श्री रामभरोस कापड़ि “भ्रमर” (१९५१- )
जन्म-बघचौरा, जिला धनुषा (नेपाल)। सम्प्रति-जनकपुरधाम, नेपाल। त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ एम.ए., पी.एच.डी. (मानद)।
हाल: प्रधान सम्पादक: गामघर साप्ताहिक, जनकपुर एक्सप्रेस दैनिक, आंजुर मासिक, आंगन अर्द्धवार्षिक (प्रकाशक नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, कमलादी)।
मौलिक कृति: बन्नकोठरी: औनाइत धुँआ (कविता संग्रह), नहि, आब नहि (दीर्घ कविता), तोरा संगे नहि जएबौ रे कुजबा (कथा संग्रह, मैथिली अकादमी पटना, १९८४), मोमक पघलैत अधर (गीत, गजल संग्रह, १९८३), अप्पन अनचिन्हार (कविता संग्रह, १९९० ई.), रानी चन्द्रावती (नाटक), एकटा आओर बसन्त (नाटक), महिषासुर मुर्दाबाद एवं अन्य नाटक (नाटक संग्रह), अन्ततः (कथा-संग्रह), मैथिली संस्कृति बीच रमाउंदा (सांस्कृतिक निबन्ध सभक संग्रह), बिसरल-बिसरल सन (कविता-संग्रह), जनकपुर लोक चित्र (मिथिला पेंटिङ्गस), लोक नाट्य: जट-जटिन (अनुसन्धान)।
नेपाली कृति: आजको धनुषा, जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका सांस्कृतिक सम्पदाहरु (आलेख-संग्रह), भ्रमरका उत्कृष्ट नाटकहरु (अनुवाद)।
सम्पादन: मैथिली पद्य संग्रह (नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान), लाबाक धान (कविता संग्रह), माथुरजीक “त्रिशुली” खण्डकाव्य (कवि स्व. मथुरानन्द चौधरी “माथुर”), नेपालमे मैथिली पत्रकारिता, मैथिली लोक नृत्य: भाव, भंगिमा एवं स्वरूप (आलेख संग्रह)। गामघर साप्ताहिकक २६ वर्षसँ सम्पादन-प्रकाशन, “अर्चना” साहित्यिक संग्रहक १५ वर्ष धरि सम्पादन-प्रकाशन। “आँजुर” मैथिली मासिकक सम्पादन प्रकाशन, “अंजुली” नेपाली मासिक/ पाक्षिकक सम्पादन प्रकाशन।
अनुवाद: भयो, अब भयो (“नहि आब नहि”क मनु ब्राजाकीद्वारा कयल नेपाली अनुवाद)
सम्मान: नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान द्वारा पहिल बेर १९९५ ई.मे घोषित ५० हजार टाकाक मायादेवी प्रज्ञा पुरस्कारक पहिल प्राप्तकर्ता। प्रधानमंत्रीद्वारा प्रशस्तिपत्र एवं पुरस्कार प्रदान। विद्यापति सेवा संस्थान दरिभङ्गाद्वारा सम्मानित, मैथिली साहित्य परिषद, वीरगंजद्वारा सम्मानित, “आकृति” जनकपुर द्वारा सम्मानित, दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल नेपाल पत्रकार महासंघ धनुषाद्वारा सम्मानित, जिल्ला विकास समिति धनुषा द्वारा दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल पुरस्कृत एवं सम्मानित, नेपाली मैथिली साहित्य परिषद द्वारा २०५९ सालक अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन मुम्वई द्वारा “मिथिला रत्न” द्वारा सम्मानित, शेखर प्रकाशन “पटना” द्वारा “शेखर सम्मान”, मधुरिमा नेपाल (काठमाण्डौ) द्वारा २०६३ सालक मधुरिमा सम्मान प्राप्त। काठमाण्डूमे आयोजित सार्कस्तरीय कवि गोष्ठीमे मैथिली भाषाक प्रतिनिधित्व।
