भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Friday, January 01, 2010
'विदेह' ४८ म अंक १५ दिसम्बर २००९ (वर्ष २ मास २४ अंक ४८) PART V
बरियाती खेबा कालक गीतश्
(1)
समधि गारि नइ दै छी विनती करै छी,
समधिक माए पितिआइन गोअरबा के दै छी।
गोअरबा सँ दूध मंगबै छी, लके समधि जिमबै छी। समधि...
समधि के दादी नानी ल बनियाँ के दै छी
बनियाँ सँ चीनी मंगा समधि के दै छी। श् समधि....
समधि क मौसी पीसी ल मड़बड़िया के दै छी।
मड़बड़िया स धेती कीनि समधि के दै छी। श् समधि गारि....
(2)
निज कुल कामिनि समधिन छिनरो महिमा अगम अपार।
सगर नगर घर एको ने छोड़लनि के थिक अपन परार।
बनियाँ मे जे फल्लाँ के गछलनि जिनका टाका हजार।
पढ़ूआ मे जे डाक्टर के गछलनि जे भोकतनि सूई बारम्बार।
राजपूत मे जे फल्लाँ के गछलनि जनिका ढ़ालश्तलवार।
गोआर मे जे फल्लाँ के गछलनि जिनका धेनु हजार।
सोनरा मे जे फल्लाँ के गछलनि जनिका जेवर भण्डार।
तमोलिन मे जे फल्लाँ के गछलनि के करतनि उपर लाल।
कोवर गीतश्
(1)
कोने बाबा बान्हल इहो नव कोवन हे जनकपुर कोवर।
कोने अम्मा लिखल पूरैन हे जनकपुर कोवर।
फल्लाँ बाबा बान्हल इहो नव कोवर फल्लाँ अम्मा लिखू पूरैन हे।
ताहि पैसि सुतय गेला फल्लाँ दुलहा सीता कोवर धय ठाढ़ि हे।
बैसू सीता दाइ लाले रे पलंगिया बुझि लिय हमरो गेयान हे। जनकपुर
(2)
नव खटिया नव पटिया नव सब पुरहर हे।
आहे नव नव जोड़ल सिनेह सोहाग राति निन्द नहि हे।
ताहि पैसि सुतलाह फल्लाँ दुलहा संग सिया दाइ हे।
सीताअति सुकुमारि सोहाग राति निन्द नहि हे।
हटि सुतु हटि सुतु ससुर जी के बेटिया अहाँ धामे गरमी बहुत हे।
एतबा वचन सुनि कनियाँ सुहवे रुसि बाहर चलि जाइ हे।
हम नहि घुरबै ककरो वचनियाँ कोवरक वर बड़ ठेकर हे।
महुअक कालक गीतश्
बर रे जतन सासु मौहक रान्हल खिरियो ने खाथि जमाय।
गे माइ गौरी जाय दहिन भरि बैसलि थार बदल दुइ भेल।
मनाइनि जाय पाँछा भय बैसलि वर करा एक देल।
गे माइ सेहो करा हम कुकुर जिमायब से पान वर के देल।
घरभरी कालक गीतश्
माय मनाइनि पान लगाबथि सब मिलि कैल ओरियान।
आइ थिकनि घरभरी सखि हे धीया जमैआ मोर जाय।
धानश्पान देल हाथहि सखि हे दुनू मिलि देलि छिड़आय।
भनहि विद्यापति गाओल सखि हे सब बेटी सासुर जाय।
खोंइछ झाड़ैक गीतश्
सगर जनम हम आस लगाओल,
भैया करता बिआह गे माइ।
भौजी के खोंइछा मे हीरा मोती आओत,
ताहि लय गहना गढ़ायब गे माइ।
तेहन घर ने भैया बिआहल,
भौजी खोंइछ दुबिश्धान गे माइ।
जनु कानू जनु खीजू बहिन दुलरुआ,
हम देव गहना गढ़ाय गे माइ।
कोवर परातीश्
अब ने विलासक बेरि हे माधव,
आब ने विलासक बेरि।
मुखहुक पान बिरस सन लागत,
दीपक जोति मलीन। श् हे माधव.....
चेरिया आय बहारय आंगन,
चन्द्रक जोति मलीन। श् हे माधव.....
ग्वाला आय गौ दूहन लागे,
बछड़ डगरि बन गेल। श् हे माधव......
सूरदास प्रभु तुम्हारे दरस को,
सुर्य उदय भय गेल। श् हे माधव.......
कनियाँ मुँह देखैक गीतश्
सुनू हे सखिया सिया मुँह देखू शुभ काल।
पहिने जे देखथि सासु कौषिल्या,
देखू हे सखिया मोहर देखि शुभ काल।
तखन जे देखथिन गोतनि बड़ैतिन।
देखू हे सखिया कंगना देथि शुभ काल।
तखन जे देखथिन ननदि बड़ैतिन,
देखू हे सखिया टाका देथि शुभ काल।
तखन जे देखथि परश्परोसिन,
आषीष देथि शुभ काल। सुनू हेे सखिया....
कोबर नीपै कालक गीतश्
नीक नीपू नीक नीपू दुलहिनिया।
नहि नीक नीपब ते सुनब कहिनिया।
कुम्हराक बेटी अहाँ थिकहुँ दुलहिनिया।
माटि आनि नीपू नइ ते सुनब कहिनिया।
जोलहाक जनमल थिकहुँ दुलहिनिया।
पाट आनि नीपू नइ ते सुनब कहिनिया।
बहियाक बेटी अहाँ थिकहुँ दुलहिनिया।
पानि आनि नीपू नै ते सुनब कहिनिया।
कोबर नीपै काल कनियाँ क ठकैक गीतश्
देखू देखू हे सखि सीता रुसि रहली,
आधा निपलनि कोबर आध छोड़ि बैसली। श् देखूश्देखू .....
सीताक बापकेँ बजाउ, सीता माए केँ बजाउ
की सब सीता के सिखा क वदा कयली। श् देखू....
सुनलनि सासु कौषिल्या हाथ मोहर धयली
कंगना गढ़ायब टीका मंगायब सीता किए रुसली। श् दुखूश्देखू...
गौरी पूजाक गीतश्
गौरी पूजय चलल रुक्मिनि संग सखी दस पाँच यो।
तीन फूल लय गौरी पूजल बेली चम्पा गुलाब यो।
तीन सिन्दुर लय गौरी पूजल मोटिया पीपा अचीन यो।
तीन नेवेद्य लय गौरी पूजल नेवो नारंगी अनार यो।
तीन वस्त्र लय गोरी पूजल लाल पीयर पटोर यो।
तीन बेरि कल जोरि पूजब लय गंगाजल नीर यो।
हड़ीर पानक गीतश्
रतन सिंहासन बैसथु सुलपाणि
रवाथि ने हरीर पान पीवथु जूड़ी पानि।
जेहने महादेव के गौरीदाइ परान
तेहने फल्लाँ दुलहाके फल्लीं दाइ परान।
जेहने रामचन्द्र के सीता दाइ परान
तेंहने फल्लाँ दुलहा के फल्लों दाइ परान।
जेहने हड़ीर खेने मधुर पानि
तेहने फल्लाँ दुलहाक फल्लों दाइ मधुर हे।
मुट्ठी खोलैक गीतश्
सखि मुट्ठियो ने खोलय जमैया
हे हारि गेला रधुरैया।
हमरो सीता मुट्ठी कसि के बान्हल
खोलियो ने सकला जमैया हे।हारि गेला...
हमरो सिया दाइक कोमल आँगुर
धीरे स खोलब जमैया हे। हारि गेला...
चतुर्थीक कालक गीतश्
चलुश्चलु कामिनि कर असनान।
प्रखर भानु मुख करत मलान।
शीतल शुरभीत जल घट देल।
पंकज नायक नभगत भेल।
आजु चतुर्थीक अवसर थीक।
किछुओ ने भिजतह लोहित सारि।
लहु लहु जल हम ढा़रब बारि।
दुहु जन रहु गय अमर कहाय।
वरुण देव नित रहथु सहाय।
कुमर चतुर्थीक उत्सव तोर।
विधिकरी विधि करु भऽ गेल भोर।
नहायकालक गीतश्
राम लखन सन सुन्दर वर के जनु पढ़ियनु केओ गारि हे।
केवल हास विनोदक पुछिअनु उचित कथा दुइ चारि हे।
प्रथम कथा ई पुछिअनु सजनी कहता कनेक विचारि हे।
गोरे दषरथ गोरे कौषल्या, भरत राम किएक कारी हे।
सुनु सखि एक अनुपम घटना, अचरज लागत भारी हे।
खीर खाय बालक जनमौलनि, अवध पुरी के नारी हे।
अकथ कथ की बाजू सजनी, रघुकूल के गति न्यारी हे।
साठि हजार बालक जनमौलनि सगरक नारि छिनारि हे।
नेहलता किछु आब ने कहियनु, एतवे करथि करारी हे।
हँसी खुषी मिथिला से जेता, पठा देता महतारी हे।
वेदी उखारै कालक गीतश्
सखि यदि एक बापक बेटा हेता
दोसर हाथ ने लगेता हे।
दू बापक बेटा हेताह
तखने दोसर हाथ लगोता हे।
दू कोन के वेदी उखारलनि
तेसर आंगन मे ठाढ़ हे।
कहियनु गऽ सासु ससुर सँ
आंगन मे रुसल छथि जमाय हे।
कहियनु जाय जमाय बाबू सँ औंठी देवनि गढ़ाय हे।
पटिया समटय कालक गीतश्
रघुववर पटिया देलनि ओछाय
सीता फेकल जुमाय कोवर घर मे।
गाइन मंगल गीत गाय विधिकरी विधि कराय।
सखि सब करथि विनोद कोवर घर मे।
कहथिन सरहोजि बुझाय जुनि अहाँ अगुताइ।
विधि करियौ आइ कोवर घर मे।
सौजनक गीतश्
मेही भात जतन भनसीआ
साँठि लयल भरि थारी जी,
राहड़िक दालि बटा भरि उत्तम
ताहि देल घी ढ़ारी जी।
ओल पड़ोर तरल तरकारी
खटरस भेग लगावै जी।
महिसिक दही छाँछ भरि उत्तम
परसय प्रेम पियारी जी।
दही खयवा कालक गीतश्
हे वर दही किये ने खाइ छी
माय अहाँक गोआरक बहु छथि
अहाँ संग किएक ने लयलहुँ
संग संग अयली टीसन सँ घुरली
टीकट मास्टर देखि डेरेयली
हे वर चीनी किये ने खाइ छी
माय अहाँक छथि बनियाक बहुआ
स्ंाग किये नहि अनलहुँ
स्ंागे अयली दरबजा सँ घुरली
समधी देखि डेरेयली। हे वर...
चित्ती साटक गीतश्
भितिया मे चितिया सटि हे योगिया
जाहि ठाम लागल सिन्दुर पिठार।
जहाँ जहाँ सुमिरन करबे रे योगिया
रखिहे हिरदय लगाय।
नून तेल पैंच लेल सिन्दुर सपन भेल
पिया भेल डुमरीक फूल। भितिया.... मधुश्रावनीश् गोसाउनिक गीतश्
(1)
विनती सुनियौ हे महरानी, हम सब शरण मे ठाढ़।
अक्षत चानन अहाँ के चढ़ायब, आरती उतारव ना।
बेली चमेलीक माँ के हार चढ़ायब अढ़ूल चढ़ायब ना।
करिया छागर धूर बन्हायब, उजर चढ़ायब ना।
(2)
महिमा तोहर अपार हे जगजननी महिमा तोहर अपार हे।
बामे रवप्पर दहिने कताबहै सोनितक घार हे।महिमा.....
