भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Sunday, October 11, 2009

पेटार ४०

रुपैआक ढेरी
फुदकैत फुलिया किताब-कापीक बस्ताप माटिक रैक पर राखि माय केँ ताकै लगलीह। माय आंगन मे नहि रहै। पछुआर मे गोरहा पाथैत रहै। ओना गोरहा पाथैक समय नहि छल तेँ फुलियाक मन मे गोरहा पाथैक बात ऐबे नहि कयल छल। मुदा तकबो करैत आ षोरो पाड़ैत रहथि। आंगन सँ निकलि जखने फुलिया डेढ़िया लग आइलि कि गोरहा मचान लग स' मायक बाजब सुनलक। गोरहा मचान लग पहुँचते फुलिया देखलनि जे माय गोरहा पाथि रहली हेन। मन मे तामस उठै लगलनि जे एक त कातिक मास तहू मे सूर्यास्त क समय, इ कोन समय भेल। अनेरे ठंढ़ लगतनि। मन खराब हेतनि। मुदा किछु बाजलि नहि। अप्परन बात बाजलि- ‘‘माय, परसू मधुबनी जायब। लड़की(छात्रा) सबहक बीच ‘‘महिला सषक्तीजकरण'' बिपयक प्रतियोगिता छी। सैाँसे जिलाक छात्रा सभ रहत। हमहूँ जायब। तहि ले कम सँ कम पच्चीेस टा रुपैआक ओरियान कए दे।''
मधुबनीक नाम सुनि माय अपन सभ सुधि-बुद्धि बिसरि गेलीह। हाथ गोबर पर रहनि, आँखि बेटी बेटी आँखि पर आ मन अकास मे कटल धागाक गुड्डी जेँका उड़ै लगलनि। पँजरा मे बैसि फुलिया कहै लगलनि- ‘‘माय, हमरा जरुर इनाम भेटत।''
अकास स मायक मन धरती पर खसि सोचए लगलीह जे पच्चीयस रुपैआ कत' स' आनब? कहलखिन- ‘‘बुच्चीड, ताबे ककरो से पैंइच ल' लेह किएक त जुग-जमाना बदलि रहल अछि, बिनु पढ़ल-लिखल लोककेँ कोनो मोजर रहतै? तेँ कोनो धरानी रुपैआक ओरियान क' लेह। गाय बिआयत त' दूध बेचि क' द' देबैक।''
मायक बात सुनि फुलिया मुस्कुसराइत कहलकनि- ‘‘धुर बुढ़िया नहितन, तीनि रुपैये गोरहा बिकाइछै, दसे टा बेचि लेब तेहिमे त' तीस रुपैआ भ' जायत। तइ ले ककरो स' मुह छोहनि किएक करब। ई त' रुपैआक ढेरी छिअउ। जखैन जत्त्ो रुपैआक काज हेतउ, तखैन तते बेचि लिहें। तोरा कि कोनो हेलीकेप्टकर कीनैक छओ?''

ठेलावला
बारह बजेक घंटी, टाबरक घड़ी मे, बजितहि भोलाक निन्नआ टूटि गेलनि। ओछाइन पर स' उठि सड़क पर आबि हियासय लगल त देखलक जे डंडी-तराजू माथ स' कनिये पछिम झुकल अछि। मेघनक दुआरे सतभैया झँपायल। जिमहर साफ मेघ रहए ओम्हुतरका तरेगण हँसैत मुदा जेमहर मेघोन रहए ओम्हुारका मलिन। गाड़ी-सबारी स' सड़क सुुनसान। मुदा बिजलीक इजोत पसरल। गस्तीरक सिपाही टहलैत रहए। सड़क पर सँ भोला आबि ओछाइन पर पड़ि रहल। मुदा मन उचला-चाल करैत। सिनेमाक रील जेँका पैछला जिनगी मन मे नचैत रहए। जहिना चुल्हिच पर चढ़ल बरतनक पानि तर स उपर अबैत तहिना भोलोक मनक खुषी हृदय सँ निकलि चिड़ै जेँका अकासमे उड़ैत अछि। किएक नहि खुषी अओतैक? हरायल वस्तुह जे भेटि गेलैक अछि। मन गेलनि परसुका पत्र पर। जे गाम सँ दुनू बेटा पठौने रहनि। असंभव काज बुझि विष्वािसे नहि होइत रहनि। पत्र त नहि पढ़ल होयत रहनि मुदा पढ़बैकाल जे पाँती सभ सुनने रहथि, ओहिना आँखिक आगू नचैत रहनि। पत्र उघारि आँखि गड़ा देखै लगलथि। ‘‘बाबू, पाँच तारीख केँ दुनू भाय ज्वााइन करै जायब। इच्छा। अछि जे घर स विदा हेबा काल, अहाँ केँ गोड़ लागि घर सँ निकली। तेँ पाँच तारीख क' दस बजे सँ पहिनहि अपने गाम पहुँच जाय।'' पत्रक बात मनमे अबितहि भोला गाम आ षहरक बीचक सीमा पर लसकि गेलाह। मनमे ऐलनि समाज सँ निकलि, छाती पर ठेला घीचि, दू टा षिक्षक समाजकेँ देलिऐक कि ओहि समाजक आरो ऋृण बाकी छैक? जँ नहि तँ किएक ने छाती लगाओताह। जहि सँ मनमे खुषी उपकलनि जे जहिना गाम सँ धोती गोलगोला आ दू टाका लए क' निकलल छलहुँ तहिना देहक कपड़ा, सनेस, चाह-पानक खर्च छोड़ि किछु नहि एहिठाम लए जायब। चिड़ै टाँहि देलकै फेरि ओछाइन पर स उठि निकललाह त देखलखिन जे बाँस भरि ऊपर भुरुकबा आवि गेल अछि। चोट्टे घुरि क' आबि भोला संगी-साथीकेँ उठा अपन सभ किछु बाँटि देलखिन अपना ले सिर्फ टिकटक खर्च, सनेस आ पाँकेट खर्च मिला सय रुपैया राखि, कपड़ा पहीरि, धर्मषाला केँ गोड़ लागि हँसैत निकलि गेलाह।
जखन आठे बर्खक भोला रहथि तखनहि माय मरि गेलखिन॥ तीनिये मासक पछाति रघुनी(पिता) चुमाओन क' लेलखिन। ओना पहिलुको पत्नीि सँ चारि सन्ताबन भेलि रहनि। मुदा सिर्फ भोले टा जीवित रहल। सत्‌माय केँ परिवार मे ऐने भोलाकेँ सुखे भेलनि। ओना गामक जनिजातियो आ पुरुखो केँ होयत जे सत्माँय भोला केँ अलबा-दोलबा क' घर स भगा देतैक नहि त परिवार मे भिनौज जरुर कराइये देतीह। मुदा सभहक अनुमान गलत भेलनि। भोला घर सँ सोलहन्नीम फ्री भ' गेलाह। फ्री सिर्फ काजे टा मे भेला, मान-दान बढ़िये गेलनि। दुनू साँझ भानस होइतहि माय फुटा क' भोला ले सीक पर थारी साँठि क' राखि दैत छलीह। भलेही भोला दिनुका खेनाइ साँझ मे आ रौतुका खेनाइ भोरमे किएक ने खाथि।
