भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Wednesday, July 15, 2009

'विदेह' ३७ म अंक ०१ जुलाइ २००९ (वर्ष २ मास १९ अंक ३७)-part i

'विदेह' ३७ म अंक ०१ जुलाइ २००९ (वर्ष २ मास १९ अंक ३७)

PART-I
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय

२. गद्य

२.१. लोक गाथा ओ मणिपद्म प्रेमशंकर सिंह

२.२. कथा- सुभाषचन्द्र यादव-रंभा
२.३. प्रत्यावर्तन - सातम खेप- कुसुम ठाकुर

२.४ गजेन्द्र ठाकुर-बालकथा
२.५ कथा-प्रभास
२.६. कथा-धर्मात्मा कुमार मनोज कश्यप

२.७. भ्रमर-यात्रा प्रसंग

२.८.वर्णमाला शिक्षा-गजेन्द्र ठाकुर

३. पद्य


३.१. आशीष अनचिन्हार

३.२.पंकज पराशर - जखन नहि रहब
३.३. सुबोध ठाकुर- हम नहि छी अभिशाप
३.४. विवेकानन्द झा-रहैत छी अहीं मात्र रूप बदलि कऽ
३.५. सतीश चन्द्र झा-कन्यादान

३.६. डा.अजित मिश्र-मिथिला धाम
३.७. सुनील कुमार मल्लिक- घड़ी

३.८. ज्योति-पहिल फुहार


४. बालानां कृते-१. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); आ २. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी
५. भाषापाक रचना-लेखन - पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]

६. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)

7.1.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili NovelSahasrabadhani translated by Jyoti.



विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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१. संपादकीय

पॉँच करोड़ मैथिल भाषीक् लेल: "सौभाग्य मिथिला " मैथिलीमे आब 24x7 चैनल आबि गेल अछि। प्रारम्भ भेल अछि सौभाग्य मीडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा। आब ई'सौभाग्य मिथिला' चैनल पाँच करोड़ मैथिल भाषीकेँ ध्यानमे राखि आनल गेल अछि आ ई चैनल संपूर्ण मैथिली इंटरटेनमेंट चैनल अछि।मैथिल परंपरा, बोली, साहित्य,संस्कृति, गीत-संगीत आ लोक जीवनकेँ संपूर्णताक संग एहि चैनल पर उतारल गेल अछि। सभ उम्र आ वर्गक लोककेँ ध्यानमे रखैत प्रोग्राम तैयार कएल गेल अछि। एहि मैथिली मनोरंजन चैनलपर दू घंटा भोजपुरी कार्यक्रम सेहो प्रसारित कएल जाएत। सौभाग्य मिथिला पर संपूर्ण मैथिल रामायण प्रसारित कएल जाएत। एकर अतिरिक्त'फूलडालि','मैथिली मजा', 'खटमिट्ठी', 'सिंगरहार', 'भनहि विद्यापति', 'मैथिली मिक्स मसाला', 'डियर भावज', 'अंग्रेजी कका', 'सास-पुतोहु', 'अटकन-भटकन' आदि कार्यक्रम सेहो देखाओल जाएत। एहि चैनलक दिल्ली मे आफिस ए-6/1, मायापुरी फेज-1 मे अछि आ एकर अन्तरजाल पता http://sobhagyamithilatv.com/ आ ई-पत्र संकेत info@sobhagyamithilatv.com अछि।

संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ २९ जून २००९) ८१ देशक ८३४ठामसँ २४,६५६ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ १,८२,७६८ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण

अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।





गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in


२. गद्य


२.१. लोक गाथा ओ मणिपद्म प्रेमशंकर सिंह

२.२. कथा- सुभाषचन्द्र यादव-रंभा
२.३. प्रत्यावर्तन - सातम खेप- कुसुम ठाकुर

२.४ गजेन्द्र ठाकुर-बालकथा
२.५ कथा-प्रभास
२.६. कथा-धर्मात्मा कुमार मनोज कश्यप

२.७. भ्रमर-यात्रा प्रसंग

२.८.वर्णमाला शिक्षा-गजेन्द्र ठाकुर




डॉ. प्रेमशंकर सिंह (१९४२- ) ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा। 24 ऋचायन, राधारानी सिन्हा रोड, भागलपुर-812001(बिहार)। मैथिलीक वरिष्ठ सृजनशील, मननशील आऽ अध्ययनशील प्रतिभाक धनी साहित्य-चिन्तक, दिशा-बोधक, समालोचक, नाटक ओ रंगमंचक निष्णात गवेषक,मैथिली गद्यकेँ नव-स्वरूप देनिहार, कुशल अनुवादक, प्रवीण सम्पादक, मैथिली, हिन्दी, संस्कृत साहित्यक प्रखर विद्वान् तथा बाङला एवं अंग्रेजी साहित्यक अध्ययन-अन्वेषणमे निरत प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर सिंह ( २० जनवरी १९४२ )क विलक्षण लेखनीसँ एकपर एक अक्षय कृति भेल अछि निःसृत। हिनक बहुमूल्य गवेषणात्मक, मौलिक, अनूदित आऽ सम्पादित कृति रहल अछि अविरल चर्चित-अर्चित। ओऽ अदम्य उत्साह, धैर्य, लगन आऽ संघर्ष कऽ तन्मयताक संग मैथिलीक बहुमूल्य धरोरादिक अन्वेषण कऽ देलनि पुस्तकाकार रूप। हिनक अन्वेषण पूर्ण ग्रन्थ आऽ प्रबन्धकार आलेखादि व्यापक, चिन्तन, मनन, मैथिल संस्कृतिक आऽ परम्पराक थिक धरोहर। हिनक सृजनशीलतासँ अनुप्राणित भऽ चेतना समिति, पटना मिथिला विभूति सम्मान (ताम्र-पत्र) एवं मिथिला-दर्पण,मुम्बई वरिष्ठ लेखक सम्मानसँ कयलक अछि अलंकृत। सम्प्रति चारि दशक धरि भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रोफेसर एवं मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ अभिवर्द्धित करबाक दिशामे संलग्न छथि,स्वतन्त्र सारस्वत-साधनामे।

कृति-
मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८
मौलिक हिन्दी: १.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, प्रथमखण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७१ २.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, द्वितीय खण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७२, ३.हिन्दी नाटक कोश, नेशनल पब्लिकेशन हाउस, दिल्ली १९७६.
अनुवाद: हिन्दी एवं मैथिली- १.श्रीपादकृष्ण कोल्हटकर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली १९८८, २.अरण्य फसिल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१ ३.पागल दुनिया, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१, ४.गोविन्ददास, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००७ ५.रक्तानल, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८.
लिप्यान्तरण-१. अङ्कीयानाट, मनोज प्रकाशन, भागलपुर, १९६७। सम्पादन-
गद्यवल्लरी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६६, २. नव एकांकी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६७, ३.पत्र-पुष्प, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९७०, ४.पदलतिका,महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९८७, ५. अनमिल आखर, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००० ६.मणिकण, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ७.हुनकासँ भेट भेल छल,कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००४, ८. मैथिली लोकगाथाक इतिहास, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ९. भारतीक बिलाड़ि, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, १०.चित्रा-विचित्रा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ११. साहित्यकारक दिन, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाता, २००७. १२. वुआड़िभक्तितरङ्गिणी, ऋचा प्रकाशन,भागलपुर २००८, १३.मैथिली लोकोक्ति कोश, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, २००८, १४.रूपा सोना हीरा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००८।
पत्रिका सम्पादन- भूमिजा २००२

