहेँं धरौ हमरा के । ( पृ.सं.641)
इएह एकजुटता एवं भ्रातृप्रेम दीनाभद्रीके ँ समाजमे दीन दुखीजनक विरुद्ध व्याप्त शोषण, अत्याचार, दुराचारक प्रतिकारक शक्ति प्रदान करैत अछि। कहि सकैत छी दुराचारीके ँ पराजित करबाक रणनीतिक सफलताक कारण इएह भ्रातृ प्रेम आ’ एकजुटता थिक।
एकटा आओरो बिन्दु एहिठाम विचारणीय अछि। जेना नामहिसँ स्पष्ट अछि, गुलामी जट गुलाम थिक ताहिर मियाँक।
ताहिर मियाँ सेहो ककरो गोमास्ता अछि। ओ गुलामी जटके ँ पोसि रखने अछि। ताहिर मियाँ ओकर माध्यमसँ आतंकक जाल पसारि रखने अछि। किन्तु जखनहि गुलामी जटके ँज्ञात भए जाइत छैक जे दीनाभद्री ओकरहि समाजक लोक थिकैक एवं ओ दीनदुखी एवं पीड़ितक सहायता एवं रक्षा लेल अपना के ँ सदिखन तैआर रखैत अछि, तथा दलित-पीड़ित वर्गक सम्मान एवं
प्रतिष्ठाक रक्षा करब ओकर जीवनक मूल उद्देश्य थिकैक तँ गुलामी जट दीनाभद्रीक सहयोगी भए जाइत अछि एवं जोरावर सिंह सन दुराचारीक संहारमे बढ़ि चढ़ि भाग लैत अछि। मिथिलाक सांस्कृतिक उत्कर्ष एवं विशिष्टताके ँ रेखांकित करैत रमानाथ झाक कहब अछि जे मिथिला-जनपद -भाषामे संगीतक परम्परा अत्यन्त प्राचीन कालहिसँ आबि रहल अछि। मिथिला जनजीवनक एक गोट अभिन्न अंग रहल छैक ओकर संगीत। मिथिलाक संस्कृति संगीतमय अछि। ओ एही गीत सबहिक द्वारा मैथिल जातिक भावाभिव्यक्ति आदिअहिसँ होइत आएल, जहिना विद्यापतिक पश्चात तहिना ओहिसँ पूर्वहु मिथिलाक देशी साहित्य गीतमय छैक। (विविध प्रबन्ध)।
रमानाथ झा मिथिलाक समान भाषा, समान संस्कृति ओ समान भौगोलिक क्षेत्रक निवासीके ँ मैथिल जातिक संज्ञा देल अछि। जकर साहित्यक एक महत्त्वपूर्ण विशेषता छैक गीतात्मकता। ओना, प्रारम्भहिमे कहल अछि जे मैथिल जातिअहुसँ एक दलित समाजके ँ बिलगाओल गेल अछि, जे वर्तमान युगमे राजनीतिक लाभजनित ध्रुबीकरणक मैथिली साहित्यमे अनुगुंज एवं साहित्यिक राजनीतिक क्षेत्र (पेालिटिकल स्पेस) निर्धारणक प्रयास थिक तथापि ओहि लोकगाथा सभमे जे वैशिष्ठय छैक, मैथिल संस्कृतिक विशेषता तँ थिके। जेना कि नामहिसँ गाओल जएबाक स्पष्ट बोध भए जाइत छैक, मैथिलीक अन्य लोकगाथा जकाँ दीनाभद्री सेहो मैथिल संस्कृतिक अनुरूप गीतात्मक अछि, ओ मैथिल संस्कृतिके ँ प्रतिनिधित्व करैत अछि एवं मैथिल संस्कृतिक अभिन्न धरोहरि थिक।
लिखित रूपमे सुरक्षित साहित्यक पाठक शिक्षित वर्गहि टा भए सकैत अछि। एहन लोकक संख्या कम छलैक, ते
ँओसभ समाजक शेष वर्गक पाठक@श्रोतासँ अपनाके ँ कात रखबा लेल लिखित साहित्यके ँ शिष्ट साहित्यक रूपमे अभिधान कएल। शिष्टक विलोम होइत अछि, अशिष्ट। शुकुर भेल जे शिष्ट साहित्यक विलोमके ँ अशिष्ट साहित्य नहि कहि, लोक कंठमे सुरक्षित साहित्यके ँ लोक साहित्यक गरिमा प्रदान कए देलनि। स्पष्ट अछि जे शिष्ट साहित्यक सर्जक शिष्ट वर्गहिक
लोक होइत छलाह। हुनक अनुभव क्षेत्र सीमित छलनि। अपन शिष्टत्व प्रमाणित करबाक हेतु ओ सभ जाहि साहित्य सिद्धान्तक निरूपण कएलनि, ताहिमे नायकत्व लेल राजकुल सम्भूत होएब आवश्यक भए गेलैक। इएह कारण थिक जे तथाकथित .शिष्ट साहित्यक कोनो नायक तथाकथित दलित समाजसँ लेल गेल होथि, तकर उदाहरण भेटब दुर्लभ अवश्य अछि। आ’ ई परम्परा
लोकशक्तिक उदय धरि कोना मैथिली साहित्यके ँ आच्छन्न कएने रहल, तकर उदाहरण प्रो.हरिमोहन झा सदृश मैथिलीक महान साहित्यकारक विपुल साहित्य अछि। किन्तु सम्प्रति जे राजनीतिक एवं सामाजिक परिदृश्य छैक आ’ जाहि प्रकारक चेतनाक बसात बहि रहल अछि, ओहिमे एकर महत्त्व नहि छैक जे दलित-महादलित जातिसँ भिन्न जाति-वर्गक साहित्यकार दलित-महादलित जातिक संवेदना एवं भूख, अभाव, असन्तोष आ’ पीड़ाक चित्रण कतेक प्रखरतासँ करैत छथि वा तथाकथित
उच्चवर्गक सामान्तवादी एवं शोषणोन्मुखी मनोवृत्ति पर ओ कतेक निर्मम प्रहार करैत छथि, किन्तु प्रश्न छैक आ’ वास्तविकता अछि जे दलित-महादलित समाजक लोक अपन कथा-व्यथा स्वयं कहबा लेल एवं नायक महानायक गढ़बा लेल तैआर अछि। संगहिं ओ आयोजित साहित्यिक चर्चा वा लेखनमे अपन सहभागिता सेहो सुनिश्चित करय चाहैत अछि।
(My point is that
literary theorists and cultural historians need to pay attention to the way Dalits are trying to
argue their case for writing about Dalits. In this sense, whether you have written supporting
or reforming or attacking Brahmins, dalits now want dalit characters and dalit life to be
portrayed. It does matter how secular you are, the place now has to go to dalits and just as
there must be place for dalit characters, there must also be place for dalit writers.They
would not like the upper caste writers to write about dalits and about literature today. Even if
you write a critique of upper class/caste life, dalits are not bothered about that. I think, these
questions ( like whose work should now gain a place and be discussed in public) seem to
be more the issue than which upper caste writer wrote about or for dalits.- Dalitism: A
Critique of Telugu Literature, K.Satyanarayan, Re-figuring Culture,2005, Sahitya Akademi )
ध
एहि सन्दर्भमे लोकगाथा एवं लोकगाथाक महानायक एक आदर्श रूपमे भासमान भेटैत छनि। कारण जे लोकसाहित्यक नायक वा महानायक दलित,पीड़ित एवं शोषित समाजक छथि। दलित समाजक ओहि पात्रहुमे नायक वा महानायक बनबाक लेल जे चारित्रिक गुण चाही, जे पात्रता चाही, जे शौर्य चाही, जे पराक्रम चाही, सभटा विशेषता दलित समाजक लोकहुमे वर्तमान छैक।
एकर उदाहरण थिक दीनाभद्री लोकगाथाक महानायक एवं देवत्व प्राप्त दीनाराम आ’ भद्री।दीनाभद्रीक आधार स्रोत
