भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Monday, February 15, 2010

'विदेह' ५१ म अंक ०१ फरबरी २०१० (वर्ष ३ मास २६ अंक ५१)-PART II

१.पण्डित ओ हुनक पुत्र- शिवशंकर श्रीनिवास २. -ऋृषि वशिष्ठ-जुआनी जिन्दाबाद


शिवशंकर श्रीनिवास
जन्म स्थान लोहना मधुबनी, बिहार । चर्चित कथाकार ओ आलोचक । गीत ओ कविता सेहो कहियो काल लिखैत छथि । प्रकाशित कृति : त्रिकोण, अदहन, गाछ-पात, गामक लोक (कथा संग्रह)।

(मिथिलाक लोक-कथापर आधारित बाल कथा)
पण्डित ओ हुनक पुत्र

नैनापुर गाममे एकटा पण्डित रहथि। नाम रहनि- बौआ चौधरी। नैनापुर टोलक विद्यालयक ओ प्रधान गुरुजी रहथि। सभ हुनका बड़का गुरुजी कहनि। बड़का गुरुजीक पण्डिताइक सोरहा ओहि समयमे देश-विदेशमे छल। ओहि समएक प्रसिद्ध युवा विद्वान् मे बेसी गोटे हुनके शिष्य रहथि। देश-विदेशक लोक हुनका लग शास्त्रक गप्प बूझऽ अबैत छलाह। किन्तु बड़का गुरुजी रहथि बड़ क्रोधी, से सभ जनैत छल। क्रोध छोड़ि हुनकामे सभ टा गुणे रहनि। किन्तु हुनक क्रोधक चर्चा सभ करए।
बड़का गुरुजीक एक मात्र संतानमे बेटा, नाम रहै धनंजय।
धनंजय बड़ तेजस्वी रहय। लोक कहै धनंजय अयाची मिश्रक बेटा शंकरक दोसर अवतार छी। धनंजय बारहे-तेरह वर्षक उम्रमे बड़का विद्वान् भऽ गेल। इलाकाक लोक कहऽ लगलै- जेहने गुणमन्त बाप तेहने बेटा। किन्तु धनंजय उदास रहैत छल कारण जे बाप कहिओ नीक भाखा नहि कहथिन। ई कोनो विषयमे कतबो अंक आनय, परीक्षामे प्रथम घोषित होअए, कठिनसँ कठिन शास्त्रार्थ जीति कऽ आबय आ सोचय जे एहि बेर बाबू अवश्य प्रसन्न भऽ किछु कहता, किन्तु बाबू ओहिना धीर-गंभीर, किछु नहि कहलथिन। धनंजय अपन पिताक मुखसँ नीक गप्प सुनबाक लेल वा कोनो वाहवाहीक शब्द सुनबाक लेल ओहिना तरसय जेना उपासल पानि लेल तरसैत अछि। ओना बड़का-बड़का विद्वान् प्रशंसा करथिन, कतेको प्रसिद्ध विद्वान् हृदएसँ लगबथिन किन्तु पिताक मुँहसँ प्रशंसा सुनबाक हेतु मन रकटले रहै।
अठारह वर्षक उम्रमे धनंजय न्याय शास्त्रक एहन पोथी लिखलक जे सर्वत्र चर्चामे आबि गेल।
धनंजय अपन पोथी पढ़बाक लेल पिताकेँ देलक, किन्तु ओ पढ़ि घुमा देलथिन, किन्तु किछु कहलथिन नहि।
एक दिन धनंजय साहस कऽ केँ पिताकेँ पुछलक- “बाबू, पोथी पढ़ि अहाँ किछु सम्मति नहि देलहुँ।”
“थोड़े आर परिश्रम करू।” कहि पिता गंभीर भऽ गेलथिन।
धनंजयकेँ पिताक गप्प बहुत अधलाह लगलै, ततबे नहि, मनमे घोर प्रतिक्रिया भेलै। सोचलक- “ई हमर शत्रु छथि, जावत जीता तावत हमर यश-प्रतिष्ठासँ जरैत रहताह, कहिओ प्रशंसा नहि करताह।” से सोचैत-सोचैत बुझू बताह भऽ गेल। मनेमन निर्णय कएलक जे आइ रातिमे जखन ओ भोजन कऽ आङनसँ बहरेता तँ खर्गसँ गरदनि काटि पड़ा जाएब। अन्हरिया छैके केओ ने देखत।
