भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
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शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Saturday, April 04, 2009
विदेह २९ म अंक ०१ मार्च २००९ (वर्ष २ मास १५ अंक २९)-part-i
एहि अंकमे अछि:-
१.संपादकीय संदेश
२.गद्य
२.१. कथा-सुभाषचन्द्र यादव-कुश्ती
२.२.भाग रौ (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका - विभा रानी (आगाँ)
२.३. सुशांत झा- मिथिला मंथन
२.४. आ ओ मारलि गेलि !— बृषेश चन्द्र लाल
२.५. जयकान्त मिश्रपर विशेष १.डॉ. गंगेश गुंजन २. विद्या मिश्र
२.६. विवेचना: सुभाषचन्द्र यादवक कथा संग्रह- बनैत-बिगड़ैत गजेन्द्र ठाकुर होलीक संदेश डा. चन्देनश्वंर शाह
३.पद्य
३.१. वसंती दोहा- कुमार मनोज कश्यप
३.२. सतीश चन्द्र झा- हमर स्वतंत्रता
३.३.ज्योति- एक नाैकरी चाही
३.४.जंगल दिस !- रूपेश कुमार झा 'त्योंथ'
३.५. पंकज पराशर -समयोर्मि
३.६.सुबोध ठाकुर-हम गामेमे रहबइ
४. बालानां कृते-मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी
५. भाषापाक रचना-लेखन - पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
६. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)-
The Comet-English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani by jyoti
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( तिरहुता आ देवनागरी दुनू लिपिमे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Tirhuta and Devanagari versions both ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक तिरहुता आ देवनागरी दुनू रूपमे
Videha e journal's all old issues in Tirhuta and Devanagari versions
१.संपादकीय
मैथिलीक सभसँ प्रतिष्ठित प्रबोध सम्मान 2009 क लेल श्री राजमोहन झाकेँ स्वास्ति फाउंडेशन द्वारा पटनाक विद्यापति भवनमे 22 फरबरी 2009 केँ 4 बजे अपराह्नसँ शुरु भेल कार्यक्रममे देल गेल। एहिमे स्मृति चिन्ह आ एक लाख टाका देल जाइत अछि। श्री भीमनाथ झा, उदय नारायण सिंह, विजय बहादुर सिंह, अभय नारायण सिंह आ ढेर रास गणमान्य लोक एहि अवसरपर उपस्थित छलाह।
रेडियो कार्यक्रम हेल्लो मिथिला, जकरा विषयमे बहुतोगोटेक सुझाव रहैत छलनि जे ई सभतरि सुनल जा सकबाक कोनो ब्योँत धराबी। से धीरेन्द्रजी सहर्ष जानकारी देलथि जे आब ई कार्यक्रम इन्टरनेटपर अनलाइन उपलब्ध भऽ गेल अछि।
सामाजिक तथा सांस्कृतिक विषयवस्तुपर केन्द्रित हेल्लो मिथिला कार्यक्रम प्रत्येक शनि कऽ नेपाली समयानुसार राति ९.३० बजेसँ ११ बजेधरि आ राजनीतिक विषयवस्तुपर केन्द्रित चौबटिया कार्यक्रम प्रत्येक सोम कऽ राति १० सँ ११ बजेधरि प्रसारण होइत छैक। स्मरणीय अछि जे नेपाली समय भारतीय समयसँ १५ मिनट पाछाँ अछि। ई कार्यक्रम इन्टरनेटपर www.kfm961.com पर सुनल जा सकैत अछि। शनि दिन हम एकरा सुनलहुँ बिना कोनो व्यवधानक।
दिनांक 16.02.2009 कें मैथिली मंडनक तत्वावधान में 'मैथिली युवा लेखन दशा आ दिशा' विषय पर शहीद भगत सिंह कॉलेज, नई दिल्ली मे एक टा संगोष्ठीक आयोजन कयल गेल। एहि अवसर पर देशक विभिन्न भाग स' आयल टटका पीढीक सक्रिय भागीदारी रहल। बनारस से आयल 'नवतुरिया' केर संपादक अरुणाभ, कटिहार (बिहार) से रोहित झा, दिल्ली से अलोक रंजन, मिथिलेश कुमार राय, फिरदौस, धर्मव्रत चौधरी, देवांशु वत्स, सेतु कुमार वर्मा प्रमुख वक्ता छलाह। ऑडियो कोंफ्रेंसिंग के जरिये गाजियाबाद से मैथिली आ हिंदीक प्रख्यात कथाकार - संपादक अनलकांत ( गौरीनाथ ) आ सहरसा सं चर्चित युवा कथाकार - कवि अखिल आनंद सभा स' जुड़लैथ. संगोष्ठीक संचालन युवतम रचनाकार कुमार सौरभ केलथि।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ २७ फरबरी २००९) ७७ देशक ७५८ ठामसँ १,६०,५१७ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर, नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in ggajendra@yahoo.co.in
२.संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भ' गेल।
२.गद्य
२.१. कथा-सुभाषचन्द्र यादव-कुश्ती
२.२.भाग रौ (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका - विभा रानी (आगाँ)
२.३. सुशांत झा- मिथिला मंथन
२.४. आ ओ मारलि गेलि !— बृषेश चन्द्र लाल
२.५. जयकान्त मिश्रपर विशेष १.डॉ. गंगेश गुंजन २. विद्या मिश्र
२.६. विवेचना: सुभाषचन्द्र यादवक कथा संग्रह- बनैत-बिगड़ैत गजेन्द्र ठाकुर होलीक संदेश डा. चन्देनश्वंर शाह
कथा
सुभाषचन्द्र यादव-कुश्ती
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल- मधुबनी। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
कुश्ती
भोर धरि पता नहि चलल । ओ रातिये भऽ गेल छल । उठलाक कनेक कालक पछाति लुंगी पर नजरि गेल । कहियो – कहियो सपना देखलाक बाद भऽ जाइत छैक, तेहने लागल । लूंगी दू – तीन ठामसँ सूखिकेँ कड़ा भऽ गेल छलैक। सपना पर गौर कयलाक बादो कोनो ओहन सपना मोन नहि पड़ल । ओहुना ओकरा भेलापर निन्न खुजि जाइत छैक । निन्न राति खन नहि खुजल छल। तँइ कनेक आश्चर्य तखन धरि बनल रहल जखन धरि ठेहुन पर नजरि नहि गेल । पहिलो बेर एहिना भेल छल । सियाह दाग उभरलाक बाद पानिक गिरब आ फेर एकटा पैघ सन घाव ।
ओहि बेर दर्द नहि भेल छल । पपड़ीक कैक टा तह जमि कऽ उखड़ैत गेलैक आ करीब सप्ताहक भीतरे ठीक भऽ गेलैक ।
लुंगी पर पड़ल दागकेँ हम नुकबैत रहलहुँ । हम नहि चाहैत छलहुँ लोक एहन – ओहन पूछि देअय ।
दू-तीन बजे धरि हमर एकटा दोस्त आबि गेल । ओ हमरा संग लऽ कऽ हटिया जेबाक जिद करय लागल जे पछिला किछु दिनसँ हप्तामे दू बेर लगैत छलैक । ओहि ठाम ग्राम पंचायत दिससँ कुश्तीक आयोजन होइत छलैक। हटियाक प्रगतिक सभ टा दारोमदार कुश्तिये पर निर्भर करैत छलैक। लोकक एहन धारणा बनि गेल छलैक। ई बादमे मालूम भेल जे हटिया आरंभ करबा लेल गामक लोकक बीच खेतक गाछ लेल एकटा पैघ कुश्ती भऽ चुकल छलैक ।
कुश्ती बड़ दिलचस्प आ मजेदार छलैक । कइएक टा जोड़ामे गोटक एहन निकलिये अबैत छलैक जकर कलाबाजी पर लोक थपड़ी पाड़ैत छल । जनी – जातियो के एकाध झुंड मर्द सभ सँ फराक रहबाक कोशिश करैत कुश्तीक मजा लऽ रहल छलैक । कुश्ती करैत-करैत एक टा जोड़ा आगाँ बैसल लोक सभ पर अचानक खसि पड़लैक । लोक पाछू दिस पड़ाय लागल । हमर ध्यान दोसर दिस छल । समय पर सावधान नहि भऽ सकलहुँ । ठेहुनपर जोरसँ चोट लागि गेल आ हम खसैत-खसैत बचलहुँ। हम चिकरिकऽ भीड़केँ गरियाबऽ लगलहुँ । कपड़ा खराप भऽ गेल छल । घावसँ खून बहैत छल । दोस्त सहानुभूति देखओलक आ हेल्थ सेंटर पर चलबाक सुझावदेलक ।
'एखन क्यो हेतैक ?'— ई पुछैत हमर सभटा तामस हेल्थ सेंटर पर केन्द्रित भऽ गेल । ओ सेंटर बन्ने रहैत छलैक । दू टा कर्मचारी छलैक, जे सप्ताहमे कोनो एक दिन चल अबैत छलैक आ फेर अपन –अपन गाम । जरूरतमंद लोक केँ भरि सप्ताह हेल्थ सेंटरक चक्कर लगबऽ पड़ैत छलैक किएक तँ ओ सभ कहियो मिनिस्टरक आकस्मिक दौड़ा जकाँ आबि सकैत छलैक ।
आइयो हम ओकर खुजल रहबाक उमेद लऽ कऽ नहि चलल छलहुँ । तँइ ताला देखि बेसी निराशा नहि भेल । सेंटरक उपयोगितापर गौर करैत क्यो लकड़ीक बोर्ड, जे सेंटरक अस्तित्वक प्रमाण छलैक , केँ उनटि देने छलैक ।
हमसभ घुरि रहल छलहुँ तखने देबालक पाछुसँ कोनो चीज खसबाक आवाज आयल । एक टा छौड़ा घर लऽ जेबा लेल ईंट जमा कऽ रहल छल । छौंड़ा पहिने कनेक सकपकायल, फेर सम्हरि के दाँत चियारैत सफाइ देबऽ लागल ।
घावसँ खूनक बहब बन्न भऽ गेल छलैक , मुदा नस फूलय लागल छल । साँझ धरि माथमे एकटा भारीपनक अनुभव हुअय लागल । देह टूटय लागल जेना बुखार अयबासँ पहिने होइत छैक । फेर कँपकँपी शुरू भऽ गेल । हम सीरक ओढ़ि बिछौनपर पसरि गेलहुँ । दोस्त अखनो घूर लग बैसले छल । फेर आरो लोकसभ आबि गेल छलैक । हुनका सभक बीच कोनहु गप्प कतहुसँ शुरू भऽ जाइत छलैक । कनेक पहिने हमर घावक बात शुरू भेल छलैक आ आब सेंटरक पछारी चलऽवला पालिटिक्सक पर्दाफास भऽ रहल छलैक। बेसी हल्ला-गुल्लाक कारणे हुनका सभपर हम खौंझाय लागल छलहुँ । हम अपन मूड़ी सीरक तर कऽ लेलहुँ आ काछसँ ऊपर बनल गिल्टी टोबऽ लगलहुँ ।
भोरे उठलापर ताजगीक अनुभव भेल । घावपर कपड़ा सटि गेल छलैक । घाव काल्हिए सन ताजा छलैक । छोट भाय तकलीफ दिया पूछिकेँ चलि गेल । छोट भाय् मायसँ घावक मादे किछु नहि कहने छलै । बता देने रहितै तँ माय परेशान भऽ कइएक बेर हमरा लग आबि गेल रहैत । ओना हम घावकेँ लऽ कऽ कनेको चिन्तित नहि छलहुँ । सोचि नेने छलहुँ जे पहिल बेर जकाँ सहजे ठीक भऽ जेतैक । कपड़ापर दाग उभरि अबैत छलैक आ ओइपर माछी भिनकऽ लगैत छलैक । हम मात्र अहीसँ परेशान रही ।
दुपहर धरि अड़ोस-पड़ोसक लोकसभ दाग देखि पूछताछ कयलक । हमरा क्रमिक रूपसँ घावक पूरा हुलिया दिअय पड़ल । लोकसभ एहने स्वभाववला घावक कइएक टा दृष्टान्त देलक । घावसँ सम्बद्ध व्यवक्ति सभक पूरा खिस्सा सुनौलक फेर अपन – अपन अनुभवक अनुकूल आ प्रमाणित निदान बतौलक । किछु सहानुभूति प्रकट कयलक , किछु कँ घृणा भेलै आ किछु तटस्थ भाव लेने चलि गेल । अपनासँ छोट उमिरक कइएक गोटेकेँ हम टारि देलियै ।
खाइत काल हमर छोट भाय संगहि बैसि गेल । एक तेहाइ हिस्सा खा लेबा धरि एक टा दाग फेर उभरि अयलैक आ माछी लागय लगलैक । छोट भायक नजरि प्रत्येक आध मिनटपर ओहीठाम चल जाइत छलैक । कनेक काल बाद ओकर खेबाक गति एकदम मंद पड़ि गेलै आ हमरा बुझायल जे ओकरा रद्द भऽ जेतै । हमरा पछतावा भेल जे ओ किएक हमरा संगे बैसि गेल । हम निर्णय लेलहुँ जे घाव रहबा धरि एहन समय संगे नहि बैसब । ओ बड्ड मुश्किलसँ ओहि भावकेँ मेटओलक । फेर ठंढ़ायल आत्मीय स्वरमे होमियोपैथ डाक्टर लग जेबा लेल कहलक । बहुत पहिने एकटा बीमारीक दौरान एलोपैथीपरसँ ओकर विश्वास खतम भऽ गेल छलै। ओना हमर एकटा मजकियल दोस्त ओकरे सोझाँ होमियोपैथीपर नमहर लेक्चर दैत कहने छलै जे एहि पैथीक पाउडरमे दबाइ कम पाइ बेसी चलैत छैक ।
खाकऽ उठैत-उठैत हमर घावक मादे जननिहारक संख्या किछु आर बढ़लैक । किछु गोटे घाव देखाबऽ लेल कहलक । एहि काजमे हमरा सभसँ बेसी हिचकिचा - हटि होइत छल । मायकेँ जाहि समय सूचना भेटलै, तखने हमर छोट भाय ककरोसँ झगड़ा कऽ रहल छल। माय बेसी ध्यान नहि दऽ सकल । कर्पूर आ नारियरक तेल लगाबऽ लेल कहि जिम्हर भाय झगड़ा करैत छल, ओम्हरे जाय लगल । भाय आब गारिपर उतरि लायल छल—'सार, हटियाक सभ कुश्ती घुसाड़ि देब !’
