भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Wednesday, July 15, 2009

'विदेह' ३८ म अंक १५ जुलाइ २००९ (वर्ष २ मास १९ अंक ३८)-part i

'विदेह' ३८ म अंक १५ जुलाइ २००९ (वर्ष २ मास १९ अंक ३८)


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एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश

२. गद्य
२.१. कथा- सुभाषचन्द्र यादव-हमर गाम
२.२. प्रत्यावर्तन - आठम खेप- कुसुम ठाकुर
२.३. अनमोल झा- कथा- प्राथमिकता
२.४ सुशान्त झा- रिपोर्ताज
२.५ नवेन्दु कुमार झा- रिपोर्ताज
२.६. कथा-मनस्ताप कुमार मनोज कश्यप

२.७. चन्द्रेश- पोथी समीक्षा

२.८. जितेन्द्र झा -रिपोर्ताज

३. पद्य

३.१. राजकमल चौधरीक दूटा अप्रकाशित पद्य
३.२. जीवकान्तक टटका पद्य

३.३. आशीष अनचिन्हार

३.४.पंकज पराशर - जानि नहि किएक
३.५. सुबोध ठाकुर- सनेश

३.६.निशाप्रभा झा (संकलन)


३.७. रूपा धीरू

३.८. ज्योति-बरसातक दृश्य

४. मिथिला कला-संगीत-तूलिकाक चित्रकला

५. गद्य-पद्य भारती -१. मूल उपन्यास-कोंकणी-लेखक-तुकाराम रामा शेट, हिन्दी अनुवाद- डॉ. शंभु कुमार सिंह, श्री सेबी फर्नांडीस, मैथिली अनुवाद-डॉ. शंभु कुमार सिंह
२.मूल तेलुगु पद्य-
अन्नावरन देवेन्दर-अंग्रेजी अनुवाद- पी.जयलक्ष्मी आ मैथिली अनुवाद-गजेन्द्र ठाकुर

६. बालानां कृते-१. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); आ २. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति
७. भाषापाक रचना-लेखन - पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]

8. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)
8.1.Original poem in Maithili by Ramlochan Thakur Translated into English by Gajendra Thakur

8.2.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili NovelSahasrabadhani translated by Jyoti.



विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी रूपमे
Videha e journal's all old issues in Braille Tirhuta and Devanagari versions
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१. संपादकीय


वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा ६ जुलाइ २००९ केँ प्रस्तुत भारतीय बजट २००८-०९ मे आर्थिक विकास दर ६.७ प्रतिशत रहल होएबाक सम्भावना व्यक्त कएल गेल अछि। एहि बेर करदाता लेल बेसिक छूट एक लाख ५० हजार टाका सँ बढ़ाकऽ एक लाख ६० हजार कएल गेल अछि। आयकर पर दस प्रतिशत सरचार्ज हटा लेल गेल अछि। सरकार नोट छापिकऽ निवेश करत। रोजगार गारंटी योजनामे विस्तार कएल जएत, २५ किलो अनाज तीन टाका प्रति किलोक दरपर उपलब्ध कराओल जएत। किसान आ लघु उद्योगकेँ सस्ता कर्ज भेटत। निर्यात दबावमे रहने अर्थव्यवस्थामे सुस्ती अछि। खाद आ डीजल पर राहत देल जएत। प्रत्येक राज्यमे एक केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करबाक योजना अछि। नव आई.आई.टी. आ एनआईटी लेल ४५० करोड़ टाका खर्च करबाक योजना अछि। आयमे कृषिक हिस्सा जे १९४७ मे ५६ प्रतिशत छल से आइ १८ प्रतिशत भऽ गेल अछि। बजटक आर मुख्य विशेषता एहि प्रकारेँ अछि:-लॉ फर्मपर सर्विस टैक्स, आयकर छूटक सीमा महिला लेल भा.रु. १,९०,०००/- आ वरिष्ठ नागरिक लेल भा.रु.२,४०,०००/- कएल गेल, ग्रामीण सड़कक लेल १२,००० करोड़ रु. आबंटित, हृदय रोग सम्बन्धी दवाइ सस्ता हएत, बायो-डीजलपर कस्टम ड्यूटी घटत आ सोना-चानीपर बढ़त, कॉमनवेल्थ गेम लेल १६,३०० करोड़ रु. देल गेल, राष्ट्रीय गंगा प्रोजेक्ट लेल ५६२ करोड़ रु. आबंटित, यू.आइ.डी.(यूनीक आइडेन्टिफिकेशन प्रोजेक्ट) नंदन नीलेकनीक अध्यक्षतामे शुरू कएल जएत, अप्रैल २०१० सँ गुड्स आ सर्विसेज टैक्स प्रारम्भ आ पुनः ९% आर्थिक विकास दर प्राप्त कएल जएत।
नेपालमे सेहो वित्तमंत्री सुरेन्द्र पाण्डेय १३ जुलाई २००९ केँ प्रस्तुत अपन बजट(२००९-१०, वि.सं.२०६६-६७) मे किसान लेल ५००० लाख ने.रु. सब्सिडी लेल देलन्हि। मैथिली, भोजपुरी, थारू, लापचा, लिम्बू आ धीमाल भाषायी क्षेत्रमे कला-गामक विकास करबाक योजना अछि। २५०० लाख ने.रु. जनकपुर, राजबिराज, हुमला, मुगु, कालीकोट आ डोलपा हवाइ अड्डाक विकासार्थ देल गेल अछि। नव संविधानक ड्राफ्ट तैयार करबामे सभक सहयोग लेबाक आ शान्ति प्रक्रिया आगू बढ़ेबाक संकल्प सेहो व्यक्त कएल गेल। बिराटनगर रिंग रोड आ जनकपुर परिक्रमा (रिंग रोड) सड़ककेँ नीक बनाओल जएत। जनकपुरमे राजश्री जनक विश्वविद्यालयक स्थापना कएल जएत। धालकेबार-जनकपुर रोड अगिला वित्त वर्षधरि पूर्ण कऽ लेल जएत। डोम, मुसहर, चमार, दुसाध, खतबे आ गरीब मुस्लिम लेल सिरहा, सप्तरी आ कपिलवस्तु जिलामे एक-एक हजार घर (पूरा ३००० घर) बनाओल जएत। दलित आ गरीब मुसलमानक अठमा पास बालिका लेल (परसा, बारा, रौतहट, सरलाही, महोत्तरी, धनुषा, सिरहा आ सप्तरी जिलामे) स्कॉलरशिप देल जएत जाहिसँ ओ अपन पएरपर ठाढ़ भऽ सकथि। जाहि कोनो तकनीकी इंस्टीट्यूटमे ओ नामांकन लेमए चाहतीह ओहिमे हुनकर एडमिशन कम्पलशरी रूपेँ लेल जएतन्हि। उत्तर दक्षिण हाइवे (कोशी, कंकाली आ गंडकी कोरीडोर)क निर्माण कएल जएत। सिरहा, सप्तरी, उदयपुर आ सुनसरीमे कृषिक विकासक संग शिवालिक आ चूड़ पर्वत श्रृंखलाक संरक्षणपर ध्यान देल जएत। मैथिली भाषा, साहित्य आ संस्कृतिक विकासक लेल काज केनिहारकेँ पुरस्कृत करबाक लेल एक करोड़ ने.रु.क योगसँ महाकवि विद्यापति पुरस्कार गुथीक स्थापना कएल गेल अछि।

संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १४ जुलाई २००९) ८१ देशक ८४८ ठामसँ २५,५८२ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ १,८५,३२५ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।


गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in


२. गद्य
२.१. कथा- सुभाषचन्द्र यादव-हमर गाम
२.२. प्रत्यावर्तन - आठम खेप- कुसुम ठाकुर
२.३. अनमोल झा- कथा- प्राथमिकता
२.४ सुशान्त झा- रिपोर्ताज
२.५ नवेन्दु कुमार झा- रिपोर्ताज
२.६. कथा-मनस्ताप कुमार मनोज कश्यप