दिन बीतल, साँझ भेलै आ तकर बाद राति। बड़का गुरुजी भोजन कऽ रहल छलाह, आगूमे पत्नी अंजनी बैसलि छलथिन। आ इम्हर धनंजय खर्ग लऽ कऽ ठाढ़ छल जे भोजन कऽ कोनटा लग औताह कि काटि कऽ पड़ा जाएब।
अंजनी कहलथिन- “धनंजयक पोथीक सुनै छी बड़ चर्चा छै।”
“हूँ”- पत्नीक गप्पपर बड़का गुरुजी बजलाह।
“एकटा बात कहू, तमसायब तँ नहि।” अंजनी अपन क्रोधी पति बड़का गुरुजीकेँ पुछलनि।
“कहू ने”- गुरुजी पुछलथिन।
“पहिने कहू जे तामस नहि करब।”
“अच्छा नहि करब, पूछू।”
“अहाँ धनंजयपर तमसाय किएक रहै छियनि? ”
“तमसाय किएक रहबनि? ”
“अहाँ आइ तक हुनकर प्रशंसा कयलियनि? ” पत्नी गप्पपर बड़का गुरुजी बहुत हँसलाह आ कहलथिन- “अहाँ नहि बुझै छिऐ।”
“हम बुझै छिऐ, ओ अहाँकेँ नहि सोहाइ छथि।”
“के एहन अभागल होएत जकरा बेटा नहि सोहेतै? बेटे एकटा एहन होइ छै, जकरा लोक अपनासँ पैघ देखऽ चाहैए।”- गुरुजी बजलाह।
ताहिपर पत्नी पुछलथिन- “कहू तँ अहाँक बेटा केहन पण्डित छथि? ”
“बहुत पैघ पण्डित छथि। हमरासँ बहुत आगू बढ़ि गेलाह।” गुरुजी बहुत आनन्दमे अंजनीकेँ कहलनि।
ओहिना आनन्दसँ आनन्द लैत अंजनी पुछलथिन- “ओ पोथी जे लिखलनि से केहन छै? ”
“बहुत उत्तम, हम कएटा बात ओहि पोथीसँ जनलहुँ अछि, बूझू गदगद छी। धनंजय पुत्रे नहि, पुत्र रत्न थिकाह।”
“तखन हुनकर प्रशंसा किएक ने करै छियनि?”
पुनः पत्नीक गप्पपर भभा कऽ हँसैत गुरुजी कहलथिन- “बुझलहुँ, हम हुनकर बाप छियनि, प्रशंसा करबनि तँ घमण्ड भऽ जयतनि आ तखन विकास रुकि जयतनि।”
“सुनू, हम अहाँक स्त्री छी। अहाँ जहिया हमर काजक प्रशंसा करै छी तहिया हम आरो नीकसँ काज करै छी। आ जहिया कोनोपर बिगड़ै छी तकर बाद आरो काज गड़बड़ा जाइए, ताहिपर अहाँ ध्यान देलिऐ? ”
“हूँ...।” कहि पत्नीक गप्पपर गुरुजी गंभीर होइत पुछलनि- “अहाँ आइ ई सभ किए पुछैत छी? ”
“अहाँ धनंजयकेँ पोथी दैत कहलियनि जे आर परिश्रम करू, से हुनका नीक नहि लगलनि।
“अहाँ कोना बुझलहुँ? ”
“हम माय छिऐ, हम ओतबो नहि बुझबै। तखनसँ हुनक माथ ठीक नहि बुझाइए।”
“ओ ज्ञानी छथि, हुनका हमर बातक कतहु क्रोध होइन? ”
“तखन अहाँकेँ क्रोध किए होइए? अहूँ तँ ज्ञानी छी।”
“हँ, से...।” पत्नी गप्पकेँ स्वीकारैत गुरुजी सोचैत भोजन करऽ लगलाह। मने-मन सोचलनि अंजनी ठीक कहैत छथिन।
ओम्हर कोनटाक अन्हारमे ठाढ़ गप्प सुनैत धनंजयक हालत विचित्र भऽ गेलै- “ओ एहन महान पिताक हत्याक लेल ठाढ़ अछि? ओ वस्तुतः पण्डित नहि मूर्ख अछि।” सोचैत धनंजय कानऽ लागल।
भोजन समाप्त कऽ गुरुजी ओसारापर सँ उतरि अङना अएलाह आकि धनंजय पएरपर खसि कनैत कहलक- बाबू हम बिना विचार कएने अहाँक हत्या कऽ दैतहुँ। हम बताह छी। हम मूर्ख छी। पातकी छी।”
