भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Friday, May 08, 2009

कमलानन्द झा

कमलानन्द झा,

हिन्दी विभाग, सी.एम. कॉलेज,दरभंगा


मैथिली समस्याक टोह लैत कथा-संकलन : उदाहरण

पछिला चारि बर्खमे कोनो पैघ आ महत्वपूर्ण प्रकाशनसँ मैथिलीक तीन गोट कथा-संकलनक प्रकाशन मैथिली भाषा लेल एकटा शुभ-संकेत मानल जा सकै'छ। नेशनल बुक ट्रस्टसँ प्रकाशित शिवशंकर श्रीनिवास द्वारा सम्पादित मैथिली कथा संचयन(सन्‌ २००५) आ सन्‌ २००७मे तारानन्द वियोगी द्वारा सम्पादित देसिल बयना(सन्‌ २००७) पाठकक बीच लोकप्रिय भ'ए रहल छल कि प्रकाशन विभागसँ देवशंकर नवीन द्वारा सम्पादित टटका मैथिली कथा-संग्रह उदाहरण छपि क' आबि गेल। प्रसन्नताक बात थिक जे उदाहरणक प्रकाशनसँ प्रकाशन विभागमे साहित्यिक रचनाक प्रकाशनक बाट फूजल, जे स्वागत योग्य अछि।

उदाहरणमे ललितसँ सियाराम सरस धरिकक कुल छत्तीस गोट कथा संकलित अछि। एहि संकलनसँ मैथिली कथा-संसारक परिदृश्य स्पष्ट होइत अछि। संकलनक कतोक कथा समस्त भारतीय भाषासँ कान्ही मिलान लेल तत्पर अछि, जे संकलनकर्त्ताक चयनकौशलक सूचक थिक। श्रेष्ठ कथाकार राजकमल चौधरीक कथा ÷एकटा चम्पाकली एकटा विषधर' घाघ मैथिल समाजक टोप-टहंकारकें अद्भुत रूपें अनावृत्त करैत अछि। सवर्ण मैथिलक गरीबी, ओहि गरीबीसँ उत्पन्न दयनीयता, आ तकर खोलमे दुबकल बेटीक शातिर माइ-बापक घिनौन आचरण घनघोर तनावक संग पाठककें झकझोरैत अछि। दशरथ झा आ हुनकर घरबाली अपन तेरह बर्खक बेटी चम्पाक विवाह बासैठ बर्खक वृद्ध शशि बाबू संग करेबाक षड्यंत्रापूर्ण योजना बनबैत अछि। दुनू प्राणीक गिद्ध दृष्टि शशि बाबूक सम्पति पर टिकल छनि, जकर मलिकाइन विवाहोपरान्त हुनक तेरह वर्षीया चम्पा बनैबाली छनि। अतिशयोक्ति सन लगैबला एहि घटनाक मर्मकें ओएह बूझि सकत जे मिथिलांचलक बहुविवाह प्रथासँ नीक जकाँ परिचित छथि। बीसम-एकैसम विवाहक बाद पति अपन पूर्व पत्नी सभक मुँहो बिसरि जाइ छलाह।

पत्राकारिता दुनियाक महत्वपूर्ण आ सम्वेदनशील पक्षसँ मायानन्द मिश्रक कथा ÷भए प्रकट कृपाला' साक्षात्कार करबैत अछि। मीडिया-तन्त्र पर बनल सार्थक हिन्दी सिनेमा ÷पेज थ्री' जे किओ देखने छथि, से एहि कथाक मर्मकेँ बेसी नीक जकाँ बुझि सकै छथि। शीघ्रतासँ नामी पत्राकार बनि जाएबाक हड़बड़ीके कथामे कलात्मक ढंगसँ उकेरल गेल अछि। कॉरपोरेट दुनियाँक बादशाह श्याम बोगलाक मृत्युक खबरि सबसँ पहिने देबाक होड़ लागल अछि। पत्रकार लोकनिक नजरिमे ओएह सभसँ पैघ खबर अछि, दुनियामे किछु भ' जाउ।