लोकगाथा ओ मणिपद्म
अक्षरक आविष्कारर सँ दीर्घकालावधि धारि मिथिलांचल मे मौखिक लोक साहित्यरक परम्प,रा अनुवर्तमान हल जकरा आधुनिक सन्दिर्भ मे हमरा लोकनि मात्र कल्पमनाक ऑंखिए देखि सकैत ही, कारण कालक्रमेण लोक साहित्युक बहुलांश विलुप्तर भेल जा रहल अहि। तथापि सुसंस्कृेत रूप मे लिपिवद्ध साहित्यक क संग-संग गीत. कविता, कथा, गाथा उपाख्याान, लोकोक्ति एवं मुहावराक विशाल भण्डाहर विद्यमान अहि आ ई परम्प०रा अनेकानेक शतक लोक साहित्य, केँ आगों संसारैत-पसारल होइत रहल,भनहि काल क्रमंण एहि मे किहु परिवर्तन होइत रहल अहि। मैथिलीक साहित्यआ चिन्ताक आगवेषक एहि अनुवाशिक सम्पकदा क संकलन-परितुलन काज मे लागज छथि। वास्त व मे ई परम्प्रा कतेक समृद्ध अहि तकर वास्तशविकताक जानकारी हुनके होयतनि जनिका एकर अघ्यसयन मे रूचि हनि वा ग्रामीण परिवेश मे जनसाधारण क जीवनसँ निकट सम्पेर्की हथि। पीढी-दर-पीढी स्मृरतिक परम्पसरा मे प्रवाहमान विविध विधाक लोक साहित्य मनोरजन करैत शिक्षा दैत अहि आ पाठक वा श्रोताकेँ कनबैत,हँसबैत आ चेतबैत रहल अहि। मैथिली लोक साहित्य अपन आन्तअरिक गुण एवं वैविघ्यत मे अत्यचन्तअ समृद्धशाली अहि। मिथिलांचल वासी जहिना-जहिना संचारित मेल अहि से एकर लोक साहित्युक विविदाता केँ नव आयाम देलक अहि। मिथिलांचल वासीक उद्भव के क्रम मे, विविध आर्य भाषाक रीति-नीति, कथा, गाथा आ रागरंगक जे अवदान अहि से एहि साहितयकेँ आर समृद्धतर बना ढोलक अहि। स्वतभावत: एहि साहित्यय मे एहन-एहन बात कहल गेल अहि जे दोसराकेँ अनसोहॉंत, जाति विशेषक वैच्त्रिय पर प्रहार करैत अहि, परन्तुम एहि मे निन्दाक सँ देशी षरिहासक पुट आदि आ जकरा पर कोनो कहनी, कोनो गीत वा कोनो किंवदन्तीय चोट करैत अहि ओ सम एकरा विनोदमय मात्र बूझैत अहि। साहित्यनक सर्वाधिक प्राचीनतम विधा लोक साहित्य थिक जाहि मे लोकगीत, लोकगाथा,लोकोक्ति, लोकनाट्य.लोकनृत्य , लोक अपवाय, लोक ज्ञान, लोक यात्रा, लोक परम्पीरा, लोक प्रवाह,लोक मानस, लोक प्रतिमा, लोक वाडष्म य, लोकवार्ता इत्यातदि समाहित अहि। जहिना नदीक प्रवाह मान धारा मे पाथर क छोट-छोट टुकडी सभ घसाक’गोल आ सुन्द र आकार प्राप्तय करैत अहि जे ककरो द्वारा प्रारम्भप भेल ओ लोक कंठ मे युग-युग धरि प्रवाहित होइत नित नवीन रूप धारण करैत गेल आ ताधरि विकसित होइत रहैह जाधारि पढत-गुनल व्य-क्ति ओकरा संकलितक’ छाापि क’ ओकर रूप स्थिर नहि क’ सकैह। लोक गाथा लोककंठ उत्पनन्न‍ आ विकसित होइत अहि। लोकगाथाक सामान्यग रूप-विधान केँ ल’ कए कोनो विशेष कवि क’ द्वारा रचित होइह जाहि मे गीतात्म कता (जिरिकल क्वा लिटी) आर कथात्मएकता दुनूक मिश्रण होइह जकर प्रचार जनसाधारण मे मौखिक रूप सँ एक पीढी दोसर पीढी मे होइत अहि। लोकगाथा मानव समाजक आहिम साहित्यिक रूप अहि। एकर उत्पसत्ति तखन भेल जखन समाज अविभक्तज आ एक इकाई क रूप मे हल। अतएंव लोकगाथा प्रारम्भर मे सम्पू्र्ण समाजक सम्पवत्ति हल, सब एकरा गबैत हल आ अपना दिस सँ किहु ने किहु जोडैत-घटबैत हल। एहि प्रकारेँ एक स्थासन सँ दोसर स्थािन आ एक पुश्तअ सँ दोसर पुश्तह कंठानुकंठ यात्रा करबाक कारणेँ ओकर स्वमरूप परिवर्तित होइत गेल। लोकगाथाक उत्पतत्ति क सम्बशन्धत मे लोक साहित्य कं विशेषज्ञ लोकनिक अनुसारेँ लोकनिर्मितवाद (कम्यूपनल ऑथरशिप). व्‍‍यक्ति निर्मितवाद (इनडिविडुअल ऑंयरशिप) आ विकासवाद (इमोलुसन) क मुख्या हाथ थिक एकर प्रचार-प्रसार मुख्य‍त- ग्राम्य्जीवन क अभाव आ अनिवार्यत- वस्तु् व्यंाजक (आब्ले टि भ एली भेंट) क प्रमुखता होइत अहि तथा श्रम साहय कलात्माकता नहि, प्रत्युुत यथार्थ चित्रणक प्रवृतिक प्रधानता रहैह। एहि मे अनावश्य क बाग्जादल नहि, परम्पयरा-प्रेम भावना, सहजोव्छािस, भावात्मएकता आ सरल कल्पवनाक मात्रा अधिक होइह जाहि मे बौद्धिकता, कल्पवनाशीलता आ श्रम साघ्या कलात्ममकताक नहि। एहि मे भाषायाविचारक सरलता एवं नैसर्गिकता एहन रहैह जे आरंभिक समाज मे उपलब्धत होइह। एहि रूढ,अस्वााभाविक आ श्रमसाघ्या अलंकारकआ शब्दमक अभाव होइह। एहि मे प्रयुक्त, अलंकार आ लोकाक्ति एवं मुहावराक बारम्बायर आवृत होइह। हन्दअ विन्या स सरल तथा तुक पर कोनो घ्यांन नहि देल जाइह। ओकर गेयता शास्त्री य संगीत सँ भिन्न‍ होइह। मैथिली लोक साहित्या्नार्गत लोकगाथाक वास्तनविक संख्याो कतेक अहि एहि प्रसंग मे निर्विवाद रूपेँ किहु कहब वर्तमान सन्दलर्भ मे अप्रासंगिक प्रतीत होयत, कारण ने तँ इतिहासकार आ ने लोक साहित्य क विशेषश्र लोकति एहि सन्दतर्भ मे सुनिश्चित आ ने सुविचारित मनतव्य देलनि अहि। जयकान्तक मिश्र (1922) Introduction to the folk literature of Mithila (1950) मे लोरिक,सलहेस, दीनाभद्री एवं कमला मैया गीतक चर्चा कयलनि। ओ जकरा कमला मैयाक गीत कहलनि ओ वस्तुित: दुलरा दयाल लोकगाथा थिक जे नाम सम्भ वत: उनका ज्ञान नहि भेलनि, कारण एहि लोकगाथान्तबर्गत कमला नदी जे मिथिलाक मुख्यज नदी थिक ता‍हि पर केन्द्रित अहि तथा एकर गाथा नायक हथि महान साहसी वीर दुलरा दयाल। जेँ कमला नदीक आख्या न उनका एहि मे उपलब्ध भेलनि तेँ ओ एकरा कमला मैयाक गीतक नामे अभिहित कयलनि। मैथिली साहित्या मे ई श्रेय डा. व्रजकिशोर वर्मा‘मणिपद्य’ (1918-1986) केँ हनि जे लोकगाथाक वास्तीविक स्वयरूपक संकलनार्थ गहन भावें डुब्बीवमारिक’ एहि दुलर्भ मोती सभक संग्रह कयल नि तथा उनका अनुसारेँ लोरिक, सलहेस, नैका बनिजारा, दीनाभद्री, दुलरा दयाल, अनंग कुसुमा, रायरणपाल एवं लवहँरिकुशहरि अहि। परवर्ती काल मे कतिपय लोकगाथाक चर्चा भेल अहि, किन्तुा ओकर एंतिहासिकता एवं प्रामाणिकता पर प्रश्नम-चिन्हग अहि। उपर्युक्तए लोकगाथान्ततर्गत द्विनेतर जाति पर केन्द्रित रहलाक कारणें मैथिली साहित्य क अनुसंधना लोकति एहि गाथा सभक संकलनार्थ उन्मु ख नहि भेलहि, कारण एहि साहित्यंक अधिष्ठालता लोकतिक मान्यथता हलनि जे मैथिली मात्र ब्राहमण भाषा थिक। किन्तुए मैथिली आइ जीवित अहि ओही ग्रामीण परिवेश मे रहविहार द्विलेतर जाति मे जनिक बोली-चाली मे पुष्श्तक-दर-पुश्तक एकरा अपना हदय मे अद्यापि संयोगिक रखने अहि। अन्याथा मैथिली तँ कहिया ने मारि गेल रहैत। द्विजेतर जाति सँ अभिप्राय थिक लोरिक गाथा मे गोप समालक, सजहेस गाथा मे दुसाध समाजक, दुतरादयाल गाथा मे मलाह समालक, दीलाभद्रीगाथा मे दलित मुसहर समाजक नैकाबनिजारा गाथा मे वैश्ये समाजक, छेछन गाथा मे डोम समाजक, रायरणपाल एवं लवहजरि कुशहरि गाथा मे क्षत्रिय सूाजक चित्रण अहि। एहि ऐतिहासिक विमूति लोकनिकेँ प्रकाश मे आनि मणिपद्य मैथिली भाषा आ साहित्यरक आ मिथिलांचलक सामाजिक जीवनक संगहि भारतीय साहित्य एवं समाजक एहेत प्रकाश स्तआम्भस आलोकित कयलनि जे कोरि-कोरि जनमानसक अन्धतकार मे टापर-टोइया द’ रहल हल। वस्तुित: मिथिलाक ई लोक महाकाव्याक ऐर्श्यर भारतीय लोकगाथा क अन्तार्गत अपन ऐतिहासिक, सांस्कृातिक, सामाजिक तथा साहित्यिक वैभवक गरिमा ओ दीपित हटाक कारणेँ अतुलनीय अहि। ई निर्विवाद सत्या थिक जे व्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्य’ जतेक गहनता एवं तत्सियता क संग लोकगाथा अघ्यसयन-अनुशीलन, चिन्तणन-मनन आ संचयनक’ कए ओहि मे हेरायल भुतिआयल मणि माणिकय केँ जनसाधारण पाठकक हेतु सर्व सुलभ करौलनि तकर श्रेय ओ प्रेय हुनकहि हनि। हुनक मान्यजता हलनि जे जाहारि लोकगाथा समाहिक मूल्य् पाठ ले मिथिलांचलक विभिन्नि क्षेत्र मे जनकंठ से परिप्यारप्ता अहि तकर संकलन, सम्पािदन आ प्रकाशनक पथ प्रशस्तर नहि हैत ताहारि मिथिलांचलक लोक जीवनक इतिहास क रचना असंभव अहि। मैथिली लोकगाथा क प्रति मणिपद्य अपन जीवन केँ समर्वित कयंन रहथि तेँ मिथिलांचलक दिव्यल विभूतिक बिसरभोर भेल जीवन गाथा केँ ओ अयत श्रम आ कलम सँ जन सामान्यल केँ सुबोध करौलनि। ओ एक-एक विलुप्ता, भुति आयल गाथा सभकेँ ताकि हेरिक’ जीवन्तए कयलनि। ताहिसँ अनुमान कयल जा एकैह जे हुनक हदय मे जेना प्रेम आ सुषमाक राम वाटिका हलनि। हुनक रचनाक प्रधान उत्सकथिक असीम मानवतावाद, पवित्र-प्रेम आ शीतल सौन्दरर्य। हुनक भावनाक केन्द्रा मे अधिष्ठित हल परम-पुरूषार्थी, लोक परायण. निंहकार आ कर्तव्यदनिष्ठह आदर्शपुरूष आ सतत साधिका, लोकसेविका,प्रेरणा आ गरिमामयी आदर्श नारी। यद्यपि सौन्दहर्यक प्रतिओ अत्यठन्तर संवेदनशील रहथि तथापि हुनक कल्पपना, भावना आ विचारक परिधि कतहु अतिक्रमण नहि कयलक। मणिपद्यक भावना सौंदर्य केँ स्पार्शक’ चेतनाक अन्ति: पुर रहस्यकमय आवरण केँ अनावृतक’ विश्व् प्रेम क उन्मुरक्तर वातायन केँ खोलि देलनि। हिनक रचनादि मे लीवतक यथार्थ परिप्रेक्ष्यत मे मानव प्रेमक अनिवार्यताक सहज आ निश्छमल स्वीाकृति थिक। हिंसा मे प्रेम आ विपलव मे शान्तिक रश्मि विकीर्ण करबा मे ओ सफल रहथिव। प्रवुद्ध चेतना, कोमल भावना, चित्रमयी कल्पतनाक संगहि जननी जन्मुभूमिक मर्यादा,प्रतिष्ठाे, एवं गरिमा तथा महिमाक प्रति सतत जागरूकता हुनका मे वर्तमान हलनि। हिनका नदी,पहाड. तुषार, शिकार, जंगल-झाड, चौर-चॉंचर, बाध-वोन, गामधर मे अशेष रूचि हलनि। ऐतिहासिक भग्नाावशेष, देवस्थडल, मूर्ति चित्र, नृत्यक, संगीत, तन्त्रममंत्र, रत्नि, पक्षी आ लोक साहित्यथक हेरायल भुतिआयल अन्येसषण, सशक्ता वक्तय, विसरल उपेक्षित मिथिलांचलक जन-जीवन तथा सामाजिक ओ सांस्कृितिक परम्प राकेँ युग-युगसँ प्रवाहित करैत आयल अहितकरा ताकि होरिक’ अपन सरस, सीलओ प्रवाहमय शैली मे लिपि वद्ध क’ मैथिली भाषा आ साहित्यिक श्रंगार कयलनि। ई श्रेय वस्तुओत: मणिपद्य केँ हनि जे मिथिलाक कंठसाहित्य मे युगयुगान्त्र सँ रचल-वसल गाथा सबकेँ जगजियार करबाक स्तुणत्यन प्रयास कमलनि। मानवताक मणि आ लोकगाथाक पाणित्यतक पद्यराग मस्तिपद्य मैथिली लोकगाथा केँ अमर बनवबाक दिशा मे ओ एक एहन महापुरूष रहथि जनिक चिरचिरन्त नाऍं ई विधा विनय पोर-पोर मे भरल हलनि। ओ जहराइत गॉंधीवादी, उद्भट साहित्यच-चिन्त क आ चतुर चिकित्सोक रहथि। हिनक अन्वेाषी प्रवृति लोक-भाषा, लोक-कवि,लोकगाथा,लोकगीत कोन प्रकारेँ भारतक उतरीय खण्ड मे भूखपियास त्या गि, वन प्रान्तगक जतय-ततय लौह लैत, बनैया जीव जन्तुसक आक्रमणसँ निराषद्, करवनो-करवतो सामना करैत लोक साहित्य,क प्रचुर संग्रह कयलनि। एहि विधाक प्रति उनका मे एतेक वेशी लगनशीलता हलनि जकर परिणाम भेल जे ओ अपन औपन्याचसिक कृति सभक कथा-संयोजन मे ओकरे आश्रय लोकति। एहि प्रसंग मे उनक पिताक कथन छलनि, ‘कनकिरबा व्य र्थ सोचि रहलाह अछि। यहि ओ सेवा बुद्धया करथि तँ वेश,उपार्जनक’ परिचायक भरण-पोषण ले हमरा जीवैत कनेवको चिन्ता नहि करथु, एतेक परिश्रम आ साहससँ लोक साहित्यिक सामग्री ओ ले एककठा कयलनि अछि, तकर सर्जनात्मेक कार्य करथु जे अयुरष्णह रहि जयतनि।‘ एहिसँ प्रतिभाबिम होइछ जे मणिपद्य लोकसाहित्य क वास्ततविक महत्पेसँ अपन युवावस्थरहिसँ परिचित रहथि तेँ ओ एकर अनवरत संग्रह कयलनि। हुनक मान्ययता छलनि ले लोकसाहित्य क अपरिमित भण्डाेर छैक उपेक्षित जनजातिक कंठ से। ठेंठ मैथिली ओही चौर चॉंचर मे, वन्य‍ जातिक करेज मे जीवित छैक। ओहि वन पहाडक टोला-टप्प रक स्त्रीँ समाज मे, निर्गम्यब स्थाुन मे ई निधि छैक जनय सँ साहसिक तपस्यावक’ कए मरित उत पद्य बहरपलैक। तेँ ओ एकर उरखनन कयलनि। संभवत: तेँ अपन उपनाम मणिपद्य रखलनिआ साहित्यर जगत मे प्रख्या्त भेलाह। मैथिलीक ई वरद पुत्र मानवताक मणि रहथि आ प्रतिभाक पद्य राग केँ प्रफुल्लित आ सुरभित कयलनि। हिनक वैशिष्ट्य थिक जे ओ साधना कयलनि लोककंठ मे रचल-बसल साहित्यकक,किन्तुक जे हिनका संग वार्तालाप कयने होयताह तनिका ई अनुभव अवश्येय होयतनि जे ओ संस्कृित शब्द,क प्रचुरताक संग प्रयोग करथि; किन्तुा जरवल ओ कलम धरथि तँ लोककंठ मे ब्याकज भाषा-प्रयोगक अवसर नहि चुकथि। यथार्थत: मैथिलीकेँ हिनका सदृश किछुओ साहित्यसचिन्त्क आर भेल रहितथि तँ एकर भण्डाचरआरपूर्ण आ समृद्धशाली बनैत।
मणिपद्य जाहि मनस्थिता, तेजस्विता, गम्भीचरता. तन्मायाता क संग मैथिली लोकगाथा ओकार संस्कृयति, ओकर सभ्य्ता क अघ्य्यन कयलनि ताहि गम्भीतरताक संग मैथिलीक क्यों अनुसन्धा‍ता अद्यापि नहि क’ पौलनि। प्रस्तुनत प्रकाश्यत ग्रन्थं एहि विषयक पुष्टन प्रमाण प्रस्तुकत करैछ जे एहि कृतिक अघ्यदयन सँ स्पिष्टप भ’ जाइछ जे मिथिलाक संस्कृ्ति आ सभ्यिता कतय धरि विस्तृित छल। महाप्राण राहुल सांकृत्यापयन(1969) सदृश हिनको घुमक्कृडी मे अत्यवधिक रूचि छलनि जकर पुष्ट प्रमाण उपलब्धृ होइछ हुनक प्रिय सिरीज ‘ओहिठाम गेल छलहुँ’ जकरा सभकेँ एकत्रित क’ कए हम ‘हुनका सँ भेट भेल छल’ (2004) मे प्रस्तुात कयब अछि जाहि मे हुनक एहि प्रवृतिक परिचायक थिक जे ओ जन-जीवनकेँ अत्यंभत समीप जाय लोक जीवन मे व्या प्त साहित्यओ केँ संकलित क’ अमूल्या निधिक रहस्यो द्घाटन क’ कए साहितय प्रेमी केँ ओंकर स्वारूपक रसास्वांसदन करौलनि। वस्तुतत: ई मणिपद्य क देन थिक जे मैथिली भाषा साहित्यु केँ एक नव विशेषण भेटलैक। मणिपद्य मैथिली जनकंठ साहित्यक’ अन्तिर्गत लेखिकाइन, नैकाबनि जारा, दुलरा दयाल एवं लवहरि-कुशहरि क अनुसंधान वृहत् रूपेँ कयलनि। ओ लोक साहित्यक क पाछा तपस्याा मे दिवारात्रि लागल रहलाह जकर फलस्वृरूप ओ अपन अन्वेाषी प्रवृतिक परिचय देलनि। प्रस्तुित लोकगाथा क इतिहासक अन्तजर्गत ओ अपन अमित प्रकट कयलनि ओ निश्चवये मैथिली साहित्य क हेतु एक अविस्म रणीय घटना थिक। समयाभावक फलस्व्रूप ओ अन्यत गाथादिक प्रसंग मे नहि लिखि फैलनि। लोक-संस्कृ तिक सुविख्या।त शिल्पी। बलकिशोर वर्मा ‘मणिपद्य’ अपन मधुस्राविणी भाषा मे मैथिलीक एहि अमर गाथाक सुमनकेँ लोकगाथाक इतिहास मे गॉंथलनि अछि। एहि मणिभाषा मे कतिपय पुष्प -गुच्छगक स्वतरूप आ मौलिकताक पृष्ठछभूमि ओ कथाक प्रगतिक आश्राास पाठककेँ अनायासहि उपलब्ध होयतनि। प्रतिपाद्यि कृति हुनक मॉंजल कलमक चमत्काछर थिक जाहि दृष्टिकोण सँ विवेचन कयल जाय तँ मैथिली लोकगाथा इतिहास मैथिलीक अमूल्य् निधि‍ थिक। प्रतिपाद्य लोकगाथाक इतिहास मे लेरिक गाथा पर सोलह, दुलरा दयाल गाथा पर दस, नैका बनिजारा गाथा परसात एवं लवहरिकुशहरि गाथा पर पॉंच लोकगाथा क इतिहास पर मणिपद्य क अनुसंधानात्म क आलेख एहि मे संग्रहीत जे विभिन्नद पत्रिकादि मे आइ सँ तीन दशक पूर्व प्रकाशित भेख छल। एहि गाथा सभक वैशिष्ट्य छैक जे मिथिला मे परम्पररा सँ अवैत ग्रामीण् लोकति अत्यंखत मनोयोग पूर्वक एकर श्रवण. रसारवादन युग-युगान्त्र सँ करैत आवि रहल छथि तकर ई एकमात्र प्रामाणिक एलबम थिक। एहि कंठगाथा समहिक अमूल्या उपलब्धि थिक जे एकरा मिथिलांचल वासी अयन कंठ मे हजार-हजार वर्ष से संयोग आबि रहल छथि।
लोरिकाइन कंठ महाकाव्ययकेँ लोक जागरण क प्रथम लोकगाथा कहब अधिक सभी चीन होयत आ एकर वास्तठविक मूल्यां कन तचते सम्भलव भ’ एकैछ जखन एकरा ब्राहमण क देवोन्मुहख साहित्यम आ बौद्धक संसार त्या गक साहित्यिक पृष्ठ’भूमि मे नहि मूल्यांछकन क’ एकरा भारतीय जन समाजक लोक-चेतनाक विकास क्रम मे देखबाक उपक्रम कयल जाय तचान साष्टम प्रतिभाषित हैत जे ई गाथा लोक क्रान्तिक प्रथम उन्मेगषक एक सशक्त कलात्माक आ प्रवाह मान रचना थिक जकर ऐतिहासिक महत्वत छैक। एहि महाप्राण कंठ काव्य मे षष्ठमसपृम शताब्दनक मिथिलाक एहन सप्राण वर्णन अन्यवत्र कनहु नहि उपलब्धय भ’ रहल अछि। एहि मे मिथिलाक आघ्याकत्मिक, भौगलिक,ऐतिहासिक, राजनीतिक, समाजिक स्थितिक अत्यतन्तद सशक्त विवरण उपलब्धा होइत अछि।
एहि महाप्राण कंठ-महागाथा मे साहित्यछक रंग आ भासक अनुपम आयोजन छैक जकरा विश्लेाषण कयलासँ सहजेँ स्पथष्ट् भ’ जाइह जे कोन अमृत्व क बलेँ ई एतेक चिर नवीन आ एतेक चिरजीवी बनल रहिसकल अछि। एहि मे साहित्यिक, वैचारिक आ घटनात्ममक एकात्मेकताक एतेक सुधड संयोजन छैक जे मानवक आधारभूत संवेदनाकेँ तातलय सँ अलंकृत करैत आबि रहल अछि। एकरा संगहि अपन भूमिज मौलिकता प्रदान करैत अछि। एकर भाषा मैथिनीक उषाकालीन रूप थिकैक। एकर रचना कारण धरि मैथिलीक स्व रूप एतेक दृढ भ’ गेल छलैक जाहि मे एकटा सशक्ता,प्रवाहमान, प्राव्जकस, रससिद्ध अमिसक्तिवसा महाकाव्यय रवल जा सकलैक जे हजार-हजार शताब्दी्क झभार सहितो अद्यापि झमाननहि भेलैक आ लोरिकक खण्डा सदृश एखनो लहकलह क’ कहल छैक। प्रतिपाद्य महागाथा मे सती मांजरि, चनैन, सुनयना, रणचण्डीो, लुरकी, योगिनी कोसमालिन,महादेवी कोहरॉंस, महासुन्दसरी बुहबी-सुहबी आ राजकुमारी संझा प्रमुख नायिका छथि। जतय मांजरि परिस्थितिक भोगनिहारि छथि ततय चनैन परिस्थित सृजननिहारि छथि। जतय मांजरि परिस्थितिक भोगनिहारि छथि ततय चनैन परिस्थित सृजननिहारि छथि। करूणामयी मांजरि भक्ति, शक्ति आ आत्म दृष्टि वाली छथि ततय भगवती चनैन प्रेरणा, स्फुशरण आ ऊहिवाली छथि। मांजरि अपन सतीलक महिमा सँ मण्डित छथि तँ चनैन अपन सौन्दवर्य-गरिमा सँ ओतप्रोत। नैराश्यतक क्षण मे मांजरि भगवती सँ खण्डाी क याचना करैत छथि तँ चनैन रत्नााबनिजारिनक संग षड्यंत्र मे सहायता प्रदान करैत छथि। एकर रचयिता अपन नायक केँ प्रत्ये क स्थिति मे मानवे रखलनि जकर सुघडता क फलस्व रूप ई महागाथा जनकंठ मे असर, अमर एवं अशुष्ण रहि सकबाह। लोरिक गाछ तर बा गहवर मे कोना समा ड. क लाथे अपन सेवा-पूजा नहि लेलनि आ कोनो भगता वा वाहन नहि तकलनि जखन कि अधिकांश लोकगाथाक नायक मनुष्य देवा बनिक’ खीर-खॉंड आ बलिक भोग स्वाोदैत भगता सभक देहपर खंलाइत छथि। एहि महागाथा क पात्र’चरित्र अपना-अपना स्थाकन पर सुदृढता, सौन्दथर्य आ कलात्मकक रूपेँ सुसज्जित अछि। एहि ते पाग क समन्वहय अतयन्ति मोहक हल्केथ आ उच्चक कोटिक साहित्यिक परिस्थिति प्रकार आ वातावरण क सृजन करैत अछि। लोरिकाइन क पशु-पक्षी यथा हाथी-घोडा आ कौआ आदिम कालसँ मनुष्यचक सानिघ्यह मे रहैत आयल अछि। एहि महागाथाक महाप्राण होयनाक कारणेँ कव्सोल गिरि आ रणहुलास सन हाथी, कटरा आ बछेडबा सन् सन् घोडा आ बाजिल कौआ सन पक्षी सँ मानव केँ अत्यं त एकात्मपकता स्था पित भ’ सकल अछि आ मनुष्यस क संग अत्यंुत सूक्ष्म संवेदना राखि सकस अछि। एकर वैशिष्ट्ये थिक ले एहि मे युद्ध आ अखाडा क विशद् वर्णन भेल अछि। शान्तिकालीन एकान्तिकता आ समाज क’दैत अछि। लेखिकक खण्डा जेना हुनका सतत कहैत रहैत छनि रक्त् दे, रक्तद दे। एहि मे एहन आकर्षक स्थ ल अछि जतय मन के चकित, विमुग्धि आ विमोर क’ देनिहार मनोवैज्ञानिक तथ्यछ सभके अत्यंमत सहजता आ स्वा्भाविकताक एहि मे संयोग ने अछि। एकर कतिपद्य कथान्तवर्गत मानव अन्तभर मे त्रिगुणक सन्तुभजन-असन्तु लनक तत्वछ कथा अथवा मानक बुद्धि क संग रमण करैत विलास आ युद्ध एवं हदय संग रमण करैत शान्ति, पाशमुक्ति क कथा अछि जकरा सहज लोकवातावरण मे शक्ति पर भूमि पर अत्युन्त‍ सूक्षमता क संग, मनोहारी शैली मे इन्द्रहधनुषी तान्त्रिक रंग सँ चित्रित कयल गेल अछि। एहि मे वर्णित नृत्यक मोहिना सुशोभित अछि जेना विभिन्नन वर्णक उत्फुतल्लग कमल सँ सरोबर। लोरिकाइन मैथिली कंठ गाथाक एक अमूल्यन उपलब्धिक जकरा मिथिलाक लोक अपना कंठ मे हजार वर्ष सँ अधिक समय सँ जोगौने आयल अछि। एहि लोक महाकाव्यकक काव्यल ओ कथा प्रबन्ध् स्व यं पूर्ण अछि आ एहि बातक ज्वयलन्तव प्रमाल अछि जे मैथिलीजन साहित्यत कतेक सप्राण, सशक्तज आ समृद्धशाली अछि। ई महागाथा विश्व्क कोनो लिखित आ अलिखित महाकाव्यषसँ रक्कतर ल’ सकैत अछि। प्रयोजन एहि बातक अछि जे एकर मूल्यािकंन नवयुग क आलोक मे हो संगे मैथिलीभाषीक ई पुनीत कर्तव्यि भ’ जाइछ जे एहि महागाथा क सांगोपांग प्रकाशल हो। मिथिलाक उज्जंवल अतीतक एक ज्योरतिस्तजम्भ , शौर्य, शील आ त्या गक प्रतिमूर्ति एक जनप्रिय नायक लोरिक कीर्तिगाथा वस्तुीत: अमरत्वभ प्राप्ता करबा मे सफल भ’सकल अछि। मिथिला मे परम्पारा सँ चल अबैत लोरिक कथा ग्रामीण जन समुदाय अत्यछन्तश मनोयोग पूर्वक रूचि सँ श्रवण करैत छथि। ई एक एहन लोक काव्य थिक जे लोरिकाइन नाम सँ सात खण्ड् मे विमरत अछि आ अनेक राति मे जा क’ समाप्ता होइत अछि। एहि लोक गाथाक वैशिष्ट्या थिक जेई एगारह विभिन्नर भाषा मे लोककंठ सँ गाओल जाइन अछि। एकर सात खण्डो मे जनम खण्डए, सतीमॉं जरि खण्डव, चनैनखण्डअ, रण-खण्ड‍, सावर-खण्डस, सावर-खण्डक, बाजलि-खण्ड आ सझौती राजा खण्डा क चर्चा खण्डड, रण-खण्ड‍, सावस्खषण्ड‍, बाजलि-खण्ड‍ आ सझौती राजा खण्डद क चर्चा कयल जाइछ। नेपाली-मैथिली स्व रूप मे आठस खण्ड‍ उपलब्धस होइछ जकरा भैरवी-खण्डब कहल जाइछ। एहि लोक गाथा मे एक भाग वीर रसक हव्टाच छैक तँ दोसर भाग श्रृंगार रसक इन्द्रइधनुष से‍हो दृष्टिगत होइत अछि। एकर श्रृंगारिक वातावरण मधुमय सुषमा सँ परिपूर्ण अछि। एहि मे नारी एवं गायक अपहरणक वृतान्तोसँ ओतप्रोत अछि। एकर सभ पात्र अपन-अपन क्षेत्र मे अद्वितीय अछि तथा मूक पात्र सभ सेहो मनुष्यछक वाणी मे नहि बजाओल गेल अछि तथापि एकरा समक आचार, अपनैती आ अभिव्येक्ति अत्य न्तम मनोवैज्ञानिक सौन्दिर्यसँ सफलतापूर्वक अभिव्यमक्त, भेल अछि। एहि मे साहि‍त्यतक गंगा आ काव्यस-सौन्दलर्यक यमुना हिसोर ल’ रहल छैक ओही ठाम तान्त्रिक भावधाराक अन्तछ: सलिला सरस्ववती सेहो प्रवाहित भेल अछि। मिथिलक लोकगाथा मे दुलरा दयाल एक प्राणवन्तम लोकगाथा थिक। भारतीय भी किंग्‍ (जल्योगद्धा) क एहन स्वगर्णिस गाथा सम्भावत: अन्या न्य। साहित्याहन्त।र्गत नहि उपलब्धध होइछ। एहि लोकगाथा मे जल-जीवनक ऐश्वनर्य पूर्ण विवरण उपलब्ध् होइछ। एहि लोक गाथाक वैशिष्ट्या थिक जे मिथिलासँ कामरूप आ बंगालक तान्त्रिक साधना केँ उजागर करैत अछि। ई महागाथा मानव क एक दुर्लभ आन्तूरिक शक्ति क महिमा क आख्याधन करैत अछि। एकर नायक राजा वा योद्धा नहि; प्रत्यु त सिद्ध नर्तक आ सा‍हसिक सार्थवाह रहथि। एहि गाथाक घटनाकाल दोसर-तेसर-शताब्दीत भ. सकैछ,किन्तु रचनाकाल अनुमानत: छष्मय-सातम शताब्दीशक थिक। जतेक दूर धरि एकर भाषा-शैली क प्रश्न अछि ओ अत्यचन्तन प्राजंरण अछि जे मैथिलीक आदिम स्वतरूप केँ उद्घाटित करैत अछि। एकर भाषा पर सिद्ध कालीन मैथिलीक आदिम स्वतरूप केँ उद्घाटित करैत अछि। एकर भाषा पर सिद्ध कालीन मैथिलीक वेशी रंग आ एकरा आघ्याात्मिक यह भूमि पर बौद्ध महायान क वेशी प्रभाव। एहि मे वर्णित नृत्या सभ ठाम-ठाम गम्भीम तान्त्रिक रूप लटु लैत अछि। एहि महागाथाक विशेष वैषिष्ट्य छैक एकर प्रकृति वर्णन। हिमागिरि सँ ल’ कए गंगा आ गंगासँ ल’ कए सागर धारिक माछ-संस्कृयतिक एतेक विश्वा।स परिसर जे मिभिला. असस. बंग. आ ओडिसाधरिकेँ समेट ने छैक। विभिन्न‍ परिस्थिति मे एहन मोहक आ एतेक सूक्ष्मं वर्णन-विन्यारस एकरा उच्चवकोटिक वरणासिकक प्रभा प्रदान करैत छैक
एहि महागाथाक कथा-प्रवाहा अत्याकधिक क्रमबद्ध अछि जे तत्का लीन नौकाश्रय, घाट-बाट आ बजारक वर्णन सँ एकर छटा अपूर्व भ’ गेलैक । एहि महागाथा क पृष्ठतभूमि मिथिलाक जल-जीवन छैक जकर नाभि भूमि मे प्रवाहित होइत छथि महाकाली कोशी, हदय भूमि मे प्रवाहित होइत महालक्ष्मीम कसला आ मस्तोक भूमि मे प्रवाहित होइत छथि महासरस्व ती बागमती। इसह कमला मजाह जातिक कुलदेवी छथ जनिक गाथालक परिचय एहि मे देल गेल अछि। एहि महागाथाक नायक छथि नृत्यन-पिनुण दुलरा दयाल जे एक दिव्यण नर्तक, बड-बड तपज्ञया कपलनि जकर परिणाम मेल जे हुनक यशपताका हंसालटा अर्थात् हिमालय, कमलाजय अर्थात् मिथिला सँ ल’ कए महाशंखालय अर्थात् सागर धरि द्वदप-दीपान्त र धरि पहरा गेलनि। एहि मे मिथिलाक संगहि भारत क ओहि कालक दृष्यां कन अछि जं भारत केँ सुवर्णद्वीप, वालीद्वीप. जावा. सुमत्रा सँ सागर प्यािपार चलैत छल तकर मसा‍ही शौर्य आ सार्ववाह सबहक चमत्कानर पूर्ण क्रिया-कलाप आ नदी प्या पारिक अनुपम वर्णन एहि मे मेल अहि। ई महागाथा मानवक एक दुर्लभ, अजेप आन्त रिक शक्तिक महिमाक आख्यानन करैत अछि जकरा विकसित करबाक वर्तमान सन्द र्भ मे लुप्त होइत-होइत अधिक गुप्तव भ’ गोत्र अछि।
दुलरा दयाल महागाथा क एक-एक पात्र जहन जीवी समांजक एक-एक विद्वान क सफल प्रतिनिध्त्वि करैत अछि संगहि ई गाथा तत्काजलीन युगधारा केँ काव्यवक रस धारा मे परिणत क’ कए युग-युग सँ तकरा लोक मानस मे प्रवाहित करबा मे सफल रहत अछि। एहि गाथा मे जलजीवी. जलपथ,घाट, जलशासल ओ सुरक्षाक काव्या त्मएक विवरणक संगहि-संग सुखा लक्ष्मीज, तरूआरिक विद्युद्याम छटा आ करूआरिक अभियानक चित्र सम अत्यथन्तग सम्मो क रूपेँ उभरैत चल आयल यअछि जे इतिहासकार केँ सौन्दअर्यानन्दहक विपुल अवसर प्रदान करैत अछि। एहि लोकगाथा मे कमल ज्यो‍ति मिथिलाक बादा-बोन, चौर-चॉंचर, गाम-घर. पशु-पक्षी आ नर-नारी क कलात्ममक आ सौन्दतर्यमय छवि हंस शिखर सँ ल’ कए भागीरथी घरि मिलन क सौन्द र्यक विवरण सँ ओतप्रोत अछि। मिथिलाक लोकजीवन क अत्यमन्त प्राणवन्त चित्र अछि जकर स्पजष्ट‍ प्रमाण एहि गाथा मे उपलब्धा अछि। हंसालय हिमालय.कमलालय मिथिलाआ शंरपाल सागर क अनुपम आ कलात्मजक साहित्यिक सौन्दतर्य निखरि आयल अछि एहि महागाथा मे मिथिला जल-जीवन केँ आलोकित कयनिहार विख्यामत मैथिलीलोक महाकाव्यि क नृत्यवमयी महायोगिनी उाइन बहुरा ठहुराइनक प्याक्तित्वक चन्द्र लेखा,अभीवार्ता. मंगला. शेबारानीर आ अपना वक्षोज मे सर्पदंश ल’ कए मृत्य‍ आलिंगन कयनिहार विलयो पैट्राल व्याक्तित्वा सँ बहुत अधिक शक्तिशाली, रोमांटिक. रहस्यलमय अथिामानी आ ज्यो तिर्मय छैक। एहि महागाथाक नारी पात्र सभ डााकिनी सँ ल’ कए याकिनर धारिक योगिनर क चरित्र क आधार पर प्रतीक रूप मे अपन सम्पूोर्ण छवि-छटा क संग उपस्थित अछि। एहि जोकगाथा महाकाव्यर क सार्थवाहक लोकति मे उल्ले खनीय छथि दुलरा दयाल, विषयमल्लस. गोहिलमल्ल ,कोयलापीर. रन्नूोपीर क संकट ओ साहसिक क्षणक विवरण सँ ओतप्रोत अछि। एहि लोक महाकाव्याक साहित्यिक सौन्द्र्य जा कलात्मछक शिल्पा रहि-रहिक जेना सोर पाडैेत छैक मैथिलीक सांस्कृ्तिक वैभवसँ उल्लमसित होयला ले-। एकरा जँ नदी हाक कीि तँ अतिश्या कक्ति नहि। हंसालय सँ गंगाधारिक कमलाक धारा-प्रवाह क यात्रा क एक अत्य्न्त् भव्यय आ कलात्ममक साहित्यिक उपलब्धि अछि।
एहि महागाथा मे सार्थ शब्दआक प्रयोग तृअर्थक अछि-जलपोतक बडा, थलपथक व्याापारीक गाडी-बडद् आलोकक इेजँक अर्थ मे तथा सैनिक गल्मकक अर्थ मे तथा साहसिक नाविकक अर्थ मे। सार्थ सर्वतन्त्रक स्वकतन्त्रा होइत रहथि जे शक्ति, साहस, शौर्य, सहिष्णुिता आ शीलक आगर होइत छलाह। एहि महागाथा मे साथ्र आ सार्थवाहक लोकनिक साहसक अत्यिन्ती मनोहारी विवरण उपलब्धर होइत अछि। भारतीय जलयोद्धाक एहन स्वहर्णगाथा अन्येत्र कतहु नहि उपलब्ध् होइछ। एहि मे जल जीवनक बहुछवि दर्शी साहित्यिक छटा क प्रवाहमान क्र सँ साक्षात्का‍र होइत अछि। एकर सार्थवाह लोकति मे दयाल, विषयमाला, गोहिलसफल कोयला वीर आ रलू वीर क संकट ओ साहसक क्षण सभ विख्यालत ग्रीक महकविक काव्य ओडैसीक महानायक युलीयसक एक कलात्म्क उल्ला्स मैथिली परिवेश मे पसरिक’ गौरवान्वित क’ दैेत अछि। एकर सार्थवाह केँ सागर क संघर्ष, शैर्य. अभियान, अनुभव, महाकाव्यरक गाथा थिक जकरा सुनला पर मलुष्य केँ दिव्यर, चेतावनी, चरित्र,चॉंकि, प्रेरणा आ विश्व् द’ कए ओकरा अपना व्य क्तित्व केँ गढिक’ जीवनक दिशा निर्देश करबा मे सहायक होइत छैक। दुलरा दयाल महिमावान, शौर्यशाली, निर्देश करबा मे सहायक होइत छैक। दुलरा दयाल महिमावान, शौर्य शाली, तेजस्वीा आ यशस्वीक सार्थवाह रहथि। ओ देश देशान्तनरक विषय कयलनि। देशान्तभर मे ओ मिथिलेक नहि, प्रत्यु त भारत क विषय अध्या्त्मिक विषय घ्व ज लहरौलनि आ अपन देश मिथिलाक यशस्वी‍ सार्थवाह रहथि। ओ देश देशान्त रक विषय कयलनि। देशान्त र मे ओ मिथिलेक नहि, प्रत्युलत भारत क विषय अघ्या‍त्मिक विषय घ्वनज लहरौलनि आ अपन देश मिथिलाक यश सौरभ प्रसार लनि। तरूआरिक विषय कोनो विषय नहि होइछ कारण हिंसा. आतंक आ रक्त लिपा विजय क्षणिक होइीछ। दुलरा दयाल महागाथा अत्यान्तआ कलात्मकह रूपेँ सपृक मलक सपृयोगिनी नृत्यह पर आधारित अछि। एहि मे मिथिलाक पशु-पक्षी, पुष्पनलता,ऋतुचक्र, तन्त्र -मंत्र, रीति-नीति, संगीत-नृत्यश, देवी-देवता आ नर-नारी एतेक आलोकित विवरण अन्य त्र नहि उपलब्धि होइछ। ई गाथा एक प्रवाह मान महाकाव्यर थिक जे तन्त्रह-विद्याक आधार ने ने जल जीवन क पृष्ठाभमि मे युगयुगान्तरर सँ प्रवाहमान आ द्युतमान अछि।
प्रतिपाद्य लोकगा‍था ऐतिहासिक रसँ परिपूर्ण अछि कारण दुलरा दयाल द्वारा निमित हिमगिरि सँ ल’कए गंगाधार धरि सात मण्ड्प मूलाधार, स्वािधिस्था’न, मरितपुर, अनाहत, आज्ञाचक्र, सहस कमल आ सम्पूवर्ण नृतय क निमिक निर्मित कतोक मध्डथप क अवशेष अद्यपि वर्तमान अछि। एहि महागाथा क सर्वोपरि वैशिष्ट्र य थिक जे एहि मे मिथिला, कामरूप आ बंगालक तान्त्रिक साधलाक पृष्ठिभूमि मे लिखल गेल अछि जे वैरवीकरण क फलस्वकरूप आबलुप्तव गेल जा रहल अछि। तन्त्र क एक अत्यकन्तक शक्तिशाली विदृया थिक ‘डायन विद्या’। ई विद्या क लेखन क क्रम मे आडव्लल साहित्यथक सर्वाधिक प्रभावशाली उपन्यािस सी (SHE) क लेखक राइउर डेगर्ड. विश्व्क प्रख्यादत नाटककार खेखसपियर )1564-1616) क टेसपेस्टश (Tempest) (क1611-12) क गणना कयल जा सकैछ। पाल तुरंत क ‘एसर्च इन सिक्रेट इजिप्टक’ (A Search in Serene India) तँ तन्त्र क रहस्यटमय अन्वेाषणक हेतु विख्याeत अछि। ब्राजील क भुवन विख्या त लेखक चिक्कोस-लेवियर क भूत समहक लिखवौल शाताधिक उपल्या्स प्रकाशित छनि। प्लायइ माउथ क एक मिस्चील क शरीर मे एक तिब्ब।ती लामा प्रवेश क’ गेलनि, जाहि देश क भाषा एवं विद्या क नाम ओ सुनने छलाह तकर तिब्बदत, तिब्बओती भाषाक अर्म सम आ लाभाक विद्या पर एक पुस्तदक क रचला कयलनि थर्ड अहि (Third Eye)। ओहि आत्माक का नाम छलैक लोव सांगरप्पान। प्रतिपाद्य गाथा मे काया परिवर्तनक क तोक स्थगल अछि। एहि मे होइत विद्याक विलक्षण वर्णन भेल अछि। स्वेगनहेष्दिन ट्रान्सा हिमालया (Trans Himalaya) मे |जाहि मानसरोवर आ राक्षस तालक विवरण देलनि अछि तकर यथार्थ प्रतिरूप एहि लोकगाथा मे इजोरिया सरोवर आ आन्हTरिया सरोवर कहि क’ सम्बोाधित कयल गेल अछि। तन्त्र गाथा क वैशिष्ट्र य थिक जे प्रत्ये्क पात्रक चाहे ओ स्त्री होथि वा पुरूष अपन क्षेत्र मे अद्वितीय एवं अप्रतिम छथि ते अपन चमत्काआरक बल पर जन सामान्यक केँ सतत चमत्कृ त करैत रहैत छथि।
एहि महगाथाक अनुशीलन सँ अवबोध होइछ जे दुलरा दयाल क सा‍‍हसिक क्षण विख्याछत ग्रीक महाकवि होमर क महाकाव्य ओ डेसी (odyssey) क महानायक दुलीयसक अभियान, आपति, धैर्य,शौर्य आ आनन्द क कलात्मdक उल्लाास मैथिली परिवेश मे प्रसारिक’ गौरवन्वित क’ दैत अछि। नोबेल पुरस्कातर विजेता मिरवाइल सोलोचाव (Mikhail Slouched)क नदी जीवन पर आधारित उपन्या स ‘एण्डम ववाइट फलोज द डज्ञॅन (And quite Floes the Doha) तथा वाडव्ला साहित्य क उपन्या स शिल्पीफ माणिक वदोपाघ्याdय ( 1906-1956) क ‘पद्यानदीर मांझी (1936)सेहो जलजीवनक एतेक ऐश्वणर्य युक्तi विवरण देबा मे असमर्थ भ’ गेल छथि।
मैथिली लोकगाथान्तणर्गत प्राचीनकालीन मिथिलाक समाज व्यपवस्था ,राजव्यमवस्थास आ व्या पार व्यववस्थाचक मर्म केँ उद्घाटित करैत अछि नैका बनिजारा। ई मिथिलाक परप्रा गत स्वयर्ण संस्कृलतिक महान सम्पिदा थिक जकरा अन्तईर्गत तत्काानीन मिथिलाक इतिहास-संस्कृदति. सामाजिक स्थिति, व्याजपारिक व्यगवस्थाग ओ लोक भावनाक मणिमुक्तावक समान द्युतमान अछि। जाहि काल मे एहि महागाथाक रचला भेल होयत ओहि समय साहित्यय, युद्ध, रोमांस,स्टंयट, चलाकी देवीर-देवताक अलौकिक चरित्र सँ भरल अछि। एहि महागाथाक बैशिष्ट्य थिक जे बौद्ध कालीन मिथिलाक समाजक कलात्मंक अभिव्य क्ति देनिहार आ लोक जीवन केँ उद्भाषित कयनिहार साहित्यम शायदे अन्यातय भारतीय भाषा साहित्य मे उपलबध हो। एहि मे जे चित्र उपलब्धत होइछ ओ पॉंचम शताब्दीवक थिक। नैकाक व्य क्तित्वम मे अनेक प्रकारक विद्या आ कला सन्तिहित छजनि। एक जीवन मे अनेक जीवन मे अनेक जीवन जीवैत छलाह ओ। एहि गाथा मे ने तँ रोमांसक छटा अछि आ ने शस्त्रो अलंकृत शौर्यक छटा।
नैका बनिजारा एक एहन सामाजिक लोक गाथा थिक जकर रूमानियत अभियान आ मानवीय संवदेना क सौरभ क सुगन्धि जकॉं चिरस्था यी छैक (सहस्रवर्ष सँ अधिक प्राचीन रहित हुँ ई महागाथा मिथिलांचलक वर्णिक समाज आ संस्कृितिक एक एहन भव्य छटा उपस्थित करैत अछि जे मूल्यंवान मरित सदृश्यक अद्यापि ओहिना द्यतनान अछि। मैथिली साहित्य क एहि महान धरोहरि मे सात भाषाक ऐश्वओर्य केँ म्लामन कयनिपहार आ सात महाकाव्यकक विभूति केँ झमान कयनिहार लोक महाकाव्यष नैका बनिजारा एक दिव्यथ मणिमालाथिक आ बाछा तिलंगाक मनोहारी चरित्रक छटा ओकर पज्व्व लमान सुमेरू सदृश द्युतमान अछि। गोपनलोक जीवनक अत्यतन्तर ज्व्लन्तल आधार छल तथा ओकर चेतना अधिक विकसित रहैत छलैक तथा अपन पालकक प्रति ओकरा असीम आत्मी यता रहैत छल। बाछा तिलंगाक क्रिया कलाप अत्यतन्ती विश्वहसनीय अछि।
एहि मे एक धीर, वीर आ साहसिक व्या पारी नैका बनिजाराक वर्णन मेल अछि जे देश देशान्तयरक मिथिलाक व्यागपार व्यववस्थाप केँ उद्घाटित करैत अछि ई मिथिलाक सामाजिक एवं सांस्कृितिक ऐश्वरर्य सँ परिपूर्ण पृष्ठ भूमि क बनिजारा समाजक अलैकिक गाथा थिक। एहि मे मिथिलांचलक सांस्कृितिक ऐश्व र्य सँ परिपूर्ण पृष्ठाभूमिक बनिजारा समालक एक एहत सामाजिक लोक महाकाव्यक थिक जकर रूमानियत अभियान आ मानवीय संवेदनाक सौरभ क सुगन्धि सँ का चिरस्था यी छैक। संहरा वर्ष वर्ष सँ अधिक प्राचीन रहित हुँ ई महाकाव्यक मिथिलांचलक वणिक समाज आ संस्कृरतिक एक अनुपास छटा उपस्थित करैत अछि जे मूल्यणवान मणि सदृश ओहिता द्युतमान अछि। ई महागाथा नैकाक व्याजपारिक अभियानक गाथा थिक जे मैथिली साहित्यईक एहि महान हारोहरि मे सात भाषाक ऐश्वपर्य केँ म्लाथन कयनिहार लोक महाकाव्यन दिप्या मणिमाला थिक।
एहि मे एक धीर, वीर आ साहसिक व्या पारी नैका बनिजारा क वर्णन मेल अछि जे देश देशान्तकर क मिथिला क व्यारपार व्य वस्था केँ उद्घाटित करैत अछि। ई मिथिलाक सामाजिक एवं सांस्कृातिक ऐश्वपर्य सँ परिपूर्ण पृष्ठईभूमिक बनिजारा समाजक अलौकिक गाथा थिक। एहि मे मिथलांचलक सांस्कृकतिक ऐश्वार्श्‍ सँ परिपूर्ण पृष्ठपभूमिक बनिजारा ामाजक एक एहन सामाजिक लोक महत्काशव्यर थिक जकर रूमानियत अभियान आ मानवीय संवेदनाक सौरभक सुगन्धि सकॉं चिर स्थाकयी छैक। सहंरठ वर्ष सँ अधिक प्राचीन एहित हुँ ई महाकाव्या मिथिलांचलक वणिक समाज आ संस्कृ तिक एक अनुपात छटा उपस्थित करैत अछि जे मूल्यआवान मणि सदृश ओहिना द्युंतमान अछि। ई महागाथा नैकाक व्यायपारिक अभियानक गाथा थिक जे मैथिली साहित्यथक एहि महान हारोहरि मे सात भाषाक ऐश्वेर्य केँ म्लानन कयनिहार लोक महाकाव्यन दिव्यि मणि माला थिक।
नैका बनिजारा जतय उच्चभ सभ्यऐताक उद्यभी, उच्चक निष्ठाा क कर्तव्यि-परायण. धीर, वीर गम्भीचर रहथि ततय हुनक विर्होता पत्नीक फुसेश्विरी अपन कुलमर्यादा.शलीनता एवं सलीलक रक्षा सती सीता-सावित्री सदृश कयलनि। नैकाक धन्तित्वश मे अनेक प्रकारक पिद्या आ कला सन्निहित छलनि। हुनक व्यवक्तित्वत मे एक महान महायात्री, ज्यो।तिषी, वैद्य, अभियानी, खान-खोजी, संधि-विग्रहत्राताता.सार्थवाह. वादक, रत्नम-पररखी आ पक्षी क वाणीक विशेषश्र रहथि। ओ कतोक खाक क अन्वेोशण कयलनि। हुनक व्येक्तित्वक निरापद छलनि। ई मानवीय स्तकर पर एक सतरंगी मोहक छटा उपस्थित करैत एक अमर रचना थिक जे मैथिली कंठ साहित्यिकक एक जाज्जैवलमान मुकुट मणि बनि गेल अछि।
एकर मुख्यक नायिका छथि चाचादेशक राजाक एकमात्र सन्तावन नैका ब निजारा क धर्म-पत्नीु रानी फुलेश्विरी जे अभाव मे सुभाव, विपन्न्ता मे सम्पसन्नवता आ विपति मे धैर्य रखैत छथि। हुनका मे सृजनात्मजक प्रतिभा छलनि जकरा द्वारा ओ द्रोण नगरक महाकुबेरनी सँ प्रार्थित भेलीह। ओ द्रोणेखरी केँ पुत्र प्राप्तिक दिशा संकेत कयलनि । फुनेश्पररी केँ प्राप्तओ क’ कए बनिजारा कुलतरि गेलैक। एहि प्रकारेँ तिलकेश्पवरी सन दुष्टा आ तुलेश्प्री सन धर्म परायण दू ननदि आ फलेश्प री सन एक महिमामयी माउजक चित्रण एक कलात्मपक त्रिकोण बनि गेल अछि एहि महागाथा मे। निस्समन्देरह एहि महागाथा क अनमोल तीनू नारी वरित्र मिथिलांचल एवं मैथिली साहित्यंजक जाज्व्लयमान धरो‍हरि थिक।
समकानी समाज मे बारीक स्थिति अत्यलन्त‍ दयनीय छल जकरा मात्र भोग्याद बुझल जाइंत छलैक। समकालीन सामाजिक परिवेश मे महिलाक क्रयविक्रयक व्या पार अवाध गतिऍं चलैत छल तथा नारीक हाट लगैत छल जकरा देख्तिहि लोकक ऑंखिकेँ चकचोन्हीध नागि जाइत छलैक। एहि मे वर्णित कुम्भाल डोम द्वारा सुन्दऑरी-व्याहपार तत्कागलीन भारतीय नारीक हीन स्थिति आ नैराश्यर पूर्ण जीवनक अतिव्यंथार्थपूर्ण चित्र प्रस्तुात करैत अछि। डोमराज कुम्भाय नारीक क्रय-विक्रय कयनिहार वेश्याा हाट नगौनिहार महादल छल। नारी समूह कजवर्न्य , बर्बर आ पाश्चिक उपयोग क ई एक विलक्षण दस्तारवेज थिक जे एहि वाम क सामाजिक इतिहासक अमिट दग्ध पृष्ठ् कहल जा सकैछ। एहि हाट मे राजा लोकनिक रूपसी रानी. राजकुमारी, अपदृता, उढरल. हना. परित्य क्ता्,निर्वासिता, भ्रष्टाख एवं पीडिता ललना सभ रहैत छनीह। कुम्भाी उदण्डत, अवण्ड आ प्रमृत छल। एहि महागाथा मे वर्णित कुम्भा डाम द्वारा सुन्दवरीक व्या्पार. तत्का्लीन भारतीय बारीक हीन स्थिति आ निराशजीवनक व्यमथापूर्ण चित्र उपस्थित करैत अछि। डोमिन संग पुरूषक प्रिय होइंत छलीह आ अपना जुडा मे फूलक गुच्छाम गुझित करैत छलीह। ई सभ मसान भैरव आ योगिनीक पूजक होइत छलीहा एकरा सभक बीच मे किछु तान्त्रिक साधनाक प्रचलन छलेकवासा चार सिद्धि लेल डोमिनक उपयोग काफलिक भैरव द्वारा कयल जाइत छल।
तकॉं बनिजारा कालीन सामाजिक पृष्ठकभूमि मे ओमक अतिरिक्ति चाण्डातल एवं धाडण्डरक सेहो विशेष चलती छलैक। चाण्डालल सतत अभानुषिक कार्यक लेल विख्याडत छल। ओ क करो हत्याी सुपारी लकाँ कतरिक’ करैत छल। धाडण्डा सम युद्ध प्रिय होइत छल आ निपुत अश्वाीरोरी सेहो। समकालीन समाजक राजा लोक्ति अपन विपुल धन राशि द’ क एकरा सम शौर्यक उपयोग करैत छलाह। ओ सभ दस्ु्िपुक काज करैत छल। ओहि कालक नागमणि पिछौटा धाडण्डभ प्रख्या्त छल।
अनादि काल सँ मिथिलाक लोककंठ मे लवहगरि-कुशहरिक गाथा प्रचलित अछि। एहि गाथाक प्रसंग विवध पुराण एवं रामायण मे सेहो वर्णित अछि; किन्तुछ एहि गाथा मे वर्णित वैदे‍हीक जे स्विरूप विधान अछि तकरा अन्त र्गत लव-कुशक उत्पगत्ति कथा क जे स्व रूप विधान अछि, से मिथिलाक एहि अमर लोकगाथाक तुलना मे झूस-झमान अछि। भारतीय आदर्शक श्रेष्ठंातम नारीक व्यलक्तित्वकक एहन दिव्य उत्ककर्ष जाहि उज्जूवलताक संग एहि मे दे दीप्य मान अछि ओकर स्वकरूपक मौलिकता अन्या न्यर अनगनितो इतिहास वा पुराण मे नहि उपलब्धा होइछ। एहि जनकंठ गाथा मे जे उज्जनवल आ अत्युाच नारीक सृजन कयल गेल अछि ओ अन्या न्ये नाडव्मजय मे दुर्लभ अछि। एहि गाथा क पृष्ठगभूमि मे सीमा अचन मातृभूमि मिथिला क स्वार्णिम साधना, परमपरागत सांस्कृछतिजक एंश्वभर्य आ लोक जीवन क सहज सौन्दकर्य निने विकसित मेल अछि। एहि मे मिथिलाक महान बेरीक अदम्यस, सृजनात्म क प्रवृति आ प्रभमय आध्याात्मिक व्य्क्तित्वो आलोकित मेल अछि। एहि लोकगाथा क स्व्रूपक मौलिकता अछि जे सहस्रमुख रावण-वध ओ वनवासक प्रसंग सीता केँ देल गेल अदण्डम.दण्ड् सेहो एक विचारणीय विषय थिक। सीता द्वारा सहस्रमुख रावण वध जेना सीता वरित केँ सहसा मुख्या रामायण सँ फराकक’ अप्रत्यानशित रूपेँ हुनका बहुत आगॉं आनि दैत छनि। सीता क जाहि जाज्वालमान राममुक्तय आ ऐश्वतर्य मुक्त वैदेहीक व्यसक्तित्वकत विकास वाल्मी कि आश्रम मे मेल, सहस्रमुख रावणनध आ वनवाा क प्रसंग ओहि सशक्त् कथाक पूर्वाभासं वातावरणक रूप मे कलात्मरक भावेँ चित्रित मेल अछि। एहि सँ आगू जे वैदेही-स्वकरूप छविमय मेल, तकरा पाबिक’ संसारक कोनो साहित्य आइतिहास क पन्ना अनायासहि स्वा र्णिम भ’ सकैछ। सीताक जीवन-संघर्षक कथाक गर्भकेँ उद्घाटित करबाक क्रम मे सीता क लेल बाल्मीककि आश्रम क अत्यागधिक महतव अछि। सीताक जीवन-संघर्ष शारीरिक ओ मानसिक दुनू छनि। एहि मे नव-कुश क जन्म क कथाक परिप्रेक्ष्यि मे जगत जनबीक जीवन संघर्ष केँ एहि मे पुनर्जीवित करबाक उपक्रम कयल गेल अछि। लवहरि-कुशहरि लोक गाथा मे सीताक ज्यालतिर्मय आलम्बकन सँ ई मिथिला क स्वरर्णिम परम्पाराक माहात्य्ीता गाथा थिक। ई लोक गाथा मिथिलाक अनुसंधानक एक अभिनव क्षितिज केँ आलोकित करैत अछि। मिथिला मे वैदेही साधनाक अधिक प्रचार-प्रसार छलैक जकरा अन्तिर्गत दुइ सम्प्र दाय विकसित मेल-ब्रहमवादिनी सम्प्रेदाय एवं भैरवी सम्प्रादाय। एहि गाथाक स्वयरूप अद्भुत छैक। किछु गीत पुन: कथा, पुन: गीत तखन कथा। एकर विषय आ क्रम अत्यछन्तस स्पुष्ट: अछि। राम कथाश्रित सीता आ लवहरि-कुशहरि लोकगाथाश्रित सीताक मौलिकता मे अन्तिर छैक। जतय राम कथाश्रित सीता सतन अश्रुमयी छथि ततय व्यिवहरि-कुशहरि कथाश्रित सीता एक साधारण नारी छथि। राम कथा मे सम्पूिर्ण कथा रामाश्रित अछि किनतु एहि गाथा मे सीताश्रित अछि। ई गाथा तीन खण्ड मे विभाजित अछि-आयोघ्या खण्‍, वन खण्डि एवं कमल खण्ड । लवहरि-कुशहरि मे मिथिलाक लोक मानस, अपन मारि-पानि, आघ्याित्मिक चिन्तेन, परम्पणरा आ आचार क अनुकूल एक शक्तिमयी सीताक आराधना जे विदेह भूमि, विदेह जनक, विदेह गरिमा आ वैदेही दर्शनक पूर्ण प्रतिनिधित्वद करैत शक्ति-साधना केँ उद्घघाटित करैत अछि। एहि मे वर्ण्ति सीता,लोक सीता छथि राजराजेश्वररी नहि। ई गाथा मिथिलाक स्व र्णिम साधना, परम्पीरागत सांस्कृततिक ऐश्व र्य तथा लोक जीवन क सहज सौन्दधर्य विकसित मेल अछि। एहि मे मिथिलाक एहि महान बेरीक ज्वतलना जीवन-संघर्ष सँ शक्ति, अदम्यए सृजनात्म्क प्रवृति प्रभामय आघ्यावत्मिक व्य क्तित्व् आलोकित भ’ उठत अहि। मिथिलाक लोक जीवन क आ लोक-संस्काभर क अपूर्व छवि एहि मे उपलब्धि अहि। मिथिलाक लोक जीवनक आ लोक-संस्का्र क अपूर्व छवि एहि मे उपलब्धि अछि। ई गाथा मिथिलाक स्व र्णिम साधना, परम्पएरागत, सांस्कृ्तिक ऐश्व्र्य आ लोक जीवन क सहल सौन्दलर्य विकसित मेल अछि। विश्वध साहित्यक मे एक साधारण नारी, राजा-बानी क अनेक गाथा उपलब्ध् होइछ, किन्तु एक राज राजेश्ववरी के सहसा एक साधारण नारी बनिक’ त्यागग, चेतनामयी,ओजस्वीु स्वा्भिमान पूर्ण ओ सफल जीवनयापन करब एकमात्र एहि लोकगाथाक वैशिष्ट्यन थिक। प्रतिकूल परिज्ञिथति केँ धैर्यक संग अनुकूल बगालेबाक क्षमता एहि लोकगाथाक वैश्ष्ट्यि थिक। मणिपद्य मैथिली लोकगाथा केँ अमर बनयबाक दिया मे जे हुनक अपदान अछि ओ निश्चिये एहि साहित्या मे हुनका अमरात्वा प्रदान कयलक ताहि मे संदेह नहि। लोक गाथाक विवरणात्मएक वर्णनक बिनु परायण कयने एहि पर आधृत अपन्यल सादिक अघ्यएयन हमरा जगैत यअपूर्ण हैत। ओ जाहि अंशक निवेश अपन उपन्याासदि मे नहि क’ फैलनि तकरा ओ लोकगाथाक इतिहास मे सन्निवेश कयलनि। प्रयोजन अछि एहि विषयक जे एहि लोकगाथा समहिक सम्यिक् रूपेँ संकलन,सम्पाहदन आ तकर प्रकाशन हो। किन्तुह अद्यपि मैथिली मे एहि दिशा मे ने तँ अनुसन्धायन मेल अछि आ ने अनुसंधिविस्तु एहि दिस उन्मुिख भेलहि जे चिन्त्नीय विषय थिक। मिथिलाक स्वनर्ण परम्पनरा मे जटिल एहि गर्वरानी धरोहरिक अधिकाधिक अन्वेिषण आ संकलन हो।


