भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, May 08, 2009

अमित कुमार झा

अमित कुमार झा,

चैनपुर, सहरसा


बुढ़ी माता

अपन परिवार- माँ, बाबूजी, भाइ, बहिन) संग पटनाक शेखपुरामे रहैत रही, बाबूजी पी.डब्लू. डी. मे एस.डी.ओ. एकटा प्रसिद्ध ईमानदार अधिकारी रहथि, सभसँ पैघ भैया पी.एच.ई.डी.दुमकामे पोस्टेड रहथि। हम सेंट जेवियर्स स्कूल, गाँधी मैदानसँ बारहमा करैत रही, पढ़ाइ-लिखाइमे बहुत नीक रही, पढ़ाइ-लिखाइक अलावा कोनो काज नहि रहए, ओइ पढ़ाइ-लिखाइक कारण हम बहुत कम उम्रमे नीक पद- मैनेजर बिरला ग्रुप- पर छी, हमर किछु दोस्त रहए जे ओहि समयक पैघ राजनीतिक परिवारसँ संबंधित छलाह- एहि विषयमे बादमे कहब- आइक तिथिमे सेहो बहुत पैध स्थानपर छथि। बारहमाक संगहि राम मनोहर राय, एस.पी.वर्मा रोड, पटनासँ मेडिकल एन्ट्रेंसक तैयारी सेहो करैत रही।

मुख्य घटना मोन पड़ैत अछि जनवरी १९९५ क कोचिंग क्लास ५.३० बजे भोरे सँ होइत रहए, हम घरसँ अन्हारे- ४.३०-४.४५ निकलैत रही। पटनामे जनवरी मासमे बहुत ठण्डी पड़ैत छैक, ओहि समयमे आर बेशी ठंडी पड़ैत रहए। ठंडा, ऊपरसँ अन्हार सुनसान रस्ता, बहुत डर सेहो लगैत रहए, लेकिन एक नया जोशमे सभ किछु बिसरि जाइत रही। ११ जनवरी १९९५ केँ कोचिंगमे मोड्युल टेस्टरहए, ई कारण हम ४ बजे घरसँ कोचिंग निकलि पड़लहुँ- कारण ठंढाक कारण लेट नहि होए। हम जहिना पुनाइचक-हड़ताली मोड़क बीच मेन रेलवे लाइन लग पहुँचलहुँ, अचानक एक टा घोघ तनने, करिया कम्बल ओढ़ने बुढ़ी माता सामना आबि गेलि, हम तँ डरसँ साइकिलसँ खसि पड़लहुँ, देखलहुँ तँ ओ बहुत बुढ़ आरो डॉंर लगसँ झुकल लागल। हम उठि कऽ ठाढ़ भेलहुँ, गरदा सभ झाड़ि कऽ जहिना चलय लऽ चाहलहुँ तँ ओऽ आवाज देलक,..सुन..अ..बौवा...

डरसँ हालत खराब भऽ गेल..चारू दिससँ सनसन जेकाँ आवाज महसूस हुअ लागल। डरल-डरल ओकरा लग गेलहुँ..।

पुछलक...कतए जा रहल छी!!! ताऽ तक ओ अपन घोघ नहि हटेने रहए।

डरसँ अबाज तँ जल्दी नहि निकलल...;लेकिन हिम्मत कऽ कए जवाब देलहुँ, कोचिंग जाइ छी।

फेर पुछलक..कथी के पढ़ाइ करैत छी..!! बातसँ अपनापन लागल।

हम कहलहुँ-डॉक्टरीक तैयारी करैत छी..

अच्छा बैस..दोसर पढ़ाइमे मोन नहि लगैत छौ- निर्देश दैत-..कनी देर रुकि जो तखन जहिऍं

ताऽ तक समय लगभग ४.४५ भऽ गेल रहए..एक दू टा आदमी सभ सड़कपर सेहो नजरि आबए लागल। लेट होइत रहए एहि कारण हिम्मत कए कऽ कहलहुँ...हमरा लेट भऽ रहल य..हमर आइ परीक्षा अधि अछि।

कोनो बात नहि..जवाब भेटल

बड़ असमंजसमे पड़ि गेलहुँ..की करी..नञि .करी..एक मोन होइत रहए, चलैत लोककेँ अवाज दी, मुदा सड़क फेर सुनसान भ गेल।

तखने ओऽ अपन घोघ हटेलक..हुनकर...चेहराकेँ देखिते लगभग आवाज बेहोश भऽ गेलहुँ..बुढ़झुर्रीदार चेहरा...ओहिपर मर्द जेकाँ...दाढ़ी...मोँछ...हे भगवान आइ-धरि एहन नञि देखने रही...हमर हाव-भावकेँ देखि ओऽ बजली...हमरा देखि कए डर लागए छौ..नञि डर। हम दोसर किओ नञि छियौ...पता नञि किए ओऽ किछु अपन जेकाँ लागए लागल...ताऽ तक लगभग ५ से ऊपर टाइम भऽ गेल...रोडपर दूध/ न्यूजपेपर बला हॉकर सभ नजरि आबए लागल...