दीनाभद्रीक अध्ययन विवेचनक सम्प्रति दू टा स्रोत सुलभ अछि। पहिल आधार स्रोत थिक जार्ज अब्राहम ग्रियर्सनक
संकलन एवं प्रकाशन।एकर प्रकाशन1885 ई.र्मे
Z.D.M.G.(Zeischrift der Deutschen Morgen lamdischen
Gescllschaft)
नामक प्रत्रिकामे ैमसमबजमक ैचमबपउमद व िजीम ठपींतप स्ंदहनंहमे.ज्ीम डंपजीपसप क्पंसमबज
रूपमे भेल अछि । ओकर बादहि मैथिलीक एहि लोक गाथाक परिचय अक्षर जगतके ँ भेलैक एवं दीनाभद्रीक अध्ययन विवेचनक मार्ग प्रशस्त भेल। राष्ट्रीय वा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जतय कतहु दीनाभद्रीक अध्ययन विवेचन भेल अछि तकर आधारभूत सामग्री ग्रियर्सन संकलित इएह पाठ थिक। एहिमे डा.जयकान्त मिश्र
(Folk Literature of Mithila,1951)
डा. आशा गुप्त (जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन और बिहारी भाषा साहित्य, 1970)ेक अध्ययन सेहो अछि। एहि विषय पर राजेश्वर झा (मिथिला मिहिर, 22. सितम्बर, 1974) डा. विश्वेश्वर मिश्र,डा. वीरेन्द्रनाथ झा (मैथिली लोक महाकाव्यक आलोचनात्मक अध्ययन, शोध प्रबन्ध,1987,ल.ना.मिथिला वि.वि.), डा. रामदेव झा ( मैथिली लोक साहित्यः स्वरूप ओ सौन्दर्य, 2002 ), डा.योगानन्द झा (लोक साहित्य ओ शब्द सम्पदा, 2007) आदि सेहो छिटफुट लिखल अछि। मुदा ओ सभ अपन लेखनक आधार स्रोत व्यक्तिगत संकलन कहैत छथि जे अद्यावधि गुरुमन्त्र जकाँ गुप्त अछि। एहि बिन्दु पर सभ केओ मौन छथि जे जार्ज ग्रियर्सनक पाठ आ’ हुनक संकलित पाठमे की अन्तर छैक। एम्हर महेन्द्रनारायण राम एवं फूलो पासवानक संयुक्त सम्पादनमे साहित्य अकादमीसँ ‘दीनाभद्री लोक गाथा साहित्य (2007) प्रकाशित भेल अछि। सम्पादकद्वय आँखि मूनि लिखि देलनि अछि-दीनाभद्री लोक गाथा पर बहुत गोटे विद्वान काज केलनि अछि, मुदा आइ धरि एकर मूल गाथा संग्रह नहि प्रकाशित भए सकल अछि।’ परंच ई कथन इतिहास सम्मत नहि अछि। ग्रियर्सनक अवदानके ँ बिसरि गेलाह अछि। जार्ज ग्रियर्सनक अवदानके ँ रेखांकित करैत प्रोराध्
ााकृष्ण चैधरी लिखने छथि-
NfFk&Dr.Grierson was the pioneer in bringing to light the folk literature of
Mithila through his publications, viz. Bihar Peasant Life, Maithili Chrestomathy. Dinabhadrik
Gita and Nebarak Gita etc.-(A Study of the Maithili Folk Literature
पूर्वांचलीय लोक साहित्य,पृ.131,
चेतना समिति,1973)
ग्रियर्सनक गीत दीनाभद्री एवं दीनाभद्री लोक गाथा साहित्यमे अनेकहु बिन्दु पर अन्तर अछि। दूनूक विषय वस्तुमे अन्तर अछि, गाथा संयोजनमे अन्तर अछि, प्रयुक्त शब्दावलीमे अन्तर अछि तथा पात्रक काज आ’ प्रभावमे अन्तर अछि। जे ँ कि दूनू गोटेक स्रोत कथावाचक छथिन्ह एवं दूनूक कथावाचकमे कमसँ कम सवा सए वर्षक जेठाए-छोटाए छैक, अपन संकलनक प्रसंग गियर्सन लिखने छथि- ;
( The following two songs are published exactly as they were taken
down from the mouths of two itinerant singers in the Nepal Tarai about six years ago.They
are very popular throughout nothern Mithila and are excellent examples of the spoken
dialect of that portion of the country.-Selected Specimen of the Bihari Language, ZDMG.
Vol. 39, page No. 617,1885)
अतएव ई अन्तर अस्वाभाविक नहि कहल जा सकैछ। कारण जे लोचकता लोकगाथाक विशेषता थिकैक। जा धरि ओ लोक कंठमे रहैत अछि, वाचकक पात्रता, स्थान, काल एवं प्रस्तुतिक ढ़ंग एवं श्रोता समुदायके ँ बान्हि रखबाक हेतु ओहिमे किछु किछु परिवर्तन होइत रहैत छैक। आ’ जँ संयोगवश कोनो लोकगाथामे लोचकता
समाप्त भए जाइत छैक, आन्तरिक क्षमता नहि रहैत छैक तँ कालक्रमे ओहि लोकगाथाक प्रासंगिकता समाप्त भए जाइत अछि।
(They (oral tales) change their contours so much that their social relevance is ever alive. If
the grid of an oral tale does not have the capacity to sustain or imbide the new, then it
meets its death without leaving any trace--Tales : Oral Tales, Komal Kothari, Narrative : A
Seminar, Sahitya Akademi,1990)
कृतिक समीक्षा लिखित पाठक आधार पर होइत अछि एवं आबयबाला समयमे ओ विवेचनक सामग्री बनैत रहैत अछि। अतएव, प्रकाशनसँ पहिने आवश्यक छलैक जे पूर्व प्रकाशित पाठक संग मिलान कए पाठ वा अन्ये प्रकारक जे कोनो अन्तर छैक, तकरा दर्शबैत सम्पादक अपन बात कहितथि। से नहि भेल अछि। एकर अभावमे
‘दीनाभद्री लोकगाथा साहित्य’ एक महत्त्वपूर्ण आधार-स्रोत होएबासँ रहि गेल अछि। एहिठाम जार्ज ग्रियर्सनक ‘गीत दीनाभद्री’
(Selected Specimen of the Bihari Language)
‘दीनाभद्री लोक गाथा साहित्य’मे भेटल किछु अन्तरक दिश सुधी पाठकक ध्यान आकृष्ट करए चाहब। ‘गीत दीनाभद्री’मे सात टा अध्याय अछि एवं ‘दीनाभद्री लोक गाथा साहित्य’मे तेरह टा अध्याय अछि। ‘गीत दीनाभद्री’मे फोटरा गीदरक हाथे ँ दीनाभद्री मारल जाइत छथि तँ दोसरमे बाघेसरी मारैत छथिन्ह। ‘गीत दीनाभद्री’मे बगहाक ताहिर मियाँक कथा अछि। गुलामी जट ताहिर मियाँक लोक अछि। अपमानित भेला पर फोटरा गीदरक रूप धारण कए के ँ दीनाभद्री गुलामी जटके ँ परास्त
करैत छथि। गुलामी जट जखन दीनाभद्रीके ँचिन्हि जाइत अछि, क्षमाप्रार्थी होइत अछि एवं प्रयोजन भेला पर सहयोगक वचन दीनाभद्रीके ँ दैत छनि। लिखल अछि-
‘छरपिकै ँ फोटरा गीदर गुलामी जट कै धैलक
चटि धैलक पटि दे मारलक, बान्हलक पछुआड़ि धै कै
गोड़ लगैत छी, पै ँयाँ परैत छी, एहि नहि ँ जनली अहाँ भद्री छी।’( पृ.सं.651)
‘दीनाभद्री लोक गाथा साहित्य’मे गुलामी जट मक्का मदीनाक वासी थिक एवं दीनाभद्री मकेश्वरनाथक पूजा अर्चना
