भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, June 14, 2009

विदेह'३५ म अंक ०१ जून २००९(वर्ष २ मास १८ अंक३५)- part ii

३. पद्य
३.१. आशीष अनचिन्हार

३.२. डॉ.शंभु कुमार सिंह-दू टा कविता
३.३.बड़का सड़क छह लेन बला-गजेन्द्र ठाकुर
३.४. विवेकानंद झा-तीन टा टटका पद्य
३.५. सतीश चन्द्र झा-सिंगरहारक फूल

३.६. जीवन यात्रा- सुबोध ठाकुर
३.७.हमर मीत- सन्तोाष कुमार मिश्र
३.८. ज्योति-टाइम मशीन





आशीष अनचिन्हार

गजल १
रचना कतेक टका लगतै सपना किनबाक लेल
जूटल घर सरदर अँगना किनबाक लेल

हम मुक्त छी राग-विराग प्रेम-घृणा सँ
रचना कतेक टका लगतै भावना किनबाक लेल

सत्त मानू हम काज करै छी लोकतंत्रक पद्धतिए
रचना कतेक टका लगतै पटना किनबाक लेल

पत्रकारिता गुलाम छैक टी.आर.पीक
रचना कतेक टका लगतै घटना किनबाक लेल

गजल २

सटै जँ ठोर अनचिन्हारक अनचिन्हार सँ त बुझिऔ होली छैक
बाजए जँ केओ प्यार सँ त बुझिऔ होली छैक

बेसी टोइया-टापर देब नीक नहि भाइ सदिखन अनवरत
निकलि जाइ जँ अन्हार सँ त बुझिऔ होली छैक

केहन- केहन गर्मी मगज मे रहै छैक बंधु
मनुख बचि जाए जँ गुमार सँ त बुझिऔ होली छैक

की दुख होइत छैक चतुर्थीक राति मे नहि बुझि सकबै
हँसी जँ आबए कहार सँ त बुझिऔ होली छैक

जहाँ कनही गाएक भिन्न बथान तहाँ सुन्न- मसान
होइ कोनो काज सभहँक विचार सँ त बुझिऔ होली छैक

गजल ३

यथा एन्नी तथा ओन्नी एन्नी-ओन्नी तथैव च
यथा माए तथा बाप मुन्ना-मुन्नी तथैव च

बलू हमर करेज जरैए अहाँ गीत लिखै छी
यथा भँइ तथा अच्छर पन्ना-पन्नी तथैव च

देखहक हो भाइ बोंगहक पोता कोना करै हइ
यथा मुल्ला तथा पंडित सुन्ना-सुन्नी तथैव च

देवतो जड़ि पकड़ै हइ मुहेँ देखि कए बचले रहू
यथा मौगी तथा भूत ओझा-गुन्नी तथैव च

बान्हि क भँइ दूरा पर मगबै ढ़ौआ पर ढ़ौआ
यथा समधी तथा समधीनी बन्ना-बन्नी तथैव च

की करबहक हो भगवान एमरी सभ के
यथा मरनाइ तथा जिनाइ रौदी-बुन्नी तथैव च

बचले रहिअह अनचिन्हार एहि गाम मे सदिखन
यथा साँप तथा मनुख जहर चिन्नी तथैव च



गजल ४
मोन पडै़ए केओ अनचिनहार सन
साइत कहीं इहए ने हो प्यार सन

जे नहि कमा सकए टका बेसी सँ बेसी
लोक ओकरे बुझैत छैक बेकार सन

समय कहाँ कहिओ खराप भेलैए
कमजोर आँखि के लगिते छैक अन्हार सन

किछु देखलिअइ चोके अनचोके मे
चोरक मुँह लगैए पहरेदार सन
(अगिला अंकमे जारी)
1

रघुबीर मंडल said...
पत्रकारिता गुलाम छैक टी.आर.पीक
रचना कतेक टका लगतै घटना किनबाक लेल
dhanya chhi aashish ji,
patrakarita ke dekhar karbak lel dhanyavad
Reply06/08/2009 at 09:50 AM
2

Usha Yadav said...
आशीषजीक किछु दिनमे मारते रास फैन बनएबला छन्हि।
Reply06/07/2009 at 12:23 PM
3

मनोज.सदाय said...
jhuma delahu bhay
Reply06/06/2009 at 11:25 PM
4

vivekanand jha said...
भाई !
सॊझे-सॊझ कहू ?
मजा आबि गेल
आ जखन सॊझे-सॊझ मजा आबि जाय त बुझिऔ हॊली छै
Reply


डॉ.शंभु कुमार सिंह
जन्म : 18 अप्रील 1965 सहरसा जिलाक महिषी प्रखंडक लहुआर गाममे। आरंभिक शिक्षा, गामहिसँ, आइ.ए., बी.ए. (मैथिली सम्मान) एम.ए. मैथिली (स्वर्णपदक प्राप्त) तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। BET [बिहार पात्रता परीक्षा (NET क समतुल्य) व्याख्याता हेतु उत्तीर्ण, 1995] “मैथिली नाटकक सामाजिक विवर्त्तन” विषय पर पी-एच.डी. वर्ष 2008, तिलका माँ. भा.विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। मैथिलीक कतोक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे कविता, कथा, निबंध आदि समय-समय पर प्रकाशित। वर्तमानमे शैक्षिक सलाहकार (मैथिली) राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर-6 मे कार्यरत।

१.अतीत
अतीत छल, थिक वर्तमान
आब ओ सम्हार’
चाहै छी जे काल्हि थिक
अतीतक पन्ना पढ़िकए बुझाइत अछि
ओ नीक-बेजाए, अल्हड़, बीहड़
जे किछु छल
अपना समय केर साक्षी
आ आब’ वला काल्हि केर लेल
ज्ञान केर सागर छल
अतीत जे लेलक
ओ स्मृति थिक
जे देलक
ओ स्थिति थिक
ई वर्तमान केर बात थिक
जँ स्मृति आ स्थितिक मंथन करी
तँ काल्हुक भविष्य....
भ’ सकैछ नीक।

२.आस

कटि जाएत राति
फेर आओत दिवस
ल’ संग रितु पावन पावस
छी एखन विवश !
छी तम मे समय विषम मे,
झंझावात भरल अछि हमरा जीवन मे
भ’ मुखरित एहि असार संसार मे
नित नव भाव-उल्लास
संजोगने मोन मे आस
छी आस मे आब’ वला काल्हि केर
सत्य, स्वच्छन्द, कर्मफलदायी
समय चपल केर!
1

रघुबीर मंडल said...
फेर आओत दिवस
ल’ संग रितु पावन पावस
छी एखन विवश !
shambhu jik kavita khoob-khoob nik klagal
Reply06/08/2009 at 09:40 AM
2

Usha Yadav said...
शम्भुजीक कवितामे बनवीनता अछि।
Reply06/07/2009 at 12:23 PM
3

Usha Yadav said...
SHAMBHU SINGH JIK DUNOO KAVITA BAD NIK LAGAL
Reply06/06/2009 at 11:50 PM
4

मनोज.सदाय said...
shambhu ji bad nik lagal ahank kavita atit
अतीतक पन्ना पढ़िकए बुझाइत अछि
ओ नीक-बेजाए, अल्हड़, बीहड़
जे किछु छल
अपना समय केर साक्षी
आ आब’ वला काल्हि केर लेल
ज्ञान केर सागर छल
अतीत जे लेलक
ओ स्मृति थिक
जे देलक
aa dosar kavita aas seho
कटि जाएत राति
फेर आओत दिवस
ल’ संग रितु पावन पावस
छी एखन विवश !
Reply06/06/2009 at 11:27 PM

गजेन्द्र ठाकुर,जन्म ३० मार्च १९७१ ई.,गाम-मेंहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी,“विदेह” ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/ ,क सम्पादक जे आब प्रिंटमे सेहो मैथिली साहित्य आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि।१.छिड़िआयल निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, २.उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) ,३. पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), ४.कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ),५.नाटक(संकर्षण), ६.महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन)
आ ७.बाल-किशोर साहित्य (बाल मंडली/ किशोर जगत ) कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक (खण्ड १ सँ ७ ) नामसँ। हिनकर कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे आ उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद अंग्रेजी ( द कॉमेट नामसँ) आ संस्कृतमे कएल गेल अछि। मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोश आ पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण। अंतर्जाल लेल तिरहुता यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास।मैथिलीसँ अंग्रेजीमे कएकटा कथा-कविताक अनुवाद आ कन्नड़, तेलुगु, गुजराती आ ओड़ियासँ अंग्रेजीक माध्यमसँ कएकटा कथा-कविताक मैथिलीमे अनुवाद। ई-पत्र संकेत- ggajendra@gmail.com

