भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Sunday, October 11, 2009

पेटार ४२

अप्प.न बात

एहि बेरक बात थिक। विविधश्भाोरती रेडियो स्टेरषन सँ गीत सुनैत छलौ। एखन धरि मैथिली साहित्य. सॅ कम्मेोश्समम्मय सिनेह छल। ओना परिवार सॅ समाज धरि मैथिलिऐक बीच आठो पहर समय बीतैत अछि। कातिक पूर्णिमाक दिन रहने, समाजक माएश्बिहिन लोकनि सामा भसा आंगन दिषि सोहर गबैत घुमलीह। एकाएक हमरो कान मे, गीतक ध्वननि हवा मे छिछलैत अबै लगल। रेडियो बन्नग कऽ सोहर सुनै लगलहुँ। गीतक स्वकर हृदय केॅ झकझोड़ए लगल। जेहने माएश्बलहीनि लोकनिक स्व्रक मधुर टाँस तेहने एकरुपता। जहिना बहीनि, माएश्बा.प समाजक सखीश्सडहेली छोड़ि, सासुर जेबा काल, अपन क्रन्दिन स वातावरण केॅ शोकाकुल बनबैत आ सखीश्सडहेली सोहरक स्वलर सॅ विदा करैत, तहिना भऽ गेल। हृदय विदीर्ण हुअए लगल।
अनायास मन मे सवाल उठै लगलश्‍
(क) श्‍ की हमर कलाश्सारहित्यल, भूमण्डललीकरण स, आगू बढ़त?
(ख) श्‍ आ कि जतय अछि ततय, अजेगर सॉप जेॅका थुसकुरिया मारि, बैसल रहत?
(ग) श्‍ आ कि हमर कलाश्सािहित्या मटियामेट भऽ जायत?
एहि प्रष्नअक बीच उलझल मोन मे, डिबियाक टिमटिमाइत इजोत जेकॉ, आयल जे अपनो मातृभाषा आ मातृभूमिक सेवा लेल किछु कयल जाय! एहि जिज्ञासाक संग अपने लोकनिक बीच, एकटा छोटश्छीलन पोथी ‘संस्कालर गीत' राखि रहल छी। आषा अछि जे अधला पर ध्याबन नहि दऽ, आगूक सेवा लेल पे्ररित आ प्रोत्सा हित जरूर करब।
गीतक संकलन किछु पोथिओक अछि आ अधिकतर माएश्बकहीनिक कंठक सेहो अछि। जहि गीतिकार लोकनिक गीत संकलित अछि, हुनक आभारी छी। आ जे गीत माएश्बाहीनि लोकनिक कंठक अछि, ओ जहिना कहलनि तहिना लिखलो गेल अछि तेॅ शब्द क फेड़िश्फाहड़ आ टूटल सेहो अछि।
गीतक संकलन करै मे अग्रज सुरेष मंडल आ अनुज मिथिलेष मंडलक भरपूर सहयोग रहल।



अपनेक
उमेष मंडल

पोथिक मादे

संस्काणर कल्प ना थिक। हमरा सभक बीच संस्कालरक प्रयोग विभिन्न। रूप मे विभिन्ना जगह पर होइत अछि। ओना जहि रूप मे संस्कालरक प्रयोग हमरा सभक बीच होइत, ओ मन्दक आ कुषाग्र रूप मे सेहो होइत। मुदा विचारणीय प्रष्नॅ अछि जे मन्द तँ किऐक? आ कुषाग्र तॅ किऐक? एखन हम एहि प्रष्नचक उत्तर नहि द शास्त्री य प्रयोग दिषि नजरि दैत छी। गर्भजनित वातावरण जन्य? कतिपय अपदार्थ के दूर करैक हेतु संस्कापरक कल्प ना कयल गेल अछि। कहल गेल अछि जे एहि सॅ शरीर आ मन परिष्कृषत होइत अछि। शालीनता आ शिष्टनता मनुष्यऐताक परम सिद्वि थिक आ ओकर प्राप्तिपक साधन थिक संस्कालर कर्म। दषर्न शास्त्रतक अनुसार भोग्यख पदार्थक अनुभूतिक छाप थिक संस्काृर कर्म। मनुष्यलक अव्य क्त मन पर अुभवक जे छाप पड़ैत छैक, समय अयला पर ओ प्रकट भऽ जायत छैक। यैह छाप थिक वासना आ यैह कहबैत अछि जन्माॅन्तरक संस्कारर। धर्मशास्त्री लोकनि संस्कारर केॅ शारीरिक, मानसिक आ बौद्धिक गुणश्दोाषक प्रक्रियाक रुप ग्रहण कयलनि अछि।
आष्वरलायन अपन गृहसूत्र मे एगारह तरहक संस्कापरक वर्णन केने छथि। जखन याज्ञवल्य्टल बारह तरहक। गौतम भिन्नरश्भिंन्ना दैवयज्ञ केॅ संस्कानर मे परिगणित कऽ अड़तालिस संख्यान धरि लऽ गेल छथि। भारत सरकारक 1901 इसवीक जनगणना प्रतिवेदनक अनुसार ओहि समय हिन्दूद मे बारह संस्कापर प्रचलित छल। मिथिला मे सोलह तरहक संस्कािरक विधान मान्यि अछि ई थिकश्‍ गर्भधान, पुंसवन, सीमन्तो।न्नायन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रामण, अन्न प्राषन, चूड़ाकर्म, कर्णबेध, उपनयन, वेदारम्भत, समावर्तन, विवाह, वानप्रस्थू, सन्या्स आ अन्येषनर ष्टिस। एखन सिर्फ पाँच तरहकश्‍ जन्मर,मूड़न,उपनयन,विवाह आ मृत्युस संस्का्रक चलनि अछि। मुदा इहो सभ जाति मे समान नहि अछि। जेना उपनयन सिर्फ समाजक अगुआइल जातिक बीच अछि। मूड़नोक रुपरेखा एकरंगक नहि अछि। तेँ जँ सभकेँ नजरि मे राखि देखैत तँ सिर्फ तीनिये टा संस्कातर जन्म ,विवाह आ मृत्युन अछि।
संस्कासरक कल्पइना आ ओकर चयन वा नामकरणक पाँछा सामाजिक कारण सोहो प्रमुख रहल। स्पयष्ट अछि जे संस्कासरक शासन जीवन पद्धति के खास ढ़ंग सॅ नियंत्रित आ आदर्षोन्मुटखी बनयवाक लेल देल गेल। शुद्धताक अपेक्षा सुनियोजित जीवनश्य्तिरवस्थासक आवष्योकता अथवा स्थि तिक उपस्थििति दिषि संकेत करैत अछि। कहैक तात्पेर्य जे आर्यश्अ्नार्यक घालमेल सँ उपजल सामाजिक स्थि ति मे संस्कावरक माध्यनम सॅ अपन अस्मि्ता के सुरक्षित रखवाक ब्राहम्‌णवादी चिन्तंनक परिणाम थिक संस्काधर। मध्यसकाल मे संस्काअरक पालन पर बेसी जोर देल गेल। ओना दोषक निवारण आ गुणक अंगिकार करब अधलाह बात नहि थिक। इतिहास साक्षी अछि जे भौतिक परिस्थिातिक प्रभवक कारणे समाज मे कखनो बेटिक त कखनो बेटाक मोल बढ़ैत रहलैक अछि।
आइ जकरा मैथिल संस्कृिति कहल जा रहल अछि,से की वस्तुातः मिथिलाक संस्कृतति थिक? एहि लेल मिथिलाक इतिहास दिषि देखए पड़त। मिथिलाक धरती हिमालयक माटिश्बा?लू सँ बनल अछि। नदी प्रदेषक एहि भूभाग पर किरात आ कोल रहैत छल। आर्यीकरणक अभियान मे जे किछु बहरबैया लोक सभ एहिठाम अयलाह ओ द्विज बनि के एहि प्रदेष पर सत्ता स्थाकपित केलनि। क्षत्रिय राजसत्ता कब्जाि केलनि आ ब्राह्‌मणक हाथ मे समाज सत्ता आयल। वैष्वतलोकनि अर्थसत्ताक स्वा मी बनलाह। मूलवासी अर्थात आदिवासी अन्य्करणज बनि गेलाह। बहरबैया लोक कम संख्याल मे आयल रहथि तेँ कृषि कर्यक लेल वा आनो प्रयोजन सँ प्रतिलोम विवाह जोर पकरलक। जकर चर्चा मनुस्मृवति आ मिथिलाक इतिहास मे बिस्तालर सँ अछि। द्विजक संख्यार कम रहने, एहि ठामक आदिवासीक देवीश्दे वता,पावनिश्तिनहार आ नेमश्तेतम अपनौलनि। जहि स ब्राह्‌मणीकरण भऽ गेल। समाजक सत्ता ब्राह्‌मणक हाथ मे छलनि तेँ हुनके जीवनश्ौ्चर्ली संस्कृिति बनल। बहुसंख्यकक मूलवासी पर एकटा नवश्संकस्कृथति आरोपित कयल गेल। औझुका जेँका प्रचारश्प्रिसारक माध्यसम त नहि छल, मुदा जे किछु छल ओ हुनके सभक बीच छलनि। लिखैकश्पाढ़ैक सुविधा आ सामर्थ्यत रहने हुनके (द्विजिक) संस्कृथति सम्पूयर्ण मिथिलाक संस्कृिति रसेश्ररसे बनि गेल। मुदा मूलवासीक जीवनश्शै(ली आ रीतिश्नीकतिक पूर्ण विलयन ने त संभव छल आ ने से भेल। आइयो ओ (मूलवासी) दूबि बनि माटि पकड़ने छथि। जकर संस्कृभति लोक संस्कृित कहल जाइत छैक।
मूड़न आ उपनयन, आब सेहो काम्यत संस्काररक कोटि मे अबैत जा रहल अछि। अखनो मिथिला मे ढ़ेरो जाति बसल अछि। किछु जाति छोड़ि बहुसंख्यकक जातिक बीच उपनयन प्रथा नहि अछि तेॅ उपनयन के मिथिलाक संस्काटर कोना मानल जाय? हाँ, खंडित संस्काीर कहल जा सकैत अछि। तहिना मूड़नोक अछि। एक रुप मे मूड़नोक चलनि नहि अछि। केयो देवस्थािन जा मूड़न करबैत त क्यो गंगाकात जा। केयो गामे मे कबुलाश्पाछती द करबैत त केयो बिना गीतेश्नाजद,पूजेश्पा ठ केने, करैत। केयो समाज मे खीरश्टि।कड़ी बॉटि करैत त क्योद भोजश्भाात कऽ। तेॅ सब मिला के देखला पर प्रष्नम उठैत जे मुड़नक कोन रुप मानल जाय? तहिना विवाहोक संबंध मे प्रष्नड उठैत? कुमार बर आ कुमारि कन्याटक संग विवाह प्रचलित अछि। मुदा द्वितीय बर आ कुमारि कन्या क संग विवाह होइत जखन कि बहुसंख्य क जाति मे द्वितिय बरश्कून्यानक विवाह सेहो होइत। द्वितिय कन्याृक संग कुमार बर के सेहो होइत अछि तहिना मृत्युल संस्कामर मे सेहो एकरुपता नहि अछि। मृत्युक के शोक बुझि गीतिश्ना द नहि होइत। मुदा प्रष्नश उठैत जे मृत्युर शोकेक संस्कािर किऐक थिक? हॉ, असामयिक मृत्युय के शोकक श्रेणी मे राखल जा सकैत। मुदा उचित आयु बीतला परक मृत्युम के शोक किऐक मानल जाय? जहिना प्रकृति मे देखैत छी जे अपन पूर्ण आयु पाबि स्व्तः नष्टय भऽ जाइत अछि तहिना त मनुष्योय थिक। मुदा ढ़ोरो प्रष्नन उठलाक उपरान्तोप समाज, विवाह आ मृत्युऐ के व्यनवहारिक संस्कामर रुप मे अपनौने अछि। छिटश्फुलट ढ़ग सँ जे किछु होइत हो मुदा समुद्र रुपी समाज, सब कुछ अपना पेट मे समेटि लैत अछि।
व्यतक्तिृगत जीवनक समस्याप सँ ऊपर उठि कऽ सार्वजनिक जीवन जीवाक एहि अभ्यािस कालक महत्वर आइयो अछि। सन्यापस यैह थिक। ब्रह्‌मचर्य जीवन ज्ञान अर्जनक होइत। गृहस्ता्श्रम व्यतवहारिक जीनगी होइत, जे उपार्जन क जीवनश्जीमवाक माध्य्म होइत। नव परिवारक सृजन होइत। जहि सॅ समाज आगूओ बढ़ैत आ समृद्धो होइत। तेसर अवस्थाञ वा अंतिम संन्याजस अवस्थाि तक पहुँचैतश्पसहुँचैत ज्ञान आ कर्म सँ पूर्ण मनुष्य् केँ अज्ञान आ अबोध मनुष्यकक सेवा मे लगि जायब, बेजाय नहि। वास्त्व मे ओ जरुरियो अछि।
संस्काकर गीतक अर्थ थिक विभिन्नज संस्काजरक प्रसंग मे गाओल जायवला गीत। ई लोक प्रचलित गीत थिक। तेँ एहि मे लोक गीतक आत्मा् बसैत अछि। लोक गीतक मनोहर फुलवाड़ी मे यदि संस्कािर गीत के हटा देल जाय तँ ओ निष्प्रा ण भऽ जायत। यैह कारण थिक लोकगीतक, प्रायः समस्ता विष्‍ोषता संस्कारर गीत मे उपलब्धष अछि। मृत्यु् संस्काःर केँ छोड़ि अन्यी सभ संस्कासर आनन्दोयत्संवक माहौल मे मनाओल मे जाइत अछि। उमंगमय वातावरण मे नारी कंठ सँ निकलैत स्व्रलहरी देह मे थिरकन, हृइय मे झंकार आ मस्तिरष्का मे चुलबुली उत्पसन्नस कऽ दैत अछि। गीति गायव मिथिलाक सभ नारश्नातरीक सहजात गुण रहल अछि। जेना दखैत छी जे मूड़न, उपनयन, विवाह इत्यािदिक समय सभ नारी समवेत स्वार मे गीति गबैत छथि। जे मिथिलाक धरोहर छी। तहिना पुरुषो पावनि आ धार्मिक कार्य मे सभ मिलि गबैत छथि।
संस्काणर गीत लाकगीतक अंग थिक। कहल जाइत अछि जे लोकगीतक रचनाकार नहि होइत छथि, ओ सार्वजनिक रचना होइत अछि। एकर वास लोक कंठ मे अछि। एक कंठ सँ दोसर कंठ धरि जाइतश्जा इत गीतक स्वहरुप बदलि जाइत। ततबे नहि! गीतक भास सेहो बदलैत। एक्के गीत भास बदलिश्ब्दलि कत्त्ो रुप मे गाओल जायत। तेँ संस्काठर गीत मे एकरुपताक अभाव भेटैत अछि। स्वाभावगत एहि स्थि्तिक दोसर परिणाम थिक भनिताक बेलगाम प्रयोग। गीत गौनिहारि सभ अपने फुरने कोनो गीत मे कोनो रचनाकार नाम भनिताक रुप मे जोड़ि दैत छथि। विद्‌यापतिक रचना उमापतिक भ जाइत त कखनो उमापतिक चंदा झाक वा मनबोधक। ततबे नहि मैथिली क्षेत्र सँ बाहरोक रचनाकार जना तुलसी, सूर दास, मीरा इत्याभदि मिथिलाक माएश्बवहीनिक कंठ मे आबि मिथिलेक आ मैथिलिऐक गीतिकार बनि जाइत छथि। जे उचित आ अनुचित दुनू थिक। उचित एहि लेल जे हुनकर लोकप्रियता विनयपत्रिता, रामायण, सुरसागर माध्यहम सँ एतेक अधिक प्रचलित भऽ गेल अछि जे अपन बनि गेल छथि। जहाँ धरि शब्द टूटैक प्रष्नर अछि ओ ज्ञानश्अगज्ञानक बीचक बात थिक। भषाक जन्मि आम जनक बीच होइत। किछु नव शब्दोच जन्म लैत अछि आ शुद्व शब्दथ टूटि कऽ नवो बनि जायत अछि। तेँ कोन गीत किनकर लिखल थिकन्हिक, संस्काऐर गीत मे वुझब कठिन भऽ जायत अछि। स्पनष्टक अछि जे संस्कातर गीत मैथिलश्म‍हिलाक परिष्कृकत सांस्कृनतिक चेतनाक परिचायक थिक।
मिथिला मे संस्कािर गीत अनौपचारिक षिक्षाक माध्ययम अछि। मैथिल समाज मे नारीक लेल औपचारिक षिक्षा वर्जित छल। सिर्फ नारिये नहि माटि परक लोकक लेल सेहो छल। कहल जाइत अछि जे वेद वा गीता पढ़ला सँ ओ बताह भऽ जायत। नारी मे विदुषी होइत छलीह। संस्काकर गीतक संबंध संस्कृिति आ साहित्यन से त अछिये, समाज स सेहो अछि। संस्कृिति, साहित्यय आ समाजक अन्तफरावलम्वसन केँ जत्त्ो नीक जेँका संस्कालर गीत प्रकट करैत अछि तत्त्ो एहि प्रकारक आन कोनो घटक नहि। संस्काथर गीतक संकलनश्प्रदकाषन सँ मौखिक परम्पंरा साहित्यत समेटल जाइत अछि आ ओ साहित्यल अघ्यनयनश्विकष्लेकष्णोक आधार प्रस्तु्त करैत अछि
मिथिला मे संस्कािर गीतक श्रीगणेष होइत अछि गोसाउनिक गीत सँ। एहि स मैथिल समाजक धर्मभावनाक ज्ञान होइत अछि। किन्तुर प्रष्नै अछि जे संस्काररक अवसर पर ई धर्मश्भा वना मुख्य्तः गोसाउनिऐक गीत मे किऐक प्रकट होइत अछि? स्पजष्टअ अछि जे एहिठाम गोसाउनि गोसाई सँ बेसी महत्वुपूर्ण छथि। भगवानोक गीत मिथिला मे गाओल जाइत अछि मुदा संस्काःर कर्मक अवसर पर जे प्रधानता भगवती गीतक अछि से भगवानोक गीतक नहि! आब प्रष्नइ उठैत जे मिथिला मे देवीश्पू जाक प्रमुखता किऐक अछि? सभ जनैत छी जे देवीश्पू जा तंत्रसाधना सँ सम्बलद्ध अछि। किछु इतिहासकारक मत छन्हिछ जे तंत्रसाधना असंस्कृात जनजातिक समाज सँ आयल अछि। जकरा कालान्तकर मे ब्राह्‌मणवादी लोकनि अपना लेलनि। बहुत दिन धरि तंत्रश्साँधना अवैदिक कार्य बूझल जायत छल। रसेश्रससे अपनवैतश्अरपनवैत सनातन धर्म मे जोड़ा गेल। वैदिक धर्मावलम्बीू सभ सेहो तंत्रश्सासधना अपना देवी पूजा दिषि आकृष्टि भेलाह। एहि सँ अतिरिक्त् मिथिलाक समाज मे शैवश्धधर्मक प्रमुखता छल अथवा शाक्तर धर्मक। जे विवाद विद्वत मंडली मे बहुत दिन धरि चलल। पनचैती सँ फरिआयल जे मिथिलाक लोक पंचदेवोपासक होइत छथि। ई मान्यलता पुरानकालक समन्वतयवादी धार्मिक जीवनक देन थिक। संस्कादर गीतक मध्य कालीन चरित्र के देखार करैत अछि।
गीत संस्कानर मे मैथिली गीतक अपन इतिहास अछि। लोचनक ‘रागतरंगिणी' मे मैथिल गीतक जे इतिहास लिखने छथि तदनुसार एकर जन्मक तेरहमश्चौादहम शताब्दीश मे भेल। षिव सिंह आ विद्‌यापति समकालिन छलाह। हुनके पितामह सुमति मैथिली गीतक परम्पकराक प्रारंभकर्ता छलाह। एहि प्रकारे मिथिलाक देषी गीत परम्पशराक स्थागपना भेल। ऐतिहासिक आाधार पर यैह मानल जाइत अछि मुदा गीत गेवाक प्रवृति मनुष्याक विकासक संग जुड़ल अछि। जहि आधार पर आरो पुरान कहल जा सकैत अछि।
गीत गेवाक ढ़ंग, जकरा राग कहल जाइत, मिथिला मे भास कहल जाइत छैक। मिथिला भासक अपन विषिष्टहता छैक। संस्कारर गीत एहि भासक भंडार छी। हँ, किछु त्रुटिपूर्ण बात सेहो अछि जे कम जनने एक्केा गीत (समदाउन) खुषीक समय मे सेहो गवैत छथि आ शोकक समय सेहो जखन कि दुनूक लेल अलगश्अतलग विषयवस्तुन होइछ। तहिना बेटाक विवाह मे कुमार गीत आ बेटीक लेल कुमारि गीत मे सेहो अंतर होइत अछि। जनमक समय खेलौना आ सोहर मे सेहो अंतर अछि।
अंत मे, संकलनकर्ता नवयुवक छथि, तेँ बहुत किछु त्रुटि रहलाक वादो धन्य।वादक पात्र छथि, जे अपन मातृभाषाक सेवा लेल डेग बढ़ौलनि अछि।

