भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, June 14, 2009

विदेह' ३४ म अंक १५ मई २००९ (वर्ष २ मास १७ अंक ३४)- part ii

३. पद्य
३.१. कामिनी कामायनी: आतंकी गाम
३.२. विवेकानंद झा-तीन टा पद्य
३.३. सतीश चन्द्र झा-सोनाक पिजरा

३.४. अओताह मन भावन- सुबोध ठाकुर
३.५.मणिकान्त मिश्र “मनिष”- मिथिला वन्दना
३.६. ज्योति-हम एक बालक मध्य वर्गके
कामिनी कामायनी: मैथिली अंग्रेजी आ हिन्दीक फ्रीलांस जर्नलिस्ट छथि।

आतंकी गाम ।
हाथ पएर मोङने
ओ सूतल सूतल सन गाम़
जतए एखनो कियो कियो
गाबैत छल पराती़ झूमऱि आ’ नचारी़
जतए एखनो रहैत छल विभेदक बावजुद
संग संग बाघ आ’ बकरी ।
खरिहान में पसरल छल दूर दूर धान
हसैत ठिठियाति लाेक क’ छलै भरि मुँह पाऩ
नव नूकुत प्रेमक होइत छल चर्च़
आ’ नीक बेजाए में बुद्वि होए छल खर्च़
जतए अखनो बाँचल छल
आंचरिक लाज़
जन्नी जाति जी जाति क’
करैत छलीह अप्पजन काज ।
जतए एखनो भोर सॅ सांझ धरि
बनैत छल किसिम किसिमके भानस
भोजन सॅ तृप्त सुखासन पॅ बैसि
ज्ञानी जन पढै छला मानस़
जतए एखनो
सपना छलै भरत सन राजा के
लछमन सन भाय आ’ रामक’ मर्यादा के़।
ओहि सूतल सूतल ओंघाएल सन गाम मे
पैसि गेल छल एक दिन अजगुत अन चिन्हार लोक
रंग ढंग सॅ विचित्र हाथ मे कड़गर
हरियर नोट़ आ’ बंदूक़
आयल छल खरीद शान्ति फैला क सब तरि भ्रान्त़ि ।
खेत खरिहान में उगाबए लेल बारूद आर डी एक्स
ओ सब छिटैत रहल पाए़ आ’ देखैत देखैत
गामक पोखरि भ’ गेलए विषाक्तत
बंद भ’ गेलए पराती
आ’ डेरा गेलए समाज़
आेत्तए आब काबिज छै
भयानक अट्टहास करैत
मुॅह सॅ उगलैत आगि बला
आतंक क’ घिनौन राज ।
कामिनी कामायनी
9।5।09



1

পঞ্জীকাব বিদ্যানন্দ ঝা said...
kamayini ji,
ahank kavyapath maithili bhojpuri akademi aa sahitya akademi ker tatvadhan me sunane rahi,
etay padhi nik lagal
जतए एखनो
सपना छलै भरत सन राजा के
लछमन सन भाय आ’ रामक’ मर्यादा के़।
Reply05/15/2009 at 10:13 PM
2

कृष्ण यादव said...
बंद भ’ गेलए पराती
आ’ डेरा गेलए समाज़
आेत्तए आब काबिज छै
भयानक अट्टहास करैत
मुॅह सॅ उगलैत आगि बला
आतंक क’ घिनौन राज ।
bah
Reply05/15/2009 at 10:11 PM
विवेकानंद झा,वरिष्ठ उप-संपादक छथि नई दुनिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेडमे।
तीन टा पद्य

१.राति स्वप्न मे प्रिय !
राति स्वप्न मे
कविताक द्वि पाँतिक मध्य
अहाँक टिकुली आबि
हमरा आँखि मे
गरि गेल
आ गरिते चलि गेल
भीतर धरि
आ जे की हरदम भेलै अय
हमहुं ओकर पछॊर धयने
घसिटाइत चलि गेल छलहुँ
बहुत गहीँर धरि
एकटा अद्भुत लॊक देखलिअय

हमर ई पहिल अनुभव नहि थिक

एहन लॊक देख सकैत अछि
एकटा बताहे
आ एकटा बताहेक
करेज मे
सांस लऽ सकैत छै
एहन लॊक

एतय सबकिछु छलै

महानगर छलै
ओकर त्रास छलै
नगर छलै
ओकर घुटन छलै
गामॊ छलै ओकर महक सेहॊ छलै
ओ धार सेहॊ छलै
जे अपन सम्पूर्ण वैभवक संग
बहैत अछि
हमरा स्मृति मे
आ ताहि पर एकटा झलफल पर्दा छलै
अहाँक ललका ओढ़नी सऽन
आ जे की बाद मे बूझलिअय
ओ अहीँ छलहुं
हमर समस्त स्मृति केँ झँपने
अपना ओढ़नी सँऽ

हम आगू बढ़ि
बहुत दूर निकलि
आब अपना गाम
आबि दलान पर छलहुं ठाढ़
कि बसात सिहकै छलै
थलकमलक झमटगर गाछ पर
आ ओहि पर लटकल रहै
थॊकाक-थॊका फूल
आ सॊझाँ पॊखरि मे
कास छलै
एम्हर बड़की टा बास छलै
आ ओ सबकिछु छलै
जे समयिक झॊल सँ
अनवरत संघर्ष कऽ रहल छै
आ ओहि पर पुनः
एकटा लाल पर्दा छलै
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुँ
अहीँक ओढ़नी छलै ।

हम आगू
आबि अपन पिता लग
छलहुँ ठाढ़
जिनक माथा पर समयिक अद्भुत चित्रकारी छलै
हम सॊचिते रही
जे समय एकटा
अद्भुत चित्रकार अछि
आ की एकटा लाल पर्दा छलै
जाहि तऽर सँ
एक जॊड़ी पनिगर आस सँ भरल आँखि
हमरा हेरैत छल
आ ओहि दया पर
ओहि करुणा पर
एकटा लाल पर्दा छलै
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुँ
अहीँक ओढ़नी छलै ।

ई आँखि
हमर माइक थिक
जे हमर बाल्यकालहि सँऽ
हमरा लेल एहने अछि
कि हमर माइ
संभवतः बूझैत छथिह्न
जे एहि छौड़ाक आत्मा पर
पछिला जन्मक बॊझ छै
पापक
आ हमरा अपन माइक
एहि आँखि सँऽ
डर लगैत अछि
हम पसेना सँऽ भरि उठैत छी
आ रातियॊ ओहिना भेल
हम जागि उठलहुं
पसेना-पसेना भऽ
जे सबसे पहिने किछु मन पड़ल
ओ लाल ओढ़नी छल
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुँ
अहीँक ओढ़नी छलै ।

एम्हर एखन हम
आगू बढ़ि आयल छी
पाछू रहि गेल अछि
भॊर कहिए
कि हम दिल्ली मे छी
जतऽ एकटा मॊहल्ला छै
एकटा तिनमंजिला छै
बुढ़िया मकान मलिकानिक झौहैर छै
आ दॊसरे क्षण प्रेमक ओकर अभिनय छै

पुनः एकटा विश्वविद्यालय छै
ओकर सड़ल-गलल
अंगांग छै भिनकैत
माछी जॊकाँ हम सभ छिअय
आ एकटा झलफल पर्दा छै
आ जे हम बाद मे बूझैत छिअय
ओकर रङ लाल छै

उखड़ैत लॊग-बसैत लॊग
पड़ाइत लॊग-हेराइत लॊग
ठमकल-ठहिआयल लॊग
मुदा फिराक ओकर आँखिक अतल मे
की मौका भेटओ
आ ओ छप दे
ककरॊ गरदनि काटि लेअय

