भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Tuesday, June 09, 2009

समीक्षा श्रृंखला 8 - गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पर डॉ. उदय नारायण सिंह नचिकेता

गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डमे विभाजित कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एकहि संग कठिनसँ कठिन विषयपर सुचिन्तित विश्लेषण भेटत आ उपन्यासक जटिल कथा केर गुत्थी सेहो भेटत सुलझाएल आ संगहि प्रेमक कविता आ प्रकृतिक गीत सेहो। सात खण्ड एहि प्रकार छन्हि-

खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना
खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि)
खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर)
खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ)
खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण)
खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन )
खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत

सभसँ महत्वपूर्ण बात ई जे सभ विषयक पाठकक आ पाठिकाक लेल एतए किछु ने किछु भेटबे करत । पुछलियन्हि जे एहन संरचना किएक तँ जे किछु कहलन्हि ताहिसँ लागल जे ई हिन्दी केर तार-सप्तक आ तमिलक कुरुक्षेत्रम् केर बीच मे कतहु अपन जगह बनेबाक प्रयास कऽ रहल छथि । फराक एतबे जे हिन्दी आ तमिल मे कएक गोटे मिलि कए संकलित भेल छथि एकटा जिल्दमे, आ एतए कएक लेखकक द्वारा विभिन्न विधा केर रचना नहि रहि हिनके अपन रचना पोथीमे उपलब्ध कराओल गेल अछि ।


कतेको पंक्ति भरिसक पाठकक मोनमे ग्रंथित-मुद्रित भऽ जएतन्हि, जेना कि


“ढहैत भावनाक देबाल
खाम्ह अदृढ़ताक ठाढ़

आकांक्षाक बखारी अछि भरल
प्रतीक बनि ठाढ़
घरमे राखल हिमाल-लकड़ीक मन्दिर आकि
ओसारापर राखल तुलसीक गाछ
प्रतीक सहृदयताक मात्र”
अथवा , निम्नोक्त पंक्ति-येकेँ लऽ लिअ :

“सुनैत शून्यक दृश्य
प्रकृतिक कैनवासक
हहाइत समुद्रक चित्र

अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द
क्यो देखत नहि हमर ई चित्र अन्हार मे
तँ सुनबो तँ करत पात्रक आकांक्षाक स्वर”

मिथिलेक नहि अपितु भारतक कतेको संस्कृतिक प्रभाव देखल जा सकैछ हिनक कथा-कवितामे। एहिसँ मैथिली क्रियाशील रचनाक परिदृश्य आर बढ़ि जाइछ, आ नव-नव चित्र, ध्वनि आ कथानक सामने आबि जाइत अछि ।

कवि कोन मन्दाकिनी केर खोजमे छथि जे कहैत छथि-

“मन्दाकिनी जे आकाश मध्य
देखल आइ पृथ्वीक ऊपर...”


अपन विशाल भ्रमणक छाप लगैछ रचनामे नीक जकाँ प्रतीत होइत अछि । आ आर एकटा बात स्पष्ट अछि कोषकार गजेन्द्र ठाकुर आ रचनाकार गजेन्द्र ठाकुर भिन्न व्यक्ति छथि, व्यक्तित्वमे सेहो फराक... जतए कोशकारितामे सम्पादकत्व तथा टेक्नोलोजी –सँ सम्बन्धित व्यक्तिक छाया भेटिते अछि, मुदा सृजनक मुहुर्तमे से सभटा हेरा जाइत छथि ।

एहिमे सँ कतेको टेक्स्ट ओ रखने छथि इन्टरनेटमे मैथिलीक बढ़ैत
पाठककेँ ध्यानमे राखि, जेना कि विदेह-सदेह अछि http://videha123.wordpress.com/ मे, आ देवनागरी आ तिरहुता दुन्नु लिपिमे । जे क्यो मिथिलाक्षरक प्रेमी छथि तनिका सब लेखेँ तँ ई विरल उपहारे रहत ।
अनेको रचनामे मात्र गोल-मटोल कथे नहि, राजनीतिक भाष्य सेहो लखा दैत अछि। ताहिमे हिनका कोनो हिचकिचाहटि नहि छन्हि। ओना देखल जाए तँ कुरुक्षेत्र क कतेको महारथी छलाह = प्रत्येक वीर-योद्धा अपन-अपन क्षेत्र आ विधाक प्रसिद्ध पारंगद व्यक्ति छलाह,–क्यो कतेको अक्षौहिणी सेनाक संचालनमे, तँ क्यो तीरन्दाजीमे, आदि आदि । सभ जनैत छलाह जे धर्म आ अधर्मक भेद की होइछ मुदा तैयो सभ क्यो जेना आसन्न विपर्यायक सामने निरुपाय भऽ गेल छलाह। आजुक सन्दर्भमे सेहो कथा मे तथा व्याख्यामे एहन परिस्थितिक झलक देखल जाइत अछि । सैह एहि महा-पाठ –क (मेटाटेक्सट) खूबी कहब। नहि तँ ओ कियेक लिखताह- –

“देखैत देशवासीकेँ पछाड़ैत
मंत्र-तंत्रयुक्त दुपहरियामे जागल
गुनधुनी बला स्वप्न
बनैत अछि सभसँ तीव्र धावक
अखरहाक सभसँ फुर्तिगर पहलमान
दमसाइत मालिकक स्वर तोड़ैत छैक ओकर एकान्त

कारिख चित्रित रातिक निन्न
टुटैत-अबैत-टुटैत निन्न आ स्वप्नक तारतम्य
...”