हमहूँ तेजीसँ ओम्हरे दौड़लहुँ । मालूम भेल आरि छाँटि-छाँटि करीब बीत भरि खेत ओ अपन खेतमे मिला लेने छलैक आ आब नापियो मानय लेल तैयार नहि । हम भायकेँ शांत कयलहुँ। बहुत राति धरि एहि तरहक कतेको समस्या पर गप्प –सप्प होइत रहलैक जाहिसँ हमरासभकेँ निपटबाक अछि । माय हमरासँ शिकाइत करैत रहल जे हम बहुत लापरवाह भऽ गेल छी ।
बिछौनपर जाकऽ हमरा ध्यानमे आयल जे दुपहरियासँ एखनधरि सभ चर्च घावसँ हटिकऽ होइत रहलैक अछि आ एकाएक हम एक तरहक आरामक अबुभव करय लगलहुँ ।
फेर सोचय लगलहुँ हम एहि कोठलीमे सभ कपड़ा उतारि नग्न भऽ जाइ, घावक सभटा चेन्ह मेटा जाइक, अंग-प्रत्यंग निर्विकार आ सुन्द र देखाय लागय । मुदा तुरत्ते एहन हैब असंभव छलैक । आस्ते—आस्ते हम निन्नमे डूबैत गेलहुँ । हमरा लागल जेना हम कइएक गोटासँ लड़ि-झगड़ि रहल छी । ठेहुनपर ओहिठामसँ खून बेसी मात्रा मे निकलि रहल अछि ।
भोरमे घाव फेर ओहिना छलैक । हम ठीक ढँगसँ किछु तय नहि कऽ पबैत अलहुँ जे पहिने गामक सभटा झगड़ासँ निपटि ली वा घावसँ । एहि अनिर्णयसँ उत्पन्न थकनीक कारण हम बहुत सुस्त भऽ केँ पड़ल छलहुँ । माय फुर्तिआह डेग उठौने हमरा लग आयल आ घाव ओहिना ताजा देखि तमसाय लागल । हम कहलियै—'गामक झगड़ा...’ वाक्य पूरा हेबासँ पहिने माय बाजव शुरू कऽ देलक –’बेराबेरी निपटि लेब ! तोँ पहिने घावक इलाज करा आबह ।’
हम झपटि कऽ अंगा उठओलहुँ आ विदा भऽ गेलहुँ ।
भाग रौ
(संपूर्ण मैथिली नाटक)- (आगाँ)
लेखिका - विभा रानी
पात्र - परिचय
मंगतू
भिखारी बच्चा 1
भिखारी बच्चा 2
भिखारी बच्चा 3
पुलिस
यात्री 1
यात्री 2
यात्री 3
छात्र 1
छात्र 2
छात्र 3
पत्रकार युवक
पत्रकार युवती
गणपत क्क्का
राजू - गणपतक बेटा
गणपतक बेटी
गुंडा 1
गुंडा 2
गुंडा 3
हिज़ड़ा 1
हिज़ड़ा 2
किसुनदेव
रामआसरे
दर्शक 1
दर्शक 2
आदमी
तांबे
स्त्री - मंगतूक माय
पुरुष - मंगतूक पिता
भाग रौ
(संपूर्ण मैथिली नाटक)
अंक : 2
दृश्य : 2
(मंगतूक स्थान - भोरक बेला - मोटर गाड़ी स' एक गोट सेठ उतरैत अछि - गाड़ीक दरवाजा फोलब, बंद करबाक, जेब स' टाका निकालबाक अभिनय.. टाका निकालिक' ओ मंगतू दिस-बढ़ैत अछि..)
आदमी : उठ, उठ, ऐ भाई.. भोर भ' गेलै।
(मंगतू ओकरा दिस प्रश्नाकुल नजरि स' देखैत अछि। बाजैत किछु नञि अछि..)
ई ले - एकावन टाका। राखि ले।
मंगतू : एकावन टाका? मुदा कियैक?
आदमी : आई हमर बाउजीक बरखी अछि। ब्राह्मण अथवा दरिद्रनारायण भोजन करेबाक फुर्सति अछि नञि तैं, आई पाँच लोक के दान क' देइत छियै।
मंगतू : साब, हमर एक गोट विनती अछि.. साब, ई पाई अहाँ राखि लिय'.. आ एकरा बदला मे हमरा कोनो काज द' दिय.. पतियाउ साहब जी, हम काज क' सकै छी.. ई हमर हाथ देखियौ.. गोर देखू.. (विचित्र तरीका स' हाथ-गोर चलबैत अछि) साहेब जी.. हमरा अई नरक स' निकालू साहेब जी.. हमरा काज दिय'.. केहनो.. पैघ-छोट.. अहाँ के शिकायतक मोका नञि देब साहेब जी। (ओकर पएर-पकड़बाक अभिनय करैत अछि। आदमी घबड़ाक' पराएत अछि। गाड़ी मे बैसबाक, स्टार्ट करबाक अभिनयक संग खौंझाएल स्वर में..)
आदमी : हुंह! काज चाही । देह न दशा, मुर्गी प्यारे फँसा। नीक-नीक लोक के त' काज भेटै नञि छै.. सभ ठॉ त' भर्ती पर रोक लागल छै.. चुनावक समय मे अखबार मे नौकरीक विज्ञापन भरि.. तकरा बाद फुस्स! सरकारक आमदनिए छै। ई विज्ञापन स'.. डीडी, पे-ऑर्डर.. एकरा देखियौ.. काज क' लेब.. कोनो काज.. जहन कोनो काज कइए लेबें त' माँग भीख! ईहो त' काजे छै आ बड्ड मेहनति आ हिम्मति बला काज छै।
(गाड़ी चलेबाक अभिनय संगे मंच स' बाहर। बाहर जाइत काले मंगतू पर नजरि..)
मंगतू : चलि गेलाह। सब चलि जाइत अछि। भीखक एक गोट अठन्नी, रूपैया फेंकि क'.. बस! साधे रहि गेल जे किओ हमरो सहारा दितियैक - अपना पैर पर ठाढ़ हेबा मे.. लोक आओर पतियाइ कियै नञि छथि जे हम ठाढ़ भ' सकै छी.. लिख-पढ़ि सकै छी.. ई देखू (हाथ स' जमीन पर किछु लिखबाक प्रयास करैत अछि) .. आ.. आ.. ई किसुनदेव आ रामआसरे भाई त' कहैत छथि जे हमर दिमागो बड्ड तेज अछि (कनेक मुस्काइत अछि।) तैं त' हुनकर बड़का साहेब हमरा लग आएल छलाह.. बाप रौ, की सूट-बूट, की शान.. (मंगतू पर स' फेड आउट)
(फ्लैश बैक आरंभ)
(एक अधेड़, रोबदाब बला व्यक्ति.. नाम तांबे.. मंच पर बेचैनी स' एम्हर-ओम्हर बूलि रहल छथि। रामआसरेक प्रवेश)
राम. : साहेब जी?
तांबे : (अनसोहांत स्वर मे) yes?
राम. : साहेब जी किछु पिरीशानी मे बूझा रहल छथि।
तांबे : परेसान नञि होइ त' की राग मल्हार गाबी? सभटा डाटा कलेक्ट कएल छल। पता नञि कोना हार्ड डिस्क सेहे उड़ि गेल।
राम. : साहेब जी, कम्पलेन नञि लिखाओल की?
तांबे : एंट्री त' क' देलहुँ। मगर तकरा स' की? इंजीनियर त' काल्हिए आओत। आ मैटर हरि हालति मे आइए देबाक अछि। तैं त' लेट बइसल छी.. मुदा.. (माथ पकड़ि लेइत अछि।)
राम. : साहेब जी.. छोट मुंह पैघ गप्प.. अनसोहांत सन सेहो.. मुदा नीचाँ.. छै ने.. ओ लोथ.. मंगतू.. भ' सकैय' ओ बता दियए..
तांबे : (एक नजरि ओकरा देखि ठठा क' पेट पकड़ि क' ठठाएत अछि।) ऊ लोथ भिखमंगा, ऊ हमरा डाटा बताओत? रौ, तोहर दिमाग दुरूस्त त' छौ ने! जे डाटा कलेक्ट कर' मे हमरा एतेक समय लागल, एतेक - एतेक किताब कंसल्ट कर' पड़ल, ओ ओहि अनपढ़, लोथ, भिखमंगा..
राम. : साहेब जी, कम्पूटर त' अहाँ के अहिना.. इंजीनियर काल्हिए आओत। काज करबाक अछिए अहाँ के। आर कोनो उपाय त' अछि नञि! त' एक बेर टराइ करबा मे हर्जे की! हमरा ओना विश्र्वास अछि जे ओ अहाँक अबस्से बता देत।
तांबे : कोन आधार पर तों कहि रहल छें एना?
