भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Tuesday, September 01, 2009
पेटार १६
सृजन केर दीप पर्व
चिन्ता आ चिन्ता
राज मोहन झा
ऑफिस पहुँचिकऽ सुस्ताइते छलहुँ कि शिखाक फोन आयल-ककाजी, बाबू काल्हि राँची
गेल छथिन। आइ अखबारमे बड़का ऐक्सीडेन्टक बारेमे जे निकललैए से जखनेसँ माय
पढ़लकैए, ओ बदहवास भेल छै से अहाँ कने अपना ऑफिससँ राँची फोन कऽ पता करितिऐ जे
बाबू पहुँचल छथिन कि की...नइ जँ कोनो आदमिएकें पठा दिऐ राँची....।
हमरा मन पड़ल, भोरका अखबारमे देखने रहिऐ - 'पेट्रोल टैंकर उलटने से भीषण
आग'. 'चीत्कार से पूरी घाटी थर्रा उठी', 'अठारह यात्रियों की दर्दनाक मौत' 'किसी की
पहचान नहीं', 'आग की लपटें पचास गज ऊँची उठी', 'पांच वाहन जल कर भस्म'। एहने
सन-सन मोटका शीर्षकक बाद पूरा समाचार पढ़ि गेल रही। पढ़ैत काल हमरा खट दऽ
लागल छल-भैयो तँ काल्हिए गेल छथि राँची ! हम समाचारक तारीख देखलिऐ--राँची 20
मई। मुदा कोना ने कोना हमरा भेल भैया तँ उन्नैसेकें चलल होयताह, तें ओ तँ सकुशल
पहुंचिए गेल होयताह, तकरा एक दिन बाद ई अग्निकांड भेल अछि। मुदा ई शिखा कहि रहल
अछि जे भैया काल्हिए गेलाह अछि।
आब ई दुर्घटनाक समाचार, जकरा बारेमे भोरमे हम पढ़ने रही, हमरा अपन संलग्नताक
परिधिमे लऽ अनलक आ हमरा लेल चिन्ताक विषय भऽ गेल। जावत धरि कोनो समाचारकें
अहाँ समाचारक रुपमे लियऽ, अहाँ ओकरा बड़ सतही ढँगसँ लैत छिऐ। मुदा जखने अहाँक
स्व ओहिमे सम्मिलित भऽ जाइत अछि, अहाँ ओकर सम्पूर्ण भयावहता आ दुष्परिणामक संग
ओकरा ग्रहण करैत छी, माने भोगैत छी। जे भोगैत अछि सैह कोनो घटना आ कि दुर्घनटाक
अर्थ बुझैत अछि, अखबार पढ़ऽवला केओ कहियो एकर अर्थ नहि बुझि सकैत अछि।
हम प्रकृतिस्थ होइत शिखासँ किछु आवश्यक प्रश्न पुछलिऐ-भैया कय बजे विदा भेल
छलाह? गाड़ीसँ गेलाहे कि ने ? संगमे शिंहजी सेहो छथि ने ? कोन रस्ता गेलाहे ? गाड़ी
नं. साठि सै साठि छनि ने ? बी. पू. यू ?
आ ओकरा कहलिऐ जे घबड़यबाक बात नहि छै। एक तँ बाबू तोहर रामगढ़ देने गेले
नइ होयथुन, गाड़ीसँ लोक जेनरली सोझे झालदा देने निकलि जाइत अछि, दूरा कम पड़ै छै
आ रोडो नीक छै। जँ रामगढ़ देने गेली होयताह, तँ जरुर ओहिसँ पहिनहि ओहिठामसँ पार
कऽ गेल हेथुन्ह। किए जे पाँच बजे भोरे जखन ओ विदा भेलाहे, तँ जतऽ ऐक्सीडेन्ट भेल छै-
रामगढ़सँ कनेके आगाँ--ओतऽसँ आठ बजे धि जरूरे ओ क्रॉस कऽ गेल होयताह। कोनो प्रश्ने
नइ उठैत छै। रामगढ़ एतऽसँ अढ़ाइ घंटाक रन छै। पाँच दू सात--साढ़े सात। रस्तामे कतहु
रुकलो होयताह दस मिनट, तॅ तैयो ओ आठ बजे धरि जरुर ओहिठामसँ पार भऽ गेल
होयताह। ऐक्सीडेन्ट आठ चालीस पर भेल छै, बहुत मार्जिन छै.....।
शिखाकें तँ से कहलिऐ, मुदा हमरा अपने मन कहऽ लागल जे ई मार्जिन कोनो बहुत
बेसी नइ छै। जँ कोनो कारणे भैया रुकि गेल होथि गाड़िए खराब भऽ गेल होनि ! तँ समय
तँ एकदम्म सँ वैह होइ छै ! हम भगवानसँ गोहराबऽ लगलियनि---हे भगवान! भैया नहि होथि
कहुना एहिमे । हमरा एकर भान भेल जे हमर एहि प्रार्थनाक पाछाँ खाली भैयाक प्रति
आत्मीयता कि स्नेह भाव नइ अछि, अपनो स्वार्थ अछि। जँ भैया कें किछु भऽ गेलनि, तँ हम
तँ काफी तरद्दुदमे पड़ि जायब। ओना बहुत लोक छनि हुनकर अपन--हमरा किछु खास करऽ
नहि पड़त। मुदा तैयो एहि झंझटकें हम टारऽ चाहैत रही। प्रायः एहू कारणे जे भैयाक संग
ई भयंकर दुर्घटना हम देखऽ नहि चाहैत रही। मुदा पता नहि भगवानक की इच्छा रहनि!
सभ स्थिति लेल लोककें एहन-एहन अवसर पर तैयार भऽ जयबाक चाही। ओह, जँ ई सत्ये,
तँ सभसँ पहिने हमरा भौजी आँखइमे नाचि उठलीह। तकरा बाद बेसी दूर धरि हम सोचि नहि
सकलहुँ, गड़बड़ा गेल।
भैया कोनो हमर सहोदर भाइ नहि थिकाह। मुदा स्नेह-भाव तेहने अछि जे भैया कहैत
छियनि हुनका आ हुनक पत्नीकें भौजी, शिखा हमरा ककाजी कहैत अछि। एहि परिवारक जे
एकटा सुखद-आह्लादकारी चित्र हमरा आँखिमे अछि तकरा हम भंग देखबाक कल्पनासँ व्यग्र
भऽ उठलहुँ।
हम दुपहरमे शिखाकें फोन कयलिऐ। एहि बेर भौजी अपने उठौलनि। हुनक गरा
बाझि गेल रहनि। स्पष्टे कनलासँ। रोगियाह स्वरमे पुछलनि ---- राँचीसँ कोनो खबर आयल
कहलियनि, जे एगोटे हमर ऑफिससँ राँची गेल अछि अपना काजसँ। ओकरा कहि देलिऐक
अछि जे जाइत काल बरिआतुए उतरि जायत आ पहिने सिंहजीक डेरा पर जा कऽ पता करत
जे ओ लोकनि ओतऽ सकुशल पहुँचि तँ गेल छथि, आ तखन कतहुसँ फोन कऽ देत तें
घबड़यबाक कोनो बात नइ। ओना हम फोन सेहो बुक कयने छी राँची। ऑफिसमे खबर
भेलासँ ओ लोकनि पता लगा लेताह। भौजीकें बुझैलियनि जे बेकार अहाँ अपस्याँत भेल छी,
निश्चित जानू जे ओ लोकनि सुरक्षित पहुँचि गेल छथि। फेर वैह सभ तर्क जे शिखाकें देने
रहिऐ। इहो कहलियनि जे अखबारमे जे जे नम्बर छपलैए, ताहिमे हिनकर गाड़ीक नम्बर नहि
छै। ओहो कहलनि जे हँ, फोटो सभ जे छपल छै गाड़ी सभक, ताहिमे तँ हिनकर गाड़ीक
नम्बर नइ छनि। मुदा एगो जीपक बारेमे जे छपलैए, से हमरा मनकें बेचैन कयने अछि। हम
हुनका कहलियनि-अहाँ बेकार चिन्ता कऽ रहल छी, ओ लोकनि सकुशल पहुँचि गेल छथि,
दुर्घटना होयबासँ पूर्वहि, एहिमे कोनो सन्देह नहि। ओ पुछलनि जे अहाँक पन से कहैत अछि
? हम कहलियनि हँ, हमर मन कहैत अछि। हम कहलियनि हुनका जे साँझ खन आयब हम,
तावत किछु खबर आबिए जायत। लेकिन अहाँ निश्चिन्त रहू घबड़यबाक कोनो बात नइ छै।
फोन राखि कऽ हम सोचलहुँ जे कतबो हमरा कहलासँ जे घबड़यबाक बात नहि छैक
ओ घबड़यनाइ थोड़बे छोडि देतीह! घबड़यनाइ हुनक स्वभाव छनि, बड़ जल्दी घबड़ा जाइत
छथि। मुदा भैयाक प्रति हुनक ई चिन्ता कतहुँ सँ बड़ आह्लादकारी आ सुखद बात लागल।
चारि बेज हम फेर फोन लगौलहुँ। शिखा उठौलक। पुछलिऐ जे राँचीसँ कोनो खबरि
आयल छौ ? ओ कहलक जे नइ। हम फेर ओकरा बुझौलिऐ जे चिन्ता करबाक कोनो
प्रयोजन नहि, ओ लोकनि निश्चित रुपसँ राँची ई दुर्घटना होयबाक पूर्वहि पहुँचि गेल छथि।
ओ कहलक जे मायतँ तखनेसँ खयनाइ पिनाइ छोड़ने छै, कतबो बुझबै छिऐ, बुझिते नइ छै,
ककाजी अहीं आबि कऽ किछु बुझबियौ तँ भऽ सकैत अछि, हमरा बुतें नइ होइत अछि। हम
कहलिऐ जे ऑफिसक बाद हम सोझे आबि रहल छी।
साँझ खन पहुँचलहुँ तँ भौजीकें देखि कऽ अवाक रहि गेलहुँ। एतबे कालमे जेना सभटा
सोनित हुनकर मुँह परसँ बिला गेल छलनि। हमरा दया आबि गेल। मुदा फेर हँसियो आयल।
आ तखन कने क्रोध।
कहलियनि--एना किए अहाँ कयने छी ? अहीं एना करऽ लगबै तँ...हमर आँखि शिखा दिस
उठल-अहाँकें एकरा सम्हारबाक चाही कि उन्टे अपने....आ से एहन कोनो बाते नइ छै।
ऑफिसमे सेहो फोन लागि गेल राँची। ओतऽ हम कहि देलिऐक अछि, कोनो चपरासीकें
पठाकऽ सिंह साहेब ओतऽ बूझऽ लेल जे ओ लोकनि पहुँचि गेल छथि कि नइ, आ कहलिऐ जे
बूझि कऽ अहाँकें फोन कऽ देत, रातिमे फोन आबि जायत।
शिखा कहलक जे से तँ मायो ऑफिसक एगोटेकें पठोलकैए राँची हम कहलिऐ तहन
कोन बात छै ? ओ आदमी तँ घुरि कऽ अयबे करत।
भौजो बजलीह-सैह देखियौ ने, ओहो जरलाहा जा कऽ बैसि रहलै ! हम पुछलियनि-
कय बजे गेल अछि ओ ? बारह बजे ? तहन चारि बजे धरि ओ पहुँचले होयत पाँच नइ
छौओ बजे ओ चलय राँचीसँ तँ दस बजे-धरि पहुँचि सकैत अछि। एखन हम घड़ी दिस देखि
कहलियनि--एखने जँ ओ चलल होय...ओहिसँ पहिने अहाँकें फोनो आबि जा सकैत अछि।
मुदा ई अहाँ निश्चित जानि लियऽ जे ओ लोकनि दुर्घटनासँ पूर्वे राँची पहुँचि गेल छथि।
भौजी कहऽ लगलीह जे हमरा मने नइ बानैए। आ कोनो बातमे चैन नइ होइए। हम
हुनका कतेक बुझौलियनि जे अहाँ बेकार चिन्ता करैत छी, अपनो परेशान भऽ रहल छी आ
अनको कऽ रहल छिऐ। वैह बात सभ जे फोन पर कहि चुकल छलियनि। कहलियनि जे
खाइ-पिबै जाउ अहाँ सभ, बेकार चिन्ता कऽ रहल छी। सुनलहुँ जे अन्नपानि अहाँ त्यागने छी
तखनेसँ।
भौजी बजलीह जे हुनका किछु घोंटले नइ जाइ छनि, खायक मने नइ होइ छनि। हम
शिखा दऽ पुछलियनि--ई किछु खयलक अछि कि ? भौजी बजलीह, जे हम तँ तहनसँ कहै
छिऐ जे किछु बना ले अपना लेल, नइ तँ आने किछु खाले। हम कहलियनि-नइ ई अहाँ
अन्याय कऽ रहल छी। उठू अपनो खाउ आ एकरो दियौ। भौजी बजलीह--अच्छा, एखन
कोनो अबेर नइ भैलैए, बनयबै आब। ता शिखा, ककाजीकें चायतँ बना दहुन, हमरो दऽ दिहें।
किछु रुकि कऽ कहलथिन--अपनो लेल बनो।
चायक संग शिखा एकटा प्लेटमे कलाकन्द लऽ कऽ आयलि। हम भौजी दिस प्लेट
बढ़ा कऽ कहलियनि--पहिने अहाँ लियऽ । ओ उठबैते नहि छलीह। हम कहलियनि जे पहिने
अहाँ लेबै, तखने केओ लेत। ओ कछमछा कऽ एक टा खंड उठौलनि। तखन शिखाकें
कहलिऐ जे तों उठो । ओ लजाइत 'हम खयने छी, हम खयने छी' करैत रहलि, मुदा हम
जबर्दस्ती उठबौलीऐ। भौजी कें देखने रहियनि बड़ी काल धरि कलाकन्दक खंडकें दू टा
आगुरसँ पकड़ने रहथि, फेर ओकरा तरहत्थी पर रखलनि, आ तकरा बाद हम देखलियनि नइ
जे कखन ओ ओकरा खयलनि। शिखाकें जरूर चिबबैत देखने छलिऐ। हमरा पूरा सन्देह
अछि जे भौजी हमर आँखि बचा ओकरा एम्हर -ओम्हर कऽ देलनि। यद्यपि मानलनि नइ ई
बात, हम कतबो तर्क दैत रहलियनि। दोसर बेर हुनका प्लेट बढ़ौलियनि, तँ ओ किन्नहु नहि
लेलनि।
चाय पिबैत काल आ तकरा बादो बड़ी काल धरि दुर्घटनेकें केन्द्रमे राखि गप्प होइत
रहल । भौजी बजलीह जे लोको सभ केहन होइत अछि ! की दुर्बुद्धि भेलै जे सभ पेट्रोल
भरऽ लगलै अपन-अपन डिब्बामे तँ कंटरमे । बिना रुकने सभ निकलि गेल रहैत, तँ ई काँड तँ
नइ ने होइतै।
हम कहलियनि---लोभ करऽ लागल, तें ने गेल। भौजी बजलीह---आ के जरलाहा
सिगरेट फेकि देलकै आ कि जरैत काठी दियासलाइक सड़कपर... । हम कहलियनि-नइ से तँ
इहो निकललैए अखबार मे
जे कोनो जीपक साइलेंसरसँ चिनगारी निकललै प्रायः, तें आगि लगलै। आब की भेलै से तँ...।
भौजी कहलनि जे जीपक बारेमे जे छपलैए ताहीसँ तँ जी हुनक सन्न छनि। हम कहलियनि --
एह, अहूँ जे छी। ओ जीप कमर्शियल टैक्सक रहै, सेहो तँ निकललैए। ओकर नम्बर नइ
देखलिऐ फोटो मे ...?
से तँ देखलिऐ --- भौजी बजलीह --लेकिन हम की करू, ओहो आदमी जे गेल अछि,
एखन धरि घुरि कऽ नइ आयल।
हम हुनका फेर बुझौलियनि। कहलियनि जे एखन नौए बाजल अछि ओ अबिते होयत।
एक घंटाक भीतर पहुँचि जायत। अहाँ निश्चिन्त रहू। जाइत काल फेर हुनका बुझौलियनि जे
ओ आदमी जे घड़ी ने आयल अछि, फोनो आबि सकैत अछि कखनो। अहाँ सभ खाइ-पिबै
जाउ, भैया एकदम सकुशल छथि, अहाँ निश्चित जानू। मुदा कतेक ओ बुझलनि से हमरा
हुनक मुँहे देखि कऽ बुझा गेल। हम और की करितियनि ? घुरलहुँ अपन डेरा । कहलियनि
जे भोरमे फेर आयब।
भोरमे जा तँ नइ सकलियनि, ऑफिस जा कऽ फोन कयलियनि। मालूमे भेल जे राँची
जे आदमी गेल छल, से राति मे घुरि आयल। भैया सकुशल छथि। ओ सभ राँची पहुँचि कऽ
दुर्घटनाक समाचार पढ़लनि। हम भौजीकें कहलियनि-हम तँ कहिते रही, अहाँ अनेरे परेशान
भेल रही। भौजी कहलनि जे ई आदमी बारह बजेक बाद पहुँचल, ताबत जे हुनक जी हलकान
होइत रहलनि से वैह जनैत छथि। हम कहलियनि-आब अहाँकें के बुझाबओ ? अहाँ तँ...खैर,
चिन्ता तँ दूर भेल आब ? प्रसन्न होउ आब। साँझमे अबै छी मिठाइ खाय।
साँझमे गेलहुँ तँ ता भैया आबि गेल रहथि। हुनका भरि पाँज धऽ कऽ कहलियनि--अहाँ
ठीक तँ छी ? बाप रे, अहाँ द्वारे भौजी जे परेशान छलीह, हम कतबी बुझबैत रहलियनि.......।
भैया कहलनि परेशान होयबाक तँ हिनक आदते छनि। एहिमे परेशान होयबाक बाते
की रहै ? हम सभ जखन अन्हरौखे विदा भेल रही जीपसँ, तँ हिनका बुझि जयबाक चाहियनि
जे हमरा सभक पहुँचि गेलाक बादे ई एक्सीडेन्ट भेल छै। आ एक्सीडेन्ट रामगढ़मे भेलै, हम
सभ रामगढ़ की करऽ जायब ? केओ गाड़ीबला रामगढ़ देने राँची किए जायत ? सोझे
झालदा देने किए ने निकलि जायत ? हम सभ तँ राँचीमे जा कऽ अखबारमे पढ़लहुँ जे एना
एना एक्सीडेन्ट भेल छै।
भौजी बजलीह आब हम कोना बुझबै जे अहाँ सभ कोन बाटे गेल छी ?रामगढ़ो देने तँ
जा सकैत रही ? हम की जानऽ गेलहुँ ! हम कहलियनि--हम तँ कहिते रही जे भैया झलदा
वला सड़क पकड़ने होयताह, रोड नीक छै, दूरियो कम पड़ै छै। खाली ई छै जे गाड़ीमे जँ
कोनो गड़बड़ी कि खराबी भेल, तँ ओहि रस्तामे कोनो मेकेनिक नइ भेटत तें हमरा होइत रहय
जे कतहु रामगढ़ देने... । भैया कहलनि, से कतहु निकलबासँ पूर्व ओ गाड़ीकें गैरेजमे पठा
चेक अप जरुर करबा लैत छथि। कंडीशनमे जँ नइ रहल गाड़ी, तँ ओ गाड़ी निकालिते नइ
छथि। भौजी बजलीह-देखू ने, ओ आदमी जे गेल रहय राँची, से जा कऽ देखैए तँ ई दुनू गोटे
ओतऽ फोंफ कटैत सूतल ! हम एतऽ चिन्ताक मारे मरल जाइत रही। आ कहबो कयलकनि
तँ हिनका सभके कोनो परबाहि नइ। ई तँ ओकरो रोकैत रहथिन जे काल्हि संगरि घुरब। वैह
कहलकनि जे नइ, जावत हम घुरि कऽ नइ पहुचँब, मेमसाहेब खाना नहि खयतीह। अनका
अनका हमर एते खेयाल रहै छै आ हिनका....। भौजी कननमुँह भऽ उठलीह।
भैया बजलाह--अरे ओ सिंह जी बेचारा परेशान भऽ गेल। एक पर एक आदमी जे
पहुँचऽ लगलै, तँ ओकरा तँ भेलै जे सभ हमरे ओतऽ डेरा खसाबऽ पहुँचि रहल अछि। अहाँक
ऑफिस सँ आदमी गेलै, फेर ई पहुँचलै, ता राँची ऑफिससँ लोक पहुँचलै ओ फराके डेरायल
जे एते आदमीकें हम...
भौजी तमकि कऽ कहलथिन-अरे, सिंह जी तँ आन लोक भेलाह। अहाँक बुद्धि कतऽ
चल गेल ? अहाँक कनेको हमर खयाल नइ जे हमर कोन हाल, होइत होयत ? अहाँ पहुँचि
कऽ फोन नइ कऽ सकैत रही कतहुसँ जे चिन्ताक कोनो बात नहि, हमसभ सकुशल पहुँचि गेल
छी? ....हमर प्राण जाइत रहय, आ अहाँके....? हुनक कण्ठ अवरुद्ध भऽ गेलनि, आँखि
छलछला अयलनि
हम सोचऽ लगलहुँ जे भौजीक चिन्ता, जकर हम द्रष्टा रहल छी, कतबा भैयाक लेल
छलनि आ कतबा अपना लेल। जकरा हम भैयाक प्रति हुनक प्रेम भाव बुझि आह्लादिल भेल
रही, से पता नहि कतेक प्रेम भाव छलनि आ कतेक अपन स्वार्थ । हमरा इहो लागल जे
भौजी जाहि तरहे डाँटि रहल छथिन भैयाकें, ताहिमे कतहु ई ने ओ सोचऽ लागथि जे एहिसँ
नीक तँ दुर्घटनेमे फँसि गेनाइ रहैत ! हम हुनकग दिस तकलहुँ, मुदा ओ सर्वदाक भाँति
निर्विकार भेल मुँह पर कोनो भाव लक्षित होबऽ देबासँ इन्कार करैत ठाढ़ रहथि।
सोभन
जीवकान्त
गामक बाहर एकगोट बड़का पोखरि छैक। मखनाही पोखरिक चारू मोहारपर जन-
बोनिहार सभ बसल छैक। दछिनबरिया मोहार पर बेसी मलाह छैक। ई सभ कहियो विचला
गाम पर गिरहत सभक संग बसल छलैक। पहिला बेर जे बड़का भोट भेल रहैक, तकर
अगिला साल ई सभ एक्के राति बिचला गाम परसँ उपटि गेल रहैक आ एहि मखनाही
पोखरिक मोहार सभपर आबि गेल रहैक। ई सभ गिरहत सभक काज छोड़ि देने रहैक।
किछु गोटे एखनो गिरहत नहि धयने छैक। बजारमे काज करैत छैक। बहुतो गोटे
राजमिस्त्रीक काज करैत छैक। किछुगोटे माछक पैकारी करैत छैक। मुदा, किछु गोटे गिरहत
धयने रहि गेल। गिरहत धयने आब घाटा नहि छैक। मिरहत सभ नोकरी करऽ बाहर चल
गेल छैक। एहेन गिरहत सभ खेतक आरिपर नहि जाइत छैक। एहेन गिरहतकें जे धयने
अछि, से अपना मोने खेत पर काज करैत अछि, अपना मोने बोइनि लऽ लैत अछि। एहेन
बोनिहार अपनाकें गिरहतक जन कहायब पसिन्न नहि करैत अछि। गिरहतक मनेजर कहायब
पसिन्न करैत अछि। बिचला गाम छोड़ि कऽ अयबा काल जे एकता रहैक, गिरहत सभक
विरुद्ध विद्रोहक जे भाव रहैक से आब नहि छैक। मुदा, ओकर चेन्ह, ओकर गौरव-बोध
एखनो छैक।
एहि टोलक अधवयसू सभकें मोन छैक जे करपूरीजी एकबेर मुख्यमंत्री रहथिन, तखन
एहि ठामसँ ठाढ़ भेल रहथिन। एहि टोलपर घूर सभ लग बैसथिन आ भोट मँगथिन। गिरहत
आ गाम छोड़ि कऽ एहि मखनाही पोखरिक मोहारपर बसबाक कथाकें ओ बड़े सुशीक संग सुनि
बोनिहार सभक प्रतिष्ठा बढ़यबाक बात सभ कहने-रहथिन एही टोलपर एकगोट बोनिहार अछि
भूखन। बोनिहार एहि द्वारें जे ओ गिरहत धयने अछि। ओ गिरहत सेहो अछि, तकर कारण
जे ओ एक जोड़ा बड़द रखने अछि आ छोटका आ नोकरीवला गिरहत सभक खेती बटाइपर
करैत अछि। ओ मनेजर सेहो अछि जे ओकर अपन गिरहत नोकरी करैत छैक आ
ओकरेपर खेत आ खेती छोड़ि देने छैक।
भूखन पाँच दिन पहिने बजारमे भेटल रहय। हमरा देखि कऽ ओ हमरा लग सहटि
कऽ चल आयल रहय। जेबीसँ एकटा मोचड़ल अन्तर्देशीय पत्र बहार कयने रहय। हम पुछने
रहिऐक-'कि हाल भूखन भाइ ?" ओ कहलक--'हाल ठीक नहि। बिसहरिया वालीक मोन
बेसी खराप छै। डाक्टरक दवाइ गुन नहि करै छै। छौंड़ा सभकें तार करबै।' बिसहरिया
वाली ओकर स्त्री थिकैक । रोगाहि - दुखिताहि। बेसीकाल डाक्टर-वैद लगले रहैत छैक।
अन्तर्देशीय लिफाफ पर छौंड़ा सभक पता बहुत खराब लिखल रहैक। ओकरा हम एक कागत
पर साफ कऽ उतारलहुँ आ सादा कागते पर तारक मजमून लिखि देने रहिऐक। ओहि
अन्तर्देशीय पर पंजाबक पता रहैक।
हम भूखनकें पुछलिऐक-"छौंड़ा सभ कतऽ छह ? ओ कहलक-'लोदियानामे छै।' फेर
ओ हमरा पुछलक-'किए ? चिट्ठीक कागत पर लिखल नहि छै की ?' हम कहलिऐक-वड़
लटपटौआ अच्छरमे लिखल छै। पढ़ल नहि होइत छैं।' कागत पर लिखि-पढ़ि ओकरा सुनझा
देने रहिऐक। भूखन बड़ अगुतायल आ औनायल रहय। ओ कागत लऽ लेने रहय आ चल
गेल रहय।
तकर दू दिन पछाति ओ पहिल साँझमे हमरा गामपर आयल रहय। ओकरा हम दलान
पर बैसओलहुँ आ आँगनसँ लालटेम आ टौर्च लऽ अपनहु ओकरा लग बैसलहुँ। बैसलहुँ, तँ
भऊखन कहलक 'जागे भाइ, चैनसँ छह ने?' तोरासँ विचार करऽ अयलहुँ अछि। हम
कहलिऐक-'चैने छी। कहह की बात छै ?' भूखन गओंसँ अपन गोलगला गजीसँ एक गोट
बड़का लिफाफ बहार कयलक। लालटेमक इजोत काफी नहि रहैक, तें ओहिपर टौर्चक इजोत
कऽ देखल जे ओ डाकघरक रजिस्ट्रीबला मजगुतहा लिफाफ रहैक। ओ लिफाफकें पहिनहि
खोलने रहय। लिफाफमे आंगुर पैसा कऽ कागत सभ बहार कयलक। हम पुछलिऐक--
'रजिस्ट्री चिट्ठी छह। कतऽ सँ आयल छह?' ओ कहलक-'लोदियानासँ आयल छै। छौंड़ा
सभ पठौने छै।'
पहिने ओ बैंक ड्राफ्ट बहार कऽ हमरा हाथमे देलक। ओ पुछलक जे कतेक टाका छै
? ओकरा हम दू बेर पढ़ि कऽ कहलिऐक..'चारि हजार सात सय टाका छै।' भूखन बाजल--
'चारि हजार सात सय। पाँच हजारमे कतेक कम छै ?' हम कहलिऐक--'तीन सय टाका
कम छै। तीन सय मिला देवहक, तँ पाँच हजार टाका भऽ जेतै।' आवाजकें आर मन्द कऽ
पुछलक--'ई टाका कोना भजतै ?'
हम ओकरा बुझा देलिऐक जे ई टाका कोना भजतैक। बैंक ड्राफ्ट ओ हमरा हाथसँ
लऽ लेलक आ चिट्ठी बला कागत हमरा पकड़ा देलक। चिट्ठी हम मोने मोन पढ़ऽ लगलहुँ।
कोनो अखरकटुआ चिट्ठी लिखने छल, से पढ़ले ने होअय। पहिने चिट्ठीकें अक्षर सभ चीन्हि -
चीन्हि कऽ पढ़बाक योग्य बनओलहुँ, अपने बुझबा योग्य बनओलहुँ आतखन बूखनकें ओकरा
सुनयबा लेल तैयार भेलहुँ, तँ हुँकारी भरलहुँ।
भूखन पुछलक--'तार पठौने छलिऐ, से भेटलै ?' हम कहलिऐक-'नहि भेटलै ए।
चिट्ठीमे तकर चर्चा नहि करैत छै।' भूखन पुछलक--'चिट्ठीमे की लिखै छै ? कहिया औतै ?'
