भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, August 08, 2009

त्याग पत्र-उषा किरण खान

विलास बाबा आइ पैंतीस
बरिसक उपरान्त मुखिया नहि रहलाह। मुखियाक पद ओ स्वेच्छासँ त्यागि देलनि। आब मोन
घोर भऽ
गेल छलनि। गामक समस्या सुरसाक
मुँह जकाँ बढ़ल चल जा रहल छलै। दस गामक मुखिया तँ छलाहे, दिशान्तरमे सेहो पर-पंचैती कर’क लेल बजाओल जा रहल छलाह। अपन हित-कुटुमक बाँट बखरा
होइ, कि जाति बन्हनक कोनो मामिला, विलास बाबाक गप्प लोक सुनै; लछुमन-रेखा जकाँ तीन डरीर पाड़ि कऽ ओ जे कहथिन से लोक हँसी-खुसी मानि लै।


बाल बच्चा सभटा कब्जामे छलनि विलास बाबाकेँ, पत्नी कहलमे रहनि। पाँच टा बेटामे सभसँ छोटका बेटा
बालुक पैकारी करैत छलनि, अपने पर-पंचैती आ गामक
डाक्टरी करैत छलाह। आर. एम. पी. के सर्टीफिकेट छलनि। माँझिल बेटा आ जमाइ ताहिमे
संग-साध देब’
लागल छलखिन। साँझिल दू टा
सहायक संगें ल’
कऽ बेनीपुरमे गाय महीसक बथान खोलि नेने छलाह। नीक कमाइ
होइ छलनि। ताहिसँ पैघ भाइ गूड़क व्यापार करैत रहनि, आ सभसँ पैघ बेटा अमीन छलनि, जे कतहु दक्खिनमे सरकारी
क्वार्टरमे रहै रहनि। सभक परिवार गामेमे रहनि। चैघरा हवेली छलनि। दुआरि पर
माल-महीस, कथूक कमी नहि। गामक स्कूलमे पोता-पोती पढ़ैत रहनि।
विलास बाबाकेँ बूझल छलनि जे अजुका समयमे बेटीकेँ सेहो पढ़ाएब जरूरी छै। नहि तँ ब’र-घ’र
नहिएँ टा भेटतै।


एके रंग समय विधना कहाँ ककरो लिखने रहै छथिन।
विलास बाबाक सरकारी अमीन बेटा बीमार पड़ि गेलखिन। पहिने तँ अधिक ख्याल नहि करै
गेलखिन। पछाति भेलनि कि कोनो असाध्य रोग छै। तखन बड़का डाक्टरसँ देखौलखिन। तावत रोग
हाथसँ बहार भऽ गेल छलै। रुपैया पैसा आ
डाक्टर वैद्य काज नहि अएलनि। बेटा हाथसँ चल गेलनि। विलास बाबाक शोक सांघातिक छलनि, मुदा ओ दीन-दुनिया देखने छलाह, बुझनुक लोक छलाह। सभटा काज छोड़ि सरकारी आॅफिसक चक्कर
काटए लगलाह। अनुकम्पाक आधार पर अमीन साहेबक बेटाकेँ सरकारी नोकरीक कागज भेटि गेलै।
एकटा काज सम्पन्न भेलनि। सवा बरिसक दौड़ा-दौड़ी काज देलकनि। बहुतो दिन बाद कतेक काल
धरि विलास बाबा दलानक चैकी पर अपन आश्वस्त मुद्रामे चितंग भेल पड़ल रहलाह। मोनमे
जड़िआएल पीड़ा आँखि बाटे बहए लगलनि। जाहि
पैघ बेटा पर हिनका सभसँ बेसी भरोस छलनि, से
एना चैरस्ता पर छोड़ि कऽ चल जेतनि, कहाँ जनै छलाह! गामे-गाम डाक्टरी करैत रहै छलाह, आ अपना करेजक टुकड़ीक गोर रंग पीयर भेल जा रहल छलनि, से नहि बुझल भेलनि। दलानक एक मुँह आँगनमे सेहो छलै।
ताहि दुरूखा बाटे अमीन साहेबक जेठकी बेटी प्रकट भेलनि आ कहलकनि-बाबा, खाइ ले आँगन चलबै, कि एत्तहि आनू?