राम. : ओ पढ़' जानै छै। हमहीं आ किसुनदेव मिलिक' ओकरा अच्छर ज्ञान करैलियै। ओकर लगन आ मेहनति.. आई ओ अखबारक नाम स' ल'क' अंतिम पन्ना आ संपादकीय धरि पढ़ि जाइत अछि। सभकिछु सिलेट पर लिखल लाइन जकाँ मोन रहैत छै ओकरा। तैं हम.. बाकी त' अहाँक इच्छा..।
(फ्लैशबैक समाप्त। प्रकाश मंगतू पर।)
मंगतू : रामआसरे कहला सन्ते तांबे साहेब आएल छलाह! (हंसैत) बार रौ बाप! की गुमान मे फूलल छलाह। हमरा ल'ग ठाढ़ हेबाक विवशता, मुंह पर बहुत किछु जनबाक दर्प, जेना दुनियाक संपूर्ण ज्ञानक गठरी हुनके लग हुअए, हमरा लेल हुनक ऑखि मे लहराइत घिरनाक समुंदरि, संगही एकटा उपकारक भाव सेहो, जे देख - हमही छी, जे ऐलौं तोरा लग.. ले बिलइया के, हौ जी, ऐलौं त' कोनो हमरा लेल.. एलौं अहाँ अपना लेल.. ऐलौं, पूछलौं, हमरा मोन छल, बतेलौं, अहाँ लिखलौं, छपेलौं, आ बिसरि गेलौं। एकटा धन्यवादो धरि नञि। रामआसरे भाइ लेख देखाओल.. मुदा पढ़ि नञि सकलहुँ - अंग्रेजी सन्ता। हमर ज्ञानक उपयोग कोना भेलै.. ई हमरे नञि पता.. इएह त' अछि हमर तकदीर.. (विचित्र हँसी हँसैत अछि.. पत्रकार-युवक-युवतीक प्रवेश। ओकरा हँसैत देखि थम्हि जाइत छथि।)
युवती : मुगतू? (मंगतूक हंसी थम्हि जाइत अछि।) की भेलौ? बड्ड हंसि रहल छे।
मंगतू : (कनेक सकुचाइत) जी.. ओ किछु नञि.. बस.. तांबे साहेब बला बात..
युवक : (रूक्ष स्वर मे) सुनल जे ओ तोरा लग आएल छलाह आ तों एकदम टेपरेकॉर्डर जकाँ चालू भ' गेल छलें?
मंगतू : (ओकर रूक्षपन के लक्षित नञि करैत अपनही प्रवाह मे) त' की करितियैक! एतेक बड़का साहेब! एतेक पिरीसान.. चांसे बूझल जाओ जे हमरा पता छल। - जे किछु पता छल, से सभ बता देलियइ.. देखलियइ हम लेख.. मुदा अंग्रेजी.. साब, अहाँ हमरा अंग्रेजी पढ़ब सिखा देब?
युवती : (मोन पारैत) हे सुनु, हम सभ एकरा पर स्टोरी केने छलहुँ ने?
युवक : अरे, ऊ त' पुरान कथा भ' गेलै। वंडरफुल एंड पावरफुल प्रोजेक्ट ।
युवती : एकरा किछु लाभ करेलहू की नञि?
युवक : माने? (ऑफिस दिस बढ़ैत अछि।)
युवती : (अनुसरण करैत) माने ई, जे ओहि समय गप्प भेल छल जे पेमेंट भेलाक बाद अहाँ ओकरा किछु देबै.. जस्ट फॉर ए नाइस जेस्चर.. मुदा, अहाँ त' हमरो किछु नञि बताओल।
युवक : अहँू त'! ओ की केलकई जे ओकरा पेमेंट करियई?
युवती : वएह त' धुरी छल। नञि बतेतियैक त' अहाँ काज क' सकै छलहुँ? नञि न! आब किछु ओहि गरीब के.. (दुनू ऑफिसक गेट धरि पहुँचइत छथि। रामआसरे आ किसुनदेव दुनूक गप्प सुनै छथि।) काज निकलि गेल त' बस, मुंह फेरि लेलहूँ!
युवक : जमाने इएह छै डार्लिंग। देखलहुँ मि. तांबे के.. सभटा काज करबा लेलन्हि मुदा नामोक क्रेडिट नञि..
युवती : अहँू सएह बन' चाहै छी त' बनू.. मुदा हमर मानधन हमरा दिय'! हम ओही मे स' ओकरा..
राम. : नमस्कार साहेब।
युवक : नमस्कार नमस्कार।
किसुन: कोनो गंभीर गप्प सर?
युवक: उंहूं, किच्च्छु नयिं।
युवती : किछु कियैक नञि? अरे, हम दुनू ओहि मंगतू पर काज करै छलहुँ। तहन ई गप्प भेल छल जे पाइ भेटला पर हम किछु ओकरो देबै। मुदा.. ई त' हमरो पाइ घोखि गेलैन्हि..
युवक : (जेना भेद खुलि गेल हुअए) ओके बाबा ओके। अहांक पाइ अहां के द' देब। ओकरो द' देबै.. आब त' खुश? (फसफुसाइत) सभके सभ किछु कहब जरूरी छै की? (बाजैत भीतर चलि जाइत छथि। युवती पहिने जाइत अछि। पाछा स' युवक अपन तर्जनी माथ पर ल' जाक घुमबैत अछि -- माने युवती कनेक क्रैक अछि।)
राम. : देखल भइया ई बड़का-बड़का लोकक खेल! पत्रकार छथि ई सभ। जनताक पैरोकार। जनताक रच्छक। रच्छक खुदे भच्छक.. हाँक' लेल कहू त' एकदम सूरूजे पर, देब' बेर मे पद-पद पाद' लगताह! हजारो टाका झिंटने हेतै मंगतुआक नाम पर। आ ओकरे किछु देबाक नाम पर ..
किसुन : सटक सीताराम! सभ एक्के थरियाक भांटा रो भाइ!
राम. : ऊ तांबे साहेब! ओकरे मदति स' ओ लेख लिखलन्हि। छपबो केलै। आब हमरा त' अंग्रेजी, फंगरेजी अबै नञि अछि। हम पूछ' गेलियै जे साहेब, अई मे मंगतूक कोनो जिकिर-उकिर..!
किसुन : की बाजलन्हि?
राम. : अरे, ओ तेहेन न आँखि गुरेरलन्हि जे एह -'ई लेख है रामआसरे, इन्टरव्यू नहीं कि सबका नाम देते रहें।' हम त' तइयो ढीठ बनल बजलहुँ जे साहेब, ओकर कोनो भला भ' जयतियन्हि। भिखमंगाक जिनगी स' ओकरा छुटकारा भेटि जइतियैक। ओ फेर आँखि तरेरलन्हि। हम फेरो थेथर जकाँ बाजलियैक जे ठीक छै, नाम नञि देलियै त' किछु दामे द' दियऊ। लगतै ओकरो जे हँ, आई अपना दिमागक कमाई भेटलए.. सभ सार चोर अछि- ऊ तांबे, ई छौंड़ा.. काम रहला पर बाबू-भैया आ निकलि गेला पर दू-दू लात।
(पार्श्र्व स' सोगबला धुन। प्रकाश मंगतू पर। ओ चिकरैत अछि)
मंगतू : किओ हमरा अई नरक स' निकालि क' ल जाऊ। रौ तकदीरक नाति, कत' मुंह मरा रहल छें। देह नञि त' तोहें नीक जकां रहितें हमरा लग। कोनो नीक, पाईबला घर मे देतें। माय-बाप लग। मुदा, जहन अपने माय-बाप अपन नञि भेल तहन..
(सोगबला धुन उत्सव धुन मे बदलि जाइत अछि। मंगतूक चेहरा फेड आउट होइत अछि। एक काल्पनिक लोकक आभास देइत लाल-नारंगी-पीयर रोशनी पसरइत अछि आ ओहि प्रकाश मे देखाइ पड़ैत अछि - एक गोट स्त्री, जकरा कोरा मे एकटा नवजात अछि। अन्य स्त्रीगण नाचि-गाबि रहल छथि!)
रूपैया मांगे ननदी लाल के बधाई
एके रूपैया मोरा ससुर के कमाई
अठन्नी ले लो ननदी लाल के बधाई
एके अठन्नी मोरा पिया के कमाई
ओ ना मैं दूँ ननदी लाल के बधाई
एक स्त्री : देखू भौजी। चान जइसन बेटा देलन्हि अछि हमर भैया अहाँ के। आब बेगर छत्तीस भरक डँड़कस के नञि मानब।
(सभ हंसैत छथि। स्त्री लजाइत अछि। पुरूषक प्रवेश। हँसैत-नचैत स्त्रीगण विदा भ' जाइत छथि।)
पुरूष : राधा, की नाम राखब एकर?
स्त्री : (लजाइत) जे अहाँ कही।
पुरूष : हमर मानी त' एकर नाम राखब चिरंजीवी। खूब पढ़ाएब, लिखाएब, कलक्टर बनाएब।
स्त्री : हमरा मानी त' ओकरा पर अपन मर्जी नञि थोपी । अपना मर्जी स' ओ जे बनय, डाक्टर कलक्टर, एक्टर..
पुरूष : अच्छा भई, हम त' हुकुमक गुलाम छी। हुकुमक बेगम जे हुकुम देतीह, हुकुमक गुलाम बजा आनत (कोर्निश करैत अछि। स्त्री हंसैत अछि। पुरूष छेड़ैत अछि) गीत मे कहलियै - पिया के कमाई नञि देबै ननदि के, हमर बहीन के। ओ जीवित नञि छोड़ती अहाँ के! तहन? तहन हमर की हएत (आवाज रोमांटिक होइत अछि। स्त्रीक हंसी। अंधकार-प्रकाश मंगतू पर।)
मंगतू : एहेन माय-बाप हमर करम मे कत'? समाजक सामना करबाक हिम्मत नञि भेलै। अई समाज मे श्राप भोग' लेल छोड़ि देलैन्हि। सोचल, जे अपने स' अपन तकदीरक किताब लिखब, मुदा ऊ बकट्टा गुड्डी हमरे जिन्दगी के बकट्टा क' गेल.. लोथ, लूल-लांगड. बनल ई जिनगी । मौगत की एकरा स' अधलाह हेतै?.. मुदा मौगतो त' नञि अबैत अछि। नञि घरक आसरा, नञि समाजक, नञि लोकक। कथी लेल जीब, ककरा लेल जीब, ई जीबाक कोनो अर्थ?
(मंगतू भोकासी पारि कान' लागैत अछि। रामआसरे आ किसुनदेव ओकरा लग अबैत छथि।)
राम. : अपन इ ऑफिसे मे त' कतेक विकलांग लोक काज करै छथि, भोइकर साहेब, लीना मैडम, सिन्हा जी.. मुदा .. एक दिस एहेन माय-बाप आ दोसर दिस ई समाज.. सभक फाटल मे आंगुर कर' बला। रौ, तोरा कोन मतलब छौ किओ किछु करए। ककरो चैन स' जीब' नञि देतै ई समाज..