हम कहलिऐक..'एक बेर चिट्ठी पढ़ि कऽ सुना दैत छियह। तकर बाद जे नहि बुझबहक, तँ
चिट्ठीमे ताकि कऽ फड़िछायब।' तखन हम अटकि-अटकि कऽ पूरा चिट्ठी पढ़ि कऽ सुना देल।
अटकबाक कारण छल जे किछु अक्षर साफ नहि छल, शब्द आ वाक्य नहि बनैत छल। भूखन
बहुत रास बात बूझि गेल। ओहि टाकामे तीन हजार छओ सय टाका ओकर दूनू बेटा-देवन
आ घोघनक रहैक आ एगारह रय टाका ओकरे टोलबैया जोखन मुखियाक बेटाक रहैक।
एक बात आर ओहि चिट्ठीमे बड़ जोर दऽ कऽ कहल गेल रहैक। देवन कहने रहैक
जे भूखन एहि बात पर ध्यान राखय जे ओकर छोटका बेटा सोभन अपना भाउज सभकें गारि-
फज्झति नहि करैक। मोटा मोटी ओकर दूनू बेटा देवन आ घोघन रुपैया पठयबाक संग बापकें
मोन पारमे रहैक जे ओकरा दूनू भाइक परोक्षमे ओकरा सभक स्त्रीकें गारि-मारि अथवा कोनो
आन प्रकारक अवहेला नहि होइक।
भूखन सभटा कागत एकट्ठा कऽ मोड़लक आ रजिस्ट्रीबला लिफाफमे घोंसिया देलक।
हमरा भेल जे चल जायत। मुदा, ओ अगुतायल नहि छल। सन्तुष्ट सेहो बुझाइत छल। हम
जेबीसँ तमाकूक चुनौटी बहार कऽ ओकरा दिस बढ़ा देल। कहलिऐक..'तमाकू खा लैह।' ओ
तमाकू रगड़ैत बाजल--'जागे भाइ, की कहियह, छोटका सोभनाक बात की कहियह, बहिं साफ
बताह छै दूनू भाइ लिखैत छै जे भाउजकें कुबोल नहि कहिहें। ओ छै जे गारि-मारिक बिना
भाउज सभकें टोकिते ने छै।
हम कहलिऐक--'सोभनाकें पंजाब किए ने पठा देलहक?' भूखन कहलक--'ओकरा
पंजाब नहि पठा सकैत छिऐ। तकरा पाछाँ खिस्सा छै। ओकरा छोट जानि दूनू भाइ स्कूलमे
नाम लिखा देने रहै। मुदा ओ कितबा फेकि देने रहै। आङनमे घिनमा - घिनमी करैत रहै।
झोटहा सभकें गाड़िसँ तर केने रहै। तखन ओकरा पंजाब पठा देने रहै। पंजाब गेलै, तँ दू
साल धरि ने चिट्ठी देलकै, आ ने घुरलै। गौआँ-अनगौआँ आबय, तँ पुछिऐ, तँ कहय जे सोभना
ओही ठाम रहि जायत, ओहीठाम बियाह-सादी कऽ लेत।'
हम पुछलिऐक-'ओहि दिनमे ओ कतेक टा रहौ ?' भूखन अटकारिकऽ बाजल--'खिच्चे
रहै ढ़ेरबा रहै। हम एम्हरसँ जायवला सभकें कहिऐक, सोभनाकें बुझासुझा दिहक जे चिट्ठी
देअय आ गाम आबय हमरा सभमे छोटेमे भियाह करा दैत छै। से सोभनाक बियाह करा देने
रहिऐ, दुरागमन नहि भेल रहै। ओकर ससुर आ सार पंजाब गेलै आ ओकरा कहुना बान्हि-
छानि कऽ गाम लऽ अयलै। टाका तँ नहि अनलकै, अपन ड्रेस खूब बना कऽ अनलकै।' ओ
तमाकू झारलक आ तरहत्थी हमरा दिस बढ़ा देलक। ओहो अपना ठोरमे तमाकू भरलक आ
ओसारक नीचाँ एक बेर थूक फेकि आयल। 'पंजाबो सँ घुरलै-भूखन अपनहि बाजऽ लागल तँ
भाउज सभकें गरिअयबाक बात ओ नहि बिसरलै। घुरलै, तँ गरिआयब आर बढ़ा देलकै।
बताह छै, किछु करओ, ओकर चालि नहि छुटैत छै।'
हम कलिऐक--'बताह नहि छै। कोनो दोसर बात छै, जे क्यो ने बुझैत छै।' भूखन
कहलैक-'आरो बात छै। कहैत छै जे गिरहतमे काज नहि करतै। धानक बोइनि नहि करतै।'
हम उतारा देलिऐक--'बुधियार भऽ गेल छौ सोभना धानक बोइनिमे जनकें बर घाटा छै। आब
तँ ढ़ेर जन छै जे गिरहतक खेतोमे काज करैत छै, तँ टाका बोइनिपर काज करबाक करार
करा लैत छै। पाँच बर्खमे देखिहक, कोनो जन धानक बोइनि नहि लेतै।' ओ कहलक--'हम
सभ कोन मुहें गिरहतसँ बोइनिमे टाका मंगबै। अदौसँ हमरा सभ काज करैत रहलिऐ-ए, धान
बोइनि लेलिऐ-ए। गिरहतकें धान नहि रहलै, तँ टाका देलकै-ए, नहि तँ टाकाक धान कीनि
कऽ धाने बोइनि देलकै-ए।' हम पुछलिऐक--'तखन सोभना काज की करैत छह ?' भूखन
बाजल--'बेसी काल बैसल रहैत छै। अपना पाइक खगोट होइत छै, तँ बजारमे काज करैत
छै। कोनो राजमिस्त्रीक सङ रेजामे खटैंत छै। नगद टाका उठबै छै। अपन कपड़ा कीनि लैं
छै। की सोडर-साबुन कीनि लैछै। मोन भेलै, तँ दस दिन काज केलक। मोन भेलै तँ भरि
मास बैसले रहि गेल।'
हमरा मोनमे आयल जे कहिऐक, सोभनाकें भीन कऽ दहक। फेर चुप लगा लेलहुँ जे
ओकर बाप-मायकें अधलाहे ने लगैत छै, तँ हमही किएक उफड़ि कऽ ई बात कहियौक ।
जाइत-जाइत भूखन एक आर बात कहलक-'बताह छै। घरमे जे बनैत छै, से नहि खेतै।
ओकरा लेल मेही चाउरक भात बनैत छै।
रोटी बनल, तँ ओकरा लेल पतरका सोहारी बनैत छैक। ओकरा लेल फूट कऽ तरकारी बनैत
छै। तैयो ओकरा आगाँ थारी परसै लेल क्यो जनानी तैयार नहि होइ छै। जे सोझाँ गेल,
तकरा ओ गारिसँ तर कऽ देलक। बताह छै।'
भूखन ओहि दिन चल गेल।
आइ बेरमे फेर भूखनकें देखलिऐक, तँ बजा लेलिऐक। कहलिएक जे तमाकू खा
लेअय। ओ आयल आ बैसिकऽ तमाकू लगाबऽ लागल। ओ कहलक जे तार लोदियाना पहुँचि
गेल छैक। तारपर ओकर मझिला बेटा घोघन गाम आबि गेल छैक। जेठका देवन पाछाँ आबि
रहल छैक। बिसहरिया वालीक रोग-व्याधिमे थोड़ेक सुधार भेल रहैक। मुदा, सोभनक बारेमे
ओ जे कहलक, से ओकरा लेल चिन्ताक बात रहैक। सोभनक मुह दू दिन पहिने फूलि गेल
रहैक। डाक्टर लग लऽ गेल रहैक। तँ डाक्टर कहलैक जे पेशाबमे खराबी छैक। दवाइ
लिखि देलकैक। भूखन कहलक जे पचास टाकाक दवाइ लिखि देलकैक। हम कहलिऐक--
'दवाइ तँ लिखैत छैक। दवाइ महग भऽ गेल छैक।'
ओ कहलक--'दवाइ आनि देलिऐ। काल्हि खेलकै। आइ घरमे हल्ला उठा देलकै।
भोरमे जलखै खा कऽ दवाइ खइतै। से जखने ओकरा लग जलखै रखलकै, ओकर सिरिंग
चढ़ि गेलै आ ओ जलखैवला छिपली उठा कऽ अंगनामे फेकि देलकै। ओ कहैत गेल--छिपली
फेकि देलकै आ जनानी सभकें गारिसँ तर कऽ देलकै।' काल्हि दरभंनासँ गिरहत चल एलै।
गिरहतनी समाद पठा देलकै जे एक-दू दिन लेल गाम आयल छी। एक दू दिन लेल कोनो
जनानीकें गाम पर पठा कऽ मदति कऽ देअय। एहेन होइत छै। जकर खेत भरिसाल उपजा
कऽ खाइत छिऐ, तकर बेर-बेगरतामे ठाढ़ हैब जरुरी छै। सोभना छिपली फेकि देने रहै आ
जनानी सभकें गरिअबैत रहै। तखने बेलही वाली जे ओकर जेठ बेटाक कनियाँ छै से
गिरहतक गाम पर जाय लेल विदा भेलै। सोभना पुछलकै जे ओ कतऽ जाइ छै। ओकरा क्यो
नें कहै जे बेलही वाली कतऽ जाइ छै। सोभना चेरा लऽ कऽ बेलही वालीकें मारऽ लेल
छुटलै जे ओ कहओ जे ओ कतऽ जाइ छै। बेलही वाली कहलकै जे ओ गिरहतनीक ओहिठाम
जाइत छै, भूखन किछु काल लेल चुप भऽ गेल। ओकरा तमाकू लटाओल भऽ गेल रहैक।
फेर भूखन अपनहि बाजल 'बेलही वाली कहलकै प्राण सुखा गेलै जे बतहा चेरा ने धऽ दै।
बेलही वाली कहलकै जे ओ गिरहतनीक ओहि ठाम जाइ छै। सोभन हाथक चेरा फेकि देलकै।
बेलही वालीक रस्ता छोड़ि देलकै। सोभनक आगाँमे दवाइक गोटी, सीसी पन्नीमे राखल रहै।
तकरा उठा लेलकै आ मखनाही पोखरिक मोहारपर नीचा चल एलै आ दवाइकें जुमा कऽ
बिचला पोखरिमे फेकि देलकै।
भूखन तमाकू बला तरहथी हमरा आगाँ बढ़ा देलक। हम ओहिमेसँ अपन खोराक बहार
कऽ ललहुँ। हमरा मुह दिस तकैत भूखन उठि कऽ ठाढ़ भऽ गेल। जाइत-जाइत बाजल--'को
कहियह, जागे भाइ। सोभना बताह छै आब कहह, पचास टाकाक दवाइ छलै, पानिमे फेकि
देलकै।
हम किछु कहितिऐक, से भूखन जयबा लेल ठाढ़ भऽ गेल छल। ओ एक बेर हमरा
दिस तकलक। गमछासँ हाथ झारलक आ रस्ता दिस विदा भऽ गेल।
पकड़ बियाह
साकेतानन्द
एकाएक सब के की भेलै-से तऽ कहब कठिन मुदा चारु एकदम चुप भऽ गेल रहय।
बस ओ टा हिलकि - हिलकि कऽ कानि रहल छल। ओकर सिसकनाइ कखनहुँ कपसब जकाँ
लगै जेना कोनो बड़ीकाल धरि कानैत बच्चा परिश्रांत भऽ कऽ उठैत अछि। लगैये जे ओकर
एना कननाइ एकरा सबकें कत्तौ छू गेल रहैक....आकि कोनो आनो बात भऽ सकैत अछि।
'अहाँ तऽ जानि - बूझि कऽ अपन दुर्गति करा रहल छी...चुपचाप चलू ने !' जीवेन्द्र
कहलकै। 'आर ने तऽ की !! हमरा सब हिनका मारैले थोड़े चाहै छियनि ! हँ भाय ! घिस
- फिस करता तऽ से नहि चलैबला छनि।' रामचन्द्र बाजल जे जीवेन्द्रक बगलमे बैसल छल।
'अरे आब तऽ ई कुटुम भेला, हमरा सबहक अपन लोक...आब तऽ जे लिखल छलनि से होअय
जा रहल छनि....कनला - खिजलाक कोन काज.....' 'यैह लिखल छले.....? एकरा होमय
दियै .....? ओ सिसकैत बाजल--'अपन लाइफ बरबाद होइ ले दियै ? 'जीवेन्द्रक चेहरा फेर
तनि अयलै। ओ कने सम्हरि कऽ बाजल - 'बियाहसँ लाइफ बरबाद होइ छै ? कहियो
बियाह करितो की नै ? आइये कऽ लियऽ !' 'सब बात जानियो कऽ अहाँ से कहै छी जीवेन्द्र
जी। अहाँ कि हमरा नहि जनै छी ! सोचियौ तऽ हमर माँ-बाबूजी पर की बिततै ?' 'की
बिततै ? अहाँ कोनो अपन मोनसँ बियाह कऽ रहल छी ?'
'ई के बुझतै ? ककरो वि•ाास हेतै ?' ई कहि ओ फेर हिचकऽ लागल। फेर
कनेकाल क्यो किछु नै बाजल। खाली सड़क पर जीप टा सनसनाइत बढ़ैत रहलै। ओकर
इंजिनक आवाज टा होइत रहलै। सामने पसरल बाधक ओहि कातसँ कोनो गाम तेजीसँ लग
आयल जा रहल छलैक। ओकरा पछिला सीट पर बैसायल गेल छलैक। एक दिस रामचन्द्र
छलै आ दोसर दिस झोराबला--बीचमे ओ छल। झोरा बलाक झोरा ओकर कन्हासँ लटकल
छलै आ ओ एकटक सामने सड़कक दिस देखि रहल छल। बाजि किछु नहि रहल छल।
'अहाँ के क्यो किछु नहि कहत...कूसक कलेष तक नहि हैत...बस बियाह - टा भऽ
जाइले दियौ !' 'बियाह कोनो कनियाँ पुतराक खेल छै की ?' ई बाजिकऽ ओकर स्वर फेर
जना डूबि गेलै ! ...सोचने रही पढ़ि - लिखि कऽ अपन पयर पर ठाढ़ हैब तखन बियाहक
सोचब मुदा....।' अहि पर जहन क्यो ध्यान नहि देलकै तँ ओ चुप भऽ गेल। मुदा कपसब
जारिये रहलै ! 'आब चुपो रहू ! भेलै लटारम !' अहिबेर जीवेन्द्र कहलकै !
गाम लग आबि रहल छलै। जीवेन्द्र जे जीपक अगिला सीट पर बैसल रहै-पाछाँ घूमि
कऽ झोराबला के कहलकै--'सामने के चाहक दोकान पर कने बिलमी ओस्ताद ! चाह भऽ
जाय।' 'अहाँ गाड़ी रोकू ने। कने गाड़ी रोकि कऽ देखियौ ने ! हम हल्ला कऽ देब ! सब के
कहबै जे ई लोकनि हमरा अपहरण कऽ कऽ बियाह करा रहल छथि। कने गाड़ी के तँ रुकैले
दियौ।'
'चुप सार।...चुपचाप चलऽ-ना ता कुट्टी - कुट्टी काट के गंगामे भसा देंगे। तभी से
नेता जैसन भाषण झाड़ रहलन हैं। तोहरा के कोई कुछो कहता है ?' झोराबला पहिल बेर
बाजस। 'मटियाबऽ ओस्ताद।
हिलका पते नहि छनि जे एक्के मिनटमे कत्तऽ निपत्ता भऽ जेता। फेर लालटेन लऽ कऽ
तकलो सँ नहि भेटथिन।' रामचन्द्र बाजल। 'हौ हिनका तँ भाग मनेबाक चाही। जेहेन
कनियाँक पैंर ओहन तँ हिनकर बापो के मुँह नहि छनि।' जीवेन्द्र कहलकै। 'श्री देविये छथि
तऽ अपने किये ने कऽ लै छी। ई जबरदस्ती कियेक ? बाजू? एहनो बियाह होऽ छै।
देखलियैक अछि एहन बियाह अहाँ?' 'बियाह तऽ तोहर मरल नाना करथिन ! तों कोन गली
के छऽ।' रामचन्द्र खैनी मलैत बाजल। 'जाउ-जाउ ! की करबै अहाँ सब ? बीयाह
करेलासँ की हैत ? मारि - पीट कऽ बियाह करा लियऽ करा लियऽ... गाम मे हल्ला नहि
मचा देलौं..भीड़ नहि लगा देललौं तँ फेर हमर नाम नहि...इह....।'
'रे डलेवर ! तोहरा गाड़ी चलाना है कि पलट - पलट के तमेशा देखना....तनी दबा
के गड़िया चला ! आ जिबेन्द्रा ! तोहरा घुस - फुस से फरसत मिली कहबियौं कि ना ?
डलेवर के गाड़ी चलाबे दे।' झोराबला अपन गोटिक दाग सँ भरल मुँह पर झबरल मोंछ के
टेरलक - बाबू साहेब ! तनी हिसाबे से फड़ फड़ाईये। मिसियो भर जास्ती हुआ तँ तनी
एकरा के गोड़ लाग लिजिए।' झोराबला अपन झोरा के मुँह खोलिकऽ ओकरा देखेलकै - एको
बार लबलबी खैंचा तँ देहभर चलनी बना दी।' झोरामे कारबाईन छलै। जाहि मे मैगजीन
लागल छलैक।
जीपक पछिला सीट पर ओ लस्त भऽ बैसल रहल। भेलैं जे नहि, ओ किछु नहि कऽ
सकैत अछि। ई कारबाईन जँ अहि झोराबला क्रिमनल लोकक हाथमे रहै तऽ पाँच सौ के भीड़
के दोड़ा सकैत अछि. जीप जा रहल छल। बसातक झोंका ओकर थापड़ खाएल मुँह के
सोहरा रहल रहैक। ओ अपन मुँह हवाक रुखि दिस कऽ लेलक। कने चैन तँ भेटलै मुदा
माथक पसेना सुखाइते ने रहैक। गाल आ कनपटी पर पड़ल दस-बीस थापड़ ओकर सब
सोचैक शक्ति के खतम कऽ देने रहै। जेना ओ शून्यमे असहाय हो आ सब किछु भऽ रहल
होइ। ओ बहुत किछु सोचैक प्रयासमे किछु नहि सोचि रहल छल।
'रे डलेवर ! तोहरा कुछ कह रहे हैं? गाड़िया चलावेगा कि जिबेन्द्रा से घुस-फुस
करता रहेगा ?' 'किछु नहि ओस्ताद ! उजियारपुर आबि रहल छै। आब तँ हिनका वर
बनाइये कऽ आगाँ लऽ गेल जाय। अपन गाम आब दूरे कते छैक ? कने ललका धोती-कुरता,
चानन-टौका आखिर बियाहे ने भऽ रहल छैक...।' 'किछु नहि हैत !' ओ तमकि कऽ बाजल।
भरिसक ठंढ़ा हवा लगला सँ ओ वास्तविकतामे आबि गेल छल-गाममे लोक हेतै कि नहि। हम
तँ भीड़ लगा देब। सबके कहबै ई बियाह बन्दूकक नोक पर भऽ रहल अछि...ई बियाह नहि
डकैती थीक ...अपहरण...क्राइम...।' ओ एतबा बाजि कऽ हकमऽ लागल छल - 'कोनो हालते
नहि हैत बियाह। किन्नहु ने...।' ओकर बजबा सँ एना लागि रहल छल जेना ओकरामे
आत्मवि•ाास आबि गेल होइ। 'अहाँ के जे किछु कहल जा रहल अछि चुपचाप करैत चलू।
अहीमे कुशल अछि।' 'अरे की कुशल अछि यौ। बेसी सँ बेसी मारिये ने देब। इह, कुशल
अछि...' ओकर ई वाक्य आधे छलै कि पूरा जोरक थापड़ ओकर कनपटी पर पड़लै। ओ
जीवेन्द्र दिस खसय लागल रहय कि इ कन्हा पर जोरदार घुस्सासँ एेंठि कऽ जीपक सौटसँ
नीचा खसय लागल। रामचन्द्र ओकरा खसैसँ बचेलकै।
अपन हाथ के झोरासँ पोछैत, झोराबला बाजल--'तोहरा ओही करना है जे कहल
जाएगा। अगर जरिको घिसफिस किया तो मार - मार के मुँह कान भसका देंगे! समझे !' आ
एना शुभ्रशाभ्र भेल बैसि गेल जेना किछु कयनहि ने हो। जीप जाइत रहल। डराइत ओ
कनडेरिये आँखिये झोराबला दिस देखलकै। गहुमा रंग, गोटिक दाग ,सँ भरल मुँह, छोट -
छोट चमकैत आँखि, एेंठल मोंछ-सब मिलाकऽ एहन आकृत्ति जेना कि कोनो एहन मनुक्खक
होइत छैक। क्रूरता कें परखि ओ भीतरसँ काँपि उठल मुँह सँ अनायास सिसकी बहरा गेलै।
ओकर हाथ एखनहुँ अपन कन्हा पर रहै जतय घूसा लागल रहैक। 'स्साला। कबहूँ
अकड़ कर नगाड़ा बन जाता है आ दुइये झापड़ लगा नहीं कि सुटुक - पिल्ली जैसन
किकियाने लगता है। अभी तँ सरिया के पड़बो नहीं किया है।' 'हो ओस्ताद मटियाबऽ !
बहुत भेलै ! गाम लग आबि रहलै अछि। कोनो वतावरण नहि होबाक चाही।' जीवेन्द्र आब
आसन्न समस्यक प्रति साकाँक्ष भऽ गेल रहय, तँ हड़-बड़ा कऽ बाजल। 'गाम पास आ रहा है
तँ हम का करें ? --झोराबला ले धन-सन। गाम लग एलै तैं की-आ दूर गेलै तैं की ? ओ
अदम्य आत्मवि•ाास सँ अपन झोरा के दूनू हाथे पकड़ि लेलक - 'साला बोलेगा तँ बतीसी झाड़
देंगे। कोनो पहले - पहल काम हो रहा है का ?' ऐसन तीसो बालक का बियाह हुआ होगा।
मुदा ऐसन चिपिड़-चिपिड़ करने बाला कोई न मिला था।'
'अहूँ चुप कियैक ने रहै छी ? जीवेन्द्र ओकरा सन्बोधित करैत बाजल - 'देखियौ !
सामने स्कूल छै। ओतहि कने कपड़ा-लत्ता पहिर लेबै। चुपचाप वर बनि जाउ-नहि तऽ जनिते
छियै हमर ओस्ताद केहन कसाइ छै !! एक दू टा खूक कोनो मानि नहि छै एकरा ले ! एतऽ
सँ एकदम वर बनल चलियौ ! जे भेलै तकरा लेल हाथ जोड़ै छी-माफ करियौ आ चलियौ।
आब सब ठीके हेतैक।'
ओ किछु नहि बाजल। रामचन्द्र बीड़ी काल सँ तमाकू चुना रहल छल। डराइयो
रहल छल जे कनिको जँ गफलति भेलै तऽ जीपक विड़रोमे तमाकू ने पुर्र भऽ जाइ। बड़ा
सावधानी सँ खैनीक गर्दी तरहत्थी सँ झाड़लक आ बेरा-बेरी चुटकी सँ खैनी परसलक। फेर
ठोरमे जहन तमाकू सरिया गेलै तँ बाजल--'एकटा बात पूछै छी भाइ--कहियो बियाह करितियै
कि नहि वयस भइये गेल अछि, आइये कऽ लियऽ। हमहूँ-बियाह-दान कइये कऽ पढ़ि रहल
छी। पढ़ैबला ले बियाह - तियाह सँ कोनो फर्क नहि पड़ैत छैक। आ हँ एकटा बात बता दी
जे कनियाँमे कोनो कमी नहि छैक। कम सँ कम अहाँ सँ तऽ सुन्दरे कहेतै। जीवेन्द्र हमरा सब
हाल कहलक अछि...अहाँक घर सँ-घरो कोनो दब नहि छै। तें, ई नाटक बन्द करियौ आ
चुप्पे-चाप चलियौ।' 'हम नहि जा रहल छी । हमरा मारि-पीट कऽ लऽ गेल जा रहल अछि।'
'ताहि सँ कोनो फर्क पड़ैबला नहि छै बाबू साहेब। हमरा मतलब अहाँ के लऽ जेबामे अछि।
से चाहे अहाँ जेना चलू। हमरो सब मजबूर छी।'
'कथिक मजबूरी यौ ? अपन मजबूरी ले अहाँ ककरो अपहरण कऽ बा-जबरदस्ती
बियाह करा देबै ?'
'नहि तँ की करबै ? ओ अहिबेर बी0 ए0 गेलैये। एखन बियाह नहि करेबै तँ हेतै
ओकर बियाह कहियो ? कहू ! देतै क्यो अपन बेटा के कोनो प्राइमरी स्कूलक मास्टरक बेटी
के ? हमर बेटी छै तँ ओ कुमारिये रहौ भरि जन्म ?'
'हिनकर गार्जियनक मोन तँ एक लाख टाका आ एकटा मोटरसाइकिलक बाते सुनि
कऽ बताह बऽ गेल रहनि ! इहो जे त्राटक पसारने छथि से ओहि सोग सँ की ? लाख टका
छूटि गेलैन-हावागाड़ी हुसि गेलैन...।' जिवेन्द्र के कने हँसी लागि गेलै।
'से नहि पूछै छी ! तकर माने तऽ जेकरा लाख-सवा लाख टाका नहि हेतै तकर
बेटीक बियाहे ने हेतै ?' रामचन्द्र पुछने रहनि।
'नहि हेतै ! नहि होइ छै। महेशपुरा मे नहि एक्के संगे तीन बहिन झूलल रहैक ?
एक्का-दुक्का तँ होइते रहै छै।'
'से नै जिवेन्द्र भाइ । हमरा सबहक बहिन बेटीके जीबैयोक अधिकार नहि छैक ?'
'कौन साला अधिकार ली ? रामचनरा तू ? अरे अथिकार जब नहीं मिलेला तँ लड़
के लेल जा ला ऽ ऽ...तनी हेन्ने देखऽ..हेकरा बदौलत लेल जा ला।' झोराबला झोरा सँ
कारबाइन बहार कऽ कऽ देखबैत बजलै।
'हौ ओस्ताद! आब ई सब जानि गेलखिन। आब किछु नहि कहुन।'
'ना समझिहन तँ हम निके तरहे समाझा देब। ओ मे का बात है !! मिलट भर का
काम।'
'भेलै ओस्ताद। तोहूँ एक्के बात के रेडने रहै छह।' जिवेन्द्र के लगलै जे आब ओकर
असल टेस्ट छैक। यैह परीक्षा ! जँ अहिठाम सँ ई वर बनि कऽ ठीक ठाक बियाह कऽ लै
छथि तँ पचासी प्रतिशत तँ काज बनि गेलै तखन रहि जेता हिनकर बाप-पित्ती । अरे भेल
बियाह मोर करबह की .....!! से किछु बेसी देखबनि तँ वर बिदाइ सँ खुश कऽ देबैन। पहिने
बियाह टा तऽ शुभ शुभ कऽ भऽ जाइ। तें ओकरा लगलै जे आब ओकरा काज छै। एहन
काज छै जेकरा अवश्य हेबाक चाही आ सेहो कने फास्ट हेबाक चाही। यैह सोचिकऽ ओ कने
चौंकल स्वरें सोर पाड़लकै - 'रमचनरा स्कूल पर अबिते हिनका धोती पहिरै ले देबैन - ताबे तों
लपकि कऽ गाम परसँ भऽ आबिहें । घर पर तँ कहिये देबहिक आ पंडित मनोनाथक
बेटा....की नाम छियै ओकर ? खैर, जे होइ ! ...वैह छौड़ा के पकड़ने अबिहें । ओ बियाह
करबैमे इसपार्ट अछि।'
'ओ नहि भेटत तँ हम बुढ़बे के खिचने आयब। ओ बेमार रहै छै, घरे पर हेतै।'
'बस काज कने चट-पट हेबाक चाही।'
'सब हेतै जिवेन्द्र भाइ ! जँ ई चाहथिन तँ सब काज फिट हेतै।'
'नहीं तँ एक बात बताने वाला है।'
'कोन बात ओस्ताद ?'
'इहे जे ई चुप-चाप चल के बियाह कर लें । नहीं कवनों एइज्जती बैजत्ती का सवाल
उठा तँ-हमरा घरमे घूस के घरहंज करने में भी जरिको देरी ना लागी।'
झोराबलाक आवाजमे जे गम्भीरता आ ठढ़ापन रहै से सुनि अहिमे किनिक्को संदेह नहि
रहलै जो, ई जे कहि रहल अछि तकरा कार्योरुपमे परिणत करैत एकरा देरी नहि लगतै।
ओकरा आवाजेक कारण सम्भवतः सब क्यो फेर एकाएक चुप भऽ गेल। तखनिह जीप घुमऽ
लगलै। खपरैल सँ बनल स्कूलक सामने, बांसक बनल मेहराबक भीतरसँ जहन जीप
निकललै, तखन चारुकात रजनीगंधा महमहा रहल छलै। साँझ नीक जेकाँ भऽ गेल रहैक।
तीनू एक कात ठाढ़ छल। सामने भुइयांमे ओ बैसल रहथि। खपरैल घरक ओलतीमे कहू।
धोतियो पहिरबैमे तीन-चारि थापड़ मारय पड़लै। बड़ कोशिश केने रहै ओस्ताद जे जोरक हाथ
नहि पड़ै-मुदा पड़िये गेलै। आदति कहीं हठे जाय आब हाथ नहि उठै छलै। की कैल जेतै-जे
पड़ि गेलै से पड़ि गेलै।
'ओस्दात, भारी हाथ पड़ि गेलै तोहर।' जीवेन्द्र टोकलकै।
'हम तँ चाहते थे कि ना पड़ौ। आखिर कुछो है तँ आपन रमचनरा का छोटका बहनाई
राम नू हवन। मुदा का जो करें जिवेन्दर। जब पड़ेला तँ गम्भिरे हाथ पड़ जाला।'
'नै हौ ओस्ताद। बामा हाथ नहि उठै छै। आब नहि मारहक। धोती तऽ पहिरिये
लेलखुन। आब खाली चानन-काजर करबाक छनि। मुदा ओस्ताद! मारिहक नहि।'
'मत घबराबऽ !कुच्छो न कहेंगे।' ओस्ताद ओलतिक सामने बरंडा पर बैसल-बैसल
बाजल। नीचामे बैसल ओकरा दिस जखनहि जीवेन्द्र बढ़लथिन कि ओ धड़फड़ा कऽ ठाढ़ भऽ
गेल--'एकदम नहि ! ई सब किछु नहि करब हम हमरा चाहे मारियो दी-तैयो ने करब।'
'देखियौ ! किछु छियै तँ बियाहे छियै ! एना ने करियौ। जिद छोड़यौ ! कने लगा
लियौ।'
अहीबीचमे झोराबला बरंडा पर सँ उतरि जिवेन्द्रक पाछाँमे नहि जानि कखन आबि गेल
रहय। जीवेन्द्रक वाक्य समाप्तो नहि भेल रहै कि ओ लपकि कऽ ओकरा लग गेलै। बिना
किछु कहने ओ अपन झोरा जमीन पर रखलक। फेर ओकर एकटा बाँहि पकड़ि कऽ तेना
खिंचलकै जे ओ निशब्द जमीन पर अड़रा कऽ खसल। ओकर दूनू हाथ जीवेन्द्र पकड़लकै
तहन ओकरा काजर लगा भेलै। रामचन्नर उत्तेजना आ उठापटक सँ हाँफि गेल रहय। एतबा
किछु होतम हवातम साँझ भऽ आयल रहै। ओकर माथ आब किछु सोचैक अवस्थामे नहि रहल
रहै। एतबेमे ओ बूझि गेल रहै जे आब बचबाक कोनो उपाय नहि छै। चाहे ओ हँसि कऽ करे
चाहे मारि खा कऽ ।
गाममे सब बूझि गेल रहैक। रामचन्द्रक संग नमोनाथ झाक बालक राजो झा पंडित
आबि रहल छला। जे राजो झा के आधा घंटामे सब विध-विधान सँ बियाह करेबाक अद्वितीय
रेकर्ड छनि। अड़ोस-पड़ोसक गाममे बोरो कऽ कऽ जाइ छथि। दरजनो बियाह सम्पन्न करौने
छथि। राजो झा अबिते ओकरा गहिंकी नजरिये देखलथिन। फेर स्वगत बजला-'नै, मंत्र पढ़ै
जोकर तँ छथि ई। राधेश्यामक दरबज्जा पर पहुँचैत - पहुँचैत वरक मुँह तँ फूलि कऽ
भकतुम्मा भऽ गेल रहै। मंत्रो ने पढ़ि होइ। ई तँ होसगर लगै छथि।'
अहिबीच रामचन्द्र आ जिवेन्द्र कनफुसकी कऽ रहल छला। झोराबला कनेक काल
हियासलक, फेर बरंडाक कंगनीये पर सँ चिकरल--'बकियोता का अढ़ाई हजार अभिये दे दऽ।
नहीं तो बियाह के बाद कवन ककरा पूछता है ?'
'ओस्ताद ! इहो कहैक बात छै। वर आँगन गेलै आ नोट अहाँक हाथमे। आ जीवन
भरि जे अहाँक गुन गायब से अलग। खाली शुभ-शुभ भऽ तँ जाउ।'
'सब ठिक्के हो जायेगा रे जिवेन्द्र ? तनी खैनी मलबाओ। पंडितो तँ आइये गया।'
'ओस्ताद, बस जीप पर बैसियौ ने ! आब कथी ले देरी करै छियै ?'
'हमहीं देरी कर रहल बानी ? उहे सरौ नखरा कर रहे थे, धोती न पहनेंगे तऽ काजर
न लगायेंगे। देर तँ सरौ नाटक नू किया है ?' ई कहैत ओ जीप पर बैसल। झोराबलाक
बगल बिना कोनो ना नुकूर केने ओहो आबि कऽ बैसि गेल। मुदा बैसै सँ पहिने कननमूही
हँसीक संग अपन रुममेटक दिस तकन रहै आ कहने रहै--'की जीबेन्द्रजी ? बइसइये पड़तै
?' ओकर मुँह पर कातरता रहै....असमर्थता रहै। किछु रहै ओकर स्वरमे एहन जकर जवाब
जीबेन्द्र नहि दऽ सकलै। ताहि सँ पहिने झोराबला ओकरा जीपमे खीच लेने रहै।
'भगवान हेथिन तँ अहूँ लोकनिक भाइ बेटाक अहिना बियाह हेतनि।'
'भगवान थोड़े ककरो पाइ गनबय कहै छथिन। लोक अपनहि गनबैये की।'
'आ रामचन्दर। पाइ नहि हो तँ बहिन-बेटी कुमारिये मरि जाय ? से के देखतै यौ
बाबूसाहेब ?'
'तकर भार हमरे छै ? ओकरामे फेर तमकी आबि गेल रहै ! --'कानून छै ! पुलिस छै
! दहेज लै बला के जहल कटबियौ ! कानून के अपना हाथमे कियैक लै छियै ?'
'अहिलेल जे कानून खाली कानून-किताबमे छैं। जे #ोहि कानून के लागू करतै सैह
दहेज लऽ दऽ कऽ, कानून तोड़ै छैक। तहन कानूनक कोन भरोस !!'
'ठीक छै जीवेन्द्र जी। ई बियाह बड़ महग पड़त से अहाँ बूझि रखियौ। एहन बीयाह
सँ क्यो खुशी भऽ सकैत अछि ?'
'सब नू होइ बाबूसाहेब। जे ना होइ से ई दुखहरन करी !! झोराबला अपन कारबाइन
के देखबैत बाजल।
'देह पर ने कारबाइन चलै छै-मोन पर कोन कारबाइन चलैत ?'