कथा-
बात

सुभाषचन्द्र यादव-

चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द

सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
रंभा
एकटा सुंदर दीब स्त्री हमरे दिस आइब रहल ऐछ । हमर दुनू कात जगह छै । ऊ तकरे ठिकिएने आइब रहल ऐछ । ओकर गरहैन, ओकर रंग, ओकर कोमलता, माधुर्य आ स्मित अदभुत छै । स्त्री इंदरासनक परी लागै छै । की नाम हेतै ? उर्वशी, मेनका या रंभा ? पता नै । सुंदरताक देवी एहने होइत हेतै, जकरा एला सऽ इजोत भऽ जाइ छै आ हँसला पर फूल झड़ै छै । कोन फूल झड़ैत हेतै ? चम्पा-चमेली ? एहने कोनो फूल हेतै, जकर गंध सऽ लोग माइत जाइत हएत ।
से डिब्बा मे बैठल लोग ओइ रंभाक रूप पर लोभा गेल । ओकर स्वागत मे हम एक कात घुसैक गेलौं आ हाथक इशारा सऽ बैठ जेबाक अनुरोध केलिऐ । ऊ बैठबे कएल कि एकटा नौ-दस सालक लड़का ओकरा आगू मे आइब कय ठाढ़ भऽ गेलै । ऊ हमरा दिस घुसैक गेल आ ओकरा बामा कात बैठा लेलकै । ओकर सुंदरताक जादू तेहन रहै जे ओइ लड़का पर और ध्यान नै गेल । सबहक नजैर ओइ स्त्री पर रहै ।
ओइ सुंदरीक आगमन सऽ चतुर्दिक उल्लास पसैर गेल रहै, बुझाइ जेना वसंतोत्सव हो-प्रेमक विराट इजोत सऽ जगमगाइत । होइ ओकरा देखते रही । उत्सव कखनो खतम नै हो । हम जैहना ओकरा दिस ताकिऐ, ऊ बिहुँस दैत रहय । ओकर चेहरा पर मंद मधुर हास लहर जकाँ आबैत रहै । भुवनमोहनी मुस्की ।
तखनिए कुइछ भेलै । ऊ लड़का दिस घुमल—ओइ लड़का पर आब फेर हमर ध्यान गेल जे ओकर संग लागल आयल रहै आ बामा कात बैठल रहै । नौ-दस सालक ऊ लड़का देखै-सुनै मे एकदम साधारण रहै । सुखायल सन । चमड़ी पर कोनो चमक नै । गुमसुम बैठल । हमरा भेल लड़का ओकर नौकर हेतै । लेकिन नै। ऊ ओकर बेटा रहै ।
हमरा बिसबास नै होइत रहय जे इ ओकर बेटा हेतै । दुनू मे कोनो मिलान नै रहै । ने मुँह मिलैत रहै, ने रंग मिलैत रहै आ ने देहे-दशा एक रहै ।
भऽ सकैए लड़का बाप पर गेल होइ । ज ऊ बाप पर गेल हैतै तऽ ओकर बाप केहनो नै हेतै । एतेक सुंदर स्त्री कय एहन घरवला ! ओइ स्त्री लय हमरा अपसोच भेल । संदेह भेल-ऊ घरवाला सऽ प्रेम करैत हेतै ? तन आ मन दुनू मिलैत हो, तबे प्रेम होइ छै । कोनो एकटा भेटला पर लोग भटकैत रहैत ऐछ । उहो भटकैत हएत ?
ओकरा सऽ रूइक-रूइक कऽ गप होइत रहल । हम पुछिऐ आ ऊ जवाब दिअय । ऊ कुइछ नै पुछलक । ई बात हमरा खटकल । भेल जे ओकरा रूप के घमंड छै । लेकिन एकटा बात और रहै । ओकर-हमर उमेर मिलानी मे नै रहै । दस-पनरह साल के फरक रहल हेतै । एना मे ऊ हमरा किए चाहत ?
लेकिन तब ओकर ओइ हँसीक की मतलब ? आँइख मे झिलमिलाइत सिनेह ककरा लेल ? हम ओकर मुँह दिस ताकलिए जेना ओकर चेहरा सबटा भेद नुकेने हो । हमरा पर नजैर पैड़ते मुस्की सऽ ओकर चेहरा खिल गेलै । खिलैत गुलाब सन ओकर चेहरा देखै लय हम नव-नव सवाल सोची । हमर सवालक कोनो अंत नै रहय, ने ओकर चेहरा सऽ फूटैत मोहनी मुस्कीक कोनो सीमा ।
कतेको सुंदरी अपन रूपजाल मे फँसल लोग कय देख आनंदित होइतरहैत ऐछ । रूपक जादू देखब ओकर खेल होइ छै । ई रंभा हमरा संग वएह खेल तऽ ने खेला रहल ऐछ ? पता नै की रहस्य छै ! कतेक बेर स्त्रीक असली भावना बूझब बड़ कठिन होइ छै ।
सुंदरी माय सऽ भेंट करय हाजीपुर गेल रहय । आब कटिहार जा रहल ऐछ । कटिहार सौसराइर छै । घरवाला दोकान करै छै ।
''कटिहार मे और के-के ऐछ ?''- पुछलिऐ । कहलक – ''बस ससुर ऐछ, अही सन । फौज मे रहय । आब रिटायर कऽ गेलै ।''
ओकर जवाब सऽ हमरा धक्का लागल । हम ओकर ससुर नै हुअय चाहैत रही । ई बात ऊ किए कहलक ? हम देखै मे ओकर ससुरे सन छिऐ ? ओकर ससुर आ हमर सोभाव मिलै छै ? या उमेर एक छै ? नै जाइन ओकर इशारा कोन दिस रहै ।
ओकर एगो और गप सऽ हमरा निराशा भेल । ऊ कहलक – ''हम कतेक बेर असकरे जाइ छी । अही सन कोय-ने-कोय भेट जाइ-ए । पते नै चलै-ए रस्ता केना कैट गेल ।''
हमर बेगरता बस सफरे धैर छै । तकर बाद ऊ हमरा बिसैर जायत । हमरा मे कोन चीज छै, जकर ऊ हियास करत? ऊ टिकली ऐछ, उइड़ कऽ एतय, उइड़ कऽ ओतय । रूपवती क निष्ठाछ ओहुना संदिग्ध होइ छै।
देखलिए ऊ फुसफुसा कय बेटा कय कुइछ कहैत रहै । बेटा नै-नै करैत रहै । पुछलिए – “की भेलै ?” कहलक- ''एकरा बाहर के कोनो चीज खाय लय नै दै छिऐ आ संग मे छै, से खाय नै चाहै-ए ।''
''बाहर के तऽ हमहूं कुइछ नै खाय छी । भोर सऽ एक्को दाना मुँह मे नै गेल ऐछ । आब घरे जा कऽ खायब।'' – हम कहलिऐ ।
“हमरा लग खाय वला ढ़ेरी चीज छै । निकाइल कय दै छी ।'' – ऊ बाजल । “नै-नै । की हैतै ? छोइड़ दिऔ।“ – हम मना केलिऐ । मगर ऊ नै मानलक । कहलक – ''बुझबै जे एगो बेटी भेटल रहय ।''
ऊ ऊपर सऽ झोड़ा उतारलक आ अखबार पर पूड़ी, भुजिया आ अँचार सजबय लागल । ऊ ततेक पूड़ी देने जाइत रहै जे हम ओकर हाथ पकैड़ लेलिऐ । ऊ पूड़ी देनाय छोइड़ देलक आ पलैट कय हमरा दिस ताकलक। फेर पाइन दैत कहलक – “खा लिअ ।''
''बाद मे खा लेब ।'' – कहैत हम अखबार लपेट कय एक कात राइख देलिए । ओकर सिनेह सऽ मन भीज गेल । बेटी ! ओह ! ज ठीके ऊ हमर बेटी होइत !
आब ऊ उतैर जायत । बरौनी आइब रहल छै । ऊपर सऽ सामान उतारय लागल-ए। ओकर एकटा सामान हम उठा लै छिऐ । उतरैत काल कहै-ए – “कहियो कटिहार आबी तऽ घर पर जरूर आयब ।''
हमरा कुइछ बाइज नै होइ-ए । फेर कलेजा मे जेना हूक उठै-ए। कहै छिऐ- “पता नै अहाँ कय आब देख सकब कि नै ।''
ऊ हमरा आश्चार्य सऽ देखै-ए। हम सब प्ले ट फार्म पर उतैर गेल छी।
पएर छूबै लय ओ कने झुकै-ए । फेर नै जाइन किए अपना कय रोइक लै-ए आ सीधा भऽ जाइ-ए ।
ओकर ई बेबहार हमरा नै बुझाइ-ए । हम बिरान छिऐ तैं की ? आकि हमरा पर अश्रद्धा भऽ गेलै तैं गोड़ नै लागलक ? लेकिन हम तऽ एहन कोनो बात नै कहलिऐ, ने एहन कुइछ केलिऐ जे अनसोहाँत हो । तब ऊ एना किए केलक ? जे होइ; मगर ओकर गोड़ नै लागब एक तरहें नीको लागल ।
हम ओकर सामान पकड़ा देलिऐ । ऊ विदा भऽ गेल । हम ओकरा जाइत देखैत रहलिऐ । सीढ़ी लग पहुँच कय ऊ ठाढ़ भऽ गेल आ घुइम कय हमरा देखलक । हम हाथ हिलेलिऐ । उहो हिलेलक ।