पहिरन चीर गले मुण्डमाला पैर मे नुपुर अपार हे।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस के सदा रहिय रखवार हे। महिमा....
बिसहाराक गीतश्
साओन मास नागपंचमी भेल।
बिसहरि गहवर सोहाओन भेल।
केओ नीपै गहवन केओ चैपारि।
हमही अभागिन निपी दुआरि।
केओ लोढ़े अढ़ूल केओ बेलपात।
हमहू अभागिन हरिअर दूबि।
केओ माँगे अनधन केओ माँगे पूत।
हमहू अभागिन सिरक सिन्दुर।
पावनिक गीतश्
पाबनि पूजू आजु सोहागिन प्राण नाथ के संग मे।
कारी कम्बल झारि गंगाजल काजर सिन्दुर हाथ मे।
चानन घसू मेहदी पीसू लिखू मैना पात मे।
पावनि साजि भरिश्भरि आनल जाही जूही पात मे।
कतेक सुन्दर साज सजल अछि लिखल मैना पात मे।
आँखि मूनै कालक गीतश्
नहुँ नहुँ धरु सखी बाती, धरकय मोर छाती।
नहुँ नहुँ पान पसारह, नहुँ नहुँ दृग दुहु झाँपह।
मधुर मधुर उठ दाह मधुर मधुर अवगाहे।
कुमर करह विधि आजे, मधुश्रावनी भेल आजे।
टेमी कालक गीतश्
क्दली दल सन थर थर कापय मधुश्रावनी आजे।
स्कल सिंगार समारि साजथि सब मधुमय कैल समाजे।
क्मल नयन पर पानक पट दै नागर जखनहि झाँपै।
विधकरी हाथ चन्द्रकर बाती देखि सगर तन काँपै।
आजु सोहागिन सहमल बैसल मुख किये पड़ल उदासे।
अम्बा मुख हेरय कियै कामिनि पल पल लैह उसासे।
कुमर नयन सँ नोर बहाबह गाइनि गाबथि गीते।
बड़ अजगुत मधुश्रावनी विधि परम कठिन इहो रीते।
बटसावित्रीश्
बड़क पूजाक गीतश्
जेठ मास अमावस सजनी गे सब धनि मंगल गाव।
भूषण वसन ठीक करु सजनी गे रचि रचि आँग लगाव।
काजर रेख सिन्दुर भेल सजनी गे पहिरथु सुबुधि सयानि।
हरखित चललि अक्षयवट सजनी गे गवितहि मंगल गाने।
घर घर नारि हकारल सजनी गे आदर सँ सभ गेलि।
आइ थिक बड़साइति सजनी गे तैँ आकुल सभ भेलि।
घुरुमिश्घुरुमि जल ढ़ारल सजनी गे बांटल अक्षत सुपारी।
फतुर लाल देल आषिष सजनी गे जीबथु दुलह दुलारी।
(2)
कतेक जतन भरमाओल सजनी गे, दै दै शपथ हजारे।
सपथहुँ छल जौं जनितहुँ सजनी गे, नहि करितहुँ अंकारे।
आब जगत भरि मानिनि सजनी गे, केओ जनि करय पिरीते।
मुँह सँ अधिक बुझावथि सजनी गे, वचन त राखथि थीर
हुनक हिया दगधल मोर सजनी गे, जसु नलिनी दल नीर।
गुन अवगुन सब बुझलहुँ सजनी गे, बुझलुँ पुरुषक रीत।
मनहि विद्यापति गाओल सजनी गे, पुरुषक कपटी प्रीति।
कोजगरा चुमाओनश्
भैया के करियनु चुमाओन कोजगरा मे।
बाबू जी पुछि पुछि परसथि मखान भोजघरा मे।
आंगन चानन नीपल गेल अछि।
गजमोती चैक पुराय देल अछि।
भैया के कहिऔन चुमाओन कोजगरा मे।
मानिक दीप जराओल दय दय।
काँच बाँस के डाला लय लय।
भैया के करियौन चुमाओन कोजगरा मे।
पचीसी गीतश्
खेलू खेलू यौ भैया बाजी लागइ के।
सीता जीतथि रामजी हारथि बाजी लगाइ के।
सखि सब देथिपिहकारी बाजी लगाई के।
सीता हारथि रामजी जितथि बाजी लगाइ के।
सखी सब गेल लजाय बाजी लगाइ के।
धन्य धन्य सखी हम मिथिलावासी।
रामजी भेला जमाय बाजी लगाइ के।
जुआ खैलै लेल एल जनकपुर वाजी लगाइ के।
हारला भाय बहिन पितिआइन हे वाजी लगाइ के।
दुरागमनश्कनियाँ परिछनिश्
सीता एली अंगना परिछन चलु सखि सब।
कथी के महफा कथी के लागल ओहार हे।
सोनाक महफा रेषमक लागल ओहार हे।
सीता एली अंगना परिछन चलु सखी सब।
कथी के साड़ी कथीक लागल किनारी हे।
रेषमक साड़ी गोटा लागल किनारी हे।
सीता एली अंगना परिछय चलू सखि सब।
कतय गेली सासु ओ ननदि जी हे।
सीता के अरिछिश्परिछि घर लय चलू हे।
सीता एली अंगना परिछय चलू सखि सब।
चमाओन गीतश्
चुमाबहु हे राम सिया के चुमाबहु हे।
आंगन चानन निपल कौषिल्या, गजमोती चैक पुराइ हे।
अलष कलष लय पुरहर साजल, मानिक दीप जराय हे।
काँचहि बाँस के डाला बनल अछि, दही ओ धान सजाई हे।
दूभि अक्षत लय मुनि सब अयला, शुभ शुभ शब्द सुनाई हे।
चुमबय बैसली मातु कौषिल्या, सखि सब मंगल गावे हे।
देहरि छेकक गीतश्
राम सिया मिलि अयला अवधपुर, बहिन छेकलनि दुआरि हे।
हमरा दान देव जहन अहाँ भैया, तहन छोड़व हम दुआरि हे।
सासु ससुर हमरा किछु नहि देलनि, कि देव अहाँ के देहरि छेकाइ हे।
हाथक औंठी भैया खोलि देलखिन, बहिन लेलनि देहरि छेकाइ हे।
खोंइछ झारक गीतश्
सगर जनम हम आस लगाओल, भैया करताह विवाह गे माई।
भौजीक खोंइछ मे सोना चानी आओत, ताहि लय गहना गढ़ायब गेमाई।
तेहना ठाम ने भैया बियहला, भौजीक खोंइछ दुभि धान गे माई।
सगर जनम हम आस लगाओल, भैया करताह विवाह गे माई।
मोरि बैसक गीतश्
मोरि बैसल अहाँ अपन सासु, मुंह जनु अहाँ बाजब हे।
पुतहुँ होयत गलजोर, मुंह जनु अहाँ बाजब हे।
मोरि बैसल अपन पितिया सासु, मुंह जनु बाजब हे।
पुतोहू होयती गलजोर, मुँह जनु अहाँ बाजब हे।
कनियाँ मुँह देखैक गीतश्
सुनु हे सखि सिया मंुह देखु शुभ काल।
पहिने जे देखथि अपन सासु कौषिल्या।
तखन जे देखथिन गोतिन बड़ेतिन।
तखन जे देखथिन ननदि बड़ैतिन।
तखन जे देखथि पर परोसिन सब।
आषीष देथि सब मिलि शुभ काल। सुनु हे सखि....
कोवर परातीश्
आब न बिलासक बेर हे माधव आब न बिलासक बेर।
मुखहुक पान निरस सन लागय, दीपक जोति मलीन।
ग्वाला आबि गो दुहन लागे, गैया हमर बन गेल।
चेरिया आबि झारु दियै, सुरुज उदय भय गेल।
सूरदास प्रभु तुम्हारे दरस को चन्द्रक जोति मलीन।
आब न....
(अगिला अंकमे)
१.रघुनाथ २.कल्पना
१.रघुनाथ मुखिया, नेने बासा
ग्रा. पो.- बलहा, वाया- सुखपुर, जिला-सुपौल
पिन कोड- 852130
(1) अनुत्तरित प्रश्न
सहोदर अर्णवानन्द आ प्रणवानन्दक मघ्य बैसलि
हमर अपूर्णे त्रिवेर्षे तनया
मैथिली एकलव्या
स्वतेत्रता संग्र्रामक इतिहास
उलटेबामे मग्न भेल
गांधी, तिलक, लोहिया, सुभाशक
फोटो सभपर तर्जनी राखि
पुछैत गेलि
पप्पा ई के छियै?
हम कहैत गेलौं-‘बबा!’
फेर पन्ना उनटि गेल
आब मैथिलीक समक्ष
भेल रहै जनरल ओडारक
ओ विकराल चित्र
जकरा देखितहि हमरा
यादि पड़ि गेल छल
देबालसँ घेरल मैदानक
एक मात्र निकास द्वारपर सँ
निहत्था पर तोपसँ चलाओल गेल 1450 राउण्ड गोली
तावत मैथिली
अपन तनल भृकुटी सँग
प्रश्न दागि देलक
पप्पा ई के हेतै?
आ हम अबाक
एहि बेर ई नहि कहि सकलहुँ जे
इहो तोहर बब्बे हेतऽ।
हम सकदम्मे रही
मुदा मैथिली हमरासँ आँखि भिरेने
तावत मैथिलीक नजरि
घरमे दंड खिचैत मूसरीपर पड़ि गेल
फँसल पन्नो उलटि गेल
प्रश्नो बदलि गेल
आ हमरो पिण्ड छुटल
नेनाक अनुत्तरित प्रश्नसँ
(2) कविताक शीर्षक जकाँ
एहि माटिपर
जतऽ कहियो सुग्गा पढ़ैत छल वेद बुझि पड़ल जे गार्गी कोना तैयार भेल हेतीह
विद्रोइक लेल।
भारती कोनो मसल्ला पिसलनि
धुरंधर सन्यासीक छातीपर
तकर चर्चा एखनहुँ होइत अछि
महिषीक माटिपर
एखनहुँ चर्चा होइत झैक जे
सहुआक फेरमे
सिबरानी कोना प्रेमचन्दकेँ मारि देलनि
आ भारती कोना
शंकराचार्यकेँ परास्त कऽ
मंडन मिश्रकेँ तारि देलनि
आ से एकटा अचरज देखियौ जे
भारतीक पराजित हेबाक कोन धूजा
पुरातत्व विद् फनीकांत मित्रकेँ
कतौका संग्रहलयमे भेटि गेलै
जकरा ओ अपन बपौती आकि खतियौनी बुझि
किएक मिथिलामे फहराबऽ लगलाह?