- जगदीष प्रसाद मंडल


(1)
सिंह पर एक कमल राजित ताहि उपर भगवती।
उदित दिनकर लाल छवि निज रुप सुन्दार छाजती।
दाँत खटश्खाट जीह लहश्लाह श्रवन कुन्ड।ल शोभती।
शंख गहिश्गसहि, चक्र गहिश्गषहि खर्ग गहि जगतारिणी।
मुक्तिपनाथ अनाथ के माँ भक्तगजन के पालती।
सिंह पर एक कमल राजित ताहि ऊपर भगवती।
माँ ताहि ऊपर भगवती।
(2)
सभ के सुधि अहाँ छी अम्बाह हमरा किए बिसरै छी हे।
हमरा दिस सँ मुह फैड़े छी, ई नहि उचित करै छी हे।
छी जगदम्बाक जग अबलम्बाश तारिणी तरणि बनै छी हे।
छनश्छिन पलश्पेल ध्या्न धरै छी दरसन बिनु तरसै छी हे।
छी हम पुत्र अहीं केर जननी से तँ अहाँ जनै छी हे।
रातिश्दि न हम विनय करै छी पापी जानि ठेलै छी हे।
सभ के सुधि अहाँ लै छी अम्बाा हमरा किए बिसरै छी हे।
(3)
कोन दिन आहे काली तोहर जनम भेल, कोन दिन भेल छठियार।
शुक्र दिन आहे सेवक हमरो जनम भेल, बुध दिन भेल छठियार।
पहिर ओढ़िय काली गहबर ठाढ़ि भेली, करब मे काली के सिंगार।
कोन फूल ओढ़न माँ के कोन फूल पहिरन, कोन फूल सोलहो सिंगार।
चम्पा् फूल ओढ़न, जूही फूल पहिरन, ओढ़हुल फूल सिंगार।
भनहि विद्‌यापति सुनु माता काली, सेवक रहु रक्षपाल।
कोन दिन आहे काली तोहर जनम भेल, कोन दिन भेल छठियार।
(4)
अब ने बचत पति मोर हे जननी,
अब ने बचत पति मोर।
चारु दिसि पथ हेरि बैसल छी,
क्योा ने सुनै दुख मोर। हे जननी.....
एहि अवसर रक्षा करु जननी,
पुत्र कहाएव तोर। श्‍ हे जननी.....
अलटिश्बि लटि कऽ जँ मरि जायब,
हँसी होयत जग तोर। श्‍ हे जननी.....
अबला जानि शरण दीअ जननी,
नाम जपत हम तोर। श्‍ हे जननी....


(5)
हम अबला अज्ञान हे श्या‍मा,
हम अबला अज्ञान।
धन सम्पबत्ति किछु नहि अछि हमरा,
नहि अछि किछुओ ज्ञान। श्‍ हम अबला....
नहि अछि बल, नहि अछि बुद्धि,
नहि अछि किछुओ ध्यानन। श्‍ हम अबला......
कोन विधि भव सागर उतरब,
अहिंक जपल हम नाम। श्‍ हम अबला...
(6)
जगदम्ब हे अबलम्बग मेरी, जननी जय जय कालिका।
दष भुजा दष खड़ग राजित, पाष खप्पजर विराजित।
मुण्डब लयश्लषय मगन नाचय, गाबय योगिन मालिका।
भाइ भैरब मुण्डन छीनथि जय जय कालिका।
(7)
अहाँ कियै भेलहुँ कठोर हे जननी अहाँ कियै भेलहुँ कठोर।
हम दुखिया माँ शरण अहाँ के अहाँ कियै भेलहु कठोरश्‍ हे जननी...
अतुल कष्टय सहि जनम देल अछि आब पोछत के नोरश्हेग जननी ...
ककरा पर हम जनम गमायब के करती आब शोरश्‍ हे जननी....
ककरा पर हम रुसि परायब के आब रक्षक मोरश्‍ हे जननी अहाँ कियै....
(8)
क्योड ने हमर रखबार हे जननी,
क्योड ने हमर रखबार।
चिन्ता विकल विवस मन मेरो,
मन दुख होइए अपार। हे जननी क्यो ....
बिनु अबलम्बल धार मे डुबलहुँ,
सुझत नहि किनार। श्‍ हे जननी.....
अहाँ किए देर लगेलहुँ जननी,
हम डुबलहुँ मझधार। श्‍ हे जननी....
सृष्टि क मालिक अहीं छी जननी,
करहु सभक प्रतिपाल। श्‍ हे जननी....
माता के सब पुत्र बराबरि,
पंडित मूर्ख गमार। श्‍ हे जननी....
कतेक विनय कय थाकि गेलहुँ हम,
अब करिअ भव भार। श्‍ जननी...

(9)
कहाँ नहैली काली कहाँ लट झाड़लन्हिन,
कहाँ कयल सिंगार हे।
गंगा नहैली काली बाट लट झाड़लन्हिन,
गहबर कयल सिंगार हे।
पहिरि ओढ़िया काली गहबर ठाढ़ भेलि,
करय लगली सेवक गोहारि हे।
यष लिय यष लिय काली हे माता,
अहाँ यष फिरु संसार हे। श्‍ कहाँ.....
(10)
अयलहुँ शरण तोहार हे जगतारनि माता।
लाले मन्दिररबा के लाले केवरिया,
लाले ध्वदजा फहराय हे जगतारनि माता।
लाले चुनरिया के लाले किनरिया,
लाले सिन्दुार कपार हे जगतारनि माता।
राखि लिय मुख लाली हमरो,
हम लेब अँचरा पसारि हे जगतारनि मता।
अयलहुँ शरण तोहार हे जगतारनि माता।
(11)
हे जगदम्बाट जय माँ काली प्रथम प्रणाम करै छी हे।
नहि जानि हम सेवा पूजा अटपट गीत गबै छी हे।
सुनलहुँ कतेक अधम के मैया मनवांछित फल दै छी हे।
पुत्र सम जानि चरण सेवक के जन्म क कष्ट हरै छी हे।
विपतिक हाल कहल की हे मैया आषा लागि जपै छी हे।
सोना चानी महल अटारी ई सब किछु ने मँगै छी हे।
मनक मनोरथ मनहि मे राखि मंदिर तक पहुँचे छी हे।
अहाँक चरण के दास कहाबी एतवे हम मनबै छी हे।
प्रेमी जन सँ पाबि निराषा नयन नीर बहबै छी हे।
नोर बहा कऽ अहाँ लय मैया मोती माल गुथै छी हे।

''''''




(1)
गरजह हे मेध गरजह गरजि सुनावह रे।
ललना रेश्‍ ऊसर खेत पटाबह सारि उपजाबह रे।
जनमह आरे बाबू जनमह जनमि जुड़ाबह रे।
ललना रेश्‍ बाबा सिर छत्र धराबह शत्रु देह आँकुष रे।
हम नहि जनमब ओहि कोखि अबला कोखि रे।
ललना रेश्‍ भैलहि वसन सुतायत छौड़ा कहि बजायत रे।
जनमह आरे बाबू जनमह जनमि जुड़ाबह रे।
ललना रेश्‍ पीयर वसन सुताबह बाबू कहि बजायब रे।
(2)
पलंगा सुतल तोहेँ पिया कि तोहें मोर साहेब रे।
ललना रेश्‍ बगिया जँ एक लगबितहुँ टिकुला हम चखितहुँ रे।
भल नहि बोललिह धनी कि बोलहुँ न जानह रे।
ललना रेश्‍ बेटबा जँ एक तोरा होइत सोहर हम सुनितहुँ रे।
भानस करैत तोहें गोतनी कि तोहें मोर हित बंधु रे।
ललना रेश्‍ अपन बालक दिअ पैंच पिया सुनु सोहर रे।
नोन तेल पैंच उधार भेटय आर सभ किछु रे।
ललना रेश्‍ कोखिआक जनमल पुत्र सेहो नहि भेटय रे।
मचिया बैसल तोरे सासु कि सासु सँ अरजि करु रे।
ललना रेश्‍ कओनश्करओन तप केलहुँ पुत्र फल पेलहुँ रे।
गंगहि पैसि नहेलहुँ हरिवंष सुनलहुँ रे।
ललना रेश्‍ देवलोक भेला सहाय कि पुत्र फल पयलहुँ रे।
आदित लगैत बिलम्बव भेल होरिला जनम लेल रे।
ललना रेश्‍ लाल के पलंगा सुता देल पिया सुनु सोहर रे।

दषमासी सोहर
(3)

प्रथम मास जब आयल चित फरिआयल रे।
जानि गेल सासु हमार चढ़ल मास दोसर रे।
सासु मोर बसु नैहर ननदी बसु सासुर रे।
घर छथि देबर नदान चढ़ल मास तेसर रे।
बाट रे बटोहिया कि तोहि मोर भैया कि हित बंधु रे।
हमरो समाद लेने जाउ चढ़ल मास चारिम रे।
अन्नम पानि किछु नहि भावय खटरस भावय रे।
कहब हम कओन उपय चढ़ल मास पाँचम रे।
रचिश्र चि पतिया लिखाओल नैहर पठाओल रे।
बिनु आमा नैहर विरान चढ़ल मास छट्ठम रे।
आगुश्आ गु आवय दोलिया पाछु भैया आवय रे।
घुरिश्घु‍रि घर भैया जाउ चढ़ल मास सातम रे।
तन भेल सरिसब फूल देह भेल पीयर रे।
अब न बाँचत जीव मोर चढ़ल मास आठम रे।
घरश्घ्र बाजत बधावा कि भेल बड़ आन्न द रे।
अयोध्याु मे जनमल राम चढ़ल मास नवम रे।
तुलसीदास सोहर गाओल गाबि सुनाओल रे।
भक्तीवत्सोल भगवान कि आजु प्रकट रे।

(4)

एक दिन छल बन झंझर आब बन हरियर रे।
बड़ रे सीता दाई तपसी कि गरम सँ रे।
के मोरा गरुअनि काटत खिनहरि बूनत रे।
ललना रे मन होय पियरी पहिरतहुँ गोद भरबितहुँ रे।
ललना रे राम दहिन भए बैसतथि कौषल्याय चुमबितथि रे।




(5)
प्रथम समय नियराओल शुभ दिन पाओल रे।
ललना रे देवकी दरदे वयाकुल दगरिन आयल रे।
दोसरो वेदन जब आयल कृष्णल जन्म लेल रे।
ललना रे तेसर हरिक प्रवेष कलेष मेटायल रे।
दगरिन आबि जगाओल केओ नहि जागल रे।
ललना रे हरि देखि सभ मन अचरज सभ हित साधल रे।
सूरदास प्रभु हितकर कृष्णो जनम लेल रे।
बाजन बाजय सभ ठाम देव लोक हरखित रे।

(6)
उतरि सावन चढ़े भादव चहुँ दिस कादब रे।
ललना रे मेधवा झरी लगाबय दामिनि दमकय रे।
जनम लेल यदुनन्दकन कंस निकन्द्न रे।
ललना रे फुजि गेल वज्र केवाड़ पहरु सब सूतल रे।
शंख चक्र युक्त् हरि जब देवकी देखल रे।
ललना रे आइ सुदिन दिन भेल कृष्णह अवतार लेल रे।
कोर लेल वसुदेव कि यमुना उछलि बहू रे।
ललना रे हरि देल पैर छुआय नन्दब घर पहुँचल रे।
नन्दा भवन आन्नदद भेल यषुमति जागल रे।
ललना रे सूरदास बलि जाय कि सोहर गाओल रे।

(7)
घर से बहार भेली सुन्दारि, देहरि धय ठाढ़ भेली रे।
ललना रे ओलती धय धनि ठाढ़ि कि, दरदे व्या कुल रे।
कथि लय बाबा बिआहलनि, बलमु घर देलनि रे।
ललना रे रहितहुँ बारि कुमारी, दर्द नहि जनितहुँ रे।
अगाध राति बिराल पहर रति, बबुआ जनम लेल रे।
ललना रे बाजय लागल बधाबा, कि गाओल सोहर रे।

(8)
पहिल परन सिया ठानल सेहो विधि पूड़ाओल रे।
ललना रे भेटल अयोध्याि राज ससुर राजा दषरथ रे।
दोसर परन सिया ठानल सेहो विधि पूराओल रे।
ललना रे भेटल कौषल्याि सासु लखन सन देओर रे।
तेसर परन सिया ठानल सेहो विधि पूराओल रे।
ललना रे माँगल पति श्रीराम सेहो विधि पूरल रे।

(9)
गाँव के पछिम एक कुइयाँ सुन्दररि एक पानि भरु रे।
ललना रे घोड़बा चढ़ल एक कुमर पानि के पियासल रे।
पानि पीबू पानि पीबू कुमर सुरति नहि भुलह रे।
तोरो सँ सुन्दार हमर स्वािमी जे तजि विदेष गेल रे।
कोन मास तोहरो वियाह भेल कोने गवन भेल रे।
कोने मास जोड़ल सिनेह कि तजि परदेष गेल रे।
फागुन हमरो विआह भेल कि चैत गवन भेल रे।
बैसाख जोड़ल सिनेह कि तेजि विदेष गेल रे।

(10)
जीर सन धनि पातरि फूल सन सुन्दारि रे।
ललना रे सुतल प्रेम पलंग पर दरदे व्याककुल रे।
सासु जे हुनका अलारनि बहिन दुलारनि रे।
ललना रे तिल एक दरद अंगेजह, होरिला जनम लेत रे।
जाहक हे ननदी जाहक, भइया के बजाबह हे।
ललना रे भइया ठाढ़ देहरि बीच कहु बात मनके रे।

खेलौना

(1)
भैया के घर बेटा जनम लेलक बधैया माँगे एलै हो लाल।
सोना खराम चढ़ि भैया एला की की मोर बहीन लेली हो लाल।
सोनाक हम मट्ठा लेलौ रुपा केर हम लेलौ काड़ा हो लाल।
रेषमी कपड़ाक अंगा लेलौ जड़ी लागल हम टोपी हो लाल।
पचासक बदला सौ लऽ कए जेती रेषम साड़ी पहिरेबनि हो लाल।
भनस कए कऽ भौजी अयली खादी साड़ी पहिरेबनि हो लाल।
सयक बदला पचास लय कए जैती, मूड़ी मे डांड़ लगतनिहो लाल।
कनैत खीजैत घर ननदि जेती हो लाल।

(2)
आइ छठि दिन घर मे सुदिन भेल
घर मे भेल ललना, दुआरे वाजे बजना।
बाबा लुटाबथि हाथी ओ घोड़ा
बावी लुटावे गहना, दुआरे बाजे बजना।
काका लुटाबे घड़ी ओ औंठी
काकी लुटाबे कंगना, दुआरे बाजे बजना।
पिसा लुटाबे मोटर गाड़ी
पीसी लुटाबे यौबना, दुआरे बाजे बजना।

(3)
बाजे बाजे बधाबा नन्दा के अंगना
कथक नाचे पमरिया नाचे, छोटकी ननदिया नाचे अंगना।
किये तोँ ननदी नाचह आंगन, तोरो भैया रहथि पटना। श्‍ बाजे....
भैया हमर पटना रहै छथि, ओतहि सँ आओत मोती के कंगना।
भाई मोरा जीबौ भतीजबा जीबौ, देव पुराओल मन कामना।

(4)
ककरा के अंगना जमहिरा रे,
मन रंजे के लाल।
ककरा बहिनि आबय रे,
मन रंजे के लाल।
बाबा के अंगना जमहिरा रे,
मन रंजे के लाल।
पलंगा सुतल तोहे पिया हे,
मन रंजे के लाल।
बहिन मांगय इनाम रे,
मन रंजे के लाल।
तेरे सन्दुेक मे कंगना रे,श्‍ मन रंजे...
कंगना हम नहि लेब रे, मन....
हमहि त लेब नौ लाखा हार,श्‍ मन.....
हँसैत जायब ससुरारि रे,श्‍ मन......
हम नहि देब नौ लाख के हार,श्‍ मन....
कनैत जाउ ससुरारि रे,श्‍ मन.....
जँ नहि देब नौ लाख के हार,श्‍ मन....
बबुआ के लऽ जैब ससुरारि रे,श्‍ मन....
फेर कऽ बबुआ जनम लेब रे,श्‍ मन....
नैना मे नैना मिला लेब रे,श्‍ मन....
सुनु बचन अहाँ ननदी रे,श्‍ मन....
कोखिया लहरि नहि जाय रे,
गन रंजे के लाल।