बड़का सड़क छह लेन बला-गजेन्द्र ठाकुर

माए!
माए धानक खेत लग,
जे बड़का सड़क बनल अछि,
छह लेनक,
तीन टा आबएबला आ तीनटा जाइबला।

ओतए आइ,
कतेक नीक लाल रंगक कार,
सीसा खुजल नहि रहए जकर, रहए बन्न,
देखलहुँ आइ,
जखन बेचैत रही हम चिड़ै।

एकटा बच्चा जिदिया गेल,
खोलबेलक कारक शीसा आ
कीनि लेलक हमर सभटा चिड़ै,
पानि रहए ओहि बच्चाक मूहपर,
सीसा खुजिते बहार भेल ठंढ़ा हबा,
कार ए.सी.बलासँ जे रहए लाल रंगक।

माए !
माए ई जे धानक खेत लग,
जे बड़का सड़क बनल अछि,
छह लेनक, रंग-बिरंगक गाड़ी सभक लेल,
तीनटा अबैबला आ तीनटा जाइबला ओतहि।

माए !
ई तँ अपने गामक सड़क भेल ने,
मुदा अपन गामक तँ सभ गोटे गेलाह,
जाइ गेलाह कमएबाक लेल, दिल्ली आ पैंजाब।

गाममे माटिक घर,
फूस आ खपड़ाक चार।

मुदा धानक खेत लग,
जे बड़का सड़क बनल अछि,
पक्काक,
चिक्कन आ घरोसँ बेशी सुन्नर ई सड़क,
ओतहि देखलहुँ ई आइ।

माए !
सुनै छियै बनल अछि कोनो,
वर्ल्ड बैंकक फंडसँ,
पकिया, चिक्कन-चुनमुन ई सड़क,
छह टा लेनबला,
सीसा सन अछि ई चमकैत !

माए !
जे परुकाँ साल काकाक,
घर जे काकाक बनल रहए पक्काक,
गिलेबा बला,
जे कनिये दिनमे खसि गेल रहए,
ओहो कोनो सरकारी फन्डसँ बनल रहए !

कहाँ छल चमकैत ओ शीसा सन ,
ओहिमे रहितो लोक छल डराइत,
भने खसि पड़ल।

मुदा होएत ओ कोनो नकली फन्डसँ बनल ,
आइ तँ ओहि कारक शान देखलहुँ,
वर्ल्ड बैंकक फन्डसँ बनल,
अप्पन गामक एहि छह लेनबला सड़कपर !!

माए !
ई वर्ल्ड बैंक बला फन्ड कोनो नीक फन्ड अछि !
एहि निकहा फन्डसँ घर नहि बनैत छैक की ?

खेनाइ भोजन आ रोजगार जे दैतैक ई निकहा फन्ड तँ ,
तँ किएक लोक पड़ाइत दिल्ली आ पैंजाब ,
किएक सुनितए राज ठाकरेक गारि,
किएक जाइत गए खुनाहनि होइ लेल असाम,
सुनै छियैक पढ़ै जाइ छै बिहारी कहि गारि।

माए !
एहि वर्ल्ड बैंक बला निकहा फन्डसँ,
जे बनि जइतैक अपन गामक घर आँगन,
तँ ओ थोरबेक रहितैक गिलेबा बला पक्काक कोठा सन !

ओ तँ रहितैक ओहने सुन्नर सीसा सन चिक्कन,
छह लेनक धानक खेतक कात बला एहि सड़क सन ।

आ जे रोजगारो ओहि फन्ड सँ भेटितैक,
तँ लोको सभ रहितैक घरमे,
घर एखन जेकाँ भकोभन्न थोरबे रहितैक,
चुहचुही रहितैक अपनो गाममे ।

आ तखन जे देखबा जोग रहितैक शान अपन गामक !

आ देखबा जोग रहितैक शान एहि छह लेन बला सड़कक सेहो !

हमरो सभक अंगपर रहितए जे वस्त्र,
ओहने वस्त्र,
जेहन ओहि लाल कारमे बैसल बच्चाक रहए !

माए!
हमरा तँ लगैत रहैए जे,
हमर गामक ओ सड़क
ओहि लाल परदेशीक ओहि लाल कारसँ बेशी अछि लग ।

दुनू टा लगैए बिदेशी सन ।

लागल आइ जे ,
जे ओहि लाल कारक हबा सेहो अपन हबा नहि,
लागल जेना ओ हबा आ ओ कार हमरासँ छुता गेल होअए,
छुता गेल होअए हमर स्पर्शसँ।

अपन गाम अछि मयूर,
आ ओ छह लेन बला सड़क अछि एकर पाँखि,
आ हमरा सभ छी पएर ओहि मयूरक,
ई सड़क अप्पन गामक रहितो लागैए फॉरेनर।

माए !

सभ दिन बकड़ी चरबैत,

देखैत रहैत छी हम शान अप्पन गामक ओहि सड़कक,
जे अछि छह लेन बला !



1

रघुबीर मंडल said...
barka lane bala sarak sabh rojgarak samasya door kay paaot, pata nahi
Reply06/08/2009 at 09:39 AM
2

Usha Yadav said...
सामयिक कविता, धरगर, बहुत रास छद्न धारणाकेँ तोरैत।
Reply06/07/2009 at 12:24 PM
3

मनोज.सदाय said...
chhah len bala sarak dekhar kay delak development ke
Reply06/06/2009 at 11:29 PM
4

सुशांत झा said...
ई कविता एके संगे अपन समय के एकटा पैघ आख्यान थीक...आ वर्तमान विकास नीति पड़ एकटा पैघ व्यंग्य सेहो। बढ़िया, बहुत बढ़िया।
Reply06/01/2009 at 12:55 PM

विवेकानंद झा,वरिष्ठ उप-संपादक छथि नई दुनिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेडमे।
तीन टा पद्य

१.एहि संजॊग सँऽ हम करैत छी प्रेम


एकटा एहेन समय मे
जखन स्वयं ई समय
सबसे पैघ चिन्ता हॊ सबहिक
हम अपन भाषाक मादे
अपस्यांत छी

फिकिर करैत छी
अपना पर खसैत
प्रश्नक ओहि फुहारक
जे केओ आखिर
किएक लिखैत छै
कविता ओहि भाषा मे
जेकर पाठकक संख्या
विश्व में शायत
सबसे कम छैक ?

आ हम एहि प्रश्नक उत्तर
नहि देबा लेल
कृतसंकल्प छी हुनका
जनिक तर्कसंपन्न विभ्रमित दिमाग मे
ई प्रश्न लहराइत छैन
कॊनॊ विजयपताका-सदृश

मुदा मऽन में जवाब तऽ
उठिते छैक

समयिक धकिआयल
हऽम
सौभाग्यवश सटल छी
प्रेमक गिलेबा सँऽ चुनायल
विश्वास-विचारक मजगूत
देबार सँऽ
हमरा भेटल अछि सहारा
आ जे की हमरा हाथ मे
नहि छल
आ ने हमरा माइक हाथ मे
आ नहिए हमर नानी आ
नानीक नानी केँ हाथ मे
जे ओ चुनि सकितै
अपन मातृभाषा
आ विद्यापति केँ अपन कविश्रेष्ठ
ई एकटा संजॊग छल
आ एहि संजॊग सँऽ
हम करैत छी प्रेम
आ लॊक ईष्या

कॊनॊ भाषा नहि चुनैत छै
अपन कवि आ अपन भाषा-भाषी
आ कॊनॊ भाषाक क्षमता
तय नहि करैत छै समय

ओ तऽ कविक कान्ह पर पड़ल छै
ठॊस जिम्मेदारी बनिके
एहि अतिसुंदर संजॊगक
की हम मैथिल छी

आ जाहि पहिचानक बिना
काज तऽ चलै छै
मुदा तहिना जेना
एहि देशक सत्तैर प्रतिशत
जनताक काज चलैत छै
20 टका रॊज कमा क‍ऽ