“नहि धनंजय, अहाँ हमर हत्या करऽ लेल छलहुँ से बात नुका सकै छलहुँ, किन्तु अहाँ सत्यकेँ नुकेलहुँ नहि। अहाँ सत्यकेँ समक्ष अनबामे डरेलहुँ नहि। अहाँ वस्तुतः पण्डित छी।”
“नहि बाबू। हम क्रोधमे रही। अहाँक हत्या करब सोचलहुँ, तकर प्रायश्चित? ”
“प्रायश्चित् भऽ गेल।”
“से कोना? ”
“सत्यक खुलासासँ। आँखिक नोरसँ।”
“किन्तु बाबू? ”
“बेटा धनंजय, आइ अहाँक प्रसङसँ हमहूँ किछु सिखलहुँ।”
“बाबू!”
“जावत क्रोध रहत तावत ज्ञान हँटल रहत। हम सभ दिन विद्या सिखलहुँ आ सिखौलहुँ किन्तु हमरामे क्रोधक स्वभाव रहबे कएल आ...। ”
“आ की बाबू? ”
“सभकेँ, जे काज करए ओकरा प्रोत्साहन दीऐ। आ कोनो बात केओ कहए वा नहि कहए, दुनू स्थितिमे सोची, से नहि कएने अहाँ सन ज्ञानी बापकेँ मारब सोचैत अछि। ”



ऋृषि वशिष्ठ
प्रकाशित कृति- जे हारय से नाक कटाबय (बाल साहित्य), कोढ़ियाघर स्वाहा (बाल साहित्य), झुठपकड़ा मशीन (बाल साहित्य), मैथिली धारावाहिकक कथा, पटकथा आ संवाद लेखन। एकर अतिरिक्त कथा आ व्यंग्य पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित। पता- तेजगंगाधाम, परिहारपुर, मधुबनी।
जुआनी जिन्दाबाद

सगरो टोलमे एक्कहि बातक चर्च-बर्च छलैक। बुढ़-बुढ़ानुस सभ साँझक चारि बजबाक बाट तकैत छलाह। सबहक मूँहे एक्के बात- ‘‘लाख छै तेँ कि, देखहक काली-बाबुक बेटाकेँ। एखनुको समएमे सरबन पूत होइ छै की !’’ कियो-कियो इहो कहैत छलै जे- ‘‘बाबू, काली बाबू बड्ड कष्टेँ बेटाकेँ इंजीनियर बनौने छथि।’’
-‘‘से तँ ठीके, मुदा आइ काल्हि ई कष्ट ककरो-ककरो सार्थक होइ छै ! आ से काली बाबूकेँ भेलनि।’’
यैह गर्मीक समए छिऐ। परुकाँ साल कालीबाबूकेँ दू-बेर मासे दिनपर हार्ट एटैक भऽ गेल छलनि। सगरो गामक लोक कहैत छलै जे आब हिनकर बाँचब मोस्किल छनि। आ स्थिति छलनिहों तेहने। दोसर बेरक हार्ट एटैकक खबरि जखने कालीबाबुक बेटा नबोनाथकेँ लगलनि तँ ओ तुरत अमेरिकासँ अपना गाम आपस आबि गेलाह। गाम आबि ओ कालीबाबुक हालत देखलनि। ओ अपना संग कालीबाबूकेँ अमेरिका लऽ जेबाक तैयारी कएलनि। पहिने तँ कालीबाबू तैयारे नहि होइत छलाह मुदा बुझा-सुझाकए नबो तैयार केलनि। नबो तँ चाहैत छलाह जे माइयो संग चलए। ओ मुदा एक्कहि ठाम कहि देलखिन जे- ‘‘हमरा लऽ जेबाक जिद्द करबह तँ हम माहुर खा लेब। हम बिलेँत जा कऽ एको दिन जीबि नहि सकै छी।’’
सभ कागज-पत्तर तैयार कऽ नबो अपन पिताक संग अमेरिका जेबाक तैयारीपर छलाह। टोल-पड़ोसक लोकक कहब छलै जे- ’’आब बेकारे बुढ़ाकेँ लऽ जेबहुन। आब अबस्थो भेलनि। साठि टपि गेलनि तँ आब की !’’