गनियारि पिसबाक गीत

कहमा केर जड़िया कहमा सिलौटिया रे।
ललना रेश्‍ कओन मुँह भय पीसब, कौषिल्या पीआयब रे।
दछिन के इहो जड़िया, पछिम सिलौटिया रे।
ललना रेश्‍ पूब मुँह भय पीसब, कौषिल्या पीयाअब रे।
पहिने जे पीलनि कौषिल्याभ रानी, सुमित्रा रानी रे।
ललना रेश्‍ सिल धोइ पीयल कैकेयी रानी तीनू गरभ सँओ रे।
कौषिल्या‍ के जनमत राम, सुमित्रा के लछमन रे।
ललना रेश्‍ कैकेयी के भरत, शत्रुघन, तीनू घर सोहर रे।

तेलश्क साय लगवैक गीत

(1)
कौने बाबा हरबा जोताओल, मेथिया उपजाओल हे।
कौने बाबी पीसल कसाय, जे कि बरुआ ओंगारल हे।
बड़का बाबा हरबा जोताओल, कि सरसो उपजाओल हे।
ऐहब बाबी तेल पेरौलीह, बरुआ ओंगारथि हे।


(2)
काँचहि बाँस के मलिया हे,
आकि ताहि मलिया तेल फूलेल हे।
कौने बाबी लगेतीह तेल फूलेल,
आकि कौन बाबी लगेती उबटन हे।
आकि फल्लाँँ बाबी लगेती तेल फुलेल,
आकि फल्लाँँ बाबी लगेती उबटन हे।

मूड़न

गोसाउनि नोतक गीतश्‍
जँ हम जनितौं काली मैया औती
अगर चानन मंगबितौ हे।
गंगा सँ मैया चिकनी मंगबितौ
ऊँच के पीड़िया बनबितौ हे।
नीर गंगाजल सँ पीड़िया निपबितौ
अड़हुल फूल चढ़बितौ हे।
पीअर पीताम्बकर माँ के आँचर दीतौं
सोन रुपे घूघरु लगाय हे।
जोड़ा छागर धूर बन्हमबितौ
करिया दीतौं बलिदान हे।
भनहि विद्‌यापति सुनु देबि काली
सदा रहब सहाय हे।

पितर नोतक गीतश्‍
कौन बाबा आओत गजन हाथी
ओ जे कौने बाबा लिल घोड़ा हे।
कौने बाबी अओती दोलियहि
कि बरुआ आषीष देती हे।
बड़का बाबा आओता गजन हाथी
छोटका बाबा लिल घोड़ा हे।
ऐहब बाबी अओती दोलियही
कि बरुआ आषीष देती हे।

मुड़न बेरक गीतश्‍

समुआ बैसल तोहे बाबा कि बरुआ अरजि करु हे।
लपटि झापय ललाट करह जगमूड़न हे।
रहु बाबू रहु बाबू बरुआ कि होयत सुदिन दिन हे।
नोतब सकल परिवार करब जगमूड़न हे।
मूड़न करैत बरुआ क बाबा सँ अरजि करु हे।
आनहु पीसि बोलाय कि अउरी पसारल हे।
औती पीसी सोहागिन बैसति चौक चढ़ि हे।
पीअर वस्त्रब पहिरती केष परिछति हे।

केष कटबै कालक गीतश्‍

कौने बाबा छुरिया गढ़ाओल सोने मढ़ाओल हे।
कौने अम्मार लेल जन्म केष कि शुभश्शुूभ होयत हे।
बड़का बाबा छुरिया गढ़ाओल रतने मढ़ओल हे।
बड़की बाबी लेल जनमकेष कि शुभश्शुओभ होयत हे।
देब हे नौआ भैया लाल धोतिया सोनक कैंचिया हे।
शुभ कऽ उतारऽ बाबाक केष बबुआ जीक मूड़न हे।

नौआक गीत

धीरेश्धी रे कटिहह नौआ केष, कि बौआ बड़ दुलारु छइ हौ।
बौआक मामी नौआ तौरे देवह, कि बौआ छै बड़ दुलारु हौ।
बौआक मामी भार पठौलखिन, ठकुआ तोरे देबह केरा तोरे देवह हौ।
बौआक नाना घोती पठेलखिन, पीअर मे रंगि के तोरे देवह हौ।
धीरेश्धी रे कटिहह केष, कि बौआ छै बड़ दुलारु हौ।

नहेबा कालक गीतश्‍

कोने बाबा पोखरि खुनाओल, कि घाट बनाओल हे।
कोने बाबा भरथि जूड़ी पानि, कि बरुआ नहाबथि हे।
अपन बाबा पोखरि खुनाओल, घाट बनाओल हे।
ऐहब बाबी भरु जुड़ि पानि, कि बरुआ नहावथि हे।

चुमाओन गीतश्‍

आजु माइ शोभा श्री रघुवर के
मातु कौषल्याश हकार पठाओल
गाइन जतेक नगर के।
कैकेयी आयलि सुमित्रा आयलि
गाइनि सगर नगर के।
दुबि अछत लय देवलोक आयल
चर डोलय रघुवर के।
तुलसीदास प्रभु तुम्हघरे दरस के
जीवन सफल दरस के।
आजु माइ शेभा श्री रघुवर के।

भगवतीक विनतीश्‍

अयलहुँ सरन तोहर हे जगतारनि माता। श्‍ अयलहु.....
लाले मन्दिोरिया के लाले केबरिया।
लाले घ्वतजा फहराय हे जगतारनि माता। श्‍
लाले चुनरिया के लाले किनरिया,
लाले सिनुर कपार हे जगतारनि माता॥
राखि लिऔ मुखलाली हमरो।
हम लेब अचरा पसारि हे जगतारनि माता॥
अयलहुँ सरन तोहार...

गाम देवताक गीतश्‍

बेरिश्बे रि बर बरजौं मालिनि बेटिया,
बाट घाट जुनि रोपु फूल हे।
एहि बाटे औता ब्राह्‌मण दुलरुआ,
घोड़ टाप तोड़ि देत फूल हे।
कानै लगली खीजै लगली मालिनि बेटी,
आखि स बहै लागलि नोर हे।
के निरमोहिया फूल गाछ तोड़त,
के रे देत वरदान हे।
जुनि कानू जुनि खीजू मालिनि बेटिया,
हमरा स लीअ वरदान हे।
पहिल जे मंगलौ ब्रह्‌मण सिर के सिनुरबा,
तखन कोर भरि पुत्र हे।
जे पुत्र दीह ब्राह्‌मण हरि नहि लीह,
बाँझी पद छूटत गोर हे।

साँझश्‍

साँझ दिय यसुमति मइया हे साँझ बीतल जाइये।
जैता कन्हैहया खिसिआय, हे साँझ बीतल जाइये।
कथी केर दीप कथी केर बाती, हे साँझ बीतल जाइये।
सोना केर दीप पाट सूत बाती, हे साँझ बीतल जाइये।
सरसो तेल जरय सारी राती, हे साँझ बीतल जाइये।
जरय लागल दीप चमकि गेल बाती, हे साँझ बीतल जाइये।
खेलय लगलै साँझ मइया, हे साँझ बीतल जाइये।



उपनयनक गीतश्‍
(उद्‌योग गीत)
गोसाउनिक नोतक गीतश्‍
अढ़ुल फूल देखि अयली गोसाउनि, दूधहि चरण पखारब हे।
छुट्‌टा पान गोटा सुपारी, माँ काली नोतल जाथि हे।
बरुआक माय बाप गोचर करै अछि, सुनु माता विनती हमार हे।
सेबक बालक स्तुयति नहि जानय, छमा करब सब अपराध हे।

पीतर नोतक गीतश्‍
दुअरहि बाजन बाजय स्वार्ग आवाज गेल हे।
स्वरर्ग मे पुछथिन बड़का बाबा कतय बाजन बाजू हे।
अहाँ कुल जनमल फल्लाँव बरुआ ओतहि बाजन बाजू हे।
स्वँर्गहि पितर आनन्द भेल कि आब वंष बाढ़ल हे।
स्वँर्ग सँ आबि पितर बरुआ के आषीष देल हे।

बँसकट्टीक गीतश्‍
वृन्दा वन बाँस कटायब कि मड़बा बनायब हे।
पहिने बाँस के पूजब तखन छऽ लगायब हे।
आहे ई थिक काठ सुकाठ एही सँ मारब बान्हेव हे।
आकि वृन्दाटवन बाँस कटायब कि मड़बा बनायब हे।

मड़ठट्ठीक गीतश्‍
जन्म सुफल आइ भेल की आंगन माड़ब भेल हे।
जन्म सुफल ओहि बाबाक जिनका आंगन माड़ब हे।
जन्म सुफल ओहि बाबीक जनिका कुल पुत्र भेल हे।
पीयरहि खड़ छरायब कि लाल झालरि लगायब हे।
ताहि माड़व बैसत फल्लाँन बरुआ जिनकर जनउ हैत हे।
चहुदिस रहतनि सर सम्ब‍न्धीन की माड़ब सोहाओन हे।




मड़वा छारैक गीत
बाबा हे फल्लाँा बाबा मड़वा छारि मोहि दैह।
बरिसत हे नन्हाबुनिया मेघ,
भाीजत हे मोरा बालक बरुआ,
पीताम्बेर ओढ़न को दैह। श्‍ बाबा हे....
बाबी हे फल्लाँ़ बाबी आँचर झाँपि मोहि लैह।
बरिसत हे नन्हलबुनिया मेघ,
भीजत हे मोरा बालक बरुआ,
आँचर झाँपि मोहि लैह। श्‍ बाबा हे....
मड़बा नीपक गीतश्‍
बाबा दान दीअ यौ, मटिया कोड़ैक इनाम दीअ यौ।
बाबा दान दीअ यौ, मड़बा नीपैक इनाम दीअ यौ।
गइया जे देलौ बछिया लगाय,
आर किछु दान बेटी आमा सँ लीअ?
आमा दान दीअ यै, मड़बा नीतैक इनाम दीअ यौ।
बाली जे देलौ बेटी झुमका लगाय,
आर किछु दान बेटी भैया सँ लीअ।
भैया दान दीअ यौ, मड़वा नीपैक इनाम दीअ यौ।
कंगना जे देल खीलन लगाय,
आर किछु दान बहिन काकी सँ लीअ।

बलिप्रदान कालक भगवती गीतश्‍
बदन भयावन कान बीच कुण्डडल विकट दषन घन पाँती।
फूजल केष वेष तुअ के कह जनि नव जलधर काँती।
काटल माथ हाथ अति शोभित तीक्ष्णै खड़ग्कअर लाई।
भय निर्भय बर दहिन हाथ लय रहिअ दिगम्बअरि माई।
पीन पयोधर ऊपर राजित लिधुर स्रावित मुण्डनहारा।
कटि किंकणि शब कर मण्डिनत सिक बह शोणित धरा।
बसिय मसान ध्याशन सब ऊपर योगिन गण रहु साथे।
नरपति पति राखिअ जग ईष्वमरि करु महिनाथ सनाथे।

बेटा विवाह
कुमरमक गीतश्‍
(1)
हम ते पोखरि खुनबै तेइ के घाट मढ़ैबै।
छिनारो आयल करिहें ओहि रे पोखरिया मे।
रसिया बात बाजू सम्हाररि, छोड़ू हमरा से अरारि।
हम त झुलफी धय घिसिआयब पोखरिया मे।
हम त कोठवा उठैब तेइ मे खिड़की लगैब।
छिनरो अबायल करिहें ओहि रे कोठरिया मे।
रसिया बात बाजू सम्हाहरि छोड़ू हमरा से अरारि,
हम त झुलफी धय घिसिआयब कोठरिया मे।
हम त पलंगा लगैब तेइ मे तोसक ओछायब।
छिनरो आयल करिहें ओहि रे पलंगिया मे।
रसिया बात बाजू सम्हाहरि छोड़ू हमरा से अरारि।
हम त झुलफी घय घिसिआयब पलंगिया मे।
(2)
रिमझिम रिमझिम बुन्दे् बरसि गेल, अंगना मे पड़ल कजरिया।
थरिया धोबै गेलि फल्लाँि छिनरिया, खसली टांग अलगइया।
घेड़बा चड़ल एलखिन फल्लाँस रसिया उठ गै छिनो हरजैया।
हम कोना उठबौ रसिया, तोहर बचनिया डरबा मे पड़लैमचकिया।
डरबा मचकिया के की की दबैया, सोठि पीपरि मरचइया।
सोठि पीपरि के बड़ रे जहरिया, अतर गुलाब ठंंदैइया।

जुटिका बन्ध नक गीतश्‍

कोने बाबा केरा गाछ रोपल, केरा कोसाय गेल हे।
कोने बाबीक बरुआ उमत भेल राति शहर बसु हे।
फल्लाँ बाबा केरा गाछ रोपल केरा कोसाय गेल हे।
फल्लाँ बाबी बरुआ उमत भेल राति शहर बसु हे।
मड़बहि घीव ढ़रकि गेल स्वशर्ग इजोत भेल हे।
स्वबर्गक पितर आनन्दे भेल आब कुल रहत हे।

आमश्मीहु विआहय लेल जयबा कालक गीतश्‍

जाइत देखल पथ नागरि सजनी गे,आगरि सुबुधि सयानि।
कनकलता सन सुन्दुरि सजनीगे, विधि निरमाओल आनि।
चलैत हस्तिन गमन सन सजनी गे, देखैत राजदुलारि।
जनिकर ऐहन सोहागिनि सजनी गे, पाओल पदारथ चारि।
निल वसन तन घेरल सजनी गे, सिर लेल चिकुर सम्हाारि।
ओहि भ्रमर रस पीबह सजनी गे, बैसल पंख पसारि।

आमश्मनहु विआहक गीत
(1)
आम बीछै गेली छिनरो, आँठी विछि लैली हे।
पचास बेर मना देलियह, तैयो ने तो मानली हे।
आम महु बिआहै छलै, तही से भुलेलियै हे।
हजार बेर मना देलियह, तैयो ने तो मानली हे।
(2)
अमुआ मजरि गेल जमुआ मजरि गेल चम्पाुकली
ताहि तर छिनरो ठाढ़ि नयना सँ नीरे ढरी।
घोड़बा चढ़ल एलखिन फल्लाँस रसिया
किए अकेली ठाढ़ं, नयना सँ नीरे ढरी।
सासु मोर बुढ़िया हे ननदी ससुररिया
मोर पिया गेलै परदेष, नयना सँ नीरे ढ़री।
छाड़ि दीअ आ गे छिनरो घरबा दुअरबा
सुख सम्प ति सगरी।
छोड़ि दैह बिअहुआ के आष चल हमरो नगरी
अगिया लगेबै रसिया के घरबा दुअरबा, सुख सम्प ति सगरी।
बज्र खसेबै तोरे माथ मोर पिया आते रही।

उपनयन कालक गीतश्‍
(1)
चैतहि बरुआ विजय भेल बैषाख पाहुन भेल हे।
घर पछुआर केबटा बसु पार उतारि देहु हे।
जौं हम पार उतारब जायब कओन देष हे।
जायब हम जाहि देष जहाँ अपन बाबी हे।
बाबी के चरण पखारब लाल जनउआ देती हे।
(2)
काषी मे जाय बरुआ ठाढ़ भेल जनऊ पुकारय हे।
आहे के थिका काषी के वासी जनऊ मोहि चाहिय हे।
सुतल छला बाबा कवष्वेनाथ सेहो उठि बैसला हे।
आहे हम थिकौं काषी के वासी जनऊआ पहिरायब हे।
झारिखंड जाय वरुआ ठाढ़ भेल जनऊआ माँगय हे।
आहे के थिका झारिखंड वासी जनऊ मोहि चाहिय हे।
हम थिकौं झारिखण्ड वासी जनऊआ पहिरायब हे।
आंगन आबि ठाढ़ि भेल भिखि मांगय हे।
हम थिकौं अहाँ के बाबी झोरी भरिय देव हे।

भीख कालक गीतश्‍

मिथिलाक रुसल बरुआ काषी कथि लेल जाय।
आगे दाय कियो नहि हित बन्धुे जे बरुआ लेल बिलमाय।
आगे दाय बाबा से बड़का बाबा बरुआ लेल विलमाय।
बाबी से अइहब बाबी भीख नेने ठाढ़ि।
आगे माइ भिखो ने लियै बरुआ मुँहो सँ ने बजाय।
पहिरय लय पीयर धोती ओढ़य लेल मांगल चादर।
आगे माय हाथ दुनु मंट्‌ठा माँगे कान दुनु सोन।
आगे माइ मिथिलाक रुसल बरुआ काषी कियै जाय।

पुरोहित के गारिश्‍

बकलेल बभना चूड़ा दही चाटय ऐला हमर अंगना।
चाउर देलियनि दालि दलियनि धेलनि अंगना।
एक रती नोन लय करै छथि खेखना।
धेती देलियनि तौनी देलियनि धेलनि अंगना।
एकटा गमछा ले करै छथि खेखना।
सोन देलियनि चानी देलियनि धेलनि अंगना।
एकटा पाइ ले कोना करै छथि खेखना।





जनउ कालक गीतश्‍
लाल पीयर अछि माड़ब पाने पात छारल हे।
ताहि माड़ब बैसलाह बाबा से फल्लाँग बाबा हे।
बगल भए बैसलखिन बाबी से ऐहब बाबी हे।
कोरा बैसौलनि बरुआ से फल्लाँल बरुआ हे।
बरुआ जे मँगै बाबी लाल पीयर जनऊ दिय हे।
रहुश्रउहु बाबू आइ अहाँ ब्राह्‌मण होएव हे।
कि लाल जनऊआ देब हक कि पियर जनऊआ हक।

चुमाओन कालक गीतश्‍
आइ षिवक चुमाओन हेमन्ति घर मे।
सखि सब गाबै मंगलाचार हेमन्तल घर मे।
आंगन चानन निपू मनाइन गजमोती चौक पुराइ।
काँचहि बाँस के डलबाँ बुनाओल।
ताहि राखब दूभि धान हेमन्तन घर मे।
चुमबै बैसली सासु मनाइनि।
गौरी सहित त्रिपुरारी हेमन्तम घर मे।
दुबि अक्षत लय मुनि सब आयल।
जय जय शब्दप सुनाय हेमन्तल घर मे।

दनही आ बिलौकी कालक गीतश्‍
(1)
अमुआ मजरि गौले महुआ मजरि गेलै।
ताहि तर फल्लाँर छिनरो ठाढ़ि नयना सँ नीर झरे।
घोड़बा चढ़ल एलखिन फल्लाँन रसिलवा, कियै छिनरो एकसरि ठाढ़ि।
सासु मोरा आन्हएर ननदि गेल निज घर, मोर पिया गेल परदेष।
नयना......
छोड़ि दिहो छिनरो घरबा दुअरबा, छोर विहुआ के आस।
नयना........