सामाजिक सेवा : अध्यक्ष-तराई जनजाति अध्ययन प्रतिष्ठान, जनकपुर, अध्यक्ष- जनकपुर ललित कला प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपाध्यक्ष- मैथिली प्रज्ञा प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपकुलपति- मैथिली अकादमी, नेपाल, उपाध्यक्ष- नेपाल मैथिली थाई सांस्कृतिक परिषद, सचिव- दीनानाथ भगवती समाज कल्याण गुठी, जनकपुर, सदस्य- जिल्ला वाल कल्याण समिति, धनुषा, सदस्य- मैथिली विकास कोष, धनुषा, राष्ट्रीय पार्षद- नेपाल पत्रकार महासंघ, धनुषा।—सम्पादक
अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन आ नेपाल
रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’
चारिम वर्ष हम पटना गेल रही। चेतना समितिमे बैजू बाबू भेटलथि। विद्यापति स्मृति पर्व भ’ गेल रहै। कोनो आने सन्दर्भमे रही। ओ आवेशपूर्वक दिल्लीमे आयोजन होब बला अन्तर्राष्ट्रि मैथिली सम्मेलनमे अएबाक हेतु आमंत्रण देलनि। हमरा सभ लेखें पहिल आयोजन रहैक–हम आ डा. विमलकें जएबाक रहैक, मुदा जँ कि ओ बड हडबडीमे आ अस्पष्ट रुपँ अएबाक बात बाजल रहथि, हम सभ जा नहि सकल रही। बरु काठमाण्डूसँ धीरेन्द्र आ कमलेश झा गेल रहथि। ‘मिथिलारत्न’ सँ सम्मानित होइत गेलाह आ ओत्तहि घोषणा कएलनि–अगिला साल ई समारोह काठमाण्डूमे होयत। तालीक गडगडाहटि भेल।
जे से हम सभा जा नहि सकलहुँ। बादमे बैजू बाबूकेँ भेलनि जे नेपाल सँ किछु आरलोकनि छुटि गेलाह, अएबाक चाहियनि। ओ जनकपुर अएलाह आ धीरेन्द्र आदिसँ सम्पर्क कएलखिन्ह जे एहि वर्ष काठमाण्डूमे आयोजनक की तैयारी अछि। जे हुनका संग रहनि हुनक कथन अनुसार धीरेन्द्र आदि जे केओ गछने रहनि साफ पाछाँ हटि गेलनि। ओ मर्माहत भ’ जनकपुरसँ घूरि गेलाह। तखन ओम्हर जा मुम्वईमे आयोजन करबाक ब्योंत धरौलनि।
आब मुम्वईमे अएबालेल पुनः बैजू बाबूक आमंत्रण, आग्रह आ स्नेहपूर्ण दवाव आएल। रेवती जीकें सेहो आग्रह भ’ गेल रहिन–विद्यापति स्मृतिपर्वक अवसर पर दरिभंगेमे। ई तेसर सालक गप थिक। अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन नेपाल–भारतक विद्वान, मैथिली सेवी सभक सझिआ मंच होएबाक हमर विश्वास मुम्वई चलबाले’ प्रेरित कएलक आ तखन दरिभंगासँ टिकट रिजर्बक व्यवस्था चन्द्रेशजी जिम्मा देल गेल। जेना बैजु बाबूक मुँहकहबी कार्यक्रम तहिना अस्पष्ट चन्द्रेशजीक ओरिआओन। हम सभ दरिभंगा पहुंचि दोसर दिन भेने मुम्वईक हेतु प्रस्थान कएने रही। मुम्वईक सम्पूर्ण कार्यक्रमक सन्दर्भमे पुस्तकमे आनठाम हमर विचार आबि चुकल अछि।