करैत छथि। एकर अतिरिक्त हिन्दू एवं इस्लाम धर्मक चर्चा सेहो होइत अछि। पहिल संकलनमे दीनाभद्रीके ँ सलहेसक सहायता प्राप्त होइत छनि तँ दोसरमे योगमल किरातीके ँ ओ सहायता लेल आह्वान करैत छथि। पहिल संकलनमे दीनाभद्रीक परकिया नायिका हिरिया तमोलिन एवं जिरिया लोहारिन दोसर संकलनमे नहि अछि। ग्रियर्सनक संकलनक अन्त जोरावर सिंहक मृत्युक संग होइत अछि तँ दोसरमे दीनाभद्री स्वयं घूमि घूमि अपन पराक्रमक प्रसंग लोकसँ जिज्ञासा करैत छथि एवं गहवर बना कए पूजा करबाक आदेश दैत छथिन्ह। ओ इहो आदेश दैत छथिन्ह जे गहवरमे हुनक एक कात बाघेसरी आ’ दोसर कात योगमल किरातक स्थापना कए पूजा कएल जाए। पहिलमे महफा पर जाइत हिरिया तमोलिन एवं जिरिया
लोहारिनक डोलीके ँ जोरावर सिंह छेकि लैत अछि तँ गुलामी जट एवं जोरावर सिंहक बीच कुश्ती होइत अछि। दीनाभद्रीक कहला पर ओ जोरावर सिंहके ँ पटकि दैत छथि आ’ जोरावर सिंह मारल जाइत अछि-
जोरावर सिङ्घ देलक गुलामी जट के उनटाय
नहि खलिफा एक बेरि ठाढ़ भै के कुस्ती लिअऽ।
जोरावर सिङ्घ के गुलामी जट मारलक बाँसक ओधि लगाय।
चटि दै भद्री देलक बान्हि कनौली गरद उठि गेल।
कनौली मे ँ जोरावर सिङ्घ राजपूत मारल गेल, दीनाभद्री बैरी भेल
कनौली मे ँ जोरावर सिङ्घ राजपूत मारल गेल दीनाभद्री सौ ँ। पृ..653
मुदा दोसरमे कहलो पर दीनाभद्री जोरावर सिंहक अखारा लगसँ नहि हटैत छथि तँ मल्लयुद्ध होइत अछि।
दीनाभद्रीक आह्वान पर हुनक कायामे योगमल किराती प्रवेश कए जाइत छथिन्ह तँ ओ जोरावर सिंहके ँ पटकि हत्या
करबामे समर्थ होइत छथि। आश्चर्यक गप्प जे ‘दीनाभद्री लोकगाथा साहित्य’मे दीनाभद्री के ँ अङरेजी भाषाक ज्ञान सेहो छनि।
भद्री कहैत अछि-भैया से हम आर्डर नेने रहीतियै तऽ एकरा मारि के हम सारा बना दीतीये (76)
डा.योगानन्द झाक निबन्धमे मगहक हंसराज एवं वंशराजक उल्लेख अछि। दीनाभद्री ओहि दूनू के ँमल्लयुद्धमे
पराजित करैत छथि। अन्तमे दूनू भाइ जगन्नाथपुरी जाइत छथि। जगन्नाथजीक कृपासँ प्रेत योनिसँ मुक्त भए तिरहुत घूमि अबैत छथि, जतय भुइयाँ बाबाक रूपमे हुनक पूजा होअए लगैत अछि।पाठभेद सम्बन्धी एहि विवृत्तिक तात्पर्य जे दीनाभद्रीक अध्ययन कोन पाठक आधार लोक करए। ककरा दीनाभद्री लोकगाथाक प्रमाणिक पाठ मानल जाए। एक संकलनकर्ता दोसर संकलनकर्ताक काजके ँ मोजर देनिहार नहि, सभ केओ सभटा श्रेय स्वयं हपसि लेअय चाहैत छथि। ओ ई जनबय चाहैत छथि जे एहिसँ पहिने ककरो किछु ज्ञात नहि छलैक, सभटा हमही धरतीके ँ खोधि बाहर आनल अछि। ई साहित्यिक अराजकाता थिकैक। एहि अराजकताक दू टा कारण अछि-सम्पूर्ण
श्रेय स्वयं लेबाक आतुरता तथा सम्पादक वा लेखकक अल्पज्ञता। दूनू स्थिति भाषा साहित्यक स्वस्थ विवेचन लेल बाधके अछि। ओहुना विद्वत्जन एहि बात पर एकमत होएताह जे सुनि उतारि लेब, गीत गायब एवं सम्पादन करब, एक नहि, दू प्रकारक प्रतिभाक अपेक्षा रखैत अछि। दीनाभद्री सन महत्त्वपूर्ण लोकगाथाक सम्यक अध्ययन-विवेचन लेल सर्वथा आवश्यक अछि जे उपलब्ध विभिन्न पाठ एवं पूर्व प्रकाशित पाठक आधार पर एक प्रामाणिक पाठ तैआर कएल जाए एवं संकलनकर्ताके ँ
ई छूट नहि भेटनि जे अपन अल्पज्ञता एवं पूर्वाग्रहक कारणे ँ मैथिलीक सांस्कृतिक सम्पदा पर आघात करथि।
अन्तमे हम लक्ष्मीपति सिंहक (मिथिलाक लोक संस्कृति एवं लोकजीवन, चेतना समिति, स्मारिका,1973 ई.) क मन्तव्य उधृत करए चाहब-‘कहि नहि, एहन एहन कतेको संग्रह कतेको ठाम ‘अग्नये स्वाहा’ तथा ‘कीटाय स्वाहा’ भए गेल होएत, वा भए रहल होएत। अस्तु, एहि सम्बन्धमे क्रियाशील मैथिली संस्था सभसँ हमर इएह अनुरोध जे सूठी कुमर, शशिया, बिहुला,
कमला, जट जटिन, दीनाभद्री, विषहरा, आदिक सम्बन्घमे मिथिलाक बहुमुखी लोकसाहित्यक संकलन एवं प्रकाशन कार्यमे सक्रिय भए जाए। हमरा जनैत,जखन मैथिल मात्रके ँ अपन प्राचीन लोक जीवन पद्धतिक ज्ञान भए जएतन्हि, आओर ई विश्वास भए जएतन्हि कि धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक समन्वय एवं सामुदायिक उत्तरदायित्वक प्रसादात एक समय मिथिला कतेक
भरल पुरल छल तँ अगत्या वर्णद्वेष, धार्मिक कटुता तथा राजनीतिक छल-छद्मसँ मिथिलाक पिण्ड स्वतः छुटि जाए सकैछ।
सार्वभौम मानवाधिकार घोषण: मैथिली अनुवाद रमानन्द झा 'रमण' : भाषा सम्पादन गोविन्द झा
सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा : मैथिली अनुवाद रमानन्द झा 'रमण' : भाषा सम्पादन गोविन्द झा
सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा
UNIVERSAL DECLARATION OF HUMAN RIGHTS
MAITHILI TRANSLATION
(राष्ट्रसंघक साधारण सभा 10 दिसम्बर, 1948 के ँ एक सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा स्वीकृत आ‘
उद्घोषित कएलक जकर पूर्णपाठ आगाँ देल गेल अछि। एहि ऐतिहासिक घोषणाक उपरान्त साधारण
सभा समस्त सदस्य देशसँ अनुरोध कएलक जे ओ एहि घोषणाक प्रचार करए तथा मुख्यतः, अपन देश
आ‘ प्रदेशक राजनैतिक स्थितिक अनुरूप बिनु भेदभावक, स्कूल आ‘ अन्य शिक्षण संस्था सभमे एकर
प्रदर्शन, पठन-पाठन आ‘ अनुबोधनक व्यवस्था करए।)
एहि घोषणाक आधिकारिक पाठ राष्ट्रसंघक पाँच भाषामे उपलब्ध अछि-अंग्रेजी, चीनी, फ्रांसीसी, रूसी आ,
स्पेनिश। एहिठाम एहि घोषणाक मैथिली रूपान्तरण प्रस्तुत अछि।)
उद्देश्यिका
जे ँ कि मानव परिवारक सकल सदस्यक जन्मजात गरिमा आओर समान एवं अविच्छेद्य अधिकारके ँ
स्वीकृति देब स्वतन्त्रता, न्याय आ‘ विश्वशान्तिक मूलाधार थिक,
जे ँ कि मानवाधिकारक अवहेलना आ‘ अवमाननाक परिणाम होइछ एहन नृशंस आचरण जाहिसँ मानवक
अन्तःकरण मर्माहत होइत अछि आओर अवरुद्ध होइत अछि एक एहन विश्वक अवतरण जाहिमे
अभिव्यक्ति आ‘ विश्वासक स्वतन्त्रता तथा भय आ‘ अकिंचनतासँ मुक्ति जनसामान्यक सर्वोच्च आकंाक्षा
