भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Tuesday, December 01, 2009

'विदेह' ४७ म अंक ०१ दिसम्बर २००९ (वर्ष २ मास २४ अंक ४७)- PART I

'विदेह' ४७ म अंक ०१ दिसम्बर २००९ (वर्ष २ मास २४ अंक ४७)

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एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश

२. गद्य
२.१. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास (आगाँ)

२.२.उपन्यास- जगदीश प्रसाद मंडल-कथा- बोनिहारिन

२.३. सुनील मल्लिक (प्रस्तुति- सुजीत झा)
२.४. बिपिन झा-आवश्यकता अछि सकारात्मक मौलिक चिन्तनक
२.५.१. कुसुम ठाकुर- प्रत्यावर्तन आ २. हेमचन्द्र झा-गोनू झाक पंचैती
२.६. दयाकान्त-लघुकथा
२.७. मिथिला कवि कोकिल विद्यापति - गोपाल प्रसाद
२.८.दुर्गानन्द मंडल-कथा-डाक्टर कर्मवीर

३. पद्य


३.१. कालीकांत झा "बुच" 1934-2009

३.२. राजदेव मंडल-बाढ़िक चित्र

३.३.उमेश मंडल (लोकगीत-संकलन)- आगाँ

३.४.कल्पना शरण-शीतल बयार

३.५.१. बिनीत ठाकुर-गीत आ २.मनीष ठाकुर, ३.चन्द्रकान्त मिश्र

३.६.कुसुम ठाकुर
३.७. शिव कुमार झा
३.८.१.कामिनी २.धर्मेन्द्र

४. बालानां कृते-१.जगदीश प्रसाद मंडल-लघुकथा२. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)३.कल्पना शरण:देवीजी.
5.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
5.1.Original Maithili Story by Smt.Shefalika Varma,Translated into English by DR. RAJIV KUMAR VERMA.
5.2.Original poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy from New York
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।



गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'


मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
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१. संपादकीय
अपन ज्ञान आ अनुभवकेँ सर्वदा बाँटू आ अपन वाक्, कर्म आ निर्णयमे हरदम नम्र रहू। अहाँक मित्रक लेल जे कियो नीक शब्दक प्रयोग करै छथि तँ तकर जनतब मित्रकेँ अवश्य कराऊ। जे अहाँ बुझने सही काज छैक तकरा अवश्य करू। पहिचान बनबए लेल काज नहि करू वरन् तेहन काज करू जकरा लोक चीन्हि सकए आ मोन राखए। जीवनक पैघ-पैघ परिवर्तन बिना कोनो चेतौनीक अबैत छैक। अपन बच्चाकेँ ई सिखाऊ जे कोनो व्यक्तिक कमीकेँ कम कऽ कए नहि मूल्यांकन करए। जे कोनो काज अहाँ करै छी तकरा मोनसँ करू। कोनो नाटक खतम भेलापर थोपड़ी बजबैमे सर्वदा आगू रहू। सोचू, ओहिपर विश्वास करू, सपना देखू आ ओकरा पूर्ण करबाक साहस राखू।


संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ ३० नवम्बर २००९) ८९ देशक ९९२ ठामसँ ३४,०९५ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,११,५८९ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।


गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in

२. गद्य
२.१. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास (आगाँ)

२.२.उपन्यास- जगदीश प्रसाद मंडल-कथा- बोनिहारिन

२.३. सुनील मल्लिक (प्रस्तुति- सुजीत झा)
२.४. बिपिन झा-आवश्यकता अछि सकारात्मक मौलिक चिन्तनक
२.५.१. कुसुम ठाकुर- प्रत्यावर्तन आ २. हेमचन्द्र झा-गोनू झाक पंचैती
२.६. दयाकान्त-लघुकथा
२.७. मिथिला कवि कोकिल विद्यापति - गोपाल प्रसाद
२.८.दुर्गानन्द मंडल-कथा-डाक्टर कर्मवीर