उपन्यास
-कुसुम ठाकुर,सामाजिक कार्यमे (स्त्री-बच्चासँ विशेष) , फोटोग्राफी आ नाटकमे रुचि । अन्तर्जाल पता:-http://sansmaran-kusum.blogspot.com/
प्रत्यावर्तन - (सातम खेप)
१३


छोटका बेटाक जन्मक बाद इ टिस्को से संबध भs गेलाह। बड़का बेटा भास्कर(पुत्तु )ओहि समय मे सवा दू बरखक छलाह आ छोटका बेटा मयुर (विक्की) मात्र तीन मासक। हिनका अयलाक किछुए मास बाद बाबुजी केर बदली राँची भs गेलैन्ह आ माँ सब जमशेदपुर सँ चलि गेलिह। ओहि समय मे टिस्को के घर भेटय मे किछु दिक्कत छलैक आ वरिष्टता के आधार पर घर भेटैत छलैक। हम सब एकटा छोट छीन घर लs कs रहय लगलहुँ।

कलाकार मन बेसी दिन चुप नहि बैस सकैत छैक आ ताहू मे लल्लन जी सन कलाकार। अपन व्यस्तताक बावजूद ओ टिस्को के नौकरी मे अयलाक किछुए समय बाद सँ अपन नाट्य आ सांस्कृतिक गतिविधि मे सक्रिय भs गेलाह। ओहि समय मे टिस्को केर पदाधिकारी आ कर्मचारी सब के द्वारा कर्मचारी सब के लेल सुरक्षा नाटकक आयोजन कएल जाइत छलैक आ ओहि नाटक सब पर खर्च सेहो बहुत कम कयल जाइत छलैक। ओ नाटक सब एक दम नीरस आ संदेश मात्र के लेल रहैत छलैक। दर्शक सेहो मात्र अपन विभागक आ किछु आन विभागक लोक जे सब नाटक मे भाग लेत छलाह रहैत छलैक। कार्य भार स्म्भरलाक किछुए मास बाद अपन विभागक सुरक्षा नाटक मे भाग लs आ ओकर संवाद मे फेर बदल कs ओहि मे सर्वश्रेष्ट अभिनेताक पुरस्कार प्राप्त केलाह। दोसर बरख जओं हुनका नाटक लेल कहल गेलैन्ह तs साफ कहि देलथिन जे ओ नाटक रविन्द्र भवन जे कि जमशेदपुर केर सबस नीक प्रेक्षागृह छलैक ओहि मे करताह। ओहि बरखक नाटक रविन्द्र भवन मे भेलैक आ दर्शक के ओहि नीरस विषय पर कयल गेल सुरक्षा नाटक खूब पसिन भेलैक आ श्री ठाकुरक जमशेद्पुरक नाट्य यात्रा एहि ठाम सँ प्रारम्भ भs गेलैन्ह।

सब दिन मैथिली केर सेवा करय लेल प्रतिबद्ध श्री ठाकुर जी के मोन मे सदिखन इ रहैत छलैन्ह जे किछु करि वा नहि मैथिली भाषा आ साहित्य के अपन कलम सँ किछु तs सहयोग करिए सकैत छलैथ। जमशेद्पुरक मैथिली संस्था "मिथला सांस्कृतिक परिषद" केर सदस्यता तs अयलाक किछुएक समय पश्चात इ सोचि ल लेलाह कि मैथिली केर सेवा करताह। सन १९८१ ई मे एकटा आन्दोलन शुरू भेल छलैक आ गाम गाम आ सब शहर सँ सेहो प्रधानमंत्री के नाम पोस्ट कार्ड पर मैथिली भाषा केर अष्ठम सूची मे स्थान देबाक लेल आग्रह कयल गेल छलैन्ह। जमशेदपुर मे एकटा सांस्कृतिक कार्यक्रमक आयोजन से करबाक विचार भेलैक जाहि केर भार श्री ठाकुर जी के देल गेलैन्ह। श्री ठाकुर जी तय केलाह कि एकटा सगीत संध्या कयल जाय आ ओहि कार्यक्रमक नाम देल गेलैक संकल्प दिवस। ओहि कार्यक्रम के लेल सबटा गीत मैथिली मे अपनहि लिखि आ ओकर धुन दs तैयारी कराब मे लागि गेलाह । मैथिली मे हुनक इ पहिल कार्यक्रम छलैन्ह आ कार्यक्रम मे मुख्य गायक सेहो अपनहि छलथि। कार्यक्रमक उदघाटन गीतक नाम से "संकल्प गीत"परलैक।

"संकल्प गीत"

संकल्प लिय संकल्प लिय
संकल्प लिय यो
बाजब मैथिली मिथिलाक लेल जियब यो ....
संकल्प लिय..............२।

शांतिमय प्रयास हमर ई
सुनी लिय देशक नेता.....३
सूची अष्टम मे स्थान दियो
आरो ने किछु कहब यो ....
संकल्प लिय.......२

लाखक लाख पत्र जाइत अछि
आँखि खोइल क देखू .....३
aआबि गेल समय इन्द्रा जी
मिथिलाक मान राखू ......३
संघर्ष बढ़त जं बात ने मानबै
आरो ने हम साहब यै
संकल्प लिय ...........३।

-लल्लन प्रसाद ठाकुर -

अहि कार्यक्रमक खूब प्रशंसा भेलैक आ श्री ठाकुर जी के एहि कार्यक्रम कय जे प्रसन्नता भेलैन्ह ताहि केर परिणाम स्वरुप ओ एकटा नाटक करबाक ठानि लेलैन्ह। जमशेदपुरक मिथिला सांस्कृतिक परिषद केर महिला शाखाक स्थापना भेलैक आ ओकर सदस्या लोकनि अपन एकटा मुख्य कार्यक्रम करबाक लेल श्री ठाकुर जी के आग्रह केलथि। ठाकुर जी हुनक सबहक आग्रह मानि लेलाह आ तय भेलय जे नाटक होयतैक।ठाकुर जी के पहिल नाटक" बड़का साहेब" ओकरे देन छैक। ओहि नाटक केर लिखैत हम देखने छियैन्ह बुझाइए मे नहि आयल जे नाटक लिखनाइ एको रति कठिन छैक। ततेक सामान्य आ सरल भाव सँ लिखैत छलाह एक एक टा संवाद के हमरा पहिनहि कैयेक बेर सुनबैत छलाह। हमरा तs नाटकक पूर्वाभ्यास सँ पहिनहि सबटा संवाद याद भ गेल छल।

एक बेर जे ठानि लैत छलाह ओकरा पूरा करबा मे अपन जी जान लगा दैत छलाह। बड़का साहेब केर पूर्वाभ्यास महिला शाखा केर एक गोट सदस्य के ओहि ठाम होइत छलैन्ह। हम सब तsसपरिवार सब दिन उपस्थित रहैत छलहुँ। एक तs अपने मुख्य भूमिका मे छलाह दोसर विक्की से ओहि नाटक केर बालकलाकार छलाह तेसर बहुत रास काज नाटक संबंधी होइत छलैक जे हमरा भार देने छलाह आ चाहैत छलाह जे हम सब दिन नाटकक अभ्यास देखि जाहि सँ हम बहुत किछु देखि कs बुझि लियय।

बड़का साहेब केर पूर्वाभ्यास मे सब दिन महिला शाखाक सदस्य द्वारा कैयेक टा नाटक होयत रहैत छलैक। हुनका सब के ई विश्वास नहि छलैन्ह जे नाटक नीक होयतैक। किछु सदस्य बुझैत छलिह जे ओ नाटक केर विषय मे अधिक बुझैत छथि, मुदा प्रत्येक नाटक मे निर्देश केर अपन कल्पना आ सोच होयत छैक। सब दिन इ हुनका लोकनि के समझाबथि जे अहाँ सब निश्चिंत रहू नाटक नीक होयबे करत मुदा हुनका सब के भरोस नहीं होयेंह। इ सब दिन घर आबि क कहैथ इ पहिल आ अंतिम अछि आब हम दोसरा के लेल नाटक नहीं करब ख़ास क मौगी सब लेल तs नहिएँ टा। सब दिन हम आ बालमुकुन्द जी हिनका बुझाबियैन्ह। एक तs एकहू टा नीक कलाकार नहि रहथि दोसर हर काज मे व्यवस्थापक सबहक हस्तक्षेप। हिनका नीक नहि लागैन्ह मुदा जखैन्ह कार्यक भार लs लेने रहथि त पूरा करबाक छलैन्ह।

एक त सब दिन नाटकक पूर्वाभ्यास मे किछु नहि किछु होइत रहैत छलैक ताहि पर नाटक मंचनक तारीख स तीन चारी दिन पहिने इंदिरा गाँधी के हत्या भ गेलैक आ प्रशासन दिस स सबटा कार्यक्रम रद्द करबाक आदेश आबि गेलैक। दोसर तिथि तय करबा मे समय नहीं लगलैक अखबार मे से निकलबा देल गेलैक मुदा हुनक मोन नहि मानलैंह आ जाहि तारीख के नाटक मंचन होयबाक छलैक ताहि दिन अपनहि बालमुकुन्द जी आ किछु कलाकार लोकनि के लs रविन्द्र भवन केर गेट लग ठाढ़ भ गेलाह इ सोचि जे लोक के असुविधा नही होय।

२० नवम्बर १९८३ के पहिल बेर जमशेदपुर मे मैथिली नाटक "बड़का साहेब" केर मंचन भेलैक आ ओहि नाटक केर सफल मंचन सs जमशेदपुरक मैथिली भाषा भाषी अचम्भित रहि गेलाह। पहिल बेर कोनो मैथिली नाटक टिकट पर भेल छलैक। "बड़का साहेब " नाटकक अनुभव हुनका दोसर नाटक लिखय लेल आ ओकर मंचन करय लेल बाध्य कs देलकैन्ह।


हमर मात्रिक सहरसा अछि। हमर पितिऔत बहिन जे कि हमर मसिऔत सेहो छथि हुनक विवाह सहरसा मे छलैन्ह हम सब ओहि विवाह मे जमशेदपुर सs गेल रही। हमर मात्रिक मे सभ कियो एक सs एक गायक छथि। कोनो विवाह वा यज्ञ होइत छैक तs यज्ञ खतम भेलाक बाद पूरा परिवार दलान पर बैसि जाइत छथि आ गाना बजाना होइत रहैत छैक। ओहियो दिन हम सब बाहर बैसल रही आ गाना बजाना होइत छलैक ओहि बीच मे एकटा वृद्ध व्यक्ति अयलाह। मामा सब हमरा सब के बजा हुनका सs परिचय करेलैन्ह आ कहलथि इ छथि "लिलो काका"। हम नाम बड सुनने रहियैन्ह मुदा भेंट हुनका सs पहिल बेर भs रहल छल। पॉँच दस मिनट हुनका सs हम सब गप्प कयलहुँ ताहि के बाद ओ चलि गेलाह। ओतबहि काल मे दू टा गप्प हुनक विषय मे हम सब बुझलहुँ पहिल जे हुनका सांप स बड डर लागैत छलैन्ह दोसर हुनका कियो बुढ कहैन्ह से पसीन नहि छलैन्ह। हुनका गेलाक बाद तुंरत इ हमरा कहलाह हमर दोसर नाटकक नाम भेंट गेल "लिलो काका"।

"बड़का साहेब" नाटक मे महिला शाखा केर हस्तक्षेप आ नाटक केर पूर्वाभ्यास के बीच मे जे नाटक सब होइत छलैक ताहि सs तंग आबि सोचि लेने छलथि जे आब दोसर संस्था के लेल नाटक नहि करब। "मिथिला सांस्कृतिक" परिषद नाटक के पाछू पाई खर्च करय लेल सेहो तैयार नहि रहैक। इ सब सोचि अपन अभिन्न मित्र बालमुकुन्द जी , श्री बैद्यनाथ जी आ श्री पूर्णानंद जी के सँग लsआ हुनका सबहक सहयोग स एकटा नाट्य संस्था के स्थापना कयलैन्ह जाहि केर नाम राखल गेलैक "मिथिलाक्षर" (नाट्य एवं संगीत संस्था)। मिथिलाक्षर के bye laws मे देल गेलैक जे ओ व्यक्ति एहि संस्थाक सदस्य भs सकैत अछि जे कोनो तरहक कलाकार हो व कला से प्रेम राखैत हो मुदा सदस्यताक लेल कोनो शुल्क नहि छलैक।

हिनकर आदति छलैन्ह जे कैयेक टा नाटकक नाम लैत रहैत छलाह। मिथिलाक्षरक स्थापनाक बाद तय भेलैक जे शीघ्र एकटा नाटक कायल जाय। कलाकार सब केर एकटा बैठक बजायल गेलय आ ओहि मे तय भेलैक जे नाटक होयत आ दू दिन नाटक होयत। एकटा हिन्दी आ एकटा मैथिली मे। कलाकार सब के नाटक केर नाम से बता देल गेलय मैथिली मे "लिलो काका"। जखैन्ह हिन्दी केर नाटक के नाम कलाकार सब पुछलथिन तs कहि देलथिन"डम डम डिगा डिगा "। मैथिली नाटकक नाम तs हमरा बुझल छल हिन्दी वाला सुनि हमरो आश्चर्य भेल। ओ नाम हुनका तत्काल ध्यान मे अयलैन्ह आ कहि देने रहथि।

"लिलो काका" नाटक जाहि समय लिखैत छलाह ओहि बीच मे एक दिन हमरा ओकर संवाद सुनाबैत कहलाह लिलो काका के अंत मे हम मारि देबैन्ह से इ नाटक केर नाम हम सोचि रहल छि लिलो काका सs "मिस्टर नीलो काका " कs दिये आ ओहि दिन सँ लिलो काका सँ नाटकक नाम "मिस्टर नीलो काका "भs गेलय।

"मिस्टर नीलो काका" आ "डम डम डिगा डिगा" केर पूर्वाभ्यास (रिहल्सल) जाहि समय होइत छलैक ओहि समय हम सपरिवार सब दिन रिहल्सल मे जाई। अपने नीलो काका केर मुख्य भूमिका क रहल छलाह विक्की से ओहि मे बालकलाकार के भूमिका मे छलाह पुत्तु हिन्दी वाला नाटक के बालकलाकार छलाह आ बचलहुँ हम तs हमर काज पहिल छल जे सब दिन रति मे घर आबि ओहि दिनका पूर्वभ्यासक समीक्षा केनाई दोसर कहि देने छलाह जे मंच पर बेसी भीर नहीं लगेबाके अछि ताहि हेतु ओ हमरे सम्हारे के छल। हम सब, सब दिन साँझ ६बजे रिहल्सल लेल जाई आ राति ९ बजे सँ पहिने कहियो नहिं लौटी।लौटलाक बाद बालमुकुन्द चौधरी आ इ बैसैथ आ ओहि समय व्यवस्था केर काज आ विचार विमर्श सब होय। कहि सकैत छि जे जूता सिलाई से लs कsचंडी पाठ तक स्वयं हिनके सम्भारय के छलैन्ह। बालमुकुन्द जी तs संग रहबे करैत छलाह।

नाटक सs पहिनहि सबटा टिकट बिका गेल छलैक दुनु नाटकक सफल मंचन भेलैक आ मैथिली के संग संग हिन्दी प्रेमी सब के सेहो नाटक मे एकटा नवीनता भेटलैक। रातों राति जमशेदपुरक मंच आ जमशेदपुर केर नाट्य प्रेमी के बीच श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर केर नाम आबि गेलैन्ह।

"मिस्टर नीलो काका" आ "डम डम डिगा डिगा" केर सफल मंचनक किछु महिना बाद पटनाक मैथिली संस्था "अरिपन "एकटा अन्तराष्ट्रीय नाट्य समारोहक निमंत्रण पठेने रहैक जाहि के इ स्वीकार क लेलाह। कलाकार सब स पूछल गेलय तs सब तैयार छलाह। समय बहुत कम छलैक मुदा नाटक केर सफल मंचन आ कलाकार सब के उत्साह हिनका और उत्साहित क देलकैन्ह। रिहल्सल ठीक ठाक चलैत छलैक अचानक एक दिन एकटा कलाकार जिनकर नाम लक्ष्मीकांत छलैन्ह आ जे सनिचराक भूमिका मे छलाह अयलाह आ कहलाह हुनक गाम गेनाइ बड़ आवश्यक छैन्ह मुदा ओ चारि पॉँच दिन मे आबि जयताह। हिनकर मोन तs नहि मानलैंह मुदा फेर सोचलाह कैल नाटक छैक आ ओ आश्वासन देने छथि तs आबिये जयताह। रिहल्सल चलैत छलैक ओहि बीच एक दिन सांझ मे हम सब रिहल्सल लेल पहुँचलहुँ तs एक महिला कलाकार जे काकी के भूमिका मे छलिह हुनकर समाद अयलैन्ह जे ओ पटना नहि जा सकैत छथि हुनका कोनो आवश्यक काज स शहर स बाहर जाय परि रहल छैन्ह। इ सुनतहि इ चिंतित भ गेलाह ओहि दिन रहल्सल की हेतैक सब कियो विकल्प के विषय मे सोचय लागि गेलहुँ। कलाकार सब के कहि देल गेलय घर जेबाक लेल, आ इ जे काल्हि धरि किछु ने किछु हेबे विकल्प भा जेतैक कलाकार सब के गेलाक बाद हम चारू गोटे आ बालमुकुन्द जी बाचि गेलहुँ मुदा हमरा सब के किछु नहि फुरैत छल। इ दुनु गोटे हमरा सs सेहो विकल्प केर विषय मे पुछलाह मुदा हमहु निरुतर रही, की कहितियैन्ह। आब त इज्जत के सवाल भs गेल छलैक।

बालमुकुन्द जी आ इ किछु समय के लेल बाहर गेलाह आ भीतर आबि हमरा कहलाह, "आब इ अहींके करय पडत"। इ सुनतहि हमरा हँसी लागि गेल, इहो हँसय लगलाह। किछु समय बाद इ गंभीर भs कहलाह "आब हम मजाक नहि क रहल छी"। आब इ हमर सबहक इज्जत केर सवाल छैक आ हमरा सब के दोसर स्त्री पात्र एतेक कम समय मे भेन्टनाइ बहुत कठिन अछि दोसर हमरा अहाँ पर विश्वास अछि अहाँ इ भूमिका निक सs कs सकैत छि।" हम निरुत्तर भ गेलहुं कहितियैन्ह की, इज्जत के सवाल छलैक। तय भेलय जे काल्हि सs हम काकी के भूमिका मे रहब आ रिहल्सल करब।

दोसर दिन हम सपरिवार रिहल्सल के लेल पहुँचि गेलहुँ आन दिन तs हम तरह तरह के टिप्पणी दैत छलहुँ मुदा ओहि दिन एकटा कलाकार के रूप मे पहुँचल रही। कलाकार सब के कहि देल गेलैंह जे आय स काकी के भूमिका मे हम रहब। हमर सब संवाद हिनके संग छलैन्ह अर्थात काकी के सब टा संवाद काका के संग छलैन्ह जे हमरा लेल बड़ कठिन छल। एक तs एतेक नीक कलाकार आ ताहू मे पति संग अभिनय केनाई । खैर रिहल्सल शुरू भेलय जखैन्ह हमर संवादक समय आयल तs हम उठि कs स्टेज दिस गेलहुँ मुदा जहिना हमर संवादक समय आयल आ हम जहिना हिनका दिस देखलियैन्ह हमरा हँसी छुटि गेल हमरा सँग चौधरी जी सेहो हँसि देलाह। ओकर बाद हम कैयेक बेर प्रयास केलहुँ मुदा जहिना हिनका दिस नजरि जाय कि हमरा हँसि छुटि जाय आ संग मे चौधरी जी सेहो हँसि दैथि। अंत मे चौधरी जी के बाहर जाय लेल कहल गेलैंह मुदा कथि लेल हमर हँसि रुकत। ओहि दिन आन सब कलाकार अपन अपन पाठ कs घर जाय गेलाह । इ सब कलाकार के आश्वासन देलथिन जे घबरेवा के नहि छय काकी वाला भूमिका निक होयबे करत।

दोसर दिन हम सोचि क आयल रही जे हम हँसब नहि आ नीक सs रिहल्सल करब मुदा जहिना हमर बेर आबै हँसि हम नहि रोकि पाबी। इ अंतिम दिन रिहल्सल तक चललय मुदा घर मे कखनहु कखनहु इ हमरा किछु किछु बताबैत रहैत छलाह। हमरा अपनहि बड़ चिंता होय जे की होयत मुदा इनका हमरा पर पूर्ण भरोस छलैन्ह आ सब के कहैथ "चिंता जुनि करय जाय जाऊ इ स्टेज पर एके बेर कs लेतिह हमरा पूर्ण विश्वास अछि"। हम त हिनकर विश्वास देखि कs दंग रही मुदा अपना हमरा डर लागैत छल।

लक्ष्मीकांत नहि अयलाह आ समाद पठौलैन्ह जे ओ सीधे पटना पहुँचि जयताह। हम सब पटना के लेल बिदा भेलहुँ रास्ता मे इ हमर बड़का बेटा भास्कर के किछु किछु बुझाबैत जाइत छलाह पटना पहुँचलहुँ ओहिओ ठाम लक्ष्मीकांत नहि पहुँचलाह। हम सब जाहि दिन पहुँचल रही ताहि दिन साँझ मे हमर सबहक स्टेज रिहल्सल छल। भोर स इ भास्कर के सनिचारक पाठ याद करय लेल कहने रहथि संग संग अपनहु रहैत छलाह। होटल मे दू बेर रिहल्सल भेलैक आ साँझ मे स्टेज रिहल्सल। दोसर दिन श्री ठाकुर सपरिवार कलाकार सब सँग नाटक लेल तैयार रहथि। नाटक पटना आ पूरा मिथिला मे धूम मचा देलक।

