भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Wednesday, October 28, 2009

शब्द-विचार 3

छक अविरोधपूर्वक अन्युक्रियासँ दबब अर्थमे रूपलाल फुल तोड़बामे सोनेलालसँ छकलाह-जीतल गेलाह।
ठक परतारब, वञ्चना। ठक बुड्बिककेँ ठकैतअछि- ओकर वस्तुड लए लेबाक हेतु भ्रम उत्प्त्र करबैत अछि।
डक अपन उत्क ट गन्ध क प्रसारण । हीँगु डकैत अछि-अपन तीव्र गन्क्ा प्रसार करैत अछि।
ढक मिथ्याड अपन अतिप्रशंसा करब। जयलाल ढकैत छथि-अपन मिथ्याग अति प्रशंसा बजैत छथि।
बक अश्रव्यश बहुत बाजब। जयलाल बकैत छथि- नहि सुनबाक योग्यक कथा बहुत बजैत छथि।
मक हर्षसँ मालक धावनक्रीड़ा। बाछा मकैत अछि, लीलसँ एमहर ओमहर दौडि़ रहल अछि।
सक क्षम होएब। भोलबा बजैत छथि।
छिक छिक्का अकृत्रिम नासिकाशब्दत। यात्राकाल केओ छीकए नहि, छिक्काि नहि करए- अर्थात् अकृत्रिम नासिका शब्दक नहि करए।
ठिक जोड़ब, संकलन। खर्च ठीकल- जोड़ल।
डिक अधिकक अँटकब। ई जगह गहीँड़ अछि तेँ एहिठाम पानि डिकल अछि-अधिक अँटकल अछि।
ढुक हठात् प्रवेश। सावधन रहू जे केओ मन्दिर नहि ढूकए- बलात् पैसए नहि। ठोकलासँ काठमे काँटी ढुकैत अछि।
फुक फूत्क रण, मुखोत्पाादित वायुसँ संयोजन। आगिकेँ फूकू-मुखसँ उत्पाोदित वायुसँ संयुक्त करू तखन पजरत, प्रज्व्ि लित होएत।
बुक मेही वूर्ण करब। मरीच बूकि- मे‍हीँ चूर्ण कए तीनमे दिऔक । हददिक बुकनी दालिमे दिऔक।
भुक कुकुर-गिदड़क बाजब। कुकुर रातिकेँ चोरकेँ देखि भुकैत अछि- गदिड़ रातिकेँ पहर 2 पर भुकैत अछि।
रुक निवृत्ति। लिखबाक काल स्मिरणप्रयुक्त कलम रुकल-लेखव्यारपारसँ निवृत्त भेल।
छेक अवरोधन, स्व्तन्त्र गमन प्रतिबन्धलक रोक। खेतक पानि बहैत अछि, ओकरा छेकू वा छेँकू गए, जे बहए नहि। गाए दुहबाक काल बाछाकेँ छेकैत अछि- बन्हैकत अछि जाहिसँ गाए लग नहि आबए।
छेँक ,, ,, ,,
टेक खसबासँ तात्काैलिक रोकब। टाटा टेकि दिओक-कोनहुना खुट्टामे बान्हि दिऔक जे खसए नहि, पश्र्चात् यशोचित बान्हज दैबैक।
ठेक संयुक्त होएब। छोट चौकठि माथमे ठेकैत अछि- लगैत अछि। अन्हा रमे चलबाक काल पाएरमे पजेबा ठेकल-संयुक्त भेल।
फेँक ,, कस्तमर बढ़ारिकेँ फेकल वा फेँकल-प्रक्षिप्तब कएल।
रेक मनुष्यिक बाजब।
हेक गदहाक बाजब। नेनासभ रेकैत अछि-खेलाएबमे एमहर-ओमहर दौड़ैत अछि।
हेँक ,, ,, ,,
घोक अतिसञ्चालनसँ मलिन करब। नेनासभ पोखरिक पानि घोकैत अछि-अतिसञ्चालनसँ मलिन अछि। भदबारिभे
घोँक ,, ,, ,,
छोँक ऊपरसँ फोड़न मिलाएब। दालिक झोर छोँकल- ऊपरसँ घ़तादिपक्वछ जीर, हीँगु प्रभृति फोड़नसँ युक्त कएल।
झोँक अतिप्रयोग। हमरा टोकू जनु-कतए जाइत छी इत्यारदि जनु पूछू।
झोक ,, ,,
टोक 1. बोधनपूर्वक प्रश्नप। 2. पक्व.तादिज्ञानार्थ आधात । कटहर टोकैत छी- आहत करैत छी जे पाकल अछि की नहि ।
ठोक ऊपरसँ आधात। खुट्टा ठोकैत अछि। चानी ठोकने- ऊपरसँ आघातयु‍क्त कएने पसरैत अछि।
भोक वेधन। चोरकेँ भालासँ भोकल वा भोँ कल- विद्ध कएल। सुइआ हाते भोँकल गेल।
भोँक वेधन
रोक अवरोधन। पञ्च भगड़ा रोकलैन्हि-निरुद्ध कएलैन्हि, होअए नहि देलैन्हि। ढाठमे मालसब रोकल अछि- अवरुद्ध अछि तेँ बहराए नहि सकैत अछि।
लोक आकाशसँ खसैतकेँ उपरहि पकडि़ लेब। हम गेन फेँकैत छी, अहाँ लोकू-उपरहि पकडू।
होँक उद्वीजनख्‍ व्युजनादि द्वारा वायु लगाएब। भगवानकेँ चामरसँ होँकी-बसात लगाबी।
चौँक भयसँ डोलि जाएब। नेना बालाग्रहमे चौँकैत अछि-काँपि उठैत अछि।
छौँक ऊपरसँ फोड़न मिलाएब। तीमन होँकी- बसात लगाबी।
कचक शिराक वेदना। शिरा कचकैत अछि-दुखाइत अछि। पीठ कचकल-शिरामे दुखाएल।
पचक अवयव नीचता प्राप्ति। हाथसँ पाथरपर खसने लोटा पचकत- यत्कि‍त्र्चिद्धगमे नम्रता पाओत।
लचक मध्यिमे वा अन्ते भागमे डोलब। चौपालाक बाँस लचकैत अछि-डोलैत अछि। भार लचकैत-डौलैत जाइत अछि।
हिचक अप्रव़त्ति। मतिवीर पाएरेँ जएबामे हिचकैत छथि- प्रवृत नहि होइत छथि।
उझक ऊपरसँ झुकब। भातक बरतन उझकि गेल-उपर भागसँ झुकि गेल- तेँ भात हेराए गेल।
अँटक स्थिर होएब। गहीँ ड़मे पानि अँटकल अछि-जमा अछि। यात्रीसभ एहिठाम रातिकेँ अँटकैत अछि- चलबसँ निवृत्त भए रहैत अछि।
खटक अनिष्टछसंभावनाविषयीभवन। हमरा मनमे राति खटकल-बुझना गेल जे चोरक आगमन भेल अछि।
चटक चटओदार लेब। अधिक ताओ देबैक तँ देबैक तँ कोहा चटकत-चटओदार लेत।
झटक 1. सवात वर्षा। 2. फटकबामे हाथसँ सूपक तरमे चोट देब। मेघ झटकैत अछि-बसातक सङ् बरिसैत अछि।
पटक बजारब। बाह, तोँ पहलमानकेँ पटकलेँ- बजारलेँ जोरसूँ माटिपर खसओलेँ।
फटक सूप आदिसँ साफ करब। चाउर फटकैत अछि-सूपसँ साफ करैत अछि।
भटक विमुख होएब। ओ जएबामे भटकलाह-विमुख भेलाह। हमर मन भटकाल-अप्रवृत्त भेल।
सटक संकुचित होएब। काछुक मुह-पाएर सटकल रहैत अछि-संकुचित रहैत छैक। ओ नेना डरेँ सटकल-संकुचित भेल।
छिटक फटिकेँ जाएब। धोती खिचबाक काल पानि छिटकैत अछि। बिजली छिटकैत अछि। लोकसभ छिटकल-फूटर भए चल गेल।
घुटक परबाक शब्दल। परबा घुटकैत अछि-बजैत अछि।
भुटक रोमाञ्चयुक्त होएब। देह भुटकैत अछि-रोमाञ्वसँ युक्तल होइत अछि।
सुटक घोसिआएकेँ नुकाएब। गिदड़ दिनकेँ सोन्हिमे सुटकल रहैत अछि-घोँ सिआए प्रच्छतत्र रहैत अछि।
कड़क क्रोधसँ उत्कघटक्रियेच्छा‍। डङ्का बजलासँ वीरक मन कड़कैत छैक- उत्तेजित होइत छैक।
खड़क किञ्जत् हटब। ई सील एक गोटासँ नहि खड़कल-कनिओ नहि घुसकत।
गड़क गोल वस्तुघक घुमैत जाएब। पहिआबाला सन्दु।क गड़कल-गोल गड़कैत आगाँ नहि खड़कल-कनिओ नहि घुसकत।
घड़क कित्र्चित् हटब। सन्दु्क अपना जगहसँ घड़कि गेल अछि-कि‍त्र्चितद्य घुसुकि गेल अछि।
फड़क अङ्रस्फु रण। वामा आँखिक फड़कब-संचलन अधलाह थीक।
भड़क भयसँ मालक पड़ाएब। घोड़ा देखि हाथी भड़कैत अछि। ऊँट आएल तेँ माल सभ भड़कल-भयसँ पड़ाइल।
मड़क असंपत्ति। अन्ततमे वर्षाक अभावसँ धान मड़कल-संपत्र नहि भेल।
खदक ताओसँ खलबलाएब। अदहन खदकैत अछि-खलबल करैत अछि, चाउर लगाउ।
धधक प्रज्वैलन। आगि धधकल-पजरल ज्वाकलासवँ युक्त। भेल।
उधक किञ्चत् ऊर्ध्वअगति। दालिक कोहाक ढकना उधकैत अछि-दालिक उधिअएबाक कारण कनिएँ 2 ऊपर उठेत अछि।
लुधक एकमे बहुतक लागब। चीनीमे चुट्टी लुधकल अछि-बहुत चुट्टी लागल अछि।
चनक आगिमे फाटब। ई घैल चनकल अछि- आबाल ताओसँ फुटल अछि। आँच कम दिऔक जे कोहा चनकए नहि।
छनक सूपसँ विभक्त करब। छनकलासँ चाउरक खुद्दी बहराइत अछि। सूपसँ लोकि विभाग करब छनकब थीक।
झनक रोगेँ पाएर घँसैत चलब। ई बड़द झनकैत अछि-पाएर भूमिमे घसैत अछि। एकरा झनक रोग छैक।
टनक माथ कान आँखिक वेदना। माथ टनकैत अछि-दुखइत अछि। एवं कान वा आँखिप टनकैत अछि। टनक रोग थीक
ठनक गरजब। मेघ ठनकैत अछि-गज्जैं त अछि।
फनक मनसुबा करब। अहाँ की फनकैत छी-मनसुबा (अपन शक्तिक प्रकाश) की करैत छी, अहाँक बुतेँ किछु नहि हेएत। लफन्द रक प्रति निन्दोकक्ति।
भनक 1. मनक विकृत होएब। 2. कानाकानी खुलब। भातपर बड़ माछी तेँ हमर मन भनकैत अछि-अश्रद्धायुक्त होइत अछि।
सनक बतहपनी। ई सनकल छथि-उन्मा दयुक्त छथि।
भिनक खाद्यपर माछीक सञ्चार, माछीसँ युक्त होएब। भात भिनकैत अछि-माछीसँ संबद्ध कतहु छपकल अछि-प्रच्छछत्र अछि।
ठुनक सशब्दछ क्रन्दपनविशेष। नेना ठुनकैत अछि-हुँ हुँ शब्द करैत अछि
छपक नुकाएब। ओ डरेँ कतहु छपकल अछि-प्रच्छ्त्र अछि।
टपक पाकिकेँ गाछसँ खसब। आब आम टपकैत अछि-पाकिकेँ सशब्द खसैत अछि।
लपक शीघ्रतया लए लेब। चिलहोडि़ हाथसँ सोहारी लपकलक-झट दए लए लेलक।
डबल जलतैलादिक अधिक अँटकब। तेज ले हेराइल से गहीँ इमे डबकल अछि-अँटकल अछि।