तहिना गत वर्ष कलकत्ताक तैयारी रहैक। एहि बेर हमरा पर थप भार द’ देलनि बैजू बाबू–‘मिथिला रत्न’क हेतु व्यक्तित्व चयनक। रेवती जीसँ सलाह कएल–ओ वदरी नारायणवर्माक नाम बतौलनि। हम डा. रामदयाल राकेशकेँ एकरा लेल उपयुक्त वूझि दुनूक नाम बैजूबाबू लग पठा देलियनि। डा. राकेश केँ काठमाण्डूसँ बजाओल गेलनि। हम सभ निर्धारित तिथिकेँ ‘गंगासागर’ सँ कलकत्ताक हेतु विदा भ’ गेल रही। ओत्त पहुंचलाक बाद स्टेशन पर ठाढ बैजू बाबू मोनकेँ गदगद क’ देने रहथि।
तकरा बाद अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलनमे नेपालक हमरा चारि गोटकैं फूटे कोठरीमे आवास देल गेल आ सम्मान सेहो। मैथिली सम्मेलनक अन्तर्राष्ट्रिय स्वरुप प्रदान करबा लेल हमरा सभक उपस्थिति जहिना अनिवार्य देखल गेल तहिना डा. वैद्यनाथ चौधरी बैजूक व्यवहार ततबे सहज आ अपनत्व भरल।
आब चारिम चेन्नईमे अछि। तैयारी चलि रहल छैक। ओत्तहु नेपाल एकटा महत्वपूर्ण सहभागी रुपमे उपस्थित होयत तकर आशा करैत छी।
अनुभूति आ औचित्य
हमरा बूझल नहि अछि बैजू बाबू कोन उद्देश्य राखि ई अन्तर्राष्ट्रिय स्वरुपमे एकरा शुरु कएलनि। ओ एकर शुभारंभ मैथिलीकेँ अष्टम अनुसूचीमे स्थान भेटलाक बाद ताही तिथि २२ दिसम्वरकेँ कएलन्हि। जकरा अधिकार दिवसके रुपमे मनाओल जाइछ – २२ ता.क’ अधिकार दिवस आ २३ ता.क’ अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन।
पहिल बेर दिल्लीक हेतु आमंत्रण भेटला पर हमरा सभक हिचकिचाहट, आयोजनमादे शंका ढेर सन छल। बैजू बाबूक संघर्षशील व्यक्तित्व प्रभावित त करैत छल, मुदा हरफन मौला काम काजसँ आशंका उठैत छल, पता नहि जे कहैत छथि, करबो करैत छथि वा नहि तए“ दिल्लीक ओ सम्मेलन छुटल तकर हमरा काफी अफशोच अछि।
बादमे मुम्वई आ कलकत्ताक अनुभब काफी सकारात्मक, प्रशंसनीय आ अनुकरणीय रहल। अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनक समस्त गरिमाकेँ निर्वाह करबाक प्रयास ओ करैत छथि। कतौ स्थानीय आयोजक अपनासँ उन्नैस वुझाइत छनि तँ कतौ वीस। तए “परेशानी त हुनके उठब’ पडैत छनि। मुदा हम सभ जे अनुभव कएलहुँ ओ अत्यन्त काजक छल। मैथिली संसारक बहुतो साहित्यकार, सेवी, भाषाशास्त्री, संगीत एवं नृत्यकलाकार सभसँ भेंटघांट होइत अछि। सभक विचारक आदान–प्रदान होइत छैक। नव संसारक निर्माण होइत छैक।
भाषा, साहित्य, संस्कृतिक हेतु सेहो एहि सम्मेलनक उपादेयता स्पष्ट अछि। मैथिली भाषाक उत्थानक हेतु नव–नव योजना बनैत छैक। नव–नव पोथी प्रकाशित एवं विमोचित होइछ। विद्वान एवं प्रेमी लोकनि सम्मानित होइत छथि। सांस्कृतिक कार्यक्रममे नव–नव प्रतिभा आगां अबैत छथि। सम्पूर्ण मैथिल समाजसँ ओ प्रतिभा जुडैत अछि, जाहिसँ बादमे ओकर विकासक अवसर प्रदान होइछ। ‘राखी’ एकटा अपाहिज लडकी एहने प्रतिभा अछि जे सभकेँ प्रभावित कएने रहए। अमता धरानाक कलाकार लोकनि मुग्ध करैत छथि।
