साहित्य मनीषी मायानन्द मिश्रसँ
साक्षात्कार
शिव प्रसाद यादव द्वारा। डॉ. श्री शिवप्रसाद यादव, मारवाड़ी महाविद्यालय भागलपुरमे मैथिली विभागाध्यक्ष छथि।
भागलपुरक नामी-गामी विशाल सरोवर ’भैरवा तालाब’। जे परोपट्टामे रोहु माछक लेल प्रसिद्ध अछि। कारण एहि पोखरिक माँछ बड़ स्वादिष्ट। किएक ने! चौगामाक गाय-महींसक एक मात्र चारागाह आर स्नानागार भैरबा पोखड़िक महाड़। दक्षिणबड़िया महाड़ पर मारवाड़ी महाविद्यालय छात्रावास। छात्रावासक प्रांगणमे हमर (अधीक्षक) निवास। आवासक प्रवेश द्वार पर लुक-खुक करैत साँझमे बुलारोक धाप। हॉर्नक ध्वनि सुनि दौड़ि कए घरसँ बहार भेलहुँ। दर्शन देलनि मिथिलाक त्रिपूर्ति, महान विभूति- दिव्य रूप। सौम्य ललाट। ताहि पर चाननक ठोप, भव्य परिधान। ताहि पर मिथिलाक पाग देखितहि मोन भेल बाग-बाग। नहुँ-नहुँ उतरलनि- साहित्य मनीषी मायानन्द, महेन्द्र ओऽ धीरेन्द्र। गुरुवर लोकनिक शुभागमनसँ घर-आँगन सोहावन भए गेल। हृदय उमंग आ उल्लाससँ भरि गेल। मोन प्रसन्न ओऽ प्रमुदित भए उठल। गुरुवर आसन ग्रहण कएलनि, यथा साध्य स्वागत भेलनि। तदुपरान्त भेंटवार्ताक क्रम आरम्भ भए गेल। प्रस्तुत अछि हुनक समस्त साहित्य-संसारमे समाहित भेंटवार्ताक ई अंश:-
प्र. ’मिथि-मालिनी’ केँ अपने आद्योपान्त पढ़ल। एकर समृद्धिक लेल किछु सुझाव?
उ. ’मिथि मालिनी’ स्वयं सुविचारित रूपें चलि रहल अछि। स्थानीय पत्रिका-प्रसंग हमर सभ दिनसँ विचार रहल अछि जे एहिमे स्थापित लेखकक संगहि स्थानीय लेखक-मंडलकेँ सेहो अधिकाधिक प्रोत्साहन भेटक चाही। एहिमे स्थानीय उपभाषाक रचनाक सेहो प्रकाशन होमक चाही। एहिसँ पारस्परिक संगठनात्मक भावनाक विकास होयत।
प्र. ’मिथिला परिषद’ द्वारा आयोजित विद्यापति स्मृति पर्व समारोहमे अपनेकेँ सम्मानित कएल गेल। प्रतिक्रिया?
उ. हम तँ सभ दिनसँ मैथिलीक सिपाही रहलहुँ अछि। सम्मान तँ सेनापतिक होइत छैक, तथापि हमरा सन सामान्यक प्रति अपने लोकनिक स्नेह-भाव हमरा लेल गौरवक वस्तु भेल आ मिथिला परिषदक महानताक सूचक। हमरा प्रसन्न्ता अछि।
प्र. अपने साहित्य सृजन दिशि कहियासँ उन्मुख भेलहुँ?
उ. तत्कालीन भागलपुर जिलाक सुपौलमे सन् ४४-४५ मे अक्षर पुरुष पं रामकृष्ण झा ’किसुन’ द्वारा मिथिला पुस्तकालयक स्थापना भेल छल तकर हम सातम-आठम वर्गसँ मैट्रिक धरि अर्थात् ४६-४७ ई सँ ४९-५० ई.धरि नियमित पाठक रही। एहि अध्ययनसँ लेखनक प्रेरणा भेटल तथा सन् ४९ ई. सँ मैथिलीमे लेख लिखऽ लगलहुँ जे कालान्तरमे भाङक लोटाक नामे प्रकाशितो भेल सन् ५१ ई. मे। हम तकर बादे मंच सभपर कविता पढ़ऽ लगलहुँ।
प्र. अपने हिन्दी एवं मैथिली दुनू विषयसँ एम.ए. कएल। पहिल एम.ए. कोन विषयमे भेल?
उ. मैट्रिकमे मैथिली छल किन्तु सन् ५० ई. मे सी.एम. कॉलेज दरभंगामे नाम लिखेबा काल कहल गेल जे मैथिलीक प्रावधान नहि अछि। तैँ हिन्दी रखलहुँ। तैँ रेडियो, पटनामे काज करैत, सन् ६० ई. मे पहिने हिन्दीमे, तखन सन् ६१ ई. मे मैथिलीमे एम. ए. कएलहुँ।
प्र. हिन्दी साहित्यमे प्रथम रचना की थीक आ कहिया प्रकाशित भेल।
उ. हिन्दीक हमर पहिल रचना थिक, ’माटी के लोक: सोने की नया’ जे कोसीक विभीषिका पर आधारित उपन्यास थिक आ जे सन् ६७ ई. मे राजकमल प्रकाशन, दिल्लीसँ प्रकाशित भेल।
प्र.अपनेक हिन्दी साहित्यमे १. प्रथम शैल पुत्री च २. मंत्रपुत्र ३. पुरोहित ४. स्त्रीधन ५. माटी के लोक सोने की नैया, पाँच गोट उपन्यास प्रकाशित अछि। एहिमे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपन्यास कोन अछि आओर किएक?
उ. अपन रचनाक प्रसंग स्वयं लेखक की मंतव्य दऽ सकैत अछि? ई काज तँ थिक पाठक आ समीक्षक लोकनिक। एना, हिन्दी जगतमे हमर सभ ऐतिहासिक उपन्यास चर्चित रहल अछि। अधिक हिन्दी समीक्षक प्रशंसे कएने छथि। गत वर्षसँ हिन्दीक सम्राट प्रो. नामवर सिंह जी हिन्दीक श्रेष्ठ उपन्यास पर एकटा विशिष्ट कार्य कऽ रहल छथि, जाहिमे हमर प्रथम शैल-पुत्री नामक प्रगैतिहासिक कालीन उपन्यास सेहो संकलित भऽ रहल अछि। एहि उपन्यास पर विस्तृत समीक्षा लिखने छथि जयपुर युनिवर्सिटीक डॉ शंभु गुप्त तथा हम स्वयं लिखने छी एहि उपन्यासक प्रसंग अपन मंतव्य। ई पुस्तक राजकमल प्रकाशनसँ छपि रहल अछि। असलमे प्रथम शैलपुत्री’ मे अछि भारतीय आदिम मानव सभ्यताक विकासक कथाक्रम- जे कालान्तरमे हड़प्पा अथवा सैंधव सभ्यताक निर्माण करैत अछि जकर क्रमशः अंत होइत अछि। हम स्वयं एकरा अपन सफल रचना मानैत छी, समीक्षको मानि रहलाह अछि। एना, पुरोहित अपना नीक लगैत अछि। ’स्त्रीधन’ मिथिलाक इतिहास पर अछि।
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