एहि टहाटही दुपहरिया मे
ओ सभटा वस्तु-जात छै
जे साल दरि साल
हमरा भाङि रहल अछि

घृणित राजनीति छै
आ छै हरेक दृष्टि सँऽ पहिने
सुनिश्चित ई शब्द घृणा
सर्वत्र छै
आ सङहि
एकटा नवका पीढ़ी छै
जकरा पुरान पीढ़ी कॊन मे
लऽ जा कऽ
कान मे किछु
बुझा रहल छै
आ एकटा झलफल पर्दा छै
आ जे की बाद मे बुझति छिअय
ओकर रङ लाल छै ।

एम्हर विगत किछु वर्ष सँ
हम अपन सभटा
सरॊकार सामजिक
भॊगि रहल छी
एकटा फाँस मे
जे कत्तहु
हमरा हृदय मे
एकटा फाँक बुनि रहल अछि

एम्हरहि
हमर आँखि
कमजॊर भेल अछि
कनैत-कनैत
एना भऽ जाइत छै
कहने छली हमर मैंयाँ
हम नेनपनि मे
बड़ कनैत रहिएय ।

आब
सौँसे दुनिया
आ दुनियाक सौँसे फरेब
आ बाद मे जा कऽ
ओकर सौँसे कष्ट
हमरा लाल बुझना जाइत अछि
निस्संदेह
हमर आँखि
कमजॊर भऽ गेल अछि
आब
हम दिनहुं मे सूति रहैत छी
एहि द्वारे नहि
जे काज नहि अछि
हमरा लऽग
आब हमरा राति मे
बेसी सुझाइत अछि

तेँ काल्हि राति
स्वप्न मे
पहिल बेर अहाँक टिकुली
हमरा आँखि मे
नहि गरल छल प्रिय !

पहिनहुँ
बहुत दिन सँऽ
हमरा सबकिछु लाल बुझाइत रहय
मुदा राति
जे प्रत्येक दृष्टि पर
एकटा लाल पर्दा छलै
पहिल बेर बुझलिअय
ओ अहीँ छलहुं
अहीँक ओढ़नी छलै०००
२.अहाँ नहि जायब नारायणपट्टी गाम
अहाँ केँ बड़ नीक लागल ने
नारायणपट्टी गाम ?
सबकेँ नीक लगैत छै
नारायणपट्टी गाम !
बशर्ते जे
देखऽ जयबाक हॊ गाम

अहाँ कहियॊ भॊगने छी गाम ?

पैंचक इजॊत मे
इतराइत चान नहि थिक
नारायणपट्टी गाम !

शहरक सौभाग्य लेल
अपन ठेहुन पर
जरैत टेमी मिझबैत-मिरबैत
अहिबाती थिक गाम !

अहाँ आब कहियॊ नहि जायब
नारायणपट्टी गाम
किएक तऽ
हम नहि हेराय चाहैत छी
अपन एकटा आर अनमॊल वस्तु
जेना हेरा गेल हमर अस्मिता
जेना हेरा गेल हमर स्वप्न
ओहि नारायणपट्टी गाम मे

आ नहि बूझल
कतेक लॊक कतेक नारायणपट्टी गाम मे
हेरा लेने हॊयताह स्वयं कएँ हमरा जॊकाँ
३.देबै ने चिनगी ?
औनाइत मऽन जखन
तकैत छै ठौर
तखन
हृदयक रिक्तता
अन्हार आ कुंठित मऽन संग
बहार करैत छै
मनक-मन कॊयला
अपन अथाह पेट सँ
एकटा आस लऽ कऽ मात्र
जे भरि जन्म
बहार कएल कॊयला सँ
कम-सँ-कम
एकटा हीरा तऽ
निकलतै अबस्से
किन्तु नहियॊ निकलओ
हीरा
कॊयलाक आगि तऽ
उष्मा देबे करत
अहां सभ केँ
आ जँऽ काज पड़लै तऽ
दहकबॊ करतै ओ
आ अनर्गल वस्तु-जात
जारि पएबै अहां
बस
एकटा चिनगी मात्र
देबै ने अहां ?


1

सुरेश चौपाल said...
ee site aa vivekanand jha doo ta khoj rahal interne par hamar
Reply05/15/2009 at 11:29 PM
2

उमेश कुमार महतो said...
bah bhaiya
ghumaba le bhog ba lel nahi
gamak ki hal bhel yauपैंचक इजॊत मे
इतराइत चान नहि थिक
नारायणपट्टी गाम !पुनः एकटा विश्वविद्यालय छै
ओकर सड़ल-गलल
अंगांग छै भिनकैत
माछी जॊकाँ हम सभ छिअय
आ एकटा झलफल पर्दा छै
आ जे हम बाद मे बूझैत छिअय
ओकर रङ लाल छै
उखड़ैत लॊग-बसैत लॊग
पड़ाइत लॊग-हेराइत लॊग
ठमकल-ठहिआयल लॊग
मुदा फिराक ओकर आँखिक अतल मे
की मौका भेटओ
आ ओ छप दे
ककरॊ गरदनि काटि लेअय
Reply05/15/2009 at 10:22 PM
3

পঞ্জীকাব বিদ্যানন্দ ঝা said...
राति स्वप्न मे प्रिय !एहन लॊक देख सकैत अछि
एकटा बताहे
आ एकटा बताहेक
करेज मे
सांस लऽ सकैत छै
एहन लॊक
अहाँ नहि जायब नारायणपट्टी गाम-जरैत टेमी मिझबैत-मिरबैत
अहिबाती थिक गाम !
देबै ने चिनगीजे भरि जन्म
बहार कएल कॊयला सँ
कम-सँ-कम
एकटा हीरा तऽ
bah bhai vivekanand ji.
Reply05/15/2009 at 10:19 PM
4

Dr Palan Jha said...
ee kavi te vilakshana chhathi, katay nukayal chhalah,
sabh ank me hinkar rachna chahi
Reply05/15/2009 at 09:04 PM





सतीश चन्द्र झा,राम जानकी नगर,मधुबनी,एम0 ए0 दर्शन शास्त्र
समप्रति मिथिला जनता इन्टर कालेन मे व्याख्याता पद पर 10 वर्ष सँ कार्यरत, संगे 15 साल सं अप्पन एकटा एन0जी0ओ0 क सेहो संचालन।
सोनाक पिजरा
सोनाक पिजरा
खौंइछा मे ल’ क’ दूभि धान।
पेटी, पेटार, पौती, समान।
जा रहल आइ छी सासुर हम
अछि कोना अपन लेए बेकल प्राण।

हमरा बिनु माय कोना रहतै।
बाबू केर सेवा के करतै।
नीपत चिनबार कोना भोरे
जाड़क कनकन्नी सँ मरतैं।

अछि केहन देवता के बिधान।
ल’ कोना जाइत अछि संग आन।
एखने उतरल छल साँझ पहिल
भ’ कोना गेल एखने विहान।

छल केहन अबोधक नीक खेल।
कनियाँ पुतरा मे मग्न भेल।
आमक टिकुला लय दौड़ि गेलहुँ
अन्हर बिहारि मे सुन्न भेल।

कखनो फूलक बनि रहल हार।
ल’ एलहुँ बीछि क’ सिंगरहार।
झूठक पूजा, माटिक प्रसाद
भरि गाम टोल देलहुँ हकार।

जे भेल मोन मे केलहुँ बात।
के रोकत जखने भेल प्रात।
भरि खौंछि तोड़ि क’ भागि एलहुँ
ककरो खेतक किछु साग पात।

ई समय कोना क’ बढ़ल गेल।
रहलहुँ हम सूतल निन्न भेल।
नहि भान भेल कहिया अपने
जीवन ओरिया क’ ससरि गेल।

बाबू सँ मा किछु केलक बात।
निशब्द इशारा उठा हाथ।
ल’ अनलथि जा क’ पिया हमर
ललका सिन्दुर पड़ि गेल माथ।

देखलहुँ पाहुन छथि अनचिन्हार।
निशिभाग राति सगरो अन्हार।
भेटल किछु नव श्पर्श पहिल
मन बहकि गेल उतरल श्रृंगार।