मिस्टर नीलो काका के कैयेक टा पुरस्कार भेन्टलय, श्री ठाकुर के श्रेष्ठ कलाकार , श्रेष्ठ आलेख तथा श्रेष्ठ महिला कलाकार के लेल हमरा हमर छोट बालक के श्रेष्ठ बालकलाकार के लेल सेहो पुरष्कृत कायल गेलैन्ह।
(अगिला अंकमे)
गजेन्द्र ठाकुर
बालकथा
ब्राह्मण आ ठाकुरक कथा
देबीगंज एकटा नगर छल आ ओहि नगरमे एकटा ब्राह्मण रहैत छल। हुनका भगवान श्री सत्यनारायणक पूजाक निमंत्रण दूरसँ आएल रहए। ब्राह्मण असगर रहए आ जएबाक ओकरा दुरगर छल, से ओ अपन नगरक एकटा ठाकुरक बच्चाकेँ संग कएलक। ठाकुरक बच्चा बाजल, जे पंडीजी हम तँ अहाँक संग जाएब, मुदा एकटा गप अछि। जतए कतहु हमरा कोनो गप गलत बुझाएत,ओतए अहाँकेँ हमरा बुझा देमए पड़त, नहि तँ हम अहाँक संग नहि जाएब। पंडितजी कहलन्हि जे चलू बुझा देब।
ब्राह्मण आ ठाकुर चलल। चलैत-चलैत ओ दुनू गोटे एकटा धारक लग पहुँचल। ओकरा सभकेँ धार टपबाक रहए से ओतए ठाढ़ भए ओ सभ कपड़ा खोलि तैयार भेल तँ ठाकुरक बेटा धारमे देखलक जे एकटा लहास धारमे मरल-पड़ल छै आ भाँसि रहल छै। ओ स्त्री छलि, ओ भँसना बालु-रेतक छल आ ओ ओजनसँ भाँसि रहल छलि। ठाकुरक बेटा ई देखि कए बाजल -– पंडित ओ देख, ओ लहास भाँसि रहल अछि, ओ तीन जान बहुत आश्चर्य अछि। पंडितजी अहाँ हमरा बुझा दिअ नहि तँ हम घुरि कए चलि जाएब। पंडितजी खिस्सा कहए लगलाह।
देख बच्चा। अपन गाम लग के.नगरक राजा छल । ओहि राजाक एकटा बेटा रहए। ओकर बियाह ओही स्थानपर भेल, जतए हम सभ चलि रहल छी।
बादमे अपन नगरक राजा मरि गेल । ओकर बेटा राजकेँ सम्हारि नहि सकल आ राजकेँ बन्हक लगा देलक। ओकर सासुरमे पता लगलैक, जे राजा राजपाट बन्हक लगा देने अछि आ आब द्विरागमन करेबा लेल ओकरा लग पाइ नहि छै, तँ बड्ड मोश्किल भए गेलैक।
एक दिन ओकर सासुरमे भगवानक पूजा भए रहल छलैक। ओहि दिन ई गरीब राजा साँझमे पहुँचल तँ पूजा भए रहल छल। ई ओतए गेल तँ कियो ओकर खोज-पुछारी नहि कएलक। ओतहि ओ कातमे बैसि गेल। पूजा समाप्त भेल आ सभ कियो प्रसाद खा कए अपन-अपन घर गेल आ घरबारी सभ सेहो खा-पीबि कए सूति गेल। एहि बेचारोकेँ क्यो नहि पुछलक आ ओ ओही स्थानपर सूति गेल। रातिक जखन बारह बाजल तँ ओकर स्त्री उठि गेल आ अपन घोड़सनीयाँ लग गेल। ओतए सुतबाक कोनो ब्यबस्था नहि छल। एकटा खाट रहए जाहिमे ती टा टाँग रहए। एकटा टाँग कतएसँ लगाओत। लड़की आएल आ ओहि लड़कासँ पुछलक जे तूँ किछु खेने छह। लड़का कहलक नहि। बेचारा भूखक मारल बचल भोजन खएलक। ओहू समय लड़की अपन पतिकेँ नहि चिन्हलक। ओकरा कहलक जे चल आ जाहि खाटक एकटा टाँग टूटल छल ओही खाटमे एक दिस लगा देलक आ दुनू घोड़सनियाँ आ ओ लड़की सूति गेल। ओकर सुतलाक बाद लड़काकेँ कियो स्वप्न दैत अछि। ई राजाक बेटा, तूँ अपन घर जो, ओतए तोहर पिताक कोचक नीचाँ चरि घाड़ा द्रब छहु। ओहिमेसँ एक घाड़ा बेचि कए अपन राज छोड़ा लिअ। ई सपना सुनि राजाक बेटा स्थिरेसँ खाट राखि, अपन घर आपस आबि गेलि। ओ अपन राज बन्हकीसँ छोड़ा लेलक। पहिने जेकाँ भए गेल। जखन ओकर सासुरमे ई पता चलल, जे राजा पहिने सँ बेशी नीक भए गेल अछि तखन ओ सभ राजाकेँ खबरि कएलक जे अहाँ अपन द्विरागमन करबा लिअ। राजा दिन लए कए गेल आ ओही लड़कीकेँ गौना करा कए लए अनलक। राजा ओकरा एकटा खबासनीक संगे खेनाइक सभ समान दए एकटा कोठलीमे बन्न कए देलक। ओ खेनाइ खाइत छल आ ओही कोठलीमे रहैत छल, मुदा राजा ओतए नहि जाइत छल। जखन किछु दिन बीति गेल तँ एक दिन रानी खबासनीकेँ पठओलक,राजाकेँ बजेबाक लेल। राजा आएल तँ रानी कहलक जे अहाँ हमरा गौना करा कए अनलहुँ आ एहि कोठलीमे बन्न कए देने छी। अहाँ अबितो नहि छी। राजा कहलक जे ओ घोड़सनियाँ नहि छी, जे टूटल खाटक एक पएर वैह रहए। आ बाँचल भोजन हम खएने रही। आ फेर वैह ऐंठ खाए लेल हमरा कहलहुँ।
ई सुनि लड़की बहुत लज्जित भऽ गेलीह। भोर भेल आ ओ खबासनीसँ कहलक जे तूँ रह, हमर व्रतक दिन अछि आ हम धारसँ नहा कए अबैत छी। ओ सभटा कपड़ा खोलि धारमे फाँगि गेल। भसना भाठी जे भसैत अछि, जान ई ठाकुर, वैह लड़की अछि। चलू हमरा सभ आगाँ।
दोसर
ब्राह्मण आ ठाकुर ओइ धारक कातसँ बिदा भेल। धारकेँ पार करैत आ चलैत-चलैत ओ सभ एकटा पैघ गाममे पहुँचलाह। ओहि गाममे बड्ड भीड़ लागल रहए। ठाकुरक लड़का जा कए देखए लागल तँ ओ देखलक जे एकटा बकरीक बच्चा बान्हि कए राखल छल आ जे कियो अबैत रहए से ओहि बकड़ीक बच्चाकेँ दू लात मारैत छल। ठाकुरक बच्चा सोचलक जे ओ बकड़ीक बच्चा कोनो एक-दू गोटेक फसिल खा लेने होएत, मुदा तखन सभ मिलि कए किएक ओकरा मारि रहल अछि। ओ ब्राह्मणसँ पुछलक जे ई गप बुझा कए कह, तखन हम सभ आगू बढ़ब। ब्राह्मण पहिने ई गछने छल,जे जखन ओ कहत ओकरा बुझा कए कहत। ओही स्थानपर बैसि कए ब्राह्मण खिस्सा कहए लागल।
सुन ठाकुर हम आब खिस्सा कहैत छी। लोदीपुर एकटा नगर छल। ओहि नगरक राजा प्रताप सिंह रहए। हुनकर एकटा लड़का छल आ ओही गाममे एकटा ठाकुरक लड़का सेहो रहए। दुनूमे खूब दोसतियारी चलैत रहए। किछु दिनुका बाद दुनू दोस्त बिचार कएलक जे दुनू दोस्त घोड़ा कसा कए जंगल शिकार लेल जाए। तकर बाद दुनू दोस्त घोड़ापर सवार भए बिदा भेल आ घनघोर जंगल पहुँचि गेल। शिकार खेलाइत साँझ भए गेल आ दुनू दोस्त विचार कएलक जे आब हम सभ घर नहि जा सकब, से अही बोनमे राति काटि भोरमे घर चलि जाइ। ओतए एकटा बड्ड पैघ गाछ रहए, तकरे नीचाँमे ओ सभ रुकि गेल आ घोड़ाकेँ ओतए बान्हि दुनू दोस्त सूति गेल। सुतलाक बाद राति बारह बजे एक जोड़ा बीध-बीधीन ओहि गाछक ऊपर बैसि गेल। बीधीन मूड़ी उठा कए जे नीचाँ देखलक तँ ओहि दुनू दोस्तपर ओकर नजरि पड़लैक। बीधीन कहलक जे देखू कतेक सुन्दर अछि राजाक बेटा। बीध कहलक जतेक सुन्दर ई राजाक बेटा अछि, ततबे सुन्दर लालपरी कन्या अछि,दुनूक जोड़ी बड्ड सुन्दर होएत। बीधीन कहलक जे अहाँ तँ स्वयं विधाता छी। दुनूक जोड़ी लगेनाइ अहाँक काज छी। बिधाता ओहि दुनूकेँ ओतएसँ सुतलेमे उठा कए ओहि लालपरी कन्या लग पहुँचा देलक। राजा आ कन्या एक पलंगपर आ ठाकुर दोसर पलंगपर। भोर भेलापर निन्द टुटल, तँ लालपरी बगलमे राजाक लड़काकेँ देखलक, तँ खूब प्रसन्न भेल। ओकरा पलंगपर एकटा सिन्दूरक पुड़िआ राखल छल। परी कहलक जे ऊपरबला हमर आ अहाँक जोड़ी मिला देने अछि। आब देरी कोनो बातक नहि। राजाक लड़का आ लालपरी कन्या दुनूक ओतए बियाह भए गेल। किछु दिन धरि ओ ओतए रहल आ तकर बाद राजाक बेटा अपन ससुरारिसँ बिदा भेल । किछुए दूर आगाँ गेलाक बाद कन्याकेँ एकटा गप मोन पड़लैक। ओ अपन पतिसँ कहलक- हमर पिताकेँ चोला माने जीब बदल क मंत्र अबैत छन्हि। अहाँ हुनकासँ जा कए सीखि लिअ। ओतए दुनू डोली रोकि कए दुनू दोस्त ओकर पिताजी लग गेल आ जा कए कहलक जे हमरा सभकेँ चोला बदलबाक मंत्र सिखा दिअ। ओहि मंत्रकेँ दुनू दोस्त सीखि लेलक मुदा मंत्र सिखलाक बाद ठाकुरक बेटाक मोनमे खोट आबि गेलैक। तकर बाद एक डोलीपर राजाक बेटा आ परी आ दोसर डोलीपर ठाकुरक बेटा बिदा भेलाह। लालपरी पतिसँ पुछलक जे अहाँ चोला बदलबाक मंत्र सीखि लेलहुँ। तँ राजाक बेटा कहलक-हँ। तँ परी कहलक जे एकर परीक्षा करू। राजाक बेटा कहलक जे आगाँ चलू। चलैत-चलैत ओ सभ कनी आगाँ बढ़लाह। आगाँ एकटा सुग्गा मरल पड़ल रहए। ई सभ गप ठाकुर सुनैत जा रहल छल। जहिना राजाक बेटा सुगाक भीतर पैसल, ओही समय ठाकुर मंत्र पढ़ि राजाक पिंजरामे पैसि गेल। ई सभ परी देखलक। एक डोलीपर मात्र ठाकुरक लहाश पड़ल छै आ एक पर परी आ ओ ठाकुर राजा बनि जा रहल अछि आ राजाक जीव सुग्गा बनि उड़ि गेल। ठाकुरक लहाश फेकि ओ ठाकुर राजा बनि गेल आ ओकर पिंजड़ामे जा कए ओहि लालपरीकेँ दखल कए लेलक। लालपरी कन्या ई बुझि गेल, जे ई हमर पति नहि अछि। ठाकुर राजा अपन महलमे जा कए रहए लागल आ एहि विषयमे ककरो बुझल नहि रहैक। ठाकुर राजा कन्यासँ कहलक जे आब हम सभ सुखी निन्दक राति बिताएब। परी कहलक जे एखन नहि। एखन हमर एकटा कौल बाँकी अछि। ओ पूरा कए लेब तकर बाद। ठाकुर राजा कहलक जे की कौल अछि अहाँ पूर्ण कए लिअ। परी कहलक जे हमरा एकटा मन्दिर बनबा दिअ जबुनाक तटपर। हम बारह बरख सदाव्रत बाँटब। तकर बाद राजा सोचलक जे आब हमरा छोड़ि कए ककरो ई नहि होएत ताहि लेल हम एकटा उपाय करैत छी, कि एहि बोनमे जतेक सुगा अछि ओहि सभकेँ मारि दैत छी। ठाकुर राजा ई सोचि शिकारीकेँ मँगबेलक आ ओकरा कहलक जे एहि जंगलमे जतेक सुगा अछि, ओकरा पकड़ि कए आन हम तोरा एक सुगाक एक टाका देबहु। शिकारी सुग्गा बझबए लागल आ राजाकेँ देमए लागल। राजा सभ सुगाकेँ मारि कए फेंकि दैत छल। एक दिन शिकारी सुगा बझा कए ओही जबुनाक किनार धए आबि रहल छल, तँ परीक नजरि ओहि शिकारीपर पड़ल। ओकरा माथमे ओ गप मोन पड़लैक,तँ ओ शिकारीकेँ बजेलक आ पुछलक जे अहाँ ई सुग्गा ककरा दैत छी। ओ कहलक जे ई सभ सुग्गा हम अही राजाकेँ दैत छी। परी पुछलक जे राजा तखन एकर की करैत अछि। शिकारी कहलक जे ओ एकरा सभकेँ मारि कए फेकि दैत अछि। परीकेँ ई सुनि कए माथ दुखाए लगलैक। ओ शिकारीकेँ पुछलक जे राजा एक सुगाक कतेक कए पाइ दैत अछि। शिकारी कहलक जे एक सुगाक ओ पाँच टाका दैत अछि। परी कहलक जे आइसँ सभ सुगा हमरा देल कर, हम एक सुगाक दस टाका देल करब। ओहि दिनसँ सभ शिकारी परीकेँ सभ सुग्गा देमए लगलाह। परी सभ सुगासँ पूछथि जे अहाँ चोला बदलबाक मंत्र जनैत छी, एहि तरहेँ ओ बहुत रास सुगाकेँ पुछैत गेलीह आ छोड़ैत गेलीह। ओहिमे सँ एकटा सुग्गा बाजल- हँ, हम चोला बदलबाक मंत्र जनैत छी। ओहि सुगाकेँ परी अपना पिजरामे बन्न कए लेलन्हि आ एकटा छोट बकड़ीक बच्चा कीनि कए राखि लेलन्हि। कनेक दिनका बाद बारह बरखक समय पूर्ण भऽ गेल । ठाकुर राजा अपन डोली कहार पठेलक आ ओतएसँ परीकेँ अपन महलमे आपस अनलक। परी जतए रहैत छल, ओतए ओ बकरीक बच्चा राखि लेलक आ सुतबाक काल ओहि बकड़ीक बच्चाकेँ मारि देलक। खेनाइ धरि नहि खएलक आ कानए लागलि। राजाकेँ एहि गपक पता लागल जे रानी खेनाइ धरि नहि खएने छथि आ कानि रहल छथि। राजा आएल आ पुछलक जे अहाँ किएक कानि रहल छी। खेनाइ किएक नहि खएने छी। परी ठाकुर राजासँ कहलक- हम कोनाकेँ खाएब, ई जे बकरीक बच्चा मरि गेल, तँ हम आब जीवित नहि रहब। जाधरि ई बकरीक बच्चा नहि खाइत छल, ताधरि हम नहि खाइत छलहुँ। ई मरि गेल से आब हमहूँ मरि जाएब। ओम्हर सुगा देखि रहल छल, एम्हर ठाकुर राजा विचलित भऽ रहल छल। राजा सोचि कए कहलक जे अहाँ चुप रहू, बकरीक बच्चा जीवित भए जाएत। एतेक कहलापर परी चुप भए गेलि आ जहिना राजा अपन चोला बदलि ओहि बकड़ीमे पैसल तखने सुगा अपना राजाक पिंजरामे चलि गेल। सुगा जेहेने-तेहने पड़ल रहि गेल आ ठाकुर राजा ओही बकड़ीक पिंजरामे चलि गेल।
सुनलहुँ, बकड़ीक बच्चा वएह ठाकुर राजा अछि आ जे क्यो अबैत अछि ओकारा दू लात मारैत अछि।
तेसर
ब्राह्मण आ ठाकुरक लड़का ओतएसँ चलल। चलैत-चलैत किछु दूर गेल तँ एकटा नगरमे पहुँचल। ओहि नगरक बीच चौबटियापर बड्ड भीड़ रहए। लोकक ई भीड़ देखि कए ठाकुरक लड़का दौगि कए गेल आ देखलक जे ओहि चौबटियापर एकटा अस्सी बरखक बुढ़ियाकेँ फाँसी देल जा रहल अछि। ठाकुरक लड़का सोचलक जे ओ बुढ़िया ककरो घरमे जा कए भूखमे कोनो अनाज वा भात रोटी खएने होएत, से ओकरा फाँसीक सजा भऽ रहल छै। ठाकुरक लड़का पुछलक- पंडितजी एहि गपकेँ हमरा कहि कए बुझा दिअ। पंडितजी कहलक जे चलू रस्तामे अहाँकेँ बुझा देब। बच्चा कहलक जे नहि, एतहिये हमरा कहि कए बुझा दिअ, नहि तँ अहाँक संग हम नहि जाएब। ब्राह्मण कहलक ठीक अछि। सुनू ठाकुरक बच्चा, बैसू, हम बुझबैत छी।

-बिराटनगरक बिराट राजा छलए। हुनका एकटा मन्त्री छलन्हि। राजाक लड़का आ मन्त्रीक लड़काकमे दोस्तियारी चलि रहल छल। एक दिन दुनू दोस्त विचार कएलक आ जंगलमे शिकार खेलाइ लेल तैयार भेल आ घोड़ा कसेलक। बोनमे शिकार खेलाइत-खेलाइत साँझ भए गेल आ ओही बोनमे एकटा बड्ड पैघ गाछ छल। दुनू गोटे ओहि गाछपर चढ़ि कए सूति गेल। मंत्रीक बेटा सोचलक जे ई राजाक बेटा अछि। कहियो गाछपर नहि सूतल अछि, से ओ कतहु खसि नहि पड़ए,से सोचि ओकरा ओ गमछासँ बान्हि देलक आ ओ दोसर ठाढ़िपर चलि गेल। बारह राति बाजल तँ बोनमे एकटा बड़ पैघ साँप निकलल आ ओहि गाछक लग आबि अपन मणी निकालि कऽ राखि देलक आ ताहिसँ इजोत होमए लागल। सर्प चरए लागल। ओहि इजोतकेँ मन्त्रीक बेटा देखलक आ तकर बाद ओ आस्ते सँ गाछक जड़िमे अपन तलवार ठाढ़ कए देलक आ फेर ऊपर चढ़ि गेल। जाहि ठाम मणी जरि रहल छल ओकर सोझाँ ठाढ़िपर जा कए गमछा दोबर कए ओहि मणीपर खसा देलक। मणी झँपा गेल आ अन्हार भऽ गेल। साँप व्याकुल भए गेल आ ओ गाछक जड़िमे अपन पुच्छी पटकि-पटकि कए टुकड़ा-टुकड़ा भए गेल। भोर भेल तँ ओ अपन दोस्त राजाक बेटाकेँ जगेलक आ कहलक जे दोस अहाँ तँ सूति गेल रही। नीचाँ देखू की भेल अछि। नीचाँमे गमछा उघारि मणी लए ओ दुनू दोस बिदा भेल। ओहि बोनमे एकटा पैघ पोखरि रहए। दुनू दोस्त विचारलक जे अही पोखरिमे एकरा धोबि कए साफ कए ली। राजाक बेटा नीचाँ हाथ राखलक आ मन्त्रीक बेटा ऊपरमे हाथ राखि कए ओकरा साफ करए लागल। ओ मणी तखने दुनू दोसकेँ खेंचि लेलक आ ओतए लऽ गेल जतए नागवत्ती कन्या रहए। नागवत्ती कन्या ओकरा सभकेँ देखलक तँ कहलक जे अहाँ सभ हमर पिताकेँ मारि देलहुँ तँ हम कहिया धरि कुमारि रहब। कन्या कहलक जे अहाँ हमरासँ बियाह कए लिअ। मन्त्रीक बेटा राजाक बेटाक बियाह ओहि कन्यासँ करेबाक निर्णय कएलक तँ राजाक बेटा कहलक जे यावत ढोल बाजा पालकी नहि आनब, बियाह कोना होएत। मन्त्री-वजीरक बेटा ढोल-बाजा-पालकी अनबा लेल बिदा भेल। दोसर दिन १२ बजे दिनमे नागवती कन्याँ पोखरिमे नहा रहल छलीह, तखने ठगपुर नगरक राजाक लड़का शिकार खेलेबा लेल जंगलमे आएल रहए। गरमीक मास छल, ओकरा बड़ जोरसँ पियास लगलैक तँ ओ ओही पोखरिमे गेल। जखने ओ ओहि कन्याकेँ देखलक तँ मूर्च्छा खा कए खसि पड़ल आ कन्या पोखरिक भीतर चलि गेलि। जखन ओकरा होश अएलैक तँ ओहि कन्याकेँ ओ नहि देखलक। ओहि समयसँ राजाक बेटा अपन घर जा कए पागल भए गेल। ई समाचार ठगपुरक राजाकेँ पता चललैक तँ ओ बड्ड उपाय कएलक मुदा ओकर बिमारी नहि ठीक भेलैक।
राजाकेँ बड्ड चिन्ता भऽ गेलैक। राजा अपन राज्यमे ढोलहो पिटबा देलक जे, जे क्यो हमर बेटाकेँ ठीक कए देत ओकरा राज्यक एक हीस दऽ देल जाएत आ डाला भरि सोनाक संग अपन बेटीक संग ओकर बियाह सेहो ओ करा देत। ई सुनि मारते रास लोक आएल मुदा ओ ठीक नहि भेलि। ओही गाममे एकटा बुढ़िया रहैत छलि, महागरीब। ओ करीब-करीब अस्सी बरिखक रहए। ओहि बुढ़ियाक एकटा बताह बेटा रहए। ओ बुढ़िया ओहि राजाक बेटाकेँ ठीक करबा लेल तैयार भेलि। राजा ओकरा आदेश देलक जे जो, आ हमर बेटाकेँ ठीक कर गऽ। तखन तोरे इनाम सेहो भेटतौक आ अपन बेटीक संग हम तोहर बेटाक बियाह सेहो करबा देबौक। बुढ़िया गेल आ राजाक लड़काकेँ एकटा कोठामे बन्न कए देलक आ अपने सेहो ओहि कोठामे चलि गेल। बुढ़िया राजाक बेटासँ पुछलक, मुदा ओ कोनो उत्तर नहि देलक। तखन बुढ़िया ओकर दुनू गालमे दू चमेटा मारलक आ तकर बाद ओ बाजल, जे हम जंगलमे शिकार खेलाइ लेल गेल छलहुँ। ओतए एकटा पोखरिमे पानि पीबा लेल गेलहुँ, तँ एकटा बड्ड सुन्दरि स्त्रीकेँ देखलहुँ आ हम बेहोश भए गेलहुँ। होश अएलापर देखलहुँ जे ओ लड़की बिला गेलि। तखनेसँ हमर मोन बताह भऽ गेल, जे कहिया ओ लड़की हमरा भेटि जाए। ओ बुढ़िया कहलक जे ओहि लड़कीकेँ हम आनब। एखनसँ तूँ ठीक रह, ओकरा आनब हमर काज छी। बुढ़ियाक कहलापर ओ चुप भऽ गेल आ बुढ़िया राजाकेँ कहलक जे हमर संग पाँच टा सखी-सहेली चाही आ ओहि बिमारीकेँ हम ठीक करब। राजा पाँच टा सखी देलक आ बुढ़िया ओकरा सभकेँ लऽ कए बिदा भेल। ओ बोन दिस गेल, जतए ओ पोखरि रहए आ ओकर चारू दिसन ओ सभ नुका गेल। जखन दिनक बारह बाजल तँ ओ लड़की पोखरिसँ निकलल आ ओहि पोखरिक महारपर बैसि कए नहाय लागल। बुढ़िया जंगलसँ बहार भेल आ कन्याक बगलमे नहाए लागल। बुढ़ियाकेँ देखि कए कन्या सोचलक जे ओ अस्सी बरखक बुढ़िया अछि, ओकर सेवा केनाइ जरूरी अछि। ओ ओहि बुढ़िया लग जा कए ओकर सौँसे देहकेँ साफ करए लागल। कहलक माँ आब फेर नहा लिअ। बुढ़िया कहलक लाऊ बेटी, अहूँक सौँसे देह साफ कऽ दैत छी। बुढ़िया कन्याक देह साफ करए लागल। साफ करैत बुढ़िया चुटकी बजेलक तँ ओकर सखी सभ चारू दिसनसँ ओकरा पकड़ि लेलक आ आपस ठगपुर गाम दिस बिदा भेल, जतए राजाक घर छल। ठग राजा इनाम देबा लेल तैयार भेल आ अपन लड़कीक बियाह ओकर बताह लड़का संग करएबा लेल तैयार भेल। राजा अपना गाममे जतेक बाजा आ पालकी रहए, अपना ओहिठाम अनबा लेल कहलक। ओहि गाम आ नगरक सभटा बाजा आ पालकी, सभटा राजा लग चल गेल।
आब मन्त्रीक बेटा गाम-गाममे पुछैत अछि तँ सभ कहलक जे सभटा बाजा आ पालकी राजा ओहिठाम चलि गेल। ओतएसँ अएलाक बादे बाजा भेटत। ई सुनि मन्त्रीक बेटा कहलक जे ठीक अछि हम कनेक दिन रुकि जाइत छी। ओतए एम्हर बुढ़ियाक बताह बेटाक बियाहक दिन पड़ि गेलैक। मन्त्रीक बेटा ओहि गामक बच्चासँ पुछलक जे ई बरियाती कतए जाएत। बच्चा बाजल जे बरियाती कतहु नहि जाएत। हमर गामक एकटा बुढ़िया एहि बोनक पोखरिसँ एकटा कन्याकेँ पकड़ि कऽ अनने अछि। मन्त्रीक बेटाकेँ चिन्ता पैसि गेलैक जे ई वएह लड़की तँ नहि अछि। मन्त्रीक बेटा अपन सभटा पोशाक खोलिकऽ राखि देलक आ एकटा भिखमंगाक रूप धऽ कए राजाक आँगनमे गेल आ ओहि लड़कीकेँ देखलक आ इशारा कऽ देलक जे साँझ धरि हम आएब। ओहि ठामसँ बजीरक बेटा निकलि कऽ बाहर आएल आ ओहि बुढ़िया आ ओकर बताह बेटाक पता लगओलक। तँ देखलक जे ओ बताह बच्चा सभक संग गाए-महीस चरेबाक लेल बोन गेल अछि। मन्त्रीक बेटा सेहो बोन चलि गेल आ जतए पागल रहए, ओकरे संग खेलाए लागल। बच्चा सभकेँ जखन भूख लगलैक तँ मन्त्री-पुत्र आ ओहि बताह बच्चाकेँ छोड़ि कए चलि गेल। मन्त्रीक बेटा ओहि बताह बच्चाकेँ बोनमे भीतर लए जाए छोड़ि देलक आ ओकर सभटा कपड़ा लए लेलक। कनेक झलफल भेल महिसबार सभ गाए-महीस लए घुरए लागल, तँ मन्त्रीक बेटा सेहो बताह जेकाँ करैत घुरि आएल आ घरमे जा कए ओही लड़कीक चारू दिस घुरिआए लागल, जकरा संग ओकर बियाह होमए बला छलैक। ओहिना ओ ओहि घरमे सेहो चलि गेल जतए ओ नागवती कन्या रहए आ ओतए जा कए कहलक कि अहाँ एहि कपड़ाकेँ बदलि लिअ आ पोटरी बान्हि कए बगलमे दबा लिअ आ राजाक लड़कीबला कपड़ा पहिरि लिअ। आगाँ निकलू आ पाछाँ हम जाइत छी। कन्या आगाँ निकललि, पाछाँ मन्त्रीक बेटा बताह जेकाँ करैत, दुनू बाहर निकलि गेल। दुनू ओतएसँ बिदा भेल आ जतए पोखरि छल ओतए पहुँचि गेल।