ढबक पत्रपर मसीक अधिक स्थिति। कलमसॅा अधिक मसि खसि पड़ल तेँ कागज पर मसि ढबकल-अधिक अँटकल।
दबक नुकाएब, प्रच्छेत्र होएब। नेना डरेँ कतहु दबकल अछि-प्रच्छँत्र भेल अछि।
हबक दाँतसँ धरब। कुकुर जाँधमे हमरा हबकलक-दाँतेँ कटलक।
टभक पाकिकेँ सशब्दह खसब। पाकल आम टभकैत अछि-गाछसँ खसैत अछि।
भभक दुर्गन्ध प्रकाश करब। सड़ल मुर्दा भभकैत अछि-दुर्गन्धेकेँ प्रकाशित करैत अछि।
गमक सुगन्धि प्रकाश करब। बेली-चमेली इत्याबदि फूल गमकैत अछि-आमोद करैत अछि, उत्तम प्रकाशित करैत अछि।
चमक 1.चकचकाएब। 2. अस्थैतर्य। हीरा चमकैत अछि-चकचम करैत अछि।
जमक पूर्ण होएब। भोजमे मधुर जमकल-पूरिपूर्ण भेल।
झमक झमझम करब। ई स्त्री गहना पहिरि झमकैत-झमझम शब्द करैत, चलैत अछि।
ठमक रुकब। आब वर्षा ठमकल-रुकल।
दमक पृथ्वीषक कित्र्चित् डोलब। रेलगाड़ी चलबाक काल लगक धरती दमकए लगैत अछि-डोलए लगैत अछि।
धमक धमधम करब। रेलगाड़ीक धमकब-धमधम शब्दअ बहुत सुनल जाइत अछि। लोकक चललासँ कोठाक छत धमकैत अछि-धमधम शब्दक करैत अछि।
बमक गूढ़ वस्तुअक हठात् प्रकाश। कन्तोवड़मे हीगुँ राखल छल, कन्तोतड़ खोलला पर ओकर गन्धँ बमकल-हठात् प्रकाश भेल फ जयलाल बमकलाह- असल गूढ़ बात हठात् बजलाह।
रमक अतिमन्द़ बहब। बसात रमकैत अछि-अतिमन्दल बहैत अछि।
उमक औद्धत्य़-चेष्टाद। नेना सभ उमकैत अछि-ओद्धय-पूर्वक दौड़धूप करैत अछि। करैत ओकरा एखन समर्थाइक उमकी छैक-औद्धत्य्चेष्टाक छैक।
झरक आगिमे कित्र्चित् जरब। आगिमे झरकि-कि‍त्र्चित् जारिकेँ मुइल।
ढरक टधड़ब। हेराएल तेल ढरकि-टधडि़ नीचमे जमा भेल ।
दरक फाटब। कोहा दरकल अछि- चिरक्कासँ युक्त अछि।
बरक ताओसँ खलबल करब। पानि बरकैत अछि- ताओसँ खलबलाइत अछि।
लरक 1. ऊँचसँ नीचाँ नमरब। 2. तिरने पैध होएब। धोती लरकल युक्त अछि-नरमल अछि, सम्भा रि लिअ। रबड़ लरकैत अछि-तिरने नमरैत अछि-पैध होइत अछि।
सरक पीबाक काल कुमार्गमे जलक प्रवेश। पानि सरकल-कण्ठपक विवरसँ आन दिश चल गेल तेँ उकासी उठल।
हरक छिटकल पशुसंघक एकदिश जाएब। हम मालसभकेँ हरकैत छी। मालसभ हरकैत अछि- एक दिश जाइत अछि।
सुरक वायुद्वारा ग्रहण। तेल सुरकू-नाक देने श्वाछससँ उपर लए जाउ, तखन कफ छुटत। नोसि सुरकैत छथि-चकचकाइत अछि।
झलक चकचकाएब। नव काशीबाल बरतन झलकैत अछि-चकवकाइत अछि।
दलक पृथिवीक कनिऍं डोलब। भीत खसलासँ धरती दलकैत अछि-कम्पित होइत अछि।
फलक विकसितत होएब। फूल फलकल-विकसित भेल। तूर धुनने फलकैत अछि।
ललक क्रोधपूर्वक जोरसँ बाजब। भीमसेन ललकैत छथि-क्रोधपूर्वक जोरसँ बजैतछथि। गुरुजनपर नहि ललकी-जोरसँ नहि बाजी।
हुलक 1. कुकुरक घरमे प्रेशव । 2. ककरहुपर लागब। सावधन रहू जे कुकुर हुलकए नहि-हठात् घर ने पैसए। कुकुरकेँ हम हुलकबैत छी-ओहे ओहे शब्दनसँ प्रेरित करैताछी, तखन हुलकत-शिकारपर लागत।
घसक चल जाएब (निन्दान)। अहाँ एहि ठामसँ घसकू-चल जाउ ई निन्दाहशब थीक।
चसक अकर्तव्य मे पुन:पुन: प्रवृत्ति। नेनाकेँ सम्हाारू नहि तँ चसकि जाइत-अकर्तव्यसमे लागी जाएत।
मसक तानी-भरनीक विचलनयोग। पुरान-भेल तेँ धोती मसकल-सूतक विचलन पओलक।
उसक टेमी आदिक आँगा घुसकब। दीपक टेमी उसकत-किछु आगाँ धुसकत, तखन प्रकाश होएत, तेँ ओकरा उसकाउ।
घुसक कित्र्चित् हटब। ई साल बड़ भारी अछि, एक गोटाक बुतेँ नहि घुसकत-कनिओ नहि सुसरत।
ठहक रक्षकक स्वघसूचक शब्दि। रातिकेँ चोरसँ रक्षाथ्र्ज्ञ कोतबाल ठहकैत अछि-शब्द्विशेकषसँ अपन सूचना करैत अछि।
बहक छिद्रमे पैसब। अहाँ बुतेँ सुइआमे ताग नहि बहकत-नहि पैसत। हाथ बहकाए-पैसाए कोठीसँ अन्नप बहार करू।
महक गन्धपक प्रकाश करब। मटिआ तेल महकैत अछि-अपन गन्ध प्रकाशित करैत अछि।
लहक गन्धाक प्रकाश करब। आब जारन लहकल-ज्वा लासँ युक्त‍ भेल। आगि लहकैत अछि-ज्वा‍लासँ युक्तआ भेल अर्थात् जरि गेल।
सिहक 1. अतिमन्दर बहब। 2. कित्र्चित् जाडय-प्राप्ति। 3. फाटब। एखन बसात सिहकैत अछि-मन्द।मन्द बहैत अछि। ज्वैरमे देह सिहकैत अछि-किंचित् जाड़सँ युक्ते होइत अछि। कोहा सिहकल-कि‍त्र्चित् चिरक्काहसँ युक्तड भेल।
कुहक कोलिलक शब्दि। कोकिल वसन्तेक कुहकैत अछि-कुहूकुहू शब्दल करैत अछि वनमे पक्षीरम कुहकैत्‍ अछि-शब्दक करैत अछि।
परिक प्रवृत्ति- साफल्येसँ तादृश प्रवृत्तिमे फलक विश्वाेस। ई नेना मधुरमे अहाँक ओहिठाम परिकल अछि-गेने मधुर होइत से मानने अछि कारण जे अहाँ अएबाक उत्तर मधुर सभ दिन दैत छिऐक।
बिजुक ठोरमुहक चेष्टाद, शोकादि सूचक व्याेपार। एहि नेनाकेँ अनभिप्रेत किछु कहिऔक तँ एकर ठोर बिजुकैत छैक-दु:खक सूचक चेष्टा - विशेषसँ युक्तख होइत छैक। अहाँक खिसिअएने नेनाक मुह बिजुकैत छैक-दु:खव्युञ्जक चेष्टाैसँ युक्तै होइत छैक। अहाँ कनिए देलैक तेँ ओ नेना मुह बिजुकओलक-असन्तोनष-सूचक मुह बनओलक।
सुरुक वायु द्वारा ग्रहण। नाक देने तेल सुरुकू-श्वा ससँ ग्रहण करू। नोसि सुरुकू, तखन कफ खसत।
कुहुक कोकिलादिक कुहूकुहू शब्दु करब। वसन्तामे कोकिल कुहुकैत अछि-कुहूकुहू शब्दत करैत अछि।
झख दीनता बाजब।
झँख ,, ,,
चिख जाचक हेतु खाएब। तीमन चीखू-जाचक हेतु कनिएँ खाउ जे कहेन भेल।
लिख अक्षरादिविन्या।स। महादेवक मूर्त्ति लिखलैन्हि, आओर चित्र लिखताह। भागवत लिखैत छथि। लिख धातुक अर्थ अभिव्य क्तिजनक मसीसंयोजन थीक, जकर अभिव्यसक्ति से कर्म। वर्णमाला लिखैत छथि-वर्णमालाक अभिव्याक्तिजनक मसीसंयोग करैतछथि।
सिख शिक्षा। नेना लिखम सिखैत अछि- लिखबाक अवगति उत्पसत्र अछि।
देख दर्शन। देवदत्त पुस्तैक देखैत छथि। कार्य देखलन्हि।
खोख उकासी करब। कफ भेलासँ खोखैत छथि वा खोँखैत छथि।
खोँख ,, ,,
घोख शब्द,क स्मिरणार्थक अभ्या स। जय-लाल श्लो क घोखैत छथि घोँखैत छथि-अभ्यशस्तल करैत छथि, स्मारण रहबाक हेतु वारंवार पढ़ैत छथि।
घोँख ,, ,, ,,
जोख तौलब। चाउर तराजूसँ जोखैत छथि-तौलैत छथि।
सोख पघिलल (द्रव) वस्तु क अभ्यलन्तदरीकरण। नव माटिक बासन तेल सोखैत अछि-अभ्यान्तलरमे लए लैत लैत अछि। चाम तेल सोखैत अछि। भिजाए गारल नुआ पानि सोखैत अछि।
बिसख पन्हासएबसँ निवृत्ति। हमर गाए बिसखल-पन्हााएब बन्दच कएलक। ककरहु मतेँ धातु-गाए बिसुखल।
खग अपेक्षित वस्तुेक असत्ता (अभाव)। हमारा किछु रुपैआ खगैत अछि-अपेक्षित अछि, किन्तु हाथमे नहि अछि। घर बन्हैपत छी ताहिमे खाम्हहक खगता अछि-अपेक्षित खाम्हिक अभाव अछि।
टग झुकब। जयलाल भूकम्प-मे टगलाह-झुकि गेलाह।
रँग रञ्जन। हम नूआ रँगेत छी वा रङैत छी-रङ्सँ युक्तआ करैत छी।
रङ ,, ,,
त्या,ग छोड़ब। हम मधुर खाएब त्या गल-छोड़ल।
उग उदय। 1. प्रथमदर्शनयोग्या स्था नपर सूर्या‍दिक आगमन। 2. भीतरसँ जलक उपर आगमन। सूर्य उगलाह-उदित भेलाह। ओ जलमे डूबि बड़ी काल पर उगलह-जलक उपर अएलाह।
रेँग एक पाएरेँ कूदि चलब। नेनासभ खेडि़मे रेँगैत अछि वा रेङैत अछि-एक पाएर उठाए दोसरा पाएरेँ कूदि कूदि चलैत अछि।
रेङ ,, ,,
टोँग खाखाछेदन। सुखाएल ठारिकेँ टोँगैत अछि वा टोङैत अछि-कटैत अछि।
टोङ ,,
ओठॅंग अवलम्ब नार्थ पीठ लगाएब। अहाँ मसलँदमे ओठँगिकेँ वा ओठङिटकेँ बैसू-पीठ लगाए बैसू
ओठङ ,, ,,
सुनग पजरब। आगि सुनगल-पजरल।
तरँग हालरहित हाएब। खेत तरँगल वा तरङल-हालहीन भेल, आब जोतल नहि होएत।
तरङ ,,
अलग 1. भीतर नहि रहब। 2. अत्रविकल ठाढ़ सीससँ युक्त होएब। 3. उपर उठब। पानिमे कुम्भी अलगल रहैत अछि-भीतर नहि रहैत अछि अर्थात् पानिक उपर रहैत अछि। फुलक समयमे रातिकेँ पानि होएबाक कारण धान अलगल.... अत्रराहित ठाढ़ सीससँ युक्ते रहल। बड़ेरीसँ चार अलगल अछि- अपर उठल अछि, ओकरा सटाउ।