किछु कालक बाद अवाज भेटल- आब तू जो..घुरैत काल अबिहेँ...हम हवाक भाँति/ तीर सँ बेशी तेजीसँ निकललहुँ...बहुत लेट भऽ गेल रही...साइकिलकेँ अपन क्षमतासँ बेशी तेजीसँ चलबए शुरू कए देलहुँ, जहिना गाँधी मैदान/ सब्जी बागक मुँहपर पहुँचलहुँ...देखलहुँ जे जबरदस्त एक्सीडेन्ट भेल रहए, पूरा रस्ता पुलिस ब्लॉक क देने रहए- एक्सीडेंट लगभग २० मिनट पहिने भेल रहए, जाहिमे चारि टा लोक आ एकटा चाहक दोकानदार मारल गेल...ओऽ चारू टा हमरे इंस्टीट्यूटक छात्र रहए जे नीक चाह पीबए खातिर रुकल रहए लेकिन...!!

हमहुँ ओहि चाहबलाक दोकानपर रोज रुकैत रही- अगर बूढ़ीमाता नञि भेटितए तँ हमहुँ ओहि समयमे चाहक दोकानेपर रहितहुँ ...फेर पता नञि...)- चाह पिबैक तँ आदति नहि रहए मुदा ठंढ़ाक चलते पीबि लैत रही।

कहुना इंस्टीट्यूट पहुँचलहुँ..ओहिठाम घटनाक सूचना पहुँचि गेल रहए...इंस्टीट्यूट दू दिनुका लेल बन्द कऽ देल गेल। छात्रक घरबलाकँ सेहो सूचित कए देल गेल, हमहुँ बुझल मोनसँ घर घुरए लगलहुँ, घर घुरैत काल ओएह बुढ़िया ओहीठाम भेटल...ओहिना घोघ तनने...लग जाऽ कए सभ घटना सुनेलाक बादो ओ कोनो जवाब नहि देलक...किछु कालक बाद कहलक...

बौआ हमरा भूख लागल यऽ!!

की खाएब !!! हम पूछलियनि

चूरा आ शक्कर..जवाब भेटल।

संयोग एहन रहए जे ताऽ तक हम सभ तरहक समान किनबाक वास्ते कोनो दोकानपर नहि गेल रही, कारण घरमे काज करए लेल बहुत आदमी रहए दोसर घरक सभसँ छोट रही। तैयो दोकानपर गेलहुँ आरो बुढ़ी-माता लऽ चूरा-गुड़ कीनि कए अनलहुँ।

किछु देरक बाद हम पुछलहुँ..कतए जेबही, हम पहुँचा देबौ।

“कतहु नञि”, जवाब भेटल।

“रहबीहीं कतए”, हम पुछलहुँ।

इएह जगह” सीधा जवाब भेटल।

“खाना कतए खेबहीं”...पुछलापर जवाब भेटल- “ तूँ खुआ, बेशी बक-बक नञि कर, खाइ लेल दे फेर तू पुछिहँ जे पूछए के छौ”- बिल्कुल रुखल जवाब सेहो भेटल। संगहि स्नेहसँ कहलक- “तूँहो खो”।

हम तँ अजीब मुश्किलमे पड़ि गेलहुँ..ओकरा अकेले छोड़ि कए जाइ के मोन सेहो नञि करैत रहए...आखिर की करी...बहुत सोचलाक बाद निर्णय लेलहुँ..जे हुअए एकरा अपना संग लऽ जाइ...रिक्शापर बुढ़िया आरो साइकिलपर हम, घर पहुँचि ओकरा गेटपर ठाढ़ कऽ बाहर ठाढ़ कऽ हम घर गेलहुँ, सभ कहानी अपन माताजीकेँ बतेलहुँ, बुढ़िया बाहरमे ठाढ़ छै, सेहो कहि देलहुँ। सभसँ पैघ समस्या जे बुढ़ियाकेँ आखिर कतए राखी...माताजी कहलखिन- नीचाँमे एकटा रूम खाली छै- ओहिमे जगह देल जाए, सभ बेबस्था-बिछोना, कम्बल, साफ साड़ी-कऽ कए ओकरा घरमे बैसेलहुँ। साँझमे बाबूजी ऑफिससँ अएलाह तँ हुनका सभ कहानी बतेलहुँ।

