कुमार शुशान्त
डटिकए जलपान
एकटा कविताक भाव निश्चितरुपसँ स्मरण होयत,
“सात समुद्रक जलकेँ स्याही बनादेलजाए,
वनक जँगलके लेखनी,
समस्त धर्तीकेँ कागज बनादेलजाए,
तखनो भगवानक महिमा पूर्णरुपसँ नहि लिखल जाऽसकैया”
भगवानक महिमा त छोडि दिय एतबा में त डटकेजलपानेक महिमा नई अटत। डटकेजलपान हूनक वास्तविक नाम छन्हि दिबसलाल। जे हुनकर कर्मेन भेटल छन्हि हुनक किछु महिमा प्रस्तुत अइछ,
कीऋ परिक्षाक सेंन्टर गामसँ ७० कि.मि. दूर एकटा स्कूल में रहें, आवत–जावत नई संभव हाएत ई विचार कऽक गामक १० टा जे परिक्षार्थी छल सबगोटे एके ठाम डेरा लेनहुँ। पहिलबेर अभिभावकके नजरसँ दूर स्वच्छंद लंगोटिया यार–दोस्त संग रहबाक मौका भेटल। उमंग–उत्साह त एते कि बर्णने उचित नई। ओम्हर अभिभावकके कि फुरौलनि से भगवान जानथि। देख–रेखलेल संग लगौलनि डटकेजलपानके। एक त राकश मंडलि उपर स न्योत से भेट गेल, डेरामें समानसब राइखकऽ फ्रेश होयबाकलेल कोका–कोला पिबाक निर्णय भेल मंइलिके। दोकानपर पहुँचिते हुकुम भेल दोकनदारके,
“दसटा खूब ठंढा कोका–कोला दऽ”
डटकेजलपान लगा कुल संख्या छल एग्यारह, मुदा जानि–बूझकऽ मंगनऊ दशेटा।
आवशुरु भेल विवेचन
एकटा मित्र “जा हुनका नइ भेटलनि ”
दोसर “नई–नई हुनका देबो नइ करबनि ”
तेसर “से किया ?”
चौथा “बड़ कडा निशा होइत छैक अइ में”
सब गोटे जाहि मंशासँ गप्प नारने छलहुँ से पुरा भेल, डटकेजलपान बजलथि।
डटके “उबारु सब, माँए बाप परिक्षा देबला पढएने छन्हि आ ईसब एतऽ दारु पिबइ छथि ”
एक मित्र “तोहरा अपन ँबतजभच के शपथ छह, कतौ बजिहऽ नई ”
अंगूठा द्दाप, ँबतजभच के मतलब नई बूझलथि ताएँ झगड़ा नई कएलथि, एतबे बजलनि
“ठिकछई–२ नइ कहब ”।
किछुदेर सऽबके पिबैत देख नइ रहलगलन्हि, पूछि बैसलथि,“कते कड़ा होइछै एकर निशा ?”
मित्र “नइ पूछह, झूमा देतौ ”
डटके “(मूंह बिचकबइत) हूँह, केहन–२ भाँग–धतूर के त सिधें घोंटि जाइ छियनि त ई कि झूमाओत ?”