घोषित हो;
जे ँ कि विधिसम्मत शासन द्वारा मानवाधिकारक रक्षा एहि हेतु परमावश्यक अछि जे केओ व्यक्ति
अत्याचार आ‘ दमनसँ बँचबाक कोनो आन उपाय नहि पाबि, शासनक विरुद्ध बागी नहि भए जाए;
जे ँ कि राष्ट्रसभक बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बढ़ाएब परमावश्यक अछि;
जे ँ कि राष्ट्रसंघक लोक अपन चार्टर मध्य मौलिक मानवाधिकारमे, मानवक गरिमा आ‘ मूल्यमे तथा स्त्री
आ‘ पुरुषक बीच समान अधिकारमे अपन निष्ठा पुनः परिपुष्ट कएलक अछि आओर व्यापक स्वतन्त्रताक
संग सामाजिक प्रगति आ‘ जीवन स्तरक समुन्नयन हेतु कृत संकल्पित अछि;
जे ँ कि सदस्य राष्ट्रसभ राष्ट्रसंघक सहयोगसँ मानवाधिकार आ‘ मौलिक स्वतन्त्रताक सार्वभौम आदर
तथा अनुपालन करबाक हेतु प्रतिबद्ध अछि;
जे ँ कि एहि प्रतिबद्धताक पूर्ति हेतु उक्त अधिकार आ स्वतन्त्रताक सामान्य बोध परम महत्त्वपूर्ण अछि,
ते ँ आब,
साधारण सभा
निम्नलिखित सार्वभौम मानवाधिकार घोषणाके ँ सभ जनता आ‘ सभ राष्ट्रक हेतु उपलब्धिक सामान्य
मानदण्डक रूपमे, एहि उद्देश्यसँ उद्घोषित करैत अछि जे प्रत्येक व्यक्ति आ‘ प्रत्येक सामाजिक एकक
एहि घोषणाके ँ निरन्तर ध्यानमे रखैत शिक्षा आ‘ उपदेश द्वारा एहि अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताक प्रति
सम्मान भावना जगाबए तथा उत्तरोत्तर एहन उपाय-राष्ट्रीय आ अन्तरराष्ट्रीय-करए जाहिसँ सदस्य
राष्ट्रसभक लोक बीच तथा अपन अधीनस्थ अधिक्षेत्रहुक लोक बीच एहि अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताके ँ
सार्वभौम आ‘ प्रभावकारी स्वीकृति प्राप्त भए सकैक। ष्
अनुच्छेद 1
सभ मानव जन्मतः स्वतन्त्र अछि तथा गरिमा आ‘ अधिकारमे समान अछि। सभके ँ अपन-अपन बुद्धि आ‘
विवेक छैक आओर सभके ँ एक दोसराक प्रति सौहार्दपूर्ण व्यवहार करबाक चाही।
अनुच्छेद 2
प्रत्येक व्यक्ति एहि घोषणामे निहित सभ अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताक हकदार थिक आओर एहिमे नस्ल,
लिंग, भाषा, धर्म, राजनैतिक वा अन्य मत, राष्ट्रीय वा सामाजिक उद्भव, सम्पत्ति, जन्म अथवा अन्य
स्थितिक आधार पर कोनहु प्रकारक भेदभाव नहि कएल जाएत। आओर ओ व्यक्ति जाहि देशक थिक
तकर राजनैतिक अधिकारितामूलक वा अन्तरराष्ट्रीय आस्थितिक आधार पर कोनो भेदभाव नहि कएल
जाएत-भनहि ओ देश स्वाधीन हो, ट्रस्ट हो, परशासित हो वा सम्प्रभुताक कोनो अन्य परिसीमाक अधीन
हो।
अनुच्छेद 3
सभके ँ जीवन-धारण, स्वातन्त्र्य आ‘ व्यक्तिगत ़सुरक्षाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 4
केओ व्यक्ति दासता वा बेगारीमे नहि रहत आओर सभ प्रकारक दासप्रथा आ‘ दासक खरीद-बिकरी
वर्जित होएत।
अनुच्छेद 5
ककरहु क्रूर, अमानुषिक वा अपमानजनक दण्ड नहि देल जाएत आ‘ ककरोसँ एहन व्यवहार नहि कएल
जाएत।
अनुच्छेद 6
प्रत्येक व्यक्तिके ँ सभठाम कानूनक समक्ष एक मानव रूपमे अपन मान्यताक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 7
सभ केओ कानूनक समक्ष समान अछि आ‘ बिना कोनो भेदभावक कानूनक संरक्षणक हकदार अछि।
अनुच्छेद 8
सभके ँ एहन कार्यक विरुद्ध जे संविधान वा विधि द्वारा प्रदत्त ओकर मौलिक अधिकारक हनन करैत हो
सक्षम राष्ट्रीय न्यायालयसँ उचित उपचार (न्याय) पएबाक हक छैक।
अनुच्छेद 9
केओ स्वेच्छासँ ककरो गिरफ्तार, नजरबन्द वा देश निर्वासित नहि करत ।
अनुच्छेद 10
सभ व्यक्तिके ँ अपन अधिकार आ‘ दायित्वक अवधारणार्थ तथा अपना पर लगाओल गेल कोनो
आपराधिक आरोपक अवधारणार्थ कोनो स्वतन्त्र आ‘ निष्पक्ष न्यायालय द्वारा पूर्ण समानताक संग उचित
आ‘ सार्वजनिक विचारणक हक छैक।
अनुच्छेद 11
1. दण्डनीय अपराधक आरोपी प्रत्येक व्यक्ति ताधरि निर्दोष मानल जएबाक हकदार अछि जाधरि
कोनो सार्वजनिक विचारणमे, जाहिमे ओकरा अपन समुचित सफाइ देबाक सभ गारंटी प्राप्त
होइक, विधिवत् दोषी सिद्ध नहि कए देल जाए।
2. जँ केओ व्यक्ति एहन कोनो दण्डनीय कार्य वा लोप करए जे घटनाक कालमे प्रचलित कोनो
राष्ट्रीय वा अन्तरराष्ट्रीय कानूनक दृष्टिमे दण्डनीय अपराध नहि थिक तँ ओ व्यक्ति एहि हेतु
दण्डनीय अपराधक दोषी नहि मानल जाएत।
अनुच्छेद 12
केओ व्यक्ति कोनो आन व्यक्तिक एकान्तता, परिवार, निवास वा संलाप (पत्राचारादि) मे स्वेच्छया हस्तक्षेप
नहि करत आ‘ ने ओकर प्रतिष्ठा आ‘ ख्याति पर प्रहार करत। प्रत्येक व्यक्तिके ँ एहन हस्तक्षेप वा
प्रहारसँ कानूनी रक्षा पएबाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 13
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन राष्ट्रक सीमाक भीतर भ्रमण आ‘ निवास करबाक स्वतन्त्रता छैक।
2. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन देश वा आनो कोनो देश त्यागबाक आ‘ अपना देश घूरि अएबाक
अधिकार छैक।
अनुच्छेद 14
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ उत्पीड़नसँ बँचवाक हेतु दोसर देशमे शरण मङबाक अधिकार छैक।
2. एहि अधिकारक उपयोग ओहि स्थितिमे नहि कएल जाए सकत जखन ओ उत्पीड़न वस्तुतः
अराजनैतिक अपराधक कारणे ँ भेल हो अथवा राष्ट्रसंधक उद्देश्य आ‘ सिद्धान्तक विरुद्ध कोनो
काज करबाक कारणे ँ े।
अनुच्छेद 15
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ राष्ट्रीयताक अधिकार छैक।
2. कोनो व्यक्तिके ँ राष्ट्रीयताक अधिकारसँ अथवा राष्ट्रीयता -परिवर्तनक अधिकारसँ अकारण
वंचित नहि कएल जा सकत।
अनुच्छेद 16
1. सभ वयस्क स्त्री आ‘ पुरुषके ँ नस्ल, राष्ट्रीयता वा सम्प्रदायमूलक केानो प्रतिबन्धक बिना, विवाह
करबाक आ‘‘ परिवार बनएबाक अधिकार छैक। स्त्री आ पुरुष दूनूके ँ विवाह, दाम्पत्य-जीवन
तथा विवाह-विच्छेदक समान अधिकार छैक।