(रामआसरे आ किसुनदेव मंगतू के धैरज बंधबैत छथि । पार्श्र्व स' कविता )
'जिनगी जुआ अछि
सट्टा अछि, बजार अछि
ताश अछि, पत्ता अछि
रोशनीक बाढ़ि
चोन्हियाएल लोक
भीड़ अछि, एकान्त अछि
भोरक तारा विश्रान्त अछि
तारा टूटए नञि
आस छूटए नञि
(फेड आउट)
(अगिला अंकमे जारी)
------
मैथिली के ल क किछु असुविधाजनक प्रश्न...सुशान्त झा
कखनो क सोचैंत छी जे मैथिली भाषा और मिथिलांचलक विकास ओहि रुप मे किएक नहि भ सकलै जेना दोसर प्रान्त आ आन भाषा सब तरक्की क गैलै। एखुनका परिदृश्य अगर देखी त बुझाइत अछि जे मैथिली साहित्य के विकास आ एतुक्का विकास के ल क चिंता सिर्फ किछु मुट्ठी भरि लोक के दिमागी कसरत छैक-आम मैथिल के एहि स कोनो सरोकार नहि। हालत त ई अछि जे मैथिल लोकनिके धियापुता दरभंगो मधुबनी मे मैथिली नहि ,हिंदी मे बात करैत छथि। एकर की कारण छैक आ एना किएक भैलैक।
अगर एकर तह मे जाई त एहि भाषाके संग सबसं पैघ अन्याय ई भेलैक जे एकरा किछु खास इलाका के मैथिली बनयबा के आ किछु खास लोकक भाषा बनयबाके प्रयास कयल गैलैक। मैथिली के दरभंगा मधुबनी आ खासक ओतुक्का ब्राह्मण के भाषा बनाक राखि देल गेलैक। मधेपुरा-पूर्णिया के बात त दूर दरभंगो मधुबनी के विशाल जनसमुदाय ओ भाषा नहि बजैत अछि जे किताबी मैथिली के रुप मे दर्ज छैक। ओना ई बात दोसरो भाषा के संगे सत्य छैक लेकिन कमसं कम ओतय ओहि भाषा के स्थानीय रुप के हिकारत या हेय दृष्टि सं नहिं देखल जाई छैक। मैथिली मे एहि तरहक कोनो प्रयोग के बर्जित कय देल गेलैक। मिथिला के खेतिहर,मजूर, मुसलमान आ निम्नवर्ग ओहि भाषा मे तस्वीर कहियो नहि देखि सकल। जखन मिथिला राज्य के मांग उठल त हमसब मुंगेर तक के अपना मे गनि लैत छी, लेकिन जखन भाषा के बात हेतैक त ओ सिर्फ मधुबनी के पंचकोसी या मधुबनी झंझारपुर तक सिमटि कय रहि जाईछ।
हमरा याद अछि जे कोना सहरसा या पूर्णिया के लोकके भाषा के मधुबनी के इलाका मे एकटा अलग दृष्टि स देखल जाई छैक। इलाकाई भिन्नता कोनो भाषा मे स्वभाविक छैक लेकिन यदि ओ अहंकारवोध सं ग्रस्त भ जाई त ओहि भाषा के भगवाने मालिक। फलस्वरुप जखन भाषाई आधार पर राज्यके मांग उठलैक त मिथिलांचलक विराट जनसमुदाय ओहि स अपना के नहि जोड़ि सकल आ ओ आन्दोलन लाख संभावना के बावजूद नहि उठि सकल। रहल सहल कसरि राज्यसरकार क मैथिली विरोधी रवैया पूरा कय देलक। मैथिली के बीपीएससी स हटा देल गैलैक, आ मैथिली अकादमी के निर्जीवप्राय कय देल गेलैक। लेकिन एहि के लेल सत्ता के दोष कियेक देबै, जखन जनता के दिस सं कोनो प्रवल प्रतिरोध नहि छलैक त सत्ता त अपन खेल करबे करत।
ओना त ई कहिनाई मुनासिब नहि जे मैथिली मे आम जनता के लेल या प्रगतिशील चेतना के स्वर नहि मुखरित भेलैक लेकिन ओ ओहि तरीका सं व्यापक नहि भ सकलै जेना आन भाषा मे भेलैक। मैथिली के रचना मे ओ मुख्यधारा नहि भ सकलै। दोसरबात ई जे कहियो मिथिला मे कोनो समाजसुधार के आंदोलन नहि भेलैक जेना बंगाल वा महाराष्ट्र मे देखल गेलैक। तखन ई कोना भ सकैछ जे सिर्फ भाषा के त विकास भय जाय लेकिन समाज के दोसर क्षेत्र मे ओहिना जड़ता पसरल रहैक। मिथिला के इतिहास के देखियौक त एतय येह भेलैक। दोसर बात ई जे मिथिला या मैथिली के लेल जे संस्था सब बनल ओकर कामकाज के समीक्षा सेहो परम आवश्यक। मैथिली के विकास के लेल दर्जनों संस्था बनल जाहि मे चेतना समिति के नाम अग्रगण्य अछि। लेकिन ओ चेतना समिति की कय रहल अछि आ जनता सं कतेक जुड़ल अछि एकर विशद विवेचना हुअक चाही। सालाना जलसा आ सेमिनार के अलावा एकर मैथिली भाषा के लेल की योगदान छैक तकर विशद समीक्षा हुअके चाही। मैथिली के बजनिहार भारते मे नहि नेपालों मे छथि, लेकिन दूनू दिसके भाषाभाषी के जोड़य के कोनो ठोस उपाय एखन तक दृष्टिगोचर नहि।
एखन जहिया सं मैथिली के संविधान मे मान्यता भेटलैक अछि तहिया सं साहित्य अकादमी के किछु बेसी गतिविधि देखय मे आबि रहल अछि। लेकिन मैथिली के जखन तक आम जनता आ ओकर सरोकार सं नहि जोड़ल जायत एकर आन्दोलन धार नहि पकड़ि सकैत अछि। एकर सबसं पैघ जिम्मेवारी ओहि बुद्धिजीवी लोकनि पर छन्हि जे मैथिली के पुरोधा कहबै छथि। हुनका सं ई उम्मीद त जरुर कयल जा सकैछ जे ओ एकर ठोस, सर्वग्राही आ समीचीन समाधान सामने लाबथु आ ओहि पर समग्र रुपे चर्चा हो।
कथा-
आ ओ मारलि गेलि !
— बृषेश चन्द्र लाल
तखनेसँ खदकैत भातक माड़ सुखा गेलैक आ भात जड़य लगलैक । ओकर तीब्र गन्धप जखन चारुभर पसरि गेलैक तँ फुलियाक तन्द्रा टुटलैक । ओ पित्ते चुल्हिरमे पानि झोंकि देलकि — ‘दुर्रऽऽ़़़ ! आब खएबे के करतैक ?! ़़़ इहो भात त फेकएबे करतैक उ’ फुलिया मोनेमन पटपटाएल रहय । ठीके, आब किछु ओकरा कोनो खाएल जएतैक ? आब तँ एकहिटा बात होएतैक — सभक चलि गेलाक बाद ओ मोनसँ कानति आ ताधरि कानति जाधरि नोरक बासनसँ अन्तिकम ठोप नहि टघरि जएतैक ।
ओकर गड़ तखनेसँ भारी छैक । आँखिसँ रहि–रहि कऽ टघरैत नोरकेँ ओ कहुना नुकबैति आबि रहलि अछि । कान्ह उचकाकए साड़ीसँ गालपर ससरैत नोरकेँ पोछैैति फुलिया देाकानमे बैसलि सिपाहीसभकेँ अपनाकेँ भानसमे तल्लीएन देखएबाक प्रयत्नरमे लागलि अछि । मुदा आब ओकरामे आओर सामर्थ्यल नहि रहि गेल छैक । अपन भोकासीकेँ रोकब मुश्कि्ल भेल जाइत छैक । कखनो ठोह पड़ा जएतैक । एम्हपर इसभ मस्त सँ पिअयमे लागल छैक । ़़़ तुरत्ते शायदे जाएत । सभ दिन जकाँ रहि–रहि कए फुलियासँ ठिठोलियो करैत छैक । फुलिया दाँत निकालि हँसक अभिनय करैति अपनाकेँ धुआँसँ पिडि�़त देखबक प्रयत्नत कए रहलि अछि जे कहुना मुँहझौंसासभ बुझैक नहि ।
ओ बारी जाएक बहन्नेब उठि जाइति अछि आ बीच्चे बारीमे बैसि कए सिसकि–सिसकि कए कनेक काल कानि लैति अछि । समयक मारि ओकरा सभ किछु सिखा देने छैक । ओ जनैत अछि जे केओ आ खासकय ओकरे दोकानमे बैसकय पिअयबलासभ यदि ओकरा कनैति देखि लेतैक तँ ओकरोपर शंका करए लगतैक आ नहि जानि ओकरा कोन लिखलाहा भोगय पड़तैक । ़़़ ओ फेर अपनाकेँ संयत करैति अछि आ कलपर आबि कुरुड़ कए हाथ–मुँह धोए अपन पीढ़ी पकड़ि लैति अछि जेना किछु भेले ने होइक आ आजुक घटनासँ ओकरा कोनो मतलबे ने होइक । ओ अपनाकेँ ने हर्ष ने विष्मा दक सजीव अभिनय दिस लगा दैति अछि । एतेक दिनक अभिनय जे से ़़़ कहुना काज चलैत अएलैक मुदा आजुक अभिनयपर ओकर जीवन/मरण निर्भर करैत छैक । ओना मृत्यु सँ ओकरा ततेक डर नहि छैक, मुदा यातना आ क्रूरतामादेँ जे ओ सुनैति आएलि अछि तकर पीड़ाक कल्पयनासँ ओ हलाल होइत छागर जकाँ सिहरि जाइत अछि । एखन आओर किछु नहि अभिनयेटा ओकरा एहि त्रासदीसँ बचा सकैत छैक । तैँ ओकरा अपन भावनाकेँ कहुना मसोड़य पड़तैक । ़़़ ओ अपन छातीकेँ फुलाकय एकबेर नाम साँस लैति अछि आ दोकानमे पैसि जाइति अछि ।
‘ की भेलौअऽ फुलिया ? ़़़ आँखि लालतेस छौक ?’ — हवल्दाोर भूलोटन ठाकुर झुमैत पुछलकैक ।
‘ किछो नहि !’ — ओ हडबडा जाइति अछि — ‘धुआँ आ पिआउज हरान कएने अछि । ़़़ तेहन जरना–काठी किना गेल जे ़़़ । ’ ओ आगाँ सफाई देबक कोशिश कएलकि ।
‘ हमरा तँ लागल मोन–तोन खराब छौक ! ़़़ जे होउक, मुदा एखन गाल बड्ड नीमन लगैत छौक । ़़़आ आँखि ! ़़़ एकदम लालतेस, रसाएल ़़़ दारु पिअल जकाँ !! ’ — हवल्दा़र जेना दागि देने होइक ।
फुलियाक एँडीसँ कनपट्टीधरि जेना झनझना गेल होइक । मोन भेलैक जे चुड़की पकडि कए दू थापर जमा दैकि मुदा ओ संयत रहलि, आ स्थिेरसँ बाजलि — ‘अहाँकेँ तँ सदिखन ़़़ ़़़ !’
हवल्दाुर भूलोटनक मोन खुशीसँ लहराए गेलैक । गालपर मुस्कीच पसरि गेलैक । काँस्टेलबल बलराम सहनी हवल्दादरकेँ प्रोत्सालहित करैत कहलकैक — ‘ठीके तँ कहैति अछि साहेब, सदिखन कोनो एना कएलकैअऽ ! ़़़ टाइमपर ने करक चाही ।’
पित्ते फुलियाक देह जड़ि गेलैक । लगलैक जेना केओ गरमाएलमे खौलल पानि ढ़ाड़ि देने होइक । ़़़ मुदा ओ करओ की ? एखन तँ सहहि पड़तैक । आई रातिमे कोनो बाट निकलतैक की ? कोनो ने कोनो उपाय तँ करही पडतैक । बाँचब तँ इज्जहतसँ ़़़ नहि तँ मरबे नीक । ओ स्थिैरसँ जबाब देलकैक — ‘दुर्र, खाउ जल्दीह ! ़़़ मुँहो नइ दुखाइअऽ ? तीमन नीमन अछि कि ने ?’
बलरामकेँ जेना मौका भेटि गेलैक, हँसैत कहलकैक —‘ ऐंह, तीमन बड्ड नीमन छैक । जेहन फुलिया तेहन तीमन ! हमहूँसभ आदमी चिन्हिहकए अबैत छी ने ? तोरहिं जकाँ तीमनो तेज छौक । ’
‘ बेशी मिरचाई पड़ि गेलैक की ?’ — ओ सरिआबक प्रयत्नि कएलकि । तैयो ओकर भौंह अनजानमे सिकुड़िये गेलैक । ओकरा लगलैैक, पुलिसबासभ कहूँ घुमाकए तँ बात नहि करैअऽ ?