(2)
नामि नामि कोसिया मे जुटिया गूथविह लटका के चलिहह ना।
छिनरो गोरी बदन बिछा के चलिहह ना।
पतरी कमरिया मे डरकस पहिरि लचका के चलिहह ना।
गोरे कलइया मे घड़ी पहिरि देखा के चलिहह ना।
गोरेश्गो रे अखिया मे सुरमा लगाबिह मचका के चलिहह ना।

बेटा विवाह
विवाहक लेल जाय कालक गीत (कुमार)
(1)
जहि दिन आहे बाबू तोरो जनम भेल, अन्न पानि किछु ने सोहाय हे।,
सेहो बाबू चलला गौरी विआहन, दुधबाक दाम दहु ने चुकाय हे।
दूधक दाम अम्माे सधियो ने सकइछ, पोसाइक दाम दै देव हे।
जाबत जीव अम्माे सध्यिोल ने सकइछ, धनी हेती नौरी तोहार हे।
नित दिन आहे अम्माा चरण दबेती, भोरे उटि करती प्रणाम हे।
(2)
पाकल पान के बिड़िया लगाओल
नगर मे पड़ल हकार।
आबथु देवलोक बैसथु माड़ब चढ़ि,
सब मिलि साजु बरियात हे।
कौने बाबा साजल आजनश्बाुजन
कौने बाबा साजु बरियात हे।
कौने बाबी साजल दुलहा दुलरुआ,
झलकैत जायत बरियात हे।
(3)
साँठह आहे आमा सिन्दुिरक पुरिया, नगर मे पड़ल हकार हे।
साजह आहो बाबा दुलहा दुलरुआ, दूर जायत बरियात हे।
जखनहि रामजी कोबर बिच आयल, सरहोजि छेकल दुबारि हे।
हमरा के दान दीअ ननदोसिया, तखन कोबर देव पैर हे।
मोरा कुल आहे सरहोजि बहिनी ने जनमल, राम लखन दुहु भाइ हे।
सेहो भाइ मोर संगहि अयलाह, सरहोजि मांगथि दहेज हे।
बरियातीक गीतश्‍
(1)
ऊँची महलिया मालिनि के घर, नीचा लागल फुलवारी हे।
ले गे मालिनि सोनाक सूइया, बाबू के गूँथि दे मौरि हे।
मौरि लय आयल मालिन, कहलक के देत मौरक दाम हे।
घर सँ बाहर भेला फल्लाँल बाबा, हम देब मौरक दाम हे।
(2)
कौने बाबा सजल घोड़ हाथी कौने बाबा साजु बरियात हे।
कौने दुलहा साजथु रहिमल घोड़ा साजि चलल बरियात हे।
तिल एक आहे बाबू घोड़ा विलमाव अमा गोर लागि लिय हे।
जुरहि जैहह बाबू जुरहि अबिह जुरहि होयत विवाह हे।
रहमल घोड़ा सलामति रहतै शुभश्‍2 होयत विवाह हे।
नगहर भरबाक गीतश्‍
भरय चलली सखि सिरहर नव कलष मँगाइ।
चानन सिरहर उर लय शुभ सिन्दुहर लगाइ।
सागर तट जब महुँचल सब नारी।
सिर सँ कलष उतारल देल आमक डारी।
लोचन प्रीत जुड़ायल सब मिलि मंगल गावे।
सब के ई दिन होय विधाता लिखथि भागे।

शुभ कार्य मे विदा होयबा कालक गीतश्‍
शुभे ल बहार भेलि बेटीक माय,
काहु हाथ नारियल काहू दूबि धान,
काहू खोंइछा साँठल पाकल पान
भैया हाथ नारियल भौजी दूबि धान।
अमा खोंइछा साँठल पाकल पान।
आजू मोरा आजू मोरा उचित कल्यााण,
बीलहह हे तरुणी सिनुर पिठार।

बेटीक विआह (कुमारि गीत)
(1)
कौने बन बोले कारी कोइलिया
कौने बन बोले मयूर हे।
कौने घर बोले सीता हे दुलारी
आब सीता रहति कुमारि हे।
आनन्द बन बोले कारी कोइलिया
निकुंज बन बोले मयूर हे।
राजा जनक घर सीता बेटी बोले
आब सीता व्याबहन जोग हे।
जाहक आहो बाबा राज अयोध्या।
जहाँ बसै दषरथ राज हे।
राजा दषरथ के चारि पुत्र छनि
राम लखन दुइ वीर हे।
गोरहि देखि जनु भुलहि हो बाबा
श्यािमहि तिलक चढ़ैब हे।
अपन जोग बाबा समधि जोहब
नगर जोकर बरिआत हे।
सीता जोकर बाबा लायब जमैया
देखत जनकपुरक लोक हे।
(2)
जहि दिन आहे बेटी तोहरो जनम भेल से दिन कहलो ने जाय।
चिन्ता निन्दो हरित भेल बेटी थीर नहि रहल गेयान।
कथी लय आहे सियाक जन्म भेल से भेल व्याकहन योग
से सुनि बाबा उढ़ला चेहाय चलि भेला ताकयं जमाय।
बाँध बनबिहह बाबा पोखरि खुनबिहह लगबिहह आमक गाछ।
हँस जुटत आ कमल फुलायत जल मारत हिलकोर।
ई सरोवर जैतुक नहि माँगत भैया होयता वेहाल।


दरबाजा पर वरियाती ऐला परश्‍
(1)
आउ आउ आहे बहिना सखिया हमार हे।
रतन पलकिया चढ़ि आयल चारु दुलहा।
हाथी घनेरो आबे घोड़ा हजार हे।
कतेक वरियाती आबे पाबी न पारे हे।
जेहने कुमारि तेहने चारु कुमार हे।
तिरहुत के नर नारी देखय मुँह उघारि हे।
लग भऽ जाऊ बहिनि लाज बिसारि हे।
गाओल सिनेहलता मन के उसारि हे।
परिछनक गीत
(1)
षिव छथि जागल लागल दुआरी हे बहिना, षिव छथि लागल दुआरी।
इन्द्र चन्द्रह दिक्‌पाल वरुण सभ, चढ़िश्चाढ़ि निज असबारी।
साजि बरात हेमन्तह घर आयल, नगर शोर भेल भारी। श्‍ षिव...
पुरहित ब्रह्‌मा चारु मुख लय, वेद ऋृचा उचारी।
दाढ़ी झुलबैत अगुआ नारद, ब्राह्‌मण वीणा धारी। श्‍ षिव...
परिछय चलली माय मनाइनि,लय कंचन दुइ थारी। श्‍ षिव...
पटकि आरती घर के पड़ली, नाग छोड़ल फुफकारी। श्‍ षिव...
योगन गण मण्ड प बीच आयल, भरि गहना पेटारी।
तखन ससरि मण्ड प दिषि आयल, देखल सब नरश्ना।री। श्‍ षिव...
हरहारा के काड़ा, पहुँची पनिया दरारी।
ढ़ोढ़क जोसन सुगबा के मुनरी, मनटीका मनिहारी।
ढ़ोरक करेत आ अजगर, अधसर के पटसारी।
धामन करधन गेड़ुली गहुमन, नागक नथिया भारी। श्‍ षिव...
जेहने बर तेहने बरियाती, तेहने गहना सारी।
षिव छथि लागल दुआरी, हे बहिना षिव छथि लागल दुआरी।




(2)
चलु सखि सब देहरि पर साजू डाला पान हे।
आनि ठक बक दीप लेसू परिछु सीताराम हे।
हरखि चलू बरियात बरियात आयल राज भवन समीप हे।
आइ अछि बड़ भाग हे सखि राम दरषन देल हे।
(3)
सीता करथि बिलाप तन थरश्थेर काँप।
धनुषा केओ नहि तोरल जनकपुर मे।
आब हम रहब कुमारि घर बैसल हिय हारि,
बिनु पुरषक नारि जनकपुर मे।
घर मे बैसब आब जाय, अपन वयस गमाय।
मरब जहरश्बिनख खाय, जनकपुर मे।
(4)
घीरेश्घी रे चलियौ दुलहा अंगना हमार हे।
अंगना मे होयत दुलहा विधि व्यछवहार हे।
सरहोजि दाइ लेती नाक पकरि हे।
लग कनी अबियौ दुलहा लाज बिसारि हे।
धुनेष के झाँपल मुँह करियौ उधार हे।
सिताजी के माय सुनयना आरती उतारु हे।
कपड़ा उतारै कालक गीतश्‍
माइ हे नाक दबाय वरके जाँचू बहिना।
दाइ हे योगी छथि कि भोगी से बुझबनि कोना?
कपड़ा निकालि बनी देखियनु बहिना।
दाइ हे रोगी छथि कि भोगी से बुझवनि कोना?
माइ हे हाथ पैर नीक जकाँ जाँचू बहिना।
हाथ पैर ठीक छनि कि नहि से बुझवनि कोना?
घुमाय फिराय वर के देखियनु बहिना।
माइ हे नांगर छथि कि ठीक से वुझबनि कोना?
दाइ हे बजाय झुकाय बरके देखियनु बहिना।
पण्डिीत छथि कि मूर्ख से वुझबनि कोना?



पाग उतारै कालक गीतश्‍
जे एहि बर के आंगन अनलनि हुनका देवनि गारि हे।
धोती पहिरक लूरि ने हिनका पाग खसल जाय हे।
देह परहक वस्त्रोी जे छनि सेहो अनलनि माँगि हे।
ठक बक किछुओ नहि चिन्हनथि हिनका देबनि फेरि हे।
अक्षरक ज्ञान कनियो ने हिनका नित करथि चरबाहि हे।
मूसे कवि इहो पद गेलनि गौड़ीक बड़ दिअमान हे।
चतुर घटक इहो वर अनलनि हिनके दियनु वियाहि हे।
नाक धरक गीतश्‍
सिर स पाग उतारल काँख दबाओल हे।
लय डोपटा गिरमोहार नाक धय आनल हे।
दुधहि चरण परवारल निहुरि निहारल हे।
हिनको परिछि घर आनल परिछि देखओल हे।
ठक बक चीन्हिक गीतश्‍
चलूश्च लू दुलहा अंगना हमार यो।
अंगना मे होयत दुलहा विधि व्यशवहार यो।
ठक के कहलनि दुलहा माटिक मुरुत यो।
दुलहाक माय केहन छिनारि इहो ने सिखेलखिन हे।
हुनकर काकी केहन छिनारि इहो ने सिखेलखिन हे।
बेसन के कहलनि दुलहा घाटि यो।
दुलहाक पीसी केहन छिनारि इहो ने सिखेलखिन यो।
भालरि के कहलनि दुलहा केरा के पात यो।
दुलहाक बहिन केहन खेलारि इहो ने सिखेलखिन यो।
मूज के कहलनि दुलहा इ थीक कोर यो।
हिनकर पितामही केहन खेलारि इहो ने सिखेलखिन यो।
आंगन जायकालक गीतश्‍
चलु घीरे धीरे ललन ललीक अँगना
ई अंगना नहि बुझब अवध के
दौड़ल चलब मन मानत जेना। चलु.....
गमकैत फूल कियारी लागल
हीरा पन्नाह गमला साजल
बेली चमेली गुलाब दोना। चलू....
एहिना फुल रहय मिथिला मे
बारहो मास ओ तीसो दिना। चलू....
देखथि दुलहा ठाढ़ अँगना। चलु....
अठोंगर कुटै कालक गीतश्‍
हम धनमा कुटैब एहि बरबा से।
घुरि फिरि आयल अवधबा से।
की बहिया की नृपति बालक।
बुझबनि उखरि मूसरबा से।
घुमि घुमि धान कुटै छथि बालक।
विवष भेल बेवहरबा से।
चौदह भुवन ई अनका बन्हैथ छथि।
आइ बन्हिखयनु काँच डोरबा से।
स्नेनहलता ई गाओल अठोंगर।
रानी बिलोकति घरबा से।
नैनाश्‍ योगिनिक गीतश्‍
पहिल योगिनिया तोहे अपन सासु हे।
आब दुलहा भेलहा योगिनिया बसी हे।
आलरिश्‍ झालरि कन्हय कारु सिर बेनिया हे।
गीत स पहिनक फकड़ा
थिकौ बंगालिनि बसी, बंगला सुरपुर स आयल छी
सूखल नदिया नाव चलाबे, बिन लेसन के दधि जनमाबे।
चुलहिक पुत्ता सारि उपजाबे, कोठी पर जे बड़द नचाबे।
कन्याु निरीक्षण कालक गीतश्‍
देल आमक पल्ल व आमक पल्लगव हे।
चिन्हू बाबू चिन्हूष घनि, अपन चिन्हि। जुनि भूलव हे।
रघुकूल के एक रीति, तकर सुधि राखब हे।
आहे! हेरथि नहि परनारि, से तखनहि जानब हे।
चारु ललन चित्त चंचल करे डगमग हिय हे।
आहे! आजु असल थिक जाँच नृपति घर आयल हे।
यद्‌यपि चारु कुमार कुलक पति(पैत) राखल हे।
सब सखि देल हकार ललन कहि राखल हे।


एहि अवसरक फकड़ाश्‍
काँच बाँस काटि के, बंगला घर छाड़ि के, दहिन लट झाड़ि के.
वाम छथि कनियाँ दहिन छथि सारि, उठाउ प्रथम वर हृदय विचारि।
जौं नहि चिन्हँब अप्पछन नारि, हँसती सखी सब थपड़ी पाड़ि।
आम महु विवाहक गीतश्‍
उठु उठु कामिनि छोड़ह लाज,
द्वार लागल छथि पाहुन समाज।
आयल दषरथ साजि बरियात,
फुलह फलह सखि नव जल जात।
मन जे आँकल गेल तुलाय,
सुनतहि सीता गेली फुलाय।
गद्‌गद स्वलर बड़ होइछ लाज,
आजु देखत मोहि ससुर समाज।
धोबिनक सोहागश्‍
धोविनक बेटी झट दहिन सोहाग गे
राजा जनकजी के एक गोट बेटी।
सिन्दु र पिठार लय मुँगरी पुजबही,
लय धो दहिन सोहाग गे। धोबिन...
गुर चााउर लऽ मुँह मे खुअबही
कोचा धो दहिन सोहाग गे। धोविन....
सुकुमारि धिया के सोहाग दही ने,
खय के देबौ चूड़ा दही।
पहिरय के देबौ सायाश्सा ड़ी
जेवर देबौ लटकाय। सुकुमारी....
देबौ मे देबौ गाय महिसबा,
जोड़ा बड़द देबौ हकाय। सुकुमारी....
बेदी घुमय कालक गीतश्‍
(1)
गरदनि बान्ह1ल चदरिया आगूश्आरगू सिया माई।
करथिन मण्डहप परिकर्मा हे दुलहा और भाई।
बसहा जकाँ सभ घुमथिन हे न चलय प्रभुताई।
गाबथि मंगल गाइनि हे सब मंगल छाई।
हँसी अली मुसकाथि छनहि देथि पीहकारी।
से सुनि हँसि कऽ जमाय हे देल परिक्रमा सारी।
(2)
नहु नहु दुलहा चलै छथि कोना।
जेना कल्हु2आ के बरदा घुमै जेना।
बड़द के उपमा हुनका देलियनि कोना।
माई हे चौरासीक फन्दाा मे पड़लनि जेना।
डेग नमहर कऽ दुलहा चलै छथि कोना।
माई हे खुट्‌टा स बड़दा खुजै जेना।
बरदाक उपमा हुनका देलियनि कोना।
माई गे चौड़ासीक फन्दाा मे पड़लनि जेना।
अंगना मे ठाढ़ दुलहा लगै छथि कोना।
जेना अंगना मे मेह गाड़ल हो जेना।
मेहक उपमा हुनका देलियनि कोना।
जेना चोरासीक फन्दाो मे पड़ला जेना।
कहथि सिनेहलता चलब कोना।
माई गे आंगुरक इसारा देब जेनाश्जे ना।
कन्यालदान कालक गीतश्‍
कोनहि कुल मे सीता जनम लेल, कौनहि कुल श्रीराम हे।
कौनहि आगे माइ वेद उचारल कौनहि कैल कन्याुदान हे।
राजा जनक घर सीता जनम लेल दषरथ घर श्रीराम हे।
नारद ब्राह्‌मण वेद उचारल जनक कयल कन्याेदान हे।
राजा जनक देल हीरा मोती सोनमा आओर देलनि धेनु गाय हे।
रानी सुनयना देल सीता सन बेटी राम लेल अंगुरी लगाय हे।
कहमा छुटल सुपति मौनियाँ कहमा जनक ऋृषि बाप हे।
कहमा छुटल माय सुनैना जिनका झहरनि नोर हे।
अंगनहि छुटल सुपति मौनियाँ दुआरे जनक ऋृषि बाप हे।
मंदिर छुटल माय सुनैना जनिका नैन नोर हे।
सिनुरदान गीतश्‍
पाहुन सिन्दुनर लिय हाथ, सर सुपारीक साथ।
सिता उधारल माथ सिन्दुिर लिय अय।
सुन्द र बितै अछि लगन, अहाँ धनुष कयल भगन।
सब आनन्दु मगन, आषिष दिय अय।
रघुबर सिर शोभनि मौर, सीता नित पूजथि गौर।
आइ पूरल मनोरथ नरपति होय लय।
महिमा दुनूक अनूप, सब आनन्दिआत भूप।
आइ पूरल मनोरथ आनन्दिनत होय लय।

लावा छिटबा कालक गीतश्‍
मैना देखहुँ जाय,
त्रिभुवन पति भेल अहाँक जमाय।
षिव गौरी मिलि लावा छिड़िआय।
भूखल वासुकि बिछिश्‍ बिछि खाय।
सोनाक बट्टा भरि घोरल कसाय।
उमत सदाषिव भसम लोटाय।
जटा मे देल अंकुसी लगाय।
झिकतहि सुरसरि गेलि बहराय।

विआहक गीतश्‍
मचिया बैसल तोहे राजा हेमन्ता ऋृषि, सुनू अहाँ बचन हमार यो।
गौरी कुमारि कते दिन रहती, ई नहि उचित विचार यो।
एतबा वचन जब सुनल हेमन्तत ऋृषि, पंडित अनलनि बजाय यो।
आबथु पंडित बैसथु पलंग चढ़ि, मुनि देथु धीया के विआह हे।
एक पोथी तकलनि दोसर पोथी तकलनि, तेसर मोथी तकलनि पुरान यो।
ओहि रे जंगल मे योगी एक वसै छथि, तनिके संग धिया के विआह यो।
अरही वन के खड़ही कटाओल, वृन्दाषवन बिट बाँस यो।
देव पितर मिलि माड़व ठानल, होबय लागल धिया के विआह यो।
एक दिस बैसला नारद ब्राह्‌मण, दोसर दिषि गौरीक बाप यो।
बाघक छाल पर वैसला महादेव, होअय लागल धिया के विआह यो।
कन्या दान कय उठला हेमंत ऋृषि, मोती जेंका झहरनि नोर यो।
किए जे खेलौ बेटी किए पहिरलौ, कथी ले भेलहुँ वीरान यो।
खीर जे खेलौ बाबा चीर पहिरलौ, सिन्दुिर लै भेलहुँ वीरान यो।


देहरि छेकक गीतश्‍
छोड़ब नहि दुआरि सुनियौ रघुनन्दरन।
जौं रघुनन्दसन चलला कोवर घर सरहोजि छेकल दुआरि।
नेग बिना दय पैर बढ़ायब देब गारि हजार यौ, सुनियौ रघुनन्द़न ...
पाँच पदारथ हरि जीक संग मे एक सरहोजि एक सारि यौ, सुनियौ...
जौं नहि देता सात पदारथ बेचता बहिन भाय यौ। सुनियौ....