२.७. चन्द्रेश- पोथी समीक्षा

२.८. जितेन्द्र झा -रिपोर्ताज

सुभाषचन्द्र यादव-

चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द

सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।

हमर गाम
बसंत रितु बीत गेल अछि । गरमी धबल जाइत छै । लेकिन भोरमे आ साँझमे शीतल आ सोहाओन बसात मंद-मंद चलैत रहैत छै तऽ लगैत छै बसंत अखन गेल नहि अछि, विदा होइत-होइत अपन झलक देखा रहल अछि ।
एकटा एहने साँझ केँ हम गाम जा रहल छी । सुरूज एखन डूबल नहि छै । बुझाइत छै आध कोस जाइत-जाइत छिप जेतै । अखनुका रौदमे धाह नहि छै । सुरूज इजोतक विराट पिण्ड भरि लगैत छै, तापक प्रचंडतासँ रहित ।
हमर गाम सुपौलसँ डेढ़ कोस पच्छिम कोसी बान्हक भीतर अछि । आरि-धूर, बालु आ धार टपय पड़ैत छैक; तइँ हमर गाम धरि कोनो सवारी नहि जाइत अछि । पाँव-पैदल । दोसर कोनो उपाय नहि । हिस्सक छूटि गेलासँ आब गाम जायब अबूह बुझाइत अछि । कोनो टंटा ठाढ़ भऽगेल तखने हम जाइत छी । नहि तऽ बाल-बच्चा जाइत अछि, पत्नी जाइ छथि । आइ दू सालक बाद हम जा रहल छी । दू बर्ख पहिनो जमीनक ओझरी रहय आ आइ फेर वैह स्थिति अछि ।
गामक झंझट कहियो खतम नहि होइत अछि । हेबो नहि करत । सभ दिन किछु ने किछु लागले रहत। आइ क्यो जमीन धकिया लेलक तऽ काल्हि क्यो खढ़ काटि लेलक, परसू क्यो धान घेरि लेलक । एहि सभसँ हम कहियो पार नहि पाबि सकब । आइ धरि क्यो नहि पाबि सकल अछि । ई संसार एहिना चलैत आबि रहल छै । एहिना चलैत रहत । स्वार्थक क्षुद्रतामे डूबल । नाना प्रकारक छल-प्रपंच करैत, कखनो हँसैत, कखनो कनैत।
अनन्त विस्तारमे पसरल सूर्यक प्रकाशमे भासमान होइत ई पृथ्वी अपन अनेकरूपता सँ हमर चित्तकेँ आकृष्ट करैत अछि । ग्राम्य दृश्यावलीक सुन्दरता हमर आत्मा केँ मुदित करैत अछि । किन्तु थोड़बे कालक लेल । मन भटकि कऽ अस्तप्राय सूर्य दिस चल जाइत अछि । गामक झमेलमे ओझराय लगैत अछि ।
कोसीक पुबरिया बान्ह आबि गेल । बान्ह जे अपना भीतर लाखक लाख लोककेँ घेरि कऽ अहुँछिया कटबैत अछि । बान्ह पर एक पल ठाढ़ भऽ कऽ हम पच्छिम भर नजरि खिरबैत छी । दूर-दूर तक कोनो बस्ती नहि । कोनो गाछ नहि । खाली माल-जालक खूरसँ उड़ैत धूरा । बान्ह पर सँ हमर गाम नहि देखाइत अछि । गामक काली मंदिर देखाइत अछि । मंदिर आइ डेढ़-दू सय बर्ष सँ स्थिर अछि । अस्थिर अछि बान्ह परसँ मंदिर धरिक रस्ता । कोसी कोनो चीजकेँ थिर नहि रहय दैत छै । रस्ता-पेरा, आरि-धूर, खेत-पथार, घर-दुआर, लोक-वेद डगराक बैगन जकाँ गड़कैत रहैत अछि ।
बान्ह पर पहुँचिते चिंता होइत अछि। कोन बाटे-जायब ? घाट कोन ठाम छै? नाह चलिते छै कि बंद भऽ गेलै ? बन्द भऽ गेलै तऽ कोन ठाम पार होयब ? रस्ता हियासैत छी । दूर दू गोटय जा रहल छै । ओ दुनू निश्चिते धारक ओहि पार जायत । धारक एहि पार कोनो बस्ती नहि छै । हम ओहि दुनूक अनुगमन करय लगैत छी । चालि तेज भऽ गेल अछि । ध्यान झलफलाइत साँझ पर अछि ।
धार लग पहुँचि कऽ ओ दुनू अढ़ ताकि लेलक अछि । नाह नहि छै । दू-तीन टा भैंस अखने टपि कऽ ओहि पार पहुँचल छै । पानि देखि कऽ हम अटकर लगा रहल छी जे कपड़ा खोलय पड़त कि नहि ।
'कपड़ा-तपड़ा खोलह ।'- बगलसँ आबि कऽ सिबननन कहैत अछि आ एकटा पुरान मैल तौलिया हमरा दिस बढ़बैत अछि । अपन धोती ओ तेना कऽ समेटि लैत अछि जे बुझाइत छै जेना ओ बुट्टा पहिरने हो । जेना-जेना पानि बढ़ैत छै, तेना-तेना हम तौलिया ऊपर उठौने जाइत छी । सिबननन आगू अछि तइँ हम नि:संकोच तौलिया उठा कऽ नांगट भऽ जाइत छी ।
आब कने और आगू जा कऽ सटले-सटल तीन टा गाम छै – नरहैया, कदमटोल आ तकर पच्छिम हमर गाम मेनाही । हमरा पियास लागि गेल अछि आ हम ककरो ओहिठाम पानि पीबि लेबऽ चाहैत छी । मुदा सिबननन कहैत अछि- 'चलह, रामसरन ओतऽ पिबिहह । ' पता नहि कोन बात छै । रामसरन कनेक सुभ्यस्त अछि । कहियो सरपंच रहय । मुदा ओकर नाम सुनितहि हमरा पन्द्रह मन धान मोन पड़ि जाइत अछि जे ओकर पिता हमर पितासँ कर्ज लेने रहय आ कहियो घुरेलक नहि ।
सिबननन एहि ठामसँ फुटि जायत; उत्तर चल जायत, जतय पछिला साल उपटि कऽ बसल अछि । मेनाहीक लोक कटनियाक कारणे चारि ठाम छिड़िया गेल छै । सिबनन अपने दहियारी करैत अछि आ धीया-पूता खेती करैत छै; दिल्ली-पंजाब कमाइत छै । सिबननन हमर किछु खेत बटिया करैत अछि । ओही मे सँ एकटा कोलाक गहूम कमल घेरि लेने छै । तीस साल पहिने ई कोला हमरा बदलेन मे भेटल रहय । कमलक आधा हिस्सेदार बासदेव ई बदलेन कयने रहय । कमलकेँ दोसर ठाम हिस्सा दऽ देल गेल रहैक, जे अखन धारमे छै । हमर बला कोला उपजैत छै, तइँ ओकरा लोभ भऽ गेल छैक ।
'काल्हि गहूम काटि लएह ।'- ई कहैत हम सिबननन केँ विदा करैत छी। मोनमे फसादक भय अछि।अनेक प्रकारक आशंका अछि । मुदा गहूम तऽ खेतमे ठाढ़ नहि रहत । ओकरा तऽ कटनाइए छैक । चाहे क्यो लिअय । पाही आदमीक जमीनकेँ लोक मसोमातक जमीन बुझैत अछि ।
रघुनीक दुआर पर थ्रेसर चलि रहल छैक । रघुनी अपने मरि गेल । धीया-पूता छैक । दू टा बेटा दिल्ली मे छैक । तेसर जे गहूम तैयार कऽ रहल अछि, तकर नाम छिऐक नट्टा । नट्टा हमरा बैसय कहैत अछि । घरक एक कात दू टा चौकी लागल छै । चौकी पर मैल खट-खट भोटिया बिछाओल छै । चौकी सँ सटले दच्छिन गाय, भैंस, बकरी सब रहैत छै । नाकमे निरंतर गोबर आ गोंतक दुर्गन्ध अबैत रहैत अछि । कोसिकन्हाक अधिकांश लोक एहिना रहैत अछि । जानवरक संग । जानवरक समान । जानवरक हालतमे।
हम ओहि मैल बिछौन पर आ दुर्गन्ध मे कनेक काल बैसल रहैत छी । थ्रेसर सँ उड़ैत गरदा आ भूसी भौक मारि कऽ हमरा दिस आबि रहल अछि । सोचैत छी ता कमलसँ गप कऽ ली । उठि कऽ कमल कतऽ चल जाइत छी । कमल अड़ल अछि । आधा गहूम कटबा कऽ ओ अपना ओतय लऽ आनत ।
हम क्षुब्ध भेल उठि कऽ नथुनी मुखिया ओहिठाम चल अबैत छी । नथुनिओ हमर बटेदार अछि । नौ कट्ठा मे तीन सेर मेथी हिस्सा दैत अछि । नथुनी अपन बेटीक खिस्सा सुनबैत अछि । एक मास पहिने कोना पाँच हजार कर्ज लऽ कऽ ओकर विवाह कयलक । दिल्लीमे दू मास रिक्शा चला कऽ कोना ओ कर्ज सधाओत । फेर ओ अचानक पुछैत अछि – 'खाना खेलहक?'
'न' । - हम कहैत छिऐ ।
'कतऽ खेबहक ?'
'कतहु तऽ खेबे करबै ।'
ओ बेटी कें हाक दऽ कऽ हमर खाना बनबऽ कहैत छै ।
गाममे हमरा घर नहि अछि । अड़सठक बाढ़िमे घर जे कटल से फेर बनि नहि सकल । सभ बेर गाम अयला पर ई समस्या रहैत अछि जे कतऽ खायब, कतय रहब ।
भोजन करबैत काल नथुनी आश्वस्त करैत अछि जे ओ हमरा खातिर मछबाहि करत । अपन छोट भाइ धुथराकेँ ओ चिड़ै बझाबऽ कहैत छै । हम माछ आ चिड़ैक सुखद कल्पनामे डूबल सुतबाक चेष्टा करैत छी । निन्न नहि भऽ रहल् अछि । निन्न पर कल्हुका चिंता सवार अछि । गहूम जँ कमल लऽ गेल तऽ भारी बेइज्जती – जाइत-जाइत सिबननन बाजल रहय । हमर देयाद बैजनाथ, कमल पर सन-सन कऽ रहल अछि ।
धन आ स्त्री संसारक सर्वोपरि सुख अछि । लोक एहि दुनूक पाछू बेहाल रहैत अछि । धन आ स्त्रीक तृष्णा कहियो शांत नहि होइत छै । आदमी तइयो एहि मृगतृष्णाक फेरमे पडि. कऽ भटकैत अछि आ दुख उठबैत रहैत अछि ।
हम अवधारि लैत छी जे दंगा-फसाद नहि करबाक अछि । कमल गहूम लऽ जायत तऽ लऽ जाउक । भोरमे निन्न टुटिते मोन पड़ैत अछि जे गहूम कटैत हएत । मुँह-हाथ धो कऽ खेत दिस जाइत छी । गहूम कटि रहल छै । कमल पहिनहि आबि जनकेँ कहि गेल छै जे गहूम ओकरे ओहिठाम जेतैक । जन सभ असमंजसमे अछि । हम कहैत छिऐक गहूम सिबननन ओतय जेतैक । बोझ उठबाक घड़ी संघर्षक घड़ी होयत।
हम घूरि कऽ टोल पर चल आयल छी । चाह पीबाक लेल रघुनाथकेँ तकैत छी । रघुनाथ दूधक जोगाड़मे गेल अछि । दूध आनत तखन चाह बनाओत । सिबननन अबैत अछि । ओ बहुत आशंकित आ बेचैन अछि। हमरा कमलसँ गप्प करय कहैत अछि ।
हम कमल आ ओकर दुनू बेटाकेँ बुझबैत छिऐ जे बकवाद आ दंगा-फसाद कयला सँ कोनो फायदा नहि छै । जाधरि फैसला नहि भऽ जायत, ताधरि गहूम तैयार नहि हएत । रघुनाथ दूध लऽ कऽ कमले ओतय चल आयल अछि । ओत्तहि चाह बनैत छै आ कपक अभावमे हम सभ बेराबेरी चाह पीबैत छी । चाह खतम होइते कमल उठि कऽ खेत दिस विदा होइत अछि । हमहूँ विदा होइत छी । हम सभ चाह पीबिते रही, तखने चारि-पाँच टा बोझ सिबननन अपना ओतय पठबा देने रहै । किछु और कने दूर पर जा रहल छै । कमल ई सब देखि क्रुद्ध भऽ जाइत अछि । मुदा आब तऽ खेल खतम भऽ गेल छै ।
हम जहिया कहियो गाम अबैत छी तऽ चाहैत छी धारमे नहाइ । हेलबाक मौका गामे मे भेटैत अछि । मेनाहीक पूब आ पच्छिम दुनू कात कोसी बहैत छै । पच्छिम कतका धारक पसार बहुत छै । पच्छिम, उत्तर दच्छिन जेम्हरे तकैत छी, तेम्हरे बालु आ धार । दूर-दूर धरि खाली दोखरा बालु जाहिमे पचासो बरखसँ किछु नहि उपजैत छै । मेनाही, परियाही आ भवानीपुर-एहि तीनू गामक लोक तबाह भऽ गेल अछि । पीढ़ी दर पीढ़ी हजारक हजार लोक कोसीक बालु फँकैत मेटा जाइत अछि ।
हाँजक हाँज सिल्ली पानि पर बैसल छै । पच्चीस-तीस टा लालसर भित्ता पर टहलि रहल छै । आब चिड़ै कम अबैंत छै । बहुत पहिने जहिया झौआ, कास आ पटेरक जंगल रहै, तहिया अनेक तरहक जल आ थल-चिड़ै अबैत रहै । पूर्णियाक शिकारी चिड़ै बझबैत रहै आ सुपौलमे बेचैत रहै । आब झौआ उकनि गेल छै आ कास-पटेर उकनल जा रहल छै । पहिने लोक झौआ, कास, पटेर बेचि कऽ किछु कमा लैत छल । जंगलमे झुंडक झुंड गाय-महींस पोसि कऽ जीविका चलबैत छल । खढ़िया, हरिन, माछ, काछु आ डोका मारि कऽ खाइत छल । आब सभ किछु खतम भऽ गेल छै आ जीबाक साधन दुर्लभ भऽ गेल छै।
धारक बीचमे छीट पर एकटा मछवाह पड़ल अछि । बगलमे जाल आ डेली राखल छैक । हम हेलि कऽ छीट पर जाइत छी । फेकुआ अछि । नथुनी मुखियाक भाइ । डेलीमे पाव भरि रेवा छै । तीन घंटाक उपार्जन । समुद्रक कछेरमे जेना लोक पड़ल रहैत अछि, हम तहिना बालु पर पड़ि रहैत छी । एहि दुपहरियोमे धार कातक हवा ठंढ़ा छै । कोसीक पानि ठंडा छै । कनिको काल पानि मे रहला सँ जाड़ हुअय लगैत छै । दूर एक आदमी असकरे डेंगी लऽ कऽ मछबाहि कऽ रहल छै । और कतहु क्यो नहि छै । धार आ बालुक निर्जन विस्तार ।
कोसिकन्हाक लोक साहस आ धैर्यपूर्वक कोसीक प्रचंडताक मोकाबिला करैत अछि आ अपन प्राण-रक्षामे लागल रहैत अछि । कोसीक उत्पात सहैत-सहैत ओ सभ पितमरू भऽ गेल अछि आ सब तरहक दुख सहबाक अभ्यस्त भऽ गेल अछि ।
बेरियाँ मे हम सत्तो ओहिठाम चल अबैत छी । सत्तो हमर पाँच कट्ठा खेत करैत अछि । खेतमे दस बोझ गहूम भेल छैक जे तैयार करत । थ्रेसर अनलक अछि । सत्तोक माय अपन दुखनामा सुनबैत अछि । इलाजक अभावमे मरल बेटाक सोगमे ओ कनैत अछि । आब जे एकटा बेटा-पुतहु छैक तकर अभेलाक कथा सुनबैत अछि । दुख हम नहि बँटबैक, तइयो सुनबैत चल जाइत अछि । ओकर कथा के सुनत ? ककरो छुट्टी नहि छैक । तइँ हमरा सुनबैत रहैत अछि ।
सॉझ मे हम पंचैतीक ओरियान करैत छी । पंचक बुझेलो पर कमल तैयार नहि होइत अछि । फैसला होइत छै-ई खेत ओ लऽ लेत, बदलामे दोसर खेत लिखि देत। बैजनाथ कहैत छै जाधरि कमल लिखत नहि, ताधरि ई खेत छोड़बाक काज नहि छै। बैजनाथ खेत हथियाबऽ चाहैत अछि । जँ हम कहि दिऐक तँ ओ लाठीक जोरसँ खेत खाइत रहत । खेत पर कमलकेँ नहि चढ़य देत । एहि बात लेल ओ अनेक तरहेँ हमरा पर दवाब दऽ रहल अछि । कहैत अछि-तोहर पच्छ लेबाक कारणे कमल हमरा मरबेबाक लेल एकटा पिस्तौल बलाकेँ ठीक केने रहय ।
सत्तोक बकरी मरि गेल छैक । भोरमे निन्न टुटिते ओकर धरवालीक आवाज कानमे पड़ैत अछि । ओ सासुसँ पूछि रहल छै – बकरी कोना मरि गेलै ? ओकर सासु किछु बजैत नहि छै । चुपचाप बकरी लग जाइत छै । दुख आ आश्च र्य सँ बकरी कें देखैत रहैत छै । बकरी मुँह रगड़ि कऽ मरल छै । सत्तोक माय हमरा सुनाकऽ कहैत अछि-घुरघुरा काटि लेलकै की !
हम जाहि चौकी पर सूतल रही, बकरी ओकरे पौवामे बान्हल रहै । सत्तोक घरवाली ओकर गराक डोरी खोलि देने छै आ ऑगनमे जा कऽ सासु पर भनभना रहल छै-हद्दो घड़ी सरापैत रहै मरियो ने जाइत छैक !
सासु हमरा कहैत अछि-बहुत दिन पहिनहि बलि गछने रहै । कैक बेर पाठी भेलैक आ सब बेर बेचने गेलैक । अखनधरि चढ़ौलकै नहि ।
धुरि कऽ अबैत छी तऽ पता लगैत अछि बकरी डोमरा लऽ गेल छै । खाएत । सभ चीज पर मृत्युक छाया पसरल छै । पठरू माय लेल औनाय रहल छै। एम्हर सँ ओम्हर भेमिआइत दौड़ि रहल छै । दूइए-चारि दिन पहिने खढ़ धेने छै ।
सत्तो दुपहर मे दौन शुरू करैत अछि । पहिने अपन बोझ धरबैत अछि । आगू मे ओकरे बोझ राखल छैक। सत्तोक बेटी परमिलिया बोझ उठा-उठा थ्रेसर लग दैत छै । परमिलिया सतरह-अठारह सालक युवती अछि । स्वस्थ-सुगठित शरीर । ओकर जोबनक उभार पुरूष-सम्पर्कक साक्षी छै । ओ अखन सासुर नहि बसैत अछि । सूर्यास्त भऽ गेलाक बाद खुरपी-छिट्टा लऽ कऽ घास लेल जाइत अछि । संध्या-अभिसार ।
भोर मे अकचकाइत उठैत छी । क्यो आधा गिलास पानि ढ़ारि चानि थपथपा रहल अछि । आइ जूड़शीतल छै । सात-आठ बजे धरि चानि पर पानि पड़ैत रहैत अछि । ढ़लाय अपन छागर तकने फिरैत अछि । राति मे क्यो चोरा लेलकै । सोचने रहय बेचि कऽ कर्जा सधाओत । आब हताश भऽ गेल अछि ।
आइ धार मे मेला जकाँ लागल छै । लोक सभ मालजाल धो रहल अछि । छौड़ा सभ धारमे उमकैत अछि आ हो-हल्ला कऽ रहल अछि।
गाम मे आब हमरा कोनो काज नहि अछि । साढ़े तीन मन गहूम जे हिस्सा भेल अछि तकरा सुपौल लऽ जेबाक ब्योंत केनाइ अछि । साइकिल भेटितय तऽ डोमा दू खेप मे पहुँचा दैत । ने साइकिल भेटैत अछि, ने माथ पर लऽ जायवला कोनो आदमी। गहूम पितम्बर लग छोड़ि दैत छिऐ । पाँच-सात दिनमे ओकर गाड़ी सुपौल जेतै ।
दुपहर मे नट्टा परबाक माउँस बनबैत अछि । माउँस सुकन राम ओहिठाम बनैत छै आ भात नट्टा ओहिठाम । नट्टा बजा कऽ लऽ जाइत अछि । पीढ़ा सुकनक धाप पर लागल छै। हमरा भीतर छूआछूतक कोनो भावना नहि अछि । लेकिन आइ अचानक गाममे सुकन रामक ओहिठाम खाइत पता नहि कोना पूर्व-संस्कार जाग्रत भऽ गेल अछि आ कनेक काल धरि विचित्र प्रकारक संकोचक अनुभव करैत रहैत छी । फेर संकोचसँ उबरैत बजैत छी – सुकन भाय! आइ तोरा जाति बना लेलिअह । सुकन कहैत अछि जे आब ओ माल-जाल नहि खालैत अछि । बादमे एक गोटय हँसीमे कहैत अछि- तोरा सभ भठि गेल छह । तोरा सभकेँ जातिसँ बारि देबाक चाही ।
कोसी सभटा भेदभावकेँ पाटि देने छै। डोम, चमार, मुसहर, दुसाध, तेली, यादव सब एके कल सँ पानि भरैत अछि । एके पटिया पर बैसैत अछि ।
आब सूर्यास्त भऽ जायत । हम गामसँ विदा होइत छी । संगमे नट्टा आ गनेस अछि । एकटा साइकिल पर थोड़े-थोड़े गहूम लादने ओ दुनू पुनर्वास जा रहल अछि । गामक विकट जीवन पाछू छूटि रहल अछि । संग जा रहल अछि अनेक तरहक स्मृति । ई स्मृति हमर अस्तित्वक अंश बनि जायत आ जीवनमे अनेक रूप-रंगमे प्रकट होइत रहत ।
उपन्यास
-कुसुम ठाकुर,सामाजिक कार्यमे (स्त्री-बच्चासँ विशेष) , फोटोग्राफी आ नाटकमे रुचि । अन्तर्जाल पता:-http://sansmaran-kusum.blogspot.com/