२.कहियॊ गलती सँऽ



कहियॊ गलती सँऽ
सौभाग्य की दुर्भाग्य सँऽ
देख लैत छी साँझ
शहर मे
तऽ नहि रहल हॊइत अछि
शहर मे

मऽन पड़ैत अछि
गामक मुनहारि साँझ
आ भगवती घर से
बहराइत काकी
आँचरक ओट में लेने दीप
आ नहुँए-नहुँए आङनक दॊसर कॊन धरि
जाइत तुलसी चौरा लग
ठॊढ़ पटपटबैत
आ जे की बाद मे बुझलिअय
करैत छल हमरे सबहिक उन्नतिक कामना

तहिना कहियॊ गलती सँऽ
सौभाग्य की दुर्भाग्य सँऽ
देख लैत छी भॊर
शहर मे
तऽ नहि रहल हॊइत अछि
शहर मे

मऽन पड़ैत अछि्
गामक साकांक्ष भॊर
चापाकऽल पर घऽरक समस्त
बरतन-बासन मांजैत माइ
कऽल चलबैत काकी
अंङना नीपैत बड़की बहीन
तत्परता सँऽ
चूल्हा पजारैत छॊटकी
आ जे की बाद मे बुझलिअय
करैत छल हमरे जलखइक तैयारी
ओकरा सबकेँ नहि छलैक अपन कॊनॊ फिकिर
आ एम्हर
जखन हम शहर मे रहैत छी
देवलॊक सँऽ हमर माइ आ काकी
तऽ कॊनॊ-कॊनॊ गामक संघर्षलॊक सँऽ
हमर बहीन सब
सतत करैत रहैत अछि हमर कुशलक कामना
बूझल अछि हमरा

फेर कहियॊ गलती सँऽ
सौभाग्य की दुर्भाग्य सँऽ
देख लैत छी दुपहरिया
शहर मे
तऽ नहि रहल हॊइत अछि
शहर मे

मऽन पड़ैत अछि्
गामक प्रचंड रौद आ अटट्ट दुपहरिया
ओहि काल कतहु सँऽ
हहायल-फुहायल घुरैत बाबाक
मुँह सँऽ झहरैत चन्दा झा केर
पाँति - अरे बाबा दावानल सदृश लंका जड़ैये
आ हम बहीन आ माइक आँखि बचा के
निकलि जाइत रही लंका मिझबऽ लेल
आ उमकी धार मे ताधरि
जाधरि आँखि
लाल नहि भऽ जाइत छल
अरहुल फूल सन
तखन
मन पड़ैत छल माइ
जे करैत हॊयत चिन्ता
जॊहैत हॊयत गाम पर बाट
आ जखन
हम जायब अंङना
तऽ ओ तमसा कऽ खसि पड़त पैर पर हमर
आ जे की बाद मे बुझलिअय
ओकर एहन उनटल प्रतिक्रिया
हमर जीवैत रहबाक कामना छल

आ राति तऽ
सब दिन देखते छी शहर मे
वस्तुतः शहरक मतलब
रातिए हॊइत अछि
शायद
एहन राति
जाहि मे
तरेगन नहि हॊइत छैक
स्याह आकाश सेहॊ नहि

कहियॊ शहरक रातिक आकाश
भरि पॊख देखू त‍ऽ सही
बुझायत शहर माने
की हॊइत छैक

तखन मऽन पड़त
अहूँ केँ अपन गाम
फूल-पात, खेत-खरिहान,
मऽन पड़त अपन बाध-बऽन
आ ओहि मे
तीन तनुक बाती पर टांङल
खढ़क खॊपड़ि
ओकर मुँह पर भुकभुक जड़ैत-मिझाइत डिबिया
आ ओकर महत्व



३.मऽन मे सदिखन रहैत छी अहां



मऽन मे सदिखन
रहैत छी अहां
हे कविता

जेना जीवनक लौलसा हॊ
मृत्युशय्या पर पड़ल
कॊनॊ व्यक्तिक करेज मे

जेना मुक्तिक उजास
अनुकूल समयिक फिराक बनि
नुकायल हॊ कॊनॊ कैदीक अन्हार मे

मुदा हम की करी
जे एकटा एहन समय मे
जखन टूटि कऽ खसि रहल छै
एक-एक टा पात विवेक-विचारक
टूटि-भाङि रहल छै एक-एकटा डाढ़ि
परंपरा-विश्वासक एहि पतझड़ि मे
बसात बड़ तेज बहैत छै
तखन
हम रहै नहि पबैत छी
समयिक वर्तमान प्रवाह मे
डूमैत-उपराइत
आ नहिए रहि पबैत छी
ओहि मे हाथ धॊबा लेबा लेल तत्पर
आ चलि अबैत छी
बहुत पाछू
ओहि समय मे
जकरा बादहिँ सँऽ
सबकिछु बहुत तेजी सँऽ
लगलै बदलऽ
संघनक केर युक्तिक लय-ताल पर नचैत
हम देखलिए
जे जखन सौंसे दुनिया के
लागल रहै
एकमात्र चिन्ता
जे कॊना रमौने रहतै कंप्यूटर
अपन असंख्य अधुनातन प्रशंसक केँ
अपन वर्चुअल दुनिया में
के-2 केर मध्यरात्रिक पश्चात
की तखन हमर माय
संघर्ष करैत छलीह
भरि पॊख सांस भरि
लेबा लेल अपन छाती मे

आ जखन 2000 केर
31 दिसंबरक
अंतिम मिनट खत्म हॊइत-हॊइत
भरि पॊख सांस भरि देलकै
सौँसे दुनियाक कंप्यूटरप्रेमी लॊकनिक
छाती मे गौरवक
की हम हैंग भऽ गेल रही

हमर माइ असमर्थ भऽ गेल छल
अपन बीमार फेफड़ा सँऽ
खींच सकबा में,
आ ओहिमे भरि सकबा में
ओकर एक कॊन भरि सांस
एकटा एहन समय मे
जखन गणितक
असंख्य जॊड़-घटावक बल पर
लॊक कऽ सकैत अछि किछुओ
बना सकैत अछि
रॊबॊट केँ द्रॊणाचार्य
आ जे की तय छै
आब आवश्यकता नहि पड़तै
बालकक उपनयन केर
नहि रहतै गरु-शिष्य परंपरा
छौ ताग-तीन प्रवर
नहि जुटतै भौजी-काकी-मैयां
गाबऽ लेल शुभै हे शुभै
आ केओ नहि जेतीह
ब्रह्मक थान
आ बूढ़-पुरानक आंचर मे
नहि खसतै-समटेतै केश मुंडन केर
सुदीर्घ लॊक-परंपराक
नेटवर्क भाङि जेतै
अकस्मात सब लेल
बेसी महत्वपूर्ण भऽ जेतै
समुद्रक अतल गहराई मे लटकल
ऑप्टिकल फाइबरक मॊटका तार

लसकल रहतै सदिखन
हमर चिन्ता मे एकटा फांक बनिकऽ

आब आतंकवादी ओकरा नष्ट करबाक
करतै ओरियान
आ कंप्यूटर केर उपयॊग-उपभोग मे
इतराइत हम
बिन प्रयासहिँ नष्ट कऽ देबै
अपन असंख्य स्मृति-अपन असंख्य आख्यान

मुदा ईहॊ तय
जे कॊनॊ द्रॊणाचार्य
नहि काटि सकतै
कॊनॊ एकलव्यक औँठा

तेँ हम विरॊधी
नहि बनि सकबै
नव गति-नव संचारक

बस अफसॊस रहतै
एतबे
जे कहिया
एतेक कऽ लैबे प्रगति हमसब
जे कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीटक बटन के
बेर-बेर हौले-हौले दाबि
कऽ लेबै
अपन जिनगी केँ
रीस्टार्ट
जखन जरूरति पड़तै
बेर-बेखत
जखन केओ
तॊड़ि देतैय हृदय
आ हैंग भऽ जेतै जिनगी
तऽ बेर-बेर हौले-हौले दाबि उठबै
की पैडक कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीट बटन केँ हमसब
आ रीस्टार्ट कऽ लेबै
अपन ठमकल समय-ठमकल जिनगी
बेर-बेर रीफ्रेश करैत रहबै
माउस के राइट क्लिक करैत