प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी (१५ फरबरी १९२१- १५ मार्च १९८५) अपन सम्पूर्ण जीवन बिहारक इतिहासक सामान्य रूपमे आ मिथिलाक इतिहासक विशिष्ट रूपमे अध्ययनमे बितेलन्हि। प्रोफेसर चौधरी गणेश दत्त कॉलेज, बेगुसरायमे अध्यापन केलन्हि आ ओ भारतीय इतिहास कांग्रेसक प्राचीन भारतीय इतिहास शाखाक अध्यक्ष रहल छथि। हुनकर लेखनीमे जे प्रवाह छै से प्रचंड विद्वताक कारणसँ। हुनकर लेखनीमे मिथिलाक आ मैथिलक (मैथिल ब्राह्मण वा कर्ण/ मैथिल कायस्थसँ जे एकर तादात्म्य होअए) अनर्गल महिमामंडन नहि भेटत। हुनकर विवेचन मौलिक आ टटका अछि आ हुनकर शैली आ कथ्य कौशलसँ पूर्ण। एतुक्का भाषाक कोमल आरोह-अवरोह, एतुक्का सर्वहारा वर्गक सर्वगुणसंपन्नता, संगहि एतुक्का रहन-सहन आ संस्कृतिक कट्टरता ई सभटा मिथिलाक इतिहासक अंग अछि। एहिमे सम्मिलित अछि राजनीति, दिनचर्या, सामाजिक मान्यता, आर्थिक स्थिति, नैतिकता, धर्म, दर्शन आ साहित्य सेहो। ई इतिहास साहित्य आ पुरातत्वक प्रमाणक आधारपर रचित भेल अछि, दंतकथापर नहि आ आह मिथिला! बाह मिथिला! बला इतिहाससँ फराक अछि। ओ चर्च करैत छथि जे एतए विद्यापति सन लोक भेलाह जे समाजक विभिन्न वर्गकेँ समेटि कऽ राखलन्हि तँ संगहि एतए कट्टर तत्त्व सेहो रहल। हुनकर लेखनमे मानवता आ धर्मनिरपेक्षता भेटत जे आइ काल्हिक साहित्यक लेल सेहो एकटा नूतन वस्तु थिक ! सर्वहारा मैथिल संस्कृतिक एहि इतिहासक प्रस्तुतिकरण, संगहि हुनकर सभटा अप्रकाशित साहित्यक विदेह द्वारा अंकन (हुनकर हाथक २५-३० साल पूर्वक पाण्डुलिपिक आधारपर) आ ई-प्रकाशन कट्टरवादी संस्था सभ जेना चित्रगुप्त समिति (कर्ण/ मैथिल कायस्थ) आ मैथिल (ब्राह्मण) सभा द्वारा प्रायोजित इतिहास आ साहित्येतिहास पर आ ओहि तरहक मानसिकतापर अंतिम मारक प्रहार सिद्ध हएत, ताहि आशाक संग।-सम्पादक
मिथिलाक इतिहास
अध्याय – ५
ई. पू. छठी शताब्दी सँ ई. स. ३२० धरिक
मिथिलाक राजनैतिक इतिहास
ई. पू. छठी शताब्दी मे भारत मे केन्द्रीय सत्ताक अभाव छल आर समस्त उत्तरी भारत सोलस महाजनपद मे बहल छल। अहि मे बिहार मे अंग, मगध, वज्जि, मल्ल, प्रसिद्ध छलाह। अहि महाजनपद सब मे किछु राजतंत्रात्मक आर किछु गणतंत्रात्मक छल – बौद्ध साहित्य मे जे गणराज्यक उल्लेख भेटैछ ताहि मे बिहार मे वैशालीक लिच्छवी एवं अन्य गणराज्यक संग मिथिलाक विदेह गणराज्यक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। उत्तर बिहारक महाजनपद केँ सम्मिलित रूपें वृज्जि गणराज्य आठ राज्यक एकटा संघ छल जाहि मे लिच्छवी, विदेह, ज्ञात्रिक प्रसिद्ध छलाह। संघक राजधानी वैशाली मे छल आर एकर स्वरूप कुलीनतंत्रक छल। वृज्जि शासन मे प्रत्येक गाँवक राजा केँ सरदार कहल जाइत छल। राज्यक सामूहिक कार्यक विचार एक परिषद होइत छल जकर वो राजा लोकनि सदस्य होइत छलाह। किछु मल्ल लोकनि सेहो उत्तर विहार मे रहैत छलाह।
ताहि दिन मे जे दू प्रकारक राजनैतिक व्यवस्था छल आर ताहु पर जे केन्द्रीय सत्ताक अभाव छल तकरा चलते दुनु राजनैतिक पद्धतिक मध्य बरोबरि संघर्ष होइत रहैत छलैक आर एम्हर मगध अपन हाथ – पैर पसारि रहल छल। मगध, कोशल, व्त्स, अवंती अहि चारू राज्यक मध्य आधिपत्यक हेतु संघर्ष चलि रहल छल आर वो सब अपन – अपन क्षेत्र मे अपन – अपन प्रसार मे लागल छलाह। उपरोक्त चारू राज्यक तुलना मे मगध केँ विशेष सफलता भेटलैक आर तकर मूलकारण इयैह छैक जे मगध ताहि दिन मे आर्थिक दृष्टिये सफल आर सबल छल। राजनैतिक संगठनक वास्तविक पृष्ठधरि आर्थिक आर सामाजिक होइत अछि। मगध खनिज पदार्थक हेतु प्रसिद्ध छल आर लोहा एकर सब सँ पैघ उपलब्धि छल। लोहा पर अधिपत्य रहबाक कारणे मगध सब समकालीन राज्य केँ पराजित करबा मे सफल भेल। नदी तट पर अवस्थित एवं राजगीर एवं अन्य पहाड सँ घोल बढल मगध केँ प्रकृति जेना एकटा प्राकृत सुरक्षा प्रदान केने होइक तेहने बुझल जाइत छल आर ताहि पर सँ मगध सँ तक्षशिला तक व्यापारिक मार्ग एवं लोहा पर ओकर एकाधिपत्य ओकरा सर्वतोभावेन साम्राज्यवादी बनेबा मे समर्थ सिद्ध भेलैक अहि बात केँ हमरा लोकनि एतिहासिक विश्लेषण सँ हँटा नहि सकैत छी। आर्थिक तत्वक संगठनात्मक आधारक जे रूप रेखा हमरा लोकनि केँ कौटिल्यक अर्थशास्त्र मे भेटैत अछि ओहि स्पष्ट अछि जे मगध मे सुनियोजित व्यवस्थाक स्थापना मे कैक शताब्दीक परिश्रम रहल होएत।बिम्बिसारक नेतृत्व मे मगध साम्राज्यवादक श्रीगणेश भेल आर वो अंग केँ पराजित कए जखन अंगुतराय आर कौशिकी कक्ष दिसि बढलाह तखन हुनका वैशालीक लिच्छवी लोकनि सँ संघर्ष भेलैन्ह आर से खटपट दुनु राज्यक बीच वादो मे बनल रहल। अंगुतराय आर वैशाली विदेहक सीमा कमला नदीक इर्द – गिर्द मिलैत छल। बाद मे लिच्छवी चेतकक पुत्री सँ विवाह कए वो वैशालीक संग मित्रता स्थापित केलन्हि आर वैशालीक सुप्रसिद्ध गणिका अम्बपाली सँ सेहो हुनका एकटा पुत्र भेलैन्ह। वैवाहिक संबधक माध्यमे वो मगध राज्यक संबधक विस्तार केलन्हि। मगध साम्राज्य प्रसारक अटालिका अहि संबध पर ठाढ छल।
स्अजातशत्रु अपन पिताक साम्राज्यवादी नीति केँ चालू रखलैन्ह। वो ई बात जनैत छलाह जे जाधरि वृज्जि संघक नाश नहि होएत ताधरि मगध साम्राज्यक एकाधिपत्य नहि संभव होएत तैं राज्यारोहणक बाद सँ वो अहि जोगार मे लागि गेलाह जे येन केन प्रकारेण वृज्जिसंघ केँ मटियामेट कैल जाए। वो अहि हेतु असंभव बहाना खोज लन्हि। पिताक समय सेहो अहि दुनु राज्यक बीच खटपट भेल छल परञ्च अजातशत्रुक समय मे ई सामान्य खटपट अपन चरमोत्कर्ष पर पहुँच गेल। हिनक मंत्री छलाह वर्षकार जनिका कौटिल्यक अगुआ कहल जाइत छन्हि। वर्षकार अहि संबध मे बुद्ध सँ परामर्श करए गृद्दकूट पर्वत पर गेला। अहि प्रसंग बुद्ध जे वर्षकार केँ उत्तर देलथिन्ह तकरा सत – अपरिहाणि – धम्म कहल जाइत छैक जकर विश्लेषण हम पाछाँ करब। वर्षकार अहि सँ अपन सुराग बाहर केलन्हि आर वज्जि संघ मे फूट अनबाक प्रयास मे लागि गेलाह। अजातशत्रु आर वृज्जि संघक बीच युद्धक मुख्य कारण छल राजाक साम्राज्यवादी नीति। राजा अहि गणराज्य केँ नष्ट कए मगधक अधीन करए चाहैत छलाह। जैन साधन सँ पता लगइयै जे लिच्छवी राजकुमारी चेलना सँ बिम्बिसार केँ दूटा पुत्र छलैन्ह – हल्ल आर वेहल्ल। बिम्बिसार हिनका दुनु भाई केँ बहुत रास वस्तु उपहार मे देने छलथिन्ह परञ्च अजातशत्रु जखन अपन पिता केँ मारि केँ राजगद्दी पर वैसलाह तखन वो हिनका दुनु भाई सँ वो सब वस्तु वापस मंगलथिन्ह। वो लोकनि देवा सँ नकारि गेल थिन्ह। अपन रक्षार्थ वो लोकनि अपन नाना (वैशाली) क ओहिठाम चल गेलाह आर अजातशत्रु खिसिया केँ वैशाली पर आक्रमण क देलैन्ह। बौद्ध साधनक अनुसार मगध आर वैशालीक बीच गंगा नदी बहैत छल आर तकर एक कात मे एकटा कोनो प्रसिद्ध खान छल आर ओकरा सटले एकटा बन्दरगाह सेहो। अहि खान आर बन्दरगाह पर आधा – आधा हिस्सा दुनु राज्यक छल। वज्जि लोकनि शक्तिशाली होएबाक कारणे मगध लोकनि केँ ओहि अधिकारक उपयोग नहि करए दैत छलथिन्ह तै अजातशत्रु शस्त्र द्वारा अहि प्रश्नक निबटारा करए चाहैत छलाह। अजातशत्रु सब दिसि सँ दारूण अस्त्रक संचय केलन्हि आर वर्षकारक साम्राज्यवादी सल्लाहक अनुकरण करैत वो वृज्जिसंघ त्त्कालीन मिथिलाक विशेष भागक प्रतिनिधित्व करैत छल।
भयंकर युद्धक अगुआ भेलाह साम्राज्यवादी अजातशत्रु। लडाई बहुत दिनधरि चलैत रहल। काशी आर अंग पछाति वैशाली विजय मगध साम्राज्यक स्थापनाक तेसर चरण छल। निरयावली सूत्रक अनुसार लिच्छवी राज चेतक अठारह गणराज्य केँ साहायताक हेतु अपील केलन्हि आर अजातशत्रु सँ लडबाक हेतु एकटा संयुक्त मोर्चाक निर्माण केलन्हि। अहि युद्ध मे अजातशत्रु महाशील कंटक आर रथमूशल सन सन युद्ध यंत्रक प्रयोग कएने छलाह। अहि दुनु राज्यक बीच लगभग १६ वर्ष धरि युद्ध चलैत रहल। आजीविक सम्प्रदायक प्रधान मंखली गोस्साल सेहो अहि युद्ध मे मारल गेलाह। मगध अहि युद्ध मे सब प्रकारक कूटनीतिक प्रयोग केलक। अंततोगत्वा अजातशत्रु विजयी भेलाह आर वैशालीक गणराज्यक प्रभुताक अवसान भेल आर मगध साम्राज्य अहि पर अपन आधिपत्य स्थापित केलक। वैशाली पर विजय प्राप्त करब मगध साम्राज्यक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानल जाइत अछि आर अजातशत्रुक समय मे ई उपलब्धि प्राप्त भेल। तकर बाद जे राजा लोकनिक भेलाह से मगध साम्राज्यक उपलब्धि आर बढौलन्हि आर एकर उत्कर्ष नन्दवंशक अधीन मे सर्वाधिक भेल। नन्दवंश शासक महापद्म केँ पुराण मे अखिलक्षत्रांतकारी, सर्वक्षत्रांतक आर एकराह कहल गेल छैक। महापद्म मैथिल केँ सेहो पराजित कएने छलाह। एकर तात्पर्य ई भेल जे वैशालीक पराभव भेला उत्तर विदेहक मैथिल लोकनि संभवतः अपन स्वतंत्रता वचा केँ रखबा मे समर्थ भेल छलाह। मिथिलाक क्षत्रिय शासक केँ ई श्रेय छलिन्ह परञ्च क्षत्रिय हंता महापद्म सब क्षत्रिय राज्य केँ समाप्त करबाक क्रम मे मैथिल लोकनि केँ सेहो पराजित कए हुनका अपना राज्यक अंतर्गत कै लेलैन्ह। अहि घटनाक बादहि सँ पाटलिपुत्र अखिल भारतीय साम्राज्यक केन्द्र भगेल आर स्वतंत्र वैशाली विदेहक परंपरा समाप्त भगेल। ई दुनु राज्य नन्दवंशक पछाति मौर्य साम्राज्यक अंग बनि गेल। अहि घटनाक बाद सँ कर्णाटवंशक उत्थान धरि मिथिला मगधक अंग बनल रहल परञ्च साँस्कृतिक दृष्टिकोण सँ मिथिला अहु स्थिति मे अपन साँस्कृतिक परंपरा केँ आर वैशाली अपन गणतांत्रिक पद्धति केँ जोगौने रहल।
ओहि प्राचीन कालहुँ मे मिथिला वासी सुवर्ण भूमि आर पूर्वी द्वीप समूह सँ अपन संबध बनौने रहल छलाह जकर प्रमाण हमरा लोकनि केँ जातक सँ भेटैत अछि। एक कथा सँ ज्ञात होइछ जे एकवेर विदेहक गद्दीक हेतु दु राजकुमारक मध्य संघर्ष भेलैन्ह आर ओहि मे एक भाई मारल गेलाह। गर्भवती हुनक मैथिल विधवा मिथिला सँ पडाय गेलि आर चम्पा (भागलपुर) मे एकटा ब्राह्मणक ओतए शरणार्थी बनि केँ रहलीहे। ओहि विधवाक पुत्र महाजनक पैघ भेला पर अपन पूर्वस्थितिक ज्ञान प्राप्त कए अपन राज्य वापस करबाक हेतु दृढ संकल्प भेलाह। अहि हेतु धनक आवश्यकता छलैन्ह तैं धनोपार्जनक हेतु वो सुवर्ण भूमि दिसि गेलाह। बंगालक खाढी मे हुनक जहाज टुटि गेलन्हि तखन खाढीक अधिष्ठातृ देवी मणि मेखला हुनका अपन कोरा मे उठाकए मिथिलापुरी पहुँचा देलैन्ह। कम्बुजर्दश नामक पोथी मे रमेश मजुमदार लिखने छथि जे प्राचीनकाल मे चीनक युनान राज्य विदेह प्रांत कहबैत छल आर ओकर राजधानीक नाम मिथिला छलैक। कखनो कखनो एकरा मिथिला राष्ट्र सेहो कहल जाइत छलैक। चीनी परंपरा मे जकरा नान चाजो कहल गेल छैक ओकरेअहि परंपरा मे मिथिला राष्ट्र सेहो कहल गेल छैक। एहि सँ सिद्ध होइत अछि जे प्राचीन मिथिलाक लोक सब दक्षिण पूर्वी एशिया एवं चीनक यूनान प्रांत धरि व्यापारक हेतु जाइत छलाह आर अपना संगे अपन स्मृतिक रक्षार्थ अपन साँस्कृतिक परंपरा केँ सेहो उगौहने जाइत छलाह। वैशाली सँ सेहो लोग सब व्यापारक हेतु भारत सँ बाहर जाइत छलाह जकर सब सँ पैघ प्रमाण ई अछि जे बर्मा मे एखनो “वेत्थाली” (वैशाली) नामक एकटा प्रसिद्ध स्थान विराजमान अछि।
अजातशत्रुक हाथें जखन लिच्छवी लोकनि पराजित भेलाह तकर पश्चात विदेह वैशालीक गौरव लुप्त भगेल आर मगध साम्राज्य अपन उत्कर्ष पर पहुँचबाक सरंजाम मे आओर तत्पर भगेल। उदायिनक समय धरि लिच्छवी लोकनि अपन प्रतिष्ठा केँ सुरक्षित रखबाक यथेष्ट प्रयत्न कएने छलाह। उदायिन साम्राज्यक दृष्टि केँ ध्यान मे राखि राजगृहक परित्याग केलन्हि आर पाटलिपुत्र मे अपन राजधानी बनौलन्हि। अहि सँ गंगापारक विदेह आर लिच्छवी पर नियंत्रण रखबा मे सुविधा भेटलन्हि। उदायिनक उत्तराधिकारीक समय मे सेहो लिच्छवी – मगधक संघर्ष चलिते रहल परञ्च नंदवंशक शासन काल धरि अबैत – अबैत उत्तर बिहार अथवा मिथिला – विदेह– वैशालीक प्राचीन परंपरा लुप्तप्राय भगेल आर अहि समस्त क्षेत्र पर मगधक आधिपत्य भगेलैक। नन्दवंशक शासन काल मे राजनैतिक पराभवक वावजूदो विदेह – वैशालीक सांस्कृतिक गरिमा बनल रहलैक आर अपन शासन सुविधा केँ ध्यान मे रखैत साम्राज्यवादी नंदवंश शासक लोकनि मिथिलाक गणराज्यक परंपरा मे हेर – फेर नहि केलन्हि आर वैशालीक प्रधानता सेहो बनल रहल। वृज्जिसंघक गणराज्यक स्वरूप यथावत छल आर ओहि मे कोनो प्रकार हेर – फेर नहि भेल छल, एकर सब सँ पैघ प्रमाण ई अछि जे कौटिल्य अपन अर्थशास्त्र मे लिच्छवी सब केँ “ राजशब्दोप जीवितः गणराजानः” कहने छथि। एकर अर्थ ई भेल जे राजनैतिक हिसाबे मैथिल लोकनि मगधक प्रभुत्व केँ स्वीकार कलेने होयताह आर आंतरिक रूपें वो लोकनि अपन वैधानिक परंपरा केँ बचा केँ रखने हेताह। एकर आठ सौ वर्ष बाद धरि वैशालीक महत्व बनल रहल छल सँ तँ गुप्तकालीन इतिहासक अध्ययन सँ स्पष्ट होइछ।
ई. पू. छठम शताब्दी सँ जे एकटा राजनैतिक एकता एवं धार्मिक विद्रोहक प्रभावक प्रादूर्भाव भेल छल ताहि सँ मिथिला बाँचल कोना रहि सकैत छल। वर्द्धमान महावीर आर गौतम बुद्ध, जैन आर बौद्ध धर्मक प्रणेता लोकनिक संबध अहि क्षेत्र सँ बड्ड घनिष्ट छलैन्ह आर दुनु व्यक्ति बरोबरि अहि क्षेत्रक सीमाक अंतर्गत अपन वर्षावास करैत छलाह। महावीर अर्हत् (पूज्य), जिन (विजेता), निग्रंथ (बन्धन हीन) सेहो कहबैत छलाह आर वो कोशल, मगध, विदेह इत्यादि स्थानक भ्रमण कएने छलाह। वैशाली तँ हुनक जन्मस्थाने छलैन्ह। मगधराज बिम्बिसारक रानी चेलना महावीरक बहिन छलथिन्ह। धार्मिक पक्ष पर विवेचन हमरा लोकनिक साँस्कृतिक खण्ड मे करब। बौद्ध धर्मक प्रभाव सेहो मिथिला पर बड्ड छल। हम उपर लिखि आएल छी जे संभवतः अंगुतराय पर आक्रमण करबाक क्रम में मगध राज बिम्बिसारक खटपट लिच्छवी लोकनि सँ भेल होयतन्हि। अंगुतरायक आपन गाँव मे बुद्ध एकाध मास रहल छलाह आर ओतुका ब्राह्मण लोकनि हुनक विशेष आदर भाव कएने छलथिन्ह। सप्तरी, भाला परगना, बुद्धग्राम, रत्नपुर, ब्रह्मपुर, विसारा, बेतिया, चम्पारण, आदि बौद्धधर्मक प्रधान केन्द्र छल। नन्दक शासन काल मे जँ पाणिनि पाटलिपुत्र आएल छलाह तँ ओहि आस पास मे वैशाली मे दोसर बौद्धसगीति भेल छल जे धार्मिक दृष्टिकोण सँ मानल गेल अछि। वैशाली मोर्ययुग मे पटना आर हिमालयराज्य नेपालक बाट मे पडैत छल। वैशाली मे अशोक एकटा स्तंभ सेहो बनौने छलाह आर एकटा स्तूप सेहो जाहि मे वो बुद्ध केँ अवशेष एम्हुरका जे उत्खनन भेल अछि ताहि सँ प्राप्त भेल अछि। वैशाली व्यापारीक प्रधान केन्द्र छल। मिथिला आर नेपालक संबध सेहो मधुर छल। तराई क्षेत्र मे किरात लोकनि बसैत छलाह आर मैथिल सांस्कृतिक निर्माण मे किरातक योगदान ककरो सँ कम नहि छन्हि।
मोर्य युगक अवशेष ततेक नेऽ प्रचुर मात्रा मे मिथिलाक चारु कात सँ भेटइत अछि जे ई निश्चित भजाइत अछि जे मोर्ययुग मे समस्त मिथिला पूर्णरूपेण मगध साम्राज्यक एकटा प्रमुख अंग बनि गेल छल। पूर्णियाँ, वनगाम – महिषी, पटुआहा, बहेडा, हाजीपुर, वैशाली, आदि क्षेत्र सँ पंचमार्क्ड सिक्का विशेष मात्रा मे प्राप्त भेल छैक आर मोर्य युगीन मॉटिक मुरूत खेलौना इत्यादि तँ सहजहि मिथिलाक कोन – कोन मे भेटैत छैक। मृण्मूर्ति तँ एहेन कोनो क्षेत्र नहि अछि जाहि ठाम सँ नहि भेटल हो। भसकैछ जे अहि क्षेत्र मे एकर कैकटा केन्द्र सेहो रहल हो।एकर अतिरिक्त मिथिलाक विभिन्न क्षेत्र सब सँ नादर्नब्लैक प्रलिश्ड वेयर (N.B.P) सेहो भेटैत अछि आर अहि सब सम्मिलित साधनक आधार पर ई निर्विवाद रूपें कहल जा सकइयै जे मिथिला क्षेत्र पूर्णतोभावेन पाटलिपुत्रक अधीन रहल छल। [ मिथिलाक इतिहासकार डाक्टर उपेन्द्र ठाकुर ई. पू. ३२६ सँ १०९७ ई. धरि केँ मिथिला पर जे शासन छल तकरा वो विदेशी शासनक संज्ञा देने छथि मुदा हुनक ई तर्क युक्ति संगत नहि बुझि पडइयै कारण मिथिला (जे कि भारतक एकटा अंग थिक) क संदर्भ मे हम मगध केँ विदेशी कोना मानि सकैत छियैक।दोसर गप्प इहो जे जँ मौर्य, गुप्ता, पाल, प्रतिहार आदि मिथिलाक हेतु विदेशी बुझल जाइथ तखन तँ इहो स्मरण राखेक चाही जे कर्णाट लोकनि तँ आर दक्षिण सँ आएल छलाह तँ वो लोकनि देशी कोना भगेलाह। एक समय एहनो छल जखन मिथिलाक प्रभुत्व छल आर समस्त वैशाली आर नेपाल तराई पर मिथिलाक प्रभुत्व छल तँ कि एकरा वैशाली पर विदेशी शासन कहलजेतैक ? ओहिना जखन वैशालीक प्रभुत्व बढल तखन मिथिला वैशालीक अंग भगेल तँ ओहिकाल केँ मिथिलाक हेतु विदेशी शासन कियैक नहि मानल गेलैक ? अजातशत्रु वैशाली केँ आर नंद लोकनि मिथिला केँ पराजित कए मगध साम्राज्यक उत्कर्ष केलन्हि आर मगधक तत्वावधान मे समस्त उत्तर भारतेकनहि अपितु समस्त भारतक राजनैतिक एकीकरण भेल तैं हेतु मिथिलाक इतिहासक संदर्भ मे अहिकाल मेँ मिथिलाक हेतु विदेशी शासनक काल कहब युक्ति संगत नहि बुझना जाइत अछि। दोसर बात ई जे मगध साम्राज्यक उत्कर्ष भेला उत्तरो वैशाली एवं विदेहक आंतरिक स्वायत्ता बनले रहलैक आर ओहि मे कोनो प्रकारक हस्तक्षेपक उदाहरण नहि भेटैत अछि। लिच्छवी लोकनि अपन नियम पर चलिते रहलाह। पतंजलि सेहो जनपदक रूप मे मिथिलाक उल्लेख कएने छथिये। तत्कालीन साहित्यक प्रमाण के जँ साक्ष्य मानल जाए तँ ई निर्विवाद रूपें कहल जा सकइयै जे रूतावता मिथिला राजनैतिक रूपें मगध साम्राज्यक अधीन रहितहुँ अपना आप मे स्वतंत्र छल। मगधक तत्वावधान मे अखिल भारतीय एकता एकटा ऐतिहासिक क्रम छल जकरा फले लगभग हजार वर्ष धरि मगधक इतिहास भारतवर्षक इतिहास बनल रहल आर मगधक अवसानक पछति पुनः देश मे छोट – छोट राज्यक जेना उत्पत्ति उठि गेल हो तहिना बुझना जाइत छल।
मौर्य साम्राज्यक संस्थापना भारतीय इतिहास मे एकटा महत्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि। एकर विवरण पुराण मे एवं प्रकारे अछि –
“ उद्धरिष्यति तान् सर्वान्
कौटिल्यो वै द्विजर्षभः
कौटिल्यश्चन्द्रगुप्तं तु
ततो ताज्ये भिषेक्ष्याति ”
मुद्राराक्षसक अनुसार चन्द्रगुप्त हिमालय सँ दक्षिर्णाणव धरि अपन राज्य सीमा केँ विस्तृत केलन्हि। वैशाली आर मिथिला मौर्य साम्राज्यक प्राना छल आर अहिठाम जे अखनो गणराज्य वर्त्तमान छल तकर सब सँ पैघ प्रमाण अछि कौटिल्यक अर्थशास्त्र। अशोकक स्तम्भ लेख लौरियानन्दन आर रामपुरबा तथा स्तंभ चम्पारण, वैशाली सँ भेटल छैक आर ओम्हर पूब मे धरहरा (बनमनखी – पूर्णियाँ ) क समीप सिकलीगढ दिसि सेहो अशोक स्तंभक होयबाक किछु प्रमाण भेटल छैक जाहि सँ ई पुष्ट होइछ जे अशोक काल धरि मिथिला पर मौर्य साम्राज्य अक्षुण्ण भावें बनल रहल। नेपाल आर तराईक विशिष्ट भाग पर सेहो अशोकक राज्य छल। वैशालीक प्रभुत्व तखनो बनल छल और अशोक मिथिले बाटे नेपाल गेल छलाह – पाटलिपुत्र सँ विदा व्भकए ताहि दिन मे लोक पहिने वैशाली पहुँचैत छल आर तब केसरिया, लौरिया अराराज, बेतिया, लौरिया नंदनगढ, जानकीगढ आर रामपुरबा होइत भीखना ठोडी पास लग पहुँचैत छल आर ओहिठाम सँ नेपाल जाइत छल। अशोक अहि बाटे नेपाल गेल छलाह आर नेपाल केँ अपना राज्य मे मिलौने छलाह। लिच्छवी, किरात, मल्ल, विदेह आदि जाति सब मे ताहि दिन मे वेस मेल जोल छल आर हिनको लोकनिक संपर्क नेपाल सँ घनिष्ट छलैन्ह। वैशाली उत्खनन सँ प्राप्त एकटा मुहर पर लिखल अछि – “वैशाली अनुसम्यामर्क टकार ” – जाहि सँ ई बुझि पडइयै जे वैशाली मौर्य काल मे शासनक एकटा प्रधान केन्द्र छल आर खासकर अशोकक समय एकर प्रधानता आओर बढि गेल छलैक। अशोकक समय बहुत रास व्यक्ति बौद्ध धर्मक प्रचार करबाक हेतु तिब्बतो गेल रहैथ।