2. विवाह, तखनहि होएत जखन इच्छुक पति आ‘पत्नीक स्वच्छन्न आ पूर्ण‘ सहमति हो।
3. परिवार समाजक एक सहज आ‘ मौलिक एकक थिक आओर एकरा समाजक आ‘ राज्यक
संरक्षण पएबाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 17
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ एकसरे आ‘ दोसराक संग मिलि सम्पत्ति रखबाक अधिकार छैक।
2. केओ स्वेच्छया ककरहु सम्पत्तिसँ वंचित नहि करत।
अनुच्छेद 18
प्रत्येक व्यक्तिके ँ विचार, विवेक आ धर्म रखबाक अधिकार छैक। एहि अधिकारमे समाविष्ट अछि धर्म आ
विश्वासक परिर्वतनक स्वतन्त्रता, एकसर वा दोसराक संग मिलि प्रकटतः वा एकान्तमे शिक्षण, अभ्यास,
प्रार्थना आ अनुष्ठानक स्वतन्त्रता।
अनुच्छेद 19
प्रत्येक व्यक्तिके ँ अभिमत एवं अभिव्यक्तिक स्वतन्त्रताक अधिकार छैक, जाहिमे समाविष्ट अछि बिना
हस्तक्षेपक अभिमत धारण करब, जाहि कोनहु क्षेत्रसँ कोनहु माध्यमे ँ सूचना आ‘ विचारक याचना, आदान
प्रदान करब।
अनुच्छेद 20
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँशान्तिपूर्ण सम्मिलन आ संगठनक स्वतन्त्रताक अधिकार छैक।
2. कोनहु व्यक्तिके ँ संगठन विशेषसँ सम्बद्ध होएबाक लेल विवश नहि कएल जाए सकैछ।
अनुच्छेद 21
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन देशक शासनमे प्रत्यक्षतः भाग लेबाक अथवा स्वतन्त्र रूपे ँ निर्वाचित
अपन प्रतिनिधि द्वारा भाग लेबाक अधिकार छैक।
2. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपना देशक लोक-सेवामे समान अवसर पएबाक अधिकार छैक।
3. जनताक इच्छा शासकीय प्राधिकारक आधार होएत। ई इच्छा आवधिक आ‘ निर्बाध निर्वाचनमे
व्यक्त कएल जाएत आओर ई निर्वाचन सार्वभौम एवं समान मताधिकार द्वारा गुप्त मतदानसँ
होएत अथवा समतुल्य मुक्त मतदान प्रक्रियासँ।
अनुच्छेद 22
प्रत्येक व्यक्तिके ँ समाजक एक सदस्यक रूपमे सामाजिक सुरक्षाक अधिकार छैक आओर प्रत्येक
व्यक्तिके ँ अपन गरिमा आ‘ व्यक्तित्वक निर्बाध विकासक हेतु अनिवार्य आर्थिक, सामाजिक आ‘
सांस्कृतिक अधिकार-राष्ट्रीय प्रयास आओर अन्तरराष्ट्रीय सहयोगसँ तथा प्रत्येक राज्यक संघठन आ‘
संसाधनक अनुरूप-प्राप्त करबाक हक छैक।
अनुच्छेद 23
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ काज करबाक, निर्बाध इच्छाक अनुरूप नियोजन चुनबाक, कार्यक उचित आ‘
अनुकूल स्थिति प्राप्त करबाक आ‘ बेकारीसँ बँचबाक अधिकार छैक।
2. प्रत्येक व्यक्तिके ँ समान काजक लेल बिना भेदभावक समान पारिश्रमिक पएबाक अधिकार छैक।
3. काजमे लगाओल गेल प्रत्येक व्यक्तिके ँ उचित आ‘ अनुरूप पारिश्रमिक ततबा पएबाक अधिकार
छैक जतबासँ ओ अपन आ‘ अपन परिवारक मानवोचित भरण-पोषण कए सकए आओर प्रयोजन
पड़ला पर तकर अनुपूरण अन्य प्रकारक सामाजिक संरक्षणसँ भए सकैक।
4. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन हितक रक्षाक हेतु मजदूरसंघ बनएबाक आ‘ ओहिमे भाग लेबाक अधिकार
छैक।
अनुच्छेद 24
प्रत्येक व्यक्तिके ँ विश्राम आ‘ अवकाशक अधिकार छैक जकर अन्तर्गत अछि कार्य-कालक उचित सीमा
आ समय-समय पर वेतन सहित छुट्टी।
अनुच्छेद 25
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ एहन जीवन-स्तर प्राप्त करबाक अधिकार छैक जे ओकर अपन आ‘ अपना
परिवारक स्वास्थ्य एवं कल्याण हेतु पर्याप्त हो। एहिमे समाविष्ट अछि भोजन, वस्त्र, आवास आ
चिकित्सा तथा आवश्यक सामाजिक सेवाक अधिकार आओर जँ अपरिहार्य कारणवश बेकारी,
बीमारी, अपंगता, वैधव्य, वृद्धावस्था अथवा अन्य प्रकारक दुरस्था उपस्थित हो तँ, ओहिसँ सुरक्षाक
अधिकार ।
2. परसौती आ‘ चिल्हकाके ँ विशेष परिचर्या आ सहायताक अधिकार छैक। प्रत्येक बच्चाके ँ, चाहे
ओ विवाहावधिमे जनमल हो वा ताहिसँ बाहर, समान सामाजिक संरक्षणक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 26
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ शिक्षा प्राप्तिक अधिकार छैक। शिक्षा कमसँ कम आरम्भिक आ‘ मौलिक
अवस्थामे निःशुल्क होएत। आरम्भिक शिक्षा अनिवार्य होएत। तकनीकी आ व्यावसायिक शिक्षा
सामान्यतया उपलभ्य होएत तथा उच्चतर शिक्षा सेहो सभके ँ योग्यताक आधार पर भेटतैक।
2. शिक्षाक लक्ष्य होएत मानव व्यक्तित्वक पूर्ण विकास आओर मानवाधिकार आ‘ मौलिक स्वतन्त्रताक
प्रति आदरभाव बढ़ाएब। शिक्षा राष्ट्रसभक बीच तथा जातीय वा धार्मिक समुदायसभक बीच
पारस्परिक सद्भावना, सहिष्णुता आ‘ मैत्री बढ़ाओत तथा शान्तिक हेतु राष्ट्रसंधक प्रयासके ँ गति
देत।
3. माता पिताके ँ ई चुनबाक तार्किक अधिकार छैक जे ओकर सन्तानके ँ कोन प्रकारक शिक्षा देल
जाए।
अनुच्छेद 27
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ समाजक सांस्कृतिक जीवनमे अबाध रूपे ँ भाग लेबाक, कलाक आनन्द लेबाक
तथा वैज्ञानिक विकासमे आ‘ तकर लाभमे अंश पएबाक अधिकार छैक।
2. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन सृजित कोनहु वैज्ञानिक, साहित्यिक अथवा कलात्मक कृतिसँ उत्पन्न,
भावनात्मक वा भौतिक हितक रक्षाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 28
प्रत्येक व्यक्तिके ँ एहन सामाजिक आ अन्तरराष्ट्रीय आस्पद प्राप्त करबाक अधिकार छैक जाहिसँ
एहि घोषणामे उल्लिखित अधिकार आ‘ स्वतन्त्रता प्राप्त कएल जाए सकए।
अनुच्छेद 29
1. प्रत्येक व्यक्ति ओहि समुदायक प्रति कत्र्तव्यबद्ध अछि जाहिमे रहिए कए ओ अपन व्यक्तित्वक
अबाध आ‘ पूर्ण विकास कए सकैत अछि।
2. प्रत्येक व्यक्ति अपन अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताक उपयोग ओहि सीमाक अभ्यन्तरे करत जकर
अवधारण दोसराक अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताक आदर आ‘ समुचित स्वीकृतिके ँ सुनिश्चित करबाक