ई सभ किदु कहबाक लेल
मंडन संततिक रुपमे
प्रचण्ड रौदमे तप्त भेल
नहि, नहि दुनुक बीचमे
सत्यक स्वरुपमे
‘वियोगी’ ठाढ़ अछि
सत्यकेँ सत्य कहबा लेल
भगवती उग्रताराक खड्गपर
अपन माथ रखने।
२.कल्पना शरण
क्षितिजक साक्षात दर्शन
सुनै छलहुँ क्षितिजके अर्थ अछि
आकाश आ पृथ्वीक मिलन
यथार्थमे बहुत अवास्तविक कल्पना
असम्भव अछि एहेन संगम
मुदा लागल पृथ्वी बादल के छूलक
सर्दीके कुहास देखलहुँ जखन
वातावरण अस्पष्ट देखायत
एक आर्द्र धुऑं सऽ भरल हरदम
फेर बर्फक आकाशगंगा टपऽ लागल
पृथ्वीक वेग भेल तेज तखन
मेघक मध्य भाग रहै ई
सर्दीमे बर्फ खसैत देखलहुँ जखन
आर आखिरमे ऊपरि पहुँचलहुँ
पसरल चारूकात उज्जर तूर सन
हिमावरित भूमि जेना पाबि गेल
मेघाच्छादित एक श्वेत गगन
एक अत्यन्त अलौकिक दृश्य
क्षितिज के साक्षात दर्शन
१.सतीश २. रूपेश ३. सुबोध
१.सतीश चन्द्र झा
नव वर्ष
बनल धरोहर नव इतिहासक
बीत गेल ई साल ससरि क’।
आउ करी स्वागत नव वर्षक
घृणा,द्वैष के बात बिसरि क’।
बीत गेल सभकें ओरियाक’
एक बरख जीवन के कहुना।
भेटल कखनो हर्ष खुशी त’
कखनो टूटल मोनक सपना।
कतौ बनल संबंध स्नेह के
कतौ स्नेह मे पीड़ा जागल।
सुख-दुख,हर्ष व्यथा मे जीवन
डगमग चलिते आगा भागल।
काँपि उठल ई जीवन कहियो
हृदय विदारक किछु घटना सँ।
भेंट चढ़ल आतंकबाद के
बिछुड़ल कते लोक अपना सँ।
नुका गेल नेन्ना आँचर मे
मुदा आब की ममता जगतै।
सानल देह रक्त मे सांैसे
की स्तन सँ दूध निकलतै।
बाढ़ि,सुखाड़, अकाल, अग्नि सँ
ठहरि गेल किछु क्षण ई जीवन
नहि मानै छै पेट,जाइत छल
फेर सहटि क’ आगा जीवन।
बिलटि गेल घर बार छेाड़ि क’
कते लोक झगड़ा फसाद में।
लागल आगि कतौ भाषा के
राजनीति के नव प्रमाद में।
बढल गेल सभ दाम वस्तु के
रहल अभाव साल भरि अहिना।
ताकि रहल छी बाट कोना क’
बीतत शुभ- शुभ पूरा महिना।
जीवन अछि संघर्ष चलब हम
फेर बिसरि क’ घाव विगत के।
स्वागत करब पुष्प सँ हम सभ
नव- नव आशा मे आगत के।
हमर प्रार्थना नया साल मे
सबके मंगल करथि विधाता।
दीप जड़य सबके आंगन मे
शांति, हषर््ा, सुख दैथि विधाता।
२.रूपेश कुमार झा ‘त्योंथ', पिता-श्री नवकान्त झा, ग्राम+पत्रालय-त्योंथा, भाया-खिरहर, थाना-बेनीपट्टी, जिला-मधुबनी, सम्प्रति कोलकाता मे स्नातक (अन्तिमवर्ष) मे अध्यनरत, साहित्यिक गतिविधि मे सक्रिय, अनेक रचना विभिन्न पत्र-पत्रिकादि मे प्रकाशित।
चाही हमरा मिथिला
ई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला
मान करै छी हिन्द देश केर, हम्मर झंडा तिरंगा
एकर नीचां चाही हमरा, एकटा अप्पन मिथिला
ई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला
पुरा काल मे मिथिला मे छल, ज्ञानी-प्राणी बड-बड
मुदा हाल आब देखू एकर भऽ गेल केहन जर्जर
भेल उपेक्षा हमर सभक, कयलहुँ बड्ड डिन मर-मर
आब ने खायब टपला, चाही हमरा मिथिला
माटि एतय केर उपजाऊ अछि, नहि बूझू यौ उस्सर
प्रतिभा सभ अछि भरल-पडल, नहि बूझू अहाँ भूधड
सुतल छलथि यौ मैथिल जन सभ, आब सभ क्यो जगला
ई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला
सुख-सुविधा केर अता-पता नहि, सउँसे थिक अन्हारे
बाढि प्रभावे फसल बहैए, भऽ जाइछ लोक बिनु चारे
कथा सडक केर कहल जाय ने, लगै जेना हो डबरा
आब ने रहब फुसला, चाही हमरा मिथिला
भेटल आजादी सगर देश मे, मिथिला जेना परतंत्रे
कोनो लाभ लेल हमरा सभ, तकै छी पाटलिपुत्रे
मुदा भेटै अछि किछुओ नहि यौ, भऽ जाइछ ओम्हरे घपला
ई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला
शुरुए सँ कतियाएल कनै छी, दुनू हाथ धऽ माथ
करै मिथिला राज अलग, नहि चलतौ कोनो लाथ
मात्र ङङ्गत्योंथ' नहि एकहि संग यौ, सभ मैथिल जन बजला
ई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला
३. सुबोध कुमार ठाकुर
आशा
जीवनक ज्योति ओ प्रकाश
सबहक जीबए कऽ एके गो श्रोत
होइत अछि सुखमए सुन्दर आश,
सोचू जे आशा नहि होइतए
जीवनक परिभाषा नहि होइतए
एकरे बलपर विश्वक सभ क्षेत्र
चाहे ओ होए कोनो परिवेश,
एकरे बलपर सभ पर्व उल्लास,
जीवनक ज्योतिक प्रकाश
नान्हिये टाक बच्चा लए कए
पोसथि छथि माए एहि आशा लए कए
पैघ भेला पर ईएह राखत हमर विश्वास,
सबहक जीबए कऽ एके गो श्रोत
होइत अछि सुखमए सुन्दर आश,
बिलटि गेल जन कुनु परिवार
भए गेलै जन अर्थक अभाव
तैयो ओ जीबि लैत अछि
काल्हिक बलपर आइ खेपैत अछि
सुखले रोटीमे भेटए मालपुआक आभाष
सोचू होइत अचि कतेक सुन्दर आश
सरिपहुँ आशा विहीन प्राणी
होइत अचि जेना नदी बिन प्राणी
कहीं गेला अए दिव्य ज्ञानी
आबि जाए हुनक जीवन लीलामे खटास
जीबए लेल जरूरी चए तँए आस
शेफालिका
डॉ. शेफालिका वर्मा
अनबुज्हल
अंतरिक्ष सँ अकास सँ अन्तरक उजास सँ
स्वर पर स्वर आबि रहल अछि
कान मे गूंजि रहल अछि................
हम अहांकेँ देखने छी
मुन्हारि संझाक रुसल बेरिया मे ..
जखन अन्हार किरनक छाती सँ
प्रकाश निचोरि पिबैत अछि
अक्सर अहांकेँ देखने छी
गुज्ज गुज्ज अन्धकार मे
इजोतक निर्माण करैत
हतास निरास मानवकेँ जीवनक वरदान दैत :
अहांक अंतर्मन
अबाध लेखनी थिक
अनकहल परिभाषा केँ जाहि सँ आकार भेटल
शब्द केँ अर्थ भेटल
स्वप्नक सिनेह भेटल
तैयो
अहांकेँ बुझवाक प्रयत्न केओ नहि केलनि
त्यागमयी बनी पीबि रहल छी विष
बांटि रहल छी अमृत अहाँ
शांतिप्रिय शांतिप्रिय
प्रसंग चाहे जे होइ
सम्बन्धक सीमा मे सिनेह नहि
स्वार्थ बसैत अछि , मानवक भेख मे
राम नहि रावण घुमैत अछि ...
स्वार्थ पर जोड़ल संबंधक देवारक
प्लास्टर झरि जाइत छैक
विश्वासक कांच रंग कालक
रौद मे उड़ि जाइत छैक ....
रंगहीन गंधहीन निर्जीव
रिस्ताक लहास केँ क्रोंस जकां
अपन कांह पर उठेनाइ
अनुचित मे अपन उचित के मारनाइ
ई परिभाषा रिश्ता नाताक खूब अछि ...........
नाम केओ लाख राखि लैक
राम सन राजा
लक्षमण सन भ्राता
सुग्रीव सन दोस्त
नहि तँ भेल अछि आ नहि तँ होएत
हंह ...
सीता मौन मूक भए
अग्निपरीक्षा मे जरबाक परम्पराक
जन्म देलीह आ तैं सीता आइयो
जरि रहल अछि
प्रसंग चाहे जे होए ..............
वचनक मास
अहांक वचन हम आएब
हमर आँचर मे इन्द्रधनुष उतरल
सतरंगी भावना मे
मोनक रस रूप पसरल
आ क्षण पर क्षण कपूर जकां उड़ैत रहल
कैलेंडरक पन्ना फाटैत रहल
वचनक ओ मास कहियो नहि आएल
कहियो नहि आएल
जरैत सिगरेट जकां मोन हमर
दहैत रहल
कामना छाउर बनैत रहल
मृत्युक महक पसरैत रहल
वचनक ओ मास कहियो नहि आएल
कहियो नहि आएल............
महाकान्त शिव
१.महाकान्त ठाकूर, जन्म भूमि-,बाबू पाली (पाली मोहन), खजौली, मधुबनी, मिथिला। प्रकाशन- 1. धरती आ चान (बाल साहित्य), 2.केहन स्वर्ग (काव्य संग्रह) आ अनेको पत्र पत्रिकामे कविता, कथा तथा निबंध प्रकाशित।
(1) की चाहलौ
मुक्ति चाहय वला लेल जेल ऐ
धरती के जेल बना देल गेल ऐ
कहाँ चाहलौ हमर जन्म हुअय?
छुच्छे भूख प्यास अकाल देखल
जननीक आँखिमे घुमरैत हाहाकार देखल
ठिठुरैत पूस मे
कहाँ चाहलौं हमर जन्म हुअय?
सर्दी गर्मी वस्त्रहीन सहल
नेन्ना ने नेनपन बूझल
स्वान तुल्य जीवन लेल
कहाँ चाहलौं हमर जन्म हुअय?
देश जँ डकैत लेेल
शांति ऐ लठैत लेल
भूख सँ ऐंठल कोखि सँ
कहाँहा चाहलौं हमर जन्म हुअय?
कहु कतय भूल ऐ?
पापक कि मूल ऐ?
भ्रूण हत्याक सुविधा छल
कहाँ कहलौं हमर जन्म हुअय?
नंगटे तऽ सभ छलौं
कहाँ कियो मर्द भेलैं
नपुंसक संसार मे
कहाँ चाहलौं हमर जन्म हुअय?
सम्राट कहय शांत रहू
भले कते क्लांत बहू
आत्मधाती बम बनय लेल
कहाँ चाहलौ हमर जन्म हुअय?
सूर्य सन इजोत होयत
कर्म नित्य कष्ट घोयत देवतो सँ श्रेष्ठ नर
तेँ चाहलौं हमर जन्म हुअय!!