'आ देहिया मिल जाइ तऽ मन मिलने में जरिक्को देरी लगेगा तरहा ? झोड़ाबला
धमकबैत पुछलकै। मुदा आब ओकर बोली चेतावनी सनक लगलै एकरा -- 'आ जदी हमरे
लड़की को कवनो तकलीफ दिया तऽ सुन लीं ऐ बाबूसाहेब। घरबा में घुसके, बापमहतारी,
बाल-बच्चा सब के चुन-चुन के गोली मार आइब। याद रकबऽ अइर आपन बापो - महतारी के
बता दिहऽ - जे जरिक्को सिल्ल - बिल्ल किया न-तऽ एक बार फिर तीन-चार को चटकाबे के
परी। आउर का ?' ओ स्टार्ट जीपमे बैसल छला आब ओकरा किछु याद रखबाक ने सामर्थ
छैक आ ने आवशयकता । कारण जे आब ओकरा क्यो नहि बचा सकैत रहै।
जीप धीरे-धीरे तेजी पकड़ने जा रहल छलै...पाछाँ धूराक बादल लपकल चल अबैत
रहैक आ लपकल रहै किछु बच्चा जे नंगटे रहै आ जकरा ले आइयो जीप देखैक वस्तु रहैक।
।। समर्पण ।।
लगभग बीस वर्षप पुर्वक घटना थिक। किसुनजी एकटा पत्रिका बहार करबाक
नेआर कयने रहथि आ ताहि लेल बहुत रास रचनो जुटा चुकल छलाह। हमरोसँ एकटा कथा
लेने रहथि-'एसकरुआ'। किसुनजीक अस्वस्थता आ वित्तीय संकटक कारणें ओ पत्रिका
प्रकाशित नहि भऽ सकल। दस-बारह वर्ष बाद हुनकर छोड़ल सामग्री आ पांडुलिपि सभक
खोज करैत काल केदार कें 'एसकरुआ'क प्रति भेटलैक। केदार हमरा देखौलक तँ बुझायल
जे दृष्टि बहुत पुरान आ पिछड़ल अछि। तकर बाद बहुत दिनधरि ओ रचना संशोधन आ
परिष्कारक लेल हमरा लग पड़ल रहल आ फेर भोतिया गेल।
किसुनजीक आकांक्षाकें मूत्र्त रुपमे सम्मानित करैत केदार जखन 'संकल्प'क लेल कथा
मंगलक तँ अनायास हमरा ओही थीमपर काज करबाक इच्छा भेल जे 'एसकरुआ'क थीम छल
आ जे किसुनजीक स्मृतिसँ जुड़ल छल। 'परलय' एहिसभ प्रसंगक फल थिक।
स्वर्गीय किसुनजीकें कोसीक मारल लोकक प्रति असीम सहानुभूति आ स्नेह छलनि
कोसीक विभीषिका पर औ काव्य-रचना सेहो कयने छलाह। 'परलय' सेहो एही विभीषिका पर
रचित अछि। ई समस्या जीवकान्तजीक लेखकीय सवेदनाकें सेहो आकृष्ट कयलक अछि।
किन्तु कोसिकन्हाक पीड़ाकें सर्वप्रथम मुखर कयनिहार किसुनेजी छलाह। तें ई रचना हुनके
समर्पित अछि।
सुभाषचन्द्र यादव
परलय
सुभाषचन्द्र यादव
बुझाइत रहै जेना सतहिया लाधि देलकै। धाप परक पटियापर बैसल बौकू कखनसँ ने
पानिक टिपकब देखि रहल छल। बैसल - बैसल ओकर डाँड़ दुखा गेलै। ओ नूआँक गेरुआकें
सरिऔलक आ आँखि मूनि पड़ि रहल।
माल-जाल भूखे डिरिया रहल छलै बुनछेक होइतैक तऽ कने टहला-बुला अबितिऐक।
माल-जाल थाकि हारि कऽ निंघेसमे मुँह मारि रहल छलै आ बीच-बीचमे एकाध टा घास टोंगैत
रहै। काल्हि दुपहरेसँ पानि पड़ि रहल छलै। बेरूपहर घास नहि आनि भेलै, ने माल खोलि
भेलै। दुनू बड़द आ गाय आफन तोड़ि रहल छलै आ खुराठिकऽ देलकै।
थकनी आ चिंतामे डूबल-डूबल अचानक बौकूक भक टूटलै तऽ लागलै जेना बोह आबि
गेलै बोह एहने समयमे उठै छलै। साओन-भादोक एहने झाँटमे पानि बढ़य लगै आ जलामय
कऽ देक।
ओ हाक पाड़ि पड़ोसियासँ पिछलकै जे पानि तऽ ने बढ़ि रहल छैक। 'धार उछाल भऽ
गेलै।' पड़ोसिया कहलकै। ओकर मन आशंकित भऽ गेलै। धार उठाल भऽ गेलै एकर
मतलब जे आब पानि पलड़तै। बाध-बन खेत-पथार, घर - दुआर सभ किछु डूबि जेतै। माल-
जाल भासि जेतै। लोक-बेद मरतै। समय तेहन विकराल छैक जे लोककें प्राण बचायब कठिन
भऽ जेतै। भोरेसँ कार कौवा टाँसि रहल छैक। पता नहि की हेतै।
'बाबू हौ, माय कोना कोना ने करै छैक' बौकूक बेटी पसलिया घबरायल आ व्याकुल
स्वरमे ओकरा हाक देलकै। बौकूक कलेजा धकसिन उठलै । भेलबावालीकें भोरसँ रद्द-दस्त
भऽ रहल छलै। बौकू धड़फड़ायल पानिमे तितैत आंनन गेल। भेलबावालीक पेटमे आब किछु
नहि छलै जे मुँह सँ बाहर अबितिऐक। लेकिन जी फरिया रहल छलै आ ओ-ओ करैत काल
बुझाइ जेना पेटक सभटा अंतड़ी बहरा जेतै। ओक बन्न भेलापर ओ कहरय लगै। ओकर टांग
हाथ सर्द भऽ गेल छलै।
'हाथ-गोरमे तेल औंस दही आ सलगी ओढ़ाय दही।'-भेलबावालीक नाड़ी टेबैत बौकू
पसलियाकें कहलकै। पलसिया मायक पयर ससारय लगलै आ बौकू चिंताक अथाह समुद्रमे
डूबल बैसल रहलै। बौकूकें बुझेलै जेना ओकर घर आ बाहर दुनू छिड़िया गेलै आ ओकरा बूते
आब कोनो चीज समटब पार नहि लगतै।
भेलबावाली सूति रहलै। नट्टा आ ललबा भूखसँ लटुआ गेलै। तीतल धुंआइत जारनिसँ
पलसिया मकइक फुटहा भूजऽ बैसलै। दुनू छौंड़ा चूल्हि लग बैसल खापड़ि दिस ताकि रहल
छलै आ नीचामे खसैत लावा बीछि-बीछि खाय लगलै। 'उतरबरिया बाधमे पानि भरि गेलै।'
बाधसँ घूरल देबुआ हल्ला कऽ रहल छलै।
सभ चीज नाश भऽ जेतै । बौकूकें एहि बेरुका लच्छन नीक नहि बुझाइत रहै। पछिया
परक झाँट आ कोसीक बाढ़ि सबकें लऽ कऽ डूबि जेतै एहि टोल कि पूरा गामेमे ककरो नाह
नहि रहै। माल - जाल धीयापूता आ विमरयाहि घरनीकें लऽ कऽ एहन विकराल समयमे ओ
कतऽ जेतै ? बौकूकें किछु ने फुराइ जेना ओकर अकिल हेरा गेल होइ।
माल जाल डिकरैत रहै। बौकू गठुल्लामे ढुकलै आ किछु फुफड़ी पड़ल मटिआइन
ठठेर बीछिकऽ ओगारि देलकै। तीनूटा माल कतहु - कतहुसँ पात नोचऽ लेल मूड़ी मारऽ
लगलै आ ड़ाँटकें खुरदानि देलकै।
पानि बढ़िते रहै। बीच-बीचमे लोक सभ पानि बढ़बाक हल्ला करै। नाहक इंतजाम
करबा लेल रामचन सभकें कहने फिरि रहल छलै। घरसँ निकलै वला समय नहि रहै। एहन
समयमे के आ कत्तऽ नाहक इंतजाम करतै ? कखनो काल बौकूकें लगै जे रामचन बलौं
लोककें चरिया रहल छैक। किछु नहि हेतै। धार खाली फूलि गेल छैक। थोड़ेक पानि अओतै
आ सटकि जेतै। रामचनक घरमे अनाज पानि कनेक बेसी छैक तैं ओकरा नाहक एतेक
फिकिर छैक। लेकिन के कहलक-ए ! ओकर वि•ाास कपूर जकाँ तुरन्ते उड़ि गेलै।
मेघ पतरेलै आ कने कालक लेल बुनछेक भऽ गेलै। बच्चासँ लऽ कऽ बूढ़ धरि गामक
समस्त लोक पानि देखबा लेल घरसँ बाहर आबि गेलै। उत्तरभर सगरे पानिए पानि देखाइत
रहै। बस्ती दिस जे पानि दौड़ल आबि रहल छलै तकरा धौया पूता सभ हाथ आ बाँहिसँ
रोकैत रहै। पानिक धार कने काल धरि बिलमिकें जमा होइत रहै आ तकर बाद हाथ आ
बाँहिकें टपैत आगू बढ़ि जाइक । छौंड़ा सब आगू जा कऽ फेर पानिकें घेर। बान्ह - छेक कें
टपैत पानि फेर आगू बढ़ि जाइक। पानिक ताकतक सोझो छौंड़ा सभ हारि नहि मानय चाहैत
रहय। पानि खरहू सभक लेल कौतुक आ खेलक वस्तु बनि गेल छलै, लेकिन सियानकें
आतंकित कऽ रहल छलै।
'बाप रे ! वेग देखै छिही ? ई पानि जुलुम करतै।' करमान लागल लोक दिस तकैत
भल्लू बूढ़बा बजलै। कोसीक उग्र रूपकें लोकसभ अनिष्टक आशंका आ आश्चर्यक भावसँ देखि
रहल छल आ अपना-अपना हिसाबें टिप्पणी कऽ रहल छल।
बौकू माल खोलि दछिनबरिया बाध लऽ गेलै। थोड़बे कालमे बहुत चरवाह जुटि गेलै।
बाढ़ि आबि गेला पर माल-जालक लेल कोन स्थान सुरक्षित हेतै, ओ सभ ताहि दिआ गप्प कऽ
रहल छल। मुदा सभक नजरि उत्तर दिस जमल रहै जेम्हरसँ पानि आबि रहल छलै। बरखा
फेर हुअय लगलै। आब बाढ़ि आबि कऽ रहतै। ओ सभ दुÏश्चताक बोझ तर दबल आ बरखामे
तितैत चरबाहि करैत रहल। गाम पर हल्ला होमय लगलै। एकर मतलब जे घर-आंगनमे
पानि ढूकि रहल छलै। ओ सभ मालकें गाम दिस रोमलक। आगू बढ़ला पर देखलक पानि
बहुत वेग सँ दौड़ल अबैत रहै आ जल्दिए दछिनबरियो बाधकें पाटि देतै।
बौकू गाम पहुँचल तऽ देखलक दुआरि-अंगनामे भरि घुट्ठी पानि लागि गेल छैक।
छपछपाइत गोहालीमे
मालकें जोड़ि ओ भेलबावलीकें देखय आंगन गेल । साँझ पड़ि रहल छलै। झाँटमे अतिकाल
रहलाक कारणें ओकर सौंसे देह भुटकल आ थरथराइत रहै। ओ धोती फेरलक आ चद्दरि
ओढ़ि चूल्हि लग बैसि गेल। चूल्हि पर पलसिया मकइक खिचड़ी टभकाबैत रहै। घरमे धुइयां
औनाइत रहै आ बाहर निकलऽ लेल अहुँछिया काटि रहल छलै। बौकूकें बझेलै जेना कोसी
तरमे रहनिहारो धुइयां छिऐ जे बाढ़िसँ घेरायल चकभाउर दैत रहैत छैक आ रस्ता नहि भेटला
पर पानिमे बिला जाइत छैक। चूल्हि फुकैत-फुकैत पलसिया बेदम भऽ गेल छलै।
'आब की हेतै ?' भेलबावाली पुछलकै। रद्द दस्त बन्द भऽ गेलासँ ओकर मन नीक
भऽ गेल रहै। मगर कमजोरीक कारणें पड़लि छलि।
'आब की हेतै?' - खोनो जवाब नहि भेटला पर ओ फेर पुछलकै।
जे सबहक हेतै, सैह हेतै, और की हेतै ? अखनि घर छोड़क कोनो बेगरता नहि छैक
' पलसिया बाप दिस एकटक तकैत सुनि रहल छलै।
'सतबा सब परानीकें गोढ़ियारी लऽ गेलै।' भेलबावालीक स्वरमे उलहन छलै।
'गोढ़ियारिए कोन ऊँचपर छैक।' बौकू खौंझाय गेलै
'ओतय कटनियाँक डर तऽ नहि ने छैक।' भेलबावाली फरिछाबैत कहलकै
'भोर देखल जेतै।' चिंता करैत-करैत बौगूमे चिंतनीय निरपेक्षता आबि गेल छलै।
'पानि बढ़िए रहल छैक।' भेलबावाली जेना अपनेसँ गप्प करैत बजलै।
आँगनमे आब भरि ठेंगहुन पानि भऽ गेलै। धीयापूता मचानपर सूति रहलै। तीतयबला
सभ वस्तुकें पलसिया सीक आ मचानपर राखि देलकै माल-जाल पानिमे ठाढ़ भेल डिरिया रहल
छलै। सांप-कीड़ाक बहुत डर रहै।
धार हहाइत रहै। निसबद रातिमे कोसीक गरजब विकराल आ डराओन लागि रहल
छलै। ओकर एकपरतार हहासमे एकटा दोसरे सुर-ताल छलै। कखनो धैर्य आ कखनो बेचैनी
संगे बौकू ई संगीत सुनि रहल छल। ओ तबाही आ मृत्युक संगीत रहै। ओकर निन्न उड़ि
गेल रहै। ओ कखनो बढ़ैत पानिक अंदाज करैत रहय; कखनो आँखि निरारि माल-जालकें
देखैत रहय। कखनो कान पाथि विनाशकारी हहास सुनैत रहय। ओकरा होइक जेना घर लऽ
दऽ कऽ कखनो बैसि जेतै। ओ चेहाय कऽ उठय आ आँखि फाड़ि-फाड़ि घरकें देखय।
'भागह हौ, बौकू भैया। घर कटि रहल छैक, भागह हौ।' कमल चिकरैत रहै
बौकूकें हूक पैसि गेलै आ समूचा देह थरथराय लगलै। आब ओ कोना की करतै ?
कोना सभक जान बचेतै ?
कमलक चिकरब सुनि भेलबावाली हाकरोस कऽ उठलै - 'हौ बाप ! ई घरेमे घेरि कऽ
सभक जानि मारि देतै। हे भगवान, रच्छा करह ! हे कोसी माय, जान बचाबह। तोरा जीवक
बदला जीव देबह। हे कोसी महरानी, बचाय लैह।'
बौकूकें भेलबावालीक अगुताइ पर पित्त उठलै। लेकिन लगले भेलबावाली आ
धीयापूताक लेल ओकरा अफसोच आ दुख भेलै। भेलै जेना सभकें कन्हापर लऽ कऽ उड़ि
जाइ, ऊपर बहुत ऊपर आकाशमे ठेकि जाइ आ घर आ समुद्रकें ठिठुआ देखबैत रही। लेकिन
ओकर देह सिहरि उठलै। भेलै जेना खसि पड़ब।
कटनियाँ अखन ओकरा घरसँ दूर रहै। लेकिन पानि घर ढूकि गेलै। कच्छाछोप पानि
भऽ गेलै पानिमे बहुत वेग रहै। अखन जँ ओ सभकें लऽ कऽ निकलै तऽ एहि रेत आ अन्हारमे
सभ दहाय-भसिया कऽ मरि जेतै। आब भोरसँ पहिने किछु नहि भऽ सकतै।
बौकूकें एको पलक लेल निन्न नहि भेलै। ओ दुनू ठेगहुनकें पजियाठने ओहि पर माथ
टेकने बैसल रहय। उकस-पासक या कनेको हिलडोल करबाक कोनो इच्छा नहि भेलै।
सभतरि मृत्यु आ विनाशक हाहाकार पसरल छलै। धीरे-धीरे ओकर आत्मामे विषण्ण शून्यता
भरैत गेलै। मन पर उद्वेगरहित संवेदन शून्य शांति पसरि गेलै आब ओकरा कोनो चीजक चिंता
नहि रहलै। भेलबावाली धीयापूता मालजाल कोसीक विध्वस सभटा अर्थहीन भऽ गेलै। ओकर
मोह टूटि गेल रहै। ओ कठोर पत्थर जकाँ अचल बैसल रहय।
बरखा रुकि गेलै। आसमान साफ भऽ गेलै। किरिन फूटलै। ओकर फूटैत लाली
देखि भेलबावालीकें बुझेलै जेना कोसी महरानी ओकर गोहारि सुनि लेलकइ। ओ आशा आ
उत्साहसँ भरि गेलि । ओ बौकूकें हाक पाड़लक । बौकू कोनो उत्तर नहि देलकै जेना ओ
अगम-अथाह पानिमे डूबल हो आ हाक सुनि ऊपर हेबाक जतन कऽ रहल हो। भेलबावालीक
दोसर हाकसँ बौकूमे स्पदन भेलै। ओ अकचकाइत मूड़ी उठौलक आ भकुआयल सन सभ
चीजकें चिन्हबाक आ स्मरण करबाक प्रयास करय लागल।
फयदा
मनमोहन झा
'बेरतेन बासोन !' -- बासनबलाक टेरपर पत्नी हमरा दिस तकलनि। हुनका बुझल
छनि जे ओ हमरा फुटलो आँखिए नहि सोहाइत अछि आ तें कृत्रिम रोष देखबैत बजलीह--
जरलाहा काजेक बेरमे अबैत अछि। ....कहिए डोंगा लाबय कहने रहिऐ, से आइ मन पड़लैक
अछि।' पत्नी स्वरमे 'पान पसन्द' बला मधुरता आनि हमरा फुसिअयबाक चेष्टा करय लगलीह
जाहिसँ हम खौंझाइ नहि।
हमरा अनेरे तामस नहि होइत छल। एक त ओकर मुँह टेढ़ कऽ 'बेरतेन बासोन'
बाजब अनसोहाँत लगैत छल । सब बेचनिहारकें मुँह एेंठि कऽ परिवर्त्तित स्वरमे बाजब जेना
स्थायी गुण बनि जाइत छै। भरिसके कोनो बेचयबला अपन स्वाभाविक स्वरमे बजैत अछि।
किछुकें त जेना ई गलतफहमी भऽ जाइत छै जे जतेक आवाज बिगाड़ल जाइ ततेक बिक्री
हैतैक। ओना हमरा हिसाबें होयबाक चाही उनटे, किऐक त
कयबेर त टाहिसँ इहो नहि बुझाइत रहैत छै जे ओ की बेचि रहल अछि। ....जे हो, बासनबला
सेहो ओही तर्ज पर रेघाकऽ टेरैत छल जे हमरा झरकी बढ़ा दैत छल।....
देखलो सन्ता ओकरा पर पित्त चढ़ैत छलै। ओकर रुप ओ हाव भा नटुआबला छलै।
जानि नइ किऐक हमरा ओहन माउगमेहर लोककें देखि बेसम्हार क्रोध ओ जुगुप्सा होइत अछि।
कतेककें त नचनियाँसँ मनोरंजन ओ मजाक करैत देखैत छिऐक, हमरा लेल त देखबो असह्र
होइत अछि। ....भऽ सकैत अछि मौगियाह स्वभावेक कारणें बासनबला स्त्रीगण सभक बीच
लोकप्रिय होअय।....
ओकरापर बिगड़बाक एकटा कारण इहो छल जे ओ दुपहरियेमे चोर जकाँ अबैत छल।
ओहो गमने छल जे पुरुषवर्ग ओकरा पसिन्न नहि करैत छै आ तैं ओ तेहने बेरमे अबैत छल जे
सभ बाहर रहैत छल। एकबेर पत्नीकें हम सावधानो कैने रहियनि जे ओ थाहि कऽ
अनुपस्थितिएमे अबैत अछि, एहने स्थितिमे कै बेर छुरा देखा सभ समान निपत्ता कऽ दैत छै।
ओ हमर नम्भीर संकेतकें हँसीमे टारैत बजलीह--'ओ मौगा हमरा सभकें की करत। हमहीं सभ
ओकरा नोचि खयबै।'....
भनहि छुर देखा समान लूटबाक ओ साहस नहि करय, किंतुठकि कऽ त ओ लइये जा
रहल छल। कै बेर पत्नीकें बुझयबाक चाहलिथनि जे जौं ओकरा फयदा नहि होइतैक त ओ
एहन कारोबारे किऐक करैत !
जाहि कपड़ा - लत्ताकें बेकार बुझि कऽ दैत छिऐक तकरा ओ बेचैत अछि। कतेक एहन अछि
जे नव साड़ी नहि कीनि सकैत अछि से इएह कीनैत अछि। गुदडी-चिथड़ी सेहो मशीन साफ
करबा लेल फैक्टरी नीक दाम दऽ कीनैत अछि। पत्नी मुदा नहि मानैत छलीह। हुनका अपन
बुधियारी पर दाबी छलन्हि जे फाटल-चिक्कट कपड़ाकें धोआ तहदर्ज बना बासनबलाक आँखिमे
धूरा झोंकैत छथिन।...
केदन कहैत रहै जे महिला कॉलेज लग किछु रिक्शाबला खाली जनानी सवारी लेल
ठाढ़ रहैत अछि बैसल रहत किंतु दोसर सवारी ओ नहि लैत अछि। सुन्दर सवाही चढ़ा ओ
एकटा तृप्तिक अनुभव करैत अछि....। मनक संतोष, आर किछु नइ। किछु हासिल नहि
होइतहु लगैत छै जे ओ फयदामे रहल। आ दिस जनानी सवारी सहजहि लाभक स्थितिमे
रहैत अछि। दुनू अपना-अपना ढँगे फयदाक अनुभव करैत अछि। ....
पत्नीक इहो तर्क, जे निरर्थक फेंकयबला वस्तुक बदलामे जे थोड़बौ किछु भेटि जाइत
अछि त ओ घाटाक सौदा कोना कहाओत, सही नहि छल। नीको कपड़ा जहाँ कने पुरान भेल
कि ओ ओकरा अलग छाँटिकऽ राखि दैत छलथिन। पत्नी हमरा सामने कपड़ा देमयसँ
हिचकैत छलीह। कहियोकाल तैं ओ दोसर दिन अयबा लेल कहि दैत छलथिन। एकाध बेर
पुरान कुत्र्ता - कमीज नहि भेटने हमरा बुझभामे भाङठ नहि होइत छल जे ओ बासनबलाक भेंट
चढ़ि गेल होयत।....
'कतय छी ? एहि थारी लेल पाँचटा नुआ मँगैत अछि।' बगलवालीक पत्नीक खोजमे
पहुँचलथिन।
'हेइए अयलहुँ। ई लोहिया खाली माँजि लैत छी। रहू न, दू गोटसँ बेसी नइ देबै।'
पत्नी मोल - मोल्हइमे माहिर मानल जाइत छलीह आ सभ खरीददारी हुनके नेतृत्वमे होइत
छल। बासनोबला पत्नीक एहि शक्तिसँ परिचित छल आ तें हुनका ओ कहुना नाखुश नहि
करबाक चाहैत छल। पत्नीक नाराजगीक अर्थ छलै सम्पूर्ण फ्लैटसँ ओकर उखड़ब। आ
उचिते ओ पत्नीक बोहनीकें शुभ मानैत छल। पत्नी एहीमे फुच्च भऽ बोहनी करैत रहैत
छलथिन।....
अकस्मात हमर जिज्ञासा बढ़ि गेल जे देखा चाही कतेकमे सौदा पटैत छैक !
बासनबला पाँच टा मँगैत छै आ पत्नी दुइये टा देबा लेल तैयार....देखी के जीतैत अछि।
कोठरीसँ बाहरक गप्प साफ सुना पड़ैत छलै, आ हम सुतबाक लाथें दम साधि सुनय लगलहुँ।
अनायासे आइ जासूसी करबाक अवसर हाथ लागि गेल छल आ हमरा एहिमे आनन्द आबय
लागल छल।....
सार मुदा अछि भागमन्त ! स्त्रीगण-सभ फिदा रहैत छै ओकरा पर। पत्नीकें कै बेर
बेकलतासँ ओकर प्रतीक्षा करैत देखने रहियनि। फ्लैटक महिलासोकनि बासन-बलाक हाँकपर
तहिना जमा भऽ जाइत छलीह जेना मुरलीक टेरपर गोपी-सभ।
बाहरमे महिलालोकनिक बीच कृष्ण बनल बैसल बासनबला रंग रभस कऽ रहल छल।
नोंक-झोंक त कखनो संकेत - कटाक्ष चलैत रहै। पन त भेल बासनक छिट्ठा समेत ओकरा
नीचा फेकि दी।...
'आँय ओ, एते पातर थारी लेल पाँच टा नुआ ? ठकय लेल हमहीं-सभ भेटलहुँ अछि
?' पत्नी उपालम्भ देलथिन।
'नहि, ठकइ नहि छी। ईमान जनैत अछि, एहिमे कोनो फयदा नहि लऽ रहल छी।
अहाँ सभसँ माँगि कऽ लेब। ठकि कऽ कतऽ जायब ?'
बासनबला घाघ बुझायल, गप्प करबामे माहिर। झूठ-फूस बात बना स्त्रीगण सभकें
ठकैत छै। सार क्यो कहि कऽ ठकैत छौ ? आ फयदा नहि छौ त छोड़ि किऐक नहि दैत छें
ई काज ! दोसरे काज कर फयदाबला.....बरू नचबे कर।.....
'दू टा नुआसँ फाजिल नहि देब एकर। कहि देलहुँ से कहि देलहुँ।' पत्नी कमान
कसि तनल छलीह।
'दू कपड़ामे एते गो थारी के देत ! मोला लिउ तब कहब ।'....
'मोलौने छिऐ। एहि थारीमे कोनो ओजन छै। पचकै छै, तते पातर छै।' पत्नी जेना
अपन समर्थनमे थारी के दू बेर पचका ठक-ठुक बजौलथिन।
'थारी त बीचसँ पचकबे करतै, केहनो मोट होइ।'
'की बात करै छी ! देखा दिअऽ हम थारी। अहाँकें त बुझाइ अछि जे हमरा सभकें
किछु बुझले नहि अछि।'
'नहि मलिकिनी से बात नइ छै। ठकी करै छै ओ जकरा एकबेर बिक्री करबाक रहैत
छै। हमरा त बराबर एहि दरबज्जापर आबए के अछि। आइ ठकिकऽ जायब त काल्हिए अहाँ
दस जुत्ता देब।' बासनबला पत्नीकें पोल्हबैत बाजल।
'एना नहि बाजू। अहाँकें हम सभ एतेक मानैत छी।....कहू त भला ! दिऔ दू टा
नुआमे ' पत्नी
परतारैत कहलथिन।
'नइ मलिकिनी। नइ परता पड़ैत छै।'....
'परता कोना ने पड़त ? अहीं दुआरे हमसभ बाजारसँ नइ लैत छी।' ई बगलवालीक
स्वर छल।
'दू गो कपड़ामे त ई बाटी दैत छिऐ।'
'भेल-भेल। आब बेसी मोल्हइ नइ करु। ठीक छै एकदम।' पत्नी निर्णयात्मक स्वरमे
बजलीह।
'घट्टी लागि जाएत। अहाँ सभसँ माँगि कऽ लेब। अहाँलोकनि त एहिना नुआ लोकमे
बँटैत रहैत छिऐ। एगो दियौ ने हमरो घरवाली लेल।' बासनबला श्रृंगार रसक उद्दीपन कऽ
देने रहै, आ सभ रस लेबय लगलीह।
'से अहीमे सँ दऽ दियौ। देखियौ एकदम दढ़ छै। कतहु कनेको फाटल नइ। ई अहाँ
घरबालीकें दऽ दिऔ।' पत्नी कहलथिन।
'घरबालीकें कतेक ध्यान रखैत छै बासनबला।' बगलबाली चुटकी लेलथिन।
'रखथिन नइ ! ओहो तहिना मानैत होयतनि की !' ई दोसर पड़ोसिनक आवाज रहै।
हँ, से मलिकिनि कोनो शिकाइत नइ करैत छै। गाय छै।' पता नइ बासनबला
भसिआय लागल छल कि नाटक कऽ रहल छल।
'घरबालीकें त साड़ीक कोनो कमी नहि रहैत हैतै।' पड़ोसन टीपलथिन।
'त, एकटा हम-सभ छी।' पत्नीक गप्प पर सभ हँसल।
'ओकरे दऽ देबै त कमाइ की करबै ? ओ त अहाँसभसँ माँगि लैत छिऐ। बासनबला
सफाइ दैत बाजल।
'देखैत केहन छौह ?' पत्नीक खोदलथिन।
'ठीके छै।...हिनके बला रंग छै।' बासनबला पता नइ ककरा देखाकऽ कहलकै ! ओ
सभ हँसय लागल छलीह। हमरा क्रोध भऽ आयल। सार खच्चरै कऽ रहल छल।....
'कतबो कहै छिऐ जे अबेर भऽ जाय त खा लेबे लेल से बैठल रहत। हम जयबै तखने
खायत, बासनबला आब हदसँ बेसी बहकि रहल छल।
'धीया-पुता सेहो अछि ?' पता नइ कोन बेगरते पत्नी पुछलथिन।
'हइ, दू गो बच्ची।'
'देखैएमे बासनबला तेहन बुझाइए.....।' पता नइ गमेसँ के कहलकै जाहिपर सभ
ठहक्का लगौलक।
'एगो होनिहारो छै।' बासनबला ढीठ भऽ आयल छल।
'कै मासक छै ?' पत्नी पुछलथिन त फेर हँसी भेलै।
हमरा पित्त चढ़ि आयल। छोट लोकसँ मुँह लगौलाक इएह नतीजा होइत छै। पत्नीके
अपन स्तरक ध्यान रखबाक चाहियनि। हमरा आश्चर्य भेल जे पत्नी छोट-मोट फयदा लेल
कोना एहि हद धरि नीचा उतिर आयल छलीह। हम त्रिवेदी नहि भऽ सकैत छी जे बॉससँ
अपन पत्नीक मेल-जोलक छूट दी। .....छोट स्तर पर एहो त सैह भेलै।....
कय बेर कहलियनि जे दोकानमे एकसँ एक चीज भेटैत छै। जे कीनबाक हो लऽ
लिअऽ । मुदा नकद दाम दऽ कीनब हिनका महग बुझाइत छनि। जेना ई मँगनीएमे दैत हो।
जौं कने सस्तो पड़लै त एहि तरहक घटियापन।....
हमर ध्यान मूल विषयसँ घूमि दोसर दिस चलि गेल रहय। उत्सुकता एखनो रहय जे-
जानी जे सौदा कतेकमे पटलै। कान फेरसँ काज करय लागल। सौदा एखन चलिए रहल
छलै।
'हटाउ, तीन टा नुआ दऽ दिऔ।' बासनबला पैंतरा देखा रहल छल।
'नइ, तीन टामे हमर डोंगा दऽ दिऔ।' पत्नी कहलथिन।
'चारियो गो नम्हर कपड़ा दिऔ।' बासनवला पस्त नइ भेल छल।
'पहिने ई थारी फरियाउ न।'
'थारी तीन गो से कममे नइ हैत।'
'नइ, तीन टा त नहि देब। '
'अहीं लेल तीन टा लगौलिएक अछि। दोसरसँ चारिटासँ कम नहि लितिऐ।'
बासनबला पत्नीकें पोटैत बाजल।
छोड़ू-छोड़ू ! देबाक हो त दिअऽ, नहि त जाउ।'
'अच्छा, चलू अहीं के बात। एगो कमीज लाउ।'
'नइ कमीज त नइ अछि। बच्चाक फ्राक दऽ देब।'
बगलबाली दू टा नुआ एकटा फ्राकमे थारी लऽ लेलथिन। मामिला पटि गेल रहै।
लगभग अधियामे। दोसरासँ मुदा रगड़ियल चारिटा तक नम्हर कपड़ा एेंठि लितै। गिरहकट्ट
सार।....