किछु सत्य भेल मोनक सपना।
भेटल मुँह बजना मे गहना।
हमहूँ देलियन्हि सर्वस्व दान
ई मोन हृदय जे छल अपना।

अछि केहन विवाहक ई बंधन।
स्नेहक संबंध बनल प्रतिक्षण।
अपरिचित दू टा चलल संग
विश्वासक बान्हल डोर केहन।

संगी साथी सभटा छूटल।
की बिसरि सकब जीवन बीतल।
ओ घर द्वारि आँगन दलान
सभ सँ छल स्नेह कोना टूटल।

कनिते कनिते औरियौन भेल।
पाहुन संग हमर चुमौन भेल।
भगबती घ’र सँ बिदा होइत
दू टा कहुना समदौन भेल।

दृग जल सँ गंगा उतरि गेल।
ममता विधान सँ हारि गेल।
बाबू दलान पर रहथि ठाढ़
मा ओलती मे निष्प्राण भेल।

खोंता मे पक्षी सिहरि गेल।
दाना अहार छल बिसरि गेल।
स्तब्ध भेल छल गाछ पात
पछबा बसात छल द्रवित भेल।

भारक समान किछु छल राखल।
भरि गाँव टोल सौसे कानल।
गामक सीमान धरि बहिना सभ
दौड़ल बताह भ’ छल कानल।

हम प्रात पहुँचलहुँ हुनक गाम।
जे अछि नारी केर स्वर्ग धाम।
नहि रहल एतय पहिलुक परिचय
भेटल हुनके सँ अपन नाम।

कोबर मे बैसल छी अनाथ।
राखथि जे बुझि क’ प्राण नाथ।
क’ देलक बिदा जखने परिजन
दुख केर कहबै किछु कोना बात।

बान्हल चैकठि सँ आब रहब।
दुख सुख कहुना अपने भोगब।
नैहरि सासुर केर मान लेल
कर्तव्यक सभ निर्वहन करब।

अछि उजड़ि गेल ओ पहिल वास।
भेटल अछि सोना कें निवास।
टुटि गेल पांखि, अछि भरल आँखि
पिजरा सँ की देखू अकाश।
1

satish said in reply to कृष्ण यादव...
kavita lel apnek del comments
hamesa dekhait chhi..dhanyabad.
Reply05/21/2009 at 09:32 AM
2

satish said in reply to Anshumala Singh...
bahut bahut dhanyabad je hamar kavita padhalahu
Reply05/20/2009 at 11:45 AM
3

Subodh thakur said...
Apnek kavita hridyay ke shparsh karait achi sangahi shabdak vinyas seho uttam
Reply05/18/2009 at 03:25 PM
4

Rajni Pallavi said...
Kavita padhlaun. Bahut nik lagal. Apan vivah yaad aabi gel. Lagal hamar har feelings ke aahan ehi kavita me kaid ka dene chhi.
Reply05/16/2009 at 09:12 PM
5

Preeti said...
कखनो फूलक बनि रहल हार।
ल’ एलहुँ बीछि क’ सिंगरहार।
झूठक पूजा, माटिक प्रसाद
भरि गाम टोल देलहुँ हकार।
muda pher
अछि उजड़ि गेल ओ पहिल वास।
भेटल अछि सोना कें निवास।
टुटि गेल पांखि, अछि भरल आँखि
पिजरा सँ की देखू अकाश।
Reply05/15/2009 at 10:27 PM
6

उमेश कुमार महतो said...
aah nari jivan,
muda aab nahi
Reply05/15/2009 at 10:26 PM
7

Praveen Kumar Jha said...
Kavita Bahooooooooot Nik Lagal........
Katek din bad ekta hriday ke sparsh karay wala kavita padhlawn...........

Reply05/14/2009 at 11:45 AM
सुबोध ठाकुर, गाम-हैंठी बाली, जिला-मधुबनीक मूल निवासी छथि आ चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट प्रैक्टिशनर छथि।
अओताह मन भावन

स्वप्न सलोना आँखिमे लेने
धनी बहारि रहल छलि आँगन।
सोचि-सोचि कए मन हर्षित छल
आइ सँझमे अओताह हमर परदेशी मनभावन।

छल बरखक आस मोनमे दबल
मोन कतेक पीड़ासँ छल गुजरल
कानि कए काटल राति अन्हरिया
आर रससँ भरल महिना साओन,

स्वप्न सलोना आँखिमे लेने
धनी बहारि रहल छलि आँगन।


ओ पछिला मिलन रातिक
मोन भीजल रहए मिठगर-मिठगर बातसँ
रोम-रोम पुलकित रहए,
हुनक आलिंगन छल कतेक पावन,
स्वप्न सलोना आँखिमे लेने
धनी बहारि रहल छलि आँगन।



नबका साड़ी आइ पहिरबए
नेचुरल रंग बला लिपिस्टिक लगेबए
गजरासँ हम केश सजेबए
देखिते सोचमे पड़ि जएता साजन,
स्वप्न सलोना आँखिमे लेने
धनी बहारि रहल छलि आँगन।



एतबामे फोनक घंटी बाजल
धनी जेना निद्रासँ जागल,
फोनपर आएल आबाज
हम नहि आएब एहि महिना आब
सुनि धनी झूर-झमान भए खसली
जेना खसए रोगी दर्दक कारण,
स्वप्न सलोना आँखिमे लेने
धनी बहारि रहल छलि आँगन।

कहए सुबोध धनी जुनि कानू
बात कवि केर मानू,
अगिला महिना निश्चय अओताह,
अहांक सुन्दर मनभावन।
स्वप्न सलोना आँखिमे लेने
धनी बहारि रहल छलि आँगन।



1

subodh said in reply to Aum...
mahan etihasik kavikokil ke sang hamra rakhi ahan apan varappan dekhelaun se dhanyabad, muda hunka anga te hamar swaroop bahut chot achi
Reply05/18/2009 at 03:12 PM
2

subodhkumarthakur@rediffmail.com said in reply toPreeti...
Dhanyabad apnek utsah vardhak protshahan ke lel
Reply05/18/2009 at 03:09 PM
3

vivekanand jha said...
wah khoob neek likhal.
Reply05/18/2009 at 10:32 AM
4

Aum said...
कहए सुबोध धनी जुनि कानू
बात कवि केर मानू,
vidyapati aajuk
Reply05/15/2009 at 10:30 PM
5

Preeti said...
nik pravasi geet
Reply05/15/2009 at 10:29 PM
मणिकान्त मिश्र “मनिष”
गाम-बेलौचा, प्रखण्ड-लखनौर, जिला मधुबनी।
मिथिला वन्दना
देखू देखू हमर आंगनक भागए
पच्छिम मे बाजैत कौआ आ !
पूरब मे एला सूरज भगवानए
देखू देखू हमर आंगनक भाग !!

दीदी गावि रहल छथि गीतए
माँ बना रहल छथि तरूआ !
आई एता हमर मूंह लगूआए
आबिते करबैन होम प्रणाम
मनीष थिक हमर नाम !!
दीदी ब्याह कऽ भऽ गेल सालए
हमरा अंगना मे पसरल य कोजेगराक समान !
एता पाहूनक बाबू लऽ जेता ई दोकानए
हमरा आंगन मे एला सूरज भगवान !!

देखू देखू हमर मिथला कानए
कोजेगरा मे बटैय पान आ मखान
ओ मिथिला रहत सबखन महान !
मण्डन आ विद्यापतिक होईत रहै य जतै गुणगानए
ओ जानकी धाम महान !!