प्रत्यावर्तन - (आठम खेप)
१४

१३ जून १९८५ के भारतीय नृत्य कला मन्दिर मे "मिस्टर नीलो काका" कs सफल मंचन के पश्चात् प्रति वर्ष अंतर्राष्ट्रीय नाट्य प्रतियोगिता मे मिथिलाक्षर आ "श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर" जी कs नाटक सब बेर पुरस्कार लैत रहलैन्ह आ मैथिली दर्शक आ नाट्य प्रेमी के सब बेर एक टा नव सामाजिक विषय पर नाटकक नीक प्रस्तुति देखय के लेल भेँटैत रहलैन्ह।

१९८६ मे अंतर्राष्ट्रीय नाट्य प्रतियोगिता के लेल जहिया निमंत्रण आयल छलैक ओहि समय "श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर"जी के लिखल नाटक सब मंचित भs चुकल छलैन्ह मुदा नव नाटक केर नाम ओ सोचि कs रखने रहथि। जहिया निमंत्रण आयल छलैक ओकर बाद कलाकार सब के एकटा बैठक भेलैक आ ओहि मे नाटक जे अन्तराष्ट्रीय समारोह मे जएबाक छलैक ओकर नाम बतायल गेलैक। नाटक केर नाम "लौंगिया मिरचाइ " सुनतहि कलाकार सब बड खुश भेलाह मुदा जखैन्ह इ सुनालाह जे मात्र नाम टा लिखल छैक तs पहिने त किछु कलाकार मायुस भेलाह मुदा सब बेर नाटक मे ओहिना होइत छलैक आ ता धरि कलाकार सब श्री लल्लन जी के प्रतिभा सँ परिचित भs गेल छलाह।

कलाकार सब केर बैठकी के बाद ओहि दिन राति मे बैसि कs पात्र आ "पहिल दृश्य" लिखि देलाह आ हमरा ओ कैयेक बेर सुनय परल। ओकर बाद रबि दिन सs रिहर्सल सेहो शुरू भs गेलैक। एक दृश्यक रिहर्सल कतेक दिन होयतैक। एक दिन साँझ मे देखलियैन्ह रिहर्सल स जल्दि आबि गेलाह आ आबिते कहलाह "आजु हम लिखय के मूड मे छी आ एक दृश्यक रिहर्सल कतेक दिन होयत। अहाँ सब खेलाक बाद सुति रहु आ हमरा लेल चाय बना कs राखि दिय हमरा आजु नाटक पूरा करबाक अछि"। इ सुनतहि हम कहलियैन्ह हम सुति जायब ता अहाँक संवाद सब के सुनत। हम नहि सुतब अहाँ चिंता जुनि करू हम चाय बना बना कs अहाँके दैत रहब। राति मे बच्चा सब खेलाक बाद सुति रहलाह हम चाय बना कs राखि देलियैन्ह आ बैसि कs किछु समय हुनक संवाद सब सुनलियैन्ह मुदा किछु समय बाद नीँद आबय लागल तs सुति रहालौंह। अचानक नीँद खुजल तs देखलियैन्ह लिखिए रहल छलाह ओहि समय ठीक ४:३० होइत छलैक। हुनका लग गेलहुँ तs कहलाह आब खतमे पर छैक एक बेर चाय पिया दिय। हम उठि कs चाय बनेलहुँ आ चाय दुनु गोटे चाय पिलहुँ ५:३० बजे तक "लौंगिया मिरचाइ" नाटक पूरा छलैक। इ नाटक सेहो कैयाक टा पुरस्कार पौलक।

"मिस्टर नीलो काका" के बाद जे नाटक सबस बेसी लोकप्रिय आ चर्चित भेलैक ओ छैक बकलेल। २९-४-बकलेल के अन्तराष्ट्रीय मैथिली नाट्य प्रतियोगिता के लेल कलाकार भवन एहि सिनेमा मेक मंचन भेल। एहि नाटक के सर्वोत्तम नाटक, सर्वोत्तम आलेख , सर्वोत्तम निर्देशक, सर्वोत्तम बालकलाकार, सर्वोत्तम प्रकाश परिकल्पना आ सर्वोत्तम मंच सज्ज्या के पुरस्कार भेटलैक आ नाट्य प्रतियोगिताक निर्णायक मंडलक अध्यक्ष आ फ़िल्म निर्देशक " श्री प्रकाश झा" मंच पर पुरस्कार दैत समय "श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर जी" कs प्रशंसा करैत पता आ फ़ोन नम्बर माँगि लेलाह।

बकलेल नाटक केर किछु मास बाद अचानक एक दिन प्रकाश जी के फ़ोन अयलैन्ह आ फ़ोन पर कहलथिन्ह जे ओ एकटा फिचरेट फिल्म बना रहल छथिन्ह आ ओहि फिल्म मे मुख्य भूमिका करबा के छैन्ह, आ जल्दी दू तीन दिन के लेल पटना आबय परतैंह। ऑफिस सs छुट्टी लs पटना गेलाह आ दू तीन दिन के बाद आपस आबि गेलाहआपस अयला के बाद अपन ऑफिस स छुट्टी ल आ दू कलाकार के अयबाक लेल कहि चलि गेलाह। प्रकाश जी हुनका अपन कलाकारक चुनाव मे सेहो रहबाक लेल कहने रहथि।

कलाकारक चुनाव सs शूटिंग धरि करीब डेढ़ मास लागि गेलैक। शूटिंग बेतिया लग गाम मे भेल छलैक आ किछु बम्बई मे ।सिनेमाक नाम छलैक " कथा माधोपुर की " ई सिनेमा पंचायती राज पर बनायल गेल छैक।
(अगिला अंकमे)

अनमोल झा (१९७०- )-गाम नरुआर, जिला मधुबनी। एक दर्जनसँ बेशी कथा, साठिसँ बेशी लघुकथा, तीन दर्जनसँ बेशी कविता, किछु गीत, बाल गीत आ रिपोर्ताज आदि विभिन्न पत्रिका, स्मारिका आ विभिन्न संग्रह यथा- “कथा-दिशा”-महाविशेषांक, “श्वेतपत्र”, आ “एक्कैसम शताब्दीक घोषणापत्र” (दुनू संग्रह कथागोष्ठीमे पठित कथाक संग्रह), “प्रभात”-अंक २ (विराटनगरसँ प्रकाशित कथा विशेषांक) आदिमे संग्रहित।


प्राथमिकता

-बौआक मूड़नमे कतेक खर्च भेल हेतउ बुच्ची।
-तोरा सऽ कोन लाथ माय, यैह बीस-पच्चीस हजारक आस-पास।
-की कहले! बीस-पच्चीस हजार।
-हँ, ओहिमे भोज-भात, कपड़ा-लत्ता,लेआओन-हकार सबटा ने भेलै।
-अएँ गइ, एते पाइ छलनि ओझाक हाथपर।
-नै सब पाइ तऽ नै छलनि हाथपर, किछु एम्हर-ओम्हर, पैंच उधार सेहो भेलै।
-चल भगवतीक दया सऽ काज नीक जकाँ पार लागि गेलउ, जस देलकउ समाज आर की चाही। अच्छा कह तऽ बौआक सब भेकसीन (सूइ) सब पड़लै की नै।
-हँ गय पड़लै। मात्र दू-तीन टा बेसी दामी बला पन्द्रह सै, दु-हजार बला सब बाँकी छैक से दिया देबै बादमे।
-छिः छिः छिः। तोरा बेटाक भेकसीन बाँकी छउ देनाइ आ तू भोज केले हे। कोन मनुक्ख भेलेँ तू...!!
सुशान्त झा
मैथिली भाषा- संस्कृति के रक्षाक लेल एकटा संस्था जरुरी अछि