पनुग पल्लवाङ्करसँ युक्त होएब। फुलक गाछ पनुगल-अङ्करसँ युक्तल भेल।
उघ 1. उठाएकेँ लए जायब। 2. लए आनब। धानक बोझ उघैत अछि-उठाए केँ लए जाइत अछि वा अनैत अछि। गदहा ऊस उधैत अछि।
सुँघ आघ्राण। नासिका समीप नयनपृथक क गन्ध ग्रहण, फुल सुँघैत छथि-नाकक लग अ‍ानि गन्धसग्रहण करैत छथि।
अर्घ ठोँठक नीचाँ अटकब। ई औषध नहि अर्घलैन्हि वा नहि अरघलैन्हि-ठोँठक नीचा नहि अँअकलैन्हि अर्थात् वमन भए गेलैन्हि।
अरघ ,,
कच लगलग छओसँ युक्त करब। खेत कोदारिसँ कचि-लग लग छओसँ युक्तो कए, धान रोपल। चोरकेँ गणाससँ कचल-लगलग अनेक छओसँ युक्तँ कएल।
खच जटित होएब। सोनाक औँ ठीमे हीरा खचल अछि-जड़ल अछि।
जच निक्षित होएब। ई बात हमरा मनमे जचल अछि-जटित अर्थात् निश्चित अछि।
पच ।. अन्त्र्गतक दोषजनक परिणाम। 2. तैलादिक भीतर प्रवेश। हमरा भातक पथ्य् पचल-दोषाजनक रूपेँ परिणत भेल। आब ज्वचर पचल-दोषाजनक परिणात भेल। अधिक मर्दनसँ माथमे तेल पचल-भीतर पैसत ।
बच अनिष्टँसँ निवृत्ति। साप चारसँ देह पर खसलैन्हत परन्तु- बचलाह वा बँचलाह-संर्पर्दशनरूप अनिष्टव नहि पओलैन्हि।
बँच ,, ,,
मच प्रवृत्ति। धूम मचल- धूमधाम प्रवृत्त भेल। मच धातुक क्व।चित्त प्रयोग होइत अछि से लोक-व्यहवहारसँ जानब।
रच बनाएब। फुलबाड़ी रचल जाइत अछि-बनाओल जाइत अछि से लोक-व्यावहारसँ जानब।
खिच 1. वस्त्रअप्रक्षालन, सार्द्र वस्त्रछक वारंवार आघात। 2. असकृत् संपर्क। धोती खिचैत छथि-जलसँ आघात-पूर्वक साफ करैत छथि।
खिँच आकर्षण, झीकब। हमरा उपरसँ हाथ पकडि़ खीँचू-खैचि लिअ।
घिच ,, डोल भरि घीवू वा घीँ चू-आकर्षण करू।
घिँच ,,
छिच सेचन। एहिठाम बढ़ारिकेँ छीचि दिऔक-पानिक छिटकासँ युक्तक करू जे गरदा नहि उड़ए। पानिक छिञ्चा पड़ल।
पिच दाबब (जाहिसँ अवयवमे अन्य थाभाव हो) जयदेव गाड़ीक तर पीचल गेलाह-दाबल गेलाह।
सिच सेचन एहि धातुक काव्य हिमे प्रयोग होइत अछि।
कुच थकुचब। दाँतर जजि कुचल गेल-कित्र्चित् गेल।
घुच पाछाँ रहि जाएब। ओ घुचि रहलाह-पाछाँ रहि गेलाह।
रुच खाद्यक नीक लागब। हमरा ज्वीरसँ अत्र नहि रुचैत अछि-नीक नहि लगैत अछि।
बेच विक्रय। बनिआ स्तुगसभ बेचैत अछि- विक्रय करैत अछि।
मेच मोचरब। हम घाड़ पकडि़ मेचि दैत छी-ऐँठि दैत छी तखन सिरसंकोच छूटि जाएत।
ऐँच टेढ़ होएब। गैँची माछ ऐँचैत अछि-वक्र भए जाइत अछि। सनकेँ ऐँचि रस्साज बनबैत अछि।
खैँच आकर्षण। इनारसँ पानि भरि डोल खैँ चैतछी-उपरकेँ आकृष्टर करैत छी। जयदेवकेँ हाथ पकडि़ खैंचने आउ।
गैँच टेढ़ होएब। गैँची माछ जेँ गैँचैत-टेढ़ होइत रहैत, अछि तेँ गैँची कहबैत अछि।
घैँच आकर्षण। गोहि पाएर धए घैंचिकेँ-आकृष्टढ कए, लए जाइत अछि।
पैँच सूपमे तण्डु।लादि-मिश्रित घान्यातदिकेँ नीचा आनब। स्त्रीतगण पैँचब-तण्डुिलादि धान्याएदिकेँ सूपसँ घुमाए उपर लाएब, जनैत अछि।
कोँच ठुसब। डाकू या‍त्रीकेँ पकडि़ मुहमे नूआ कोँचि दैत छैक जे बाजि नहि सकए।
छोँच गुद-शौचक्रिया। सर्वप्रथम नेनाकेँ अपना हाथेँ, छोँचबाक-शौच-क्रिया करबाक शिक्षा देबाक चाही।
नोच एकदेशक आकर्षण। काँट नूआकेँ नोचलक-वक्रताक कारणेँ नूआमे नूआकेँ खैँचलक, तेँ नूआ फाटल ।
सोच ।. विचार। 2. शोक। एहि विषयकेँ सोचू-बिचारू। सुरथ महाराज वन जाए शत्रुसँ आक्रान्त। अपन राज्य क सोच-शोक करए लगलाह।
दकच यत्रेकुत्र अनेकधा काटब। नेना कागतकेँ कैँ चीसँ दकचि देलक तैँ कागत दूरि गेल।
भकच पत्रकेँ यत्रकुत्र चिचाँढि़सँ युक्त करब। नेना कागत भकचि देलक-चिचाँढि़ (वृथा रेखा) सँ संयुक्तच कए देलक।
घोँकच संकुचित होएब। धोती कौँचि आएकेँ रखने घोँकचि जाएत तेँ चौपीतिकेँ राखू जे धोकचए नहि-संकुचित नहि हो।
दङच दकचब। कागज दङचलक-दकचलक
अणाच अणाचसँ गछारब, ठाठकेँ बरीमे बान्हबब। ठाठ अणाचैत अछि-अणाच (बन्धत-विशेष) सँ ठाठकेँ बरीमे बन्हैनत अछि।
पणाच आद्योपान्त सविस्तँर कहब। ओ पणाचि गेलाह-सविस्तबर कहि गेलाह।
थकुच आघात। दन्त।शून्यस व्यमक्ति थकुचल-चोटसँ आहत, पान खाइत छथि।
सकुच सङकचित होएब। बूढ़क देह सकुचि जाइत अछि-घोँ‍कचि जाइत अछि।
पहुँच प्राप्ति होएब। चीठी पहुँचल-प्राप्तक भेल । ओ गाम पहुँचलाह-प्राप्ति भेलाह।
छ सत्ताल, रहब। छ धातुक केवल वर्तमान ओ भूतमे प्रयोग होइत अछि। संप्रति अधलाह समय अछि। पूर्व नीक छल। त्रेतामे राम छलाह। ई पुस्तकक थीक।
कछ अयथार्थावस्थाुक स्थिति देखाएब। जयलाल निन्दथ नहि छथि किन्तु निन्दँ कछने छथि-निद्रावस्थाथ, आँखि मुनब अ‍ादि, कृत्रिम कएने छथि।
गछ स्वी‍कार। अहाँकेँ पुस्तीक देब से ओ गछलैन्हि-स्वीककार कएलैन्हि ।
काछ हाथमे लगबाक योग्य वस्तु क उद्धार। बासनमे घृत जमल अछि, ओकरा हाथसँ काछू- उद्धृत करू।
बिछ पसरल लघु वस्तु क हाथसँ एकाएकी ग्रहण। भालसरीक फूल गाछतर बहुत खसल अछि ओकरा बीछि लाउ-एकाएकी हा‍थसँ उठाए लाउ ।
पुछ प्रश्नर। हमरा भवदेव पुछलैन्हि-प्रश्न। कएलैन्हि जे अहाँ कतए रहैत छी।
पोछ 1. लिप्तछ वस्तुशक अपाकरण। 2. तदूद्वारा साफ करब। नेनाकेँ देहमे गर्दा लागल छैक, पोछि दिऔक-संमार्जित कए दिऔक। शास्त्र क आज्ञा जे स्नांन कए देह नहि पोछी-संमार्जित नहि करी।
गीँछ पृथक्-पृथक् बान्ह लकेँ एकट्ठा कए बान्हकब। दुहू धानक बोझकेँ गौँछि- एकट्ठा बान्हि, लए जो
मुरछ धार ( अस्त्राजग्रभाग) क कुण्ठित होएब। बसिलाक धार काँटीमे लागल तेँ मुरछल-कुण्ठित भेल, टुटि वा लबि गेल।
लोहछ क्रोधाविवश उल्वीण पित्तसँ युक्त होएब। हरबाह हर जोतिकेँ अएला पर रौदेँ लोहछल रहैत अछि-उल्वेण-पित्तक रहैत अछि, तेँ ओकरा तामस अधिक होइत छैक।
परिछ प्रमाणत: योग्यक होएब। हमरा ई अङा् नहि परिछैत अछि-देहप्रमाणानुरूप नहि होइत अछि, तेँ नहि पहिरैत छी
निहुछ देवताकेँ चढ़एबाक उद्देर्शें राखब। ई छागर निहुछल अछि- देवताकेँ बलिप्रदानक उद्देशेँ राखल अछि।
गज आनन्दरसँ मनमे अभिमान मानब। अहाँ गजैत छी- मनमे अभिमान करैत छी जे धनजनसँ संपत्र छी। हमरा कोन चिन्ताध ?
छज योग्या होएब (नीक लागब)। हुनका अभिमान करब छजैत छैन्हि-योग्य छैन्हि। जकरा पाग पहिरबाक अभ्या स नहि तकरा पाग नहि छजैत छैक-नीक लगैत छैक।
भज खदरासँ बदलल जाएब। रुपैआ भजल वा भैजल-खुदरासँ बदलल गेल।
भँज ,,
सज दुरुस्तज करब। ठेँगा सजैत छी-छी‍लिकेँ दुरुस्ते करैत छी। बरिआम सजल अछि-यथावत् सत्रिवेशत अछि।
खिज धान्याेदि झरब। खेतमे धान खिजैत अछि-झरैत अछि, तेँ शीघ्र काटू।
गिज पुन:पुन: स्पतर्श। नेना थाल गिजैत अछि-वारंवार छुबैत अछि। पानि गिजेत अछि।
छिज धान्याादिक पाकिकेँ झरब। धान खेतमे आब छिजत-पाकिकेँ झरत, तेँ शीघ्र काटू।
भिज सार्द्र होएब, जलादियुक्त होएब। वर्षामे नूआ भिजल-तितल, सार्द्र भेल।
पुज पूजन, देवताक आराधन। भगवान पूजल गेलाह-अर्चित भेलाह।
भुज पात्रमे राखि बिनु जलादिक पाक। पनिपिआइक हेतु बदाम भुजल-भृष्टए भेल।
तेज त्यािगब। हम चिन्ताह तेजल-छाड़ल।
गोज डंटाकेँ जलक तरमे वारंवार भेँसब। इनारमे लग्गी लएकेँ गोजू-जलक तर थालमे भेँ सू, तखन खसल डोल ओहिमे अभरत।
गर्ज जोरसँ ध्वा।ने करब। मेघ गजैंत अछि-ध्वबनि करैत अछि। वनमे सिंह गर्जैत अछि-नाद करैत अछि।
बर्ज त्या गब। हम कुपथ्य बर्जल-त्या गल
उपज उत्पुत्ति (निर्जीब धान्याथदिक)। विना वर्षें धान नहि उपजत-उत्प त्र नहि होएत। हमरा उपजा कम भेल।
गरज सिंहादिक शब्दज। मेघ वा सिंह गरजैत अछि- जोरसँ शब्दव करैत अछि।
बरज त्यावग। अहाँ कुसंयम नहि बरजैत छी-नहि छोड़ैत छी, तखन दु:ख कोना छुटक ?