परोपट्टा मे जालिम सिंह आ उत्तम चन्दौक नाच जोर पकड़ने। सभ गाम मे तँ नाच पार्टी नहि मुदा एक गाम मे नाच भेने चारि कोसक लोक देखै अबैत।
विषौलक(भोलाक गामक) नाच पार्टी सबसँ सुन्दमर अछि। जेहने नगेड़ा बजौनिहार तेहने बिपटा। जाहि स पार्टीक प्रतिष्ठाभ दिनानुदिन बढ़ितहि जायत। घर सँ फ्री भेने भोला नाचक परमानेंट देखिनिहार भ' गेलाह। नाचो भरि रौतुका, नहि कि एक घंटा, दू घंटा, तीनि घंटाक। जेहने देखिनिहार जिद्‌दी तेहने नचिनिहारो। गामक बूढ़-बूढ़ानुस सँ ल' क' छौँड़ा-मारड़ि घरि भरि मन मनोरंजन करैत। मनोरंजनो सस्ताे। ने नाच पार्टी केँ रुपैआ दिअए पड़ैत आ ने खाइ-पीबैक कोनो झंझट। ओना गामक बारह-चौदह आना लोकक हालतो रद्दिये। मुदा जे किसान परिवार छल ओ अपना ऐठाम मासमे एक-दू दिन जरुर नाच करबैत छलाह। ओ नटुआकेँ खाइयो ले दैत छलथि आ कोनो-कोनो समानो कीनि केँ दैत छलथिन। भोलो नाच पार्टीक अंग बनि गेल। डिग्री सेदैक जिम्माक भेटि गेलैक। डिग्रीसेदैक जिम्माा भेटितहि काजो बढ़ि गेलैक। घूरक लेल जारनोक ओरियान करै पड़ैत छलै। अपना काजमे भोला मस्ते रहै लगल। मुदा एतबे स ओकर मन ्यान्तक नहि भेलैक। काजक सृजन ओ अपनोहु करै लगल। स्टे जक आगू मे जे छोटका धिया-पूता बैसि पी-पाह करैत, ओकरो सभपर निगरानी करै लगल। आब ओ चुपचाप एकठाम नहि बैसैत। घूमि-घूमि क' महफिलोक निगरानी करै लगल। आरो काज बढ़ैलक। नटुआ सभकेँ बीड़ी सेहो लगबै लगल। बीड़ी सुनगबैत-सुनगबैत अपनो बीड़ी पीबि सीखि लेलक। किछुऐ दिनक पछाति भोला बीड़ीक नमहर पियाक भ' गेल। किएक त एक्केी-दू दम जँ पीबए, तइयो भरि रातिमे तीसि-पेंइतीस दम भ' जायत छलैक। जहि स' भरि राति मूड बनल रहैत छलैक।
बीड़ीक कसगर चहटि भोला केँ लागि गेलै। रातिमे ते नटुऐ सभ सँ काज चलि जायत छलैक मुदा दिनमे जखन अमलक तलक जोर करैत त' मन छटपटाय लगैत छलैक। मूडे भंगठि जायत छलैक। मूड बनबैक दुआरे भोला बापक राखल बीड़ी चोरा-चोरा पीबै लगल। जहिक चलैत सभ दिन किछु नहि किछु बापक हाथे मारि खायत। एक दिन एक्के-टा बीड़ी रघुनी केँ रहनि। भोला चोरा क' पीबि लेलक। कोदारि पाड़ि रघुनी गाम पर अयलाह त बीड़ी पीबैक मन भेलनि। खोलिया पर स अनै गेलाह त बीड़ी नहि देखलनि। चोट पर भोला पकड़ा गेलै। सभ तामस रधुनी भोला पर उताड़ि देलखिन। मारि खाय भोला कनैत उत्तर मुहेक रास्तास पकड़लक। कनिये आगू बढ़ल कि करिया काकाक नजरि पड़लनि। भोलक कानब सुनि ओ बुझि गेलखिन जे भीतरिया मारि लागल छै। चुचुकारि केँ पुछलखिन- ‘‘की भेलौ रौ भोला?''
करिया काकाक बात सुनि भोला आरो हिचुकि-हिचुकि कनै लगल। हिचुकैत भोला कनिये जोर सँ काका केँ कहलकनि। जे कानबक अवाज मे हरा गेलैक। काका भोलाक बात नहि बुझलखिन। मुदा बिगड़लखिन नहि, दहिना डेन पकड़ि रघुनी केँ कहै बढ़लथि। काका केँ देखि रघुनियोक मन पघिल गेलैक। काका कहलखिन- ‘‘रघुनी, भोला बच्चाक अछि किऐक त विआह नइ भेलै अए। तेँ नीक हेतह जे विआह करा दहक। अपन भार उतड़ि जेतह। परिवारक बोझ पड़तै अपने सुधरत। अखन मारने दोड्ढी हेबह। समाज अबलट्ट जोड़तह जे बाप कुभेला करैत छैक। जनिजातिक मुँह रोकि सकबहक, ओ कहतह जे ‘‘माय मुइने बाप पित्ती।''
करिया काकाक विचार रघुनीक करेज केँ छेदि देलक। आँखि मे नोर आबि गेलैक। अखन धरि जे आँखि रघुनीक करिया काका पर छलैक ओ भोलाक गाल पड़क सुखल नोरक टघार पर पहुँच अटकि गेलैक। मारिक चोट भोलक देह मे निजाइये गेलैक जे संग-संग विआहक बात सुनि मनमे खुषियो उपकलै। बुद्धिक हिसाब सँ भलेही भोला बुड़िवक अछि मुदा नाच मे मेल-फीमेल गीत त' गबितहि अछि।
पिताक हैसियत स रघुनी करिया काकाकेँ कहलखिन- ‘‘काका, हम ते ओते छह-पाँच नहि बुझैत छियै, काल्हिखये चलह कतौ लड़की ठेमा क' विआह कइये देवइ।'' ‘‘बड़बढ़िया'' कहि करियाकाका रास्ता घेलनि।
भोलाक वियाह भेला आठे दिन भेल छलैक कि पाँच गोटेक संग ससुर आबि रघुनी केँ कहलकनि- ‘‘वियाह से पहिने हम सभ नहि बुझलियैक, परसू पता लागल जे लड़का नाच पार्टी मे रहै अए। नटुआ-फटुआ लड़काक संग अपन बेटीकेँ हम नहि जाय देब। तेँ, ई संबंध नहि रहत। अपना सभ मे ते खुजले अछि। अहूँ अपन बेटाकेँ वियाहि लिअ आ हमहूँ अपना बेटीकेँ दोसर वियाह कए देब।'' कहि पाँचो गोटे चलि गेलाह।
ससुरक बात सुनि भोलाक बुद्धिये हरा गेलै। जहिना जोरगर बिरड़ो उठला पर सभ किछु अन्ह रा जायत छैक तहिना भोलोक मन अन्हररा गेल। दुनियाँ अन्हाीर लगै लगलैक। ओना तीनि मास पहिनहि नाच पार्टी टुटि गेल छलैक। एकटा नटुआ एकटा लड़की ल' क' पड़ा गेल छलैक। जहि स गाम दू फाँक भ' गेलैक। दू ग्रुप मे गाम बँटा गेलैक। सैाँसे गाम मे सनासनी चलै लगलैक। ताहि पर सँ भोला आरो दू फाँक भ' गेल।