कने काल धरि बेबूझ जकाँ पोतीकेँ तकैत रहलखिन।
फेर कहलखिन-चलह, आइ
आँगनेमे खाएब।


आँगन जेना अनभोआड़ भऽ गेल छलनि। दुआरि पर बैसल विलास बाबा देखलखिन-बूढ़ी बड़ लटि गेल छथिन। नेना सभ पैघ भऽ गेल छै आ ई अमीनक दुनू बेटी चम्पा आ चमेली समर्थ भऽ गेल छै। आब तँ एकर सभक कन्यादानक सेहो जोगाड़ कर’क हैत।


-ई भानस के केलक?-बाबा पोतीसँ पुछलखिन।


-छोटकी आ नबकी काकी।


-तों सभ नहि करै छह?


-ई सभ इसकूल जाइ छै।
लिखिया पढ़ियासँ पलखति हेतै तखन ने।-बूढ़ी बजलखिन।


-तइयो, घर आश्रमक काज सीख’क चाही।


पोती सभ नजर नीचाँ कएने
ठाढ़ि रहलनि। बाबा एखन ने कतहु पंचैतीमे बैसथि आ ने दवाइक दोकान पर। राति दिन पोती
सभक बियाहक चिन्ता करैत रहथि। नव-नव तथ्य सभ बाबाक सोझाँ उजागर होमए लगलनि। जेठकी
चम्पा, अइ बेर मैट्रिकक परीक्षामे बैसलनि। पास सेहो कऽ गेलनि।


-बाबा, हमरा काॅलेजोमे नाम लिखा दैह।


-कत’ हए?


-किऐ, बेनीपुरमे।


-कोना जएबह?


-बहुत लोक जाइ छै। पछबारि
टोलक तीन टा लड़की जाइ छै। अइ बेर फेर दू टा जएतै।


-अच्छा?-बड़ अचरज भेलनि विलास बाबाकेँ। ई तँ नहि खेआल केलखिन
कहियो। अपना गामक कामति आ पासवानक बेटी सभ काॅलेज जाए लगलै? नीक भेलै। जौं चम्पा जाए चाहैत अछि, तँ कोन बेजाए। बेटाकेँ कहलखिन चम्पाक नाम काॅलेजमे
लिखा देब’ लेल।


-किऐ, कोन काज छै आगू पढ़बाक? कह’क सिलाइ स्कूलक ट्रेनिंग लेतह।-छोटका बेटा विचार देलकनि।


-एकरा आगाँ पढ़बाक मोन छै, पढ़ए दहक। की हेतै।


-नहि बाबू, काॅलेजमे
की पढ़ाइ होइ छै आ कोन फस्र्ट डिविजनसँ पास केलक अछि। थर्ड डिवीजन बाली की करतइ
आगाँ पढ़ि कए। घरमे काज सीखए आ सिलाइक ट्रेनिंग ल’ लिअए।


-तों तँ बड़ विचित्रा गप्प
कहै छह। तोहूँ बी. ए. पास कऽ कए
बालुक बेपारी भेल छह कि नहि? ई बी. ए. कऽ घरमे रहतै तँ की?


-बाबू काॅलेज सभ फार्स
छै। पढ़ाइ नहि होइ छै। खाली विद्यार्थी सभ एक ठाम जमा भऽ अड्डाबाजी करैत छै।


-नेना कहलक अछि। बाप नहि छै। आइ रहितै तँ अपना संग
राँची ल’ जैतै। हमरा उचित नहि बुझि पड़ैत अछि बरजब। नाम लिखा
दहक। पछवारि टोलक बचिया सभक संगें जएतै।


पिताक तर्कक सोझाँ बेटा
चुप भऽ
गेल। चम्पाक नाम काॅलेजमे लिखा
गेलै। चम्पा बेनीपुरक काॅलेज जाए लागल। एम्हर विलास बाबा गामे गाम ब’र तकैत घूरि रहल छलाह। एक ठाम एक टा ब’र पसिन पड़लनि। प्राइमरी स्कूलमे ओ मास्टर छलै। सरकारी
नोकरी छलै। बेटा सभकेँ बजा पठौलनि।


-बाबा-चम्पा छलैन।


-की?