‘ नइ, ठीक छैक । तीमन कनी तेजे नीक ।’ — बलराम सहनी दाँत निपोड़ैत कहलकैक ।
मुदा फुलिया किछु नहि बाजलि । ओ कनेक ससरि कए दूर मोचियापर बैसि रहलि । पुलिसबासभ बडी कालधरि खाइत रहलैक । हाँ–हाँ हीं–हीं करैत रहलैक । बीच–बीचमे कनखिया कए तकितो रहलैक । ़़़ ओकरसभक गप्प ओ आइ बुझि नहि सकलैकि । रहि–रहि कए मन व्याचकुल भ’ जाइक । बैचैनी कटने ने कटाइक । मोन होइक अहुँरा जाए आ खूब जोड़सँ कानए । ओ मनेमन गोसाईंकेँ गुहारलकि — ‘ हे भगवान ! ़़़ केहन बिपत्ति !! ़़़ पुलिसबासभ जएबो नहि करैत अछि !’
स्थि़ति आब ओकर सम्हा रमे नहि छैक । ़़़ कतहु बेहोश भ’ क’ ने खसि पड़ए । यदि एना भ’ गेलैक तँ सभ भेद खुजि जएतैक । नहि जानि कोन–कोन यातना भोगए पड़तैक । ओ जोड़सँ दम खिचलकि आ अपनाकेँ संयमित करक प्रयत्नन कएलकि । ़़़ पुलिसबासभ बैसले रहलैक । कने–कने कालपर दारु म्ँ ागबैक आ पिबैत जाइक । कनखिया कए ताकक क्रम जारीये रहैक । ़़़ फुलियाकेँ शंका होमए लगलैक । ओ सोचए लागलि — ‘ एतेक दारु तँ ई हवल्दासर कहियो नहि पिबैत छल । एकरासभकेँ शंका तँ नहि भ’ गेल छैक ?’ ़़़ फुलियाकेँ भेलैक जेना हाथ–पैर फुलि गेल होइक । मुदा, करो की ? दोसर कोनो उपायो तँ नहि छैक । भागत तँ मारलि जाएत । होइत–होइत कहुँ अहिना पकड़ि कए ल’ गेलैक तँ क्रूर यातनामे पड़ि जाएत । नहि जानि की की भोगए पड़तैक ? ़़़ फुलिया आँचरसँ अपन गाल पोछैति अछि । ओकरा आशाक किरण देखाइत छैक । ओकरा लगैत छैक एकरासभकेँ किछु मालूम नहि छैक । मालूम रहितैक तँ कखन ने पकड़ि कए ल’ गेल रहितैक । ़़़ ओ फेर स्थिनर भ’ जाइत अछि । कनेक आओर देखति । आ फुलिया औंघाएक अभिनय करए लगैत अछि ।
‘ फुलिया सबेरे औंघाए लगलेँ ?’ — हवल्दानर टोकि दैत छैक ।
‘आब अबेर नइ भेलैक ?’ — फुलिया दुनू हाथ माथक उपर ल’ जाइत देह–हाथ झारक अभिनय करैति कहैति अछि । ़़़ पुलिसबासभ उठि जाइत छैक । ओकरा लगैत छैक ठीके एकरासभकेँ किछु मालूम नहि छैक । कोनो शंको नहि छैक । बुझाइत छैक जेना हेराइत दम किछु पलटलैकअऽ ! ओ ठाढ भ’ जाइत अछि । मनेमन हिसाब जोड़ए लगैति अछि ।
‘ कतेक भेलौक ?’— हवल्दाइर भूलोटन पुछैत छैक ।
‘ तीन सय बाबन । ’ — फुलिया संयत होइत कहैति अछि । हवल्दाठर पनसहिया दैत छैक आ फुलियासँ फिर्ता लए आगाँ बढि जाइत अछि । पाछाँ–पाछाँ दोसर पुलिसबासभ सेहो बढि जाइत छैक । फुलिया दोकानक केबाड़सभ बन्दा करैति अछि । केबाड़ बन्दर होइते लगैत छैक जेना ओ पताकए खसि पड़ति । ओ बैसि जाइत अछि । आँखिसँ दहोबहो नोर टघरए लगैत छैक । ओ कोशिश करैति अछि जे कोनो आवाज नहि निकलैक । कनेको आवाज ओकरा बड़का संकटमे ढ़केल देतैक । ओ दुनू पएर पसारिकए टाटमे अङ्गोठि कए कानए लगैत अछि । पूरा खुलिकए स्थिकर भ’ गेल पसरल आँखिसँ नोरक दू धार ओकर गालपर टघरैत टप–टप खसए लगैत छैक ।
ओ सोचए लगैति अछि, ओकरापर ठीके बज्रपात भेल छैक मुदा ओहि बज्रपातक कारण के ? ओ स्वियं अथवा केओ आओर ? ओ ककरालेल कनैत अछि ? ओकरालेल अथवा स्वपयं अपनालेल ? ओकरा लगैत छैक जेना आ कोनो तेज बहावक नदीक मोइनमे फँसि गेलि होए आ पताइत–पताइत ओ मोनिमे आब समा जाएति । ओतए ओकरा बचाबएबला आ ओहिसँ उबारएबला केओ नहि छैक । शायद आब भगवानो नहि ! प्रकृतिक नियममे ओ ओझराए गेलि अछि । ़़़ ओ अतीतमे ठेला जाइति अछि । शायद ओकरालेल काल पाछाँ घसकि गेल छैक, वर्त्तमानसँ अतीतमे ़़़ ! फुलियाक अतीतक सम्पू्र्ण परतसभ एक–एक क’ खुजए लगैत छैक !!
पूर्णे आ ओकरि सम्बओन्ध नेनपनेसँ छैक । पूर्णे नङ्टे डड़ाडोरि पहिरने ओकरासंगे गोली–गोली खेलैक । देहपर किछु नहि, डड़ाडोरिमे मलहाक जालक घुँघरु, बनेलक दाँत आ ललका मूँगा । फुलियोक देहपर कथु थोड़े रहैक । बस, ठेहुनसँ उपर जाँघतक ओकरि मायक फटलाहा साड़ीक टुकड़ा रहैत छलैक । डाँड़सँ उपर पूरा खालीये । हँ, गर्दनमे अवस्सेट करजन्नीडक ललकामाला लटकैत रहैत छलैक । जखन ओ गोली फेकैति छलि घुच्ची मे तँ माला झुलि कए पाछाँ लटकि जाइत छलैक । घुच्चीडमे गोली पिलतहिं यदि पूर्णे हारैत रहैत छल तँ खौंझाबए लगैत छलैक — ‘फुलिया, माला पाछाँ चलि गेलौक ! ़़़ छाती उदास भ’ गेलौक ?’ ओहो थोड़े छोड़ैत छलैकि — ‘ आ तोँ जखन फेकैत छाँ तखन जे तोहर डाँड़ा झुलैत छौक, ढ़उसा बेङ्गक मुँह जकाँ ़़़ ढ़प–ढ़प !’ ़़़ तकरबाद दुनूमे झगड़ा भ’ जाइक आ खेल भँड़ा जाइक । दुनू अपन गोली समेटैत कनैत बिदा भ’ जाय ।
फुलिया आ पूर्णेक घनिष्टपता बढ़िते गेलैक । भिनसरसँ साँझधरि दुनू संगहिं रहए । झगड़ो होइक मुदा कहियो पूर्णे इशारासँ हँसाहँसाकए मना लैक तँ कहियो ई अपने मुँह फुलाकए पुरनी पोखरिक भीड़परक पीपरतर बैसि जाय । पूर्णेकेँ आबहिं पडैक । पूर्णे महीष चराबए लागल तँ ओ बकरी । संगक क्रम कहियो नहि छुटलैक ।
पूर्णे स्कूकल जाए लागल तँ कने ओकरा बुझाएल रहैक । ओ अपन बाउकेँ कए दिन कहलकैक जे ओहो स्कूपल जाएति मुदा कोनो सुनबाई नहि भेलैक । ़़़ बाप भरि दिन दारुमे मस्त रहैक । लोक कहैक चौधरी थारु दारुमे बर्बाद भ’ गेल । ओकर बाप–दादाक दरबज्जानपर चरि–चरिटा महीष रहैत छलैक । कहाँदोन, कार्कीसभ पहाड़सँ मधेशमे गाय चराबए आएल रहैक आ एतहिं बैसि गेलैक । एकर बाप कार्कीसभक संग मगरसभक दारु पिअए लागल । अपनो पिअए आ कार्कीसभकेँ पिअएबो करए । बस, बर्बादी शुरु भ’ गेलैक । कर्जा बढ़लैक आ खेत बिकाए लगलैक । धूर्त कार्कीसभ खेत किनएलेल बिलाई जकाँ कान थपने रहैत छलैक । ़़़ धीरे–धीरे सभ किछु बिकाइत चलि गेलैक । कार्कीसभ धनीक भ’ गेल आ चौधरी थारु हरबाह । आब ओकरेसभमे हरबाही करैत अछि !