मौर्य साम्राज्यक पतनक पछति शूंगवंशक स्थापना भेल। ई ब्राह्मवंश छल। ब्राह्मण धर्मक प्रभुत्व बढल परञ्च संगहि विकेन्द्रीकरणक प्रवृति केँ सेहो बढावा भेटलैक। शूंग कालहु मे मिथिला पर पाटलिपुत्रक प्रभाव बनले रहलैक। शूंगकालीन स्तंभ गण्डकतीर पर काली मंदिरक समीप सोनपुर मे भेटल छैक आर जय मंगला गढ (बेगुसराय) सँ प्राप्त लकडीक पुलक संगहि शूंगकालीन मृण्मूर्तिक आविष्कार एकटा पैघ पुरातात्विक घटना मानल गेल अछि। पटना (कुम्हार) आर नौलागढ (बेगुसराय) सँ शूंगकालीन मॉटिक मुरूत आर साज श्रृंगारक सामान सेहो भेटल अछि। नेपाल मे किरात लोकनिक महत्व बनल छल आर उहो लोकनि संभवतः शूंगलोकनिक आधिपत्य स्वीकार केने छलाह। रैमा गाम मे एक पुरान पोखरि छैक जकरा लोग ओहिठाम सुनगाटी पोखरि कहैत छैक। ओहि मे सँ बहुत रास प्राचीन सामग्री भेटल छैक आर ओहिठामक लोग विश्वास छन्हि से ई पोखरि शूंग कालीन थिक। शूंगकालहु धरि अंग मे ब्राह्मण धर्मक प्रचार – प्रसार विशेष रूपें नहि भेल छल परञ्च मिथिला मे ब्राह्मण – धर्मक पुनुरूत्थान अहि युग मे विशेष रूपें भेल छल। विदेह आर अंगक बीच मे एकटा प्रसिद्ध स्थान छल कालकवन। शूंगक पछाति कण्व लोकनिक शासन रहल। हुनका लोकनिक समय मे मिथिला – वैशाली क्षेत्र पर पाटलिपुत्रक प्रभाव घटि गेल छल। अहि स्थिति सँ लाभ उठा केँ लिच्छवी लोकनि शनैः शनैः अपन सत्ता बढौने जा रहल छलाह। दक्षिण मे आन्ध्र – सातवाहन, पूर्व मे कलिगक खरवेल आर पश्चिम मे शक् क्षत्रप लोकनि अपन प्रभाव बढा रहल छलाह। दू – दू वेर कलिंग राज खरवेल मगध पर आक्रमण क चुकल छलाह परञ्च मिथिला पर हुनक आधिपत्य भेलैन्ह अथवा नहि से कहब कठिन।
मिथिला मे एखनहुँ पुरातात्विक ढँगक उत्खनन नहि भेल छैक तैं जनक राजवंश सँ लकए कर्णाट राजवंश धरिक इतिहास केँ अन्धकार पूर्ण कहल जा सकइयै यद्धपि साँस्कृतिक दृष्टिकोण सँ अहि युगक विशेष महत्व अछि। कुषाण लोकनि कनिष्कक नेतृत्व मे वैशाली धरि आएल छलाह से संभव। कहल जाइत छैक जे कनिष्क वैशाली सँ बुद्धक भिक्षाटन बाली बाटी उठा के गान्धार लगेल छलाह। वैशाली सँ शक क्षेत्रप रूद्रसेनक बहिन महादेवी प्रभुदामाक एक गोट लिखल मोटर पाओल गेल छैक जाहि सँ ई अनुमान लगाओल जा सकैत अछि जे शक क्षत्रप सबहिक संग ताहि दिन मे एहि क्षेत्रक संपर्क छलैक। एहि संबधक वास्तविक स्वरूपक ठेकान लगाएब अखनो कठिन अछि। अहि क्षेत्र सब सँ बहुत क्षत्रप आर कुषाण मुद्रा तथा सिक्का भेटल अछि। मनुस्मृति मे लिच्छवी, विदेह, मल्ल जाति सब केँ व्रात्य कहल गेल छैक जकर कारण इयैह थिक जे ई सब वैदिक कर्मकाण्डक कोनो परवाहि नहि करैत छलाह। मौर्योत्तर काल मे प्रकार– प्रकारक लोगक उल्लेख भेटैछ आर ओकर संबध वैशाली मिथिला क्षेत्र सँ बताओल जाइत अछि। अहि प्रसंगक विशेष रूप हम अपन लेख मे “कम्प्रीहेनसिम हिस्ट्री आफ बिहार ” मे प्रस्तुत कएने छी आर अहिठाम मात्र ओकर संकेत धरि दैत छी। [ हालेमी (भूगोलवेत्ता) अपन पुस्तक मे कहने छथि जे गण्डक सँ महानंदा धरि “मरूण्डाई ” नामक एक गोट जातिक आधिपत्य छलैन्ह। अहि जातिक प्रभाव अहि क्षेत्र पर छल। मौर्योत्तर काल मे मिथिला सेहो एक
राज्ञो महाक्षत्रपस्य स्वामी रूद्रासिंहस्य दुहितु राज्ञो महाक्षत्रपस्य स्वामी रूद्रसेनस्य भगिन्या महादेव्या प्रभुदामायाह॥
प्रकारक अस्त व्यस्तता छल आर एकर नतीजा ई होइत छल जे चारू कातक महत्वाकाँक्षी लोक सब एकर लाभ उठालैत छलाह। ‘मरूण्डाई’ जातिक विवरण कैक साधन सँ प्राप्त होइत अछि परञ्च वस्तुस्थिति कि छल ताहि सम्बन्ध मे ठीक – ठीक निर्णय देव अंसभव। यलेमी निश्चय कोनो आधार आव हमरा लोकनि केँ उपलब्ध नहि अछि। ‘मरूण्डाई’ क अतिरिक्त आरो एक गोट जाति छलैक जकर राज्य उत्तरी बिहार मे छलैक। ओहि जातिक नाम छल ‘भर’ – (भर राजपूतो कहल जाइत छैक)। भर लोकनिक अवशेष सहरसा आर बेगुसराय मे अछि। सिहेंश्वर स्थान मे रायभीर नामक एकटा स्थान छैक जकरा भर लोकनि केँ राजधानी कहल जाइत छैक। बेगुसराय मे तप्पा सरौंजा सेहो भर लोकनिक प्रधान केन्द्र छल। भर लोकनि केँ विश्वास छैन्ह जे वो सब भारशिव – नाग वंशक उत्तराधिकारी छथि। जँ ई कथन सत्य हो तँ ई मानल जा सकैत अछि जे भारशिव नाग वंशक आधिपत्य सेहो मिथिला पर छल। भर लोकनिक अनेक किंवदंती एखनो मधेपुरा मे पाओल जाइत छैक। मरूण्डाई, भर, किरातआदि जाति सब हिक प्रभुत्व मिथिलाक किछु खास – खास अंसे पर रहल हेतैक। एहेन अनुमान लगाओल जाइत छैक जे मौर्य लोकनिक पतनक पछाति लिच्छवी लोकनि अपन अस्तित्वक पुनः स्थापित मे लागि गेल हेताह – कुषाण लोकनिक प्रभुत्व सँ हुनका लोकनि केँ धक्का पहुँचल हेतैन्ह आर ओहि अनिश्चितताक अवस्था सँ लाभ उठा केँ भारशिव नाग वंशक लोग मिथिलाक क्षेत्र मे अपन सत्ता स्थापित कएने होएताह। कुषाणक प्रभावक वृद्धि भेला पर लिच्छवी लोकनि ओतए सँ हँटि केँ जे नेपाल गेलाह से अपन प्रभुत्व कायम केलन्हि आर तहिया सँ करीब ७०० वर्ष धरि ओतए शासन करैत रहि गेलाह। ओहि लिच्छवी लोकनिक सम्बन्ध पाटलिपुत्र सँ सेहो छल। एक परंपरा मे तँ इहो सुरक्षित अछि जे लिच्छवी लोकनि पातलिपुत्र पर सेहो शासन करैत छलाह आर नेपाली शिलालेखक अनुसार ‘सुपुष्प’ लिच्छवीक जन्म पाटलिपुत्र मे भेल छलैन्ह।
लिच्छवीक अंत:- अजातशत्रुक पछाति लिच्छवी लोकनिक इतिहास संदिग्ध भ जाइछ। कौटिल्यक अर्थशास्त्र मे गणराज्यक रूप मे हुनका लोकनिक उल्लेख अछि अद्यावधि नहि भेटल अछि। लिच्छवी जाति एवं राष्ट्रक रूप मे जीवित रहलाह आर आठ सौ वर्ष बाद पुनः बिहारक इतिहास मे अपन अचित भूमिकाक निर्वाह करैत लगभग ७०० वर्ष धरि नेपाल पर सेहो शासन केलन्हि मुदा तैयो कोनो एकटा प्रामाणिक इतिहास हुनका लोकनिक नहि भेटइयै। हितनारायण झाक शोध प्रबन्ध जे लिच्छवी पर छन्हि ताहु मे कोनो विशेष नव बात देखबा मे नहि अवइयै आर नेऽ कोनो नव तथ्यक उद्धाटने भेल अछि। नेपालक लिच्छवी केँ सूर्यवंशी लिच्छवी कहल गेल छन्हि। तिब्बती परंपराक अनुसार तिब्बतक प्रारंभिक शासक केँ ‘लि – च – व्य’ कहल जाइत छलैक आर हुनका लोकनिक केँ विदेशी बुझल जाइत छलैन्ह। अहि सँ ई अनुमान लगाओल जाइत अछि जे लिच्छवीक एक शाखा नेपाल मे बसल आर दोसर शाखा तिब्बत मे। नेपाल मे लिच्छवी लोकनि राजतंत्रात्मक प्रणालीक समर्थक बनलाह। संभवतः अपन वैशालीक अनुभव हुनका राजतंत्रात्मक पद्धति तैं अपनेबा पर बाध्य केने होन्हि से एकटा विचारणीय विषय। तिब्बत मे सेहो ई लोकनि राजतंत्रात्मक सत्ताक समर्थक बनि गेलाह। सब किछु होइतहुँ तिब्बत नेपाल आर वैशालीक लिच्छवीक मध्य एक प्रकारक सम्बन्ध बनले रहल आर हुनका लोकनिक आप अपनौती सेहो बनल रहलैन्ह। नेपालक लिच्छवी लोकनि ब्राह्मण आर बौद्ध धर्मक समर्थक रहलाह आर हुनके लोकनिक समय मे शैव आर शाक्तक प्रधानता सेहो बढल।
जयदेव द्वितीय (नेपाल) क शिलालेखक अनुसार लिच्छवी लोकनि किछु दिन धरि मगधक शासक सेहो छलाह। हुनक पूर्वज सुपुष्पक जन्म पाटलिपुत्र मे भेल छलैन्ह। सुपुष्पक जन्म संभवतः प्रथम शताब्दी मे भेल छलैन्ह आर तखन कुषाण लोकनिक प्रधानता रहल होएत। ई अनुमान लगाओल जाइत अछि जे वो लोकनि कुषाणक सत्ता केँ स्वीकार कए अपन अस्तित्वक रक्षा कएने होयतहि। अहि मे सँ जे विशेष स्वाभिमानी रहल होएताह से अपन स्वतंत्रताक रक्षार्थ नेपाल दिसि बढि गेल हेताह। कनिष्कक परोक्ष भेला पर पुनः लिच्छवी लोकनि अपन स्वतंत्रताक स्थापना करबा मे संभव भेल होयताह। नेपाल मे जाकर वो लोकनि राजतंत्रात्मक पद्धति केँ अपनौलन्हि आर तैं संभवतः समुद्रगुप्त हुनका लोकनि के जीति अपन राज्यक अंतर्गत कएने होयताह।
लिच्छवी राजकुमारीक विवाह एक महत्वाकाँक्षी साम्राज्यवादी राजकुमारक संग हैब एकटा आश्चर्यक बात बुझि पडइयै। लिच्छवी लोकनि तखन स्वयं गणराज्यक सिद्धांत मे विश्वास करैत छलाह अथवा नहि से एकटा विचारणीय विषय। दोसर बात ई वो लोकनि सेहो पाटलिपुत्र केँ जीत केँ ओहि पर राज्य करैत छलाह जाहि सँ ई स्पष्ट होइछ जे लोकनि अपन पुरान आदर्शवादी गणराज्यक सिद्धांतक परित्याग क चुकल छलाह। इहो संभव अछि जे जखन अजातशत्रुक हाथे वो पराजित भेलाह तखन वैशालीक पुरान प्रतिष्ठा लुप्त भ चुकल छल आर ओहि मध्य जे महत्वाकाँक्षी राजनेता छलाह से समय पावि मौर्य साम्राज्यक पराभव देखि मगध पर आक्रमण कए अपन हारक बदला चुकौलनि आर पाटलिपुत्र पर अपन शासन स्थापित केलन्हि। गणराज्यक सिद्धांतक प्रति हुनक सहानुभूति भने रहल रहल होन्ह परञ्च वास्तविकता ई अछि गुप्त साम्राज्यक पूर्व उहो अप्रत्य्क्ष रूपें राजतंत्रात्मक पद्धतिक समर्थक भगेल छलाह आर चन्द्रगुप्त प्रथम केँ होनहार देखि अपन पुत्री सँ हुनक विवाह कराओल। मगध साम्राज्यक उत्कर्ष लिच्छवीक अहि योगदान सँ साहायता भेटलैक आर गुप्त साम्राज्यक शासन काल मे गणराज्य परम्पराक बचल खुचल अवशेष समाप्त भेल। ई एक एहिन विषय अछि जाहि दिसि विद्वानक ध्यान आकृष्ट नहि भेल छन्हि आर जाहि पर नीक जकाँ सोचल नहि गेल अछि। मिथिलाक इतिहासक दृष्टिकोणे ई एकटा अत्यंत महत्वपूर्ण शोधक विषय।
कौमुदी महोत्सव नाटक अहि पक्ष पर विशेष प्रकाश दैत अछि। अहि ग्रंथक आधार पर हम जनैत छी कल्याणवर्मनक पिता सुन्दर वर्मनक मृत्यु पाटलिपुत्रक रक्षा करैत भेलैन्ह। ओहि समय मे पाटलिपुत्र पर चन्डसेन आर लिच्छवी घेरा डालने छलाह। सुन्दर वर्मन क्षत्रिय पाटलिपुत्रक शासक छलाह। सुन्दरवर्मनक वंश केँ मगध वंश (कोटकुल) कहल गेल छैक। सुन्दरवर्मन चण्डसेन अपन कतक पुत्रक रूप मे ग्रहण केने छलाह। लिच्छवी लोकनि अहि मगध कुलक विरौधी छलाह तथापि चण्डसेन लिच्छवी राजकुमारी सँ विवाह केलहि परञ्च ताहि वीच बुराढी मे सुन्दरवर्मन केँ एकटा पुत्र उत्पन्न भेलन्हि जाहि दुआरे राजगद्दी पर चण्डसेनक अधिकार पर प्रश्नसूचक चेन्ह लागि गेलहि। मगधकुल होइतहुँ चण्डसेन पाटलिपुत्र पर अपन घेरा डललन्हि आर राजधानी कुसुमपुर केँ चारूकात सँ घेर लेलन्हि। अहिकाज मे हुनका अपन सासुरक लोग (लिच्छवी) सब सँ बड्ड साहायता भेटलन्हि आर वो विजयी भए मगध पर अपन राज्यक स्थापना केलन्हि। सुन्दरवर्मनक अपन पुत्र कल्याणवर्मन अपन प्रधानमंत्री मंत्रगुप्त आर सेनापति कुँजरक संग मिलि मगध राज्य केँ बचेबाक अथक प्रयत्न केलन्हि। अहिवीच मगध राज्यक सीमा पररूबर आर पुलिन्द जातिक लोग विद्रोह क देलैन्ह आर चण्डसेन हुनका लोकनि केँ नियंत्रण मे अनबाक हेतु पाटलिपुत्र छोडि केँ बहरेला। ई विद्रोह मंत्रगुप्तक मंत्रणाक फल छल। चण्डसेनक अनुपस्थिति मे मंत्रगुप्त नगर परिषदक सदस्यक संग मंत्रणा केलन्हि आर कल्याणवर्मनक हेतु मार्ग प्रशस्त सेहो। कल्याणवर्मन तुरंत पाटलिपुत्र बजाओल गेल आर हुनका राजगद्दी पर बैसाओल गेल। सुरसेन आर मथुरा तथा यादवक संग मित्रताक सम्बन्ध स्थापित भेल। मथुराक राजकुमारी कीर्तिमति सँ कल्याणवर्मनक विवाह भेल।
स्वर्गीय काशी प्रसाद जायसवालक कथन छन्हि जे इयैह चण्डसेन चन्द्रगुप्त प्रथम छलाह आर लिच्छवीक संग हुनक विवाह भेल छलैन्ह। वनस्फर (कनिष्कक राज्यपाल) क समय मे लिच्छवी लोकनि वैशाली दिसिस चल आएल छलाह परञ्च कनिष्कक अवसान भेला पर वो पुनः पाटलिपुत्रक सीमाधरि अपन अधिकार बढा लेने छलाह। लिच्छवी लोकनिक प्रोत्साहने पर चण्डसेन अपन कृत्रिम पिताक विरूद्ध मे विरोध कएने छलाह। लिच्छवी लोकनि केँ ई पसिन्न नहि छलन्हि जे कल्याणवर्मन मगधक गद्दी पर रहैथ। कल्याणवर्मन केँ भगेबाक प्रयास भेल –कल्याणवर्मन जे मगध मे बजा केँ गद्दी पर बैसाओल गेल छलाह ताहि उत्सवक हेतु वो कौमुदी महोत्सव मनौने छलहि आर ओहि घटना सँ प्रेरित भए कवियत्रि किशोरिका वज्जिका, कौमुदीमहोत्सव नामक नाटकक रचना केलन्हि। अहि मे लिच्छवी केँ म्लेच्छ आर चण्डसेन केँ कारस्कर कहल गेल छैक। चण्डसेनक विवाह लिच्छवी सँ भेला उत्तर वो क्ल्याणवर्मन केँ पराजित करबा मे एवं पुलिन्द एवं शवर लोकनिक विद्रोह केँ दबेबा मे समर्थ भेलाह आर पाटलिपुत्र मे एक नव राजवंशक स्थापना मे सेहो। प्रयाग प्रशस्तिक कोट कुल केँ जायसवाल अहि मगध कुल सँ मिलबैत छथि।
कौमुदी महोत्सवक घटनाक प्रामाणिकताक लकए विद्वान लोकनि मे बड्ड विभेद छन्हि। चन्द्रगुप्तक पिता च्पटोत चकगुप्त स्वंय राजा छलाह परञ्च कौमुदी महोत्सव मे चण्डसेन केँ हटेबाक उल्लेख अछि। दोसर गप्प इहो अछि जे ओहि काल मे मगध पर लिच्छवीक प्रधानता छल। जखन गुप्तवंशक उत्थान होइत छलैक तखन पाटलिपुत्र धरि लिच्छवी लोकनि अपन प्रसारक चुनल छलाह। ताहि काल मे कहल जाइत अछि जे मगध मे कोनो क्षत्रिय वंशक शासन छल जकरा उखाडबाक लेल दक्षिण – पश्चिम सँ गुप्त लोकनि बढल अवैत छलाह आर एम्हर पूव – उत्तर दिसि सँ लिच्छवी लोकनि। एवं प्रकारे राजनैतिक दृष्टिये गुप्त आर लिच्छवी दुनुक सम्मिलित उद्धेश्य छल मगधक क्षत्रिय राजवंश केँ अंत करबाक। एहना स्थिति मे दुनुक बीच वैवाहिक सम्बन्धक स्थापना तत्कालीन मान्य राजनितिक परिकल्पनाक प्रमुख अंग छल आर तैं ई कोनो अस्वाभाविक बात नहि बुझाइत अछि। गुप्तक पूर्वक स्थिति पाटलिपुत्र मे कि छल से निश्चित रूपे कहब अंसभव। किछु गोट एक मत छैन्ह जे प्राक् – गुप्त काल मे मगध मे शक– सीथियन लोकनिक शासन छल परञ्च जायसवाल अहि बात केँ नहि मानैत छथि आर हुनक विश्वास छैन्ह जे वर्मन लोकनिक शासन ताहि दिन (कौमुदी महोत्सवक अनुसार) मे मगध मे छलैन्ह। वर्मन लोकनि केँ किछु गोटए आन्ध्रक वंशज सेहो मनैत छथि।
लिच्छवीक संग गुप्तक वैवाहिक सम्बन्ध प्राचीन भारतीय इतिहासक एकटा महत्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि आर एकरे फले गुप्त साम्राज्यक उत्कर्ष संभव भेल। लिच्छवी आर मगधक अहि सम्बन्ध सँ दू राज्यक मिलन भेलैक आर गुप्त साम्राज्यक नींव पडलैक। गुप्त अभिलेख मे जाहि ढँगे लिच्छवी केँ महत्व देल गेल छैक ताहि सँ प्रामाणित होइत अछि जे तखन धरि लिच्छवीक महत्व घटल नहि छलैक। इंठीक जे अहि वैवाहिक सम्बन्धक बाद आर गुप्त साम्राज्यक स्थापनाक संगहि गणराज्यक अवसान भगेलैक मुदा लिच्छवी आर वैशाली तइयो इतिहास मे जीवित रहल। गुप्त साम्राज्यक पतन पछाति विदेह – वैशालीक प्राचीन गणराज्यक गौरव समाप्त भगेल आर परञ्च दुनुक नाम इतिहास मे अमर रहल। फाहियान, हियुएन संग, इत्सिंग, सूंगयुन आदि चीनी यात्री लोकनि एतए एलाह आर अहिठामक वैभव केँ देखि आश्चर्य चकित भए गेलाह। ६३५ मे जखन हियुएन संग एते आएल छलाह तखन वैशाली पतनोन्मुख छल। प्राचीन अवशेष मात्र लोकक मोन मे सुरक्षित छल। एतेक बादो वैशालीक प्रतिष्ठा विदेशो मे बनल छल तकर सब सँ पैघ प्रमाण ई अछि ७६९ ई. मे अभकान (बर्मा)क चन्द्रवंशक शासक ओतए वैशाली नामक एकटा नगर बसौने छलाह। करीब २०० वर्ष धरि ई बौद्ध धर्मक एकटा प्रधान केन्द्र बनल छल।इयैह स्थान आव वेत्थाली नामे प्रसिद्ध अछि। ई अखन अम्याव जिला मे अछि। बर्मा परम्परा मे एकटा कथा सुरक्षित अछि जाहि मे कहल गेल अछि जे वर्माक राजा अनिरूद्ध (१०४४ –१०६६) वैशालीक एकटा राजकुमारी सँ विवाह केने छल आर ओकर पुत्र जे वर्माक राजा भेलैक से बड्ड नामी आर प्रतापी भेलैक।
चीनी यात्री आर वैशाली : - फाहियानक यात्रा विवरण सँ वैशालीक महत्वक पता लगइयै। वैशाली बौद्ध धर्मक प्रधान केन्द्र छल आर तैं चीनी यात्री एते अवैत छलाह। अहि ठाम बुद्ध अपन परिनिर्वानक घोषणा कएने छलाह। षष्ठम शताब्दी मे दोसर चीनी यात्री वांग – हियुएन सी दुइ वेर वैशाली आएल छलाह आर वो अपन दोसर यात्रा मे बौद्ध महात्मा सब केँ ओढन –पहिरन दान मे देने छलथिन्ह। ओहि शताब्दी तेसर चीनी यात्री सुंग – युन सेहो आएल छलाह। हुनका द्वारा वर्णित बात मे ४० टा देश सबहिक नाम अछि जाहि मे टी. एल. लो (Tiel – Lo) नामक एक स्थान छैक जकरा किछु गोटए तिरहुत मनैत छथि। सुंग – युनक अनुसारे अहि प्रदेश पर हूण लोकनिक आधिपत्य छल। सुंग – युनक अहि विवरणक समर्थन आन कोनो साधन सँ नहि होइछ आर तिरहुत पर हूण साम्राज्यक प्रभावक कोनो टा प्रमाण एखन धरि नहि भेटल अछि तैं Tiel – Lo के मानबा मे संदेहक गुंजाइश बनल अछि। हियुएन संग सेहो तिरहुत आएल छलाह। वो अशोक द्वारा निर्मित स्तूपक उल्लेख काजे छथि। हुनक विवरण सँ इहो ज्ञात होइछ जे हुनका समय तिरहुत पर हर्षवर्धनक आधिपत्य छल आर हुनक‘पाँच भारत’ मे तिरहुत केँ एकटा प्रमुख स्थान प्राप्त छलैक। [ हर्षक मृत्युक पछाति वांग –हियुएन – सी नामक एकटा शिष्टमंडलक नेता बनि केँ आएल छलाह आर हुनका तिरहुतक गवर्नर अरूणाश्व सँ युद्ध भेल छलैन्ह जकर विवरण यथास्थान देल जाएत। सातम शताब्दी मेइत्सिंग नामक एकटा आर चीनी यात्री तिरहुत आएल छलाह। चीनी यात्री लोकनिक लेख सँ ई स्पष्ट होइछ जे उत्तर विहार मे किछु एहेन महत्वपूर्ण धार्मिक केन्द्र छल जतए चीनी यात्री लोकनि अपन श्रद्धा प्रदर्शित करबाक हेतु जाइत छलाह। अहि सब सिन् – चे मंदिर सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्र छल जाहिठाम निम्नलिखित यात्री आएल छलाह –
____ i) हेन – चिउ (प्रकाशमति) ‘ सिनचे’ मे बहुत दिन धरि रहि नेपाल आर
तिब्बत बाटे घुरल छलाह।
____ ii) ताओ – हि (श्री देव) कोशी प्रांत मे रहैत छलाह।
____ iii) सिन – चिउ (चरित वर्मा) सिन् – चे मंदिर मे रहैत छलाह।
____ iv) चिंग – हिंग (प्रज्ञादेव) सिन् – चे मंदिरक निरीक्षण केने छलाह।
____ v) ताँग ने – वैशाली आर कोशी देशक यात्रा केने छलाह।
____ vi) ह्वीन – लुन (प्रज्ञावर्मा) सिन् – चे मंदिर मे आएल छलाह।
सिन् – चे मंदिरक वास्तविक स्थलक जानकारी अद्यावधि प्राप्त नहि अछि। परञ्च ई मंदिर छल कतहु तिरहुत मे – वैशाली आर कोशी प्रदेशक मध्य। ई निश्चय एकटा प्रसिद्ध बौद्ध केन्द्र रहल होएत। सुदुर पूर्वक यात्री लोकनि अहिठाम एकत्रित होएत छलाह आर धार्मिक उद्देश्यक पूर्तिक हेतु एतए रहितो छलाह। प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्रक हिसाबे सेहो ई स्थान प्रसिद्ध रहल होएत।