सुनलहुँ ठाकुरक बेटा। अही गपपर अस्सी बरखक बुढ़ियाकेँ फाँसी देल जा रहल अछि, राजा कहलक जे ई बुढ़िया हमर राज्यक हिस्सा लेबाक लेल ई षडयन्त्र रचने रहए आ तेँ ओकरा फाँसी दए रहल अछि।
चारिम
आब राजाका बेटा आ कन्या संग किछु समए बिता कए बजीरक बेटा फेर घुरि आएल पालकी आ बाजा लेल। ओहि दिन पालकी आ बाजा दुनू भेटि गेल आ बजीर ओकरा लए चलि आएल। बहुत नीक जेकाँ दुनुक बियाह भेल आ बरियातीक संग अपन घरक लेल बिदा भेल।

चलैत-चलैत किछु दूर गेल तँ साँझ भए गेल। एकटा बड्ड पैघ गाछक लग ओ ठाढ़ भए गेल। सभकेँ खेनाइ खुआ कए सभ कियो सूति गेल। रस्ताक थकान रहए सभ कियो निन्नमे सूति गेल। रातिक बारह बाजल तँ बिध-बिधाता आएल आ ओहि गाछपर बैसि गेल। बिध बाजल- बड्ड नीक जोड़ी लागल अछि तँ बिधाता कहलक जे जोड़ी तँ ठीके बड्ड नीक अछि मुदा राजाक बेटा मरि जाएत। बीध पुछलक –किएक। तँ बिधाता बाजल हम तँ कहब मुदा एहि बरियातीमे सँ कियो सुनैत होएत, तँ ई बाँचि जाएत। ओहि समय नागवत्ती कन्या आ बजीर सुनि रहल छल। सभटा मिला कए पचीस टा संकट पड़त आ सभटा संकट ओ बतेलक। भोर भेल तँ नागवत्ती कन्या आ बजीर कहलक जे ई बरियाती सभकेँ एतएसँ आपस पठा दिअ आ हम तीनू गोटे एतएसँ चली। ओतएसँ तीनू गोटे बिदा भेल आ चलैत चलैत किछु दूर गेल तँ रस्ताक कातमे दू टा गाछ छल। मन्त्रीक बेटा आ कन्या कहलक जे हम तीनू गोटे हाथ पकड़ि कए चली। राजाक बेटाकेँ बीचमे लए दुनू गोटे दुनू दिससँ हाथ पकड़लक आ लग गेल आ कहलक जे हम तीनू गोटे एतएसँ दौगि कए चली। ई कहि कए ओ सभ दौगनाइ शुरू कएलक आ जहिना दौगि कए आगाँ गेल तँ दुनू दिसका गाछ खसि पड़ल। पाछाँ घुरि कए ओ सभ देखलक आ बाजल जे हम सभ दौगि कए जे आगाँ नहि अबितहुँ तँ ई हमरा सभक ऊपर खसि पड़ितए। ई कहि ओ सभ आगाँ बिदा भेल। ओतएसँ चलैत-चलैत किछु दूर आगाँ ओ सभ गेल तँ रस्तामे एकटा धार भेटि गेल तँ ओतहु ओहिना राजाक बेटाकेँ बीचमे लए दुनू दिससँ ओकर हाथ पकड़ि लेलक आ धारमे चलए लागल। बहुत तेजीसँ ओ सभ आगाँ बढ़ल आ जहिना ऊपर गेल तँ बीच पानिसँ निकलि गेल आ घुरि कए देखलक तँ बोचपर नजरि पड़लैक। ओ सभ बाजल जे हम सभ तेजीसँ नहि निकलितहुँ तँ बोच हमरा सभकेँ पकड़ि लैतए, आ तकर बाद ओ सभ ओतएसँ बिदा भेल। अपन कलम-गाछी होइत घर पहुँचैत गेल। मारते रास लोक ओतए जमा भए गेल आ राजाक बेटाकेँ देखए लागल आ कहए लागल जे बड्ड नीक जोड़ी मिलल अछि। ओ सभ महलक भीतर जेबाक पहिने अगुलका छत तोड़बा देलक। राजाक बेटाकेँ बजीरक बेटा आ कन्यापर ओहिहाम शक भेलैक। राजा आ कन्या महल गेल। आब राजा पुछलक जे हमर दोस बजीरकेँ बजाऊ। पूछए लागल जे दोस अहाँ दुनू गोटे रस्तासँ घर धरि एतेक रास बात केलहुँ, से हमरा बुझल नहि भेल, से अहाँ ओ सभ गप हमरा कहू। बजीरक बेटा बाजल जे दोस ई सभ कोनो गप नहि अछि। ई सभ हम सभ हँसी कए रहल छलहुँ, जे देखी जे हमर सभ राजा दौगि सकैत छथि आकि नहि , आ चलि सकए छथि आकि नहि। ताहि द्वारे हम सभ हँसी कए रहल छलहुँ। एहि गपपर राजाकेँ बिस्बास नहि भेलैक आ ओ कहलक जे जे यदि ई गप अहाँ नहि कहब तँ अहाँकेँ फाँसीपर लटकबा देब। एहि गपकेँ कन्या सेहो सुनि रहल छलीह। हारि कए बजीरक बेटा कहलक जे जतएसँ बरियाती आपस भेल छल। बिधाता जे कहने छल ओ सभ गप कहलक आ रस्तामे जे बितल सेहो कहलक। ई सभ कहिते बजीरक बेटाक अदहा अंग पाथरक भए गेलैक। आ जखन सभ गप पूर्ण भेल तँ बजीरक बेटा ओही कोचक बगलमे पहाड़ बनि गेल। किछु दिनुका बाद राजाकेँ एकटा बेटा रातिमे जन्म लेलक। कहल गपकेँ ओही समय ओ पूर्ण करए लागल आ ओही पहाड़पर ओहि बालककेँ राखि पघरियासँ दू टुकड़ी कए देलक। ओकर टुकड़ा होइतहि बजीरक बेटा फेरसँ तैयार भऽ गेल आ कहलक जे हमरा आब ओ लड़का दिअ। बजीरक बेटा ओहि बालककेँ लए अपन सासुर गेल। ओ बारह बजे रातिमे पहुँचल। कोनो तरहेँ अपन स्त्रीक लग पहुँचल आ सभ गप कहि बालककेँ आमक गाछक ठाढ़िपर लटका देलक। रातिमे अपन स्त्रीकेँ कलममे अनलक आ बालककेँ ठाढ़िपरसँ उतारि कए नीचाँ कएलक आ कहलक जे ई चक्कू लिअ आ अपन हाथक कँगुरिआ आँगुर काटि कए एहि बच्चापर छीटि दिअ। जखने ओ छीटलक तखने ओ बच्चा कानए लागल आ तखने ओ ओकरा लए जा कए राजाकेँ देलक। बजीरक बेटा कहलक जे आब आइ दिनसँ अहाँक संग हमर दोसतियारी समाप्त भेल। ई कहि बजीरक बेटा अपन घर घुरए लागल, तँ ओही समय राजाकेँ ज्ञान प्राप्त भेल आ जा कए अपन दोस्तकेँ गरा लागि ओ क्षमा मँगलक आ कहलक जे आइसँ एहन गलती हमरासँ कहियो नहि होएत आ ई दोस्ती बनल रहत