लिलीरे मैथिलीक सशक्त कथालेखिक। छथि। हुनकर कथा ÷विधिक विधान'मे कामकाजी स्त्रीक संघर्षकें यथार्थतः देखबाक, आ यथार्थक मर्मकें कलात्मक कौंध संग उभारबाक सफल चेष्टा अछि। उषाकिरण खान अपन कथा ÷त्यागपत्रा'मे ग्रामीण युवतीक अदम्य जिजीविषाकेँ व्यक्त करबामे पूर्ण सफल नहि भ' सकलीह। घोर आदर्शवादी आ कठोर अनुशासित परिवारमे पालित-पोषित चम्पा कॉलेजमे पढ़' चाहैत अछि, अपन मर्जीसँ विवाह कर' चाहैत अछि। मुदा आजीवन विवाह नहि करबाक घोषणा करैत चम्पा स्वयंकेँ ओही परंपराक केंचुलमे समेटि लैत अछि। चम्पा विवाहक लक्ष्मण रेखा पार करैत ÷और भी ग़म हैं' कें आधार मानि अपन व्यक्तित्वकेँ विस्तृत आयाम नहि द' पबैत अछि। मनमोहन झाक कया फायदा÷फयदा'मे स्त्री जातिक मोलभाव बला प्रवृत्तिक रेखांकन खूब जमल अछि, मुदा वो एहि प्रवृत्तिक वर्णन क' स्त्री जाति कोन पक्षक उद्घाटन करै छथि, से बूझब कठिन। कोनो व्यक्तिक स्वभावमे नीक आ खराब दूनू भाव रहैत अछि। कथाक हेतु कोन तरहक भावक चुनाव कयल जाए, ई महत्वपूर्ण अछि। इएह चुनाव मैथिली कथामे स्त्री चेतनाक दर्शन करा सकैत अछि।

स्त्री चेतनाक दृष्टिएँ प्रदीप बिहारीक कथा ÷मकड़ी' अपेक्षाकृत मेच्योर्ड आ बोल्ड कथा कहल जा सकैछ। बेराबेरी कथानायिका सुनीता दू बेर विवाह करैत अछि, दुनू बेर ओकर पति मरि जाइछ, मुदा ओ जिनगीसँ हारि नहि मानैत अछि। सिलाई मशीन चला क' ओ गुजर-बसर करैत अछि। एतबे नहि, ओ एकटा अनाथ आ बौक बच्चाक लालन-पालनक दायित्व ल' ' अपन व्यक्तित्वकेँ विस्तार दैत अछि। कथामे मोड़ तखन अबैत अछि जखन ओ बौका समर्थ भेला पर सुनीताक स्वीकृतियेसँ सही, ओकरा गर्भाधान क' ' भागि जाइत अछि। सुनीताकें एहि बातक अपराधबोध नहि छै, जे ओ बौका संग किऐ ई कृत्य

केलक, ओ देहक विवशतासँ परिचित अछि, मुदा बौकाक भागि जेबाक दंश ओकरा व्यथित करै छै। देवशंकर नवीनक कथा ÷पेंपी' पति-पत्नीक सम्बन्ध विच्छेदक परिणामस्वरूप बेटीक मनोमस्तिष्क आ व्यक्तित्व पर पड़ैबला कुप्रभाव आ बेहिसाब उपेक्षाभावकेँ करुणापूर्ण ढंगसँ व्यक्त करैत अछि। मुदा एहिमे सभटा दोष स्त्री पर फेकि देब पूर्वाग्रह मानल जा सकैछ। ई सामाजिक सत्य नहि भ' सकैत अछि। वरिष्ठ कथाकार राजमोहन झा अत्यंत कुशलतापूर्वक ÷भोजन' कथाक बहन्ने स्त्रीक बाहर काज करबाक विरोध क' जाइत छथि। राजमोहनजीक दक्षता इएह छन्हि जे ई सभ बात कहिओ क' ओ प्रगतिशील बनल रहै छथि।