अध्याय – ६
३२० ई. सँ १०९७ ई. धरिक
मिथिलाक राजनैतिक इतिहास

गुप्तवंशक उत्थान भारतीय इतिहास मे एकटा महत्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि। मिथिलाक हेतु एकर महत्व अहि लेल बढि़ जाइत छैक कि मिथिलाक वैशालीक राजकुमारीक संग विवाह भेला उत्तरे चन्द्रगुप्त प्रथम साम्राज्य निर्माण करबा मे सफल भेलाह। दोसर बात इहो जे अहि वैवाहिक सम्बन्धक बाद वैशालीक प्राचीन गणराज्यक परम्परा सेहो संभवतः समाप्त भगेल आर वैशाली आव पूर्ण रूपेण मगध साम्राज्य एकटा प्रमुख अंग बनि गेल। लिच्छवीक सम्बन्ध जतवा जे परिकल्पना भसकइयै तकर विवेचन हमरा लोकनि पूर्वहिं क चुकल छी आर ओहि सँ इहो स्पष्ट भेल अछि जे कोनो ने कोनो प्रकारे गुप्त साम्राज्यक उत्कर्षक पूर्वहिं सँ लिच्छवी आर पाटलिपुत्रक बीच घनिष्ट संबध छल। जँ लिच्छवीक कोनो महत्व नहि रहैत तँ चन्द्रगुप्त प्रथम हुनका सब संग वैवाहिक सम्बन्ध स्थापिते कियैक करितैथि। गुप्त लोकनिक जे साम्राज्य विजयक सूची भेटैत अछि ताहि मे वैशालीक नाम नहि अछि यद्धपि नेपालक नाम अछि आर तैं आधार पर ई अनुमान लगायब युक्तिसंगत बुझि पड़इयै जे वैशाली तँ प्रारंभहिं सँ हुनका लोकनिक साम्राज्यक अंग छल। वैशालीक शक्ति हुनका लोकनिक साम्राज्य निर्माण मे सहायक भेलन्हि। पुराण मे वर्णित क्षेत्र मे वैशालीक नाम नहि अछि –
“ अनु–गंगा–प्रयागंध साकेतम् मगधोस्तथा
एतान जनपदान सर्व्वान् भोक्षयंते गुप्तवंशजाः॥
पतंजलिक अहि प्रकार एकटा वाक्य तुलनाकरबाक योग्य अछि –
“ अनु गंगे–हस्तिनापुरम् –
अनुगंगे वाराणसी;
अनु शोणम् पाटलिपुत्रम्” –
समुद्रगुप्तक प्रयाग प्रशस्ति मे सेहो वैशालीक उल्लेख नहि करब अहि तथ्यक समर्थन करैत अछि जे वैशालीक नियम करबाक आवश्यकता गुप्तलोकनिक हेतु आवश्यक नहि छल कारण ई तँ गुप्तलोकनिक अपन छलैन्हे आर कुमार देवीक जे महत्व सिक्का आदि मे भेटल छैन्ह सेहो अहि बात केँ पुष्ट करइयै। समुद्रगुप्त केँ ‘सर्व राजोच्छेत्ता’कहल गेल छैन्ह।
वैशालीक प्रधानताक प्रमुख कारण इयैह छल जे कुमार देवी सँ विवाह केला उत्तरे गुप्त लोकनि लिच्छवीक साहायता सँ पाटलिपुत्र पर अधिकार करबा मे समर्थ भेल छलाह। कुमार देवीक दिसि सँ हुनका लोकनि केँ वैशाली राज्य भेटल छलैन्ह। समस्त तिरहुत गुप्त साम्राज्यक एकटा प्रमुख केन्द्र छल आर वैशाली ओहि प्रांतीय राज्यक राजधानी। वैशालीक महत्व तँ अहु सँ सिद्ध होइछ जे अहिठामक राज्यपाल युवराजे होइत छलाह आर गोविन्द गुप्त (गोविन्द गुप्त) युवराज अहिठामक राज्यपाल छलाह तकर प्रमाण अछि वैशाली सँ प्राप्त अभिलेख। गुप्तलेख मे अहि क्षेत्र तीरभुक्ति कहल गेल छैक।‘लिच्छवी दौहित्र’ कहि केँ अपना केँ गौरवांवित बुझनिहार समुद्रगुप्तक उक्ति सँ एतवा धरि स्पष्ट अछि जे ताहि दिन मे लिच्छवीक प्रतिष्ठा आर प्रभुत्व दुनु बनल हेतैन्ह आर वैवाहिक सम्बन्धक कारणे ई दुनु चीज गुप्तलोकनि केँ स्वयंमेव उपलब्ध भेल होयतन्हि। मौर्य साम्राज्यक पछाति जे विकेन्द्री करणक प्रवृत्ति बढल आर मगध पर बरोबरि आक्रमणक ताँता लागल रहल ताहि सँ लाभ उठाय लिच्छवी लोकनि अपन पुरान गौरव केँ पुर्नस्थापित करबा मे सफल भेलाह आर अपन सीमा केँ नेपाल सँ तिब्बत धरि बढौ़लन्हि आर क्रमेण पाटलिपुत्रक सीमा धरि सेहो। जँ से बात नहि रहैत तँ चन्द्रगुप्त प्रथम अपन रानीक नामे सिक्का कियैक बनावतैथ अथवा समुद्रगुप्त अपना केँ लिच्छवी दौहित्र कहबा कियैक गौरवांवित बुझितैथ। वैशालीक उत्खनन सँ प्राप्त एकटा मोहर पर लिखल अछि – “महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त पत्नी महादेवी श्री ध्रुवस्वामिनी” –
ओहि सँ प्राप्त सामग्रीक आधार पर ई बुझबा मे अवइयै जे तिरहुत प्रांतीय शासनक एकटा प्रमुख केन्द्र छल आर से तीरभुक्तिक विषय मे अनेक सामग्री भेटल अछि जाहि सँ ओत्तुका तत्कालीन शासन पद्धति एवं समाज व्यवस्थाक सम्बन्ध मे ज्ञान प्राप्त होइछ। प्रांतीय आर नगर शासनक एहेन सुन्दर चित्रण आनठाम भेटब अंसभव। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्यक समय मे अहिठामक राज्यपाल छलाह युवराज गोविन्दगुप्त। गुप्तयुग मे मिथिलाक सीमा पश्चिम मे श्रावस्ती भुक्तिक किछु अंश सेहो मिथिलाक अंतर्गत रहल होएत जतए करण कायस्थ लोकनि “दत्त” पदवीधारी कैक पुस्त धरि राज्यपालक पद पर रहला आर जनिक अभिलेख सम्प्रति उपलब्ध अछि। मिथिलाक सीमा ताहि दिन मे पश्चिम मे श्रावस्ती भुक्ति, उत्तर मे नेपाल, दक्षिण मे श्रीनगर भुक्ति आर पूव मे पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिक सीमा सँ मिलैत जुलैत छल आर ई गुप्त शासनक एकटा प्रधान केन्द्र छल आर एकर महत्व एतेक छलैक जे राज्यवंशक लोक स्वयं एकरा अपना चार्ज मे रखैत छलाह। गुप्त साम्राज्यक शासन पद्धतिक अध्ययन बसाढक उत्खनन सँ प्राप्त सामग्रीक बिनु संभव नहि छल। अखनो ओहि मे कतेक रास एहनो शब्द अछि जकर अर्थ स्पष्ट नहि भरहल अछि।
निम्नलिखित प्रशासनिक शब्दावली ओहिठाम सँ प्राप्त अछि –
____ i.) उपरिक
____ ii.) महाप्रतिहार
____ iii.) तलवर
____ iv.) महादण्डनायक
____ v.) कुमारामात्य
____ vi.) विनय स्थिति स्थापक
____ vii.) मद्धाश्वपति
____ viii.) युवराजपाद्धीय कुमारामात्याधिकरण
____ ix.) रणभाण्डागाराधिकरण
____ x.) बलाधिकरण
____ xi.) दण्डपाशाधिकरण
____ xii.) तीरभुक्तौ विनयस्थिति स्थापकाधिकरण
____ xiii) वैशाल्याधिष्ठानाधिकरण
____ xiv.) श्री परमभटारक पादीय कुमारामात्याधिकरण
____ xv.) तीरभुक्तुष परिकाधिकरण –
वैशाली सँ प्राप्त अवशेष सबहिक आधार पर ई प्रामाणिक रूपें कहल जा सकइयै जे गुप्तयुग मे अहि क्षेत्र मे एकटा सुसंगठित शासन प्रणालीक स्थापना भेल छल। दामोदर पुर सँ प्राप्त ताम्रलेख अहिबातक साक्षी अछि। भुक्ति ताहि दिन मे प्रांत अथवा प्रमण्डलक द्धोतक छ्ल। अधिकरण शब्द सचिवालयक द्धोतक थिक आर प्रत्येक विभाग केँ अपन–अपन अधिकरण होइत छलैक जेना कि उपरोक्त विवरण सँ स्पष्ट अछि। प्रांत मे प्रसिद्ध होइत छलाह राज्यपाल, सेनापति, प्रतिहार आर अन्यान्य पदाधिकारी। युवराजक अधीन सेहो मंत्री लोकनि रहैत छलथिन्ह आर कोषाध्यक्ष, युद्धविभाग, न्याय विभाग, नियंत्रण विभाग आदिक पदाधिकारी एवं कर्मचारी लोकनि सेहो प्रांतीय सचिवालय मे रहैत छलाह। स्थानीय शासनक दृष्टिकोणे वैशालीक अपन अलग अधिष्ठान स्थल आर ओकर सचिवालय – कार्यालय सेहो फराके रहैत छ्ल। साम्राज्यक शासन यंत्रक अपन मुख्यालय होइत छलैक जे प्रांतीय कार्यालय होइत छलैक। स्थानीय कार्यालय होएब अहुलेल आवश्यक छल कि ओहि संस्था केँ स्थानीय मामला पर विचार करए पडै़त छलैक। वैशाली एकटा प्रसिद्ध व्यापारक केन्द्र सेहो छल आर व्यापारी लोकनिक सेहो अपन संगठन छलैन्ह जे “श्रेष्ठी–सार्थवाह–कुलिक–निगम” शब्द सँ ज्ञात होइछ। प्रांतीय शासन विभागक अतिरिक्त अहिठामक स्थानीय शासन सेहो वेस संगठित छल जेना कि उपयुक्त सूची सँ ज्ञात होइछ। वैशालीक नगर शासन व्यवस्था सुन्दर छल।
उदानकूप परिषदक उल्लेख सँ स्थानीय शासनक बोध होइछ। वैशालीक व्यावसायिक संगठन, निगम, श्रेणी, सार्थवाह, कुलिक आदि सेहो अपन मोहर रखैत छलाह। बैंक प्रणालीक नीक जकाँ वैशाली मे संगठित छल– ‘कुलिक’ शब्द एकर संकेत थिक।‘प्रथम कुलिक’क उल्लेख सेहो कैकटा मोहर पर भेटैत अछि। वसाढ़, भीठ, बंगाल आदि स्थानक उत्खनन सँ प्राप्त सामग्रीक आधार पर ई कहल जा सकइयै जे गुप्तकालीन शासन–व्यवस्थाक स्वरूप एकरूपता छल आर एकर श्रेय गुप्त सम्राट लोकनि केँ छलैन्ह। ओना वैशाली तँ अतिप्राचीन काल सँ प्रशासनक प्रधान केन्द्र बनल आर ओहिठाम गणतांत्रिक परम्पराक प्रभाव गुप्तयुगक शासन संगठन मे सेहो देखल जा सकइयै। सम्तुन्नत आर्थिक जीवनक हेतु सुगठित शासन प्रणाली आवश्यक बुझल जाइत अछि आर वैशाली कैं जे बैंकक प्रणाली सेहो संगठित छल से उपरोक्त कथन केँ आर समर्थन दैत अछि। श्रेष्ठी, कुलिक निगम आदिक अलग–अलग सभापति होइत छलैक आर ओहि मे जे श्रेष्ठ होइत छलहि हुनका “प्रथम”क विशेष सँ विभूषित कैल जाइत छलैन्ह। व्यापारी आर बैंकर लोकनि अपन पत्राचार आर कारोबार मे अपन–अपन मोहरक व्यवहार करैत छलाह। ओहिठाम बहुत मुद्रा पर श्रेष्ठी निगमस्य सेहो उल्लिखित अछि आर बहुतो गोटएक नाम सेहो ओहि मुद्रा सब सँ भेटैत अछि। जेना उदाहरणार्थ निम्नलिखित नाम देल जा सकइयै–हरि, उमाभहा, नागसिंह,सालिभद्र, धनहरि, उमापलित, वर्ग्ग, उग्रसेन, कृष्णदत्त, सुखित, नागदत्त, गोण्ड, नन्द, वर्म्म, गौरिदास, - ई सब केओ कुलिक छलाह। सार्थवाह मे डोड्डकक नाम आओर श्रेष्ठी मे षष्ठिदत्त, आर श्रीदासक नामक उल्लेख अछि। एहने एक मुद्रा बेगूसराय सँ प्राप्त भेल अछि जाहि पर “सुहमाकस्य” आर “श्री समुद्र” लिखल अछि। पुण्ड्रवर्धन भुक्तिक ओहि क्षेत्र मे जे तीरभुक्तिक भौगोलिक सीमाक समीप पडै़त छल ताहि पर कैक पुस्त धरि जे ‘दत्त’ करण (कायस्थ लोकनि) राज्यपाल छलाह तकर प्रमाण गुप्त अभिलेख मे अछि। चिरातदत्त उपरिक छलाह। प्रांतीय शासनक हेतु जे बोर्ड होइत छल ताहि मे श्रेष्ठी, निगम, कुलिक, सार्थवाहक सभ एकटा प्रतिनिधिक अतिरिक्त ओहि मे प्रथम कायस्थ सेहो रहैत छलाह। उपरिकक पदक वंशानुगत हैव अहि बातक संकेत दैत अछि जे ताहि दिन मे सामंतवादी प्रवृत्तिक विकास भचुकल छल। पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिक सीमा हिमालय मे वाराह क्षेत्र धरि पसरल छल आर ओहिठाम कोकामुख स्वामी नामक एकटा प्रधान तीर्थ सेहो छल–तैं अहि क्षेत्र केँ मिथिलाक क्षेत्र मानव स्वाभाविके कारण ई मिथिलाक भौगोलिक सीमा मे पड़इयै। गुप्त युग धरि मिथिला गुप्त साम्राज्यक एकटा प्रमुख अंग बनल रहल।
गुप्त साम्राज्यक अंतिम दिन मे मिथिलाक इतिहास मे पुनः एकटा अनिश्चितताक स्थिति आवि गेल। गुप्त लोकनिक एकटा प्रांतीय राज्यपाल यशोधर्मन अहि स्थिति सँ लाभ उठाए अपन अधिकारक विस्तार मे लागि गेलाह आर लौहित्य (असम) धरिक क्षेत्र केँ जीत केँ अपना अधीन मे केलन्हि। अहि क्रम मे वो पुण्ड्रवर्द्धनक उपरिक दत्तलोकनि केँ पराजित कए ओहु क्षेत्र पर अपन अधिकार बढौलन्हि आर दत्त लोकनिक पुस्तैनी गवर्नरी एकर बाद समाप्त भ गेलैन्ह। अहि आधार पर हम ई अनुमान लगा सकैत छी जे किछु दिनक हेतु यशोधर्मनक प्रभुत्व मिथिलो मे अवश्य रहल हेतैन्ह। ५३३ क मंदसोर अभिलेख सँ हमरा लोकनि केँ उपरोक्त बातक ज्ञान होइछ। यशोधर्मन हूण लोकनि केँ पराजित कए यश कें अर्जन कए ने छलाह आर तैं भारत मे ताहि दिन मे हुनक प्रतिष्ठा विशेष छलैन्ह। परञ्च हुनक विजयाभियान बहुत दिन धरि नहि टिकलैन्ह आर शीघ्रहिं हुनक राज्य समाप्त भ गेलैन्ह। मिथिलाक हेतु अनिश्चितताक अवस्था बनले रहल।
यशोधर्मन ओम्हर अपन डफली बजा रहल छलाह आर एम्हर पूब मे उत्तर गुप्त लोकनि गुप्त साम्राज्यक पतन (५५४ ई.) सँ लाभ उठाए अपन स्थायित्व केँ सुरक्षित करबा मे एवं मजबूत करबा मे लागि गेल छलाह। विहार मे ओहि युग मे मौरबरी लोकनि सेहो अपन अधिकार जमेबाक चेष्टा मे लागल छलाह। अहि अनिश्चितताक स्थिति सँ तँ सब केओ लाभ उठबे चाहिते छलाह आर तैं चालूम्य कीर्तिवर्मन सेहो अंग, मगध, आर वंग पर आक्रमण केलन्हि। उत्तरगुप्त, मौरवरी आर अन्यान्य शासकक वीच ताहि दिन आधिपत्यक हेतु संघर्ष चलि रहल छल। जीवित गुप्त अपन प्रायास मे सफल भेल होयताह से अन्दाज लगाओल जा सकइयै। मगधक शासक महासेन गुप्त असम धरि अपन अधिकार क्षेत्रक विकास केलन्हि आर तैं ई अनुमान लगाओल जाइत अछि जे बो मिथिला पर सेहो अपन आधिपत्य कायम केने हेताह। ताहि दिनक स्थिति ई छल कि जहाँ कोनो एक राज्य कमजोर भेल कि दोसर ओकरा पर टुटि पडै़त छल आर ओकरा अपना अधीन क लैत छल। संभव अछि जे मौरवरी लोकनि अपन साम्राज्य विकासक क्रम मे मिथिलो केँ अपना अधीन मे क लेने होथि। कटरा (मुजफ्फरपुर) सँ जीवगुप्तक एकटा अभिलेख भेटल अछि परञ्च ओहि सँ राजनैतिक इतिहास पर तत्काल कोनो आलोक नहि पडि़ रहल अछि। कामरूपक वर्मन वंशक शासक लोकनि सेहो मिथिलाक पूर्वी क्षेत्र पूर्णियाँ पर कैक पुस्त सँ अधिकार जमा लेने छलाह। गुप्त साम्राज्यक पतनक बाद मिथिलाक इतिहास अंधकारमय भजाइत अछि आर कोनो संगठित एवं नियोजित इतिहासक संकेत कतहु सँ नहि भेटइत अछि। चारूकात जे राज्य विस्तारक संघर्ष चलि रहल छल ताहि मे मिथिला एकटा प्रमुख शिकार छल आर विभिन्न महत्वाकाँक्षी राजा लोकनि शिकारीक काज करैत छलाह।
हर्षवर्द्धनक अम्ल मे मिथिला हुनक साम्राज्यक अंश छल अहि मे कोनो सन्देह नहि। हर्षक समय धरि अबैत–अबैत राजनीतिक क्षेत्र मे पाटलिपुत्रक स्थान कन्नौज ल लेने छल आर पाटलिपुत्रक महिमा घटि चुकल छल। हर्षक राजधानी छल कन्नौज जकरा महोदय श्री सेहो कहल जाइत छलैक आर जकर महिमाक विवरण चीनी यात्री हियुएन संग प्रस्तुत कएने छथि। हर्षक पूर्व शशाँक मिथिला पर शासन केने होथि से संभव कारण ताहिदिन मे शंशाक पश्चिम मे अपन आधिपत्य बढे़बाक हेतु सब तरहे प्रयत्नशील छलाह। प्रभाकर वर्द्धनक पुत्र राज्यवर्द्धनक हत्या बंगालक शशाँकक हाथे भेल छलैन्ह।
शासक भेला उत्तर हर्ष अपन राज्यवर्द्धनक मृत्युक बदला लेबाक हेतु कटिबद्ध छलाह आर ओहि उद्देश्य सँ प्रेरित भए वो अपन सैनिक अभियानक श्री गणेश केलन्हि। शशाँक पराजित भेलाह आर अपना सन मुँह बना केँ अपन पराजयक घूंट–पीवैत रहलाह। हर्ष लगातार ६ वर्ष धरि अपन अभियान जारी रखलन्हि आर उत्तर भारतक विशिष्ट भाग पर अपन अधिकार जमौलन्हि। चीनी यात्रीक अनुसार वो ‘पाँचो भारत’(जाहि मे मिथिला सेहो सम्मिलित छल) जीतिकए उत्तर भारत मे स्थायित्व अनलन्हि–‘पाँचो भारत’ भेल स्वराष्ट्र (पंजाब), कान्यकुंज , मिथिला, गौड़, तथा उत्कल। ६४१ ई. मे वो मगध पर सेहो अपन आधिपत्य कायम केलन्हि आर भारतक चारूकात राजा केँ सैतलन्हि। गुप्त साम्राज्य भेला पर जे एकटा अनिशितताक स्थिति उत्पन्न भगेल छल तकरा हर्ष समाप्त केलन्हि आर समस्त उत्तर भारत पर एकटा स्थायी शासनक रूपरेखा प्रस्तुत केलन्हि। वो समस्त भारत केँ पुनः एकछत्र शासनक अधीन करए चाहैत छलाह आर हुनक दुश्मन पुलकेशिन द्वितीय हुनका“सकलोतरापथस्वामी” कहने छथिन्ह। हर्षक शासन तँ बहुत दिन धरि नहि रहल तथापि हर्षक महत्व अहि लेल अछि जे हर्ष अपना समय मे एकटा स्थायित्वक रूपरेखा प्रस्तुत कएने छलाह जे हुनका परोक्ष भेला पर समाप्त भगेल। हर्षक समय मे भारत मे सामंतवादक पूर्ण विकास भगेल छल आर हर्षक शासन प्रणाली पर सेहो एकर प्रभाव देखबा मे अवइयै। हियुएन संग सेहो अहि बातक साक्षी छथि। हर्ष स्वयं घुमि–घुमि केँ अपन शासनक निरीक्षण करैत छलाह आर जागीरक रूप मे अपन कर्मचारी आर सैनिक केँ वेतन दैत छलाह। शासन संगठन मे वो मौर्य आर गुप्त सँ प्रभावित छलाह आर हुनक साम्राज्य प्रांत, भुक्ति आर विषय मे विभाजित छल। तीरभुक्ति शासनक एकटा प्रधान केन्द्र छल आर हर्षक समय मे ओहिठाम अर्जुन अथवाअरूणाश्व नामक एक महत्वाकाँक्षी व्यक्ति राज्यपाल छलाह। हर्षक देहावसान भेला पर पुनः राज्य मे अराजकता पसरि गेल आर महत्वाकाँक्षी अर्जुन ओहि सँ लाभ उठाके राज्यह केँ हड़पि लेलन्हि आर स्वयं शासक बनि के बैसि गेलाह। एकर अर्थ ई होइछ जे हर्षक समय मे तीरभुक्ति एक महत्वपूर्ण प्रांत छल आर अहिठामक राज्यपालक शक्ति आन राज्यक अपेक्षा विशेष छलैक। अर्जुन (अरूणाश्व) महात्वाकाँक्षी होइतो योग्य सैनिक एवं संगठन कर्म सेहो रहल होएत आर परिस्थिति अनुकूल भेला उत्तर ओहि सँ लाभ उठौने होएत।
हर्ष अपन मृत्युक पूर्वहिं चीनक सम्राटक ओतए एकटा शिष्टमण्डल (दूत मण्डल) पठौने छलाह आर ओकरे उत्तर मे चीनक सम्राट सेहो एकटा दूतमण्डल हर्षवर्द्धनक दरबार पठौने छलाह आर ओहि दूतमण्डलक नेता छलाह वाँग–हियुएन–सी। वाँगक नेतृत्व मे जखन चीनी दूतमण्डल भारत पहुँचल तखन हर्षक मृत्यु भ चुकल छल आर अरूणाश्व समस्त राज्य केँ हड़पि केँ शासक बनि चुकल छलाह। ओहि दूतमण्डलक संग हुनक व्यवहार तँ अशोभनीय भेवे केलन्हि आर संगहि वो दूतमण्डल केँ बेइज्जत सेहो केलन्हि। वाँग भागि केँ नेपाल चलि गेलाह आर ओतए सँ तिब्बत सेहो। तिब्बत मे ताहि दिन मे शासक छलाह प्रसिद्ध श्रोंग–सान–गंपो। श्रोंग वाँग केँ १२०० चुनल तिब्बती सैनिक देलथिन्ह आर नेपाल सँ सेहो हुनका ७००० सेना भेटलन्हि। तिब्बती–नेपाली सहयोग सँ वाँग अरूणाश्व केँ पराजित कए उत्तरी बिहार अथवा तिरहुत पर अपन प्रभाव जमौलन्हि। अर्जुनक विद्रोह केँ दबाओल गेल आर वो भागबाक प्रयास केलन्हि मुदा हुनका गिरफ्तार क लेल गेल आर चीनक सम्राटक ओतए बंदीक रूप मे उपस्थित कैल गेल। कहल जाइत अछि– जे वाँगक अहि प्रायास मे कामरूपक भास्करवर्मन सेहो सहायक भेल छलथिन्ह।
ई घटना तँ ओना देखला सँ सामान्य बुझि पड़इयै परञ्च ऐतिहासिक दृष्टिकोण सँ ई एकटा महत्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि जकर संक्षिप्त विवेचन आवश्यक बुझना जाइत अछि। अर्जुन आर अरूणाश्वक सम्बन्ध मे पूर्ण जानकारी नहि अछि परञ्च वो तीरभुक्तिक राज्यपाल छलाह से निश्चित अछि आर हर्षक परोक्ष भेला पर ओहि साम्राज्यक अधिकारी सेहो भगेला। वाँगक संग अहि प्रकारक व्यवहार वो कियैक केलन्हि से बुझवा मे नहि अवइयै। वाँग स्वयं सब मिला के चारि वेर कूटनितिक काजक प्रसंग भारत आएल छलाह आर भारत विवरणक सम्बन्ध मे हुनक एकटा पोथी सेहो उपलब्ध अछि। पोथीक मूल तँ लुप्त भगेल अछि मुदा ओकर अंश केँ संकलित कए ताओचेन नामक एक व्यक्ति ओकरा सुरक्षित रखने छथि। ताँग वंशक इतिहास मे भारत पर वाँगक आक्रमणक विवरण भेटइयै जाहि मे ई कहल गेल अछि जे वाँगक दूतमण्डल पहुँचबाक किछुऐ पूर्व शिलादित्य (हर्ष) मरि चुकल छलाह आर समस्त देश मे अराजकता पसरल छल। नाफुती (तीरभुक्ति)क अरूणाश्व (ओलानाशुएन) राजगद्दी हड़पि चुकल छलाह। वाँगक दूतमण्डल केँ भगेबाक प्रयास मे वो लागल छलाह। दूतमण्डलक संग मात्र ३० टा घोड़सवार छल। वाँग कोहुना भागि केँ बचलाह।
(क्रमशः)
जगदीश मंडल
जगदीश प्रसाद मंडल (1947- )