एहि महापाठकेँ एकटा एक्सपेरीमेन्ट केर रूपमे देखी तँ सेहो ठीक , आ सप्तर्षि-मंडलक निचोड़ अथवा सप्त-काण्डमे विभाजित आधुनिक महा काव्य रूपमे देखी तँ सेहो ठीक हएत। जेना पढ़ी , सामग्री एहिमे भरपूर अछि, भरिसक किछु अत्युच्च मानक लागत , आ किछु किनको तत्तेक नहि पसिन्न पड़तन्हि । मुदा एहि ग्रन्थ निचयकेँ पाठक अवश्य स्वागत करताह , आ नवीन लेखक वर्गकेँ एकटा नव दिशा सेहो भेटतन्हि।



मैसूर, ९ जून २००९ उदय नारायण सिंह “नचिकेता”
निदेशक,
भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर

10 comments:

  1. समीक्षा शृंखला बहुत नीक प्रयास। मैथिली लेल ई एकटा शुभ काज, आ नव चीज अछि जे एतेक वरिष्ठ रचनाकार सभ नव रचनाकारक नीक रचनाकेँ नीक कहीं रहल छथि।


    गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रतीक्षा रहत। नचिकेता जीक समीक्षा समीचीन

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  2. “देखैत देशवासीकेँ पछाड़ैत

    मन्त्रतंत्रयुक्त दुपहरियामे जागल, गुनधुनी बला स्वप्न

    बनैत अछि सभसँ तीव्र धावक, अखरहाक सभसँ फुर्तिगर पहलमान

    दमसैत मालिकक स्वर तोड़ैत छैक ओकर एकान्त

    कारिख-चित्रित रातिक निन्न,

    टुटैत-अबैत-टूटैत निन्न आ स्वप्नक तारतम्य...


    “मन्दाकिनी जे आकाश मध्य

    देखल आइ पृथ्वीक ऊपर...”

    “ढहैत भावनाक देबाल

    खाम्ह अदृढ़ताक ठाढ़

    आकांक्षाक बखारी अछि भरल

    प्रतीक बनि ठाढ़”।

    अथवा , निम्नोक्त पंक्ति-येकेँ लऽ लिअ :

    “सुनैत शून्यक दृश्य

    प्रकृतिक कैनवासक

    हहाइत समुद्रक चित्र

    अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द

    क्यो नहि देखत हमर ई चित्र अन्हार मे...”

    bad nik samiksha

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  3. gajendra jik rachna sabh internet par hit bhay chukal achhi, aab print me ela se o sabh seho ekar ras lay saktah je internet se door rahait chhathi

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  4. gajendra jik pothi maithilik jar vatavaran me nav basat sadris achhi,

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  5. ee pothi KuruKshetram Antarmanak- gajendra thakur maithili sahitya me apan nam aa sthan rakhat

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  6. bhaiji, ee samiksha bad nik lagal, ona ahank pothik mota moti sabh rachna internet par padhne chhi se bharos diyabait achhi je ee pothi nav lekhak lokani ke disha day sakat.

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  7. gajendra ji,
    etek nik pothi pathak ke uphar deba lel badhai

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  8. कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक -
    खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना

    खण्ड-२ उपन्यास-सहस्रबाढ़नि

    खण्ड-३ पद्य-संग्रह-सहस्त्राब्दीक चौपड़पर

    खण्ड-४ कथा-गल्प सग्रह-गल्प गुच्छ

    खण्ड-५ नाटक-संकर्षण

    खण्ड-६ महाकाव्य- १.त्वञ्चाहञ्च आ २.असञ्जाति मन

    खण्ड-७ बालमंडली /किशोर जगत

    हिन्दी केर तार-सप्तक आ तमिलक कुरुक्षेत्रम् केर बीच मे आ फराकसँ सेहो अपन जगह बनाओत।

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  9. gajendra ji ke badhai hi pothi lel,
    udaya narayan singh "nachiketa" ji seho badhai ke patra chhathi etek utam samikshak lel

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  10. ehi blog ker chahumukhi vikas , sabh vidha par aalekh, painting, photography, samiksha srinkhla
    maithilik / maithilik vikas me abhootpoorva yogdan kay rahal achhi

    gajendra thakur ji ke badhai

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