राजकमल चौधरीक ÷एकटा चम्पाकली एकटा विषधर', धूमकेतुक ÷भरदुतिया', गंगेश गुंजनक ÷अपन समांग'(ई कथा देसिल बयनामे सेहो संकलित अछि), तारानन्द वियोगीक ÷पन्द्रह अगस्त सन्तानबे' आ अशोकक ÷तानपूरा' एहि संग्रहक श्रेष्ठ कथा मानल जा सकैछ। धूमकेतुक कथा ÷भरदुतिया' व्यक्ति स्वार्थ हेतु भाई-बहिनक पावन पाबनिकँ दुरुपयोग करबैत देखबैत अछि। आजुक मनुख अहू पाबनिकें नहि छोड़लक। ÷पन्द्रह अगस्त सन्तानबे' वियोगीक सफल राजनीतिक कथा कहल जा सकैछ। कथाक ई निष्पति एकदम ठीक लगैत अछि जे सवर्णक पार्टी एहि दुआरे जीतैत रहल जे निम्नजातिक आर्थिक स्थिति बहुत खराब छल। स्वामीक पार्टी दासोक पार्टी होइछ। दोसर पार्टीक मादे सोचब मृत्युकें आमन्त्रण देब छल। आओर नहि किछु तँ' आवास आ रोजगार छीनि बेलल्ला बना देब उच्चवर्गक हेतु बाम हाथक काज छल। दिल्ली-पंजाब प्रवाससँ निम्नवर्गक आर्थिक, सामाजिक स्थितिमे सुधार भेल। परिणामस्वरूप ओहि वर्गमे आत्मसम्मान आ राजनीतिक चेतनाक अंकुरण भेल। भक्तिकाव्यक उन्मेष आ ओहिमे निम्नजातिक कविक बाहूल्यक पृष्ठभूमिमे सुप्रसिद्ध इतिहाकार इरफमान हबीब मुगलकालीन विकास कार्यकेँ लक्षित केलनि अछि। ÷पन्द्रह अगस्त सन्तानबे' कथाक विलक्षणता बिहारमे बनल निम्नजातिक पार्टीक आत्मालोचन थिक। कहबा लेल त' ई पार्टी निम्नजातिक-निम्नवर्गक छल, मुदा अइ पार्टीमे छल, प्रपंच, भ्रष्टाचार, अपराध आओर पाखण्ड पहिनहुँसँ तेजगर और धारदार भ' गेल छल। कथाकारक इएह द्वन्द्व कथाकें गरिमा प्रदान करैछ। चाहक दोकान चलबैबला मुदा बहुत प्रारम्भहिसँ सक्रिय मूल्यपरक राजनीति करैबला हीरा महतोक धैर्य जखन संग छोड़ि दै छनि त' ओ पार्टी प्रमुख बासुदेव महतो पर बिफरैत कहै छथि-- रे निर्लज्जा, एतबो सरम कर! जे कुकर्म करै छैं से अपन करैत रह, लेकिन एना समाजमे नहि कहिहें जे कुकर्मे करब ठीक छिऐ। एतबो रहम कर बहिं...।''

अशोकक कथा ÷तानपूरा' मध्यवर्गीय हिप्पोक्रेसीक घटाटोपकेँ तार-तार क' देबामे पूर्ण सफल भेल अछि। बिना कोनो उपदेश आ नैतिक आग्रहक कथा मध्यवर्गीय कुत्सित मानसिकताक दुर्ग भेदन करैत अछि। कथानायक विनोद बाबूक संगीत-प्रेमकेँ हुनक पिता घोर अभाव आ द्ररिद्रयक बीच जेना-तेना पूरा करैत छथि, मुदा जखन विनोद बाबूक पुत्रा संगीत सिखबाक इच्छा प्रकट करै छनि त' दुनू प्राणीकें साँप सूँघि जाइत छनि। एहि दुआरे नहि, जे हुनका कोनो तरहक अभाव छनि। बल्कि एहि दुआरे जे संगीतक स'ख हुनक बेटाकेँ रुपैया कमबैबला मशीन नहि बना सकत। जे दम्पति कोनो विषय पर कहियो एकमत नहि भेल, एहि विषय पर एकमत भ' पुत्राक एहि अव्यावहारिक स''क कठ मोंकबाक साजिशपूर्ण योजना बनबए लगै छथि।

