भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Wednesday, May 20, 2009
जानकी! कतए छी? आउ नैहर
देखू ने धिया पुता सब पैघ भय गेल.
किछ तऽ नेतो बनल अछि.
पैघ कुर्सी पर चढ़ल अछि.
वचन दऽ कय जाए कोना
दृग आ मुंह मोरि लेने अछि.
जानकी! कतए छी? आउ नैहर.
आउ बुझबियौक ओकरो कने
कोना राम राज्य चलै छल.
एक टा तऽ वैद्य भय गेल
नाम ओकर देश विदेश भेल
नहि मुदा देखा पड़ैत ओकरा
दीन हीन पीड़ित सहोदर
जे व्याधि से मूडी फोरी रहल अछि.
जानकी! कतए छी? आउ नैहर.
आउ कने ओकरो बुझबियौक
सहोदर कोना व्यवहार करै अछि.
जानकी! कतए छी? आउ नैहर.
देखू ने धिया पुता सब पैघ भय गेल.
बाढ़ि तऽ सभ साल अबै अछि
दहा जायेत अछि माल जाल
बहि जाए नेना बच्चा, बूढ़ माए बाप
गाम उजड़ि जाए जेना विधवाक मांग
जानकी! कतए छी? आउ नैहर.
आउ कने हिनको बुझबियौक
बहई अछि जे गाम से कमला, कोशी, बलान.
जानकी! कतए छी? आउ नैहर.
देखू ने धिया पुता सब पैघ भय गेल.
पर नहि देखा पड़ैत छैक
पीड़ अहि देह केर
नोचि नोचि कय खाए गेल
सभ अहांक बचल खुचल नाम.
अहांक बचल खुचल नाम.
जानकी! कतए छी? आउ नैहर.
देखू ने धिया पुता सब पैघ भय गेल।
-x-
मिथिला के ई हाल कियैक सेहो ने पूछल जाए
जिनक नाम लैत लैत ककरो जीह ने भोथराए.
बजाय रहल छी जानकी के स्वयं, ई संदेशक प्रेषण लेल
हे नेना हउ, हे बुच्ची यै, आब करू काज समाजक लेल
अपने आबि कहि देथुन्ह आब, जे हे नैहरक जीव!
कहिया तक नाम बेचि के पड़ल रहब निर्जीव.
उठू ठार होऊ, करू उद्यम स्वयं, अपन विकासक लेल
नहीं ताकय पड़त फेर ककरो दिस अपन समाजक लेल
हँ कोना एती, कियैक एती, ओ नैहर आब
सासुर जरैत रामक नाम से, नैहर अछि बेहाल
की यैह कहऽ सूनऽ लेल अउती जनक कुमारी
देखि कहीं ने समा जाईथ ओ फेर धरती में बेचारी.
10 comments:
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
कौतुक रमण जी। जानकीक आराधनाक बहन्ने अहाँक कविता मिथिलाक बहुत रास समस्याक वर्णन करैत अछि।
ReplyDeleteबड्ड नीक लागल। अहाँसँ एहि तरहक आर कविताक आसमे।
svagat achhi kautuk ramanji,
ReplyDeleteahank pahil kavita aas jagelak je aar nav nav kavita padhbak avsar bhetat
सासुर जरैत रामक नाम से, नैहर अछि बेहाल की यैह कहऽ सूनऽ लेल अउती जनक कुमारी
ReplyDeleteदेखि कहीं ने समा जाईथ ओ फेर धरती में बेचारी.
kavitak an bad nik
bah kautuk ji,
ReplyDeletemaa jankik aavahan navin roop se
दहा जायेत अछि माल जाल
ReplyDeleteबहि जाए नेना बच्चा, बूढ़ माए बाप
गाम उजड़ि जाए जेना विधवाक मांग
जानकी! कतए छी? आउ नैहर.
आउ कने हिनको बुझबियौक
बहई अछि जे गाम से कमला, कोशी, बलान. जानकी! कतए छी? आउ नैहर.
ati sundar
bad nik lagal kavita
ReplyDeleteनोचि नोचि कय खाए गेल
ReplyDeleteसभ अहांक बचल खुचल नाम.
yaih bhay rahal achhi
1.किछ तऽ नेतो बनल
ReplyDelete2.बाढ़ि तऽ सभ साल अबै अछि
दहा जायेत अछि माल जाल
कोना एती, कियैक एती, ओ नैहर आब
puran bimb aa nav kathyak nik sammilan
kavita neek lagal
ReplyDeletebahut nik lagal
ReplyDelete