ई बासनबला बहुत दिनसँ परिकल छैक। पत्नीकें एकरेसँ पटिते छनि। दोसर
बासनबलासँ ओ नहि लैत छथि। मारते रास बासन ओ जमा कयने छथि आ तैयो कोनो न
कोनो फरमाइश कऽ ओकरा बजबैते रहैत छथिन। कतेक बेर त हमरा पतो नहि चलैत छल।
ई पहिल बेर छल जे हुनकर सभक गप्प सुनबाक मौका लागल छल।
हमरा जतबे ई पसिन्न नहि छल, पत्नीकें बासन लेबाक धुन चढ़ल छलनि। ओ नैहरसँ
सेहो पुरान कपड़ा सभ आनय लागल छलीह। बासनोबलाकें एकटा नीक मुल्ला भेटि गेल
रहै।....
'देखियौ कतेक टा डोंगा तीनेटा साड़ीमे दऽ देलक....सेहो फाटल।' पत्नीक आँखिमे
बासनक चमक घुसि आयल छलनि।
'बजारमे पैंतालीस टाकासँ कममे नहि देत। पत्नी तरह-तरहसँ बुझाबय लागल रहथि
जे ओ फयदामे रहलीह अछि। किंतु हमर भीतरक धाह कम नहि भेल रहय।
'अहाँक मुँह देखि कऽ दऽ देने हैत।' हम चोट कैलियनि।
'से ठीके ! बोली देलापर ई बहुत सस्ते दऽ दैत छै। हँसी - बाजिकऽ एकरा पोटि
लैत छिऐ।'
'कनेक आर आगाँ बढ़ि जाउ त मँगनीयोमे दऽ देत।' हम कटाक्ष कैलियनि। हमर
आशाक विपरीत ओ तुनुकबाक साँती ओकरा सोआदऽ लगलीह-'कोन हर्ज। अहींक घर
भरत....। फयदे - फयदा।'
पत्नी बाजि कऽ चलि गेलीह मुदा हम तखनेसँ सोचि रहल छी। तय नहि कऽ पबैत
छी जे ओ वस्तुतः सस्त अछि कि नहि।....
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लघुकथा / फरिछ / मधुकर भारद्वाज
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-- यै सुनै छी ? सुति रहलौं ?
-- धौ ! की भेल ?
-- हे, सुनियौक बच्चा कतेक कनैत छैक कने देखियौक ने ?
-- मर, ऐहिमे हम की देखबैक, अपन माय बाप लग सूतल छैक।
-- अहा, कनियो तऽ एखन धियेपुता छथिन ने।
-- अहूँ तऽ ताल करैत छी। धियापुता । बिसरि गेलियैक कोना हम काँख तर बौआ के लऽ
कऽ भरि दिन काज करी।
-- से हम कहाँ कहेत छी नै। हे सुनियौ कोना चिचियै छै।
-- ओह, अहूँ मोन दिक कऽ दैत छी। यै कनिया ! यै उठू ने एना कोना निभेर सुतल जाय
यै।
-- की भेलनि माँ ? की भेलनि !
-- मर ! तखनसँ चिलका कनै यै, आर कहै छी की भेलै।
-- कहाँ कनै छै बौआ सुतल तऽ छै।
-- मर तऽ के कनै छै ? ओं ! बुझलौ की ओ जे पाछूमे कल लग मुसलमन्ना रहैत अछि तकर
बच्चा कानै छै।
-- से ! सुतू।
-- सैह कहू, ओहो कोढ़िया अपने सबहक धिया-पुता जकाँ कनैत अछि।
कुकुरगली
राज
सफदरगंज नगरक लेखा ओना आब महानगरमे होबऽ लागल छै, मुदा एखनो ई देशक
आन-आन प्रसिद्ध महानगरक तुलनामे बहुत झुझुवान छै। यमुना नदीक किन्हेरमे बसल ई
महानगर स्वाधीनताक बाद बड़ तेजीसँ विकास करैत गेलै। जिला मुख्यालय छै ई। आइसँ
पचीस बर्ख पूर्व तक ई कस्बाइ सकलसँ हेठ नहि भऽ सकल रहय। ओना चालि-ढ़ालिमे एखनो
कस्बाइ गंध पूरा पूरी हटि नहि सकल छै। एखन हम जे कथा कहय जा रहल छी ओकर
नायक अही नगरक ए. जी. आफिसक एगो मामूली किरानी अछि। ओना मामूली खाली
ओहदाक अर्थमे। नहि तँ जतय ओहि आफिसक बड़ासाहेब धरि अपन आफिस आ मोहल्लाक
अलावा सभठाम अपरिचयक शून्यता उघैत रहै छथि ओतय एगो मामूली किरानीक भला कोन
हैसियत भऽ सकै छै। मुदा एतय विपरीते बात छलै। नगरक एहन कोनो गली आकि मोहल्ला
नहि छलै जतय एहि किरानी, जकर कथा हम कहय जा रहल छी सँपरिचय रखनिहार लोक
नहि छल। से ओकर पीठपरक कूबड़क चलते आकि पैर छानल घोड़ा सन उचकैत ओकर
चलबाक ढँगक ओजहसँ नहि। एहन होलियाक तँ एहि लोकक जगलबला नगरमे कतेको भेटि
सकैए। वत्र्तमान व्यवस्थाक नजरिमे तँ अहूसँ पैघ कूबड़ ओकरा पर सवार छलै। इमानदारी
आ कर्मठताक जुम्मुथ कूबड़। जकरा उघैत ओ हरदम परेशान आ हँफैत रहै छल।
से की नाम छियै सुरुजक आँखि खोलिते जेना ओकरो तपबाक क्रम शुरु भऽ जाइ छै
आ जावत नगर जागल रहै छै, चलैत रहै छै। ओना देशक अधिक भागक लोकक पेटमे तिक्ख
सुरुज उगल रहै छै। मुदा बहुतो लोक एहन होइए, जकर पेट आ माथ दुनू ठाम सुरुज
धधकैत रहै छै। से ओहि फांटक अछि हमर ई कथानायक। मोहल्लासँ आफिस धरि ओकरा
लेल सबहक ह्मदयमे सम्मानक भाव छै, मुदा अव्यक्त रुपमे सोझाँ-सोझी ओकरा कियो कोनो
अप्रिय कथा नहि कहि पबै छै, मुदा एहन कोनो ठाम नहि होइ छै जतय ओकरा फबतीक
सामना नहि करय पड़ैत होइ। कोनो हीनभावनाकें नहि पोसैए ओ मुदा एगो हीन जिनगीकें
जीबा लेल बेबस बनल रहै-ए। एगो दुर्गम पारदर्शी व्यक्तित्वक जीव।
'पागल हैया रने-बने फिरी आपन गंधे मम, कस्तूरी मृगसम' मात्र प्रश्ने बनिके तँ रहि
जाइ छै गुरुदेवक ई बात। कहाँ भेटि सकै छै कतौ एकर उतारा। जिनगीमे बहुत रास एहन
बात होइ छै जकर उतारा भेटियो कऽ नहि भेटि पबै छै। उताराक जिज्ञासामे सुगंधिक हेर
आर तीव्रे भेल चल जाइ छै। तीव्रसँ तीव्रतर।
आइ पचीस परीसक धतपत भेल हेतै ओकर नोकरीक एहि ए. जी. आफिसमे। एहि
अमलमे ओकरासँ बादोक जकर नोकरी लागल रहै सेहो सब माल-कित्ता मकान आ आधुनिक
साज-समानक मालिक भऽ गेल रहय। मुदा ई आइधरि अपन ओहि छोट-छीन पुस्तैनी मकान
जे कि मोहल्लाक आधुनिक ढँगक मकानक आगू कोनो कुरुप बानबीर सन देखा पड़ै, मे रहि
रहल छल। ई मकान ओकर बाप बनबौने रहै जे अगरेज सरकारक अमलदारीमे एगो खानगी
बैंकक दरबान रहै। आब तँ मकानक पलस्तरो ठामठीम उखड़य लागल रहै। ओकरो मरम्मती
करायब एकरासँ पार नहि लागै। कैक बेर पत्नीक चिक-चिकसँ आजिज भऽ एहि मादे सोचबो
करय तँ नियारिये कऽ रहि जाइ। आघुनिक साजसज्जाक नामपर एगो झड़झड़ही लोकल
ट्रांजिस्टर टा रहय घरमे। एहि व्यवस्थामे बिना ऐली बाइली आमदनीक एगो छोट-मोट किरानी
लेल से संभवो नहि छलै। ओकर पत्नीकें हरदम ई बात सब अखरै। पत्नीक नजरिमे ओ
कामचोर, दब्बू आ निफिकीर लोक रहय। एहि कारणें घरोमे ओकर एको मिनट सुख चैनसँ
नहि बीतै। घर पहुँचिते पत्नीक उलहन-उपरागक पोथी बांचब शुरु भऽ जाइ। आइ मोहल्लाक
फल्लांक ओतऽ रंगीन टीवी एलै-ए तँ चिल्लां गाड़ी निकालि रहल छै। सिंहजी ओकरासँ
कतेक बाद स्टोर कीपरक नोकरी धेलकै, सेहो एगो मामूली आफिसमे आ उपरको स्टोरोमे हाथ
लगा देलकै-ए। वर्माजी तँ बाबूयेक नोकरी करै छै। कोन कोन समान ने गचल छै ओकर
घरमे। बच्चो-बुच्ची बनल जा रहल छै। सब अंगरेजीये स्कूलमे दाखिल छै। आ ओकर तँ
तीनू बच्चाक पालन-पोषण भगवाने भरोस पर भऽ रहल छै। ककरोसँ की ओकर बच्चा बुच्ची
देखबा-सुनबामे दब छै, मगर केहन लल्ल भिखारिक नेना भुटका जकाँ बनल रहै छै। एहिमे
ओकर सबहक कोन दोख छै। एहन सैंतल बच्चा बुच्ची तँ भगवान सबकें देथुन मगर हमरा
सन जरदगव आ निसोख स्वामी सात घर मुद्दैयो कें नहि देथुन। पढ़ाइयो-लिखाइक तेहने हाल
छै। पढ़ै जोग दुनू बच्चा साधारणें स्कूलमे लटकल छै। आगू जा ओहोसब बापे जकाँ कोनो
आफिसमे बाबूगिरी करतै आ अनकर बेटीकें हमरे जकाँ कलपौतै। हमर माय-बापके माहुर
खुआ मारि नहि दऽ भेलै हमरा, जे एहनाक हाथमे फेकि देलक आदि आदि। ओकर घरैया
जिनगीक रोजनमचे भऽ गेल रहै ई सब।
ठीक एहि देशक नागिरकक ओसूलसँ विपरीत समयपर आफिस पहुँचब आ चुपचाप
अपन फाइलमे धँसि जाएब ओकर धार्मिक कट्टरता छलै। खाहे आन-आन कर्मचारी जे करौ।
ओ अपन ड्यूटीक मालिक अछि। नियमित काज करैत रहबाक ओजहसँ हरदम ओकर फाइल
दुरुस्ते रहै छलै। बेसीखन तँ अनके ओझराएल फाइलकें ठीक करबामे ओ बाझल रहै छल।
सोभावसँ आशुतोष । जैह कर्मचारी ओकर कार्यप्रियताक मखौल उड़बै छलै ओहो जखन
जरुरति पड़ने फाइल लऽ ओकर आगू जुनि जाइ तँ कनेको कोताही नै करै। हँ ! अलबत्ता
ओइ समयमे जे किछु मुँहमे अबै से भनभनाइत तुरत काजमे लागि जाइ। अधिकांश भलगर
विशेषण व्यवस्थाक लेल रहै छलै आ एक-आध व्यवस्थाक आदेशपाल ओइ व्यक्तियोक लेल।
ओकर नजरिमे मूल रुपसँ दोखी व्यवस्थे भेल करै छै। लोक तँ भेल करै-ए खाली व्यवस्थाक
हाथक कठपुतरी। खाहे व्यवस्था ओकरा जे नाच नचबौ। घोरसँ घोर व्यवस्था विरोधीयोके
व्यवस्थेक रंग-ढंगमे जीबऽ पड़ै छै। हँ तखन फरक एतबे होइ छै जे कियो तँ ओकरा उचित
मानि ओकर टहल बजाबैए आ कियो मजबूरीमे ओकर कहल मानै-ए।
से की नाम छियै ओकर आफिसक पाण्डेय आ मल्लिक तऽ जेना हरदम हाथ धो
ओकरा पाछू पड़ल रहै छलै। आफिसमे पैर रखिते मिश्रा पर नजरि पड़ै कि ओकर सबहक
उमकी शुरु भऽ जाइ।
करम गति टारत नहि टरे।' अरे मल्लिक ! बेसौ कामचोर नै बन यार। आखिर
सरकार दिन-दिन एते पगार किए बढ़ौने जाइ छौ। कुछो तँ सैरियत दहो। आकि खा-खाके
खाली लीदे भर करबहो।' पाण्डेय टीपै छलै। मोछैंला मल्लिक दहला बजारैत टीप दै छलै-से
ई नै बूझल छौ तोरा। जै बरदके कम खैर भेटै
छै उहे बेसी कोल्हु खीचै छै। हँ ; आँखिमे पट्टी धरि अवस्स बान्हल रहक चाही।'
हँरे ! से तँ हमहूँ मानऽ हियौ। आइ-काल्हि देखऽ मे तँ सैह अबै छै।' आ ओ आँखि
मारि जीह कुचि लै-ए जैसँ मिश्रा किरानी दिस ओकर संकेत स्पष्ट भऽ जाइ छैं। ओ दूनू
मुस्कियाइत आगू बढ़ि जाइ छल आ मिश्रा भनभना उठै छल--'हुँ :। कुकुरगली-कुकुरगली।'
आ अपन काज आर फुत्र्ती करऽ लगै छल व्यवस्थाक लेल कुकुरगली विशेषण ओकरा मुँहमे
सबसँ प्रमुख छलै। अधिकांश कर्मचारीक नजरि तँ एहि दिस रहै छलै जे घड़ीक सुइया कखन
चारि बजौतै। एहि बीचमे ओ सब आफिसक गेट लगक मंडल आकि झाजीक चाहक दोकानक
कैक खेप निरीक्षण कऽ अबैत छल। जाइत-अबैत मिश्राकें अपन फाइलमे धँसल देखि कियो
किछु टीप दै छलै।
'अरे मल्लिक भाई ! हीयाँ एतना देर बैठके का करबह ? कतनो फाइलमे नाक
डुबेबहू तँ तनखहवा थोड़े बेसी मिलतौ।' मसूर अगरा उठै छल मल्लिक टभकि उठै छलनै रे
भाइ ! हम तँ नीक जकाँ ऐ बात के जनै छियै। तैं देखै नै छही आफिसक फाइलसँ बेसी
झाजीयेक दोकान फाइल डील करै छियै। अनेरे फाइलमे नाक डुबा शुतुरमुर्ग जेका धार टेढ़
कऽ लियऽ।
स्टोर कीपर शर्माके हँसियोमे एहन कोनो बात बजबामे हिचक होई जे मिश्राके अधलाह
लगतै। ओ मजाकोमे ओकर तरफदारीये करै। ओना ई बात नै रहै जे पाण्डये मल्लिक कि
मंसूर समेत कोनो कर्मचारीक करेजमे मिश्राक लेल स्नेह आ सम्मानक भाव नै रहै कारण ई
बात सब जनै छल जे ई सबटा मखरनी मिश्रेक बुत्ता पर चलै छै। मुदा एहि व्यवस्थाक गलत
समझदारीक ओजहसँ कियो एहि बातकें स्पष्ट रुपसँ व्यक्त नै कऽ पाबै। ई व्यवस्था सरिपों
लोकक बीच एगो धोनहींक महाजाल टा रचै छै। शर्मा कहि उठै छै--'से बात तँ छैहे भाइ !
जे कारीगर सुघड़ मुरुत सब गढ़ै छै ओकर अपन धार टेढ़ भैए जाइ छै।' कियो व्यवस्थाक
आलोचनाक स्वाँग करैत कहै--'देखै नै छही दिन-दिन देशमे बेरोजगारक पतियानी केहन नम्हर
भेल जाइ छै।' फेर ओहीमे सँ कियो टीप दै--सारे जहाँ का दर्द इस जिगर मे है। अरे
ओस्ताद देशक फिकिर किए करै छें। नीक हेतौ जे पूरा देशक लोककें विकलांगे बना दही,
सबके नोकरी भेटि जेतै।'
'अहा हा ! की बढ़ियाँ सुझाव। हमहूँ कैक खेप ने एकरासँ कहलिये-ए जे रे भाइ !
कान्ह पर ग्लोब नै उठा नै तँ ऊँट जेकाँ कदीमा लटैकि जौतौ।' कियो दोसर कहि उठै।
कियो पुलिसक धांधली मादे टीप दै कारण मिश्राक रोखक शिकार एगो पुलिसो भेल
करै। ओ एत्ते तक बाजि दै छल जे यदि पुलिस नै रहै तँ एत्ते अपराधो नै बढ़तै। पुलिसक
चर्च चलिते कियो कहि उठै पुलिस बननाइ की आसान बात छै। तोरा सन देह बगयबलाके
पुलिसमे के भर्ती करतौ।'
'राख-राख। घूसक बुत्तापर कथीमे भत्र्ती नै भ. जाइ छै। तों तँ पुलिसेक बात करै छें।
कोनो स्वर नकली प्रतिवाद करै।
'हँ रे भाइ। बिना माल-पत्तरके एतऽ कोनो काज ससरै छै ? तें तँ हम तोरो कहल
करै छियौ जे खाली माल बनहो माल। खाहे जै किसिमसँ हौ। माल टेंटमे रहने सब जङ पूछ
हेतौ। नै तँ दोसरके के कहय घरबाली लोटाभरि पानियो ने देतौ।' मल्लिक कहि उठै।
मसूर टभकि उठय--'एहू में कहे का बात है ? तूँ तँ पानीयें देबेका बात करो है।
आदमी लेखा
बतियाना भी छोड़ देतै। आर अगारी के तँ सोचना भी फिजूल।' आ सब गोटा खिखियाइत
चाहक दोकान दिस चल जाइ छल। बेचारा मिश्रा रोखसँ खाली अपने मोने बड़बड़ाकें रहि
जाय--'सार कामचोर सब ! हरामखोर सब !! व्यवस्थाक दलाल !!! हूँ:, कुकुरगली-
कुकुरगली'
से आइ जखन मिश्रा समयसँ बहुत बाद तक आफिस नै पहुँचलै तँ पाण्डेय बाजि उठल
-- 'रे भाइ मल्लिक ! आइ आफिस के ओ रोनक नै हौ रे। आइ रौनकबला टेबुल किए खाली
हौ ?'
मल्लिक अनठाकें पुछलकै-'कोन टेबुल मादे कहै छें ? अरे ! बेसी नै बन यार ! आर
कोन ? वैह 'मिलो न तुम तो हम घबरायें मिलो तो आँख चुरायें, हमें क्या हो गया है, बला।'
ओ सब एतबा गप्प कैए रहल छल कि बड़ासाहेब धड़फड़ाएल सन अकस्मात ओतऽ पहुँचैत
छथि। सब आशंकित भावसँ साहेबक किछु बजबाक आतुरतासँ प्रतीक्षाकरऽ लगै-ए कारण कोन
एहन खास ओजह भऽ सकै छै जे साहेब अपने ओकरा सबहक बीच जुमि गेलाहय। नै तँ
कोनो सामूहिको निर्देश देबाक होइ चनि तैयो सबके अपने चेम्बरमे बजा लेल करै छथिन।
साहेब घबड़ाएल स्वरमे कहै छथि-'एखने चड्ढाजीक फोन आएल अछि जे मिश्रा एकाएक
मूर्छित भऽ खसि पड़ल। भिनसरेसँ पेटमे किछु-किछु दर्द छलै। एखन हालत सीरियस छै।'
'ई चडढ़ाजी के छथ सर ?' पाण्डेय कोनो आशंकासँ पुछलक।
'एकटा रिटायर्ड एक्जकूटिव इंजीनियर। मिश्राक नेक पड़ोसी छथि।' साहेब उत्तर
देलनि।
फेर की छलै । सब अपन-अपन कागज-पत्तर जल्दी - जल्दी समेटि आफिस बंद कऽ
भागल सोझे मिश्राक ओतऽ । के हाकिम के किरानी आ के चपरासी । सब व्याकुल भऽ
उठल। साहेब ओ सहकर्मी सबहक ओतऽ पहुँचबासँ पूर्वे मोहल्लाक तीनू चारू डाक्टर ओतऽ
जूमल छला। हुनकालोकनिक स्पष्ट निर्देश छल जे यथाशीघ्र अस्पताल नै पहुँचौलासँ खतरा
अछि। साहेब मिनटो भरि ओतऽ ककरो नै बिलमऽ देलखिन। आ अपने गाड़ीसँ मिश्राके लऽ
भगला। पाण्डेय, मल्लिक, मंसूर आ आरो किछु होशगर सहकर्मी सेहो संग भऽ गेल।
ओना हुसेनगंज एहि महानगरक एगो बदनाम मोहल्ला छै। व्यंग्यक लबजमे एकरा
हुश्नगंज सैह कहल जाइ छै आ बेसी प्रचलितो एकर यैह नाम भऽ गेल छै। हुश्नक परी सब
रहै छै ऐ मोहल्लामे नगरक लालबत्ती बला मोहल्ला। मुदा एहन डोरि पर छै जे ऐ सँ कन्नी
काटि नगरक कोनो प्रमुख ठाम नै गेल जा सकै-ए। कहबी छै जे झड़कल मुँह झपनै पाबी।
मगर एकर विपरीत छै ई। नगरक ऐ झरकल चेहराके झाँपब असम्भव छै। ए. जी. आफिस,
टेलीफोन एक्सचेंज, प्रधान डाकघर, जीवन बीमा निगम आदि सरकारी आकि गैरसरकारी छोट-
पैघ अधिक कार्यालय जेबाक लेल एहि मोहल्लाके टपऽ पड़ै छै। सबसँ पैघ सरकारी तिलक
अस्पताल जेबाक यैह टा बाट छै।
से जखन मिश्राके ओकर सहकर्मी सब तिलक अस्पताल लऽ जा रहल छलै तँ
मोहल्लाक सबसँ मशहूर बाइ हुसेनाक एगो मालदार गहिंकी ओकर कोठा पर जुमि गेल रहै।
एखन शहरक सबसँ पैघ कारबारी सरयू सर्राफ वैह हुसेनाकें प्रसन्न करबाक खियालसँ मिश्राक
एखाएक सीरियस भऽ जेबाक खबरियो देलकै। मुदा ओकर उमेदक विपरीत खबरि सुनिते
हुसेना जेना एकदम विचलित भऽ उठलै। आतुर स्वरमे प्रश्न केलक-'कोन मिश्रा ?' सर्राफ
ओकर ई अप्रत्याशित हाल देखि आ•ास्त करबाक ढंगमे कहलक-'नै नै डीयर ! घबड़यबाक
बात नै। अरे ! वैह कुबरा मिश्रा। एें जीं आफिसक पगलेटबा किरानी हम तँ संकटमोचनक
महावीरजीके पसेरी भरि लड्डु कबूल देलियनिहें जे कहुना ओकर लहासे अस्पताल सऽ घूमिके
आबै। अहाँक
सग तँ रोजे आफिस जैती आ घुरती बेर चिक-चिक करिते छल, हमरो कैक दिन कैकटा
खदुकाक संग पहुँचि भाषण पियाबऽ लगै छल। गुंडाबा नेता सबकें लगा दै छल, कैकटा
खदुकाकें लऽ कऽ। हम तँ आजिज रही एहि मनहुसबासँ।' सर्राफक उमेद रहै जे हुसेना आब
निजगुत गप्प सुनि चहकि उठत। मुदा एकर विपरीते जेना ओ आर बेसी बेयाकुल भऽ उठलि।
फुर्ती-फुर्ती ओ 'सेफ' खोलि ओइमे संचित नोटक सब दड्डी अपन पर्स मे भरि मकानक कुंजीक
झाबा सर्राफके थम्हबैत खाली एतबे कहि जे- डार्लिंग ! हम जाबत नै घूमी अहाँ एते रहब।'
ओ जीनासँ खट-खट नीचाँ उतैर एगो टैक्सीके रोकि ओकरासँ तिलक अस्पताल जल्दीसँ लऽ
चलबाक लेल कहै-ए। टैक्सी ओकरा लऽ जल्दीसँ निकलि जाइ छै। सर्राफके किछ बुझबा
जोग नै होइ छै जे आखिर ऐ खबरिके सुनि हुसेना पर एहन प्रतिक्रिया किए भेलै ? ओइ
कुबरा किरानीक संग एकर कोन एहन गप्त लगाव भऽ सकै छै। ओना तँ कहियो दूनूक कोनो
एहन सरोकार नै रहलै-ए। ओ अपन आँखियें देखने अछि जे एतऽ पहुँचिते जेना कुबड़ाके
ककोड़-बिच्छाक डंक लागि जाइ छलै। स्पष्ट सुरमे पता नै ओ कोन-कोन गंजन करैत जल्दी-
जल्दी एहि मोहल्लाकें नांधि जेबाक ब्योंत करऽ लगै छल। सर्राफ खाली ओकर मुँहक परिचित
शब्द टा अकानि पबै छल-- 'हूँ: कुकुरगली कुकुरगली।' आ हुसेना सेहो ओकरा देखिते
एकोटा अपशब्द नुका नै रखै छल। हिजराक ओलादि सन-सन भलगर सम्बोधनसँ ओकर
खबरि लै छल। ओ हुसेनाके कुबड़ासँ चिकड़ि-चिकड़ि कहैत सुनने छै-'अरे ! जकरा जऽरमे
माले-पत्त र नै रहतै ओ की जानत ऐ कोठा-अटारिक मरम।' माल-पत्तर कहैत काल ओ जेबी
आ आर किछु दिस संकेत करै छल। असमंजसमे सर्राफ मोने-मोन बड़बड़ा उठै-ए--'ओना ऐ
कोठाबाली सबहक कोन ठेकान । मायाक तँ बजारे छियै ई।'
हसीना ठोकले अस्पतालक इमर्जेन्सी वार्ड पहुँचैए। बरमदा पर किछुबे दूर चलै-ए कि
एगो गोंठमे ओही मिश्रा किरानीक बिमारिक मादे चलैत गप्प आभास होइ छै। ओ सकांक्ष भऽ
गपके अखियासऽ लगै-ए। एगो भद्र जे कि प्रायः मिश्राक आफिसक बड़ासाहेब छला कहि रहल
छला - 'सर्जन हबीबुल्लाक कथनानुसार सात घंटाक भीतर आपरेशन भऽ गेने रोगीक जान
बचि सकै छै। अपेन्डीसाइटिसक केस छै। मुदा रोगीक देहमे खूनोक अभाव छै। आपरेशनक
पूर्व कमसँ कम दू बोतल खूनक नितांत जरुरति छै। आपरेशनक बाद हालत देखला पर भऽ
सकै-ए आरोक प्रयोजन पड़ियो सकै छै नहियो पड़ि सकै छै। ई तँ सब जानिते छियै जे सर्जन
हबीबुल्ला कतेक धाह अछि। पाइक आगू ओ बापोकें नै चिन्है छै। ओकरा लग पाइके पानि
जकाँ बहबऽ पड़ै छै। तखन फेर मुर्दो मे जान फुकबाक क्षमता ओ रखै-ए मुदा तकर अभावमे
जीवितोके मुर्दा बनयबामे ओकरा कनेको हिचक नै होइ छै। ओ सकांक्ष भऽ गपके अखियासऽ
लगै-ए। एगो भद्र जे कि प्रायः मिश्राक आफिसक बड़ासाहेब छला कहि रहल छला -'सर्जन
हबीबुल्लाक कथनानुसार सात घंटाक भीतर आपरेशन भऽ गेने रोगीक जान बचि सकै छै।
अपेन्डीसाइटिसक केस छै। मुदा रोगीक देहमे खूनोक अभाव छै। आपरेशनक पूर्व कमसँ कम
दू बोतल खूनक नितांत जरुरति छै। आपरेशनक बाद हालत देखला पर भऽ सकै-ए आरोक
प्रयोजन पड़ियो सकै छै। तखन फेर मुर्दोमे जान फुकबाक क्षमता ओ रखै-ए मुदा तकर
अभावमे जीवितोके मुर्दा बनयबामे ओकरा कनेको हिचक नै होइ छै। फेर मिश्रा सन सफेद
आमदनी पर निर्भर रहनिहार अल्प वेतनभोगी लोकक परिवारसँ कोनो उमेद करबे फूजल छी।'
एतबा कहि साहेब आफिसक कर्मचारी सबहक मनोभावकें पढ़ऽ लगला। थोड़े काल सब एक
दोसराक प्रतिक्रियाक बाट तकैत रहल। एतबेमे तिवारी जे आफिसक बड़ाबाबू रहय छाती तक
खूलल बुटामबला बुश्शर्टके आर चियारैत बाजि उठल- 'सर ! बहुत किछु कमाएल छी आइ
धरि एहि मिश्राक बुत्ता पर। तत्काल तीन हजारक जोगार हम कऽ सकै छी। तिवारीक देखा-
देखी बहुतो गोटा तैयार भऽ गेल। मंसूर तँ आवेशमे एत्ते तक बाजि गेल जे 'चाहे कहीं डाका
डाले से भी जुगार हो जैते तो पैसा के खातिर मिश्राके मरे ना देबै।'
'आ जना डाक्टर कहै छल जे ओकर ग्रूपक खून ब्लड बैंकमे एखन नै छै से हमरा सब
मेसँ जकर
खून फिट करतै तकरा देबऽ पड़तै।' पाण्डेय रोबपूर्वक बाजल। एहि बातसँ ओना सब सहमत
छल मुदा मंसूर बाजि उठल - 'से तँ होमे करतै मगर ई ना जानो है कि सरकारी अस्पताल में
पैसा के थैला देखला के बाद सब कुछ तुरत्ते मिल जा है ' साहेबो एकर समर्थन केलखिन।
ई सब एतबा गप्प कैए रहल छल कि सबके अपना सबहक बीच नगरक एखन सबसँ
बदनाम मोजराबाली हुसेनाबाइके अकस्मात देखि विस्मय भऽ जाइ छनि। हुसेन के भाव पढ़ैत
देरी नै होइ छै। ओ बड़ासाहेबसँ कल जोड़ि कहैत अछि - 'हम मिश्राक हालत मादे सुनि एतऽ
दौगलि आएलि छी।' ओ आगू बाजियो ने सकलि छनि कि साहेब आर बेसी विस्मित होइत
हकलाइन सन स्वरमे पूछि बैसैत छथि - 'मुदा मिश्राक संग अहाँक परिचय ?'
'सर ! हमरा आइधरि वैह एहन भेटला जे सरिपों हमरासँ घृणा करै छथि। तैं ई
पूजाक फूल सर ओओइ देवताक पैर पर अर्पित अछि।' एतबा कहि जावत साहेब किछु सोचि
पाबथि, हुनकर पैर पर अपन पर्स राखि झाँट-बिहाड़ि जकाँ नजरिक ओट भऽ गेल।
सर्जन हबीबुल्ला आपरेशनसँ पूर्ण संतुष्ट छला । साँझ सात बजे तक मिश्रा फेर होशमे
आबि जायत आ ओकरा इमर्जेन्सी वार्डसँ बदली कऽ देल जेतै।
नियत समय पर जखन सब डा0 हबीबुल्लाक संग मिश्राक बेड लग जाइ छथि ताबत
मिश्रा आँखि खोलि देने रहय। बड़ासाहेब पर नजरि पड़िते ओ अपन चिर-परिचित आकुल
अंदाजमे साहेबसँ कहै-ए - 'सर! हम कतऽ चल आयल छी सर ? हुँ, कुकुरगली -
कुकुरगली।' सब परिचित ई सुनि प्रसन्न भऽ उठल ककरो भरोस नै रहै जे मिश्राक गंजन फेर
कहियो सूनै मे औतै। डा0 हबीबुल्ला कहलनि-'पेसेन्ट सेमीकंससमे अछि। आशा करै छी जे
किछुवे कालमे पूरा होशमे आबि जाएत । बड़ासाहेब कहि उठै छथि- 'नै सर ! आब तँ हमहीं
सब कहि सकै छी जे मिश्रा पूरा होशमे आबि गेल एछि।
डा0 हबीबुल्ला आश्चर्यसँ हुनका दिस ताकऽ लगै छथि। सबहक पाछू ठाढ़ि भेलि
मिश्राक पत्नीके जीवनमे आइ पहिलेबेर बुझेलनि जे हुनकर स्वामी जेकरा ओ आइधरि सर्वथा
उपेक्षित भावसँ डेढ़बितबा - सरकसके बानबीर कहैत - गमैत रहली, वास्तवमे ओकर उचाइके
छूबि देखि पाएब हुनका सन अदना लोकक बुत्तासँ बाहर छै। मिश्रा फेर नेहोराक सुरमे बाजि
उठै-ए - हमरा एतऽसँ जल्दी लऽ चलू ने सर ! हूँ:, कुकुरगली-कुकुरगली।'
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लघुकथा / परिचयक अंत / कुमार शैलेन्द्र
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यौ शैलेन्द्र जी। हम ठमकि गेलहुँ। स्त्रीगणक स्वर छल। घुमलहुँ। एक रुपसी ठाढ़ि
छलीह। अनचिन्हारि। हमरा भेल, स्वरक भ्रम भेल अछि। दूरदर्शन परिसर मे एहन स्वर
सभक आकाशवाणी होइतहि रहैछ। हम दृष्टि निक्षेपक संगहि मुड़ि गेलहुँ । फेर उएह स्वर।
हमरा बिसरि गेलौं यौ ? हम नहि चिन्हलहुँ अहाँकें। स्पष्ट कयलियनि। ओ विहुँसली।
बनबै छी हमरा। हमर सप्पत खाउ तँ। अहाँक सप्पत ! हम स्मृतिपर जोर देलहुँ। नाक
छूलहुँ। रहि गेलहुँ ठामक ठामे। हम चन्दा छी। वासंती चन्दा !! हम भभा उठलहुँ। अरे !