फुलियाकेँ पूरा याद छैक । ओ तखन दोसर जुक्ति निकालने रहए । मायकेँ कहने रहैक जे ओ आब घास काटति । मालजालक देखभाल करत । माय बड्ड खुश भेल रहैकि । बाउकेँ कहने रहैक जे बेटी आब नम्हिर भ’ गेलि अछि आ घरक विचार करए लागलि अछि । जखन पूर्णेक स्कूील जाएक समय होइक फुलिया सभ दिन छिट्टी ल’ कए निकलि जाय । बतिआइत जाए आ बेरियामे संगहिं घुरए । स्कू लक गप्प –सप्पय ओकरा नीक लगैक । पूर्णे सभ खेसरा सुनबैक । ओकरा लगैक, कहुना ओहो स्कूएलमे पढ़ैति । ओ मायसँ कए बेर कहने रहैक जे स्कूपलमे कहुना नाम लिखा दौक । ओ घासो काटि कए सभ दिन अनबे करति । मुदा माय नहि मानलकैक । कहाँदोन बेटी पढ़ि कए करतैकि की ? अन्तएमे ओ थाकिहेरि गेलि । आई ओ पढ़लि रहैति तँ की एना होइतैक ? ओ फफकए लागलि । लगलैक जेना करेज उनटि जएतैक ।
पूर्णेसँ फुलियाक संगत छुटलैक नहि । धरमपुरसँ जखन ओकरा माँगए अएलैक तँ फुलियाक बिआहक चर्च बढ़लैक । ओ पूर्णेसँ सलाह कएने रहए । पूर्णे कहलैक जे ओ मुक्ति अभियानमे लागल अछि । समय अनुकूल होइते ओकरा ल’ क’ जएतैक आ धूमधामसँ बिआह करतैक । ओ डटलि रहए । पूर्णेक स्व र फुलियालेल गोसाईंक आदेश जकाँ होइक । ओकरा बड्ड नीक लगैक । जाहि अधिकारसँ पूर्णे फुलियाकेँ निर्देशित करैक तकर गर्मी ओकरा गद्गदा दैक । ़़़ ओ डटलि रहलि । मायकेँ साफ–साफ कहि देलकैकि । पहिने तँ माय बुझओलकैकि जे ओ मगर अछि आ फुलिया थारु । कहियो मेल नहि हएतैक । माइनजन ओकरासभकेँ बाड़ि देतैक से अलगे । मुदा फुलिया पूर्णेक बातपर अड़लि रहलि । ़़़ एक दिन ओकरा बाउ बड्ड पीटलकैक । जखन पूर्णेकेँ मालूम भेलैक तँ ओ तमतमा गेल रहए आ बाउकेँ मारए जाइत रहए । फुलिया कहुना कानिखिचि कए मनओने रहैकि । तखन तय भेलैक जे ओ घरसँ भागति । ढल्केएमे चायक दोकान खोलिकए बैसति मुदा एकदम गुपचुप, जाधरि समय अनुकूल नहि भ’ जएतैक । ़़़ ओकरा लगलैक जे ओ तहिया गल्तीत कएने रहए । मारि खाइयो कए घरेमे रहैति तँ एना नहि होइतैक । ओ फेर फफकए लगैति अछि ।
कहाँदोन पूर्णे जनयुद्धमे लागल रहए । महीना दू महीनापर ओकरा लग अबैक । मौका भेटैक तँ दू बात बतिआइक । फुलिया कए बेर कहैकि जे ओ कोन चीजमे लागि गेल अछि ? एहिसँ की हएतैक ? शुरु–शुरुमे तँ पूर्णे बड्ड जोशमे रहए मुदा बादमे ओकरो लागि गेल रहैक जे एहिसँ मुक्ति नहि भेटतैक । मुक्तिक लेल समाजेमे लड़ए पड़तैक । लोककेँ सम्झाेबए पड़तैक । समय तँ जरुर लगतैक मुदा एक्केगटा यएह उपाय छैक । मारकाटसँ किछु हएतैक नहि । फुलिया कए बेर कहलकैक जे ओ घरेमे घुरि जाएति । आब एतए ओकरा रहल नहि जाइत छैक । मुदा, पूर्णे कहैक जे जल्दीरये ओहो निकलत आ ओकरा ल’ कए कतहु चलि जाएत । ओ इहो कहैक जे ओ ओ फँसि गेल अछि । सोझे निकलनाइ सम्भव नहि छैक । फुलिया कनेक आओर प्रतिक्षा करौक । फुलिया ओकर संगक लोभ संवरण नहि कए सकलि । प्रतिक्षा करिते रहलि । काश, ओ घर घुरि गेल रहैति । बरु असगरे जीवन बिता दित । एहि ब्ाीच ओकर बाउ मरि गेल रहैक । मालूम भेलैक, मुदा मन मसोसिकए रहि गेल । घर नहि गेल । कहाँदोन ओकरि माय गोबर बिछिकए जीवन चला रहल छैकि । भाय अलगे कमाइखाइ छैक । ओ जाइत तँ मायोकेँ उसाँस होइतैक । कहुना रहैति ! ़़़ फुलिया अपन माथ ठेहुनपर राखि सिसकए लगैति अछि ।
आई बेरियामे ओकरा मालूम भेलैक जे पूर्णे एतए आएल रहय । कहाँदोन बनिनियाँक कुसियारक खेतमे नुकाएल रहैक । पुलिसकेँ खबरि भेट गेल रहैक आ चारु भरसँ घेरि कए गोली बरखा देने रहैक । पूर्णे मारल गेल रहय । फुलियाकेँ लगैत छैक जेना ओ ओकरेसँ भेटए आएल रहैक । शायद एहि बेर ओ साँचे ओकरा ल’ क’ भागए चाहैत रहए । दूर बहुत दूर जतए कोनो भय आ त्रास नहि होइक । खाली ओकर संग आ रंगबिरंगक रंग होइक । मुदा ओ असगरे अपने चलि गेल । कहाँदोन ओकर देह लाल खूनसँ रंगा गेल रहैक । ़़़ फुलिया अपन झोंटा नोचए लगैत अछि । आँखिसँ नोरक धार जोड–जोड़सँ टघरए लगैत छैक ।
ओकर फाटक खटाक् आवाज करैत खुलि जाइत छैक । हवल्दाआर भूलोटन प्रवेश करैत अछि । सकपकाएलि फुलिया ठकमका कए ठाढ़ भ’ जाइति अछि । ओकरा लगैत छैक भेद खुलि गेल छैक । आब ओकरा कोई नहि बचाबए सकतैक । अवर्णनीय यातनाक दौरसँ गुजरए पड़तैक । एहिसँ मुक्तिक एकहिटा उपाय छैक जे ओ पूर्णे लग चलि जाय । मुदा कोना ? आब एकरो बेर नहि छैक । ओ परिछाइत छागर जकाँ काँपि जाइत अछि । ़़़ भूलोटन आगाँ बढ़ैत छैक । मुँहपर हाथ धए ओकरा चुप रहक इशारा करैति फुसफुसाइत छैक — ‘ फुलिया, ़़़ ई तोहर साड़ी छौक । ़़़ बिआहक लाल जोड़ा ! ़़़ पूर्णेक जेबीमे रहैक । हम सभसँ पहिने लाश लग पहुँचल रहिऐक । ई निकालि लेलिऐक । ़़़ दोसर जनौक नहि जनौक, हम तँ सभ किछु जनै छिऔक । ़़़ तोँ छापामार तँ नहि मुदा पूर्णेक प्रेमिका अवस्से, छह ! ़़़ तोँ एखने भागि जाह । ़़़ नहि तँ काल्हि भोरे तोरा पकड़ि लेतौक । ़़़ मुदा एहि सभलेल तोरा एक बेर ़़़ खाली एक बेर ़़़ हमरा भोगए देबए पडतौक ! ’ भूलोटनक आँखिमे जेना पिशाच चढ़ल रहैक । ओ साड़ी फैलाए देलकैक । फुलियाक मन भेलैक ओ साड़ी छिनि लेअए मुदा से सम्भ़व नहि रहैक । ़़़ भूलोटन मुस्कालइत आगाँ बढ़ैत गेलैक । फुलिया टाटदिस घसकैति गेलि । ओकरो आँखिपर जेना देवी चढ़ि गेल होइक । मुँह सेहो बिकराल बनैत चलि गेलैक । ओ सोचि लेलकि आई मुक्ति लैये क’ रहत । ओ पूर्णेलग अपन चुनल स्था नपर चलि जाएति । ़़़ ओकर नजरि स्टूिलपरक नवका छुरीपर गेलैक । ओ छुरी उठा लेलकि आ सोझे भूलोटनक पेटमे भोंकि देलकि । एक, दू, तीन, चारि ़़़ । भूलोटन घबराए गेल । ओ साड़ी पुलिया देहपर फेक देलक । आ अपन दहिना हाथसँ पेस्तौकल निकालि ताबड़तोड़ गोली दागि देलक । एक, दू, तीन, चारि ़़़ । दुनू हहाकए खसल । ़़़ भूलोटन मुँहे भरे आ फुलिया साड़ीमे ओझराइत !
परात भेने सभ अखबार घटनाक विविरणसँ भरल रहैक । किछुमे लिखल रहैक जे छापामार वीराङ्गना फुलिया शहादत प्राप्तट कइलीह, अन्तििम धरि लड़ैत–लड़ैत । तँ दोसरसभमे लिखल रहैक महिला छापामारसँ मुठभेड़मे हवल्दा र भूलोटन शहीद भेल । ़़़ छापामार फुलिया चौधरी मारलि गेलि ।
जयकान्त मिश्रपर विशेष
१.डॉ. गंगेश गुंजन २. विद्या मिश्र
.डॉ. गंगेश गुंजन
जयकांत बाबूक निध्अन मैथिली-मिथिला आ मैथिलक एक महान पोथीक पुस्तकालयमे सजा देबाक ऐतिहासिक शोकक अवसर जेकाँ थीक। पोथी, अध्याय नहि, पोथी। सम्प्रति तँ बहुत महान क्षति। हुनक मौलिकता मैथिलीक लौकिक एवम शास्त्रीय बुद्धि समंवय आ व्यवहारक अति दूरगामी दृष्टांत बनल। उर्दूक आधुनिक गालिब फिराक गोरखपुरी गर्वोक्ति छनि
"आने वाली नस्लें तुम से रश्क करेंगी हम असरो
जब होगा मालूम उन्हें तुम ने फिराक को देखा है"।
हमरा लोकनिक पीढ़ी जयकांत बाबूक स्नेह शिक्षाक अपन एहि सौभाग्यपर अवश्ये क्रितार्थ बनत। संस्था सेहो मरि जाइत छैक। किताब जीवित रहैत छैक।
कतोक गोटे केँ संभव जे नहियो रुचन्हि हमर ई कथन मुदा हमारा अपन अंतःकरण सँ ई कहि रहल छी जे जयकांत बाबू मैथिलीक आधुनिक वेद छथि!
भाइजी काका- डॉ. जयकान्त मिश्रक स्मरण
विद्या मिश्र
हम बहुत छोट रही, भरिसक स्कूलक दिन छल, जखन कखनहु हमर घरमे अंग्रेजीक विद्वान, कवि, मैथिली लेखकक चर्चा होइत रहए, लोक सदिखन डॉ. जयकान्त मिश्रक चरचा करिते रहथि। ओ ओहि समयमे हमर सभसँ पैघ मामाजीक साढ़ू रहथि। नेनपनमे हम मैथिल आर मिथिलाक विकास आ उन्नतिक प्रति हुनकर समर्पण आ साहित्यमे हुनकर योगदानसँ बड्ड प्रभावित रही। ओ हमरा लेल आदर्श रहथि..प्रशंसा करी आ सदैव हुनकासँ भेंट करबाक आ देखबाक लेल लालायित रही।
हम अपन स्नातक विज्ञानक द्वितीय वर्षमे रही जहिया डॉ. जयकान्त मिश्रक सभसँ छोट बेटा अपन पितियौतक घरपर धनबाद आएल रहथि। आ हमर बाबूजी तहिया ओतहि पदस्थापित रहथि, से ओ सभ हमरो सभक अहिठाम भेँट करबाक लेल आएलाह। हमरासँ भेँट कएलाक बाद, गप कएलाक बाद ओ हमर बाबूजीसँ कहलन्हि...अहाँ किए नहि हमर पितियौत हेमकान्त मिश्रसँ बिन्नी (हम) क विवाहलेल प्रस्ताव अनैत छी। आ एतए देखू.. हमर डैड हुनका सभ लग प्रस्ताव रखैत छथि आ एक मासक भीतरे हम हेमक संग विवाहित भऽ जाइत छी।
जखन हम सुनलहुँ जे हमर विवाह डॉ. जयकान्त मिश्रक भातिजक संग होमए जा रहल अछि..हम बड्ड प्रसन्न भेलहुँ आ शीघ्रहि हुनकर संग हमर सम्बन्ध परिवर्तित भऽ गेल किएक तँ हम आब ओहि परिवारक पुतोहु रही, विद्वान आ लेखकक परिवारक।