सिरज सृष्टि। विधाता संसारकेँ सिरजैत छथि। हमर जे विधाता सिरजलैन्हि-उत्पमत्र कएलैन्हि से किंनिमित्त ? एकर प्रयोग प्राय: विधिकृत निर्माणहिमे होइत अछि।
खराज यन्त्रह घुमाए छीलब। ई पौआ कारीगरक खराजल अछि-खराज नामक यन्त्र द्धारा छीलि बनाओल अछि।
अँगेज सह्म करब। हम आब एहि दु:खकेँ अँगेजल वा अङेजल-सह्म कएल।
अङेज ,,
बुझ जानब। अहाँक अभिप्राय हम बुझल-ज्ञात कएल।
रुझ रुष्ट होएब। देवदत्तकेँ भानसमे विलम्ब भेलैन्हि तेँ रुझलाह-रुष्टम भेलाह।
लुझ काककर्तृक हठात् ग्रहण। कौआ भात लुझलक-लए लेलक।
सुझ ।. दृष्टिगोचर होएब।
2. जानब। गिद्धकेँ सए कोस सुझैत छैक-दृष्टि जानि पड़ैत अछि जे आगाँ की भावी छैक।
बिरुझ विरुद्ध होएब जयलाल भवदेवसँ बिरुझल छथि-विरोध कएने छथि।
अँट मध्य मे समाविष्टी होएब। एहि लोटाक मुह सिकस्ति छैक, तेँ हाथ नहि अँटत-नहि पैसत। एहि बोरामे दू मन धान नहि अँटत-समाविष्टर नहि होएत।
कट 1. कालादिक यापित (व्यनतीत) होएब। 2. छित्र होएब। हमरा कोनहुना दिन कटैत अछि ओ कटल-वितल। धान कटल-छित्र भेल।
खट कार्यमे अनवरत लागब। हम खटैत छी-अनवरत कार्यमे प्रवृत्त रहैत छी।
घट कम होएब। एक मन धान, छल, सुखएलासँ एक पसेरी घटल-कम भेल।
डट संनद्ध होएब। मारि करबालए जयलाल डटल छथि-संत्रद्ध छथि।
पट 1. मेल खाएब। 2. व्या प्त होएब। हमरा यदुवीरसँ नहि पटैत अछि-मिलान नहि होइत अछि अर्थात् झगड़ा भए जाइत अछि।
लट बल-मांस-हीन होएब। देवनाथ दु:खसँ लटि गेल छथि-बलमांसहीन भए गेल छथि
सट संयुक्त होएब। अहाँ देहमे सटू जनु-संयुक्ता जनु होउ।
हट पृथक् होएब। एहि ठामसँ तोँ हट-फराक हो। हमरा घरसँ भवनाथक घर हटल छैन्हि-असंयुक्ता छैन्हि।
हँट दबाड़ब। अहाँ नेनाकेँ हँटू-दबाडू जे उपद्रव नहि करए।
छिट विकिरण। चाउर छिटत अछि-विकीर्ण करैत अछि।
पिट ताड़न। स्त्रीिगण शोकेँ माथ छाती पिटैत अछि-आहत करेत अछि। हम चोरकेँ पकडि पिटलहुँ-आहत कएलहुँ
सिट विन्युस्तआ करब। इसखी देहकेँ सिटने रहैत अछि-विन्याेसयुक्तै कएने रहैत अछि।
कुट कुट्टन, ऊपरसँ आघात। उखरिमे धान कुटैत अछि-मुसरसँ वारंवार आहत करैत अछि।
खुट खुट्टा गाडि़ नापब। हमर घर भवदेव खुटि देलैन्हि-नापिकेँ खुट्टा देलैन्हि।
छुट त्य्क्त होएब। हमर नोसिदानी बाटहि छुटल-त्यवक्त भए रहि गेल। हमरा दु:ख छुटल-त्यरक्त भेल।
जुट एकट्ठा होएब। सभामे लोकसभ जुटल अछि-एकट्ठा अछि।
झुट चारू दिशसँ लागब। लोकसभ चोरपर झुटल-चारू दिशसँ लागल।
टुट भग्न। होएब। रामहिँक बुतेँ महादेवक धनुष टुटल-भग्नि भेल। ई डोरी नहि टुटत-भग्न‍ नहि होएत। एहि धातुसँ प्रेरणामे अब् नहि अबैत अछि, तेँ टुटबैत छी इत्याबदि प्रयोग नहि, ओहि अर्थमे तोड़ धातुक प्रयोग होइत अछि, यथा धनुष टुटल, ओकरा रामचन्द्रट तोड़ल।
फुट 1. एकदेशमे भग्नच होएब। 2. पृथक् होएब। फुटल-भग्न् थारीमे नहि खाइ। एहूसँ अब् नहि अबैत अछि। ओहि अर्थमे फोड़ धातु बाजल जाइछ। यथा, थारी फुटल, तकरा हम फोड़ल। गोनू भाएसँ फुटलाह-पृथक् भेलाह।
लुट लुण्ठहन। हुनक सर्वस्वठ डाकूसभ लूटि लेलकैन्हि-बलात् लए लेलकैन्हि। महाराज पुत्र जन्मो त्सिवमे रुपैआ लुटओलैन्हि।
गेँट तराउपरी कए एकट्ठा करब। लकड़ीसभ गेँटल अछि-तराउपरी एकट्ठा कएल अछि।
भेट पाएब। हेराएल वस्तुछ भेटल। दोशाला इनमा महाराजसँ भेटल-पाओल।
खोँट नहसँ काटब। खडि़का खेँटिकेँ-नहसँ काटिकेँ दिअ।
घोट आमर्दन करब। बसहा कगज मँडि़आए गेलहीसँ घोटैत छथि-घृष्टँ करैत छथि। कण्डीममे नोसि घोँटैत अछि-आमर्दन करैत अछि।
घोँट सार्द्रवस्तुघ कण्ठकसँ नीचाँ लए जाएब। पानि घोँ टबामे, कण्ठ‍सँ नीचा लए जएबामे, कण्ठण दुखाइत अछि।
सोट 1. आघर्षणसँ चिक्क्न‍ करब।
2. शीघ्र शोषण। डोरी सोटैत अछि-घर्षणासँ चिक्न्ि बनबैत अछि।
औँट 1. जलक ओ दूधक बरकब।
2. यन्त्रद द्वारा बङौरसँ बाङक पृथक्कार। दूध व पानि औँटैत अछि-बरकबैत अछि।
उकट 1. उदघाटन।
2. पुरुषाक कलङक कहब। नेनासभ माटि उकटलक-उखालक। जयलालक पुरुषाकेँ भवदेव उकटलैन्हि-कलङक कहलथीन्हक।
चोकट रसशुष्कलता हेतुक सकुचब। काँच आम गोरल से चोकटि गेल-सकुचि गेल
निघट नि:शेष होएब। जारन जे छल से निघटल-खर्च होइत निश्शेेष भेल, अवशिष्टस नहि रहल, तेँ भानस नहि भए सकल।
झपट पक्षीक जोरसँ आक्रमण। चिलहोरि सोहारीपर झपअल-आक्रमण कएलक। कौआ झपटि, जोरसँ आबि आक्रमण कए,नेनाक हाथासँ रोटी लए गेलैक।
दपट क्रोधेँ जोरसँ फजहति करब। देवदत्त भवत्तपर दपटलाह-जोरसँ भवदत्तक गञ्जन कएलैन्हि।
लपट 1. कुस्तीन सिखब।
2. ज्वातलाक दूरत: आक्रमण। 1. जयवीर खलीफासँ लपटैत छथि-मल्ल.युद्ध सिखैत छथि।
2.एक धरमे लागल आगि लपटिकेँ, दूर ज्वा.लासँ आक्रमण कए, दोसरहु धरमे लागल।
उपट 1. स्थालनान्त रमे बसबाक हेतु आवास-भूमिक त्यानग
2. त्याक्तमूल होएब। 1. देवदत्त विष्णु्पुरसँ उपटलाह-अन्यलत्र वासेच्छाससँ घर हटओलैन्हि।
2. हमरा फुलबाड़ी सँ बेली फूल उपटि गेल-त्याक्त मूल भेल।
समट विकीर्णं वस्तुयक एकट्ठा करब। चाउर छिरिआएल अछि,ओकरा समटू-एकट्ठा करू।
पलट पूर्वावस्थालक प्राप्ति। ज्व्र पलटि गेल-फेर पूर्ववत् भए गेल।
बिलट अरक्षाप्रयुक्त नष्ट होएब। बूडि़क धन बिलटैत अछि-अरक्षासँ नष्टव होइत अछि।
उलट परिवर्तन। समय उलटि गेल-बदलि गेल । ई लकड़ी हमरा बुतेँ उलटत-परिवृत होएत। उलटल पटिआपर नहि बैसी।
पहट कड़हारिक द्वारा त्यािज्यल भागक वियोजन। सोझ-साझ करबाक हेतु लकड़ी पहटू-त्या ज्यरभागकेँ कुड़हरिसँ हटाउ।
सहट 1. मन्दय मन्दँ हटब।
2. मन्दय मन्दँ घुसकब। एहि ठामसूं ओ सहटलाह-मन्द‍मन्दउ हटलाह। नाचक लग लोक सहटल जाइत अछि-कनिएँ 2. आगाँ घुसकल जाइत अछि।
बकुट बाकुटसँ धरब। अहाँ एहि नेनाकेँ किएक बकुटलैक-बाकुटसँ धएलैक, तहिँ कनैत अछि। वायु पेट बकुटने अछि इत्याह‍दि प्रयोग लाक्षणिक जानब।
समेट विकीर्ण वस्तु।क एकट्ठा करब। चाउर छिरिआएल, अहाँ ओकरा समेटू-एकट्ठा करू।
खरकट दृढ़ मैलसँ युक्त होएब। एहि लोटामे मैल खरकटल अछि-जामिकेँ बैसल अछि। लोटा खरकटल अछि इत्याैदि प्रयोग लाक्षणिक ।
हुरपेट बजारिकेँ सिंहक बीचसँ दाबब, मारब। मरखाहि गाए जयलालकेँ हुरपेटलक-बजारिकेँ सिंहक बीचसँ दबओललक।
नठ अपलाप, कएल क्रियाक निषेध कहब। हमरासँ जयलाल एक रुपैआ लेलैन्हि, आब ओकरा नठैत छथि-हम नहि लेल एहि शब्देँै अस्वीमकार करैत छथि।
सठ सधब, नि:शेष होएब। जारन जे छल से सठल-नि:शेष भेल।
उठ 1. उत्थािन।
2. प्रवृत्ति।
3. व्यवय ।
4. आँखिक रोग। जयलाल उठलाह-ठाढ़ भेलाह आदि।
ऐँठ घुमाएब। ई नेना उकैठ करैत अछि, एकर कान ऐँ ठह-हाथसँ पकडि़ घुमाबह।
सपठ बराबरि सङ्ग बहबाक हेतु आनक बड़दसँ जोड़ा लागब। हमरा एकेटा बड़द अछि, से नहि सपठैत अछि-नियमपूर्वक बराबरि सङ्ग बहबाक हेतु आनक बड़दसँ जोड़ा नहि लगैत अछि।
उमठ अतिभोगजन्यछ तृप्ति। जयलाल मधुरसँ उमठलाह-अधिक मधुर खएलासँ आब मधुर खएबाक इच्छा नहि होइत छैन्हि।
खुरेठ खुरसँ दाबब। हमर पाएर गाए खुरेठलक-खुरसँ दबओलक।
कन्हे।ठ कान्ह। पर लेब लकड़ी कन्हेएठिकेँ, कान्हठपर लएकेँ अनलक।
अड़ रुकब। बहुत घोड़ा चलबाक काल अड़ैत अछि-रुकैत अछि, चालि छोडि़ ठाढ़ भए जाइत अछि। पानि बिना धानक रोपनि अड़ल अछि। कार्य अड़ल अछि।
गड़ निखात होएब। पाएरमे काँट-भितर पैसल।
पड़ 1. प्रवृत्ति ।
2. प्राप्ति।
3. मनसँ पर स्म रण।
4. बुद्धिविषयीभवन ।
5. पतन। अहाँ एहिमे जनु पडू-प्रवृत्त जनु होउ। अकाल पड़ल प्रवृत्त भेल। रुपैआ हाथमे पड़ल-प्राप्तभ भेल। अहाँकेँ जाए पड़त-प्राप्त़ होएत। नुआमे दाग पड़ल, देहपर पानि पड़ल-प्राप्त भेल। मन शब्दजसँपर प्रयुक्तल पड़ धातु स्मदरण अर्थमे जानब। मन पड़ब-स्मडरण भेल। जानि पड़ल-ज्ञानविषय भेल। देखि पड़ल, सुनि पड़ल, बुझि पड़ल-तत्तज्ज्ञाडनगोचर भेल। पानि पडि़ रहल अछि-खसि रहल अछि।
लड़ युद्ध करब। रावण रामसँ लड़ल-युद्ध कएलक।
सड़ नि:सार होएब। खढ़ भिजलासँ सडि़ गेल-निस्सा।र भए गेल; सड़ल आमकेँ फेकू।
गाड़ निखनन। ई खाम्हल चारि हाथ गाड़ल अछि-माटिमे प्रवेशित अछि।
छाड़ छोड़ब (त्या ग)। धोती छाड़ैत छथि-देहसँ हटबैत छथि। ओ पढ़ब छाड़लक-छोड़लक।
डाँड़ दण्ड़न। जयलाल दस रुपैआ डाँड़ल गेलाह-हुनकासँ दस टाका दण्डल लेल गेल।
पाड़ 1. पातित करब ।
2. मनसँ पर स्म रण करब। हम अहाँकेँ खाटपर पाडि़ दैत छी-पातित कए दैत छी, सुताए दैत छी। अहाँ मन पाडूजे कुञ्जी कतए राखल ।
साड़ निस्सानर करब। पाकल आमकेँ अहाँ साड़ल-नि:सार कएल किन्तु खाएल नहि।
गिड़ निगलन। साप बेङकेँ किन्तुु गिडि़ जाउ।
मिड़ मर्दन। धान पाएरसँ मिड़ैत अछि-आमर्दित करैत अछि जे सीससँ झडि़जाए। आँखि मिड़ैत अछि-हाथसँ मलैत अछि।
उड़ 1. उड्डयन, आकाशमार्गें जाएब।
2. मेटाएब। विलुप्त होएब। पक्षी उड़ैत अछि- आकाशमे चलैत अछि। अत्यैधिक दिनक लिखल पोथीक अक्षर उडि़ जाइत छैक-विलुस भए जाइत छैक। हरदिक रङ्ग रौदमे उडि जाइत अछि-नष्ट भए जाइत अछि।
गुड़ आमर्दन, जाहिसँ पिण्डीजभूत विशकलीभूत हो। गुड़ ओ उत्तम थीक जे गुड़ने, आमर्दन कएने, बुकनी भए जाए।
जुड़ उपायसँ लभ्यम होएब। हमरा जे जुड़ल, उपायलभ्य भेल, से अहाँकेँ देल।
बुड़ नष्टक होएब। जयलाल धन बुड़लैन्हि-विनष्टा भेलैन्हि।
मुड़ 1. ठकब।
2. माथक केश अस्तुारासँ काटब।
देवदत्त बजारमे बनिआसँ मुड़ल गेलाह-ठकल गेलाह। माथ गेल-छित्रकेश भेल।
रेड़ जोरसँ टारब। मेलामे लोक रेड़ल जाइत अछि-जोरसँ ठेलल जाइत अछि।
कोड़ खनन। पोखरि कोड़ैत अछि-खुनैत अछि।
छोड़ त्यािग। अधलाह वृत्ति छोड़बाक चाही-तेजबाक चाही।
जोड़ 1. संकलन।
2. युक्त करब। रुपैआक खर्च जोड़ैत अछि-ठीकैत अछि। चूल्हिमे जारन जोड़ैत अछि। हथहरमे टोटी जोड़ल-युक्त। रहैत छैक।
तोड़ भञ्जन। रामचन्द्रह महादेवक धनषु तोड़लैन्हि-भग्नन कएलैन्हि।
फोड़ पक्कासँ वा खसलासँ भग्न। होएबाक योग्यस वस्तु क भञ्जन। अहाँ जल भरबाक काल घैल फोड़ल-भग्न कएल।
मोड़ वक्र करब (लाम वस्तु़क संकोचन)। जगह कम अछि तेँ पाएर मोडि़केँ-संकुचित कए सुतबाक होएत।
दौड़ धावन (अति वेगासँ गमन)। कुकुर दौडि़केँ-अतिबेगसँ जाए सिकारकेँ धरैत अछि। भोजनोत्तर दौड़ब-धावन दु:खप्रद थीक।
जकड़ 1. सञ्चारशून्य़ होएब ।
2. दृढ़तया पकड़ब। बातरससँ पाएर जकडि़ गेल अछि-संचारराहित भए गेल अछि। ज्विर हमरा जकड़मे अछि-दृढ़ भए धएने अछि।
भकड़ तण्डुजलादिक विकारसँ युक्त होएब। ई चाउर भकडि़ गेल-विकारसँ युक्तए भेल।
अखड़ सन्दिग्ध होएब। हुनक एक बात हमरा अखड़ल-तर्क-वितर्क उत्प ज्ञ कएलक।
निखड़ स्पडष्ट‍ अङिकत होएब। अहाँ पोथी जे लिखल ताहिमे तकोक ठाम अक्षर निखड़ल नहि अछि-स्पेष्टभ अङित नहि अछि । थालमे पाएर निखड़ैत अछि।
उखड़ 1. उपड़ब, मूलसंयोग छोड़ब।
2. निखड़ब। बिना कोड़ने खुट्टा नहि उखड़त-उत्खाबत नहि होएत। अक्षर नहि उखड़ल-नहि निखड़ल। ओहि दरबारसँ जयलाल उखड़लाह इत्यारदि प्रयोग लाक्षणिक जानब।
खोखड़ अस्त्रा गग्रकर्षणसँ वियोजन। सुखदेबा माटि खोखड़ैत अछि-अस्त्राकग्र लगाए घैँचि घैँचि हटबैत अछि। दाउन करबाक काल माटिमे सटल धान खोखडि़केँ जमा करैत अछि।
झोखड़ वलीपलितक प्राप्ति। देवदत्त झोखड़लाह-चमड़ा संकुचित भेलैन्हि।
झगड़ कलह करब। झगड़ैत छथि-कलह करैत छथि।
रगड़ घर्षण। देवदत्त चानन रगड़ैत छथि-घँसैत छथि।
बिगड़ विकारक प्राप्ति। काष्ठौ षधि छओ मासक बाद बिगडि़ जाइत अछि-विकारयुक्तब भए जाइत अछि। घोड़ा बिगड़ल-विकारसँ बदमासी कएलक। देवदत्त बिगड़लाह-विकार पओलैन्हि, अर्थात् क्रुद्ध भेलाह ।
टघड़ स्व़त: नीच गमन। बट्टुक टघडि़केँ पानिमे चल गेल।
टुघड़ घुसुकि-घुसुकि आगाँ जाएब। ई नेना टुघड़ैत अछि-घुसुकि-घुसुकि आगाँ जाइत अछि।
पछड़ बजारल जाएब। देवदत्त पछड़लाह-बजारल गेलह।
पिछड़ स्खडलन, विचलन। देवदत्त पिछड़लाह-स्खरलित भेलाह, पाएर छछलि गेलैतिन्हु।
नोछड़ नखाघात। एकरा अहाँ किएक नोछड़लिऐक-नहसँ कटलैक ?