यूट्यूव पर भटकि रहल छलहूं। नौकरी के व्यस्तता के वजह सं एतेक फुरसति नहि भेटति अछि जे यूट्यूब पर अपन मनपसंद गीत सुनि सकी। कोशिश रहैत अछि जे फुरसति भेटय त मैथिली गीत सुनी। मैथिली गीत जे सब यूट्यूब पर उपलब्ध अछि ओहि में बेसीतर बियाहक गीत आ भक्ति गीत सब अछि। मैथिली के विराट संसार में जे छिडियाल लोकगीत सब अछि तकरा सब के एकठाम पौनाई मुश्किल अछि। दोसर बात ई जे सब गीत के रिर्काडिंग सेहो नहि भेल छैक, भेलो छैक त ओकरा संकलन के काज बड्ड कठिन। गीत सब सुनिक मन नास्टेल्जिक भ गेल...कमला-बलान के धार आ राजनगर के मंदिर यादि आबय लागल। गजेंद्रजी के फोन केलियन्हि। हम जानय चाहै छलहुं जे की समस्त लोकप्रिय मैथिली गीत के वेबसाईट पर डालल जा सकैत छौ की। लेकिन पता चलल जे अहि में कापीराईट के संकट छैक। एखन अगर कियो मैथिली गीत संगती सुनय चाहैत अछि त किछ वेबसाईट पर 10-20 टा गीत छैक या नहि त यूट्यूब पर ओकरा गीत खंगालय पड़तै। हम ई खोजै छलहु जे कोनो एकटा वेबसाईट होइत जतय दिल्ली बंबई स ल क अमेरिका तक में रहय बला मैथिल अपन भाषा में गीतसंगीत के आनॆंद ल सकितथि। दुनिया जहि हिसाब स बदलि रहल अछि ओहि में अंग्रेजी आ हिंदी के भाषाई साम्राज्यवाद स बचनाई बड्ड मुश्किल बुझना जाईत अछि। लेकिन अगर सतर्कता स नब तकनीक के उपयोग कयल जे त मैथिली गीतसंगीत के विराट संसार के मैथिल भाषी तक आसानी स पहुंचायल जाय सकैछ। मैथिली लोकगीत, नाटक, लोककथा आ आख्यान हमर बडड् पैघ धरोहर अछि। आ एकर सॆयोजन के जरुरत छैक। अगर अहि स हम सब आम मैथिल के जोड़ सकी त एखनो बडड् उम्मीद अछि। लेकिन अहिलेल हमरा सबके मैथिली के सब रुप के दिल खोलि क अपनाबय पड़त अ पंचकोसी के ग्रंथि स बाहर आब पडत। अहि मुद्दा पर हम पहिनौ लिखि चुकल छी। दोसर बात जे आब बला जमाना आडियो विजुअल के छैक। पूरा दुनिया में लोक पढ़ै में दुर्भाग्यजनक रुप सं रुचि घटि रहल छैक। लोक आडियो आ विजुअल बेसी देखय चाहैत अछि। ई आब बला जमाना में आर बढ़त। अहि स इंकार नै। एखनो जे मैथिल कहिय़ो अपन जिनगी में एकटा मैथिली पोथी नै पढ़लन्हि ओ मैथिली के गीत सुनि क विभोर भय जाय छथि। आवश्यकता अहि बात के अछि हम सब कोन प्रकारे अहि विशाल समुदाय के अपन संस्कृति के अहि मजबूत उपकरण स जोड़ि क राखी। छिटपुट स्तर पर मैथिली में गीत संगती के कैसेट बनैत अछि, फिल्मों बनि रहल अछि आ आब एकटा टीवी चैनल के सेहो सुनगुनी अछि। लेकिन एकर कोनो संस्थागत प्रयास नहि भ रहल अछि। संविधान में भाषा के स्थान भेट गेलाके बादो हम सब सरकार स बड्ड उम्मीद नहि क सकैत छी। लेकिन अगर अहि दिशा में कोनो गैरसरकारी प्रयास इमानदारी स कयल जाई त एखनों बहुत काज कयल जा सकैत अछि। अहि दिशा में गजेंद्रजी के प्रयास वास्तव में स्तुत्य छन्हि जे बुहत मेहनत क क अहि दिशा में काज क रहल छथि। मैथिल बुद्धीजीवी सबके अहि पर विचार करय के चाहियनि आ कोनो तरीका खोजय के चाहियनि। अहि में बाद में सरकारी अनुदान आ विदेशी अनुदान स ल क वैयक्तिक अनुदान के कमी नहि रहत-ई हमर दृढ़ निश्चय अछि। कोनो ट्रस्ट या सोसाईटी के अधीन अगर ई काज कयल जाय आ नया विचार सामने आबय त ओ स्वागतयोग्य कदम होयत।
नवेन्दु कुमार झा, आकस्मिक समाचारवाचक सह अनुवादक, मैथिली संवाद, आकाशवाणी, पटना

१.रेलवेक श्वेत पत्रकेँ लऽ कऽ चलि रहल अछि वाक् युद्ध

संसदमे प्रस्तुत वर्ष २००९-१० क रेल बजटमे भने बिहारक उपेक्षा कयल गेल हो मुदा बिहारक नेताकेँ जेना एकर चिन्ता नहि अछि। परञ्च रेलवे मंत्री ममता बनर्जी द्वारा रेलवेक स्थितिपर श्वेतपत्र जारी करबाक घोषणाक बाद बिहार दू टा पूर्व राजनीतिक मित्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आ पूर्व मुख्यमंत्री आ पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद एक दोसरापर हमला कऽ रहल छथि। एक दिस रेल बजटमे बिहारक उपेक्षाकेँ लऽ कऽ कांग्रेसकेँ छोड़ि आन दल आ संगठन केन्द्र सरकारकेँ अपन निशाना बना रहल अछि तँ दोसर दिस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रेल मंत्री ममता बनर्जीक प्रशंसा कऽ हुनका द्वारा रेलवेक स्थितिपर श्वेत-पत्र जारी करबाक घोषणाक समर्थनमे ठाढ़ भेल छथि। बिहारक चुनावी राजनीतिमे पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसादकेँ जमीन धड़ा देलाक बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार श्वेत-पत्रक माध्यमसँ पूर्व रेल मंत्रीकेँ प्रदेशक राजनीतिसँ बेदखल करबाक प्रयासमे लागल छथि।

वर्तमान वित्तीय वर्षक रेल बजटमे बिहारकेँ कतिया देबाकेँ मुद्दा बनेबाक बजाय श्वेत-पत्र जारी करबाक लेल सभ दिन बयानबाजी भऽ रहल अछि। ई विडम्बना कहल जा सकैत अछि जे रेलक मामिलामे पछुआयल बिहारकेँ एहि बेरुका बजटमे नव घोषणाक मात्र लॉलीपॉप थमा देल गेल। कोनो नव परियोजना एहि बेर बिहारक हिस्सामे नहि आयल। पूर्व रेल मंत्री द्वारा रेलवे घोषित परियोजना सभपर रेल मंत्रीक रवैय्या उदासीन रहल तथापि ई मुद्दा श्वेतपत्रक आगाँ गौण भऽ गेल अछि।

रेलमंत्री द्वारा रेलवेक स्थितिपर श्वेतपत्र जारी करबाक घोषणाक बाद नीतीश कुमार जाहि तरहेँ सक्रिय छथि, ओहिसँ लगैत अछि जे ओ पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसादकेँ प्रदेशक राजनीतिसँ उखाड़ऽ चाहैत छथि। श्री कुमारक अनुसार वर्तमान रेल बजटमे पूर्व रेलमंत्री द्वारा रेलवेकेँ लाभ देखेबाक जे हवाइ-चित्र प्रस्तुत कऽ जे बाजीगिरी पूर्व रेलमंत्री कयने छलाह, ओकर पोल खूजि गेल अछि। एहिसँ आँकड़ाक जे खेल खेलल गेल छल से सोझाँ आबि गेल अछि।

ज्योँ पुरान मित्र हमलापर हमला कऽ रहल होथि तँ भला पूर्व रेलमंत्री कोना चुप बैसि सकैत छथि। पूर्व रेलमंत्री लालूप्रसाद रेलवेक स्थितिपर श्वेतपत्र जारी करबाक घोषणाकेँ एकटा चुनौतीक रूपमे स्वीकार कयलनि अछि आ सात दिनक भीतर श्वेतपत्र जारी करबाक चुनौती रेलमंत्रीकेँ देलनि अछि। श्री प्रसादक अनुसार रेलवेक भेल लाभ पूर्वक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकारक उपलब्धि छल मुदा कुण्ठासँ ग्रसित भऽ वर्तमान सप्रग सरकारक रेलमंत्री एहिपर आँगुर उठा रहल छथि।

कहल जाइत अछि जे दुश्मनक दुश्मन दोस्त होइत अछि आ एहि तर्जपर ममता बनर्जी द्वारा लालू प्रसादपर अपरोक्ष हमला कयलाक बाद नीतीश कुमार श्री प्रसादकेँ अपन निशाना बना रहल छथि। रेलवेक बहन्ने दुनु पुरान मित्रक भऽ रहल वाक् युद्धमे बिहारक हक मारल जा रहल अछि, एकर सुधि लेबाक फुर्सत ककरो नहि अछि।
२.ममताक रेल बिहारमे भेल डिरेल्ड

लगातार तेरह बरख धरि रेलवेक लेल विशेष महत्व राखयबला बिहार एहि बेरुका रेल बजटमे कतिया गेल। गोटेक डेढ़ दशक धरि जार्ज, नीतीश, रामविलास आ लालू जाहि तरहेँ रेल बजटमे बिहारमे सरपट रेल दौड़बैत छलाह, ओहिसँ बिहारक जनताकेँ अहू बेर पैघ आशा छल। मुदा रेलमंत्री ममता बनर्जीक रेल बजट पूरा देशमे सरपट दौड़त बिहारमे डिरेल्ड भऽ गेल। पूर्वक बिहारी रेलमंत्रीसँ नाराज ममता दीदी बिहारकेँ मात्र लालीपाप थमा श्वेतपत्र जारी करबा तेहन शगूफा छोड़लनि अछि जे बिहारक नेताकेँ अपन हकक याद बिसरा गेल अछि आ ओ श्वेतपत्रक बहन्ने एक दोसराकेँ नीचाँ देखबऽ मे लागल छथि।

वर्ष २००९-१०क रेल बजटमे मिथिलांचल तँ जेना रेलवेक नक्शासँ गायब बुझा रहल अछि। रेलवे नव-घोषणाक प्रतीक्षा कऽ रहल मिथिलावासीकेँ ममता दीदी जेना बिसरि गेलनि। बजटमे बिहारक लेल कयल गेल आधा दर्जन घोषणामे सँ मिथिलांचलक हिस्सामे सीतामढ़ीसँ बैरगनियाक मध्य रेल-लाइनक दोहरीकरण आयल अछि। राजधानी पटना विश्वस्तरीय स्टेशन बनेबाक सूचीसँ गायब अछि, ओना रेलवेक अधिकारी एहिसँ मना कऽ रहल छथि, ओतहि दू टा नव ट्रेन पटनासँ राँचीक मध्य एकटा जन-शताब्दी आ झाझासँ पटनाक मध्य सवारी गाड़ीक संगहि गया आ जमालपुरक मध्य सवारी गाड़ीक घोषणा एहि रेल बजटमे कयल गेल अछि। आन नव घोषणामे पटना-सिकन्दराबाद आ पटना-पुणे ट्रेनक परिचालन प्रतिदिन, बाबूधाम-मोतीहारी एक्सप्रेसक विस्तार मुजफ्फरपुर धरि आ मुजफ्फरपुरक रास्ता राजधानी ट्रेनक परिचालनक घोषणा कयल गेल अछि। ममता दीदी नव नन स्टॉप ट्रेनसँ पटनाकेँ वंचित कऽ रेल मंत्री अपन मंशा स्पष्ट कऽ देलनि। एहि वर्ष चलयवाला १४ टा नव नन स्टॉप ट्रेनमे सँ कोनो ट्रेन पटनासँ नहि खूजत मुदा पटनावासी पटना जंक्शन भऽ कऽ जायबाला एहि ट्रेनकेँ टाटा-बाय-बाय कहि सकैत छथि।

३.चेतना समितिक आम सभामे नव पदाधिकारीक भेल चुनाव

मिथिलांचलक प्रतिनिधि सामाजिक संस्था चेतना समिति पटनाक सम्पन्न भेल वार्षिक आम सभामे वर्ष २००९-११क लेल नव पदाधिकारीक चुनाव कयल गेल। सम्पन्न चुनावमे उपाध्यक्षकेँ छोड़ि आन पदाधिकारी निर्विरोध चुनल गेलाह। समितिक निर्वर्तमान अध्यक्ष विजय कुमार मिश्र पुनः अध्यक्ष बनलाह तँ सचिव पदपर विवेकानन्द ठाकुर निर्वाचित भेलाह अछि। उपाध्यक्षक तीन पदक लेल भेल मतदानमे प्रेमकान्त झा, प्रमीला झा आ पुरुषोत्तम झा निर्वाचित घोषित भेलाह अछि। मधुकान्त झा, सत्यनारायण मेहता आ प्राणमोहन मिश्र संयुक्त सचिव, योगेन्द्र नारायण मल्लिक कोषाध्यक्ष, जगत नारायण चौधरी, संगठन सचिव आ सुरेन्द्र नारायण यादवकेँ प्रचार सचिव बनाओल गेल अछि।


कुमार मनोज कश्यप
जन्म मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। बाल्य काले सँ लेखन मे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवानी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।