-हम एखन बियाह नहि करब।


-किऐ?


-ओहिना!


-बताहि नहितन, तोहर बियाह करब तँ हमर कत्र्तव्य अछि।


-बाबा हम आगू पढ़ब। बी. ए.
पास करब।


-तँ पढ़िते छें, के मना करै छौ?


-बियाह करब तखन...।


-पढ़ुआ वर छौ, मास्टरी करैत छौ। तोरा पढ़’मे कोनो बाधा नहि रहतौ।


-ताहिसँ की, हम किन्नहुँ नहि करब।-पैर पटकैत चम्पा चल
गेलै।


विलास बाबा अवाक।


-हूँ, ई
छौंड़ी बड़ जिद्दी अछि। ककरो कहल की बूझै छै। जे कहलक से कहलक, हिनको बुझेने नहि बुझतनि। आब की करताह।-बूढ़ी दुरूखामे ठाढ़ि सभटा सुनैत रहथिन से बजलखिन।


-ऐं?-विलास बाबा सोचमे पड़ि गेलाह। अपन अति व्यस्त जिनगी आ सद्यः सोग हिनका ककरो दिस
तकबाक पलखति नहि देने छलनि। आब की करताह? बेटा
सभकेँ बजौने छथि। ओएह सभ किछु विचार देन्हि तँ देन्हि। कका सभ बेसी नीक जकाँ बुझा
सकै छै। ई ब’र छूटि जेतै तँ फेर भेटनाइ मसकिल। पीठहि पर चमेली छै।
ओहो अइ बेर काॅलेज जाए लागल अछि। राति भरि नीन नहि अएलनि। दोसर दिन बेरूक पहर तक
चारू बेटा आ जेठका पोता दन-दन कऽ जूमि
गेलनि। बाबाक चिन्तित चेहरा देखि बेटा सभ कने ठमकि गेलाह। फेर मोनमे अएलनि, आइ पहिले पहिल बेटा सभसँ मंत्राणाक बेर उपस्थित भेलनि
अछि, आ ताहिमे जेठ जन नहि छथिन, से विचारि बाबू उदास छथि।


-बाबू की गप्प छै?-छोटका पुछलखिन।


-हँ, ताही लेल तँ बजौलियह।
कुसीपुर गामक ब’र तकने छी। दस बीघाक जोत छै बापकेँ। छह बहिनिक बियाह भऽ गेल छै। सरकारी प्राइमरी स्कूलमे मास्टर छै। विचार
करह, की करबह?


-जे ब’र-घ’र
अहाँकेँ पसिन भेल, ओ कोनो काटैबला हेतै? अहाँ हमरा सभकेँ आज्ञा करिऔ। जे कहबै-माझिल छलै।


-बाउ, हमरा बूझल छल। तोरा लोकनि इएह गप्प कहब’। तैयो बजाएब हमर कत्र्तव्य छल, मुदा आब एकटा आर समस्या ठाढ़ भऽ गेल अछि।


-की बाबू-छोटका मुहलगुआ छलनि।


-चम्पा कहैत अछि जे ओ बियाहे ने करत, ओ बी. ए. पास करत।-छोटकाकेँ छोड़ि सभ बेटा
भकुआ जकाँ मुँह ताकए लगलनि। छोटका हँसए लगलनि।


-हौ बाबू, हम तोरा पहिने कहने रहियह। ओकरा गामसँ बाहर काॅलेज
कथी लए पठौलह। आब भोगह।