(2) उदारीकरण
हाथ मे कटोरी ऐ
मौनी चंगेरी चंगेरा ऐ
विश्वबैंक संग
अमेरिका मुसिआइए
भूतपूर्व जगत गुरु
थोड़बो ने लजाइए।
आर माँगू आर माँगू
जे -जे फूड़ाइए।
जी- 8 देशक तिजौरी
फूजल ऐ
लीअ उधार
बीकय दिऔ नालको बालाको
बैंक बीमा कंपनी
गैस तेल भंडार
नदी पुल पहाड़
साकिन होबय धरि
खाइत रहू उधार।
हरीशचन्द्रक वंशजकेँ
राज पाट घुमा देत महाधिपति अमेरिका
स्टार वार के बाद।
२.शिव कुमार झा ‘‘टिल्लू‘‘,नाम ः शिव कुमार झा,पिताक नाम ः स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘,माताक नाम ः स्व0 चन्द्रकला देवी,जन्म तिथि ः 11-12-1973,शिक्षा ः स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम $ पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर,पिन: 848101,संप्रति ः प्रबंधक, संग्रहण,जे0 एम0 ए0 स्टोर्स लि0,मेन रोड, बिस्टुपुर
जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि ः वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार - प्रसार हेतु डाॅ0 नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चैधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्व मे संलग्न
!! मधु श्रावणी !!
मधुप विना सुन्न उपवन रे, मधुश्रावणी आयल ।
कंत विनय विवश कतऽ रे हिय ‘आरती’ हेरायल ।।
सुनू शिव छलिया स्वांगी बनि हमरा विरहय लहुॅ,
संग महादेव नाम देवर केॅ कलंकित कयलहुॅ
मधुप ................................................................. ।
हम कएल कतेक अनुग्रह रे अहूॅ हमरा वचन देल,
मंजुल मिलन कतऽ गेल रे, कतय बात कलित गेल,
मधुप ................................................................. ।
हऽम अभागलि मैथिली रे, अपनहि देल घात,
नुपूर खनकि दुःख कातर रे, तोड़ल दामिनी गात,
मधुप ................................................................. ।
विकल मल्हार सुनि शिव, आनन हॅसी सॅ उमड़ायल,
जुनि हहरू सिये, अहाॅ लखन रघुवर संग आओल,
मधुप ................................................................. ।
!! बरहमासा !!
प्रियतम आकुल कुम्हरल दारा मन,
टिहुकि उठल ना ।।
मूक शिशिर पुचकारथि कोना ?
दूर द्वीप सजना ।
जामिनी बनल कंत बिनु विजन,
तरूणी माघ मनाओल क्रन्दन,
सरस वसन्त क ललित रात्रि मे -
हहरै कंगना ।
प्रियतम................................................ ।।
दादुर ठहकय तृप्ति सरोवर,
अश्रुधार सॅ सींचित कोबर,
कीर मृदुल सुनि चैतो बीतल,
विह्वल नयना ।
प्रियतम ................................................................. ।
अहॅ सॅ सिनेहक धंधा कयलहुॅ,
पौन आस बैशाख बुड़यलहुॅ
हृदयक मीन नीर बिनु व्याकुल -
सुन्न पलना ।
प्रियतम ................................................................. ।
जेठक रौदी काटि रहल छल,
सूखल कानन झाॅटि रहल छल,
उदधि अकाशे जल सॅ तिरपित -
लवालव अंगना ।
प्रियतम ................................................................. ।
परिमल साओन मौन मनाओल,
तुहिन गात तर आश्विन आयल,
कातिक - अगहन बिहुॅसथि -
पूस माॅगै छथि ललना ।
प्रियतम ................................................................. ।
१. निमिष २. धर्मेन्द्र
१. निमिष झा
असमर्पित उन्मामद
अहाँक वएह नयन, वएह मोन आ वएह तन
हम देखिरहल छी, सुनिरहल छी आ भोगिरहल छी
समयक लम्बा अन्त.रालक बाद सेहो
आँखि खोलैत आ मिचैत सेहो
आ अहाँ हमर शरीरक अदृश्य. सरित प्रवाहमे
सर्वाङ्ग समाहित छ, सज्जि त छी ।
ई अभीष्ट रूप अहीँक थिक
जकर अनुपस्थितिमे हमर चित्त
शुष्कन सिकतातुल्यम भऽ गेल अछि
ई शीतल छाहरि अहीँक थिक
जकर अभावमे
हरेक निमिष हमरा लेल
नीरस आ उदास वसन्ते बनि गेल अछि ।
अहाँ पनि छी हमर पियासक
अहाँ वसन्ती छी हमर बतासक
तएँ एकटा अतृप्त् उन्माेद
नाचिरहल अछि भैरव बनि
हमर मानसमे ।
हमर स्नामयुक रोब–रोबमे
एकटा विषाक्त तृष्णाु
बहिरहल अछि
आ बहिरहल अछि
हमर धमनीक कण–कणमे
एकटा उन्मुकक्त तृषा ।
बहुत बेर उघारि दलियै, फारि देलियै
नृशंस बनि आवेशसँ
लज्जा क पर्दासब
आ बन्दब कऽ देलियै नैतिक मूल्यिसँ
पाशविक उन्माददसब ।
हँ !
आईयो ओहिना स्मृऽतिमे लटपटायल अछि
अहाँक गरम साँसमे
गुञ्जिगत हमर जीवन सङ्गीत
अहाँक आँचरमे ओझरायल हमर सर्टक बट्टम
अनार जकाँ अहाँक दाँत पर
पिछरैत हमर जीह
अहाँक ब्ला उजक हुकसँग खेलैत
हमर दसो आँगुर
आ अहाँक सुन्दसर छाल पर
दौड़ैत हमर ठोर ।
तथापि किएक नहि मिझाइत अछि
छातिक ई उन्महत्त मोमबत्ति
किएक निष्कामम नहि होइत अछि
मोनक उत्तप्त बोखारसब
जेना अहाँ
दारुक प्या्ला होई
आ हम चुस्कीत लऽ रहल छी
मदहोस भऽ रहल छी
अहाँक स्वरप्नि ल लज्जािनत तनमे
निमिष निमिषमे ।
मुदा उफ !
ई केहन विडम्बिना !
नित्यनशः
एक्केनटा विन्दू पर दुर्घटना होइत गेल
हमर उच्छृडङ्खल वासनासब
अहाँक दर्शन आ सिद्धान्तवक शिखरसँ
नितदिन एक्केआ रस्ता घुरि जाइत छल
अभिशप्तए अहाँक विचार
हमर अभिशून्य मस्तिाष्काके झकझोरैत छल ।
शायद कमजोरी हमरा मे छल
कि गिद्ध बनि हम युद्ध नहि कऽ सकलौं अहाँक तनसँ
शायद महानता अहाँक छल
माला बनि अहाँ समर्पित नहि भऽ सकलौं हमर गलासँ ।
जीवन एकटा दुरुह कविता
अर्थहीन शब्दरक
अर्थ खोजबाक अभिलिप्साकमे
अनायास थमि जाइत अछि आँखि
फारि दैति छियै
पन्नादक पन्नाँ
चेतनाक शब्दिकोश
आ भोगैत छी
एकटा पराजयक थकान
जत्त नहि भेटैत छै
जीवनक यर्थाथक अर्थ
आ तएँ
बुझाइत अछि
जीवन एकटा दुरुह कविता छै ।
बजैत छै
लयात्मैक गीत
जीवनक मधुर सङ्गीत
आ छम...छम...कऽ नचैत सङ्गीतसँग
असंख्यम कलात्म क पएर
आ प्रस्फु.टित भऽ जाइत छै जीवन उपवनमे
मुदा
अनायास फेर
बन्दा भऽ जाइत छै सङ्गीतक धुन
थाकि जाइत छै पएर
मुरझा जाइत छै उपवनक फूल
आ तएँ
बुझाइत अछि
जीवन एकटा सारहीन सङ्गीत छै ।
आन्न द छै
माछ जकाँ
जीवन सरोबरमे हेलब
उल्लासस छै
एकटा गुड्डि जकाँ
आकाशमे उड़ब
मुदा उड़ि नहि सकैत अछि
हमर आल्हा दित मोन
आ अनायास
उल्लायसक धरातलसँ
दुर्गतिक चट्टान पर
अनवरत खसैत छै मोन
आ डुबि जाइत छै
सरोबरमे
आ तएँ
बुझाइत अछि
गुड्डि जकाँ उड़ि नहि सकबाक
आ माछ जकाँ
हेलऽ नहि सकबाक
नियतिक भोग छै
जीवन ।
२.धर्मेन्द्र विह्वल
ब्रम्ह बाबाक अवसान
सरधुवा जोनिडाहा
जानि ने कत’ सँ फेर आबिगेल
लाठि टेकि चलैत
एकटा वृद्धाक मूहँसँ
अस्फूवटरुपेँ किछु अक्षरक
उच्चावरण भेलै
कहुना सही
हम अपना मोने जीवैत त’ छलौँ
मुदा, मुदा ई जोनिडाहा
ओकर मूहँ अनायस बन्दा भ’ गेलै,
ओ वृद्धा जे पागलि
घोषणा क’ देलगेल छलि
ब्रम्हधथानक डिहवारक पँजरा
ओकर आश्रय बनल छल
सभकिछु नष्टन भ’ गेल
आब ई ब्रम्होल बाबा
रहताह कि नहि ?
ओकर मूहँक बनैत बिगडैत आकृतिसँ
ओकर चिन्ताबक पराकाष्ठारक
अनुमान कएल जा सकैत अछि
एखनधरि त’ ब्रम्ह्बाबा जीवित छथि
आब रहताह कि नहि ?
वृद्धाक आँखि घोकचैत जा रहल छै ।
बालानां कृते-
१.जगदीश प्रसाद मंडल-लघुकथा २.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
३.कल्पना शरण: देवीजी
१.जगदीश प्रसाद मंडल
लघुकथा
11 उग्रघारा
द्वापर युगक संध्याकालीन कथा थिक। महाभारतक लड़ाई सम्पन्न भऽ गेल छल। एक दिन एकांत मे बैसि अर्जुन त्रेताक राम-रावणक लड़ाई आ द्वापरक कौरव-पाण्डवक लड़ाइक तुलना मने-मन करति रहथि। अनायास मोन मे उठलनि जे लंका जेवा काल रामक सेना एक-एक पाथरक टुकड़ा कऽ जोड़ी जे समुद्र मे पुल बनौलनि, ओ त एक तीरो मे बनि सकैत छल। एहि प्रश्न पर जत्ते सोचति तत्ते शंका बढ़ले जाइन। अंत मे, यैह सोचलनि जे पम्पापुर मे हनुमान तपस्या कऽ रहल छथि तेँ हुनके स किऐक ने पूछि लेल जाय।
हनुमान केँ भजिअबै ले अर्जुन विदा भेला। जाइत-जाइत हनुमानक कुटी पर पहुँचलथि। हनुमान तपस्या मे लीन रहथि। कुट्टीक आगू मे बैसि अर्जुन हनुमानक ध्यान टूटैक प्रतीक्षा करै लगलथि। जखन हनुमानक ध्यान टूटलनि तऽ अर्जुन कऽ देखलखिन। आसन स उठि अतिथि-सत्कार करैत हनुमान अर्जुन केँ पूछलखिन- ‘अहाँ के छी, कोन काजे एहिठाम एलहुँ?
अपन परिचय दइत अर्जुन कहै लगलखिन- ‘अपने त्रेताक महावीर छी तेँ एकटा शंकाक समाधानक लेल एलहुँ।’
‘पुछू?’