मनस्ताप

आजिर भऽ गेल छल मोन फाईल निबटबैत-निबटबैत। मोन के कने हल्लुक करबा लेल कुर्सी सँ उठि अपन चैम्बर सँ बाहर निकलले रहि कि ऑफिसक पाछु ओहि कोन मे किछु देखि कऽ ठमकि गेलंहु। देखैत छी हमर अर्दली रामनिवास ककरो सँ मंद स्वर कनफुसकी करैत़़ किछु बुझबैत़़ ओ व्यक्त्ति अपन जेब सँ एकटा नोट निकाललक़़ रामनिवास ओ नोट ओहिना पैंटक जेब मे राखि लेलक़़ फेर ओहि व्यक्ति के आश्वस्त कऽ रामनिवास पाछु मुड़ल। अप्रत्याशित रुप सँ हमरा सामने देखि रामनिवास सकपका गेल़़ हवांस उड़ऽ लगलै़ चेहरा पीयर पड़ऽ लगलै़ पैर काँपऽ लगलै। चोट्टहि हमरा पैर पर खसि कऽ कानऽ लागल़़''हाकिम! बड़ पैघ गलती भऽ गेल हमरा सँ हमरा एहि बेर माँफ कऽ दियऽ हम कान पकरैत छी़ ।'' हमर तामस टीक तक चढ़ल जा रहल छल़़ हमर अर्दली आ घूस़़ ओकर की छैक?बदनामी तऽ हमर हैत। केयो कहैत तऽ बाद मे पतियबितौं आइ तऽ चोर सेन्हे पर धड़ा गेल।

लोकक भीड़ बढ़ले जा रहल छलै़ ज़ते मुँह, तते तरहक बात। कनिये कालक बाद डी०एस०पी० अपने आबि रामनिवास के पकड़ि कऽ लऽ गेलाह। रामनिवास कनैत पुलिसक संग जा रहल छल़़ हमरा मोन के उसास भेटल़़ ठोर सँ कठोर सजा भेटक चाहि एहन भ्रष्टाचारी के़।

दिन बीतल़़ समय बीतल़़ हमहुँ तबदला पर दोसर शहर मे आबि गेलंहु। एक दिन विभागीय मंत्री के औफिस सँ फोन आयल - मंत्रीजी भेंट करऽ चाहि रहल छथि। मंत्रीजीक आदेश भेलनि जे पुरनका ऑफिसक ठेकेदार धर्मपाल एण्ड संस के सभ बकाया बील बैक डेट मे पास कऽ दियौ। डेड लाईऩ तीन दिन के भीतर भुगतान भऽ जेबाक चाही।

अनमनस्क मोन सँ हम पुरना बील सभ मँगा होटलक कक्ष मे बैसल पास कऽ रहल छी़ आन ऊपाईये की़ ऩोकरक लेल तऽ मालिकक आदेश सिरोधार्य। नोकरी करक अछि तऽ उचित-अनुचित सभटा करहि परत़़ हंसि कऽ की कानि कऽ । बील की छलैक सभटा झूठ़़ बिना काज करबायल़़ आब परमेश्वरे टा रक्षक सैह सुमीरि दस्तखत केने जा रहल छी झूठक पुलिंदा पर।

जखन एतऽ आयले छी तऽ पुरनका मित्र सभ सँ भेंट-घाँट नहि केनाई सेहो कोनादन होयत । दोसर, मोनक भड़ास निकलि जाय तऽ मोनो हल्लुक होईत छैक । सैह सोचि पैर अकस्मात जिला जज के आवास दिस बढ़ि गेल। जिला जज कर्णजी हमर नीक मित्र मे सँ छलाह। बेचारे बड़ सहृदय लोक। जखन एहि ठाम पोस्टिंग रहय तखन एको दिन भेंट नहि भेला पर तुरत फोन आबि जाय जे निके छी कि नहि।

चाय-स्नैक्स के बीच मे चर्चाक मध्य हमरा मोन पड़ि गेल रामनिवास़़ मोन कि पड़ल कर्णजी के कनियाँ मोन पाड़लनि । छगुंता भेल जे रामनिवास एखनो धरि जेले मे आछ। कर्णजी हमरा तजबीज करैत बजलाह- ''सजा तऽ अपराध सँ बेसी भईये गेलैक मुदा हम जमानति एहि द्वारे नहि देलियै जे ओकरा आहाँ स्वयं पक़डने रहि।'' हम हुनका सँ जमानतिक आग्रह कऽ लौटि फेर पुरना बील मे ओझरा गेलंहु।

दोसर दिन बील सँ मगजमारी के बीच बाहर किछु आहट बुझना गेल़़ मुड़ी उठौलंहु़ आगाँ मे रामनिवास दुनू प्राणी कऽल जोड़ने ठाढ़ छल। केयो किछु नहि बाजल़़ दुनूक आँखि सँ आवरल नोर बहल जा रहल छलैक। हमरो मोन द्रवित भऽ गेल़़ अंतरात्मा कान उमेठलक़़ ''बीस रुपया लेल़़ सेहो काज जल्दी करा देबाक लेल ज़ँ सजा पाँच मासक जेल छैक; तऽ बिनु काज करेनहि ठेकेदार के गरीबक लाखो रुपया पेयमेंट कऽ देबाक घोर अपराधक सजा कि हेबाक चाहि? उम्र कैद वा फाँसी वा ओहु सँ किछु बेसी़?''