बरियाती खेबा कालक गीतश्‍
(1)
समधि गारि नइ दै छी विनती करै छी,
समधिक माए पितिआइन गोअरबा के दै छी।
गोअरबा सँ दूध मंगबै छी, लके समधि जिमबै छी। समधि...
समधि के दादी नानी ल बनियाँ के दै छी
बनियाँ सँ चीनी मंगा समधि के दै छी। श्‍ समधि....
समधि क मौसी पीसी ल मड़बड़िया के दै छी।
मड़बड़िया स धेती कीनि समधि के दै छी। श्‍ समधि गारि....
(2)
निज कुल कामिनि समधिन छिनरो महिमा अगम अपार।
सगर नगर घर एको ने छोड़लनि के थिक अपन परार।
बनियाँ मे जे फल्लाँर के गछलनि जिनका टाका हजार।
पढ़ूआ मे जे डाक्टलर के गछलनि जे भोकतनि सूई बारम्बाार।
राजपूत मे जे फल्लाँर के गछलनि जनिका ढ़ालश्तरलवार।
गोआर मे जे फल्लाँ् के गछलनि जिनका धेनु हजार।
सोनरा मे जे फल्लाँ् के गछलनि जनिका जेवर भण्डाूर।
तमोलिन मे जे फल्लाँर के गछलनि के करतनि उपर लाल।



कोवर गीतश्‍
(1)
कोने बाबा बान्हेल इहो नव कोवन हे जनकपुर कोवर।
कोने अम्माे लिखल पूरैन हे जनकपुर कोवर।
फल्लाँ बाबा बान्हलल इहो नव कोवर फल्लाँत अम्माा लिखू पूरैन हे।
ताहि पैसि सुतय गेला फल्लाँँ दुलहा सीता कोवर धय ठाढ़ि हे।
बैसू सीता दाइ लाले रे पलंगिया बुझि लिय हमरो गेयान हे। जनकपुर
(2)
नव खटिया नव पटिया नव सब पुरहर हे।
आहे नव नव जोड़ल सिनेह सोहाग राति निन्दि नहि हे।
ताहि पैसि सुतलाह फल्लाँर दुलहा संग सिया दाइ हे।
सीताअति सुकुमारि सोहाग राति निन्दो नहि हे।
हटि सुतु हटि सुतु ससुर जी के बेटिया अहाँ धामे गरमी बहुत हे।
एतबा वचन सुनि कनियाँ सुहवे रुसि बाहर चलि जाइ हे।
हम नहि घुरबै ककरो वचनियाँ कोवरक वर बड़ ठेकर हे।
महुअक कालक गीतश्‍
बर रे जतन सासु मौहक रान्होल खिरियो ने खाथि जमाय।
गे माइ गौरी जाय दहिन भरि बैसलि थार बदल दुइ भेल।
मनाइनि जाय पाँछा भय बैसलि वर करा एक देल।
गे माइ सेहो करा हम कुकुर जिमायब से पान वर के देल।
घरभरी कालक गीतश्‍
माय मनाइनि पान लगाबथि सब मिलि कैल ओरियान।
आइ थिकनि घरभरी सखि हे धीया जमैआ मोर जाय।
धानश्पा न देल हाथहि सखि हे दुनू मिलि देलि छिड़आय।
भनहि विद्‌यापति गाओल सखि हे सब बेटी सासुर जाय।
खोंइछ झाड़ैक गीतश्‍
सगर जनम हम आस लगाओल,
भैया करता बिआह गे माइ।
भौजी के खोंइछा मे हीरा मोती आओत,
ताहि लय गहना गढ़ायब गे माइ।
तेहन घर ने भैया बिआहल,
भौजी खोंइछ दुबिश्धा न गे माइ।
जनु कानू जनु खीजू बहिन दुलरुआ,
हम देव गहना गढ़ाय गे माइ।
कोवर परातीश्‍
अब ने विलासक बेरि हे माधव,
आब ने विलासक बेरि।
मुखहुक पान बिरस सन लागत,
दीपक जोति मलीन। श्‍ हे माधव.....
चेरिया आय बहारय आंगन,
चन्द्रनक जोति मलीन। श्‍ हे माधव.....
ग्वा ला आय गौ दूहन लागे,
बछड़ डगरि बन गेल। श्‍ हे माधव......
सूरदास प्रभु तुम्हानरे दरस को,
सुर्य उदय भय गेल। श्‍ हे माधव.......
कनियाँ मुँह देखैक गीतश्‍
सुनू हे सखिया सिया मुँह देखू शुभ काल।
पहिने जे देखथि सासु कौषिल्या ,
देखू हे सखिया मोहर देखि शुभ काल।
तखन जे देखथिन गोतनि बड़ैतिन।
देखू हे सखिया कंगना देथि शुभ काल।
तखन जे देखथिन ननदि बड़ैतिन,
देखू हे सखिया टाका देथि शुभ काल।
तखन जे देखथि परश्पनरोसिन,
आषीष देथि शुभ काल। सुनू हेे सखिया....
कोबर नीपै कालक गीतश्‍
नीक नीपू नीक नीपू दुलहिनिया।
नहि नीक नीपब ते सुनब कहिनिया।
कुम्ह राक बेटी अहाँ थिकहुँ दुलहिनिया।
माटि आनि नीपू नइ ते सुनब कहिनिया।
जोलहाक जनमल थिकहुँ दुलहिनिया।
पाट आनि नीपू नइ ते सुनब कहिनिया।
बहियाक बेटी अहाँ थिकहुँ दुलहिनिया।
पानि आनि नीपू नै ते सुनब कहिनिया।
कोबर नीपै काल कनियाँ क ठकैक गीतश्‍
देखू देखू हे सखि सीता रुसि रहली,
आधा निपलनि कोबर आध छोड़ि बैसली। श्‍ देखूश्दे खू .....
सीताक बापकेँ बजाउ, सीता माए केँ बजाउ
की सब सीता के सिखा क वदा कयली। श्‍ देखू....
सुनलनि सासु कौषिल्याक हाथ मोहर धयली
कंगना गढ़ायब टीका मंगायब सीता किए रुसली। श्‍ दुखूश्दे खू...
गौरी पूजाक गीतश्‍
गौरी पूजय चलल रुक्मिगनि संग सखी दस पाँच यो।
तीन फूल लय गौरी पूजल बेली चम्पाह गुलाब यो।
तीन सिन्दुसर लय गौरी पूजल मोटिया पीपा अचीन यो।
तीन नेवेद्‌य लय गौरी पूजल नेवो नारंगी अनार यो।
तीन वस्त्र‌ लय गोरी पूजल लाल पीयर पटोर यो।
तीन बेरि कल जोरि पूजब लय गंगाजल नीर यो।
हड़ीर पानक गीतश्‍
रतन सिंहासन बैसथु सुलपाणि
रवाथि ने हरीर पान पीवथु जूड़ी पानि।
जेहने महादेव के गौरीदाइ परान
तेहने फल्लाँन दुलहाके फल्लींा दाइ परान।
जेहने रामचन्द्रे के सीता दाइ परान
तेंहने फल्लाँव दुलहा के फल्लोंए दाइ परान।
जेहने हड़ीर खेने मधुर पानि
तेहने फल्लाँ् दुलहाक फल्लोंा दाइ मधुर हे।
मुट्ठी खोलैक गीतश्‍
सखि मुट्ठियो ने खोलय जमैया
हे हारि गेला रधुरैया।
हमरो सीता मुट्‌ठी कसि के बान्हाल
खोलियो ने सकला जमैया हे।हारि गेला...
हमरो सिया दाइक कोमल आँगुर
धीरे स खोलब जमैया हे। हारि गेला...


चतुर्थीक कालक गीतश्‍
चलुश्च लु कामिनि कर असनान।
प्रखर भानु मुख करत मलान।
शीतल शुरभीत जल घट देल।
पंकज नायक नभगत भेल।
आजु चतुर्थीक अवसर थीक।
किछुओ ने भिजतह लोहित सारि।
लहु लहु जल हम ढा़रब बारि।
दुहु जन रहु गय अमर कहाय।
वरुण देव नित रहथु सहाय।
कुमर चतुर्थीक उत्स व तोर।
विधिकरी विधि करु भऽ गेल भोर।
नहायकालक गीतश्‍
राम लखन सन सुन्दऽर वर के जनु पढ़ियनु केओ गारि हे।
केवल हास विनोदक पुछिअनु उचित कथा दुइ चारि हे।
प्रथम कथा ई पुछिअनु सजनी कहता कनेक विचारि हे।
गोरे दषरथ गोरे कौषल्याि, भरत राम किएक कारी हे।
सुनु सखि एक अनुपम घटना, अचरज लागत भारी हे।
खीर खाय बालक जनमौलनि, अवध पुरी के नारी हे।
अकथ कथ की बाजू सजनी, रघुकूल के गति न्या री हे।
साठि हजार बालक जनमौलनि सगरक नारि छिनारि हे।
नेहलता किछु आब ने कहियनु, एतवे करथि करारी हे।
हँसी खुषी मिथिला से जेता, पठा देता महतारी हे।
वेदी उखारै कालक गीतश्‍
सखि यदि एक बापक बेटा हेता
दोसर हाथ ने लगेता हे।
दू बापक बेटा हेताह
तखने दोसर हाथ लगोता हे।
दू कोन के वेदी उखारलनि
तेसर आंगन मे ठाढ़ हे।
कहियनु गऽ सासु ससुर सँ
आंगन मे रुसल छथि जमाय हे।
कहियनु जाय जमाय बाबू सँ औंठी देवनि गढ़ाय हे।
पटिया समटय कालक गीतश्‍
रघुववर पटिया देलनि ओछाय
सीता फेकल जुमाय कोवर घर मे।
गाइन मंगल गीत गाय विधिकरी विधि कराय।
सखि सब करथि विनोद कोवर घर मे।
कहथिन सरहोजि बुझाय जुनि अहाँ अगुताइ।
विधि करियौ आइ कोवर घर मे।
सौजनक गीतश्‍
मेही भात जतन भनसीआ
साँठि लयल भरि थारी जी,
राहड़िक दालि बटा भरि उत्तम
ताहि देल घी ढ़ारी जी।
ओल पड़ोर तरल तरकारी
खटरस भेग लगावै जी।
महिसिक दही छाँछ भरि उत्तम
परसय प्रेम पियारी जी।
दही खयवा कालक गीतश्‍
हे वर दही किये ने खाइ छी
माय अहाँक गोआरक बहु छथि
अहाँ संग किएक ने लयलहुँ
संग संग अयली टीसन सँ घुरली
टीकट मास्टहर देखि डेरेयली
हे वर चीनी किये ने खाइ छी
माय अहाँक छथि बनियाक बहुआ
संग किये नहि अनलहुँ
संगे अयली दरबजा सँ घुरली
समधी देखि डेरेयली। हे वर...
चित्ती साटक गीतश्‍
भितिया मे चितिया सटि हे योगिया
जाहि ठाम लागल सिन्दु।र पिठार।
जहाँ जहाँ सुमिरन करबे रे योगिया
रखिहे हिरदय लगाय।
नून तेल पैंच लेल सिन्दुुर सपन भेल
पिया भेल डुमरीक फूल। भितिया.... मधुश्रावनीश्‍ गोसाउनिक गीतश्‍
(1)
विनती सुनियौ हे महरानी, हम सब शरण मे ठाढ़।
अक्षत चानन अहाँ के चढ़ायब, आरती उतारव ना।
बेली चमेलीक माँ के हार चढ़ायब अढ़ूल चढ़ायब ना।
करिया छागर धूर बन्हाेयब, उजर चढ़ायब ना।
(2)
महिमा तोहर अपार हे जगजननी महिमा तोहर अपार हे।
बामे रवप्पकर दहिने कताबहै सोनितक घार हे।महिमा.....
पहिरन चीर गले मुण्डेमाला पैर मे नुपुर अपार हे।
सूरदास प्रभु तुम्हुरे दरस के सदा रहिय रखवार हे। महिमा....
बिसहाराक गीतश्‍
साओन मास नागपंचमी भेल।
बिसहरि गहवर सोहाओन भेल।
केओ नीपै गहवन केओ चौपारि।
हमही अभागिन निपी दुआरि।
केओ लोढ़े अढ़ूल केओ बेलपात।
हमहू अभागिन हरिअर दूबि।
केओ माँगे अनधन केओ माँगे पूत।
हमहू अभागिन सिरक सिन्दुलर।
पावनिक गीतश्‍
पाबनि पूजू आजु सोहागिन प्राण नाथ के संग मे।
कारी कम्बपल झारि गंगाजल काजर सिन्दुरर हाथ मे।
चानन घसू मेहदी पीसू लिखू मैना पात मे।
पावनि साजि भरिश्भररि आनल जाही जूही पात मे।
कतेक सुन्दार साज सजल अछि लिखल मैना पात मे।
आँखि मूनै कालक गीतश्‍
नहुँ नहुँ धरु सखी बाती, धरकय मोर छाती।
नहुँ नहुँ पान पसारह, नहुँ नहुँ दृग दुहु झाँपह।
मधुर मधुर उठ दाह मधुर मधुर अवगाहे।
कुमर करह विधि आजे, मधुश्रावनी भेल आजे।
टेमी कालक गीतश्‍
क्द ली दल सन थर थर कापय मधुश्रावनी आजे।
स्क ल सिंगार समारि साजथि सब मधुमय कैल समाजे।
क्म ल नयन पर पानक पट दै नागर जखनहि झाँपै।
विधकरी हाथ चन्द्रतकर बाती देखि सगर तन काँपै।
आजु सोहागिन सहमल बैसल मुख किये पड़ल उदासे।
अम्बाी मुख हेरय कियै कामिनि पल पल लैह उसासे।
कुमर नयन सँ नोर बहाबह गाइनि गाबथि गीते।
बड़ अजगुत मधुश्रावनी विधि परम कठिन इहो रीते।
बटसावित्रीश्‍
बड़क पूजाक गीतश्‍
जेठ मास अमावस सजनी गे सब धनि मंगल गाव।
भूषण वसन ठीक करु सजनी गे रचि रचि आँग लगाव।
काजर रेख सिन्दुार भेल सजनी गे पहिरथु सुबुधि सयानि।
हरखित चललि अक्षयवट सजनी गे गवितहि मंगल गाने।
घर घर नारि हकारल सजनी गे आदर सँ सभ गेलि।
आइ थिक बड़साइति सजनी गे तैँ आकुल सभ भेलि।
घुरुमिश्घु़रुमि जल ढ़ारल सजनी गे बांटल अक्षत सुपारी।
फतुर लाल देल आषिष सजनी गे जीबथु दुलह दुलारी।
(2)
कतेक जतन भरमाओल सजनी गे, दै दै शपथ हजारे।
सपथहुँ छल जौं जनितहुँ सजनी गे, नहि करितहुँ अंकारे।
आब जगत भरि मानिनि सजनी गे, केओ जनि करय पिरीते।
मुँह सँ अधिक बुझावथि सजनी गे, वचन त राखथि थीर
हुनक हिया दगधल मोर सजनी गे, जसु नलिनी दल नीर।
गुन अवगुन सब बुझलहुँ सजनी गे, बुझलुँ पुरुषक रीत।
मनहि विद्‌यापति गाओल सजनी गे, पुरुषक कपटी प्रीति।
कोजगरा चुमाओनश्‍
भैया के करियनु चुमाओन कोजगरा मे।
बाबू जी पुछि पुछि परसथि मखान भोजघरा मे।
आंगन चानन नीपल गेल अछि।
गजमोती चौक पुराय देल अछि।
भैया के कहिऔन चुमाओन कोजगरा मे।
मानिक दीप जराओल दय दय।
काँच बाँस के डाला लय लय।
भैया के करियौन चुमाओन कोजगरा मे।
पचीसी गीतश्‍
खेलू खेलू यौ भैया बाजी लागइ के।
सीता जीतथि रामजी हारथि बाजी लगाइ के।
सखि सब देथिपिहकारी बाजी लगाई के।
सीता हारथि रामजी जितथि बाजी लगाइ के।
सखी सब गेल लजाय बाजी लगाइ के।
धन्यी धन्यग सखी हम मिथिलावासी।
रामजी भेला जमाय बाजी लगाइ के।
जुआ खैलै लेल एल जनकपुर वाजी लगाइ के।
हारला भाय बहिन पितिआइन हे वाजी लगाइ के।
दुरागमनश्क नियाँ परिछनिश्‍
सीता एली अंगना परिछन चलु सखि सब।
कथी के महफा कथी के लागल ओहार हे।
सोनाक महफा रेषमक लागल ओहार हे।
सीता एली अंगना परिछन चलु सखी सब।
कथी के साड़ी कथीक लागल किनारी हे।
रेषमक साड़ी गोटा लागल किनारी हे।
सीता एली अंगना परिछय चलू सखि सब।
कतय गेली सासु ओ ननदि जी हे।
सीता के अरिछिश्प रिछि घर लय चलू हे।
सीता एली अंगना परिछय चलू सखि सब।
चमाओन गीतश्‍
चुमाबहु हे राम सिया के चुमाबहु हे।
आंगन चानन निपल कौषिल्या , गजमोती चौक पुराइ हे।
अलष कलष लय पुरहर साजल, मानिक दीप जराय हे।
काँचहि बाँस के डाला बनल अछि, दही ओ धान सजाई हे।
दूभि अक्षत लय मुनि सब अयला, शुभ शुभ शब्द सुनाई हे।
चुमबय बैसली मातु कौषिल्या , सखि सब मंगल गावे हे।
देहरि छेकक गीतश्‍
राम सिया मिलि अयला अवधपुर, बहिन छेकलनि दुआरि हे।
हमरा दान देव जहन अहाँ भैया, तहन छोड़व हम दुआरि हे।
सासु ससुर हमरा किछु नहि देलनि, कि देव अहाँ के देहरि छेकाइ हे।
हाथक औंठी भैया खोलि देलखिन, बहिन लेलनि देहरि छेकाइ हे।
खोंइछ झारक गीतश्‍
सगर जनम हम आस लगाओल, भैया करताह विवाह गे माई।
भौजीक खोंइछ मे सोना चानी आओत, ताहि लय गहना गढ़ायब गेमाई।
तेहना ठाम ने भैया बियहला, भौजीक खोंइछ दुभि धान गे माई।
सगर जनम हम आस लगाओल, भैया करताह विवाह गे माई।
मोरि बैसक गीतश्‍
मोरि बैसल अहाँ अपन सासु, मुंह जनु अहाँ बाजब हे।
पुतहुँ होयत गलजोर, मुंह जनु अहाँ बाजब हे।
मोरि बैसल अपन पितिया सासु, मुंह जनु बाजब हे।
पुतोहू होयती गलजोर, मुँह जनु अहाँ बाजब हे।
कनियाँ मुँह देखैक गीतश्‍
सुनु हे सखि सिया मुंह देखु शुभ काल।
पहिने जे देखथि अपन सासु कौषिल्या ।
तखन जे देखथिन गोतिन बड़ेतिन।
तखन जे देखथिन ननदि बड़ैतिन।
तखन जे देखथि पर परोसिन सब।
आषीष देथि सब मिलि शुभ काल। सुनु हे सखि....
कोवर परातीश्‍
आब न बिलासक बेर हे माधव आब न बिलासक बेर।
मुखहुक पान निरस सन लागय, दीपक जोति मलीन।
ग्वाुला आबि गो दुहन लागे, गैया हमर बन गेल।
चेरिया आबि झारु दियै, सुरुज उदय भय गेल।
सूरदास प्रभु तुम्हािरे दरस को चन्द्रतक जोति मलीन।
आब न....