पाण्डुे रोगी जेँका भोलाक देहक खून तरे-तर सुखै लगलैक। मुदा की रकैत वेचारा? किछु फुड़बे नहि करैत छलैक। ग्ला नि सँ मन कसाइन होअए लगलैक। मने-मन अपनाकेँ धिक्काुरै लगल। कोन सुगराहा भगवान हमरा जन्मा देलनि जे बहुओ छोड़ि देलक। विचारलक जे एहि गाम सँ कतौ चलिये जायब नीक होयत।
घर स भोला पड़ा गेल। संगी-साथीक मुँह सँ दिल्ली‍, कलकत्ता, बम्व‍ईक विड्ढय मे सुननहि रहए। जाहि सँ गाड़ियोक भाँज बुझले रहए। ने जेबी मे पाइ रहए, ने बटखरचा। सिर्फ दुइये टा टाका संग मे रहए। अबधारि कए कलकत्ताक गाड़ी पकड़ि लेलक।
हबड़ा स्टेेषन गाड़ी पहुँचते भोला उतड़ि विदा भेल। टिकट नहि रहनहुँ एक्कोे मिसिया डर मन मे नहि रहैक। निरमली-सकरीक बीच कहियो टिकट नहि कटबैत छल। एक बेरि पनरह अगस्तह केँ सिमरिया धरि बिना टिकटे घुरि आयल रहए। प्लेछटफार्मक गेट पर दू टा सिपाहीक संग टी. टी. टिकट ओसुलैत। भोलाककेँ देखि टी. टीक मन मे भेलइ जे दरभंगिया छी भीख मंगै आयल अछि। टिकट नहि मंगलकै। सिपाहियो केँ बुझि पड़लै जे जेबी मे किछु छैक नहि। टिकटेवला यात्री जेँका भोलो गेट पार भ' गेल।
सड़क पर आबि आँखि उठा क' तकलक त नमहर-नमहर कोठा चौड़गर सड़क, हजारो छोटका-बड़का गाड़ी आ लोकक भीड़ि भोला देखलक। मनमे भेलै जे भरिसक आँखि मे ने किछु भ' गेल अछि। जहिना आँखि गड़बड़ भेने एक्केै चान सात बुझि पड़ैत, तहिना। दुनू हाथे दुनू आखि मीड़ि फेरि देखलक त ओहिना। भीड़ि देखि मन मे एलै जे जखन एत्त्ो लोकक गुजर-बसर चलैत अछि त हमर किएक ने चलत। आगू बढ़ि लोकक बोली अकानै लगल। ते ककरो बाजब वुझबे नहि करैत। अखन धरि बुझैत जे जहिना गाय-महीसि सभठाम एक्केो रंग बजैत अछि तहिना ने मनुक्खोज बजैत होएत। मुदा से नहि देखि भेलैक जे भरिसक हम मनुक्खजक जोरि मे हरा ने ते गेलहुँ हेँ फेरि मन मे एलै जे लोक त संगीक बीच हरायत अछि असकर मे कोना हरायत। विचित्र स्थितति मे पड़ि गेल। ने आगू बढ़ैक साहस होयत आ ने ककरो से किछु पूछैक। हिया हारि उत्तर मुहे विदा भेल। सड़कक किनछरिये सभ मे खाय-पीबैक छोट-छोट दोकान पतिआनी लागल देखलक। भुख लगले रहै मुदा अपन पाइ आ बोली सुनि हिम्महते ने होयत। जेबी टोबलक ते दू टकही रहबे करै। मन पड़लैक मधुबनीक स्टे-षन कातक होटल। जहि मे पाँच रुपये प्लेकट दइत। इ त सहजहि कलकत्ता छी। एहिठाम त आरो बेसी महग हेबे करत। एकटा दोकानक आगू मे ठाढ़ भ' गर अँटबै लगल जे नहि भात-रोटी त एक गिलास सतुऐ पीबि लेब। बगए देखि दोकानदारे कहलक- ‘‘आबह, आबह बौआ। ठाढ़ किएक छह?''
अपन बोली सुनि भोला घुसुकि क' दोकान लग पहुँच पुछलक- ‘‘दादा, कोना खुआबै छहक?''
तीनि मास पहिने धरि आठे आना मे खुआबै छेलिऐक। अखन बारह आना मे खुआबै छिअए।''
भोलाक मनमे संतोड्ढ भेल। पाइयेवला गहिकी जेॅका बाजल- ‘‘कुड़ुड़ करै ले पानि लाबह।''
भरि पेट खा आगू बढ़ल। ओना त रंग-विरंगक बस्तुज देखैत मुदा भोलाक नजरि सिर्फ दुइये ठाम अँटकैत। देवाल सभ मे साटल सिनेमाक पोस्टरर पर आ सड़क पर चलैत ठेला पर। जाहि पोस्ट।र मे डान्सल करैत देखए ओहि ठाम अटकि सोचए जे ई नर्तकी मौगी छी कि पुरुख। गाम-घर मे ते पुरुखे मौगी बनि डान्सि करैत अछि। फेरि मन पड़लै संगीक मुहे सुनल ओ बात जे कहने रहए सत्ये हरिष्च न्दस फिल्मि मे मर्दे मौगिओक रौल केने रहए। गुनधुन करैत बढ़ल ते अपने जेँका छौॅड़ा केॅ ठेला ठेलने जायत देखि सोचै लगल जे ई काज त हमरो बुते भ' सकैत अछि। गाड़ीक ड्राइवरी त करै नहि अबै अछि। बिना सीखिने रिक्षोह कोना चलाओल हएत? ततमत करैत आगू बढ़ल। सड़कक बगले मे एकटा ठेलावला केँ चाह पीवैत देखलक। ओहिठाम जा क' ठाढ़ भ' गेल। चाह पीबि ठेलावला पुछलक- ‘‘कोन गाँ रहै छह?''
‘‘विषौल।''
‘‘हमहूँ ते सुखेते रहै छी। चलह हमरा संगे।''
गप-सप करैत दुनू गोटे धर्मतल्ला।क पुरना धर्मषाला लग पहुँचल ठेला केँ सड़के पर छोड़ि दीनमा भोला केँ धर्मषालाक भीतर ल' जा क' कहलक- ‘‘समांग असकरे कतौ जैहह नहि। हरा जेबह। हम एक ट्रीप मारने अबै छी।''
टंकी पर हाथ-पाएर धोए भोला दीनमा सँ बीड़ी मांगि पीबि, पीलर लगा ओँगठि क' बैसि गेल। आखि उठा क' तकलत त झड़ल-झुरल देवालक सिमटी, तै पर कतौ-कतौ बर-पीपरक गाछ जनमल देखलक। पैखाना कोठरीक आ पानिक टंकीक आगू मे ठेहुन भरि किचार सेहो देखलक मन पड़लैक गाम। नाच-पर्टी टूटि गेल, घरवाली छोड़ि देलक। दू पाटी गाम भ' गेल। सोचितहि-सोचितहि निन्न आबि गेलैक। बैसिले-बैसल सुति रहल।
गोँसाइ डूबितहि दोसर ठेलावला(बुचाइ) आबि भोलाकेँ जगबैत पुछलक- ‘‘कोन गाम रहै छह?''
आषा भरल स्वतर मे भोला बाजल- ‘‘बिषौल।''
विषौलक नाओ सुनितहि मुस्की दइत बुचाइ पुछलक- ‘‘रुपनकेँ चीन्है छहक?''