मुदा तखनॊ
जेहन हॊ
हमर-अहांक दुनिया
हम हंसबै तऽ कविता बनतै
हम कनबै तऽ कविता बनतै
सतत करैत रहबै
प्रेम कविता सँऽ
आ सबहिक प्रेम
बनल रहतै
कविता सँऽ

एम्हर
एतबा धरि
अवश्य अछि विश्वास
जे ओकरा नहि पड़तै आवश्यकता
कॊनॊ कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीटक बटन केर
बेर-बेखत हौले-हौले
फूल सन कॊमल स्पर्शक
औनाइत, की प्रफुल्लित
मऽन मे
ओ बनैत रहतै
नव अवसर-नव विधानक
रूप-रेखा खींचैत


1

रघुबीर मंडल said...
बेर-बेखत
जखन केओ
तॊड़ि देतैय हृदय
आ हैंग भऽ जेतै जिनगी
तऽ बेर-बेर हौले-हौले दाबि उठबै
की पैडक कंट्रॊल-ऑल्ट-डीलीट बटन केँ हमसब
आ रीस्टार्ट कऽ लेबै
अपन ठमकल समय-ठमकल जिनगी
bah bhai vivekanand ji
Reply06/08/2009 at 09:43 AM
2

Usha Yadav said...
विवेकानन्द जी। अहाँक कविताक नहीं तँ प्रवाह रुकत आ नहिये पाठक कमी प्रतीत होएत, बस आगाँक रस्ता निकालैत रहू जाहिसँ ओहिपर अहाँक संग दोसरो बढि सकथि।
Reply06/07/2009 at 12:26 PM
3

Usha Yadav said...
VIVEKANAND JI, EHINA NAV NAV CONCEPT LAY LIKHAIT RAHOO
Reply06/06/2009 at 11:50 PM
4

मनोज.सदाय said...
bhajar ahan kavita sabh me jan rahai chhai
हम हंसबै तऽ कविता बनतै
हम कनबै तऽ कविता बनतै
सतत करैत रहबै
प्रेम कविता सँऽ
आ सबहिक प्रेम
बनल रहतै
कविता सँऽ
Reply06/06/2009 at 11:28 PM




सतीश चन्द्र झा,राम जानकी नगर,मधुबनी,एम0 ए0 दर्शन शास्त्र
समप्रति मिथिला जनता इन्टर कालेन मे व्याख्याता पद पर 10 वर्ष सँ कार्यरत, संगे 15 साल सं अप्पन एकटा एन0जी0ओ0 क सेहो संचालन।
सिंगरहारक फूल

सिंगरहार के फूल गाछ सँ
छै छीटल सगरो झड़ि झड़ि क’।
बीछि रहल अछि अपन खोंछि मे
के युवती आँजुर भरि भरि क’।

अनचिन्हार अछि कोना रोकि क’
नाम पता ओकरा सँ पुछियौ।
तोड़ि लेत किछु आन आबि क’
कोना फूल ओकरे लय धरियौ।

चढ़ा रहल छल फूल कतय ओ
कहाँ पुछलियै कहियो ओकरा।
छलथि देवता अथवा दोसर
पूज्य कियो छल आरो ओकरा।

उज्जर दप - दप देह चान सन
वएस काँच यौवन नव उतरल।
सुन्दरता के देखि मुग्ध भ’
भोरक किरिण आबि छल ठहरल।

मह मह गंध देह सँ ओकरे
आबि रहल अछि किछु रहि रहि क’।
बेकल भेल अछि कोइली तरू पर
कू कू स्वर मे किछु कहि कहि क’।



स्नेहक छै किछु बात होइत छल
की की बाजू कोना मोन मे।
बीतत साँझ फेर ओ आयत
देख लेब भरि आँखि भोर मे

समय बदललैै देखलहुँ भोरे
सुन्न भेल छल गाछ झहड़ि क’।
ताकि रहल छी बाट आइ हम
आयत कहिया फूल उतरि क’।

चंचल मोनक मधुर कल्पना
जगा रहल अछि किछु कहि कहि क’।
सुना रहल अछि गीत कान मे
शीतल पवन मंद बहि बहि क’।
.....................................

1

रघुबीर मंडल said...

स्नेहक छै किछु बात होइत छल
की की बाजू कोना मोन मे।
बीतत साँझ फेर ओ आयत
देख लेब भरि आँखि भोर मे
bah bhai satish ji
Reply06/08/2009 at 09:44 AM
2

Usha Yadav said...
सतीशजी। अहाँक कविता अहाँक ट्रेडमार्क बनत। कवितामे एहिना वैविध्य आनैत रहू।
Reply06/07/2009 at 12:27 PM
3

मनोज.सदाय said...
चंचल मोनक मधुर कल्पना
जगा रहल अछि किछु कहि कहि क’।
सुना रहल अछि गीत कान मे
शीतल पवन मंद बहि बहि क’।
bah bhai, hilkor uthbait rahay chhi ahan
Reply06/06/2009 at 11:30 PM
4

satish said...
अपन गाम अछि मयूर,
आ ओ छह लेन बला सड़क अछि एकर पाँखि,
आ हमरा सभ छी पएर ओहि मयूरक,
ई सड़क अप्पन गामक रहितो लागैए फॉरेनर।
gajendra jeek kavita bahut nik lagal.
bahut ber padhalahu.
Reply06/02/2009 at 08:34 AM

सुबोध ठाकुर, गाम-हैंठी बाली, जिला-मधुबनीक मूल निवासी छथि आ चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट प्रैक्टिशनर छथि।
जीवन यात्रा

थाकल पएर झमाड़ल देहसँ,
भारी मन मुदा आशा आओर नेहसँ,
चलय केर प्रयत्न कय रहल छल बटोही

गुज-गुज अन्हार छल,
मनमे डरक विकार छल,
तैयो ठहियाइत बाट जोहैत चलि रहल छल बटोही।


अन्तिम पड़ावपर छल यात्रा,
सोनितक संचारक चाल कम मात्र ,
तैयो उल्लास भरि चलि रहल छल बटोही।

बटखर्चाक सभ दिन अभाबे रहल,
मन माफिक मंजिलक सभ दिन अभाबे रहल,
तैयो प्रयासरत रहैत सदिखन चलैत रहल बटोही।


थाकल पएर झमाड़ल देहसँ,
भारी मन मुदा आशा आओर नेहसँ,
चलय केर प्रयत्न कय रहल छल बटोही

कखनो पुस्तकक बोझ लए कए,
कखनो नोकरीक खोज लए कए,
सरपट भागए के कोशिस कएलक बटोही।


आयल बाटमे उपवनो कखनो,
फुलाएल रहए रंग-बिरंग फूलो सगरो,
मुदा चलबाक धुनमे सुगंध नहि लए पओलक बटोही।


चढ़बाक हिमगिरीपर छल,
इजोरिया राति सेहो सुन्दर तखने छल,
परञ्च वीर रससँ ओतप्रोत श्रृंगार रस छोड़ि चलल बटोही।


मन कतेक बेर कहलक, कनी बिलमि ली,
यात्राक कनी आनन्द लए ली,
मुदा आगाँ बढ़ए के होरमे,
चलैत रहल बटोही।


सदिखन संघर्षरत रहैत,
मंजिलकेँ पाबए लेल प्रयास करैत,
नहि सफले नहि असफले,
बीचक प्रतियोगी छल बटोही।


जीवन एक गोट यात्रा छी,
मंजिल नहि से नहि बुझि सकल बटोही।

थाकल पएर झमाड़ल देहसँ,
भारी मन मुदा आशा आओर नेहसँ,
चलय केर प्रयत्न कय रहल छल बटोही।



1

रघुबीर मंडल said...
बटखर्चाक सभ दिन अभाबे रहल,
मन माफिक मंजिलक सभ दिन अभाबे रहल,
तैयो प्रयासरत रहैत सदिखन चलैत रहल बटोही।
bah
Reply06/08/2009 at 09:52 AM
2

Usha Yadav said...
जीवन यात्रा नीक लागल। सामयिक विषयपर अहाँक लेखनी चलए ताहि प्रतीक्षामे।
Reply06/07/2009 at 12:27 PM
3