रामनिवास दुनू प्राणिक आँखि सँ दहो-बहो बहैत नोर साईत हमरा सँ यैह मूक प्रश्न कऽ रहल छल। आई हम अपराधी रुप मे ठाढ़ छी ओकरा दुनूक समक्ष बौक बनल।
चन्द्रेश
संवेनशील मोनकेँ छुबैत हुगली ऊपर बहैत गंगा
रामभरोस कापडि भ्रमरक ३२ गोट कथाक संग्रह थिक हुगली ऊपर बहैत गंगा । एहि संग्रहक नामक अन्तिढ़म कथा थिक । हीरा आ सोना बाईक माध्यपमे कथाकार नारी मोनक संवेदनाकेँ उभारिक भविष्यलक सृजन दिस डेग उठाओल अछि । ई सत्यढ़ थिक जे नारीक देहक अवयवकेँ कामुक पुरुष अपन धन–सम्पेत्ति बुझि ओएह व्यरवहार करैत अछि जे नारीक मोनकेँ दुःख ओ पीडामे भरिक कुण्ठिीत करैत अछि । नारी मात्र देह नहि थिक । नारी आ पुरुषक साहचर्य अबस्से‍ सृष्टििक निरन्तढ़रता थिक । एकर अर्थ ई नहि जे नारीक देहकेँ खेलौना बूझिक खेलायल जाय । ओकर अंग–प्रत्यंागकेँ तोडि–मरोडि अर्थात् अत्यानचार क प्रेम ओ विश्वाथसके तोडल जाय । ई सत्यल अछि जे आजुक भौतिकबादी युगमे धनक अतिशय लिप्साग अबस्सेे मानवीय मूल्यनबोधकेँ गिडने जा रहल अछि । जेँ कि मानवीय चेतना आ मनुष्यअता कुण्ठिकत क देल गेल अछि तेँ अनैतिकताक अढमे छिडहरा खेलाओल जाइत अछि । धन–मदक एंठी पर नग्नच कामुकताक ताण्डकव मचल अछि । दैहिक जरुरतिसँ बेसिए काम क्रीडामे भोग आ लिप्साि नयन रंजन भ गेल अछि । तेँ विभिन्ने मुद्रा अख्ति्यार क आवेग आ उच्छ्छाअसमे अमानवीयताक – क्रूर आ पैशाचिक रुपक दिग्दअर्शन होइत अछि । लाचार मे विचार कतय ? फलतः वासनाक भ्रमजालमे ओझरा क नैतिकता ओ मर्यादाकेँ अतिक्रमण क कुत्सि–त मानसिकताक – क्रूर रुप झलकि अबैत अछि ।
एहि शीर्षक कथामे हीरा असन्तोभष आ खौंझीकेँ मेटयबाक लेल सोनाबाइक ओहिठाम अबैत अछि । ओकर एकमात्र उद्देश्यक रहैत छैक जे मोनकेँ बहटारि लेब । सोनाबाइ अपन पेशामे कतहु कोनो कोताही नै करैत अछि । ओ आवेशक स्नेमहिल स्‍वरमे लगीच अयबाक आमंत्रण अपन परिधान खोलि क दैत अछि । हीराकेँ ठकमुहरी लागि जाइत छैक । ओकर हृदयमे नारीक प्रति सम्मासन– भाव जागि जाइत छैक । ओकर मनोभावमे स्त्रीी संवेदना अस्मितताक पर्याय बनि उभरि अबैत छैक । सोनाकेँ हडबडी छैक जे एकटा ग्राहकसँ निपटत तँ दोसरक आश ? ओ बजैत अछि जे आउ ने,आनो ग्राहक खोज पडत ने (१४४) । हीरा हारल जुआडी सन मनोव्य्था की कहि दैत अछि जे सोनाक आँखि चमकि उठैत अछि । ओकर सबल मानवीय संवेदना उभरि अबैत छैक – हम आइ पहिल बेर कोनो सुच्चाह मनुक्खाक दर्शन कयलहुँ अछि (१४६) । परिणतिमे दुनूक सुरक्षा भावमे अपनत्वाबोध जागि जाइत छैक ।
तात्प्र्य जे दैहिक भोगसँ बेसी–मोनक राग जे हल्लु४को आँच पर बरकैत रहैत छैक वा बेसिए आँच पर किएक ने, मुदा दुनू स्थि तिमे अनुशासित रहैत छैक । यैह कारण थिक जे जीवनकेँ गति आ उष्मा६ देबामे स्त्री –पुरुषक साहचर्य दोसरक पूरक बनैत अछि । आजुक समाजमे अमानवीयताक यैह स्थिछति अछि जे स्त्रीनकेँ चीरीचोँत क अपन पुरुषत्वै देखयबाक दम्भ भरैत अछि ततय सोना आ हीराक बीचक घटित घटना कनेक अविश्विसनीयताकेँ पनुगबैत अछि । जतय सोनाक संग भेल अत्याुचार स्व तः उघरैत व्य था–कथा कहैत अछि ततय ई पंक्तिक–सोना आन बाइ जकाँ तोडल–मचोडल नहि गेलि रहय, बाँचल छलीह (१४४) सेहो अविश्व्सनीय बुझाइत अछि । शिल्पयक दृष्टििएँ अवस्से ई कथा कनेक कमजोर अछि, मुदा कथ्याक दृष्टि एँ रक्त४ आ स्नेसहसँ जे अपनत्वी बोध जगाओल गेल अछि से अबस्सेई मनुष्यिक मनुष्यथताक स्वाछद चीखबैत अछि ।
आब ई प्रश्न‍ उठब स्वा भाविके जे मनुष्यिक मनुष्यतताकेँ अमानवीय बनयबाक दोषी के ? की जन समाज ? समाज तँ लोकेक थिक । ई सत्य अछि जे आइयो हीरा सन गनल–गूंथल लोक अछि । तथापि कामोत्तेजक भाव–भंगिमा नेने दैहिक जरुरति बुझि वा फैशनपरस्तस भ कुटिल पुरुषक अहं अबस्सेठ स्त्री केँ भोगक सामग्री बुझि पबैत अछि जे मोनक तुष्टिब हेतु कुविचारेँ पाश्विभक आचरण करैत अछि । जं हीरा आ सोना बाइसन एक दोसरक प्रति समर्पण आ निष्ठार–भावमे राग उभरय तँ निश्चिनते अनैतिकताक अढमे होयत विकृतिक विषाक्त चद्दरि फाटत आ असली छवि जगजियार होयत । एतेक तँ निश्चिवते जे विश्वाचस आ हार्दिकतामे स्त्री –पुरुषक आकर्षण अबस्सेव जीवन–सत्यतक अढमे मानवीय आकांक्षाक पूर्तिमे सबल ओ सहायक सिद्ध होयत । हीरा आ सोनाक हृदयमे वास्त‍विक प्रेम–भाव की अंकुरित होइत अछि जे सहजता ओ सरलतामे आन्तवरिक जटिलताकेँ आरो सघन बनबैत अछि । नारी पूरक बनैत अछि । जेंकि अभिजातीय संस्कृरतिक विरोध स्वारुप सामाजिक अस्मििताक व्या पक बोध अर्थात् स्त्रीो पुरुषक सहज आकर्षणमे आत्मिरक स्व र उभरिक आत्मिस्फुकलिंग छिटकबैत अछि तेँ दुनूक संघर्षमे सामाजिक जीवनक यथार्थ झलकि उठैत अछि ।
आधुनिक चकचोन्हीहमे अन्हतरायलि भगजोगनी कथामे रेखाक भोगबादी लिप्साछ ततेक आगाँ बढि जाइत अछि जे अपन बसल–बसाओल घर उजारबासँ बाज नहि अबैत अछि । ओ बिसरि जाइत अछि जे अर्थलिप्साो सम्बेन्धलकेँ गीडि जाइत अछि । फल भेटैत छैक जे जखन जीवनक बोध होयत छैक तँ गत कर्मक तर्पण करैत अछि । ओ भ्रमजालमे जे अहुरिया कटैत छल से तोडि फेकैत अछि । यौन रुपमे उन्म त्त प्रेम आ घृणाक ढहैत देबालक बीच समाज आ सत्यअसँ जे साक्षात् कराओल गेल अछि से अबस्से। वैयक्तिौक चेतनाकेँ धार दैत दाम्प त्यह जीवनकेँ सफल बनबैत अछि । एहिमे प्रेम आ यौन सम्वलन्धीस गेंठकेँ फोलैत कथाकार उपसंस्कृमति पर जमिक प्रहार कयल अछि । ई सत्यत थिक जे दैहिक भूख लोककेँ कामुकतामे जकडि अबस्से देह मैथुनकेँ प्रश्रय दैत अछि । एतेक दूर धरि जे आवेगमे मनोविकार अपन ठोस रुप तत्क्षैण प्रभाव जनबैत अछि । मुदा, काम–भावक भूख सम्वछन्धेकेँ स्थापयित्व नहि प्रदान करैत अछि तेँ असन्तोवष पनुगैत अछि । सामाजिक दायित्वभ बोधक ई कथा थिक । ॅअन्हाारमे भोतिआयल एकटा सिपाही गणेशक संस्म रण थिक । ई संस्मनरणात्ममक रिपोर्ताज थिक । कारण गणेशक संस्महरण उपस्थाआपितक ओकरे गुण–गौरवकेँ परोसल गेल अछि । तें कथा–सूत्रक निर्माण तेना भऽकऽ नहि भेल अछि जेना कि पात्रक परिप्रेक्ष्यंमे घटना आ स्थियतिक विवरणात्मफक प्रस्तुोति भेल अछि । साम्यथबादी विचारधाराकेँ लऽकऽ कामरेड कथाक सृष्टिक भेल अछि– गरीब गरीब सभ एक हो । अर्थात् धनी–गरीबक बीच जे असमानताक खधिया अछि से आरो चकरगर भेल जाइत अछि तकरे भरबाक भरपूर प्रयासमे ई कथा सृजित भेल अछि । सुपत–कुपत आब हमहु सब कहबै (३७) । आत्म चेतना जगयबाक उद्देश्येँ ई कथा सृजित भेल अछि ।
पाइक आगाँ बेइज्जकति आ गारि कथीक एहि पृष्ठमभूमि पर उडान-कथा सृजित भेल अछि । कतार दिस उडान भरबाक लोभेँ आ ढेर पाइ अर्जित करबाक सपना संजोगने रजिन्दआर कापरकेँ पहिलु एजेन्टन दस हजार टाका, दोसर अस्सीक हजार आ तेसर खेप पन्चा‍न्वेद हजारक कर्जा पर लेल टाका बोहाइत छैक । ओ ठकाइत अछि तैयो ओकरा उडान भरबाक आशा छैक । ओ हृदयक कोनो कोनमे दमित इच्छााकेँ संयोगने रहैत अछि जे कोना उडान भरी । जहिना धनक लेल जेबाक हाहुती तहिना एजेन्टछकेँ चाही लाभ । माने ई उडान की, दस हजारसँ पच्चीअस हजार धरिक चोखे नफा । तात्पलर्य जे दुनू गर भिडौने । तेँ बेर बेर ठकाइतो लोक पुनि ठकाइत अछि । एहिमे पाखण्डीे चरित्रक पर्दाफाशक संग केवल जीवन जीनाइयेक मात्र लुतुक नहि होयबाक प्रत्यु त जीवन मूल्योबोधक लेल जीवाक ओकालति संकेत मात्रमे कयल गेल अछि ।
जय मधेशमे एक मधेश, एक प्रदेश लऽकऽ आन्दोीलन अछि । मधेशी आ पहाडीक बीचक खधिया समानतामे पटि जाय । अयोधी मास्ट रके जीवन कोहुनाक मास्टगरीमे खेपायल आ एकमात्र बेटा अशोक केँ नोकरी नहि भेटब । तात्पार्य जे अपेक्षित योग्यजता अछैतो व्य्वस्थेी तेहन वनल छैक जे मधेशकेँ के पूछओ ? तेँ आन्दोीलनी जुलुसमे ओकर बुढायल देहक जोश की हिलोर मारय लगलैक जे ओहो कूदि पडल । ओकर अस्मिथता की जागि उठलैक जे मधेशक लेल ओ किछुओ क सकैत अछि । राष्ट्रि यताक परिप्रेक्ष्यदमे अपन विचार, भावना आ समयके सत्यत केँ उद्भासित कयल गेल अछि । जखन लोकक अस्मििता पर चोट लगैत छैक तँ ओकर मोन कचोटय की लगैत छैक जे स्वसतंत्रताक हनन मंजूर नहि होइत छैक । मधेशी होयबा पर जे गौरवबोध होइत छैक से जखन एके देशमे विषमताक बोध होइत छैक तँ पीडाइत मोनमे आक्रोश पनुगैत छैक । एहिमे मानवीय जीवनक संवेदना झलकि उठैत अछि ।
गहनतम प्रश्नाकनुकूलतामे भहरैत नेओक जोड कथाक सृस्टिा भेल अछि । एहिमे निरसन बाबूक पुत्री सरोजाक दुःस्थिकतिमे अन्ति ओ रानीक संग छलाइत जीवनके कथाकार ओकर मार्मिक पीडाके उभारिक सामाजिक परिवर्तन दिस ध्याअन आकृष्टस कराओल अछि । एतेक दूर धरि जे एकर जिम्मे वार के ? स्त्रीपक त्रासक मार्मिक उद्घाटनक फलस्वररुप ई कथा फोकिला मानसिकताक दम्भ केँ आरो उघार करैत अछि । ओढल अभिभावकत्वेक नीतिकेँ सरेआम चौबटिया पर नग्न‍ क मानवीय जीवनक अनुभवसँ सम्पृवक्तर क निजी संवेदनाकेँ सार्वभौमिक बना देल गेल अछि । एहि प्रकारेँ एक दिस हृदयहीनता आ मूल्ययहीनताकेँ देखार कयल गेल अछि तँ दोसर दिस परिवर्तनक सुगबुगीमे मानवीय सोच आ संवेदनाकें आजुक परिस्थि तमे ठोस दृष्टिय द अमानवीयताक खोलकें चीटीचोंत करबाक सनेस बिलहल अछि ।
अन्तगतः मे किसुनमाक ऊहमपोहक स्थि तिमे जतय पत्नीस उत्तीमपुरवालीक प्रति अनुराग–भाव अछि से पंजाबमे कमाइत मनसूबा पोसने घर अबैत अछि तँ एकटा नेना? मासक फरक । आन बापक बच्चात अर्थात् अनकर जनमल बेटा । रहि रहिक ओकर हृदयकेँ ई बात टीसैत की छैक जे सभटा मनोरथ भग्ना भ जाइत छैक आ अन्तिचम परिणतिमे नेनाक मूडी छपाक् क दैत अछि । निर्दोष आ अबोध बच्चातक हत्याा ।
ई सत्यक थिक जे निशंस हत्यानक फलस्व्रुप हृदय भावमे परिवर्तन आयब स्वा भाविक थिक । मुदा, अबोध वच्चाइक हत्याउ ? तकर परिनति ? कथा जाहि विन्दुह पर आबिक छोडि देल गेल अछि से आगाँक अपेक्षा रखैत अछि । तैयो, एकटा प्रश्नअ पनुगबैत सोचबाक लेल वाध्या करैत अछि ।
अमरलत्ती कथामे रेखाक माध्युमे ओकर बहसलि उद्दाम छविक वीभत्सग रुप देखार कयल गेल अछि । ओ अमरलती बनि चतरैत की अछि जे सहारा बनैत आनक बसल–बसाओल घरकेँ उजारि–पुजारि दैत अछि । अपन बनल घर तँ उपटाइये दैत अछि जे आनोक घरमे वास क ओकर सोनहल दुनियामे आगि पजारि दैत अछि । एहिमे रमेशक कामलोलुपताक रेखाक काम–भाव जाग्रत भ मायाजाल की पसारैत अछि जे आरो अहिमे ओझराइत जाइत अछि । एहि प्रकारें वासनाकेँ उभारिक पुरुष आ स्त्री वर्गक कुत्सिमत मानसिकताकें देखार कयल गेल अछि । सामाजिक कुव्यतवस्था् ओ एहिसं उपजल मानवीय व्य‍थाकें अवस्सेम कथाकार उभारल अछि ।
सम्बरन्धिक पीडामे आशाक हृदयमे बरकैत हृदयक उफान जे प्रेमक उपजामे मानसिक पीडा प्रतिफलित अछि तकर सशक्तक चित्रण भेल अछि । प्रेम कहि–सुनिक नहि होइत छैक आ ने कीनल बेसाहल जाइत छैक । जखन दूटा हृदय मिलैत छैक वा मोन मिलानी भ जाइत छैक तँ बाटमे केहनो रोडा अटकाओल किएक ने जाउक तैयो दुनू–प्रेमी –प्रेमिका हँसैत–कनैत, संघर्ष पथ पर टकराइतो, खसितो–उठितो पार–घाट उतरिए जाइत छैक । सैह स्थिनति आशा ओ संदीपक मोन–मिलानीमे भेलैक । फल भेटलैक जे आशाक माय–बापक हृदयमे उठैत विरक्तिर भाव सम्बान्ध –सूत्रकें खण्डिमत क देलकैक । आ आशा प्रेमक पणिामसँ उपजल मानसिक पीडाकेँ सहबाक क्षमता अपनामे विकसित करबाक प्रयास क रहलीह अछि (१३८) । सामाजिक यथार्थक रुप झलकाक कथाकार सामाजिक व्यावस्थाेकेँ उघेसिक आत्मीरयता ढंगसं लोकजीवनक चित्र उभारबाक प्रयास कयल अछि ।
बालमोनक सुलभ चंचलता ओ नेनपनक निश्चतछलताकेँ स्मगरण करैत नरेशक मोनमे स्मृ तिक तरंग की प्रवहित भ अबैत छैक जे होयत छैक जे हमही किए ने अपनाकेँ नेना बनाली (१४२) । फ्लैश बैक कथाक माध्यममे कथाकार बालपनक अढमे निडरता, निश्छ्ना लता आ सौहार्द्र भावमे वचपनक प्रेमक अनुभूति जगाओल अछि तँ उमेरक चारिम प्रहरक पनुगैत भय, सुरक्षा, षडयन्त्र , सामाजिक विद्रूपता आदिसँ अपनाकें बँचबा–बचयबाक प्रयासकेँ रेखाङ्कित करबाक । ई सत्यष थिक जे नेनपनक बिताओल क्षणक मधुर स्मृातिमे लोकजीवन चाहैये, मुदा संघर्षमे सेहो जीवनकेँ फूट आनन्दब अबैत अछि । सामाजिक व्याक्ति।त्विक दोगला मुंह अर्थात् सभ्य समाजक अंग बनबाक लेल लोक जे छल–क्षुद्रमक खोल ओढने रहैत अछि । से अवस्से मानसिक बुद्धिकें कुण्ठि त करैत अछि, सामाजिक समरसताकें खण्डिेत करैत अछि ।
नेपालीय मैथिली कथा–साहित्योमे निस्स्न्दे ह कथाकार भ्रमरक कथामे जीवनक राग अछि आ अछि नव युगक नारीक प्रति विशेष श्रद्धा–भाव । तेँ हिनक बेसिए कथामे नारी जीवनक संघर्ष अछि । युग यथार्थक त्रासदी जे सामाजिक विडम्ब नामे उपजैत अछि आ एकर कारक थिक सामाजिक व्य वस्थाह । तेँ कथाकारक छटपटाइत मोन मे अबला नारीक चीख अछि आ परिवेशक दंशमे पीडाइत मानसिक व्यिथा–कथा । देह–भोगमे टीसैत दर्द उभरि की अबैत अछि जे सामाजिक सत्यरकेँ देखार करैत यथातथ्यमक मोनक पीडाकेँ उगलि दैत अछि । टूटैत सम्बीन्धह, छुटैत लोक, अर्थ लिप्साकक मोह ओ दैहिक भोगमे पीडाइत कामुकता आ रोटीक समस्याा नेने कथाकारक मोनमे कतेको प्रश्नब छटपटी मचौने अछि तकरे सार्थक अभिव्यअक्तिस द सहज ओ सरल भाषा मे पाठकक सोझाँ परोसि देलनि अछि ।
कोनो सभ्यतता–संस्कृीतिकेँ गतिशील बनाक राखब समाजक लोक दायित्वक थिक । से ताधरि जाधरि ओ सामाजिक जीवनमे सार्थक भूमिका निमाहय । ई नहि जे सडल गलल परम्प‍राकेँ उघने व्य वस्था क तरमे पीसाइत जीवनसँ कटल व्य वस्थाीकेँ सत्य मानि फोकिला मानसिकताकेँ उघैत रही । जे सभ्याता संस्कृतति जीवनमे नहि उतरि सकय तकर परित्यातग करब उचित–विहित थिक । ओ जीवनक अर्थक खोजमे प्रेमक आसरा लैत समयक परिवर्तनकेँ युगक अनुकूलेँ टांकिक नव समाज बनयबाक आकांक्षा रखैत छथि । तें कथाकार सामाजिक विसंगतिसं उत्प न्न् विषमता ओ आर्थिक स्थितिक संग सांस्कृकतिक आयाम पर जमिक विमर्श करबाक लेल प्रश्नाकेँ पनुगबैत छथि । एहिमे हिनक परिवर्तनकारी सोच अबस्से् उत्प्रेसरक बनि नव सामाजिक मूल्यवबोधक संवाहक बनैत अछि ।
हिनक लेखनी अबस्से। शोषित–पीडितक अस्मिेता–अधिकारक बात उठबैत अछि । ओ दबल–कुचलल लोकक पक्षमे भ जाय । ई सत्य अछि जे हिनक प्रेममूलक धारणामे वासना जन्यड उभार कनेक बेसिए उभरि आयल अछि से सत्ते कामुक पुरुषक दम्भोरचित उपजा थिक । किएक तँ पुरुषक पौरुषत्‍व वासनामे विशेषे केन्द्रि त भ आयल अछि । कथाकारक बेचैन मोनमे समतामूलक ओ प्रेममूलक धारा रसप्लारवित अछि तेँ अभावजन्यव पीडामे पीडाइत शोषित वर्गक समस्याा उभरि आयल अछि । स्त्री वर्गक प्रति जहिना पुरुष वर्गक दम्भस, क्रूर मानसिकता ओ व्ययवस्थातकेँ उजागर करैत अछि तहिना सम–सामयिक प्रश्नकक झडीमे रोटीक औकाति देखबैत अछि ।
एहि प्रकारेँ कथाकारक हृदयके व्याथासँ उपजैत अकूलाइत मोनक छटपटाहटिमे सुखाइत प्रेम भावनाकेँ खींचबाक आकांक्षा अछि तँ मूल्य हीनताबोधक प्रति तिक्खृ आक्रोश । जीवनक व्याैवहारिकता सँ सामाजिक मुद्दाकेँ उठबैत छथि । हँ, प्रश्नतक झडीमे किछुक समाहार करैत छथि तँ यथातथ्यत उपस्थाखपन सेहो । ओना, कथाक मूल स्वकर हस्तैक्षेप करिते अछि । ईहो सत्यि अछि जे नारी अनुभूतिक रिक्ति क्षणमे कथाकारकेँ रहि–रहिक� नारीक मानसिकताक भूख दैहिक काम–क्रीडामे ओझरा जाइत अछि । मुदा, ईहो सत्‍य थिक नारीक अन्त रमोनमे पैसिक जे मानसिक विकारकेँ स्वकच्छभ करबाक प्रयास भेल अछि से मात्र कामुकतामे नहि भऽकऽ सामाजिक मूल्य बोधक संवाहक बनिक उभरि अबैत अछि । उपसंस्कृकतिक प्रति हिनक हृदयमे खोंझी आ असंतोष भाव अछि तं सामाजिक नैतिकता आ धार्मिकताक अढमे छिडहरा खेलाइत साम्राज्यकवादी संस्कृहति प्रति विद्रोह भाव मुखरित भेल अछि । मुदा, इहो देखल जाइत अछि जे भ्रमरक कथाकार कथा साहित्येमे जतेक कथ्यृक प्रति सजग रहि पबैत अछि ततेक शिल्पोक प्रति नहि । शैलिक दृष्टििएँ अवस्सेक हिनक कथाकार सजग नहि रहि पबैत अछि जे कथा–सौन्द र्यकेँ बाधित करैत अछि । तें की ? भ्रमरक अनुभववादी दृष्टि‍ सतत चौकन्ने रहैत अछि जे अपन गाम–घर, अडोसिया–पडोसियाक देखल भोगल यथार्थक चिक्क न–चुनमुन चित्रण करैत अछि । हिनकामे कहबाक क्षमता अछि जे शिल्पनक विकासमे आरो सौन्दघर्य आनि निखरत ।
जेँकि कथाकार भ्रमरक चौकन्न दृष्टिप समाजक प्रति सजग अछि । तेँ जीवन मूल्यशक संवाहक बनैत ओ ओहि पात्रक सृष्टि करैत छथि जे समाजमे आइयो निरीह अछि । खासक नारी पात्र हिनक संवेदनशील मोनकेँ छुबैत अछि । ओ नारीक अधिकार ओ चेतनाबोधक पक्षधर छथि । ओ कखनो नारीक पक्षमे छाती तानिक ठाढ होइत छथि । मुदा, उपसंस्कृततिमे घेरायल नारीक वीभत्सक छवि अबस्सेप हिनक हृदयकें पीडित–सीदित करेत अछि । ओ कोनो परिस्थिअतिमे स्वािभाविक यथार्थक तहकें फोलिते छथि । तेँ शोषणक विरोधमे झंडा उठबिते छथि । हिनक संवेदनशील मोनमे जीवनक प्रति रागात्म्क बोध अछि । हं, हिनक कथाकार यथातथ्यिकेँ हू–बहू प्रस्तुशति क दैत अछि से कैक स्तथर पर । तें पात्रक चरित्र तेना भऽकऽ ठाढ नहि भऽ पबैत अछि जे होयबाक चाही । जाहि ठाम हिनक पात्रक चरित्र–चित्रण सजीव भऽ उठल अछि ताहि ठाम कथाक सौन्द।र्य अपन अपूर्व छवि–छटा लऽ मुखरित भेल अछि ।
नेपालीय मैथिली कथा साहित्य्मे भ्रमरक कथा मात्रात्य क ओ गुणात्म क दुनू दृष्टिाएँ अपन प्रभाव छोडैत एकदिस जँ कथा–साहित्यभक भण्डालरकेँ भरैत अछि तँ दोसर दिस कथा दृष्टि मे मूल्य।बोधक संवाहक बनैत अछि । तेँ मानवीय मूल्य बोधक जीवन–दृष्टि् नेने भ्रमरक कथा सामाजिक परिवर्तनमे अपन औकाति सिद्ध करबे करत आ भविष्यरमे ऐतिहासिक मूल्यहक वस्तुत बनबे करत से आशा ओ विश्वामस जगबिते अछि ।
ई संग्रह छपाइ–सफाइक दृष्टिअएँ देखनुक आ मनमोहक रहल अछि खासकऽ पोथीक आवरण विशेष आकर्षित करैत अछि ।