उद्देश्यसँ तथा नैतिकता, विधिव्यवस्था आ जनतान्त्रिक समाजमे सामान्य जनकल्याणक अपेक्षाक
पूर्तिक उद्देश्यसँ कानून द्वारा कएल जाएत।
3. एहि स्वतन्त्रता आ‘ अधिकारक प्रयोग कोनहु दशामे राष्ट्रसंधक सिद्धान्त आ‘ उद्देश्यक प्रतिकूल
नहि कएल जाएत।
अनुच्छेद 30
एहि घोषणामे उल्लिखित कोनो बातक निर्वचन तेना नहि कएल जाए जाहिसँ ई घ्वनित हो जे कोनो
राज्यके ँ वा जनगणके ँ एहन गतिविधिमे संलग्न होएबाक वा कोनो एहन काज करबाक अधिकार
छैक जकर लक्ष्य एहि घोषणाक अन्तर्गत कोनो अधिकार वा स्वतन्त्रताके ँ बाधित करब हो।
गजेन्द्र ठाकुरक मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोशपर- उदय नारायण सिंह "नचिकेता"
जखन सैमुअल जॉनसनक अ डिक्शनरी ऑफ द इंग्लिश लैंगुएज (१७५५) प्रकाशित भेल तखन जाऽ कऽ अंग्रेजी विद्वान आ विद्यार्थीकेँ यथार्थमे अपन भाषामे एकटा विश्वसनीय आ परिष्कृत कोश भेटलन्हि। अंग्रेजीक अधिकांश पहिलुका प्रयास गंभीरतासँ रहित छल। १६०४ ई.क रॉबर्ट काउड्रेक कोश जकर नाम अ टेबल अल्फाबेटिकल आ कतेक आन कृति आ तकर अनुकरण केनिहार आन कृति सभ ओहि मानदण्डक अनुरूप नहि छल जे शेष यूरोपमे कोश निर्माणक परम्पराक अनुरूप होअए। मुदा पहिलुका द्विभाषी कोश सभ जाहिमे विदेशज फ्रेंच, इटालवी वा लैटिन शब्द सभ अंग्रेजीमे परिभाषाक संग सम्मिलित छल एहि सभसँ नीक छल आ ताहिमे १५९२क रिचर्ड मुलकास्टरक ग्लॉसरी एकर एकटा उदाहरणक रूपमे राखल जा सकैत अछि। ई सभ तखनहु अरबी कोश सभक समकक्ष नहि छल जे ८म् आ १४म शताब्दीक बीचमे संग्रहित भेल विशेषतः सामान्य काजक लेल रचित कोश सभ जेना लिसान अल अरब (तेरहम शताब्दी)।
अंग्रेजी जेना एकरा हम आइ देखैत छी, भाषाक वैश्विक इतिहासमे एकटा सापेक्षतया नूतन घटना अछि संभवतः मैथिलीसँ किछुए पुरान। ई एहि लेल किएक तँ जखन मैथिलीक सभसँ पुरान उपलब्ध ग्रन्थ ज्योतिरीश्वर द्वारा लिखल जा रहल छल ओ समय रहए अंग्रेजीमे चौसरक। पाश्चात्य कोशमे सभसँ पुरान कोश तखुनका अक्कादी साम्राज्यमे रचित भेल जाहिमे सुमेरी-अक्कादी शब्द सूची रहए (आधुनिक सीरियाक एबलामे प्राप्त) आ एकर समय छल लगभग २३०० ई.पू.। मुदा सभसँ प्राचीन ग्रीक कोश एपोलोनियश द सोफिस्ट प्रथम स्शताब्दीक, ई होमरयुगीन शब्दपरिभाषा आ अर्थ सूचीबद्ध करैत अछि आ एकटा उदाहरण प्रस्तुत करैत अछि। द्वितीय सहस्राब्दी ई.पू. उर्रा= हुबुल्लु शब्दार्थसूची जे एहने द्विभाषी शब्द सूचीक संग पुरान कोशीय लेखाक उदाहरण एकटा आर उदाहरण अछि जेकर तुलना तेसर शताब्दीक चीनी परम्परे सँ कएल जा सकैत अछि। प्रारम्भिक जापानी प्रयास ६८२ ई.क चीनी अक्षरक नीना ग्लॉसरी आ सभसँ पुरान उपलब्ध जापानी कोश तेनरेइ बान्शो मैगी (८३५ ई.) सेहो महत्त्वपूर्ण प्रयास छल। भारतमे वैदिक साहित्यक संरक्षण व्याकरण आ कोशीय रचनाक लेल सभसँ पैघ उत्प्रेरक छल। संस्कृतक पाणिनीय आ दोसर वैयाकरणिक परम्परामे ई एकटा सामान्य आ पूर्णतः आधारभूत कार्य रहए- वैदिक वाक्यकेँ शब्दमे खण्ड-खण्ड करब आ शब्दकेँ खण्ड करब धातु-प्रत्ययगघतकमे। एहि क्रममे शाब्दिक संरचना, भाषायी ध्वनि तन्त्रक संग संरचनात्मक-ध्वन्यात्मक सिद्धांत सभ सेहो विकसित भेल। ई विश्वास कएल जाइत अछि जे निघण्टु (७०० ई.पू.) पर यास्क एकटा निरुक्त नाम्ना भाष्य लिखलन्हि जे आइ सभसँ पुरान ज्ञात कृति अछि आ ई परम्परा सेहो पाली परम्परा धरि चलल। ओ सभटा कोशीय सामग्रीकेँ समानार्थी आ समानह्रिजए-ध्वनि अनुसार सजेलन्हि। शास्त्रीय संस्कृतमे सभसँ लोकप्रिय कृति अछि अमरसिंहक अमरकोष (६ठम धताब्दी)। कटालोगस कैटालोगोरम मात्र अमरकोषपर कमसँ कम ४० टा भाष्यक सूची दैत अछि जे प्राचीन भारतमे एहि समानार्थी कोशक महत्व आ लोकप्रियता देखबैत अछि। एहि तरहक आर कोश जे कम-बेशी अमरकोषक आधारपर रचित भेल आ एहिमे सम्मिलित अछि (संदर्भ मल्हार कुलकर्णी- TDIL अन्तर्जालपर):-
१. भोजक कृत नाममालिका (११म शताब्दी)
२. सहजकीर्तिक सिद्धशब्दार्नव (१७म शताब्दी)
३. हर्षकीर्तिक शारदीयाख्यानाममाला (१७म शताब्दी)
४. धनन्जय भट्टक पर्यायशब्दरत्न
५. कोशकल्पतरु
६. नानार्थरत्नमाला- इरुगप दण्डाधिनाथ (१४म शताब्दी)
७. राघवक नानार्थमञ्जरी
८. धरनीदासक धरणीकोश (१२म शताब्दी)
९. शिवदत्त मिश्रक शिवकोश
१०. सौभरीक एकार्थनाममाला-द्वक्षारनभमाला
११. मकरन्ददासक परमानन्दीयनाममाला
पहिल अधुनातन युगक संस्कृत कोश जे पाश्चात्य सिद्धांतकेँ प्रयुक्त कए बनाओल गेल से अछि प्रोफेसर एच.एच.विल्सन द्वारा संगृहीत आ १८१३ ई. मे प्रकाशित संस्कृत-अंग्रेजी कोश। दू टा भारतीय कोश तकर बाद आएल पं. सर राजा राधाकान्त देवक शब्दकल्पद्रुम आ पं. ताराकान्त तर्कवाचस्पतिक वाचस्पत्यम् ।
हमर विचारमे प्रयुक्त शब्दकोशशास्त्र आकि कोश संग्रहक विज्ञान वा कला जे अछि कोश सभकेँ विभिन्न कार्यक लेल लिखब आ संपादन करब आ ई सेहो ततबे महत्वपूर्ण अछि जतेक सैद्धांतिक कोशशास्त्र महत्वपूर्ण अछि। शब्दकोशशास्त्र शब्द एकटा कथ्यक रूपमे १६८० ई.मे आबि कए प्रयुक्त भेल जखन कि कोश शब्द अंग्रेजी भाषामे १५२६ ई. मे आबि कए प्रयुक्त भेल जेनाकि मेरिअम-वेब्सटर कोश कहैत अछि। हमरा सभकेँ कहल जाइत अछि जे कोशमे ई सभ सम्मिलित होएबाक चाही:-
१. प्रिंत वा इलेक्ट्रॉनिक रूपमे संदर्भ स्रोत जाहिमे वर्णमालाक आधारपर सजाओल शब्द रहए, जाहिमे ओकर रूप, उच्चारण, कार्य, व्युत्पत्ति, अर्थ आ वाक्य रचना आ कहबी युक्त प्रयोग होअए।
२. एकटा संदर्भ ग्रंथ जाहिमे संबंधित कार्य-विषयक महत्त्वपूर्ण पदबंध आ नामक वर्णानुसार सूची होअए- संगमे ओकर अर्थ आ अनुप्रयोगक चर्चा सेहो रहए।
३. एकटा संदर्भ ग्रंथ जाहिमे एक भाषाक शब्दक लेल दोसर भाषामे समानार्थ देल रहए।