गाम-बेरमा, तमुरिया, जिला-मधुबनी। एम.ए.।कथाकार (गामक जिनगी-कथा संग्रह), नाटककार(मिथिलाक बेटी-नाटक), उपन्यासकार(उत्थान-पतन- उपन्यास)। मार्क्सवादक गहन अध्ययन। मुदा सीलिंगसँ बचबाक लेल कम्युनिस्ट आन्दोलनमे गेनिहार लोक सभसँ भेँट भेने मोहभंग। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि।

कथा
बोनिहारिन
छोट-छीन गाम छतौनी। तीनिये जाइतिक लोक गाममे। साइये घरक बसतियो। छेहा बोनिहारक गाम। ओना पास-परोसक गामक लोक छतौनीकेँ प्रतिष्ठित गाम नहि बुझैत। किऐक तँ ओहि गाम सभहक लोकक विचारे प्रतिष्ठित गाम ओ होइत, जहिमे छत्तीसो जाइतिक लोक बसैत। जहिसँ समाजक सभ तरहक जरुरतक पूर्ति गामेमे होइत। मुदा से छतौनीमे नहि। तेँ, छतौनी जमाबंदी गाम भऽ सकैत अछि, प्रतिष्ठित नहि। मुदा एहि विचारकेँ छतौनीक लोक मानए ले तइयारे नहि। छतौनीक लोकक कहब जे जहियासँ हमर गाम बनल, तहियासँ ने कहियो अपनामे झगड़ा-झंझट भेलि आ ने माइर-पीटि। जहिसँ ने कहियो कियो कोट-कचहरी देखलक आ ने थाना-बहाना। ततबे नहि, तीनि जाइतिक लोक रहितहुँ सभ मिलि एकठाम वैसि खेबो-पीबो करै छी आ तीनि जाइतिक तीनिू देवस्थानोमे पूजो-पाठ आ परसादियो खाइ छी। सभ जाइतिक लोक संगे-संग कमेबो करै छी आ एक-दोसराकेँ, मौका-मुसीबत पड़लापर, संगो पूरै छी। आन-आन गामवला हमरा गामकेँ अहि दुआरे गाम नै मानै अए जे ओ सभ बहरवैया छी, आ हमरा सभहक पूर्वज अदौसँ रहल अछि।
छतौनीक वासी, सभ दिनसँ, बोनिहारे नहि रहल अछि। पहिने ओकरो सभकेँ अपन-अपन खेत-पथार छलै। खेत-पथार गेलइ कोना? एहि संबंधमे छतौनीक बूढ़-पुरान लोकक कहब छनि जे हमरा सभहक पूर्बज, रौदीक चलैत, खेतक बाकी (मालगुजारी) राज दरभंगाकेँ समयपर नहि दऽ सकलनि, तेहिसँ ओ सभ जमीन निलामकेँ अबधिया,छपरिया हाथे बेचि लेलक। हमरा सभहक मलिकाना हक जमीनक खतम भऽ गेल। ओ अबधियो आ छपरियो राजमे नोकरी करैत छल, जे एहि इलाकामे आबि जमीनो हथिया लेलक आ मुखियो सरपंच बनिमेनजनी करैत अछि। मुदा एकटा चलाकी ओ सभ जरुर केलक जे जेना अंग्रेज आबि सत्ता हथिऔलक तेना चलि नहि गेल, बलकि मुगल जेकाँ बसि गेल।
जहियासँ देश अजाद भेलि आ सत्ता ले भोट-भाँट शुरु भेल, तहियासँ ने एक्कोटा नेता (कोनो पार्टीक) भोट मंगै ले एहि गाम आएल आ ने एक्को बेरि गैाँआ भोट खसोलक। किऐक तँ आइ धरि एहि गाममे भोटक बूथ बनबे ने कऽल। तेँ, नेतो किअए आउत? गाममे ने चरिपहिया गाड़ी चलैक रास्ता छै आ ने सार्वजनिक जगह (स्कूल, अस्पताल)। जहिठाम भाषण-भुषण हैत। जहि गाममे छतौनीक बूथ बनैत ओहि गामक लोक सभ छतौनियोक भोट खसा लइत। छतौनीक लोकक जिनगियो छोट। ने पढ़ै-लिखैक झंझट, ने चोर-चहारक झंझट, ने रोग-व्याधिक झंझट। किऐक तँ गामक सभ वुझैत जे जेकरा कपारमे विद्या लिखल रहत, ओ डूबियो-मरिकेँ पढ़िये लेत। चोर-चहार ऐवे कथी ले करत। रोग-वियाधिक लेल पूजो-पाठ आ झाड़ो-फूक अछिये। तहूसँ पैघ बात जे जे एहि धरतीपर रहै ले आएल अछि ओ जीवे करत। पाइन, पाथर, ठनका ओकर की बिगाड़ि लेतइ। आ जे नञि रहैबला अछि ओकरा फूलोक गाछपर साँप काटि लेतइ आ मरि जायत। तेँ, की, छतौनीबलाकेँ भगवानपर बिसवास नै छै? जरुर छै। जँ से नञि रहितै ते देवस्थानमे, सालमे एक बेरि, एत्ते धुमधामसँ पूजा किअए करै अए? उपास किअए करै अए? दसनमो स्थान (देवस्थान) आ अपनो-अपनो घरमे गोसाउनिक पीड़ी किअए बनौने अछि? साले-साल कामौर लऽ कऽ बैजनाथ किअए जाइ अए?
सभ अभाव रहितहुँ छतौनीक लोक हँसी-खुशीसँ जीवन बितबैत अछि। अगर जँ कियो गाममे मरैत वा साँप-ताप कटैत वा आइग-छाइ लगैत तँ सभ कियो दासो-दास भऽ लगि जाइत। पचास वर्खक मरनी सेहो तेहिमेसँ एक। जे अपना आखिसँ अपन पति, बेटा आ पुतोहूकेँ गाछक तरमे खून बोकरिकेँ मरैत देखने। आइ वेचारी पाँच बर्खक पोता आ आठ बर्खक पोतीक बीच आशाक संग जीवि रहल अछि। कारी झामर एक हड्डा देह, ताड़-खजुरपर बनाओल चिड़ैक खोंता जेकाँ केश, आंगुर भरि-भरिक पीअर दाँत, फुटल धैलीक कनखा जेकाँ नाक, गाइयक आखि जेकाँ बड़का-बड़का आखि, साइयो चेफड़ी लागल साड़ी, दुरंगमनिया आंगी फटलाक बाद कहियो देहमे आंगीक नसीब नहि भेलि, बिना साया-डेढ़ियाक साड़ी पहिरने, अइह छी मरनी।
चारि साल पहिने सुबध, मनोहर आ तौनकी धान रोपए बाध गेल।
जाधरि तौनकीकेँ दोसर सन्तान नहि भेलि ताधरि मरनिये पति सुबध आ बेटा मनोहरक संग काज करै जाइति। धन रोपनी, धनकटनी, कमठाउन, रब्बी-राइ उखारै-काटै संगे जाइत। पुतोहू (तौनकी) अंगनाक काज सम्हारैत। मुदा जखन दूटा पोता-पोती भेलइ तहियासँ मरनी अंगनाक काज सम्हारै लागलि। अंगनोमे कम काज नहि। भानस-भात करब, पोता-पोती खेलाएव, खूँटा परक बाछीक सेवा करब। आने परिवार जेकाँ मरनियोक परिवार भरल-पूरल।
तीनि-तीनि जोड़ा (दस आँटीक जोड़ा) बीआ उखाड़ि सुबध आ मनोहर पटैपर टंगलक आ राड़ीक जुन्ना बना तौनकी बीआक बोझ बान्हि माथपर लऽ कदवा खेत पहुँचल। कदबा एक दिन पहिने गिरहत करा देने। तेँ तीनू गोटेक मनमे खुशी होइत जे सबेर-सकाल रोपिकेँ चलि जायव। आन दिन, कदवे दुआरे, अबेर भऽ जाइ छलै। मने-मन सुबध सोचैत जे बेरु परह अपनो जे कट्ठा भरिक खेत अछि ओहो सभ तूर मिलि कऽ हाथे-पाथे रोपि लेब। कदवामे बीआ रखि सुबध, आड़िपर बैसि, तमाकुल चुनवै लगल। मनोहर आ तौनकी खेतमे बीआ पसारै लगल। सैाँसे खेत बीओ पसरि गेलइ आ सुवधो तमाकुल खा लेलक। तीनू गोटे एक-एक आँटी खोलि खुज्जा पसारि एक-एक खुज्जा रोपै ले वामा हाथमे रखलक। पछिमसँ (आइरिक कात) तौनकी बीचमे मनोहर आ पूबसँ सुवध पाहि धेलक। एक पाँती रोपि दोसर धेलक कि पूब दिशि एक चिड़की मेघ उठैत देखलक। मेघक छोट टुकड़ी देखि ककरो मनमे पाइनिक शंका नै उठलै। कने-कने सिहकी सेहो चलै लगलै। जहिना-जहिना हवा तेज होइत जाइत तहिना-तहिना करियामेघक टुकड़ी सेहो उधिया-उधिया उपर चढ़े लगले। उपर चढ़ि-चढ़ि ओ टुकड़ी एक-दोसरमे मिलै लगल। मुदा पछिम दिशि रौद उगले। कनिये कालक बाद सुरुज झपा गेल। हबो तेज हुअए लगलै। बिजलोका चमकै लगलै। बुन्दा-बुन्दी पानि पड़ै लगलै। जते मेघ सघन होइत जाइत तते पाइनियोक बुन्न जोर पकड़ैत। संगे बिजलोको बेसिआइल जाइत। घन-घनौआ बरखा हुअए लगल। पाइनमे भीजै दुआरे तीनू गोरे, दौड़ि कऽ आमक गाछ लग पहुँचल। खेतसँ बीघे भरि हटिकेँ आमक गाछ। खूब झमटगर। चारि हाथ उपरेमे दू फेंड़ भऽ गेल। सरही आम। गाछक पँजरेमे पछिमसँ तौनकी बैसलि आ पूबसँ सुवध आ मनोहर। तौनकी साड़ी ओढ़ि दुनू हाथक मुट्ठी बान्हि काँखमे लऽ लेलक। मुदा सुवधो आ मनोहरो छुछे देहे। गमछाक मुरेठा बान्हि लेलक। मुदा तइयो,जाड़े दुनू बापूत थर-थर कपैत। नमहर-नमहर वुन्न सेहो देहपर खसै। सैाँसे देहक रुइयाँ भुलकिकेँ ठाढ़ भऽ गेलइ। मुदा की करत? कोनो उपाय नहि। पछिमो मेघ पकड़ि बरिसै लगल। जहिसँ दूर-दूर धरि बरखा हुअए लगलै। रहि-रहि कऽ मेघो गरजै आ बिजलोको चमकै। एक बेरि, खूब जोरसँ, बिजलोका चमकलै। मुदा आन बेरक चमकलहासँ बिजलोकाक रंग बदलल। आन बेरि पिरौंछ इजोत होइत जबकि एहि बेरि लाल टुह-टुह। दुरकाल समय देखि तौनकी मने-मन खैांझा भगवानकेँ कोसैत जे कोनो काजक समय होइ छै। अखैन पाइनिक कोन काज छै। जहिना तगतगर लोक सदिखन बलउमकी करैत अछि तहिना ई टिकजरौना इन्द्रो भगवान करै अए। अनेरे काजकेँ बरदा जाड़े कठुुअबै अए। लोक सभ कहै छै जे देवता-पितरकेँ बड़का-बड़का आखि होइ छै जे एक्के ठीन बैसल-बैसल सगरे दुनिया देखै अए। से आखि अखैन कतऽ चलि गेलइ। देवियो-देवता गरीबे-गुरबाकेँ जान मारै पाछु लागल रहै अए। जन-बोनिहारक काज करैक दू उखड़ाहा होइ अए। भिनसुरका आ दुपहरिया। भिनसुरका उखड़ाहामे जँ एगारहो बजे पानि भेलि वा कोनो
बाधा भेलि तँ गिरहत थोड़े बोइन देत। अगर जँ जलखै भऽ गेल रहलै तँ बड़वढ़िया नञि तँ जलखैइयो पार। यैह तँ ऐठामक चलनि छै। ई टिकजरुआ भगवान गिरहतेकेँ मदति करै छै।
जाड़सँ कपैत सुवध मनोहरकेँ कहलक- ‘बौआ, सोचै छलौ जे आन दिन रोपैन करैमे अबेर भऽ जाइ छलै जइसँ अपन काज नञि सम्हरै छलै, मुदा आइ सबेरे-सकाल रोपैन होइत तँ अपनो बाड़ीक खेत रोपि लइतौ। से सभ भगंठि गेल। कखैन पानि छुटत कखैन नै, सेहो ठीक नहि। दुनू बापूत गप-सप करिते छल कि तड़-तड़ाकेँ ठनका ओहि गाछपर खसल। जइठीनसँ दुनू डारि फुटल छलै तकरा चिड़ैत माइटमे चलि गेल। चीड़ाकेँ गाछ दुनू भाग खसल। एक फँाकक तरमे तौनकी आ दोसर फाँकक तरमे दुनू बापूत मोटका डारिक तरमे पड़ि गेल।
पाइन छुटल। सैाँसे गाममे हल्ला हुअए लगलै जे बाधमे जे आमक गाछ छलै से खसि पड़लै। भरिसक ओहीपर ठनका खसलै। एक्के-दुइये लोक देखै ले जाइ लगल। कातेमे ठाढ़ भऽ भऽ लोक देखैत। गाछोपर आ गाछक निच्चोमे (जमीनो पर) तते घोरन पसरि गेलै जे लोक गाछक भीर जाइक हिम्मते ने करैत। मुदा, जीवठ बान्हि करिया गाछक जड़ि देखै बढ़ल। घोरन तँ खूब कटै, मुदा तइयो हिम्मत कऽ करिया जड़ि लग पहुँचल। ठनकाक आगिक चेन्ह ओहिना दुनू फाँकमे छल। जड़ि लग ठाढ़ भऽ ओ हिया-हिया देखै लगल। देखैत-देखैत मनोहरक टाँगपर नजरि पड़लै। टाँगपर नजरि पड़िते हल्ला करै लगल जे एक गोरे तरमे पिचाइल अछि। दौड़िकेँ अवै जाइ जा एकरा बहार करह? करियाक बात सुनि चारु भरसँ लोक बढ़ल। देखैत-देखैत तीनू गोरेपर नजरि पड़लै। हल्ला करैत करिया कुड़हरि अनै घरपर दौगल। तीनू खून बोकरि-बोकरि मरल। मुदा तइओ सभ बचा-बचाकेँ डारि काटै लगल। डारि काटि सील उनटौलक तँ तीनू थकुचा-थकुचा भेल। पहिने तँ कियो नै चिन्हलक, किऐक तँ तीनू बेदरंग भऽ गेल। मुदा भाँज लगौलापर पता चललै जे दुनू बापूत सुवध कक्का छी आ पुतोंहू छियै।
अखन धरि मरनी, अंगनेमे, दुनू बच्चाकेँ खेलबैत। गौरिया आबिकेँ कहलकै- ‘दादी, तोरे अंगनाक सभ गाछक तरमे दवा कऽ मरि गेलउ।’
गौरियाक बात सुनितहि मरनी अचेेत भऽ खसि पड़ल। दुनू बच्चा सेहो चिचिया लगलै। मरनीकेँ अचेत देखि अलोधनी मुहपर पानि छीटि बिअनि हौंकै लागलि। कनिये कालक बाद होश भेलइ। होशमे अबितहि मरनी फेरि बपहारि कटै लगल।
बच्चाकेँ कोरामे लऽ मरनीक संग अलोधनी देखै ले विदा भेलि। गाछ लग पहुँचते,तीनू गोरेकेँ मुइल देखि मरनी ओंघरनिया कटै लागलि। ओंघरनिया कटैत देखि करिया पजियाकेँ पकड़ि मरनीकेँ कात लऽ गेल। मरनीक दशा देखि सभ संत्वना दिअए लगल। मुदा मरनीक करेज थीरे ने रहै। विचित्र स्थितिमे पड़ल। एक दिशि परिवारकेँ नाश होइत देखए तँ दोसर दिशि दुनू बच्चाक मुह देखि कनी-मनी आशा मनमे जगै।
चारि साल पहिलुका नहि, आब नव मरनीक जन्म भेल। जहिना आगिमे तपैसँ पहिने सोनाक जे रंग रहैत तपलापर जहिना चमकि उठैत तहिना। ओना समाजोक वेवहार जे पहिलुका छलै अहूमे बदलाव एलै। कियो खाइक बौस दऽ जाइत तँ कियो बच्चो आ अपनो ले नुआ-बस्तर। जखन ककरो भाँजमे कोनो काज अबै तऽ ओ मरनियो कऽ संग कऽ लइत। जहिना परिवारमे बूढ़ आ बच्चाक प्रति जे सिनेह होइत,ओहने सिनेह मरनीक प्रति समाजोक बीच हुअए लगलै। अपनो जीबैक आशा आ बच्चोक, मरनीकेँ नव स्फूर्ति सेहो पैदा केलक। एते दिन मरनीक हाथमे पुरने औजार (खेतीक) टा रहै छलै ओ आब बढ़िकेँ दोवर भऽ गेल। हँसुआ, खुरपी, टेंगारी, कोदाइरिक संग-संग हथौरी, गैंचा सेहो आबि गेलइ।
समय आगू बढ़ल। देशक विकासक गति सेहो, बहुत तेज नहि मुदा किछु गति तँ जरुर पकड़लक। गाम-गाममे बान्ह-सड़क, पुल-पुलिया, स्कूल, अस्पताल सेहो बनै लगल। जहिसँ खेतिहर बोनिहारकेँ सेहो काज बढ़ल। मरनियो छिट्टामे माटि उघब, पजेबा उघब,गिट्टी फोड़ब, सुरखी कुटब सीखि लेलक। जहिसँ बेकारी मेटाएल। रोज कमेनाइ रोज खेनाइ घरि गरीबो पहुँच गेल। भलेही जिनगीमे बहुत अधिक उन्नति नञि एलै मुदा जीवैक आशा जरुर जगलै। मुदा ई सभ काज छतौनीमे नहि, पास-पड़ोसक आन-आन गाममे हुअए लगलै। जहिमे छतौनियोक बोनिहार सभ काज करै लगल।
छतौनियोक दिन घुरलै। सात किलोमीटर पक्की सड़क (पीच), जे एन.एच.सँ लऽ कऽ रेलवे स्टेशनकेँ जोड़ैत, छतौनिये होइत बनैक शुरु भेल। जहियेसँ ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाक’ छतौनी होइत बनैक चरचा भेलि, तहियेसँ छतौनीक लोकक मनमे खुशी अबै लगलै। गामक लोकक तँ ओहन दशा नहि जे बस, ट्रक कीनैक विचार करैत। मुदा तइओ एते बात जरुर एलै जे बरसातमे जे घरसँ बहराएव कठिन छलै ओ आब नै रहतै। किछु गोटेक मनमे ई बात जरुर होइत जे एते दिन बिना जूत्तो-चप्पलकेँ काज चलैत छल, से आब नै चलत। आड़ि-घुर (माटि) पर चललासँ, बेसीसँ बेसी काँट-कुश गरैत छल मुदा पीच भेने शीशाक टुकड़ी, लोहाक टुकड़ी सेहो गरत। जहिसँ पाएरक नोकसान बेसी हैत। मुदा फेरि मनमे अबै जे एते दिन कम आमदनी रहने जूत्ता-चप्पल नै कीनि पबै छलौ से आब नै हैत। नञि वेसी तँ एक्को जोड़ा जरुरे कीनि लेब। जइ सँ पाएरमे बेमाइयो ने फँटत।
प्रधानमंत्री योजनाक सड़क बनै लगल। मुदा जते आशा बोनिहार सभकेँ छलै तते नै भेलइ। किऐक तँ माइटिक काज शुरु होइते रंग-विरंगक गाड़ी सभ पहुँचै लगल। जे माइटिक काज बोनिहार करैत ओ ट्रेक्टर करै लगल। ओना काजक गति तेज रहै मुदा बोनिहारक बेकारी बरकरारे रहलै। सड़कपर माटि पड़िते रौलर आबि सरियाबै लगल। खेनाइ-पीनाइ छोड़ि धियो-पूतो आ जनिजातियो भरि-भरि दिन देखते रहैत। ओना बूढ़ो-पुरान देखैत मुदा घरक चिन्ता खीचिकेँ काज दिशि लऽ जायत। पनरहे दिनमे सातो किलो-मीटर सड़कपर माइटिक काज सम्पन्न भऽ गेलइ। एकदम चिक्कन, उज्जड़ धप-धप। घर एते ऊँच सड़क बनि गेलि।
माइटिक सड़क बनिते बड़का-बड़का ट्रक चिमनीसँ ईटा खसवै लगल। ऐँह, अजीब-अजीब ट्रको सभ। एते दिन छह-पहिये ट्रकटा गामक लोक देखने मुदा एहि सड़ककेँ बनने दस पहियासँ लऽ कऽ अट्ठारह पहियाबला ट्रक सभकेँ सेहो देखलक। तीनिये दिनमे सातो किलोमीटरक इंटा खसा देलक। मुदा ईटा पसारैक काज तँ इंजन नहि करत। ओ तँ लोके करत। मुदा ओहिक लेल तँ अनुभवी (एक्सपर्ट) लोकक जरुरत हैत। जे छतौनीमे नहि। तेँ, बाहरेसँ अनुभवी मिसतिरी आओत! मुदा तेहेन बड़का ठीकेदार सड़क बनवैत जे अनेको सड़क एक संग चलवैत। एक्के दिन तते अनुभवी मिसतिरी ईटा पसारै ले आएल जे सभके बुझि पड़लै जे दुइये दिनमे सातो किलो-मीटर ईटा पसारि देत। मुदा ईटा उघै ले ते मजदूर चाहियै। पहिले-पहिल दिन छतौनीक बेनिहारकेँ काज भेटिलै। ईटा पसरै लगल। धुरझाड़ काज चलै लगल। छतौनीक सभ बोनिहार खुशीसँ काज करै लगल। तहि बीच ईटापर पसारै ले फुटलाहा ईटा ट्रकसँ अबै लगल। दोहरी काज देखि छतौनीक बोनिहारक मन खुशीसँ नचै लगल। किऐक तँ गिट्टी फोड़ै ले गामेक बोनिहारकेँ काज भेटितै। मुदा ठीकेदारक मुनसी, अपने खाई-पीबै दुआरे, सस्ते दरसँ गिट्टी फोड़ैक रेट लगा देलक। एक ट्रेक्टर पजेबा फोड़ैक दर साठिये रुपैया दइ ले तैयार भेल। एक-दू दिन तँ लोक (बोनिहार) गिट्टी फोड़ब बन्न केलक,मुदा पेटक आगि मजबुरन सभकेँ ल गेलइ। मरनी सेहो गिट्टी फोड़ै लागलि। एक ट्रेक्टर गिट्टी फोड़ैमे वेचारीकेँ चारि दिन लगैत। मुदा की करैत?
एहि सड़कसँ पहिने जे सड़क बनञि, ओ रिआइत-खिआइत रहि जाय। माइटिक काज भेलापर साल-दू साल ईटा वैइसैमे लगइ। जहिसँ माटि ढ़हि-ढ़ूहिकेँ उबड़-खाबड़ बनि जाय। बड़का-बड़का खाधि सड़कपर बनि जाइत। तहूमे तीनि नंबर पजेवा फुटि-भाँगिकेँ गरदा बनि जायत। गामक धियो-पूतो उठा-उठा खेत-पथारमे फेकि देइत। कोठीक गोरा बनवै ले स्त्रीगण सभ नीकहा ईटा उठा-उठा लऽ जाइत। मुदा अइबेरि से नै हैत। दुइये मासमे सड़क बनवै शर्त ठीकेदारकेँ अछि। जाबे बरखा खसत-खसत ताबे सड़क बनि जाएब छैक। पचास बर्खक मरनी, जे देखैमे झुनकुट बूढ़ि बूझि पड़ैत। सैाँसे देहक हड्डी झक-झक करैत। खपटा जेकाँ मुह। खैनी खाइत-खाइत अगिला चारु दाँत टूटल। गांगी-जमुनी केश हवामे फहराइत। तहूमे सड़कक गरदासँ सभ दिन नहाइत। मुदा तइओ मरनी अपन आँखि बचैने रहैत। जखन पुरबा हवा बहै तँ पछिम मुहे घुरिकेँ गिट्टी फोड़ै लगैत आ जखन पछवा बहै लगैत तँ पूब मुहे घुरि जाइत। बीच-बीचमे सुसताइयो लइत आ खैनियो खा लइत। मुदा तइओ ओकर मुह कखनो मलिन नै होय। किऐक तँ हृदयमे अदम्य साहस आ मनमे असीम विसवास सदिखन बनल रहैत। तेँ,मुह कखनो मलिन नहि होय, सदिखन हँसिते रहए।
भिनसुरके उखड़ाहा। करीब नअ बजैत। पूब मुहे घुरि मरनी गिट्टी फोडै़त। तहि बीच,पच्चीस-तीस बर्खक सुगिया माथ उधारने, छपुआ बनारसी साड़ी आ ओही रंगक आंगी पहिरने, घुमौआ केश सीटि जुट्टी लटकौने, ऐँड़ीदार चमड़ौ-चप्पल आ मोजा लगौने, मुहमे पान सौ नम्बर पत्ती देल पान खेने, डोलचीमे नूनक पौकेट, कड़ूतेलक शीशी, मसल्लाक पुड़िया, साबुन रखि हाथमे लटकौने, आबिकेँ मरनीक लग ठाढ़ भऽ गेलि। मरनीक मेहनत आ बगए देखि दिल खोलि मने-मन हँसै लागलि। मरनी गिट्टी फोड़ैमे मस्त। किऐक किम्हरो ताकत! सुगियाक हृदयक खुशी मुहसँ हँसी होइत निकलै चाहैत। मुदा मुहक पानक पीत ठोरक फाटक कऽ बन्न केने। तेँ पानक पीत फेकब सुगियाकेँ जरुरी भेलइ। जइ पजेबाक ढ़ेरीपर बैसि मरनी गिट्टी बनवैत, ओहि ढ़ेरीपर सुगिया भरि मुहक पीति फेकि देलक। पीतक दू-चारि बुन्न मरनीक देहोपर पड़लै। देहपर पड़िते ओ उनटिकेँ तकलक। टटका पीत चक-चक करैत। कनडेरिये आखिये मरनी सुगियाक मुह दिशि तकलक। सुगियाकेँ पान चिबबैत देखि मरनीक मनमे आगि पजड़ि गेलइ। पजेवाक ढ़ेरी देखलक। सैाँसे थूक पड़ल। मने-मन सोचलक जे आब कना गिट्टी फोरब। ढ़ेरियो आ देहो अँइठ कऽ देलक।
आखि गुड़ारिकेँ मरनी सुगियाकेँ कहलक- ‘गइ रनडिया, तोरा सुझलौ नै जे ढ़ेरीपर थुक फेकिले?
गरीब मरनीक कटाह बात सुनि सुगिया तमकिकेँ उत्तर देलक- ‘तोरे बान्ह छिऔ जे हम थुक नै फेकब।’
सुगियाक बोलकेँ दवैत मरनी बाजलि- ‘एतेटा बान्ह छै, तइमे तोरा कतौ थूक फेकैक जगह नै भटिलौ जे ऐठाम फेकले।’
सुगिया- ‘जदी एतै फेकलियै ते तू हमर की करमे?’
मरनी- ‘की करबौ। आँइ गै निरलज्जी, तोरा लाज होइ छौ जे सात पुरखाकेँ नाक-कान कटौलही। जेहने कुल-खनदान रहतौ तेहने ने चाइल चलमे।’
सुगिया- ‘अपन देह-दशा नै देखै छीही?’
मरनी- ‘की देखबै। ई देह बोनिहारनिक छियै। तोरा जेकाँ कि हम कहियो बमैबला छैाँड़ा सेने, ते कहियो डिल्लीबला छैाँड़ा सेने बौआइ छी। एक चुरुक पानिमे डूबिकेँ मरि जो। तीमन चिक्खी (चिख्खी) नहितन। जहिना सात घरक तीमन चिक्खै छैँ तहिना सातटा मुनसा देखै छैँ। हमर पड़तर सातो जिनगीमे हेतउ। जेकरा संगे बाप हाथ पकड़ा देलक, सहि मरिकेँ तेइ घरमे छी। छुछुनरि कहीं कऽ। आगि लगा ले अइ फुललाहा देहमे।’
मरनीक बातसँ सुगिया सहमि गेलि। मनमे डर पैसि गेलइ जे हो न हो कहीं मारबो ने करै। मुह सकुचबैत, मूड़ी गोति विदा भेलि। सुगियाकेँ जाइत देखि मरनी साड़ीक खूँट से तमाकुल-चून निकालि चुनबै लागलि। मुदा तइओ मन असथिर नञि भेलइ। मूड़ी उठा-उठा सुगियो दिशि देखै आ मने-मन बजबो करए ‘देह केहेन सीटने अछि, उढ़ढ़ी। जना रजा-महराजाक बोहू हुअए। हाथ-पाएरमे लुलही पकड़ने छनि जे कमाकेँ खेतीह। जेहने छुछुनरि छउरा सभ तेहने छउरी सभ।’
तमाकू खा मरनी ईटा फोडै़ ले घुमल कि दादी-दादी करैत पोता दौगल आबि दुनू हाथे दुनू जाँघ पकड़ि ठाढ़ भऽ गेल। पाछूसँ पोतियो एलै। पोताकेँ कोरामे उठा मुहमे चुम्मा ल पोतीकेँ कहलक- ‘दाय, बौआकेँ रोटी नै देलही।’ दुनू गोरे चलि जाउ, मोरामे रोटी रखने छी, लऽ कऽ दुनू गोरे खाए लेब। हम अखैन काज करै छी। कनीकालमे आबिकेँ भानस करब।’
पोता-पोती, आंगन दिशि विदा भेल। पूब मुहे घुरिकेँ मरनी गिट्टी फोड़ै लगल। चारिटा बन्दूकधारी बड्डी-गार्डक संग सड़कक ठीकेदार उत्तरसँ दछिन मुहे सड़क देखैत जाइत। आगू-आगू ठीकेदार पाछु-पाछु बन्दूकधारी। ठीकेदारक नजरि मरनीपर पड़ल। मरनीपर नजरि पड़िते ठीकेदारक डेग छोट-छोट हुअए लगल। ठीकेदारक आखि मरनीपर अटकि गेल। डेग तँ आगू मुहे बढ़वैत, मुदा आखिक ज्योति हृदयमे प्रवेश कऽ हृदयकेँ हड़बड़बै लगलै। मनमे अन्हर-तूफान उठै लगलै। जहिसँ मने-मन विचारै लगल जे जेकरा कमाइपर हमरा चारिटा बड्डी गार्ड अछि, करोड़ो-अरबोक आमदनी अछि, तेकर ई दशा छैक। ओ तँ हमर ओहन समांग छी जे कमासुत अछि। ओहन तँ नहि जे ऐश-मौजक जिनगी बना कमेलहे सम्पत्तिकेँ भोगैत अछि। मुदा अँटकल नहि। आगू मुहे बढ़िते रहल। किछु दूर आगू बढ़लापर जना मरनीक आत्मा आगूसँ रोकि देलकै। बिचहि सड़कपर ओ (ठीकेदार) ठाढ़ भऽ गेल। ठाढ़ भऽ एकटा सिपाहीकेँ कहलक- ‘ओइ गिट्टी फोड़िनिहारिकेँ कने बजौने आउ?’
ठीकेदारक बात सुनि एकटा सिपाही मरनी दिशि बढ़ल। मरनी लग जा ओ (सिपाही) कहलक- ‘मालिक (सरकार) बजबै छथुन। से कने चल?’
गिट्टी फोड़ब छोड़ि मरनी उनटिकेँ सिपाही दिशि तकलक। सिपाहीकेँ देखि मने-मन सोचै लगल जे ने हम कोनो मेमलामे फँसल छी आ ने कोनो बैंकक करजा नेने छियै,तखैन किअए हमरा सिपाही बजवै आएल। मन सक्कत कऽ कऽ कहलक- ‘तू नै देखे छहक जे अखैन हम काज करै छी। जेकर बोइन लेबइ ओकर काज नै करबै। अखैन जा। काजक बेरि उनहि जेतइ, तब ऐबह।’
मरनीक बात ठीकेदारो आ सिपाहियो सुनैत। एक-दोसरकेँ देखि आखि निच्चा कऽ लिअए। मुदा ठीकेदारक मन पीपरक पात जेकाँ डोलैत। कखनो मरनीक इमानदारीपर मन नचैत तँ कखनो ओकर अवस्थापर। जहि देशक श्रमिक एते श्रममे विसवास करैत अछि ओहि देशक विकास जँ बाधित अछि तँ जरुर कतौ नै कतौ संचालनकर्ताक बेइमानी छैक। ई बात मनमे अबिते ठीकेदार अपना दिशि घुरिकेँ तकलक, तँ अपन दोख सामने अबि ठाढ़ भऽ गेलइ।
सिपाही कड़किकेँ मरनीकेँ कहलक- ‘नञि जेवही ते पकड़िकेँ लऽ जवउ?
सिपाहीक गर्म बोली सुनि मरनी कहलक- ‘तोहर हम कोनो करजा खेने छिअह जे पकड़िकेँ लऽ जेबह। अपन सुखलो हड्डीकेँ धुनै छी, खाइ छी।’
मरनीक बात सुनि सिपाहियोक मन उनटै-पुनटै लगलै। एक दिशि मालिकक आदेश दोसर दिशि मरनीक विचार। आखिर, ऐहेन लोकक बीच ऐहेन सक्कत विचार अबैक कारण की छै? अनका देखै छियै जे सिर्फ सिपाहीक बरदी (वर्दी) देखि डरा जाइत अछि,भलेही ओ सरकारक सिपाही नहियो रहए। मुदा हमरा तँ सभ कुछ अछि तइओ अइ बुढ़ियाकेँ डर नै होइ छै। फेरि मनमे एलै जे हम किछु छी तँ नोकर छी, मुदा ई किछु अछि तँ स्वतंत्र वोनिहारिन। स्वतंत्र देशक स्वतंत्र श्रमिक। जे देशक आधार छी। आखिर देश तँ ऐकरो सभहक छिअए।
सिपाहीकेँ ठाढ़ देखि ठीकेदारे पाछु ससरिकेँ मरनी लग आएल। मरनियो सभकेँ देखैत आ मरनियोकेँ सभ। ठीकेदार, मरनीक आखि देखैत। आखिमे सुरुजक रोशनी जेकाँ प्रखर ज्योति। ललाटसँ आत्म-विश्वास छिटकैत। मधुर स्वरमे ठीकेदार पूछलक-‘चाची, अहाँक परिवारमे के सभ छथि?’
ठीकेदारक प्रश्न सुनि मरनीक आखिमे नोर अबै लगलै। मन पड़ि गेलइ अपन पति,बेटा आ पुतोहूक मृत्यु। टघरैत नोरकेँ आँचरसँ पोछि, बाजलि- ‘बौआ, हमर घरबला, बेटा आ पुतोहू ठनकामे मरि गेल। अपने छी आ पिलुआ जेकाँ दूटा पोता-पोती अछि।’
ठीकेदार- ‘बच्चा सभ स्कूलो जाइ अए?’
‘नै। एक तँ गाममे इस्कूल नै छै। तहूमे, पहिने गरीब लोकक धिया-पूताकेँ पेट भरतै,तब ने जायत। ने भरि पेट अन्न होइ छै, आ ने भरि देह वस्त्र, ने रहैक घर छै, तखन इस्कूल कना जायत।’
मरनीक बात सुनि ठीकेदार सहमि गेल। मने-मन सोचै लगल जे आखिक सोझमे देखै छियै, ओ झूठ कोना भऽ सकैत अछि। एत्ते भारी (कठिन) काज केनिहारिक देहपर कारी खट-खट कपड़ा छै, तोहूमे सइओ चेफड़ी लागल छै, काज करै जोकर उमेर नै छै,तइपर एते भारी हथौरी पजेबापर पटकैत अछि। ठीकेदारक मन दहलि गेलइ। जहिना अकास आ पृथ्वीक बीच छितिज अछि, जाहि ठाम जा चिड़ै-चुनमुनी लसकि जाइत अछि, तहिना ठीकेदारक मन सुख-दुखक बीच लसकि गेल। जना सभ कुछ मनक हरा गेलइ। शून्न भऽ गेलइ। ने आगूक बाट सूझै आ ने पाछुक। मरनीसँ आगू की पूछब से मनमे रहवे ने केलइ। साहस बटोरि पूछलक- ‘भरि दिनमे कते रुपैया कमाइ छी?’ठीकेदारक प्रश्न सुनि मरनीक मनमे झड़क उठल। बाजलि- ‘कते कमाएव! जेहने वइमान (बैमान) सरकार अछि तेहने ओकर मनसी छै। चारि दिनमे एकटा ढ़ेरी (पजेवाक) फोड़ै छी ते तीनि-बीस (साइठ) रुपैया दइ अए। अइ से तीनि तूर के पेट भरत। भरि दिन ईटा फोड़ैत-फोडै़त देह-हाथ दुखाइत रहै अए, मुदा एकटा गोटियो कीनव से पाइ नै बँचै अए।
ठीकेदारक आखिमे नोर आबि गेलइ। मनुष्यता जागि गेलइ। मुदा, ई मनुष्यता कते काल जिनगीमे अँटकतै? जिनगी तँ उनटल छै। जहिमे मनुष्यता नामक कोनो वस्तु नहि छैक।