मनमीत कुटीर/राजपूत कालोनी
मौलागंज/दरभंगा–८४६०४
बिहार/भारत!
आशाक किरण
जितेन्द्र झा

मैथिलीभाषा धिरे धिरे आब विद्युतीय संचारमाध्यममे स्थान बना रहल अछि । दिल्लीसं सौभाग्य मिथिला नामक एकटा टेलिभिजन संचालन भेल अछि । इ सम्पुर्ण मैथिली टेलिभिजन रहल कहल गेल अछि । ई मनोरंजनात्मक टेलिभिजन अछि जाहिमे गीत नाद आ टेली श्रृंखला प्रसारणके प्रमुखता देल जारहल अछि ।

इ निश्चित जे जनसंख्याक अनुपातमे इ समुदायके अपन संचारमाध्यम नहि अछि। भारत आ नेपालक सीमामे बांटल प्रतीकात्मक मिथिला एखनो आन भाषाक माध्यमसं सुसूचित हएबाक बाध्यतासं मुक्त नहि भ' सकल अछि । ओना नेपालक किछु एफ़ एम आ नेपाली / भारतीय च्यानलसभसं मैथिली भाषाक माध्यमसं समाचार आ मनोरंजनक सामग्री एहि क्षेत्रमे पंहुच रहल अछि ।

टेलिभिजनमे मैथिलीके स्थापित करबाक प्रयास दिल्लीसं भेल । दिल्लीस संचालित नेपाल वन टेलिभिजनके मधेश स्पेशल कार्यक्रमसं मैथिली भाषामे समाचार आ गीतनाद प्रसारण भ' रहल अछि । दिल्लीसं प्रसारित नेपाल वनमे लगभग दु सालसं बेशी भ'गेल अछि एहि कार्यक्रमके । पहिने एक घण्टाक कार्यक्रममे मैथिलीमे समाचार,अन्तर्वार्ता आ मैथिली भोजपुरी गीत प्रसारण होइत छल आब वएह समयमे भोजपुरी आ थारुके सेहो सन्हिया देल गेल अछि ।

तहिना दिल्लीसं संचालित भोजपुरी भाषाक टेलिभिजनमे मैथिलीके किछु मिनेट भेट जाइत अछि । दिल्लीसं प्रसारित हमार आ महुवा टेलिभिजन मैथिलीमे कखनो किछु मैथिलीमे सामग्री देल करैत अछि । सहारा समयसेहो किछु दिन मैथिली भाषामे साप्ताहिक कार्यक्रम प्रस्तुत कएलक मुदा ओ निरन्तरता नहि पाबि सकल ।

मैथिली भाषा भारतक अष्टम अनुसूचिमे पडलाक बादो सरकारी संचार माध्यममे अपन स्थान नहि बना सकल अछि । दोसर दिश नेपालमे भारतसं संचालित नेपाल वन मैथिली भाषाक माध्यमसं मैथिली भाषीमे अपन अलग स्थान बनालेने अछि । नेपालक सरकारी टेलिभिजन नेपाल टेलिभिजनमे एखनो उपेक्षित अछि मैथिली। नेपालमे सभसं बेशी बाजल जाएबला दोसर भाषा मैथिलीमे निजी टेलिभिजनसभ किछु रुचि देखौलक अछि । काठमाण्डूसं प्रसारित सगरमाथा टेलिभिजन सांझमे लगभग 15 मिनटके समाचार प्रसारण करैत अछि त बिरगंजसं प्रसारित तराई टेलिभिजन सेहो मैथिलीमे मनोरंजनात्मक आ सूचनामुलक कार्यक्रम प्रसारण करैत अछि । नेपाल टेलिभिजनके मेट्रो टेलिभिजनमे साप्ताहिक मैथिली कार्यक्रम किछु एपिसोड चलल छल मुदा ओ निरन्तरता नहि पाबि सकल ।

मैथिली भाषाके प्रतिनिधित्व कएनिहार सशक्त संचार माध्यमके एखनो नितान्त अभाव अछि । सूचना प्रविधिक एहि युगमे मैथिलीके अपन अस्तित्व बचएबामे संचारमाध्यम सहायक भ' सकैया एहिमे किनको शंका नहि हएबाक चाही । जा धरि सशक्त संचार माध्यम मैथिलीके नइ भेट्त ता धरि इ कल्पना मात्र रहत जे मैथिलीक सुनिश्चित भविष्य अछि ।
अपार सम्भावनाक बादो संचारमे मैथिलीक सिकुडल काया कहिया पुष्ट हएत से कहब अनुमानो लगाएब कठिन ।
३. पद्य

३.१. राजकमल चौधरीक दूटा अप्रकाशित पद्य
३.२. जीवकान्तक टटका पद्य

३.३. आशीष अनचिन्हार

३.४.पंकज पराशर - जानि नहि किएक
३.५. सुबोध ठाकुर- सनेश

३.६.निशाप्रभा झा (संकलन)


३.७. रूपा धीरू

३.८. ज्योति-बरसातक दृश्य
राजकमल चौधरीक दूटा अप्रकाशित पद्य
(सौजन्य डॉ. देवशंकर नवीन)

१.बही-खाता
एहि खाता पर हम घसैत छी
संसारक सभटा हिसाब
एहि खाता पर हम सदिखन घसैत छी
अपना कर्मक-अपकर्मक कारी किताब!
जे किछु कयने छी पाप-धर्म
जे किछु बुझने छी जीवन-रहस्य आ प्राण-मर्म
जे किछु बुझने छी प्राण-मर्म
जे किछु कयने छी पाप-धर्म
सभटा अंकित अछि एहि लाल बहीमे
एहि लाल बहीमे सभटा इच्छा, समग्र वासना
जे जतबा अछि जकरासँ लेन-देन
जे रखने छी हेम-नेम
सभ दर्ज भेल अछि
सभ दर्ज भेल अछि एहि लाल बहीमे
एहि लाल बहीमे सभटा इच्छा समग्र वासना
जे जतबा अछि जकरासँ लेन देन
जे रखने अछि हेम-क्षेम
सभ दर्ज भेल अछि
सभ दर्ज भेल अछि एहि लाल बहीमे
ककरासँ की लेने छी
हम सदिखन
स्नेह-दया, माया-ममता, घृणा-क्रोध
ककरा की करबाक अछि ऋणक शोध
एतबा दिनमे ककरापर
कतबा कर्ज भेल अछि
सभ दर्ज भेल अछि एहि लाल बहीमे

कविता लिखबाक केर ई लाल-बही
थिक हम्मर जीवन-खाता
हमर सभटा अपराध, ज्ञान, अनुभव
मोह-लोभ-संताप पराभव
इच्छा-अभिलाषासँ लीपल-पोतल
अछि एक्कर सभटा पाता
ई हम्मर लालबही थिक जीवन-खाता
जीवन-खाता