‘लंका जेबा काल जे समुद्र मे एक-एक टा पाथरक टुकड़ा जोड़ि जे पुल बनाओल, ओ त एक तीरो मे बनि सकैत छल?’
अर्जुनक बात सुनि, किछु काल गुम्म भऽ हनुमान उत्तर देलखिन- ‘हँ, मुदा ओ ओते मजगूत नहि होइतैक जते एक-एक पाथरक टुकड़ा जोड़ि कऽ भेलैक।’
हनुमानक उत्तर स अर्जुन असहमत होइत कहलखिन- ‘तीरोक बनल पुल त ओहने मजगूत भऽ सकैत छलैक।’
एहि प्रश्न पर दुनूक बीच मतभेद भऽ गेलनि। अंत मे परीक्षाक नौबत आबि गेलैक। दुनू गोटे समुद्रक कात पहुँचलाह। तरकश स तीर निकालि अर्जुन धनुष पर चढ़ा, समुद्र मे छोड़लनि। पुल बनलै। अपन विकराल रुप बना हनुमान पुल पर कुदैक उपक्रम केलनि। अन्तर्यामी कृष्ण सब देखति रहथि। मने-मन सोचलनि जे महाभारतक नायक अर्जुन हारि रहल छथि। हुनक हारब हमर हारब हैत। संगहि महाभारतक लड़ाई सेहो झूठ भऽ जेतैक। तेँ प्रतिष्ठा बँचबैक घड़ी आबि गेल अछि। जहि सोझे हनुमान पुल पर खसितथि तहि सोझे कृष्ण अपन कन्हा पुलक तर मे लगा देलथिन। हनुमान कुदलाह। पुल त टूटै स बचि गेलैक मुदा कृष्णक करेज चहकि गेलनि। जहि स पानि मे खून पसरै लगलैक। खून स रंगाइत पानि देखि हनुमान ध्यान करै लगलथि जे ऐना किऐक भऽ रहल छैक। भजिअबैत ओ ओहि जगह पर पहुँच कृष्ण कऽ देखलखिन।
अचेत कृष्ण कऽ देखि, दुनू हाथ जोड़ि हनुमान क्षमा मंगलखिन।
12 व्यवहारिक
जीवनी (व्यवहारिक) आ अनाड़ीक (अव्यवहारिक) प्रश्न असान नहि। एहि विशाल संसार मे लाखो-करोड़ो ढ़ंगक जिनगी बना लोक जीवैत अछि। एकक जिनगी दोसर स मिलबो करैत आ भिन्नो होइत। तेँ एकक व्यवहारिक ज्ञान दोसराक लेल नीको होइत आ अधलो।
चारि गोट स्नातक महाविद्यालय स निकलि घर (गाम) जाइत रहथि। चारु केँ अपन-अपन ज्ञान पर गर्व। दुपहर भऽ गेलइ। सभकेँ भुखो लगलनि। रास्ता मे रुकि खाइक ओरियान मे चारु गोटे जुटि गेलाह। तर्कशास्त्री आँटा अनै दोकान गेल। पोलीथीनक झोरा मे आँटा कीनि अबैत छल। मन मे फुड़लै जे झोरा मजबुत अछि कि नहि। तथ्य जनैक लेल झोरा कऽ हाथ स दबलक। झोरा फटि गेल। आँटा हरा (छिड़िया) क माटि मे मिलि गेल। फेरि घुरि कऽ चाउर कीनि ओरिया कऽ नेने आयल।
कलाशास्त्री जारन अनै गेल। हरियर-हरियर सुन्दर गाछ देखि मुग्ध भऽ गेल। गाछ स सुखल जारन नहि तोड़ि काँचे झाड़ी काटि कऽ नेने आयल। कहुना-कहुना क तेसर (पाक शास्त्री) ओइह कँचका जारन पजारि बटलोही चढ़ौलक। अदहन जखन भेलइ त चाउर लगौलक। कनिये कालक बाद बटलोही मे चाउरो आ पाइनियो खुद-वुद करै लगल। बटलोही मे खुद-वुद करैत देखि पाकशास्त्री मग्न भ गेल। चारिम जे व्याकरण जननिहार छल बटलोहीक खुद-वुद अवाज देखि-सुनि, व्याकरणक उच्चारणक हिसाव स गलत बुझि, तमसा क ओकरा उल्टा देलक। भात चुल्हि मे चलि गेल। एक गोटे सब तमाशा देखैत छल। चारु कऽ भुखल देखि दया लगलै। ओ अपन मोटरी स नोन-सत्तू निकालि कऽ चारु गोटे केँ खाइ ले दैत कहलक-‘किताबी ज्ञान स व्यवहारिक अनुभवक मूल्य अधिक होइत।’
13 समरपन (समर्पण)
समुद्र स मिलैक लेल धार (नदी) विदा भेलि। रास्ता मे बलुआही इलाका पड़ैत छल। जुआनीक जोश मे धार विदा त भेलि मुदा रास्ता क बालू आगू बढ़ै ने दैत। सब पाइन सोखि लैत। धारक सपना टूटै लगलैक। मुदा तइयो साहस क धार अपन उद्गम स्रोत स जल लऽ लऽ दौड़ि कऽ आगू बढ़ै चाहैत मुदा धारक सब पानि बालू सोखि लैत। जहि स धार आगू बढ़ै मे असफल भऽ जायत। झुंझला कऽ निराश भऽ धार बालू के पूछलकै- ‘समुद्र मे मिलैक हमर सपना अहाँ नहि पूर हुअए देव?’
बालू उत्तर देलकै- ‘बलुआही इलाका होइत जायब संभव नहि अछि। अगर अहाँ अपना प्रियतम सँ मिलै चाहैत छी त अपन सम्पत्ति बादल केँ सौंपि दिऔक, तखने पहुँच पायब।’
अपन अस्तित्व कऽ समाप्त करैक अद्भुत समरपनक साहस हेबे ने करै। मुदा बालूक विचार मे गंभीरता छलैक। किछु काल विचारि धार समरपनक लेल तैयार भऽ गेलि। तखन ओ पानिक बुन्नक रुप मे अपना क बदलि बादलक सबारी पर चढ़ि समुद्र मे जा मिलल।
14 स्रष्टाक समग्र रचना
सृष्टि निरमानक (निर्माणक) काज सम्पन्न भ गेलि। प्राणी सभ क बजा ब्रह्मा अपन-अपन कमीक पूर्ति करा लइ ले कहलखिन। सब प्राणी अपन-अपन कमीक चरचा करै लगल। मुद एक्के बेरि जे सब बजै लगल ते हल्ला मे केयो ककरो बात सुनबे ने करैत। तखन सभकेँ शान्त करैत ब्रह्मा बेरा-बेरी बजै ले कहलखिन। सभक बात सुनि ब्रह्मा ककरो अठन्नी ककरो चैवन्नी, ककरो दस पैसी सुधार कऽ देलखिन।
अखन धरि मनुक्ख पछुआइले छल। पहिने ब्र्र्र्र्र्रह्मा नारी के पूछलखिन। ‘अहाँ मे की कमी रहि गेल अछि, बाजू?’
तमतमाइत नारी कहलकनि- ‘हमरा त बड़ सुन्नर बनेलहुँ, मुदा अपना सन दोसर नारी के देखि मन मे जलन हुअए लगैत अछि। तेँ एक रंग दू टा नारी नहि बनबियौक।’
मुस्कुराइत ब्रह्माजी एकटा अयना आनि नारीक हाथ मे द देलखिन आ कहलखिन- ‘बस, एक्केटा सहेली अहाँ सन बनेलहुँ। जखन मन हुअए तखन आगू मे अयना राखि देखि लेब। जँ सेहो देखैक मन नहि हुअए त अयना देखबे ने करब।’
15 देवता
मनुक्खक रोम-रोम मे ईश्वर परब्रह्म समाइल छथि। ककरो अहित करैक इच्छा करब अपना लेल पाप कऽ बाजाएव थिक। दधीचिक पुत्र पिप्लाद अपन माइक मुहे अपन पिताक हड्डी देवता द्वारा मांगब आ ओहि स बनाओल बज्र स अपन परान बचाएव सुनलनि। सुनितहि पिप्लाद क देवताक प्रति असीम घृणा मन मे उठलनि। मने-मन सोचै लगलथि जे अपन स्वार्थ सधैक लेल दोसरक प्राण हरब, कत्ते नीचता थिक। मन मे क्रोध जगलनि। पिताक बदला लेबा लेल ओ (पिप्पलाद) तप करैक विचार केलनि।
पिप्पलाद तप शुरु केलनि। तप शुरु करितहि मनक ताप कमै लगलनि। बहुत दिनक उपरान्त भगवान शिव प्रकट भऽ कहलखिन- ‘बर मांगू?’
प्रणाम क पिप्पलाद शिव केँ कहल- ‘अपने अपन रुद्र रुप धारण क एहि देवता सभ केँ जरा भस्म कऽ दिऔक।’
पिप्पलादक बर (बात) सुनि शिव स्तब्ध भऽ गेला। मुदा अपन वचन त पूरबै पड़तनि। तेँ देवता क जरबैक लेल तेसर आखि खोलैक उपक्रम करै लगलथि। एहि उक्रमक आरंभे मे पिप्पलादक रोम-रोम जरै लगल। अपन अंग क जरैत देखि (बुझि) जोर स हल्ला करैत शिव क कहै लगलखिन- ‘भगवान! ई की भ रहल अछि? देवताक बदला हम खुदे जरि रहल छी।’ मुस्की दैत शिव कहलखिन- ‘देवता अहाँक देह मे सन्हिआइल छथि। अवयवक शक्ति हुनके सामथ्र्य छिअनि। देवता जरता आ अहाँ बँचल रहब। से कोना हैत? आगि लगौनिहार स्वयों जरैत अछि।’
पिप्पलाद अपन याचना घुमा लेलनि। तखन भगवान शिव कहलखिन- ‘देवता सभ त्यागक अवसर द अहाँ पिताक काज क गौरवान्वित केलनि। मरब त अनिवार्य थिक। एहि से ने अहाँक पिता बँचितथि आ ने वृत्तासुर राक्षस।’
पिप्पलादक भ्रम टूटि गेलनि। ओ आत्म कल्याण दिशि मुड़ी गेलाह।
16 पाप आ पुण्य
अपन पोथी-पतरा उनटबैत चित्रगुप्त आसन पर बैसल छलाह। तहि बीच दू गोटे कँे यमदूत हुनका लग पेश केलक। पहिल व्यक्तिक परिचय दैत यमदूत कहलकनि- ‘ई नगरक सेठ छथि। हिनका घनक कोनो कमी नहि छनि। खूब कमेबो केलनि आ मंदिर, धरमशाला सेहो बनौलनि।’
कहि यमराज सेठ क कात मे बैसाय देलक। दोसर क पेश करैत बाजल- ‘ई बड़ गरीब छथि। भरि पेट खेनाइयो ने होइत छनि। एक दिन खाइत रहति कि एकटा भूखल कुत्ता लग मे आबि ठाढ़ भ गेलनि। भूखल कुत्ता क देखि थारी मे जे रोटी बँचल रहनि ओ ओकरा आगू मे दऽ देलखिन। अपने पानि पीबि हाथ धोय लेलनि। आब अपने जे आज्ञा दियैक।’
यमदूतक बयान सुनि चित्रगुप्त पोथिओ देखति आ विचारबो करथि। बड़ी काल धरि सोचैत-विचारैत निर्णय देलखिन- ‘सेठ के नरक आ गरीब के स्वर्ग ल जाउ।’
चित्रगुप्तक निर्णय सुनि यमराजो आ दुनू व्यक्तियो अचंभित भऽ गेल। तीनू गोटे केँ अचंभित देख अपन स्पष्टीकरण मे चित्रगुप्त कहै लगलखिन- ‘गरीब आ निःसहाय लोकक शोषण सेठ केने अछि। ओहि निःसहाय लोकक विवशताक दुरुपयोग केने अछि। जहि स अपनोे ऐश-मौज केलक आ बचल सम्पत्तिक नाम मात्र लोकेषणक पूर्ति हेतु व्यय केलक। तहि स लोकहितक कोन काज भेलैक? ओहि मंदिर अ धरमशल्ला बनबैक पाछू ई भावना काज करैत छलैक जे लोक हमर प्रशंसा करै। मुदा पसेना चुबा के जे गरीब कमेलक आ समय ऐला पर ओहो कुत्ते क खुआ देलक। जँ ओकरा आरो अधिक धन रहितैक ते नहि जानि कत्ते अभाव लोकक सेवा करैत।’
17 परख
एकटा किसान कऽ चारि टा बेटा छल। बेटा सभक बुद्धि परखैक लेल किसान सभकेँ बजा एक-एक आँजुर धान द कहलक- ‘तू सब अपन-अपन विचार स एकरा उपयोग करह।’
धान के कम बुझि जेठका बेटा आंगन मे छिड़िया देलक। चिड़ै सब आबि बीछि-बीछि खा गेल। ओहि धान कऽ माझिल बेटा तरहत्थी पर ल-ल रगड़ि-रगड़ि, भुस्सा क मुह से फूकि, खा गेल। बापक देल धान क सम्पत्ति बुझि साँझिल बेटा कोही मे रखि लेलक, जे जँ कहियो बाबू मंगताह ते निकालि कऽ द देवनि। छोटका बेटा, ओहि धान कऽ खेत मे बाउग क देलक। जइ स कैक बर बेसी धान उपजलैक।
किछु दिनक बाद, चारु बेटा केँ बजा किसान पूछलक ‘धान की भेल?’