कालीबाबुक छोट भाए तँ रुष्ट भऽ कऽ एतेक तक कहि देने छलखिन जे- ‘‘अमेरिकासँ हमर भाए-साहेब घुमि कऽ औताह से उमेद त्यागिये कऽ लथु।’’
इंजीनियर नबोनाथ सभकेँ बुझेबाक प्रयास करैत छलाह। माइ पर्यन्त सदिखन कनैत रहैत छलीह। कालीबाबू चुप्पचाप सभटा तमाशा देखैत छलाह। नबोनाथक माइ ई कखनो नहि कहैत छलखिन जे बाबूकेँ नै लऽ जाहून। हुनका एहि बातक विश्वास छलनि जे कालीबाबू अमेरिका जा कऽ ठीक भऽ जेताह।
जेना-तेना इंजीनियर साहेब कालीबाबूकेँ लऽ कऽ अमेरिका चल गेलाह। साल भरि बीत गेल अछि। एहि बीचमे रंग-बिरंगक समाचार आएल गेल। आइ वर्ष दिनपर कालीबाबू आपस आबि रहल छथि। कालीबाबूकेँ नबका हार्ट लगाओल गेलनिहेँ, से सभकेँ बुझल छैक। सबहक मोनमे विभिन्न तरहक जिज्ञासा छैक। कियो कहै जे- ‘‘अमेरिका जए कऽ की भेलनि ! रोगीक रोगिये रहि गेलाह ! कहाँदन दोसराक हार्ट लगाओल गेलनिहेँ।’’
‘‘आब तँ आर अपस्थक भऽ गेल हेताह। अनेरे बुढ़ारीमे गंजन। कहू तँ बेकारे ने चीड़-फाड़ करौलनि।’’
समए बितैत कतेक देरी। चारि बाजि गेल। बारह बजे पटनामे हवाइ जहाज अएबाक समए छलै। पटनासँ अएबामे बेसीसँ बेसी चारि घंटा। आब जइ घड़ी जे क्षण ने अएलाह। सड़कपर अबैत सभ गाड़ीकेँ सभ ठिकियबैत छल।
‘‘यैह आबिये गेलाह।’’
....मुदा ओ गाड़ी सुर्र...र्र.............दऽ आगाँ बढ़ि गेल।
कालीबाबुक दलानसँ कनिके दूर चौराहा छलै। चौराहापर विशाल पिपरक गाछ आ सड़कक काते-कात चाह-पानक दोकान। गाछक छाँहमे बैसल बच्चा किशोर आ बुढ़-बुढ़ानुस तँ सहजहिँ। खास कऽ सभकेँ कालीबाबुक प्रति बेसिये जिज्ञासा छलनि।
‘‘केहेन भेल हेताह? साफे बदलि गेल हेताह कि ओहने हेताह! ककरो चिन्हबो करताह कि नै?’’