Usha Yadav said...
JIVAN YATRA YAIH ACHHI
Reply06/06/2009 at 11:49 PM
सन्तो ष कुमार मिश्र
हमर मीत

रे ! हमर मीत सुगा तहूँ
असगरे उड़िगेले
भोरमे पराती
आ, संझामे साँझ
गाबिकऽ सुनऽबैछले
भोरमे उठऽबैछले,
कहिकऽ सुनऽबैछले
ॅपटटु ! सीताराम कहो ।’
फुलल छली संगहि
तो असगरे मौरगेले ।

दूर जुनि जो हमरा तो छोड़िकऽ
क्षण भरि लेल आबिजो
हमरा अप्प न बुझिकऽ ।
किछुए देर नाचब
किछुए देर गाएब
हमहूँ तोरे संग कहब
ॅपटटु ! सीताराम कहो ।’

हमहूँ आएब तोरे लग
मुदा किछु क्षणबाद
किछुए देरक ई कष्टब थिक
भोगहे पड़त ।

एकदिन हावासँ तिब्र भऽ
हमहूँ तोरे लग आएब
तोरे संग नाचब
तोरे गीत गाएब

मुदा आबहे परत
हम अएबे करब
फेर तोरे संग कहब
ॅपटटु ! सीताराम कहो ।’

1

रघुबीर मंडल said...
एकदिन हावासँ तिब्र भऽ
हमहूँ तोरे लग आएब
तोरे संग नाचब
तोरे गीत गाएब
sundar
Reply06/08/2009 at 09:52 AM
2

Usha Yadav said...
संतोष जी। अहाँक ठेंठ कविता हृदयकेँ समीप।
Reply06/07/2009 at 12:28 PM
3

Usha Yadav said...
SANTOSH JI EHINA LIKHAIT RAHOO
Reply06/06/2009 at 11:49 PM




ज्योति
टाइम मशीन
भविष्यके दर्शन कऽ ली अखने
वैज्ञानिक भीड़ल छैथ ताहि जोगारमे
हम सवार भऽ टाइम – मशीनमे
कएक वर्ष केलहुं पार एकहि दिनमे
ओहि पार उन्नति अखन बच्चे अछि
अहि कात अछि अपन चरम ऊॅंचाइर्मे
ओहि ठाम उद्देश्यहीन भटकैत मोन
अहि ठाम सब निर्देशित अपन लक्ष्यमे
औद्योगिक क्रान्तिक भेदपूर्ण दृष्टि
पश्चिमी देश बढ़िगेल आगां जाहिमे
अन्यथा भारत तऽ सर्वथा अग्रणी छल
संस्कृत़ि संस्काऱ आध्यात्मी वा विज्ञानमे
अपने मे मरैत-कटैत देशवासी
देश बॅंटल छोटछोट राज्यमे
कखनो आपसी अनबन तऽ कखनो
अपर्नअपन राज्यक सीमा बढ़ाबऽमे
ताहु सऽ दुःखद तऽ ई बात छल
हमसब रहलहुं विलासिता के निद्रामे
अवसरवादी विदेशी फलान्वित भेल
हमसब बन्धलहुं पराधीनताक बन्धनमे
सब विकासक द्वार बन्द भेल अपन
लागल रहलहुं आनक सेवामे
शाेषणक अन्त करक मोन बनल जखन
सदी लागल लोकतंत्र पाबऽमे
आगां समय लगाबैत रहलहुं
विशालतम लोकतंत्र बचाबऽमे
भारत सर्वगुण सम्पन्न कहायत
जहिया विकास पहुंचत पश्चिमक बराबरीमे
1

Palan Jha said...
vishay nik, muda shilp me kanek aar sudharak aavashyakta
Reply06/09/2009 at 09:28 AM
2

Anand Priyadarshi said...
nik lagait achhi ahan ke padhait
Reply06/09/2009 at 09:27 AM
3

Rahul Madhesi said...
bad nik
Reply06/09/2009 at 09:25 AM
4

Ajay Karna said...
nik vishaya
Reply06/09/2009 at 09:23 AM
5

Krishna Yadav said...
भविष्यके दर्शन कऽ ली अखने
वैज्ञानिक भीड़ल छैथ ताहि जोगारमे
हम सवार भऽ टाइम – मशीनमे
कएक वर्ष केलहुं पार एकहि दिनमे
ओहि पार उन्नति अखन बच्चे अछि
अहि कात अछि अपन चरम ऊॅंचाइर्मे
ओहि ठाम उद्देश्यहीन भटकैत मोन
अहि ठाम सब निर्देशित अपन लक्ष्यमे
ati sundar
Reply06/09/2009 at 09:22 AM
6

Keshav Mahto said...
nik lagal,
kavita me kane aar lyrics dela par aar nik hoyat
Reply06/09/2009 at 09:21 AM
7

Manoj Sada said...
jyoti ji,
ahank vishayak vividhta nik achhi,
kanek aar vistar aa deep thought diyauk te ar nik kavita hoyat
Reply06/09/2009 at 09:19 AM
8

Raghuvir Mandal said...
time machine par aa vistrit kavita likhoo, aan vigyan vishay par seho
Reply06/09/2009 at 09:17 AM
9

VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...
भविष्यके दर्शन कऽ ली अखने
वैज्ञानिक भीड़ल छैथ ताहि जोगारमे
हम सवार भऽ टाइम – मशीनमे
कएक वर्ष केलहुं पार एकहि दिनमे
bad nik
Reply06/09/2009 at 09:15 AM
10

Vidyanand Jha said...
nik kavitaa
Reply06/09/2009 at 09:14 AM
11

Usha Yadav said in reply to Jyoti...
ज्योतिजी अहाँ
http://www.google.com/transliterate/indic/
एहि लि‍ंपर सेहो यूनीकोडमे देवनागरी टाइप कऽ सकैत छी।
Reply06/09/2009 at 08:45 AM
12

VIDEHA GAJENDRA THAKUR said in reply to Jyoti...
jyotiji
http://kaulonline.com/uninagari/default/
ehi link para online devnagari me likhoo aa otay se copy kay
etay paste karoo.
Reply06/09/2009 at 08:19 AM
13

Jyoti said in reply to Usha Yadav...
Hum devnagari ataya kona upayog karu se nahin bujhal achhi, ahank prashansha sa ham bahut protsahit chhi.
Dhanyawaad Ushaji
Reply06/09/2009 at 02:56 AM
14

रघुबीर मंडल said...
हमसब रहलहुं विलासिता के निद्रामे
अवसरवादी विदेशी फलान्वित भेल
हमसब बन्धलहुं पराधीनताक बन्धनमे
सब विकासक द्वार बन्द भेल अपन
nik
Reply06/08/2009 at 09:53 AM
15

Usha Yadav said...
अहाँक कविता नीक लागल ज्योतिजी।
Reply06/07/2009 at 12:29 PM
16

Usha Yadav said...
BAD NIK
Reply06/06/2009 at 11:48 PM
17

Usha Yadav said...
BAD JYOTI JI
Reply06/06/2009 at 11:48 PM

प्रिय पाहुन - जितेन्द्र झा, जनकपुर

पारम्परिक मैथिली विवाह गीत समेटल एक गोट मैथिली क्यासेट आएल अछि प्रिय पाहुन । एहि क्यासेटमे मैथिलीक विवाहक परिछनसं विदाई धरिक गीत सभ संग्रहित अछि । अंशुमालाक एकल प्रस्तुति रहल इ क्यासेट मैथिली विवाह परम्पराक किछु खास वस्तुपर केन्द्रित अछि । एहिके विशेषता जयमाल गीत जे कि मिथिलाक मौलिक गीत अछि रहल गायिका अंशुमाला कहैत छैथ । जीमनार(वरियाती खएबाक काल गाआàल जाएबला गीत) आब बहुतोक ठोरपर नर्इं छढैत छन्हि, एहि क्यासेटमे एकरा महत्व देल गेल अछि । प्रिय पाहुन क्यासेट नव पुरान दुनू पीढीक लोक पसन्द क'रहल अंशुक कहब छन्हि । कन्या लगन गीत, परिछन गीत,देखु रसे रसे दुलहा, चाल कटाक्ष, देहरि छेकाओन, सिन्दुरदान आ समदाओनक गीत एहि क्यासेटमे संकलित अछि । एहि क्यासेटमे सीमाक भितर कएल जाएबल हंसी मजाक आ ताहिभितर नुकाएल प्रेमके देखएबाक प्रयास कएल गेल अछि । गंगा क्यासेटक प्रस्तुति रहल इ क्यासेट एखन मात्र अडियोक रुपमे अछि । क्यासेटमे गीत संकलन ह्मदय नारायण झा आ शशि किरण झा, संगीत कमल मोहन चुन्नुक छन्हि । गायिका अंशुमालाके एहि क्यासेटसं बहुत बेशी आशा छन्हि । एना आधुनिक गीतक बजारमे ई विवाह गीत अलग स्थान बनाओत से आशा कएल जा सकैया ।
1