नेपाल आ भारतक बिचक सम्वन्धक नीक सूत्रपात ई सम्मेलन करैत अछि। नेपालक प्रतिनिधिके मंचपर उपस्थितिसँ दुनू देशक प्राचीन सम्वन्धमे ताजापन अबैछ। मुम्वई आ कलकत्तामे पंक्ति लेखकक भाषणसँ हजारोंक दर्शक दीर्धामे भेल तालीक गडगडाहटि तकर प्रमाण छैक। नेपालमे होइत मैथिली गतिविधिसँ सम्पूर्ण मिथिलाञ्चलकेँ, खास क’ प्रवासी मैथिलकेँ जानकारी करएबाक ई सुन्दर अवसर होइत अछि, जकर उपयोग मुम्वई आ कलकत्ता दुनूठाम कएल गेल। कलकत्तामे नेपालमे मैथिली, नामक वूकलेट छपा वांटल गेल रहय तं राम भरोस कापडि ‘भ्रमर’क सद्यः प्रकाशित पुस्तक” राजकमलक कथा साहित्यमे नारी’ विमोचित भेल। ओत्त गामघर साप्ताहिक विशेष अंक, नेमिकानन’क अंक सभ वांटल व विक्रय लेल उपलव्ध कराओल गेल। बहुतो साहित्यकार रुचिसं नेपालक भाषा, साहित्यक वारेमे जानकारी लेलनि। जानकारीक आदान प्रदान भेल। ज्ञान समृद्ध भेल।
तखन एखन धरि सहभागी भ’ जे किछु अनुभव कएल अछि ओ एकर औचित्यकेँ स्वतः प्रमाणित करैत अछि। ई सम्मेलन निरन्तर जारी रहबाक चाही। वैजू बाबू जुझारु लोक छथि, आयोजनकें सफल बनएबा लेल अहर्निश खटैत छथि। हाथ, पएर, मुंह सभ धरबामे संकोच नहि करैत छथि मां मैथिलीक प्रतिष्ठाक हेतु। एहन विराट हृदयी, समर्पित आ लगनशील व्यक्तित्व भेने मैथिली समादृत भेलीह अछि।
अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनक अनुभूति किछु किछु सुझाव देबाक लेल हमरा उत्प्रेरित करैत अछि। जँ ई भ’ जाइत त सोनमे सुगन्ध भ’ जइतैक – ई हमरा लगैत अछि।
सूझाओ
१. अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन हयबाक कारणेँ एकर वैनर जे बनैक ताहिमे नेपालक किछुओ प्रतीक चिन्ह अवश्य रहैक।
२. कार्यक्रम सभ व्यवस्थित आ पूर्व निर्धारित होएबाक चाही। कार्यक्रम चलैत बेरमे व्यवस्थापन करब अस्तव्यस्तता लबैत अछि।
३. सभ कार्यक्रम, सहभागी वीच एकदिन पूर्वे वितरीत भ’ जाए तँ उत्तम
४. अधिकार दिवस दिन मात्र भाषण नहि, कार्यपत्र प्रस्तुति आ टिप्पणीक कार्यक्रम राखल जाए। नेपालक प्रतिनिधिकेँ कार्यपत्र आ बजबाक अवसर अवश्य देल जाइछ।
५. मूल समारोहमे नेपालक प्रतिनिधित्व मंच पर अवश्य होयबाक चाही। ओ उपस्थिति आ वक्ता दुनू रुपमे होए।
६. आवासक व्यवस्था प्रति सतर्क रहल जाए।
७ स्मारिकाक स्तरीय प्रकाशन हो, जाहिमे विगतक सम्मेलन सभक सन्दर्भमे आलेख आ चित्रवाली अवश्य देल जाए।
८. कलकत्ता सम्मेलनमे एकर निर्वाह भेल अछि, एकरा आगूओ एही रुपमे बढाओल जाए।
९. अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनक सहभागि सभक सूची १५ दिन पूर्व अन्तिम रुप द’ सार्वजनिक क’ देल जाइक आ संगहि ‘मिथिला रत्न’ पौनिहारक जीवनी फूटसँ प्रकाशित क’ औचित्य प्रमाणित कएल जाए।
नेपालक साहित्यकार, मैथिली प्रेमी सभकेँ अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनसँ बहुत किछु आशा छैक। दुनू देशमे मैथिली अपन अस्तित्व लेल लडि रहल अछि। एहनमे ई भेँटघांट, अप्पन–अपनौती, दुख–दुखक वंटवारा आपसी सम्वन्धकेँ सुदृढ त करबे करैत अछि, लक्ष्य प्राप्तिक हेतु मोनकेँ मजवूत सेहो बनबैत अछि।
अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनक महासचिव डा. वैद्यनाथ चौधरी बैजू एहि सम्वन्धक सूत्रकेँ गसिआ क’ पकडने छथि। हुनक इएह स्नेह, सद्भाव आ अपनैती नेपालीय राजनीतिक इतिहासमे मिथिलाराज्य’क स्थापनार्थ शक्ति आ वातावरण निर्माणमे सहायक भ’ रहल अछि। हुनक जुझारु व्यक्तित्व एत्त प्रेरणाक स्रोत रहलए। हमसभ एहि सम्वन्धक निरन्तरताक अपेक्षा करैत छी। आ नेपाल–भारत बिचक आपसी आ प्रेमक प्रतीक रुपमे चलैत आबि रहल एहि सम्मेलनक सफलताक कामना करैत छी।
फ्लैश बैक-रामभरोस कपडि भ्रमर
नरेश पाछाँ चलि गेल अछि, बहुत पाछां। प्रायः पचास वर्ष पाछां। गामक सहपाठी सभक संगे खेलए ओ। बहादुर नोकर रहैक – वावूजी जंगलकातसँ लओने छलाह। एक बोलिआ, आदेश चाही, काम फत्तह कइएक दम लैत छल। से बाबूजीकें आदेश रहैक – गुरुजीलग पढ ल जएबाक छै से बहादुर लाख चिचिऔलो पर नरेशकेँ कान्हपर बोकि कन्हाइ साहुक दलान पर गुरुजी लग दइए अबैक। ओत्त गेला पर गुरुजीक कांच करची अथवा खजूरक छडी ओकर सभ जीद हेरा दैक। ओ चुपचाप हाथमहक पाटीपर कारिख पोति कचरासँ साफ क चमकाब लागए आ तखन भठासँ लिखबाक प्रयास करए – क ख ग घ...।
“इस्स....” गुरुजीक छडी जखन बाँहि पर पडैक तँ ओ लोहछि जाए। मन होइ भागि जाइ मुदा... वहादुरक डीलडौल आ पिताक आदेश मन पडितो मनमारि क पाटी पर आँखि गडा कखरा लिखबाक प्रयास कर लगए।
गुरुजीक ओहिठाम बटखरा कंठस्थ रहैक। ई कंठस्थ करब ओकर मजवूरी रहैक, ओना हिसावमे ओ ओहुना कमजोरी महशूस करए। चौठचन्दमे गुरुजीक संग घंटी बजबैत, काठक डंटाकेँ बजबैत घरे–घरे घुमनाई आ गुरुजीक डेरापर जा गुडचाउरक प्रसाद खएनाईक अपन आनन्द रहैक।
आनन्द तँ पानि नहि पडने हर हर महादेव बना गाम घुमबै काल सेहो अबैक। कोनो सहपाठीकेँ सौंसे देहमे छाउर रगडि देल जाइत छलैक। माथपर आ बांहिमे सेहो अशोक पात सभ लपेटि देल जाइत छलैक। माथ पर जूट आ सनसँ जटा ताहिपर टीनकेँ कैंचीसँ काटि चान लटका देल जाइक। हाथमे वावाजीके त्रिशूल आनि क ध देल जाइक। वस–वनि जाइक महादेब। छौडा सभक हेंज पाछां–पाछां हाक परैत जाइक – हर, हर महादेव पानी देऊ अलिकती पुगेन, बढी देउ ! भाव रहैक महादेव पानी दीअ, कम सँ नहि भेल, बेसी दीअ....। जकरा दरबज्जा पर जाइक पानि उझलि दैक। मान्यता रहैक पानि देलापर वर्षाक संभावना बढि जाइत छैक। वेचारे महादेव बनल बौआ बादमे थर–थर कांपए, वच्चा सभ ताली पिटैत हंसैक। वाल सुलभ प्रताडना ओहि समयमे खूब प्रचलित रहैक। नरेश ओहि हेंजमे अगुवा रहय....।
नरेशक ठोढ पर अपने आप मुस्की दौडि जाइत छैक। वितलाहा क्षणक स्मरण कतौसँ गुदगुदा दैत छैक ओकरा। वालशोषणक विरुद्ध ओहो कतेक आलेख लिखि चुकल अछि, कतेको सेमिनार मे भाग ल भाषण छोंटि चुकल अछि। मुदा नेनामे नेनेद्वारा कएल ई अपराध शोषण नहि रहैक ! नरेश वाल सुलभताक ओ क्षण फेरसँ स्मरण करैत सिहरि उठैत अछि आ कतौ भोतिआ जाइछ पुन.......।
