पछिला चारि-सालक रौदी भेने गामक सुरखिये बेदरंग भऽ गेल। जे गाम हरियर-हरियर गाछ-बिरीछ, बन्न स लहलहाइत खेत, पानि स इनार-पोखरि, सैकड़ो रंगक चिड़ै-चुनमुनी, हजारो रंगक कीट-पतंग स लऽ कऽ गाय, महीसि, बकरी स भरल रहैत छल ओ मरनासन्न भऽ गेल। सुन-मसान जेँका। बीरान। सबहक (गामक लोकक) मन मे एक्के टा विचार अबैत जे आब इ गाम नै रहत। जँ रहबो करत त सिर्फ माटिये टा। किऐक त जहि गाम मे खाइक लेल अन्न नहि उपजत, पीवैक लेल पानि नहि रहत, तहि गामक लोक कि हवा पीबि कऽ रहत। जहि मातृभूमिक महिमा अदौ स सब गबैत अएलाह ओ भूमि चारिये सालक रौदी म पेटकान लाधि देलक। मुदा तइओ लोकक टूटैत आशाक वृक्ष मे नव-नव फुलक कोढ़ी टुस्साक संग जरुर निकलि रहल अछि। किऐक त आखिर जनकक राज मिथिला छिअए की ने। जहि राज्य मे बाहर-बर्खक रौदीक फल सीता सन भेटल तहि राज मे, हो न हो, जँ कहीं ओहने फल फेरि भेटए। एक दिशि रौदीक (अकालक) सघन मृत्युवाण चलैत त दोसर दिशि स आशाक प्रज्वलित वाण सेहो ओकर मुकावला करैत। जेकर हसेरियो नमहर। ऐहनो स्थिति मे दुनू परानी डोमनक मन मे जीबैक ओहने आशा बनल रहल जेहने सुभ्यस्त समय मे। कान्ह पर कोदारि नेने आगू-आगू डोमन आ माथ पर सिंही माछ आ बिसाँढ़ स भरल पथिया नेने पाछु-पाछु सुगिया, बड़की पोखरि स आंगन, जिनगीक गप-सप करैत अबैत। चाइनिक पसीना दहिना हाथ स पोछि, मुस्कुराइत सुगिया बाजलि- ‘जकरा खाइ-पीबैक ओरियान करैक लूरि बुझल छैक ओ कथीक चिन्ता करत?’ पत्नीक बात सुनि डोमन पाछु घुरि सुगियाक चेहरा देखि बिनु किछु बजनहि, नजरि निच्चा कऽ आगू डेग बढ़बै लगल। किऐक त खाइक ओते चिन्ता मन म नहि, जते पीबैक पाइनिक। डोमन कऽ अपन खेत-पथार नहि मुदा दुनू बेकती तेहन मेहनती जे नहियो किछु रहने नीक-नहाँति गुजर करैत। गिरहस्तीक सब काजक लूरि रहितहुँ ओ कोनो गिरहस्त स बन्हायल नहि ओना समय-कुसमय, अपना काज नहि रहने, बोइनो कऽ लइत। अपना खेत नहि रहने खेती त नहिये करैत मुदा दस कट्ठा मड़ुआ, सब साल बटाइ रोपि लइत। जहि स पाँच मन अन्नो घर लऽ अबैत। मड़ुआ बीआ उपजबै मे बेसी मिहनत होइत अछि किऐक त सब दिन बीआ पटबै पड़ैत अछि। शुरुहे रोहणि मे बड़की पोखरिक किनछरि मे डोमन बीआ पाड़ि लइत। लग मे पानि रहने पटबैयोक सुविधा। आरु बीरार, तेँ बीओ नीक उमझैत। पनरहे दिन मे बीआ रोपाउ भऽ जायत। मिरगिसिया मे पानि होइतहि अगते मड़ुआ रोपि लइत। मुदा अहि (एहि) बेरि से नइ भेलइ। बरखा नहि भेने बीआ बीरारे मे बुढ़हा गेल। एक्को धुर मड़ुआक खेती गाम मे नहि भेलइ। आने कियो अखन धरि धानक बीरार क खेत जोतलक आ ने बीआ वाओग केलक। रौदीक आगम सबहक मन मे हुअए लगल। मुदा तइओ ककरो मन मे अन्देशा नहि! किऐक त ढ़ेनुआर नक्षत्र सब पछुआइले अछि।
भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Sunday, September 13, 2009
कथा- बिसाँढ़- जगदीश प्रसाद मंडल