‘‘उ ते हमरा कक्केक हैत।''
अपन भायक ससुर बुझि भोला सँ सार-बहिनोइक संबंध बनवैत कहलक- ‘‘चलह, पहिने चाह पीबी। तखन निचेन स' गप-सप करब।''
कहि टंकी पर जा बुचन देह-हाथ धोय, कपड़ा बदलि भोला केँ संग केने दोकन पर गेल। आखिक इषारा स दोकानदार केँ दू-दू टा पनितुआ, दू-दू टा समौसा दइ ले कहलक। दुनू गोटे खा चाह पीबि पानक दोकान पर पहुँच बुचइ पान मंगलक। पान सुनि भोेला बाजल- ‘‘पान छोड़ि दिऔ। बीड़िये कीनि लिअ।''
बीड़ी पीबैत दुनू गोटे धर्मषालाक भीतर पहुँचल। एका-एकी ठेलावला सभ अबै लगलैक। बिषौलक नाओ सुनितहि अपन-अपन संबंध सभ फरिअबै लगल। संबंध स्थाापित होइतहि चाहक आग्रह करैत। चाह पीबैत-पीबैत भोलाक पेट अगिया गेलै। अखन धरिक जिनगी ऐहन स्ने ह पहिल दिन भेटलै। ठेलावला परिवारक अंग भोला बनि गेल। भोलाक सब व्य वस्था ठेलावला सभ कए देलक। दोसर दिन स ठेला ठेलय लगल।
षानि दिन केँ सभ ठेलावला रौतुका षो(नाइट षो) सिनेमा देखै जायत। ओहि षो मे एक क्लानषक कन्ो्ा सन भेटैत अछि। भोलो सब षनि सिनेमा देखै लगल।
चौदह मास बीतलाक बाद भोला गाम आयल। नव चेहरा नव बिचार भोलाक। घरक सभ ले कपड़ा अनने अछि। धिया-पूता केँ दू-दू टा चौकलेट देलक। धिया-पूता केँ चौकलेट देखि एका-एकी जनिजातियो सभ अबै लगलीह। झबरी दादी आबि भोला केँ दखि बजै लगलीह- ‘‘कहू ते एहि स सुन्नेर पुरुख केहेन होइछै जे सौंथ जरौनिया छोड़ि देलकै।''
दादीक बात भोला केँ बेधि देलक। आखि नोरा लगलैक। रघुनीक मन सेहो कानै लगलै। दोसरे दिन रघुनी लड़की तकै घर स निकलल। ओना लड़कीक त कमी नहि, मुदा गाम-घर देखि क' कुटुमैती करैक विचार रघुनिक मन मे रहै। कड़कीक कमी त ओहि समाज मे अधिक अछि जहि मे भ्रुण-हत्यानक रोग धेने छैक। समयो बदलल अछि। गिरहस्त परिवार स अधिक पसन्दज लोक नोकरिया परिवार केँ करैत अछि। बगलेक गाम मे भोलाक वियाह भ' गेल।
वियाहक तीनिये दिन पछाति कनियाँक बिदागरियो भ' गेलैक आ पाँचमे दिन अपनो कलकत्ता चलि देलक।
सालक एगारह मास भोला कलकत्ता आ एक मास गाम मे गुजारै लगल। गाम अबैत त अपनो घरक काज सम्हाकरि अनको सम्हा रि दइत।
तेसर साल चढ़ितहि भेला केँ जैाँआ बेटा भेलै। नवम्‌ मास चढ़ितहि ओ गाम आबि गेल छल। मन मे अषो बनले रहेक जे पाइ-कौड़ीक दिक्कमत त नहिये हैत। सभ ठेलावला अपन संस्था बना पाइ-कौड़ीक प्रबन्धड अपने केने अछि। मुदा पहिल बेरि छी, कनियाँक देखभाल त कठिन अछिये। सरकारीक कोनो बेवस्थोक नहिये छैक। मुदा समाजो त समुद्र थिक। बिनु कहनहुँ सेवा भेटैत अछि। जाहि सँ भोलो केँ कोनो बेसी परेषानी नहिये भेलैक।
समय आगू बढ़ल। पाँच बर्ख पुरितहि भोला दुनू बेटा केँ स्कूेल मे नाओ लिखौलक। षहरक वातावरण मे रहने भोलोक विचार धिया-पूताकेँ पढ़बै दिषि झुकि गेल रहैक। मन मे अरोपि लेलक जे भलेही खटनी दोबर किऐक ने बढ़ि जाय मुदा दुनू बेटाकेँ जरुर पढ़ाएब। अपन आमदनी देखि पत्नीख केँ अॉपरेषन करा देलक। जहि स परिवारो समटले रहलैक।
पढ़ै मे जेहने चन्सनगर रतन तेहने लाल। क्लादस मे रतन फस्टस करैत आ लाल सेकेण्ड । सातवाँ क्लानस धरि दुनू भाय फस्टे सेकेण्डर स्कूाल मे करैत रहल। मुदा हाई स्कूसल मे दुनू भाय आर्ट लए पढ़ै लगल जाहि सँ क्लादस मे कोनो पोजीषन त नहिये होइत मुदा नीक नम्ब र स पास करै लगल।
मैट्रिकक परीक्षा द' दुनू भाय कलकत्ता गेल। अखन धरि आने परदेषी जेँका अपनो पिता केँ बुझैत छल। तेँ मन मे रंग-विरंगक इच्छा। संयोगने कलकत्ता पहुँचल रहए। मुदा अपन पिताक मेहनत, छातीक बले ठेला घीचैत देखि पराते भने गाम घुमैक विचार दुनू भाय कए लेलक। पितेक जोर पर तीनि दिन अँटकल। मुदा किछु कीनैक विचार छोड़ि देलक। मेहनतक कमाइ देखि अपन इच्छा कें मने मे दुनू भाय दाबि लेलक। मुदा तइयो भोला दुनू बेटा केँ फुलपेंट, षर्ट, धड़ी, जुत्ता कीनि क' देलखिन।
तीनि मासक उपरान्तअ मैट्रिकक रिजल्ट निकललै। दुनू भाय-रतनो आ लालो- प्रथम श्रेणी सँ पास केलक। फस्टत डिवीजन भेलो पर आगू पढ़ैक विचार मन मे नहि अनलक। उपार्जनक लेल सोचै लगल। नोकरीक भाँज-भुँज लगबै लगल। नोकरियोक तँ ओइह हाल। गामक-गाम पढ़ल बिनु पढ़ल नौजवानक फौज तैयार अछि। एक काजक लेल हजार हाथ तैयार अछि। जाहि स समाजक मूल पूँजी(मानवीय) आगि मे जरैत सम्पथत्ति जेँका, नष्टा भ' रहल अछि।
समय मोड़ लेलक। पढ़ल-लिखल नौजवानक लेल नोकरीक छोट-छीन दरवज्जाप खुजल। गाम स्कू ल मे षिक्षा-मित्रक बहाली होअए लगलैक। जाहि सँ नव ज्योजतिक संचार गामोक पढ़ल लिखल नौजवान मे भेलैक। ओना समयक हिसाब सँ शिक्षा मित्रक मानदेय मात्र खोराकी भरि अछि मुदा बेरोजगारीक हिसाब सँ त नीक अछिये। बगलेक गामक स्कूतल मे रतनो आ लालोक बहाली भए गेलैक। पाँच तारीक केँ दुनू भाय ज्वागइन करत।
आगू नहि पढ़ैक दुख जते दुनू भाइक मन मे नहि रहैक ताहि स बेसी खुषी नाकरी सँ भेलैक। कोपर बुद्धि मे कलुड्ढताक मिसियो भरि आगमन नहि भेलैक अछि। दुनू भाय वैसि क' अपन परिवारक संबंध मे विचारै लगल। रतन लाल कें कहलक- ‘‘बौआ, कोन धरानी बावू अपना दुनू भाय केँ पढ़ौलनि से त देखिले अछि। अपनो सभ एक सीमा धरि पहुँच गेल छी। तेँ, अपनो सभक की दायित्वि बनैत अछि से त सोचै पड़तह?''