४. एकटा संगणकीय संशोधित सूची (दत्तांशशब्द वा शब्द पदक) जे सूचना प्राप्ति वा शब्द संसाधकक लेल संदर्भक रूप उपयोग कएल जा सकए।
एहि असाधारण आ समय साध्य कलाक अनुप्रयोगमे सम्मिलित कार्य सभमे ई सभ आवश्यक रूपमे सम्मिलित अछि:-
*प्रयोक्ताक निर्धारण आ ओकर आवश्यकताक निर्धारण
*सामान्यजनक शब्दशक्तिक आधारपर भाषिक शब्दक संख्याक निर्धारण आ एकटा निश्चित सीमित परिधिमे ओकर निर्णय
*परिभाषा आ विवरणक सज्जाक विषयमे निर्णय
*कोशक संदर्भमे सूचना संचरण आ विचार-क्रियाक निर्धारण
*कोशक विभिन्न अंगक निर्धारण दत्तांशक संग्रह आ प्रदर्शनक लेल उचित संरचनाक चयन (जेना आवरण-संरचना, संवर्गीकरण, वर्गीकरण, प्रसारण आ एकसँ दोसर अंशमे सन्दर्भ-संकेत)
*प्रधान शब्द आ जोड़एवला शब्दक चयन- पारिभाषिक शब्द बनएबाक लेल
*समानधर्मिता आ संधिकेँ चिन्हित करब
*अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (आइ.पी.ए.) आ ब्लॉच एण्ड ट्रैगर चिन्हक प्रयोगसँ शब्द उच्चारणक निर्देश
*सुरुचिपूर्ण आ वर्ग-स्थान-विशेष बोली स्वरूपक योग
*बहुभाषिक कोशक लक्ष्य भाषाक लेल समानार्थी शब्दक चयन
*छपल आ इलेक्ट्रॉनिक दुनू तरहक कोशमे उपयोक्ताक लेल प्रवेशमार्ग बटन आ आन सुविधा
बिहारक गंगाक मैदान आ नेपालमे हिमालयक निचुलका पहाड़ीक तराइ क्षेत्र मिलि कऽ मैथिली आ मिथिलाक सांस्कृतिक क्षेत्रक निर्धारण करैत अछि, जे बहुत पहिने १९०८ ई. मे जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा चर्चित भेल, ओना ओ मुख्यतः भारतमे स्थित मिथिला क्षेत्रपर केन्द्रित रहल। एहि क्षेत्रमे बहुत रास परिवर्तन आ सीमाक पुनर्निर्धारण भेल। २०म शताब्दीक प्रारम्भमे ग्रियर्सन मैथिली भाषाक क्षेत्र सम्पूर्ण दरभंगा आ भागलपुर जिलाकेँ मानलन्हि। एकर अतिरिक्त ओ मैथिलीकेँ मुजफ्फरपुर, मुंगेर, पूर्णियाँ आ संथाल परगनाक बहुसंख्यक लोक द्वारा बाजल जाएवला भाषाक रूपमे चिन्हित कएलन्हि। मुदा आइ-काल्हि एहिमे सँ किछु अंश झारखण्ड राज्यक अंग भऽ गेल अछि।
एतए ई तथ्य आनब सेहो समीचीन होएत जे एहि बीच राज्यक मान्यताक क्रममे मात्र १७ मे सँ ५ जिला (ई अछि भागलपुर, पूर्णियाँ, सहरसा, दरभंगा आ मुजफ्फरपुर) बिहारक मैथिली भाषी क्षेत्रक रूपमे सामान्य रूपमे अभिहित भेल। पॉल ब्रास (१९७४) मैथिली आन्दोलनक अपन वृहत् अध्ययन उत्तर भारतमे भाषा,धर्म आ राजनीति मे एकरा सामान्य रूपमे परिभाषित भौगोलिक क्षेत्रक रूपमे लेलन्हि। १९८० क दशकमे बिहारक ३१ जिलामे भेल विभाजनक बाद एकटा प्रोजेक्ट रिपोर्टमे (द मैथिली लैंगुएज मूवमेन्ट इन नॉर्थ बिहार: अ सोशियो लिंगुइस्टिक इन्वेस्टीगेशन नामसँ) संयुक्त रूपसँ हमरा आ एन.राजाराम आ प्रदीप कुमार बोस बनाओल गेल, हम सभ एहि निर्णयपर पहुँचल छलहुँ जे ३१ मे सँ ई सभ १० जिलाकेँ मैथिली भाषी क्षेत्र मानल जएबाक चाही: भागलपुर, कटिहार, पूर्णियाँ, सहरसा, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर आ वैशाली। से एहि भौगोलिक सीमाक परिवर्तन प्राकृतिक परिवर्तन (कोशी धार २०० बरखमे सात बेर अपन दिशा बदलने अछि) आ जिलाक पुनर्गठनक परिणामस्वरूप भेल अछि।
ई ककरो लेल एकटा पैघ चुनौती होएत जे मैथिलीक एकटा भीमकाय कोश बनेबाक प्रयास करताह जेना गजेन्द्र ठाकुर कएने छथि। ई परिस्थिति आर ओझरा जाइत अछि कारण मैथिलीक शब्द चयन अंशतः वा अधिकांशतः एहि सांस्कृतिक क्षेत्रमे बाजल जाएवला १२ टा आन भाषासँ संभवतः प्रभावित होइत अछि। एतए एहि लगभग १२ टा दोसर भाषाक वर्णन सेहो वर्णन योग्य अछि। मैथिलीक आस-पड़ोसमे भोजपुरी आ मगही अछि आ हिन्दी एहि सभपर ऊपरसँ आच्छादित अछि जे एहि तीनू भाषा समूहक लोक द्वारा बाजल जाइत अछि। मुदा बिहार एकटा बहु-भाषी राज्य अछि आ नेपाली आ बांग्ला भाषी सेहो एतए प्रचुर मात्रामे देखल जा सकैत छथि। एकर अतिरिक्त किएक तँ मैथिली भाषी झारखण्ड क्षेत्रमे सेहो पर्याप्त मात्रामे छथि, ई बुझबाक थिक जे ओराँव, मुण्डारी, हो, बिरहोर, धांगर, संथाली आ संख्यामे कम ऑस्ट्रिक भाषा समूहक वक्ता सेहो हुनका संग निवास करैत छथि। ओना तँ मिथिला क्षेत्रक बहुत रास मुस्लिम अपन मातृभाषा मैथिली देखबैत छथि मुदा बहुत रास एहनो छथि जे अपनाकेँ उर्दूभाषी घोषित करैत छथि। एहि सभ भाषामे मात्र चारि टा केँ सांवैधानिक मान्यता भेटल अछि- हिन्दी, उर्दू, बांग्ला आ नेपाली (पछाति संथालीकेँ सेहो)। हमरा विचारेँ मैथिलीक वाक्य-रचनापर ऑस्ट्रिक भाषा समूह सहित विभिन्न कोणसँ प्रभाव पड़ल अछि। मुदा कोशीय स्तरपर योग आ अनुकूलन सीमित स्रोतसँ भेल अछि जेना उर्दू, हिन्दी, भोजपुरी आ मगहीसँ। कोश आत्मसात करैत अछि देशी शब्दावलीकेँ देशज शब्दावलीक संग। ई एहि कारणसँ कारण हमरा विचारेँ बेशीसँ बेशी २५-३०% वक्ता मैथिलीकेँ एकभाषीय रूपमे बजैत छथि। कारण शेष दोसर भाषामे सेहो नीक पइठ रखैत छथि। ओ मथिली भाषी जे बिहारक पश्चिमी सिमानपर रहैत छथि, भोजपुरी सेहो बजैत छथि आ पटना-राँची-गया-मुंगेर-क्षेत्रमे रहनिहार मगही जनैत छथि आ सेहो हिन्दीक अतिरिक्त। मुदा एकटा अत्यल्प प्रतिशत कहू जे ३-५ % सँ कम्मे, एहन मैथिल छथि जे अंग्रेजीमे सेहो प्रभावी रूपमे बाजि सकैत छथि। मुदा अंग्रेजीसँ मैथिलीमे शब्दक आगम ततबे वृहत अछि जेना ई कोनो दोसर नव भारतीय भाषा (न.भा.भा.) सभमे अछि।
बहुत गोटे ई शंका व्यक्त कऽ सकैत छथि जे कतेक गोटे एहन होएताह जिनका गजेन्द्र जी सनक प्रयाससँ लाभ भेटतन्हि ? ओना तँ मैथिली भाषीक संख्याक आधिकारिक आँकड़ा स्थिर नहि रहल अछि मुदा एहि तथ्यक विस्तारसँ वर्णन आवश्यक अछि। जनसंख्याक आँकड़ा वास्तविक नहि अछि जेना २००१ ई.क जनसंख्याक ई आँकड़ा: १,२१,७९,१२२. एकरापर अविश्वास पक्का अछि। जखन हम देखैत छी जे मैथिली भाषीक संख्याक संदर्भमे दस बरखक अंतरालमे लेल जनसँख्या आँकड़ामे बहुत बेशी परिवर्तन अछि। ई १८९१ सँ दस बरखक अंतरालमे जनसंख्याक आँकड़ामे बढ़ल आ घटल संख्याक तुलनासँ स्पष्ट अछि:
१९०१-११: +३.१२%
१९११-२१: -०.७७%
१९२१-३१: +७.६८%
१९३१-४१: +९.१३%
१९४१-५१: गणना नहि भेल
१९५१-६१: +२२.३५%
१९६१-७१: +२०.८९%
१९७१-८१: +२४.१९%
तार्किक रूपेँ वास्तवमे मैथिली वक्ताक संख्या स्थिर रूपेँ बढ़ल अछि। हमर अनुमानसँ किछु संकेत देल जा सकैत अछि जे अनिमानित ४ करोड़ धरि पहुँचैत अछि। १८९११ मे ग्रियर्सन (१९०८) अनुमान कएलन्हि जे मैथिली भाषीक संख्या ९२,८९,३७६ अछि। एकर विरुद्ध १९६१क जनसंख्या आँकड़ा एकरा ४९,८२,६१५ कऽ दैत अछि। निश्चयरूपेण १९६१ क जनसंख्या आँकड़ा वास्तविक नहि अछि। ओना ग्रियर्सनक (१९०९) जनसंख्या आकलन जे हुनकर १८९१ ई. मे कएल सर्वेक्षणपर आधारित अछि, सभक द्वारा सम्मति प्राप्त नहि अछि। वर्तमान शताब्दीक प्रारम्भमे मैथिली निम्न क्षेत्रमे बाजल जाइत छल:-
(i) सम्पूर्ण दरभंगा आ भागलपुर
(ii) मुजफ्फरपुरक ६/७ भाग
(iii) मुंगेरक १/२ भाग
(iv) पूर्णियाँक २/३ भाग
(v) संथाल परगनाक ४/५ भाग जे जनगणना आँकड़ामे वर्णित हिन्दी भाषी छथि।
१८१६ ई. मे उत्तर दिसुका भाषायी क्षेत्र नेपाल राजशाही द्वारा स्थायी रूपसँ नेपालमे सम्मिलित कए लेल गेल। ताहि द्वारे भाषा बजनिहारक संख्या पर पहुँचबाक लेल नेपालक जनसंख्याक १४% हिस्सा आर जोड़ए पड़त। पॉल ब्रास (१९७४:६४-६) गेटक गणना (जनसंख्या वर्ष १९०१ ई.) १८८५ ई.सँ उपलब्ध विभिन्न दस्तावेजक आधारपर करैत छथि आ १,६५,६५,४७७ संख्यापर पहुँचैत छथि। ई गणना ग्रियर्सनक आकलनकेँ आधार लए आ तकर बादक ८ दशकमे बिहारमे जनसंख्या वृद्धिकेँ आधार लए कएल गेल अछि। १९८१ क जनसंख्या आँकड़ाक आधारपर आ मिथिला क्षेत्रक बाहर पसरल मैथिलक संख्याकेँ जोड़ि कऽ आ १० जिलाक जनसंख्याकेँ (३१ जिलामेसँ) ध्यानमे राखि हम आ हमर सहयोगी १९८० क दशकक मध्यमे २,२९,७२,८०७ (सिंह, राजाराम आ बोस १९८५) क संख्यापर पहुँचलहुँ। ई संख्या हमर विचारमे जनसंख्याक दसवर्षीय वृद्धिकेँ ध्यानमे रखैत ४ करोड़ धरि पहुँचल अछि आ ताहि द्वारे बहुत रास लोक कोशक एहि भीमकाय प्रयाससँ लाभान्वित होएताह। ई सामान्यतः मानल जाइत अछि जे मैथिली मिथिला क्षेत्रक ब्राह्मण द्वारा बाजल जाइत अछि। ई एकटा पहिलुका कुप्रचार छल जे एकरा हिन्दीक बोलीक रूपमे सिद्ध कए चाहैत रहथि मुख्यतः हिन्दी भाषीक आधिकारिक संख्यामे वृद्धिक उद्देश्यसँ। मुदा उत्तरी बिहारक जाति संरचनाकेँ देखैत मैथिलीक जनसंख्या संबंधी आँकड़ा एकर सत्य कथा कहत। सापेक्षतया मैथिलीक बेस संख्या जे जनगणना रिपोर्टमे आएल, केँ एहि तथ्य मात्रसँ व्याख्यायित कएल जा सकैत अछि जे ओना तँ मैथिली भाषी जिलाक कतोक क्षेत्रमे ४६.८४% धरि मुस्लिम आ ३१.०६% धरि हिन्दू निवास करैत छथि, मैथिलीक लेल जे सहयोग आएल अछि से एहिमे सँ एकटा पैघ संख्या द्वारा मैथिलीकेँ अपन मातृभाषा घोषित कएने बिना संभव नहि छल।
मिथिलामे भाषा प्रयोगक एकटा सर्वेक्षण ई देखा सकैत अछि जे ओना तँ भाषाक औपचारिक क्षेत्र सभमे प्रयोग कम भेल अछि मुदा ई सेहो सत्य अछि जे एकर साहित्यिक उत्पादकता आ उपलब्धि आइ अखिल भारतीय स्तरपर बेशी नीक जकाँ सोझाँ आबि रहल अछि तुलनात्मक रूपेँ जतेक ई आइसँ २० बरख पूर्व अबैत छल। मधुबनी चित्रकला वा मिथिला कला आइ भरि भारतमे सुप्रसिद्ध भऽ गेल अछि आ विश्व-बजार धरि पहुँचि गेल अछि। मात्र तखने जखन मैथिली भाषी नव-पीढ़ी अपन सांस्कृतिक भाषायी बोधसँ हटबाक निर्णय करताह तखने एकरा कोनो खतरा सोझाँ अएतैक। हमरा विचारेँ सांवैधानिक अधिकार नहि भेटनाइ अप्रत्यक्ष रूपमे मैथिलीक लेल वरदान साबित भेल कारण ई साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधिकेँ बल देलक। ई पहिनहियेँ बहुत रास सांवैधानिक मान्यता प्राप्त भाषा सभकेँ पाछाँ छोड़ि देलक, जेना मणीपुरी, कोंकणी, नेपाली आ सिन्धी सेहो। आ आब जखन की ई अष्टम सूचीमे अछि एकरा सभटा आधिकारिक आ आन तरहक संरक्षण भेटबाक चाही जकर ई अधिकारी अछि। एकरा एकर उपयोगकर्ताक सहयोग सेहो भेटबाक चाही जे आब आधुनिक अओजार सभक ताकिमे छथि जेना ऑनलाइन पत्रिका, ई-कोश, सुविधाजनक जंगम परिभाषा-कोश सभ आ स्वचालित प्रश्नोत्तर प्रणाली इत्यादि। ताहि स्तरपर ई मैथिली कोश जे अन्तर्जाल आ छपल दुनू संस्करणमे उपलब्ध होएत, से संग्रहकर्त्ता द्वारा एकटा महत्वपूर्ण योगदान होएत। मैथिली भाषी समुदाय आ आन भाषाक अनुवादक-विद्वान द्वारा गजेन्द्र ठाकुर आ प्रकाशक विशेष प्रशंसाक पात्र छथि। ई सत्य अछि जे मैथिली कोश-विज्ञान बहुत बादमे विकसित भेल, म.म. दीनबन्धु झाक प्रयासक बहुत बाद आ आब जा कए हमरा सभक सोझाँ महत्त्वपूर्ण कार्य सभ आएल अछि जेना पं गोविन्द झा द्वारा कल्याणी कोश वा जयकान्त मिश्रक वृहत् मैथिली शब्दकोश, मतिनाथ मिश्र ‘मतंग’ क मिथिला शब्द प्रकाश वा अलाइस डेविसक बेसिक कलोक्विअल मैथिली : अ मैथिली-नेपाली-अंग्रेजी वोकाबुलरी। संक्षिप्त मैथिली शब्दकोश आ द्विभाषी मैथिली शब्दकोश जे मैथिली अकादमी द्वारा संकल्पित अछि, अयनाइ एखन बाकी अछि। राष्ट्रीय अनुवाद मिशन द्वारा संकल्पित (देखू www.ntm.org.in) लांगमैन- सी.आइ.आइ.एल. बेसिक इंगलिश- इंगलिश- मैथिली जे कॉर्पोरापर आधारित अछिसेहो एकटा रुचिगर उत्पाद होएत। मुदा सभटा कहला आ केलाक बाद एहि कार्यक महत्त्व समय बितलाक संगे अनुभूत कएल जाएत।
२८.०२.२००९ प्रोफेसर उदय नारायण सिंह
मैसूर
निदेशक
केन्द्रीय भाषा संस्थान (सी.आइ.आइ.एल.)
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7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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