प्रभास कुमार चौधरी

मन्दाकिनी
सुतली रातिमे गर्द मचल छलै।
बरबज्जी ट्रेनक पुक्की गामक लोक सुनने छलै, तकर कनियेँ कालक बाद रातुक निस्तब्धताकेँ चीरि पिहकारी आ ठहक्काक स्वर सभ चारू कात पसरऽ लगलै। ओही गर्दमगोल पर मनोजक निन्न टूटि गेलै।
बीच आँगनमे चैकी पर चितंग पड़ल छल। गुमार बेसी छलै। आँगनमे राखल चैकिये पर माइ बिछौन करबा देने छलै। गुमारक द्वारे सभक बिछौन आँगनेमे लागल छलै। आँगनक मड़बाक उतरबारी कात ओकर चैकी छलै जकर पौथान लग राखल चैकी पर ओकर माइक संग दीयर आ सुधा सूतल छलै-ओकरासँ छोट बहिनक बेटा-बेटी। मड़बाक पुबारी कात राखल चैकी पर प्रदीप सूतल छलै। पाँच भाइमे ओएह टा गाम रहै छै आ गामेसँ कॉलेज जाइत छै। छोटकी बहिन मुन्नीक बिछौन पुबारी घरक पछबरिया ओसारा पर छै आ मड़बाक माँटि पर निभेर सूतल छलै ओकर चरबाह गेनमा। उतरबरिया घरमे काका रहै छथिन, जकर पछबरिया अलंग झड़ि गेल छै। आ मात्रा एकटा कोठली फूसक कहुना ठाढ़ छै। दछिनबरिया घरक तीन कोठलीमे भाइक परिवार रहै छनि।
आँगनमे इजोरिया छिड़िया गेल छै। मनोज जखन आँगन आएल छल, नीक जकाँ अन्हरिया जमकल रहै। सभ सूति रहल छलै। खाली माइ जागल छलै, मुदा ओंघाइत एकटा चैकी पर बैसल छलै। थारी परसैत कहलकै-बड़ राति भऽ गेलौ। कतऽ छलऽ अन्हारमे?
माइक ओइ बात पर ओकर मोन पाछाँ... बहुत पाछाँ उधिआए लगलै। छोट... बहुत छोट होइत चल गेल ओ। अधिक काल साँझ पड़लो पर आँगन घुरबामे देरी भऽ जाइक। मुदा, गामक जइ कोनो आँगनमे रहए आ चाहे जतबा अबेर होइ, आँगन दिस जएबा लेले जखन बिदा होबऽ लागए... लालटेम नेने चरबाह ठाढ़ रहै। ओकरा देखि अनेरो मनोजक मोन लोहछि जाइ। चरवाह ओकर मोनक बात जेना बुझि जाइ।-हमरा पर किए बिगड़ै छी बौआ? मालिक नइं मानलनि। कहलनि-ताकि लबहुन जतऽ होथि। अन्हारमे कोना घुरताह?
आ, तामसें मुँह धुआँ कएने जखन मनोज अपन घर दिस विदा होअए, दरबज्जे पर लालटेम नेने टहलैत भेटि जाथिन दादा(पिता)। हुनका देखि ओकर क्रोध आर बढ़ि जाइ। दादा ओकर मोनक बात नइं जानि कोना बुझि जाथिन-अनेरो तमसैलासँ की हेतऽ? समय पर नइं घूरि सकैत छऽ तऽ कम सँ कम टाॅर्च लऽ कऽ जा। सेहो नइं होइ छऽ तऽ कहि कऽ जा जे कोन आँगनमे रहबऽ? घरे-घर ताकऽ तऽ नइं पड़तैक एना।
अही घरे-घर तकनी पर ओकर मोन लोहछि जाइ। जेना ओ कोनो दुध-पिब्बा नेन्ना रहए। प्रात भेला पर ओकर तामस आर बढ़ि जाइ। जेम्हरे जाए, सभ पूछऽ लगै-राति कहाँ चल गेल रही मनोज! चरवाह हमरो आँगन ताकऽ लेल आएल रहौ।
मुदा मनोज कतबो तमसाए, दादाक व्यवस्थामे कोनो अन्तर नइं होइत छलनि। साँझक बाद गामक कोनो आँगनमे रहए वा धार पार पेठिया-बजारमे अँटकि जाए, जखने विदा होइत छल लालटेम नेने चरबाह ठाढ़ रहै छलै। आ, अपन दलान लग दोसर लालटेम नेने दादा टहलैत रहै छलखिन। माइक बात पर मनोजकेँ ओ पुरना बात मोन पड़ि गेलै। आब ने ओ गाममे रहै अछि, ने घरे-घर क्यो लालटेम नेने ठाढ़ रहै छै। दलान-दरबज्जा सुन्न रहै छै। दादा नइं छथिन आब। ओकर संग ओकर छोटका भाइ सभ सेहो बाहरे रहै छै, गाममे रहै छै-माइ, एकटा छोट भाइ, एकटा छोट बहिन आ भागिन-भगिनी...
आइ दिनेमे गाम पहुँचल छल। दलान सुन्ने छलै। आँगनमे पैसि गेल छल। भनसा घरमे व्यस्त माइ देखिते दौड़ि कऽ आँगन आएल छलै आ हाथ पकड़ि शम्भूनाथकेँ भगवतीक घर लऽ गेल छलै। ओकरा खाली हाथ प्रणाम करैत देखि ओकर आँजुरमे किछु फूल आ दूटा टाका राखि देने छलै। भगवतीक बाद माइकेँ प्रणाम कऽ आँगन आएल ता उतरबरिया घरसँ काका बहार भेलखिन-कखन अएलऽ? ने कोनो समाद, ने चिट्ठी। कुशल-क्षेम कि ने!
ओ पैर छूबैत कहलकनि-आॅफिसक काजसँ दरभंगा आएल रही। एक दिन लेल गामो चल अएलहुँ।
-एक्के दिन लेल?-काकाक स्वर उदास भऽ गेलनि-एतुक्का हाल तऽ देखिते छी। पचहत्तरि बरखक बूढ़ आ जीर्ण रोगी। आब ई बबासीर एक्को क्षण चैन नइं लेबऽ दैत अछि।-एतबा कहि ओ शोणितसँ भीजल धोती देखबऽ लगलखिन।
ताबत माइ पछबरिया ओसारा पर बिछौन कऽ देने छलै। चैकी पर आबि कऽ जहिना बैसल, गेनमा पंखा हौंकऽ लगलै। कनेटा हाथपंखा। ओकरा फेर एकटा पुरना गप्प मोन पड़लै। दादाक व्यवस्था आ हुनकर नियम। जहिना शहरसँ क्यो आएल कि बड़का पंखा लऽ गेनमाक पित्ती टुनमा ठाढ़ भऽ जाइत छलै। अढ़ाइ हाथक डण्टा लागल बड़का पंखा! टुनमाक हाथ तैयो लगातार चलैत छलै-घण्टो।
पछबरिया घरक ओसारा परक चैकी पर जखन चाह पीबि, आ जलखै कऽ पड़ि रहल, बहुत रास पुरना बात मोन पड़लैक। भाइ गाममे नइं छलखिन। दक्षिणबरिया घर जा भौजीकेँ प्रणाम कऽ अएलनि। धीया-पूता सभ स्कूल-कॉलेज चल गेल छलै। माइ भनसाघरमे भानस-भातमे व्यस्त छलै। असगर चैकी पर पड़ल ओकर मोन बौआइत रहलै।
आँगनक सभटा चीज चीन्हल, मुदा तैयो नवे सन लगै। ओना, नव होएबाक सती सभ चीज पुरनाए गेल छलै आँगनमे। पछबरिया कोठे टा नव छलै, जकर ओसारा पर राखल चैकी पर ओ पड़ल छल। मुदा, ओकरो दुनू कोठली आ सौंसे ओसारामे एखनो माँटिए-माँटि छलै। कोठली ओसाराक संग भनसाघरकेँ सेहो सीमेन्ट करबा देबाक दादाक बड़ इच्छा रहनि, आ ओहू सँ पैघ इच्छा रहनि पछबरिया घरक कोठा पर चढ़बा लेल सीढ़ी बना देबाक। माइ कहियो काल दाबल स्वरेँ बजैत छै-एतबो नै पार लगैत छऽ तोरा सभकेँ। अपना नइं काज छऽ, मुदा बापक आत्माकेँ शान्ति भेटतह,हुनको लेल तऽ एतबा करबा लैह। ओ एकसर एतेक कऽ गेलखुन, तोरो लोकनि तँ पाँच छऽ...
सत्ते, ओकरा बुते किछुओ कहाँ सम्भव भेल छै? पछबरिया घरक सीढ़ी आ सीमेन्टक कोन कथा,पुबारि घरक मरम्मति पर्यन्त पार नइं लागल छै। चारू कोठली बरसातमे पोखरि बनि जाइत छै-एक्को बुन्न बाहर नइं। ओहो पक्के देबाल छै, मुदा छतमे टीन पाटल छै।
दादा सभ वर्ष ओकर नट-बोल्ट बदलि, पोलटिस लगबा दैत छलखिन... बीच-बीचमे कोनो चदरा बदलबा दैत छलखिन। आब वर्षक वर्ष भऽ जाइत छै। पुबारि घरक उतरबरिया आ दछिनबरिया कोठलीक देबाल वर्षाक पानिसँ अलगि गेल छै। देबाल टेढ़ भऽ गेल छै, कहियो खसि सकैत छै! दुनू बिचला कोठलीक आसमानी रंगक देबाल पर पानिक टघारसँ विचित्रा-विचित्रा रेखाकृति बनि गेल छै। पुबारी कातक ओसारा जे दलानक काज करैत छै, एकदम बदरंग भेल छै। किरमिची रंग धोखड़ि गेल छै आ फर्श परक सिमटी ठाम-ठाम उखड़ि गेल छै।
मुदा, माइ आब एकर सभक चर्चा नइं करैत छै ओकर गाम अएला पर। पहिने करैत छलै। ओइ चर्चा पर ओ उत्साहित भऽ सभटा बजट बना लैत छल। सीढ़ीक बजट, सिमटीक बजट, मरम्मतिक बजट। फेर गामसँ चल जाइत छल। अगिला बेर फेर बजट बनैत छलै। मुदा आब ओकर चर्चा नइं होइत छै। माइकेँ दोसरे चिन्ता छै-जेहो खेत बाँचल छऽ, परतिए रहतह। तोरा लोकनि देखबह नइं,तऽ हम आँगनसँ कतेक की देखबइ! एकटा बड़दसँ कतहु खेती भेलै अछि? भाँजवला बड़ झँझट करैत अछि। गाममे पाइयो देला पर आब हऽर लेल क्यो बड़द नइं दैत छै। दाउन करबा लेल बड़द नइं होइत छै। सभ झरबा लैत अछि बोझाकेँ।
माइक इहो बात कैक बेर सुनने छल मनोज आ ओकरो बजट बनल छलै। तकर बाद तीन खेप गाम आएल अछि। ने माइ चर्चा करैत छै, ने ओ मुँह खोलैत अछि।
पछबरिया घरक ओसारा पर पड़ल-पड़ल मनोज इएह सभ सोचि रहल छल। माइ एक बेर आरो चाह दऽ गेलै। ओ तैयो ओहिना पड़ल छल। दोसर बेर भनसे घरसँ माइ टोकलकै-एना पड़ल किए छऽ! नहा-सोना कऽ गामक लोक सभसँ भेट कऽ आबऽ।
तैयो ओ ओहिना पड़ल रहल। नहएला-खएलाक बादो बिछौने पर पड़ल रहल। किम्हरो जएबाक इच्छा नइं भेलै खएला-पीलाक बादो। माइयो आबि कऽ ओही ओसारा पर पटिया बिछा बैसि गेलै। ओकरा ओहिना पड़ल देखि पुछलकै-नोकरक कोनो इन्तजाम भेलऽ की नइं।
ओ मूड़ी डोला देलकै। माइ चिन्तित होइत कहलकै-तखन तऽ बड़ झँझट होइत हेतनि। चिलकाउर छथि, दुनू नेन्ना छोट छनि। ऊपरसँ एतेकटा परिवारक भानस-भात। ऐ गाममे तऽ आब आगि लागल छै। क्यो छोटका लोक बाते नइं सुनैत अछि। क्यो तैयारो भेल जएबाक लेल तऽ ओकर पट्टीक मालिक झट बहका दैत छथिन-खबरदार जौं गेलें। बसबें हमर जमीनमे आ काज आन पट्टीक। एहन-एहन पट्टीदार सभ छथुन। तोहर पट्टी तऽ सफाचट छऽ। लोके कम्म, ओ जेहो छऽ से बाहर जाइ लेल तैयार नइं। गाममे भुखले रहत, मुदा बाहर नीक-निकुत नइं जुड़तैक। एकटा तैयार भेल छथुन। छथि तऽ ब्राह्मणे, मुदा भानसक संग अइंठ-कूठ सेहो करऽ लेल तैयार छथि। पछिलो बेर तोरा कहने रहिअऽ।
-ककरा दऽ कहै छें?-मनोज मोन पाड़ैत पुछलकै।
-ओएह, मन्दाक बेटा...।
मनोजकेँ मोन पड़ि गेलै। पछिला बेर माइ चर्चा कएने छलै। मन्दाक नाम सुनि ओ चैंकल छल। मन्दाकिनी ओकरे गामक छलै, ओकर संग खेलाएल छलै। ओकरा बेटाक नाम सुनि ओकरा आश्चर्य भेल छलै-मन्दाक बेटा किऐक भनसीयाक काज करतै! ओकर वर तऽ कलकत्तामे कमाइत छै। सासुरोमे खेत-पथार छै।
माइ कने घृणासँ कहलकै-सभटा अपन चालि आ कर्म। वर छोड़ि देने छै, घरोसँ निकालि देने छै। चारिटा धीया-पूता छै। वर्ष दिनसँ बापक लग पड़ल अछि। गरीब बाप-माइ अपने बेटा सभ पर आश्रित छै। चारि गोटेक पेट कोना भरतैक? दुनू जेठका मजूरी करैत छै-अपनो ढहनाएल फिरैत अछि, चालि सुधरै तखन ने?
सूनि कऽ आश्चर्य आ दुःख भेलै। मन्दा ओकरासँ जेठ छल वयसमे। कनियाँ-वरक खेलमे कहियो काल ओ ओकरो कनियाँ बनैत छल। ओना बेसी काल ओकर कनियाँ बनैत छल मोना। ओ जेहने सुन्नरि छल, तेहने शान्त। कनियाँ बनि खपटाक बासन सभमे काँच बालु आ तरकारीक बतिया सभ राखि ओकरा लेल भानस करैत छल आ फेर स्कूलक कोठलीक माटिमे ओकर कनियाँ बनि चुपचाप ओकरा संग सूति रहै छल।
मन्दा सुन्दर नइं छल। रंग ओकर कारी नइं, तऽ गोरो नइं छलै। केश भुल्ल छलै जकरा कतबो तेल-कूड़ दैत छलै, भुल्ले रहै छलै। आँखि छोट-छोट छलै, मुदा शैतानीसँ नचैत। ने बेसी दुब्बर, ने मोट। चालि फुर्तिगर छलै, हरदम बुझाइ जेना पड़ाएल जाइत होअए। गाल फूलल-फूलल आ लाल पातर ठोर रहै, जकरा अधिक काल ओ बिचकाबैत रहै छल। ओ जहिया ओकर कनियाँ बनैक,अकच्छ करऽ लगै। जाहि कोठलीमे सभ कनियाँ-वर पड़ल रहै, ततऽ नइं सुतैक। कहियो कोनो झोंझमे, तऽ कहियो कोनो कोनटामे लऽ जाइ आ बुझनुक जकाँ बजैक-वर-कनियाँ कतौ सभक सामने सुतलैक अछि संगे!
मुदा संग सुतैत देरी ओ तंग करऽ लगैक-एना कल्ल-बल्ल की पड़ल छें! वर-कनियाँ एना नइं पड़ल रहै छै चुपचाप।
-तऽ गप्प करऽ ने कोनो! मोना तऽ कतेक रास गप्प करैत अछि।
-ओ बकलेल अछि। वर-कनियाँ खाली गप्पे करैत रहि जाएत तऽ बिआह कथी लेल करत, संगे किऐ सुतत?-मन्दा बुझनुक जकाँ बजैक।
-तऽ तोहीं कह, वर-कनियाँ की करैत छै!
झिक्का-झोरी होबऽ लगै। कहुना अपन पैण्ट सम्हारैत ओ उठि कऽ पड़ाए तऽ मन्दा खूब हँसैक-लाज होइ छै मौगाकेँ।
पड़ाइत मनोजकेँ मोना भेटैक तऽ मुँह कनौन आ आँखिमे नोर-हम नइं बनबैक कमलेशक कनियाँ! नंगरियाबऽ लगै अछि। ओकर कनियाँ मन्दा बनतैक। हम तोरे कनियाँ बनबौक।
मुदा बीच-बीचमे मन्दा शैतानी करैक आ मोनाकेँ कमलेश लग पठा दै आ अपने मनोजक संग लागि जाइ-हम एकरे कनियाँ बनबै, मौगाकेँ लाज होइत छै।
आ, एकसर होइत देरी ओ झट पैण्ट खोलि, फ्रॉक उनटि लैक आ मनोज लंक लऽ कऽ पड़ाए।
मुदा, ओही फ्रॉक उनटाबऽवाली मन्दाक जखन विवाह भेलै, चारिटा मौगी टांगि कऽ कोबर घर लऽ गेलै आ सभक नूआ चिरी-चोंत कऽ देलकै आ मुँह-कान नछोड़ि लेलकै।
आ, ओहि मन्दाकेँ वर घरसँ निकालि देलकै आ बेटा मजूरी करैत छै, से सुनि ओइ दिन मनोज स्तब्ध रहि गेल छल। माइकेँ तत्काल कोनो जवाब नइं दऽ सकल छल। साँझ खन मन्दा अपने आएलि छलै। माइ कोम्हरो गेल छल। मन्दा लग आबि ठाढ़ि रहलै, कहला पर बैसलै नइं। एकटा फाटल नूआमे सौंसे देह झाँपल। दोसर कोनो वस्त्रा नइं। आंगियो नइं। शरीर सुखाएल, आँखिक नीचाँ कारी छाँह आ ठोरो करिआएल। मनोजकेँ मोन पड़लै जे मन्दाक ठोर कतेक पातर आ लाल रहै। ओकरा एकटक देखैत देखि मन्दा कहलकै-की देखै छें एना! अनचिन्हार लगै छियौ हम?
-नइं... से बात नइं! देखै छलियौ जे तोहर ई हाल किऐ भेलौ? केहन तऽ सुखी छलें अपन घरमे!
मन्दा हँसलकै-से तों कोना जानऽ गेलें जे सुखी रही। विवाहक बाद की पहिनो घुरि कऽ कहियो पुछलें जें कोना छें मन्दा? नेनामे पैण्ट खोलि दैत छलियौ, ताहि डरेँ जे पड़ाइत छलें, से डर भरिसक लगले रहि गेलौ।
मनोजकेँ लाज भेलै। मन्दा ठीके कहैत छै। ओकरा नइं जानि मन्दासँ किऐ बाजि नइं होइत छलै। मन्दा जखन कने पैघो भेलै, ओकर चारू कात घण्टो बौआइत रहै छलै। पोखरिक जाहि घाट पर ओ नहाइत छल, ठीक ओकरे नहएबाक समय सभ दिन ओ पानिमे पैसि घण्टो चुभकैत रहै छलै। मनोज हेलि कऽ जाठि लगसँ भऽ आबए, मुदा ओ ओहिना छाती भरि पानिमे डूबल घण्टो ठाढ़ि रहै। जाहि आँगनमे ओकर ताश-कौड़ीक अड्डा जमए, मन्दा ओही ठाम भेटि जाइ। मुदा वर-कनियाँक खेलमे जे ओकरासँ डेराएल, से डेराएले रहल मनोज।
मन्दा ओही बात पर हँसी कएलकै आ मनोजकेँ लाज भेलै। अपनाकेँ स्वभाविक बनएबाक चेष्टा करैत कहलकै-से बात नइं छलै मन्दा। तोहर हाल तऽ बुझिते छलियौ, जा धरि गाममे रही। आब तऽ अपने गाम अनचिन्हार भेल जाइए। कहियो काल अबै छी। मुदा तोरा दऽ सुनि कऽ बड़ दुख भेल। मिसरक मति एना किऐ खराब भेलनि? एहि वयसमे, धीया-पूताक संग किऐ त्यागि देलखुन तोरा?झगड़ा भेल छलौ?
मन्दा फेर हँसलै-संग रहिते कहिया छलौं जे झगड़ा होइत? ओ कलकत्ता, हम गाम। कहियो काल वर्षमे एक बेर, पाँच-सात दिन आबि जाइत छलाह। झगड़ो करबाक बेर कहाँ भेटेत छल?
-तखन की भेलौ?-मनोजक प्रश्न पर ओ फेर हँसल, गामक लोक एखन धरि नइं कहने छौ? सभकेँ बूझल छै। जकरेसँ पुछबही, सएह कहि देतौ-हम कुलटा छी, किदन छी। एही कलंकक संग घरसँ विदा कएने छथि। मुदा हम तऽ कहियो नइं कहने रहिअनि जे पतिवरता आ सदवरता छी।
मनोजकेँ अवाक देखि ओ आगू बाजलि-तोरा कहबामे लाज नइं! तोरा लगमे नेन्नेमे अपन फ्रॉक उघारि लैत रही आ तों पड़ा जाइत रहें। सभ पुरुष तोरे सन नइं होइत अछि। जहिया गामक सभ स्त्राीगण उठा कऽ हमरा कोबरामे ठेलि देने छल, तोहर मिसरकेँ बड़ हड़बड़ी भऽ गेल रहनि। जहिया कहियो वर्ष दू वर्ष पर गाम अबैत छलाह, एक्के क्रियाक हड़बड़ी रहै छलनि। तकर बादे किछु।
मनोज रोकैत कहलकै-तऽ एहिमे कोन हर्ज छलै! स्वामीक अधिकार छलै ओ। एहिमे घरसँ निकालबाक कोन बात भेलै?
मन्दा फेर हँसलि-बात तकरे बाद भेलै। ओ सटल रहि पाँच-सात दिनमे चल जाइत छलाह। आँगनमे एकसर हम स्त्राीगण! ने सासु, ने ननदि। कतेक बेर कहलिअनि-हमरो कलकत्ता लऽ चलू, मुदा नइं लऽ गेलाह। लऽ कोना जैतथि? बापक माथ पर भार छलिअनि। कहुना छुट्टी पौलनि। जमाइ अनलनि मूर्ख, आॅफिसमे दरबान। घर रहनि तखन ने लऽ जैतथि कलकत्ता! मास-दू मास पर मनीआर्डर पठा निश्चिन्त भऽ जाइत छलाह।
मनोज फेर टोकलकै-ई तऽ भेलै नौकरीक विवशता। टाका तऽ पठा दैत छलखुन, तखन फेर की भेलौ?
मन्दाक हँसी आर बढ़ि गेलै-तखने तऽ असली बात भेलै। सुन्न आँगनमे एकसर मौगीक खोज-खबरि लेबऽवला, सहानुभूति देखाबऽवलाक संख्या बढ़ैत गेलै। पहिने अएलाह एकटा पितिऔत देयोर। भौजी-भौजी करैत एक दिन नइं छोड़लनि। फेर परकि गेला। हमहूँ परकि गेलहुँ। मुदा हुनका रोकलकनि अपने स्त्राी। तखन आएल गामक सम्बन्धे एकटा जाउत। काकी-काकी करैत ओहो ओहने...।
मनोज बीचमे रोकि देलकै-आ तोरा नीक लगैत गेलौ, परिकल गेलें। तखन तऽ वाजिबे निकालि देलखुन तोरा। कोनो पुरुष सैह करैत!
ओकर आँखि क्रोधसँ भभकि उठलै-ठीके कहै छें! सभ पुरुष एहिना करैत अछि। ओकरा दूरि कऽ किम्हरो चलि दैत अछि, आ मौगी एकसर ओकर बाट देखौ, अपनाकेँ झाँपि-तोपि कऽ राखौ। हमहूँ झाँपि-तोपि कऽ रहै रही। मुदा चारू कातसँ हाथ लपकल। मुदा से उघार होएबा लेल तऽ नइं निकललहु ँ ओइ घरसँ। निकलल छी ओइ घरमे पच्चीस वर्ष बिता कऽ, जखन हमरा संग रहबाक इच्छा तोहर मिसरकेँ नइं होइत छनि। ओ एकटा नव राखि नेने छथि, कलकत्तेमे। कमाइयो बढ़ि गेल छनि। आब हमर काज नइं छनि। चालीसक वयस पार भेलाक बाद, पन्द्रह वर्षक बेटाक माइ बनलाक बाद हम छिनारि बनि गेल छी। आब चारूमे कोनो सन्तान हुनकर नइं छनि, ओ ककरो बाप नइं छथिन। सभ अनजनुआक जनमल आ टूअर अछि। बड़काकेँ राखि लही तों, सभ काज कऽ देतौ। ने तऽ हमरे राखि ले, भानस-भात, टहल-टिकोरा सभ कऽ देबौक, तोहर नेन्नो सभकेँ खेला-खुआ कऽ पोसि देबौक।
मनोज कोनो उत्तर नइं दऽ सकलै। तावत माइ आबि गेलै। ओ माइयोकेँ एक बेर फेर विनती कएलकै आ चल गेल। माइ ओकर जाइते पुछलक-की कहैत छलऽ तोरा?
-ओएह अप्पन बेटाकेँ, चाहे अपने राखऽ दऽ कहैत छल। भानस-भात, टहल-टिकोरा सभ गछैत छल।
माइ एकदम्म निषेध कएलकै-एहन काज किन्नहु ने करिहऽ! बेटाकेँ रखबह तऽ राखि लैह। मुदा अपना नइं। प्रमोद लऽ गेल छलखिन अपना संग धनबाद। भारी काण्ड मचि गेलनि। बड़का अड्डा बनि गेलनि डेरा। कनियाँसँ नित्य झगड़ा होबऽ लगलनि। हारि कऽ पठा देलखिन।
आ अइ बेर गाम अएला पर माइ फेर कहलकै-ओ जाएब गछैत छथि, ओएह मन्दाक बेटा।
माइकेँ तखनो कोनो जवाब नइं दऽ सकलै। साँझ धरि ओहिना पछबरिया घरक पुबरिया ओसारा पर पड़ल रहल। धीया-पूता सभ स्कूलसँ घुरि गोड़ लगलकै।
आँगनसँ बाहर आएल तखन अन्हार नइं भेल रहै। उतरबरिया घरक दरबज्जा पर काकाक संग लाल काका बैसल छलखिन। गोड़ लगलखिन तऽ आशीर्वाद दैत कहलखिन-अखन रहबऽ ने!
-नइं काका। काल्हिए चल जाएब। छुट्टी नइं अछि।
मनोजक जवाब पर लाल काका पैघ साँस लैत कहलखिन-नीके करैत छऽ। ई गाम आब रहबा जोगर छऽहो नइं! हमरा लोकनि बूढ़-अथवल, जकरा कोनो उपाय नइं अछि, पड़ल रहै छी। लऽ चलऽ हमरो सभकेँ! दू साँझ खएबह आ धीया-पूताकेँ खेलबैत पड़ल रहबह। किताब-पत्रिका जमा कऽ दिहऽ पढ़ैत पड़ल रहब।
मनोज हँसैत कहलकनि-तऽ चलू ने लाल काका! अहाँ तऽ सब बेर एहिना कहैत छी, मुदा माया छोड़ैत अछि? अबितो छी कहियो काल, तऽ दोसरे दिनसँ मोनमे हल्दिली पैसि जाइत अछि-गाममे कोना की हैत! पड़ा अबै छी लगले।
लाल काका ओहिना पैघ साँस लैत कहलखिन-ठीके कहै छऽ हौ! कहाँ छोड़ैत अछि माया? ई गाम रहबा जोगरक अछि आब? नर्कसँ बत्तर। ने सभ्यता, ने शिष्टाचार। नवका छौंड़ा सभक उद्दण्डताक कथे कोन, बुढ़बो लोकनिक आचरण देखि दंग रहै छी। इएह, मोन नइं लगैत अछि तऽ भाइ लग आबि बैसैत छी। आर कतहु जाइ छी हम! देयर आर ब्रोथेल्स इन योर भिलेज नाउ!
लाल काकाक बात पर मनोज चैंकल नइं छल। ओकरा पछिलो बेर ई बात सुनल छलै। उतरबारि भीड़ पर घरे-घर रातिकेँ अड्डा जमैत छै। सेठ मुरली मिसरकेँ सभ घर नोत होइत छनि। अही गाममे रहै छथि आब मुरली। अपन घर नइं जाइत छथि। भोला झाक विधवा बेटी हुनका स्वामी मानि नेने छथिन, गामो मानि नेने छनि, मुदा खाली भोला झाक बेटीसँ सेठ मुरलीक मोन नइं भरैत छनि। टोलक सभ घरमे हुनकर अड्डा जमैत छनि। गामक नीक-नीक लोक ओइ बैसारमे शामिल होइत छथि। लाल काकाकेँ बर्दाश्त नइं होइत छनि।
मुदा, गामक लोककेँ सभटा रुचैत छै! बूढ़ सभक संग छौंड़ो सभ ओइ बैसार सभमे हुलकी दैत अछि। सभ भोरका ट्रेनसँ दरभंगा जाइत अछि कॉलेज, आ कहियो सतबज्जी, तऽ कहियो बरबज्जी गाड़ीसँ गाम अबैत अछि। छुट्टी आ शानि-रविकेँ गामेमे हल्ला-गुल्ला कएलक, पिहकारी मारलक आ राति-विराति चोर-चाहर आ छिनरपन कएलक! कथूक लेहाज नइं छै। लाल काका पछिलो बेर कहने छलखिन।
ओकरा कोम्हरो जएबाक मोन नइं भेलै। बेसी ठाम एहने गप्प, ने तऽ गोलैसी आ पाटा-पाटीक गप्प! ओ सोझे लाइब्रेरी दिस गेल। ओतऽ साँझसँ ब्रिजक खेलाड़ी सभ जुटैत अछि! पेट्रोमेक्स जरा कए,ने तऽ लालटेमो लेसि कऽ ओहो बाजी पर बाजी खेलाइत चल गेल।
जखन घुरल, सौंसे गाम निसबद छलै। आँगनोमे कोनो सुगबुगी नइं। खाली एकसरे जागलि माइ ओंघाइत बैसल छलै! परसि कऽ थारी आगूमे दैत कहलकै-बड़ अबेर भेलऽ। कतऽ चल गेल छलऽ अन्हारमे?
आ, ओकरा बहुत रास बात मोन पड़लै। दादा मोन पड़लै आ मोन पड़लै आँगने-आँगन लालटेम लऽ कऽ तकैत अपन चरवाह। ओही स्मृतिमे भोतिआएल आँखि लागि गेलै।
बरबज्जी टेªनक पुक्कीक किछुए कालक बाद गाममे कचबच-कचबच होबऽ लगलै। ओकर निन्न नीक जकाँ टूटि गेलै। बीच आँगनमे चैकी पर चितंग पड़ल छल। ऊठि कऽ आवाजक अख्यास कएलक। बुझएलै जेना बहुत रास लोक पुबारी दिस आबि रहल होइ। ओ ऊठि कऽ आँगनसँ बाहर आएल।
भीड़ ओकरे दरबज्जा दिस आबि रहल छलै। बड़का ठहक्का लागि रहल छलै आ बीच-बीचमे पिहकारी। मनोजक उत्सुकता बढ़िते गेलै।
भीड़ लगले नइं पहुँचलै ओकर दलान पर। सभ आँगनमे गेलै आ अन्तमे ओकर दरबज्जा दिस बढ़लै। दृश्य देखि ओ अवाक रहि गेल।
दू टा छौंड़ा दुनू दिससँ मन्दाक बाँहि मोड़ि पकड़ने छलै। ओ ओकरा धकिया-धकिया आगू ठेलि रहल छलै। मन्दाक आँखिमे ने नोर छलै, ने याचना। एकटा विचित्रा सन पथराएल दृष्टि, जेना जे किछु भऽ रहल छलै, तकर कोनो ज्ञान नइं होइ ओकरा। कोना यंत्राचालित पुतला जकाँ भीड़क संग आगू ठेला रहल छल। छौंड़ा सभक संख्या गोड़ दसेक। तकरा पाछाँ किछु गामेक लोक भीड़क तमाशा देखबा लेल संग भेल।
मन्दाक हाथ मोड़ने ठाढ़ रमेश आ दीनूकेँ मनोज डँटलकै-छोड़ि दहक हाथ! एना क्यो स्त्रिागणक संग व्यवहार करैत अछि! लाज नइं होइत छौ तोरा लोकनिकेँ?
दुनू ओकर हाथ छोड़ि देलकै आ आर आगू आबि दीनू बाजल-हमरा सभकेँ किऐ लाज हैत? लाज तऽ एकरा हेबाक चाही। अपना संग गामक इज्जति बजारमे नीलाम करैत अछि। आइ हमरा सभकेँ सतबज्जी ट्रेन छूटि गेल। बरबज्जीक आसामे रही कि देखैत छी एकरा प्लेटफार्म पर एकटा मोछियल बुढ़बाक संग टहलैत। दुनू एकटा घरमे पैसल। हमहूँ सभ पछोड़ धऽ लेलिऐ। पकड़ि लेलिऐ ठामहि। ओतहिसँ सभकेँ कहैत आएल छिऐक। गामोमे घरे-घर सभ ठाम लऽ जा कऽ कहलिऐ। मुदा,देखू, एकरा। लाज छै कोनो गत्रामे? एक्को बुन्द नोर छै पश्चात्तापक कतहु?
सत्ते, से नइं छलै कतहु! मुदा जे छलै से देख्ेिा मनोज डेरा गेल। ओ सर्द... भावनाहीन आँखि दिस देखैत ओ सिहरि गेल। तैयो साहस कऽ कहलकै-किऐ करै छें एना मन्दा? तोरा कनियो लाज नइं होइ छौ सत्ते?
ओकर बात पर मन्दाक स्थिर आँखिक पुतली कने हिललै! सोझे मनोजक आँखिमे तकैत कहलकै-सत्त कहियौ! ठीके हमरा कनियो लाज नइं होइए। ओ तऽ कहिया ने मरि गेल। मरि गेल देहक भूख! सभटा सुखा गेल। मुदा पेटक भूख नइं मरल। ओ अखनो लगैत अछि। तखन ई देखबाक फुरसति कहाँ रहै अछि जे बुढ़बा मोछियल अछि कि निमुच्छा छौंड़ा? नइं होइ छौ विश्वास तोरा? हम करा देबौ विश्वास तोरा, लाज हमरा कनियो नइं होइत अछि। एही छौंड़ा सभमे देख ने! बेसी हमर बड़कासँ कनिये छोट पैघ हैत! मुदा हमरा एकरो सभक संग लाज नइं। भूख हमरा अखनो लागल अछि। पाइ आ अन्न हमरा चाही। जकरासँ ई हमरा भेटत, तकर नाम-धाम, मुँह-कान नइं देखैत छिऐ हम। ठाम-कुठामक ध्यान नइं रहै अछि। हमरा लेल बन्न कोठली आ गामक एहि बाटमे कोनो अन्तर नइं। आबि जो, जकरा मोन होउ!
आ, सभकेँ आश्चर्यसँ विस्मित करैत मन्दा ओही ठाम माँटि पर चित्ते पड़ि रहलि। बहादुर छौंड़ा सभ भागऽ लागल। भागि गेल! मुदा मन्दा ओहिना पड़लि छल, सुन्न अकाशक नीचाँ, गामक सड़क पर छिड़िआएल इजोरियामे ओ चितंग पड़लि छल! निर्विकार! ओकर आँखिमे कोनो भाव नइं छलै! ने वासना, ने आमंत्राण, ने कातर-याचना। सम्पूर्ण भावविहीन छलै ओकर आकृति आ आँखिक पुतली स्थिर छलै-ऊपर आकाश दिस उठल।
मनोजक मोन कोनादन कऽ उठलै। ठेहुनियाँ दऽ ओकर मुँह लग बैसैत कहलकै-उठ मन्दा! झाँपि ले अपन देह! सभ पड़ा गेलौ, खाली हमही टा छियौ।
मन्दाकेँ जेना होश भेलै! स्थिर पुतली हिलऽ लगलै आ नइं जानि कहाँसँ बाढ़ि आबि गेलै ओइमे?अपन देह झँपैत उठि बैसल। मनोजक आँखिमे नोर देखि हँसबाक चेष्टा करैत कहलकै-तों कोना ठाढ़े रहि गेलैं रौ? तों तऽ हमरा एना देखि कऽ नेन्नोमे पड़ा जाइत छलैं।
मनोज कोनो जवाब नइं देलकै! कने काल दुनू आमने-सामने ठाढ़ छल-निःशब्द! तखन मनोज कहलकै-तों अपन आँगन जो मन्दा! भोरमे बड़काकेँ पठा दियहि। अपना संग पटना लऽ जएबै।




कुमार मनोज कश्यप
जन्म मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। बाल्य काले सँ लेखन मे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवानी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।

धर्मात्मा

ओकरा धरम-करम मे बड़ निष्ठा छैक---भोरे-भोर अन्हर-गरे उठि , नहा -धो, उघारे देहे भीजल तौनी पहिरि कऽ मंदिर के नीक जकँ कैक बेर धोईत आछ तखन भरि मोन पूजा कऽ कऽ ओ दस बजे धरि घर आपस अबैत आछ -- तकरा बादे ओ अन्न-जल मुँह मे दैत आछ ---चाहे किछु बिति जाउक । केहनो बिकराल समय होऊक --- घनघोर झट्टक; कि कपरफोड़ा पाथर; कि हाड़ कँपबैत कनकनी -- ओकर एहि दिनचर्या मे कोनो टा फर्क नहिं पड़लैक --- सालक-साल बादो। लोक कतबो कहैत रहलैक जे खाली देह मे ठण्ढ़ा मारि देतैक ---पहिने जान; तखन जहान --- मुदा एहि सभ बातक कोनो टा असरि नहिं पड़लैक ओकरा पर ।

दानी-दयालु सेहो ओ तेहने---दुआरि पर आयल कोनो भीखमंगा के ओ बिनु खुअओने किन्नहुँ आपस नहि जाय देने हेतैक--बरू अपने कियैक ने भुखल रहि जाय पड़ल हो। नर आ नारायण दुनू पर अटुट श्रद्धा छैक ओकरा । सगरो बड़ गुणगान होईत छैक ओकर भत्तिᆬक -- ओकर सहृदयताक ।

भने तऽ केयो बजैत छल जे ओकर बाप बिनु सेवा -सुश्रूषा, अन्न-दवाई के काहि काटि कऽ मरल छलैक
रामभरोस कापडि “भ्रमर”, अध्यसक्षःसाझाप्रकाशन, नेपाल