राम बनलथि पाहूनए लवकूश सन भगिनवान
जाही ठाम गंगा देयथि पुण्यक ज्ञान !
ओई मिथिला क सत् सत् प्रणाम सत् सत् प्रणाम !!
मणिकान्त थिका मिथिलाक संतान....।
1

মধূলিকা চৌধবী said...
देखू देखू हमर मिथला कानए
कोजेगरा मे बटैय पान आ मखान
ओ मिथिला रहत सबखन महान !
मण्डन आ विद्यापतिक होईत रहै य जतै गुणगानए
ओ जानकी धाम महान !!
nik
Reply05/15/2009 at 10:34 PM
2

Aum said...
jay ma

ज्योति
हम एक बालक मध्य वर्गके

हम एक बालक मध्य वर्गके
स्वपन देखने छी बस उन्नतिके
अपना संग खुश राखक सबके
आस हमरापर पूरा परिवारके
माय बापक उठाबक भार
हम बनल छी श्रवण कुमार
बाबू सम्हारता अपन खेत पथार
हम तऽ करब कमाइर्क जोगार
पढ़ाइर् पूरा करक बड्ड हरबड़ी
चैन सऽ साँस लै लेल ठहरी
जॅं भेटै एक बढ़िया नौकरी
सुविधा पाबी सबटा शहरी
सब कतेक ध्यान अछि रखने
मुदा पढै़ लेल कण्ठ अछि धेने
रोज पुस्तकक काँवर उठेने
विदा होयछी एक पदयात्रामे
भविष्य बढ़िया बनाबक इंतज़ाम
नितदिन करै छी गुरूके प्रणाम
हमरा लेल तीर्थ सन हम्मर गाम
विद्यालय बनल हमर बाबाधाम
1

বশ্মি প্রিযা said...
विदा होयछी एक पदयात्रामे
भविष्य बढ़िया बनाबक इंतज़ाम
नितदिन करै छी गुरूके प्रणाम
हमरा लेल तीर्थ सन हम्मर गाम
विद्यालय बनल हमर बाबाधाम
sundar
maithilik balsahitya lel jyotijik kaj bad nik
Reply05/15/2009 at 10:39 PM
2

মধূলিকা চৌধবী said...
हम एक बालक मध्य वर्गके
स्वपन देखने छी बस उन्नतिके
अपना संग खुश राखक सबके
आस हमरापर पूरा परिवारके
माय बापक उठाबक भार
हम बनल छी श्रवण कुमार
बाबू सम्हारता अपन खेत पथार
हम तऽ करब कमाइर्क जोगार
पढ़ाइर् पूरा करक बड्ड हरबड़ी
चैन सऽ साँस लै लेल ठहरी
जॅं भेटै एक बढ़िया नौकरी
सुविधा पाबी सबटा शहरी
सब कतेक ध्यान अछि रखने
मुदा पढै़ लेल कण्ठ अछि धेने
रोज पुस्तकक काँवर उठेने
विदा होयछी एक पदयात्रामे
भविष्य बढ़िया बनाबक इंतज़ाम
नितदिन करै छी गुरूके प्रणाम
हमरा लेल तीर्थ सन हम्मर गाम
विद्यालय बनल हमर बाबाधाम
bah bah
Reply05/15/2009 at 10:37 PM
नागपंचमी
मूल कोंकणी कथा : नागपंचम
लेखक : श्री वसंत भगवंत सावंत


हिन्दी अनुवाद : नागपंचमी
अनुवादक : श्री सेबी फर्नानडीस




मैथिली अनुवाद :

डॉ.शंभु कुमार सिंह
जन्म : 18 अप्रील 1965 सहरसा जिलाक महिषी प्रखंडक लहुआर गाममे। आरंभिक शिक्षा, गामहिसँ, आइ.ए., बी.ए. (मैथिली सम्मान) एम.ए. मैथिली (स्वर्णपदक प्राप्त) तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। BET [बिहार पात्रता परीक्षा (NET क समतुल्य) व्याख्याता हेतु उत्तीर्ण, 1995] “मैथिली नाटकक सामाजिक विवर्त्तन” विषय पर पी-एच.डी. वर्ष 2008, तिलका माँ. भा.विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। मैथिलीक कतोक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे कविता, कथा, निबंध आदि समय-समय पर प्रकाशित। वर्तमानमे शैक्षिक सलाहकार (मैथिली) राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर-6 मे कार्यरत।



नागपंचमी

अश्लेशा नक्षत्रहि सँ बरखा झमाझम होमए लागलैक। गत सात दिनसँ बरखा होइत छलैक। साओन मे तँ बरखा बन्न भ’ जएबाक चाही, मुदा ओ तँ बन्न हेबाक नामहि नहि ल’ रहल छलैक। बोलकर्णें केर द्वीप पानिसँ दहाबोह भ’ गेलैक। गामक खेतक फाटक सहित दहोदिस पानि मे डूबि गेलैक। मल्लिकार्जून मंदिरक दूइ सीढ़ी धरि बरखाक पानि छूबि लेलकैक, मुदा ठेह पर रह बलाक लेल कोनो असौकर्य नहि रहैक। मजूरी आ रोजीमे व्यवधान हेबाक कारणेँ लोक सभ हकोबको भ’ गेल छल। साँच त’ ई थिक जे खेती-बारीक काज साओन धरि भ’ गेलाक पश्चात् लोक गोबरछत्ताक धंधामे लागि जाइत छल। बहुतों जंगलक खाक छानलाक पश्चात् लोक गोबरछत्ता जमा कए लगीच वला साकोड्डें नामक गाममे बेचि दैत छल। ओहुना ओ सभ ककड़ी ओ गैता फोंडाक बजारमे बेचैत छल। जँ पैघ-सन माछ हाथ आबि गेलनि तँ ओकरा देसाई परिवारमे बेचि 10-20 टका कमा लैत छल। मुदा एहि बेर बरखा बेसी हेबाक कारणेँ भरि साल रोजगार बाधित भ’ गेलैक। नाह चलाब’ वला मलाह सभ तँ कखने अपन-अपन नाहकेँ उपर आनि राखि देने छल। ओकरा नीक जकाँ लकड़ीक गुटखासँ अटका देल गेल छलैक। ओकरा उपर नारियरक पातक छतरी सेहो बनाओल गेल छलैक जकर सुरक्षाक लेल ओकरा नारियरक गाछसँ बान्हि देल गेल छलैक।