मुश्किलसँ ७–८ वर्षक छल हयत। गामेक स्कूलमे पढए, मुदा संगति रहैक अपने टोल महल्लाक धीआपूतासँ। ताही मंडलीमे एकटा छौरी रहैक इजोतिया। ओकरे लगुआक वेटी। नीक रहैक कि अधलाह ओकरा तहिया ज्ञान नहि रहैक मुदा ओकरा संगे इजोरिया रातिमे अन्हरिया–इजोरिया खेलैत ओ खूब प्रशन्न रहल करए। आंगनेमे दुनूपयर आगाँ पसारि वैसि , वाँहिके केहुनी लगसँ मोडि आगाँ पाछाँ करैत आ ताही लयमे दुनू पयरके सेहो आगाँ पाछाँ करैत पाछा मुँहे घुसकैत इजोतिया खेलल करए आ गाओल करए–“आगेमाई ककरी के बतिआ...” त ओकरा नीक लगैक।
इजोरिया रातिमे चानक चारुकात बनल गोल घेराकेँ कौतुहल सँ देखैत काल माय रहस्यमय बोलीमे
समझबैक – ई हमरा सभक पुरखा सभक वैसार छै इन्दर भगवान लग। कहै है निचाँ पानि विना अकाल पडल छै, पानि दिऔ। आब पानि हयबे करत....। नेनामे ई बात सत्य लगैक आ आश बन्हाई जरुर वर्षा हयत।
तेहने समयमे जट–जटिन गीत होइक। टोलक महिला सभ जटा आ जटिन कनए आ गीत गाबि–गाबि झूमए। ओहिमे पुरुष नहि, नेनाकेँ छुट रहैक। नरेश नियमित ओकर दर्शक रहए, ओकर संगी इजोतिया ओहि मंडली मे सामिक रहैक, ओ एकटक ओकरा सभकेँ झूकि क आगाँ बढैत आ तहिना माथ उठा क पाछाँ अबैत देखैत रहय.....।
नरेशकेँ फेर किछु मोन पडैछै, ठोढ पर हँसी अबैत–अबैत रुकि जाइछै। भतखोखरि बुढिआक अंगनामे वेंग कुटि मैलाक संग पतली फेकि देल जाइ छल आ ओ वुढिआ भरि राति फेकनिहारिकेँ पुरा खनदानकेँ उराहि दैत छलैक। वेटी–रोटी करैत रहैत छली। वास्तवमे वेंट कुटि क तए ओकरे आंगनमे फेकल जाइत छलै जे ओ बेसी गाडि पढि सकैत छलीह। राति भरि जुआन छौडी सभक धुमगज्जरिक संग वालसुलभ उत्सुकतासं पाछां – पाछां दौगब महज खुशी दैत छलै। लगै दिनमे बहादुरक घीसिआ क गुरुजी के चटिसारमे ल जएबाक डरसँ मुक्त रातुक ई माहौल स्वच्छन्द छैक। ने वावूजीक डर, ने वहादुरके उठा ल जएबाक चिन्ता। वात वुझौक कि नहि, नरेश रमल रहैत छल ओहि खेलमे।
ओकरा तँ तखनो ने किछु बुझायल रहै जखन इजोतिया ओकर घरक पछुआर बला गाछी आ भुसा घरलग एकटा प्रस्ताव कएने रहैक – नरेश,खेलबे अर्थ त ओकरा ओतेक नै वुझल भेलै मुदा ओकर इशारासँ आशय वुझने रहय आ डेरा गेल रहैक – नहि, हम नहि खेलबौ। ठाढे ओ नासकार चलि गेल रहय। जँ कि इजोतिया ओकरा उमेर सँ बेसीक वुझाइक, ओ वातकेँ वुझैक, मुदा नरेश....।
पता नहि नरेशकेँ किए आइ पुरना बात मोन पड लागल छै। ओ भोरेसं अपन पोताक उदण्डपनीसं फिरिशान भेल अछि। एक तं भोरमे देरीसं उठत, उठि कत्त पडायत ठेकान नहि। स्कूल जएबाक कोनो जरुरी जेना नहि होइक। कुण्डलिया छौडा सभक संगत आ पता नहि गुटका, भांग, सिगरेट किंवा आनो कोनो नशा खाइत हो ,त मनमे आशंका उठल छै। खौंझायल मोने वरण्डाक खुरसीपर बैसि गेल। तखने ओकरा वुझएलै – एक ई दिन अछि आ एक ओ दिन रहय।फेर भसिया गेल रहय। एखनो मोन थीर कहाँ भेलैए...।