उपड़ उखड़ब, मूलवियोग। रोप होएबाक हेतु धानक बीआ उपड़ैत अछि-माटिसँ समूल उदधृत होइत अछि।
धफड़ धालिमे शीध्रता करब। अहाँ धफडि़केँ चलू-शीघ्रतासँ चलू।
फुफड़ उपर विकारसँ युक्त होएब। दही फुफड़ल-उपर विकासँ युक्तू भेल। फुफड़ी लागल।
उमड़ परिपूर्ति। पथिआ धानसँ उमड़ल अछि-परिपूर्ण अछि।
हुमड़ शब्द़ करब। बाघ हुमड़ैत अछि-गम्भीरर शब्दछ करैत अछि।
सुरड़ एकमे संबद्ध अनेक वस्तुरक हाथसँ आकर्षण। खेतमे पाकल धान नेना सभी सुरड़ैत अछि-हाथसँ आकृष्टस करैत अछि।
उखाड़ मूलरहित निखात वस्तुकक उपर करब। खाम्हर जे गाड़ल अछि तकरा उखाडै़त अछि-तरसँ उपर लबैत अछि।
टधाड़ रेखाकारेँ जलादिक बहाएब। पानि हेराएकेँ जनु टघाडू-बहाबी जनु; पटिआ जाएत।
पछाड़ पटकब। कुस्तीामे जयसिंह भवदेवकेँ पछाइलक-बजारलक।
उजाड़ सर्वावयव-वियोजन। एहि घरकेँ उजाडि़-वियोजित कए फेरिकेँ बान्हडब।
उपाड़ उत्पाेटन, समूल वस्तुफक घैचिकेँ वा कोडि़केँ भूल वियोजन। दूबि उपा‍ड़ैत अछि-समूल वियुक्तत करैत अछि।
दबाड़ डाँटब। मालिक नोकरकेँ दबाड़ैत छथि-डैंटैत छथि।
नछोड़ नखसँ आघात। अहाँ एकरा किएक नछोड़लिऐक-नहसँ किएक आहत कएलिऐक ?
निपोड़ दैन्य़सूचक दाँतक प्रकाशन। जयलाल दाँत निपोड़लैन्हि-दीनतासँ दाँत देखओलैन्हि तेँ ओ दण्डित नहि भेलाह।
मसोड़ मचोड़ब। घाड़ मसोड़ैत छथि-मचोड़ैत छथि जे सिरसंकोच छूटाए
गुमसड़ गूमिकेँ सड़ब। ई धान विना सुखओने राखल तेँ गुमसड़ल-गूमिकेँ विकृत भेल।
घसमोड़ बेसिकेँ घाड़ मोडि़ दुहू हाथपर माथ राखब। देवदत्त घसमोड़ने छथि-बैसल घाड़ मोडि़ दुहू हाथ माथपर रखने छथि।
गढ़ रचना (आभूणक निर्माण)। सोनार गहना अछि-निर्मित करैत अछि। औँठी गढ़लक-बनओलक
चढ़ आरोहण (उञ्जपर जाएब)। कोठापर चढ़ैत अछि-आरोहण करैत अछि। गाछपर बानर चढ़ल अछि-आरूढ़ अछि।
पढ़ 1. पठन, पारायण ।
2. अध्य यन, गुरुसँ सार्थ अवगम। पुराण पढ़ैत छथि-पारायण करैत छथि। चीठी पढ़ैत छथि-बचैत छथि। व्यािकरण पढ़ैत छथि-गुरुसँ अर्थसहित बुझैत छथि।
बढ़ वृद्धि। वर्षा-समय धारमे पानि बढ़ैत अछि-उपचीयमान होअत अछि।
मढ़ संयोजन। लाठी तारसूं मढ़ैत अछि-युक्तच करैत अछि। झुट्टी मढ़ल-युक्त़ कएल
काढ़ 1. पात्रसँ उद्धरण।
2. नाओ चलबाक हेतु पानिक आघात। पाकपात्रसँ भात काढ़ैत छथि-उद्धृत करैत छथि।
बाढ़ संमार्जन ( भूमिक गर्दाप्रभृतिक अपाकरणसँ शोधन)। घर बाढ़निसँ बाढ़ैत अछि-संमार्जित करैत अछि।
बेढ़ वेष्टअन। माल नहि जाए एहि हेतु बाड़ीकेँ बेढ़ैत छथि-वेष्टित करैत छथि।
लेढ़ कर्दमसँ समन्ताषत् युक्त होएब। सूगर खत्तामे लेढ़ैत अछि-थाल लगबैत अ अछि।
ऐँढ़ ऐँठब। सुतरीकेँ ऐँढ़ैत अछि-ऐँठेत अछि। एकर रस्साक बनाओत।
ओढ़ देहपर वस्त्र क पसारिकेँ समान्तासत् लगाएब। जाड़-समय लोक तुराइ ओढ़ैत अछि-पसारिकेँ लगबैत अछि।
लोढ़ सीस बीछब खेतमे। धान कटलापर सीस लोढ़ैत अछि-बीछैत अछि।
औँढ़ आभ्यतन्त र ममोर। बुझि पड़ैत अछि पेटकेँ औँढ़ैत अछि-चालित करैत अछि।
ड्यौढ़ ड्योढ़ कए लगाएब। टाटकेँ डयौढि़ देलासँ-ड्योढ़ कए लगओलासँ परदा होएत।
अमेढ़ ऐँठब। खाम्हसकेँ अमेढि़-ऐँठिकेँ गर घुमाउ
चकोढ़ सञ्चार शून्यह करब। बातरस देहकेँ चकोढि़ लेलक अछि-राञ्चारशून्य कए देलक अछि।
ढकढोढ़ वस्तु़ हड़बड़बैत ताकब। अहाँ वस्तु्सभकेँ किएक ढकढोढ़ैत छी-हड़बड़बैत तकैत छी।
खत छेदनजात चिह्रसँ युक्त करब। ई बेलही नोसिदानी खतल अछि-कित्र्चित् 2. काटि चिन्हचसँ युक्त कएल अछि। केबाड़मे खतिकेँ-छेदनसँ युक्त‍ कए नखासी कएल अछि।
मत मदसँ युक्त होएब (हाथीक)। हाथी मतल-मदसँ युक्तथ भेल।
जित 1. जय (उत्क‍र्षलाभ)।
2. अभिभव ।
3. काँति लेब। ई नेना खेडि़मे सभसँ जितैत अछि-सभसँ उत्कृिष्टस होइत अछि। शत्रु जीतल गेल-अभिभूत भेल अर्थात् हारल। हम जूआमे हजार रुपैआ जीतल-प्राप्त कएल।
तित आर्द्रीभाव (पानि सँ भिजब)। जयलाल वर्षामे तितलाह-भिजलाह। नुआ तितल अछि-पानिसँ भिजल अछि।
बित व्तीतितत होएब। अवसर बितल-व्यहतीत भेल।
रित अधिक सङ्ग मन मिलब। ई नेना हमरामे रितल अछि-मनसँ मिलल, अछि, कारण जे हम अधिक काल कोरकेँ लैत छिऐक।
कुत कन करब। खेतक धान कुतल-कन कएल, अन्दाधजसँ इयत्ता कएल।
छुत संपर्कदुष्टत होएब। भात छुतल-संपर्कदुष्टल भेल, हेतु जे कुकुर छूबि देलक।
मुत मूत्रत्याेग। नेना बिछाओनपर मुतलक-मूत्रत्या ग कएलक, तेँ बिछाओन धोएले गेल अछि।
सैँत ओरिआएकेँ राखब। नोकर वस्तुासभ सैंतैत अछि-ओरिआए रखैत अछि।
गोँत पशुक मूत्रत्यामग। माल प्रात: काल गाँतैत अछि-गोँत करैत अछि। जे मनुष्यभक मूत्र से मालक गोँत कहबैत अछि।
जोत 1. हरसँ विदारण ।
2. शकटमे वाहनक योजना। हरबाह खेत जोतैत अछि-हरसँ विदारित करैत अछि। गाड़ीमे बड़दकेँ बहल-मान जोतैत अछि-युक्तर करैत अछि।
न्योँित निमन्त्र ण। हम ब्राह्मणकेँ न्योैतल-निमन्त्रित कएल।
व्योँरत बिलोबन्द‍ करब। हम कार्यसभ ब्योँ तल-बिलोबन्द् कएल।
चिन्तब गुरुसँ अधीतक अनकासँ बुझब। अहाँ हमरासँ पढि़ कोनो विद्यार्थीसँ चिन्तहल करू-बूझल करू।
बकत भूतक व्य क्त वचन। झोँका देने भूत बकतल-व्त् करू कथा बाजल।
चौपेत 1. तराउपर करब।
2. मोडि़माडि़ चौखूट करब। कपड़ासभ अहाँ चौपेतिकेँ-मोडि़ चौखूट कए राखू। लकड़ीसभ चौपेतल अछि-तराउपरी कए राखल अछि।
अरिआत अनुव्रजन। पाहुनकेँ अरिआतैत छथि-अनुव्रजन करैत छथि। सभापतिकेँ अरिआति सभामे अनिऔन्हि।
भथ भसाठसँ उच्चह होएब। बाढि़मे पाँक खसलासँ पोखरि भथल-उच्च़ भेल।
मथ मन्थ़न, दूध (जलादि) क घुमाए
2. आघात। दूध मथैत अछि-मन्थ न करैत अछि।
कुथ गुदमार्गद्वारा निस्सा्रसणक्लेश। नेना कुथैत अछि-अमांसएसँ गुदामार्गद्धारा जोर पड़लासँ क्ले श पबैत अछि।
गुथ सूत्रमे दृढ़ संबन्ध । फूलक मालकेँ गुथैत अछि-दृढ़ सम्बमद्ध करैत अछि। गथला पर फूल आदिमे परस्पअर किछु अन्तिर रहि जाइत छैक वा जोरसँ मिलल नहि रहैत अछि, तकरा ससारि
2. जोरसँ संबद्ध करब गुथब भेल।
हुथ अनुचित गञ्जन। देवदत्त नोकरकेँ हुथैत रहैत छथि-गञ्जन करैत रहैत छथि, जे गञ्जन उचित नहि।
हँसोथ शीघ्रतया हाथसँ एकत्रित करब। देवदत्त नोकरकेँ हुथैत रहैत छथि-गञ्जन करैत रहैत छथि, जे गञ्जन करैत रहैत छथि, जे गञ्जन जे गञ्जन उचित नहि।
द 1. दान ।
2. अनिरोध ।
3. लगाएब।
4. पढ़ब।
5. करब। 1. महाराज पण्डितकेँ हाथी देल।
2. हमरा जाए दिअ-जएबाक निरोध जनु करी।
3. मन दए सुनू। देहपर हाथ दिअ अर्थात् लगाउ।
4. गारि दैत अछि-गारि पढ़ैत अछि।
5. मना देलैन्हि-निषेध कएलैन्हि। आज्ञा देलैन्हि-आज्ञा कएलैन्हि ।
बद वरणा, स्वी-कार। जयलाल हमरादिश बदल छथि-स्वीरकृत छथि।
मद वरण, स्वीिकार। एकर मद्दी नहि-स्वी‍कार नहि।
कुद उल्लमङूघन, कूर्दन, फानब। हनुमान समुद्र कूदि गेलाह।
छेद भूर करब। नेनाक कान छेदल गेलैक
भेद ,, सुइआसँ हा‍थ भेदल गेल ।
सेद तप्तस करब। हाथ सेदैत अछि-तप्त करैत अछि।
गोद वारंवार किंचित् भोँकब। स्त्रीरगण खोदहाक हेतु देह गोदबैत अछि, खोदपारिनी गोदैत छैक।
बगद विरुद्ध होएब। हमरासँ ओ बगदल छथि-विरुद्ध भेल छथि।
सोआद आस्वाँदन, रसग्रहण। मधुरकेँ सोआदैत अछि-भक्षणसँ रसग्रहण करैत अछि।
सध निश्शेणष होएब, निघटब। चाउर सधल-अवशिष्टि रहल, अर्थात् सभटा खर्च भए भेल।
साध 1. सिद्ध करब।
2. सोझ करबाक हेतु भार देव। 1. कठिन कार्य हम साधल-सिद्ध कएल। 2. चौपालाक बाँसकेँ साधू-भारसँ आक्रान्ति करू जे सोझ होएत।
खोध उदघाटन। कान काठीसँ खेधैत अछि। कठखेधी पक्षी खोधिकेँ काठमे भूर करैत अछि।
सोध शुद्ध करब। पुस्त क सोधल-शुद्ध कएल।
लुबुध एकमे अनेक गुच्छसरूपेँ रहब। चीनीमे चुट्टी लुबधल अछि।
अरबध ज्ञान। ई कार्य ओ अरबधिकेँ करताह, जानिकेँ करताह।
गन गणन। रुपैआ गनैत अछि। मोटा दशटा गनल अछि।
बन 1. सिद्धि।
2. मिलान होएब। घर बनल-निर्मित भेल। हमरा हुनकासँ नहि बनैत अछि-मिलान नहि होइत अछि, अर्थात् नहि पटैत अछि।
मान 1. स्वीअकार ।