हरि भगत अपन बरण्डामे एकटा सोंगरक सहारे अपन पीठ अटका कए बैसल छल, बेर-बेर नदीमे आयल बाढ़ि के देखैत छल। घनघोर बरखाक कारणेँ ओ नदीक दोसर दिसक गाम साकोर्डें केँ सेहो नहि देख सकैत छल। ओहि क्षण ओ सपनहिमे अपन भविष्यक सोच केँ मूर्त रूप देमए लागल। आड़िक बाटे जेबाक बजाए ओ बिसू भट्टजीक गाछी बाटे रस्तासँ निकलि गेल। वेगसँ बहैत नलीकेँ पार क’ कए पनशी पहुँच गेल आ गाड़ीक प्रतीक्षा करए लागल। बरखाक कारणेँ गाड़ीक आवाजाही बहुत कम भ’ गेल छलैक। मोलें सँ एकटा टेंपू आबैत रहैक। मोलें साकोर्डें सँ लोक ससत दाम पर गोबरछत्ता कीनए गेल छलैक आ आब ओकरा मडगांवक बजारमे बेचबाक लेल जाइत रहैक। हरि ओहि टेंपू सँ लिफ्ट ल’ कए तिस्क्यार आबि गेल। डॉक्टर सँ मिलिकए बेमार नेनाक लेल औषधि लेलक आ दूधक सोसोइटीमे सभ दिन दूध लेबाक लेल आबय वला टेंपू पर बैसि ओ सांकोर्डें आबि गेल। नदीक कछेर आबितहि ओकर पयर काँप’ लागलैक। नदी पानिसँ लबालब रहैक आ दुनू दिस बस पानिए पानि देख’मे आबि रहल छलैक। ओकर रूप वीरभद्र (रौद्र) जकाँ बुझाइत रहैक। ओहि काल ओकरा नजरिक समक्ष ओकर बेमार नेनाक सूरति आबि गेलैक। ने जानि ओकरा देहमे तखन कतए सँ उर्जा आबि गेलैक, ओ आव ने देखलक ताव झटसँ ओहि भयानक नदीमे कूदि गेल। ओकरा समक्ष केवल मृत्युये देखार दैत छलैक, मुदा ओ कोहुना हेलैत नदी पार क’ गेल। ओकर सौंसे देह पानिमे भीज गेल रहैक। ओ अपन सौंसे देहकेँ टटोललक त’ देखलक जे ओकर सभटा पीब’ वला औषधि आ गोटी भीज गेल छलैक।
* * *
खाइक लगा दी.....खाएब ने?
पत्नीक टोकलाक पश्चात् ओ होशमे आयल। सपनासँ जागल लोक जकाँ ओ एमहर-ओमहर देखलक। कन्हा पर राखल गमछासँ ओ अपन मुँह पोछलक आ किछु कालक लेल आँखि मुनि एकटा नमहर साँस लेलक।
खाइक लगा दिऔक, हरि बाजल।
पत्नी खाइक लगा देलकैक।
स्नानघर जा कए ओ हाथ-पयर धोलक।
चिलका कखन सुतल?
एखनहि सुतल छैक.....पत्नी नहुएँ बाजलीह।
बोखार उतरलैक?
“........”
ओकरा गोटी खोआ देलियैक?
हँ जे बाँचल छलैक ओ द’ देलिऐक।
आब कोन दबाइ दियैक किछु बुझनामे नहि आबि रहल अछि। बुझाइत अछि जेना ई अपन जन्महिसँ मुँहमे दबाइक चम्मच ल’ कए आएल अछि।
देखियौक ने काल्हि नागपंचमी छियैक हम बूट फूलबा लेल द’ देने छिऐक, भगवती करैथ चिलकाक बोखार कने कम भ’ जाइक।
हँ, साँचे काल्हि तँ नागपंचमी छैक। ई तेसर खेप छियैक...... ओ एकटा गहिरगर साँस लेलक। बुझाइत अछि एहु साल हमरा सभक लेल अपशकुने अछि, ओ बहुत आर्त स्वरमे बाजल।
भगवतीक ईच्छा.......। ई कहि ओकर पत्नी ओकरा मुँह पर अपन हाथ राखि देलकैक आ ओकरा आँखिसँ दहो-बहो नोर बहय लागलैक। तकर बाद दुनूक मूँहमे एक्कोटा दाना नहि गेलैक।
गामक सभटा नेना-बूढ़ राणू भगत (हरिक बाबूजी) केँ भ्रष्टाचारी भगत केर नामसँ चिढ़बैत छलैक। राणू भगत समूचा गाममे धार्मिक ओ आन अनुष्ठान करबैत छल। गामक गरीब लोककेँ भगवानक नाम पर फँसयबामे ओ ततेक माहिर छल जे तकर कोनो सीमा नहि। खेती-बारी सहित आन सभटा जिम्मेदारी ओ हरिक कान्ह पर लादि देने छल आ स्वयं आरामक बंसी बजबैत छल।

हरिकेँ अपन बाबूजी एक्कोटा आदति पसिन्न नहि छलैक, मुदा राणू भगत कहियो हरिक बात नहि बुझलकैक।
ओतहि राणू सदति हरि आ ओकर पत्नी केँ अधलाहे बात कहैत रहैक।
हरिक बियाहक तीन मास भ’ गेल रहैक आ ओहि काल एकदिन राणू नेनपन जकाँ मजाक करबाक लेल नारियरक गाछ पर चढ़ि गेलैक आ ओतए सँ जे गिरलैक तँ अपन डाँड़ तोड़ि खाट पकड़ि लेलक। राणूक खाट पकड़ि लेलासँ हरिक जिम्मेदारी दुगूना भ’ गलैक।

“एहि हराशंखिनीक कारणेँ हमरा घरक सभटा खुशी पानि भ’ गेल अछि” राणू सदैव हरिक पत्नीकेँ कहैत रहैक। एतेक सुनलाक पश्चातो हरिक पत्नी ओकर देखभालमे कोनो कसरि नहि छोड़ैक। दिन पर दिन बीतल गेलैक, राणू चढ़िते अखाढ़ परलोक सिधारि गेलाह आ एहि कारणेँ हरिक पत्नीकेँ तीन मासक लेल घर छोड़ए पड़लैक। बाबूजीक मृत्युक कारणेँ ओ ओहि बरख नागपंचमी नहि मना सकल। दोसरहि बरख हरिक पत्नी एकटा नेनाकेँ जन्म देलकैक आ सोइरी हेबाक कारणेँ ओ ओहू बरख नाग देवताक पूजा नहि क’ सकल। एहि बेर एक बरखक चिलका बोखारसँ जूझैत रहैक.....। जेना-जेना समय बीतैत छलैक, चिलकाक हालति आर बिगड़ले जाइत छलैक। आयुर्वेदिक औषधिक सेहो कोनो असरि नहि भ’ रहल छलैक। दोसर दिस नदीक पानि बढ़िते जाइत छलैक आ चिलकाकेँ ल’ कए नदी पार करब संभव नहि छलैक।

हरि अपन गाछीक मोड़ पर ठाढ़ छल। जँ हमर चिलका नीक भ’ जाएत तँ हम एहि बेर भगवान, कुलदेवता, ग्रामदेवता आदिकेँ छागर बलि देबैक। ओकर मनौन सुनि कए ओकर पत्नी अबाके रहि गेलीह। जाधरि ओ ओकरा देखैत ताधरि ओ नदी पार क’कए हाथमे पूजाक समान ल’ कए मंदिर पहुँचि गेल।
* * *
अहाँ हिम्मति नहि हारब बाउ! बोखार उतरि जेतैक, एकटा पड़ोसनी ओकरा सांत्वना देलकैक। तखनहि मंदिरक घंटा बाजि उठलैक आ दुनू गोटे हाथ जोड़ि लेलक। ई हम एकदम साँच कहि रहल छी, ई कहि ओ चिलकाक माथ पर हाथ राखि देलक। देखियौक बोखार उतरि रहल छैक। पसेना चलि रहल छैक।

हरि मंदिरसँ आनल भेभूत चिलकाक माथ पर लगा देलकैक। ओकर पत्नी बड़ भक्ति-भावसँ ओ भेभूत चिलकाक सौंसे देहमे मलि देलकैक। चिलकाक बोखार उतरैत देखि ओ दुनू परानी बेस खुश भेल। हरिक पत्नी भीजल बूटकेँ देखबाक लेल गेलैक आ हरि जंगल सँ आनल माटिसँ देबाल पर नागक आकृति बनब’ लागलैक। ओहि पर कुंकुम सँ ओकर रेखांकन कएलक आ कोयलासँ ओकरा पर “ओउम” बना देलकैक। हाथ धोलाक पश्चात् हरि फेर दरबज्जा पर आबि ठाढ़ भ’ गेलैक आ नदीक बहैत पानि दिस देख’ लागल। खेतमे एकनहुँ पानि भरले रहैक, मुदा बीच-बीचमे छोट-छोट गाछ सभ लखा दैत छलैक।