रतनक बात सुनि लाल बाजल- ‘‘भैया, अपना सभ ओहि धरतीक सन्ताीन छी जाहि धरती पर श्रवण कुमार सन बेटा भ' चुकल छथि। पाँच तारीक सँ पहिनहि बावू केँ कलकता सँ बजा लहुन। हमसभ ठेलावलाक बेटा छी, एहि मे कोनो लाज नहि अछि। मुदा लाजक बात तहन हैत जहन ओ ठेला घीचिताह आ अपना सभ कुरसी पर बैसि दोसर केँ उपदेष देबइ।''
मूड़ी डोला स्वी कार करैत रतना बाजल- ‘‘आइये बाबू केँ जानकारी दए दैत छिअनि जे जानकारी पबितहि गाड़ी पकड़ि घर चलि आउ। पाँच तारीख केँ दुनू भाय ज्वााइन करै जायब। दुनू भायक विचार अछि जे अहाँ केँ गोड़ लागि घर स डेग उठायब।''
दुनू भाइक विचार सुनितहि मायक मन सुख-दुखक सीमा पर लसकि गेलनि। जरल घरारी पर चमकैत कोठा देखै लगलीह। आखि मे नोर छलकि गेलनि। मुदा ओ दुखक नहि सुखक छलनि।

श्जकगदीश प्रसाद मण्डहल




ठेलाबला
बारह बजेक घंटी, टाबरक घड़ी, मे बजितहि भोलाक निन्नक टूटि गेलै। ओछाइन पर स' उठि सड़क पर आबि हियासय लागल त' देखलक जे डंडी-तराजू माथ स' कनिये पछिम झुकल अछि। मेघौन दुआरे सतभैया झँपायल। जिमहर साफ मेघ रहए ओम्हुमरका तरेगण हँसैत मुदा जेमहर मेघौन रहै ओम्हुयरका मलिन। गाड़ी-सबारी स' सड़क सुुनसान। मुदा बिजलीक इजोत पसरल। गस्ती क सिपाही टहलैत रहै। सड़क पर सँ भोला आबि ओछाइन पर पड़ि रहल। मुदा मन उचला-चाल करैत। सिनेमाक रील जेँका पैछला जिनगी मन मे नचैत रहै। जहिना चुल्हिन पर चढ़ल बरतनक पानि तर स उपर अबैत तहिना भोलोक मनक खुषी हृदय सँ निकलि चिड़ै जेँका अकासमे उड़ैत रहै। किएक नहि खुषी अओतैक? हरायल वस्तुच जे भेटि गेलैक अछि। उड़ैत मन गेल परसुका चिट्ठी पर। जे गाम सँ दुनू बेटा पठौने रहनि। असंभव काज बुझि विष्वातसे नहि होइत रहै। अपना चिट्ठी त' नहि पढ़ल होयत छलै मुदा पढ़बैकाल जे पाँती सभ जे सुनलाहा रहै, ओ ओहिना आँखिक आगू नचैत रहै। चिट्ठी उघारि आँखि गड़ा देखै लागल। ‘‘बाबू, पाँच तारीख केँ दुनू भाय ज्वा।इन करै जायब। इच्छाे अछि जे घर स विदा हेबा काल, अहाँ केँ गोड़ लागि घर सँ निकली। तेँ पाँच तारीख क' दस बजे सँ पहिनहि अपने गाम पहुँच जाय।'' चिट्ठीक बात मनमे अबितहि भोला गाम आ षहरक बीचक सीमा पर लसकि गेल। मनमे ऐल समाज सँ निकलि, छाती पर ठेला घीचि, दू टा षिक्षक समाजकेँ देलिऐक कि ओहि समाजक आरो ऋृण बाकी छैक? जँ नहि तँ किएक ने छाती लगाओताह। जहि सँ मनमे खुषी उपकल जे जहिना गाम सँ धोती गोलगोला आ दू टाका लए क' निकलल छलहुँ तहिना देहक कपड़ा, सनेस, चाह-पानक खर्च छोड़ि किछु नहि एहिठाम लए जायब। चिड़ै टाँहि देलकै फेरि ओछाइन पर स उठि निकलल त' देखलक जे बाँस भरि ऊपर भुरुकबा आवि गेल अछि। चोट्टे घुरि क' आबि भोला संगी-साथीकेँ उठा अपन सभ किछु बाँटि देलक। अपना ले मात्र टिकटक खर्च, सनेस आ पाँकेट खर्च मिला सय रुपैया राखि, कपड़ा पहीरि, धर्मषाला केँ गोड़ लागि हँसैत निकलि गेल।
जखन आठे बर्खक भोला छल तखनहि माय मरि गेलखिन। तीनिये मासक पछाति पिता रघुनी चुमाओन क' लेलखिन। ओना पहिलुको पत्नीछ सँ चारि सन्तालन भेलि रहनि। मुदा सिर्फ भोले टा जीवित रहल। सत्‌माय केँ परिवार मे ऐने भोलाकेँ सुखे भेलै। गामक जनिजातियो आ पुरुखो केँ होयत जे सत्मामय भोलाकेँ अलबा-दोलबा क' घर स भगा देतै नहि त परिवार मे भिनौज जरुर कराइये देतीह। मुदा सभहक अनुमान गलत भेलनि। भोला घर सँ सोलहन्नी फ्री भ' गेल। फ्री मात्र काजे टा मे भेल, मान-दान बढ़िये गेलै। दुनू साँझ भानस होइतहि माय फुटा क' भोल ले सीक पर थारी साँठि क' राखि दैत छलीह। भलेही भोला दिनुका खेनाइ साँझ मे आ रौतुका खेनाइ भोरमे किएक ने खाय।
परोपट्टा मे जालिम सिंह आ उत्तम चन्द क नाच जोर पकड़ने। सभ गाम मे तँ नाच पार्टी नहि मुदा एक गाम मे भेने चारि कोसक लोक देखै अबैत।
विषौलक(भोलाक गामक) नाच पार्टी सबसँ सुन्द र अछि। जेहने नगेड़ा बजौनिहार तेहने जोकर। जाहि स पार्टीक प्रतिष्ठा दिनानुदिन बढ़ले जायत। घर सँ फ्री भेने भोला नाचक परमानेंट देखिनिहार भ' गेल। नाचो भरि रौतुका, नहि कि एक घंटा, दू घंटा, तीनि घंटाक। जेहने देखिनिहार जिद्‌दी तेहने नचिनिहारो। गामक बूढ़-वूढ़ानुस स' ल' क' छैाँड़ा मारड़ि घरि भरि मन मनोरंजन करैत। मनोरंजनो सस्ताे। ने नाच पार्टी केँ रुपैआ दिअए पड़ैत आ ने खाइ-पीबैक कोनो झंझट। ओना गामक बारह-चौदह आना लोकक हालतो रद्दिये। मुदा जे किसान परिवार छल ओ अपना ऐठाम मासमे एक-दू दिन जरुर नाच करबैत छलाह। ओ नटुआकेँ खाइयो ले दैत छलथि आ कोनो-कोनो समानो कीनि केँ दैत छलथिन। भोलो नाच पार्टीक अंग बनि गेल। डिग्री सेदैक जिम्माक भेटि गेलैक। डिग्रीसेदैक जिम्माा भेटितहि काजो बढ़ि गेलैक। घूरक लेल जारनोक ओरियान करै पड़ैत छलै। अपना काजमे भोला मस्त रहै लागल। मुदा एतबे स ओकर मन ्यान्तय नहि भेलैक। काजक सृजन ओ अपनोहु करै लागल। स्टे जक आगू मे जे छोटका धिया-पूता बैसि पी-पाह करैत, ओकरो सभपर निगरानी करै लागल। आब ओ चुपचाप एकठाम नहि बैसैत। घूमि-घूमि क' महफिलोक निगरानी करै लगल। आरो काज बढ़ैलक। नटुआ सभकेँ बीड़ी सोहो लगबै लगल। बीड़ी सुनगबैत-सुनगबैत अपनो बीड़ी पीबि सीखि लेलक। किछुऐ दिनक पछाति भोला बीड़ीक नमहर पियाक भ' गेल। किएक त एक्केी-दू दम जँ पीबए, तइयो भरि रातिमे तीसि-पेंइतीस दम भ' जायत छलैक। जहि स' भरि राति मूड बनल रहैत छलैक।
बीड़ीक कसगर चहटि भोला केँ लागि गेलै। रातिमे ते नटुऐ सभ सँ काज चलि जायत छलैक मुदा दिनमे जखन अमलक तलक जोर करैत त' मन छटपटाय लगैत छलैक। मूडे भंगठि जायत छलैक। मूड बनबैक दुआरे भोला बापक राखल बीड़ी चोरा-चोरा पीबै लागल। जहिक चलैत सभ दिन किछु नहि किछु बापक हाथे मारि खायत। एक दिन एक्केाटा बीड़ी रघुनी केँ रहनि। भोला चोरा क' पीबि लेलक। कोदारि पाड़ि रघुनी गाम पर अयलाह त बीड़ी पीबैक मन भेलनि। खोलिया पर स अनै गेलाह त' बीड़ी नहि देखलनि। चोट पर भोला पकड़ा गेलै। सभ तामस रधुनी भोला पर उताड़ि देलखिन। मारि खाय भोला कनैत उत्तर मुहेक रास्तास पकड़लक। कनिये आगू बढ़ल कि करिया काकाक नजरि पड़लनि। भोलक कानब सुनि ओ बुझि गेलखिन जे भीतरिया मारि लागलछै। चुचकारि केँ पुछलखिन- ‘‘की भेलौ रौ भोला?''