कोबरक गीतश्‍
कोबर लिखय गेलि रानी कौषिल्यास, चारु कात लिखल मयूर।
ताहि कोबर सुतला फल्लाँर दुलहा, संग लागि सीता सुकुमारि।
मुह उधारि सुन्दुरि के पुछलनि कोन कोन अभरन हे।
हाथ कंगना अपन बाबा देलनि, सिकरी लखन देओर हे।
सिरक सिन्दु.र प्रभु अहीं जे देलहु यैह तीन अभरन भेटल हे।
कोबर नीपक गीतश्‍
देखू देखू हे सखि सीता आइ रुसि रहली।
आधा निपलनि कोबर आधा छोड़ि बैसली।
सीताक बापके बजाउ ओ भाय के बजाउ।
की की सीता के सिखाय कइलनि विदा।
सुनि सासु कौषिल्या मोहर लेलनि हाथ।
कंगना गढ़ायब टीका गढ़ायब सिया किय रुसली।

कन्या पक्षश्‍ तुलासी
गौड़ीक गीतश्‍
फूल लोढ़य गेलि गौरी माली फुलबाड़ी
बसहा चढ़ल षिव आइ गे माइ।
लोढ़ल फूल षिव देलनि छिरिआइ।
कनैत खीजैत गौरी अम्माढ लग ठाढ़ि।
के तोरा मारलक के पढ़ल तोरा गारि।
हम नहि कहब अम्माढ कहितहुँ लाज।
पूछू गय सखि सभके कहत बुझाय।
महेषवाणी
हम नहि आजु रहब एहि आंगन, जौं वूढ़ होयत जमाय गे माई।
एक त बैरिन भेल विधि विधाता, दोसर धिया के बाप गे माई।
तेसर बैटी भेला नारद ब्राह्‌मण, हेरि लयला बूढ़ जमाय गे माई।
धोती लोटा पोथी पतरा, सेहो सब लेबनि छिनाय गे माई।
जौं किछु बजता नारद ब्राह्‌मण, दाढ़ी धऽ देबनि धिसिआइ गेमाइ।
अरिपन लेपलनि पुरहर फोरलनि, फेकलनि चौमुख दीप गे माई।
धिया लऽ मनाइनि मन्दििर पैसलीह, केओ जुनि गाबथि गीत गे माई।
भनहि विद्‌यापति सुनु ए मनाइनि, इहो थिक त्रिभुवन नाथ गे माई।
शुश्षुणभ कऽ षिव गौरी विवाहू, इहो वर लिखल ललाट गे माई।
समदाउनश्‍
बारह बरस केर छल उमिरिया तेरहम बरस ससुरारि।
कौने निरमोहिया दिनमा पठाओल कोन निरमोही मानि लेल।
कौने निरमोहिया डोलिया पठौलक कौने निरमोही नेने जाय।
ससुर निरमोहिया दिनमा पठौलक बाबा निरमोही मानि लेल।
भैया निरमोहिया डोली पठौलकइ स्वा मी निरमोही नेने जाय।
कथी देखि धैरज धरबह हे सखिया कथि देखि रहब लोभाय।
घरभरीक गीतश्‍
माय मनाइनि पान लगाबथि सब मिलि कयल ओरियान।
आइ थिकनि घरभरी सखि हे धिया जमैया मोर जाय।
धान पान देल हाथहिँ सखि हेे दुनु मिलि देल छिड़िआय।
भनहि विद्‌यापति गाओल सखि हे सब बेटी सासुर जाय।
अवसर विष्‍ोष वा समसामयिकश्‍
पावसश्‍
नव घन गरजत माला।
एक सघन तिपिराछन रजनी कूजित दुतिय मराला।
तेहर सेज सुनि लखि पहु बिनु उठल अन्त र ज्वाछला।
रहिश्रशहि चहुदिषि चपला चमकत विहरिनि जन जिमि भाला।
खेपब राति कौन विधि सखि हे चिन्ताा हृदय विषाला
हे जलधर अहाँ जाउ ततय झट जहाँ बसथि नन्द लाल।
करबनि विनय चरण धय लबि कऽ आबथु शीघ्र कृपाला
जौं झट दऽ मोहन नहि औता करता निमिप अभेला।
तौं ब्रज मे एको नहि जीउति विरहिनि सब व्रजवाला।
कजरीश्‍
सखी हे पिया नहि घर अयला, मेघवा वरिसन लागे ना।
जौं हम जनितौं पिया नहि औंता रखितहुँ हृदय लगाय।
हमरा सँ की त्रुटि भेल सखि हे आइधरि नहि आय।
जौं जनितौ पिया ऐहन करता दितियनि नहि हम जाय।
सखी हे पिया नहि घर अयला।
(2)
सखिया सावन ने डर लागै जियरा धड़श्धिड़ धड़कै ना।
ष्यााम घटा चहुँ ओर देखायत बिजुरी चमकै ना।
पिया मोर परदेष गेला सुन सेजबा न भावै ना।
झींगुर दादुर मोर पपिहरा कोइली कुहकै ना।
सखिया सावन मे डर लागै ना।
उदासीश्‍ तिरहुत
मधुपुर गेल मनमोहन रे मोर बिहरत छाती।
गोपी सकंल बिसललनि रे जते छल अहिबाती।
सुतलि छलहुँ अपन गृह रे निन्नल गेलौ सपनाइ
कर स छूटल परसमनि रे के लेल अपनाई
कत सुमिरब कत झाँखब रे हम मरब गरानी।
आनक धन लय धनबन्तीख रे, कुबजा भेलि रानीश्तिनरहुत।
(2)
जखन चलल हरि मधुपुर रे सब सुरति निहारि।
आब कोना रहब हरि बिनु रे झाँखथि ब्रजनारी।
वन मे डोलय पिपर पात रे बहय सेमरि।
हम धनि डोलिय पिया बिनु रे बिनु पुरुषक नारी।
केहन कर्म विधि लिखलनि रे झाँखथि वृजनारि।
हरि बिनु भूषण भार भेल रे पलंगा ने सोहाई।
(3)
एते दिन भ्रमर हमर छल सखि हे,
आब गेल सारंग देष।
मधुपीबि भ्रमर लोभित भेल सखि हे।
मोहि किछु कहियो ने गेल।
ककराश्क्करा कहब, अपन दुख सखि हे,
नयन निन दुरि गेल।
जे बिरहे हम व्याभकुल सखि हे
भ्रमर हमर रुसि गेल।
आंगन मोर लिये बिजुवन सखि हे,
घर भेल दिवस अन्हानर।
पुरुषक वचन ऐहन थिक सखि हे,
सपतक नहि विसवास।


अवसर विष्‍ोषक गीतश्‍
मलारश्‍
(1)
अलि रे प्रीतम बड़ निरमोहिया।
आतुर वचन हमर नहि मानय, परम विषम भेल रतिया।
काँपत देह घाम घमि आबत, ससरि खसत नव सरिया।
आवत वचन थीर नहि आनन, बहत नीर दुहू अँखिया।
रमानन्द् भामिनि रहु थीर भय सुख बिच कहु दुख बतिया।
(2)
हे उधो लिखब कोन विधि पाती।
अंचल पत्र नयन जल कज्जथल नख लिखि नहि थीर छाती।
चन्द्रद किरण बध करत एतए पिय ओतए रहू दिनश्रा़ती।
रेषम वसन कनक तन भूषण तेसर पवन जीव घाती।
कहथि रमानन्दा सुनू विरहिनि आओत श्या म विरहाती।
(3)
अलि रे हम रघुवर संग जायब
भूखल पायब भोजन करायब निर्मल जल पियेबै।
थाकल पायब चरण दबायब शीतल बेनिया डोलेबै।
औंघैल पायब वन पत्र लायब तहि पर आँचर ओछेबै
तुलसीदास प्रभु तुम्हररे दरस को रघुवर चरण लेपटेबै।

योगश्‍ (1)
भात खेआय मन मारलन्हि हे अपन सासु हे।
जाय ने देथि अपन देष हे अपन सासु हे।
अम्माद होयती बाट देखैत करवन बाबू औताह हे।
पान खेआय मति मारलन्हि हे सरहोजिनि अपन हे।
जाय न देथि निज देष बुझाय रखतीह हे।
कर जोरि विनती करै छी सुनू रघनन्दहन।
बान्हदत अहाँ के प्रेम अहाँ अपने छी जगवन्द।न।
(2)
प्रिय पाहुन मन सँ जिमि लिअ।
अपने योग बनल अछि किछु नहि सेहो मनहि विचारि लिय।
बुझब तखन हम जौं किछु माँगव और दिअ।
भावक भुखल स्वँभाव अहाँ के तेँ हम सब हरसाइत छी।
भनहि विद्‌यापति इहो मंगल मिथिला विधि जानि लिअ।
(3)
हमर अपन करिये छथि पाहुन ताहि सँ मतलब अनका की।
अपन बल पर अपन खुषी थिक ताहि मे कानून जहाने की।
अपन बहिनि यदि फेकिये देता ताइ सँ मतलब अनका की।
साठि हतार जनभूलखिन पुरखिन तकर करै छी निन्दान की।
प्रसव कास मे दषा जे भेलनि ताहि सँ मतलब अनका की।
गटश्गदट गारि सुनै छथि लालन मगर मरम्मतति करताकी।
स्नेगहलता मुसकाथि लजाइत उचित बात मे बजता की।
उचितिश्‍(1)
श्यािमा वरन श्री राम हे सखि! देखैत मुख अभिराम।
आइ हमर विध बाम हे सखि! मोहि तेजि पहु गेल आन।
पढ़ल पंडित भान हे सखि! पहुक नहि करि अपमान।
भनहि ‘विद्‌यापति' भान हे! स्‍ुापुरुष गुणक निधान।
(2)
श्यािम गोकुल तेजि गेल रे, हमर कोन दोख भेल रे।
हमरा सँ नित अपराध रे, तोहे प्रभु गुणक अगाध रे।
कत गुणकरब बखान रे, जग भरि के नहि जान रे।
भनहि ‘विद्‌यापति' भान रे, सुपुरुष गुणक खान रे।
(3)
जओं करु सुजन सिनेह रे, उपला पाहुन नेह रे।
हेमकर मण्डवप हेम रे, चाानन वन कत नीम रे।
हिंगु हरदि कत बीच रे, गुनहि चिन्हेल ऊँच नीच रे।
मणि कादब लेपटाय रे, तैओ ने तनिक गुण जाय रे।
अलि के कुसुम अनेक रे, मालति के अलि एक रे।
काक कोइलि एक कांति रे, भेम्हे भ्रमर दुई भाँति रे।
कह ‘बादरि' अवधारि रे, सुपुरुष जन दुइ चारि रे।






बारहमासाश्‍ (1)
चैत हे सखि मत्तकोकिल कुहुकि काम जगाव यो।
कठिन श्या‍म कठोेर मानस ऋृतु बसन्ते विदेष यो।
बैषाख हे सखि देखि उपवन ललित कुसुम विकास यो।
देखि निज कुच कुसुम मौलल रहत चित्त न थीर यो।
जेठ हे सखि तेल चन्दकन पंक लेप शरीर यो।
बिन नाथ चन्द1न शीतलादिक धघकि जारत देह यो।
आषाढ़ हे सखि झमकि झमकत नीर बिजुरी जोर यो।
देखि काँपत देह थर नयन धारा नोर यो।
आयल साओन मेघ बरिसत घुमुड़ि घोर समीर यो।
सुमरि यौवन उमड़ि आबत प्राणमति नहि पास यो।
भादब जलधर धड़कि ठनकत खसल चौकि अचेत यो।
काहि कहु अब श्यातम बिनु सखि जात जीवन मोर यो।
आस आसिन अन्ति कय सखि बैसल कंत दुंरंग यो।
शरद चन्द्रदक चाँदनी देखि चित्त चंचल मोर यो।
देखि कातिक नारि एकसरि तानि शर रतिनाथ यो।
करत आंकुल जीव छनश्छीन कठिन कन्ता न बूझ यो।
लबिजात धान समान अगहन कमल सन कुच मोर यो।
झट नाथ-नाथ पुकार कय सखि पड़ल सेज अचेत यो।
पूस ओस बेहोष भय सखि खसत प्रीतम पास यो।
हम अकेलि सून पहु बिन काटब कोन विधि राति यो।
माघहे सखि जाड़ लागत जुलुम करि गेल कंत यो।
अंगश्अंाग अनंग ज्वारला ताप तापित देह यो।
रमानन्दा रहु धीर कामिनि धीर धय मन मारि यो।
आओत फागुन मिलत बालम खेलत हुनि संग फागु यो।
(2)
कहत मैना सुनू यो मुनि जन गौरी कोना रहत कुमारि यो।
गौरी जोग बर खोजि आनू चढ़ल मास बैसाख यो।
जेठ नारद फिरति चहु दिषि जोहल भंगिया भिखारि यो।
कहथि नारद सुनहु त्रिभुवनपति चलह व्याभहन आज यो।
अखाढ़ हेमन्तन घर बरियात लायल देखल सकल समाज यो।
काज राज सब छोड़ि सखिसब देखु हर बरियात यो।
सावन वर बौराह आयल बसहा पीठ असवार यो।
एहन उमत वर हेमन्तव लायल पैर फाटल बेमाय यो।
भादब मैना भेलि व्या्कुल धुनथि माथ कपार यो।
घटक के हम की बिगाड़ल की विधि लिखल लिलाट यो।
आसिन मैना गेलि अंगना मन दुख अगम अपार यो।
आब हम विष घोरि पीअब मरब जल बिच जाय यो।
कातिक शंकर भस्मह तेजल कयल गंगा स्नाबन यो।
रगड़ि चानन अंग लेपल भेल सुन्दीर रुप यो।
अगहन मैना भेलि हरसित लावथि गाइनि बजाय यो।
चलह सखि सब गीत गाबह त्रिभुवनाथ जमाय यो।
पूस सखि सब छोड़ि बैसलि देखथि रुप अनूप यो।
चलह सखि सब करह मौहक देखि नैन जुड़य यो।
माघ शंकर भेल व्यािकुल जोहथि आक धथुर यो।
एहन उमत वर हेमन्तव लायल भाँग हुनक अधार यो।
फागुन षिव सँ कहथि गौरी सुनू षिव अरजी हमार यो।
एक बेरि भस्मह उतारु शंकर देखत हेमन्तजक समाज यो।
चैत मैना भेलि हरसित पूरल मनक अभिलाष यो।
भनहि विद्‌यापति ई पद गाओल मिलल त्रिभुवन नाथ यो।
(3)
अगहन सीता के विवाह, पूस कोवर तैयार।
माघ सीरक भराय देव रधुवर जी के।
फागुन फगुआ खेलायब, चैत फूल लोढ़ि लायब,
बैषाख बेनिया डोलायब रधुवर जी के।
जेठ घाम परे भारी, आषाढ़ वुन्दे झरे सारी,
सावन झूलबा लगा दे, रधुवर जी के।
भादव राति अन्हाोर, आसिन करब सिंगार
कातिक आवि गेल मिथिला रधुवर जी के।
(4)
कातिक अयले कलकतिया जोहन बटिया।
अगहन चुड़वा कुटायब पूस दही पौरायब।
फागुन फगुआ खेलायब चैत फूल लोढ़ि लायब।
बैषाख बेनिया डोलायब जोहन बटिया।
जेठ हेठ भऽ गमायब अषाढ़ घर चल जायब।
सावन दुनु मिलि खेलब जोहन बटिया।
भादब नहि घहराय आसिन आस लगायब।
कातिक ऐलै कलकंतिया जोहन बटिया।
छौमासाश्‍(1)
साओन सर्व सोहाओन सखि हे फुलल बेलि चमेलि यो।
रभसि सौरभ भ्रमर भ्रमि भ्रमि करय मधुरस केलि यो।
आरे केलि करथु पहु मन दय
सखि अधिक विरह मन उपजय।
भादव घन घहराय दामिनि गरजि गरजि सुनाय यो।
बरसु घन झहर बून्दि रिमिझिमि मोहि किछु नहि भाय यो।
आरे भामिनि भय घन दमसय
सखि मुरुछि खसु महिमय।
परिणाम कोन उपाय हे सखि करब कोन परकार यो।
मास आसिन अधिक ज्वाहला विरह दुख अपार यो।
आरे कतेक सहब दुख पहु बिनु
सखि ककरो नाह बिछड़ि जनु।
नाह विछुड़ल मोर हे सखि होयत जीवक अन्त यो।
अरुण कातिक धसिय धायब जतय लुबधल कंत यो।
आरे कंत जोहय हम जायब
सखि जतय उदेष हम पायब।
अगहन हे सखि सारि लुबधल लबल जीवन मोर यो।
योगिनि भय हम जगत जोहब जतय जुगल किषोर यो।
आरे हमर प्रभु जौं अहोताह
सखि कर गहि कंठ लगोताह।
पूस धैरज धरय चाहिए भमर रहल विदेष यो।
हुनि विदेषी सुखहि खेपत हमर तरुण वयस यो।
आरे विदेसहि वैसि गमओताह
सखि हमर गृह नहि अओताह।
माध झिहिर पवन डोलय देह झाँझड़ मोर यो।
हँसथि, बसन उधारि सखि सब कहथि मोहि विजोर यो।
आरे शोक वियोग मनहि मन
सखि चित्त नहि थिर रहे एको छन।
(2)
वैषाख मास तनि तलफत घाम चुबै अबिरल।
वैसि बेनिया डोलायब कोठरिया मे।
जेठ दहकत अकास, घाम सहलो न जात
पैस बैसब भीतर मन्दिारिया मे।
अषाढ़ वुन्दा अपार पावस बरसे हजार
देखि हरषथ अपन कोठरिया मे।
साओन बरखा बहार, झुला करब तैयार
झुला झुलबै हम फुलवरिया मे।
भादब भरु गदी नार, नैया करब तैयार
अहाँ झिझरी खेलायब नदिया मे।
आसिन शरद बहार चाँदनी के झलकार
रास रचालेब कंचन महलिया मे।
कातिक दुतिया मनायब सबके एतहि बजायब
करब सब सुख साज कोठरियामे।
अगहन पन्चयचमी मनायब नवका चड़बा कुटायब
प्याकरे परसि खुआयब ससुररिया मे।