‘‘जे जत्तहि सुनलक आगवानीमे पहुँचि गेल। कालीबाबुक दरवज्जापर एखनो भम्ह पड़ैत छनि मुदा एतए भीड़ जूटल अछि। पुरुष-पातकेँ गामपर नै रहने यैह दशा होइत छैक। भरि ठेहुन कऽ घास जनमि गेल छनि। सभ अही बातक चर्च करैत छल। मोन मुदा सबहक टाँगल छलै पच्छिम भरसँ आबएबला चारिपहिया वाहनपर। कालीबाबु प्राथमिक विद्यालयमे शिक्षक पदसँ रिटायर भेल छलाह। ठेंठ देहाती लोक। कोनो आधुनिकताक हवा नहि लागल छलनि। ओ वर्ष दिन अमेरिकामे कोना रहल हेताह। सभ यैह बात सोचैत छल। नबोक माइ कोनटा परसँ हुल्की मारि जाइत छलीह।
......यैह, लालरंगक चारिपहिया वाहन आबि कऽ रुकल। पीपर तरक भीड़ कालीबाबुुक दरवज्जापर पहुँचल। कियो दौड़ैत, कियो झटकैत आ कियो घिसियाइत। गाड़ीक आगाँक गेट खुजल। इंजीनियर नबोनाथ उतरलाह। आँखि परक करिया चश्माकेँ माथपर चढ़बैत हाथ जोड़ि सभकेँ प्रणाम केलनि आ पछिला गेट खोललनि। भीड़मे जूटल वृद्ध सभकेँ जेना साँस रुकि गेल छलनि। गेट खूजल.....। ..........अचरज! भारी अचरज!! कालीबाबू सूट-बूट पहिरने छलाह। करिया जिन्स आ लाल रंगक फोटो बनल टी शर्ट। आँखिपर करिया चश्मा। बेस चिक्कन-चाक्कन मूँह-कान। खूब निरोग। हाथमे गिटार लेने उतरलाह। बुढ़ सभ देखि कऽ अचरजमे पड़ि गेलाह।
‘‘देखहक हौ, ई की छनि कालीबाबूकेँ?’’
‘‘सारंगी लेलनिहेँ।’’
‘‘गुदरिया भऽ गेलाह-ए की?’’
‘‘वाह रे वाह! यैह भेलै बुढ़ारीमे घी ढारी।’’
इंजीनियर साहेब टिका-टिप्पणी सुनलनि। ओ हँसैत बजलाह- ‘‘बाबू जीकेँ अस्पतालमे पड़ल-पड़ल अकच्छ लगैत छलनि। असलमे डाॅक्टर हिना पुछलखिन जे आहाँकेँ सभसँ बेसी रुचि कथीमे आछि? संगीत पढ़ाइमे आकि आन कोनो काजमे! बाबूजी कहलखिन- ‘‘रंगीतमे। सेहो संगीत गाबए आ बजाबएमे। गाएब तँ मना छनि मुदा बजेबाक लेल गिटार डाॅक्टर देबाक अनुमति देलनि।’’
एतबा कालमे तँ कालीबाबू एक हाथमे गिटार लेने आ दोसर हाथ माथमे सटबैत नमस्कार केलनि। किछु बुढ़ हँसि कऽ मूँह घुमा लेलनि आ हँसैत नजरिसँ नजरि मिलबैत रहलाह। कालीबाबू डेगाडेगी दैत नाचए लगलाह आ गिटारपर बेसुरा टुम टाम करए लगलाह।
राजधर बुढ़ाकेँ नै रहल गेलनि। ओ व्यंग्य करैत बजलाह- ‘‘ई तँ कीदन भऽ गेलाह हौ इंजीनियर। चौबे चलला छब्बे बनए आ दुब्बे बनल अएलाह। अँइ हौ, ई तँ काली बताह भऽ गेलह-ए?’’
इंजीनियर साहेब सहज भऽ बजलाह- ‘‘असलमे बाबा, ओतुक्का तँ एहने माहौल छै किने।’’
‘‘हैइ, किछु रहौ। ई तँ साफे पगलेठ जकाँ करै छै। जीवन भरि एतए रहलै तँ किछु नै आ एक बर्खमे ओतुक्का सबार भऽ जेतै?’’