अहाँ, वासन्ती ! अहाँ तँ एकदम बदलि गेल छी। रंग रुप स्वर-साहस सभमे ! छओ
साल पर भेंट भेल अछि ने । कने-कने अहूँ बदलल छी। बहुत नै ! गप चलि पड़ल। आहे-
माहे । नीक - बेजाय। शिकवा - शिकायत। अतीत - वर्तमान।
लक्ष्य - अलक्ष्य ! पढ़ाइ - लिखाइ? आनर्स कऽ रहल छी। कतय ? बोमेंससँ। तें
बदलि गेल छी! धुत ! एक बात पुछु यौ ! पूछू ! अहाँ एखन की कऽ रहल छी ? हम ? हँ
! किछु नै। फूसि बजै छी ! नै कहक अछि तँ नै कहूँ ! नै से बात नहि छै कहूँ ने। कहै
छी। एकटा प्राइवेट फर्ममे पेट पोसि रहल छी। ओ....! चहकब एकदम बन्न भऽ गेलनि।
जेना नीनसँ जगलीह। अच्छा आब जाइ छी यौ ! अन्हार भेल जाइ छै। स्वरक कोमलता
समाप्त छल। एकटा काज अछि । एकटा काज अछि। एकटा नाटक....। हमरा फुरसति
नहि रहैत अछि तें क्षमा करू। स्वर कने तीख छल। मुदा, पहिने हमर बात....। ओ विदा भऽ
गेलीह। हम सोर केलियनि। ओफ्हो, एहिठाम एना सोर कएल जाइ छै। स्वरक कटुता हमरा
ठकमुड़ी लगा देलक। भरिसक भगलीह। पछोड़ छोड़ौलनि तेहन सन। एना किए ! स्वागत
कक्षक सोफामे धँसि गेलहुँ। कोनो अशिष्टता तँ नै भेल छल ? सोचलहुँ। प्राइवेट फर्मक
नोकरी ! रहस्यक जाल सोझरा गेल। एहि खेप हम नहि चिन्हलियनि, आगाँसँ ओ नहि
चिन्हतीह ! हम विहुँसि उठलहुँ। भरिसक ई परिचयक अत छल।
गुमटी
मन्त्रे•ार झा
हम जीबय चाहैत छी। बयसे की भेल अछि एखन। मात्र पैंतीस साल। दू टा अबोध
संतान । एकटा बूढ़ि माय आ काजुल-लाजुल एकटा पत्नी। केहन जवान छथि हमर गीत ।
एकदम दप दप दमकैत । विद्यापतिक प्रौढ़ा नायिका जकाँ गमकैत-'अधर बिंब सन दसन
दाड़िम विज रवि शशि उगधिक पासे'। केहन ढबकल-ढबकल आँखि, चुबकीय अथर। की
हेतनि हुनकर हमर बाद। एह मरबाक नामसँ बड़ डर होइत अछि हमरा। कोनहुना जीबी।
नोकरी नहि भेल तऽ की हम मरि जाउ। मुदा जीयब कोना। के जीबय दैत छैक ककरा ?
ओहि दिन झनपटही बससँ जाइत रही मुजफ्फरपुर। जइतहुँ कोना नहि। मुजफ्फरपुरे
सँ तऽ किछु कपड़ा लत्ता आनि पटना जंक्शन के गुमटी पर बेचैत छी। ओही सँ तऽ गुजर
चलैत अछि-दू पाइ आमदनी होइत अछि तऽ बच्चा सभकें सर्कस लऽ जाइत छिऐक-सिनेमा
देखबैत छियेक। वैद्यजीसँ मायक लेल पुड़िया अनैत छी। एक बेर तऽ माय बड़ दुखित
पड़लैक तऽ सुइया दिआबऽ पड़ल। गोर पचासेक खर्च भए गेल। ओ तऽ कम्पाउन्डर बाबूक
कृपा जे माय के आराम भऽ गेलैक। डाक्टरक फीस कोनाके भरितहुँ हम। से, जहाँ ने शाही
तिरुपति के बस हाजीपुरसँ टपलैक की सय डेढ सय आदमी ओकरा घेरि लेलकैक। ओहि
भीड़मे सँ दसटा छौंड़ा छूरा, चक्कू आ रिवौल्वर लेने बसमे घुसल आ सभके उतारि-उतारि
ओकर जाति पुछय लगलैक। हम तऽ झट दऽ कहि देलियैक 'हौ बाउ सभ, जाति कथी ले
पुछै जाइत छहक। कोनो जाति बलाकें कबल आ कि रुपैया बँटै जेबहक की तों सभ।' छौड़ा
सब भभा हँसय लागल। हम तऽ बुझबे ने केलिऐक जे ओ सभ किएक हँसय लागल छल। तें
हम पुछलिऐक-'एें हो अपन- अपनजातिबला के नोकरी - तोकरी दै जेबहक की।' तखन एकटा
छौंड़ा बाजल-'यौ बूड़ि, अहाँ सैह बुझैत छिऐक तऽ सैह बुझियौक।' हम चट दऽ कहलिऐक -
तखन दैह हमरो नोकरी - बी. ए. पास छी, आ अत्यन्त निर्धन परिवारक एकटा गरीब
ब्रााहृण छी।' से सुनितहि ओ सभ हमर सभटा टाका आ मोटरी - चोटरी छीनि लेलक आ
लागल दनादन मारय-पीटय। हम तऽ किछु ने बुझलिऐक जे किएक मारि रहल अछि। कनेक
कालक बाद ओ सभ 'मंडल आयोग जिन्दाबाद - सामाजिक न्याय जिन्दाबादक' नारा लगबैत
चल गेल। तीन - चारि घंटाक बाद जखन बस फेर विदा भेल तऽ हम ओहिपर सँ उतरि
गेलहुँ। आब कथी लेल जइतहुँ आ की लऽ के जइतहुँ मुजफ्फरपुर। तकरा बाद कोना-
कोनाकें पटना आपस घुमलहुँ से हमहीं जनैत छी।
पटना आबि सेठसँ कर्जा लेलहुँ। बड़ नीक अछि सेठबा। ओ जते सूद मँगैत अछि से
हम दऽ दैत छिऐक आ हम जते टाका ओकरा सँ मँगैत छी से ओ बेचारा बेरपर दऽ दैत अछि।
ताहि पर हमर बगलक गुमटी बला कहलक - 'हौ गंगू, ओ जरूर तोहर कनियाँकें कहियो उड़ा
लेतह। ओकरे बदौलत तोरा एतेक कर्जा देने जाइत छह। हमर आँगनबाली कारी अछि आ
असमयमे बुढ़ा गेलि अछि । तें हमरा कहाँ सेठबा किन्नहुँ एक्को पाइ कर्जा दैत अछि।' हमरा
तऽ ई सुनि ठकमूड़ी लागि गेल जेना। भेल जे एखनियें पहिने ठक्कू आ तखनि सेठबा के जाय
मूड़ी मोचाड़ि दिऐक। ककर मजाल जे हमर सुनरकी स्त्री पर आँखि चलाओत। इह, बड़
सपरतीब! तुरत दोकान बन्द कय डेरा चल गेलहुँ। ओ तऽ धन्न कही हमर पत्नी गीताकें जे
हमरा शान्त केलनि। केहन बुधियारि छथि हमर गीता।
हमरा तऽ फेर सौदा सुलूफ ले पटनासँ मुजफ्फरपुर जेबेक छल। तें एहिबेर हम
सरकारी बसमे सवार भेलहुँ। पाँच टाका बेसी भाड़ा लागत सैह ने - सुरक्षित तऽ पहुचब।
बसमे दूटा लाठी सिपाही देखि मोन अओरो आ•ास्त भेल। मुदा होनीकें के टालि सकैत अछि।
गोरौल पहुँचैत - पहुँचैत फेर ओहने भीड़ आ हसेरी बसकें धेरि लेलक। फेर वैह कहानी।
जहाँ ने हमर जाति पुछलक हम चट दऽ कहलिऐक जे कथी ले अपन समय बर्बाद करैत जाइ
छह, हम तऽ यादव छी। हम एहिबेर ठेकान कऽ के गेल रही, अंकान जकाँ नहि। कृष्णौत
आ कि मझरौट ?' हमरा पुछलक तऽ हम कहलिऐक-'कृष्णौत'। से सुनितहि दू तीन टा
छौंड़ा हमरा मारय लागल। 'ई तऽ असली दुश्मन छियौक, मंडलके नांगरि, ओ सभ चिकरय
लागल। हमरा तँ फेर ठकमूड़ी लागि गेल। ई की भए रहल अछि भगवान ? दूटा सिपाहीमे
सँ एकटा सिपाहियोकें छौंड़ा सभ पकड़ि कऽ खूब मारलक। हमरा जकाँ एहिना बहुतो
पैसेंजरक दुर्गति होइत रहलैक आ रोडक कातसँ हजारो लोक चुपचाप तमाशा देखैत रहल।
बादमे भीड़ जुलूसक रुपमे आरक्षण विरोधी नारा लगबैत ओहिठामसँ चल गेल। हमर फेर वैह
पराभव भेल जे पहिने भेल छल।
मुदा हम जीबय चाहैत छी। जखन कुकुर-बिलाइ सभ जीबय चाहैत अछि। साप
छुछुन्नर सभ जीबय चाहैत अछि। तखन किएक ने जीबू हमहुँ। मुदा जीबू कोना ? लोक सभ
कहलक जे आइ काल्हि कतौ जेबाक हुअऽ तऽ अपन परिचय मुसलमान कहिकें देबाक चाही।
ने आरक्षण विरोधीकें मुसलमानसँ विरोध छैक आ ने आरक्षण समर्थकके। हमरा जीबाक लेल ई
युक्ति बड़ संगत लागल। पता लगौलहुँ जे केवल मुसलमान कहलासँ काज नहि चलत।
कलमा सुनबय पड़त। बिना कोनो मंत्र जप कयने, कि पढ़ने, कि सिखने लोक हिन्दू तऽ भऽ
सकैत अछि मुदा बिना कलमा पढ़ने क्यो मुसलमान किन्नहुँ नहि भऽ सकैत अछि। हमरा आब
सोचबामे समय नहि गमेबाक छल। सभटा बिजनेस चौपट भऽ रहल छल। तें चट्ट दऽ गेलहुँ
अब्दुल लग आ कहलिऐक जे 'हौ अब्दुल भाइ, जल्दी सँ हमरा कोनो कलमा सिखा दैह।' ओ
कहलक - 'सिखा तऽ देब गंगानाथ भाइ, मुदा कुरानमे लिखल छैक जे एको बेर जे कलमा
पढ़त से मुसलमान भऽ जायत।' हम कहलिऐक- 'छोड़ह अब्दुल भाइ, जे भऽ जायत से भऽ
जायत से भऽ जायत। हमरा सिखाबह कलमा, जल्दीसँ।' अब्दुलसँ एकटा कलमा सीखि
लेलहुँ, आ ओकरा नीक जकाँ रटि लेलहुँ। तखन अब्दुल हमरा फेर टोकलक - 'देखह
गंगानाथ भाइ, तों आब भागि नहि सकैत छह मुसलमान धर्मसँ। कयामत के दिन जखन
अल्लामियाँ हमरासँ पुछताह तऽ हम तऽ साफ-साफ कहि देबनि हुनका जे तों हमरासँ कलमा
पढ़ने छह
आ तें मुसलमान भऽ गेल छह।' मुदा हम तऽ कलमा पढ़िकें जीबाक लेल निश्चिन्त भऽ गेल
रही। बजलहुँ - बेस अब्दुल भाइ, कयामत के दिन तोरा जे कहबाक हुअऽ से कहि दिहक।
हमरा तऽ एखन जे साक्षात कयामत ठाढ़ अछि ताहिसँ तऽ बचय दैह।' अब्दुल हमरा दिस
मुस्कुराइत देखैत रहल आ हम अपन गुमटी दिस गदराइत विदा भेलहुँ। जेना हमरा जीबाक
लेल कोनो अमूल्य खजानाक चाभी भेटि गेल हो।
बिजनेस चलेबाक लेल फेर कर्जा काढ़लहुँ। जे किछु सेठबा देलक से अपन पुरनका
कर्जाक सूदमे काटि लेलक। हाथ रहल सुन्न। हमरा उदास देखि हमर पत्नी गीता अपन
गहना - गुड़िया उतारिकें हमरा दऽ देलनि। हम कतबो मना केलियनि ओ नहि मानलनि।
हमरो तऽ दोसर कोनो उपाय नहि छल। हम अपन धीयापूताकें डकैतक धीयापूता नहि बनबऽ
चाहैत रही आने गीताकें डकैतनी। गहना-गुड़िया बेचि फेर विदा भेलहुँ मुजफ्फरपुर । पूर्ण
निÏश्चत जे हम आब सुरक्षित छी। कलमा पढ़ने छी। हमरा आब ककर डर ! मुदा रस्तामे
फेर वैह भेल जकर डर छल। जहाँ ने हम कहलिऐक जे - 'औ बाउ लोकनि, हमरा नहि किछु
कहै जाउ। हम तऽ मुसलमान छी, कि छौंड़ा सभ 'जय श्रीरामक' नारा दैत हमर मूड़ी काटय
दौड़ल। हम पड़ेलहुँ। ओ सभ हमरा रेबाड़लक। आ कि हमरा भक छुटल। हमहुँ चिचिआय
लगलहुँ, 'जय श्रीराम - जय श्रीराम।' जोर - जोरसँ हाक्रोश करय लगलहुँ। हनुमान
चालीसाक पाठ दोहराबऽ लगलहुँ। तावत किछु गोटे हमरा पकड़ि लेने छल। पुछलक - 'की
अहाँ हिन्दू छी।' हम कहलिऐक- 'हँ बाउ हम तऽ हिन्दू ब्रााहृण छी - रोज हनुमान मंदिर
जाइ छी, दोकान खोलबासँ पूर्व।' ओहिमे सँ एक गोटे बाजल - 'तखन अहाँ अपनाकें
मुसलमान किएक कहलहुँ ? तखन हम अपन खीसा ओकरा सभकें सुनाय देलिऐक। ओ सभ
एक स्वरसँ बाजल - 'जय श्रीराम ।' हमहुँ अपस्याँत होइत सुर मिलऔलहुँ - जय श्रीराम।'
हम बचि गेलहुँ। हमर मूड़ी नहि कटल। मुदा मुजफ्फरपुर नहि पहुँचि सकलहुँ हम। घुरि
गेलहुँ पटना। सभटा रुपैया बचि गेल।
घर पर जेबासँ पूर्व अपन गुमटी पर गेलहुँ तऽ देखल जे ओहिठाम सभक गुमटी साफ
भऽ गेल छलैक। सौंसे छाउरक ढ़ेरी पसरल रहैक। पता लागल जे किछु मुसलमान जय
श्रीरामक विरोधमे गुमटी सभमे आगि लगा देने छलैक एहि बीच। ककरो गुमटी नहि बचलैक ।
अब्दुलक गुमटी सेहो स्वाहा भऽ गेल रहैक।
हमरा लागल जे आब हम मरिये जइतहुँ तऽ ठीक । मुदा नहि। हम एखन मरय नहि
चाहैत छी। जीबय चाहैत छी हम। हम छी हमर गीता छथि, दूटा अबोध संतान अछि, बुढ़ि
माय छथि। मुदा जीयब कोना ? गुमटी तऽ हमर जीवन छल। से तऽ नहिये रहल।
बलिक गुलाम
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विनोद बिहारी लाल
दुनू हाथमे दुनू बोरा टंगने ओ बढ़ल जा रहल छल - पसेनासँ नहायल। तारु सूखऽ
लागल छलै। आगू जतऽ धरि नजरि जाइ - बालुये - बालु देखाइ। बालुक धरती। तप्पत
बालु। पयर धसै तँ झरकऽ लगै। तैयो आगू बढ़ल जा रहल छल ओ। दुनू गट्टा बुझाइ, टूटि
जेतै। टूटि कऽ खसि पड़तै। एकटामे रहै
लोहक तीन गोट बक्सा आ दोसरमे कागज-पत्तर आर मारिते रास अगड़म-बगड़म। भरिगर
रहै दुनू। मन आंट भऽ गेल छलै। भीतर, बोखार आबि गेल बुझाइ छलै।
दू दिनसँ रौदमे दौड़बैत - दौड़बैत बेहाल कऽ देने छलै निर्वाचन अधिकारी।
इस्नोफिलिया तेज भऽ गेल छलै। ओकरे सन एकटा रोगी कर्मचारीक आवेदन पर डी. एम.
सोझे वारन्ट जारी कऽ देने रहै। ओहो अपन बेमारीक दुखनामा लऽ ओतऽ गेल रहय। मुदा
तकर निरर्थकता बुझिते चुपचाप चुनाओ - सामग्रीसँ भरल बोरा उठा लेने रहय। सहकर्मी
माधवजी कहने रहथिन- 'किछु नै। अहाँ नोकरी करै छिऐ। मने, सरकारक खरीदल गुलाम
छिऐ। अहाँ बीमार छी अथवा नचार छी, कोनो विचार नै, कोनो दया नै, चुनाओ कार्य करैए
पड़त। मामूली बात नै छिऐ ई ! देशक काज छिऐ।' एहि शब्दावलीक प्रयोग निर्वाचन
अधिकारी दू दिन पहिने कयने रहै, विशेष प्रशिक्षण शिविरमे। माधवजी ओकरे दोहरौने रहथिन,
व्यंग्यमे।
बड़ मश्किलसँ ओ मनकें मनौने रहय। जयबा लेल तैयार भेल रहय। मुदा पछिला
चुनाओक कटाह अनुभवसँ मन क्षुब्ध, क्रुद्ध आ खिन्न रहै। करेज धड़कि-धड़कि उठै निर्वाचन
अधिकारी एहूबेर प्रशिक्षण शिविरमे कहने रहै जे सरकार लग बेसी पुलिस बल नहि छै।
पीठासीन पदाधिकारी सभकें अपन बुद्धिसँ बूथ सम्हारऽ पड़तनि। तखन जीह लोहछि गेल
छलै। गाम-गाम छै आगि लागल। जाति-जातिमे कटल आ एक-दोसरपर कम्हुआयल छै
गाम। नित्ते एहि जाति कि ओहि जातिक लहासक संग क्रूर अट्टाहास करैत जश्न मनबै छै गाम
सभ। तेहन पसाही लागल गाममे कोनो पीठासीन पदाधिकारीक बुद्धि ओकर कतऽ धरि रक्षा
कऽ पौतै? मुदा किछु नहि। कोनो सवाल नहि। फरमान रहै सरकारक-चुनाओ-कार्यक जे
अवहेलना करय, तुरत गिरफदार कऽ लेल जाय। कैकटा कयलो गेल रहै। ई देखि-बुझि जेठ
मासक धधखोआ रौदामे लोहक बाकस उठा-उठा गुलाम सभक हेंज जहाँ-तहाँ छिड़िया गेल
छलै। पहिने ट्रक, तखन पद-यात्रा । फेर नाओ। तखन कोसक कोस तप्पत बालु - प्रान्तरक
दुर्गम यात्रा। कोसी कछेरक बालु पर पयर रखिते आगूक कर्मचारीक पयर पाकि गेल रहै तँ
भीतरक आक्रोश हुहुआय लागल छलै। किछु घंटा पहिने -- बापरे बाप ! यौ, कोना पार करबै
ई बाट यौ ! ओह ! जान मारि देलकै ई नेता सभ, सभकें।'
दोसरक मुँहेंठ तमतमा गेल छलै--'ओफ्फ ऊपर ! धधकौआ सुरुज आ नीचा ई गरम
बालु ! बुझू तऽ ....ई कोन समय छिऐ चुनाओक ? पेरि देलकै सभकें।
तेसर चनचना उठल रहै -- 'पेरयलौंए एखन कहाँ ! की बुझै छिऐ....एकर बाद भऽ
जायत छुट्टी ! फेर हएत इलेक्शन। बर्ख दिन पर इलेक्शन कराओत ई नेता सभ आ ऐ
लोकक बलि लेत। हँह ! हदिया गेलहुँ एखने !
चारिमक टोन व्यंग्यात्मक भऽ गेल छलै--किऐ नै लेत ! ऐ देसमे लोक तऽ नै रहैए !
रहैए भेड़-बकरी। तऽ ई गोंग-बौक भेड़-बकरी सभ जाधरि महिखामे चुप-चाप मूड़ी घोसियबैत
रहत, कसइया नेतबा सभ किए नै गरदनि छोपैत रहत सभक !
गप्प-सप्पमे बाट कटल जाइ। मुदा कोस भरि पहिने संगक पोलिंग पार्टीक लोक सभ
छिड़िया गेल छलै। ओ एसकर भऽ गेल छल। बाट आर कटाह भऽ गेल छलै।
एकटा बस्ती धरि अबैत-अबैत सुरुज डूबि गेल छलै। रौद बिला गेल रहै, मुदा गुमार
रहै तैयो अतत्तह। माथ धमकऽ लागल छलै। मुँह तीत-तीत बुझा रहल छलै। मन पीड़ित
सन लागि रहल छलै। -
'संतनगर कोम्हर छै भाइसाहब ?' ओ बाट कातक गाछीमे बैसल एकटा युवकसँ पुछैए। युवक
ओकरा गौरसँ देखै छै आ उठि कऽ ठाढ़ भऽ जाइ छै। पुछै छै - 'अहाँ भोट करबऽ अयलिऐ -
ए ने ? ओकर हँ' क उतारा पर ओ हुलसि उठै छै - 'चलियौ ! इहे छिऐ संतनगर। मुखियाजी
अहींक बाट तकैत - तकैत एखनिये गेलाहे। अहाँ किए लेट भऽ गेलिए हाकिम ? तीन गो
हाकिम दुपहरे आबि गेला।' युवकक अनेरवा उत्साह, पता नहि ओकरा किए नीक नहि लगै
छै। चुपचाप ओकर पाछू-पाछू टुघरऽ लगैए। युवक एकटा टोलकें पार कऽ किछु दूर आगू
जा ठमकि जाइ छै - 'हे इहे छी अहाँक बुथ हाकिम ?' युवक बाजिकऽ जाहि खोपड़ी दिस
संकेत करै छै, वि•ाास नहि होइ छै जे ओतहु मतदान केन्द्र भऽ सकै छै। खोपड़ी पर खढ़
नहि। पछिला भीत ढहल। ततऽ बांसक दू गोट खुट्टा गाड़ल रहै जे चारक ठाठकें ऊपर टनने
रहै।
खोपड़ीसँ एकटा कुत्र्ता पायजामाधरी बहराइ छैं। छन भरि तकै छै। फेर बजै छैं -
'अपने ऽऽ....प्रेजाइडिंग ऑफिसर....?'
'हँ।'
'हम छी फस्र्ट पोलिंग ऑफिसर रामनाथ राय। अपने बहुत पछुआ गेलिए सर ? हम
सभ बड़ीकाल तक गन्हेरियासरायमे अपनेकें खोजलहुँ। हमरा सभकें विदा कऽ देल गेल।
कहल गेल जे अहाँ सभ जाउ। प्रेजाइडिंग ऑफिसर पहुँचि जेता।'
ओ बोराकें खोपड़ीक भीतर रखैए। जेबीसँ रुमाल निकालि मुँह परक घाम पोछैए।
पुछै छै 'इएह छी बूथ ?'
'हँ, सर ! देखियौ ने। कोना करयबै एतऽ वोट ? पार्टीक तीनू सदस्य ओकरा लग
सहटि आयल रहै।
ओकर माथ जोर-जोरसँ दुखाय लागल छलै। गुनधुनमे पड़ि जाइए। चिन्ता धऽ लै
छै। जगह एकदम अरक्षित छै। कोना कराओत एतऽ वोट ? मुँह तीत तीत बुझाइ छै।
खोपड़ीसँ दूर - गाछीमे गाड़ल रहै एकटा चापाकल । ओ मुँह-हाथ धोआऽ ओम्हर बढ़ि
जाइए। घुमैए तँ खोपड़ीक बाहर अपन पार्टीक लोकक संग सग मारिते रास लोक सभ बैसल
देखाइ छै। ओ खोपड़ी लग अबैए तँ एकटा भुट्ट कारी सन प्रौढ़ चहकि उठै छै - 'अबियौ !
हाकिम ! हम छी राजाराम चौधरी - ऐ गामक मुखियाजी !'
ओ चुपचाप ओतहि एक कात बैसि रहैए।
हँ, तँ हम कहैंले ई अयलैंए हाकिम, जे अहाँ आउर खयनाइक चिन्ता नै करब।
खयनाइ बनि रहल-ए। पहुँच जायत। मुखिया दाँतकें वीबत्स रुपमे चियारने कहै छै, तँ ओ
तुरत आपत्ति करै छै - 'नै नै। हमरा सभक भोजनक चिन्ता अहाँ नै करु। हम सभ कऽ
लेब।'
'कइ जग करब ! ओ कहै छै - 'अइ जग, अइ गामक दू कोस पूब - पछिम कुनो
होटल नै मिलत। हाकिम, हमरा आउर गरीब छी जरुर, मगर अहाँ आउर के कष्ट नै हएत।'
'नै....नै। ओ फेर कहै छै - 'हम सभ अनने छी भोजन । अहाँ चिन्ता नै करु।'
मुखिया चुप भऽ जाइ छै। ओ देखैए, ओकर मुँहेंठ परक चमकी बिला गेल छलै आ
ओतऽ उदंड गम्भीरता पसरि गेल रहै। ओ ठांहि - पठांहि चोट करै छै - 'बाबू' बड़-बड़
हाकिम देखलौं। अहाँ नाहित नै देखलौ। की, अहाँ ई तऽ नै सोचै छी, हमरा आउर अछोप
छी।
'अह ! केहन बात करै छी मुखियाजी ! एहन कोनो बात नै छै। खायब ! जरुर
खायब। वोट होबऽ दियौ पहिने। तखन भरि पोख खायब।' ओ कने मुस्किआइत कहै छै तँ
मुखिया एकदमे चुप्प भऽ जाइ छै। ओ देखैए, मुखिया किछु सोचैत रहै छै। किछु छन ओकरा
दिस तकैत रहै छै। फेर चुपचाप उठि जाइ छै सदल-बल । ओ नमहर उसास छोड़ैए।
माथ ओहिना धमकि रहल छलै। मन पीड़ित ।
'सर ! की कहलिऐ-ए ! ई मुखिया बड़ नंगट बुझाइए। किदन - कहाँदन बजैत जा
रहल छल।' टोल दिससँ आयल पार्टीक दोसर पोलिंग ऑफिसर कहै छै तँ ओ ओकरा दिस
घुमैए।
'बजैत जाइत रहय जे रे, ई हाकिमक नाति खयनाइ नै गछलकौ, तकर माने बुझै जाइ
छहिन ? ठीक छै, काल्हि घोसड़तै एकर सभ हाकिमी !'
सुनिकऽ मन विखिन्न भऽ जाइ छै। इएह सभ छै बड़का झंझटि चुनाओ करयबामे।
टोलबैयाक कोनो दुराग्रहकें ओ कोन ताकतिसँ रोकि लेत ? के छै एतऽ सहायक ? पछिला
चुनाओमे होमगार्डेक सही, दू टा जुआन छलै। एहिबेर ओहो नहि तैनात कयल गेल रहै।
पोलिंग पार्टीक चारू सदस्य गप्प-सप्प करैत ओतहि बैसल छल। साँझक अन्हार खूब गाढ़ भऽ
गेल छलै। हठात सड़क पर कचर-बचर करैत फेर किछु लोक अबैत देखाइ छै तँ मन आर
घोर भऽ जाइ छै ओकर। ओम्हर तकैए। गोर बीसेक छौंड़ा-माड़रि रहै जे भचर-भचर हँसैत
बजत लग आबि बैसि गेल छलै। एकदम नीक नहि लागल छलै ओकर सभक गतिविधि।
'हाकिम ! मर ! अहाँ आउर बैसल छिए। काज नै करै जेबै की ?' एकटा चकेठ
सन जुआन, जकर उच्छृंखल हुलिये देखिकऽ घृणा भेल छलै, बड़ उद्धत स्वरमे कहै छै।
तामस चढ़ै छै। मुदा बलात मुस्किआय पड़ै छै - 'केहन काज ?'
आ, ताहि पर ओ जे कहै छै, सुनिकऽ मगज लहरऽ लगै छै। ओ सभ बुझबऽ आयल
रहै जे बैलेट पेपर पर हस्ताक्षर एखने कऽ लियऽ। जाहिसँ मोहर मारि - मारि दू घंटामे
मतदान खतम कऽ देल जयतै भोरे।
ओकर तामस बेसम्हार भऽ जाइ छै।
'यौ सिरीमान ! कहाँ रहै छी अहाँ यौ ? चकेठ बिफरि जाइ छै-'एकटा अहीं टा भोट
करबऽ ऐ जंग नै अयलौंए, ई मून राखू। ऐ जंग जे - जे एला से - से ऐ गौंयेंक मोताबिक
केलनि। अपन किछु नै चललनि। ई बुझि लयऽ ।'
ओ गुम्म । की कहौ, की करय-किछु फुराइते ने छै।
ओ चकेठ आ ओकर संगक दसो युवक अल्ल - बल्ल बाजऽ लगलै फेर। जे - जे
मुँहमे अबैत गेलै, बजैत गेलै सभ। ठिठिआइत रहलै। फेर अनेरो पिक्की पाड़ैत उठि गेलै
सभ। विदा भऽ गेलै कचर - बचर
करैत।
ओकर माथ आर भारी भऽ गेलै। मन क्षुब्ध।
'सर ! मजिस्ट्रेट साहेब आयल रहथि। अपने नै रहिऐ तऽ बैलेट पेपर हमरा रिसीव
करा गेलाह। पार्टीक पहिल पोलिंग ऑफिसर जनतब दै छै - ' ओ आब काल्हि साँझे औता
बक्सा लेबऽ । हुनका अधीन पाँच टा बूथ छनि। रास्ता ठीक नै छै तें.....।
सुनि मन आर खराब भऽ जाइ छै। एकटा भरोस रहै जे पेट्रोलिंग मजिस्ट्रेट रहतै तँ
पुलिस जवानक भय रहतै उपद्रवीकें। मुदा इहो नहि।
चलू किछु आलतू - फालतू पेपर सभ एखने तैयार कऽ ली। बजैत ओ उठि जाइए।
ओकरा पाछु तीनू पोलिंग ऑफिसर खोपड़ीक भीतर ढुकि अबै छै।
आ, मोमवत्तीक इजोतमे पेपर सभक खानापूरी करैत, सरियाबैत आ लिफाफमे बन्न करैत
- करैत आँखि
टनकऽ लगै छै। तीनू पोलिंग ऑफिसर औंघाइत ओतहि ओलड़ि गेल रहै। की कहो, रातिक
तीन बाजि रहल छलै। ओकरा लागऽ लगलै जेना आँखिसँ धाह फेकऽ लागल होइ। ओ
दहिना हाथ बामा गट्टापर धरैए। देह गरम बुझाइ छै। बोखार चढ़ऽ लागल रहै। ओ पेपर
सभकें मारकिन कपड़ाक भेटल टुकड़ामे बान्हि सिरमामे रखैए आ ओही पर माथ धऽ ओलड़ि
जाइए। मुदा, निन्न नहि अबै छै। पलक बन्न होइ छै। फेर खुजि जाइ छै। बैलेट पेपरक
सुरक्षाक चिन्ता कछमछबैत परात कऽ दै छै। तीनू पोलिंग ऑफिसर जागि गेल छलै। ओहो
उठऽ चाहैए। मुदा उठबाक तागित नहि बुझाइ छै। देह फक्-फक् लगै छै।
'सर, मन खराब अइ की ?' ओकर हालति देखि एकटा पोलिंग ऑफिसर पूछै छै।
ओ मूड़ी डोलबैए।
पोलिंग ऑफिसर ओकर गट्टा टोबै छै - 'बाप रे ! सर, अहाँकें तऽ खूब बोखार अछि।'
'उठू, तैयार होइ जाउ। टाइम भऽ रहल अछि।' ओ कहै छै आ बलात उठि कऽ ठाढ़
भऽ जाइए।
आ, हांइ - हांइ तैयार भऽ सभ चुनाओ करबऽ बैसि जाइए।
खोपड़ीक नीचा वोट खसबऽ लोक सभ जुटऽ लागल छलै। लोकक धर्रोहि शुरि भऽ
गेल रहै। ओही बीच, पता नहि, कोम्हरसँ अपनाकें मुखिया घोषित कयनिहार ओ प्रोढ़ अबै छै।
आ लगभग आदेश दैत कहै छै
- 'सुनू पिरजाइडिंग साहेब ! अइ बूथ पर कोनो झंझटि नै छै। ऐ लागी दू गो हमर आदमी
रहत। अहाँ आउर बैलीट फाड़ि फड़ि देने जेबै। ऊ दुनू छापि - छापि खसौने जायत।'
'ई नै हएत।' ओ कहै छै - जे नियम छिऐ, वोट तहिना खसत। कहियनु, सभ
लाइनमे अबै जेता आ....।'
आ, ओकर बात खतमो नहि भेल छलै कि नीचा लह-लह करैत किछु छौड़ा झपटलै
एक्के बेर ओकरापर। लगलै, बुट्टी - बुट्टी नोचि लेतै। पाछूसँ क्यो ललकारा शुरु कयलकै--
'मार....मार...स्सारकें ! जरुर ई फोरवाट छियौ ? लंगटपनी करै छौ जानिकऽ ।'
ओ अकबका कऽ कुर्सीसँ उठि जाइए।
ओही समय तेजीसँ झटकैत एकटा बूढ़ अबै छै। रोकै छै, 'नै.....नै। एना नै करै जो।
सभ पानिमे चल जेतौ।' आ बढ़िकऽ ओकरा सोझाँ आबि मानू गोली दगै छै --'तोहर नाम की
छियऽ ?' कतऽ' रहै छऽ तों ?'