2. संमान करब।
3. बुझब। 1. हमर कथा अहाँ मानू-स्वी कार करू। 2. अहाँकेँ गुरूजी मानैत छथि-संमान करैत छथि।
3. हम मानने छलहुँ जे अहाँ नहि आएब।
किन क्रयण। चारि टाकामे भगवानक मुकुट कीनल।
छिन बलात् ग्रहण, अनका हाथसँ। हम चोरक हाथसँ मोटा छीनल।
बिन वस्त्रा द्यर्थ तन्तु प्रभृतिक योजना ( वस्त्राुदिनिर्माण)। हम नुआ बिनैत छी, पटिआ बीनि चुकलहुँ।
खुन 1. कोड़ब ।
2. पादसँ आक्रमण।
3. गुणन।
4. गुणपरीक्षण। 1. जन सभ इनार खुनैत अछि-कोड़ैत अछि।
2. वस्तु सभ परसल अछि, तकरा माल खुनए नहि।
गुन 1. गुणन।
2. गुणीपरीक्षण 1. खेत गुनल, एक बिगहा भेल।
2. वासडीह गुनैतछथि-गुणक परीक्षा करैत छथि।
खुन 1. कोड़ब ।
2. पादसँ आक्रमण।
3. गुणन।
4. गुणपरीक्षण। 1. जन सभ इनार खुनैत अछि-कोड़ैत अछि।
2. वस्तु सभ परसल अछि, तकरा माल खुनए नहि।
तुन तुरक धुटकीसँ विश्लइषण। तुर तुनैत अछि-चुटकीसँ विश्लेअषण करैत अछि।
बुन बाओग करब। खेतमे तीसी बुनल-बाओग कएल।
मुन छिद्र बन्‍द करब। तुरसँ कान मुनि लिअ जे बसाल नहि लागए ।
सुन श्रवण। हम सुनैत छी-श्रवण करैत छी।
टोन काष्ठन दूखण्डश कए काटब। डारि सभ टोनू-खण्ड‍
2. कए काटू।
अकान कान पाथि सुनब। दूरसँ कोनो शब्दक अबैत अछि तकरा हम अकानैत छी-कान पाथि सुनैत छी।
गतान घोर सक्त् छी करबसँ तानब। खाट गतानल जाइत्‍ अछि-घोर सक्कतत कएलासँ तानल जाइत।
गुदान अपेक्षा (कथा मानब)। ओ हमरा गुदानैत छथि-अपेक्षित करैत छथि।
पलान अतियत्नग। ओ एहि कार्यमे पलानिकेँ लगलाह, अतियत्नापूर्वक प्रवृत्त भेलाह।
उसिन धान्यानदिकेँ केवल पानिमे आगिसँ सिद्ध करब। धान वा आलू उसिनैत छथि-पानिमे आगिक ताबेँ सिद्ध करैत छथि।
बिधुन उनटाए पनटाए देखब। नेना वस्तुएजात बिधुनैत अछि-उनटबैत-पनबैत अछि।
कप कम्पतन। जाड़ेँ देह कपैत अछि। अतिवार्धक्यिसँ हाथ कपैत छैक।
खप न्यूकन होएब। ग्रहणमे सूर्य्य-चन्द्र्मा छथि।
छप 1. तिरोधान ।
2. मुद्रण । भीतक आड़मे छपि गेलाह।
जप परश्रवणागोचर मन्त्रहजय। गायत्री जपैत छथि।
टप उल्लंघन। भीत टपि गेलाह।
छिप 1. प्रच्छरन्नय होएब।
2. प्रच्छरत्र करब।
3. जोरसँ खैँचब। 1. ओ छिपल छथि-प्रच्छहत्र छथि।
2. किछु मधुर छिपलक-प्रच्छ।त्र कएलक। प्रथम अर्थमे अकर्मक, द्वितीयमे सकर्मक। 3. बनसी छिपलक-जोरसँ खँचलक।
टिप क्रीड़ामे प्रधानकेँ चालि कहब। सतरञ्जमे टिपनिहार चाही।
धिप तबब (अग्नितापसँ युक्त होएब)। जल धिपल-उष्णस भेल।
निप भमिलिम्प न। आँगन निपैत अछि-पानिगेबरसँ उपलिप्त करैत अछि।
धुप धुआँसँ पकाएब। केरा धुपैत अछि-धूआँसँ पकबैत अछि।
खेप कालातिवाहन। ओ खेपैत अछि-कालक्षेपण करैत अछि।
लेप लिप्तै करब। गोबरमाटि लेपैत अछि। लिप्तष करैत अछि।
छोप उपरसँ काटब। अधिक बढ़ल धानकेँ खसि पड़बाक डरसँ गृहस्था छोपैत अछि-उपरसँ काटि दैत अछि।
तोप आच्छाछदित करब। घरमे लागल आगि छाउर-धूरासँ तोपलक-जँतलक।
थोप ,, आगि थोपलक-आच्छा।दित कएलक।
धोप आच्छाोदन। आगिकेँ धोपलक-आच्छाैदित कएलक।
रोप रोपण। खेतमे धान रोपैत अछि।
छरप लाँधब। खेडि़मे नेनासभ छरपैत अछि वा तरपैत अछि।
तरप ,,
अड़ोप आरोप। पएर अड़ोपलक-आरोपित कएलक।
हँफ मालक मारबाक चेष्टाै। ई बड़द हैफँत अछि-मारबाक चेष्टा मात्र करैत अछि।
अब 1. आगमन ।
2. ज्ञानविषय होएब। 1. देवदत्त काशीसँ गाम अबैत छथि-आगमन करैत छथि ।
2. हमरा शास्त्र अछि-ज्ञानविषय होइत अछि।
गब गान। गबैआलोकनि गीत गबैत छथि-गीतगान करैत छथि।
तब तापसँ युक्त होएब। लोहिआ तबल-तप्त भेल।
दब 1. नीच होएब।
2. नीच करब। 1. मल्लकयुद्धमे देवदत्त सँ जयलाल दबलाह।
2. जयलालकेँ देवदत्त दबलैन्हि। प्रथमे अकर्मक, द्वितीय अर्थमे सकर्मक।
धब कि‍त्र्चित्प्रिकाश। चन्द्र माक किरण धबल-कि‍त्र्चित्प्रकाश भेल। रोगसँ हिनका देह पर उजरी धबैत छनि।
पब प्राप्ति। जयलाल रुपैआ पओलैन्हि-प्राप्तै कएलैन्हि।
फब लहब। ई क्रिया हुनका फबैत छैन्हि-लहैत छैन्हि।
बब व्याहदान। पक्षी ताओसँ मुह बबैत अछि।
भब प्रिय लागब। हुनका भकुओ चाउरक भात भबैत छैन्हि-मन:पूत होइत छैन्हि, अर्थात् प्रिय लगैतछैन्हि।
लब 1. नम्र होएब।
2. आनब। 1. ठारि फलक भारसँ लबल अछि-नम्र अछि।
2. पानि लबैत छथि-अनैत छथि ।
जिब प्राणधारण। जयलाल जिबैत छथि।
पिब पान। पानि पिबैत छथि।
सिब सूचीद्धारा तागसँ दूक संयोगब। दरजी अङ्ग सिबैत अछि-सूचीसँ दुरुस्ति करैत अछि। सीलक सीअत।
चुब छिद्रद्वारा जलादिक निष्ठदकाशन। घैल चुबैत अछि-छिद्र देने पानि खसबैत अछि। घर नहि चुबत-छिद्र देने जल नहि खसाओत।
छुब स्पेर्श। नेना आगि छुबि लेत-र्स्पेश कए लेत, हटाउ।
डुब निमज्जन। माछ पानिमे डुबल रहैत अछि-निमग्न रहैत अछि। डेँगी नाओ उनटलहुपर नहि डुबैत अछि।
खेब नाबक चलाएब। मल्लाचह नाओ खेबैत अछि-लए जाइत अछि।
छेब उपयुक्त करबाक हेतु छीलब। धरनि छेबैत अछि-उपयुक्तल बनएबाक हेतु छीलैत अछि।
टेब उपयोगार्हत्वेिन निश्च्य। धरनि योग गाछ टेबू-पसिन्दत करू।
लेब सार्द्र मृत्तिकासँ संयोजन। टाट लेबैत अछि।
सेब उपचार (सेवा करब)। भगवानूकेँ सेबू जे दु:खजालसँ मुक्मू होएब।
गोब क्वबचित्क्व चित् मुइल धानक जगहपर पुन: धान रोपब। खेतमे धान गोबैत अछि-कतहु-कतहु विरल भागमात्रमे धान रोपैत अछि।
झकब फलक खसबाक हेतु गाछकेँ डोलाएब। आमक गाछ: झकबैत अछि-आम खसबाक हेतु डोलबैत अछि।
निकब माछप्रभृतिकेँ रन्हैबाक योग्यर बनाएब। माछ निकबैत अछि-रन्ह बाक योग्या बनबैत अछि।
जोगब कालान्तछरमे उपयोगार्थ जुगुताएकेँ राखब। घरमे वस्तु सभ जोगबैत अछि-उपयोगाथ्र जुगुताए केँ रखैत अछि।
अँचब 1. मुखप्रक्षालनगण्डूिषादि करब।
2. ओ कराएब। देवदत्त भोजन कए अँचबैत छथि-हा‍थ-मुह धोइम छथि। नोकर पाहुनकेँ अचबैत छैन्हि।
निछब तृणपुञ्ज्कह छोट तृणकेँ हटाए संशोधन। खड़ही वा खढ़ निछबैत अछि-संशोधन करैत अछि।
बिछब आस्त रण। पटिआ बिछबैत अछि आस्तृछत करैत अछि।
ओछब ,, पटिआ ओछबैत अछि-आस्तृृत करैत अछि।
बजब आह्रान। सभामे पण्डितलोकनिकेँ बजाउ-आहूत करू।
पिजब तीक्ष्णी करण। बसिला पाथपर पिजबैत अछि-तीक्षण करैत अछि।
सुञ्झब प्रत्यछर्पण। मंगनी जे वस्तु् आनल से सुञ्झाए दिऔक-आपस कए दिऔक।
अण्ठीब अन्यीथा करब। ओ कहलैन्हि जे पुस्त।क देब तकरा अण्ठलओलैन्हि-अन्येथा कएलैन्हि, अर्थात् नहि देलैन्हि।
नड़ब 1. हाथसँ भूमिपर राखब । 2. अस्थँसानपर छोड़ब । ओ नोसिदानी एहि ठाम नड़ाए चल गेलह।
अढ़ब कार्यमे प्रवृत्त कराएब। जनकेँ अढ़बैत अछि-प्रवृत्त करबैत अछि।
सतब दु:ख देव। ओ हमरा सतबैत छथि-दु:ख दैत छथि।
छिपब लए लेबाक हेतु प्रच्छएन्नख करब। किछु मधुर छिपओलक-प्रच्छ्त्र कएलक।
धबब प्रच्छधत्र भए आनक प्रतीक्षा करब। चोरकँ धबबैत छी-प्रच्छ्त्र रहि प्रतीक्षा करैत छी।
चिबब चर्वण। फुटहा चिबबितहुँ जँ दाँत सक्क्त रहैत।
गमब बिताएब। हम समय गमबैत छी-बितबैत छी।
जमब अपन प्राशस्लयसूचक क्रिया करब। ओ बड़े अमबैत अछि-अपन प्राशस्य्ैत बोधक क्रिया करैत अछि।
सरब अनवरत किंचित् घुबब। घैल सरबैत अछि-अनवरत चुबैत अछि।
बेरब 1. मालक निरोध।
2. पृथक्किरण। 1. माल बेरबैत अछि-निरोध करैत अछि। 2. गहूमसँ जओ बेरबैत छी-पृथक् छी।
उलब पानिसँ अमिश्रित काँच धानक भुजब। धान उलबैत अछि-बिना भीजल अशुष्कब धान भुजैत अछि।
बैलब निकालब। हम ओकरा बैलबितहुँ जँ नीक दोसर नोकर भेटैत तँ निकालितहुँ ।
पसब 1. माँड़क अत्रसँ पृथक्कार। 2. माँड़सँ वियोजन। 1. माँड़ पसबैत छी-भातसँ हटबैत छी।
2. भात पसबैत छी- माँड़सँ वियुक्त करैत छी।
ओसब सूर्पादिसँ वायुद्वारा अत्रक साफ करब। धान ओसबैत अछि-वायु द्वारा साफ करैत अछि।
कोँचिअब वस्त्रािदिकेँ सङकचित करब। धोती कोँचिअबैत अछि-संकुचित करैत अछि।
गेँठिअब ग्रन्थिसँ युक्त करब। माला गेँठिअबैत छथि-गेँठसँ युक्त करैत छथि।
झिलिअब काटल मा‍टिकेँ कोदारिसँ सरि करब। माटि झिलिअबैत अछि-सरि करैत अछि।