-मत्तोरी, काॅलेज तँ नितदिन जाइत अछि आ चल अबैत अछि, ताहिमे कोन...।


-इएह ने तों नहि बुझबहक।





ओम्हर चम्पा चमेलीक गप्प
भऽ रहल छलै। चम्पा मुँह चढ़ओने छल। चमेली पुछलकैक-आब? आब तँ सभटा काका आबि गेलै। छोटका काकाकेँ जखन
किछु-किछु बूझल हेतै, ओ तोहर भेद खोलि देतौ।
रहि जएबें मुँह बबैत।


-चमेलिया, तों हमर संग देबें से नहि, उनटे कपार खाइ छें।


-की संग दिअउ?


-बाबू आ कका सभकेँ कहि दही जे मुखियाक बेटा विजयसँ
चम्पाकेँ बियाह करक मोन छै।-चमेलीक सगर शरीर बसातमे डोलैत भालरि भऽ गेलै। कने काल बकार नहि फुटलै।


-कहि अबै छही की नहि।


-नहि।


-किऐ?


-हमरा लाज होइत अछि आ डर
सेहो।


-तोरा किऐ लाज होइ छौ? चम्पाक सोझाँ चमेली दबल-दबल रहै। ओकरा किछु नहि फुरैत रहै। विजय संगें चम्पाक
मेल जोल देखि ई तेहन ने ठिसुआएल रहए, जेना
चोरनी हो। चम्पा,
अपन प्रेमक व्याख्या
भाँति-भाँति सुनबए, चमेलीकेँ। आ स्वयं ओ ई
सब विजयसँ सीखए। भारी स्वरमे चम्पा पर विजयक कएल प्रेम रसक आलेपन तेहन भऽ गेल छलै जे ओ आगाँ-पाछाँ नहि विचारै। ओकरा विजयक
अतिरिक्त कहाँ किछु बुझाइत छलै।


-तों जा कऽ बाबाकेँ कहुन। नहि तँ हम स्वयं जा कऽ कहबनि।-चम्पा आवेशमे आबि गेल
छल।





बाबा, सभ बेटाक मुखाकृति एका एकी देखि बुझि गेलाह जे हिनका
सभसँ कोनो समाधानक आशा नहि कएल जा सकैत अछि। ई सभ आइ धरि कोनो स्वतंत्रा निर्णय
नहि नेने छथि। मुदा छोट जन बाजल-बाबू, चम्पासँ
पुछहक बजा कऽ,
किऐ जिद धएने छह।


चम्पा संग चमेली दलानमे आबि जूमल। साओनक बरखा
अपन सुर-ताल पर छम-छम बरसि रहल छलै। चमेली थर-थर कँपैत ठाढ़ि छलै।


चम्पा सोझे-सोझे बाबा आ
कका सभ दिस तकैत बाजल-कोन अतराहति बीति रहल अछि हमरा बियाहक। एखन हम अठारहम
बरिस पार नहि कएलहुँ आ अहाँ सब बैलाबए चाहै छी। दू बरिस आर अपन घरमे रहए नहि देब
बाबा-छओ मुण्ड आ बारह आँखि चम्पाक मुँह पर ताकए लागल।
निर्वाक्। चमेलीक थरथरी थम्हि गेलै; ओ
निसाँस छोड़लक। चम्पा काते-कात निमहि गेल।


-आब जखन तों एहन गप कहलह
तँ हम तोरा दू बरिस नहि टोकबह।-सब हरे हरे कऽ उठि गेलाह। मुदा छोट जन अपना मोपेडसँ बेनीपुर काॅलेजक जखन-तखन चक्कर काटए
लगलाह। चम्पा आ विजयक प्रेम काॅलेजक हत्तामे कहाँ भेल छलै। ओ तँ गामहिमे, नेनहिसँ फुलाइत छलै। विजय चम्पासँ दू बरिस पहिनहि
मैट्रिक पास कएने छलै, मुदा काॅलेज पढ़ए नहि
गेलै। गंजक गंज किताब पढ़ए, गामे गाम मिटिंग करैत
घुरए। चम्पाकेँ कहैक जे तोंहूँ दिन-दुनियाक खबरिक वास्ते नीक जकाँ प’ढ़-लिख। किछु अपन पढ़एबला किताब ओकरा दै, मुदा चम्पा लेखें ओ किताब जेना अरबी-फारसी होइ।
एक्कोटा शब्दक अर्थ ओकरा नहि बुझाइ। ओकरा विजय नीक लगै आ विजयकेँ चम्पा।