करिया काकाक बात सुनि भोला आरो हिचुकि-हिचुकि कनै लागल। हिचुकैत भोला कनिये जोर सँ काका केँ कहलकनि। जे कानबक अवाज मे हरा गेलैक। काका भोलाक बात नहि बुझलखिन। मुदा बिगड़लखिन नहि, दहिना डेन पकड़ि रघुनी केँ कहै बढ़लथि। काका केँ देखि रघुनियोक मन पघिल गेलैक। काका कहलखिन- ‘‘रघुनी, भोला बच्चा अछि किऐक त वियाह नइ भेलै अए। तेँ नीक हेतह जे वियाह करा दहक। अपन भार उतड़ि जेतह। परिवारक बोझ पड़तै अपने सुधरत। अखन मारने दोड्ढी हेबह। समाज अबलट्ट जोड़तह जे बाप कुभेला करैछै। जनिजातिक मुँह रोकि सकबहक ओ कहतह जे ‘‘माय मुइने बाप पित्ती।''
करिया काकाक विचार रघुनीक करेज केँ छेदि देलकनि। आँखि सँ नोर आबि गेलनि। एखन धरि जे नजरि रघुनीक करिया काका पर छलैक ओ भोलाक गाल पड़क सुखल नोरक टघार पर पहुँच अटकि गेलनि। मारिक चोट भोलक देह मे निजाइये गेलैक जे संग-संग वियाहक बात सुनि मनमे खुषिये उपकलै। बुद्धिक हिसाब सँ भलेही भोला बुड़िवक अछि मुदा नाच मे मेल-फीमेल गीत त' गबितहि अछि।
पिताक हैसियत स' रघुनी करिया काकाकेँ कहलखिन- ‘‘काका, हम ते ओते छह-पाँच नहि बुझैत छियै, काल्हिकये चलह कतौ लड़की ठेमा क' वियाह कइये देवइ।'' ‘‘बड़बढ़िया'' कहि करियाकाका रास्ताल घेलनि।
भोलाक वियाह भेला आठे दिन भेल छलैक कि पाँच गोटेक संग ससुर आबि रघुनी केँ कहलकनि- ‘‘वियाह से पहिने हम सभ नहि बुझलियैक, परसू पता लागल जे लड़का नाच पार्टी मे रहै अए। नटुआ-फटुआ लड़काक संग अपन बेटीकेँ हम नहि जाय देब। तेँ, ई संबंध नहि रहत। अपना सभ मे ते खुजले अछि। अहूँ अपन बेटाकेँ वियाहि लिअ आ हमहूँ अपना बेटीकेँ दोसर वियाह कए देब।'' कहि पाँचो गोटे चलि गेलाह।
ससुरक बात सुनि भोलाक बुद्धिये हरा गेलै। जहिना जोरगर बिरड़ो उठला पर सभ किछु अन्ह रा जायत, तहिना भोलोक मन अन्हडरा गेल। दुनियाँ अन्हातर लाग' लगलै। ओना तीनि मास पहिनहि नाच पार्टी टुटि गेल छलै। एकटा नटुआ एकटा लड़की ल' क' पड़ा गेल रहै। जहि स' गाम दू फाँक भ' गेल। दू ग्रुप मे गाम बँटा गेल। सैाँसे गाम मे सनासनी चलै लगलै। ताहि पर सँ भोला आरो दू फाँक भ' गेल।
पाण्डुत रोगी जेँका भोलाकेँ देहक खून तरे-तर सुखै लागल। मुदा की रकैत वेचारा? किछु फुड़बे नहि करैत छलैक। ग्लाेनि सँ मन कसाइन होअए लगलैक। मने-मन अपनाकेँ धिक्काुरै लागल। कोन सुगराहा भगवान हमरा जन्मए देलनि जे बहुओ छोड़ि देलक। विचारलक जे एहि गाम सँ कतौ चलिये जायब नीक होयत।
घर स भोला पड़ा गेल। संगी-साथीक मुँह सँ दिल्ली , कलकत्ता, बम्वजईक विड्ढय मे सुननहि रहए। जाहि सँ गाड़ियोक भाँज बुझले रहै। ने जेबी मे पाइ छलै, ने बटखरचा। मात्र दुइये टा टाका संग मे रहए। अबधारि कए कलकत्ताक गाड़ी पकड़ि लेलक।
हबड़ा स्टेाषन गाड़ी पहुँचते भोला उतड़ि विदा भेल। टिकट नहि रहनहुँ एक्कोे मिसिया डर मन मे नहि रहै। निरमली-सकरीक बीच कहियो टिकट नहि कटबैत छल। एक बेरि पनरह अगस्तह केँ सिमरिया धरि बिना टिकटे घुरि अयल रहए। प्लेरटफार्मक गेट पर दू टा सिपाहीक संग टी. टी. टिकट ओसुलैत रहथि। भोलाककेँ देखि टी. टीक मन मे भेलनि जे दरभंगिया छी भीख मंगै आयल अछि। टिकट नहि मंगलथिन। सिपाहियो केँ बुझि पड़लै जे जेबी मे किछु छैक नहि। टिकटेवला यात्री जेँका भोलो गेट पार भ' गेल।
सड़क पर आबि आँखि उठा क' तकलक त नमहर-नमहर कोठा चौड़गर सड़क, हजारो छोटका-बड़का गाड़ी आ लोकक भीड़ि भोला देखलक। मनमे भेलै जे भरिसक आँखि मे ने किछु भ' गेल अछि। जहिना आँखि गड़बड़ भेने एक्केै चान सात बुझि पड़ैत, तहिना। दुनू हाथे दुनू आँखि मीड़ि फेरि देखलक त ओहिना। भीड़ि देखि मन मे एलै जे जखन एत्त्ो लोकक गुजर-बसर चलैत अछि त हमर किएक ने चलत। आगू बढ़ि लोकक बोली अकानलक ते ककरो बाजब वुझबे नहि करैत। अखन धरि बुझैत जे जहिना गाय-महीसि सभठाम एक्केक रंग बजैत अछि तहिना ने मनुक्खोत बजैत होएत। मुदा से नहि देखि भेलै जे भरिसक हम मनुक्खंक जेर मे हरा ने ते गेलहुँ हेन। फेरि मन मे एलै जे लोक त संगीक बीच हरायत अछि असकर मे कोना हरायत। विचित्र स्थिेति मे पड़ि गेल। ने आगू बढ़ैक साहस होयत आ ने ककरो से किछु पूछैक। हिया हारि उत्तर मुहे विदा भेल। सड़कक किनछरिये सभ मे छोट-छोट खाय-पीबैक दोकान पतिआनी लागल देखलक। भुख लगले रहै मुदा अपन पाइ आ बोली सुनि हिम्मटते ने होयत। जेबी टोबलक ते दू टकही रहबे करै। मन पड़लै मधुबनीक स्टेीषन कातक होटल। जहि मे पाँच रुपये प्ले ट दैत। इ त सहजहि कलकत्ता छी। एहिठाम त आरो बेसी महग हेबे करत एकटा दोकानक आगू मे ठाढ़ भ' गर अँटबै लागल जे नहि भात-रोटी त एक गिलास सतुऐ पीबि लेब। बगए देखि दोकानदारे कहलक- ‘‘आबह, आबह बौआ। ठाढ़ किएक छह?''