घिसिअब माटिपर घर्षणपूर्वक लए जाएब। काँट घिसिआएकेँ आन-माटिमे घर्षणपूर्वक आन।
टरकब अण्ठापएब। काज टरकबैत अछि-अण्ठमबैत अछि।
बेकछब वचनसँ अति व्यिक्त करब। अहाँ बातकेँ बेकाछबैत छी-अति व्यतक्तै करैत छी।
नँगड़ब खेहरब। चोरकेँ पाँछसँ नँगड़बैत वा नङड़बैत अछि-खेहारैत अछि।
नङड़ब ,,
पछतब पश्चा त्ताप करब। हम आब पछतबैत छी-पश्चा़त्ताप करैत छी।
परतब ज्ञातक जाँच। परताओल परताबी बुद्धिक विनाश।
जुगुतब सु‍रक्षित करब। आश्रमे वस्तुरजात जुगुताबी-सुरक्षित करी।
अकनब कान पाथिकेँ सुनब। हम हुनक बाजब अकनबैत छी-कान पाथि सुनैत छी।
अजमब साध्यसताक जाँच। ई सील हमरा बुतेँ उठत वा नहि से अजमबैत छी-जाँच करैत छी।
अकरब अयशक प्राप्ति। ओ करओलैन्हि-अयश प्राइज़ कएलैन्हि।
तेहरब तृतीयावृत्त करब। धान तेहरबैत छी-तेसर बेर तोलैत छी।
दोहरब द्वितीय आवृत्त करब। बात दोहरबैत छी-दोसर बेर कहैत छी।
कुम्होरब थनकेँ बढ़ाएब। महीसि कुम्हबरबैत तोलैत छी।
दोहसब दोहराएकेँ टोकब। अहाँ दोहसबैत छी-दोहराए केँ टोकैत छी।
घोँकडि़अब दुहू ठेँ गहुनकेँ मोडि़ दाढ़ी लग राखब। जाड़ेँ घोकडि़अबैत छथि-ठेँ गहुन मोडि़ दाढ़ीमे लगबैत छथि।
महलिअब महाल-महाल फुटाएब। कागज महलिअबैत छथि-महल-महल फूट करैत छथि।
खोभ आबाद खेतक विपत्र स्था नमे धान रोपब। धान खोभैत अछि-विवत्र स्था नमे रोपैत अछि।
चोभ रसयुक्तक मुहमे लगाए रसक ग्रहण। आम चोभैत अछि-मुहमे लगाए रस खाइत अछि।
टोभ बाओग करबाक योग्य बीआकेँ एकाँएकी हाथसँ बैसाएब। धानमे बदिम टोभैत अछि-एकाएकी हाथसँ बैसबैत अछि।
सोभ सौन्द र्यक प्रकाश करब। पूर्ण चन्द्र मा सोभैत छथि-शोभायुक्तु होइत छथि।
कम घटब। दश सेर मधुर पठाओल ताहिते आध सेर कमल-घट्टी भेल।
गम जाँच करब। हमर गमल अछि-जाँच कएल अछि जे हम एक मन उठाए सकब।
जम 1. उत्कृ।ष्टअ होएब।
2. जमा होएब। 1. नाच खूब जमल-उत्कृ ष्टु भेल। (एवम् भोज जमल)।
2. सभामे लोक जमल अछि-जमा अछि। घाटपर कजरी जमैत अछि-जमा होइत अछि।
नम 1. उत्कृमष्टअ होएब।
2. मालक जलाशयमे पानि पीअब। 1. आब ओ नमलाह-वार्धक्य सँ लबि गेलाह ।
2. बड़द नमल-पानि पीलक।
गुम तापसँ शिथिल होएब। मडुआ गुमल-ढेरीक तापसँ शिथिल भेल, आब मिड़ल जाएत।
घुम भ्रमण। पण्डितजी घुमैत रहैत छथि।
जुम प्राप्ती होएब। अन्नप जुमैत अछि-प्राप्तय होइत अछि। देव झा काशी जुमलाह-प्राप्ता भेलाह।
डुम निमज्ज न। नाओ पानिमे डुमल आछि-डुबल अछि। डुम धातुक प्रयोग उत्तम व्याक्तिक व्य वहारमे नहि।
दोम झमारब। एक्का। सवारकेँ बड़े दोमैत अछि-झमारैत अछि।
रोम पशुपक्षीक निवारण। गुलेतीसँ कौआ-बानर रोमैत छी-निवारित करैत छी।
जनम उत्पतत्ति। कोठापर पीपरक गाछ जनमल अछि-उत्पपत्र भेल अछि।
बिलम विलम्ब करब। अहाँ अएबामे बिलमू जनु-विलम्बप जनु करी।
कर करण (साधन)। कार्य करैत अछि, कार्य कएलक।
गर द्रववस्तुतक वस्त्रामदिसँ विच्यु्ति। खीचल नुआसँ पानि गरैत अछि-च्युदत होइछ।
चर बूलि-बूलि तृणादि-भक्षण। माल चरैत अछि-लागल तृण दाँतसँ काटि 2. खाइत अछि।
जर दग्ध होएब। नुआ जरल-दग्धख भेल।
झर पत्रफलादिक बहुत खसब। आम झरत-अधिक खसत।
टर सोझाँसँ अण्ठाुएकेँ चल जाएब। ओ एहिठामसँ टरल-लगए चल गेल।
ठर शीत होएब। हाथ-पाएर ठरल अछि-शीत अछि। जाड़मे परसल भात ठरैत अछि, खाए लिअ।
ढर पात्रसँ पतन। घैलमे पानि कम्म अछि, बिना घैल उठओने लोटामे नहि ढरत-खसत नहि।
तर 1. तेल आदिमे व्यनञ्जनादिक पाक।
2. पार होएब। 1. तिलकोड़ाक पात तरैत छथि-तेलमे वा घृतमे सिद्ध करैत छथि।
2. जे भगवानकेँ सेबलल से तारि गेल-संसारसमुद्रसँ पार भए गेल।
दर कोनहुमे गणित होएब। विष्णुेकान्तए झा पढ़ने कम्मेत छथि किन्तुे पण्डितमे दरल छथि-परिगणित छथि।
धर स्थातपन। अलमा‍रीमे पुस्तेलक धरू-राखू।
बर मृत्तिकाशिवलिङ्ग निर्माण। महादेव बरैत छी-माटिक शिवलिङ्ग बनबैत छी।
भर 1. पूरण ।
2. दण्ड देब। 1. जलसँ पोखररि भरल-पूर्ण भेल।
2. हम दश रुपैआ भरला, हमरा दुष्टव भरओलल।
मर प्राणवियोजन। विष खएने मनुष्यद , कोचिला खएने कुकुर मरैत अछि-प्राणसँ वियुक्त् होइत अछि।
लर अति शिशुक चलब। आब जयलालक नेना लरैत अछि-किछु-किछु चलैत अछि।
हर अपहरण। हमरा भगवान् सब धन हरि लेलैन्हि-अपहृत कएलैन्हि
गार निगालन। आमक रस गारैत छी-आँठीसँ वियोजित करैत छी।
छार छादन (शीतातपनिवारणार्थ तृणादिक प्रसारण)। जनसब घर छारैत अछि-खढ़सँ आच्छाघदित करैत अछि।
जार डाहब। ई नेना नूआ जारलक-डाहक।
झार विधूनन। धोतीमे माटि लागल अछि, तेँ धोती झारैत छी-विधूनित करैत छी।
टार हटाएब। एहि ठामसँ सबकेँ टारल-पृथक् कएल, हटाओल, आब एकान्तर भेल। अहाँक बात हम टारल-हटाओल, अर्थात् नहि मानल।
ठार ठंढा करब। जाड़ मास परसल अत्र किएक ठारैत छी, खाउ गए।
ढार द्रववस्तु क पात्रासँ खसाएब। सोनार सोन गलाए ढारैत अछि-भूमिपर खसबैत अछि। हम लोटामे घैलासँ पानि ढारल।
तार तप्त पानिसँ नीचामे धानकेँ संयुक्त करब। धार तारैत अछि-नीचाँमे तप्त पानिसँ युक्ता करैत अछि।
धार 1. गृहीत ऋणक अपरिशोधन ।
2. शुभप्रद होएब। 1. हम भवदेव झाक एक सए रुपैआ धारैत छिऐन्हि-हम भवदेवसँ गृहीत एक सए रुपैआ ऋण परिशोधित नहि कएल अछि, अर्थात् आदाय नहि कएल अछि। 2. हमरा महीसि नहि धारैत अछि-शुभप्रद नहि होइत अछि। हम अनेक महीसि किनल किन्तुि मरि-मरि गेल।
पार 1. पातन ।
2. करब। 1. जनसभ खेतमे कोदारि पारैत फारैत अछि।
2. अहाँकेँ सोर पारैत अछि-सोर करैत अछि।
फार विदारण। बाँस फारैत अछि-विदलित करैत अछि।
बार त्या गब। 1. हम माछ बारने छी-त्य।क्तक कएने छी अर्थात् नहि खाइत छी।
2. भवदत्त बारल गेलाह-समाजसँ त्यअक्त् भेलाह अर्थात् समाज हुनकसँ भोलनादि व्यनवहार त्याक्तस कएलक।
भार भिजाओल धानकेँ अग्रिद्वारा पात्रमे शुष्कक करब। धान भारैत अछि-भिजाओल धान अग्निद्वारा पात्रमे शुष्कल करैत अछि।
मार 1. ताड़न।
2. प्राणवियोजन। 1. हमरा एक थापड़ मारलैन्हि।
2. माछ मारलैन्हि।
न्या.र इच्छा । हम न्यावरैत छी-इच्छाह करैत छी जे काशी जाइ।
लार दाबिसँ सञ्चालन। भात लारू-दाबिसँ वा करछुसँ भातक संचालन करू।
हार 1. काँतिमे अपन स्वरत्वचक निवर्तनपूर्वक परस्व त्व‍क उत्पातदन ।
2. युद्धमे अभिभूत होएब। 1. युधिष्ठिर जुआमे राज्यभ हारलैन्हि ।
2. भवदेव जयसिंह दुहू गोटे कुस्ती लड़लाह, ताहिमे भवदेव हारलैन्हि-पराजित भेलाह।
चिर विदारण। बाँसक खडि़का चिरैत अछि-विदीर्ण करैत अथ्छ़।
तिर खैँचब। चाम तिरलासँ-घैचलासँ नमरेत अछि। एहि नेनाक ठोर तिरलकैक-पकडि़ खैचलकैक।
भिर संयुक्त होएब। हमरामे अहाँ भिरलहु-संयुक्तै भेलहुँ ।
घुर फिरब। ‍ देवदत्त जाएकेँ घुरलाह-फेर आबि गेलाह
चुर चूर्ण करब। लवंग चूरल-चूर्णित कएल।
थुर थकुचब। दाँतमनिक मुह थुरि दिऔक-थकुचि दिऔक।
फुर स्फू।र्तिं होएब। हमरा किछु ने फुरैत अछि-किछु स्फु र्ति नहि होइत अछि।
हुर हूरसँ युक्त करब (दरीमे माटि दए मुसरसँ मारब)। खाम मुसरसँ हूरि दिऔक जे डोलमाल नहि करए।
घेर वेष्टरन। बाड़ी टाटसँ घेरू-वेष्टित करू।
छेर पातर पुरीषक त्यादग। ई नेना बड़े छेरैत अछि-पातर पुरीषक त्यानग करैत अछि।
टेर 1. गुदानब।
2. बंसी बजाएब। 1. अहाँकेँ अपन नेना टेरैत अछि-नहि गुदानैत अछि, अर्थात् अहाँक बात नहि मानैत अछि।
2. कृष्ण भगवान् वृन्दा वनमे वंशी टेरैत छलाह-भग्नण भए बजबैत छलाह।
पेर घुमैत यन्त्र सँ निष्पी ड़न। तेलक हेतु तेलि सरिसब पेरैत अछि-निष्पीेडि़त करैत अछि।
फेर 1. उलटाएब।
2. आपस करब।
3. घोड़ाकेँ अभ्यािसार्थ चलाएब। 1. सड़ए नहि तेँ पानकेँ फेरैत छथि-उनटबैत छथि।
2. फुटल रुपैआ फेरि देलक-आपस कएलक।
3. घोड़ाकेँ सबार फेरैत अछि-चलबैत अछि।
हेर ताकब (देखब)। हे भगवान् दीन जनकेँ हेरू-ताकू।
गोर पकबाक हेतु निमुत्र करब। केरा ओ आम गोरैत अछि-निमुत्र करैत अछि जे पाएक।
घोर 1. जलादिमे मिलाएब।
