भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, September 12, 2009

पेटार ३२

जगदीश प्रसाद मंडल

90. बिसाँढ़ पछिला चारि-सालक रौदी भेने गामक सुरखिये बेदरंग भऽ गेल। जे गाम हरियर-हरियर गाछ-बिरीछ, बन्न स लहलहाइत खेत, पानि स इनार-पोखरि, सैकड़ो रंगक चिड़ै-चुनमुनी, हजारो रंगक कीट-पतंग स लऽ कऽ गाय, महीसि, बकरी स भरल रहैत छल ओ मरनासन्न भऽ गेल। सुन-मसान जेँका। बीरान। सबहक (गामक लोकक) मन मे एक्के टा विचार अबैत जे आब इ गाम नै रहत। जँ रहबो करत त सिर्फ माटिये टा। किऐक त जहि गाम मे खाइक लेल अन्न नहि उपजत, पीवैक लेल पानि नहि रहत, तहि गामक लोक कि हवा पीबि कऽ रहत। जहि मातृभूमिक महिमा अदौ स सब गबैत अएलाह ओ भूमि चारिये सालक रौदी म पेटकान लाधि देलक। मुदा तइओ लोकक टूटैत आशाक वृक्ष मे नव-नव फुलक कोढ़ी टुस्साक संग जरुर निकलि रहल अछि। किऐक त आखिर जनकक राज मिथिला छिअए की ने। जहि राज्य मे बाहर-बर्खक रौदीक फल सीता सन भेटल तहि राज मे, हो न हो, जँ कहीं ओहने फल फेरि भेटए। एक दिशि रौदीक (अकालक) सघन मृत्युवाण चलैत त दोसर दिशि स आशाक प्रज्वलित वाण सेहो ओकर मुकावला करैत। जेकर हसेरियो नमहर। ऐहनो स्थिति मे दुनू परानी डोमनक मन मे जीबैक ओहने आशा बनल रहल जेहने सुभ्यस्त समय मे। कान्ह पर कोदारि नेने आगू-आगू डोमन आ माथ पर सिंही माछ आ बिसाँढ़ स भरल पथिया नेने पाछु-पाछु सुगिया, बड़की पोखरि स आंगन, जिनगीक गप-सप करैत अबैत। चाइनिक पसीना दहिना हाथ स पोछि, मुस्कुराइत सुगिया बाजलि- ‘जकरा खाइ-पीबैक ओरियान करैक लूरि बुझल छैक ओ कथीक चिन्ता करत?’ पत्नीक बात सुनि डोमन पाछु घुरि सुगियाक चेहरा देखि बिनु किछु बजनहि, नजरि निच्चा कऽ आगू डेग बढ़बै लगल। किऐक त खाइक ओते चिन्ता मन म नहि, जते पीबैक पाइनिक। डोमन कऽ अपन खेत-पथार नहि मुदा दुनू बेकती तेहन मेहनती जे नहियो किछु रहने नीक-नहाँति गुजर करैत। गिरहस्तीक सब काजक लूरि रहितहुँ ओ कोनो गिरहस्त स बन्हायल नहि ओना समय-कुसमय, अपना काज नहि रहने, बोइनो कऽ लइत। अपना खेत नहि रहने खेती त नहिये करैत मुदा दस कट्ठा मड़ुआ, सब साल बटाइ रोपि लइत। जहि स पाँच मन अन्नो घर लऽ अबैत। मड़ुआ बीआ उपजबै मे बेसी मिहनत होइत अछि किऐक त सब दिन बीआ पटबै पड़ैत अछि। शुरुहे रोहणि मे बड़की पोखरिक किनछरि मे डोमन बीआ पाड़ि लइत। लग मे पानि रहने पटबैयोक सुविधा। आरु बीरार, तेँ बीओ नीक उमझैत। पनरहे दिन मे बीआ रोपाउ भऽ जायत। मिरगिसिया मे पानि होइतहि अगते मड़ुआ रोपि लइत। मुदा अहि (एहि) बेरि से नइ भेलइ। बरखा नहि भेने बीआ बीरारे मे बुढ़हा गेल। एक्को धुर मड़ुआक खेती गाम मे नहि भेलइ। आने कियो अखन धरि धानक बीरार क खेत जोतलक आ ने बीआ वाओग केलक। रौदीक आगम सबहक मन मे हुअए लगल। मुदा तइओ ककरो मन मे अन्देशा नहि! किऐक त ढ़ेनुआर नक्षत्र सब पछुआइले अछि। जहिना रोहणि-मिरगिसिया फांेक गेल तहिना अद्रो। समय सेहो खूब तबि गेलइ। दस बजे स पहिनहि सब बाध स आंगन आबि जायत। किऐक त लू लगैक डर सबहक मनमे। मड़ुआ खेती नहि भेने दुनू परानी डोमनक मन मे चिन्ता पैइसै लगल। बड़की। पोखरि स दुनू परानी पुरैनिक पातक बोझ माथ पर नेने अंगना अबैत। बाट मे सुगिया बाजलि- ‘अइ बेरि एक्को कनमा मड़ुआ नइ भेल। बटाइयो केने आन साल ओते भऽ जायत छल जे सालो भरि जलखै चलि जाय छल। अइबेरि ते जलखइओ बेसाहिये कऽ चलत।’ माथ परक पुरैनिक पातक बोझ स पानि चुवैत। जे डोमनो आ सुगियो कऽ अधभिज्जु कऽ देने। नाक परक पानि पोछैत डोमन उत्तर देलक- ‘कोनो कि हमरे टा नइ भेल आ कि गामे मे ककरो नै भेलइ। अनका होइतइ आ अपना नै होइत तखन ने दुख होइत। मुदा जब ककरो नै भेलइ तऽ हमरे किअए दुख हैत। जे दसक गति हेतइ से हमरो हैत। अपना त रोजगारो (पुरैन-पातक विक्री) अछि आ जेकरा इहो ने छै?’ डोमनक उत्तर सुनि मिरमिरा कऽ सुगिया बाजलि- ‘हँ, से त ठीके। मुदा ठनका ठनकै छै ते कियो अपने माथ पर ने हाथ दइ अए। तखन तऽ इ (रौदी) इसरक (ईश्वरक) डाँग छी, लोकक कोन साध।’ अखन धरिक समय कऽ कियो रौदी नहि बुझलक। किऐक त सबहक मन मे यैह (अइह) होइत जे इ त भगवानक लीले छिअनि। जे कोनो साल अगते स पानि (बरखा) हुअए लगैत त कोनो साल अंत मे होइत। कोनो साल बेसिओ होइत त कोनो साल कम्मो। कोनो-कोनो साल नहिये होइत। जहि साल अगते बिहरिया हाल भऽ जायत ओहि साल समय पर गिरहस्ती चलैत मुदा जहि साल पचता पाइन होइत तहि साल अधखड़ू खेती भऽ जायत। मुदा जखन हथिया नक्षत्र धरि पानि नहि भेलि, तखन सबहक मन मे अबै लगल जे अइबेरि रौदी भऽ गेल। ओहिना जोतल-बिनुजोतल खेत स गरदा उड़ैत। घास-पातक कतौ दरस नहि। मुदा तेँ कि लोक हारि मानि लेत। कथमपि नहि। सब दिन स गामक लोक मे सीना तानि कऽ जीबैक अभ्यास बनल अछि ओ पीठि कोना देखाओत? भऽ सकैत अछि जे भगवान (दन्द्र) कोनो चीजक दुख भऽ गेल हेतनि। जहि स बिगड़ि कऽ ऐना केलनि। तेँ हुनका वौंसब (बओसबे) जरुरी अछि। जखने फेरि सुधरि जेताह तखने स सब काज सुढ़िया जायत। अइह (यैह) सोचि कियो अन्न दान (भुखल दुखल कऽ खुऔनाइ) त कियो कीर्तन (अष्टयाम, नवाह) त कियो यज्ञ-जप (चंडी, विष्णु) त कियो महादेव पूजा (लिंग) इत्यादि अनेको रंगक वौंसैक ओरियान शुरु केलक। जनिजाति सब कमला-कोशी कऽ छागर-पाठी कवुला सेहो करै लगलीह। किऐक त जँ हुनकर महिमा जगतनि त बिनु बरखोक बाढ़ि अनतीह। बाढ़ि आओत पोखड़ि-झाखड़ि स लऽ कऽ चर-चैरी, डोह-डावर सब भरत। रौदी कमत। अधा-छिधा उपजो हेबे करत। बरखाक मकमकी देखि नेंगरा काका महाजनी बन्न कऽ लेलनि। किऐक त ओ बुझि गेलखिन जे अइ बेरक रौदी अगिला साल विसाइत। मुदा सोझ मतिया बौकी काकीक सब चाउर सठि गेलनि। ओना बौकी काकीक लहनो छोट। सिर्फ चाउरेक। सेहो पावनिये-तिहार धरि समटल। हुनकर महाजनी मातृ-नवमी, पितृपक्ष (खाइन-पीउन) स शुरु होइत। पाहुन-परकक लेल दुर्गापूजा, कोजगरा होइत दिवाली परवेब (गोवर्धनपूजा) भरदुतिया, छठि होइत सामा धरि अबैत-अबैत सम्पन्न भऽ जायत छलनि। किऐक त सामा केँ सब नवका चूड़ा खुआबैत। खुऐबे टा नहि करैत संग भारो दइत। ताधरि कोला-कोली धानो पकि जायत। मुदा से बात बौकि काकी वुझवे ने केलखिन जे अइबेर रौदी भऽ गेल। तेँ अपनो खाई ले किछु नहि रखलथि। जहिना बोनिहार, किसान तहिना महाजन वौकियो काकी भऽ गेलीह। अगहन अबैत-अबैत सबकेँ बुझि पड़ै लगलैक जे अपने की खायब आ माल-जाल कऽ की खुआएब। किऐक त कातिक तकक ओरियान (अपनो आ मालो-जालक लेल) त अधिकांश लोक पहिनहि स कऽ कऽ रखैत। जे नेंगरा काका छोड़ि सबहक सठि गेलनि। धानोक बीआ सब कुटि-छाँटि कऽ खा गेल। धानक कोन गप जे हालक दुआरे रब्वियो-राई हैब, कठिन। सभहक भक्क खुजल। भक्क खुजितहि मन मे चिन्ता समाइ लगल। जना-जना समय बीतैत तना-तना चिन्तो फौदाइत। एक त ओहिना चुल्हि सब बन्न हुअए लगल तइ पर स सुरसा जेँका समय मुह बाँबि आगू मे ठाढ़। चिन्ता स लोक रोगाइ लगल। भोर होइतहि धिया-पूताक बाजा सौंसे गाम बजै लगैत। मौगी पुरुख कऽ करमघट्टू त पुरुख मौगी कऽ राक्षसनी कहै लगल। जहि स धिया-पूताक बाजाक संग दुनू परानीक (पति-पत्नीक) नाच शुरु भऽ जायत। मुदा ऐहन समय भेलो पर दुनू परानी डोमनक मन मे एक्को मिसिया चिन्ता नहि। किऐक त जूरे-शीतल स पुरैनिक पातक कोरोवार शुरु केलक। कोरोबार नमहर। बावन बीधाक बड़की पोखिरि। जहि मे सापर-पिट्टा पुरैनिक गाछ। बजारो नमहर। निरमली, घोघरडिहा, झंझारपुर स्टेशनो आ पुरनो बजार। असकरे सुगिया कते बेचत। किऐक त पुरैनिक पात कीनिनिहार हलुआइ स लऽ कऽ मुरही-कचड़ी वाली धरि। तइ पर स भोज-काज मे सेहो विकायत। तेँ आठ दिन पर पार लगौने रहए। भरि दिन डोमन पत्ता तोड़ि-तोड़ि जमा करैत। एक दिन कऽ सुगिया पत्ता सरिअवैत (गनि-गनि) तेसरा दिन भोरुके गाड़ी स वेचइ ले जायत। जे पात उगड़ि जाय ओकरा डोमन सुखा-सुखा रखैत। किऐक त सुखेलहो पातक बिक्री होइत। निरमली स पात बेचि क सुगिया आबि पति (डोमन) कऽ कहलक- ‘रौदी भेने अपन चलती आबि गेल।’ चलतीक नाम सुनि मुस्की दइत डोमन पुछलक- ‘से की?’ ‘सब बेपारी (पात बेचिनिहार) थस ल लेलक। सब गामक पोखरि सुखि गेलइ जहि (जइ) स सबहक कारे-बार बन्न भऽ गेलइ। अपने टा पात बजार पहुँचै अए। आइ त जहाँ गाड़ी स उतड़लहुँ कि दोकानदार सब सब पात छानि लेलक। टीशने पर छुह्हका उड़ि गेलि।’ डोमन- ‘अहाँ कऽ लूरि नइ छले जे दाम बढ़ा दीतिऐ एक क दू होइत।’ सुगिया- ‘अगिला खेप स सैह करब।’ आब त बड़िड़्यो जुआइत हैत की ने?’ डोमन- ‘गोटे-गोटे जुआइल हेँ। मुदा बीछि-बीछि तोड़ै पड़त। तेँ पाँच दिन आरो छोड़ि दइ छिअए।’ तेसर साल चढ़ैत-चढ़ैत गामक एकटा बड़की पोखरि आ पाँच टा इनार छोड़ि सब सुखि गेल। नमहर आँट-पेटक बड़की पोखरि। किऐक त दइतक (दैतक) खुनल छी कीने? लोकक खुनल थोड़े छिअए। देव अंश अछि। तेँ ने गामक सब अपन बेटा कऽ उपनयनो आ विआहो मे ओही पोखरि मे नहबै अए। ततबे नहि, छठि मे हाथो उठबै अए। हमरा इलाकाक पृथ्वियोक (धरतियोक) बनाबटि अजीव अछि। बुझू ते माइटिक पहाड़। पाँच स फुट निच्चा धरि ने बाउल (बौल) अछि आ ने पानि। शुद्ध माटि। जहि स ने एक्कोटा चापाकल आ ने बोरिंग गाम (इलाका) मे। पाइनिक दुआरे गामक-गाम लोक कऽ पराइन लगि गेल। माल-जाल उपटि गेल। चाहे त लोक बेचि लेलक वा खढ़ पाइनिक दुआरे मरि गेल। अधा स बेसी गाछो-विरीछ सुखि गेल। चिड़ै-चुनमुनी इलाका छोड़ि देलक। जे मूस अगहन मे अंग्रेजी बाजा बजा सत-सत टा विआह करैत छल, ओ या त बिले मे मरि गेल वा कतऽ पड़ा गेल तेकर ठेकान नहि। अधा स बेसिये लोक हमरो गामक पड़ा गेल। मुदा तइओ जिबठगर लोक गाम छोड़ै ले तैयार नहि। पुरुख सब गाम छोड़ि परदेश खटै ले चलि गेल। मुदा बालो-बच्चा आ जनि-जातियो गामे मे रहल। पोखरि-इनार कऽ सुखैत देखि, पानि पीवैक लेल बड़किये पोखरिक कतबाहि मे कुप खुनि-खुनि लेलक। अपन-अपन कुप सभकेँ। पाइनिक कमी नहि। तीनि सालक जे रौदी इलाकाक (परोपट्टाक) लेल वाम भऽ गेल ओइह डोमनक लेल दहिन भऽ गेल। काज त आने साल जेँका मुदा आमदनी दोबर-तेबर भऽ गेलइ। गामक जमीनोक दर घटल। जहि स डोमन खेत कीनए लगल। ओना सुगियाक इच्छा खेत (जमीन) कीनैक नहि। किऐक त मन मे होय जे एहिना रौदी रहत आ खेत सब पड़ता रहत। तेँ, अनेरे खेत ल कऽ की करब। मुदा मालो-जाल त, घास-पाइनिक दुआरे, नहिये लेब नीक हैत। मुदा डोमनक मन मे आशा रहए जे जहिना लुल्हियो कनियाँ बेटा जनमा कऽ गिरथाइन बनि जायत, तहिना त पानि भेने परतियो खेत हैत की ने। योगी-तपस्वीक भूमि मिथिला, अदौ स रहल। जे अपन देह जीवि-जन्तुक कल्याणक लेल गला लेलनि। ओ कि एहि बात कऽ नहि जनैत छलथिन। जनैत छलथिन। तेँ ने गाम मे अट्ठारह गण्डा (72) पोखरि, सत्ताइस गण्डा (108) इनार क संग-संग चैरी मे सैकड़ो (सइओ) कोचाढ़ि (बिरइ) खुनि पाइनिक बखारी बनौने छलाह। सोलहो आना बरखे भरोसे नहि, अपनो जोगार केने छलाह। तीनि साल त दुनू परानी डोमन चैन स बितौलक। मुदा चारिम साल अबैत-अबैत बेचैन हुअए लगल। किऐक त गामक सब पोखरि-इनार त पहिनहि सुखि गेलि छल। ल दऽ कऽ बड़की पोखरि टा बँचल। तहू मे सुखैत-सुखैत मात्र कठ्ठा पाँचे मे पानि बचल। सुखल दिशि पुरैनियो उपटि गेल। बीच मे जे पानि, ओही मे पुरैनिक गाछ रहए, मुदा जाँध भरि स उपरे गादि। पैसब महा-मोसकिल। किऐक त पाएर दइते सर-सरा कऽ जाँघ भरि गड़ि जायत। के जान गमबै पैसत। निराशाक जंगल मे डोमन वौआ गेल। मन मे हुअए लगलै जे जहिना गामक लोक चलि गेल तहिना हमहूँ चलि जायब। जानि कऽ परानो गमाएव नीक नहि। जिनगी बचत, समय-साल बदलतै त फेरि घुरि कऽ आयब नहि त कतौ मरि जायब। जहिना गामक सब कुछ बिलटि गेल, समाजक लोक बिलटि गेल, तहिना हमहूँ बिलटि जायब। पति कऽ चिन्तित देखि सुगिया- ‘किछु होय अए? ऐना किअए मन खसल अछि?’ पत्निक प्रश्न सुनि डोमन आंखि उठा कऽ देखि पुनः आंखि निच्चा कऽ लेलक। आंखि निच्चा करितहि सुगिया दोहरा कऽ पुछलक- ‘मन-तन खराब अछि?’ नजरि उठा डोमन उत्तर देलक- ‘तन त नहि खराब अछि, मुदा तनेक दुख देखि मन सोगायल अछि। जइ (जहि) आशा पर अखन धरि खेपलहुँ ओ त चलिये गेल। जे अगिलोक कोनो आशा नहि देखै छी। की करब आब? सुगिया- ‘अपना केने किछु ने होइ छै। जे भगवान जन्म देलनि, मुह चीड़ने छथि अहारो त वैह ने देताह। तइ ले एत्ते चिन्ता किअए करै छी?’ डोमन- ‘गामक सब कुछ बिलटि गेल। ऐहेन सुन्दर गाम छल, सोहो उपटि रहलअछि। सिर्फ माटि टा बँचल अछि। की माटि खुनि-खुनि खायब? बिना अन्न-पानिक कइ-अ दिन ठाढ़ रहब?’ ‘चिन्ता छोड़ू। जहिया जे हेवाक हेतइ से हेतइ। अखन त पानियो अछिये आ अन्नो अछिये। जाधरि एहि (अइ) धरती पर दाना-पानी लिखल हैत ताधरि भेटबे करत। जहिया उठि जायत तहिया ककरो रोकने रोकेबै (रोकेवइ)। तइ ले एत्ते चिन्ता किअए करै छी।’ कहि सुगिया भानसक ओरियान करै लागलि। पत्नीक बात सुनि डोमन मने-मन सोचै लगल जे हमरा त मरैयोक डर होय अए मुदा ओकरा (पत्नी) कहाँ होइ छै। ओ त मरैइयो ले तैयारे अछि। फेरि मन मे उठलै जे जीवन-मृत्युक (जिनगी-मौतक) बीच सदा स संघर्ष होइत आयल अछि आ होइत रहत। तहि स पाछु हटब कायरता छी। जे मनुष्य कायर अछि ओ कोन जिनगीक आशा मे अनेरे दुनियाँ कऽ अजबारने अछि। पुनः अपना दिशि तकलक। अपना दिशि तकितहि मन मे एलै जे जीबैक बाट हरा गेल अछि। तेँ एते चिन्ता दबने अछि। तमाकुल चुना कऽ खेलक। तमाकुल मुह मे लइते अपन माए-बाप स लऽ कऽ पैछला पुरखा (जते जनैत) दिशि घोड़ा जेँका नजरि दौड़लै। मुदा कतौ रुकलै नहि। जाइत-जाइत मनुष्यक जड़ि धरि पहुँच गेल। पुनः घुमि कऽ आबि नजरि माय लग अटकि गेल। मन पड़लै माएक संग बितौलहा जिनगी। मन पड़लै माइयक ओ बात जे दस वर्खक अवस्था मे रौदी बीतौने छल। रौदी मन पड़ितहि बड़की पोखरिक बिसाँढ़ आ अन्है माछ आंखिक सोझ मे आबि गेलइ। कने काल गुम्म भऽ मन पाड़ै लगल। मन पड़लै, अही पुरैनिक (जे सुखि गेल अछि) जड़ि मे त बिसाँढ़ो फड़ैत अछि। अल्हुए जेँका। जहिना माइटिक तर मे अल्हुआक सिरो आ अल्हुओ (फड़) रहै छै तहिना पुरैनिक जड़ि मे सिरो आ बिसाँढ़ो रहैत अछि। अनायास मुह स निकललै- ‘बाप रे, बाबन बीघाक पोखरि मे कते बिसाँढ़ हेतइ। ओकरे खुनै मे माछो भेटत। खाधि बना-बना सिंही-मांगुर रहै अए। एक पथ दू काज। मन खुशी अविते पत्नी कऽ सोर पाड़ि कहलक- ‘भगवान बड़ी टा छथिन। जहिना अरबो-खरबो जीवि-जंतु केँ जन्म देने छथिन तहिना ओकर अहारोक जोगार केने छथिन।’ पतिक बात सुनि सुगिया अकबका गेलि। बुझबे ने केलक। मुह बाबि पति दिशि देखैत रहलीह। पुनः डोमन कहलक- ‘चुल्हि मिझा दिऔ। घुरि कऽ आयब तखन भानस करब।’ पतिक उत्साह देखि सुगिया मने-मन सोचए लगली जे मन ने ते सनकि गेलनि हेँ। अखने मुरदा जेँका पनि-मरु (पनिमरु) छलाह। आ लगले कि भऽ गेलनि। दोसर बात परखैक खियाल स चुप-चाप ठाढ़ रहली। डोमन- ‘की कहलौ? पहिने आँच मिझा दिऔ। फटक लगा छिट्टा लऽ कऽ संगे चलू।’ सुगिया- ‘कत्तऽ।’ ‘बड़की पोखरि।’ ‘किअए?’ ‘ऐहन-ऐहन सइओ रौदी कटैक खेनाइ (भोजन) पोखरि मे दाबल अछि। आनै ले चलू।’ सवाल-जबाव नहि कऽ सुगिया आगि पझा, फटक लगा छिट्टा लऽ तैयार भेलि। घर स कोदारि निकालि डोमन विदा भेल। आगू-आगू डोमन आ पाछु-पाछु सुगिया। बड़की पोखरिक महार पर पहुँच डोमन हाथक इशारा स पत्नी कऽ देखवैत बाजल- ‘जते पोखरिक पेट सुखल अछि, ओहि मे तते खाइक वस्तु (भोज्य पदार्थ) गड़ायल अछि जे ने खाइक कमी रहत आ ने पीवैक पाइनिक। जना-जना पानि सुखैत जेतइ तना-तना कुप कऽ गहीर करैत जायब। जते पुरैनिक गाछ सुखायल अछि ओहि मे घुरछा जेँका बिसाँढ़ फड़ल हैत।’ पोखरि धँसि डोमन तीनि डेग उत्तरे-दछिन आ तीनि डेग पूवे पछिमे नापि कोदारि स चेन्ह देलक। एक घुर। उत्तर बरिया पूबरिया कोन पर कोदारि मारलक। माटि तते सक्कत जे कोदारि धँसवे ने कयल। दोहरा कऽ फेरि जोर स कोदारि मारलक। फेरि नै कोदारि धँसल। आगू दिशि देखि हियाबै लगल जे किछु दूर आगूक माटि नरम हैत। खुनै मे असान हैत। मनक खुशी उफनि कऽ आगू खसल- ‘अई ढ़ोरबा माए, हम पुरुख नइ छी। देखियौ हमरा माटि गुदानबे ने करै अए। अहाँ हमरा स पनिगर छी, दू छअ मारि कऽ देखियौ।’ सुगिया- ‘हमर चूड़ी-साड़ी पहीरि लिअ, आ हमरा धोती दिअ। तखन कोदारि पाड़ि कऽ देखा दइ छी।’ मुस्की दइत दुनू आगू मुहे ससरल। एक लग्गा आगू बढ़ला पर माटि नरम बुझि पड़लै। कोदारि मारि कऽ देखलक तऽ माटि सहगर लगलै। एक घुर नापि डोमन खुनै लगल। पहिले छअ मे एकटा विसाँढ़क लोली जगलै। लोल देखितहि उछलि कऽ बाजल- ‘हे देखियौ। यैह छी बिसाँढ़।’ सुगिया- ‘लोल देखने नइ बुझब। सौंसे खुनि कऽ देखा दिअ।’ पत्नीक बात सुनि डोमन कऽ हुअए लगल जे हो न हो कहीं अधे पर स ने कटि जाय। से नहि त लोल पकड़ि डोला कऽ उखाड़ि लइ छी। मुदा नै उखड़ल। कने हटि दमसा कऽ दोसर छअ मारलक। छअ मारितहि एक बीतक देखलाहा आ चरि-चरि ओंगरीक दू टा आरो देखलक। तीनू कऽ खुनि, दुनू परानी निग्हारि-निग्हारि देखए लगल। उज्जर-उज्जर। नाम-नाम। लठिआहा बाँस जेँका गोल-गोल, मोट। हाथी दाँत जेँका चिक्कन (प्लेन) बीत भरि स हाथ भरिक। पाव भरि स आध सेर धरिक। सुगिया दिशि नजरि उठा कऽ डोमन देखलक त पचास वर्षक आगूक जिनगी बुझि पड़लै। पति दिशि नजरि उठा कऽ सुगिया देखलक त चूड़ीक मधुर स्वर आ चमकैत मांगक सिनदुर देखलक।’ छिट्टा भरि विसाँढ़ आ सेर चारिऐक सिंही माछ नेने दुनू परानी विदा भेल। लगल। फुलब देखि फुलिया पति कऽ कहलक- ‘अहाँ पहिने डाकडर बजा लाउ। हम ताबे कड़ू तेल से ससैर (ससारि) दइ छिअनि।’ ‘बुच्ची घर से तेलक शीशी नेने

























91.चुनवाली आ।’ मटकुरिया डाॅक्टर ऐठाम विदा भेल। तेलक शीशी अनै कबुतरी घर गेलि। तहि बीच मंगनिया दादी कऽ कहै नीन्न टुटितहि मखनी मोथीक विछान समेटि ओसारक लगल- ‘आँइ गै बुढ़िया, एतने उपर से....।’ उत्तर-पूब कोन मे ठाढ़ कऽ निच्चा उतड़ै लागलि बेटा मुह पर फुलिया हाथ दऽ आगू बाजब रोकि देलक। कि सीढ़ी पर पिछड़ि गेलि। पाएर पिछड़ितहि हाथ स मुदा पोताक बात स मखनी कऽ एक्को मिसिया दुख नहि ओसार पकड़ै चाहलक। मुदा जाबे सरिया क ओसार भेलि। मुस्की दइत बाजलि- ‘बिलाइ खसा देलक।’ पकड़ै-पकड़ै ताबे ओलती मे खसि पड़लि। झलफल रहने शीशीक मुन्ना खोलितहि कवुतरी आयल। दुनू कियो दोसर उठल नहि। थोड़बे पहिने एकटा छोटकी माए-धी तरहत्थी पर तेल लऽ लऽ, दुनू हाथ मे मिला, अछार भेल। घरक चार स ठोपे-ठोप पानि चुबतहि। दहिना पाएर (जाँध सहित) मे ओंसइ लागलि। ठेहुनक दर्द सीढ़ी पर स खसितहि मखनीक दहिना ठेहुनक जोड़ मखनी कऽ बढ़िते जाइत। जहि स दुनू गोटे कऽ ससारब छिटकि गेलि। तत्काल छीटिकब नहि बुझलक। एतबे छोड़ि दइ ले कहलक। ताबत डाॅक्टरक संग मटकुरियो बुझलक जे ठेहुन कट दऽ उठल हेँ। मन मे एलै जे कियो पहुँचल। मखनीक ठेहुन देखितहि डाॅक्टर कहलखिन- देखलक त नहि तेँ हाँइ-हाँइ उठै लागलि। जोश मे उठि ‘हिनका ठेहुनक जोड़ छिटकि गेलि छन्हि। पलस्तर करबै त गेलि मुदा ठेहुनक कचकब स फेरि ओसार पकड़ि पड़त। ताबत दर्द कम होइ ले इन्जेक्शन दऽ दइ छिअनि। सीढ़िये पर बैसि गेलि। बैसितहि मन मे बिचार उठै किऐक त पलस्तरक समान सब मंगबै पड़त।’ लागलि कोना मटकुरियाक (बेटा) परबरिस चलतै....एक्के-दुइये गामक जनिजाति पहुँचै लागलि। ढ़ेरबा बेटी छै विआह कन्ना करत.... अपना कमाइक जनिजातिक संग धियो-पूता। लोक स मटकुरियाक आंगन कोनो लुरि नहि छैक.... बहुओ धमधुसरिये छै.... अपना भरि गेल। पलस्तरक समान मंगा डाॅक्टर पलस्तर करैत खेत-पथार नहि छै.... गामक लोको तेहेन अछि जे कहलखिन- ‘चिन्ता करैक बात नहि अछि। पनरह दिन मे ककरो कियो नीक नहि करैत.... हे भगवान कोन बिपत्ति ठीक भऽ जेतनि।’ कहि अपन फीस लऽ चलि गेलाह। दऽ देलह। कने काल गुम्म रहि बेटा (मटकुरिया) कऽ मुदा लोकक आवा-जाही लगले। रंग-विरंगक गप स अंगना जोर स सोर पाड़ि कहलक- ‘मटकुरिया, रौ मटकुरिया? गनगनाइत। दुनू परानियो आ दुनू धियो-पूतो निन्न भेड़ि। तेँ भरि दिन सब तुर मटकुरिया भुखले रहि गेल। ने ने मटकुरिया उठल आ ने कियो दोसर। पुनः दोहरा क भानस पर ध्यान गेलइ आ ने ककरो भूखे बुझि पड़लै। घर मखनी जोर स बाजलि- ‘रौ बौआ, बौआ रौ। हम पिछड़ि मे चूड़ा रहए। जे मंगनिया खेलक। बेर झुकैत-झुकैत कऽ खसि पड़लौ से उठिये ने होइ अए।’ अंगना खाली भेलइ। सिर्फ अपने पाँचो गोटे अंगना मे धड़फड़ा कऽ उठैत मटकुरिया बाजल- ‘माए-माए, रहल। सबहक मनो असथिर भेलइ। सब (मटकुरियो, अबै छी।’ फुलियो आ कबुतरियो) अपना-अपना ढ़ंग स सोचै लगल। ताधरि फुलियो, कबुतरियो आ बेटोक नीन टुटल। कहि ओना कहियो-काल, सासु कऽ मन खराब भेने केवाड़ खोलि मटकुरिया दौड़ैत माए लग आबि, पुछलक- वा कतौ गाम-गमायत गेने, फुलिये चून बेचए जाइत। सब ‘कोना कऽ खसलै?’ काज बुझले तेँ मन मे वेसी चिन्ता नहि। चिन्ता सिर्फ एतवे पाछु स स्त्रियो, बेटो-बेटी पहुँचल। बेटा त पाँचे जे कहुना माएक (सासुक) परान बचि जाइन। मुदा खुशी वर्खक मुदा तइओ माए-बापक देखा-देखी करैत दादी क बेसी। किऐक त सोलह बर्ख स सासुर बसै छी मुदा अखन पकड़लक। चारु गोटे उठा मखनी कऽ ओसार पर ल धरि घरक गारजन नहि बनलहुँ। लोक कऽ देखै छियै जे गेल। बिछान बिछा सुता देलक। कनी-कनी ठेहुन फुलए सासुर अवितहि अपन जुइत लगबै लगैत अछि। भगवान हमरो दहिन भेलाह। आब हमहूँ गार्जन बनब। घरक गारजन त वैह ने होइत जे कमाइत अछि। जे उपारजने (कमेबे) नै करत ओ घरक जुतिये-भाँति की लगौत। अगर जँ लगेबो करत त चलतै कोना? किऐक त छुछ हाथ थोड़े मुंह मे जाइत छैक। काजक अपन रस्ता होइत अछि। जे केनिहारे बुझैत। बिनु केनिहार जँ जुतिये लगौत त ओ या त दुरि हेतइ वा गरे ने लगतै। ओना अखन फुलियाक घरोवला आ सासुओ जीविते, तेँ गारजनियो हाथ मे आयब कठिन। मुदा तइओ आशा। किऐक त अखन धरि सिन्नुरो-टिकुली ले खुशामदे करै छलि, से आब नहि करै पड़तै। तेँ खुशी। कबुतरीक मन मे एहि दुआरे खुशी होइत जे जते लूरि दादी कऽ अछि ओते लूरि गाम मे ककरो नहि अछि। मुदा कमाइक तेहेन भुत लगि गेल छै जे जइ दिन मरत तही दिन छोड़तै। सब लूरि संगे चलि जेतइ। तेँ नीक भेलइ जे अवाह भऽ गेल। आब त अंगना मे रहत। जखने अंगना मे रहै लगत तखने एका-एकी सब लूरि सीखै लगब। मुदा ओही (दादी) बेचारी कऽ की दोख देबइ। भरि दिन दस सेरक छिट्टा माथपर नेने बुलैत अछि त देह-हाथ दुखेबे करतै। साँझखिन के थाकल-ठहिआयल अबै अए असुआ कऽ पड़ि रहै अए। से आब नइ हेतइ। निचेन से पावनियो-तिहारक विधि-विधान आ गीतो-नाद सीखब। एत्ते टा भऽ गेलौ हेँ, ने अखैन तक एक्कोटा गीति अबै अए आ ने विआह-दुरागमनक अड़िपन बनौल होइ अए। कइ-अ दिन मन मे अबै अए जे मालतिये जेँका हमहूँ अपन गोसाई (गोसांई) घरक ओसार मे पुरैनिक लत्ती, कदमक गाछ लिखी। से लुरियो रहत तब ने। साँझू पहर के जते खान जतै छियै तते खान समयो भेटै अए ते नहिये होइ अए। किऐक त बिछान पर पड़िते ओंघा जाइ अए। जँ पुछबो करै छियै त अइ गीतक पाँति ओइ गीति मे आ अइ गीतक भास ओइ गीत मे कहै लगैत अछि। जहि स किछु सीखि नहि पबैत छी। मटुकलाल केँ एहि दुआरे खुशी होइत जे बेटा-पुतोहू कऽ रहैत बूढ़ि माए एते खटे से उचित नहि। मुदा कहबो ककरा कहबै। हमरा कोनो मोजर दइ अए। दू टा ध् ि ाया-पूता भेल। बेटिओ विआह करै जोकर भऽ गेलि मुदा हमरा बच्चे बुझै अए। हम की करु। तेँ भगवान जे करै छथिन से नीके करै छथिन। भने आब भारी काज करै जोकर नहि रहलि। जे अपनो बुझत आ मनाही करबै ते2 मानियो जायत। किऐक त मरैक डर ककरा नै होइ छै। तहू मे बूढ़ि-बुढ़ानुस क। तेँ मने-मन खुश। लोक हमरा तड़िपीबा वुझि बुड़िबक बुझै अए। तेँ कि हम बुड़िवक छी। कियो वुझै अए ते बुझह। जहिया बावू मुइलाह तहिया जते भार कपार पर आयल, से कियो आन सम्हारि दइ अए। कि अपने करै छी। पसिखन्ने जाइ छी ते कि लुच्चा -लम्पटक संग बैसि पीबै छी जे चोरी-छिनरपन्नी सीखब। या त असकरे बैसि कऽ पीबै छी या बड़का लोक लग बैसि कऽ पीबै छी। बड़का लोेकक मुह मे सदिखन अमृत रहैत छैक। रमानन्द बाबू स गियनगर लोक अइ इलाका मे दोसर के अछि। तिनका स हमरा दोस्ती अछि। हुनकर ओ बात हम गिरह बान्हि नेने छी जे जहिना कियो जनमै अए, बढ़ि क जुआन होइ अए। जुआन स बूढ़ भऽ मरि जाइत अछि। इ त दुनियाँक नियमे छिअए। सबकेँ होएत। जे नहि बुझत ओ नहि बुझह। मुदा हम त ओइह मानै छी। फेरि माए दिशि नजरि घुरलै। मने-मन सोचए लगल जे माइयक पाएर टुटब कोनो अनहोनी थोड़े भेलइ। इ त भगवानक लीले छिअनि। ओ (भगवान) कखनो अपना सिर अजस लेताह। कोनो ने कोनो कारण भइये जाइत छैक। तइ ले हमरा दुखे किअए हैत। जहिना एते दिन बीतल तहिना आगुओ बीतत। एते दिन जहिना माय कऽ, बेचि क घुमैत काल, आगू स पथिया आनि दइ छेलिये तहिना आब घरोवाली कऽ आनि देवइ। कियो हमरा देखा दिअ ते जे एक्को दिन हमरा काज मे नागा भेल। गोसांई डूबै बेरि, कतौ रही, कतवो पीवि कऽ बुत्त रही मुदा तेँ कि अपन काज कहियो छोड़ैत छी। मटकुरिया परिवारक खानदानी जीविका चूनक। महिला प्रधान रोजगार। किऐक त चूनक विक्री अंगने-अंगने होइत। शुद्ध गमैआ व्यवसाय। किऐक त ने चून बनवैक समान बाहर स अनै पड़ैत आ ने बेचैक असुविधा। गामक अधिकांश परिवार मे चूनक खर्च। कियो पान खाइत त कियो तमाकुल। दुनू मे चूनक जरुरत। चून बनाइबो कठिन नहि। डोका जरा कऽ बनैत। अन्नेक कोठी जेँका डोको जरबैक कोठी होइत। मुदा अन्नक कोठी मे उपर छोट मुह, अन्न ढ़ारैक लेल, बनाओल जाइत जबकि चूनक कोठीक उपरका भाग खुलल रहैत। निच्चाक मुह दुनूक एक्के रंग। कच्चो मालक कमी नहिये। किऐक त गरीब-गुरबा लोक डोकाक मांस खाइत। मांसो पवित्र। किऐक त डोका माटि खा जीवन-वसर करैत। डोकेक उपरका भाग स चून बनैत। कारोवार बढ़बै चाहत त सम्हारले ने हेतइ। किऐक त चूनक बजारो गामे-घर। बिरले गोटे घर मे चूनक डोका जमा करै स चून बनबै धरि, दू दिन समय लगि खर्च नहि होइत, नहि त सबहक घर मे होइत। पहिने जायत। आठे दिन पर विक्रीक पार (बीट) घुमैत। तेँ पाँच मटकुरियाक दादी-परदादी चून बेचैत छलि, मुइलाक पछाति गाम स बेशी गाम सम्हारब कठिन। माए बेचए लागलि। सात दिनक सप्ताह मे पाँच दिन टाँग अवाह होइतहि मखनी चून बेचब छोड़ि मखनी भौरी (गामे-गामे) करैत। एक-एक गाम मे एक-एक देलक। मुदा परिवारक रोजगार बन्न नहि भेलइ। आब दिनक बीट (पार) बनौने। आठ दिन खर्चक हिसाब स फुलिया बेचए लागलि। चिन्हार गाम चिन्हार गहिकी। तेँ सब कियो चून कीनैत। सब काज अन्दाजे स। अन्दाजे स कतौ बाधा नहि। मुदा मखनीक महाजनी बुड़ि गेल। चूनो दइत आ अन्दाजे स बेचो (धान-मड़ूआ) लइत। किऐक त पाँचो गाम मे पाँच गोटे ऐठाम अपन धान कोनो हरहर-खटखट नहि। किऐक त मनक उड़ान छोट। -मड़ुआ रखैत छलि। ओहि ठाम स ओहि गाम मे सवाइ ने कोठा-कोठीक इच्छा, ने सुख-भोगक। बान्हल मन तेँ लगबैत छलि। अपन आवाजाही बन्न भेने विसरि गेलि। मात्र मनुक्ख बनि जीबै टाक इच्छा। लेनिहारो विसरि गेल। मुदा तइ ले मखनीक मन मे दुख बजारोक प्रतियोगिता नहि। कारो-वार मे छीना-झपटी नहि भेलइ। खुशिये भेलइ। खुशी एहि दुआरे भेलइ जे नहि। किऐक रहतै। जहिना जाइतिक शासन तहिना जावत देह मे ताकत छलि, ताबत अपनो, परिवारो आ समाजक दंडात्मक रुखि। समाज मे निश्चित जाति निश्चित दोसरो कऽ खुऔलौ। जिनगीक सार्थकता एहि(अइ) स काज स बान्हल। एकक काज दोसर नहि करैत। तेँ बेशी की हैत। यैह ने धर्म छी। धर्ममय जिनगी बना लक्कड़-झक्कड़ कम। जना डोम, नौआ, धोबि, बढ़ी बुढ़ाढ़ी धरि जीवि लेब, अइ स वेशी की चाही। तेँ (बरही) कुम्हार इत्यादिक अपन-अपन जीविकाक धंघा। मने-मन खुशी। जे कराई स पालन होइत। दुनू विन्दु पर। कराओलो समय आगू बढ़ल। कारोबारक रुपो बदलल। जाइत आ करबो करैत। सीमित क्षेत्रक बीच कारोवार। कोना नहि बदलैत? समयोक त कोनो ठेकान नहि। कोनो कियो अतिक्रमण नहि करैत। जँ कही-कतौ अतिक्रमण साल अधिक बर्षा (बरखा) होइत त कोनो साल रौदी। होइत त जाइतिक बीच ओकर फरिछौट होइत। तेँ सब अधिक वर्षा भेने त अधिक डोकाक वृद्धि होइत। मुदा अपन-अपन सीमाक भीतर रहैत। हँ, इ बात जरुर होइत रौदी मे कमि जायत। बिसबासु कारोबारक लेल वस्तुक जे सीमाक भीतर भैयारीक बँटबारा स विभाजित होइत। उपलब्धि अनिवार्य। जे आब नहि भऽ पबैत। मुदा समयो मुदा मटकुरिया परिवार एक पुरिखियाह, तेँ ऐहेन प्रश्ने त पाछु मुहे नहि आगू मुहे ससरत। पत्थर-चून बजार मे नहि। रोजगारोक (व्यवसाइयोक) लेल तहिना। सवकेँ आबि गेल। पर्याप्त वस्तुक उपलब्धि भऽ गेल। बाजारो अपन-अपन सीमित क्षेत्र। एक क्षेत्र मे दोसरक प्रवेश बढ़ल। जहिठाम उमरदार लोक तमाकुल-पान सेवन करैत बर्जित। मुदा बेरि-बेगरता मे एक-दोसरा कऽ भार दऽ छलाह तहिठाम आब स्कूल-कओलेजक विद्यार्थी सेहो समाजक काज मे बाधा उपस्थिति नहि हुअए दइत। करै लगल। ततबे नहि बाल-श्रमिक (बाल-मजदूर) सेहो चून बेचि मखनी सिर्फ परिवारे नहि चलबैत। करै लगल। गामे-गाम चैक-चैराहा बनि गेल। जहि स महाजनियो करैत। किऐक त सोलहो आना श्रमे पूँजी। चाह-पान खेनिहारो बढल़। ओना तमाकुल-पानक अतिरिक्त मेहनत कऽ डोका एकत्रित करैत। डोका जरा कऽ चून पान-पराग, शिखर, रंग-विरंगक गुटका सेहो बढ़ि गेल। बनवैत। आ अन्न स चून बदलैत। चूनक कीमतो (किमतो) तेकर अतिरिक्त सार्वजनिक उत्सब सेहो बढ़ल। परिवारक अलग-अलग (भिन्न-भिन्न)। जहिठाम गरीब लोक चुनक मांगलिक काज (विवाह, मूड़न, सराध) सेहो नमहर भेल। कम कीमत दैत तहिठाम सुभ्यस्त किछु बेशिये दइत। पाँचे जहि स पान-तमाकुलक खर्च बढ़ल। जहि स चुनोक खर्च गोटेक परिवार मखनी कऽ। कते खायत। तेँ फजिलाहा कते गुणा बढ़ि गेल। अन्न सवाई पर लगबैत। सेहो बिना लिखा-पढ़ीक। मुह मखनीक जगह फुलिया लेलक। ओना घरक रोजगार जवानी। जहि स किछु उपरो होइत किछु बुड़ियो जाइत। तेँ फुलियो कऽ किछु सीखैक जरुरत नहि। सब बुझले। पाँच गाम मे मखनीक कारोवार। अगर जँ एहि स आगू सासु कऽ रहितहुँ, कहियो-काल, फुलियो बेचए जाइत छलि। किऐक त जहि दिन मखनी नैहर जायत तहि दिन पहिल दिन छिअए तेँ आन दिन स कम कोना लेब? यात्रा फुलिये बेचइओ जायत आ डोका आनि-आनि चूनो त पहिलुके दिन नीक होइ छै। वेचारा कऽ सगुन कोना बनवैत। मुदा आब चून बनवैक रुपे बदलि गेल। लोको दुइर करबै। मुस्की दइत कहलक- ‘बड़बढ़ियाँ। अपनो डोकाक चूनक बदला पत्थर-चून खाय लगल। ओना मिला कऽ नेने आबह।’ अखनो वूढ़-पुरान सब पत्थरक चून कऽ घटिया बुझैत। वसन्ती ताड़ी, पीबिते मटकुरिया केँ रंग चढै़ जे तेजी डोकाक चून मे होइत ओ पत्थरक चून मे नहि। लगल। ताड़ी पीबि मटकुरिया सोझे, पसिखन्ने स, पत्नीकऽ मुदा हारल नटुआ की करत। माथ परक पथिया अनै दछिनमुहे विदा भेल। गामक चून बेचैक रुपो बदलल। अखन धरि जे अंदाज स बिक्री दछिनवरिया सीमा पर ठाढ़ भऽ आगू तकलक। जते दूर होइत छल ओ आब तौल कऽ हुअए लगल। बेचक नजरि गेलइ तहि बीच कतौ पत्नी कऽ अबैत नहि (अन्नक) जगह पाइ लेलक। ओना अन्नोक चलनि सोलहन्नी देखलक। कनी-काल पाखरिक गाछ लग ठाढ़ भऽ सोचै समाप्त नहिये भेल हेँ। आब ओतबे अन्न पड़ैत जे आन लगला जे आगू बढ़ी वा एतइ रुकि जाय। अंग्रेजी वाजा आ ठाम रखैक जरुरत फुलिया कऽ नहि होइत। पाइ बौगली लाउडस्पीकरक फिल्मी गीत कान मे पैसि-पैसि मन कऽ मे रखैत आ अन्न पथिया मे। ओना कर्ज खौक सेहो डोलबैत। मन पड़लै अपन विआह। बिआह मन पड़िते कमल। किऐक त समय कऽ आगू बढ़ने खाइ-पीबैक फुलियाक रुप आगू मे ठाढ़ भऽ गेलइ। गुनधुन करैत उपाय सेहो लोक कऽ भेल। बोइन (मजदुरी) सेहो सुध् सोचलक जे ऐठाम ठाढ़ भ कऽ समय बिताएब, तहि स ारल। पाइक आमदनी किसानो कऽ हुअए लगल। लोकक नीक जे आरो थोड़े बढ़ि जाय। आगू बढ़ल। किछु दूर पीढ़ियो बदलल। जहि स विचारो मे बदलाव आयल। आगू बढ़ला पर पत्नी कऽ अगिला गाम टपि अबैत समय कऽ आगू बढ़ने कारोवार असान भेल। देखलक। बाधो कोनो नमहर नहि। फुलियाक नजरि सेहो जहि स मटकुरियाक परिवार सेहो आगू मुहे ससरल। मुदा मटकुरिया पर पड़ल। दुनूक डेग तेज भेल। तेज होइक मटकुरिया जहिना क तहिना रहि गेल। पहिने जे मटकुरिया दुनूक दू कारण। मटकुरियाक मन मे जे जते जल्दी लग मे माएक संग डोका अनैत छल ओ आब एक्के ठाम बजार पहुँचब तते जल्दी भार उतड़तै। जबकि पसीना स नहाएल स चून कीनि कऽ ल अबैत अछि। सुखल चून। सुखल फुलियाक मन शान्ति। शान्ति अबितहि पथिया हल्लुक चून कऽ गील बनवै मे सेहो अधिक (फ्रीसानी) फीरिसानी लगै लगलै। दुनूक मन मे कतेको नव-नव विचार अबै नहिये। लगलै। फागुन मास। शिवरातिक तीनि दिन पछाति। धुर लग अबितहि मटकुरिया धोतीक ढ़ट्ठा सरिऔलक। -झार लगन चलैत। मेला जेँका वरिआती चलैत। अंग्रेजीबाजा, किएक त माथ पर भारी ऐला स डाँड़क धोती डाँड़ मे लाउडस्पीकरक अवाज स वायुमंडल दलमलित। आइ वैसि जायत। ढ़ट्ठा सरिया गमछाक मुरेठा बान्हि दुनू हाथ सबेरे (आन दिन चारि बजे) मटकुरिया पसिखाना विदा स पकड़ि फुलियाक माथ परक पथिया अपना माथ पर भेल। समयो सोहनगर। झिहिर-झीहिर हवा चलैत। अकास लेलक। माथ पर लइते किछु कहैक (बजैक) मन मटकुरिया मे जहिना चिड़ै गीति गबैत तहिना हवा मे गाछ-विरीछ कऽ भेल। मुदा किछु बाजल नहि। किऐक त फेरि मन मे नचैत। पसिखाना पहुँचते मटकुरिया कऽ पासी कहलक- एलै जे वेचारी थाकल अछि, तेँ मन अगिआइल (तमसायल) ‘भैया, आइ निम्मन बसन्ती माल अछि। खजुरिया नहि होएत। हो न हो किछु करुआइल बात बाजि दिअए। ताड़क।’ जबकि एकाएक माथ परक भार उतड़ला स फुलियाक मन पासीक बात सुनि मटकुरियाक मन मे खुशी उपकल। हल्लुक भेलि। मुदा ओहो किछु बाजलि नहि। ओहिना देह मने-मन सोचलक जे दू गिलास आरो बेसी चढ़ा देबइ। कठिआयल। आगू-पाछू दुनू बेकती घर दिशि विदा भेल। बाजल- ‘तब त आइ यात्रा (जतरा) नीक बनल अछि।’ जते आूग बढ़ैत तते फुलियाक मन हल्लुक होइत आ पासी- ‘अहाँ त हमर पुरान अपेछित छी भैया तेँ दू मटकुरियाक मन भारी। पत्नी स किछु कहैक विचार गिलास ओहिना (मंगनिये) पिआएब।’ मटकुरियाक मे कमै लगल। जना मुह खोलला स भारी दू गिलास मंगनी सुनि मटकुरिया सोचलक जे बढ़त। मुदा जना-जना आगू बढ़ैत तना-तना फुलियाक देहो-हाथ सोझ होइत आ पति कऽ किछु कहैक मन सेहो होयत। मुदा किछु बजैत नहि। किऐक त पति-पत्नीक बीच गप्पक आनंद तखन होइत जखन दुनूक मन सम (ने बेसी सुख आ ने बेसी दुख) होयत। से अखन धरि दुनूक (मटकुरिया- फुलियाक) बीच नहि भेल। एते काल फुलियाक माथ पर पथिया रहने मन पीताएल त आब मटकुरियाक हुअए लगल। ने फुलिया पति कऽ किछु कहैत आ ने मटकुरिया पत्नी कऽ। मुदा बीच रस्ता (बाध) अबैत-अबैत दुनू मुह स हँसी निकलल। पथिया नेनहि मटकुरिया पाछु घुमि कऽ तकलक त देखलक जे फुलिया मुस्किया रहल अछि। फुलियोक नजरि (आखि) मटकुरिया कऽ मुस्किआइत देखलक। एक टक स एक-दोसर पर आंखि गरौने अपन जिनगी देखए लगल। 91.बाबी ुदर्गापूजा शुरु होइ स’ एक दिन पहिने, घर छछाड़ै आ दियारी बनवै ले सिरखरियावाली बुढ़िया गाछीक मटि-खोभ स’ मनही छिट्टामे चिक्कनि माटि नेने अंगना अबैत छलीह। रस्ते कातक चैमासक टाट पर बाबी करैला तोड़ैत रहथि, कि सिरखरियावालीक नजरि पड़लै। नजरि पड़ितहि ओ एक हाथे छिट्टा पकड़ने आ दोसर हाथे चाइनिक घाम आंगुर स’ काछि कऽ फेकि बाबी के कहलनि-‘‘बाबी, छठिके कते दिन छै?’’ बाबीक नजरि जुआइल आ सड़ल करैला पर छलनि। किऐक त’ अजोह करैला तीतो बेसी आ सुअदगरो कम होइछै। ततबे नहि, पकैयोक डर। सड़ल करैला एहि दुआरे लत्ती क’ बिहिया-बिहिया तकैत जे जँ ओकरा तोड़ि नहि लेब त’ दोसरो के सड़ाओत। सिरखरियावालीक अवाज सुनि बाबी रस्ता दिशि देखि पुनः करैला तकै लगलीह। किऐक त’ माथ पर भारी देखि गप-सप करब उचित नहि बुझलनि। एक त’ भरल छिट्टा माटि तइ पर खुरपी गाड़ल देखलखिन। मने-मन सोचलनि जे छठि के एखन मासो स’ बेसिये हेतइ तखन एहेन कोन हलतलबी बेगरता भ’ गेलइ। जँ महीना, परव (पक्ष) तीथि जोड़ि क’ कहै लगव त’ अनेरे देरी हेतइ। जते देरी लगतै तते भारियो लगतै। तेँ बावी आखि उठा कऽ देखि, बिना किछु कहनहि, नजरि निच्चा कऽ लेलनि। मुदा ओहो रगड़ी। मन मे होइ जे एखन नहि बुझि लेब त’ फेरि बिसरि जायब। जँ बिसरि जायब त’ किछु नहि किछु छुटिये जायत। एखन त’ मटि खोभा मे मन पड़ल जे पौरुका दशमियेक मेला मे तीनि टा कोनिया, एकटा सूप आ एकटा छिट्टा कीनि नेने रही। जहि स’ छठि पावनि केलहुँ। बाबीक नजरि निच्चा केने देखि सिरखरियावाली दोहरा कऽ बाजलि- ‘गरीब-दुखियाक बात आब थोड़े बाबी सुनै छथिन, जे सुनतिहीन।’ सिरखरियावालीक बात बाबीक करेज कऽ छुबि देलकनि। मुदा क्रोध नहि भेलनि सिनेह उमड़ि गेलनि। एकाएक बाबी अपन बोली बदलि लेलनि। चैवन्निया मुस्की दैत कहलखिन- ‘कनियाँ, मन मे आयल जे चारि टा करैला तोरो तरकारी ले दिअह। तेँ हाँइ-हाँइ करैला ताकै लगलहुँ। कनिये ठाढ़े रहह?’ सिरखरियावाली- ‘जे पुछलिएनि से कहबे ने करै छथि आ करैला दऽ कऽ फुसलबै छथि।’ विचित्र अन्तद्र्वन्द बाबीक मनके घोर-मट्ठा करै लगलनि। एक दिशि माथ पर भारी देखथिन आ दोसर दिशि आइ स’ छठि धरि जोडै़क समय। तहू स’ उकड़ू बुझि पड़ैन जे सोझ मासक सवाल नहि अछि। दू मास बीचक बात छी। सेहो एहेन मास जे लुंगिया मिरचाइक घौंदा जेँका पावनिक घौंदा अछि। जाधरि सभ सोझरा कऽ नहि कहबै ताधरि अपनो मन नहि मानत आ ओहो नहि बूझत। ताल-मेल बैसबैत कहलखिन- ‘कनियाँ, एखन जाउ। हमहूँ तीमनक ओरियान मे लगल छी आ अहूँ कऽ माथ पर भारी अछि।’ सिरखरियावालीक मन मे होइ जे छठि सन पावनि, जे हिसाब स’ ओरियान नहि करैत जायब त’ कैकटा चीज छुटिये जायत। आन पावनि जेँका त छठि हल्लुक नहि अछि। बड़ ओरियान बड़ खर्च। बाजलि- ‘दसमी मेला मे जे कोनिया, सूप छिट्टा कीनि नेने रहै छी, त बुझै छियै जे एते काज अगुआयल रहैए।’ बाबी- ‘कनियाँ, एकटा काज करु। छिट्टा कऽ निच्चा मे राखि दिऔ जे अहूँ कऽ देह हल्लुक भऽ जायत आ हमरो हिसाब जोड़ि-जोड़ि बुझबै मे नीक हैत।’ सिरखरयावाली- ‘बाबी, भारी उठवैत-उठवैत त माथ सुन्न भऽ गेल अछि। ई माटि कते भारिये अछि।’ बाबी- ‘कनियाँ, बहुत हिसाब जोड़ि कऽ बुझबै पड़त।’ सिरखरियावाली- ‘ओते अखन नै कहथु। खाली छठिये टा कहि देथु। गोटे दिन निचेन स’ आबि कऽ सब बुझि लेब।’ आंगुर पर बाबी हिसाबो जोड़ति आ ठोर पटपटा कऽ बजवो करथि- ‘आइ आसिनक अमवसिये छी। आइये भगवती कऽ हकारो पड़तनि आ बघा-सँपहाक निमित्ते खाइयो ले देल जेतइ। काल्हि कलशस्थापन स’ दुर्गा पूजा शुरु हैत। जे नओ-दस दिन धरि चलत। दसमी तिथि के यात्रा हैत। तेकर पाँचे दिन उत्तर कोजगरा हैत। कोजगरा परात स’ कातिक चढ़त। कातिक अमावाश्या कऽ दियावती.... लक्ष्मी पूजा.... कालीपूजा। परात भने गोधन पूजा, दोसर दिन भरदुतिये आ चित्रगुप्तो पूजा। भरदुतिये परात स छठिक विधि शुरु भऽ जायत। पहिल दिन माछ-मड़ुआ बारल जायत.. .दोसर दिन नहा क खायल जायत.... तेसर दिन खरना.... चारिम दिन छठिक सौंझुका अर्घ। पाँचम दिन भिनसुरका अर्घ भेला पर उसरि जायत। आंगुर पर गनैत-गनैत बाबी बजलीह- ‘कनियाँ, सवा मास करीब छठि कऽ अछि।’ सिरखरियावाली- ‘सवा मास कते भेलई, बाबी?’ ‘दू बीस मे तीनि दिन कम।’ ‘हम त सब बेरि दशमिये मेला मे कोनिया, सूप, छिट्टा कीनि लइ छी। तकरा कए-अ दिन छै?’ ‘सात पूजा के भगवतीकेँ आँखि (डिम्भा) पड़ला पर मेला शुरु भऽ जायत छै। जेकरा आठ दिन छै। मुदा एकटा बात पूछै छिअह जे एते अगता किअए कीनै छह? ताबे अइ पाइ सऽ दोसर-दोसर काज करबह से नै। जखन पावनि लगिचा जेतइ तखन कीनि लेबह?’ ‘पहिने कीनिला स दू-पाइ सस्तो होइए आ एकटा चीजो स’ निचेन भऽ जाइ छी। एक बेरि एहिना नइ कीनलौ त’ भेवे ने कयल। आब की करितौ तेँ पुरने कोनियो-सूपो आ छिट्टो के चिक्कन से धो दलियै आ ओही से पावनि कऽ लेलौ।’ सिरखरियावालीक बात सुनि बाबी व्यवहार दिशि बढ़लीह। मने-मन वुदवुदेलीह- छठि पावनिक महात्म्य बहुत बेसी अछि। खास कऽ किसानक लेल। एक दिशि वूर्वजक मिठाइ-पकवान त दोसर दिशि डोमक बनाओल कोनिया, सूप, छिट्टा। तेसर दिशि कुम्हारक बनाओल कूड़ (बिनु मोड़ल कान। पनिभरा घैल मे मे मोड़ल कान होइत) जहि मे चैमुखी दीप जरैत। ढ़कना, सरबा। त चारिम दिस अपन उपजाओल फल-फलहरी, तीमन-तरकारीक वस्तुक संग मसल्लो क वस्तु। बहुतो अछि। तइ पर स डूबैत सूर्यक पहिल अर्घ। मने-मन बिचारि बाबी चुप्पे रहलीह। मन मे भेलनि जे इ त ओहि इलाकाक छी जहि इलाकाक स्त्रीगण रौद-बसात कऽ गुदानिते ने अछि। खेतक काज करै मे भुते। भगवानो केँ हारि मनबै वाली। बाँबी कऽ मन मे होइन जे चुप भऽ गेलहुँ तेँ बेचारी चलि जायत। मुदा ले बलैया, इ त काग-भुसुण्डी जेँका डूबि गेल। भानसक अबेर होइत जाइत देखि बाबी कऽ अकच्छ लगनि। जबकि हेजाक मरीज जेँ सिरखरिया बाली कऽ पियास बढ़ले जाइत। अचता-पचता कऽ बाबी पुछलखिन- ‘कनियाँ, बेटी सबहक हालत की छह?’ बेटी नाम सुनितहि सिरखरियावाली किछु मन पाड़ि बाजलि-‘बाबी हिनका स लाथ कोन। तीनूक हालत हमरा स नीक छै। भगवान गरदनि कट्टी केलनि तेँ ने, ने ते कि हमही एहिना रहितौ।’ बाबी- ‘भगवान ककरो अधला थोड़े करै छथिन जे तोरा केलखुन?’ सिरखरियाबाली- (मूड़ि डोलबैत) ते केलनि नै। हमरा पँच-पँच बरीस पर बच्चा देलनि। पाँच वरिस पर देलनि से नीके केलनि जे जखैन एकटा छँटि जाइत छल तखन दोसर होइत छल। मुदा अगता तीनू बेटिये जे देलनि से गरदनि कट्टी नै केलनि। जँ अगता तीनिू बेटा रहैत, नइ त मेलो-पाँच कऽ, त अखैन इ भारी काज अपने करितौ कि पुतोहू करिते। पचता बेटा भेल, जे अखैन लिधुरिये अछि।’ बाबी- ‘जेठकी बेटीक सासुर कतऽ छह?’ सिरखरियाबाली- ‘उत्तर भर। खुटौना टीशन लग। बेचारी कऽ खेत त कम्मे छै, मुदा सब तुर मेहनतीया अछि। एक जोड़ा बड़द रखने अछि। दू टा महीसि लधैर खुट्टा पर छै आ तीनि टा पोसियो लगौने अछि। अन्नो-पानि तते उपजा लइ अए जे साल-माल लगिये जाइ छै।’ बाबी- ‘नाति-नातिन छह की ने? सिरखरियावाली- ‘हँ, तीनि टा अछि। तीनू लिधुरिये अछि। तंग-तंग बेटी रहै अए। तीनूक नेकरम करैत-करैत तबाह रहै अए। तइ पर से घर-गिरहस्तीक काज।’ बाबी- ‘दोसर बेटीक सासुर कत्तऽ छह?’ सिरखरियावाली- ‘पू भर। कोशी कात। (कोशिकन्हा) बाबी- ‘कोशी कात किअए केलह?’ सिरखरियावाली- ‘बाबी जानि कऽ कहाँ केलियै। गाम ते नीके रहए मुदा कत्तऽ से ने कत्तऽ से कोशी चलि एलै। कोशियो एलै ते अन्न-पाइनिक कोनो दुख नै होइ छै। मुदा अपना सब जेँका चिष्टा नहि। गाम मे महीसि बेसी छै, जइ से रस्ता-पेरा हेँक-हेँक भलि रहै छै। बाबी- ‘छोटकी?’ सिरखरियावाली- ‘पछिमभर, पाही। इ हम्मर रानी बेटी छी। जते दिन ऐठाम रहै अए रं-विरंगक तीमन-तरकारी खुआवै अए। भानस करैक ऐहेन लूरि दुनू मे ककरो ने छै। जहिना भानस-भात करै मे, तहिना बोली वाणी। गीतो-नाद जे गबै अए, से होइत रहतनि जे सुनिते रही। तहिना चिष्टो चर्या ओढ़वो-पहिरब।’ बाबी- ‘बड़ बेर उठलै। आब तोहू जा।’ सिरखरियावाली- ‘आइ हमरा गंजन लिखल अछि। विचारने छलौ जे जे माटि आनि कऽ धान काटि आनव। (गरमा धान) से नहिये भेल। काल्हि फेरि घरे-अंगना नीपै मे लगि जायब।’ गामक सब बाबी कऽ मेह बुझैत। छथियो। जँ ककरो मन खराब वा कोनो आफत-असमानी होइत त बाबी सबसँ पहिने आबि सेवा-टहल मे लगि जाइत। तहिना जँ कहियो बाबीक मन खराब होइत त गामक लोक जी-जान स लगि जायत। किऐक त सबहक मन मे इ अंदेशा बनल जे बाबीक मुइने गामक बहुत विधि-व्यवहार समाप्त भऽ जायत। ओन बाबी पढ़ल- लिखल नहि, चिट्ठिओ पुरजी नहि पढ़ल होइत छनि। जरुरतो नहि। किऐक त सालो भरिक पावनि आ ओकर विधि, मांगलिक काजक (उपनयन, विवाह इत्यादि) विधि कंठस्थ। कोन गीति कोन अवसर पर गाओल जायत, सब जीभि पर राखल। तहिना पूजाक आराधना स ल कऽ आरती धरिक। सब कुछ रहितहुँ बाबीक मन मे एकटा कचोट समरथाइये स लगल रहि गेलनि। ओ इ जे एकटा बेटा भेलाक बाद दोसर सन्ताने नहि भेलनि। अपन इच्छा रहनि जे एकटा बेटा, एकटा बेटी हुअए। मुदा बेटा त भेलनि बेटी नहि। जे कचोट सभकेँ कहबो करथिन। कहथिन जे सृष्टिक विकास लेल पुरुष नारी दुनूक जरुरत अछि। नहि त विकास रुकि जायत। ने एकछाहा पुरुषे स काज चलत आ ने एकछाहा नारिये स। भरदुतियाक परात बाबी माछ-मड़ुआ बाड़लनि। काल्हि नहा कऽ खेतीह। परसू खरना करतीह। खरना दिन ले बाबी सतरिया धानक अरबा चाउर सब साल रखैत छथि। किऐक त टोलक (पनरहे घरक) खरना स लऽ कऽ घाट पर हाथ उठबै धरिक काज बाबीऐक जिम्मा। मुदा दिन गज-पट भऽ जाइत छनि। किऐक त कियो मेहीका धानक अरबा चाउर आ गुड़ दइत छनि त कियो मोटका धानक अरबा चाउर आ गुड़। अरबा त अरबे छी। मोटका-मेहीकाक भेद नहि। तेँ बाबी कऽ खीर रन्है मे पहपटि भऽ जाइत छनि। फुटा-फुटा कऽ कोना करतीह। तेँ सबहक अरबा चाउर कऽ खाइ ले रखि लइ छथि आ अपन सतरिया चाउरक खरना करै छथि। सिर्फ खरने नहि करै छथि, मन मे इहो रहै छनि जे परिवारक हिसाव स एत्ते खीर घुमा दिअए जे घर मे चुल्हि नै चढै़। षष्ठी। आइ सौझुका अर्घ होयत। तड़गरे बाबी सुति उठि कऽ पावनिक ओरियान मे लगि गेलीह। बहुत चीज भेवो कयल आ बहुत बाकियो अछि। मुदा भरि दिन त ओरिअवैक समय अछि। तहि बीच डेढ़िया पर सऽ बाबी, बाबी ‘सुनलनि। मुदा टाटक अढ़ रहने बोली नहि चीन्हि सकलीह। मन मे भेलनि जे आइ पावनि छी तेँ कियो किछु पुछै ले आयल होयत। ओसारे पर स कहलखिन- ‘के छिअहुँ। अंगने आउ।’ पथिया मे दू टा नारियल, पान (पाँच) छीमी केरा, दू टा टाभ नेबो, दू टा दारीम, दू टा ओल, दू टा अड़ूआ, दू टा टौकुना, दू टा सजमनि, एक मुट्ठी गाछ लागल हरदी, एक मुट्ठी आदी नेने रहमतक (मुसलमान) माए आंगन पहुँच बाबीक आगुु मे रखि बाजलि- ‘बाबी, अपनो डाली ले आ हिनको ले नेने एलिएनि हेँ।’ पथिया स सब वस्तु निकालि ओसार पर रखि निग्हारि-निग्हारि बाबी देखए लगलीह। बच्चे मे रहमत बीमार पड़ल ओकरे कबुला माए केने रहति। तेँ पान साल स ओहो छठि पावनि करैत। जे बात बाबियो केँ बुझल। ओना बाबी अपने आंगन मे भुसबा, ठकुआ बनवैत। मुदा तेकर दाम रहमतक माए दऽ दन्हि। पथिया लऽ रहमतक माए विदा हुअए लगली कि बाबी कहलखिन- ‘कनियाँ, कनी ठाढ़ रहू। रौतुका (खरनाक) नेवैद्य नेने जाउ।’ घर स केरा पात पर खीर आनि रहमतक माए कऽ दऽ देलखिन। हाथ मे नेवैद्य अबितहि रहमतक माएक मन खुशी स नाचि उठल। बेटा कऽ निरोग जिनगी जीबैक आशा सेहो भऽ गेलनि। मने-मन दिनकर कऽ गोड़ लागि विदा भेलि। अंगना स निकलितहि छलि कि एक पाँज कुसियारक टोनी नेने परीछन पहुँच गेल। एक टोनी बाबी कऽ आ एक टोनी रहमतक माए कऽ दइत सुरसुराइले निकलि गेल। किऐक त अंगने मे सब (सभ) ले टोनी बना नेने छल। बाबी कऽ कुसियारक टोनी दइत रहमतक पाए कहलकनि- ‘हमरा आइ हाट छी बाबी, तेँ कनी देरी से घाट पर आयब।’ बाबी- ‘हम त छीहे कनियाँ, तइ ले तोरा किअए चिन्ता होइ छह। दिनकर-दीनानाथ ककरो अधलाह करै छथिन जे तोरा करथुन। अपन भरि नियम-निष्ठा रखैक चाही।’ रहमतक माए चलि गेल। बाबी फुटा-फुटा सब वस्तु रखै लगलीह। तहि काल दछिनबरिया अंगना मे हल्ला सुनलखिन। ओसार पर स उठि डेढ़िया पर ऐली कि सुनलखिन जे खुशिया बेटा केराक घौड़ स एकटा छीमी तोड़ि कऽ खा गेलइ तइ ले माए चारि-पाँच खोरना मरलकै। बेटा कऽ कनैत देखि खुशिया घरवाली पर बिगड़ै लगल। तेकरे हल्ला। अपने डेढ़िया पर स बाबी कहलखिन- ‘पावनिक दिन छिअए। तखन तू सब भोरे-भोर हल्ला करै छह। दुधमुहा बच्चा ज एक छीमी केरा तोड़ि कऽ खाइये गेलइ तइ ले एते हल्ला किअए करै छह।’ बाबीक बात सुनि दुनू बेकती खुशिया त चुप भेल मुदा छैाँड़ा हिचुकि-हिचुकि कनिते रहल। तहि बीच सोनरेबाली आबि बाबी कऽ कहलकनि- ‘बाबी, नीक की अधला त हिनके कहवनि की ने। देखथुन जे पाइक दुआरे ने छिट्टा भेल ने कोनियाँ।’ सोनरेवालीक बात सुनि बाबी गुम्म भऽ गेलीह। कने काल गुम्म रहि कहलखिन- ‘नै पान त पानक डंटियो सऽ काज चलैत अछि। जकरा छै ओ सोना-चानीक कोनियाँ मे हाथ उठबै अए आ जकरा नइ छै ओ त बाँसेक सुपती स काज चलबै अए। तइ ले मन किअए ओछ केने छह। सबके कि सब कुछ होइते छै। जेकरा जते विभव होइ अए ओ ओते लऽ कऽ पावनि करै अए। तेँ कि दिनकर ककरो कुभेला करै छथिन।’ तहि बीच दीपवाली पाँच बर्खक बेटा कऽ हाथ पकड़ने धिसिअबैत पहुँच कहलकनि- ‘बाबी, देखथुन जे इ छैाँड़ा तेहेन अगिलह अछि जे हाथी कऽ पटकि देलकै। इ त गुण भेलि जे एक्के टा टाँग टुटलै, नै ते टुकड़ी-टुकड़ी भऽ जायत।’ मुस्की दइत बाबी कहलखिन- ‘देखहक कनियाँ, इ सब दिखाबटी छिअए। मनुक्ख केँ मन मे श्रद्धा हेवाक चाही। अइ ले बच्चा कऽ किअए दमसवै छहक। छोड़ि दहक।’ सूर्य उगले सब घाट पर पहुँच डाली पसारलक। नवयुवती सब गीति गवै लगलीह। हाथ उठौनिहारि पानि मे दुनू हाथ जोड़ि ठाढ़ भेलीह। एक्के ताल मे ढ़ोलिया ढ़ोल बजबै लगल। पोखरिक चारु महार दीप स जगमगा गेल। परदेशियो सब छठि पावनि करै गाम आयल। एक गोटे कऽ नाच कवुला रहै ओ नाच करबै लगल। ताबे दू टा छैाँड़ा दारु पीबि फटाका फोेेड़ै लगल। दुनू बेमत। एक गोटेक फटाका मे कम अवाज भेलइ कि दोसर पीहकारी मारि देलक। अपन डूबैत प्रतिष्ठा क जाइत देखि ओ ओकरा (पीहकारी देनिहार कऽ) कालर पकड़लक। दुनू अपन-अपन परदेशिया भाषा मे गारि-गरौबलि शुरु केलक। गारि-गरौबलि स मारि फँसि गेलइ। दुनू दुनू कऽ खूब मारलक। दोसर दिन भिनसुरका अर्घ। खुब अन्हरगरे सब घाट पर पहुँचल हाथ उठौनिहारि पानि मे पैसिलीह। चैमुखी दीप स सैाँसे प्रकाश पसरि गेल। सूर्योदय होइतहि दीपक ज्योति मलिन हुअए लगल। हाथ उठै लगल। बच्चा-बुच्चीक संग रहमतक माए पोखरिक मोहार पर आँचर नेने दुनू हाथ जोड़ि बाबी पर आंखि गड़ौने। तहि काल मुसबा गिलास मे दूध नेने पहुँचल। किनछरि मे पैसि एक ठोप, दू ठोप दूध सब डाली (कोनियाँ) मे दिअए लगल। हाथ उठा बाबी पानि स निकलि, साड़ी बदलि, छठिक कथा कहै लगलखिन। कथा कहि अकुड़ी छीटि पावनिक विसर्जन केलनि। अखन धरि जे ढ़ोलिया एक ताल मे ढ़ोल बजवैत छल ओ समदाउनिक ताल धेलक। नटुओ समदाउन गबै लगल। सब अपन-अपन कोनियाँ समेटि छिट्टा मे रखि, ढ़ोलिया कऽ एकटा ठकुआ एक छीमी केरा दऽ दऽ, विदा भेलि। 3. प्रतिभा मर्म डाॅक्टर राममनोहर लोहिया जेहने विद्वान तेहने देशभक्त रहथि। देशप्रेमक विचार पिता स विरासत मे भेटल रहनि। ततबे नहि ओहने मस्त-मौला सेहो रहथि। सदिखन चिन्तन आ आनन्द मे जिनगी वितवथि रहथि। विदेश स अबै काल मद्रास बन्दरगाह पर जहाज स उतड़िलथि। कलकत्ता जेबाक छलनि। मुदा संग मे टिकटोक पाइ नहि। बिना भाड़ा देने कोना जइतथि। बंदरगाह स उतरि सोझे ‘हिन्दू’ अखबारक कार्यालय मे जा सम्पादक केँ कहलखिन- अहाँक पत्रिकाक लेल हम दू टा लेख देव।’ सम्पादक पूछलखिन- ‘लाऊ कहाँ अछि।’ लिख क दऽ दइ छी’ लेख त लिखल छलनि नहि, कहलखिन- ‘कागज-कलम दिअ, अखने लिखि क दइ छी।’ लोहिया जीक जबाव सुनि सम्पादक बकर-बकर मुह देखै लगलनि। तखन डाॅक्टर लोहिया अपन वास्तविक कारण बता देलखिन। कारण बुझलाक बाद सम्पादक जी बैसबोक आ लिखबोक ओरियान कऽ देलखिन। किछु घंटाक उपरान्त दुनू लेख तैयार क लोहिया जी द देलखिन। दुनू लेख पढ़ि सम्पादक गुम्म भ मने-मन हुनक प्रतिभाक प्रशंसा करै लगलखिन। ज्ञानक महत्ता सर्वोपरि अछि। ई बुझि एक्को क्षण व्यर्थ गमेबाक चेष्टा नहि करक चाही। सदिखन अपना कऽ नीक काज मे लगौने रहक चाही। एकटा स्कूल। जहि मे हेलब सिखाओल जायत। नव-नव विद्यार्थी प्रवेश लइत आ हेलैक कला सीखि-सिखि वाहर निकलैक। स्कूलेक आगू मे खूब नमगर चैड़गर पोखरि। जेकरा कात मे त कम पानि मुदा बीच मे अगम पानि। शिक्षक घाट पर ठाढ़ भऽ देखए लगलथि। विद्यार्थी सब पानि मे धँसल। विद्यार्थी सब केँ आगू मुहे (अगम पानि दिशि) बढ़ल जाइत देखि शिक्षक कहै लगलखिन- ‘बाउ, अखन अहाँ सब अनजान छी। हेलब नइ जनैत छी। तेँ अखन अध् ि ाक गहीर दिस नै जाउ। नइ त डूबि जायब। जखन हेलब सीखि लेब तखन पाइनिक उपर मे रहैक ढ़ंग भऽ जायत। जखन पाइनिक उपर मे रहैक ढ़ंग (कला) सीखि लेब, तखन ओकर लाभ अपनो हैत (होयत) आ दोसरो कऽ डूबै स बचा सकब। एहिना संसार मे वैभवोक अछि। अनाड़ी ओहि मे डूबि जायत अछि, जबकि विवेकवान ओहि पर शासन करैत अछि। जहि स अपनो आ दोसरोक भलाई होइत छैक।’ वैभवक स्थिति मे व्यक्ति अपने कुसंस्कार स गहीर खाइ खुनि स्वयं डूबि जाइत अछि। 4. अधखड़ुआ दू टा चेलाक संग गुरु घूमै ले विदा भेला। गाम स निकलि पाँतर मे प्रवेश करितहि बाध दिशि नजरि पड़लनि। सगरे बाध खेत सब मे माटिक ढ़िमका देखलखिन। तीनू गोटे रस्ते पर स हियासि-हियासि देखऽ लगलथि, जे ऐना किऐक छै? किछु काल गुनधुन क दुनू चेला गुरु केँ कहलकनि- ‘अपने एतै छाहरि मे बैसियौक, हम दुनू भाइ देखने अबै छी।’ ‘बड़बढ़िया’ कहि गुरु बैसि रहलथि। दुनू चेला विदा भेल। कातेक खेत स ढ़िमका देखैत दुनू गोटे सौंसे बाधक ढ़िमका देखि, घुरि गेल। सब ढ़िमकाक बगल मे कूप खुनल छलैक। मुदा कोनो कूप मे पानि नहि छलैक। सिर्फ एक्केटा कूप मे पानिओ छलैक आ ढ़ेकुलो गारल छलैक। ओना त सौंसे बाधे खीराक खेती भेलि छल मुदा सब खेतक लत्ती पाइनिक दुआरे जरि गेल छलै। सिर्फ एक्केटा खेत मे झमटगर लत्तिओ छल आ सोहरी लागल फड़लो छल। गुरु लग आबि चेला बाजल- ‘सब ढ़िमकाक बगल मे कूप खुनल छैक मुदा पानि नहि छैक, सिर्फ एक्केटा टा कूप मे पानियो छैक, ढ़ेकुलो गारल छैक आ खेत मे सोहरी लागल खीरो फड़ल छैक।’ चेलाक बात ध्यान स सुनि गुरु पूछलखिन- ‘ऐना किऐक छै?’ दुनू चेला चुप्पे रहल। चेला के चुप देखि गुरु कहै लगलखिन- ‘ऐहन लोक गामो सब मे ढ़ेरिआइल अछि जे चट मंगनी पट विआह करै चाहैत आछि। जते उथ्थर कूप छैक, जहि मे पानि नहि छैक, ओ खुननिहारो सब ओहने उथ्थर अछि। कोनो काज-चाहे आर्थिक होय वा बौद्धिक वा सामाजिक- अगर ढ़ंग स नहि कयल जयतैक त ओहने हेतैक। बीच मे जे एकटा कूप देखलिऐक, ओ खुननिहार किसान मेहनती अछि। अपन धैर्य आ श्रम स माटिक तरक पानि निकालि खीरा उपजौने अछि। तेँ ओकरा मेहनतक फल भेटिलैक। बाकी सब कामचोर अछि तेँ आशा पर पानि फेरा गेलैक।’ 5.समयक बरबादी एकटा व्यवसायी किस्सा सुनलक जे राजा परीक्षित एक्के सप्ताह भागवत सुनि ज्ञानवान भऽ गेल छलाह। तेँ हमहू किऐक ने भऽ सकै छी। ओ कथावाचक भजिअबै लगल। कथावाचक भेटलैक। दुनू गोटे (कथोवाचक आ व्यवसायियो) अपन-अपन लाभक फेरि मे। कथावाचक सोचैत जे मालदार सुनिनिहार भेटल आ व्यवसायी सोचैत जे जिनगी भरि बईमानी क बहुत धन अरजलौ आबो मरै बेरि किछु ज्ञान अरजि ली जहि स मुक्ति हैत। कथा शुरु भेल। सप्ताह भरि कथा चलल। सप्ताह बीतला पर व्यवसायी व्यास जी (कथावाचक) कऽ कहलकनि- ‘अहाँ नीक-नहाँति कथा नहि सुनेलहुँ, हमरा ज्ञान कहाँ भेल?’ दछिना नहि देव।’ व्यवसायीक बात सुनि व्यासकजी कहलखिन- ‘अहाँक ध्यान सदिखन पाइ कमाइ दिस रहै अए ते ज्ञान कोना हेत?’ दुनू एक-दोसर कऽ दोख लगबै लगल। केयो अपन गल्ती मानै ले तैयारे नहि। दुनूक बीच पकड़ा-पकड़ी होयत पटका-पटकी हुअए लगल। ओहि समय एकटा विचारबान व्यक्ति रास्ता स गुजरैत रहथि। ओ देखलखिन। लग मे जा दुनू गोटे कऽ झगड़ा छोड़बति पूछलखिन। दुनू गोटे अपन-अपन बात ओहि व्यक्ति कऽ कहलकनि। दुनूक बात सुनि ओ व्यक्ति दुनूक हाथ-पाएर बान्हि कहलखिन- ‘आब अहाँ दुनू गोटे एक-दोसरक बान्ह खोलू।’ बान्हल हाथ स कोना खुजैत? बंधन नहि खुजल। तखन ओ निर्णय दैत कहलखिन- ‘दुनू गोटेक मन कतौ आओर छल तेँ सफल नहि भेलहुँ। सप्ताह भरिक समय दुनूक गेल तेँ अपन-अपन घाटा उठा घर जाउ। एकात्म भेने बिना आध्यात्मिक उद्देश्यक पूर्ति नहि होइत छैक।’ 6.पहिनेतपतखनढ़लिहें। एक दिन एकटा कुम्हार माटिक ढ़ेरी लग बैसि, माटि स ल कऽ पकाओल बरतन धरिक विचार मने-मन करैत छल। कुम्हार कऽ चिन्तामग्न देखि माटि कहलकै- ‘भाइ! तोँ हमर ऐहन बरतन बनावह जहि मे शीतल पानि भरि क राखी आ प्रियतमक हृदय जुरा सकी।’ माटिक सवाल सुनि, कने काल गुम्म भऽ कुम्हार माटि केँ कहलक- ‘तोहर बिचार तखने संभव भऽ सकै छउ, जखन तोरा कोदारिक चोट, गधा पर चढ़ैक, मुंगरीक मारि खाइक, पाएर स गंजन सहैक आ आगि मे पकैक साहस हेतउ तखने भऽ सकै छोउ। एहि स कम गंजन भेने पवित्र पात्र नहि बनि सकै छेँ।’ 7.खलीफा उमरक स्नेह। खलीफा उमर गुलामक संग घूमै ले देहात दिशि जाइत रहथि। किछु दूर गेला पर देखलखिन जे एकटा बुढ़िया जोर-जोर स अंगन मे बैसि कानि रहल अछि। रास्ता स ससरि ओ डेढ़िया पर जा ओहि बुढ़िया स कनैक कारण पूछलखिन। हिचुकैत बुढ़िया कहै लगलनि- ‘हमर जुआन बेटा लड़ाई मे मारल गेल। हम भूखे मरै छी मुदा एकोदिन खलीफा उमर खोजोखबरि लइ ले नहि आयल।’ बुढ़ियाक बात सुनि उमर चोट्टे घुरि, घर पर आबि, एक बोरी गहूम अपने माथ पर ल बुढ़िया ऐठाम विदा भेला। माथ पर गहूमक बोरी देखि गुलाम कहलकनि- ‘अपने बोरी नहि उठबियहुँ। हमरा दिअ नेने चलै छी।’ गुलाम केँ उमर जबाव देलखिन- ‘हम अपन पापक बोझ उठा खुदाक घर नहि जायब त पाप कोना कटत? अहाँ त हमरा पापक भागी नहि हैब।’ गहूमक बोरी बुढ़ियाक घर उमर पहुँचा देलखिन। गहूम देखि बुढ़िया नाम पूछलकनि। मुस्कुराइत उमर जबाव देलखिन- ‘हमरे नाओ उमर छी।’ असिरवाद दैत बुढ़िया कहलकनि- ‘अपन परजाक दुख-दरद क अपन परिवारक दुख-दरद जेँका बुझि क चलब तखने आदर्श बनि सकब। जखन आदर्श बनब तखने हजारो-लाखो लोकक दुआ भेटत आ अमर हैब।’ 8.जखनेजागीतखनेपरात प्रसिद्ध उपनयासकार डाॅक्टर क्रोनिन बड़ गरीब रहथि। मुदा जखन पी.एच.डीकेलनि आ किताब सब बिकै लगलनि तखन धीरे-धीरे सुभ्यस्त होअए लगलथि। धन कऽ अबैत देखि मनो बढ़ै लगलनि। क्रिया-कलाप सेहो बदलै लगलनि। क्रिया-कलाप कऽ बदलैत देखि पत्नी कहलकनि- ‘जखन हम सब गरीब छलौ तखने नीक छलौ जे कम स कम हृदय मे दयो त छल। मुदा आब ओ (दया) समाप्त भेल जा रहल अछि।’ पत्नीक बात सुनि क्रोनिन महसूस करैत कहलखिन- ‘ठीके कहलहुँ। धनीक धन स नहि होइत बल्कि मन (हृदय) स होइत अछि। हम अपन रास्ता स भटकि गेल छी। जँ अहाँ नहि चेतबितहुँ त हम आरो आगू बढ़ि ओहि जगह पर पहुँच जइतहुँ जत्ते एक्कोटा मनुक्खक बास नहि होइत छैक।’ 9.अस्तित्वक समाप्ति एक ठाम, कने हटि-हटि कऽ, तीनि टा पहाड़ छलैक। पहाड़क पँजरे मे नमगर आ गँहीर खाधियो छलैक। जहि स लोकक आवाजाही नहि छलैक। एक दिन एकटा देवता ओहि दिशा स होइत गुजरति रहथि। तीनू पहाड़ कऽ देखि पूछलखिन- ‘एहि क्षेत्रक नामकरण करैक अछि से ककरा नाम स करी? संगहि अपन कल्याणक लेल की चहैत छ?’ पहिल पहाड़ कहलकनि- ‘हम सबसँ उँच भऽ जाय, जहि स दूर-दूर देखि पड़िऐक।’ दोसर बाजल- ‘हमरा खूब हरियर-हरियर प्रकृतिक सम्पदा स भरि दिअ। जइ स लोक हमरा दिशि आकर्षित हुअए।’ तेसर कहलक- ‘हमर उँचाई कऽ छीलि एहि खादि कऽ भरि दिऔक, जहि स ई सैाँसे क्षेत्र उपजाउ बनि जाय। लोकोक आबाजाही भऽ जयतैक।’ तीनू जोगार लगा देवता विदा भऽ गेला। एक बर्खक उपरान्त तीनूक परिणाम देखैक लेल पुनः अयलाह। पहिल पहाड़ खूब उँचगर भऽ गेल छल। मुदा क्यो ओमहर जेबे ने करैत। पानि पाथर, बिहाड़ि, रौद आ जाड़क मारि सबसँ बेसी ओकरे सहै पड़ैक। दोसर तत्ते प्रकृतिक सम्पदा स भरि गेल जे बोनाह भऽ गेल। बनैया जानबरक डरे क्यो ऐबे ने करैत। तेसर पहाड़ स खाधियो भरि गेलैक आ अपनो समतल भऽ गेल। खाधि स ल कऽ पहाड़ धरिक जगह उपजाउ बनि गेलैक। खेती-बाड़ी करै ले लोकक आवाजाही दिन-राति भऽ गेलैक। तेसर पहाड़क नाम पर क्षेत्रक नामकरण करैत देवता कहलखिन- ‘यैह पहाड़ अपन अस्तित्व समाप्त कऽ खाधियो क अपना हृदय मे लगौलक। जहि स ई क्षेत्र उपजाउ बनि गेल। तेँ एहिक नाम पर एहि क्षेत्रक नाम राखब उचित थिक।’ 10.खजाना एकटा इलाका मे रोैदी भऽ गेलै। सब तरहक परिवार कऽ सब तरहक जीबैक रास्ता छलैक। मुदा एकटा दशे कट्ठावला किसान मजदूर छल। जे अपने खेत मे मेहनत कऽ गुजर करैत छल। रौदी देखि वेचारा सोचै लगल जे जाबे पाइन नहि हैत, ताबे खेती कोना करब? जाबे खेती नइ करब ताबे खाइब की? तेँ अनतै चलि जाय, जे काज लागत ते गुजरो चलत। जब बरखा हेतै त, धुरि क चलि आयब आ खेती करब। ई सोचि सब तूर, नुआ वस्तु ल विदा भ गेल। जाइत-जाइत दुपहर भऽ गेलै। भूखे-पियासे बच्चा सब लटुआय लगलै। छोटका बच्चा ठोहि फाड़ि-फाड़ि कानै लगलै। रास्ता कात मे एकटा झमटगर गाछ देखि सब केँ छाहरिक आशा भेलै। सब तूर गाछ तर जा पड़ि रहल। छोटका बेटा माए कऽ कहलक- ‘माए! भूखे परान निकलै अए, कुछो खाइ ले दे।’ बेटाक बात सुनि माएक करेज पघिलए लगलै मुदा करैत की? खाइ ले ते किछु रहबे ने करै। मुदा तइयो बेचारी कहलकै- ‘बौआ, कने काल बरदास करु। खाइक जोगार करै छी।’ सब तुर जोगार मे जुटि गेल। क्यो माटिक गोला क चुल्हि बनवै लगल, ते क्यो जारन आनै गेल। क्यो पानि अनै इनार दिशि विदा भेल। गाछक उपर स एकटा चिड़ै कहलकै- ‘ऐ मूर्ख! पकबैक (भोजन बनवैक) त सब जोगार सब करै छह मुदा पकेवह की? जखन पकबैक कोनो चीज छहे नहि त छुछे चुल्हि जरेबह।’ बड़का बेटा यैह सोचैत छल जे कतौ स किछु कन्द-मूल आनि, उसनि क खायव। मुदा तेहि बीच चिड़ैक मजाक सुनि खिसिया के कहलकै- ‘तोरे सब परिवार क पकड़ि आनि पका कऽ खेबौ।’ चिड़ैक मुखिया डरि गेल। मने-मन सोचै लगल जे परस्पर सहयोगक पुरुषार्थ किछु क सकैत अछि। तेँ झगड़ब उचित नहि। मिलान स्वर मे बाजल- ‘भाई! हमरा परिवार कऽ किऐक नाश करवह। तोरा गारल खजाना देखा दइ छिअह। ओकरा ल आबह आ चैन स जिनगी बितविहह।’ ओ (चिड़ै) खजाना देखा देलकै। सब मिलि ओहि खजाना के ल घर दिशि घुरि गेल। ओकरा घरक बगले मे दोसरो ओहने परिवार छलै। जकरा सब बात ओ कहि देलकै। मुदा ओहि परिवारक सब कोइढ़ आ झगड़ाउ। खजानाक लोभे ओहो सब तूर विदा भेल। जाइत-जाइत ओहि गाछ तर पहुँचल। पहिलुके जेँका भानस करैक नाटक सब करै लगल। गारजन जकरा जे अढ़बै से करैक बदला झगड़े करै लगै। गाछ पर स ओइह चिड़ै कहलकै- ‘भोजनक जोगारे करै मे ते सब कटौज करै छह, तखन पकेवह की?’ पहिलुके जेँका परिवारक मुखिया कहलकै- ‘तोरे पकड़ि क पकेवह?’ हँसैत चिड़ै उत्तर देलकै- ‘हमरा पकड़ैवला क्यो आओर छल जे सब धन ल चलि गेल। तोरा बुत्ते किछु ने हेतह?’ 11.साहस सोंवियत संघक नेता लेनिन पर, एकटा सिरफिरा पेस्तौल चला देलकनि गोली त निकलि गेलनि मुदा छर्रा (छर्रा) गरदनि मे फँसले रहि गेलनि। तहि बीच देश मे एकटा पुल टुटि गेलै। पुल मुख्य मार्ग मे छलै। तेँ जत्ते जल्दी भऽ सकैत ओते जल्दी पुल बनायब छलैक। आपात् स्थिति घोषित कऽ ओहि पुलक मरम्मत युद्धस्तर पर हुअए लगलैक। देशप्रेमी जनता ओहि काज मे लगि गेल। लेनिन सेहो ओहि काज मे जुटल। श्रमिकेक जेँका लेनिनो काज करैत रहथि। गरदनि मे गोली रहनहुँ ओ बीस-बीस घंटा काज करति रहथि। काज करैत देखि एकटा श्रमिक पूछलकनि तखन ओ कहलखिन- ‘अगर हम अगुआ भऽ काज मे पाछू रहब तखन जन उत्साह कोना बढ़तै? जकर जरुरत देश मे अछि।’ 12.उग्रघ्ाारा द्वापर युगक संध्याकालीन कथा थिक। महाभारतक लड़ाई सम्पन्न भऽ गेल छल। एक दिन एकांत मे बैसि अर्जुन त्रेताक राम-रावणक लड़ाई आ द्वापरक कौरव-पाण्डवक लड़ाइक तुलना मने-मन करति रहथि। अनायास मोन मे उठलनि जे लंका जेवा काल रामक सेना एक-एक पाथरक टुकड़ा कऽ जोड़ी जे समुद्र मे पुल बनौलनि, ओ त एक तीरो मे बनि सकैत छल। एहि प्रश्न पर जत्ते सोचति तत्ते शंका बढ़ले जाइन। अंत मे, यैह सोचलनि जे पम्पापुर मे हनुमान तपस्या कऽ रहल छथि तेँ हुनके स किऐक ने पूछि लेल जाय। हनुमान केँ भजिअबै ले अर्जुन विदा भेला। जाइत-जाइत हनुमानक कुटी पर पहुँचलथि। हनुमान तपस्या मे लीन रहथि। कुट्टीक आगू मे बैसि अर्जुन हनुमानक ध् यान टूटैक प्रतीक्षा करै लगलथि। जखन हनुमानक ध्यान टूटलनि तऽ अर्जुन कऽ देखलखिन। आसन स उठि अतिथि-सत्कार करैत हनुमान अर्जुन केँ पूछलखिन- ‘अहाँ के छी, कोन काजे एहिठाम एलहुँ? अपन परिचय दइत अर्जुन कहै लगलखिन- ‘अपने त्रेताक महावीर छी तेँ एकटा शंकाक समाधानक लेल एलहुँ।’ ‘पुछू?’ ‘लंका जेबा काल जे समुद्र मे एक-एक टा पाथरक टुकड़ा जोड़ि जे पुल बनाओल, ओ त एक तीरो मे बनि सकैत छल?’ अर्जुनक बात सुनि, किछु काल गुम्म भऽ हनुमान उत्तर देलखिन- ‘हँ, मुदा ओ ओते मजगूत नहि होइतैक जते एक-एक पाथरक टुकड़ा जोड़ि कऽ भेलैक।’ हनुमानक उत्तर स अर्जुन असहमत होइत कहलखिन- ‘तीरोक बनल पुल त ओहने मजगूत भऽ सकैत छलैक। एहि प्रश्न पर दुनूक बीच मतभेद भऽ गेलनि। अंत मे परीक्षाक नौबत आबि गेलैक। दुनू गोटे समुद्रक कात पहुँचलाह। तरकश स तीर निकालि अर्जुन धनुष पर चढ़ा, समुद्र मे छोड़लनि। पुल बनलै। अपन विकराल रुप बना हनुमान पुल पर कुदैक उपक्रम केलनि। अन्तर्यामी कृष्ण सब देखति रहथि। मने-मन सोचलनि जे महाभारतक नायक अर्जुन हारि रहल छथि। हुनक हारब हमर हारब हैत। संगहि महाभारतक लड़ाई सेहो झूठ भऽ जेतैक। तेँ प्रतिष्ठा बँचबैक घड़ी आबि गेल अछि। जहि सोझे हनुमान पुल पर खसितथि तहि सोझे कृष्ण अपन कन्हा पुलक तर मे लगा देलथिन। हनुमान कुदलाह। पुल त टूटै स बचि गेलैक मुदा कृष्णक करेज चहकि गेलनि। जहि स पानि मे खून पसरै लगलैक। खून स रंगाइत पानि देखि हनुमान ध्यान करै लगलथि जे ऐना किऐक भऽ रहल छैक। भजिअबैत ओ ओहि जगह पर पहुँच कृष्ण कऽ देखलखिन। अचेत कृष्ण कऽ देखि, दुनू हाथ जोड़ि हनुमान क्षमा मंगलखिन। 13.समरपन(समर्पण) : स्रष्टाकसमग्ररचना समुद्र स मिलैक लेल धार (नदी) विदा भेलि। रास्ता मे बलूआही इलाका पड़ैत छल। जुआनीक जोश मे धार विदा त भेलि मुदा रास्ता के बालू आगू बढ़ै ने दैत। सब पाइन सोखि लैत। धारक सपना टूटै लगलैक। मुदा तइयो साहस क धार अपन उद्गम स्रोत स जल ल लऽ दौड़ी क आगू बढ़ै चाहति मुदा धारक सब जल बालू सोखि लैत। जहि स धार आगू बढ़ै मे असफल भऽ जायत। झुंझला क निराश भऽ धार बालू के पूछलकै- ‘समुद्र मे मिलैक हमर सपना अहाँ नहि पूर हुअए देव?’ बालू उत्तर देलकै- ‘बलुआही इलाका होइत जायब संभव नहि अछि। अगर अहाँ अपना प्रियतम सँ मिलै चाहैत छी त अपन सम्पत्ति बादल केँ सौंपि दिऔक, तखने पहुँच पायब।’ अपन अस्तित्व क समाप्त करैक अद्भुत समरपनक साहस हेबे ने करै। मुदा बालूक विचार मे गंभीरता छलैक। किछु काल विचारि धार समरपनक लेल तैयार भऽ गेलि। तखन ओ पानिक बुन्नक रुप मे अपना क बदलि बादलक सबारी पर चढ़ि समुद्र मे जा मिलल। सृष्टि निरमानक (निर्माणक) काज सम्पन्न भ गेलि। प्राणी सभ क बजा ब्रह्मा अपन-अपन कमीक पूर्ति करा लइ ले कहलखिन। सब प्राणी अपन-अपन कमीक चरचा करै लगल। मुद एक्के बेरि जे सब बजै लगल ते हल्ला मे केयो ककरो बात सुनबे ने करैत। तखन सभकेँ शान्त करैत ब्रह्मा बेरा-बेरी बजै ले कहलखिन। सभक बात सुनि ब्रह्मा ककरो अठन्नी ककरो चैवन्नी, दस पैसी सुधार कऽ देलखिन। अखन धरि मनुक्ख पछुआइले छल। पहिने ब्र्र्र्र्र्रह्मा नारी के पूछलखिन। ‘अहाँ मे की कमी रहि गेल अछि, बाजू?’ तमतमाइत नारी कहलकनि- ‘हमरा त बड़ सुन्नर बनेलहुँ, मुदा अपना सन दोसर नारी के देखि मन मे जलन हुअए लगैत अछि। तेँ एक रंग दू टा नारी नहि बनबियौक।’ मुस्कुराइत ब्रह्माजी एकटा अयना आनि नारीक हाथ मे द देलखिन आ कहलखिन- ‘बस, एक्केटा सहेली अहाँ सन बनेलहुँ। जखन मन हुअए तखन आगू मे अयना राखि देखि लेब। जँ सेहो देखैक मन नहि हुअए त अयना देखबे ने करब।’ 14.पाप आ पुण्य : देवता मनुक्खक रोम-रोम मे ईश्वर परब्रहम समाइल छथि। ककरो अहित करैक इच्छा करब अपना लेल पाप कऽ बाजाएव थिक। दधीचिक पुत्र पिप्लाद अपन माइक मुहे अपन पिताक हड्डी देवता द्वारा मांगब आ ओहि स बनाओल बज्र स अपन परान बचाएव सुनलनि। सुनितहि पिप्लाद क देवताक प्रति असीम घृणा मन मे उठलनि। मने-मन सोचै लगलथि जे अपन स्वार्थ सधैक लेल दोसरक प्राण हरब, कत्ते नीचता थिक। मन मे क्रोध जगलनि। पिताक बदला लेबा लेल ओ (पिप्पलाद) तप करैक विचार केलनि। पिप्पलाद तप शुरु केलनि। तप शुरु करितहि मनक ताप कमै लगलनि। बहुत दिनक उपरान्त भगवान शिव प्रकट भ कहलखिन- ‘बर मांगू?’ प्रणाम क पिप्पलाद शिव केँ कहल- ‘अपने अपन रुद्र रुप धारण क एहि देवता सभ केँ जरा क भस्म क दिऔक।’ पिप्पलादक बर (बात) सुनि शिव स्तब्ध भऽ गेला। मुदा अपन वचन त पूरबै पड़तनि। तेँ देवता क जरबैक लेल तेसर आखि खोलैक उपक्रम करै लगलथि। एहि उक्रमक आरंभे मे पिप्पलादक रोम-रोम जरै लगल। अपन अंग क जरैत देखि (बुझि) जोर स हल्ला करैत शिव क कहै लगलखिन- ‘भगवान! ई की भ रहल अछि? देवताक बदला हम खुदे जरि रहल छी।’ मुस्की दैत शिव कहै लगलखिन- ‘देवता अहाँक देह मे सन्हिआइल छथि। अवयवक शक्ति हुनके सामथ्र्य छिअनि। देवता जरता आ अहाँ बँचल रहब। से कोना हैत? आगि लगौनिहार स्वयों जरैत अछि।’ पिप्पलाद अपन याचना घुमा लेलनि। तखन भगवान शिव कहलखिन- ‘देवता सभ त्यागक अवसर द अहाँ पिताक काज क गौरवान्वित केलनि। मरब त अनिवार्य थिक। एहि से ने अहाँक पिता बँचितथि आ ने वृत्तासुर राक्षस।’ पिप्पलादक भ्रम टूटि गेलनि। ओ आत्म कल्याण दिशि मुड़ी गेलाह। अपन पोथी-पतरा उनटबैत चित्रगुप्त आसन पर बैसल छला। तहि बीच दू गोटे के यमदूत हुनका लग पेश केलक। पहिल व्यक्तिक परिचय दैत यमदूत कहलकनि- ‘ई नगरक सेठ छथि। हिनका घनक कोनो कमी नहि छनि। खूब कमेबो केलनि आ मंदिर, धरमशाला सेहो बनौलनि।’ कहि यमराज सेठ क कात मे बैसाय देलक। दोसर क पेश करैत बाजल- ‘ई बड़ गरीब छथि। भरि पेट खेनाइयो ने होइत छनि। एक दिन खाइत रहति कि एकटा भूखल कुत्ता लग मे आबि ठाढ़ भ गेलनि। भूखल कुत्ता क देखि थारी मे जे रोटी बँचल छलै ओ ओकरा आगू मे द देलखिन। अपने पानि पीबि हाथ धोय लेलनि। आब अपने जे आज्ञा दियैक।’ यमदूतक वियान सुनि चित्रगुप्त पोथिओ देखति आ विचारबो करथि। बड़ी काल धरि सोचैत-विचारैत निर्णय देलखिन- ‘सेठ के नरक आ गरीब के स्वर्ग ल जाउ।’ चित्रगुप्तक निर्णय सुनि यमराजो आ दुनू व्यक्तियो अचंभित भऽ गेल। तीनू गोटे केँ अचंभित देख अपन स्पष्टीकरण मे चित्रगुप्त कहै लगलखिन- ‘सेठ गरीब आ निःसहाय लोकक शोषण केने अछि। ओहि निःसहाय लोकक विवशताक दुरुपयोग केने अछि। जहि स अपनोे ऐश-मौज केलक आ बचल सम्पत्तिक नाम मात्र लोकेषणक पूर्ति हेतु व्यय केलक। तहि स लोकहितक कोन काज भेलैक? ओहि मंदिर अ धरमशल्ला बनबैक पाछू ई भावना काज करैत छलैक जे लोक हमर प्रशंसा करै। मुदा पसेना चुबा के जे गरीब कमेलक आ समय ऐला पर ओहो कुत्ते क खुआ देलक। जँ ओकरा ओरो अधिक धन रहितैक ते नहि जानि कत्ते अभाव लोकक सेवा करैत।’ 15.परख्: आलसी एकटा किसान कऽ चारि टा बेटा छल। बेटा सभक बुद्धि परखैक लेल किसान सभकेँ बजा एक-एक आँजुर धान द कहलक- ‘तू सब अपन-अपन विचार स एकरा अपयोग कर।’ धान के कम बुझि जेठका बेटा आंगन मे छिड़िया देलक। चिड़ै सब आबि-आबि बीछि-बीछि खा गेल। ओहि धान कऽ माझिल बेटा तरहत्थी पर ल-ल रगड़ि-रगड़ि, भुस्सा क मुह से फूकि, खा गेल। बापक देल धान क सम्पत्ति बुझि साँझिल बेटा कोही मे रखि लेलक, जे जँ कहियो बाबू मंगताह ते निकालि कऽ द देवनि। छोटका बेटा, ओहि धान कऽ खेत मे बाउग क देलक। जइ स कैक बर बेसी धान उपजलैक। किछु दिनक बाद, चारु बेटा केँ बजा किसान पूछलक जे ‘धान की भेल?’ चारु बेटा अपन-अपन केलहा काज कहलकनि। चारु बेटाक काज देखि किसान छोटका बेटा क बुद्धियार बुझि परिवारक भार दैत कहलक- ‘परिवार मे ऐहने गुण अपनबै पड़ैत छैक। ऐहने गुण अपनौला स परिवार सुसम्पन्न बनैत छैक।’ एकटा गाछ पर टिकुली आ मधुमाछी रहैत छलि। दुनूक बीच घनिष्ठ दोस्ती छलैक। भरि दिन दुनू अपन जिनगीक लीला मे लगल रहैत छलि। अकलबेरा मे दुनू आबि अपन सुख-दुखक गप्प-सप्प करैत छलि। बरसातक समय एलै। सतैहिया लाधि देलकै। मधुमाछीक लेल त अगहन आबि गेलैक मुदा टिकुलीक लेल दुरकाल। भूखे-पियासे टिकुली घरक मोख लग मन्हुआइल बैसलि छलि। मुह सुखायल आ चेहरा मुरुझाइल छलै। चरौर क आबि मधुमाछी टिकुली कऽ पूछलकै- ‘बहिन! ऐहन सुन्नर समय मे एत्ते सोगाइल किऐक बैसल छी?’ मधुमाछीक बात सुनि कड़ुआइल मने टिकुली उत्तर देलकै- ‘बहिन! मौसमक सुन्नरता स पेटक आगि थोड़े मिझाइत छै। तीनि दिन स कतौ निकलैक समये ने भेटलि, तेँ भूखे तबाह छी।’ उपदेश दैत मधुमाछी कहलकै- ‘कुसमयक लेल किछु बचा क राखक चाही।’ कहलौ त बहिन ठीके मुदा बचा क रखला स आलसियो भऽ जैतहुँ आ भूखलक नजरि मे चोरो होइतहुँ।’ 16.प्रेम जखन परिवार मे पति-पत्नी आ बच्चा सभक बीच स्नेह रहैत छैक तखन परिवार स्वर्गो स सुन्दर बुझि पड़ैत छैक। नमहर स नमहर विपत्ति परिवार मे किऐक ने आबे मुदा ढ़ंग स चलला पर ओहो आसानी स निपटि जाइत छैक। एकटा छोट-छीन गरीब परिवार छल। दुइये परानी घर मे। सब साल दुनू परानी-सुनिता आ सुशील- अपन विवाहोत्सब मनबैत। गरीब रहने त बहुत ताम-झाम स उत्सव नहि मनबैत मुदा मनबैत सब साल छल। छोट-मोट उपहार एक-दोसर क, याद स्वरुप दैत छल। साले-साल एहि परम्परा क निमाहैत। अहू बर्ख ओ दिन एलै। उत्सवक दिन स किछु पहिनहि स उपहारक योजना दुनू मने-मन बनवै लगल। मुदा दुनूक हाथ खली। भरि पेट खेनाइयो ने पूरै तखन जमा क की राखैत। मने-मन सुशील योजना बनौने जे पत्नीक बकेश मे लगबै ले क्लीप नहि छैक तेँ एहि बेरि ओइह (क्लीप) उपहार देबैक। तहिना सुनितो सोचैत जे पति घड़ीक चेन पुरान भ गेल छनि तेँ एहि बेरि चेन कीनि कऽ देबनि। दुनू अपन अपन जोगार मे। मुदा नाजायज कमाई नहि रहने जोगारे ने बैइसै। उत्सवक दिन अबै मे एक दिन बाकी रहलै। अंतिम समय मे सुशील सोचलक जे आइ साँझ मे घड़ी बेचि क्लीप कीनि लेब। सुनीतो सोचलक जे अपन केश कटा क बेचि लेब तहि स घड़ीक चेन भ जायत। साँझू पहर दुनू गोटे- फुट-फुट बाजार गेल। सुशील घड़ी बेचि क्लीप कीनि लेलक आ सुनिता केश बेचि चेन कीनि लेलक। खुशी स दुनू गोटे घर आबि अपन-अपन वस्तु-चेन आ क्लीप- ओरिया क रखि लेलक। सबेरे सुति उठि कऽ दुनू परानी हँसैत एक-दोसर क उपहार दइ ले आगू बढ़ल। सुनिता टोपी पहिरने छलि। क्लीप निकालि सुशील सुनिताक टोपी हटा क्लीप लगबै चाहलक, मुदा केशे नहि। तहिना चेन निकालि सुनिता घड़ी मे लगबै चाहलनि ते हाथ मे घड़िये नहि। ’आमने-सामने दुनू ठाढ़। दुनूक मुह से ते किछु नहि निकलैत मुदा, दुनूक हृदय मे हर्ष-विस्मयक बीच घमासान लड़ाई छिड़ गेल। अंत मे हृदय बाजल- ‘जे सिनेह दूधक समुद्र्र मे झिलहोरि खेलैत अछि ओकर लेल क्लीप आ चेनक कोन महत्व छैक। 17.हैरियटस्टो अमर लेखिका हैरियट एलिजावेथ स्टो विश्व-विख्यात पोथी ‘टाम काकाक कुटिया’ लिखने छथि। जहि समय ओ पोथी लिखैत रहति ओहि समय ओ कठिन परिस्थिति मे जिनगी बितवति रहथि। ओना अकसरहाँ लोक एहि पोथी कऽ अमेरिकाक दास प्रथाक विरोध मे लिखल मानैत छथि। अपन परिस्थितिक संबंध मे अपन भौजी कऽ कहलखिन- ‘चुल्हि-चैकाक काज, नुआ-बस्तर धोनाइ, सिआई केनाई, जूता-चप्पल पौलिस आ मरम्मत करब जिनगीक मुख्य काज अछि। बच्चा आ परिवारक सेवा मे भरि दिन सिपाही जेँका खटै छी। छोटका बच्चा लग मे सुतैत अछि तेँ जाधरि ओ सुति नहि रहैत अछि ताधरि किछु ने सोचि सकै छी आ ने लिखि पबै छी। गरीबी आ परिवारक काज एहि रुपे दबने अछि जहि स समये कम बँचैत अछि। मुदा तइयो एक-दू घंटा सुतैक समय काटि, अपने सन लोकक लेल, जनिका परिवरक अंग बुझैत छिअनि, तनिका लेल किछु लिखि-पढ़ि लैत छी।’ हुनके (स्टोक) लिखल पोथी स उत्तरी अमेरिका आ दछिनी अमेरिका मे दास प्रथाक खिलाप का्रन्ति भेल। 18.बुझैकढ़ंग :श्रमिकक इज्जत एकटा यात्री वृन्दावन विदा भेल। किछु दूर गेला पर रास्ताक बगल मे मीलक पाथर पर नजरि पड़लै। ओहि मीलक पाथर मे वृन्दावनक दूरी आ दिशा लिखल छलै। ओ यात्री ओतइ अटकि बैसि रहल आ बजै लगल जे पाथरक अंकन त गल्ती नहि भऽ सकैत अछि किऐक त विश्वासी (बिसवासी) लोकक लिखल छियैक। वृन्दावन त आबिये गेल छी, आगू बढ़ैक की प्रयोजन?’ थोड़े कालक बाद एकटा बुझनिहार आदमी ओहि रस्ते कतौ जाइत रहथि ते सुनलखिन। मेन-मन खूब हँसलथि। कने काल ठाढ़ भऽ हँसैत ओहि यात्री क कहलखिन- ‘पाथर पर सिरिफ (सिर्फ) संकेतमात्र अछि। एहिठाम स वृन्दावन बहुत दूर अछि। जँ अहाँ ओतइ जाय चाहै छी त तुरनते सब सामान समेटि विदा भ जाउ नहि त नइ पहुँचव।’ भोला-भाला यात्री अपन भूल मानि विदा भेल। ऐहन बहुतो लोक छथि जे शास्त्रो पढ़ैत छथि, शास्त्रीय बातो सुनै छथि, मुदा धरम धारण करैक रास्ता पकड़बे ने करैत छथि तखन ओ धर्म कोना बुझथिन। जे ध् ारम की थिकैक?’ अपन संगी-साथीक संग नेपोलियन टहलै ले जाइत रहथि। जेरगर रहने सैाँसे रास्ता छेकायल छलैक। दोसर दिशि स एकटा घसबाहिनी माथ पर घासक बोझ नेने अबैत छलि। ओहि घसबाहिनी पर सबसँ पहिल नजरि नेपोलियनक पड़लैक। ओ पाछू घुरि क देखल। सैाँसे रास्ता घेरायल छलैक। अपन पैछला संगीक हाथ पकड़ि खिंचैत कहलक- ‘श्रमिकक सम्मान करु। एक भाग रास्ता खाली कऽ दिऔक। यैह देशक अमूल्य संपत्ति थिक। ऐकरे बले कोनो देशक उन्नति होइत छैक।’ घसबाहिनी टपि गेलि। थोड़े आगू बढ़ला पर पुनः नेपोलियन संगीसभ सँ कहलखिन- ‘सद्प्रवृत्ति कऽ बढ़ेबाक चाही। ओकरा जत्ते महत्व देबैक ओत्ते जन-उत्साह जगतैक। जहि स देशक कल्याण हेतैक।’ 19.तियाग(त्याग) : वंश(कुल) एक दिन महान् विचारक सिसरो कऽ एकटा धनिक स कोनो बाते कहा-सुनी हुअए लगलनि। ने ओ धनिक पाछू हटै ले तैयार आ ने सिसरो। दुनूक बीच पकड़ा-पकड़ीक नौबत अबै लगलै। खिसिया क ओ धनिक सिसरो कऽ कहलक- ‘तूँ नीच कुलक छेँ, तेँ तोरा-हमरा कथीक बराबरी?’ एहि बात स सिसरो बिचलित नहि भ साहस स उत्तर देलखिन- ‘हमरा कुलक कुलीनता हमरा स शुरु हैत जबकि तोरा कुलक कुलीनता तोरा स अंत हेतौ।’ सभ्यता आ कुलीनता जन्म स नहि बल्कि चरित्र आ कर्तव्य स पैदा लैत अछि। सत्संग, भागवत आ प्रवचन मे बेरि-बेरि तियागक महिमाक चर्चा होइत। त्याग क ईश्वर प्राप्तिक रास्ता बताओल जाइत। बेरि-बरि जरायुध एहि चरचा के सुनैत। तेँ मन मे बिसवास भ गेलनि जे सत्ते तियाग स ईश्वर प्राप्ति हेइत। ओ (जरायुध) अपन सब सम्पत्ति दान क देलखिन। मुदा दान केलो उपरान्त हुनका ने मन मे शान्ति एलनि आ ने ईश्वर भेटिलनि। निराश भ जरायुध महाज्ञानी शुकदेव लग पहुँच पूछल- ‘जनक त संग्रही छलाह मुदा नइयो हुनका ब्रह्मज्ञान प्राप्ति भऽ गेल छलनि आ हम सब कुछ त्यागियो के ने ब्रह्मज्ञान पाबि सकलहुँ आ ने शान्ति भेटल। एकर की कारण छैक?’ ध्यान स जरायुधक बात सुनि सुकदेव उत्तर देलखिन- ‘आवश्यक वस्तु कऽ परमार्थ मे लगा देव त नैतिक आ सामाजिक कर्तव्य बुझल जाइत। आध्यात्मिक स्तरक त्याग मे सब वस्तुक ममत्व छोड़ि ओकरा ईश्वरक घरोहर बुझै पड़त। शरीर आ मन सेहो सम्पदा छी। ओकरा ईश्वरक अमानत मानि हुनके इच्छानुसार कयला पर बुझबै जे सही त्याग भेलि आ मोक्षक रास्ता भेटत।’

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