जितमोहन झा घरक नाम "जितू"
जन्मतिथि ०२/०३/१९८५ भेल, श्री बैद्यनाथ झा आ श्रीमति शांति देवीक सभ सँ छोट (द्वितीय) सुपूत्र। स्व.रामेश्वर झा पितामह आ स्व.शोभाकांत झा मातृमह। गाम-बनगाँव, सहरसा जिला। एखन मुम्बईमे एक लिमिटेड कंपनी मे पद्स्थापित। रुचि : अध्ययन आ लेखन खास कs मैथिली ।—सम्पादक
कन्या भूण हत्या प्रकतिक
संग खिलवार
पिछला छुट्टीमे एक सालपर हम गाम गेल छलहुँ। जहिया गाम पहुँचलहुँ ओकर दोसरे दिन पता चलल की हमर बचपनक दोस्तक बहुत जोर मोन ख़राब छनि! आर ओ अस्पतालमे भरती छथि! खबर जहिना हम सुनलहुँ अस्पतालक लेल चलि देलहुँ! हमरा संग हमर पत्नी सेहो चलि देलीह, अस्पताल पहुंचला पर पता चलल जे कुनू चिंताक बात नै सब ठीक ठाक अछि! एक घंटाक बाद हुनका (हमर दोस्तकेँ) छुट्टी मिल जेतनि, बहुत दिनक बाद अस्पताल आयल छलहुँ, इच्छा भेल कनी चारू दिस घुमि - फिरि ली। मनमे अस्पतालक लेल बहुत जिज्ञासा छलए! हम आर हमर पत्नी जहिना दोस्तक वार्डसँ बाहर निकललहुँ, हमर नज़रि अपन चचेरा भैया - भाभी पर पड़ल, अचानक हुनका सभकेँ अस्पतालमे देखिकेँ हम चौक गेलहुँ! हमर नज़र एकाएक भाभीक उदास, कनमुँह चेहरा पर परल .....पुछलियनि की बात ... मुदा ओ किछु जबाब नञि देलीह। हमर पत्नी कातमे बजा कए हुनकर पीड़ा सुनलन्हि! दुबारा पुछलासँ भाभी अपन पीड़ा नञि रोकि सकलीह, हुनकर पीड़ा हुनकर आँखिसँ छलकि उठलनि, पता चलल जे दू गोट कन्याक जन्मक बाद आब तेसर बेर फेरसँ कन्याकेँ नञि बर्दाश्त करैक चेतावनी भैया हुनका पहिने दए चुकलखिन-ए ....पता चलल गर्भ परीक्षण लेल भैया भाभीकेँ अस्पताल अनने छथि! गर्भमे पोसा रहल बच्चाक प्रति पिताक खौफनाक इरादासँ उपजल भयक भाव भाभीक चेहरा पर साफ - साफ देख्अलहुँ! बादमे हमरा आर हमर पत्नी केँ कतेक बुझेलापर भैया भाभीकेँ वापस घर लए गेलखिन! संयोगवश अगला संतानक रूपमे हुनका बालकक प्राप्ति भेलनि ....
ओना भ्रूण परीक्षण प्रतिबंधित अछि आर सरकार एकरा लेल बाकायदा कानूनो बनेने छथि! मुदा ई की ? लागैत अछि पछिला दरवाजाक संस्कृति अस्पतालों के नञि छोड़ने अछि, तखने तँ भैया बहुत आसानीसँ भाभीकेँ गर्भ परीक्षण करबाबए लेल चलि देने छलथि। हम तँ कहए छी चाहे सरकार लाखो कानून बनबथि, लाखो कड़ासँ कड़ा सजा तय करथि लेकिन जा तक हम सब स्वयं अपना तरफसँ कोनो कदम नञि उठायब ई कानूनक हेब नाहे हाएबाक समान अछि! आइ तक भ्रष्ट्राचार, बालश्रम, शोषणक विरुधो सरकार बहुत कानून लागू केलथि मुदा कि समाजमे एकर रोकथाम भs सकल ? नञि! आर यदि अपने ई नञि हेबाक कारणक पता करब तँ पायब कि शायद हम खुद कतहु ने कतहु कोनो ने बगंनो प्रकारे एकर दोषी छी! हम सब परिस्थितिक संग कोनो तरहक समझौता करबाक वजाय ओकरा सदिखन बदलबाके फेरमे नहि रहैत छलहुँ चाहे ओकरा लेल हमरा सभ के कोनो तरहक हथकंडा कियेक नञि अपनाबए परए .... हम सब चुकय नञि छी! हम तँ पूछैत छी जे की कारण अछि जे लड़कीक जन्म भेला पर आइयो मूह सिकोरल जाइत अछि ? शायद हुनकर परवरिश, शिक्षा, विवाह आदिमे आबै वाला तमाम मुश्किलक कारण एहि तरहक व्यवहार कएल जाइत अछि! मुदा कि लड़काक जन्म भेनेसँ ई तमाम समस्या समाप्त भs जाइत अछि ? लड़कोकेँ तँ परवरिश करैये पड़ैत अछि।? हुनकरो शिक्षा,नौकरीक लेल दर-दर भटकए पड़ैत अछि! आर विवाह ........!