गाड़ीबला सामान सभ उतारि कऽ विदा भऽ गेल। गाड़ी कनेक आगाँ बढ़ल। कालीबाबू मूँहकेँ गोल करैत सीटी बजबैत ड्राइवरकेँ बाॅइ.....बाॅइ केलनि। कोनटापर ठाढ़ भेल अपन पत्नीकेँ जखने देखलनि कि फेर मूँह चुकरियबैत सीटी बजौलनि.......‘हू......हूँ.......उ..... ’’ ’ओ बेचारी लजाइत कोनटापर सँ पड़ेेलीह। लोक सभ तमाशा देखि अपना घर दिस कऽ विदा होबए लागल। कालीबाबू फेर ओहिना सीटी बजबैत हाथ हिलबैत रहलाह।
भीड़ तँ उसरि गेल मुदा लोकक मोनमे चैन नहि भेलै। एतए ओतए सगरो कालियेबाबुक चर्च। कियो बताह कहए तँ कियो घताह। एक्के बरखमे लोक एना कऽ बदलतै। ओहिठाम तँ हुनकर बेटो छनि। ओ तँ दसो सालसँ अमेरिकामे रहए छै। कहाँ कोनो चालि-ढालि बदललैए ! राजधर बुढ़ा अपना मंडलमे घोषणा करैत बजलाह- ‘‘नबो इंजीनियरकेँ नीकक काज होइ तँ बापकेँ कोनो माथाबला डाॅक्टरसँ देखबौक।’’
रंग-विरंगक टिका-टिप्पणी होइत रहल। देखलाहा दृश्य राति भरि लोकक सोझाँ ओहिना नचैत रहलै। कथीलए ककरो निन्नो हेतइ।
कालीबाबुक रातिक निन्न तँ अमेरिकेमे छुटि गेलनि। ओ राति भरि कछमछ करैत आ गिटारकेँ टुनटुनबैत रहि गेलाह।
भोरे-भोरे कालीबाबुक दलानक सोझाँमे फेर भीड़ जुटि गेल। एहन अनर्गल काज काली बाबुक नै होइतनि जँ माथ ठीक रहितनि। ओ अपना कहलमे नै रहलाह। सबहक निष्कर्ष एक्कहिटा।
गर्मीक समए छलै। कालीबाबू भोरे-भोरे गंजी आ ठेहुन धरिक पैंट पहिरने, डाँड़ झुकलाहा सन अवस्थामे, माथक केश मेहदीसँ राँगल। ओ चौकीपर ठाढ़ गिटार बजेबामे अपसियाँत छलाह। मूँहक आकृति रंग-विरंगक भऽ रहल छलनि। गिटारक अवाज साफे बेसुरा। एहन उन्मत्त भऽ बजेनाइ नहि देखल-ए। देखलासँ कोनो प्रवीण गिटारवादक लगैत छलाह मुदा सुनलापर साफे अनारी। राजधर बुढ़ाकेँ कालीबाबुक बेस चिन्ता छलनि। ओ चिन्तित सन मुद्रामे बजलाह- ‘‘एहेन कोन पागलपन भेलै? कहह तँ जे काली कहियो नचारियो नहि गौलक तकरा ई बजेबाक कोन भूत सवार भऽ गेलइ।’’
नबोनाथ जेम्हरे निकलथि सभ बाबूक हालचाल पुछनि।
‘‘केहन छथि? आब नीक जकाँ रहए छथि कि ओहिना सारंगी लऽ कऽ नचै छथि?’’