— सुनिल मल्लिक
सफल व्यक्ति
आब मिथिला ग्रामक तयारी
(प्रस्तुति- सुजीत झा)
समय २०३६ सालक एक राति के । जनकपुरक प्रसिद्ध जानकी मन्दिरक प्राङ्गणमे मिथिला नाट्य कला परिषदक एकटा सांस्कृतिक कार्यक्रम भऽ रहल । दर्शक दीर्घा सँ एकटा बालक हमहुँ गायब कहि उदघोषक भोला दासके चिट पर चिट दऽ रहल ।
मुदा भोलाक मन नहि डोलि रहल । दर्शकसभ उठय लागल छल ।
इम्हर ओ बालक दशम वेर हमहुँ गायव कहि चिट पठौलन्हि । उदघोषकके मन डोलि गेल । वालक मञ्चपर ऐलाह आ अपन गीत सुरु कएलन्हि । अपन अपन घर जा रहल दर्शकसभ फिर्ता आबय लागल आ मञ्चक आगामे बैसि गेल ।
ई कोनो उपन्यास आ कथाक अंश नहि अछि । ओ बालक रहथि सुनिल मल्लिक । हुनके सँग ई घटना भेल अछि ।
कहियो मिनापक मञ्चपर चढयक लेल चिट पर चिट देवयबला व्यक्ति आई मिनापक अध्यक्ष छथि । फेर एकटा चर्चित गायक , संगीतकार, सफल कर्मचारी, व्यवसायी आदि विशेषण सँ युक्त छथि ।
आइ जँ सफल व्यक्तिक खोजी कएल जाए तँ ओ अग्रणीमे अवैत छथि ।
कहियो एक समय छल जे ओ दुर सँ दुरक यात्रा साइकल सँ करथि मुदा स्थिति बदैल गेल
अछि ।
हुनका घरमे चारि टा मोटरसाइकल , एकटा जिप सहितक साधन छन्हि ।
आई अफिसो चढय लेल गाडी देने छन्हि ।
सुनिलक प्रगतिमे हुनक पिता कामेश्वर मल्लिककँे मार्ग दर्शन आ हुनक अपन लगन दूनु ओतवे काम कएने सुनिल नजदिकक व्यक्तिसभ कहैत छथि ।
कहियो वडका गीतकार आ संगीतकार बनब सपना देखयबला सुनिल ओहि क्षेत्रमे बहुत बडका स्थानपर तऽ नहि गेला मुदा अपन भाई सभके ओहि लाइनमे देलन्हि ।
सुनिलक छोट भाई प्रवेश संगीतक दुनियामे अपन स्थान खोजयमे लागि गेल अछि ।
कहल जाइत छैक प्रवेशके ओहि लाइनमे पठाबयमे सुनिलक बहुत योगदान अछि ।
२०२४ आसिन १० गते भारतक खजौलीमे माता सुशिला मल्लिक आ पिता कामेश्वर मल्लिकके जेष्ठ पुत्रक रुपमे जन्म लेनिहार सुनिल एमएससी , पिजिडी इन साइन्सक अध्ययन कएने छथि ।
सुनिलक विषयमे कहल जाइत छैक ओ सात कक्षामे पढैत रहथि तहिए म्युजिकक धुन बनौने रहथि । एकदम कम उमेरमे ओ मञ्चसभ पर गाबय लागल रहथि ।
महोत्तरीक सुगा में कृष्णाष्टमीमे हिनका स्पेशली बजाओल जाइत
छल । एक बेर ओहि गाममे मञ्चपर गीत गएलाक बाद दर्शकसभ हिनका पर पैसाक वर्षा कऽ देने छल । सुनिलक अनुसार ३० वर्ष पूर्व तेह्र सय रुपैया भेल छल ।
ओ मञ्चपर गावयके एतेक क्रेजी रहथि जे छोकरवाजी नाचपाटी होइ वा कोनो कार्यक्रम ओ कपडा पहिर बिदा भऽ जाइत छलाह । पैसा के देत के नहि हुनका अहि सँ सरोकार नहि छल । मैथिलीक चर्चित गीतकार सियाराम झा सरसक शब्दमे मिथिलाञ्चलमे म्युजिकके जे
सेन्स सुनिलमे अछि बहुतो में नहि अछि ।
कहल जाइत छैक सुनिलक पिता एकटा बढीया गायक रहथि तहिना हुनक बाबा मुसद्दी लाल मल्लिक चर्चित तबला बादक । फेर हुनक दू पुत्री आ एक पुत्र सेहो गीत गबैत छन्हि ।
चर्चित गायिका नेहा प्रियदर्शनीक पिता होवयके सेहो सुनिलके गौरब प्राप्त छन्हि । सुनिल छौडा तोरा बज्जर खसतौ , गीत घर घर के, हमर धकधकी बढैय, लेहुएल आँचर, खोता सिंगार, आर्शिवाद, मुटुभरी माया सहितक एलबममे संगीत देने छथि ।
गायनक अतिरिक्त किछ एलबममे हुनक लिखल गीत सेहो
अछि । एक दिस गीत संगीत क्षेत्रमे ओतेक आगा छथि तऽ दोसर दिस शैक्षिक तालिम उपकेन्द्र धनुषाक प्रमुख छथि ।
ओ तालिम केन्द्र धनुषा , महोत्तरी, सिरहा, सर्लाही, सिन्धुली, जिल्लाक शिक्षकसभकँे तालिम दैत अछि । किछ वर्ष पूर्व ओ शिक्षक सेहो रहथि ।
ओहि क्रममे ट्युशनिया सभके हुनका घरमे भिड लागल रहैत छल ।
सुनिल व्यवसायी सेहो छथि जनकपुरक क्याम्पस चौकपर विज्ञानक समान विक्री केन्द्र सेहो हिनके छन्हि ।
विज्ञान सामग्री विक्री केन्द्र जनकपुरमे नयाँ व्यवसाय छल ।
नयाँ व्यवसायकेँ चुनौती स्वीकार कएलन्हि आ ओ व्यवसाय एखन नीक अवस्थामे अछि ।
गीत रेकर्डिङ्ग स्टुडियोके सेहो हुनक सोच छन्हि । जकर तैयारी ओ सुरु कऽ देने छथि । फेर मिनापक वात करी तऽ प्रमुख प्रोजेक्टसभकेँ मिनाप सँ जोडयमे हुनक महत्वपूर्ण योगदान अछि । अखन ओ नाटकघर निर्माणमे लागल
छथि ।
फेर मिथिला ग्रामक परिकल्पना सेहो हुनक छन्हि । ओ कहैत छथि– ‘एकटा एहन स्थान होए जतय नाटकघर हुए, मिथिलाक संग्रालय हुए मिथिलाक प्रमुख भोजनसभ ओतए भेटए , एहन चिजक आवश्यकता छैक ।’
मिथिला ग्रामक लेल विभिन्न क्षेत्रक व्यक्तिसभ सँगे परामर्श सुरु कऽ देने प्रसंगक क्रममे सुनिल कहलन्हि ।
(प्रस्तुति- सुजीत झा)


बिपिन झा
आवश्यकता अछि सकारात्मक मौलिक चिन्तनक
मानवमात्रक विकास हेतु मौलिक चिन्तन अत्यावश्यक अछि। संगहिं विज्ञान आ प्रौद्योगिकीकनिरन्तर विकासक मार्ग में मौलिक चिन्तनक उपेक्षा नहि कयल जासकैत अछि। कोनो राष्ट्र यदिविकसित राष्ट्र कऽ रूप में ख्यातिप्राप्त अछि तऽ एहि में मौलिक चिन्तक योगदान सहजतया इंगित कयलजा सकैत अछि।
एतय ’सकारात्मक’ पद जोडबाक आशय मात्र एतवा अछि जे मौलिक चिन्तन यदि ध्वंसात्मकहो तऽ ओ सर्वनाशक कारण सेहो भय सकैत अछि। आब प्रश्न ई अछि जे एहि लेख कऽ औचित्य कीअछि? कियाक तऽ मनुक्ख जन्मजात विचारशील प्राणी होइत अछि। मौलिक चिन्तन ओकरस्वाभाविक गुण होइत छैक। मुदा… यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य कें ध्यान में राखल जाय तऽ व्यक्ति, चाहेओ जे कोनो कारण हो, मौलिक चिन्तन सऽ परहेज राखय चाहैत अछि।
अपन गप्प कें हम आजुक शोधक सन्दर्भ कें विशेष रूप सऽ जोडय चाहैत छी कियाक तऽभारतवर्षक विभिन्न उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा करायल जा रहल विभिन्न विषय में शोध (जेकराप्रचलित रूप मे M. Phil/ M. Tech, D. Phil Ph. D आदि कहैत छियैक), राष्ट्रक ज्ञानपरम्परा कसंवर्धक आओर राष्ट्रक विकास में सहायक होइत अछि।
सामान्यतया आजुक स्थिति ई भय गेल अछि जे अधिकांश उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा करायलजा रहल विभिन्न विषय में शोध, उपाधि प्राप्तिक हेतु मात्र भय जा रहल अछि। एहि विषय सऽ अपनेलोकनि सेहो अंशतः वा पूर्णतः सहमत होयब। सामान्यतः देखल जाइत अछि जे विबिध ग्रन्थगत तथ्यआओर अवधारणा क प्रस्तुति कय शोधग्रन्थ तैयार कय उपाधि प्राप्त कय लेल जाइत अछि। ओकरगुणवत्ता पर ध्यान नहि देल जाइत अछि।
एतय हम एकटा महत्त्वपूर्ण संस्था मे जाहि विषय पर उपाधि देल गेल ओकर चर्चा करयचाहैत छी। विषय “Theory of false Cognition” (भ्रम सिद्धान्त) सँ संबन्धित छल। ओतय विभिन्नसिद्धान्त शोधकर्ता द्वारा प्रस्तुत कयल गेल। पूर्ववर्ती आचार्यक मत पर टिप्पणी हुनका आदर दैत नहिंकयल गेल। एतय हमर कथन जे- शोधकर्ता सँ अपेक्षित छल जे विभिन्न आचार्यक मत कें समीक्षाकरितथि। जतय कतहु ओहि में समस्या छैक ओकर यथासंभव समाधान प्रस्तुत करितथि। अन्यथा तऽओ शोध पुनर्प्रस्तुतीकरणमात्र अछि जे जनमानस हेतु मात्र भारस्वरूप कहल जासकैत अछि।
एहि उदाहरणक माध्यम सँ हम मात्र एतेक कहय चाहैत छी जे केवल अन्धानुकरण कय अपनप्रतिभाक विकासक मार्ग अवरुद्ध नहिं करवाक चाही। एतय पूर्वाचार्यक प्रति अनादरक भाव नहिअभिप्रेत बुझी। प्रत्येक व्यक्ति के अपन मौलिक चिन्तन द्वारा ओ शोध हो अथवा व्यावहारिक जीवन,जनमानस कें नवीन दशा आओर दिशा देवा में सहयोग करैक चाही। अपन मिथिलाक संस्कृतिकप्रत्यभिज्ञा भेला सँ ई बात सहज रूप में स्पष्ट भय जाइत अछि जे ई माटि कखनहुं अन्धानुकरण के प्रश्रयनहिं देलकैक, अपन खण्डनमण्डानात्मक विधि द्वारा जनमानस के विकास में सहयोग दैत रहल अछि।एकरे परिणाम कहल जा सकैत अछि जे नव्यनाय क उत्पत्ति मिथिला में भय सकल जाहि कारणमिथिलाक संस्कृति आइयो समस्त विश्व में समादृत अछि। अस्तु आशा अछि जे एकर मर्यादा सततराखल जायत।http://sites.google.com/site/bipinsnjha/home
१.कुसुम ठाकुर आ २.हेमचन्द्र झा

१.कुसुम ठाकुर- प्रत्यावर्तन
लल्लन जी हमरा सs किछु नहि नुकाबय छलाह आ नहि हम हुनका कोनो काज मे बाधा दियैन्ह आ कि मना करियैन्ह। हुनका मोन मे अपन माँ पिता जी भाई बहिन के प्रति अपार स्नेह छलैन्ह । माँ केर तs ओ परम भक्त छलाह , माँ किछु कहि देथिन्ह तs हुनकर प्रयास रहैत छलैन्ह जे ओ ओकरा अवश्य पूरा करैथ मुदा एहेन विडम्बना जे हुनकर बीमारी के विषय मे हम माँ के नहि कहि सकलियैन्ह। माँ के मात्र एतवा बुझल छलैन्ह जे लल्लन जी केर बेर बेर बुखार भs जाइत छैन्ह ।

मनुष्य जखैन्ह दुःख मे रहैत अछि तs ओकरा भगवान छोरि और किछु मोन नहि रहैत छैक । ओ अपन दुःख मे ततेक नहि ओझरायल रहैत छैक जे आन किछु सोचबाक ओकरा फुर्सत नहि भेंटैत छैक । लल्लन जी सन व्यक्तित्व केर बाते किछु आओर होइत छैक । अपने बीमार छलाह मुदा दोसर केर विषय मे सदिखैन सोचैत रहैत छलाह । कखनहु कs हुनक एहि तरहक सोच देखि हमहु बिसरि जायत छलहुँ जे ओ बीमार छथि मुदा एहेन कोनो दिन नहि होइत छलैक जे हम राति मे हुनका विषय मे नहि सोचैत छलहुँ । हमर तs जेना नींद उरि गेल छल , राति या तs टक टकी लगा कs बितैत छल या नहि तs नोर बहा कs । दोसर तरफ़ मुँह कs हम भरि राति कानैत रहि जाइत छलहुँ। एक तs लल्लन जी बीमार छलाह दोसर हम एहि विषय मे किनको सs नहि कहने रहियैन्ह आ नहि हम ओकर चर्च करैत छलहुँ खास कs बच्चा सब लग तs एकदम नहि । सब सs कष्टप्रद छलs जे हमरा दुनु गोटे के सबटा बुझल छल मुदा हम सब एक दुसरा संग सेहो कखनो एहि विषय पर गप्प नहीं करैत छलियैक । की गप्प करितियैक , कोना करितियैक मुदा एक दिन लल्लन जी केर मुँह सs निकलिए गेलैन्ह आ हमरा पुछि देलाह ।


हमरा ओहिना मोन अछि, हमर मंगल व्रत छल साँझ मे खेलाक बाद हमर माथ घुमय छल हम बिछौना पर आबि कs परल रही लल्लन जी टीवी देखय छलाह किछुए समय बाद ओहो आबि कs हमरा बगल मे परि रहलाह । इ देखि पता नहि हमर मोन आओर बेचैन भs गेल हम मुँह झाँपि कs दोसर दिस घुमि गेलहुँ । ओहि घर मे मात्र हम दुनु गोटे छलहुँ । अचानक लल्लन जीक आवाज कान मे आयल "किछु होइत अछि की , आकि फेर माथ घूमि रहल अछि" । हम किछु नहि बजलियैन्ह , हम ऐना परल छलहुँ जेना हम सुतल रहि , मुदा ओ तs हमर एक एक टा मोनक गप्प बुझैत छलाह तुरन्त कहलाह हम सब बुझैत छी अहाँक मोनक गप्प , मुदा हमरा बाद अहाँ की करब"? बस एतबहि बजलाह आ चुप भs गेलाह । इ सुनतहि हमर माथ जेना सुन्न भs गेल , हमरा किछु नहि फुरायल आ नहि किछु बाजि भेल मुदा हमर आँखि सs नोर ढब ढब खसय लागल आ ओ रुकय के नाम नहि लैत छल । ओहि राति हम पहिल बेर लल्लन जी के सोंझाँ मे हुनका बीमार भेलाक बाद कानल छलहुँ आ भरि राति कानैत रहि गेलहुँ । लल्लन जी केर सेहो एतबा हिम्मत नहि छलैन्ह जे हमरा चुप्प करबितथि ।
लल्लन जी केर बीमारिक किछुए दिन बाद पता चललैक जे प्रभाकर जी (हिनक मित्र श्री पशुपति जी केर सबस छोट भाई ) जे पहिनहिं सँ बीमार छलाह केर किडनी के बीमारी छैन्ह आ हुनका डॉक्टर वेल्लोर लs जेबाक लेल कहि देने रहथिन्ह । ओ सभ जखैन्ह वेल्लोर सs अयलाह तs पता चललैक जे प्रभाकर जी केर दोसर किडनी लगाबय परतैक जाहि मे बहुत पाइक काज परतैक । सब चिंतित छलाह मुदा लल्लन जी अपना दिस सs हुनका लोकनि के आश्वासन देलथिन्ह आ अपने बीमार रहितो एकटा नाटक लिखी कs ओकरा सँग सांस्कृतिक कार्यक्रम केर आयोजन करि ओकर टिकट सँ जे पाई जमा भेलैक ओ प्रभाकर जी केर इलाजक लेल राखि देल गेलैक ।


लल्लन जी केर बीमारिक विषय मे शायद हमरा सँ बेसी वर्णन नहीं कयल होयत मुदा एतबा जरूर छैक हम आब सोचैत छियैक तs हमारा अपनहि आश्चर्य होइत अछि जे ओहि समय मे भगवान पता नहि कोना ओतेक शक्ति देने रहैथ। एक तs हम हुनक बीमारिक विषय मे सुनलाक बादो अपन संतुलन बनेने रही , दोसर सब दिन संग मे रहितहु हम नहि हुनका आ नहि कहियो दोसर के अपन मानसिक स्थिति केर पता चलय देलियैक । मुदा हमर नींद एकदम चलि गेल, सब राति करवट बदलि कsबिताबैत छलहुँ। कैयेक राति ततेक नहि घबराहट होइत छलs जे हम उठि कs टहलय लागैत छलहुँ । ताहि पर विडम्बना जे नहि हम किनकहु सs लल्लन जी केर बीमारिक विषय मे कहने रहियैंह आ नहि कहि सकैत छलियैक ।


डॉक्टर कहनहीं रहथिन्ह जे हड्डी मे दर्द होयतैंह ख़ास कs बाँहि मे। राति मे हम ततेक सम्हारि कs सूती, डर होइत छल जे कहीं चोट नहि लागि जायेन्ह। भरि राति दर्द ठीके होइत छलैन्ह आ हम जौं बिसरियो जाइयैक तs हुनक दर्द से कुहरैत देखि तुरंत मोन परि जाइत छल । हमरा तs जेना आदति भs गेल छल हमेशा एक हाथ हिनक बाँह पर धs कs धीरे धीरे दबाबैत रहैत छलियैक ।


कहबी छैक "डूबते को तिनके का सहारा "। हमरा जहिना कतहु पता लागय जे कोनो नीक डॉक्टर छथि चाहे ओ होम्योपैथी हो व आयुर्वेदी हम कोसिस करी जे लल्लन जी के देखा दियैक । लल्लन जी केर बीमारी के विषय मे मात्र बिनोद जी के सबटा बुझल छलैन्ह । हुनाका पता चललैंह जे कोनो होम्योपैथी डॉक्टर बनारस मे छैक आ ओ कैंसर तक केर इलाज करैत छैक अपने डॉक्टर आ नीक डॉक्टर रहैत ओ बनारस गेलाह आ हिनका लेल होम्योपैथी दबाई आनलथिन । डॉक्टर कहने छलैक जे एक दम समय पर दबाई देबाक छैक आ हर तीन तीन घंटा पर दबाई देबाक छलैक । हम हर तीन घंटा पर दबाई दियैक आ राति मे सेहो घड़ी मे अलार्म लगा लगा कs दियैक । ओना तs हमरा नींद नहि होइत छल, मुदा कहीं नींद लागि गेल आ दबाई छूटि नहि जाय से सोचि अलार्म लगा लियैक , मुदा भगवान तहियो नहि सुनलाह। एक दिन पता नहि कोना भोरका पहर ३ बजे दबाई देबाक छल मुदा हमर आंखि लागि गेल आ अलार्म सेहो नहि बाजलैक । भोर मे हरबरा कs उठलहुँ आ उठला पर हमरा ततेक अफ़सोस भेल भरि दिन कानैत रही गेलहुँ । नहि भरि दिन खेबाक इच्छा भेल आ नहि कोनो काज मे मोन लागय । साँझ मे लल्लन जी हमरा बहुत समझेलाह आ कहलाह एक बेर किछु देरी सs दबाई देला सs किछु नहि होयतैक । खैर दबाई तs जतबा डॉक्टर कहने रहैन्ह ततेक पूरा खेलाह आ ओहि दिन केर बाद कोनो दिन एको मिनट देरी सs नहि देलियैन्ह । किछु दिन बाद पता चललैक जे ओ डॉक्टर बेईमान छलैक आ ओ दबाई मे steroid मिला कs बेचैत छलैक ।


एक दिन लल्लन जी केर ऑफिस मे एक गोटे सँ पता चललैन्ह जे पूना मे एकटा बहुत पुरान डॉक्टर छथि ओ एहि बीमारिक इलाज करैत छथि । बस हम सब पूना जएबाक अपन कार्यक्रम बना लेलहुँ । हमर बड़का बेटा पुत्तु, ओहि बेर पूना मे नाम लिखेने छलाह ओ अपन सामन लेबय ले आबय वाला छलाह , तय भेलैक जे ओ आबिये रहल छथि हुनके सँग पूना जायल जेतैक ।


हमर सब केर पूना जेबाक तैयारी होइत छलैक एहि बीच मे लल्लन जी केर मोन किछु बेसी ख़राब भs गेलैन्ह । जमशेदपुर केर अस्पताल मे भरती भेलाह । पता चलैक जे फेर खून बहुत कम छलैन्ह , डॉक्टर खून चढेबा लेल कहलैंह आ विचार विमर्श के बाद भेलैक जे एहि बेर टाटा मेमोरिअल refer कs रहल छैन्ह कियैक तsओहि ठाम डॉक्टर अडवानी छथि जे कि भारत केर सब सँ नीक oncologist छलैथ । डॉक्टर सब अस्पताल सँ छोरय समय refer कs देलथिन्ह । आब हम सब तय केलियैक जे बम्बई तक पुत्तु सँग हम सब जायब आ ओहि ठाम देखेलाक बाद पूना सेहो जायब । पुत्तु के सेहो देखि लेबैन्ह कोना रहैत छथि आ पूना वाला डॉक्टर सsसेहो देखा लेबैक ।


हम सब पुत्तु के सँग बम्बई गेलहुँ ओहि ठाम हमर तेसर बहिन केर घरवाला, हेम जी सेहो अयलाह डॉक्टर अडवानी सs देखायल गेलैक । डॉक्टर अडवानी केर हिसाबे दबाई ठीके चलय छलैक मुदा ओ किछु और दबाई देलाह आ एक साल के बाद अयबाक लेल कहलाह । खैर हम सब डॉक्टर स देखा पूना चलि गेलहुँ आ दोसर दिन भोर मे डॉक्टर केर पता लs खोजय निकललहुँ । पता जे छल ताहि पर पहुँचि तs गेलहुँ आ डॉक्टर अपनहि निकलल मुदा ओकर व्यवहार आ बात करय के ढंग तेहेन छलैक जे बुझायल जेना हम सब भिखमंगा होइ । ओ हमरा सब के एकटा पता बतेलैथ आ इ कहि भगा देलैथ जे ओहि ठाम जाऊ मरीजक इलाज ओहि ठाम होइत छैक इ हमर घर अछि । खैर हम सब खोजैत पहुँचि तs गेलहुँ, ओहि ठाम डॉक्टर बहुत समय रुकलाक बाद भेंटलथि आ इहो पता चलल जे असल मे डॉक्टर ओ व्यक्ति छलाह जिनका ओहि ठाम हम सब पहिने गेल छलहुँ आ पहिने ओ घर पर देखय छलाह । इ हुनक एकटा सहायक डॉक्टर छथिन्ह । खैर लल्लन जी एकदम देखाबय लेल तैयार नहि छलाह तथापि हम हुनका मना कs देखाबय लेल तैयार केलियैंह । जखैन्ह डॉक्टर सsपुछलियैन्ह जे कतेक समय लागत तs ओ इम्हर उम्हर करैत छल आ मात्र एतबा कहलैथ बैठिये अभी समय लगेगा आ सब किछु संदेहास्पद बुझाइत छल । लल्लन जी इशारा दs हमरा अपना दिस बजेलाह आ कहलाह चलु हम एहि ठाम नहि देखायब । हम कतबहु कहलियैन्ह नहि मनलाह आ हम सब बिना देखेनहि वापस भs गेलहुँ ।