यदि एहि गतिसँ कन्या भ्रूण हत्या होइत रहत तँ बूझि लिअ जे सब लड़काकेँ कुंआरे रहए पड़त! उदाहरण स्वरूप अपने हरियाणामे लड़कीक संख्यामे लगातार दर्ज कएल गेल कमी देख सकैत छी, हरियाणामे विवाह लेल लड़की नञि भेटैन छनि। ओहि ठामक लोकिनकेँ दोसर राज्यमे लड़कीक तलाश करए पड़ैत छनि .....
कनी सोचू अगर पूरा देशमे ईएह स्थिति भs जाएत तँ की होएत ?
हम नीक जेकाँ जनैत छी जे अपने एहि बातकेँ ध्यानमे नञि राखब आर यदि राखबो करब तँ दोसर केँ उदाहरण देबाक लेल! लेकिन कि अपने स्वयं कन्या भ्रूण हत्या रोकएमे दोसरकेँ जागरूक करब ? अपनेकेँ नञि लागैत अछि जे प्रकृति द्वारा निर्धारित जीवनकेँ सुचारू रूपसँ चलबै लेल एहि गाड़ीक दुनु पहियाक समान रूपसँ आवश्यक अछि! आर कन्या भ्रूण हत्या यानी कि प्रकृतिक संग खिलवाड़ अछि! एहि खिलवाड़केँ रोकए लेल हमरा सभकेँ एकजुट होबए पहत आर एतबे नञि एहि मानसिकतोकेँ बदलए पड़त कि वंशबेल खाली आर खाली लड़के चलेता, तखने हम सही खपमे आधुनिक कहाएब ....
भक्तिगीत
मात पिता गुरु प्रभु चरणमे प्रणवत बारम्बार
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार,
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार।
माताजी जे कष्ट उठेलखिन्ह ओऽ ऋण कहियो नञि चुकलऒ,
आंगुर पकड़ि कs चलब सिखेल्खिन्ह ममताक देलखिन शीतल छाया,
जिनकर कोरामे पलिकए हम कहेलहुँ होशिया॥
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार,
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार।
पिताजी हमरा योग्य बनेलथि कमा-कमा कऽ अन्न खुएलथि,
पढा लिखा गुणवान बनेलथि, जीवन पथ पर चलब सिखेलथि,
जोड़ि-जोड़ि अपन सम्पति केँ बनाऽ देलथि हक़दार।
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार,
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार।
सत्य ज्ञान गुरूजी बतेलथि, अंधकार सभ दूर हटेलथि,
ह्रदयमे भक्तिक दीप जरेलथि,हरी दर्शनक मार्ग बतेलथि,
बिना स्वार्थ्क कृपा केला ओऽ कतेक पैघ उदार।
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार,
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार।
प्रभु कृपासँ नर तन पेलहुँ संत मिलनक साज सजेलहुँ,
बल बुद्धि आर विद्या दऽ कs सभ जीवमे श्रेष्ठ बनेलहुँ,
जे कियो हिनकर शरणमे एलिखन,भेलन्हि हुनकर उद्धार।
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार,
हमरा पर कएलहुँ बड़ उपकार।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।