रघुबीर मंडल said...
anshu ji ke badhai
Reply06/08/2009 at 09:44 AM
2

Usha Yadav said...
अंशुमालाजीकेँ हमरो दिशसँ एहि अवसरपर शुभकामना।
Reply06/07/2009 at 12:30 PM
3

Usha Yadav said...
PRIYE PAHUN CASETTE LEL ANSHUMALA JI KE BADHAI
Reply06/06/2009 at 11:48 PM
मूल गुजराती पद्य आ तकर अंग्रेजी अनुवाद- हेमांग आश्विनकुमार देसाइ
मैथिली अनुवाद-गजेन्द्र ठाकुर

समीकरण

दू टा अर्धवृत्त जन्मैत समानान्तर,
समानान्तर रेलगाड़ीक पटरी।
हाथ भरि नमगर लिबल घास,
झुकैत भीतर,
बिना डोरीक धनुष सन।
सुनबैत खिस्सा भरिगर हबाक,
रातिभरि जन्मैत अस्पष्ट पीठ वेताल सन,
जे उड़ि जाइत अछि बोर भेने।

आ एतबे
आकि कनेक बेशी
झुकल बुढ़िया
जे अहाँकेँ मोन पाड़त हाँसू।

झुकल निश्चल प्रथम श्रेणीक कम्पार्टमेन्टमे,
कातमे ठाढ़ कएल गेल ट्रेन
अहाँक अपन आँखिसँ कएल प्रतीक्षा बिन कात भेल।
एकटा छोटो आहटि
एकटा त्वरित चमक कमसँ कम
आब, हँ आब
ई हमर अधिकार अछि, सत्ते
हैए जाइत अछि।

दूटा उर्ध्वाधर पटरी टेढ़ कएल बीचमे
दू टा तोरण जमल मृत्यु
एकटा तीक्ष्ण गुमारबला दुपहरिया
आ अहाँ
बनबैत छी एकटा अद्भुत समीकरण।
आश्चर्यिय छी अहाँ कष्ट उठबैत छी सोझ बैसबा लेल
आ जे हाँसू गीरि गेलहुँ कताक समय पहिने
तोऐत अहाँकेँ खण्डमे
1

रघुबीर मंडल said...
hemang desai ke kavita me nav bimb achhi,
maithili sahitya ehi tarahak anuvad se samridh hoyat
Reply06/08/2009 at 09:49 AM
2

Usha Yadav said...
हेमांग देसाइक कविताक प्रस्तुति लेल धन्यवाद।
Reply06/07/2009 at 12:30 PM
3

Usha Yadav said...
HEMANG DESAIK KAVITA BA NIK LAGAL
Reply06/06/2009 at 11:47 PM
1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); आ 2. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी

1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)

देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्र्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)

नताशा: मैथिलीक पहिल-चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
नीचाँक दुनू कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा सात

नताशा आठ




2.
मध्य प्रदेश यात्रा- ज्योति
एगारहम दिन
2 जनवरी 1992 वृहस्पतिदिन
उज्जैन सऽ हमसब सबसऽ पहिने काँचक जैन मन्दिर गेलियै। ओतयके अनुपम कारीगरी स आकर्षित भेल बिना नहिं रहल जा सकैत छै।चारू कातक देवारमे शीशा के एना सजायल गेल छलै जे प्रकाशक एक किरण पूरा मंदिर के जगमगाबैलेल काफी छलै।मंदिरके बीचमे चारिटा जैन तीर्थकर के मूर्त्ति विराजित छल ।
जैन मंदिर स कनिक दूर पर धर्मावलम्बी के आकर्षणक मुख्या केन्द्र ‘श्री महाकालेश्वर’ जी के मंदिर छल।ओतऽ ज्योर्तिलिंग के दर्शन हेतु बड्ड भीड़ देखायत छल।अहि मंदिर के नजदिक मे राममंदिर आ’ संतोषी मंदिरमे एक धार्मिक फिल्म‘जय संतोषी माताक’ शूटिंग भेल छलै।
अकर बाद हमसब क्षिप्रातट पहुँचलहुँ। अतय क्षिप्रा नदीक स्वच्छता आहिके प्रदूषण स भरल वातावरणमे सच्चे चमत्काँरी छै।अतऊ धुआंधार जलप्रपातक जकाँ किछु तैराकी बच्चा सब लोकक पाछु भागैत रहै। लोकसब द्वारा पाई फेकलाक बाद ओ नदीमे गोता लगाबैत रहै आर नीचा मे भेटल पाई ओकर भऽ जायत छल।उज्जैन सऽ कनिके दूरी पर भतृर्हरि गुफा छै।अहि गुफामे भगवान गोरखनाथक प्रतिमा छैन।ई प्राचीन गुफा भूमिगत छै आर रस्ता बहुत पातर छै आ बहुत सीढ़ी सब सेहो छै।अन्दर धुआं तऽ नहिं छलै मुदा धुआं जकाँ गंध जरूर छलै। कनि हवाक कमी सेहो बुझायत छलै।अहिसऽ बाहर एलाक बाद हमसब एकटा पंडित के देखलहुँ जे अपन कानक बाहरी पातर किनारा छोड़िकऽ पूरा कटवा लेने रहथि।आ ओहि बड़का छेदमे एकटा बड़का टा बाला सदृश कुण्डल पहिनने रहथि।एहेन आश्चर्यजनक शौक़ सऽ हमसब विस्मित छलहुँ।अतय सऽ हमसब अपन लॉज लौटि गेलहुँ।
तकर बाद अपन समूहक शिक्षिका संगे सब लड़की सब घूमय गेलहुँ आ खूब मिठाई सब खेलहुँ।उज्जैनमे रबड़ी आ कलाकन्द बहुत नीक भेटै छल। हम अपन पड़ोसी जे हमर संगे ओहि यात्रापर गेल छल तकरा लेल सेहो रबड़ी अनलहुँ।काल्हि जे हमसब नववर्षक कार्यक्रम स्थगित केने रहूं से आहि पूरा भेल।