चौमासाश्‍
(1)
माध मोहन नेह लगायल अपने चलल परदेष यो।
ओहि रे परदेषिया रामा ओतहि गमाओल हम धनि बाड़ि बयस यो।
फागुन हे सखि आम मजरल कोइली सबद घमसान यो।
कोइली शब्द सुनि हिया मोर सालय नैना सँ झहरय नोर यो।
चैत हे सखि चित्त चंचल यौवन भेल जीवकाल यो।
आन धन रहितय बेचि हम खइतौं ई धन बेचलो न जाय यो।
बैषाख हे सखि विषम ज्वा ला घाम सँ भीजल शरीर यो।
रगड़ि चन्द न अंग लेपितहुँ जौं गृह रहितथि कन्तश यो।
(2)
कैसे खेपव बिनु कामिनि दामिनि दमसय रे।
सखि री सुखक मास अषाढ़ आस नहि पूरल रे।
दादुर करत पुकार झिंगुर झंझकारत रे।
सखी री सावन चहुँ ओर घटा मयूर बन कुहकत रे।
भादव मे मेघ झंहरत मोर मन झहरत रे।
सखी री हरि बिनु मंदिर शून गुण कत सुमिरब रे।
‘सूरदास' प्रभु गावल सखी समुझाओल रे।
सखी री धैरज धरु चहु मास आसिन हरि आओत रे।

वसन्तू (1)
सरस वसन्त समय भेल सजनी गे दखिन पबन बहु धीरे।
सपनहुँ रुप वचन एक भाखिय मुखा सँ दूर करु चीरे।
तोहर बदन सन चान होथि नहि यदपि जतन विधि देथि।
कय वेरि काटि बनाओल नव के तदपि तुलित नहि होथि।
लोचन तूल कमल नहि भय सक से नहि के जग जाने।
तै पुनि जाय नुकायल ज लमे पंकल एहि अपमाने।
मदन बदन परतर नहि पावथि जब भरि तोहरहि जोहि।
भनहि विद्‌यापति सुनु वर यौवति उपमा सुझय न मोहि।
(2)
समय वसन्तु पिया परदेष
असह सहब कत विरह कलेष
सुमरि पहु मन नहि थीर
मदन दहन तन दगध शरीर
षीतल पंकज चम्पाचक माल
हृदय दहन करु विषधर ज्वा ला
श्रवण दहन करु कोकिल गान
चान दहन तन अनल समान
(3)
रंगीली रंगश्मथहल मे खेलतु आज वसन्तख।
संगश्सरखी श्रृंगारश्साजी सब सरस तरंग वसन्तप। रंगीली...
सुश्कसर कनक पिचकारीश्धाेरी, सोहत श्री सिय कन्त।।
भीजतश्भू‍षणश्विसनश्रचमणश्तान, अनुपमश्छशवि दर्षन्तत। रंगीली...

तिरहुतश्‍
(1)
मधुपुर गेल मनमोहन रे मोर बिहरत छाती।
गोपी सकल बिसरलनि रे जते छल अहिबाती।
सुतल छलहुँ अपन गृह रे निन्दल गेलौं सपनाइ।
कर स छूटल परसमनि रे के लेल अपनाइ।
कत सुमिरब कत झाँखब रे हम मरम गरानी
आनक धन लय धनवन्तीख रे कुबल भेलिरानी।
(2)
जखन चलल हरि मधुपुर रे सब सुरति निहारि।
आब कोना रहब हरि बिनु रे झाँखथि ब्रजनारि।
वन मे डोलय पिपर पात रे जल बहय सेमारि।
हम धनि डोलिय पिया बिनु रे बिनु पुरुषक नारि।
केहन कर्म विधि लिखलनि रे झाँखथि वृजनारी
ळरि बिनु भूषण भार भेल रे पलंगा ने सोहाई।
(3)
सुतल छलहुँ हम घरवा रे गरवा भोतिहार।
राति जखन भिनसरवा रे पहु आयल हमार।
कर कोषल कर कपइत रे मुखचन्द्रि निहारे।
केहन अभागलि बैरिन रे भागल मोर निन्दृ।
विद्‌यापति कवि गाओल रे धनि मन धरु धीर।
समय पावि तरुबर फरु रे कतबो सिंचु नीर।
बटगवनीश्‍
(1)
तरुणी वयस मोर बीतल सजनी गे पिया पिया बिसरल मोर नाम।
कुसुम फुलीय फूल मौलल सजनी गे भ्रमरो ने लेल विश्राम।
सिर सिन्दुलर नहि भावय सजनी गे मुखहि खसय एहि ठाम।
उठ दूत परम व्यारकुल सजनी गे नयन ढ़रकि खसु वारि।
अधरस ओतय गमाओल सजनी गे दय गेल सौतिनक बारि।
युगल नयन मन व्यारकुल सजनी गे थिर नहि रहय गेयान।
विद्‌यापति कवि गाओल सजनी गे ई थिक दुखक निदान।
(2)
चानन बुझि हम रोपल सजनी गे
भय गेल सिमरक गाछ सजनी गे।
ताहि रे गमक पिया जागल सजनी गे।
चलि भेल पिया परदेष सजनी गे।
बारह बरस पर आयल सजनी गे,
लायल कंगही सनेस सजनी गे।
ताहि कंगही लय आयल सजनी गे,
कय लेल सोलह श्रृंगार सजनी गे।
खोंइछ भरि लोढ़लहुँ चंगेरी भरि सजनी गे,
सब फूल सेजिया लगैब सजनी गे।

फगुआश्‍
(1)
मिथिला मे राम खेलथि होरी। श्‍ मिथिला मे...
अतर गुलाब कुम कुम केषरि, रंग अबीर भरल झोरी।
सखि सब सजि धजि रधुवर के देल अबीर भरल झोरी।
होइछ बाद्‌य विधान विविधश्विोधि नाचश्गारन ओ झिकझोरी।
मारथि मर्स पूर्ण पिचकारी राम सकुचि जाइछ गोरी।
सुरश्गशण सुमन गगन सौ उझलथि, अबीर गुलाल बीच घोरी।
कूदथि बालक वृन्दा मुदित मन, मिलाश्मि‍ला निज-निज जोरी।
धै फगुआ के रुप मिथिलापुर, घरश्घिर मचि रहल होरी।
‘हरेकिृष्णग' शोभा लखि सकुचित, शेषश्षािरदाश्ष त्‌ जोरी।
(2)
गलिअन बिच धूम मचायो री, गलियन...
ग्वानलवाल संग लिये कन्है या नित भोरे उठि आयो री।
हाथ अबीर गुलाल पिचकारी सिर डारो री।
वन्षी) वीणा झाल बजाओ देत गारी गायो री। -गलियन......
(3)
गोरी संग कृष्णं खेलय होरी
ग्वा3ल वाल संग कृष्णि कन्हैाया
सुन्द)र रंग भरी झोरी।
बाजत आबत झाल मृदंग सब
सब जन आबत रस बोरी।
गिरिधर दास गाओल बाल संग
युग युग जीबओ यह जोरी। गोरी संग...
(4)
परदेसिया लै अंगना निपावे गोरिया। परदेसिया...
जब परदेसिया नगर बीच आयल
खुटे खुट अंगना निपावे गोरिया। परदेसिया...
जब परदेसिया आंगन बीच आयल
रचि रचि केसिया बन्हाेवे गोरिया। परदेसिया...
जब परदेसिया घर बीच आयल
झाड़ि झाड़ि पलंग ओछावे गोरिया। परदेसिया...
(5)
परदेसिया के नारि सदा रे दुखिया।
चारिम मास फागुन अब बीतल
कहियो ने आयल पहुँ पतिया। श्‍ परदेसिया....
पाचम मास चैत जब बीतल
अपनो ने सूनल हुनि बतिया। श्‍ परदेसिया...
(6)
होरी खेलत श्री रघुवर रसिया।
धूम मचावत, डंफ बजाबत घाटश्बािट सब रोक लिया।
श्री रघुवंषी छैल छबीले, श्री मिथिलेष दुलारी सिया।
ललकारत दोऊ ओर परस्पेर जीत लिया होरी जीत लिया
अबीर उड़ावत रंग वरसावत जनक नगर के गलि गलिया।
‘प्रेमनिधि' अबला प्रबला भऽ, उमड़ि चली हे रंगरलिया।
(7)
होरी मे लाज न करु गोरी।
प्रेम ब्रजवासी तु गोरी भली बीनहै यह जोड़ी।
जौ इससे सीधे नहि खेलहुँ मार मार कर वरजोरी।
सुरदास निकले सब बन मे लिये जाय वन मे जोड़ी।

चैताबरश्‍
(1)
कृष्ण) तेजल मधुवनमा हो रामा कौन करनमा
कृष्ण) तेजल मधुवनमा।
यमुना तट पर वंषी वट पर सेहो नहि लागत सोहनमा
कौतुक हास रास वृन्दारवन सेहो सब भेल सपनमा
हो रामा कृष्णब तेजल मधुवनमा।
जौं हम जनितौं कृष्णे नहि औता रहितौ अपन भवनमा।
सूरदास प्रभु तुम्हधरे दरस को हरि मुख भेल सपनमा।
हो रामा कृष्णु तेजल मधुवनमा।
(2)
चैत रे महिनमा पिया बिनु आबै नहि निंदिया, हो रामा...
पिया परदेष गेल सुधि बुधि हरि लेल
भुलि गेल घर के सुरतियाश्‍ हो रामा पिया बिनु.....
जब सुधि आबै पिया तोहरो सुरतिया
कुहुकि उठय मोर छतियाश्‍ हो रामा पिया...
केहन कठोर भेल पिया के करेजवा
एको नहि लिख भेजय पतियाश्होध रामा
घर जब अइहे। पिया कोरा लै बैसिहें
नखरा लगैंहें आधी रतियाश्‍ हो रामा...
कहत महानन्दभ सुनु हे सहेलिया
ऐसे मे बितैं हें सारी रतियाश्‍ हे रामा....
(3)
डिम डिम डमरु बजाबै हो रामा, षिव रंगरसिया।
अपने सदाषिव पूजा पर बैसता
गौरी सँ टहल कराबै हो रामा...
अपने सदाषि भाँग उपजावै
गौरी सँ भाँग पिसाबै, हो रामा....
अपने सदाषिव बसहा चराबै
गौरी सँ डोरी धरावै, हो रामा....
अपने सदाषिव माँगिश्माँागि आनथि,
गौरी स धान कुटावै, हो रामा....
(4)
रुसल पियबा मना दे कोइलिया
तेरी मीठी बोलिया।
सगर रैनि हम कतेक मनाओल
ओ नहि मानल मोर बतिया।
केओ नहि हितश्बंगधु ककरा जगायब
के पिया देत मनैया।
आमक गाछ पर तोही जे कुहुकब
हम कुहुकब दिन रतियाश्‍ हो रामा...
सूरदास प्रभु तुम्होरे दरस को
कओन हरल हुनि मतिया। हो रामा तेरी मीठी बोलिया
(5)
कौन कयल योग टोनमा, हो रामा सब गेल वनमा
राम लखन सिय वनहि सिधारल, दषरथ तेजल परनमा, हो रामा..
मातु कौषिल्या रोदना पसारल सुन भेल नगर भवनमा, हो रामा..
तुलसदास प्रभु तुम्होरे दरस को, धन इहो कोप भवनमा, हो रामा..
झूलाश्‍
(1)
यमुना तीरे कदमक डारी झूला रेषम के डोर गे।
षोभा देखि भेल चितबौरी ज्ञान हरन भेल मोर गे।
एक दिष राधा एक दिष कन्हार दोउ कर झिकझोर गे।
राधा वदनमा पर शोभे माला निरखत नंद किषोर गे।
नभ धेरि अयलै कारी बदरिया भेलै गगन मे शोर गे।
विरहिन के चित्त चंचल भेलइक नयना झहरे नोर गे।
राधाकृष्णह युगल अति सुन्देर एक श्यानमल एक गोर गे।
(2)
आयल सावनक मास, मन मे बढ़ल हुलास
मनमा लागि गेलै वृन्दाचवन नगरिया मे।
झुला परम अनमोल, लागत रेषमक डोर
झूलत नन्दक किषोर इजोरिया मे।
सखियन संग राधा रानी से छवि कोना के बखानी
सुन्द)र बाजन बाजै हुनका पैजनिया मे।
झूलवै मिलिकय सखी सहेली, सुमुखी राधा अलबेली
झूलत राधे श्यासम यमुना किनरिया मे।
एक सखि लेने कर मे माला, कहाँ गेल नन्द लाला
सूरदास पुछथिन्हल छोड़ि डगरिया मे।
(3)
झूला लगे कदम की डाली,
झूले कृष्णु मुरारी ना।
कौने काठ के बनल हिड़ोला
कोन वस्तुु के डोरी। झूला..
राध झूलय कृष्णख झुलावय बारीश्बा.री ना। झूला..