हरि घुमबाक लेल नकलि गेल आ ताहि समय चिलकाक कानब-कुहरब सुरह भ’गेलैक। हरिक पत्नी ओकरा छातीसँ सटा दूध पियौलकैक। चिलका एक मिनटक लेल तँ चुप भेलैक मुदा चोट्टहिं जोर-जोरसँ कानए लागल। चिलका एकबेर ओछरलक आ सभटा दूध बाहर आबि गेलैक। चिलकाकेँ अचानक एकटा चक्कर लागलैक आ ओ काठ जकाँ कठोर भ’ गेलैक। हरि केँ ई समाद कोनो आन नेनाक माध्यमे भेटलैक। हरिक हाथमे दू टा नारियर छलैक, ओ ओकरा ओत्तहि फेकलक आ हकासल घर दिस भागल। घरमे पड़ोसियाक भीड़ लागल रहैक। ओकर पत्नी जोर-जोरसँ कानैत रहैक आ ओकरा दू टा पड़ोसिया सभ सम्हारबाक प्रयासमे लागल रहैक।
चिलकाक आँखि बन्न क’ रहल छलैक। एकटा पड़ोसिन किछु औषधिय पातक चूर्ण बना क’ ओकरा नाक लग राखि देलकैक। चिलकाक केवल साँसे टा चलैत रहैक।हरिक लेल ओतए बिलमब मोसकिल भ’ गेलैक, ओ बाहर आबि बरण्डा पर अपन दुनू हाथेँ माथ पकड़ि बैसि रहल। करिया मेघमे छिपल सूरूज,पछिम दिस डूबहि बला छल। आब हरिक जिनगीमे एकटा आर आफत आबहि बला छल आ नागपंचमीक पाबनि ओहि आफतमे शरीक होम’ बला रहैक। सभटा मनौती आ प्रार्थना बाढ़िक पानिमे भासि गेलैक। चिलका एखन धरि आँखि नहि खोलने छलैक।

लोहारक भट्ठी जकाँ हरिक छाती धड़कैत रहैक। चिलकाकेँ देखबाक लेल आएल लोक सभ अपन-अपन घर आपस जा रहल छल। पड़ोसी सभक शब्द हरिक हृदयमे तीर जकाँ लागैत रहैक ओ घवाह भ’ रहल छल।
शाबा! चिलका आइ राति नहि काटि सकतैक, एकटा स्त्री बाजल।
हमरा तँ बेचारा हरि पर दया आबि रहल अछि, दोसर बाजल।
भगवाने जानथि ई कोन बेमारी चलल छैक, तेसर बाजल।
एक-एक करि कए बहुत भयानक बेमारी पसरि गेलैक अछि। किछु दिन पहिलुके बात थिक, मालूक पोता, जे मात्र डेढ़ बरखक रहैक, ओकरो एहने चक्कर ऐलैक आ छओ घंटाक भीतरे मरि गेलैक। ई गाम ककरो लेल शुभ नहि अछि। चारू दिस पानिए पानि। एहनामे डॉक्टरो-बैद केँ कि क्यो आसानीसँ बजा आनि सकैत अछि?
साँच पूछू तँ हम एकटा बात कही, हरिक भक्तिमे निश्चये कोनो-ने-कोनो खोट हेतैक यैह कारण छैक जे ओ आइ तेसर बेर नागपंचमी नहि मना सकत।
हँ सत्ते ..... काल्हि तँ नागपंचमी छैक? माटिकेँ तँ हाथो नहि लगा सकैत छी, आ एहनामे जँ चिलका मरि गेलैक तँ ओकरा गाड़तैक कोना?

हरिकेँ किछुओ नहि सुझैक। काल्हि नागपंचमी छैक आ माटिकेँ घवाह नहि करबाक चाही। जँ चिलका भोरहि मरि गेल तँ शव अंतिम संस्कारक बिना भरि दिन आर भरि राति घरहिमे पड़ल रहत.....आर......
ओ आर किछु नहि सोचि सकल...... उठल आ घरक कोनमे पड़ल कोदारि आ गैंता ल’क’ घरक बाहर निकलि गेल अन्हारेमे।
ओ खाधि खुनब सुरह क’ देलक.....
काल्हि मर’ वला चिलकाकेँ गाड़बाक लेल.......!
1

सुरेश चौपाल said...
ehi site par aynai aab dincharya me shamil bhay gel achhi,
वसंत भगवंत सावंत/ श्री सेबी फर्नानडीस/डॉ.शंभु कुमार सिंह teenoo gote keहरि भगत ker jivanak hriday vidarak ghatnak kathak prastuti lel shabdak abhav bhay gel achhi.
Reply05/15/2009 at 11:26 PM
2

रघुबीर मंडल said...
bah, badhi aa dabai ki nikgar katha,
kosi mon pari gelih
Reply05/15/2009 at 11:17 PM
3

केशव महतो said...
hriday vidarak katha, dhanyavad savant ji
Reply05/15/2009 at 11:11 PM
4

प्रियंका झा said...
ee column sidha karait achhi je sause bharat ek achhi
Reply05/15/2009 at 10:56 PM
5

Khattar said...
1. नदीमे आयल बाढ़ि के देखैत छल
2.हरि मंदिरसँ आनल भेभूत चिलकाक माथ पर लगा देलकैक।
konkan pradesh me seho sabhta apane sabh dis jeka chhaik,
bhabhoot te hamro sabh ke bokhar me lagaol jaait chhal
Reply05/15/2009 at 10:51 PM
6

नीलिमा चौधरी said...
हरिकेँ किछुओ नहि सुझैक। काल्हि नागपंचमी छैक आ माटिकेँ घवाह नहि करबाक चाही। जँ चिलका भोरहि मरि गेल तँ शव अंतिम संस्कारक बिना भरि दिन आर भरि राति घरहिमे पड़ल रहत.....आर......
ओ आर किछु नहि सोचि सकल...... उठल आ घरक कोनमे पड़ल कोदारि आ गैंता ल’ क’ घरक बाहर निकलि गेल अन्हारेमे।
ओ खाधि खुनब सुरह क’ देलक.....
काल्हि मर’ वला चिलकाकेँ गाड़बाक लेल.......!
anuvad etek nik te original katek nik hoyat
bah
Reply05/15/2009 at 10:47 PM
बालानां कृते-
1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); आ 2. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी

1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)

देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्र्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)

नताशा: मैथिलीक पहिल-चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
नीचाँक दुनू कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा पाँच

नताशा छह


1

प्रियंका झा said...
sause shor achhi natashak
Reply05/15/2009 at 10:55 PM
2

Khattar said...
natasha mohi lela,
deviji seho.
rojnamacha jyoti jik nik lagal
Reply05/15/2009 at 10:55 PM
3

Jyoti said...
Sabsa neek achi Natasha ke cartoon chitrakaari. Bad neek shuruaat achhi
Reply05/07/2009 at 02:11 PM
4

মধূলিকা চৌধবী said...
nataasha apan sthan banaot maithilik nena bhutka sahitya me
Reply05/07/2009 at 02:06 PM
5

AUM said...
natasha ati sundar
Reply05/05/2009 at 06:03 PM
6

Umesh Mahto said...
natasha mon mohi lelak, jyotijik devijik katha aa chitra dunu nik,
madhdyapradesh yatra seho uttam
Reply05/05/2009 at 02:12 PM
7

Umesh said...
online dictionary bad nik, bahut ras science computer ker navin shabd.
Reply05/05/2009 at 02:09 PM
8

Preeti said...
Devanshu Vats Ker cartoon aa Jyotijik Madhyapradesh Yatra aa Deviji Dunu bad nik lagal.
Reply05/05/2009 at 12:14 PM
9