-विजय, देख त’, हमर
ई नब कर्णफूल केहन लगलौ।-चम्पा कहैक। विजय देखि कऽ हँसि दै।


-हँसै किए छें?


-नीक छौ, चम्पा
खूब पढ़ि-लिखि कऽ डिग्री ले, आ अपनाकेँ तैयार कर। हमरा संग चल’क छौ तँ अपना पर ठाढ़ हो। तखन दुनू गोटा संग भऽ कऽ असमानता
समाप्त करबै समाजक।


-धुर, से कतौ भेलै अछि।


-हेतै, सभटा
हेतै।-विजय उत्साहमे जे किछु कहै से अइ सम्पन्न विलास बाबाक
पोतीकेँ नहि बुझाइक। ओकरा ओकर मुद्रा, भंगिमा
आ ओजपूर्ण स्वर नीक लगै। सम्पूर्ण अस्तित्व रोमांचित भऽ जाइ।


-विजय-एक दिन चम्पा ओकरा कहलकै-बाबा आ कका सब हमर विवाह करएबाक तैयारीमे छथि।


-हूँ, ककरासँ?


-अपनामे गप करैत रहथि, हम सेहो बीचहिमे जूमि गेलिअनि तँ हमरोसँ गप भेलनि।


-की गप्प?


-हम कहलिअनि जे हम बी. ए.
पास कएलाक बाद बियाह करब।


-ठीक, सही कहलें।


-विजय, तोहूँ तावत कोनो रस्ता पकड़ि लेबें।


-हम? हम कोन नब रस्ता पकड़ब? हमर तँ सुनिश्चित गन्तव्य अछि। आ से तुरत कत्तए भेटए
बला? हमरा स्वयं सम्पूर्ण जीवने संघर्ष बुझि पड़ै अछि।
बुझलें?-चम्पाकेँ नाक पकड़ि डोला देलकै विजय।


-तखन बियाह कहिया करबें?


-कहियो नहि चम्पा, कहियो नहि। हमरा लेल बियाह बनले नहि छै।


चम्पाक आगाँ धरती आकाश घुमए लगलै। ओकरा मोन
भेलै जे ओ विजयकंे भरि पाँजकेँ ध’ लिअए
आ कहै-तों एहन गप्प किऐ करैत छें। हम तँ तोरे बल पर अपना
बाबाक सोझाँ ठाढ़ भऽ गेलौं। हम तँ जागल, सूतल तोरे सपना आँखिमे बन्न कएने रहै छी।-चम्पा एकटा सोझ गामक कन्या, ओकर सपना बिछिया-पायल
पहिरि मात्रा बियहुती होमक। ओ की जानए गेलै, जे
बनैया आगिक उड़ैत चिनगीसँ स्थायी प्रकाश नहि होइत छै। ओकरा आँचरमे समटल नहि जा सकैत
अछि।


-चम्पा की भेलौ, बड़ गुम-सुम छें।-चमेली ओकर मन्हुआएल
चेहरा देखि पुछए लगलै। चम्पा चुप्पे रहल। कोनो ने कोनो लाथ लगाए काॅलेज सेहो नहि
जाए। विलास बाबा कैक बेर पुछलखिन, किछु
जवाब नहि। चमेलीकेँ बजा कऽ पुछलखिन।
ओहो जवाब नहि देलकनि। पोखरि पर जामुन गाछ तर बैसि कऽ गप्प करैत कैक दिन छोटका कका विजय आ चम्पाकेँ देखने छलै, मुदा विजयक प्रकृति जानि ओ कोनो प्रकारक भाव नहि बुझि
सकल छलै। एक दिन चमेलीकेँ नहि रहल गेलै, आ
ओ कहि देलकै,
जे चम्पा विजयसँ बियाह करए
चाहै’ए। एखन की भेलै’ए
से ओ नहि जनै अछि। छोटका ककाकेँ तरबाक लहरि मगज पर फेकि देलकै। ओ सोझे दलान पर
जूमि गेलै।