देवीजी : ज्योति

देवीजी : गरमीमे स्वास्थ्य के ध्यान

गामक गर्मी तऽ अपन क्रूरता लेल प्रचलित अछिये।अहू बेरका गरमीमे किछु बेसी अन्तर नहिं छल।एकदिन देवीजी कतौजाइत छली की रस्ताक कात एकटा वृद्ध मूर्छित भऽ खसल छल। देवीजीके बेसी देर नहिं लगलैन इ ज्ञात करैत जे ओ व्यक्तिम के इ हालत गर्मी के कारण भेल छल। ओ आन लोक सबके जमा केली। तुरन्त ओकर प्राथमिक उपचार जेना कि ठण्ढा पानि छींटनाइ पंखा डोलेनाइ सब कैल गेल।तकर बाद चिकित्सा लय लऽ जा हुन्का पाइन चढ़ायल गेल। आ ओ जल्दिये ठीक भऽ गेला।
देवीजी बहुत चिन्तित छली जे जॅं ओकर उपचारमे विलम्ब होएतै तऽ की होयतै।फेर की छल देवीजी भीरेली अपन विद्यार्थी सबके एक सभा जुटाबैमे जाहिमे ओ गौँवा सबके गर्मीमे अपन स्वास्थ्यक ध्यान राखैके जानकारी देलखिन।देवीजी सबके बतेलखिन जे गर्मीमे पाइने जीवनरक्षक होएत छै।दिन भरि कनी कनी पाइन पीबैत रही आ कतौविदा हुअकाल एक बोतल मे पाइन जरूर लऽ ली। देवीजी निम्नलिखित सलाह देलखिनः
1) गर्मीमे कतौविदा हुअ काल अपन संगे पीबैलेल पाइन वा शर्बत रौद सऽ बचैलेल छत्ता वा टोपी रौद सऽ बचाबै वला चश्मा इत्याहदि जरूर लऽ ली।त्वइचाके रक्षाके लेल सन्सक्रीम लोशन लगाऊ।बच्चा सबके रौद मे बाहर निकलऽ काल अहिके विशेष ध्यान रखबाक चाही।सूर्यके खतरनाक पराबैंगनी किरण स बचैके लेल अनेको सामान आबैत छै तकर उपयोग करैके चाही।
2) कर्नीकनी देरमे पानि पीबैत रहू।अहि मौसममे रंग बिरंगक शर्बत बनाक पीबू। बजारमे अनेको प्रकारक शर्बत भेटै छै। तकर अतिरिक्त ताजा फलक शर्बत बनाकऽ पीबू। जेनाकि कच्चा आमके उबालिकऽ ओकर शर्बत़ बेलक शर्बत़ तरबूजक रस़ नेबो के शर्बत़ गुलाबक पंखुड़ीके रसक शर्बत़ पुदीनाक शर्बत़ खीरा के रस़ लस्सी़ घोऱ नारियरक पानि इत्याडदि शरीरके ठंढ़क पहुँचाबै छै।
3) गर्मीमे ओना तऽ हरियर ताजा साग सब्जी कम उगै छै मुदा बजारमे फ्रीजक सुविधाक कारण बहुत किछु उपलब्ध रहैत छै।पूरा पौष्टिक भोजन करू।बासि भोजन नहिं करू।खीरा़ ककरी आदिक सलाद खायल करू।
4) दिनमे दू वा बेसी बेर नहायल करू।एहेन समयमे तैराकी के प्रतियोगिता केनाइ बहुत नीक रहै छै।
5) साफ जलक सेवन करू।
6) बिढ़नी़ मधुमाछी़ बीछ़ साँप आदिक काटैके डर एहेन समयमे बढ़ि जाएत छै तैं सावधान रहू।आ प्राथमिक उपचारक ज्ञान एवम् व्यवस्था घरमे राखल करू।ककरो आवश्यकता होए तऽ जरूर सहायता करियौ। साँपके कटला पर साँपक प्रकार बूझल रहला पर इर्लाज आसान होएत छै।कनिको असमन्जसता होय तऽ खाय वला दवाइर्के प्रयोग बिना चिकित्स क के सहायताके नहिं करू।
7) सूती कपड़ा पहिनू।बाजार मे सूर्यक पराबैगनी किरण सऽ बचैवला कपड़ा सेहो भेटैत छै तकर प्रयोग करू।
8) मालजालके भोजन आऽ पानिके पूरा सुविधा देबाक चाही।गर्मीमे ओकरा सऽ बेसी काज नहिं कराऊ आ पानिक व्यवस्था भरपूर दियौ।
9) जरूरत पड़ला पर चिकित्सेकके मददि लियऽ।
देवीजीक इ परामर्श सबके लेल बहुत हितकारी साबित भेल।

बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
1

रघुबीर मंडल said...
35m ankak natasha aa deviji bad nik
Reply06/08/2009 at 09:44 AM
2

Usha Yadav said...
नताशा देवी जी दुनू बड्ड नीक। देवांशु जी आ ज्योतिजी , अहाँ दुनु गोटेक प्रशंसामे शब्द भेटि नहीं रह्ल अछि।
Reply06/07/2009 at 12:31 PM
3

Usha Yadav said...
BACHCHA SABHAK LEL VIVIDH PRASTUTI, DEVANSHU VATS AA JYOTI JI DHANYAVADAJK PATRA CHHATHI
Reply06/06/2009 at 11:47 PM

भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीक मानक लेखन-शैली

1. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली आऽ 2.मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली

मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए। हमसभ हुनक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।
पोथीक वर्णविन्यास कक्षा ९ क पोथीसँ किछु मात्रामे भिन्न अछि। निरन्तर अध्ययन, अनुसन्धान आ विश्लेषणक कारणे ई सुधारात्मक भिन्नता आएल अछि। भविष्यमे आनहु पोथीकेँ परिमार्जित करैत मैथिली पाठ्यपुस्तकक वर्णविन्यासमे पूर्णरूपेण एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।

कक्षा १० मैथिली लेखन तथा परिमार्जन महेन्द्र मलंगिया/ धीरेन्द्र प्रेमर्षि संयोजन- गणेशप्रसाद भट्टराई
प्रकाशक शिक्षा तथा खेलकूद मन्त्रालय, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र,सानोठिमी, भक्तपुर
सर्वाधिकार पाठ्यक्रम विकास केन्द्र एवं जनक शिक्षा सामग्री केन्द्र, सानोठिमी, भक्तपुर।
पहिल संस्करण २०५८ बैशाख (२००२ ई.)
योगदान: शिवप्रसाद सत्याल, जगन्नाथ अवा, गोरखबहादुर सिंह, गणेशप्रसाद भट्टराई, डा. रामावतार यादव, डा. राजेन्द्र विमल, डा. रामदयाल राकेश, धर्मेन्द्र विह्वल, रूपा धीरू, नीरज कर्ण, रमेश रञ्जन
भाषा सम्पादन- नीरज कर्ण, रूपा झा

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
Reply05/15/2009 at 11:01 PM
2


8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.Original poem in Maithili by Ramlochan Thakur Translated into English by Gajendra Thakur
8.2.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated by Jyoti.
Original poem in Maithili by Ramlochan Thakur
Translated into English by Gajendra Thakur

Letter to the Sister

Sister!
I had received your letter
But there was delay in reply.
Why should I lie that
I was busy.

What to write and why to write,
That I could not decide,
Therefore this delay!

Sister !
I know that this year too
You might have made Sama-Chakeba.
And might have waited for me.
After Vrindaban set on fire.
Then not finding me
might have become sad.
Incessant tear might have flown from your eyes.

But Sister !
You believe it or not
It is true that
Any forest fire could not be controlled by
A water-filled jug and
That you have written,
True, I am changed, a lot.
I know that Vrindaban is
Not the same Vrindaban now,
Now not one,
But in numbers,
The slanderers have taken birth
And it is this Vrindaban,
The permanent abode of those.

The old hollowed trees have
Given shelter to the terrible poisonous snakes.

Today
there,
Even air is poisonous,
To inhale that air is also not advisable.

Therefore
In my opinion
It would be better if it is destroyed in fire,
trying to subdue the fire is not desirable,
Is misuse of strength,
That strength is to be preserved
For future.
When we would plant
Certainly would plant
A new Vrindaban
Would water it not from a reservoir
But with our sweat/ and would blossom
Flowers of many colours/ in consonance of our desire
Would give a new colour to our dreams.

Sister!
I believe/ and you’d believe too
That today/ in our own village we are all unknown-unknown
Having no identity,
Certainly the pain of it is unbearable,
But/ for that
It would not be appropriate to cry
But to recognize our own power,
And to overhear outside voice too and
To resolve
Then tomorrow – tomorrow
We would have an identity,
We the Vrindaban,
Our Vrindaban.
1

रघुबीर मंडल said...
great ramlochan thakur ji, and gajendra ji,
ramlochan thakur ji is really a revolutionary poet
Reply06/08/2009 at 09:48 AM
2

Usha Yadav said...
excellent poem by ramlochan thakur
Reply06/06/2009 at 11:44 PM
3

jyotijhachaudhary@gmail.com said...
Simply fabulous, I always love those poems that spread our tradition and customs, Here 'sama chakeba'; amazing !
Reply06/03/2009 at 03:54 AM


English Translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated into English by Smt. Jyoti Jha Chaudhary Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed athttp://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title“KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in

Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.comand her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.