Krishna Yadav said...
Devanshu Vatsa Ker cartoon bad nik lagal.
Reply05/05/2009 at 12:13 PM
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2.
मध्य प्रदेश यात्रा- ज्योति
दशम दिन
1 जनवरी 1992
प्ले टफार्ममे नववर्ष मनाबैके हमर सबहक ई पहिल अवसर छल।हमसब ट्रेनक प्रतीक्षा करै छलहुँ।ट्रेन तऽ लेट छल लेकिन नव साल 1992 ठीक बीच राति बारह बजे आबि गेल। हम सब घड़ी पर नजरि रखने रही। 12 बजिते देरी सब जोर सऽ हल्ला केलहुँ ‘हैपी न्यू ईयर’।गाड़ी डेढ़ बजे मे स्टेशन पहुँचल।हमसब पूर्वारक्षिक बॉगीमे अपन राति कटलहुँ।भोरे भोजनके समय तक हमसब उज्जैन पहुँचि गेलहुँ।ओतय एक एहेन होटलमे रूकलहुँं जाहिमे प्रवेशक नज़दीक बीचोबीच श्रीराम़ श्री लक्ष्मण आर माता सीताक मूर्त्ती छल।अहि दुआरे ई एक धर्मशाला जकाँ लागैत छल।हमर सबहक अभिभावक सबके ई जानि बहुत खुशी हेतैन जे हमसब वर्षक पहिल दिन महाकवि कालिदासक जन्मस्थलीमे बितेलहुँ।अतक यात्रा हमरा सबके एक नया अनुभव देबै वला छल कारण हमसब तांगा पर भ्रमण करै वला छलहुँ। मुदा आहि नहि काल्हि।आहि हमरा सबके नववर्षक उपलक्ष्यमे किछु रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करैके छल।हमसब तैयारीमे जुटि गेलहुँ।होटलके मूर्त्तिमे रोज सांझकऽआरती होयत छल से हमरा सबके नहिं बुझल छल।ठीक आरती बेर मे हमर सबहक तैयारी चलै छल। पूजाबेरमे फिल्मीगाना बहुत गलत लगलै सबके आ ताहि द्वारे हमरा सबके कनिक उपेक्षाक भागी सेहो बनऽ पड़ल। बेस़ हमर सबहक सांस्कृतिक कार्यक्रम काल्हिलेल स्थगित भऽ गेल।

देवीजी : ज्योति
देवीजीः सौर्य ऊर्जा


गर्मी सऽ सब परेशान छल।ताहि पर सऽ बिजली चली गेल।सब जगह सहित विद्यालय मे सेहो खलबली मचि गेल।आब तऽ सब लाह बाह छल। देवीजी अपन बच्चा सबहक परेशानी देख विचलित भऽ गेली।तुरन्त प्रधानाध्यापक लग जेनेरेटर लगाबैके निवेदन लऽ कऽ गेली। प्रधानाध्यापक कहलखिन जे तत्का्ल तऽ ओ जेनेरेटरक व्यवस्था कऽ देथिन मुदा ई बहुत खर्चीला छै तैं बेसी देर लेल नहिं कैल जा सकैत छै। बेस कम सऽ कम कनिक देर लेल तऽ सबके आराम भेटलै।फेर कनिये काल मे बिजली आबियो गेल। सबलेल तऽ ई बड्रड सहज घटना छल मुदा देवीजीके संताेष नहिं भेटलैन।
अगिला दिन ओ सौर्य ऊर्जाक पूरा जानकारी लऽ कऽ एली।तकर बाद विशेष सम्मेलन भेल। प्रधानाचार्य के विद्यालय एवम् गाम मे सौर्य ऊर्जाक प्रयोगके उचित व्यवस्था करैके प्रस्ताव बहुत नीक लगलैन।विद्यालयमे किछु विशेष चहल पहल के भनक तऽ बच्चा सबके लागिये गेल छल।फेर गर्मी छुट्टीक शुभकामनाक संग बच्चा सबके ई काज देल गेल जे गाम भरिक लोक सबके जमा करू एक दिन जहिया हुनका सबके सौर्य ऊर्जाक जानकारी देल जायत आ फेर सऽ पिछला सालक रूकल साक्षरता अभियान शुरू कैल जायत।
शिक्षकक आज्ञानुसार सब विद्यालयमे सांझकऽ जमा भेल।तखन देवीजी सबके जानकारी देलखिन जे सूर्यक गर्मी जाहि सऽ हम सब कतेक परेशान रहै छी ताहि सऽ बिजली बनायल जा सकैत छै।सौर्य उर्जा सऽ चलै वला काऱ बल्ब़ कूकर इत्यारदि तऽ काफी प्रचलित भऽ चुकल छै।परन्तु हम सब गाममे पैघ पैमाना पर साैर्य ऊर्जाक सदुपयोग कर चाहै छी।हम सब सौर्य ऊर्जा सऽ बिजली बनाबक बात कऽ रहल अछि। एहेन उपकरण सब लगाओल जायत जाहि सऽ सूर्यक गर्मी सऽ बिजली उत्पा दन होयत आर ओहि बिजलीक उपयोग विद्यालय मे़ सड़कक कात के बल्बमे तथा अन्य सार्वजनिक स्थान पर लोकके सुविधा प्रदान करैलेल कैल जायत। अहि विकासकार्य मे सफलताक बाद अगिला कार्य होयत लोकक घरमे सौर्य उर्जा सऽ निर्मित बिजलीक व्यवस्था केनाई।
प्रधानाचार्य आश्वासन देलखिन जे हुन्का पूरा विश्वास छैन जे सरकार सऽ आर्थिक एवं तकनीकि सहायता भेटतैन आ ओ यथाशीघ्र अपन आवेदन लऽ कऽ क्षेत्र के विकास मंत्री लग जेता। सबके लेल ई खबरि चिलमिलाइत गर्मीमे एक शीतल अमृतवृष्टि सऽ कम नहिं छल।गामक विकासक एक आर डेग देवीजीक सहायता सऽ आगाँ बढल।

बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
इंग्लिश-मैथिली कोष/ मैथिली-इंग्लिश कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)
Language: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.


केशव महतो said...
shabd sabhak modern sankalan bejor
Reply05/15/2009 at 11:10 PM
2

मनोज.सदाय said...
online dictionary ati sundar
Reply05/15/2009 at 11:08 PM
भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीक मानक लेखन-शैली

1. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली आऽ 2.मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली

मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए। हमसभ हुनक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।
पोथीक वर्णविन्यास कक्षा ९ क पोथीसँ किछु मात्रामे भिन्न अछि। निरन्तर अध्ययन, अनुसन्धान आ विश्लेषणक कारणे ई सुधारात्मक भिन्नता आएल अछि। भविष्यमे आनहु पोथीकेँ परिमार्जित करैत मैथिली पाठ्यपुस्तकक वर्णविन्यासमे पूर्णरूपेण एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।

कक्षा १० मैथिली लेखन तथा परिमार्जन महेन्द्र मलंगिया/ धीरेन्द्र प्रेमर्षि संयोजन- गणेशप्रसाद भट्टराई
प्रकाशक शिक्षा तथा खेलकूद मन्त्रालय, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र,सानोठिमी, भक्तपुर
सर्वाधिकार पाठ्यक्रम विकास केन्द्र एवं जनक शिक्षा सामग्री केन्द्र, सानोठिमी, भक्तपुर।
पहिल संस्करण २०५८ बैशाख (२००२ ई.)
योगदान: शिवप्रसाद सत्याल, जगन्नाथ अवा, गोरखबहादुर सिंह, गणेशप्रसाद भट्टराई, डा. रामावतार यादव, डा. राजेन्द्र विमल, डा. रामदयाल राकेश, धर्मेन्द्र विह्वल, रूपा धीरू, नीरज कर्ण, रमेश रञ्जन
भाषा सम्पादन- नीरज कर्ण, रूपा झा

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
Reply05/15/2009 at 11:01 PM
2




English Translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated into English by Smt. Jyoti Jha Chaudhary Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed athttp://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title“KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in

Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.comand her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.