चारु बेटा अपन-अपन केलहा काज कहलकनि। चारु बेटाक काज देखि किसान छोटका बेटा क बुद्धियार बुझि परिवारक भार दैत कहलक- ‘परिवार मे ऐहने गुण अपनबै पड़ैत छैक। ऐहने गुण अपनौला स परिवार सुसम्पन्न बनैत छैक।’
18 आलसी
एकटा गाछ पर टिकुली आ मधुमाछी रहैत छलि। दुनूक बीच घनिष्ठ दोस्ती छलैक। भरि दिन दुनू अपन जिनगीक लीला मे लगल रहैत छलि। अकलबेरा मे दुनू आबि अपन सुख-दुखक गप्प-सप्प करैत छलि।
बरसातक समय एलै। सतैहिया लाधि देलकै। मधुमाछीक लेल त अगहन आबि गेलैक मुदा टिकुलीक लेल दुरकाल। भूखे-पियासे टिकुली घरक मोख लग मन्हुआइल बैसलि छलि। मुह सुखायल आ चेहरा मुरुझाइल छलै। चरौर क आबि मधुमाछी टिकुली कऽ पूछलकै- ‘बहिन! ऐहन सुन्नर समय मे एत्ते सोगाइल किऐक बैसल छी?’
मधुमाछीक बात सुनि कड़ुआइल मने टिकुली उत्तर देलकै- ‘बहिन! मौसमक सुन्नरता स पेटक आगि थोड़े मिझाइत छै। तीनि दिन स कतौ निकलैक समये ने भेटलि, तेँ भूखे तबाह छी।’
उपदेश दैत मधुमाछी कहलकै- ‘कुसमयक लेल किछु बचा क राखक चाही।’
‘कहलौ त बहिन ठीके मुदा बचा क रखला स आलसियो भऽ जैतहुँ आ भूखलक नजरि मे चोरो होइतहुँ।’
19 प्रेम
जखन परिवार मे पति-पत्नी आ बच्चा सभक बीच स्नेह रहैत छैक तखन परिवार स्वर्गो स सुन्दर बुझि पड़ैत छैक। नमहर स नमहर विपत्ति परिवार मे किऐक ने आबे मुदा ढ़ंग स चलला पर ओहो आसानी स निपटि जाइत छैक। एकटा छोट-छीन गरीब परिवार छल। दुइये परानी घर मे। सब साल दुनू परानी-सुनिता आ सुशील- अपन विवाहोत्सब मनबैत। गरीब रहने त बहुत ताम-झाम स उत्सव नहि मनबैत मुदा मनबैत सब साल छल। छोट-मोट उपहार एक-दोसर क, याद स्वरुप दैत छल। साले-साल एहि परम्परा क निमाहैत।
अहू बर्ख ओ दिन एलै। उत्सवक दिन स किछु पहिनहि स उपहारक योजना दुनू मने-मन बनवै लगल। मुदा दुनूक हाथ खाली। भरि पेट खेनाइयो ने पूरै तखन जमा क की राखैत। मने-मन सुशील योजना बनौने जे पत्नीक केश मे लगबै ले क्लीप नहि छैक तेँ एहि बेरि ओइह (क्लीप) उपहार देबैक। तहिना सुनितो सोचैत जे पति घड़ीक चेन पुरान भ गेल छनि तेँ एहि बेरि चेन कीनि कऽ देबनि। दुनू अपन अपन जोगार मे। मुदा नाजायज कमाई नहि रहने जोगारे ने बैइसै। उत्सवक दिन अबै मे एक दिन बाकी रहलै। अंतिम समय मे सुशील सोचलक जे आइ साँझ मे घड़ी बेचि क्लीप कीनि लेब। सुनीतो सोचलक जे अपन केश कटा क बेचि लेब तहि स घड़ीक चेन भ जायत। साँझू पहर दुनू गोटे- फुट-फुट बाजार गेल। सुशील घड़ी बेचि क्लीप कीनि लेलक आ सुनिता केश बेचि चेन कीनि लेलक। खुशी स दुनू गोटे घर आबि अपन-अपन वस्तु-चेन आ क्लीप- ओरिया क रखि लेलक।
सबेरे सुति उठि कऽ दुनू परानी हँसैत एक-दोसर क उपहार दइ ले आगू बढ़ल। सुनिता टोपी पहिरने छलि। क्लीप निकालि सुशील सुनिताक टोपी हटा क्लीप लगबै चाहलक, मुदा केशे नहि। तहिना चेन निकालि सुनिता घड़ी मे लगबै चाहलनि ते हाथ मे घड़िये नहि।
आमने-सामने दुनू ठाढ़। दुनूक मुह से ते किछु नहि निकलैत मुदा, दुनूक हृदय मे हर्ष-विस्मयक बीच घमासान लड़ाई छिड़ गेल। अंत मे हृदय बाजल- ‘जे सिनेह दूधक समुद्र्र मे झिलहोरि खेलैत अछि ओकर लेल क्लीप आ चेनक कोन महत्व छैक।
20 हैरियट स्टो
अमर लेखिका हैरियट एलिजावेथ स्टो विश्व-विख्यात पोथी ‘टाम काकाक कुटिया’ लिखने छथि। जहि समय ओ पोथी लिखैत रहति ओहि समय ओ कठिन परिस्थिति मे जिनगी बितवति रहथि। ओना अकसरहाँ लोक एहि पोथी कऽ अमेरिकाक दास प्रथाक विरोध मे लिखल मानैत छथि।
अपन परिस्थितिक संबंध मे अपन भौजी कऽ कहलखिन- ‘चुल्हि-चैकाक काज, नुआ-बस्तर धोनाइ,सिआई केनाई, जूता-चप्पल पौलिस आ मरम्मत करब जिनगीक मुख्य काज अछि। बच्चा आ परिवारक सेवा मे भरि दिन सिपाही जेँका खटै छी। छोटका बच्चा लग मे सुतैत अछि तेँ जाधरि ओ सुति नहि रहैत अछि ताधरि किछु ने सोचि सकै छी आ ने लिखि पबै छी। गरीबी आ परिवारक काज एहि रुपे दबने अछि जहि स समये कम बँचैत अछि। मुदा तइयो एक-दू घंटा सुतैक समय काटि, अपने सन लोकक लेल,जनिका परिवारक अंग बुझैत छिअनि, तनिका लेल किछु लिखि-पढ़ि लैत छी।’
हुनके (स्टोक) लिखल पोथी स उत्तरी अमेरिका आ दछिनी अमेरिका मे दास प्रथाक खिलाप क्रान्ति भेल।
२.देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)
नताशा:
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नताशा चौंतीस
२.कल्पना शरण: देवीजी
देवीजी : बिहारमे शिक्षा आ रोजगार
बच्चा सबहक परीक्षा परिणाम वितरण के बाद देवीजी छुट्टीक समयके सदुपयोग करऽ चाहै छलैथ। महात्मा बुद्धक कर्मभूमि बिहारमे कुशाग्र बुद्धि तऽ बिन मँगने भेट जायत अछि। मुदा उपर्युक्त शिक्षा आ कार्यकौशल्य के अभावक कारण बिहारमे बहुत बेसी बेरोजगारी अछि। देवीजीक आहिके बैठक ओहि विषय पर जानकारी देबै लेल छल।
बिहारके विद्यार्थी सब देशके उच्चस्तर के विभिन्न शैक्षणिक संस्थामे अग्रणी छैथ।अपन राज्यमे सुविधाक अभावक कारण ओ सब आन राज्य दिस विदा भऽ जायत छैथ।तैं बिहारक आर्थिक विकासक दर बहुत कम अछि। कमाईके जुगार सेहो कम अछि आ कौशल्य प््रााप्तिक साधन सेहो नहिं अछि।आन राज्यमे हुन्का सबके अनेको समस्याक सामना करै पड़ैत छैन।बिहारमे साक्षरताक स्तर 47 प््रातिशत अछि जखन कि भारतमे अकर स्तर 66 प््रातिशत अछि।अहि तरहे बिहार साक्षरतामे भारत के आन सब राज्यमे सबसऽ पाछा अहि।
देवीजी कहलखिन जे प््रााचीन भारतके दू टा विख्यात विश्वविद्यालय नालन्दा आ विक्रमशिला बिहारमे छल जकर गणना विश्वके प््राथम शैक्षणिक संस्थानमे होयत अछि। नालन्दा विश्वविद्यालयमे राजनीतिशास्त्र आ अर्थशास्त्रक शिक्षा देल जायत छल तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालयमे तन्त्रज्ञान देल जायत छल।अहि दुनुमे विश्व भरि सऽ विद्यार्थी आबैत छलैथ। सातम् शताब्दीमे करीब 10.000 विद्यार्थी नालन्दा विश्वविद्यालयमे दाखिल छलैथ।
सम्प््राति सरकार कनिक सचेष्टता तऽ देखा रहल छैथ बिहारमे शिक्षा विकासमे। कारण देशके 11हम पंचवर्षीय योजनामे पटनामे आई आई टी के स्थापनाक प््राावधान अछि। नालन्दा विश्वविद्यालयके सेहो पुनस्र्थापित करबाक बात भऽ रहल अछि।तकर अतिरिक्त इंदिरा गॉंधी राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय द्वारा बिहारमे 400 ठाम ट्रेनिंग सेंटर खोलि रहल अछि।जाहिमे कम्प्यूटर के व्यवस्था अछि। अहिमे डिस्टेन्स एडुकेशन के तरीका सऽ विभिन्न विषय पर विद्यार्थी सबके तथा सरकारी कर्मचारी सबके ट्रेनिंग देल जायत।अनुमान अछि जे अहि व्यवस्था सऽ 200र्910 मे करीब 25.000 सरकारी कर्मचारी के फायदा हेतैन।
अन्तमे देवीजी कहलखिन शिक्षा साक्षरता आ रोजगार मे जे स्थान बिहारके वर्तमान भारतमे अछि सैह स्थान मिथिलांचल ह्यभारत स्थितहृ के बिहार मे अछि।
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)
Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदानई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन
१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।
२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।
३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश,बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश,वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।
४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी,जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत,योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।
५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु,तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले,चोट्टे, आनो आदि।
७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।
८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।
९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन),पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।
१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य
एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि
अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।
21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।
ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.Original Maithili Poem by Smt.Shefalika Varma,Translated into English byAnulina mallik.