हम डॉ. हरिवंश राय बच्चनसँ बहुत नजदीक रही, पत्राचार माध्यमसँ, हुनकर परामर्श अवसरपर भेटए आ पारस्परिक रुचि हमरा सभ बाँटी। ओना तँ ओ हमरासँ बड्ड पैघ रहथि मुदा तैयो हमरा सभ एक दोसारासँ गप बाँटी आ एक-दोसराक चिन्ता करी, से हम हुनका कहलहुँ जे अहाँ प्रसन्न होएब जे हम इलाहाबादक डॉ. जयकान्त मिश्रक भातिजक संग विवाहित होमए जा रहल छी। हमरा जवाब भेटल जे हमर विवाह एकटा विद्वानक परिवारमे होमए जा रहल अछि, ई वैह छथि जिनका हम इलाहाबाद विश्वविद्यालयक अंग्रेजीक विभागाध्यक्षक अपन प्रभार देने रहियन्हि आ ओ सर्वदा हमरा अपन गुरु मानैत छथि। आ हुनकर पिता डॉ. उमेश मिश्रकेँ हम अपन गुरु मानैत छियन्हि। ओहि परिवारक ओ जे प्रशंसात्मक वर्णन कएलन्हि से आह्लादकारी रहए आ तकरा सोचैत एखनो हम उत्फुल्लित भऽ जाइत छी।
हम सभ १९९९ ई. मे संयुक्त राज्य अमेरिकामे बसि गेलहुँ मुदा हमरा सभक हृदय, आत्मा आ मस्तिष्क सर्वदा इलाहाबादमे रहैत छी आ त्रिवेणीपर भेल सभ कर्मकेँ अनुभव करैत छी हमरा सभ ओ सभ छोट-छीन काज करैत छी जे परिवारक प्रति आदर आ प्रेमक भाग अछि। हुनकर समर्पण, परम्परा, सरलता आ संस्कृतिक प्रति लगाव अनुकरणीय अछि। हम सभ हुनकर परिवारक मुखिया, गुरु आ भाइजी काकाक रूपमे क्षति सदैव अनुभव करब। ई परिवार आ समाजक लेल एकटा पैघ क्षति अछि।
होलीक संदेश
डा. चन्देवश्वलर शाह
होलीक रंग–अबीरक खेल खेल्बासँ पहिने सम्महत जराएब (होलीका दहन) आवश्यिक होइत छैक । शास्त्री य वर्णन अछि जे भक्तब प्रह्लादक विष्णुम भक्त्तिएसँरुष्टद भेल हुनके पिता देवराज हिरण्यककश्यीपु जे स्वमयं के ईश्व र मौनत छल, भक्तत प्रह्लादकें मारि देवाक लेल अनेक प्रयत्न् कयलाक बादो जखन असफल होइत गेल तँ अपन बहिन होलिका कें बरदान में प्राप्तह भेल आगिमे नहि जरएबला चछरिक उपयोग करैत अपन स्वा र्थ पुरा करबाक लेल प्रह्लाद सहित आगिमे प्रवेश करबाक लेल आज्ञा देलक, भगावनक कृपासँ ओ चछरि अपन प्रभावसं प्रह्लादक रक्षा कएलक आ होलिका ओही आगिमे भष्मद भऽगेल । एही प्रकारसँ होलिकाक अवसानपर लोक खुशी मनौलक जे एखन एकटा पर्वक रुपमे समाजमे विद्यमान अघि । एहि पर्वक प्रसंग मे इएह कथा सम्पूुर्ण नहि अछि, आनो कतेक कथा एहि प्रसंगमे कहल जाइत अछि तथापि एहि कथाक प्रचार आन कथासँ आधिक अछि ।
होली पर्वक एहि कथासँ अपना अपना बुद्धि विवेक अनुरुप अनेक तरहक संंदेश ग्रहण कएल जा सकैत अछि । जेना आसुरी प्रवृतिक होलिका जे समाजकें अपन स्वानभाव अनुरुप अनेक तरहक कष्टछ दैत छलैक, तकर मृत्यु भेला पर लोक खुशी मनौलक । अर्थात जे किओ व्यवक्ति समाजमे अन्याैय अत्या चार करत, समाजक लोक तत्काील यदि विरोध नहियो करैत छैक तँ तकर ई मतलब नहि छैक जे ओ समाज ओकर अत्या चार सहर्ष स्वीवकार करैत छैक । दोसर बात जे अन्या यी, अत्यायचारीकेँ अकाल मृत्यर प्राप्तम होइत छैक । यदि होलिका प्रह्लादकेँ आगिमे जरएवाक लेल उद्यत नहि होइत तँ अकालमे ओकर मृत्यक नहि होइतैक । तेसर बात जे एहि कथाक मुख्यव पात्र हिरण्यलकश्य पु जे अपन धन बलसँ प्राप्तन सुख भोगसँ एतेक माति गेल छल जे ओकरा बुझाइत छलैक जे धनक बलसँ सब किछु सम्भ व छैक, ईश्वसरकेँ एहि सेँ बेसी की प्राप्त छैक, जे हमरा प्राप्तल नहि अछि । जखन सब तरहक सामर्थ्यप हमरा प्राप्तए अछि तखन ईश्वपर हमरासेँ पैघ नहि अछि, हमहीँ ईश्वतर छी । ओ ईश्व।रीय सत्ताक विरोध कैरत गेल आ अन्तरमे ओकर की दशा भ.ेलैक से सवकेँ बुम�ले अछि । अर्थात् अहंकारीक अहम् सबदिन नहि रहैत छैक । चारिम बात ईश्व्रीय शक्ति अथवा आशीर्वाद जँ ककरो प्राप्ता होइत छैक तँ ओकर उपयोग जनकल्या णमें करबाक चाही नहि कि जनविरोधी कार्यमें । होलिका केँ जे चहरि बरदानमे प्राप्तउ भेल छलैक ओहिसेँ आगि ओकरा लेल संतापक बस्तुो नहि छलैक, परन्तुा जखन होलिका एकर प्रयोग दोसराक जान लेवाक लेल कयलक तै ओकर अपने जान चलि गेलैक । एहि तरहेँ होलिका आओर प्रह्लादक अग्निख प्रवेशक सन्दसर्भमे जे कथा प्रचलित अछि ताहिसेँ अनेको संदेश ग्रहण कएल जा सकैत अघि ।
होलीक कथा प्रसँगकेँ ध्याणनमे राखि ओहिसँ सँदेश ग्रहण करैत अपना जीवनमे सफलता प्राप्तिेक लेल सबकेँ सचेत रहबाक चाहि । जेना होली मनएबाक प्रसंग अछि जे होलीसँ पहिलका राति मे सम्मलत् जराओल जाएत । सम्मकत् जरएबाक लेल लकडी–काठीक जरुरत होइत छैक, ई लकडी–काठी कानो एक व्यलक्ति नहि दैत छैक । होलीक सम्मजत् जरएबाक लेल टोलक किछ सक्रिय व्यैक्तिा कतहुकतहु सँ लोकक लकडी–काठी अथवा ओइने चीज उठा कऽ चुप्पे अनैत अछि । यदि किओ ककरो घर बनएबाक लेल कतौ राखल लकडी लाबी कऽजरा दैत छैक, चाहे एक गोटाक बहुत लकडी–काठी लऽ अबैत छैक तँ ओकर समाजमे केहन प्रभाव हैतैक ताहि पर ध्याएन देबाक चाहि । तहिना होलीक दिन पर्वक दिन छैक । नीक भोजनक नामपर यदि किओ ऋण करैत अछि अथवा मस्तिदक नामपर भाँग धथुर, दारु–तारीक अधिक प्रयोग करैत अछि, त ओकर प्रतिफल सबके देखल नहियो हएत त सुनल जरुर हएत, तेँ सचेत रहव सबहक लेल कल्या णकारी बात छैक । तहिना रंग–अबीर खेलबाक नामपर किओ अलकतरा त किओ इनामेल सनक रंगक प्रयोग कऽ बहादुरी वा मस्ती करैत अछि तेँ प्रयोग कयनिहारक मस्तीत आ ओही सेँ प्रभावित व्य क्तििक तकलीफ कोन अधिक छैक से तराजू पर नहि जोखल जा सकत, एकटा अनुभव करबाक लेल नीक भावना रहल हृदयक जरुरत छैक । यदि किओ कोनो बिमार, व्ययक्तिकेँ बलपूर्वक रंंग अबीर लगा कऽ ओकर रोग बढा दैत छैक अथवा एहने कोनो अप्रिय काज भाँगक जोश के करैत अछि तँ ओकरा नीक किओ नहि कहतैक । अर्थात कोनो काज करबाक लेल सीमाक भीतर काज सम्पशन्नछ करब बुद्धिमानी छैक ।
सब तरहक बन्धान, बाधा व्य वधान रहितहुँ जेना लोककेँ अपन लक्ष्य पर आगू बढब आवश्यकक होइत छैक, तहिना अपन संस्कृति परम्प राक रक्षा आ निरन्तेरता देब सेँहो दायित्वर बनैत छैक । एहने अवस्थाछक मार्गदर्शन महाकवि विद्यापतिक एकटा गीतमे अछि—
आजु नाथ एक व्रत महासुख लागत हे
तोँहेँ शिव धरु नटवेश नाँच देखाबहु हे ।
पार्वतीक एहि आग्रहपर महादेव अपन बात करैत छथिन्हज जे जौं नाँचब तँ शिरक गंगाक धार बहि जाएत धरती जलमग्नि भऽ जेतैक, गलाक सर्प चारु दिस जहिँ तहिँ भऽ जाएत अनर्थ भऽ जेतैक । एहिसँ अनेक व्यीवधानक सुनबैत छथिन्हब । इ सबटा बात सत्यद छै, एहन सम्भतव छलैक मुद्दा ओही गीतक अंतिम पँक्तिथमे विद्यापति लिखने छथि जे ‘राखल गौराक मान कि नाँच देखावल हे ।’ अर्थात हमरा सभक क्रियाकलाप बुद्धिमानी पूर्वक अपन आ समाजक हितमे होयबाक चाहि । होली पर्वसेँ सबके ई सन्दे श ग्रहण करबाक चाहि ।
सुभाषचन्द्र यादवजीक कथा संग्रह -बनैत-बिगड़ैत
विवेचना- गजेन्द्र ठाकुर
तीन टा नामित पात्र । माला, ओकर पति सत्तो आ पोती मुनियाँ ।
गाम घरक जे सास-पुतोहुक गप छैक, सेहन्ता रहि गेल जे कहियो नहेलाक बाद खाइ लेल पुछितए, एहन सन। मुदा सैह बेटा-पुतोहु जखन बाहर चलि जाइत छथि तँ वैह सासु कार कौआक टाहिपर चिन्तित होमए लगैत छथि। माइग्रेशनक बादक गामक यथार्थकेँ चित्रित करैत अछि ई कथा। सत्तोक संग कौआ सेहो एक दिन बिलाऽ जाएत आ मुनियाँ कौआ आ दादा दुनूकेँ तकैत रह्त।
अपन-अपन दुःख
पत्नीक अपन अवहेलनाक स्थितिमेँ धीया-पुताकेँ सरापैत छथि, रातिमे धीया-पुताक खेनाइ खा लेबा उत्तर भनसाघरक ताला बन्द रहबाक स्थितिमे पत्नीक भूखल रहब आ पतिक फोंफक स्वरसँ कुपित होएब स्वाभाविक। सभक अपन संसार छैक। लोक बुझैए जे ओकरे संसारक सुख आ दुःख मात्र सम्पूर्ण छैक मुदा से नहि अछि। सभक अपन सुख-दुःख छैक, अपन आशा आ आकांक्षा छैक।
असुरक्षित
ट्रेनसँ उतरलाक बाद घरक २० मिनटक रस्ता राति जतेक असुरक्षित भऽ गेल अछि तकर सचित्र वर्णन ई कथा करैत अछि। पहिने तँ एहन नहि रहैक- ई अछि लोकक मानसिक अवस्था। मुदा एहि तरहक समस्या दिस ककरो ध्यान कहाँ छैक। पैघ-पैघ समस्या, उदारीकरण आ की-की पर मीडिआक ध्यान छैक।
आतंक
पुरान संगी हरिवंशसँ लेखकक भेँट कार्यालयमे होइत छन्हि। लेखकक दाखिल-खारिज बला काज एहि लऽ कऽ नहि भेलन्हि जे हरिवंशक स्थानान्तरणक पश्चात् ने क्यो हुनकासँ घूस लेलक आ ताहि द्वारे काजो नहि केलक। आइ काल्हि ऑफिसमे यैह हाल छैक, पाइ दऽ दियौक आ तखन काज नहि होअए तखन कहू! हरिवंशक बगेबानी घूसक अनेर पाइक कारण छल से दोसर किएक अपन पाइ छोड़त? लेखक आतंकित छथि।