बाबूजी कहलन्हि-“बुढ़िया कहिया तक रहतहु”।

“नञि पता”- हम कहलहुँ।

फेर माताजी सभ सम्हारि लेलन्हि ..आरो बाबूजीकेँ समझा देलखिन। बुढ़ी-माताक सेवा करब हमर रोजक ड्यूटी भऽ गेल। कोचिंग जाइसँ पहिने आधा घण्टा, आबए के बाद १ सँ डेढ़ घण्टा हमर समय बुढ़ी माता लग बीतए लागल। भोजनक अलग-अलग फरमाइश होइत, सभ किछु पूरा करैत एक सप्ताह बीतल, एक दिन अपना लग बैसा हमर बारेमे पूछए लागल- जेना अपन दादी-दादा-अग्रज- बुढ़ी माता दिससँ कहल गेल- तूँ दोसर पढ़ाइ- मेडिकल छोड़ि कऽकर। बहुत नाम हेतौ, खूब पैसा कमेबे, माँ-बाप तोरापर नाज करतौ, दसम दिन रातिमे बिना किछु बतेने पता नञि कतए चलि गेलय- आइ तक नहि भेटलीह...एखन तक हम इन्तजार करए छी जे बुढ़ी माता एकदिन जरूर भेटतीह।

बुढ़ी माताक बात बिल्कुल सही भेल जखन १४-१५ घण्टा पढ़ाइ करबाक बावजूद सी.बी.एस.ई. मेडिकलमे वेटिंग आबि गेल। बी.सी.ई.ई.मे डेयरी ब्रान्च भेटल, एम.डी.ए.टी.मे १००% चान्स रहए- ९०% एक्यूरेट प्रश्न सही कएने रही- मुदा परीक्षा-केन्द्र मिल्लत कॉलेज, दरभंगा केन्सिल भऽ गेल..एहि कारणसँ हम फ्रस्ट्रेशनमे रहए लगलहुँ। पढाइ-लिखाइ बन्द कए देलहुँ...जे एतेक पढ़ाइ करए के बाद जखन सफलता नहि भेटल तँ आब कहियो नहि हएत।

 

फेर हमरा बुढ़ी-माताक बात याद भेल, संगहि बाबूजी सेहो कहलन्हि- अपन ट्रैक चेन्ज करू, लगभग ओही समय यू.जी.सी.सँ ३ टा नया कोर्स पटना आ मगध विश्वविद्यालयकँ भेटल- बायो-टेक्नोलोजी, जल आ पर्यावरण प्रबंधन आ बी.सी.ए.। एन्ट्रेन्स परीक्षापर नामांकन प्रक्रिया शुरू भ गेल। बी.सी.ए. हमरा किछु ढंगक कोर्स बुझाएल, एन्ट्रेन्स देलहुँ आ पास क गेलहुँ। यू.जी.सी. बी.सी.ए.क प्रथम बैचक पहिल छात्र हम रही जे अन्तिम परीक्षा ८९% सँ पास केलहुँ। बाबूजी कहलन्हि- आब यू.पी.एस.सी.क तैयारी करू, ढंगक सरकारी नोकरी लिअ, लेकिन हमर सोच किछु आरे रहए। “अगर अपन प्रतिभा/ क्षमताक उपयोग करबाक अछितें सरकारी नोकरी नञि करू”। फेर एम.सी.ए. केलहुँ, मोन भेल जे एम.बी.ए. कएल जाय- बहुत कठिन रहए आइ.टी.सँ एम.बी.ए. करब। मुदा बुढ़ी माताक कृपासँ एम.बी.ए. सेहो कऽ लेलहुँ। केम्‍पस सेलेक्शनमे रिलायन्सक ऑफर भेटल। जोइन केलहुँ, फेर एच.डी.एफ.सी. बैंकसँ ऑफर भेटल तँ बैंक जोइन कऽ लेलहुँ। हृदयमे इच्छा रहए जे टाटा-बिड़लामे नोकरी करबाक चाही। बुढ़ी माताक कृपासँ इच्छा पूरा भऽ गेल आ बिड़ला ग्रुपसँ नीक स्थानक ऑफर आबि गेल। जोइन सेहो कऽ लेलहुँ आ एखन तक एतहि छी..आब इच्छा अधि दिल्ली/ मुम्बइक बहुत सेवा केलहुँ...आब अपन बिहार/ मिथिलाक सेवा कएल जाय..बुढ़ी माताक कृपासँ ओहो भऽ जदूतए मुदा सभसँ पैघ इच्छा अछि बुढ़ी-माताक दर्शनक..पता नञि होएत कि नञि...

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