The Comet



English Translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated into English by Smt. Jyoti Jha Chaudhary

Mother started crying but Aaruni was very happy. The only difference brought by the new education system was that pupils were getting admission in junior classes by adding the name Naveen in their classes.
Father was not happy with that and when he moved to city Aaruni got admission in class seven after passing class five in the village skipping the class six. Father’s instruction to complete maths and science of class six when Aaruni was in class five came to be fruitful here because he was only asked maths and science in entrance exam. He sat for class six and seven and selected for both. Aaruni could not be very confident whenever someone was talking about class six.
While living in the village Aaruni once wrote letter to his dad because his shoes were left in the town. Shoes arrived with criticism of three mistakes done in writing letter and reminding him that he had solved only two questions in place of three in a race competition. He didn’t remember when the evil of aggression was born in him but he remembered that his father has given him a tip of meditation by reciting a shlok ten times. Once he fought with a classmate and his classmate hurted his head with the slate board. He also raised his hand to hit him but he stopped considering that it would hurt his friend. The consequence of that incident made two changes. First was that his slate board with iron border was replaced by a slate board with wooden border. The second and very important change was that a new school in the colony was inaugurated by his father. Later on, whenever some priest started giving him advice of wearing pearl rind on small finger or reading Sunderkand he used to recall the tip of reciting those Sanskrit Shloks.
His childish attitude of feeling humiliated in asking for help and compromising was still present in him. But he lost the spirit to fight by neglecting the difference between victory and defeat was not present in him especially after the death of his father. Gradually, he started believing in achievements and victory. He got help from all those people whom he had helped at the time of need. The compromise done by him time to time eased his struggles. His friend circle was big enough to be managed by him. Then he didn’t had any need to have more friends in new place.
The ambition was endless. And the art of living life of each individual was different too. Aaruni- that name was not commonly heard at home. The city of Kolkata respects talent. But to qualify in entering business world there needed to know Benguli which he learnt while walking in the streets of Kolkata. In his busy life he used to take rest only when he was ill. Whenever he was ill and sitting idle he used to recall his habit of thinking. And he called his mother to stay with him when he bought a flat. However he was very sure that those things would not impress his mother because she was wife of an officer so she wanted her son to be so. That city had increased the portion of completion in respect of principle in the life style of her son. It was the impact of busy life that her son was getting any time to think only when he was on bed.
(continued)
1

रघुबीर मंडल said...
excellent transllation by jyotiji, it looks like original
Reply06/08/2009 at 09:47 AM
2

Usha Yadav said...
excellent translation, the linguists should note the grace of english that is encompassing and not compromising the originality
Reply06/06/2009 at 11:45 PM



महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट संस्करणक विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे।
महत्त्वपूर्ण सूचना (२): 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. प्रकाशित कएल जा रहल अछि: लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-1 e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com website:http://www.shruti-publication.com

महत्त्वपूर्ण सूचना:(३). पञ्जी-प्रबन्ध विदेह डाटाबेस मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण- श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत। पञ्जी-प्रबन्ध (शोध-सम्पादन, डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- तीनू पोथीक शोध-संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा Combined ISBN No.978-81-907729-6-9

महत्त्वपूर्ण सूचना:(४) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गिच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे।कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)-लेखक गजेन्द्र ठाकुर Combined ISBN No.978-81-907729-7-6

महत्त्वपूर्ण सूचना (५): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित। विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे।

महत्त्वपूर्ण सूचना (६):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।



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विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : देवनागरी
"विदेह" क २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित।

विदेह: प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/
विदेह: वर्ष:2, मास:13, अंक:25 (विदेह:सदेह:1)
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर

गजेन्द्र ठाकुर (1971- ) छिड़िआयल निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गिच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक (खण्ड 1 सँ 7 ) नामसँ। हिनकर कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे आ उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद संस्कृत आ अंग्रेजी(द कॉमेट नामसँ)मे कएल गेल अछि। मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली शब्दकोश आ पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन-आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण। अंतर्जाललेल तिरहुता यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास। ई-पत्र संकेत- ggajendra@gmail.com

सहायक सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा श्रीमति रश्मि रेखा सिन्हा (1962- ), पिता श्री सुरेन्द्र प्रसाद सिन्हा, पति श्री दीपक कुमार। श्रीमति रश्मि रेखा सिन्हा इतिहास आ राजनीतिशास्त्रमे स्नातकोत्तर उपाधिक संग नालन्दा आ बौधधर्मपर पी.एच.डी.प्राप्त कएने छथि आ लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर आलेख-प्रबन्ध सेहो लिखने छथि।सम्प्रति “विदेह” ई-पत्रिका(http://www.videha.co.in/ ) क सहायक सम्पादक छथि।
मुख्य पृष्ठ डिजाइन: विदेह:सदेह:1 ज्योति झा चौधरी
ज्योति (1978- ) जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी।ज्योतिकेँ www.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) ज्योतिकेँ भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि।
विदेह ई-पत्रिकाक साइटक डिजाइन मधूलिका चौधरी (बी.टेक, कम्प्यूटर साइंस), रश्मि प्रिया (बी.टेक, कम्प्यूटर साइंस) आ प्रीति झा ठाकुर द्वारा।
(विदेह ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ http://www.videha.co.in/ पर ई-प्रकाशित होइत अछि आ एकर सभटा पुरान अंक मिथिलाक्षर, देवनागरी आ ब्रेल वर्सनमे साइटक आर्काइवमे डाउनलोड लेल उपलब्ध रहैत अछि। विदेह ई-पत्रिका सदेह:1 अंक ई-पत्रिकाक पहिल 25 अंकक चुनल रचनाक संग पुस्तकाकार प्रकाशित कएल जा रहल अछि। विदेह:सदेह:2 जनवरी 2010 मे आएत ई-पत्रिकाक 26 सँ 50म अंकक चुनल रचनाक संग।)

Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)
विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)
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आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 180.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
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भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


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जीना चाहता हूँ : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 300.00
कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.225.00
लाल रिब्बन का फुलबा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु.190.00
लूओं के बेहाल दिनों में : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 195.00
फैंटेसी : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.190.00
दु:खमय अराकचक्र : श्याम चैतन्य प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 190.00
कुर्आन कविताएँ : मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 150.00
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दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 165.00
पुस्तक मंगवाने के लिए मनीआर्डर/ चेक/ ड्राफ्ट अंतिका प्रकाशन के नाम से भेजें। दिल्ली से बाहर के एट पार बैंकिंग (at par banking) चेक के अलावा अन्य चेक एक हजार से कम का न भेजें। रु.200/-से ज्यादा की पुस्तकों पर डाक खर्च हमारा वहन करेंगे। रु.300/- से रु.500/- तक की पुस्तकों पर 10%की छूट, रु.500/- से ऊपर रु.1000/- तक 15% और उससे ज्यादा की किताबों पर 20% की छूट व्यक्तिगत खरीद पर दी जाएगी ।
अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन :0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
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बया, हिन्दी छमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ
संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन, एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क रु.5000/- चेक/ ड्राफ्ट/ मनीआर्डर द्वारा “ अंतिका प्रकाशन ” के नाम भेजें। दिल्ली से बाहर के चेक में 30 रुपया अतिरिक्त जोड़ें। पेपरबैक संस्करण

उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00

कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007मूल्य रु. 90.00

शीघ्र प्रकाश्य

आलोचना

इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन

सामाजिक चिंतन

किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा

शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र

उपन्यास

माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन

कहानी-संग्रह

धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम

एक साथ हिन्दी, मैथिली में सक्रिय आपका प्रकाशन


अंतिका प्रकाशन
सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन,एकसटेंशन-II
गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
फोन : 0120-6475212
मोबाइल नं.9868380797,
9891245023
ई-मेल: antika1999@yahoo.co.in,
antika.prakashan@antika-prakashan.com
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
२.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
३.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
४.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादव
५.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
६.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशर
७.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
८. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता” प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-)
९/१०/११ 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर१.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-1 ३.पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर , नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा ।
१२.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ "बलचन्दा"
१३. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर संचस्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1:तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु.100/-
श्रुति प्रकाशन, DISTRIBUTORS: AJAI ARTS, 4393/4A, Ist Floor,AnsariRoad,DARYAGANJ. Delhi-110002 Ph.011-23288341, 09968170107.Website: http://www.shruti-publication.com
e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...
मैथिली आ मिथिलासँ संबंधित कोनो सूचना एतए देबाक लेल ggajendra@videha.com किंवा ggajendra@yahoo.co.in केँ ई मेलसँ सूचित करी।
Reply05/12/2009 at 01:37 AM

संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रि‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भ' गेल।
विदेह

मैथिली साहित्य आन्दोलन

(c)२००८-०९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। सहायक सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
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