8.2.Story by Ilarani Singh
DATE-LIST (year- 2009-10)
(१४१७ साल)
Marriage Days:
Nov.2009- 19, 22, 23, 27
May 2010- 28, 30
June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30
July 2010- 1, 8, 9, 14
Upanayana Days: June 2010- 21,22
Dviragaman Din:
November 2009- 18, 19, 23, 27, 29
December 2009- 2, 4, 6
Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25
March 2010- 1, 4, 5
Mundan Din:
November 2009- 18, 19, 23
December 2009- 3
Jan 2010- 18, 22
Feb 2010- 3, 15, 25, 26
March 2010- 3, 5
June 2010- 2, 21
July 2010- 1
FESTIVALS OF MITHILA
Mauna Panchami-12 July
Madhushravani-24 July
Nag Panchami-26 Jul
Raksha Bandhan-5 Aug
Krishnastami-13-14 Aug
Kushi Amavasya- 20 August
Hartalika Teej- 23 Aug
ChauthChandra-23 Aug
Karma Dharma Ekadashi-31 August
Indra Pooja Aarambh- 1 September
Anant Caturdashi- 3 Sep
Pitri Paksha begins- 5 Sep
Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep
Matri Navami- 13 Sep
Vishwakarma Pooja-17Sep
Kalashsthapan-19 Sep
Belnauti- 24 September
Mahastami- 26 Sep
Maha Navami - 27 September
Vijaya Dashami- 28 September
Kojagara- 3 Oct
Dhanteras- 15 Oct
Chaturdashi-27 Oct
Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct
Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct
Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct
Chhathi- -24 Oct
Akshyay Navami- 27 Oct
Devotthan Ekadashi- 29 Oct
Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov
Somvari Amavasya Vrata-16 Nov
Vivaha Panchami- 21 Nov
Ravi vrat arambh-22 Nov
Navanna Parvana-25 Nov
Naraknivaran chaturdashi-13 Jan
Makara/ Teela Sankranti-14 Jan
Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan
Mahashivaratri-12 Feb
Fagua-28 Feb
Holi-1 Mar
Ram Navami-24 March
Mesha Sankranti-Satuani-14 April
Jurishital-15 April
Ravi Brat Ant-25 April
Akshaya Tritiya-16 May
Janaki Navami- 22 May
Vat Savitri-barasait-12 June
Ganga Dashhara-21 June
Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul
Original Maithili Poem by Smt.Shefalika Varma,Translated into English by Translated by ……….Anulina mallik
Shefalika Verma has written two outstanding books in Maithili; one a book of poems titled “BHAVANJALI”, and the other, a book of short stories titled “YAYAVARI”. Her Maithili Books have been translated into many languages including Hindi, English, Oriya, Gujarati, Dogri and others. She is frequently invited to the India Poetry Recital Festivals as her fans and friends are important people. I do not have to give more introduction of her as her achievements speak for themselves.
GOPAL KRISHNA
Dr. Shefalika Verma
Joy that lies in beauty, fragence
And hymn
Tranquility that lies between
Laughter and tears
Brightness and darkness
Dawn and Dusk
Almighty ?
…….its all your charisma
constantly I am engulfed
every moment I am inspired.
Desperate to unshackle
Myself
Attain sublimation
Lifelong wrapped grief of all
Treasured their faith and trust
No one could fathom my agony
Ceaselessly
This desire kept me
Burning
Scorching
Oh god ?
Liberate me
Unfetter me from desire
And aspirations..
Hunt For A Mean Fellow (कुपुरुषक खोज)
Translated by: Vishwajeet K Singh
Translator’s Note
The present story “Hunt for a mean-fellow” is the translation of “Kupurushak Khoj” – a Maithili short story published in a collection of fables entitled “tatka gap” in the year 1964 by Maithili Art Press, Kolkota. The stories published in the handbook are an exercise to document the oral tradition of story telling in Mithiilaanchal. They reflect the age-old interesting customs practiced in Mithiilaa families with an essence of witty humor and fulsome entertainment. The title of the original text, “tatka gap”: itself refers to the cultural exercise of story telling in a family get-together. Overtly, these stories belonging to the genre of “tatka gap” always have the elements of laughter, irony, sarcasm etc, but covertly, they all have one or the other moral at the end of the story. Thus, I can say that it falls into category of “Gonu Jha’s Stories” and “Birabal’s Stories”. Because of this nature of these stories, they are never old, and rather, they are always told-retold and enjoyed in all generations with basically slight change or no change at all, in the story line.
The present translation is again a similar effort, supposed to fill the gap of cultural knowledge in the newer generations, especially, when the modern technologies have set the society at the pace of digital age. Translation becomes more important in these situations, especially for them, who stay away from their native culture across the time and space and are educated in urban set-up and sometimes in a foreign set-up, totally cut off from their own culture. It also becomes important for foreigners interested in knowing a popular culture, such as “Mithiilaa Culture” for any number of reasons. In this case, there are socio-cultural motivations, which inspire a translator to render the original text in a target language, such as English—the global language; to popularize precious aspects of a culture and find a place for it in the global cultural market.
In this work, since I happen to have strong affiliations with Mithiilaa culture, translation of this text becomes more relevant from a socio-linguistic perspective. Fishman, a socio-linguist formulates:
A translator need learn “who speaks what to whom, where and why.”
The answer to these questions supports my position as a translator (WHO) of a Maithili text (WHAT), especially when it is matter of preserving the essentialities of the source text both of matter and manner. The answer is very much clear from the fact that these stories are immensely popular in their original form in its native socio-cultural context. It becomes significantly paramount to render it to the target audience—here the Mithiilaa people (WHOM) across the globe, at the point of time (WHEN), they are distanced from their native culture and to offer them the aroma of the their cultural values and uniqueness (WHY).
Despite all the theoretical positions and translatorial practices such as the above, there are possibilities that the translation of a cultural text does not suffice the purpose of the audience. Of course, it is difficult to retain the joy and thrill of the original in English, however it is not totally impossible. Says Jakobson’s:
“All cognitive experience and its classification are conveyable in any existing language. Whenever there is deficiency, terminology may be qualified, and amplified, by loanwords or loan translations, neologisms, or semantic shifts, and finally by circumlocutions.”
--Jakobson, Roman; On Linguistic Aspects of Translation;(1966), Oxford University Press, NY.
The above view suggests that there is always possibility to render a text in any language, may be it is not possible to render it depending fully on the target language, but then, a translator is free to use various tools to meet his/her goal. Perhaps, this creates a space for the genetic mutation of a language in terms of R. K. Narayan. Keeping in view all the points, which make a translation successful, I have cruised through the marvelous piece of the story “kupurushak khoj”.
The original text “Kupurushak Khoj” was authored by Ilarani Singh, a contemporary of Mayanand Mishra and Kanchinath Mishra, is an author by hobby. She uses a unique diction of her own in conveying her message in a dialect of Maithili spoken in Northwest Mithiilaanchal. It has the cultural connotations widely entertained in the Mithiilaa, for which, there are hardly single English expressions. Yet, I have made a novice and humble effort to depict the humorous and cultural beauty of her story, bringing the translation as close to the original as possible within the idiom and expression of the English language.
While doing translation, I have made every attempt to avoid loss of meaning and message loaded in original text. I have used the culture-specific expressions as it is in the original to give the reader the essence of original text. To help them, I have used annotations as and when required without breaking the fluency and rhythm of the story.
I have taken some liberty by collating short sentences and phrases without losing the images—the reeling effect of the story absorbing the reader but not at the cost of the original flavor. Prof Kapoor’s (teaching at JNU, New Delhi) comment regarding this is noteworthy:
“Such distortions of ideas can be fatal—they lead to a complete misunderstanding of a system of ideas”
An extreme care has been taken to avoid succumbing to English and to sustain the very purpose of translation. Since Maithili falls into a category of languages, which have verbless expressions, I have to, sometimes, expand the hidden meaning in the original text to make it equate in English in terms of meaning.
English and Maithili, though, belong to one language family—Indo-European, they are distantly related to each other and have least similarity at surface level. There are extreme variations at structural level also. Take an example of intonation pattern—English uses a different pattern compared with Maithili to express the same information. To achieve the equivalence at meaning level, in Nida’s terms, I have rendered sentences in accordance to retain the original taste. Of course, it always helps to have efficiency in both the source and target languages, specially, when you are translating text of your culture into a target language.
Despite all my efforts, there are occasions when I have failed to capture the meaning of honorificity conveyed through Maithili in English translation. Maithili being rich in honorific terms and inflexions sounds very sweet, which I cannot convey through any of the English expressions and bring the aesthetic pleasure. Similarly, I faced troubles translating gender-specific terms. Since, Maithili being practiced in patriarchal society, it has gender-biased terms. I do not know why everything when personified in the story e.g. bird, utensil, food etc, as a default, gets masculine gender. It is really tough for me to construe the biasedness. Instead of my personal resistance, I have rendered translation in consonance with the original text and have not manipulated them for my personal set of beliefs.
While translating I have also to work with the fabric of the story, which seems to have gaps in its structure. It is, perhaps, because of author’s limitations. I have brought certain change in the style and form of story for the proper navigation.
Except a few hitches, I am sure that the story will bind the Mithiilaa people in closer bonds of love and understanding of their culture, irrespective of time and space distance. May be, it makes Mithiilaa culture more palatable and impresses the others also to the unexplored virgin land of Mithiilaanchal full of legends and mysteries and above all, the hospitability.
Vishwajeet Kumar Singh
MA (LIN), IV-SEM, JNU.
Hunt for a Mean-Fellow
Long back when King Dasharatha ruled Ayodhya, Ramchandra, the eldest son of the king Dasharatha, in his early after-marriage life, had been to Janakpur, then used to be a part of Mithiilaanchal, now in Nepal. Ramchandra, now onwards Ram, was immensely impressed by the treatment extended to him by his in-laws—father-in-law, mother-in-law and sisters-in-law. He got lost in the very love and affection offered to him. The delicious dishes—makhaanak khiir1, bhetak laawaa2 etc; cooked in Mithiilaa style, arrested him. Apart from the dishes, the melodious song sequences followed by every meal was just something, he never imagined.