२.हेमचन्द्र झा
कथा

गोनू झाक पंचैती
गोनू झा आ चोरक लुका-छिपी बहुत दिन धरि चलैत रहल । चोर सभ ठकायल, पिटायल आ पकड़ायल तथापि हारि नहि मानलक । एक बेर गोनूक घर मे हाथ लागि गेला सँ धनक जे आशा रहैक से तँ रहबे करैक, सभ सँ बेसी चिन्ता रहैक गोनूक हाथें बेर-बेर भेल अपमानक बदला लेनाई । चोर सभ साँझ आ राति मे जा कऽ छका चुकल छल या पकड़ा चुकल छल । भेष बदलि कऽ साँझे पहुँचला सँ सेहो किछु लाभ नहि भेलैक आ एहि चक्कर मे गोनूक बाड़ी तमनाई सँ लऽ कऽ हुनकर गहूम धरि पटा चुकल चल । आब एके टा उपाय छलैक जे कोनो दिन गोनू देरी सँ घर आबथि आ ता सबेरे सकाल हुनका घर मे हाथ साफ कऽ देल जाय । चोर सभ एहि दिशा मे काज करब आ सियाइडी लेब शुरू कऽ देलक ।
एमहर गोनू आई-काल्हि राज दरबार मे काजक अधिकता सँ विलम्ब सँ घर अबैत छलाह । चोर सभ एही ताक मे रहय । ताहू मे एकटा रिस्क रहैक जे तँ एमहर घर मे पैसी आ ओमहर गोनू हाजिर भऽ जाथि तखन की होयत । एके टा उपाय रहैक जे येन-केन प्रकारेण घर वापस अबैत काल गोनू कें भांगक बहाने रोकल जाय आ ओमहर किछु चोर मिलि के हुनका घर मे तावत हाथ साफ कऽ दैक । सैह योजना बनल । एहिना एक दिन गोनू कने अबेर दबा के घर अबैत रहथि । ओ सभ दिन भांग चढ़ा कें घर आबथि आ ओहि दिन अबेर हेबाक बादो रस्ता मे एक गोटाक आग्रह पर भांग पिबाक लेल बैसि गेलाह । ओ भांग पिबाक लेल बैसले छलाह कि किछु अपरिचित चेहरा सभ कें देखलनि जे ओतय आबि के बैसि गेल आ हुनका आग्रह पर आग्रह करय लगलनि । गोनू कें ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलनि जे एहि मे किछु चालि जरूर छैक ।
एमहर राति बितैत जाईक । गोनू कें एकाएक घरक सुरक्षाक धेआन एलनि । घर मे पत्नी असगरे चलखिन आ ताहू मे ओहि दिन हुनकर व्रत रहनि । मिथिलाक नारी पति कें बिनु खोएने खईतथि कोना, बड़ी राति धरि गोनूक इंतजार करैत रहलीह । हारि कें तमसा कें हुनक पत्नी खा लेलीह । तत्पश्तात पत्नी सूति रहलीह । तामस तँ रहबे करनि आ ताहि द्वारे भरि पेट खाईयो ने सकलीह तथापि कहुना कें अन्ठा-पन्ठा कें सूति रहलीह, ई निश्चय करैत जे आई भरि राति गोनू कें बाहरे ठाढ़ रखतीह ।
गोनू कें जहन सभटा माजराक आशंका भेलैन तँ ओ झूठ-मूठ तुरंते नशा चढबाक बहाना केलनि आ ओतय सँ चलि पड़लाह । चोर तँ सोचने छल जे जा गोनू नशा मे मत्त घर पहुँचताह ता हुनक संगी सभ हाथ साफ कऽ देत । ओमहर गोनूक घरक अगल-बगल छूपल चोर हुनका पत्नी कें सूतल देखि सेन्ह काटि घर मे ढूकि गेल आ ई अकानय लागल जे हुनक पत्नी नीक जेकाँ सूति रहलीह वा नहि । ओमहर गोनू भांग पीबि दौगले घर पहुँचलाह आ लगलाह केबाड़ कें जोर-जोर सँ पीटय । बड़ी काल बाद पत्नी घर खोललीह आ बरसि पड़लीह गोनू पर । गोनू घर मे प्रवेश कयला तँ हुनका ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलनि जे आई फेर चोर सभ हमरा घर मे आबि गेल अछि । ओमहर चोरक संकट आ एमहर पत्नीक संभाषण । गोनू कने काल धरि शांत रहलाह आ चोर कें पकड़बाक योजना पर विचार करय लगलाह । ता धरि पत्नीक संभाषण चालूये छल । कनेक काल शांत रहलाक बाद गोनू बरसि पड़लाह पत्नी पर ।
फेर की छल, दुनू दिस सँ वाक्‌युद्ध होमय लागल । राति कने बेसी बीति गेल रहैक । लोक सभ घरे-घरे सूति रहल छल । तथापि गोनू आ हुनक पत्नीक आवाज सूनि सभ कियो जमा होइत गेल । धीरे-धीरे पूरा टोलक लोक जमा भऽ गेल । आब चोर सभ बेस फेर मे पड़ल । आब भागियो नहि सकैत छल । हारि कें ओ सभ दम साधि कें बैसल रहल ।
लोकक जमा भऽ गेलाक बादो गोनू आ हुनक पत्नीक वाक~युद्ध चलिते रहल । लोक सभ बीच मे गोनू कें चुप कराबय चाहलनि । तथापि ओ बजलाह जे ई हमर घरक मामिला अछि अहाँ सभ जाउ । तथापि भीतर सँ पत्नी एकर प्रतिवाद केलखिन जे टोलक लोक सभ आई एहि झगड़ाक पंचैती कऽ कें जाउथ । झगड़ाक क्रम मे गोनू बाहर रहथि आ हुनक पत्नी घरक अंदर । ओ घरक अंदरे सँ एहि बात पर जोर देलनि जे आई एहि झगड़ाक पंचैती भऽ कऽ रहय । अंत मे टोलबैयाक आग्रह पर दुनू गोटे शांत भेलाह आ पंचैती पर रजामंदी देखेलैन । तथापि गोनू कहलखिन जे अहाँ मे सँ कियो शुरू सँ हमरा लोकनिक झगड़ा देखलौंह अछि जे पंचैती करब । जाउ एहन व्यक्ति कें बजा कें लाउ जे शुरू सँ हमरा लोकनिक झगड़ा देखने हो ओएह उचित पंचैती कऽ सकैत अछि ।
गोनूक ई गप्प सूनि सभ अवाक्‌ रहि गेल । बड़ विकट समस्या छल । सत्ते टोलबैया मे सँ कियो शुरू सँ दुनू गोटाक झगड़ा नहि देखने छलाह । तथापि कियो बजलाह - गोनू बाबू एहन पंच तँ नहि भेटत । अहाँ दुनू गोटे अपन-अपन बात रखियौक आ ताही आधार पर पंचैती हेतैक । तथापि गोनू बजलाह जे जँ हम एहन लोकक पता बता दी जे शुरू सँ हमरा सभक झगड़ा देखलक अछि, तँ ओकर बात अहाँ सभ मानबैक? एहि पर लोक सभ तैयार भऽ गेल । गोनू इशारा केलनि लोक कें जे घरक दक्षिण-पश्चिम कोन पर चारि-पाँच टा पंच छथि । हुनके सभ कें पकड़ि के आनू ।
लोक सभ बूझि गेल गोनू बाबूक चालि आ फेर पकड़ा गेल चोरबा सभ सीने पर । सभ कियो मीलि खूब पीटलनि चोरबा कें आ ओ सभ येन-केन प्रकारेण कुहरैत-हुकरैत अपन घर पहुँचल आ गोनूक घर मे चोरि करबाक सपनाक तिलांजलि दऽ देलक ।
(इ खिस्सा स्मृति पर आधारित अछि)

दयाकान्त
समीकरण
रामसेवक के विधान सभा मे टिकट भेटब तय अछि, ५० सालक मेहनत कायल छलैक, सब वर्ग मे नीक पैठ छैक पूरा क्षत्र क s मे ईहा एकटा एहेन उमीदवार अछि जाकर जीत लगभग तय छैक | दोसर पार्टी वाला सब बड़ प्रलोभन देलकैक जे हमरा पार्टी मे चली आ हम पार्षद हम राज्य सभा सदस्य बना दैत छियैक मुदा टस से मस नहीं भेल अप्पन पार्टी के लेल निस्वार्थ सेवा करैत रहल जाकर परिणाम छैक जे आई जीताब लगभग तय छैक |

समाचार पत्र मे जखन नामक घोषणा भेल ते रामसेवक के नाम नहीं रामगुलाम के नाम छलैक आहिरेबा! ई की भय गलैक रामगुलाम ते जेल मे छैक ओकर साख ते क्षेत्र मे बहुत ख़राब छैक तखन ओकरा टिकट कियाक भेटलैक | एतबे मे रामुद्दीन बाजि उठल तु सब किछु नहीं बुझैत छिहिन रामगुलाम काल्हिये जेल स s छूटी के एलैक " ओही से की हेतैक ओकरा के वोट देतैक ओ कते के मर्डर केलक" फेर बेबकूफी वाला बात ओ सब केस मे बड़ी भय गलैक एतय जाति समीकरण चलैत छैक ताहि द्वारे ओकरा टिकट देल गेल, संगही ओकरा सन दबंग नेता क्षेत्र मे और के अछि

बहुत दिनका बाद मंत्रीजी अप्पन क्षेत्र आबि रहल छलाह | शिक्षा मंत्री बनलाक बाद शायद पहिल बेर अप्पन गाम आ क्षेत्र जेवाक मोका भेटलैन, पहिने जखन विधायक छलाह तखन ते कहियो काल बाज़ार मे दर्शन भs जायत छल मुदा आब ते दर्शन दुर्लभ भs गेल | बहुत बेलना बेललाक बाद मंत्री बनलाह | क्षेत्रक लोक के मन बहुत खुश भेलैक जे आब हमरो सबहक गाम मे स्कूल खुजत, विकाश होयत |

फार्मुला
मंत्रीजीक काफिला बहुत करीब १५-२० टा गाड़ी छल, मंत्रीजीक गाड़ी बिच मे सजल धजल फूलक माला से लदल छल | ओही गाड़ी मे मंत्रीजीक संग हुनकर सचिव सेहो बैसल छल, सबकियो आराम सs जा रहल छलैथ की गाड़ी एकाएक सड़क पर रुकी गेल | रोडक कात मे किछु लोक हाथ मे फुलक माला लs मंत्रीजीक जयकार कsरहल छल एक आदमीक हाथ मे एकटा कागज पर आवेदन पत्र छल आ ओ आवेदन पत्र मंत्री जी देबय चाहैत छल ओकरा सबहक मांग छल जे हमरा गाम एकटा मिडिल स्कुल हेवाक चाही| कियाक ते अहि गाम मे कोनो स्कुल नहीं अछि बगल के गाम मे धारक ओही पार जे स्कुल छैल ओही मे लड़का सब ते कुनु तरहे स्कुल चलि जायत अछि मुदा लड़की सब नहीं जा पबैत अछि | पुलिस वाला मंत्री जी सs मिलेवाक लेल तैयार नहीं छल जकर बिरोध केला पर ओकरा सब पर पुलिस डंडा बरसाबय लगलैक|

"अहाँ पुलिस के मना करियो आ आवेदन पत्र के मंजुर कs लियो अखन सरकार लग फंड छैक आ ओकर कहब छैक जे हरेक पंचायत मे एकटा स्कुल हेवाक चाही" सचिव बाजी उठलाह, मंत्रीजी आँखी लाल पियर करैत बजलाह "अहाँ बेबकुफ के बेबकुफ रही गेलहु पढला लिखला से किछु नहीं होयत, हम मंत्री छि आ अहाँ हमरा सिख्बैत छी अहाँ के पता नहि अछि जे अखन वोट के तीन साल छैक अखन यदि मंजुर कs देबैक ते इलेक्शन मे सब बिसरी जतेक ई सब काज वोट से छः महिना पहिने सुरू कायल जायत छैक"


मिथिला कवि कोकिल विद्यापति
- गोपाल प्रसाद
मिथिलाक भूमि अत्यंत प्राचीन कालसँ बौद्धिक क्रियाकलाप आ विवेचन (तर्क-वितर्क) लेल विख्यात अछि । एहि ठामक मैथिली भाषा बड्‌ड ललितगर अछि सम्प्रति सभ भाषामे अनेकानेक विधाक अन्तर्गत प्रचुर विकास भ’ रहल अछि । मैछिली एहि दौड़ में पछुआएल नहि अछि । पद्यक क्षेत्र मे महाकवि विद्यापति अमर छथि एहि आलेख मेम साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित विद्यापतिक जीवनी केँ संक्षिप्त अंश पाठक लोकनिक लेल प्रस्तुत अछि- “विद्यापति भारतीय साहित्यक एकटा अत्यंत उत्कृष्ट निर्माता छलाह । जाहि कालमे संस्कृत समस्त आर्यावर्त्तक सांस्कृतिक भाषा छलि, ओ अपन क्षेत्रीय बोली केँ मधुर आ मनोरम काव्यक माध्यम बनौलनि आ साहित्यक भाषा जेकाँ ओहिमे अभिव्यक्तिसक क्षमता जगा देलनि । ओ एकटा नव ढ़ंगक काव्य-परंपराक आरंभ कयलनि जे उनका लेल अनुकरणीय भेल आ आर्यावर्त्तक एहि भागक एहन कोनो साहित्य नहि अछि जे हुनक प्रतिभा आ रचना कौशलक गंभीर प्रभाव क्षेत्रमे नाहि अबैत हो । ओ उचिते मैथिल कोकिल अथवा मिथिलाक कोयल कहल गेलाह अछि कारण जे हुनक कल-कूजन सँ आधुनिक पूर्वोत्तर भारतीय भाषा सभक काव्यमे वसंतक आगमन भेल ।
विद्यापति, जिनक आनुवंशिक उपनाम ‘ठाकुर’ सँ घोतित होइत अछि जे ओ अचल सम्पत्तिक स्वामी रहथि, शुक्ल यजुर्वेदक माध्यन्दिन शाखाक काश्यप गोत्रीय मैथिल ब्राह्यण परिवार में जन्म लेने रहथि । दरभंगा सँ लगभग १६ मील उत्तर-पश्चिेममे अखनो स्थित समृद्ध गाम विसफी मे एहि परिवारक जड़ि रहैक आ विद्यापतिक जन्मक समयमे ई परिवार ओही गाममे रहैत छल जाही लेल ई परिवार आ वंश विसईवार विसफीक नामसँ जानल जाइत अछि । ई एहन विद्वान राजपुरूष लोकनिक परिवार छल जे मिथिलामे अपन धर्मशास्त्रीय ज्ञानक लेल प्रसिद्ध छलाह आ कर्णाट वंशीय राजा लोकनिक दरबारमे विश्वा सयोग्य ओ उत्तरदायित्व पद पर आसीन रहथि । विद्यापति एकटा दुर्लभ प्रतिभा रहथि जे शाश्ववत प्रेमक गायकक रूपमे अमर छथि, मुदा संगाहि मनुक्ख आ राजपुरूषक रूपमे अपन व्यक्ति त्वक सम्पूर्णताक कारणो ओ कम स्मरण नहि कयल जाइत छथि । जहिया विद्यापतिक जन्म भेलनि ताहि समयमे मिथिलामे एकटा पैघ सामाजिक आ बौद्धिक पुनुरूत्थानक नायक लोकनिक अही तरहक परिवार रहनि, जकर ओ एकटा समर्थ अंकुर रहथि ।
विद्यापतिक जन्म विसफी नामक गाममे भेल रहानि जे कि हुनक परिवारक वंशधर लोकनिक स्मरणक अनुसार हुनका लोकनिक पूर्वजक डीह ग्राम छलनि फलतः समाजक नव गठनक कालमे बिसफीकेँ एहि परिवारक मूलग्राम मानि लेल गेल आ एअहि तरहेँ ई सभ विसईवार कहयलाह । विद्यापति जीवन भरि विसफीमे रहलाह आ जखन शिवसिंह गद्‌दी पर बैसलाह तखन राजा शिवसिंह राज्यक प्रति महत्वपूर्ण सेवाक लेले कबि केँ इएह ग्राम (बिसफी) दानमे द‍ देलाखिन । एहि (खैरातक) उपहारक उपयोग करैत विद्यापतिक वंशज बसफिए में ओहि समय धरि रहलाह, जखन कि ३०० बरख पूर्व ओ लोकनि मधुबनीक निकटस्थ गाम सौराठ जाकर बसि गेलाह,जतऽ ओ सभ अखनो विद्यमान छथि । अंग्रेज सभक आगमन धरि ई गाम एहि परिवारक कब्जा में रहल ।
मैथिलीक महानतम कवि विद्यापति ठाकुर ई. सन १३५० सँ १४० ई. क बेच भेल रहथि ओ पश्चिहम बंगालक सीमावर्त्ती बिहार प्रदेशक पूर्वी भूभागमे रहनिहार पचास लाख सँ अधिक लोक द्वारा बाजल जाइत मैथिली भाषा में रचना कयलनि । विद्यापति अपन ८०० वैष्णव आ शैव पदसभ किंवा गीत सभक लेल विख्यात छथि, जकर उद्धार तड़िपत्रक भिन्न०-भिन्नप पांडुलिपि सभसँ कयल गेल ओ संस्कृत, अवहट्‌ट (अपभ्रंश) आ मैथिलीक विद्वान रहथि । हुनक गीत सभ रमणीक चारूता आ शालीनताक ललित अंकन आ लद्यु चित्र-रूपक वर्णनसँ परिपूर्ण अछि । रविन्द्रनाथ ठाकुर कहब छनि जे“विद्यापति आनन्दक कवि रहथि आ प्रेमे हुनका लेल जगतक सारतत्व रहनि ।” ओ अपन गीत सभके संगीतवद्धो कयने रहथि, कारण जे ओ शिवसिंह राज्यकालमे ३६ वर्ष धरि राजकवि रहथि । अपन गूजैत आ प्रभावशाली गीत सभक अतिरिक्तर ओ ‘पुरूष परीक्षा’, कीर्तिलता, गोरक्ष प्रकाश’, मणिमंजरी नाटिका’, ‘लिखननावली’, ‘दानवाक्या‌वली,’ ‘गंगा वाक्याpवली’, ‘दुर्गाभक्तिस तरंगिणी’, ‘विभासागर’, भूपरिक्रमा’, ‘शैवसर्वस्वार’ सन कृतियों केर रचना कयलनि ।
विद्यापति मैथिलीमे जाहि नवीन धारक सूत्रपात कएलन्हि तकरा समाज आदरक दृष्टिएँ अपनौलक । हुनक रचनाक मिथिलाक संग-संग ओकर समीपर्वर्त्ती प्रान्तहुँमे आदर भेलैक । फल इ भेल जे विद्यापतिक कवि लोकनि हुनक रचनाक आधार पर साहित्य भंडारक श्रीवृद्धिमे योगदान देलन्हि । विषयवस्तु प्रायः सएह रहि गेल जे विद्यापतिक समयमे छल मुदा ओकर चित्रण भिन्नध-भिन्न कवि लोकनि भिन्न -भिन्न, दृष्टिएँ कयलन्हि । यद्यपि विद्यापतिक किछु समय बाद किछु दिन धरि हमरा लोकनिकेँ मैथिली साहित्यिक सामग्रीक अभाव भेटैत अछि । ओहि समयक लिखल ग्रन्थ उपलब्ध नहि अछि किन्तु साहित्यक स्त्रोत एकदम सुखा नहि गेलैक । साहित्यक धारा कोहुना चलैत रहलैक । तकर प्रमाण हमरा लोकनिकेँ नेपाल एवं आसाममे उपलब्ध नाटक सभसँ होइत अछि । विद्यापतिक पश्चाकत्‌ नेपालमे अनेक नाटकक रचना भेल जकर लेखक लोकनिमे किछु मैथिल कवि तथा नेपालक राजा लोकनि छलाह । ओहि नाटक सभक भाषा पूर्णतः मैथिली छैक, हँ कतहु-कतहु ओहिमे नेपालमे प्रचलित नेवारी भाषाक प्रयोग भेटैत अछि ।
विद्यापतिक अनुकरण पर हुनकहि शैली पर हुनकहि भाषामे गीतक रचना होमय लागल तथ अई अनुकरण ततेक व्यापक भेल जे विश्वककवि पर्यन्त एहि अनुकरणमे रचना कयलन्हि मुदा अनुकरण तँ अनुकरण थिक । भाषान्तर भाषी जखन विद्यापतिक भाषाक अनुकरण प्रारंभ कयलन्हि तँ ने ओ विद्यापतिक भाषा रहि गेल आने अनुकरणकर्त्ता लोकनिक भाषा । दुनू मीलि एकटा कृत्रिम भाषाक जन्म देलनि ।
ओहि परम्पराक अनुयायी छथि जाहि मे कविता केँ मानव-जीवनक सार्वजनीय तत्वक अभिव्यक्तिथ मानल गेल अछि । प्रकारान्तर सँ कहि सकैत छी जे ई मानवीय जीवनक आदर्श रूप थिक । मनुष्यक चरित्र, भावना आ कार्यक इन्द्रियगम्य आदर्शबिम्ब थिक,आ ई सब ‘मिथ्या’ थिक । श्रृंगार रसक गीत हो वा करूण ओ शांतरसक, विद्यापति वस्तुनिष्ठ छथि आ कखनो अपन व्यक्तियगत अनुभवक आधार नहि लैत छथि । परकीयाक प्रेमक गीतक संग हम नचारीक कोन तरहेँ सामंजस्य कऽ सकैत छी?विद्यापतिक गीत मे एहि तथ्य केँ स्पष्ट करयवला एहेन किछू नहि अछि जे हुनक बीएतल जीवन केँ रेखांकित करैत हो, मुदा हुनक प्रेमगीत कँ हम सभ एहि रूप मे नहि लैत छी । शांत रसक दृष्टिकोण सँ ई मानव-जीवनक सामान्य चित्र थिक । विद्यापतिक गीत विशिष्ट मनोदशाक सृष्टि थिक । कविक रूप मे ओ अपन रूचिक कोनो विषय पर अनुभूतिक तीव्रताक संग लिखि सकैत छलाह । ओ हार्दिकताक अतल तल मे डुबि कऽ लिखैत छलाह । हुनक हदय जाहि रस मे डूबल रहैत छल तेहने गीत ओहि सँ अनुस्यूत होइत छल । हुनक गीत मे व्यक्तत भावना संसारक औसत आदमीक सामान्य अनुभव पर आश्रित अछि । तें ई कहब अतिशयोक्ति होयत जे ई कविक जीवनानुभवक परिणाम थिक जे ओ वृद्धवस्था मे पछता रहल छथि । विद्यापतिक सदृश प्रतिहावान कवि मनुष्यक एहि सामान्य दुर्बलता केँ देखि-बुझि सकैत छल जाहि सँ एकर व्यापक प्रभाव पड़ैक । पश्चानत्तापक भावना, ग्लानि, जीवनक निःसारता - ई सब शांत रस में अंतर्निहित रूप सँ विद्यापति अपन काव्य मे कयने छलाह, आ हुनक जीवनक ज्ञात तथ्यक आधार पह हम ई विश्वाःस नहि करैत छी जे ई गीत सब विद्यापतिक जीवनगत वा आत्मनिष्ठ अनुभवक देन छल । अपन श्रृंगार-गीत मे ओ तटस्थ वा वस्तुनिष्ठ छलाह । एहि गीत सब में शांत रसक ओतबे परिपाक भेल अछि जतेक प्रेम-गीत मे श्रृंगार रसक । विद्यापति मानव जीवनक निःसारता आ क्षुद्रताक समान रूप सँ दर्शन आ गहन अनुभव कयने छलाह । एहि गीत सब मे अपना प्रति एक प्रकारक उपेक्षाभावक जे दर्शन होइत अछि से ओहिना कविक वैयक्तिछक नहि अछि जेना नायिकाक लेल नायकक प्रेमावेग । विशिष्टक माध्यम सँ सामान्यक चित्रण काव्यक उच्चतम लक्ष्य रहल अछि आ विद्यापति ओकरा विदग्धतापूर्वह प्राप्त कऽ सकलाह ओ यौन-प्रेम हो वा आध्याय्म प्रेम, जीवनक आनन्दक हो वा निःसारता,चंचलता, क्षुद्रता आ निराशा सँ उत्पन्न वैराग्य ।
संस्कृ काव्यक समग्र सौन्दर्य सँ सम्पृक्त, मधुर आ लयबद्ध गीतक रचयिताक रूप मे विद्यापतिक कीर्ति आश्चकर्यजनक रूप सँ यत्र-तत्र पसरि गेल । जे केओ एहि गीत केँ सुनलक ओ एकर लयतान सँ मोहित भ‍ गेल । एहि मे व्यक्त भावना एतेक सर्वसाधारण छल जे ओ सौन्दर्यानुभूतिजनित आनन्द सँ अपरिचित सामान्य स्त्री-पुरूष केँ सेहो ओकर अनुभूति प्रदान कऽसकल । एहेन समय मे जखन संस्कृते सुसंस्कृत लोकक भाषा छल आ मिथिला सन क्षेत्र जतऽ संस्कृतक अतिरिक्त अतिरिक्तस अन्य कोनो भाषा मे लिखब पवित्रताहरणक सदृश छल, विद्यापतिक ओहि प्रदेशक लोक द्वारा बाजल जायवला भाषा मे लिखबाक साहस आ आत्मविश्वाणस देखौलनि । ओहि समयक पुराणपंथी पंडित द्वारा लोक-भाषा में लिखबाक कारणें विद्यापतिक तिरस्कार कयल गेल,किन्तु जखन ओ देखलनि जे ओएह काव्य विद्यापति केँ अद्वितीय लोकप्रियता आ अभूतपूर्व कीर्ति प्रदान कयलक अछि तखन उदात्त मस्तिष्कक अन्तिम दुर्बलता’ हुनका विद्यापतिक पदचिन्हक अनुसरण करबाक लेल प्रेरित कयलक । विद्यापतिक नमूना पर गीतक रचना करब मिथिलाक प्रतिभाशाली पंडितक लेल सेहो एकटा ‘फैशन’ बनि गेल । ई सत्य जे ओ विद्यापतिक अनुकृति सँ बहुत आगू नहि बढि सकलाह, मुदा ई प्रक्रिया अखंडित रूप सँ आगू बढ़ैत रहल आ विद्यापति द्वारा स्थापित परंपरा आ बाट पर मैथिली साहित्य विकसित भेल ।
मिथिलाक बाहर मैथिली साहित्य नेपाल मे लगभग तीन शताब्दी धरि विद्यापति सँ प्रभावित होइत आगू बड़ैत रहल । मिथिलाक कर्णाट राजा सँ अपन वंशक उत्पत्ति मानयवला भातगाँव आ काठमांडुक मल्ल राजा मैथिली साहित्य कें संरक्षण प्रदान कयलनि । ओइनबारक पतनक उपरांत मिथिलाक राजनीतिक अवस्था मैथिलीक विद्वान आ कवि केँ पड़ोसी नेपालक मल्ल राजा सँ संरक्षण मड.बाक हेतु बाध्य कयलक । विद्यापतिक अनुकरण करैत ओ सभ एकटा विशाल साहित्यक निर्माण कयलनि, जाहि मे सब सँ महत्वपूर्ण शुद्ध मैथिली मे लिखल गेल अनेको नाटक अछि । ओ नाटक सभ ओतय नियमित रूप सँ खेलायल जाइत छल । ओ कोनो आधुनिक भारतीय भाषाअ में लिखल गेल प्राचीनतम नाटक थिक अठारहम शताब्दीक मध्य धरि, जखन कि मल्ल शासक केँ हँटाओल गेल छल, मैथिली नेपाल दरबारक साहित्यिक भाषा बनल रहल आ विद्यापति प्रेरणाक एकटा स्रोत । एहि मे सँ अधिकांश साहित्य मे नहि आयल अछि से खेदजनक विषय अछि । आ तेँ ओकरा बारे मे बहुत कम जानकारी अछि,यद्यपि ओ ओतुक्काख ग्रंथालय सब मे सुरक्षित अछि ।
मुदा विद्यापतिक सब सँ सशक्तु प्रभाव बंगालक महान कवि सब केँ प्रेरित कयलक आ बंगला साहित्य केँ ओकर प्रारंभिक अवस्था मे संबर्धन कयलक । बंगाल मे विद्यापतिक कथा वस्तुतः बहुत रमनगर अछि । बहुत समय सँ बंगाल आ मिथिला मे सांस्कृतिक संबंध छल आ ताहि समय मे बंगालक पंडित अपन ज्ञान परिष्कृत करबाक हेतु तथा मिथिलाक महान शिक्षक सब सँ ओकरा आधुनिकतम बनयबाक हेतु मिथिला में अबैत छलाह । तखन जखन ओ फेर अपन घर घुरैत छलाह तखन हुनक ठेर पर विद्यापतिक मोहक गीत रहैत छल । चैतन्यदेव आ हुनक संगीत हेतु ई गीत विचित्र रूप सँ प्रभावशाली सिद्ध भेल किएक तऽ सहजिया संप्रदाय सँ प्रभावित भऽ कऽ ओ यौनाचारक माध्यम सँ दिव्य प्रेमक अनुभव करैत छलाह । विद्यापतिक प्रेम-गीत चैतन्य-संप्रदायक भक्तिय-गीत बनि गेल आ विद्यापति भऽ गेलाह वैष्णव महाजन । बंगाली वैष्णव मतक एकटा महान प्रवर्त्तक । कीर्त्तन एहि नव संप्रदायक एकटा प्रमुख अंग छल आ विद्यापति सँ पूर्णतः प्रभावित भऽ कऽ अनेक प्रतिभाशाली कवि गीत रचय लगलाह । विद्यापतिक अनुसरण करैत काल ओ विद्यापतिक भाषाक अनुसरण सेहो कैरत छलाह । जेँ कि ओ शुद्ध मैथिली नहि लिखि सकैत छलाह तें हुनक भाषा मैथिली आ बंगलाक एकटा अद्‌भुत मिश्रण छल जे बाद मे ब्रहबोली कहाबय लागल । चैतन्यदेवक हेतु विद्यापति-एकटा आदर्श बनि गेलाह आ ब्रजबोली काव्य-रचनाक भाषा बनि गेल । जेना-जेना चैतन्यदेवक नवीन संप्रदाय व्यापक होइत गेल तहिना-तहिना विद्यापतिक गीत सेहो ओही संग पसरैत गेल आ उड़ीसा ओ असम तक तथा सुदूर ब्रजभूमि तक विद्यापतिक दिव्य-प्रेमक एकटा महान प्रवर्त्तक मानल जाय लगलाह । गीत भक्तिागीतक प्रतिरूप बनि गेल । बंगाल मे सेहो विद्यापति एहि संप्रदायक एकटा नेताक रूप मे सम्मानित होइत रहलाह आ लोक हुनका बंगाल मे जनमल बंगाली बुझैत रहल । सम्मान प्राप्त करबाक दृष्टि सँ कवि अपन गीतक अंत मे विद्यापतिक भनिता लगबैत रहलाह । कम-सँ-कम एकटा कवि ऐहन छलाह जे अपन सबटा कविता विद्यापतिएक नाम सँ रचलनि । ब्रजबोली मे विशाल साहित्य उपलब्ध अछि जे भारतीय साहित्यक गौरव थिक । जखन हम मोन पाड़ैत छी जे ब्रजबोली मिथिलाक एकटा भाषा छि, जे ओतय जनमल लोक सभक द्वारा प्रयोग मे आनल गेल छल आ तकर प्रेरणा विद्यापतिक प्रेमगीत देने छल, तखन हम एहि अद्वितीय घटना पर आश्चकर्य व्यक्ति करैत छी आ विद्यापतिक प्रतिभा सँ मुग्ध भऽ जाइत छी ।
एहि संबंध मे ई उल्लेखनीय अछि जे रवीन्द्रनाथ केँ सेहो हुनक काव्यजीवनक देहरि पर विद्यापति प्रभावित कयने छलाह । ओ ‘भानुसिंहेर’ पदावली लिखलनि जकरा ओ स्वयं मैथिलीक अनुकृति कहैत छथि । एहि तरहें विद्यापतिक युग मिथिला जेकाँ बंगाल मे सेहो १९म शताब्दीक अंत धरि रहल ।
असमक स्वनामधन्य शंकरदेव आ हुनक शिष्य माधव्देव विद्यापतिक प्रत्यक्ष प्रभाव मे आबि कऽ मैथिली मे लिखलनि । यद्यपि हुनक रचना मनोरंजन नाटकक माध्यम सँ वैष्णवमतक प्रचार करबाक हेतु लिखल गेल छल ; तथापि हुनका प्रेरणा विद्यापति सँ भेटल छलनि, जे लोकक हेतु लिखल गेल रचना मे लोकक द्वारा बाजल जायबला भाषाक प्रयोग कयने छलाह ।
लोकक द्वारा बाजय्जायबला भाषा मे काव्यानंद केँ व्यक्त आ संचारित करबाक प्रतिभा एतेक लोकप्रिय भेल, काव्याभिव्यक्ति क रूप मे मोहक गीतक उपयोग करबाक रचना-चातुर्य एतेक आकर्षक सिद्ध भेल जे विद्यापति द्वारा स्थापित परंपराक अनुगमन अधिकांश महान कवि कालांतर मे कयलनि । अन्य कविक तऽ कथे कोन, सूरदास,मीरा, तुलसीदास, कबीर सेहो विद्यापति सँ प्रभावित भेलाह भने ओ प्रभाव परोक्षेरूप मे किएक ने पड़ल हो ।
विद्यापति मैथिल पुनर्जागरणक दीप्ततम देन छलाह । ओ व्यवसाय सँ कवि नहि छलाह । हुनका कतेक प्रकारक रूचि छलनि । हुनक दृष्टिकोण अत्यंत उदार छल । हुनक विचार समय सँ बहुत आगाँ छल । अत्यंत खेदजनक विषय थिक जे हुनक बाद मिथिलाक सांस्कृतिक अधःपतन होइत गेल । परिणाम भेल जे व्यक्तिखक रूप मे विद्यापति केँ द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त केँ बिसरि देल गेल आ ओ एकटा पुराण कथा,एकटा उपाख्यान मात्र बनि कऽ रहि गेलाह । मुदा जहिया सँ ओ अपन चारूकातक लोकक लेल मधुर गीत रचलनि, तहिया सँ कविक रूप मे हुनक यश कहियो कम नहि भेलनि । विद्यापति एखनो एकटा कविक रूप मे जीवत छथि आ जीवित रहताह । ओ भारतीय साहित्यक अत्युत्कृष्ट निर्माता रहलाह अछि आ भारतीय साहित्यक इतिहास मे ओहिना अमर रहताह ।

