भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Sunday, May 10, 2009
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल कवि : स्वर्गीय बबुआजी झा अज्ञात
एखनुक काल पुरुष सह दै छथि
प्रवहमान दारुण पछवामे
अग्नि-सदन संसार बुझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
तरणि-ताप तन दग्ध करैये
रज कण लुत्ती पैर जरैये
संकट मे अछि प्राण, बटॊही
तरु-छाया-तर जाय पड़ायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
कॊसिक परिसर जरि उठैत अछि
बालु बन्हि-कण-रूप लैत अछि
सैकत धरती पार करत के ?
अग्निक सिन्धु जेना लहरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
कार्य-विवश क्यॊ कतहु जाय अछि
प्यासक द्वारेँ मुह सुखाइ अछि
गर्म बसातक झॊँक-झड़क मे
आर्त्त कतेकक ज्यॊति मिझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
फसिल गेल कटि बाध सून छै
दृश्य क्षितिज धरि बड़ छुछून छै
विकट दड़ारिक छलसँ प्यासेँ
अछि मुह बौने खेत खरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
खढ़सँ लसि-फसि पाबक पाबथि
लगमे गामक गाम जराबथि
कष्ट केहन हा देव ! तखुनका
संचित सभटा वस्तु विलायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
उठि-उठि भॊरे बसता लय-लय
जाइत अछि बटु विद्यालय
दुपहर छुट्टी पाबि घुरै अछि
कमलक फूल जेना मौलायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
खिड़की द्वार केबाड़ लगौने
अपनाकेँ घर माँझ नुकौने
बहराइत अछि लॊक, जखन रवि
जाथि अस्त-गिरि दिन ठंढायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
पल्लव पॊखरि नहरी नाली
सुखा गेल जल, तल अछि खाली
प्यासल पशुधन हाय ! घुरैये
घॊर निराशा, मुह मुरझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
उठि अन्हॊखे कृषक तूल भय
कान्ह राखि हर बड़द आगुकय
जाय खेत, घुरि आबय दुपहर
दग्धल प्यासल झूर-झमायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
वट वृक्षक बड़विस्तृत काया
शीतल शांत प्रदायक छाया
दूर-दूर सँ रौदक मारल
माल-मनुज तर आबि जुड़ायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
आमक टिकुला-शिशु सभ सुन्दर
झूलि रहल छल पल्लव-दल पर
दानव-तुल्य तुलायल आन्ही
आह ! अवनि पर अछि ओंघरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
अन्त प्रहर, प्रिय राति चनेसर
शान्त हृदय, अक्लान्त कलेवर
अपन अपन धय बाट बटॊही
जाथि कतहु नहि जी अकछायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
दुस्तर दिन छल बड़ आयामी
शांन्ति-प्रदायक-शैत्य कामी
घरसँ बाहर सभहक सन्धया-
रातिक अबितहि सेज बिछायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
उज्जर दपदप भात सुगन्धित
पटुआ सागक झॊर विनिर्मित
आलुक साना, आमक चटनी
दुपहर दिन बड़ मीठ बुझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
(साहित्य अकादमीक सौजन्य सँऽ)
7 comments:
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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ReplyDeleteउज्जर दपदप भात सुगन्धित
ReplyDeleteपटुआ सागक झॊर विनिर्मित
आलुक साना, आमक चटनी
दुपहर दिन बड़ मीठ बुझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
bahut nik svargiya agyat jik kavita sabhak sankalan prastut karbak lel ahank jatek prashansa kayal jay se thor
आमक टिकुला-शिशु सभ सुन्दर
ReplyDeleteझूलि रहल छल पल्लव-दल पर
दानव-तुल्य तुलायल आन्ही
आह ! अवनि पर अछि ओंघरायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल
theeke , aab te kalamak chuhchuhi khatam bhay gel
ATI SUNDAR PRSTUTI ACHHI --
ReplyDeleteVIVEKA NAND JHA JI --
उज्जर दपदप भात सुगन्धित
पटुआ सागक झॊर विनिर्मित
आलुक साना, आमक चटनी
दुपहर दिन बड़ मीठ बुझायल
गरमिक दिन बड़ दुस्तर आयल ।
बड्ड नीक प्रस्तुति, गरमीक मौसममे।
ReplyDeletesamyik garmik mausam me
ReplyDeleteबबुआजी झा अज्ञातक कविता सभ बड्ड नीक होइये। कोनो हीन भावनाक प्रदर्शन नहि, जेना लोक क्लिष्ट शब्दावली दए करैत देखल जाइत छथि। स्वतः स्फूर्त।
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