Everyday varieties of surprise items and varieties of titillating affairs. Ram, consequently, had not a single thought of Ayodhya, back his home. Perhaps, this is what happens at in-laws’. Week after week passed, month after month passed, Ram never thought of returning home.
Back in Ayodhya, the King Dasharatha was terribly worried about Ram. Dasharatha smelt the central problem and suspected if Ram turned to be a “ghar-jamaai3”. He consulted the family teacher Vashishtha and in his consultation, he sent an errand with a letter to King Janaka. Through that the King Dasharatha expected Janaka to send him four items—a nasty bird, a horrible-food, a useless-utensil and a mean-fellow.
1makhaanak khiir: a kind of pudding, a fruit grown in lake-water boiled in milk served as dessert
2bhetak laawaa: flakes of special kind of fruit grown in Mithila
3ghar jamaai: a son-in-law, who lives at in-laws’ and does not return home to his parents
Receiving the letter, King Janak got lost—what to do and what not to do. He called up the minister and asked him to gather the four items demanded. The matter spread like jungle fire. Everyone around started looking for the items one by one. The councilors suggested going for a nasty-bird first. Some of them suggested a crow “kauwa” fit for the purpose.
The crow was summoned to the court. The minister commanded him to go to Ayodhya, “It’s no use staying here, dear crow. They say that you are a nasty-bird.”
The crow reacted, “Honorable minister, how I can be a nasty-bird!? We always wake people up early in the morning. We clean the places killing harmful, disease-spreading insects.” He added, “Pandits call us Futurists. How come, we are nasty”.
The minister shot back, “Then, who is the nasty-bird?”
The crow replied, “Owl is the nasty-bird. He hides round the day to escape any labour. He makes faces at others and never serves any social purpose.”
The minister agreed and ordered owls to go to Ayodhya. Then came the turn of the horrible-food. The councilors named Marua4. The poor Marua was summoned.
Marua said, “We are not the horrible food. In stead, we are the food for the poor—the only food support for the poor.” He added, “Without us, the poor populace of Mithiilaa shall die” and
4Marua: a kind of cereal grown in infertile land, similar to the size of mustard seeds and black in color. It is used to get flour.
explained, “When we are served with fish, they devour it afresh” and further he explained, “ we are grown up anywhere. We are ready without any wastage of time. People get it any time”.
“How I can be the horrible food.” clarified Marua.
The minister asked, “Then, who is the horrible food?”
Marua answered, “Kushiar5 is the horrible food. It is difficult to grow. The poor cannot touch it because it is very costly. ”
The minister agreed and commanded the Kushiar to go to Ayodhya. Now, it was the turn of a useless-utensil. On the advice of the councilors, Khapari6 was summoned.
The minister told to Khapari, “Your are a useless-utensil, so you must leave for Ayodhya. King Dasharatha is in great need of you.”
Khapari reacted, similar to others, “How come, I am useless?! In my absence, can you roast anything? The poor live their lives on bhuja-phutaha7 only. Don’t think me to be useless, just because I look blackish and brownish.” He asserted, “ I am a very useful item.”
5Kushiaar: sugar cane grown for sugar and jaggery
6Khapari: a broken earthen pot used to bake bread etc.
7bhujaa-phutahaa: cereals and grams roasted and served as a part of evening break.
The minister once agreed and asked, “Then, who is a useless-utensil?”
Khapari argued, “Sir, Piyaalaa8 is a useless utensil. It is used to drink daaruu-taarii9. He makes people irreligious and digress them” and continued, “better, send him to Ayodhya.”
The minister agreed and asked Piyaalaa to go to Ayodhya. Lastly, it was the turn of a mean-fellow. Councilors discussed it. Someone suggested “nat10” to be a mean-fellow. Nat was summoned and asked to go to Ayodhya.
Nat, on the same line, put his side, “How come, I am a mean-fellow. I entertain all the people through my art” and further explained, “I keep my physique so flexible for public-shows, and besides that, I belong to Rishi Bharat’s clan.”
The minister agreed in his usual style and asked, “Then, it’s better, you tell us. Who the mean-fellow is? ”
Nat replied, “The mean-fellow is one, who lives at in-laws’ and whiles away the precious time.” and he demanded, “Is there no one in Janakpur? Someone at in-laws’.”
8Piyaalaa: a cup used to serve wine and other liquors
9 daaruu-taarii: juice yielded from the palm tree and served as a part of intoxicant after fermentation
10 nat: someone who is similar to a eunuch
There went the bell. Everyone in the court was dumbstruck. Ram, too, was in the court and he took no time learning the fact. Next morning, at the dawn only, which fell to be the day of Madhushravani11, he set out for Ayodhya without paying any heed to the invitations proffered by in-laws.
11Madhushravani: a socio-religious occasion, generally celebrated after marriage at married daughter’s home in the beginning five to seven years. Son-in-law is invited by in-laws for the rituals.
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८/९/१०.a.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश; b.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आ c.जीनोम मैपिंग ४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.- मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध-सम्पादन-लेखन-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा
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I.गजेन्द्र ठाकुरक शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-
१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२
खण्ड-८
(प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग
२.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास
स॒हस्र॑ शीर्षा॒
३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह
स॑हस्रजित्
४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह
शब्दशास्त्रम्
५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक
उल्कामुख
६. त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध
नाराशं॒खसी
७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक
जलोदीप
८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह
बाङक बङौरा
९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह
अक्षरमुष्टिका
II.जगदीश प्रसाद मं डल-
कथा-संग्रह- गामक जिनगी
नाटक- मिथिलाक बेटी
उपन्यास- मौलाइल गाछक फूल, जीवन संघर्ष, जीवन मरण, उत्थान-पतन, जिनगीक जीत
III.मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार गीत आ गीतनाद -संकलन उमेश मंडल- आइ धरि प्रकाशित मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद मिथिलाक नहि वरन मैथिल ब्राह्मणक आ कर्ण कायस्थक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद छल। पहिल बेर जनमानसक मिथिला लोक गीत प्रस्तुत भय रहल अछि।
IV.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
V.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
VI.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
VII.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ"बलचन्दा"
VIII.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
IX.मिथिलाक जन साहित्य- अनुवादिका श्रीमती रेवती मिश्र (Maithili Translation of Late Jayakanta Mishra’s Introduction to Folk Literature of Mithila Vol.I & II)
X.मिथिलाक इतिहास – स्वर्गीय प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी
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तीन बर्ख(२०१०-१२ ई.)::INDIA रु.५००/- NEPAL-(INR 1500), Abroad-(US$75)
पाँच बर्ख(२०१०-१३ ई.)::७५०/- NEPAL-(INR 2250), Abroad-(US$125)
आजीवन(२००९ आ ओहिसँ आगाँक अंक)::रु.५०००/- NEPAL-(INR 15000), Abroad-(US$750)
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(ग्राहकक हस्ताक्षर)
२. संदेश-
[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]
१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल,तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथीकुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिंट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाई। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे। ..सुभाष चन्द्र यादवक कथापर अहाँक आमुखक पहिल दस पंलक्तिमे आ आगाँ हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी शब्द अछि (बेबाक, आद्योपान्त, फोकलोर..)..लोक नहि कहत जे चालनि दुशलनि बाढ़निकेँ जिनका अपना बहत्तरि टा भूर!..( स्पष्टीकरण- दास जी द्वारा उद्घृत अंश यादवजीक कथा संग्रह बनैत-बिगड़ैतक आमुख १ जे कैलास कुमार मिश्रजी द्वारा लिखल गेल अछि-हमरा द्वारा नहि- केँ संबोधित करैत अछि। मैथिलीमे उपरझपकी पढ़ि लिखबाक जे परम्परा रहल अछि तकर ई एकटा उदाहरण अछि। कैलासजीक सम्पूर्ण आमुख हम पढ़ने छी आ ओ अपन विषयक विशेषज्ञ छथि आ हुनका प्रति कएल अपशब्दक प्रयोगक हम भर्त्सना करैत छी-गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक मंतव्य क्यो चित्रगुप्त सभा खोलि मणिपद्मकेँ बेचि रहल छथि तँ क्यो मैथिल (ब्राह्मण) सभा खोलि सुमनजीक व्यापारमे लागल छथि-मणिपद्म आ सुमनजीक आरिमे अपन धंधा चमका रहल छथि आ मणिपद्म आ सुमनजीकेँ अपमानित कए रहल छथि।..तखन लोक तँ कहबे करत जेअपन घेघ नहि सुझैत छन्हि, लोकक टेटर आ से बिना देखनहि, अधलाह लागैत छनि..(स्पष्टीकरण-क्यो नाटक लिखथि आ ओहि नाटकक खलनायकसँ क्यो अपनाकेँ चिन्हित कए नाटककारकेँ गारि पढ़थि तँ तकरा की कहब। जे क्यो मराठीमे चितपावन ब्राह्मण समितिक पत्रिकामे-जकर भाषा अवश्ये मराठी रहत- ई लिखए जे ओ एहि पत्रिकाक माध्यमसँ मराठी भाषाक सेवा कए रहल छथि तँ ओ अपनाकेँ मराठीभाषी पाठक मध्य अपनाकेँ हास्यास्पदे बना लेत- कारण सभकेँ बुझल छैक जे ओ मुखपत्र एकटा वर्गक सेवाक लेल अछि। ओना मैथिलीमे एहि तरहक मैथिली सेवक लोकनिक अभाव नहि ओ लोकनि २१म शताब्दीमे रहितो एहि तरहक विचारधारासँ ग्रस्त छथि आ उनटे दोसराक मादेँ अपशब्दक प्रयोग करैत छथि-सम्पादक)...ओना अहाँ तँ अपनहुँ बड़ पैघ धंधा कऽ रहल छी। मात्र सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक।( स्पष्टीकरण- श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ- विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे http://www.videha.co.in/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि आ किएक रखने छथि वा आगाँसँ दाम नहि राखथु- ई सभटा परामर्श अहाँ प्रकाशककेँ पत्र/ ई-पत्र द्वारा पठा सकै छियन्हि।- गजेन्द्र ठाकुर)... अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।
२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक हमर उपन्यास स्त्रीधनक विरोधक हम विरोध करैत छी।... कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल जाए। ओना अहाँक मंत्रपुत्र हिन्दीसँ मैथिलीमे अनूदित भेल, जे जीवकांत जी अपन आलेखमे कहै छथि। एहि अनूदित मंत्रपुत्रकेँ साहित्य अकादमी पुरस्कार देल गेल, सेहो अनुवाद पुरस्कार नहि मूल पुरस्कार, जे साहित्य अकादमीक निअमक विरुद्ध रहए। ओना मैथिली लेल ई एकमात्र उदाहरण नहि अछि। एकर अहाँ कोन रूपमे विरोध करब?)
२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।
२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।
२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।
३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।
३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।
३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।
३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।
३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।
३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।
३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।
३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।
३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।
३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।
४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।
४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रशंेसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।
४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल।
५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।
५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।
५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।
५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।
५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्याससहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि। समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन् सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक’ विलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६८.श्री बृखेश चन्द्र लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल , हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकसेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।
७२. श्री हरेकृष्ण झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचना कौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मे समाजक इतिहास आ वर्तमानसँ अहाँकजुड़ाव बड्ड नीक लागल, अहाँ एहि क्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक सन किताब मैथिलीमे पहिले अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
विदेह
मैथिली साहित्य आन्दोलन
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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