पछिला चारि-सालक रौदी भेने गामक सुरखिये बेदरंग भऽ गेल। जे गाम हरियर-हरियर गाछ-बिरीछ, बन्न स लहलहाइत खेत, पानि स इनार-पोखरि, सैकड़ो रंगक चिड़ै-चुनमुनी, हजारो रंगक कीट-पतंग स लऽ कऽ गाय, महीसि, बकरी स भरल रहैत छल ओ मरनासन्न भऽ गेल। सुन-मसान जेँका। बीरान। सबहक (गामक लोकक) मन मे एक्के टा विचार अबैत जे आब इ गाम नै रहत। जँ रहबो करत त सिर्फ माटिये टा। किऐक त जहि गाम मे खाइक लेल अन्न नहि उपजत, पीवैक लेल पानि नहि रहत, तहि गामक लोक कि हवा पीबि कऽ रहत। जहि मातृभूमिक महिमा अदौ स सब गबैत अएलाह ओ भूमि चारिये सालक रौदी म पेटकान लाधि देलक। मुदा तइओ लोकक टूटैत आशाक वृक्ष मे नव-नव फुलक कोढ़ी टुस्साक संग जरुर निकलि रहल अछि। किऐक त आखिर जनकक राज मिथिला छिअए की ने। जहि राज्य मे बाहर-बर्खक रौदीक फल सीता सन भेटल तहि राज मे, हो न हो, जँ कहीं ओहने फल फेरि भेटए। एक दिशि रौदीक (अकालक) सघन मृत्युवाण चलैत त दोसर दिशि स आशाक प्रज्वलित वाण सेहो ओकर मुकावला करैत। जेकर हसेरियो नमहर। ऐहनो स्थिति मे दुनू परानी डोमनक मन मे जीबैक ओहने आशा बनल रहल जेहने सुभ्यस्त समय मे। कान्ह पर कोदारि नेने आगू-आगू डोमन आ माथ पर सिंही माछ आ बिसाँढ़ स भरल पथिया नेने पाछु-पाछु सुगिया, बड़की पोखरि स आंगन, जिनगीक गप-सप करैत अबैत। चाइनिक पसीना दहिना हाथ स पोछि, मुस्कुराइत सुगिया बाजलि- ‘जकरा खाइ-पीबैक ओरियान करैक लूरि बुझल छैक ओ कथीक चिन्ता करत?’ पत्नीक बात सुनि डोमन पाछु घुरि सुगियाक चेहरा देखि बिनु किछु बजनहि, नजरि निच्चा कऽ आगू डेग बढ़बै लगल। किऐक त खाइक ओते चिन्ता मन म नहि, जते पीबैक पाइनिक। डोमन कऽ अपन खेत-पथार नहि मुदा दुनू बेकती तेहन मेहनती जे नहियो किछु रहने नीक-नहाँति गुजर करैत। गिरहस्तीक सब काजक लूरि रहितहुँ ओ कोनो गिरहस्त स बन्हायल नहि ओना समय-कुसमय, अपना काज नहि रहने, बोइनो कऽ लइत। अपना खेत नहि रहने खेती त नहिये करैत मुदा दस कट्ठा मड़ुआ, सब साल बटाइ रोपि लइत। जहि स पाँच मन अन्नो घर लऽ अबैत। मड़ुआ बीआ उपजबै मे बेसी मिहनत होइत अछि किऐक त सब दिन बीआ पटबै पड़ैत अछि। शुरुहे रोहणि मे बड़की पोखरिक किनछरि मे डोमन बीआ पाड़ि लइत। लग मे पानि रहने पटबैयोक सुविधा। आरु बीरार, तेँ बीओ नीक उमझैत। पनरहे दिन मे बीआ रोपाउ भऽ जायत। मिरगिसिया मे पानि होइतहि अगते मड़ुआ रोपि लइत। मुदा अहि (एहि) बेरि से नइ भेलइ। बरखा नहि भेने बीआ बीरारे मे बुढ़हा गेल। एक्को धुर मड़ुआक खेती गाम मे नहि भेलइ। आने कियो अखन धरि धानक बीरार क खेत जोतलक आ ने बीआ वाओग केलक। रौदीक आगम सबहक मन मे हुअए लगल। मुदा तइओ ककरो मन मे अन्देशा नहि! किऐक त ढ़ेनुआर नक्षत्र सब पछुआइले अछि।
2 comments:
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
adbhut prastuti
ReplyDeleteaai kalhi gam se palayanak bat par chalait maithili kathak beech ee katha apan ant se ekta pratiman gadhait achhi, nik aa alag soch
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