दुर्गानन्द मंडल, सहायक शिक्षक, उ. वि. झिटकी-बनगावाँ, मधुबनी (बिहार)।
कथा
डाक्टर कर्मवीर
मोन पड़ैत अछि छः जून 2003। जहि दिन तय ई छल जे भारतक प्रधानमंत्री मिथिलांचलक घरती निरमली (जे सभ तरहें, सभ दृष्टिकोणसँ सभ मामलामे किछु बेसिये पिछड़ल अछि) औताह। आ कोशीमे बनऽ बला रेल पुलक शिलान्यास करताह।
जेठक दुपहरिया, सभठाम लोक सभ गर्मी-गुमाड़सँ अफसेआंत, सबहक देह धामे-पसीने तर-वतर मुदा सभ केओ मंत्रीजीकेँ देखवाक लेल ओतवे हरो-हरान, ओतवे फिरिशान। एहन बुझना जाईत छल जे खेत-पथाड़, बाध-वोनसॅ आगि उठिरहल अछि, सड़कपर धुरा-विड़ोक रुप लैत, सन-सन सन-सन हवा आ लू चलैत। तखनो ओहि दिन परोपट्टाक लोक सबहक उजाहि उठल, सगर बाजार, बाजारक चारु कातक, जे पूर्ण रुपेण अतिक्रमित छल, प्रशासनक चुस्ती-दुरुस्तीसँ एकदम साफ-सुथड़ा। ऐना, जेना ऐना झक-झक करैत।
खूव प्रचार-प्रसार भेल, जगह-जगह पर्चा-पोस्टर साटल गेल, उद्धेश्य अधिकसँ अधिक लोक आवि मंत्री जीक भाषणसँ लाभ उठावथि। ओहि दिनक रौदो ऐहन बुझना जाईत छल जेना छाहरियो रौद आ गर्मीसँ फिरिशान भऽ कतऊ छाहरि ताकि रहल अछि।
किछुए कालक वाद ऐहन बुझना गेल जे चारुकातक वाट काॅलेजेक फिल्ड दिस मुड़ि गेल हो जाहिठाम मंत्रीजीक प्रोग्राम तय छल। जेम्हरे ताकू मुड़ी-ए मुड़ी, कपारे-कपार, लोकहिपर लोक, लोकक मुड़ि छोड़ि आर किछु नहि। सभ एक दोसराकेँ धकियबैत, आँगा बढ़वाक अथक प्रयास करैत, किछु सफलो भेलाह, आ असफल वेशी। साॅझ-पड़ैत-पड़ैत लोकक लेल गदमिशान उठऽ लागल। जे जतहि रहथि से ओतहि रहि गेलाह। एको मिशिया-आगू या पाछु हेवाक साहस नहि कऽ सकलाह। एतबहिमे सबहक आँखि अकाशमे हहाईत किदुनपर परलैक। किदुन तऽ बढ़-बढ़िया नाम छै ओकर। किदुन तऽ कहै छै हँ-हँ मोन पड़ल हेली-कोप्टर। सभसँ पहिने उतरलाह सेनाक जवान वाद ओकर प्रधान मंत्री जी, जोर-जोरसँ हल्ला होमय लागल- ‘‘इन्कलाव जिन्दावाद!’’ ‘‘जिन्दावाद-जिन्दावाद।’’
-‘‘आज का नेता कैसा हो?’’
........... जैसा हो।’’
ततपश्चात शुरु भेल भाषण-भूषणक कार्यक्रम सभ क्यो कान पोति सुनऽ लगलाह- बीच-बीचमे फेरि वएह नारावाजी। इन्कलाव-जिन्दावाद। जिन्दावाद-जिन्दावाद।। एहि तरहें एहि सबहक मध्य भाषणक कर्यक्रम समाप्त भेल। सभ अपन-अपन घरक बाट धेलैन्हि। हुनकहि सबहक संग हमहूँ अपन वासापर अयलहूँ। हाथ-पैर धोइत जाकि खुरसीपर वैसलहूँ देखैत छी एकटा व्यक्ति हमर अता-पता पुछैत अवैत छथि आ अपन परिचय एहि तरहें दैत छथि- श्रीमान् संभवतः अपने हमरा नहि चिन्ह सकलहूँ! हम कने अकचकाईत पुछलियैन्हि, से की? अपने पहिने वैसल तऽ जाउ, सामने राखल विरिंचपर वैसतहि ओ बजलाह- ‘‘हम छी कर्मवीर।’’
एतवहि सुनितहि करेज सूप-सन चाकर भऽ गेल। हृदय आनन्दातिरेकसँ झुमि उठल। नहि जानि किएक आॅखिसँ दू ठोप नोर खसि पड़ल। ओ बजलाह- ‘‘श्रीमान् अपने कनैत किऐक छी?
हम कहलियैन्हि- ‘‘तो नहि बुझबहक। तोरा देखिते हम अपने आपकेँ नहि रोकि सकलहूँ, आ ई नोर तऽ खुशीक थिक। आई ऐहन सौभाग्य जे पाहुन वनि एहिठाम अयलह, अहो भाग्य हमर। ओ तऽ अवाक। किछु नहि बजलाह, बजलाह किछुकालक पश्चात जे- ‘‘श्रीमान् हमरा चरि वज्जी गाड़ी छुटि गेल। हम आई अपनहि अहिठाम रहव आ भोजनो करब। सुनितहि हर्ष भेल जे कर्मवीर कमे उमेर मे ऐतेक स्पस्ट वादी, सभ किछु खोइलचा छोड़ा कऽ वजनिहार, जे चाहे अहाँकेँ कष्ट हुअए वा खुशी।
कनेक कालक वाद हमरा लोकनि चाह-पान करऽ लेल चैक दिस विदा भेलहूँ। गामक चैक। बड़़कीटा पाखरीक गाछ चारुकात चबुतरासॅ घेरल। गामक अधिकांश लोक चाह-पान पीवाक लेल साँझ-परात ओतहि आवथि। वगलमे छल फुसियाही दूसाधक धान-गहुम पीसऽ वाला मीशील, आ घोघना मियांक कोटाक दोकान। सटले छल मुनेसराक कनिएटा नोन-तेलक दोकान। आ वगलहिमे छल रामा मुखियाक मुरही, कचड़ी, मटर, घुघनी आ इचना माछक चखना वला एकचारी देल दोकान। दसे डेग हटिकेँ छल अगहनियाँ पसीनीयाँक ताड़ीक दोकान, जाहि ठाम दर्जनो घैल ताड़ीसँ भरल, पूव मुहे राखल आ घैलसँ वहरा रहल छल जे बुलबुला, बुलवुला-बुलवुलाकेँ ससरि घैलक पेन तरमे राखल बीड़वापर खसैत छल। किछु पीयाकक आँगामे राखल छलै दू बेचाही ताड़ी, मुरही, कचड़ी आ इचना माछक चखना। लोकसभ ताड़ी पीवि झुमय, मने मस्त छलै सवहक आ समवेग स्वरमे गवैत छल ई गीत- ‘‘ताड़ी वाली ताड़ी पी आ दऽ.......ताड़ वाला ताड़ी दऽ खजूर वाला कम..... ताड़ीवाली ताड़ी पिआ दऽ। दृश्ये छल लाजवाव!
सभ किछु देखैत हमरा लोकनि पहूँचलहूँ ठको काकाक चाहक दोकानपर। एकेटा चाहक दोकान आ ढ़ेर रास लोक चाह पीविनिहार।
पाखरीक गाछक चबुतरापर वैसेत हम हाक देल - ‘‘ठको कक्का दू कप चाह हमरो सवके दिहह..करीब दस मिन्टक वाद ठको कक्का डंटी विहिन कप, जे कोरहूँपर कने फुटले छले नेने आयल चाह। ऐह चाह तँ चाह छल! महीसिक दूधक अगव चाह, एको ठोप पैनिक छुति नहि, मीठगरो ततवे, ठोरमे ठोर सटऽ वाला चाह। अर्थात् चाहक चाह।
चाह पीवि कैंचा दऽ हमरा लोकनि बढ़लहुँ बौआ काकाक पान दोकान दिशि। लग पहुँचति कहलियनि- ‘‘गोड़ लगै छी कक्का कने दू सीक्की पान देब’’।
कठघारामे बैसल बौआ कक्का पुछलनि- ‘‘हौउ नीके छह किने? बहुत दिनक बाद देखलियह, कहऽ कोना की हालचाल छह अरविन्दक आ घौलुक? पुछैत पान लगबए लगलाह। हँ कक्का सभ अहाॅ सबहक अशीर्वाद छी। सभ कियो नीके-सुखे छी, बौआ कक्का पान लगा आगा बढ़ौलैन्हि। हमरा लोकनि पानक आनन्द लेबए लगलहुँ। पानो ततबे सुअदगर। कियेक तँ शुद्ध देशी पान छल। ताहूँमे बेरमा बरैबक। एक तँ मिथिला दोसर मैथिल ऊपरसँ बेरमा बरैबक पान, बौआ काकाक लगाओल। अपूर्व!
गप्प सप्पक क्रमे लोक सभसँ भेंट भेल, कुशल- छेम सभ एक-दोसराक हाल चाल पुछैत सभसँ कर्मवीरक परिचय करौलियैन्हि। नहि जानि जे हिनकामे कोन ऐहेन गुण छलैक जे जिनकेसँ परिचय करवयैन्हि सभ हुनकासँ प्रभावित भऽ जाइथ। अकानि नहि सकलहूँ जे कर्मवीरक मनमे कोन कल्पना जन्म लऽ रहल छलैक। ओ तँ जकरा हम कल्पना मात्र बुझैत छलहूँसे तँ साकार करक प्रवल संभावना लैत राति खेवाक काल बजलाह...।
दुनू गोटाक आँगामे दूटा थारी राखल छल, जाहिमे कनिएटा कटोरी, आ कटोरीमे घीड़ाक तीमन खेड़हीक दालि देल, दू फाॅक पिआउज आ नान्हिऐटा टुकड़ी छल अचाड़क, आर छल काॅच मेरचाई एक-एक प्रति, प्रति थाड़ीमे। लोटा आ गिलास जलसँ भरल छल, आ दुनू गोटे वैसल रही खेवाक लेल, ततवहिमे अरविन्द आ घौलू दुनू वौआ टीशन पढ़िकेँ आयल। कर्मवीर जीकेँ गोड़ लागि आशीर्वाद लऽ अपन-अपन छिपलीमे रोटी लऽ खैए लगलाह।
भोजनक क्रमे किछु काल धरि गुम्म-सुम्म रहलाक वाद कर्मवीर जी बजलाह- ‘‘श्रीमान् मोन होइत अछि जे जँ अपने आदेश दी तऽ हमहूँ एकटा क्लीनिक खोलि प्रैक्टिस करितहूँ। सुनि मन हर्ष भेल जे हिनकामे किछु करवाक उत्साह छैन्हि। आ गामक प्रति एतेक सिनेह जे कतहूँ आन ठाम नहि जा कए वल्कि गामहिमे सेवा करताह। नहि तँ प्रायः परदेश खटऽ वालाक तँ उजाहि उठल छैक। ऐहेन सन वुझना जाईछ जे सभ सुख परदेशेमे छै! मुदा ई तँ हमरा लोकनिक धोखा थिक धोखा! हम कहए चाहैत छी जे जँ देहमे खुन अछि तँ गामोमे कियो भुखे नहि रहताह। एक तँ साधारणो मजुरी 80 टाकासँ 150 टाका धरि अछि, ताहूपर जन-मजदूरक अभावे। दस दिन खुशामद करिऔक तखन एक दिन आवि काज कए देत। ओतवहि नहि माय-बाप, भाय-भौजाई, पर-परिवार बाल-बच्चाक संग रहवाक सुख कतए पाएव गामहिमे ने? आ कि परदेशमे? उत्तर एकेटा भेटत- गामहिमे, तखन अहीं सभ कहूँ जे परदेश खटबै कथी लेल? की एहि लेल जे ऐवा काल सनेशमे एड्स लेने आएव।
हम तँ सप्पत दऽ कहऽ चाहैत छी, जे गामक माटि-पानि आ थाल-कादोमे सभ सुख अछि। कोनो गामसँ चिक्कन अप्पन गाम, आ कोनो धामसँ चिक्कन मिथिलाधाम। अहूँ सभ अप्पन-अप्पन करेजपर हाथ राखि कहू जे हम फुसि कहैै छी? आव प्रश्न ई उठैत अछि जे जखन सभ कियो परदेशे खटवै तखन गामक विकाश हेते कोना? मुदा कर्मवीर जीमे हमरा भेटल जे ओ गामहिमे रहि गामक आ समाजक विकाश करवाक भावना हुनका हृदयमे हिलकोर मारि रहल छल। मन गद-गद भऽ उठल। आर किछु काल गप्प-सप्प करैत हमरा लोकनि सुति रहलौ। प्रातः किछु गोटा (मेडिकल लाईनसँ जुड़ल) सँ भेंट करौलियैन्हि, ततपश्चात एकटा नीक दिन तका हिनक क्लिनिकक उद्धाटन सम्पन भेल।
जीवनक दोसर रुप संधर्ष होयत छैक। मुदा ताहिसँ कर्मवीर जी धबरेला नहि वल्कि जीवनक लेल संधर्ष करए लगलाह। से ताहि तरहें जे काल्हुक कारी झामड़ सुखल-साखल देह, पिचकल-पुचकल गाल, धसल- धसल आॅखि पेट पाँजरमे सटल खपटासन, कोनो पहिरलहे पेन्ट आ वुशर्ट पहिरि पुराने-धुराने जूता आ चप्पलसँ समय खैपऽ वाला, जीवनकेँ ऐतेक लगसँ देखऽ वाला कर्मवीर, हमरा आईयो हुनक ई वात मोन पडै़त अछि जे ओ पुछने रहथि- ‘‘श्रीमान् की अपने कहियो रातिकेँ भुखले सुतल छी? माथमे नहि घुसल ई बात जे हुनक प्रश्नक भाव की छैन्हि? मुदा सत बात तँ ई छल जे ओ काल्हुक राति उपासे रहलाह, भुखले सुति रहलाह। भरि राति धरि निन्न नहि भेलैन्हि, कोनो तरहे कछमछााकेँ राति वितौलैन्हि। प्रातः भेंट भेलापर हुनक धसल आॅखि आ भुखल पेट हमरा किछु पुछि रहल छल। मुदा हम छलहुँ निःशब्द।
काल क्रमे समयक संग मेहनत रंग देखौलक। रोगी सभ आबए लगलैन्हि, भगवती जस लगवैत गेलथिन्ह। गुजर-वसर करए लगलाह तँ कनियोंकेँ लए अनलैन्हि आ आनन्दसँ रहए लगलाह। भोला बावाक कृपासँ दिन दूना आ राति चैगुना आमदनी होमय लगलैन्हि। आई ओ दस धूर जमीन लए घर बना वाल-बच्चाक संग हंसी-खुशीसँ छथि। एकटा सफल व्यक्तिक रुपमे आ सफल डाॅक्टरक रुपमे। डाॅ. कर्मवीर।
कहियो कताल हमरो हुनका घरपर जेबाक मौका लगैत अछि। एक डिब्बा बटर-बेक बिस्कुटक संग। डाॅक्टर साहेवक दुनू बच्चा निछोह दौड़ल अवैत अछि एहि आवाजक संग मम्मी-मम्मी अंकल जी आए- अंकल जी आए। तात घरसँ बहार होइत छथि डाॅ. साहेवक कनिआ-पूनम, जेहने नाम-तेहने पुनमक चाँन सन मुँह। आँखि चोन्हिआ जाईत अछि। बेश पाँच हाथ ऊँच! देहो दशा खूब भरल-पूरल। कनेक श्याम रंग, कलकत्तिया आमक फारा सन-सन आँखि, बादामी नाक, औंठिया केश कारी भौर, दुनू कात जूट्टी गुहल आ ताहि जूट्टीकँे धुमा कऽ खोपा बन्हने, कसल-कसल वाँहि, आ पाकल तिलकोरक फड़ सन दुनू ठोर। जतवे देखऽ मे सुन्दर, ततवे मीठ-मीठ बोल। नम्हर-नम्हर हाथ आ दुनू हाथमे रहन्हि भरि-भरि हाथ चुड़ी। हाथक आँगूरमे बेश कीमती पाथड़क अंगूठी। सुगा पंखी रंगक ब्लाउज आ साड़ी पहिरने, माथपर साड़ी लैत, आॅचर सम्हारि दुनू हाथ जोड़ि, पएर छुबि गोर लगैत छथि। सौभाग्यवती भवः आशीर्वाद दैत आँखि नोड़ा जाइत अछि। मन पड़ैत छथि डाॅ. कर्मवीर छह फीट छह इंच उॅच, भरल-पुरल देह, मोती जेँका झलकैत दाॅत, क्लीन सेभ, कनेक बहरायल पेट आ हँसैत ई अभिवादन- ‘‘प्रणाम श्रीमान् कुशल थिकहुँ की ने? अन्तर स्पस्ट भए जाईत अछि काॅल्हुका कर्मवीर- आजुक डाॅ. कर्मवीर।

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