The Comet



English Translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated into English by Smt. Jyoti Jha Chaudhary

These unanswered questions restarted troubling him in his dreams. Sometimes he felt that he was in the open edge roof and started moving towards the edge without boundary. A mysterious gravity was pulling him until he was fallen down. Was that a direction life was moving in or a sign of future dangers. Aaruni couldn’t find the time when he went to sleep and later on he concluded that dream and sleep were two mysteries of human life which couldn’t be answered.
Aaruni grew up. He entered into his student life by learning the shlok that was actually a prayer to the Goddess Saraswati – a Goddess of knowledge and learning following the second shlok which was a prayer to Shiva and Parvati.
While reciting the second shlok Aaruni used to laugh loudly. Father thought that Aaruni would not take study as a punishment and would not get habbit of holding his head while sitting on the chair for studying if he would start studying at the young age. He learnt one to hundred in one sitting. He found it very easy to learn numbers from twenty one at it had some kind of rhyming.
He was irritated with one habit of his mother. His mother used to neglect him when someone else was at home. His mother’s friend had come to his house one day. His mother was so much busy with her that she ignored him. Aaruni was holding a bunch of keys and he warned his mother that if he was not listened to then he would throw that bunch into the ditch in from of the house. His mother thought that if she would give value now then he could be more violent. So she ignored him. The result was same for either situation. The keys are still missing and still all almirahs have duplicate keys. These childhood memories brought a smile in Aaruni’s face.
The father was often being troubled because of his principles so he was very eager to see Aaruni grown up. He got promotion from third class to fifth class. It was compulsory to go to village in every Holi and Durga Puja. Father returned by leaving everything. But his salary was stopped for a while so a letter came from village that they would have to stay in village. Mother started crying but Aaruni was very happy.
(continued)
1

सुरेश चौपाल said...
These unanswered questions restarted troubling him in his dreams. Sometimes he felt that he was in the open edge roof and started moving towards the edge without boundary. A mysterious gravity was pulling him until he was fallen down. Was that a direction life was moving in or a sign of future dangers. Aaruni couldn’t find the time when he went to sleep and later on he concluded that dream and sleep were two mysteries of human life which couldn’t be answered.
best english translation of a maithili novel i have ever seen.
Reply05/15/2009 at 11:22 PM
2

रघुबीर मंडल said...
the translation is of top quality,
aaruni's life curve is taking turn.
Reply05/15/2009 at 11:17 PM


महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट संस्करणक विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे।
महत्त्वपूर्ण सूचना (२): 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. प्रकाशित कएल जा रहल अछि: लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-1 e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com website:http://www.shruti-publication.com

महत्त्वपूर्ण सूचना:(३). पञ्जी-प्रबन्ध विदेह डाटाबेस मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण- श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत। पञ्जी-प्रबन्ध (शोध-सम्पादन, डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- तीनू पोथीक शोध-संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा Combined ISBN No.978-81-907729-6-9

महत्त्वपूर्ण सूचना:(४) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गिच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे।कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)-लेखक गजेन्द्र ठाकुर Combined ISBN No.978-81-907729-7-6

महत्त्वपूर्ण सूचना (५): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित। विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे।

महत्त्वपूर्ण सूचना (६):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।



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विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : देवनागरी
"विदेह" क २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित।

विदेह: प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/
विदेह: वर्ष:2, मास:13, अंक:25 (विदेह:सदेह:1)
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर

गजेन्द्र ठाकुर (1971- ) छिड़िआयल निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गिच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक (खण्ड 1 सँ 7 ) नामसँ। हिनकर कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे आ उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद संस्कृत आ अंग्रेजी(द कॉमेट नामसँ)मे कएल गेल अछि। मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली शब्दकोश आ पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन-आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण। अंतर्जाललेल तिरहुता यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास। ई-पत्र संकेत- ggajendra@gmail.com

सहायक सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा श्रीमति रश्मि रेखा सिन्हा (1962- ), पिता श्री सुरेन्द्र प्रसाद सिन्हा, पति श्री दीपक कुमार। श्रीमति रश्मि रेखा सिन्हा इतिहास आ राजनीतिशास्त्रमे स्नातकोत्तर उपाधिक संग नालन्दा आ बौधधर्मपर पी.एच.डी.प्राप्त कएने छथि आ लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर आलेख-प्रबन्ध सेहो लिखने छथि।सम्प्रति “विदेह” ई-पत्रिका(http://www.videha.co.in/ ) क सहायक सम्पादक छथि।
मुख्य पृष्ठ डिजाइन: विदेह:सदेह:1 ज्योति झा चौधरी
ज्योति (1978- ) जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी।ज्योतिकेँ www.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) ज्योतिकेँ भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि।
विदेह ई-पत्रिकाक साइटक डिजाइन मधूलिका चौधरी (बी.टेक, कम्प्यूटर साइंस), रश्मि प्रिया (बी.टेक, कम्प्यूटर साइंस) आ प्रीति झा ठाकुर द्वारा।
(विदेह ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ http://www.videha.co.in/ पर ई-प्रकाशित होइत अछि आ एकर सभटा पुरान अंक मिथिलाक्षर, देवनागरी आ ब्रेल वर्सनमे साइटक आर्काइवमे डाउनलोड लेल उपलब्ध रहैत अछि। विदेह ई-पत्रिका सदेह:1 अंक ई-पत्रिकाक पहिल 25 अंकक चुनल रचनाक संग पुस्तकाकार प्रकाशित कएल जा रहल अछि। विदेह:सदेह:2 जनवरी 2010 मे आएत ई-पत्रिकाक 26 सँ 50म अंकक चुनल रचनाक संग।)

Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)
विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)
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"मिथिला दर्शन"

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कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 200.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 180.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
बडक़ू चाचा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 195.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


कविता-संग्रह



या : शैलेय प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 160.00
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कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.225.00
लाल रिब्बन का फुलबा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु.190.00
लूओं के बेहाल दिनों में : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 195.00
फैंटेसी : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.190.00
दु:खमय अराकचक्र : श्याम चैतन्य प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 190.00
कुर्आन कविताएँ : मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 150.00
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विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 165.00
पुस्तक मंगवाने के लिए मनीआर्डर/ चेक/ ड्राफ्ट अंतिका प्रकाशन के नाम से भेजें। दिल्ली से बाहर के एट पार बैंकिंग (at par banking) चेक के अलावा अन्य चेक एक हजार से कम का न भेजें। रु.200/-से ज्यादा की पुस्तकों पर डाक खर्च हमारा वहन करेंगे। रु.300/- से रु.500/- तक की पुस्तकों पर 10%की छूट, रु.500/- से ऊपर रु.1000/- तक 15% और उससे ज्यादा की किताबों पर 20% की छूट व्यक्तिगत खरीद पर दी जाएगी ।
अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन :0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
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बया, हिन्दी छमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ
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उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00

कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007मूल्य रु. 90.00

शीघ्र प्रकाश्य

आलोचना

इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन

सामाजिक चिंतन

किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा

शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र

उपन्यास

माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन

कहानी-संग्रह

धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम

एक साथ हिन्दी, मैथिली में सक्रिय आपका प्रकाशन


अंतिका प्रकाशन
सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन,एकसटेंशन-II
गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
फोन : 0120-6475212
मोबाइल नं.9868380797,
9891245023
ई-मेल: antika1999@yahoo.co.in,
antika.prakashan@antika-prakashan.com
http://www.antika-prakashan.com
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
२.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
३.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
४.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादव
५.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
६.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशर
७.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
८. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता” प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-)
९/१०/११ 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर१.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-1 ३.पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर , नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा ।
१२.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ "बलचन्दा"
१३. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर संचस्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1:तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु.100/-
श्रुति प्रकाशन, DISTRIBUTORS: AJAI ARTS, 4393/4A, Ist Floor,AnsariRoad,DARYAGANJ. Delhi-110002 Ph.011-23288341, 09968170107.Website: http://www.shruti-publication.com
e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...
मैथिली आ मिथिलासँ संबंधित कोनो सूचना एतए देबाक लेल ggajendra@videha.com किंवा ggajendra@yahoo.co.in केँ ई मेलसँ सूचित करी।
Reply05/12/2009 at 01:37 AM

संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रि‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भ' गेल।
विदेह

मैथिली साहित्य आन्दोलन

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