२.एकटा प्रेम-कविता
कतेक राति बितला पर
फूल पात तितला पर
मुदा इजोरिया उगबासँ कतेक पहिनें
एकटा म्लान-मुख स्त्री, अनचिन्हार
हमरा हृदयमे
किंवा अपन आँखिमे
किंवा अथाह समुद्र जकाँ पसरल अकाशमे
ताकि रहल अछि अप्पन अतीत
ताकि रहल अछि कहियो
कतेक दिन पहिनें केकरोसँ सूनल
कोनो गीत
ताकि रहल अछि अप्पन अतीत
एकटा म्लान-मुख स्त्री अनचिन्हार
बहुत राति बितलापर
फूल-पात तितला पर
मुदा हमरा निन्न आबि जाइत अछि
आ काँच सपना मे
बसन्त बहार नहि
जीवकान्त: एक अनौपचारिक प्रोफाइल। १९९९ मे साहित्य अकादमी पुरस्कारक लेल मंचपर।जीवकान्त- पूर्ण नाम- जीवकान्त झा
पिता-गुणानन्द झा, माता-महेश्वरी देवी, जन्म तिथि-२५.०७.१९३६ स्थान अभुआढ़, जिला-सुपौल
शिक्षा-मैट्रिक (१९५५ उ.वि.डेवढ़), आइ.एस.सी. (१९५७ आर.के.कॉलेज, मधुबनी), बी.ए. (१९६४ बिहार वि.वि.स्वतंत्र छात्र), डिप.इन.एड.(१९६९ मिथिला वि.वि.)
नौकरी-उच्च विद्यालयमे सहायक शिक्षक। विज्ञान शिक्षक (उ.वि.खजौली १९५७-८१), हिन्दी शिक्षक (उ.वि.डेओढ़ एवं उ.वि.पोखराम १९८१-९८)
पहिल रचना-इजोड़िया आ टिटही (कविता, जनवरी १९६५ मिथिला मिहिर)
पहिल छपल पोथी- दू कुहेसक बाट (उपन्यास १९६८)
नवीनतम पोथी-खिखिरक बीअरि (२००७ बाल पद्य कथा), अठन्नी खसलइ वनमे (पद्य-कथा संग्रह) आ पंजरि प्रेम प्रकासिया (जीवन-वृत्तक अंश) प्रेसमे
पुरस्कार-साहित्य अकादेमी (दिल्ली १९९८), किरण सम्मान (१९९८), वैदेही सम्मान (१९८५)
प्रकाशित पोथी-
कविता संग्रह:
नाचू हे पृथ्वी (७१), धार नहि होइछ मुक्त (९१), तकैत अछि चिड़ै (९५), खाँड़ो (१९९६), पानिमे जोगने अछि बस्ती (९८), फुनगी नीलाकाशमे (२०००), गाछ झूल-झूल (२००४), छाह सोहाओन (२००६), खिखिरिक बीअरि (२००७)
कथा-संग्रह:
एकसरि ठाढ़ि कदम तर रे (७२), सूर्य गलि रहल अछि (७५), वस्तु (८३), करमी झील (९८)
उपन्यास:
दू कुहेसक बाट(६८), पनिपत(७७), नहि, कतहु नहि (७६), पीयर गुलाब छल (७१), अगिनबान (८१)
हिन्दी अनुवाद- निशान्त की चिड़िया (हिन्दी अनुवाद-तकैत अछि चिड़ै, साहित्य अकादमी, दिल्ली २००३)



वनदेवी

वनवासिनी स्त्री जंगलमे
भोजन तकबा लेल बौआइत अछि
झाँखुरमे पकड़ए चाहैए बटेर
बिछैए जंगली करैल आ खम्हारु
थोड़ेक जारनिक काठ जमा करैए

क्यो चिमनी ईंट भट्ठापर
पजेबा उघैए आ बोनि कमाइए
चुल्हि जरैत छैक बहुत नियारसँ
मुदा मिझाइत छैक पट दए

हाथ धरबा लेल कम मर्द उपलब्ध छैक
शहर दिस गेल जुआन नहि घुरलैए
रिक्शा घिचबाक बोरा उतारबाक जानमारू काजमे
बहुत पसेनाकेँ थोड़ कैंचा भेटैत छैक

वनवासिनी स्त्री सेहो छोड़ने जाइए वन
शहरमे सड़कपर राति कटबा लेल
आ दिनमे हवेलीमे झाड़ू-पोछा देबा लेल...
शहर ओकरा चिबा कए सुआ दैत छैक
ओकर खून चाटि कए नेहाल होइत छैक
शहरक मोटरमे
तेल जकाँ जरैत अछि वनवासीजन
शहरक आकाशमे
ओ डीजिलक धुआँ जकाँ बिलाइत अछि

बाघक प्रजाति उपटैत छैक
तँ चिन्ता घेरैत अछि जनमानसकेँ
अंडमानसँ लोहरदग्गा धरि
आ उजानक मुसहरीसँ नट्टिन सभक सिड़की धरि
उपटैत अछि वनवासी स्त्री-पुरुष
अगबे बसात रोदना करैए सुतली रातिमे
पहाड़मे गन्हाइत धार नोर बनि टघरैत अछि
बबुआन सभक करेज दिल्लीसँ चतरा धरि
पथर-कोइलाक खण्ड जकाँ सर्द अछि
(३०.०६.२००९)
आशीष अनचिन्हार

गजल १३
मछगिद्ध जँ माछ छोड़ि दिअए त डर मानबाक चाही
लोक जँ नेता भए जाए त डर मानबाक चाही

रंडी खाली देहे टा बेचैत छैक अभिमान नाहि
मनुख अस्वभिमानी हुअए त डर मानबाक चाही

अछि विदित शेर नहि खाएत घास भुखलों उत्तर
वीर अहिंसक बनए त डर मानबाक चाही

माएक रक्षा करैत जे मरथि सएह विजेता
माए बेचि जँ रण जितए त डर मानबाक चाही

सम्मानक रक्षा करब उद्येश्य अछि गजल केर
जँ उद्येश्य बिझाए त डर मानबाक चाही

गजल १४
मालक खातिर माल-जाल बनल लोक
देखाँउसक खातिर कंगाल बनल लोक

भूखक दर्द होइत छैक इजोतो सँ तेज
पेटक खातिर दलाल बनल लोक

वृत टूटल मिलल समानान्तर रेखा
बिनु कागजीक प्रकाल बनल लोक

सत्य-सत्य ने रहल ने रहल फूसि- फूसि
अपनेक लेल अपने जंजाल बनल लोक

सुस्जित आनन चानन ललाट
नुनिआएल देबाल बनल लोक
गजल १५
गप्प जखन बिआहक चलल हेतैक
गरीबक बेटी बड्ड कानल हेतैक

गोली लागल देह दसो दिशा मे
कुशलक खोंइछ कत्तौ बान्हल हेतैक

डेग-डेग पर निद्रा देवीक प्रसार
केना कहू केओ जागल हेतैक

सड़ि गेलैक एहि पोखरिक पानि
जुग-जुगान्तर सँ नहि उराहल हेतैक

विश्वास करु समान कम नहि देत
बाटे मे बाट भजारल हेतैक

गजल १६
जल-थल बसात लेल युद्ध
छोट-छीन बात लेल युद्ध

आदर्श बनाम आदर्शवादी
बुद्ध-गान्धीक गात लेल युद्ध

जर-जमीन-जोरु एतबा नहि
होटलक फेकल पात लेल युद्ध

नून नहि चटबए पड़तैक बेटी के
सोइरी सँ पहिनेहे गर्भपात लेल युद्ध

तकनीकी जुगक व्यस्तम व्यवस्था
साँझ होइते प्रात लेल युद्ध

जँहा देखलहुँ घर तहीं धर खसा लेलहुँ
असगरे मे अपन जिनगी बसा लेलहुँ

लोक फेकैत रहल पाथर पर पाथर
तकरे बीछि एकटा घर बना लेलहुँ

झोल लागल देबाल पर टाँगल उदासी
अहाँक हँसी टाँगि ऒकरा सजा लेलहुँ

मोन मे धाह , करेज मे भूर ,देह साबुत
अपन भावना के दरबार मे नाचा लेलहुँ
(अगिला अंकमे जारी)
पंकज पराशर
जानि नहि किएक
मोन मे नुकबैत छी
आँखि मे नुकबैत छी
बूझए नहि दुनिया
एहि सतर्कता सँ व्यामकुल
दौड़ैत रहैत छी अपस्याँकत
अहाँक छायाक भय सँ
अहार्निश!
सुबोध ठाकुर- गाम हैंठी-बाली, मधुबनी

सनेश
जो रे पवन तू ओहि दूर देश
पिआ बसए जाहि देश

छी हम व्याकुल आतुर हद तक
प्यासल छी हम अन्तर घट तक
जा कऽ दए आ हुनका ई सनेस
जो रे पवन तू

सावनक रास भरल महीना
कटए विरान हुनका बिना
सहि नहि सकब हम ई कलेश
जो रे पवन तू ओही दूर देश
पिआ बसए जाहि देश

आँखि कजराएल हमर
मेघक संग हेराएल
मनपर खसल बज्जर
रसक मात्रा बाँचल नहि शेष
जा कऽ दए आ हुनका ई सनेस

कटत केना राति अन्हरिया
ऊपरसँ जे चमकए बिजुरिया
मनक बढ़ल जाए कलेश
जा कऽ दए आ हुनका ई सनेश

पसरल अछि रंग रभसक बहार सगरो
मुदा हमरा लेल पसरल अन्हार सगरो
एनामे जे छोड़तथि रणभूमि
सखी सहेली उल्हन देत विशेष

दए कऽ तू आ पिआ केँ ई सनेश
जो रे पवन तू ओहि दूर देश
पिआ बसए जाहि देश।
निशाप्रभा झा (संकलन)



भगवती गीत

तारा नाम तोहार
तारा नाम तोहार हे जननी काली करथि पुकार
सतयुग कलयुग दुइ प्रति हारल
तीनू भुवन तोहार हे जननी तारा नाम तोहार।
अष्ट भुजा लए सिंह पर चढ़ली
देखइत सकल संसार हे जननी, तारा नाम तोहार।
सुर-नर मुनि सभ ध्यान धरतु हे
गले बैजन्ती माल हे जननी तारा नाम तोहार।
तारा नाम तोहार हे जननी, तारा नाम तोहार।

(अगिला अंकमे)।
प्रसव–पीड़ा
रूपा धीरू

प्रसव–पीड़ासँ छटपटाइत ओ
अइ कोलासँ ओइ कोला करैत
बोदरि छलि पसेनासँ,
किछु कालक पश्चासत चौरीमे हलचल भेलैक
आ प्रसन्न ताक लहरि पसरि गेलैक
ओकर बाप हाथमे राखल बहिंगाकेँ
खुशीसँ उछालि फेकलक दूर कऽ
ओ बड़ पोरगर नेनाकेँ जन्मऽ देने छलि ।
ओ बड़ प्रसन्ने छल
ई सोचि
जे काल्हिस ई हम्महर
बाँहि पूरत, पँचपज्जीम बोझ उठएबाक
सामर्थ राखत,
तखन फागुनेमे बेसाह लगबाक डर नहि रहत
प्रात भने गिरहतक खरिहानमे बोनि लेबाक लेल
बड़ हुलसगर मोनसँ पहुँचल ओ
हुनकर दलानपर बड़कीटा मोटर चमचमाइत छलनि
पता चललै जे गिरहतक पुतौहुकेँ
सातम महिना छियनि
दड़िभंगा जा रहल छथि
दुस्सागहस कऽ ओ अपन बुधनी,
आ गिरहतक पुतौहुक तुलना कएलक

बहिंगा ठामे गाड़ि देलक बोझपर
ओ गिरहतके नेहोरा करऽ लागल—
“मालिक परसौतीक लेल दालि–चाउर
बड़ जरूरी छै
कने, बोनि ........”
“की बजलेँ ?”
ओ गरजि उठलाह— “सार नहितन
जतराक बेरमे तोँ .....
अपने भनसिया जकाँ
बूझैत छिहीक ?”

ज्योति
बरसातक दृश्य
सड़क बरसातक पानि स तरल
जाहि पर गाड़ी तेजीसऽ बढ़ल
एक सनसनीक आवाज छल
पहिया सऽ कादोक फुहार निकलल
पदयात्री मोनेमोन खौंझाइत
एक तऽ गुप्प अन्हरिया राति
दोसर होयत घनघोर बरसाति
ताहिपर कादो छलय छितराति
दिवस सेहो अन्हारे हरदम
घर बैसक बड्ड बढ़िया मौसम
एकरसता मिटाबक ताकू मरहम
सुगन्धित ओराहल मकई गरम
कियौ बैसल छैथ ताश पसारिकऽ
कियो निकालैत उपन्यास संदूकसऽ
कियो बैसली कुरूसिया पकड़िक
कियो लगली गीतनाद सीखऽ
बच्चा सबहक हालत सबसऽ गड़बड़
खेलायक समयमे लागैत जेलसन घर
पढ़िकऽ मोन बहलाबक सलाह पर
सबटा मेघ घरेमे बरसल

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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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