-बाबू, आर सहकाबहक छौंड़ीकेँ, ओ ओइ दहियरबासँ बियाह करत’।


-ऐं?


-ऐं की?


-ऐं की के की मतलब? कहबह तखन ने बुझबै।


-की कहब’, ओइ सुमिरन दहियारक बेटा विजइया, चम्पासँ बियाह करत। किसनौतमे की लड़िकाक अकाल भऽ गेल छै। सिनेमा बुझि लेलक गामकेँ?


-हूँ-विलास बाबा मूड़ी नीचा कऽ कए
विचारए लगलाह।


-की विचारै छह, बाप दुधीक दही बेचि गुजर करैत छै आ बेटा गामे गाम
कमैटी बैसौने रहै अछि। जाइ छिऐ आइ हम ओकर कपार...।


-हौ बाउ, एना
आगुताबह जुनि;
तों आइ काल्हुक लोक छह, हम पुरान भेलहुँ। एहन कतोक पंचैती कैने छी। चम्पाकेँ
बुझा सुझा कऽ देखहक। ओ जिद्दी अछि।
जिदपनीमे कोनो ऊंच-नीच भऽ जेतैक।
अपयश होएतहु।


-तों करह पूछा-पूछी, हम ओइ छौंड़ाकेँ देखए जाइ छी।


-सुनह, अगुताह नहि।


-चम्पा कहतह आ जिद करतह
तँ ओकरासँ बियाहि देबहक।


-की हेतै, दहियार छै तँ। आइ-काल्हि तँ किसनौत सभमे बियाह करैत
अछि। सुुकुर मनाबह, जौं परजाति होइतै तखन?


-बाबा, तोहूँ जुलुम कैलह। ओइ विजैयाक ओतए सुपारी ल’ कऽ जेबह!


-की हेतै?


-बाबा-चम्पा आबि कऽ ठाढ़ि भऽ गेलै। उदास आ पीयर मुखसँ। सभक दृष्टि ओम्हरे चल गेलै।


-बाबा, ई
चमेली अनेरे कहलक। हम विजयसँ बियाह कर’ लेल
उताहुल रही, ओ नहि। ओ तँ कहलक जे ओ कहियो बियाह नहि करतै, ओकर रस्ता अलग छै।


-बाबा, हमर
बियाह जत्त’ ठीक करै छलौं तत्तहि कऽ दिअ’, अही
शुद्धमे।-नहूँ नहूँ मुरछल सन चम्पा आँगन चल गेलै। बियाह दान
हेबाक छलै, भेलै। चम्पा सासुर गेल।


एहन केस? बिनु वादी-प्रतिवादीक, बिनु फैसलाक केस मरि
गेलै। विलास बाबा मुखियागिरीसँ त्यागपत्रा दऽ देलनि।
आब ओ खाली छथि।

3 comments:

  1. Rama Jha10:11 PM

    bad nik prastuti

    ReplyDelete
  2. Madhyam bargiya samasya je swam sa swam k dwanda badhabai chhai. tahi k bad nik prastuti kailain. padhaita kal lagal je USHA JI hridaya me pais ka sit ritu k pat pirayal gachha rupi aatma k jor sa hilaba lagal hothi. aa sampurna pat khasi gel ho aa thuthha gachha banal stabdha bhel thadh rahi. Bad Nik , Prayas jari rahi

    ReplyDelete
  3. Mohan Mishra7:56 AM

    bad nik kathak prastuti

    ReplyDelete

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6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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