हमर नाम-गाँमसँ कोन मतलब अछि अहाँकें।' ओ कहै छै तँ बूढ़ लाल टुह-टुह आँखि
ओकर डिम्हामे धसा दै छै। धसौने रहै छै। ओही छन असोराक नीचा महायुद्धक दृश्य उत्पन्न
भऽ जाइ छै। ओ देखैए पहिनहिसँ चिकरम-चिकरा करैत किछु लोक मारा-मारी करऽ लागल
छै। मुक्का - थापड़, जुत्ता - चप्पल सभ चलऽ लगै छै। ओहीमे, एकटा छोड़ा चुमकीसँ लगेक
एकटा टाटक खुट्टा उखाड़ि एकटा कृशकाय सन युवकक माथ पर ठाँइ दऽ बजारि दै छै।
युवक अर्रा कऽ नीचा खसैए। ओ छौड़ा धह-धह आँखिसँ ओहि आहत दिस तकैत चिकरऽ
लगैए - 'भोट गिरौता...भोट ! गिरबऽ आब अपन बापक झाँटि सरबे !'
एकटा बूढ़ हाकरोस करैत ओकरा सरापऽ लगै छै- 'तोरा देह पर बज्र खसतौ रे चंडाल
! जरुर खसतौ। तों नि दोष ब्रााहृणक कप्पार फोड़लें, तोरा खद - खद पील फड़तौ रे पापी
!' फेर ओकरा दिस झटकै छै - अहाँ निसाफ करू हाकिम ! हमर बेटा भोट खसबऽ आयल तँ
ई दैत-दानव सभ कप्पार फोड़ि देलकै। ई अन्याय छिऐ कि नै, हाकिम ! अहाँ सरकारी
आदमी छियै। हमर निसाफ करु।'
'कि छिऐ अनियाय हौ, बुढ़बे ! जा घर चुपचाप नै तऽ तोरो लिखल छऽ । देखऽ जा
कऽ कमलपुरमे ..... गमाक चारू गो बूथ बभना सभ छपने छऽ । कुनो दोसरा जाइत के टपऽ
नै दै जाइ छै। ई कून नियाय छियऽ हौ।'
ओ गोंग भऽ जाइए। माथक नस-नस तड़कैत रहै छै। लगै छै, देहक समस्त तागति
सुन्न भऽ गेल होइ।
ओ देखैए, पोलिंग आफिसरसँ असोरा परक भीड़ बैलेट पेपर छीनि लेने छै। आ दू
गोटे हांइ-हांइ मोहर मारने जा रहल छै। उत्तेजनामे कुर्सीसँ उठऽ लगैए कि ओकर चारू भरक
भीड़सँ एकटा रिवाल्वरक नाल ओकर पेटमे सटि जाइ छै सहसा। कड़कैत स्वर गूंजै छै, -
'खबहदार ! चुपचाप बैठल रह।' आ, लगभग आधा घंटामे ओ खूनी गिरोह सभ काज खतम
कऽ आदेश दै छै - 'निकाल डायरी आ लिख - चुनाओ ठीक नियम के मोताबिक भेल।'
रिवाल्वरक नाल जेना - जेना घुमैत रहलै, ओकर कलम तेना - तेना पेपर सभपर
सांझ भऽ जाइ छै। पेट्रोलिंग मजिस्ट्रेट बक्सा उठबा चल जाइ छै।
ओ, तीनू पोलिंग ऑफिसरक संग विदा होइए। सांझक अन्हार पसरि गेल छलै।
डेगकें घिसियबैत
ओ टोलसँ बढ़ैत एकटा फाँकमे अबैए कि बाट कातक एकटा बसबिट्टीसँ हुल्ल दऽ दू टा कारी
भुजुंग लोक बहराइ छै आ ओ आतंकित भेल देखैए, एक गोटाक हाथक लाठी ओकर कप्पारपर
बजरै छै -- ठनाक। कानमे किछु शब्द पैसे छै -- 'स्सार ! हाकिमी झाड़ै छल। आ, आँखिक
आगू तरेगन छिटकऽ लगै छै। ओ तलमलाय लगैए।
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लघुकथा / चक्कू / डा0 नवीन कुमार दास
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'दरबज्जा-खिड़की सभटा बन्न कऽ लैह। फसादी सभ एम्हरो आबि सकैत अछि।'
'जे मनुक्खक प्राण लऽ सकैछ, ओ दरबज्जो तोड़ि सकैछ। हमरासभक जान तँ जयबे
करत, निर्दोष धर्महीन दरबज्जो जायत !' बेटाक निराश पुरुषार्थ कोठरीक दहशतिसँ भरल
नीरवताक रोइयां ठाढ़ कऽ गेलै।
पिता एकटा आर प्रयास कयलनि - 'तैयो, थोड़बो सुरक्षा तँ होयत।'
धार्मिक नारा सब गलीमे घुसि चुकल छल।
बेटा भंसाघरसँ चक्कू आनि बापक कंपैत हाथमे थम्हा देलकै। दुनू गोटे खूजल
दरबज्जाक दुनू कातक कोनटीमे नुका कऽ मोर्चा सम्हारि लेलक। सृष्टिकत्र्ताक जयघोषक स्वर
दरबज्जा धरि पहुँचिकें थम्हि गेल - आगाँ चलह। एहि घरक सभ लोक पड़ा गेल अछि वा मरि
गेल अछि।'
सिंहनाद पुनः भेल आ आगाँ बढ़ि गेल।
बापक कंपैत हाथ स्थिर भऽ गेल छलै।
बेटाक मुट्ठीमे कसल दृढ़प्रतिज्ञ चक्कू थरथरा उठल।
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लघुकथा / पुरुष / सुब्रात मुखर्जी
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बूढ़ी बजार जयबाक लेल बहराइत अपन पोतासँ किछु पाइ मंगलनि। बूढ़ा, जे
रिटायरमेन्टक बाद घर पर बैंसल राम - राम जपैत छलाह, कें पत्नीक ई छिच्छा पसिन्न नहि
पड़लनि।
ओ पत्नीकें डटैत बजलाह --'लोज नहि अबैत अछि अहाँकें, नाती-पोता सभसँ पाइ
मँगैत। बेगरता छल तँ हमरासँ माँगि लितहुँ।'
'तँ अखने की भेलैक अछि, अहीं दऽ दिअऽ।' बूढ़ी कहलथिन।
'हम....हम....हमरा लग तँ पाइ अछि-ए नहि।' - बूढ़ाक बोली लटपटा गेलनि।
कनेकाल बिलमि कऽ बूढ़ा अपन पोताकें बजौलनि। ओ लग आयल तँ बूढ़ा
कनफूसकीक स्वरमे ओकरा कहलथिन -- 'हो, हमरा किछु पाइ देबऽ -- एहि बुढ़ियाक मुँह बन्न
करबाक लेल।'
अन्हार घरक इजोरिया
विभूति आनन्द
रेहाना बाड़ीमे बरतन - बासन राखि कऽ बाल्टी लाबऽ जखने विदा भेलि, मोन
हदमदाय लगलै। बेसम्हार भऽ गेलै तऽ ठामे बैसि गेलि। पूराक पूरा अंतरी उनटि जेतै, तेहन
सन अनुभव केलक। घाम पूरा शरीरमे एके सग पनिया गेलै। मोनमे भेलै जे एहना हालतिमे
क्यो आबि कऽ पकड़ैत ! मुदा व्यर्थ तेहन घरमे कहाँ रहै क्यो !
एकबेर जोरसँ भीतरसँ हुदुक्का मारलकै। अम्मत स्वाद जीह पर पसरि गेलै। मोन
किछु हल्लुक बुझयलै। बाड़ीसँ उठि कऽ आँगन आयलि। बधना लऽ कऽ घैलासँ पानि लेलक
आ बाड़ी आबि कऽ कूरुड़ केलक। मुँह पर छिट्टा मारलक पानिक फेर तकरा आँचर लऽ कऽ
पोछ-पाछ केलक। बाहर आयलि आ बधना असोर पर राखि, औतै ओंगठा कऽ राखल पटिया
उठा लेलक। बीच आँगनमे आबि तकरा ओछौलक आ ठामे चित्त भऽ गेलि। मोन नहि भेलै जे
फेर आब एखन जाकऽ बरतन-बासन मांजी। ई नान्हि टा हदमदी मोनकें विचित्र जकाँ डोला
देने रहै। रेहाना सोचऽ लागलि - 'सुकुर भेल जे भरल पेट नै रहय। नै तऽ ई हदमदी सभ
किछु के काछि कऽ बाहर फेकि दीत।' कि तखने कोम्हरोसँ मुर्गी आबि ओकर देह पर चढ़ि
गेलै। चेहा उठलि ओ। पूरा देह भूलकि उठलै। उन्टे हाथे मारलक मुर्गीकें। ओ 'कट-कट'
करैत पड़ायल। मोन फेर हदमदाय लगल। आन दिन एना कहाँ होइत छलै। रेहाना सोचऽ
लागलि। ओकरा मोनमे शंका फुदकऽ लगलै। पेटमे चाली नै अछि। ई तऽ तेसरेचाली
चुलबुलाइए। आ ई सोच अबिते मोन झुरझमान भऽ गेलै। इच्छा भेलै, अपने हाथे अपन कठ
मोकि ली। ओ तामस मे उठलि आ मशीन-घर बढ़लि। घर बन्न छलै। झमा कऽ खसलि नहि
तऽ एखन जँ मोकितबाक बाप भेटितै तऽ कोनो करम बाँकी नहि छोड़ितै।
आरम्भक दू-तीन टा धरि तऽ रेहाना राजी - खुशी जन्म देलक। मुदा बादमे जखन
साले-साले होबऽ लगलै तऽ जीह फेरि देलकै। जीहकें जँ काबूमे राखियो लीत तऽ देहसमांग
मोर्चा सम्हारि लितै। आब तऽ डम्हरस सेव सन लगैत गाल ठकुआ जकाँ चोकटि गेल छै।
देहक रग-रग अपने अनचिन्हार बुझाइत छै। कोनो काजमे चित नहि बैसैत छै। हक-हक
करऽ लगैत अछि। मोनक समस्त उछाह बिलायल जाइत छै। मुदा से सभ के पतिआउक।
उमेर मोसकिलसँ पचीस - सत्ताइसक हेतै, मुदा अनचिन्हार देखतै तऽ पचाससँ कम नहि
अँटकारतै। आ से फूसि नहि अँटकारतै। सात टा तऽ बहार भऽ चुकल छै; आइ ई आठम
देखार भेलैए। पटिया पर बैसलि-बैसलि सोचि रहल छलि रेहाना। चारिटा तऽ चलऽ-फिरऽ
जोग भऽ गेल छै, मुदा तीन टा तऽ एकदम लेध छै। मोकीत शकीला, निकहत आ बदूद नहि
रहितै छेटगर तऽ एहि तीनूक की हाल होइतै, से सोचैत उदास भऽ जाइए रेहाना। डांटो-हांट
कयला पर टँगने तऽ रहैत छै।
रेहानाक जीह फरिआयब पतनुकान लऽ लेने रहै। ओ अपन पूर्व स्थितेमे आबि गेल
छलि। बैसल - बैसल कान कुकुआय लगैत छै। कतौसँ एकटा काठी तकैत अछि। तकरा
आँचरक खूटमे लेपटा कऽ कानमे घुसियबैत अछि। लार-चार करैत अछि। आफियत लगैत
छै। बेर-बेर निकालि कऽ देखैत अछि। आँचरक खूटमे गुज्जी लागल-भीड़ल रहैत छै। पोछैत
अछि। फेर घुसिअबैत अछि। एहिना फेर दोसर कानमे । मुदा, ई क्रम बेसी काल नहि चलैत
छै। रेहानाकें स्मरण होइत छै जे घर-आँगनक सभ काज तऽ पड़ले छै। सभसँ आफद तऽ छै
बरतन-बासन। पहाड़ जकाँ मठोमाठ भेल छै बाड़ीमे। मोन होइत छै, कऽ ली। दोसर के
अछि। एखन आँगनो चैन अछि। खरुहान सभ गेल अछि ममहर।
मुदा, ई 'ममहर' शब्द जीहपर उचरिते रेहानाकें अपन बियाह मोन पड़ि अयलै। ओ
छोटे हरय जखन निकाह' भेल रहै। सेहो कोनो दूर देश नहि, टोलेक उतरबरिया आँगनमे।
असलमे, रेहानाक अम्मी, आ बदूदूक अब्बा गफारक अम्मी-दुनू सहोदर। से, दुनू बहीनमे गप -
सप भेलै आ घरक चीज घरे रहि गेलै। रेहाना जाहि व्यक्तिक संग कनिया-पुतरा खेलाइत
रहय सएह जीवन भरिक लेल ओकर रखवार भऽ गेलै। तहिया तऽ ई सम्बन्ध रेहानाकें नहि
अखरल रहै मुदा जखन किछु छेटगर भेल आ मोकीत 'गोदी' मे कूदऽ लगलै तऽ बहुत रास
गप बूझऽ जोग भेलै। आ जाहिमे बेसी कोनादन बुझयलै।
असलमे तकर कारणो भेलै। रेहानाक नैहर-सासुर जाहि गाममे छै, से हिन्दू-बहुल गाम
छै। ओकरे रीति-नीति गामपर सबारी कसने छै। ताही सबारी कसल गाममे दस घर ओ सभ
छै। सभक सभ दर्जी। वएह सभक मुख्य रोजगार छै किछु खेती-बाड़ी सेहो छै। मिला-जुला
कऽ ठीक - ठाक छै। एम्हर किछु पढ़ि - लीखि सेहो लेलकै अछि। पूर्वमे तऽ पृथ्वीपर अबिते
वएह सिआइ - कढ़ाइ बला रोजगार थम्हा देल जाइत छलै। मुदा आब, से बात नहि छै।
जेना - जेना लोक बढ़ल जाइत छै, घरे घर गरीबी अपन नृत्य शुरु कऽ देलकै अछि।
से, हिन्दूक गाममे रहैत, ओकर सभक घर-परिवारमे अबैत जाइत, एके गाममे, एके
घरमे, भाये-बहिनमे बियाह रेहानाकें कोनादन बुझाइत छै। जहिया ओकर बियह तय भेल रहै,
ओकर सभसँ आप्त सखी रेवा व्यंग्यो केने रहै जे 'ई कोन रेबाज गय, कि भाये-बहिनमे
बियाह।' छोट रहितो रेहाना ठेसगरि कम नहि छलि। सपरतिभ जकाँ उत्तर देने रहै, जे तोरा
सभसँ तऽ नीक ने गय ! कहाँ-कतऽ के मनसा, चिन्हऽ ने जानी, तकरा संग गेंठ बान्हि देल
जाइ छौ। हमरा सभमे ई तऽ नै ने होइए जे अनचिन्हारक अन्हारमे टौआइत रहै छी।'
उत्तर तऽ दऽ देने रहै रेहाना, मुदा रेवाक गपमे दम जरुर बुझायल रहै। ताही खन
रेवाक गप अपन अम्मीसँ केने छलि। अम्मी सोझ-सोझ उत्तर दऽ देने रहै, जे 'अपना सभक
इस्लाममे इएह रेवाज छै। सभ मजहब के फराक - फराक रेबाज होइ छै।' आ मजहबक
नाम अबिते रेहाना चुप भऽ गेल छलि। अपन मुँहकें सीबी लेने छलि। ओकरा भीतरमे एक
अज्ञात डर सहिन्या गेल छलै। धर्म - विरुद्ध गप करब इस्लाम विरुद्ध गप करब थीक। धर्मक
लाठी बड़ सक्कत। ककरो डेंगा सकैए। आ, धर्मक आँचरमे पोसायलि रेहाना अपन दिमागसँ
तर्क शब्दकें सदाक लेल हटा देबाक चेष्टा करऽ लागलि छलि।
रेहानाकें ई सभ अनर्गल लागऽ लगलै। ओ मोनकें कतौ आनठाम रोपऽ चाहलक। बड़
अबेर भऽ गेलै। एखन धरि क्यो नहि टघरलैए। धियापुता बिना आंगन सुन्न लगैत छै !
ओकरा अपना संतानक प्रति अपार स्नेह, असीम ममता उमरि अयलै। बिदा भऽ गेलि नैहर-
आँगन। कि मुँहथड़ि पर ओंघरायल फूटल चूल्हिपर नजरि पड़लै। ओकर मोन बदलि गेलै।
डेग ठमकि गेलै। ओ चूल्हिक एक कोनकें झाड़लक; आ तकरा आँचरमे लऽ कऽ घुरि आयलि
पटियापर । माटिकें बदाम जकाँ लोकि-लोकि कऽ का लागलि। कते सुन्नर, सोन्हगर स्वाद
छै। ओ सोचलक; आ वि•ाास कऽ लेलक जे ठीके बौआक अबैया छै। लक्षण सभटा ओम्हरे
कऽ जा रहल छै। रेहाना तुरत्ते इहो अनुभव करऽ लागलि जे ओ पुनः आलसी भेल जा रहलि
अछि। आब घर-आँगन शकीलेकें करऽ करऽ पड़तै। ओकरासँ आब किछु नहि हैतै।
रेहानाकें पुनः अपन सखी रेवा मोन पड़ि अयलै। दुनूमे दू देह एक प्राणवला स्थिति
रहै। भरिसक तें, बियाहक तिथिमे जे अंतर पड़ल होइ, मातृत्व - बोधसँ दुनू सगहि पुलकित
भेल छलि। तहिया, दुनूक एकान्त ककरो लेल ईष्र्याक वस्तु छलै। भरि-भरि दिन दुनू की
गपिआइत रहैत छलै, आ किए बात - बातपर
ठिठिया उठैत छलै, से क्यो नहि बूझि पबैत छल। अपने इच्छे दुनू चोरा-चोराकऽ खपटा
चिबबैत छलि, भाय सभसँ इमली मंगा-मंगा भकौसैत छलि। दुनू दुनूक पेटपर अपन-अपन कान
सटा-सटा गर्भस्थशिशुक हास - रुदन अकानबाक चेष्टा करैत छलि, आ स्वर्गिक आनन्दक
बोधसँ देह रहैत विदेह भऽ जाइत छलि जेना। अपन भीतर दुनू एक प्रकारक विचित्र
नवीनताक अनुभव करैत छलि आ जकरा लेल कोनो खास शब्द नहि ताकि पबैत छलि।
आब मुदा से सभ कहाँ होइत छै। आब तऽ खुशीक बदला दुखे होइत छै। प्रत्येक
गर्भाधान अपन पतिक प्रति आक्रोश आ घृणा टा उत्पन्न करैत छै। रेहानाकें अपन नेनपन
स्मरण होइत छै। बरखाउ बच्चा ओकर अम्मीकें सेहो होइ। तहिया तऽ एते नहि बुझै, मुदा
तामस बड़ होइ। कारण, घरमे जेठ रहने, घरक प्रत्येक आगमन ओकर काजक बोझकें आर
भारीये केने जाइ। ओ ताहि बोझतर अपनाकें पिचाइत अनुभव करय। से, ओ अनुभव ओकरा
बहुत दिन धरि पछोड़ धेने रहलै। जखन अम्मीक बाटपर ओकरो डेग बढ़ऽ लगलै तऽ बहुत
किछु आगू - पाछू सोचैत एक दिन मोकीतक अब्बा गफारसँ पूछि देने रहै जे 'ई एना साले-
साल तोरा नीक लगै छऽ ? परहेज सऽ नै रहल जा सकै छै ?'
गफार ओकर मुँहपर हाथ धऽ देने रहै। 'एहन गप सपनोमे आबय तऽ आँखइ मूनि
तौबा कऽ ली। ई हमर तोहर क्रिया के फल नै छऽ ! सभ खोदा मियाँ गढ़ि कऽ पठबै
छथिन। हुनकर साफ कहल छनि जे जते हम गढ़ि कऽ नीचा पठायब तते हमर बन्दामे
बढ़ोत्तरी हैत।' 'तऽ से बात छै !' रेहाना आँखि निराड़ि कऽ पुछने रहै।
'तऽ तोरा हम झूठ कहबऽ ! रे हुनकर तऽ एते तक फरमान छनि जे हमर बन्दे के
एहन खनदानमे बियाह करबाक चाही, जाइ खनदान के औरत बेसी सऽ बेसी बच्चा जन्म देबऽ
के लायक हो !'
रेहानाक रुह काँपि उठल रहै। ई की सोचि लेने रहय ओ ?
मुदा एखन, चूल्हिक पाकल माटि कुट-कुटबैत ओकर मोनक नजरि तऽ रेवा पर
अटकल छै। पछिले मास तऽ दू दिनुक लेल नैहर आयलि रहै। दू टा संतान छै। घरबला
पड़ोसिया गामक स्कूलमे मास्टर छै। गामे रहि नोकरी आ खेती दुनू संगे - संग छै।
हालचाल पुछने रहै रेहाना तऽ रेवा चिड़ै जकाँ चहकि उठल रहै-'बड़ खुशी छी गय !
तोरालोकनिक सिनेहक प्रतापसँ दू टा लाल-गोपाल छथि। दुनू पढ़ै-लिखै छथि । मस्त रहै
छथि। दुनू परानी से सभ देखि-देखि कऽ फुलाइत-सपनाइत रहै छी।'
रेहानाक मोन भीतरसँ पघिलि गेल रहै। एकटा हमर भाग्य छै आ एकटा रेवाक भाग्य
छै। बच्चा जन्माबऽबला मशीन बनल छी जेना। ककरा कहियौ अपन दर्द। रेवाकें कहबै तऽ
कहत जे ईष्र्या करैए। मुदा नहियो कहने तऽ नै बनैए। भीतरे - भीतर खदकैत रहने तऽ
इएह परिणाम भेल जे.... । से झोंकमे आबि कऽ पुछिये देलकै रहय-'एना कोना बिलमि गेलही
गय।'
रेवा सोझ-सोझ बात कहि देने रहय--'थोड़े दिन तऽ परहेज केलिऐ गय ! मुदा जखन
नै सम्हरलै तऽ डागदर लग जाकऽ बन्न करबा लेलिए। तोरा सभमे तँ....।'
'हँ गय, ठीके कहै छें। हमर सभक इच्छा तऽ कतौ आनठाम बान्हल छै।' असोथकित
रेहाना कनी बिलमि कऽ पुछने रहै--'अँय गय ! आर दोसर कोनो उपाय नै छै ?'
रेवा काकु कऽ उठल रहै-'हँ, छै। सन्यासिन भऽ जो ! फेर कनी थम्हि कऽ-'गय,
आगि आ खढ़ के देखलीहीअय कतौ संच-मच भऽ कऽ बैसल ?'
आ रेहाना एक दीर्घ निसास घीचिकऽ छोड़ने छलि। सोचैत - सोचैत एखन निसास-
पर-निसास धरैत अछि। ठीके, देह आब ओ देह नहि रहलै. दस टा व्याधि सदिखन संग-संग
टहलैत बुलैत रहैत छै। देहक रोम-रोम लगैत छै जेना रोगक मोसाफिरखाना होइ। एम्हर
तऽएकटा विचित्र रोग उपकब शुरु भेलैए। ककरो, आनोकें, कोनो रोग ब्याधिक मादे सुनलक,
चाहे ककरो जिज्ञासामे आयल-गेल, कल्पना करैत देरी सन्हिया जाइत छै। से जखन कखनो
अपन पुरना दिन मोन पड़ैत छै तऽ होइत छै जो भोकासी पाड़िकऽ कानऽ लागी। खास कऽ
तखन जखन किछु गुनगुनाय के मोन होइत छै। कते भद्दा भऽ गेलैए स्वर ! होइत छै जे
ठोंठकें ब्लेडसँ छिलि दियै। ओहि दिन रेवा कहनो रहै जे 'गय तोरा की भऽ गेलौ ! पघिलल
बैटरीवला रेडियोक अवाज जकाँ किए भऽ गेलौ तोहर स्वर ! हम तऽ सोचिकऽ आयल रही जे
तोरा सऽ ओ 'झरनी' सुनब। किदन तऽ पाँती छै-
हाय हाय, कहाँ बिराजै सैयद फुलबरिया
के ये करै रखबरिये हाय
हाय हाय, काबा बिराजै सैयद फुलबरिया
राजा करै रखबरिये हाय'
से ठीके, लाख प्रयास केलाक बादो रेहाना नहि गाबि सकलि छलि झरनी। एह, की
समय छलै ओ ! दाहाक समयमे बताहि भऽ जाइत छलि जेना। 'बड़का रण' पर जखन सभ
दाहा जुटैत छलै आ झरनी खेलल जाइत छलै, रेहाना अपन महिला-मण्डलीमे अग्रेस रहैत
छलि। सूतल खूनकें अपन कलासँ जगा दैत छलै। कय बेर तऽ अपन बुढ़िया दादीकें गट्टा
पकड़ि कऽ नाचलि छथि। जखन ओकर नाच-गान शुरु होइत छलै, तऽ चारूकात भीड़ लागि
जाइत छलै। अल्ला मियाँ जेहने स्वर देने रहथिन, तेहने रुपो। आ ताहि पर जखन कारी
रंगक बूटेदार लहँगा पहिरिकऽ नचैत-गबैत छलि तऽ केहन-केहन रति, रम्भा सन नारीकें हारि
मानऽ पड़ैत छलनि।
आइ सभ सपना बुझाइत छै। सपनामे देखल कोनो दृश्य जकाँ सभ किछु परारक वस्तु
लगैत छै। बितलाहाकें अपनासँ जोड़िकऽ देखब ओकरा एक कल्पना मात्र बुझाइत छै। एहि
सभ मादे कतोक खेप एकांतमे गफारसँ विमर्श करऽ चाहलक। मुदा ओ तऽ ठामे डपटि लैक -
-'औरत के कहियो अकिल नै हेतै।' आ रेहाना निरुपाय भऽ जाइत छलि। से जखन कोनो
टा उपाय नहि रहलै तऽ गफारक देखा-देखि ओहो पाँचो समय नमाज पढ़ब शुरु कऽ देलक।
अल्ला मियाँसँ बस #ेकटा दुआ जे 'हमर बतहा के अकिल दियौ। एकरा समय साल के देखऽ
के नजरि होइ। तेहने ज्ञान - प्राण करय।' मुदा गाड़ी अपन लीक नहि छोड़लकै। आब तऽ
गफारक नेतृत्वमे गममे एकटा छोटछीन मस्जिदो बनि गेल छै। गफार रमि गेल छै अल्लाहक
दुआरि पर रमल तऽ रेहाना सेहो छै, मुदा.... । ....मुदा जखन-जखन सातो बच्चा खाय ले
मँगैत छै, आ सिआइ -मशीनक सूइ तकर पूर्ति करऽ मे नहि सकैत छै तऽ रेहानाक रोम - रोम
बाजऽ लगैत छै। एक दिन एहिना कमीजक काज बनबैत रेहाना पुछने रहै जे की करबहक ?
आइ किछु नै छै घरमे !'
मशीनक पैडिल पर चलैत पयर रुकि गेल रहै सहसा गफारक। कोनो टा निदान नहि
दऽ पौने रहै। अपन मशीन-घरकें ठेकनाबऽ लागल रहै। चारक दोग सभसँ झक-झक करैत
आकाश नजरि अयलै। स्पष्ट किछु नहि देखऽ मे अबै। गफार सोचऽ लागल छलै--'एक
जमाना रहै जे हमर ई मशीन - घर एहि परोपट्टा
मे नामी रहय। सियाइक कपड़ा सभसऽ भरल रहैत रहय घरक कोना-कोना। राति-दिन
पैडिल पर सऽ पयर नै उतरैत रहय। झहरैत रहै रुपैया । आ खर्च एकदम कम।' तहिया
एते लोको नहि रहै। अपने छुट्टा रहय। बाप माय रहै। बस। तीन टा बहिन रहै। सभक
सभ बियाहलि। छोट दूटा भाय रहै जे हैजामे अल्ला मियाँक प्यारा भऽ गेल छलै।
गफारकें मोन पड़ऽ लगलै - जहिया एकर अब्बा दर्जीगिरीसँ अवकाश प्राप्त कऽ कऽ
एकरा मशीनक स्टूल पर बैसौने रहै ई नब बाछा जकाँ हनछिन केने रहय। घंटो भरि चुत्तर
नहि रोपि पाबय स्टूल पर। मुदा अनुभवी रहै अब्बा। बाछाकें सैंतबाक सभ गुड़ जनैत रहै।
बेसी समय नहि लगलै, सैंति देलकै स्टूल पर गफारक चुत्तरकें । कनैत-हिचकैत गफार हँसऽ
लागल एकदिन तऽ भभाकऽ हँसऽ लागल छल। जहिया मौसीक बेटी रेहानाकें ओकरा लुंगी
तरमे आनि कऽ झाँपि देलकै ओकर अब्ब।
गफारक जीवनक ओ परिवत्र्तन काल रहै। ओकर दुनियाँ बदलऽ लगलै। एकदिन
सरिपों पूरा गाममे हल्ला मचि गेलै जखन ओ अपन मशीन-घरमे बैटरीवला बिजुरी जरौलक ।
से, बिजुरीक झकझक इजोतमे चन्द्रमा जकाँ हँसऽ लागल। हँसी-खुशीक तोर तखन तऽ अते
नहि लै, जखन बीतल रातिमे चोराकऽ अबै रेहाना- 'चलबहक नै ! राति भरि की एकरे
दुलारैत रहबहक ?'