माय जखन ओकरा दुनू मोडलहबा टांगपर लादि दुनू हाथ पकडि घुघुमना खेलबै तँ हिल्ला झुलबाक मजा ओ लेल करए। गीतकलय संगे झुलैत नरेशक वालपन महज देहमे गुदगुदी आ आनन्द मात्र उठा सकैत रहय वुझए किछु नहि।
मुदा जखन ओ टेल्हगर भेल त मायक नक्कल करबाक मोन होइक। अपन भातिजकेँ ओहिना टाँगपर ध झुलब लागय आ पढ लागय–घुघुमना घुघुमना, बौआकेँ गढा देब दुनू कान सोना। ओकरो झुलबैत आनन्द लगैक आ बौआ सेहो हँसि, हँसि क अपन आनन्दक अनुभूति करबैत छल। ओना ओकर छोट–छोट पयर–हाथ बौआके बेसी काल सम्भारबाक अवस्थामे नहि रहैक, ओ उतारि दैक तुरते।
अपन नेनपनक उछल–कुदक दूटा घटना मन पडिते सौंसे देह सीहरि जाइत छैक। बड मुश्किलसँ बचल रहैक आँखि ओकर..। आँगन मे दुनू भाइ खेलैत रहय। भैया तीर धनुष बना चलौल करए। एक बेर भेलै ई जे तीर सोझे नरेशकेँ आखिएमे लगलै–वाम आंखिमे। सौंसे हाहाकार मचि गेलै, माय त बताह भ गेल छलीह। ओकरा कनैत–कनैत बेहाल रहैक। गामेक टोटकासँ आँखि ठीक भेल रहैक। पता नहि माय कोन–कोन दैब पीतरकेँ एहि लेल मानि देने छलीह। तहिना एकबेर गछुलीमे आम लुटए बेरमे अन्धाधुन्ध दौगल रहय नरेश, त गाछीमे गाडल एकटा खुट्टाक नोक सोझे कपारमे गरि गेल रहैक। माथ सुन्न भ गेल रहैक। मायके जखन पता लगलै त ओ हकासल–पिआसल दौगलि रहय घराडी पर आ ओकरा समेटि क गामक बैद्य लग लए जाएकेँ उपचार करौने रहैक।
वाल सुलभ जीवन शैली, गार्मसँ जनकपुर धरिक यात्रा, पढाइ आ डिग्री सभक अपन–अपन कथा रहैक। धन–खेती जे होइक, शिक्षामे पछुआएल परिवारक प्रत्येक ओ संघर्ष ओकरा भोग पडलै जे एकटा सभ्य समाजक अंग बनबा ले जरुरी होइत छैक। आइ जखन उमेरक चारिम प्रहरमे जएबा ले तैयार अछि ओकरा लगैछै ओ फेरसं बचपन दिश लौट चाहैए। दिन रातिक षडयन्त्र, राजनीतिक विद्रुपतता, चन्दा, अपहरण, हत्या किंवा दिन दिन बढैत असुरक्षाक भय आ आतंकसँ त्रसित समाजमे तनावक जिनगी जीबाक अर्थेकी?
मुदा फेरसँ ओ स्वयं प्रश्न करैत अछि की ओ नेनपनक स्वच्छन्द, सहज स्नेहसं भरल किछु साल घूरि सकत ! चलु ओ वितलहा वर्ष नहि घूरत ई सत्य थिक, अपने तँ ओहि युगमे जा सकैछी ने ! हँ, ई संभव छैक। भ सकैछ एना भेने तनावमे कमि अबैक, मुंहपर चापलुसीक वोल झाडैत, परोक्षमे चरित्र हत्याले उताहुल सरसमाजक व्यक्तित्वक दोगला मुँह देखबाक दुर्भाग्यसँ बंचि तँ सकै छी। हमहीं किएने अपनाकेँ नेना बनाली !
नरेशकेँ अपने सोचपर हँसी लगै छी। की ई संभव छैक। ओहुना साठिक बाद लोक नेनपनमे पुनः प्रवेश क जाइए कहाँदन। ओकरो अवस्था तँ आबिए रहल छैक। चलल जाए एक बेर सएह सही....।
नरेशकेँ जेना सौंसे देह हल्लुक लगैत छैक। वरण्डासं उठैत अछि। आंगन मे अबैत अछि। पोता आबि गेल छै। ओकरा डँटबाक इच्छा रहितो ओ चुप रहैत अछि। प्रारंभ एत्तहिसँ हुअए तँ हर्जे की?
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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