भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, May 10, 2009

गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल कवि : स्वर्गीय बबुआजी झा अज्ञात

दिनकर अग्निक वृष्टि करै छथि
एखनुक काल पुरुष सह दै छथि
प्रवहमान दारुण पछवामे
अग्नि-सदन संसार बुझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

तरणि-ताप तन दग्ध करैये
रज कण लुत्ती पैर जरैये
संकट मे अछि प्राण, बटॊही
तरु-छाया-तर जाय पड़ायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

कॊसिक परिसर जरि उठैत अछि
बालु बन्हि-कण-रूप लैत अछि
सैकत धरती पार करत के ?
अग्निक सिन्धु जेना लहरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

कार्य-विवश क्यॊ कतहु जाय अछि
प्यासक द्वारेँ मुह सुखाइ अछि
गर्म बसातक झॊँक-झड़क मे
आर्त्त कतेकक ज्यॊति मिझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

फसिल गेल कटि बाध सून छै
दृश्य क्षितिज धरि बड़ छुछून छै
विकट दड़ारिक छलसँ प्यासेँ
अछि मुह बौने खेत खरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

खढ़सँ लसि-फसि पाबक पाबथि
लगमे गामक गाम जराबथि
कष्ट केहन हा देव ! तखुनका
संचित सभटा वस्तु विलायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

उठि-उठि भॊरे बसता लय-लय
जाइत अछि बटु विद्यालय
दुपहर छुट्टी पाबि घुरै अछि
कमलक फूल जेना मौलायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

खिड़की द्वार केबाड़ लगौने
अपनाकेँ घर माँझ नुकौने
बहराइत अछि लॊक, जखन रवि
जाथि अस्त-गिरि दिन ठंढायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

पल्लव पॊखरि नहरी नाली
सुखा गेल जल, तल अछि खाली
प्यासल पशुधन हाय ! घुरैये
घॊर निराशा, मुह मुरझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

उठि अन्हॊखे कृषक तूल भय
कान्ह राखि हर बड़द आगुकय
जाय खेत, घुरि आबय दुपहर
दग्धल प्यासल झूर-झमायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

वट वृक्षक बड़विस्तृत काया
शीतल शांत प्रदायक छाया
दूर-दूर सँ रौदक मारल
माल-मनुज तर आबि जुड़ायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

आमक टिकुला-शिशु सभ सुन्दर
झूलि रहल छल पल्लव-दल पर
दानव-तुल्य तुलायल आन्ही
आह ! अवनि पर अछि ओंघरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

अन्त प्रहर, प्रिय राति चनेसर
शान्त हृदय, अक्लान्त कलेवर
अपन अपन धय बाट बटॊही
जाथि कतहु नहि जी अकछायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

दुस्तर दिन छल बड़ आयामी
शांन्ति-प्रदायक-शैत्य कामी
घरसँ बाहर सभहक सन्धया-
रातिक अबितहि सेज बिछायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

उज्जर दपदप भात सुगन्धित
पटुआ सागक झॊर विनिर्मित
आलुक साना, आमक चटनी
दुपहर दिन बड़ मीठ बुझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

(साहित्य अकादमीक सौजन्य सँऽ)

7 comments:

  1. Rama Jha4:52 PM

    आइ ई कविता पढ़लहुँ आ तखने पाथरक संग बरखाभेल आ गरमीसँ राहत भेटल। धन्यवाद ई कविता पोस्ट करबाक लेल।

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  2. उज्जर दपदप भात सुगन्धित
    पटुआ सागक झॊर विनिर्मित
    आलुक साना, आमक चटनी
    दुपहर दिन बड़ मीठ बुझायल
    गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

    bahut nik svargiya agyat jik kavita sabhak sankalan prastut karbak lel ahank jatek prashansa kayal jay se thor

    ReplyDelete
  3. आमक टिकुला-शिशु सभ सुन्दर
    झूलि रहल छल पल्लव-दल पर
    दानव-तुल्य तुलायल आन्ही
    आह ! अवनि पर अछि ओंघरायल
    गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल
    theeke , aab te kalamak chuhchuhi khatam bhay gel

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  4. ATI SUNDAR PRSTUTI ACHHI --
    VIVEKA NAND JHA JI --
    उज्जर दपदप भात सुगन्धित
    पटुआ सागक झॊर विनिर्मित
    आलुक साना, आमक चटनी
    दुपहर दिन बड़ मीठ बुझायल
    गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।

    ReplyDelete
  5. मनीष गौतम2:16 AM

    बड्ड नीक प्रस्तुति, गरमीक मौसममे।

    ReplyDelete
  6. Shyam Kishore11:58 PM

    samyik garmik mausam me

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  7. बबुआजी झा अज्ञातक कविता सभ बड्ड नीक होइये। कोनो हीन भावनाक प्रदर्शन नहि, जेना लोक क्लिष्ट शब्दावली दए करैत देखल जाइत छथि। स्वतः स्फूर्त।

    ReplyDelete

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