फाँक-फाँक भऽ जाय गफार आ झपटि पड़य रेहाना पर। रेहाना घरक एहि कोनसँ
ओहि कोन पड़ाय । गफार धपा-धपा कऽ ओकरा धरबाक कोशिश करय....।
मुदा, सुखक ई दिन अधिक दिन नहि टिकि सकलै। बुढ़बा - बुढ़िया विदा भऽ गेलै।
समय-साल तेजीसँ बदलऽ लगलै। गाम पर शहर भूत जकाँ सबारी कसऽ लगलै। गफारक
मशीन-घर उदास-उदास रहऽ लगलै। ओ बड़ प्रयास कयलक अपनामे नवीनता अनबाक; मुदा
फैशनक युद्धमे घायल भऽ गेल। बैटरी पुनः चार्ज नहि भऽ सकलै। दीपक टिमटिमाइत इजोत
भऽ गेलै ओहि घरक नीयति ....। से, ओही टिमटिमाइत इजोतमे बैसारीक लाभ लैत गफार
अपन घरक कोन-कोनकें नवजात सभसँ भरऽ लागल। ओम्हर खेत सेहो मूल्य माँगऽ
लगलैहमर करेज खाँखड़ भऽ गेल अछि ! हमरा पानि दे ! नीक बीया दे । समय पर खाद
दे। गफार टूटऽ लागल। धर्मभीरु होबऽ लागल। तमाम अभव-अभियोगकें अल्लाह केर
इच्छा-अनिच्छा पर टारैत दिन काटऽ लागल।
एहन गप नहि रहै जे गफार रेहानाक अनुरोधकें अस्वीकार करैत हो। असलमे, घरक
टुटैत स्थिति जखन ओकरा मजहब दिस मोड़ऽ लगलै तऽ ओ आत्म - शान्ति लेल
आवश्यकतासँ बेसी ओहि दिस आगू बढ़ि गेल। इस्लामक मुल्ला भऽ कऽ आगू आबि गेल।
आ, अल्लाह मियाँक डर, समाजक प्रतिष्ठा आ अपन सतुष्टि ओकरा रेहानाक अनुरोधकें
अस्वीकारऽ लेल बाध्य करऽ लगलै। ओ कखनो कालकऽ रेहानाक अनुरोध पर सहानुभूति-
पूर्वक विचार करय, अपन मजबहसँ जोड़िकऽ देखय, तऽ रेहानाक पलड़ा भारी लगै। किएक
तऽ 'अल्ला मियाँ ई कखनो नै चाहै छथि जे हमर रुह एहि पृथ्वीपर काहि काटय। हमर रुह,
हमर अंश जाधरि संतुष्ट नै रहत खुशी - खुशी नै रहत हमर नमाज माकूल नै हैत।' ई तर्क
अल्लाह दिससँ गफार करैत छल। 'मुदा प्रचलित मान्यतामे रमल समाज के हमर ई नवीन
मान्यता स्वीकार नै हेतै' सएह सभ सोचैत ओ रेहानाक सहजोर इच्छाक कण्ठ मोकैत, अपन
मस्जिद भेल मोनकें समाजक तर्कहीन कंक्रीटसँ मजगूत बनबैत रहल। अपन मोनक भीतरक
काइकें काछि-काछिक रिक्त करैत रहल।
।।। मुदा, रेहानाक मोनमे एखनो किछु छलै शेष। कशमकश छलै। जिजीविषा छलै
बाँचल। ओकरा मोन पड़लै। रेवा कहने रहै ओकर भैंसुर जाहि कम्पनीमे काज करैत छै तकर
बड़का हाकिम मुसलमाने छै। ओही
दूटा होइत-होइत बन्न करा लेने छै। तखन ? एही सभकें अख्यास करैत ओ गफारसँ एकदिन
गप केलकै तऽ ओ तरंगि गेलै। धयले थापड़ देलकै गालपर-'ओइ काफीर सभ के की गप करै
छें हमरा लग।' (एतऽ एकटा गप कहि दी जे जखन लोक खगल रहैए तऽ बात बातमे शंका
डेग - डेग पर तामस उठैत रहैत छै।)
से, अपन दीर्घ वैवाहिक जीवनक एहि पहिल थापड़क प्रत्युत्तरमे रेहाना विचलित नहि
भऽ कऽ साहसपूर्वक कहलकै - 'पहिने अतमा, तब परमतमा। हमहुँ काफीर भऽ कऽ जीब !
ऐ जीवनसँ काफीर भऽ कऽ जीब नीक छै.... । दोहरी थापड़ पड़ल रहै रेहानाक गाल पर।
आ ओ भोकासी पाड़िकऽ कानऽ लागलि छलि।
'अम्मी, अम्मी ! कैले' कनै छी अम्मी ?'
'अहाँ काफीर भऽ कऽ किए जीब अम्मी ?'....
सातो संतति मिलि, कनैत-बड़बड़ाइत अम्मीकें झिकझोरऽ लागलै। ओ चेहा उठलि।
कखन आँखि लागि गेल ? सोचऽ लागलि। खरुहान सभ झौहरि देबऽ लगलै जे नानी ओतऽ
आइ आदर नै भेलै। मामू-ममानी किछु नहि देलकै खाइ लेल।
मुदा अम्मी कतौ आन ठाम चलि गेल रहै - एखनुक स्वप्न - दृश्यकें पुनः - पुनः अपना
अंतसमे अनुभव करैत।
जानि नहि गफार मुँहथरि पर ठाढ़ भेल-भेल की सोचि रहल छलै।
पिशाच
अशोक
ओहि राति पानि निराव बरिसल रहै। एहन मुसलाधार कहियो-कहियो होइ छै।
गलीमे पानि भरि गेल रहए। ठेहुन भरि पानि। डेराक हाता भीतरमे सेहो पानि। ओना एहि
शहरक ई मुहल्ला पॉश इलाका मानल जाइए। मुदा रस्ता-पेड़ाक विचित्र हाल छै। कहै लेल
बड़का - बड़का सेठ-साहूकार अफसर, नेता सभ रहै छथि एहि मुहल्लामे। घरक भीतर
एकदम चकचक जगमग। मुदा सड़क एकदम टूटल-फूटल। खरंजा बला। र्इंटो सभ फूटल-
भाँगल। पनिबह के नितांत अभाव। कनियो बरखामे छावा भरि पानि लागि जाइ छै।
मेनरोडसँ जखन बामा दिस घुमै छी तँ सिन्धी अर्जुन दास मीरचन्दानीक विशाल मकान।
तकरबाद एकदम लाल रंगक कोठी सेठ श्याम नारायण अग्रवाल के। भव्य कोठीक दहिनाकात
कोनो गुजराती सज्जन के घर। नाम एखन धरि नहि बूझि सकलहुँ अछि गुजराती सज्जनक
घरक बाद बंगाली मोशाय। तकर बाद प्रोफेसर साहेबक तीन मंजिला मकान। तकर सटले
हमरा सभक डेरा। चारि टा फ्लैट छै एहि मकानमे। दूटा नीटा, दूटा उपर। नीचामे बामा
कातसँ हम रहैत छी। हम अर्थात सोदरपूरिए मूलक शाँडिल्य गोत्रक कृत्यानन्द मिश्र। बिहार
सरकारक कृषि विभागक एक कर्मचारी। हमर वगलमे रहैत छथि वर्माजी। एखन धरि हुनकर
पूरा नाम नहि बुझल गेलए। ओना दस माससँ उपर भऽ गेलए एहि डेरामे अएना। वर्माजी
एहिठामक जूट मिलमे कोनो नीक पद पर छथि। स्कूटर सेहो रखने छथि। हमर उपरका
फ्लैटमे एकटा मारबाड़ी छथि।
पापड़, तिलौड़ीक दोकानदार मूलचन्द सेठ ओहो स्कूटर रखने छथि। हुनकर बगलबला
फ्लैटमे मकान मालिकक भाए विजय बाबू रहैत छथि। पंजाब नेशनल बैंकमे किरानी छथि।
हुनको स्कूटर छन्हि। ई तीनू स्कूटर नीचामे सीढ़ी लगहक खाली जगहमे राखल रहैत छैक।
जगह कोनो फलिगर नहि छै। तैं अएबा-जयबामे बेस सिकस्ती रहैए। मुदा उपाय की ?
चोरिक डरे हुनका सभकें भीतर राखऽ पड़त छन्हि। एहि तीनू स्कूटरके देखि देखि हमर
जेठका बालक जे स्थानीय विद्यालयक तेसर वर्गमे छथि, हमरो स्कूटर कीनबाक लेल बेर-बेर
टोकैत रहैत छथि। मुदा इच्छा रहितो एखन धरि एक अदद स्कूटर नहि कीनि सकलहुँ अछि।
बालककें तँ रखबाक जगहक बहाना बनाए टारैत रहैत छी, मुदा सेहन्ता हमरो भीतरमे बड़
होइए जे ओहि तीनू लाल, पीयर, उज्जर स्कूटरक संग हमरो एक स्कूटर जे रहितए।
सरकारमे दरखास्त देने छियैक ऋण लेल। मुदा सुनै छी चारि सए टाका वित्त विभागमे दिअऽ
पड़ैत छै। तकर जोगाड़ एखन धरि नहि भऽ सकलए। जाहि मासमे जोगाड़ धरऽ जकाँ लगैए
कि अकस्मात कोनो अप्रत्याशित खर्च आवश्यक भऽ जाइए आ स्कूटर हमर हाथसँ निकलि
जाइए। एहिना करैत तीन बरख बीति गेलए।
अपने सभ सोचैत होयब जे ई कृत्यानन्द मिश्रजी केहेन लोक छथि से नहि जानि।
गप्प शुरुह केलन्हि मुसलाधार बरखासँ। बीचमे कहऽ लगलाह मोहल्लाक सड़क सभहक
दुर्गतिक हालचाल। आब चढ़ि गेलाह अछि स्कूटरपर। तऽ श्रीमान अपन मकान मालिक
प्रोफेसर दिवाकर सिंहजीक शब्दमे यैह तऽ जिनगीक फिलासफी छियैक। निम्नमध्यवर्गीय
जिनगीक दर्शन। टूटल - फूटल सड़क पर ठेहुनभरि लागल पानि मे बन्द भेल स्कूटरके ठेलैत
बढ़ल जाइत लोकक इतिहास - भूगोल। प्रोफेसर दिवाकर सिंहजी चटिया सभखें दर्शन पढ़ा-
देखा कऽ दू कित्ता मकानक स्वामी बनल छथि आ हम इतिहासमे स्नातकोत्तर डिग्री लऽ कए
कृषि विभागमे खरीफ रब्बी आ गरमा धानक हिसाब जोड़ै छी। खेती करऽ कियो, उपजाओ
कियो, जमाखर्च राखू हम। ओना दिवाकर सिंहजीक एहि उपलब्धिक सेहो एकटा इतिहास
अछि। मुदा से इतिहास फेर कहियो फुर्सतिमे। एखन तऽ अपने सभक मोनमे अँगैठीमोड़
करैत शंकाक निवारण पहिने कऽ दी । अपने सोचैत होयब जे ई शाँडिल्य गोत्रक आर्थिक
स्थिति जखन एत्ते लचरल छन्हि तखन पॉश कालोनीक फ्लैटमे किए आसन जमौने छथि।
कत्तौ स्सता सुभिस्तामे कोनो ड्राइवर टोला, मिरचाइबाड़ीमे किए ने रहै छथि। एहि अमला
टोलामे किए ? तऽ कनिए जोर सँ एकर इतिहास कहिए दी। असलमे हमरासँ पहिने एहि
डेरामे एकटा बंगाली परिवार रहैत छल. परिवारक मुखपुरुख घोष बाबू सिंचाइ विभागमे बड़ा
बाबू छलाह। एकदम सात्विक लोक। ठाकुर जीक चेला। बरखमे एकबेर देवघर आश्रममे
जाइते टा छलाह। हुनका चारि कन्या आ एक बालक। जेठ कन्या मृणालिनी बी. ए. पास
कऽ के बी एड मे पढ़ैत । ओहिसँ छोट सुहासिनी बी. ए मे अध्ययनरत। ताहि सँ छोट दूनू
कन्या क्रमशः आइ. ए आ मैट्रिक मे। बालक सभसँ छोट से मैट्रिक सँ नीचा सतमा वा अठमामे
पढ़ैत। मृणालिनीक बएस बाइससँ उपर भऽ गेल रहैक। घोष बाबू बियाह करेबा लेल बेहाल
मुदा कतहु गड़े नहि धरनि। कहुना कऽ एकटा द्वितीय बर पड़ि लगलन्हि। बैंकमे नोकरीक
करैत। पहिल स्त्री एकटा बालकक जन्म दऽ स्वर्गीया भऽ गेल रहै। बियाहक दिन ठीक भेलै।
प्रोफेसर दिवाकर सिंहजी बड़ मदति केलथिन्ह। आँग समाँगसँ मदति। मुदा अकस्मात
बियाहसँ एक दिन पूर्व कुहराम मचि गेलै। मृणालिनी बिख खा लेलकै। जावत अस्पताल पहुँचै
लाश भऽ गेलै लोक कहै छै तीन मासक गर्भ रहै ओकरा। गर्भधारण करबामे के सज्जन अपन
सहयोग प्रदान केने रहथि से तथ्य एखनधरि विवादास्पद छैक। कियो बगलबला गुजरातीक
एकमात्र सुपुत्रक नाम कहै छै तऽ कियो सिन्धी महाशयक भातिजक तऽ कियो...., जाए दिअऽ
एहि अन्वेषणसँ हमरा-अहाँकें कोन काज ? केओ रहौक। मुदा जे रहैक से मात्र आनन्दक
भागी बनलै, उत्तरदायित्वक बेरमे लगैए मुँह माड़ि लेने हेतै। तकर बाद सुनै छी घोष बाबूक
शेष जीवन एहि डेरामे बड़ खराब बितलन्हि। निशीभाग राति कऽ हँसी सुनाइ दैन्हि। खिल-
खिल हँसबाक स्वर। मृणालिनीक जोर-जोरसँ पढ़बाक आवाज सुनाइ दिअऽ लान्हि।
खिड़कीक छड़ सभ काँपऽ लागै। अकस्मात कोनो वस्तु भट्ट दऽ खसि पड़ै। अन्ततोगत्वा घोष
बाबू एहि डेराके छोड़ि चल गेलाह सपरिवार। बादमे एहि
शहरोसँ बदली करा लेलन्हि। तहियासँ ई डेरा भूताहि भऽ गेल। किओ किराएदार तैयार नहि
होइन्ह प्रोफेसर साहेबकें। पाँच बरखधरि ताला लागल रहलन्हि एहिमे। ओना अनका
बगलबला वा उपरबला किरायेदार सभकें कहियो किछु नहि देखलै, सुनेलै। मुदा एहि फ्लेटमे
नहिए कियो अएलन्हि। दस मास पूर्व जखन हम एहि शहरमे अएलहुँ बदली भऽ के तऽ डेराक
समस्यासँ परेशान भऽ गेल रही। एहि शहरमे डेराक किराया पानिक हिसाबसँ छै। सभ
महल्लाक पानि बढ़िया नहि छै। एहिठामक पानिमे लोहाक मात्रा बेशी। जाहि मोहल्लाक पानि
बढ़ियाँ ओकर भाड़ा बेशी। जतऽ डेरा पसिन्न पड़य ओतऽ पानि नहि बढ़ियाँ। जतऽ पानि
बढ़ियाँ ओतऽ किराया बेशी। बूझू तऽ अकच्छ भऽ गेलहुँ। तखन एकटा मित्र एहि डेराक मादे
सूचना देलन्हि। संगहि भूतहाबला गप्प सेहो कहलन्हि। सस्कारी मोन कने डेरायल मुदा डेरा
शीघ्र भेटब आवश्यक रहए। तीन-चारि माससँ थीया पूताक पढ़ाइ-लिखाइ छूटि गेल रहैक।
गाममे रहैत पत्नी तंग भऽ गेल रहथि। हिम्मति कऽ के प्रोफेसर साहेबसँ गप्प केलहुँ। बेचारे
खोंइचा छोड़ा बात कहि देलन्हि। किछुओ नुका कऽ नहि रखलन्हि। कहलन्हि जे अहाँ तऽ
ब्रााहृण छी। गायत्री सेहो जपैत होयब। अहाँक भूत-तूत की करत ? होम-टोम कऽ लिअ।
सभ ठीक भऽ जाएत। ओना एकर किराया तऽ छह सै टाका छै, मुदा हम अहाँसँ तीनिए सै
टका लेब। पाँच बहखसँ खाली पड़ल अछि। तीस चालीस हजारक धक्कामे पड़ि गेल छी।
कहुना घाटो उठा कऽ अहाँकें देबे करब। उद्धार कऽ दिऔ एहि डेराके।'
हम ठीके उद्धार करबामे लागि गेल रही। पाँच बरखसँ तालो नहि खुजल रहै। जखन
केबाड़ खोलल गेल तऽ गन्धसँ नाक भरि गेल। मकड़ीक असंख्य जालसँ आच्छादित आ तीन
इंच मोट गर्दासँ भरल कोठली सभ ठीके बड़ डेराओन लागल रहए। आफिसक एकटा
चपरासीके सग लेलहुँ आ शुरुह भऽ गेलहुँ। साफ सूफ कएल। मनिहारी घाटसँ आनल
गंगाजल छिड़कल। होम तोम नहि कऽ सकलहुँ मुदा ठाढ़ भऽ कए एक हजार गायत्रीक जप
अवश्य कएल । पहिल राति अपन मित्र के सेहो संगे सुतेलहुँ जावत निन्न नहि भेल तावत
कोनो आवाजसँ चौंकि जाइ। मुदा कखन निन्न भऽ गेल दूनू गोटाकें से नहि जानि।
अगरबत्तीक मातल सुगन्धि आ भरि दिनक कोढ़तोड़ा मेहनति सँ खूब निन्न भेल। हमर मित्र
ताहि परसँ मातगी चूर्ण सेहो खुआ देने रहथि। भोरे उठलहुँ तऽ मोन प्रसन्न रहए।
मृणालिनीक भूत भागि गेल छल। परिवार अनलहुँ। पत्नीक ओना थोड़ेक गंजन सुनऽ पड़ल
मूदा बुझा सुझा कऽ हुनका शान्त कएल। बोल-भरोस देलियान्हि। भूतप्रेत पर एक घटा
भाषण देल। तर्कसँ सिद्ध कऽ देलियन्हि जे भूत तूत किछु नहि थिक मात्र एकटा भ्रम थिक।
तऽ हम तहियासँ एहि डेरामे रहि रहल छी। तीन टा चौकी अछि। चारिटा प्लास्टिकक तारसँ
घोरल कुर्सी अछि । एकटा कोठलीमे दूटा चौकी जोड़ि कऽदुनु बेकती आ दुनु धिया - पुता
रहैत छी। दोसर कोठलीमे एकटा चौकी बिछान कऽ के राखि देने छियैक। पाहुन परक लेल।
मुदा एतऽ पाहुनो - परक कमे अबैत छथि। स्कूटरक कोन कथा एखन धरि गैसबला चुल्हा
सेहो नहि कीनि सकल छी सात बरखसँ जहियासँ नोकरी शुरुह कएलए एकटा स्टोव पर
भानस होइत अछि स्टोवक बर्नर तीन बेर आ पंप चारि बेर बदलल गेलए। ओहि राति जहिया
मुसलाधार बरखा भेल रहै, स्टोवक बर्नर चारिम बेर बदलबा के अबैत रही। आफिस जाइत
काल मिस्त्रीके दऽ देने रहियै। घूरतीमे पानिमे थाहैत एक हाथमे छाता आ एक हाथमे झोड़ामे
राखल स्टोव । बिजली चल गेल रहै। ओना एहि शहरमे साँझसँ दस बजे राति धरि अक्सर
बिजली नहि रहैत छैक। खा-पीबि कऽ जखन बिछान पर जाइत छी तऽ लाइन अबैए।
सभहक मुँह नीक जकाँ देखिकऽ फेर मिझा दैत छियैक। सुतबाक लेल।
पत्नी जयकला देवी एक हाथमे लैंप उठौने दोसर हाथसँ केबाड़ खोलने रहथि। हम
स्टोव के राखि कपड़ा लत्ता खोलऽ लागल रही। छोटकी बेटी आबि कऽ पैरमे लटकि गेल
रहए। पत्नी जा कए फेर ओछानपर पड़ि रहलीह। कने अनसोहाँत सन लागल। तावत
छोटकी बेटी समाचार सभ सुनबऽ लागल भरि दिनुका। एकर ई सभ दिनक हिस्सक छै। कए
बेर भाइ संगे मारि भेलै। कए बेर माए कहलो पर दूध नहि
पीअऽ लेल देलकै। भेलपूरी बिकाइ लेल आएल रहै से नहि कीनि देलकै। वर्माजीक बेटी के
जेहने नवका फ्राक कीनि के अएलैइए तेहने ओहो लेत। मकान मालिकक हातामे बान्हल गाय
कोना कऽ खुजि गेल छलै। सभटा खेरहा सभटा वृतान्त एक साँसमे कहि गेल। की
अकस्मात पत्नीक कनबाक स्वर सुनाइ देलक। आशचर्य भल। की भऽ गेलन्हि।
'किए कनै छी ? की भेलए ?' पुछलियन्हि। मुदा चाप्प। किछु नहि बजलीह।
बाजल जेठका बेटा, 'उपर बालीसँ आइ झगड़ा भेलन्हि अछि माँके ।' - के उपरबाली ?
मारबाड़िनसँ ?' हम पुछलियै। 'हँ, पापा, ओ बड़ बदमास छै। अनेरे माँसँ लड़ैत रहैत छन्हि।'
हमरा बूझल छल ओ मोटकी मागु बदमासि छै। जेहन सज्जन मूलचन्द सेठ। तेहने बदमासि
ओकर सेठानी। मुदा हिनका तऽ झगड़ो नहि करऽ अबैत छन्हि। कियो किछु कहतन्हि तऽ
लगतीह नेप चुआबऽ। आदंक पैसि जाइत छन्हि । पत्नीक लग गेलहुँ। पीठपर हाथ
रखलियन्हि। स्नेहसँ पुछलियन्हि 'की बात भेल छलै ? कहू ने। बात तऽ बूझियैक । कहबे
सेठ के । अपन बहुके सम्हारिकऽ राखऽ।'
'नहि नहि। ओकरा किछु नहि कहियौ। कथी लेल बात बढ़ाएब। छोड़ि दिअऽ'
हमरा बूझल छल जे ओ मना करतीह। तइयो हुनक संतोषार्थ कहने रहियन्हि।
अच्छा नहि कहबै। मुदा बात की भेल रहै ? से कहब ने।' हम जिद्द केने रहियन्हि।
ओ कानब बन्द कऽ देने रहथि। हम आ•ास्त भेल रही। तखन कहने रहथि ओ, 'मूलचन्द
सेठ के एकटा बहीन जे छै जकरा साँए छोड़ि देने छै, ओकरा भेलै जे हम ओकरे देखिकऽ
श्रीदेवी कहलियैए। मुदा हम तऽ दाइ संगे सिनेमाक गप्प करैत रही। ओ छौंड़िया लगा -
बझा कऽ अपन भाउज के कहलकै । ताहि पर सेठानी हमरापर एतेते ठोंठे उठल। किदन-
कहाँदन कहलक। अहाँक संगी जे अबैत छथि, तिनका लगा कऽ...। फेरसँ कानऽ लागल
रहथि ओ । हमरा बड़ क्रोध भेल रहए। ठीके छिनाडि छौंड़ी छै ओ। ओकरा मादे सुनने
रहियै। तैं साँए बैला देलकै। अहूठाम, कहियो के देखै छियैक छौंड़ा सभ संग ठिठिआइत।
जोरसँ बाजल रही, 'ई सेठबा अपन बहीनि बहु के सम्हारत से नहि। अनेरे झगड़ा करतै
सभसँ। आबऽ दिअउ आइ मूलचन्द के। हम कहबे टा करबै।' नहि, नहि, छोड़ि दिअऽ
अहाँ। अहाँ नहि पड़ू एहिमे हमर तऽ आइ दिने खराब छल। दोपहरियामे मकान मालिकिनी
सेहो अनेरे झाड़ि देलन्हि। नालीमे कूड़ाकरकट खसबै छै सभ। मुदा ओ हमरे टा दोख लगबै
छलीह। कहै छलीह जे ठीकसँ रहबाक अछि तऽ रहू नहि तऽ मकान खाली कऽ दिअऽ। हम
तऽ किछु नहि बजलियन्हि। खाली एतबे कहलियन्हि जे हमहीं टा थोड़े खसबै छियै।
बाजिकऽ पत्नी चुप्प भऽ गेल रहथि। तावत जेठका बेटा बाजि उठल, 'पापा गुड्डूआ अनेरे
हमरा मारैत रहैए। गेन्द सेहो फेक देलक।' 'के गुड्डुआ ? मकान मालिकक पोता ? हम
पुछने रहियै। उत्तर पत्नी देने रहथि, हँ, वैह बड़ बदमास छै। अनेरे ऐकरा तंग करैत रहैत
छै। हमर मोन कोनानद भऽ गेल रहए। एम्हर थोड़ेक दिनसँ प्रोफेसर दिवाकर सिंहजीक
व्यवहार सेहो हमरा बदलल सन बुझना जाइ छल। किछु दिन पहिने कहैत रहथि जे, 'बेकार
पाँच बरख डेरा खाली रहल। भूत-भूत कोनो चीज छियै।' ज्ञात भेल रहए जे एक बैंक
मनेजर बंगाली मोसाय डेरा लेल हुनका ओहिठाम चक्कर लगा रहल छथि। बैंक बला सभ के
डेरा लेल किराया सेहो पुण्ट भेटै छै। ई सभ ठाम रेट हाइ कऽ देने छै। सुनै छी ओ एक
हजार तक देबा लेल तैयार छन्हि। तैं ई सभटा रंगताल। चाहैत छथि जे हम कहुना एहिमेसँ
निकलि जाइ तऽ, ओ घाटाके नफामे बदलि लेथि। मुदा एत्ते सस्त आ नीक डेरा कतऽ बेटत
? पाँच सै......छह सै सँ कममे किन्नहुँ नहि भेटि सकैए। 'अच्छा, ओहिना थोड़े छोड़ि देबन्हि
डेरा...?।' हम सोचने रही। मूड खराब भऽ गेल छल। पत्नीके कहलियन्हि, 'आहिरे बा !
आइ तऽ एहि कथा-पुराणमे चाहो-ताहो नहि भेलइ। छोड़ू, सभ ठीक भऽ जेतइ। चाह
बनाउ।' पत्नी चाह बनबऽ लेल स्टोव पजारऽ लागल रहथि।
मुदा श्रीमान। डेरा तँ हमरा छोड़ हि पड़ल। कत्ते दिन झगड़ा झंझटि सहितहुँ।
ताहिपरसँ दिवाकर सिंहजी एकदिन स्पष्ट कहि देलन्हि, अहाँ डेराक किराया बढ़ाउ आब लोक
सभ हमरा एकर भाड़ा एक हजार तक देबा लेल तैयार अछि। एक हजार पर रहबाक अछि तऽ
रहू अन्याथा डेरा खाली कऽ दिअऽ। कतबो हुनकर अनुनय-विनय कएल। भूताह डेराक गप्प
मोन पाड़लियन्हि। मुदा धनिसन। ओ एक्केठाम अड़ि गेलाह। डेरा खाली कऽ दिअऽ। भूत
- तूत मनबा लेल आब ओ तैयार नहि छलाह। कहुना हम एक मासक समय लेल मोनमे क्रोध
बड़ भेल। ई अर्थ पिशाच लोक ! खाली टाकाके देखता। लोभक पराकाष्ठा भऽ गेलए। मुदा
एहि पिशाच संग कोना लड़ि सकैत छी ? एक मोन भेल जे जाइ एस डी ओ. ओहिठाम रेन्ट
कन्ट्रोल लेल मोकदमा करी। दिवाकर सिंहजी संग झगड़ा झंझटि बेसाही। पुलिस-थाना होइ।
अन्यायक विरोधमे डाँड़मे गमछा बान्हि किराएदार सभक एक संघ बनाबी आ जिन्दाबाद-
मुर्दाबाद करी। जे हेतै से देखल जेतै। मुदा हम सरकारी कर्मचारी होइतो सरकारसँ कोनो
सहायता भेटबाक मामिलामे संदिग्ध छलहुँ। एस. डी. ओ. साहबसँ थानाक पुलिस तक के
दिवाकर सिंहजी खरीद सकैत छलाह। राजनीतिक लोक छथि से पैरबीमे बड़का-बड़का के
उतारि सकैत छलाह। कोनो मामिलामे फँसाकऽ हमरे डाँड़मे रस्सा बन्हबा सकैत छलाह। एत्ते
धौजनि लेल हम तैयार नहि रही। एहि तरहक कोनो सस्कारी नहि छल तैं पिशाच संग
पिशाचे बनब उचित बूझल। आर हम नाटक पसारि देल। हमरा मृणालिनीक भूत देहपर
आबऽ लागल। नेनामे मौगीक पाठ खेलाइत रही से काज देलक। अगल-बगल बलाकें
विचित्र-किचित्र स्वर सुनाइ दिअऽ लगलै। वर्माजीकें कोठलीमे सिनूर टुकली, एक लच्छा
मौगियाही केश भेटलन्हि। मूलचन्द सेठके कोठलीमे ढेपा खसऽ लगलै। समूचा सोरहो भऽ
गेल जे मृणालिनीक भूत फेरो घूमि कऽ चल आएल अछि। एहि प्रचारमे हमर मित्र सेहो हमरा
पूरा संग देलन्हि। पत्नी सेहो स्त्री गण समाजमे विभिन्न गप्प पसारलन्हि। आ एक दिन
हमसभ ओ भूताह डेरा छोड़ि देलहुँ मिरचाइ बाड़ीमे चार सयमे एकटा नीक डेरा प्रयाससँ भेटि
गेल। मुदा ओ बंगाली मोशाय डरें ओहि डेरामे नहिएँ अएलाह। हुनका तीनटा जवान बेटी
छलन्हि। फेरसँ दिवाकर सिंहजीक ओहि फ्लैटमे ताला लागि गेल रहन्हि...।
पलास्टी के खेलौना
रमेश
ई कथा आइ - काल्हिक कोनो एकटा शहरी दम्पत्ती आ तकर पुत्रक कथा भऽ सकैए।
तें एकटा अन्य दम्पत्तिक ई कथा अपनेपर हम घटित देखा रहल छी।
हँ, तँ ओइ दम्पत्तिक अर्थात हमरा सभक ओ एकमात्र कल्पित पुत्र अर्थात पप्पू, परम
जिद्दी, स्वभावें चंचल पढ़बामे तेज आ एकटा कोनो सामान्य बच्चाक गुणावगुणसँ युक्त अपन
पाँचम वसन्त भोगि चुकल अछि आ कमलाक पांक परहक लहलहाइत खेसारी जकाँ लहलहा
रहल अछि। पानिसँ कन-कन करैत।
मुदा पप्पूक माय हरदम ओकरा पीठ पर तैयारे रहैत छथिन। एकदमसँ अँखिमुन्ना
समर्थक। ओ किछु करय, हमरा कोनो सजाय देबऽ नहि देतीह या ओहिनाक ओहिना बचा
लेथिन.
टी. भी. प्रेमी पप्पू भीषण किरकेट-प्रेमी आ फिलिम-प्रेमी अछि। से ओकर मायो छथिन
तकर तहिना प्रेमी जखन कि हमर ई स्पष्ट धारणा अछि जे सिलेमा-टी.भी. किरकेट अपना
देशक कतेक क्षति केलक अछि।
से नहि कहि। अनेक पीढ़ीकें ई विकृत आ पथभ्रष्ट कऽ देलक अछि। लोककें अहदी बना
देलक अछि। लोक काज छोड़िकऽ टी.भी. - रेड्डी लग बैसल रहैए।
से पप्पू सिलेमा देखैत-देखैत ततेक ने ढ़िसुंग-ढ़ासुंग सीखि लेलक अछि, जे किछु कहै
के नहि। पप्पूक मायोकें नीक लगैत छनि जे बच्चा फड़हड़ भऽ रहल अछि। ओ हमरा दिस
मुक्का तानि ओकरा सिखबैत छथिन-पापाजीके ढ़िसुंग ढ़िसुंग कर तऽ बेटा।
प्रत्युत्तरमे पप्पू हमरा पेटमे मुक्का सटाकऽ बजैए - घिसुंग - घिसुंग ! पापाजी, धिसुंग
!
हम सोचैत छी जे हमरा हँसबाक चाही कि तमसेबाक चाही ? तहिना किरकेट आफद
कऽ देने अछि। दू बजे रातिमे निसभेर पड़ल रही एकदिन, कि पप्पू चिचिआयल-आउत दैत !
नै - नै छक्का । मर तोरी भालाके ! ई किरकेटो अजब बेल अछि।
तहिना सिलेमोक परभाव देखू। पप्पूक माय पुछथिन-बेटा ! प्रेम चोपड़ा केना पेस्तौल
मारै छै जितेन्दर के ? पप्पू अपन दहिना हाथके पेस्तौलक आकारमे बनाकऽ आगू बढ़बैए आ
हमरा छातीमे सटाकऽ बजैए-धाँइ। हम हतप्रभ रहि जाइत छी। हमरा कनियाँसँ कहऽ पड़ैए -
एहने संस्कारसँ क्यो बच्चा गुण्डा बनि जाइ छै। ई की सिखबै छिऐक अहाँ एकरा ? हम
मजाक आ व्यंग्यसँ कहैत छियनि - नाम तँ एकर पप्पू छैके। एना सिखेबै तऽ कही पप्पू यादव
बनि कऽ कोनो सिपाहीक मोंछ ने उखाड़ि लिअ !