ओ लड़की
हॉस्टलक लड़का-लड़कीक जीवनक बीच नवीन एकटा लड़कीक हाथमे ऐंठ खाली कप, जे ओहि लड़कीक आ ओकर प्रेमीक अछि, देखैत अछि। लड़की नवीनकेँ पुछैत छैक जे ओ केम्हर जा रहल अछि। नवीनकेँ होइत छैक जे ओ ओकरा अपनासँ दब बुझि कप फेंकबाक लेल पुछलक। नवीन ओकरा मना कऽ दैत अछि आ विचार सभ ओकर मोनमे घुरमैत रहैत छैक।
एकटा अन्त
ससुरक मृत्युपर लेखकक साढ़ू केश कटेने छथि आ लेखक नहि, एहिपर कैक तरहक गप होइत अछि। साढ़ू केश कटा कऽ निश्चिन्त छथि।
एकटा प्रेम कथा
पहिने जकरा घरमे फोन रहैत छल तकरा घरमे दोसराक फोन अबैत रहैत छल जे एकरा तँ ओकरा बजा दिअ। लेखकक घरमे फोन छलन्हि आ ओ एकटा प्रेमीकाक फोन अएलापर ओकर प्रेमीकेँ बजबैत रहैत छथि। प्रेमी मोबाइल कीनि लैत अछि से फोन आएब बन्द भऽ जाइत अछि। मुदा प्रेमी द्वारा नम्बर बदलि लेलापर प्रेमिकाक फोन फेरसँ लेखकक घरपर अबैत अछि। प्रेमिका प्रेमीक ममियौत बहिनक सखी रितु छथि आ लेखक ओकर सहायताक लेल चिन्तित भऽ जाइत छथि।
एकाकी
कुसेसर हॉस्पीटलमे छथि। हॉस्पीटलक सचित्र विवरण भेल अछि। ओतए एकटा स्त्री पतिक मृत्युक बाद कनैत-कनैत प्रायः सुति गेलि आ फेर निन्न टुटलापर कानए लागलि। एना होइत अछि।
कबाछु
चम्पीबलाक लेखक लग आएब, जाँघपर हाथ राखब। अभिजात्य संस्कारक लोकलग बैसल रहबाक कारणसँ लेखक द्वारा ओकर हाथ हटाएब, चम्पीबला द्वारा ई गप बाजब जे छुअल देहकेँ छूलामे कोन संकोच। लेखककेँ लगैत छन्हि जे ओ स्त्री छथि आ चम्पीबला ओकर पुरान यार। ठाम-कुठाम आ समय-कुसमयक महीन समझ चम्पीवलाकेँ नहि छइ, नहि तँ लेखक ओतेक गरमीयोमे चम्पी करा लैतए। चम्पीवलाक दीनतापर अफसोच भेलन्हि मुदा ओकर शी-इ-इ केँ मोन पाड़ैत वितृष्णा सेहो।
कारबार
लेखकक भेँट मिस्टर वर्मा, सिन्हा आ दू टा आर गोटेसँ सँ होइत अछि। बार मे सिन्हा दोस्ती आ बिजनेसकेँ फराक कहैत दू टा खिस्सा सुनबैत अछि। सभ चीजक मोल अछि, एहिपर एकटा दोस्तक वाइफ लेल टी.वी. किनबाक बाद फ्रिजक डिमान्ड अएबाक गपपर बीचेमे खतम भऽ जाइत अछि। दोसर खिस्सामे एकटा स्त्री पतिक जान बचबए लेल डॉक्टरक फीस देबाक लेल पूर्व प्रेमी लग जाइत अछि। पूर्व प्रेमी पाइ देबाक बदलामे ओकरा संगे राति बितबए लेल कहैत छैक। सिन्हा कथामे ककरो गलती नहि मानैत छथि, डॉक्टर बिना पाइ लेने किएक इलाज करत, पूर्व प्रेमी मँगनीमे पाइ किएक देत आ ओ स्त्री जे पूर्व प्रेमी संग राति नहि बिताओत तँ ओकर प्रेमी मरि जएतैक।
आब बारसँ लेखक निकलैत छथि तँ दरबानक सलाम मारलापर अहूमे पैसाक टनक सुनाइ पड़ए लगैत छन्हि।
कुश्ती
कथाक प्रारम्भ लुंगीपरक सुखाएल कड़गर भेल दागसँ शुरू होइत अछि। मुदा तुरत्ते स्पष्ट होइत अछि जे ओ से दाग नहि अछि वरन घावक दाग अछि। फेर हाटक कुश्तीमे गामक समस्याक निपटारा , हेल्थ सेन्टरक बन्द रहब, ओतए ईंटाक चोरिक च्ररचा अबैत अछि। छोट भाइ कोनो इलाजक क्रममे एलोपैथीसँ हटि कए होम्योपैथीपर विश्वास करए लगैत छथि, एहि गपक चरचा आएल अछि। लोक सभक घावक समाचार पुछबा लऽ अएनाइ आ लेखक द्वारा सभकेँ विस्तृत विवरण कहि सुनओनाइ मुदा उमरिमे कम वयसक कैक गोटेकेँ टारि देनाइ, ई सभ क्रम एकटा वातावरणक निर्माण करैत अछि।
कैनरी आइलैण्डक लारेल
सुभाष आ उपिया कथाक चरित्र छथि।
बिम्ब जेना निर्णय कोसीक धसना जकाँ। ममियौत भाइक चिट्ठी, कटारि देने नाहपर जएबाक, गेरुआ पानिक धारमे आएब, नाहक छीटपर उतारब, छीटक बादो बहुत दूर धरि जाँघ भरि पानिक रहब। धीपल बालुपर साइकिलकेँ ठेलैत देखि क्यो कहैत छन्हि- “साइकिल ससुरारिमे देलक-ए? कने बड़द जकाँ टिटकार दियौक”।
दीदी पीसा अहिठाम एहि गपक चरचा जे कोटक खातिर हुनकर बेटीक विवाह दू दिन रुकि गेल छलन्हि आ ईहो जे बेसी पढ़ने लोक बताह भऽ जाइत अछि।
सुभाष चाहियो कऽ दू सए टाका नहि माँगि पबैत छथि, दीदीक व्यवहार अस्पष्ट छन्हि, सुभाष आस्वस्त नहि छथि आ घुरि जाइत छथि।
तृष्णा
लेखककेँ अखिलन भेटैत छन्हि। श्रीलतासँ ओ अपन भेँटक विवरण कहि सुनबैत अछि। पाँचम दिन घुरलाक बाद ट्रेनमे ओ नहि भेटलीह। आब अखिलन की करत, विशाखापत्तनम आ विजयवाड़ाक बीचक रस्तामे चक्कर काटत आकि स्मृतिक संग दिन काटत।
दाना
मोहन इन्टरव्यू लेल गेल अछि, ओतए सहृदय चपरासी सूचित करैत छैक जे बाहरीकेँ नहि लैत छैक, पी.एच.डी. रहितए तँ कोनो बात रहितए। मोहनकेँ सभ चीज बीमार आ उदास लगैत रहए। फुद्दी आ मैना पावरोटीक टुकड़ीपर ची-ची करैत झपटैत रहए।
दृष्टि
पढ़ाइ खतम भेलाक बाद नोकरीक खोज , गाममे लोकसभक तीक्ष्ण कटाक्ष। फेर दक्षिण भारतीय पत्रकारक प्रेरणासँ कनियाँक विरोधक बावजूद गाममे लेखकक खेतीमे लागब।
नदी
गगनदेवक घरपर बिहारी आएल छैक। शहरमे ओकरा एक साल रहबाक छैक। गगनदेवकेँ ओकरा संग मकान खोजबाक क्रममे एकटा लड़कीसँ भेँट होइत छैक। ओकरा छोड़ि आगाँ बढ़ल तँ ई बुझलाक बादो जे आब ओकरासँ फेर भेँट नहि हेतइ ओ उल्लास आ प्रेमक अनुभूतिसँ भरि गेल।
परलय
बौकी बुनछेकक इन्तजारीमे अछि। मुदा धारमे पानि बढ़ि रहल छैक। कोशीक बाढ़ि बढ़ल आबि रहल छैक आ एम्हर माएक रद्द-दस्तसँ हाल-बेहाल छैक। माल-जाल भूखसँ डिकरैत रहै। रामचरनक घरमे अन्नपानि बेशी छैक से ओ सभकेँ नाहक इन्तजाम लेल कहैत छैक। बौकूक घरसँ कटनियाँ दूर रहै। मृत्यु आ विनाश बौकूकेँ कठोर बना देलकैक, मोह तोड़ि देलकैक। मुदा बरखा रुकि गेलैक। बौकू चीज सभकेँ चिन्हबाक आ स्मरण करबाक प्रयत्न करए लागल।
बात
नेबो दोकानपर नेबोवला आ एकटा लोकक बीचमे बहस सुनैत लेखक बीचमे बीचमे कूदि पड़ैत छथि। नेबोवलासँ एक गोटे अपन छत्ता माँगि रहल अछि जे ओ नीचाँ रखने रहए।
दुखक गप, लेखकक अनुसार, बेशी दिन धरि लोककेँ मोन रहैत छैक।
रंभा
रस्तामे एक स्त्री अबैत अछि। लेखक सोचैत छथि जे ई के छी, रम्भा, मेनका आकि...। ओकरा संग बेटा छैक, ओतेक सुन्नर नहि, कारण एकर वर सुन्दर नहि होएतैक। ओ गपशपमे कखनो लेखककेँ ससुर जकाँ, कखनो अपनाकेँ हुनकर बेटी तुल्य कहैत अछि। पहिने लेखककेँ खराप लगलन्हि। मुदा बादमे लेखककेँ नीक लगलन्हि। मुदा अन्तमे ओकर पएर छूबए लेल झुकब मुदा बिन छूने सोझ भऽ जाएब नहि बुझिमे अएलन्हि।
हमर गाम
लेखकक गामक रस्ता- कटनियाँसँ मेनाही गामक लोकक छिड़िआएब, बान्हक बीचमे अहुरिया काटैत लोक। कोसिकन्हाक लोक- जानवरक समान, जानवरक हालतमे। कटनियाँमे लेखकक घर कटि गेलन्हि से नथुनियाँ एहिठाम टिकैत छथि। मछबाहि आ चिड़ै बझाबऽ लेल नथुनी जोगार करैत अछि। जमीनक झगड़ा- एक हिस्सेदारक जमीन धारमे डूमल छैक से ओ लेखकक गहूमवला खेत हड़पए चाहैत अछि। शन आ स्त्रीक! पाछू लोक बेहाल अछि। स्त्रीक पाछू बिन कारणक लेखक पड़ि गेल छथि। यावत सभ कमलक घूर लग कपक अभावमे बेरा-बेरी चाह पिबैत छथि, फसिल कटि कऽ सिबननक एतए चलि जाइ-ए।
झौआ, कास, पटेरक जंगल जखन रहए, चिड़ै बड्ड आबए, आब कम अबैत अछि। खढ़िया, हरिन, माछ, काछु, डोका सभ खतम भऽ रहल छैक- जीवनक साधन दुर्लभ भऽ गेल अछि। साँझमे जमीनक पंचैती होइत अछि।
सत्तोक बकड़ी मरि गेलैक, पुतोहु एकर कारण सासुक सरापब कहैत अछि। सासु एकर कारण बलि गछलोपर पाठीसभकेँ बेचब कहैत छथि। सत्तोक बेटीक जौबनक उभारकेँ लेखक पुरुष सम्पर्कक साक्षी कहैत छथि, ओ एखन सासुर नहि बसैत छैक। सुकन रामक एहिठाम खाइत काल लेखककेँ संकोच भेलन्हि, जकरासँ उबरबाक लेल ओ बजलाह- आइ तोरा जाति बना लेलिअह। कोसी सभ भेदभावकेँ पाटि देलक, डोम, चमार, मुसहर, दुसाध, तेली, यादव सभ एके कलसँ पानि भरैत अछि। एके पटियापर बैसैत अछि।
कनियाँ-पुतरा
रस्तामे एकटा बचिया लेखकक पएर् छानि फेर ठेहुनपर माथ राखि निश्चिन्त अछि जेना माएक ठेहुनपर माथ रखने होए। जेना चम्पीवला लेखककेँ बुझाइय रहन्हि जे हुनका युवती बुझि रहल छलन्हि। नेबो सन कोनो कड़गर चीज लेखकसँ टकरेलन्हि। ई लड़कीक छाती छिऐ। लड़की निर्विकार रहए जेना बाप-दादा वा भाए बहिन सऽ सटल हो। लेखक सोचैत छथि, ई सीता बनत की द्रौपदी। राबन आ दुर्जोधनक आशंका लेखककेँ घेर लैत छन्हि।
(अगिला अंकमे)
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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