यात्रा प्रसंग
हमर कल्प्नाक सेती..... बहैत..... अविचल !
बहुत पहिने डा. धीरेन्द्र. एकटा कथा लिखने रहथि – हिचुकैत बहैत सेती । कोनो सन्द-र्भमे पोखरा अएलाक बाद हुनका सेती मनकें छुने रहनि आ तखन ई कथा आएल रहय । जनकपुरमे रहनिहार डा. धीरेन्द्र कें हृदयके झकझोड़ि देब बाली नदी सेतीमे आखिर की विशेषता रहल हयतैक – हम तहिया खूब सोचने रही । हमरा मोनमे सेती तहिए बसल – नहि, देखबाक चाही सेतीकें ।
समय एम्ह र काफी ससरि गेल अछि । डा. धीरेन्द्रे सेहो आब नहि छथि । जहिया ओ पोखरा गेल छलाह से पोखरा आब नहि अछि । नीक विकास भेलैए एकरा । विगतक चारि दशकमे ई पर्यटकीय गन्तछव्याक आकर्षक ठाम भऽ गेल अछि । वहुत किछु बदलि गेलैए । जं नहि बदलल अछि तं सेती । लगैए एकर व्यतथा–कथा सुननिहार केओ नहि भेलै । सेतीक किन्हेलर पर बसल पहाडी गाम सभमे गाओल जाइत लोकगीत सभमे सेतीक कथा अवस्सेथ आएल हयत । हमरा एम्हतरका लोक संस्कृ तिक अध्यायन नहि अछि । मुदा नदी सभक प्रभाव जेना लोकगीत सभमे अबैत रहल अछि,एहि क्षेत्रक प्रसिद्ध नदी सेती अवस्यय सौनायल हयत ।
पोखरामे देखबा लायक बहुत किछु छैक । घुमबाक हेतु जे केओ काठमाण्डूे अबैत अछि पांच–छव घंटाक वस यात्रासं पोखरा अवश्यक आबि जाइत अछि । एत्त देखबा योग बहुत किछु छैक – अन्न–पूर्णहिमाल श्रृंखला, माछापुच्छ्रे (माछक नांगरि सन) हिमाल, चर्चित फेवा ताल, महेन्द्र गुफा, डेविड्स फौल, संग्रहालय सभक संग बराही, विन्य्च् वासिनी, भद्रकाली मंदिर, विश्वतशांतिस्तूलप, तीव्वअतीय गाम, पुरना बाजार आदि ।
पाइ हय तं छोटकी हवाई जहाज जे उडन खटोला वेसी लगैत अछि, मे चहरि पोखरा नगर, फेवा ताल, हिमाली श्रृंखला सभकें आनन्दन लऽ सकैत छी । साइकिलसं पहाड़ पर चलि सकैत छी । वर्फमे चलबाक आनन्दह लऽ सकैछी । वहुत किछु भऽ सकैछ मुदा से डलरमे । दिनहुं विदेशी पर्यटक दर्जनोंक संख्याआमे अबैत अछि । वर्षाती मौसम सभसं नीक होइछ अकासमे उडबाक लेल ओना जनबरीसं जून उत्तम मानल जाइछ ।
मुदा हमरा लेल पता नहि किए पोखराक प्रथम दृश्याावलोकन सेती नदीक हेतु निर्धारित छल । डा. धीरेन्द्र क सेतीक खासियत खोजबाक लेल मनमे अनेकों तरंग उठैत रहल अछि । सेती माने नेपालीमे होइछ उज्जनर । उज्जसर धप–धप नदी । हं,ठीके सेती उज्जमरे पानिक संग बहैत अछि । पोखराक हृदय प्रदेश भऽ कऽ बहैत सेती,अपना भितर अनेकों स्ुन्द।र, कुरुप प्रसंग सभक एकांत साक्ष्ँब।ी । कर्णाली प्रदेशमे बहऽ बाली प्रसिद्ध हिमाली नदी सेती जे बझाङ, डोटी, डडेलधुरा धनगढी होइत भारतके उत्तर प्रदेशमे सन्हि या जाइत अछि, जे माछापुच्छ्रेा हिमाल सं निःसृत होइत अपना संगे चूना लेने पोखरा उपत्यपकामे प्रवेश करैत दक्षिणमे त्रिशूली आ नारायणी मे मीलि जाइत अछि ।
तीन दिनक हेतु मात्र हम पोखरामे छी । साझा प्रकाशनक कार्यालय निरिक्षणक क्रममे एत्त आएल होइतो हमर प्राथमिकता सेती दर्शन अछि । क्षे.शा. प्रवन्धकक रिलामीक संग हम महेन्द्रेपुल पहुंचैत छी । पुलक उत्तर आ दक्षिण दुनू कात भयंकर झारपात, गाछक विच निरिह, असमर्थ, प्रताडित सेती.....। लगभग ४० मिटर निचां कोनो विधवाक सुन्ना, उज्ज र सिउंथ जका वहैत सेती.....। दुनूकातक किन्हे्रपर घर सभ बनल आ तकर शौचालयक नालीक दुर्गन्धु आ गन्द,गी उद्यैत सेती....। नगरक गन्दमगीकें आंचरमे सहेजवा पर विवश सेती । अपराधी सभक कुकृत्य्कें सेहो अपन छातीपर लोकबालेऽ बाध्यस सेती । निचां, भयानक, डेराओन, देखिते देहमे सिहकी पसरि जएबाधरिक कुरुप सेती....आ डा. धीरेन्द्रतक सपनाक सेती !
नहि, हमरा नहि लगैत अछि डा. धीरेन्द्री तहिया एहि सेतीकें देखने होथिन्हा । मधेशमे रहनिहार, नदीक संस्काारकें अपन जीवन पद्धतिमे अंगेजनिहार व्य क्तित्वत एहन कुरुप सेतीकें कोना सहि सकैत छलाह होइत ।
हम त पुरे निराश भऽ जाइत छी । हमर मान्यिता आ धारणा सभ खण्डियत होइत जा रहल अछि । हम अगुता कऽ रिलामी जी कें पुछैत छिऐक – की इएह रुप छै सेतीकें ? ओ हमर आसय वुझैत अछि आ हडबडा कऽ बजैत अछि हैन, सर ! नहि,हजूर ! नगरमे प्रवेश करैत काल आ निकलैत काल ई अपन स्वडभाविक रुपमे रहैत अछि ।
हमरा कनेक ठाढ़स होइत अछि । दक्षिण दिशसे स्वइच्छ!, उज्जतर पानि देखने छी । मुंगलीन–काठमाण्डूऽ बाटमे निचां बहैत उज्ज र सेती तनहु मे त्रिशुलीमे मिलैत अछि । राफ्टींग कएनिहार सभ एही स्वमच्छड पानिमे रमल रहैत अछि । नदीक बहैत क्रम सेती– त्रिशूली–नारायणी ।
हम एकर प्रवेश दिश बढैत छी । बगरमे ई गहिराईमे चल जाइत अछि । पोखरा नगरके उत्तर पश्चि म भाग जत्त शहरक अन्तश होइत अछि ओत्त के आई सिंह पुलसं सेती नदीक सुन्द र, कलकल, स्वअच्छई, उज्जुर स्वररुप देखल जा सकैछ । ई फेर नगरक विचमे अवस्थिनत रामघाट पर देखार होइत अछि । फैलगर मुदा पानिक मात्रा कम । ओत्त स नगरमे वालुक आपूर्ति कएल जाइछ । ठिकेदार सभक भीड़ । एकटा राम मंदिर अछि आ वगलमे श्म शान घाट । नगरसं निचां नदी दिश प्रवेश करैत काल एकटा द्वार बनल छैक – वैकुण्ठ द्वार । नदी आगां जा फेरसं उएह सय मिटर गहिंराई बला स्वतरुपमे बदलि जाइत अछि, जकरा पृथ्वीा चौक स नीक जकां देखल जा सकैछ । तकरा कनेके दक्षिण गेला पर नगर समाप्त भऽ जाइछ आ सेती जेना सभ पीड़ासं मुक्त भऽ स्वकच्छंन्दै, अपन स्वैरुप आ गतिमे आबि जाइत अछि ।
सेती एखन पर्यटन व्यइवसायी सभक दूधगरि गाइ भऽ गेल अछि । रफ्टिंग सं लाखो कमाइ अछि । मुदा नगर भितरमे भयावह आ कुरुप रुपमे वहैत सेतीकें स्वऽच्छफ,आकर्षक आ सुरिक्ष्ँ्त बनएबाक प्रयास होइत कहां देखल गेल अछि । ने सरकार ने व्य वसायी सभ आ ने उपमहानगरपालिका । कएलहु हयतैक त हमरा ज्ञात नहि अछि । ओना हम एत्त तकर रत्तियो भरि छाप नहि देखि पौलहुं अछि ।
हम सेतीक नगर प्रवेश स्थतल पर छी.....मंत्रमुग्ध , स्त्व्ध् आ रोमांचित सेहो । वास्तआविक सेती अपन सम्पूञर्ण सौन्दरर्यसं एत्त उपस्थि त छथि । वर्फक पानिसं बनल उज्ज र सेती कल–कल निनादक संग गन्तसव्यप दिश बहैत । अपना भितर रहल सभ गन्द.गी, पीड़ा, प्रेम, स्ने–ह, मिलन आ विछोडक सभकथा सभकें समेटने बहैत ।
सेतीक एहि स्व च्छ न्दह, शांत बहाबमे कतहु उपेक्षा, तिरस्काषर आ शोषणक पीड़ा सेहो हम महशूस करैत छी । आ तखन कतौ ने कतौ डा. धीरेन्द्रलक हिचुकैत बहैत सेतीपूर्ण आकारमे हमरा सोझां ठाढ भऽ जाइत अछि । संसारक हेतु अपन सेवा देनिहारि सेती जखन ताही संसारी सभसं उपेक्षा पबैत अछि, शोषणमे पड़ैत अछि त आत्माह छहोछित हयबे करतै । सम्भकवतः सेतीक इएह पीड़ा चारि दशक पूर्व डा. धीरेन्द्ऱ महुशूस कएन छल हयताह..... ।
तए हमरा आब नगरमे पैसबामे डर लगैत अछि । अपन कल्पयनाक स्व च्छी,सुन्द र सफा आ स्वेसत नदी सेतीक अगिला विकृत रुप देखबाक साहस हमरामे नहि अछि । हम त एत्तहि बैसि अपन कल्पसनाक, अपन चिंतनक, अपन रुचिक सेतीकें निद्वंद, साफ, प्रफुल्लि्त बहैत देख चाहैत छी । वस. एत्तहि बैसि... !


गजेन्द्र ठाकुर
वर्णमाला शिक्षा: अंकिता
अकादारुण समय छल । अंकिता अङैठीमोड़ कएलक। ओकर पिता कहलन्हि-
“अतत्तह करए छी। जल्दीसँ झटकारि कऽ चलू।

अंकिता अकच्छ भऽ गेलि। चलैत-चलैत ओकर पएर दुखा गेलैक।
रस्तामे ओ एकटा लालछड़ी बलाकेँ देखलक।
“हमरा लालछड़ी कीनि दिअ”।
“अंकिता अकर-धकर नहि खाऊ”।
“नहि। हमरा ई चाहबे करी”।
“अहूँ अधक्की छी। एखने तँ कतेक रास चीज खएने रही”।
पिता तैयो ओकरा लालछड़ी कीनि देलन्हि।
रस्तामे अगिनवान देखि अंकिता बाजलि-
“ई आगि किएक लागल अछि”?
“बोन-झाँकुर खतम करबाक लेल”।
“अक्खज गाछ सभ तैयो नहि जरल अछि”।

प्रश्न: बचियाक नाम की छी?
उत्तर: अंकिता।
प्रश्न: समय केहन छल?
उत्तर: अकादारुण।
प्रश्न: अंकिता चलैत-चलैत.......भऽ गेल छलि।
उत्तर: अकच्छ।
प्रश्न: पिता ......खाए लेल मना केलन्हि।
उत्तर: अकर-धकर।
प्रश्न: रस्तामे बोन-झाकुँड़केँ आगिसँ जराओल जाइत रहए। ओहि आगिक लेल प्रयुक्त शब्द रहए...।
उत्तर: अगिनवान।
प्रश्न: अगिनवानमे केहन बोन-झाँकुड़ नहि जरल?
उत्तर: अक्खज।


आगाँ:-
कनी काल दुनू बाप बेटी गाछक छाहमे बैसि जाइ गेलाह। अंकिता उकड़ू भए बैसि गेलि आ उकसपाकस करए लागलि।

“अहाँकेँ उखी-बिखी किएक लागल अछि अंकिता? साँझ भऽ गेल अछि। कनेक काल आर चलब तँ घर आबि जाएत”।

तखने अकासमे अंकिता उकापतङ्ग देखलक।
“एक उखराहा चललाक बादो गामपर नहि पहुँचलहुँ”|
“चलू। चली। रस्ता धऽ कऽ चलू नहि तँ उड़कुस्सी देहमे लागि जाएत”।
“दिन रहितए तँ खेतमे ओड़हा खएतहुँ”।
“कलममे ओगरबाह सभ आबि गेल। कड़ेकमान अछि, अपन-अपन मचानपर”।
“इजोरियामे देखू। दिनमे बरखा भेल रहए से लोक सभ खेतमे कदबा केने अछि”।
“कमरसारि आबि गेल आ अपन सभक घर सेहो”।

टिप्पणी: पहिल भागमे अ उत्तरबला प्रश्न पूछल गेल छल। एहि भाग लेल “ओ” आ “क” वर्णसँ शुरू होअएबला उत्तर सभक लेल प्रश्न बनाऊ।
एहिना कचटतप वर्णमालासँ शुरु होअएबला शब्द बहुल खिस्सा बनाऊ आ बच्चाकेँ सुनाऊ आ फेर ओकरासँ प्रश्न पूछू। खिस्सा कताक बेर बच्चाकेँ सुनाओल जाए, से बच्चाक क्षमता आ कथामे प्रयुक्त शब्दावलीक संख्याक हिसाबसँ निर्धारित करू।
गजेन्द्र ठाकुर,जन्म ३० मार्च १९७१ ई.,गाम-मेंहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी,“विदेह” ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/ ,क सम्पादक जे आब प्रिंटमे सेहो मैथिली साहित्य आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि।१.छिड़िआयल निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, २.उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) ,३. पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर),४.कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ),५.नाटक(संकर्षण), ६.महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन)
आ ७.बाल-किशोर साहित्य (बाल मंडली/ किशोर जगत ) कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक (खण्ड १ सँ ७ ) नामसँ। हिनकर कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे आ उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद अंग्रेजी ( द कॉमेट नामसँ) आ संस्कृतमे कएल गेल अछि। मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोश आ पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यंतरण। अंतर्जाल लेल तिरहुता यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास।मैथिलीसँ अंग्रेजीमे कएकटा कथा-कविताक अनुवाद आ कन्नड़, तेलुगु, गुजराती आ ओड़ियासँ अंग्रेजीक माध्यमसँ कएकटा कथा-कविताक मैथिलीमे अनुवाद। ई-पत्र संकेत- ggajendra@gmail.com
३. पद्य


३.१. आशीष अनचिन्हार

३.२.पंकज पराशर - जखन नहि रहब
३.३. सुबोध ठाकुर- हम नहि छी अभिशाप
३.४. विवेकानन्द झा-रहैत छी अहीं मात्र रूप बदलि कऽ
३.५. सतीश चन्द्र झा-कन्यादान

३.६. डा.अजित मिश्र-मिथिला धाम
३.७. सुनील कुमार मल्लिक- घड़ी

३.८. ज्योति-पहिल फुहार

आशीष अनचिन्हार

गजल ९
देश चुल्हा मे गेल संसद मे हल्ला मचि रहल
राष्ट्र पर खतरा भेल संसद मे हल्ला मचि रहल

अकाल, बाढ़ि, भूकंप आबि चल गलैक
ए.पीक भत्ता लेल संसद मे हल्ला मचि रहल

घोटाला पर घोटाला बैसल कमीशन जाँचक
रिर्पोटक औचित्य लेल संसद मे हल्ला मचि रहल

टूटि गेल सपना मेटि गेल आजादीक अर्थ
निच्चा काँट उपर बेल संसद मे हल्ला मचि रहल

एकटा लाश भेटल बाट पर अनचिन्हार
ओकर जाति लेल संसद मे हल्ला मचि रहल

गजल १०
एहि रुपें सभ मे करार हेतैक
खाए लेल मनुखे जोगाड़ हेतैक

बनि गेल मीडिआ पोर्नोग्राफी
आब सए मे सए फिराड़ हेतैक

सेक्स, बलात्कार बढ़ि रहल अविराम
लोक मे बहिनोक ने विचार हेतैक

वयस सँ पहिनेहें बच्चा जवान
अर्पूणे पंचमे बर्खे रति-झमार हेतैक

चेतह अनचिन्हार कने बिलमि जाह
खने मे लोक बेसम्हार हेतैक
गजल ११
भोज ने भात हर-हर गीत की करू
लागल भूख कहू मीत की करू

जिनगी अजगुत जिबनिहार विचित्र
केखनो घृणा केखनो प्रीत की करू

प्रेम बदलि रहल समयो सँ बेसी
केखनो आगि केखनो शीत की करू

मनुख के पहिचानब बड्ड कठिन
केखनो बिग्घा केखनो बीत की करू

चललहुँ मिलाबए गरा सँ गरा
भेटल दुश्मन नहि मनमीत की करू

गजल १२

कीनल खुशी पर हसूँ कतेक
पलास्टिकक कंठ सँ बाजू कतेक

रहस्य बेपारक बुझबै नहुँ-नहुँ
देखू कमजोर हाथ मे तराजू कतेक

आधुनिको नहि उत्तर आधुनिक जुग
बच्चा बेचैत मनुख गर्जू कतेक

बिनु आँकरक भात कतए भेटत
कहू कओरे-कओरे थुकरु कतेक

अनचिन्हारक चश्मा लागल आखिँ पर
कहू दोसर लग हम बैसू कतेक
(अगिला अंकमे जारी)

पंकज पराशर
जखन नहि रहब
अहाँ उठबैत रहि जायब
अहाँ चिकरैत रहि जायब बेर-बेर देह डोलबैत थाकि जायब अहाँ
जखन नहि उठब हम चिरनिद्रा सँ

अहाँ केँ मोन पड़ैत रहत अपन क्रोध मोन पड़ैत रहत सबटा विरोध आ हम क्रोध-विरोध सँ दूर तकैत रहब अहाँ केँ अपलक लहास भेल
जरि जायब अहाँक क्रोधाग्नि सँ

छाउर होइत माटि भ’ जायब
आ समय केर बिहाड़ि मे उड़ि जायब !

सुबोध ठाकुर- गाम हैंठी-बाली, मधुबनी


हम नहि छी अभिशाप
हम नहि छी अभिशाप समाजक,
हम तँ छी आधार समाजक।

जुनि हमरा देख ठोर बिजकाऊ,
हमर बातपर ध्यान लगाऊ

सोचू जे हम बेटी नहि होएतहुँ जगमे
पुरुष कतएसँ अबितहुँ जगमे,
कतएसँ अबितए जीवन चक्र
मानवक जीवन होएतए वक्र,

हमरासँ अछि श्रृंगार समाजक,
हम नहि छी अभिशाप समाजक।

बौआ जे किनको होइन नगर-नगरसँ बधाइ जाइन,
होयतए बेटी तँ सभ लजाए कहाँसँ काली अएलउ दाइ,

बात ई अछि अति विचारक,
हम नहि छी अभिशाप समाजक,

हमर परिस्थिति बनल जाइ आओर विकट,
यंत्र सूक्ष्मदर्शीसँ आएल संकट,

दुनियाँमे आगमनसँ पहिले,
मुनियाँकेँ मारए छी पहिले,
ओ बाबू- मय चण्डाल समाजक,
हम नहि छी अभिशाप समाजक।

बनए छी हमहुँ इन्जीनिअर-डॉक्टर
हमर चमकसँ सेहो लजाए छथि भाष्कर,
मुदा ई अछि केहन लाचारी
तैयो बियाहमे लागए हजारी,
कहाँ गेला समाज सुधारक,
हम नहि छी अभिशाप समाजक,

हमहीं तँ ममता लुटबए छी
हमहीं जगक कष्ट उठबए छी,
कखनो बेटी कखनो माए
कखनो मृगनयनी कखनो दाए,
विविध भूमिकामे आबि कए,

करै छी हम उद्धार समाजक,
हम नहि छी अभिशाप समाजक,
उग्र जखन हम बेटी होए
चामुण्डा दुर्गा काली होए,
जखन शान्ति मुद्रामे होए,
जनक नन्दिनी सीआ होए,
कहाँ गेल सभ ज्ञान समाजक,
हम नहि छी अभिशाप समाजक,

नहि चाही हमरा आरक्षण,
छी हम अबला ताहि कारण,
हमरा चाही स्थान समाजक
हम तँ चाही वरदान समाजक,
हम नहि छी अभिशाप समाजक
हम तँ छी वरदान समाजक।

विवेकानन्द झा
रहैत छी अहीं मात्र रूप बदलि कऽ

नीक जॊकाँ पर्दा सँऽ घेरल
वातानुकूलित डिब्बा मे
यात्रा
दूरी मे नहि
समय मे कटैत छै
दू विपरीत दिशा मे
पड़ाइत विभिन्न संयॊग-वियॊगक
झलफलाइत स्मृतिकण सँऽ बनल
अमूर्त पटरी पर
खिड़की सँऽ बाहिरक बन्न दुनियाक केबाड़
फुजबाक कॊनॊ उपाय नहि देख
खुलि जाइत छैक
मॊनक गह्वर
पबैत छिएक
ओहि मे
रहैत छी
अहीं मात्र
रूप बदलि कऽ
नव-नव
मानॊ अन्हार कक्ष मे
जरैत एसगर दीपक
केर बातीक लौ
लहराइत हॊ
अहांक आँचरक हवा सँऽ
आ अहाँक स्मृति मे
थरथराइत हॊ
पीपरक सहस्र पात
ओहि गह्वरक रक्तरंजित
देबाड़ पर
प्रेमक विस्मयकारी
स्तंभित अवकाश आ विछॊहक निर्मम
दुराग्रही क्रियाशीलता बनि कऽ


सतीश चन्द्र झा,राम जानकी नगर,मधुबनी,एम0 ए0 दर्शन शास्त्र
समप्रति मिथिला जनता इन्टर कालेजमे व्याख्याता पद पर 10 वर्ष सँ कार्यरत, संगे 15 साल सं अप्पन एकटा एन0जी0ओ0 क सेहो संचालन।


कन्यादान
अछि आइ हमर क्षण ठहरि गेल।
जीवित तन अछि निष्प्राण भेल।
विपदा अपार, सगरो अन्हार
अन्हर बिहारि सन मोन भेल।

ई समय होइत अछि सम्मानक।
अछि सता रहल भय अपमानक।
जीवन केर सभसँ पैघ यज्ञ
अछि आबि गेल कन्यादानक।

पाषाण हृदय रक्तक बंधन।
के संग देत परिजन पुरजन।
परहित अछि दुर्लभ वस्तु आइ
अनका लेल कानत आन केहन।

धन सँ होइ छै संबंध गाढ़।
अर्थक बंधन सगरो प्रगाढ़।
के पूछत दुख सुख हाथ पकड़ि
धनहीन रही हम कतौ ठाढ़।

बीतल जीवन अछि अपन ध्यान।
परिजन सँ एखनो नीक आन।
किछु मांगि लेब जौं हुनका सँ
उपहासक भोगब व्यंग्य वाण ।


ककरा ककरा सम्मान करब।
की की असगर ओरियौन करब।
भेटत सुयोग्य वर कोना आइ
दानव समाज कें माँग भरब।

छथि हृदयहीन मैथिल समाज।
पढ़लो के नहि छै लोक लाज।
हे देव ! गगन सँ उतरि कहू
धनहीन कोना किछु करत काज।

कन्या केर जहिया जन्म भेल।
तहिये सँ अछि ओरियौन भेल।
गहना गुड़िया सभ पाइ -पाइ
रखलहुँ हम कन्यादान लेल।

रहि गेल मुदा तैयो अभाव।
नहि क’ सकलहुँ हम मोल भाव।
आँगन मे छी भयभीत ठाढ़
सागर मे कंपित जेना नाव।

की भेल पढ़ेलहुँ , देलहुँ ज्ञान।
नहि भेल समस्या के निदान।
अछि हमर सुता के ज्ञान व्यर्थ
छनि हुनक पुत्रा सबसँ महान।




छथि पिता पुत्रा के भाग्यवान।
हुनके छनि जग मे बनल मान।
हम कन्यागत छी तुच्छ लोक
हमरा लेल की अपमान -मान।

लौता अभद्र किछु बरियाती।
हमरे धन सँ घोड़ा हाथी।
हम रहब द्वार करबद्ध ठाढ़
काँपत भय सँ धक धक छाती।

की हैत कखन आदेश हुनक।
की मांग उठौता ओ दानक।
अछि देह छोड़ि सभ बिका गेल
ई केहन पर्व कन्यादानक।

अछि केहन देवता के विधान।
हम करब दान नेन्नाक प्राण।
दुख सुख भोगत जे हेतै भाग्य
जीवन भरि लागल रहत ध्यान।

ममता कें रहि रहि बहत नोर।
ताकत सगरो जौं हैत भोर।
के कहत नीक किछु समाचार
नाचत हर्षक आंगन विभोर ।




हमरो कखनो फाटत कुहेश।
रहि जैत मोन मे याद शेष।
कन्याधन सभदिन रहत कोना
आयत कहियो अवसर विशेष।

अछि प्रथा दहेजक महापाप।
के करत मुक्त अछि घोर शाप।
की लीखि रहल छी गीत नाद
सुनियौ सगरो , सुनबै विलाप।
डॉ अजित मिश्र, “आदित्य वास”, पाहीटोल, गाम सरिसव पाही
संप्रति राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, भारतीय भाषा संस्थानसँ सम्बद्ध।


( मिथिला-धाम )

चाननसन जत माटि बसै छै
ओहि माटिक हम वीर गे
लए चलबौ हम तोरा सजनी
पूर हेतौ सब आस गे ।। 1 ।।
ओहि माटिक हम बात कहै छी
जत पूरल सब आस गे
मा जानकीक संग पाबी के
चलल राम भगवान गे ।। 2 ।। लए चलबौ .........
कोइली चहु दिस कुहु-कुहु बाजए
विद्यापतिकेर गान गे
धीर अयाचीक साग- भातमे
जतए बसथि भगवान गे ।। 3 ।। लए चलबौ .........
बालोsम केर ज्ञान जतए छै
सीता मैय्याक ध्यान गे
साग-भातमे जतए बिराजै
स्वाभिमानकेर ज्ञान गे .।। 4 ।। लए चलबौ .........
शान्तिमयक जे पर्णकुटी छै
विश्वमंच पर मान गे
सतगुणकेर जे खान बनल छै
मिथिला तकरहि नाम गे ।। 5 ।। लए चलबौ .........
विद्या - ज्ञानक नाम जतए छै
सुमति मान-अपमान गे
गुरूसँ शिक्षा जतए सुलभ छै
पाबथि सभ सम्मान गे ।। 6 ।। लए चलबौ .........
जग भरि जत्तय शीश नबावे
बाट-घाट जत धाम गे
कण-कणमे जत सोन बिराजै
ओहि माटि परनाम गे ।। 7 ।।
चाननसन जत माटि बसै छै ................................
सुनीलकुमार मल्लिक
घड़ी
घड़ीमे
घण्टाेक सूइसँ बेसी
मिनटक सूइसँ बेसी
सेकेण्डमक सूइ चलै छै
मुदा
कतेक अनसोहाँत लगै छै
जे
सेकेण्डमसँ बेसी मिनटक

मिनटसँ बेसी
घण्टाँक मान भऽ जाइ छै
अहाँ खूब दौड़धूप करै छी
अहाँक मगजसँ
पसेनाक पमार बहैत रहैछ ।
माने, अहाँ खब चलायमान छी
मुदा,
घण्टाकक घुसकुनियाँजकाँ
अहाँक मालिकक मान
बेसी बढ़ि जाइ छनि
एना किएक ने होइ छै
जे चलबो अहीँ बेसी करितौँ

मान सेहो अहीँक बेसी रहैत !

ज्योति
पहिल फुहार
सूर्यक तीब्रता जलदक आवरणस घेरल
पूरा वातावरण छल उमस सऽ भरल
घुर्रिघुरि आबैत धूलक बसात ताहिपर
बरखाक पहिल फुहार धीपल माटिपर
शोन्हगर सन सुगन्ध सबदिस छितरल
जेना कुम्हारक कार्यविधि छल फेरल
गाछ पात पर जे गरदा छल पड़ल
टिपटिपी सऽ ठोपक निशान बनल
गर्मी हटाबैलेल कतेक अपर्याप्ति छल
मुदा सबतरि आस तऽ भरि देलक
जे आब नहिं वातावरण झरकत
सुखैल डारि सब एना नहिं बिलटत
पानि दिन राति झमरिकऽ बरसत
हरियर सतरंजी सबतरि पसरत

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