मित्र “कहैत छिओ ने , भूलियोकऽ नई पिविहऽ ”
डटके “एहन बात छइ तहन लबही तरे ”
लेलथि कोका–कोला; मुश्किलसँ आधा बोतल पिने रहथि कि लड़बड़ाईत आवाजमें कहैछथि “हमरा
कान में फहऽहऽहऽ करईया ”
एक मित्र “हौ, ई कोन बिमारी भेल ”
दोसर मित्र “बिमारी नई, हिनका निशा लागि गेल छन्हि ”
हौजी एतवा सुनिते आधा बोतल कोका–कोला हाथमें नेने ओङ्घराए लगलथि रोडपर। आबत भेल भीड़, जे तुरत्ते आएल रहथि हूनक एकैटा प्रश्न रहन्हि– “कि भ गेल छन्हि ”
“निशा लागल छन्हि ”
“कि लऽ लेलथि ”
“कोका–कोला ”
“बड़ नौटंकियाह लोक छथि, ओइसँ कोनो निशा लगइ छइ ”
जइन एतबे जवाब धिरे–धिरे जम्मा भेल पचासटा लोकसँ सुनलथि तइन ठाढ भऽ क देहपर लागल माटि झाड़ैत बजलथि,“उबारु सब, झूठे किया बजैजाइत गेले हऽ जे निशा बला चिज छइ से, करा देले ने बेइज्जति”।
एकटा मित्र “तों किया चिंता करैत छऽ बेइज्जतिके?, ओकरा करऽ दहक ने जकरा ठाम इज्जत छई ”।
“बोनि निक भेटल” चर्चा करैत सब गोटे पहुँचनऊ डेरामें।
आब निर्णय भेल भोजन लेल जएबाक।बेरा–बेरी भोजन कऽक आएल जाए।
२ रुपैयामे भरिपेट भोजन पहिनहिं एकटा होटलमे तय कऽ क एडभान्स १० रुपैया जमा सेहो करा चुकल छलहुँ। होटलके नाम कहिकऽ सबसँ पहिने भोजन करबाकलेल पठाओलगेल डटके जलपानकेँ। घन्टा दू घन्टा, चारि घन्टा भऽगेल मूदा डटके जलपान अएलथि नहि। चिन्ता सँ बेसी कौतुहुलतावश हुनक तलाशमे सबगोटे निकललहुँ। होटल आगा पहुँचलहुँ त फेर सँ नजर पडल किछु लोकक भीडपर। पहुचिते देखैत छी जे डटकेजलपान आओइ होटल मालिक बीच गर्मागरम बहश भऽरहल अछि।
होटल मालिक “हम कोनहुँ किमतपर नईं खुवा सकैत छी”
डटके– “अपने मने नई खुएबे, पाई देने छियौ, फोकटमे नईं”
बीच बचाव करैत होटल मालिकसँ प्रश्न पुछि बसिलहुँ–“की बात ”
जबावमे खाना बनाबऽवला महराज बडका हण्डाके करछुसँ पिटैत पहुँचल ओतऽ जतऽ हमसब ठाढ छलहुँ।
दोकानदार–(खाली हण्डा दिस ईशारा करैत)“आब बुमाएल बात”
किछुदेरक चुप्पीक बाद, फेरसँ हाथ जोडिकऽ बजलथि–“सरकार हम मनुख्खक भोजनके बात कएने छलहुँ”
हमसब कहलियैन्हि–“ई त ऊचीत नई भेल ! हमसब त एडभान्स देने छी”
दोकानदार गल्लामेसँ १२ टका निकालिकऽ, लगमे आबि हाथमे पकडा देलक आ कानमें धिरेसँ कहैया–“बारह टका देलहुँ, १० टका जे अपने एडभान्स देने छलहुँ से आ सुनु–ऊ जे सामनेके होटल अछि(सामनेके होटल दिस ईशारा करैत) ओकरा मालिकसँ बड कसिकऽ दू दिन पहिने हमरा मगडा भेल छल, उपरका जे फाजिल दू टका अछि ओ हमरा तरफसँ घूसभेल, अई आदमिके काल्हिसँ ओही होटलमें पठाऊ”
दोकानदार सँगे सब मित्रके हँसैत–हँसैत पेट दुखाए लागल।
डटकेजलपान अर्थात दिवसलालजीक एक एकटा काजक वर्णन लिखऽमे जौं समुद्रक पानिके मसी बनादेल जाए त भलेही समुद्र सुखा जाए मूदा दिवसलालजीक कारनामा नई लिखा सकत। धन्यछथि....दिवसलालजी!
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।