एहि परहँसिकऽ कनियाँ ओकरा उसकबैत छथिन-बेटा , पापाजीक मोंछ उखाड़ तऽ !
कि पप्पू हमरा लग आबि कऽ हमर मोछ उखड़बाक अभिनय करऽ लगैए। हमरा आब आँखि
कड़ा करब आवश्यक बुझाइ ए। हमर आँखि कड़ा कयलापर कनियाँ कठहँसी - हँसिकऽ बजैत
छथि - चलि आ पप्पू, चलि आ। छोड़ि दहुन। हिनका अपनो सन्तानसँ खेलायब-घुपायब नहि
नीक लगै छनि। आ पप्पू हुनका लग चलि अबैत छनि।
ओ कहैत छथि - अच्छा ई कहू, पेस्तौल चलोनिहार खाली गुण्डे - बदमाश तऽ नहि
होइ छै, पुलिसो तऽ बनै छै। आ जँ हमर बेटा एस. पी., डी. एस. पी. बनय तखन ?
दुनूमे कोनो अन्तर नहि-हम बजैत छी-एकटा वर्दी पहिरिकऽ सरकारी आतंकवादी
बनऐए आ दोसर वर्दीहीन प्राइवेट आतंकवादी जनसामान्यक लेल कोन अन्तर छै दूनूमे ?
लोक तँ दुनूक शिकारे बनैए - रक्षक आ भक्षक - दुनूक। तें हमर बेटा खाली मनुक्ख बनय
मनुक्ख, से हम चाहब। ओ तैयो हमरासँ असहमत होइत चुप भऽ जाइत छथि आ हम अपन
ध्यान टी. भी. दिस घुमबैत छी जकर पर्दा पर एएखन गोदइ महराजक तबला आ पं0
रविशंकरक सितारवादनक युगलबन्दी चलि रहल अछि।
हम लीन भऽ जाइत छी कार्यक्रममे आ सोचैत छी जे कतऽ ई कार्यक्रम आ कतऽ
बम्बैया मसल्लाबला सिलेमाक ढ़िसुंग - ढ़िसुंग आ छूरा - पेस्तौल ? हम लक्ष्य करैत छी जे
कनियाँ उठिकऽ तरकारी काटऽ चलि जाइत छथि आ पप्पू बैसल बैसल ओंघाय लगैए। हम
फेर सोचै छी-पप्पू, जे काल्हुक भविष्य थिक - हमरो सभक आ देसोक-तकर रुझान कला -
संस्कृति दिस कतेक छैक आ ढ़िसुंग-ढ़िसुंग दिस कतेक ? मुदा तहिमे पप्पूक कोन दोष ?
कनियेंक दिशा - निर्देश कतेक दायित्वपूर्ण आ कल्याणकारी छनि ? हमरा सनक लोक कतेक
प्रासंगिक रहि गेल-ए समाजमे ? हम इहो सोचबा लेल बाध्य छी जे लाखो पप्पूक अपराधवृत्ति
दिसक ई रुझान देसकें अन्ततोगत्वा कतऽ लऽ जायत ?
आ हमर आर सोचबाक क्रम तबला-सितारक युगलबन्दीक चरम तार-सप्तकमे विलीन
भऽ जाइ-ए। ठीक तीन दिनक बाद। दुर्गापूजाक अष्टमीक मेला धूमऽ हम तीनू परानी विदा
होइत छी।
पहिने लक्ष्मीसागरक दुर्गा-मंदिर जाइत छी आ भगवतीक दर्शनोपरान्त प्रसाद लऽ घुमैत
छी। आब विचार अछि आगू कटहरबाड़ी आ भण्डार चौक दिस बढ़बाक । आइ टावर दिस
सजावटि देखबाक आ घूमि लेबाक विचार कऽ कऽ चलल छी।
मुदा सूर्ज लुकझुक कऽ रहल छथि आ राति कऽ मेला - ठेलामे घूमब हमरा असुरक्षाक
कारणें पसिन्न नहि अछि। कनियाँ पप्पूक आंगुर पकड़ने चलि रहलि छथि। ता पप्पू एकटा
खेलौनावला लग जा कऽ ठाढ़ भऽ जाइ-ए तऽ ओकरा संग हमहुँ सब ठाढ़ भऽ जाइ छी।
हमर नजरि एकटा लपास्टिकबला खेलौना पर पड़ैए। ठीक पं0 रविशंकरक सितार
जकाँ पलास्टिकके सितार। एह ! सुन्दर जे अछि ओकर तानल-तानल तार सभ? तुन-तुन-
तुनक-तुनक बजैए। वाह ! अद्भुत खेलौना मोन-मोहऽ बला। हम खेलौनाबलासँ लऽ लैत छी
आ पप्पूक हाथमे दऽ कऽ पुछैत छियैक-लेबऽ बेटा ? देखहक कतेक सुन्दर छैक ? कतेक
दाम छह एकर हौ ? - हम खेलौनाबलासँ पुछलिऐक।
पन्द्रह रुपैया सर ! --- ओ बाजल।
कनियाँ उदासीन भावें देखैत रहलीह।
ता पप्पू फदाकसँ सितार हमरा हाथमे धरा कऽ खेलौना सभक बीचसँ एकटा पलास्टिक
के पेस्तौल उठा लैत अछि आ ओकरा कौतुकपूर्वक उनटा-पुनटा कऽ देकऽ लगै-ए। कखनो
ओकर घोड़ा पर हाथ दैए आ कखनो ओकर नालकें छुबैए। पप्पूक माय एक बेर कनेक
मुसकिआइत छथिन आ फेर गंभीर भऽ जाइत छथि। हुनका भरिसक हमर विचार मोन पड़ि
जाइत छनि-धुः ई की लेहब ? सितार देखहक कतेक सुन्दर छैक ?
मुदा पप्पू जिद्द धऽ लैत अछि आ ठुनकाऽ लगैत अछि।
कनियाँ ओकरा हाथसँ पेस्तौल छीनि खेलौनाबलाकें दऽ दैत छथिन। आ पप्पूक गट्टा
पकड़ि आगू मुँहें झीकऽ लगैत छथिन।
हमरा परिस्थितिक गम्भीरताक आभास होइ-ए आ कहीं तमाशा ने बनि जाइ, से सोचि
हम पलास्टिकबला सितार खेलौनाबलाक हाथमे दऽ दैत छिऐक आ ओकरासँ पलास्टिकबला
पेस्तौल लऽ कऽ पप्पूक हाथमे धरा दैत छिऐक।
पप्पू चुप भऽ जाइ-ए।
हम खेलौनाबलाकें पाइ दऽ कऽ चलबा लेल अग्रसर होइत छी तँ देखैत छी जे पप्पू
अपना माय दिस पेस्तौल तानिकऽ घोड़ा दबा दैत अछि आ बजैए-माँ-माँ ! प्रेम चोपला थांई !
ओतय ठाढ़ लोक सभ हँसय लगैए।
हमरा बुझाइए-जेना प्रेम चोपड़ा, सितार बजबैत पं0 रविशंकरक गतिमन आङुर पर
टिका कऽ पेस्तौल दागि देने होनि। सितारक तार सभ खण्डी - खण्डी भऽ कऽ उड़ि गेल
होइक आ हुनकर आङुरसँ छर-छर सोनित बहऽ लागल होनि....।
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लघुकथा / उकस-पाकस / सुस्मिता पाठक
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ओ बहुत दिनक बाद अपन भाइक घर जा रहल छल। भाइसँ बेसी बच्चा सभसँ भेंट
करबाक आतुरता रहय। भीतरम अजरुा स्नेहक संग ओ अन्ततः पहुँचिए गेल ओतय।
बच्चा लग आयल। नमस्कार कयलक आ एक कात ठाढ़ भऽ गेल ओकर बाँहि उकस
- पाकस करय लगलै। ओ ओकरा कोरामे लऽ लेबाक लेल उताहुल भेल, बढ़ल।
'हाउ डर्टी.... ।' छोट सन बच्चा बाजल आ चलि देलक।
कतबहि बला कोठरीसँ भाइक संक्षिप्त स्वर अभरलै --- 'पहिने नहा धो ले ।' ओ
संकुचित भऽ उठल। साँझक गाड़ीसँ ओ घूरि आयल।
विदा होइत काल बच्चा फेर आयल, नमस्कार कयलक, ठाढ़ रहल। एखन ओकरा
कोरामे लेबाक लेल ओकरा कोरामे लेबाक लेल ओकर बाँहि उकस - पाकस नहि कऽ रहल
छलै।
लड़ाइ
शिवशंकर श्रीनिवास
चौरी बाधक कुनमा पीपरक गाछ। जेहने घनगर तेहने झमटगर। ओ पीपरक गाछ
शीतल बसातकें जेना पजिया कऽ रखने छल। केहनो कतौसँ झड़कल आउ, एकर छाहरि तर
अबिते मोन हरियर। हिमालय हिमाल। ओइ दिन झंझारपुरसँ अबैत रही। बड़ कड़गर रौद
रहैक। घामे नहा गेल रही। ओइ दिन बड़ दुरुह छलै बाट चलनाइ, मुदा 'कहुना पीपर तर
छहड़ायब' यैह मोनक बात रस्ता कटा देलक। लगीच अयलहुँ तऽ आर पैर झटकारैत आगू
बढ़लहुँ। अहा ! गाछतर पहुँचिते जेना एक्केबेर शीतलतासँ नहा गेलहुँ। जेना नव जीवन
आबि गेल। पीपरक ठाम-ठीम उगलाहा मोटका सिर ताकिकऽ बैसलहुँ।
छाहरितर एकटा आरो अधवयसू पहिनेसँ सुस्ताइत छलाह। कने दूरपर हऽर पालोक
भरे कन्हियाकऽ ठाढ़ कयल रहैक। पेना अधवयसूक हाथमे रहनि। बरदकें नहि देखलियै।
बरद प्रायः गाम दिस बहटि गेल छलैक। आगूमे हऽर, हाथमे पेना आ घुरिआयल हाथ - पैर
देखि बुझना गेल कतौ लगीचेक कोलामे जोतिकऽ सुस्ता रहलाहे, परन्तु के एहन भऽ सकैत
छथि जकर ई हरवाहि कयलनि अछि ? हमरा गामक तँ ई थिकाह नहि। आन गामक एको
बीत एहि बाधमे नहि पड़ैत छैक। तखन ? तखन भऽ सकैए ककरो पाहुन हेथिन।
एक - दू दिन हेतु सम्हारऽ आयल होयथिन। जनबाक इच्छा भेल तँ पुछलियनि- 'अहाँक घर
कतऽ अछि ?
एही गाम। हुनक विहुँसी संग संक्षिपित उत्तर छल।
एही गाम ! हमरा हुनक एहन उत्तर पर आश्चर्य लागल। अपन गामक लोककें हम
नहि चिन्हबैक ! ओना हुनक बिहुँसीसँ लागल रहय जे ई किछु नुकबैत कहि रहलाहे, किंतु
एहिमे किछु नुकेबाक कोन बात भेलै ! पुनः हुनका पूछलियनि-अहाँ हमरा चिन्है छी ?
पहिले तँ नहि चिन्हैत रही, मुदा आब चिन्हैत छी। अपने मास्टर साहेब छियै ने ? ओ
अधवयसू उत्साहक संग बजलाह।
हमरा हुनक एहन उत्तरसँ लाज जकाँ भऽ गेल । खु तोरी कऽ, हमरा चिन्हैत छथि आ
हम नहि चिन्हैत छियनि ! हम पुनः दोसर तरहें पुछलियनि --- पहिने कतऽ रहैत रही अहाँ ?
एहिबेर हुनक मुँह दोसरे रंग भऽ गेलनि। हमरा हुनक मुँहसँ लागल जे इहो कतौ हमरे
जकाँ लजा रहलाहे।
किंतु संयोग नीक रहइ। दक्षिणसँ आरि धेने देखलियैक चन्दू भाइकें चल अबैत। चन्दू
भाइ हमर बालसखा गृहस्थ लोक। खेती बाड़ीमे भीड़ल। बूझू हमरासँ बेसी गमैया। ओ हमर
गप सुनिते आयल। ओ अबिते कहलक-महेन्द्र हिनका नहि चिन्हैत छहुन ? अरे, ई मेंहथक
थिकाह। दुसधटोलीक राधे पासवानक समधि छथिन। आब अपने गामक बसिन्दा भऽ गेलाहे।
अपन गाम ई छोड़ि देलनि ?
हँ हउ, आब तऽ कते दिन भेलनि। पहिने समधियेक परिवारमे रहैत छलाह। आब
अपने नब्बी पोखरिक महार पर घर बन्हलनि। चन्दू भाइक गपसँ मोन पड़ल। चारिम दिन
साँझमे पैटघाटसँ अबैत रही तऽ बड़क गाछतर किछु गोटयकें देखलिये अपनामें गुदुर - गुदुर
करैत। बजैत रहै - दुसधटोलीक लोक सभ एकटा बहरबैयाक घर नब्बी पोखरिक महार पर
चढ़ा रहलैए। ताहि पर केओ जोरसँ बाजल रहय--आन गामक लोक एना हमरा गाम आबि घर
बान्हय, ई जुलुम बात छी। हमरा ओकरा लोकनिक गप पर कान ठाढ़ भेल। बूझबाक
उत्सुकतो भेल मुदा चुपे रहलहुँ। मोनमे भेल जे दुसध टोलीक लोक जखन घर बन्है-ए तँ के
रोकैतै ? हँ तेलियानीक जँ केओ एना सुरफुराइत तँ किछु झमेला होइत। तेलियानीमे केओ
सुरेबगर समांग कहाँ छै, परन्तु दुसधटोली गोठगरो अछि आ लठिहरौ। छड़ेछाँट जुआन सभ
छै। ओकरा सभसँ के आरा लेतै ? ताहूमे केओ घर विहीने ने घर बनबैत हेतै ? सेहो आम
जमीन पर। यैह सभ सोचैत बढ़ि गेल रही। थोड़बे दूर आयल हैब कि रमेशजी भेटि गेलाह।
हुनका संग चलैत साहित्यिक चर्चा-वर्चामे लागि गेलहुँ। ई सभ एकदम्मे माथसँ उतरि गेल
रहय।
अच्छा हिनके घर नब्बी पोखरिक महार पर बान्हल गेलनिहें। वाह ! हमरा गाममे
एकटा घरक संख्या बढ़ल। -- हम औपचारिकतामे बजलहुँ। तइ पर ओ अधवयसू विहुँसैत
कहलनि -- हँ, एही गामक लोक भऽ गेलियै हम। तें अहूँकें कहलहुँ जे हम एही गाम रहैत
छी।
किंतु हमरा उत्सुकता भेल जे ई अपन गाम किएक छोड़लनि ? अपन गाम जे एतेक
प्रिय होइत छैक
ओ लोक आनन-फानन मे किएक छोड़त ? तखन बात किछु तेहन भेल हेतै, परन्तु की भेल
हेतै ? एहू युगमे लोक अपन गाम छोड़ि कऽ भागि जायत ! फेर अपने मोनमे भेल जे एखन
गामकें के कहय लोक देशो छोड़ि भगै-ए। परन्तु सामान्य स्थितिमे तँ एखन लोक गामसँ शहर
भगै-ए। गामसँ गाम नहि जाइए। हम पुछि देलियनि--अहाँ अपन गाम किएक छोड़लहुँ ?
हमर जिज्ञासा पर ओ कने अतरेलाह मुदा चन्दू भाइक संग ओ बेसी घुलल-मिलल छलाह। ओ
जखन थोड़े उत्साहित कयलकनि, तखन कहऽ लगलाह भाइसाहेब, बाते तेहने भेलै जे गाम
छोड़ि भागऽ पड़लै। बात छै जे हम जइ गाममे छलियै ओ गदाल बस्ती छै। बारहो बरण बसै
छै ओइ गाममे। आन वरण सभ जेरगर मुदा हम एकहि घर। हमर बाबा ओइ गाम आयल
रहथिन। तहियासँ एक पुरुखिये वंश चल अबै छै। बाबा आ हमर बाउ एक्के-एक्के भाइ,
हमहुँ टुंगरिये बाउकें भेलियनि। हमरा भगवानक कृपासँ चारिटा फूल। दू टा नन्हकिरबी आ
दू टा नन्हकिरबा। नन्हकिरबिये सभ जेठि। तइमे जेठकीक बियाह वाजितपुर आ छोटकी
कन्किरबीक एही गाम वैह राधे पासवानक जेठका देवन पासवान हमर जमाय भेलाह। से कहै
छी मास्साहेब, हमर बाउ फूदन यादव ओइ जग खटथि। हमहूँ ओकरे ओइ जग खटैत
रहलियै। इम्हर दूनू छौंड़ा स्कूल जाइ छलै। तइमे एकटा मिसरजी मास्टर अयलथिन। ओ
दूनू कन्टिरबाकें ततेक ने मानथिन जे कहै छी दूनूक चन्स जागि गेले। खूब मोनसँ पढ़ऽ
लगलै। हमरा मोन खुशी भेल। अपने नै पढ़लियै तऽ छौड़ा सभ तँ पढ़ै छै। आ कि देखियौ
एक दिन फूदन कहैए अपन दूनू छौड़ा के हमरा ओइ जग गाय महींसमे लगा दहक ने। हम
बात अनठा देलियै। फेर कहलक। हम कहलियै - ओ सभ पढ़ै छै, ओ सभ गाय-महंस कोना
चरेतए। एक पेट खाइ लेल जिनगी खराब करतै। अइ पर कने फूदनक बेटासँ रोबा-रोबी
सेहो भऽ गेल। ओ खूबे तरक-भरक देखौलक। मुदा हम बात नहिये मानलियै। बात कोना
मानतियै ! आब मूर्खक जमाना छै। यैह दूनू पैघ हैत तऽ हमरा दोख लगायत जे बाबू नहि
पढ़ौलक। सभ गाममे आब बारहो-वरणक धिया पुता पढ़ै छै फूदन नहि मानय। एक दिन
फुदन दूनू छौड़ा के पकड़ने जाइ छलै। छौड़ा सभ बपहारि काटऽ लगलै। हम दौड़िकऽ
दूनूकें पकड़ि लेलियै। ओहीमे कने झिका झोड़ी भऽ गेलै। तकर बाद ओ सभ तऽ हमरा लेल
करियानाग भऽ गेल। कएटा उकवा हमरा पर उठबऽ लागल । हमहुँ कहै छी तनि गेलियै।
एकदिन सभ घर पैसिकऽ बालेबच्चे पिट-पिटा देलक। हमहुँ एक-दू गोटयकें मारलियै।
एकदिन सभ घर पैसिकऽ बाले-बच्चा पिट-पिटा देलक। हमहुँ एक-दू गोटयकें मारलियै। मुदा
ओते लाठीक बीच ई दू टा हाथ की करितइ ? बड़ मारि मारलक। मुइलहुँ नहि बचि गेलहुँ
सैह। हम थानामे केस केलियै, परन्तु सभ ओकरे। जखने ओकरा लग पाइ रहै तखने सभ
ओकरे। मुखिया ओकरे सरपंच ओकरे आ थाना ओकरे। हम बड़े लोककें कहलियै, मुदा हमर
केओ नहि भेलै। सरपंच आ मुखिया सभटा बात बुझै छलै, मुदा हम कएटा भोट देतियैक ?
आ, ओ सभ बिगड़ि जइतइ तँ बूथे लूटि लैतइ। बड़ गोठगर ने छै ओ सभ। से कहै छी,
सरपंच आ मुखिया दूनू थानाक बड़ा बाबूकें हमरा दऽ कहलकै जे मारू रमबिलसबाकें, बड़
लंगट अइ। एक दिन कहै छी रातिमे फूदन ओइ जग पाटी रहइ। खूबे कचरइ गेल आ
भिनसरे आबि कऽ दू टा पुलिसबा हमरा धऽ लेलक। थाना पर लऽ गेल। बड़ मारि मारलक
ओतऽ। चारि दिन तँ हाजतिमे रखलक, तकर बाद छोड़लक। अबैत काल बड़ाबाबू कहलक -
- जो फूदन बाबूके हीयाँ ठीकसँ काम करिही गऽ। तोरा तऽ साला जेलमे सरा दैतियौ। फूदन
बाबू बचा लेलकौ। हम फूदनक चलाकी बुझलियै। मोन तँ आर लहरि गेल। गाम पर एक दू
दिन रहलियै। बड़े विचारलियै। गाम हमरा लेल रहै जोग नहि लागल। दूइए टा उपाय रहै।
खाहे तऽ ओ जे कहय से करैत जाउ वा मारि करु, मारि खाउ। ताहीमे कहियो मरि जाउ।
की करितिअइ ? दिनकें गामसँ कतौ निकलऽ नहि दैतइ। मुदा निकलब आवश्यक छलै ओइ
पिजड़ासँ। तें रातिक सभ सामान लऽ बालेबच्चे भागि गेलियै। छौड़ा सभकें महिसबारिमे लगा
दैतियै, से हमरासँ नहि भेलै। अपने जे दुख भोगलियै से अपन सन्तानकें कोना भोगऽ
दैतियैक....?
अवश्य....अवश्य....। हमरा सहजहिं कहना गेल। अपने जे दुख भोगलियै से अपन
सन्तानकें कोना
भोगऽ दैतियैक। -- हुनक ई बात हमरा नीक लागल, परन्तु हुनक भागि जायब तइयो हमरा
नीक नहि लागल। हम कहलियनि -- अहाँ गामक सभ किछु छोड़िकऽ चल अयलहुँ। की
गाममे अहाँकें किछु सम्पत्ति नहि छल ?
सम्पत्ति ? सम्पत्तिमे एकटा खोपड़ि छल जे एतहु बान्हि लेलियै। कहैत ओ बिहँसलाह
आ पुनः बजलाह-- सम्पत्ति रहितय तऽ ओते दुर्गति होइत !
तथापि हिम्मति करितहुँ। थोड़े जिनगीसँ आर लड़ितहुँ। एनापड़तहुँ नहि...।
पड़तहुँ नहि? ई की कहै छियै ? अहाँ तँ लोककें ज्ञान दै छियै मास्साहेब। हम की
कोनो आन मुलुक भागि कऽ अयलियै-ए। अपने मुलुकमे ने छियै। मास्साहेब हम सभ
रामलीलामे देखने छियै जे सुकरीब बानर बालिक कारणें पर्वत पर भागि कऽ चल गेलै। नै तँ
बालि मारि दैतै, मुदा जखन सुगरीब सामरथ जुटेलकै तखन सभटा राजपाट लऽ लेलकै।
एतऽ हम छौड़ा के पढ़ा रहल छियै। मनुक्ख बना रहल छियै। ओतऽ बाझि जइतियै। दोसर
तरहक लड़ाइ भऽ जइतै। ई लड़ाइ नहि लड़ि सकितियै। ओइ लड़ाइसँ हमरा यैह लड़ाइ
नीमन बुझाइ-ए। की हमर गप बेजाय होइ ?'
हुनक मुख-मण्डल पर पूर्ण दृढ़ताक भाव बुझना गेल।
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लघुकथा / स्पर्श / संजीव तमन्ना
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-------------------- मध्य जूनक गर्मी आ लोकल बसक सफर। कतहु तिल रखबाक जगह
नहि। लगै छल जेना मनुक्ख बोरामे कोंचल अल्हुआ होअए। समयसं पहिनहि स्टैण्ड पहुँचि
जयबाक कारणें नानी आ मामीकें सीटपर बैसा हम दोसर कातक सीटपर बेसि गेलहुँ। मुदा,
ओहो सीट बीचहि रो बला छल। ओहिपरसँ रुकल बसक गर्मी।
लगभग चालीस मिनटक बाद बस खूजल। खिड़कीक दोग-दागसँ कने-कने बसातक
सिसकी बसमे आबऽ लगलै किछु त्राण भेटलै लोककें। हमहुँ निश्चिन्त होयबाक उपक्रम करऽ
लगलहुँ। मुदा तखनहि पीठपर दोसराक अगुरीक कोमल स्पर्शसँ संम्पूर्ण देह सिहरि गेल।
घामसँ भीजल कमीजपर ओ कोमल स्पर्श बड सोहनगर लागल। आँखि खोलि तकबाक
हिम्मति नहि जुटा सकलहुँ - शंका भेल जे कतहु पीठपरसँ हाथ खिंचा नहि जाय। देहकें
आओर निसुआ देलियै। ओ कोमल स्पर्श रहि - रहि पीठकें गुदगुदाबऽ लागल। रोम-रोम
रोमांचित भऽ उठल छल। मोनमे नाना तरहक विचार घुमड़य लागल। अनेक तरहक कल्पना
करऽ
लगलहुँ -गमक अल्हड युवतीसँ लऽ फिल्मी हीरोइन धरिक छवि दिमागमे घूमऽ लागल।
सोलहसँ बीस सालक मध्यवला कल्पना बेसी तर धरि पैसि गेल छल। मुँह आ कनपट्टी
अनचीन्ह आवेशसँ लाल भऽ गेल छल। सांस रुकि-रुकिकें आबैत छल मुदा, छाती बड़ जोर -
जोरसँ धक-धक करैत छल गर सूखि गेल छल। जीह ब्लोटिंग पेपर जकाँ सभटा पानि सोखि
लेने छल। मानसिक असन्तुलन अपन चरम पर छल। मुदा ओ स्पर्श आरो बढ़ले जाइत छल।
आब ओ पीठक सीमा टपि गरदनि आ कान्हपर लटकल केश धरि पहुँचि गेल छल। बर्दास्तसँ
। बेसी भेलाक उपरान्त मन मस्तिष्ककें आन्दोलित करऽ बला हाथ आ मुखड़ाकें देखबाक
लोभक सँवरण नहि कऽ सकलहुँ। हम अप्पन मातल आँखि खोलि हल्लुकेसँ मूड़ी घुमा ओकरा
दिस तकलियै। मुदा ओकरापर नजरि पड़िते हमर कल्पनाक नवनिर्मित महल ढ़नमना गेल -
भावनाक जतेक तरंग उठल छल
एकाएक ध्वस्त भऽ गेल। अपनापर ग्लानिक संग तामसी उठल, लगभग आधा मिनट धरि
देहपरसँ हाथ हटा ओहो हमरा निहारैत रहल फेर एक्के बेर पूछि देलक-तिया हुआ अंतल ?'
नहि जानि ओकर ई गप्प सुनिते ओहि क्षण हमरा कतयसँ एतेक तामस उठि गेल आ बड़
जोड़सँ ओकरा डाँटि देलियै--'चुप्प'। पाँच-छः सालक ओ नेना बालिका डरसँ अपन माइक
कोंचामे सहटि गेल, मुदा सभ पैसेन्जरक नजरि हमरापर केन्द्रित भऽ गेल।
अखबारी सत्य
अशोक अशु
भकोभन्न अन्हरिया राति। एकटा भयानक दर्घटनासँ पड़ाकऽ आयल पिता-पुत्र एकटा
कोठरीमे भयभीत भेल बैसल छल। तखने एकटा धमाका भेल। हल्ला भेल। फेर मानव-
समूहक समवेत करुण चीत्कार। दिशा कांपि उठल, हल्ला बढ़ैत गेल। चीत्कार। बढ़ैत गेल।
दूर, आगिक लपट उठय लागल, अन्हारक कोखिसँ।
पिता बाजल-खिड़की-केबाड़ बन्न कऽ दहक। फसादी सभ आबि सकैत अछि।
पुत्र उतारा देलकै-फसादी सभ केबाड़ सेहो तोड़ि सकैत अछि, पापा।
हँ संभव अछि। मुदा केबाड़ खूजल राखि ओकरा सभकें नोतब तँ जरुरी नहि ने छैक
- पिता खौंझाइत बजलाह।
पुत्र उठल। नहुँ - नहुँ चलैत केबाड़ी बन्न कऽ देलक। घुरिकऽ बैसऽ चाहिते छल कि
पिता चेतौलकै - खिड़की सेहो बन्न कऽ देहक, बेटा।
पुत्र आपत्ति कयलकै-औना जायब पापा। ओहिनो एहन गरमीमे बिना पंखाक....
पिता पुनः खौझाकऽ कहलकै-बहस जुनि कर। औनायब मरनाइसँ तँ नीके अछि ने।
किछु नहि हैब सँ नीक छै किछु हैब। ओहिनो दस पाँच मिनटमे हमरा सभ मरि नहि जायब।
एहि बीच संभव अछि जे ई ज्ञात भऽ जाय जे आखिर की भेलैक अछि शहरमे ?
पुत्र अनिच्छासँ उठल। खिड़की बन्न कयलक। घुरिकऽ चौकीपर बैसि गेल। स्पष्ट
छल ओ #ेहि दहशतिसँ आजिज भऽ गेल छल आ कायरतासँ जीबाक दर्शन ओकरा किन्नहु
पसिन्न नहि छलै।
किछुएक क्षण बीतल होयत कि दरबज्जा पर ठक-ठक भेलै। एकटा घबरायल स्वर
अभरल-प्लीज, दरबज्जा खोलू। जल्दी, प्लीज।
पिता-पुत्र दुनू चौचंक भऽ ठाढ़ भेल। पुत्र दरबज्जा दिस बढ़ल कि पिता हाथ पकड़ि
ओकरा अपना दिस घिचलकै - खबरदार, केबाड़ नहि खोलू। फसादी सभ भऽ सकैछ। तखने
ठकठकीक संग एकटा नारी
स्वर सेहो अभरलै-प्लीज जल्दी करु। हमसभ मुसीबतमे घेरायल छी। कृपा करू, प्लीज।
पिता-पुत्र दुनूक आँखि टकरायल। नारी स्वरक कारणें आ•ास्त भेल पिता मूक
स्वीकृति देलकै। पुत्र आगाँ बढ़ि केबाड़ खोलि देलकै। ओ दुनू देजीसँ भीतर आबि केबाड़ बन्न
कऽ लेलक। एकटा युवक छल, गोट तीसेक बर्खक आ एकटा युवती गोट पचीसेक। दुनूक
हाथमे एक-एकटा झोरा।
पिता पुछलकै--की भेलै ए शहरमे ?
युवक बाजल--एकटा बम बिस्फोट भेलै आ बस्तीमे आगि लागि गेलैक अछि। हमसब
ओम्हरे रहै छी। आगि देखि एम्हर भगलहुँ। नहि जानि कोम्हरसँ फसादी सब आबि जाइ।
बाहर हो-हल्ला बढ़िए रहल छल आ निकट आबि रहल छल। पुलिस साइरनक स्वर
सेहो निकट होइत जाइत छल। पुत्र खिड़की खोलि बाहर देखय चाहलक कि आगंतुक युवक
चिकरलै-खबरदार, खिड़की नहि खोलू। युवकक खौंझपर पिता जतय चिन्तित भेल, पुत्रकें
तामस उठलै, बाजल-जँ अहींसभ जकाँ केओ फँसल हो तँ की...तखने, दरबज्जापर ठकठक
होमऽ लगलै आ दरबज्जा खोलू'क अनेको स्वर अभरलै।
युवक झोरासँ रिवाल्वर बहार कयलक आ पिता-पुत्र दुनूकें कवर करैत बाजल- 'अहाँ
सभ हिलब नहि। अपन साथिन दिस तकैत ओकरा आदेश देलकै-मिस बिजलानी, धीरेसँ
खिड़की खोलि भीड़पर बम फेकि दियो। भीड़ छँटि जायत तँ हमसब दोसर शरणस्थल ताकि
लेब।
नहि, तों सभ एना नहि कऽ सकै छह। पुत्र आगाँ बढ़ि बिजलानीकें रोकऽ चाहलकै कि
युवक ओकरा पर गोली दागि देलकै। ओम्हर बिजलानी खिड़कीसँ बाहर बम फेकि चुकल
छलीह। पिता चिकरि कऽ बजलाह-हत्यारा। आ युवक दिस झपटलाह। दोसर गोली छुटलै
आ ओ ठामे रहि गेलाह। युवक पिता पुत्र दुनूक हाथमे एक-एक टा रिवाल्वर धरा देलकै।
बाहर चीख चीत्कार मचल छल। केबाड़ी खूजल। दुनू आकृति बाहर गेल। कनेकाल बाद
पुलिस आयल । बमसँ घायल आ मृतक सभक बीचसँ पुलिस रस्ता बनबैत कोठरीमे आयल।
पिता-पुत्र दुनू हाथमे पिस्तौल धयने मरल पड़ल छल।
दोसर दिन अखबारक प्रथम पृष्ठ पर छपल-दो आतंकवादी पुलिस - मुस्तैदी के कारण
आत्महत्या करने पर बाध्य।' रातिक बम विस्फोट आ अगिलग्गी आदिक विस्तारसँ व्यौरा छल।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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