छठि
(1)
अंगना मे पोखरी खुनायल
छठि मइया औती आइ।
दुअरा पर तमुआ तनायल
छठि मइया औती आइ।
अँचरा सँ गलिया बहारब
तैपर पियरी ओढ़ायब
छठि मइया औती आइ।
(2)
डोमिन बेटी सुप नेने ठाढ़ छै
उगै हो सुरुज देव।
अरघ केर बेर
हो पूजन केर बेर
मालिन बेटी फूल नेने ठाढ़ छै
उगै हो सुरुज देव।
अरघ केर बेर
हो पूजन केर बेर
केओ ने छै लेसबैया परमेसरी मैया
सोना के दियरा मइया, पाटश्सुुती बाती हे
अबला नारी लेसबैया परमेसरी मइया
निर्धन कोढ़ी बाटे-घाटे ठाढ़ छै
उगै हो सुरुज देव।
अरघ केर बेर
हो पूजन केर बेर
पान सुपारी पकवान नेने ठाढ़ छै
उगै हो सुरुज देव।
(3)
हमरो पर होइयौ सहाय, हे छठि मइया
हमरो पर होइयौ सहाय।
चारि पहर राति जलश्थेल सेबलौं
सेबलौ छठि गोरथारि, हे छठि मइया।
हमरो पर होइयौ सहाय।
अपना ले मंगलौ अनश्धेन लछमी
जुगश्जु्ग मांगल अहिबात, हे छठि मइया
हमरो पर होइयो सहाय।
घोड़ा चढ़ै लेल बेटा एक मंगलौ
हमरो पर होइयो सहाय।
वयन बिलहै लेल बेटी एक माँगल
माँगल पण्डिीत जमाय, हे छठि मइया
हमरो पर होइयो सहाय।
(4)
केरवा जे फरल छै घौद सँ, ओइ पर सुग्गाप मड़राय।
मारबौ रे सुगवा धनुष सँ, सुगा खसल मुरुझाय।
सुगनी जे कानय वियोग सँ, आदित होउ ने सहाय।
काँचहि बाँस केर बहिंगा, ओइ मे रेषमक डोर
भरिया जे फल्लाँर भरिया, भार नेने जाय छै
बाटहि पूछै बटोहिया स, ई भार किनकर जाई।
आन्हिर होइबे रे बटोहिया ई भार छठि माई के जाइ।
ई भार दीनानाथ के जाय।
समदाउनश्‍
(1)
बड़ रे जतन सँ सिया जी के पोसल
सेहो रघुवंषी नेने जाय।
कौने रंग दोलिया कौने रंग ओहरिया
लागि गेल बतीसो कहार।
लऽ कऽ निकसल बिजुवन सखिया
ओहि बन केओ ने हमार।
केयो जे कानय राजमहल मे
केओ कानय दरबार।
केओ जे कानय मिथिला नगर मे
जोड़ि सँ बिजोड़ि केने जाय।
आजु धीया कोना अमा बिनु रहती
छनश्छ)न उठति चेहाय।
(2)
भेल विवाह चलल षिवषंकर
गौरी सहित कैलाष।
बसहा पीठ षिव दोलिया पठाओल
बाघ छाल पड़ल ओहार।
बड़ रे जतन सँ गौरी के पोसल
घृत मधु दूध पीआय।
सोनाक मुरुति सन गौरी हमर छथि
वर भेल तपसि भिखारि।
हमर गौरी कोना तपोवन जैतीह
झाँखथि राजदुलारि।
(3)
सुग्गाश जौं पोसितहुँ भजन सुनविते
धीया पोसि किछु नहि भेल।
घीवक घैल जकाँ पोसलौं हे धीया
बेटा जेँका कयल दुलार।
सेहो धीया मोर सासुर जैतीह
सुन भवन केने जाय।
ओलतिक छाहरि जकाँ पोसलौं हे धीया
मधुर जेँका राखल जोगाय।
सेहो धीया मोर सासुर जैतीह
सुन भवन केने जाय।
(4)
बारह बरस केर छल उमेरिया तेरहम बरस ससुरारि।
कौने निरमोहिया दिनमा पठाओल कोन निरमोही मानि लेल।
कोने निरमोहिया डोलिया पठौलक कौने निरमोही नेने जाय।
ससुर निरमोहिया दिनमा पठौलक बाबा निरमोही मानि लेल।
भैया निरमोहिया डोली पठौलकइ स्वा मी निरमोही नेने जाय।
कथी देखि धैरज धरबह हे सखिया कथी देखि रहब लोभाय।
(5)
जखन महादेव निज घर चललाह गौरी सहित कैलाष।
बसहा चढ़ल षिव डोलिया पठौलनि बाघछाल कयल ओहार।
घर सँ बाहर भेला हेमन्तौ ऋृषि भय गेल बाप पीठी ठाढ़।
घर सँ बाहार भेलि माय मनाइनि सुसुकि बहाबथि नोर।
सब दिन खाथि गौरी माखन मिसरी सक्कसर करथि अहार।
से गौरी कोना धतुर भाँग खयती आन की हयत आधार।
परातीश्‍
(1)
उठि भोरे कहू गंगाश्गं गा।
उठि भोरे कहू गंगाश्गं गा।
छल एक पापी महाबली
जाय मगह मरि गेल।
ओकरा तनके कौओ कुकुर ने खाय,
गिद्ध गीदर देखि डराय। उठि...
गलि गेल माँस हाड़ भेल बाहर
रोमश्रो्म भेल विकलाई।
कणिका एक उड़ि पद पंकज,
सुर विमान लय धाई। उठि...
पंछी एक उड़ल गंगा मे
ऊपर पाँखि फहराई।
देखू गंगाजी क महिमा जे
ओ कोना तरि जाई। उठि...
गेल बैकुण्ठय मुदित मन देखू,
आरति सुर उतराई।
भोलाजी गंगाक महिमा,
कहइत अधिक लजाई।
(2)
कोन गति होयत मोर हो प्रभु कोन गति होयत मोर।
जनम जनम हम पाप बटोरल कहिओ न भजलहुँ तोर।
बेरि बेरि अँखिया कमल मुख हेरलहुँ सुधि नहि तोर एको बेर।
अबहु सुमति गति दिय त्रिभुवन पति शरण रहब हम तोर।
तुलसीदास प्रभु तुम्हारे दरस के दुख संकट हरु मोर।
(3)
रथ पर निरखत जात जटाईश्‍ रथ पर निरखत जात।
रथ के उपर बैठ वैदेही नाजत निठुराई। रथ पर...
है कोइ वीर राम के दलमे रथ के ले बिलमाई।
कोन वंष के सूत रघुराई कौन हरने आई। श्‍ रथ पर ...
सूर्यवंषक राजा नृप दषरथ तनिके सुत रघुराई।
तनिके प्रिया नाम जानकी निषचर हरने जाइ। श्‍ रथ पर...
करुण वचन जब सूनेउ जटाई रथ चढ़ि कयल लड़ाई।
अग्निववाण मारल सो धरती गिरल मुरदाई - रथपर
मन सँ आषिष देल माता जानकी प्राण रहे घट छाई।
एहि बाटे आओता रघुवर ताकय सव बात कहव बुझाई। रथ पर...
(4)
जागहु राम कृष्णा दोउ मूरति दषरथ नन्दक दुलारे।
उदय होय उदयाचल आवत जोति पलंग पसारि।
जय जयकार करत सब आयो सुर नर मुनि तुअ दुआरे। जा....
क्रीट मुकुट मकराकृत कुण्डोल मुरली धनुष सम्हाथरि।
कब देखिहौं नयनन दोउ मुरति सन्तीन केर रखबारे। - जा....
पायो दरस परस पद पंकज पापी पुरुष निवारे।
रहे एक आस दास तुलसी के तीन लोक के न्या रे।
सीता पति राधा वर जोरी लेइय सुधि न हमारे। - जागहु....
(5)
जुनि करु राम वियोग हे जननी। जुनि..
सुतल छलहुँ सपन एक देखल,
देखल अवधक लोक हे जननी। - जुनि....
दुइ पुरुष पथ अबइत देखल,
एक श्याषमल एक गोर हे जननी। - जुनि....
कंचन गढ़ हम जरइत देखल,
लंका मे उठल किलोल हे जननी। - जुनि.....
स्‍ेातु वान्हय हम बन्हानइत देखल,
समुद्र मे उठल हिलोर हे जननी। - जुनि....
नचारीश्‍
(1)
रहबौ हम तोहरे नगरिया हो भंगिया,
रहबौ हम तोहरे नगरिया।
झारी मझारी मे कुटिया बनायब,
सब दिन बहारब डगरिया हौ भ्ंिगिया।
भांगो धथुर पीसि तोहरा पियायब,
भोर साँझ दुपहरिया, हो भंगिया....।
भांगक बाड़ी मे बसहा चराएव,
जीवन भरि करबौ चकरिया, हो भंगिया...
धथुर के फूल बेलपतिया चढ़एव,
चानन चढ़ायब केषरिया, हो भंगिया....
कतबो हटेला सँ हम नहि हटबह,
कहियो ने छोड़वह दुअरिया, हौ भंगिया...।
सब दिन नवीने नचारी सुनाकय
अप्पोन बितायब उमरिया, हौ भंगिया...
नेको अनेको जनम मे बसविहह,
अपन घरक पछुअरिया, हो भंगिया...
‘मधकर' सतत बाट हम तोरे ताकब
कहियो त फेरबऽ नजरिया, हौ भंगिया...।
(2)
आइ मयना के अंगना सोहाग बहिना।
जेना जूटल छै शोभा के खान बहिना।
गौरी ओ शंकर युगल रुप मोहन।
कए के सकै अछि बखान बहिना।
घरश्घ)र नगर ओ डगर पर विराजय।
तानल वसन्तब वितान जहिना।
छवि के छटा पर कपिक घन घटा अछि।
तै पर स्वअर लय के जुटान बहिना।
मोदो प्रमोदो प्रमोदो पाबि उमड़ल।
उदधि देखि पूनम के चान जहिना।
षिवराति षिवमय करय विष्वा भरि कैं।
‘मधुकर' सब फागुन के मास एहिना।
(3)
गौरी तोर अंगना बड़ अजगुत देखल तोर अंगना।
एक दिस बाघ सिंह करै हुलना
दोसर बड़द छैन सेहो बउना।
पैंच उधार लय गेलहुँ अंगना
सम्पात्ति के मध्यु देखल भाँग घोटना।
खेती ने पथारी सिव के गुजर कोना
मंगनी के आस छनि वरिसो दिना।
कातिक गणपति दुइ जन बालक
एक चढ़ै मोर एक मूस लदना।
भनहि विद्‌यापति सुनु उदना
दारिद्र हरण करु घैल शरणा। गौरा...
(4)
नारद बहुत बुझा हम कहलहुँ
गौरी लय एहन वर अनलहुँ यो।
हमरो गौरी छथि बारह बरख केर
बुढ़वा वर लय अयलहुँ यो।
नारद बड़ अजगुत अहाँ कयलहुँ।
गौरी लय एहन बर लयलहुँ यो।
तीनि भुवन बर कतहुँ न भेटल
तँ घर घूरि फिरि अबितहुँ यो।
बेटि गौरी छथि अल्पँ वयस केर
कनिको नहि बिचारलहुँ यो।
भनहि विद्‌यापति सुनिय मनाइनि
त्रिभुवन पति लय अयलहुँ यो।
(5)
जोगि एक ठाढ़ अंगनमा मे।
भिखियो ने लिअय बाटो नहि छोड़य गौरी कोना जयती अंगनमा मे।
देह अछि सह सह विषधर शतश्षोत भूतश्प्रे त छनि संगवा मे।
बरहा चढल षिव डमरु बजाबथि जटा बीच गंग तरंगना मे
जोगि एक ठाढ़ अंगनमा मे।
सामाक गीतश्‍
(1)
डाला लय बहार भेली बहिनो से फल्लाँच बहिनो
फल्लाँव भैया लेल डाला छीनि, सुनु राम सजनी....
समुआ बैसल तोहें बाबा बड़ैता
तोर बेटा लेल डाला छीनिश्‍ सुनु राम सजनी...
कथी केर आहे बेटी डालवा तोहर छौ
कथी बान्हेल चारु कोनश्‍ सुनु राम सजनी...
काँचहि जे बाँस केर डलवा यौ बाबा
बेलीश्चनमेली चारु कोनश्‍ सुनु राम सजनी ...
जौं तोरा आहे बहिनो डलवा जे दय देब
हमरा के की देब दानश्‍ सुनु राम सजनी....
चढबाक घोड़ा देव पढ़वाक पोथी देब
छोटकी ननदिया देब दानश्‍ सुनु...
(2)
चानन बिरिछ तर भेलि बहिनो
से फल्लाँे बहिनोश्‍
ताकथि बहिनो भाइ केर बटिया
एहि बाटे औता भैया, से फल्लाँम भैया ..
दखि लेबनि भरि अँखिया
पैर पकड़ि जनु कानू हे बहिनो, से फल्लाँच वहिनो
फाटत मोर छतिया।
(3)
हमर भैया कोना आबै
हाथी चढ़ल भैया हँसैत आवै
पान खय मुह रंगैत आबै
रुमाल लय मुह पोछेत आबै।
दरपन लय मुह देखैत आबै
चुगिला कोना के आवै
गदहा चढ़ल हिहिआइत आबै
कोइला सँ मुह रंगैत आबै
गुदरी सँ मुह पोछैत आबै।
(4)
गे माइ कौने भइया जयता अटनाश्‍ पटना
कोने भैया जयता मुंगेर।
कोने भइया जेता दिल्ली। कलकत्ता
कौने भइया जयता रंगून।
कौने भइया लौता आलरिश्झा‍लरि
कौने भइया लौता पटोर
कौने भइया लौता झिलमिल केचुआ।
कौन भइया लौत कामी सिन्नुचर
कौने बहिना पहिरथि आलरिश्‍ झालरि
कौने बहिनी पहिरु पटोर।
कौने बहिना पहिरथि झिलमिल केचुआ
कौने भौजी कामि सिन्नुलर।
युगेश्यु गे लीबथु इहो सब भैया, भौजी के बाहु अहिवात।
(5)
नदिया के तीरे तीरे फल्लाँच भैया खेलथि सिकार।
कहि पढ़ोलनि भाइ फल्लाँब बहिनो के समाद
भैया आओताह पाहुन हे।
कोठी नहि मोरा आरब चाउर बसनो नहि बीड़ा पान हे।
कौन विधि राखब माइ हे, फल्लाँम भाइक मान हे।
हाट बजार सँ चाउर मंगायब, तमोली सँ बीड़ा पान हे।
पटना शहर से धोतिया मंगायब, राखब भैया के मान हे।
(6)
गाम के पछिम ठुठि पाकड़ि रे ना
ना रे ताहि पर बाबा बसेरा लेल ना।
खेलितेश्धु.पैते गेली फल्लाँब बहिनी ना।
एक कोस गेली बहिनी दू कोस ना।
तेसर कोस बहिनी हेराय गेलौ ना।
तकैत तकैत गेलथिन फल्लाँ् भौया ना।
एक वन तकलनि भैया दुइ वन ना।
कतहुँ ना भेटय बहिनिया मोर ना।
देहरि बैसल भैली खुष भेली ना।
ना रे भेल ननदी हेराय गेली ना।
(7)
गाम के अधिकारी भैया हे
भैया हाथ दस पोखरी खुना दिय।
चम्पा) फूल लगा दिय हे।
फुलवा लोढ़ैत बहिनी आयल हे।
घमि गेल सिर के सिन्नु।र नयन भरु काजर हे।
छता लेने आवथि भैया से फल्लाँ। भैया हे।
बैसह बहिनी एहि छाह आषीष देहु हे।
युगेश्यु गे जीवथु फल्लाँ् भैया तोरो अहिबात बढ़ू हे।
राग संबंधी
ललित राग मेश्‍
मेघ समय पर जलदान करे।
पृथ्वीय धनश्धावन्यल सँ भरल रहे।
पिसुन पाबि जनु नृपतिक काने।
गुन बुझि भूप करथु सनमाने।
चिरै जिबथु हिन्दुवपति देओ।
गुन कीरथि गाबहि सब केओ।

राजविजय राग मेश्‍
जय जय परिजात तरुराज।
पाओल पुरुब पुन दरसन आज।
सरगक भूखन गुनक निवास।
सुरहुक तोहें परिपूरह आस।
सेवक सब तुअ दानव देबा।
मानव जानव की तुअ सेवा।
सुरमति निअ कर करथि किआरी।
सची देथि सुरसरि जल ढ़ारी।
सुमति उमापति भन परमाने।
माहेसरि देइ हिन्दुहपति जाने।

आसावरी राग मेश्‍
जायब हरिक समाजे। पाओब नयन सुख आजे।
कि आरेश्ध्रु वमद।
जोगहुँ न जानिअ जन्हीर। दिठीभरि देखब तन्हीँ।
ब्रह्‌म सिव सेव जाही। काहि भजब तेजि ताही।
मनहि भगति लेब माँगी। समय परमपद लागी।
हिन्दुिमति जिउ जाने। महेसरि देइ बिरमाने।
सुमति उमापति भाने। पुनमति भजु भगमाने।

वसन्ते राग मे
अनगिनत किंषुक चारु चम्पमक वकुल बकुहुल फुल्लि।याँ।
पुनु कतहुँ पाटलि पटलि नीकि नेवारि माधबि मल्लिियाँ।
कर जोरि रुकुमिनि कृष्णम संग वसन्ता रंग निहार हीं।
रितु रभस सिसिर समापि रसमय रमथि संग बिहार हीं।
अति मज्जु। बन्जुृल पुन्जि मिन्जिल चारु चूअ बिराजहीं।
निज मधुहिं मातलि पल्ल‍बच्छकवि लोहितच्छजवि छाजहीं।
पुनु केलि कलकल कतहु आकुल कोकिल कुल कूजहीं।
जनु तीनि जग जिति मदननृपमनि विजयराज सुराजहीं।
नव मधुर मधु रसु मुगुध मधुकर निकर निक रस भावहीं।
जनि मानिनि जन मान भन्ज न मदन गुरुगुन गावहीं।

बराडीराग मेश्‍
अब तरु अबनी तेजि अकास।
न थिक दिवाकर न थिक हुतास।
धोती धबल तिलक उपबीत।
ब्रह्‌म तेज अति अधिक उदीत।
बैनब दण्ड वेद कर सोभ।
आवथि नारद दरसन लोभ।
परम जुगुत तिनि जगतक हीत।
ब्रह्‌मासुत मोर सम्भु।क मीत
सुमति उमापति भंन परमान।
जगमाता देवि हिन्दुदपति जान।

पंचम राग मेश्‍
सखि हे रभस रस चलु फुलवारी।
तहँ मिलत मोहि मदनमुरारी।
किनक मुकुट महँ मनि भल भासा।
मेरु सिखर जनि दिनमनि बासा।
सुन्दार नयन बदन सानन्दाा।
उगल जुगल कुबलय लय चन्दाद।
बनमाला उर उपर उदारा।
अन्जलनगिरि जनि सुरसरि धारा।
पिअर बसन तन भूखन मनी।
जनि नव घन उगल दामिनि।
जीवन धन मन सरबस देबा।
से लय करब हरि चरनक सेवा।
सुमति उमापति मन परमाने।
जगमाता देइ हिन्दुदपति जाने।
नटराग मेश्‍
कि कहब माधब तनिक बिसेसे।
अपनहु तनु धनि पाब कलेसे।
अषनुक आनन आरसि हेरि।
चानक भरम कोप कतबेरी।
भरमहु निअ कर उर मर आनी।
परम तरस सरसीरुह जानी।
चिकुर निकर निअ नयन निहारी।
जलधर जाल जानि हिअ हारी।
अपन बचन पिकरब अनुमाने।
हरि हरि तेहु परितेजय पराने।
माधव अबहु करिअ समधाने।
सुपुरुष निठुर ने रहय निदाने।
सुमति उमापति भन परमाने।
माहेसरि देइ हिन्दुदपति जाने।

मालव राग मेश्‍
हरि सउँ प्रेम आस कय लाओल।
पाओल परिभब ठामे।
जलधर छाहरि तर हम सुतलहुँ
आतप भेल परिनामे।
सखिहे मन जनु करिय मलाने
अपन करम फल हम उपभोगव
तोहें किअ तेजह पराने। श्‍ ध्रुवम्‌
पुरुब पिरिति रिति हुनि जउँ विसरल
तइओ न हुनकर दोसे।
कतन जतन धरि जउँ परिपालिअ
साप न मानय पोसे।
कवहु नेह पुनु नहि परगासिअ
केवल फल अपमाने।
बेरि सहस दस अमिअ भिजाबिअ
कोमल न होअ परवाने। श्‍ ध्रुवम्‌
गुरु उमापति पहु देव दरसन
मान होएव अबसाने।
सकल नृपतिपति हिन्दुवपति जिउ
महरानि विरमाने। ध्रुवम्‌।

केदारराग मेश्‍
मानिनि मानह जउँ मोर दोसे।
साँति करह बरु न करह रोसे।
भौंह कमान बिलोकन बाने।
बेधह बिधुमुखि कय समधाने।
पीन प्योमधर गिरिबर साधी।
बहु मास धनि धरु मोहि बाँधी।
की परिनति भय परसनि होही।
भूखन चरनकमल देह मोही।
सुमति उमापति मन परमाने।
जगमाता देइ हिन्दुरपति जाने।

भल्लाा राग मेश्‍
माधब करह हमर समधाने।
देह मोहि पारिजात तरु आने।
एहिखन तोरित करिअ परयाने।
नहि तइँ हमर अबस अबसाने।
एहि परि हमर पुरत अभिमाने।
हयत हसी नहि होअ अपमाने।
सुमति उमापति भन परमाने।
पटमहिखी देह हिन्दुरपति जाने।

विभास राग मेश्‍
सहस पूर्णससि रहओ गगन बसि
निसिबासर देओ नन्दाु।
भरि बरिसओ विस बहओ दहओ दिस
मलय समीरन मनदा।
साजनि आब जिबन किअ काजे
पहु मोहि हिन करु अपजस जग भरु
सहय न पारिअ लाजे। ध्रुवम्‌
कोकिल अलिकुल कलरब आकुल
करओ दहओ दुहु काने।
सिसिर सुरभि जत देह दहओ तत
हनओ मदन पचबाने।
सुकवि उमापति हरि होए परसन
मान होएत समधाने।
सकल नृपति पति हिन्दुएपति जिउ
महेसरि देइ विरमाने। ध्रुवम्‌
............................

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।