अपन बोली सुनि भोला घुसुकि क' दोकान लग पहुँच पुछलक- ‘‘दादा, कोना खुआबै छहक?''
तीनि मास पहिने धरि आठे आना मे खुआबै छेलिऐक। अखन बारह आना मे खुआबै छिअए।''
भोलाक मनमे संतोड्ढ भेल। पाइयेवला गहिकी जेॅका बाजल- ‘‘कुड़ुड़ करै ले पानि लाबह।''
भरि पेट खा आगू बढ़ल। ओना त' रंग-विरंगक बस्तुै देखै लागल मुदा भोलाक नजरि सिर्फ दुइये ठाम पड़ैत। देवाल सभ मे साटल सिनेमाक पोस्टजर पर आ सड़क पर चलैत ठेला पर। जाहि पोस्टपर मे डान्सन करैत देखए ओहि ठाम अटकि सोचए जे ई नर्तकी मौगी छी कि पुरुख। गाम-घर मे ते पुरुखे मौगी बनि डान्स करैत अछि। फेरि मन पड़लै संगीक मुहे सुनल ओ बात जे कहने रहए सत्ये हरिष्च न्दस फिल्मि मे मर्दे मौगिओक रौल केने रहए। गुनधुन करैत बढ़ल ते अपने जेँका छौॅड़ा केॅ ठेला ठेलने जायत देखि सोचै लागल जे ई काज त हमरो बुते भ' सकैत अछि। गाड़ीक ड्राइवरी त' कयलै नहि होय अए। बिना सीखिने रिक्षोह कोना चलाओल हैत? ततमत करैत आगू बढ़ल। सड़कक बगले मे एकटा ठेलावला केँ चाह पीवैत देखलक। ओहिठाम जा क' ठाढ़ भ' गेल। चाह पीबि ठेलावला पुछलक- ‘‘कोन गाँ रहै छह?''
‘‘बिषौल।''
‘‘हमहूँ ते सुखेते रहै छी। चलह हमरा संगे।''
गप-सप करैत दुनू गोटे धर्मतल्लााक पुरना धर्मषाला लग पहुँचल त' ठेला केँ सड़के पर छोड़ि दीनमा भोला केँ धर्मषालाक भीतर ल' जा क' कहलक- ‘‘समांग असकरे कतौ जैहह नहि। हरा जेबह। हम एक ट्रीप मारने अबै छी।''
टंकी पर हाथ-पाएर धोए भोला दीनमा सँ बीड़ी मांगि पीबि पीलर लगा ओँगठि क' बैसि गेल। आँखि उठा क' तकलत त झड़ल-झुरल देवालक सिमटी तै पर कतौ-कतौ बर-पीपरक गाछ जनल देखलक। पैखाना कोठरीक आ पानिक टंकीक आगू मे ठेहुन भरि किचार सेहो देखलक मन पड़लैक गाम। नाच-पार्टी टूटि गेल, घरवाली छोड़ि देलक। दू पाटी गाम भ' गेल। सोचितहि-सोचितहि निन्ना आबि गेलैक। बैसिले-बैसल सुति रहल।
गोँसाइ डूबितहि दोसर ठेलावला(बुचाइ) आबि भोलाकेँ जगबैत पुछलक- ‘‘कोन गाम रहै छह?''
आषा भरल स्वतर मे भोला बाजल- ‘‘बिषौल।''
विषौलक नाओ सुनितहि मुस्की दइत बुचाइ पुछलक- ‘‘रुपनकेँ चीन्है छहक?''