2. खाअ आदिकेँ नेवार-सुतरीसँ आच्छखन्ने करब। 1. चीनी पानिमे घोरैत अछि-मिलबैत अछि।
2. खाट धोरैत अछि-नेबार वा सुतरी वा जौरसँ आच्छात्र करैत अछि।
छोर लागल तृणक काटब। जनसब खढ़ छोरैत अछि-कटैत अछि।
झोर रञ्जक द्रवमे वस्त्रा दिक डुमाएब। जंगलकेँ शिकारक हेतु झोरैत अछि-सञ्वालित करैत अछि।
मोर संकुचित करब। बिछाओन छोट अछि, पाएर मोरिकेँ-संकुचित कएकेँ सुतब।
ढौर घून आदिसँ छछारब। कोठा चूनसँ ढौरल अछि-लिप्तम अछि।
पौर परिणामार्थ दुग्धअक पात्रमे पातन। दूध पौरैत अछि-दहीक हेतु पात्रमे दैत अछि। दही पौरैत छी एहिठाम भाविनी संज्ञाक आश्रयण जानब।
थकर ककबाप्रभृतिसँ केशक विभाग। केश थकरैत छथि-ककबासँ केशक विभाग करैत छथि ।
दकर दकचिकेँ खाएब, यत्कि‍त्र्चिद्धागक त्याशगपूर्वक पैघ वस्तुा (आम्रादि) क भक्षण। आम दकरैत छथि-किछु खाइत छथि फेकैत छथि ।
चिकर जोरसँ बाजब। जयलाल चिकरैत छथि-जोरसँ बजैत छथि।
थुकर थूशब्दचपूर्वक उगिलब। पान थुकरैत छथि-थू शब्दसपूर्वक उगिलैत छथि।
सुकर नाकसँ कफादि विकारक वायुरेचनद्वारा त्यावग। कफ सुकरू-वायुरेचनद्वारा त्याजगू।
हुकर अचैतन्या वस्थानमे आन्ततर आर्तिसूचक मन्द मन्द् शब्द करब। पासी तारक गाछसँ खसल, चोट अधिक छैक, हुकरैत अछि-आन्तचर वेदनासँ तत्सूतचक मन्दत-मन्दच शब्दन करैत अछि।
ढेकर उदगार करब। भोजनोत्तर लोक ढेकरैत अछि-ढेकरैत अछि-ढेकार करैत अछि।
बोकर बान्ति (वमन)। देवदत्त ज्वोरमे बोकरैत‍ छथि-वमन करैत छथि।
झखर 1. वार्द्धक्यमजन्ये विकारक प्राप्ति।
2. सकल फलसँ वियुक्त होएब। देव झा आब झखरलाह-वार्धक्ययजन्या शरीरक ह्रास प्राप्तँ कएलैन्हि।
धोखर जलसंयोगसँ अपगम। पोथी भिजल, आखर धोखरि गेलैक-अपगत भए गेलैक।
उगर उर्वरित होएब (शेष रहब)। मधुर दश सेर उगरल-खर्च कए शेष रहल।
ओगर समीपस्थितिपूर्वक रक्षण। हम नेनाकेँ ओगरैत छी-लगमे बेप्ति रक्षा करैत छी।
खँघर जलप्रवाहसँ कटब। उपर देने पानि खसलैक, तेँ पोखरि खँधरल-कटल।
उधर उद्घटित होएब। अधलाह सतरञ्जीक आँचर जाइत छैक-उद्घटित भए जाइत छकै, अर्थात् बानसँ विमुक्तद होइत अदि। ताग उधरल।
मोचर ऐँठब। हाथ मोचरलैन्हि-ऐंठलैन्हि।
पछर 1. पराजित होएब।
2. श्रमसँ अक्षम होएब। देवदत्त पछरलाह-पराजित भेलाह।
पजर प्रज्वतलन। आगि पजरल-प्रज्वषलित भेल।
बजर प्रवृत्ति। आइ मधुकान्तलक ओहिठाम चोरसब बजरल-प्रवृत्त भेल।
मजर जञ्र्जारत होएब। आम मजरल-मञ्जारित भेल।
उजर बन्धजनसँ सिद्ध वस्तुोक विघटन। घर उजरल-बन्ध्विमुक्तत भेल।
कड़र मालक दाँत कड़कड़एब। ई बड़द कड़रैत अछि-दाँत कड़कड़बैत अछि।
खड़र 1. हाँइ हाँइ लिखब ।
2. बाँटब।
3. परिष्कृँत करब। चीठी खड़रैत छथि-हाँइ हाँइ लिखैत छथि। 2. जौड़खड़रैत अछि-हाँइ 2. बटैत अछि। 2. दरबाजा खड़रल अछि-खड़रासँ संशोधित कएल अछि।
गुड़र क्रोधजन्यं आँखिक आस्फाजलन। आँखि गुड़रैत अछि-आस्फारलित करैत अछि।
भुड़र शुष्कग खाद्य वस्तुसक साक्षात् अग्रिमे पाक। बदाम भुड़रैत अछि। लवंग भुड़रलक-अग्निपक्वर कएलक।
उढ़र स्वािमिभावपत्र आन पुरुषक सङ्ग चल जाएब। रुपनाक स्त्रीर उढ़रि गेलैक-आन पुरुषक सङ्ग ओकर अधीन भए चलि गेलैक। ई स्त्री उढ़री थिक।
कतर कीँचीसँ काटब। कागज कतरैत अछि-कैँ चीसँ कटैत अछि।
चतर वृक्षक पसार। फुटाह गाछ अधिक चतरैत अछि-अधिक बढि़ पसरैत अछि। चतरी गेन्हबरी चतरिकेँ अर्थात् पसरिकेँ परस्प र संबद्ध भए जाइत अछि।
लतर लतीक पसार। लत्तीसभ टाटपर वा गाछपर लतरैत अछि- पसरैत अछि।
सतर शीघ्रतया सिद्धि। अहाँकेँ काज नहि सतरैत अछि-शीघ्रतया कएल नहि होइत अछि।
सुतर सफलता प्राप्ति। हमर उद्योग सुतरल-सुफल भेल।
बिथर प्रसरण। वस्तुणजात बिथरल अछि, तकरा ओरिआएकेँ राखू।
थोथर 1. घार मूर्छित होएब।
2. बालकक अतिचुम्बएन। 1. बसिलाक धार थो‍थरि गेल-मुरछि गेल, ओकरा पिजाउ।
2. देवदत्त नेनाकेँ थोथरैत छथि-ओकरामे वारंवार मुख संयुक्तँ करैत छथि।
ओदर वियुक्त होएब। मुइल चमरा देहसँ ओदरैत अछि-वियुक्तर होइत अछि।
सुधर 1. यथोचित क्रियामे प्रवृत्ति। 2. बाधासँ विनिर्मुक्त होएब। 1. ई नेना आब सुधरल-यथोचित क्रियामे प्रवृत्त भैल ।
2. कार्य सुधरल-बाधासँ रहित भेल।
उनर आकर्षणसँ अधिक फानक भए जाएब। माठा उनरत-खँचलासँ अधिक फानक होएत, तखन हाथमे पहिरल होएत।
धफर (ड़) डेग पैघ करब1 धफरि (डि़) केँ चलू-डेग पैघ कए चलू।
सफर मालक सर्पदष्टि होएब। महीसि सफरल अछि-सापसँ दष्टू अछि, मतीकेँ बजाउ।
झबर अधिकक नम्र भए रहब। वेश्यानक देहमे गहना झबरल अछि-नमरल अधिक-नमरल अधिक अछि।
अभर कि‍त्र्चित् अङ्गमे संयुक्तत होएब। हमरा पाएमे साप अभरल-कि‍त्र्चिरत् भीरल, तेँ हम हटलहुँ।
भभर शिशिलावयव भए खसब। बलाह माटिक महादेव पूजाक काल भभरि गेलाह-शि‍थिलावयव भए खसि पड़लाह।
लेभर (ड़) अधिक लागब। वर्षामे अएलहुँ तेँ पाएरमे माटि लेभरल अछि-अधिक अछि।
नमर नम्र होएब। आमक गाछ फलक भारसँ नमरल अछि-नम्र भेल अछि।
पलर कोमलताप्रयुक्त पसरब। केराकेँ पकना बहुत दिन भेलैक तेँ पलरल अछि-पलपल भए पसरल अछि।
ओलर आधिक्यछप्रयुक्त उपरसँ खसब। लत्ती ओलरि गेल ।
पसर प्रसरण। खरिहानमे धान पसरल अछि-प्रसृत भेल अछि।
ससर कित्र्चित् घुसकब। एक्का्पर मोटा ससरल जाइत अछि-कित्र्चित् घुसकल जाइत अछि, खसए ने।
बिसर विस्म्रण। हम जे पढ़ल से बिसरलहुँ-विस्मृवत कएल। रेलगाड़ीपर छाता बिसरल, उतारल नहि।
उसर 1. क्रियाक शीघ्र संपत्ति।
2. प्रवृत्त क्रियाक निवृत्ति। 1. अहाँकेँ लिखब उसरैत अछि-शीघ्र होइत अछि।
2. नाच-तमासा आइ उसरल-निवृत्त भेल।
घोँसर विस्म रण (निन्दाआशब्दा)। ई पढ़ब-गुनब सभ घोँसरलैन्हि-बिसरलैन्हि, अर्थात् छोड़लैन्हि।
कहर क्लेलशसूचक शब्दअ। ई गाछसँ खसल, चोट अधिक छैक, कहरैत अछि-अन्तशर्वेदनासूचक शब्दि करैत अछि।
झहर सशब्दअ पतन। वर्षा झहरैत अछि-सशब्दर ऊपरसँ पतित होइत अछि।
हहर क्षीण होएब। हमर देह दु:खसँ हहर‍ि गेल अछि-क्षीण भए गेल अछि।
सिहर 1. विशरण (कि‍त्र्चित् फाटब)।
2. शीतविकार । 1. कच्चाक देबाल सिहरल-कित्र्चित् फाटल1 2. जाड़सँ देह सिहरैत अछि-शैत्य जन्यक विकारविशेष (रोमाञ्चादि) प्राइज़ करेत अछि।
कुहर क्लेइशसूचक शब्दय करब। अधिक ज्वसरमे लोक कुहरत अछि-क्लेइशसूचक शब्दव करैत अछि।
सम्हइर विघटित नहि होएब। आब सब काज सम्हबरल-विघटित नहि भेल अर्थात्त संपत्र भेल।
नेआर इच्छार। हम नेआरैत छी-इच्छार करैत छी जे काशीवास करी।
सकार स्वीवकार। ओ हजार रुपैआ देब सकारलैन्हि-स्वीाकृत कएलैन्हि।
घोँकार अतिसञ्चालनसँ मलिन करब। पोखरिक पानि घोकारूजनु-अतिसंचालन सँ तरक मल उखाडि़ मलिन जनु करी।
अखार प्रक्षालन। थारी अखारैत अछि-पखारैत अछि, अर्थात् प्रक्षालित करैत अछि।
खखार कण्ठाक भीतरसँ नि:सारण। अहाँ कफ खखारू-कण्ठअक भीतरसँ निस्साफरित करू।
पखार धोएब (प्रक्षालन)। थारी पखारैत अछि-प्रक्षालित करैत अछि।
तेखार तेसरबेर हरसँ विदारण। हरबाह खेत तेखारैत अछि-तेसरबेर हरसँ विदीर्ण करैत अछि।
धोखार जलद्वारा हटाएब (जलटारिकेँ हटाएब)। घाटमे माटि लागल अछि तकरा धोखारू-जलसँ साफ करू जे धोती खिचबाक योग्य- हो।
उगार उर्वरित करब (अवशेष राखब)। काजक हेतु एक लाख रुपैआ छल ताहिसँ एकह हजार हम उगारल-उर्वरित कएल।
खँघार जलग्रवाहसँ काटब। जलक वेग माटिकेँ खँधारलक-कटलक जाहिसँ जगह गहीँ जगह गहीँड़ भए गेल।
उधार आच्छाँदनरहित करब। देह उघारू-आच्छाकदनरहित करू1 हम मुह उघारिकेँ सुतैत छी।
उङार उद्वर्त्तन। नेनाकेँ सबदिन उङारबाक चाही-उकटन लगएबाक चाही।
कचार अखारब (प्रक्षालन)। धोती कचारल-अखारल।
बिचार विचारण। अहाँ एहि विषयकेँ बिचारू-एहि विषयक विचार करू।
खेँचार बाँससँ हुरेठब। अछिआमे जरल मुर्दाकेँ खोचारलहुँ-बाँसक अग्रसँ ताडि़त कएलहुँ जे शीघ्र जरए।
अछार पानिमे बीआ खसाएब। हम धानक बीआ अछारल-पानिमे बाओग कएल।

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।