संग्रहक किछु कथा जेना अवकाश, अयना, खान साहेब, जंगलक हरीन आदि यथार्थक मोहमे शुष्क गद्य बनि क' रहि गेल अछि। एहिमे किछु कथा ततेक सरलीकृत भ' गेल अछि जे ओ नवसाक्षर हेतु लिखल कथा बुझि पडैछ। एहन कथा सभक मूल संरचना इतिवृत्तात्मक अछि। यद्यपि इतिवृत्त कोनो कथाक सीमा नहि होइछ, मुदा जखन कोनो कथा घटनाक स्थूल आ तथ्यात्मक विवरण टा दैछ, कथामे समय वा क्षणक मर्म नहि आबि पबैछ, ' एहन इतिवृत्त निपट गद्य बनि क' रहि जाइछ। यथार्थ कोनो कथाकें विश्वसनीयता देबाक बदलामे ओकरा भीतरसँ संवेदना निचोड़ि अनैत अछि, कथाकें प्रमाणिक बनेबाक फेरमेँ पड़ल नहि रहैत अछि। कथाकार रमेश अपन कथा ÷नागदेसमे अयनाक व्यवसाय'मे अतियथार्थ आ इतिवृत्तक फ्रेमकें तोड़ि प्रतीक वा फैंटेसीक प्रयोगसँ कथा बुनबाक प्रयास त' केलनि, मुदा कथाक विन्यासमे एकरसता आबि गेल। एहि फ्रेम हेतु हमरा लोकनिकेँ राजस्थानी कथाकार विजयदान देथा(दुविधा) आ हिन्दी कथाकार उदय प्रकाश (वारेन हेस्टिंग्स का सांढ़) आदिकेँ पढ़बाक चाही। हिनका लोकनिक कथा यथार्थक फ्रेमकेँ तोड़ियो क' यथार्थ बनल रहल अछि।

मैथिलीमे प्रकाशित उक्त तीनूँ कथा संकलनसँ मैथिली कथाक प्रसार राष्ट्रीय स्तर पर भ' रहल अछि, एहिमे दू मत नहि। मुदा उक्त संकलनकेँ पढ़ि

आम पाठकक राय इएह बनत जे मैथिलीमे कुल इएह तीस-चालीस गोट कथाकार आइ तक भेलाहे। कारण तीनूँ संग्रहमे कथाकारक सूचीमे अद्भुत साम्य अछि। कथा पढ़ि बुझना जाइछ जे कथा चयनमे कथाक अपेक्षा कथाकारकेँ महत्व देल गेल अदि। ई कहब सर्वथा अनुचित जे संकलनक कथाकार महत्वपूर्ण नहि छथि, मुदा अन्य श्रेष्ठ कथाकेँ सेहो प्रकाशमे अएबाक प्रयास हेबाक चाही। हमरा लोकनि ई नीक जकाँ जनै छी जे मैथिलीमे श्रेष्ठ कथाक अभाव नहि अछि। किन्तु प्रकाशनक अभावमे पत्र-पत्रिकाकें छानि मारब कठिनाहे नहि समय-साध्य कार्य थिक। वैद्यनाथ मिश्र यात्रीक पहिचान भने श्रेष्ठ कविक रूपमे छनि, मुदा हुनकर मैथिली कथा ÷चितकबड़ी इजोरिया' ÷रूपांतर' कतोक दृष्टिएं महत्वपूर्ण अछि। रेणुजी सेहो मैथिली कथा लिखलनि अछि। ई दीगर बात थिक जे बादमे ओ हिन्दिए टामे लिखए लगलाह। ÷नेपथ्य अभिनेता' ÷जहां पमन को गमन नहीं' आदि लीकसँ हटि क' लिखल गेल कथा थिक। ÷उदाहरण'मे कथाक प्रकाशन वर्ष आ सन्दर्भक अनुपस्थिति खटकैत अछि। समय-सीमा जनने बिना कोनो कथाक सम्यक मूल्यांकन सम्भव नहि। नवीनजी सदृश दक्ष आ अनुभवी सम्पादकसँ ई आशा नहि कएल जा सकै छल। एहि कमीकेँ पूरा करैत अछि हुनकर चौदह पृष्ठीय भूमिका। सम्पादक मैथिली कथाक सीमा आ सम्भावनाक विस्तृत पड़ताल अपन एहि भूमिकामे केलनि अछि। मैथिली कथाक इतिहासकें बुझबा लेल ई भूमिका निश्चित रूपें रेखांकन योग्य अछि।

उदाहरण

पुस्तकक नाम - उदाहरण

सम्पादक - देवशंकर नवीन

प्रकाशक - प्रकाशन विभाग

सूचना और प्रसारण मन्त्राालय

भारत सरकार

पृष्ठ - २७४

मूल्य - २०० टाका मात्रा

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।