‘‘उ ते हमरा कक्केक हैत।''
अपन भायक ससुर बुझि भोला सँ सार-बहिनोइक संबंध बनवैत कहलक- ‘‘चलह, पहिने चाह पीबी। तखन निचेन स' गप-सप करब।''
कहि टंकी पर जा बुचन देह-हाथ धोय, कपड़ा बदलि भोला केँ संग केने दोकन पर गेल। आखिक इषारा स दोकानदार केँ दू-दू टा पनितुआ, दू-दू टा समौसा दइ ले कहलक। दुनू गोटे खा चाह पीबि पानक दोकान पर पहुँच बुचइ पान मंगलक। पान सुनि भोेला बाजल- ‘‘पान छोड़ि दिऔ। बीड़िये कीनि लिअ।''
बीड़ी पीबैत दुनू गोटे धर्मषालाक भीतर पहुँचल। एका-एकी ठेलावला सभ अबै लागल। बिषौलक नाओ सुनितहि अपन-अपन संबंध सभ फरिअबै लागल। संबंध स्थावपित होइतहि चाहक आग्रह करैत। चाह पीबैत-पीबैत भोलाक पेट अगिया गेलै। अखन धरिक जिनगीमे ऐहन स्नेरह पहिल दिन भेटलै। ठेलावला परिवारक अंग भोला बनि गेल। भोलाक सब व्य वस्थाह ठेलावला सभ कए देलक। दोसर दिन स ठेला ठेलय लागल।
षानि दिन केँ सभ ठेलावला रौतुका षो(नाइट षो) सिनेमा देखै जायत। ओहि षो मे एक क्लानषक कन्ो्ा सन भेटैत अछि। भोलो सब षनि सिनेमा देखै लागल।
चौदह मास बीतलाक बाद भोला गाम आयल। नव चेहरा नव बिचार भोलाक। घरक सभ ले कपड़ा अनने अछि। धिया-पूता केँ दू-दू टा चौकलेट देलक। धिया-पूताकेँ चौकलेट देखि एका-एकी जनिजातियो सभ अबै लगलीह। झबरी दादी आबि भोलाकेँ देखि बजै लगलीह- ‘‘कहू ते एहि स सुन्न।र पुरुख केहेन होइछै जे सौंथ जरौनिया छोड़ि देलकै।''
दादीक बात भोलाकेँ बेधि देलक। आखि नोरा लगलैक। रघुनीक मन सेहो कानै लगलनि। दोसरे दिन रघुनी लड़की तकै घर सँ निकललथि। ओना लड़कीक त' कमी नहि, मुदा गाम-घर देखि क' कुटुमैती करैक विचार रघुनिक मनमे रहनि। कड़कीक कमी त' ओहि समाज मे अधिक अछि जाहि मे भ्रुण-हत्याकक रोग धेने छैक। समयो बदलल अछि। गिरहस्त' परिवार सँ अधिक पसन्दि लोक नोकरिया परिवारकेँ करैत अछि। बगलके गाममे भोलाकेँ वियाह भ' गेल।
वियाहक तीनिये दिन पछाति कनियाँक बिदागरियो भ' गेलैक आ पाँचमे दिन अपनो कलकत्ता चलि देलक।
सालक एगारह मास भोला कलकत्ता आ एक मास गाम मे गुजारै लागल। गाम अबैत त अपनो घरक काज सम्हाकरि अनको सम्हा रि दैत।
तेसर साल चढ़ितहि भेलाकेँ जैाँआ बेटा भेलै। नवम्‌ मास चढ़ितहि ओ गाम आबि गेल छल। मनमे अषो बनले रहै जे पाइ-कौड़ीक दिक्क त त' नहिये हैत। सभ ठेलावला अपन संस्थाम बना पाइ-कौड़ीक प्रबन्ध् अपने केने अछि। मुदा पहिल बेरि छी, कनियाँक देखभाल त' कठिन अछिये। सरकारी कोनो बेवस्थो नहिये छैक। मुदा समाजो त' समुद्र थिक। बिनु कहनहुँ सेवा भेटैत अछि। जाहि सँ भोलोकेँ कोनो बेसी परेषानी नहिये भेलैक।
समय आगू बढ़ल। पाँच बर्ख पुरितहि भोला दुनू बेटा केँ स्कूील मे नाओ लिखौलक। षहरक वातावरण मे रहने भोलोक विचार धिया-पूताकेँ पढ़बै दिषि झुकि गेल रहै। मन मे अरोपि लेलक जे भलेही खटनी दोबर किऐक ने बढ़ि जाय मुदा दुनू बेटाकेँ जरुर पढ़ाएब। अपन आमदनी देखि पत्नीह केँ अॉपरेषन करा देलक। जहि स परिवारो समटले रहलैक।
पढ़ै मे जेहने चन्सनगर रतन तेहने लाल। क्लादस मे रतन फस्टस करैत आ लाल सेकेण्ड । सातवाँ क्लानस धरि दुनू भाय फस्टे सेकेण्डर करैत रहल। मुदा हाई स्कू।ल मे दुनू भाय आर्ट लए पढ़ै लागल जाहि सँ क्लानस मे कोनो पोजीषन त नहिये होइत मुदा नीक नम्ब र सँ पास करै लगल।
मैट्रिकक परीक्षा द' दुनू भाय कलकत्ता गेल। अखन धरि आने परदेषी जेँका अपनो पिताकेँ बुझैत छल। तेँ मनमे रंग-विरंगक इच्छा। संयोगने कलकत्ता पहुँचल रहए। मुदा अपन पिताक मेहनत, छातीक बले ठेला घीचैत देखि पराते भने गाम घुमैक विचार दुनू भाय कए लेलक। पितेक आग्रह पर तीनि दिन अँटकल। मुदा किछु कीनैक विचार छोड़ि देलक। मेहनतक कमाइ देखि अपन इच्छादकें मने मे दुनू भाय दाबि लेलक। मुदा तइयो भोला दुनू बेटाकेँ फुलपेंट, षर्ट, धड़ी, जुत्ता कीनि क' देलक।
तीनि मासक उपरान्तअ मैट्रिकक रिजल्ट निकललै। दुनू भाय-रतनो आ लालो- प्रथम श्रेणी सँ पास केलक। फस्टत डिवीजन भेलो पर आगू पढ़ैक विचार मनमे नहि अनलक। उपार्जनक लेल सोचै लागल। नोकरीक भाँज-भुँज लगबै लागल। नोकरियोक तँ ओइह हाल। गामक-गाम पढ़ल बिनु पढ़ल नौजवानक फौज तैयार अछि। एक काजक लेल हजार हाथ तैयार अछि। जाहि सँ समाजक मूल पूँजी(श्रम) आगि मे जरैत सम्पैत्ति जेँका, नष्टक भ' रहल अछि।
समय मोड़ लेलक। पढ़ल-लिखल नौजवानक लेल नोकरीक छोट-छीन दरवज्जाप खुजल। गामक स्कूपल मे षिक्षा-मित्रक बहाली होअए लगलैक। जाहि सँ नव ज्यो तिक संचार गामोक पढ़ल लिखल नौजवान मे भेलैक। ओना समयक हिसाब सँ शिक्षा मित्रक मानदेय मात्र खोराकी भरि अछि मुदा बेरोजगारीक हिसाब सँ त' नीक अछिये। बगलेक गामक स्कूयल मे रतनो आ लालोक बहाली भए गेलैक। पाँच तारीक केँ दुनू भाय ज्वा।इन करत।
आगू नहि पढ़ैक दुख जते दुनू भाइक मनमे नहि रहै ताहि सँ बेसी खुषी नाकरी सँ भेलैक। कोपर बुद्धि मे कलुड्ढताक मिसियो भरि आगमन नहि भेल अछि। दुनू भाय वैसि क' अपन परिवारक संबंध मे विचारै लागल। रतन लालकें कहलक- ‘‘बौआ, कोन धरानी बावू अपना दुनू भाय केँ पढ़ौलनि से त' देखिलै अछि। अपनो सभ एक सीमा धरि पहुँच गेल छी। तेँ, अपनो सभक की दायित्वत बनैत अछि से त' निर्णय करै पड़तह?''
रतनक बात सुनि लाल बाजल- ‘‘भैया, अपना सभ ओहि धरतीक सन्तापन छी जाहि धरती पर श्रवण कुमार सन बेटा भ' चुकल छथि। पाँच तारीक सँ पहिनहि बावूकेँ कलकता सँ बजा लहुन। हमसभ ठेलावलाक बेटा छी, एहि मे कोनो लाज नहि अछि। मुदा लाजक बात तहन हैत जहन ओ ठेला घीचिताह आ अपना सभ कुरसी पर बैसि दोसर केँ उपदेष देबइ।''
मूड़ी डोला स्वी कार करैत रतना बाजल- ‘‘आइये बाबूजी केँ जानकारी दए दैत छिअनि जे जानकारी पबितहि गाड़ी पकड़ि घर चलि आउ। पाँच तारीख केँ दुनू भाय ज्वा इन करै जायब। दुनू भायक विचार अछि जे अहाँकेँ गोड़ लागि घर स डेग उठायब।''
दुनू भाइक विचार सुनितहि मायक मन सुख-दुखक सीमा पर लसकि गेलनि। जरल घरारी पर चमकैत कोठा देखै लगलीह। आँखि मे नोर छलकि गेलनि। मुदा ओ दुखक नहि सुखक छलनि। घ्घ्क‍
जगदी प्रसाद मंडल


उमेश मण्डाल
ग्राम, पोस्ट्, ःबेरमा
भाया, ःतमुरिया
जिला, ःमधुबनी
मोबाइल ः9931654742
मउंपस. नउमेीउंदकंस/पदकपंजपउमेण्बगवउ

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।