कतेक कऽ की जबाब देथिन। सबहक कहब आ अपनो तँ देखिये रहल छलाह। नबो कालीबाबूकेँ मानसिक रोग विशेषज्ञसँ इलाज प्रारंभ केलनि। डाॅक्टर समूचा जाँच-पड़तालसँ मानसिक रोगक लक्षण नहि पौलनि। आब तँ मामला आरो ओझराएल जा रहल छल। इंजीनियर साहेब कऽ टपाक दऽ कहा गेलनि जे- ‘‘असलमे एहन सभ चालि-चलन आ व्यवहार हृदय प्रत्यारोपनक बाद भेलनिहेँ।’’
डाॅक्टर साहेब गंभीर अनुसंधानमे लगलाह। कालीबाबूकेँ जखन-तखन डाॅक्टर ओहिठाम बजाहटि होबए लागल।
समए बितैत गेल। साँझक समए रहए। डाॅक्टर नर्सिग होममे मानसिक रोगी सभ भरल छलइ। रंग-विरंगक उटपटाँग हरकैत सभ भऽ रहल छलै। डाॅक्टर साहेब गंभीर भेल कुर्सीपर बैसल छलाह आ टेबुलपर राखल कागज सभकेँ उनटबैत छलाह। सामनेक कुर्सीपर कालीबाबू उत्सुक सन मुद्रामे बैसल छलाह। आ बामा कात इंजीनियर नबोनाथ चौंकल सन मुद्रामे छलाह। डाॅक्टर की कहथिन की नइ!
डाॅक्टर साहेब सभ कागजकेँ पसारैत अपन लैप-टापकेँ आसस्तेसँ दबाबए लगलाह- ‘‘इंजीनियर साहेब, हम एहि केसक गंभीर अनुसंधान केलहुँ अछि संगहि सभटा सबूत जमा केलहुँ अछि।’’
इंजीनियर साहेब चौचंग भेलाह।
‘‘अहाँक पिताजीकेँ जे हृदय प्रत्यारोपित कैल गेल ओ वस्तुतः एकटा एक्कैस वर्षक मशहुर पाॅप गायकक हृदय छैक। ओ बेचारा एकटा दुर्घटनामे मारल गेल आ ओकर दान कएल हृदय आइ अहाँक पिताकेँ जीवन देने छनि।’’
‘‘मुदा’’- इंजीनियर साहेब उत्साहमे बजलाह।
- ‘‘हँ, इंजीनियर साहेब। कोशिकामे स्वभावक याददाश्त रहैत छैक।...... आ यैह कारण अछि जे ई रहि-रहि कऽ संगीतक पाछाँ बेहाल भऽ उठै छथि। एहि तथ्यकेँ युनिवर्सिटी आॅफ एरिजोना सेहो सिद्ध करैत अछि। ई युनिवर्सिटी अंग प्रत्यारोपनक कतेको मामिलापर शोध कऽ चुकल अछि।’’
डाॅक्टर साहेब आँगुरसँ लैपटाॅपक स्क्रीन दिस इशारा करैत बजलाह- ‘‘हे, देखियौ ने ! आब कोनो काज कठिन छैक? अहीठाम बैसले-बैसले सभटा शोधक जानकारी लऽ लिअ।’’
इंजीनियर साहेब झुकि कऽ लैपटाॅप दिशि तकैत बजलाह- ‘‘एकर मतलब आब बाबूजी अहिना रहि जेता?’’
डाॅक्टर हँमे मूड़ी डोलबैत बजलाह- ‘‘हूँ! कलाकारक जुआनी अवस्था छलैक ने! ओ तँ औनाहटि उचिते छैक।’’
कालीबाबू पीठपर टाँगल गिटार उतारलनि। खोलसँ बहार केलनि आ थैया-थैया...... दिग् दिग थैयाा करैत गिटार बजेबामे लीन भऽ गेलाह।
रामभरोस कापडि भ्रमर
एहि बेर सातम् अन्तेराष्ट्रि य मैथिली सम्मेालन काठमाण्डू.मे हयत
भारतक सम्विलधानक आठम् अनुसूचिमे मैथिलीके सामेल करबाक तिथि २२ दिसम्विरकें स्म रणीय बनएबाक हेतु डा. बैद्यनाथ चौधरी बैजू विद्यापति सेवासंस्थाानक अमलाक संग अन्तेराष्ट्रि य मैथिली सम्मेालनक रुपमे प्रत्ये क वर्ष ताही तिथिकें मनबैत रहलाह अछि । ओहि सभ सम्मे‍लनमे दू चारि गोटे नेपालक प्रतिनिधि सहभागी भ अन्तेराष्ट्रि य स्वहरुप प्रदान करैत आएल अछि ।

एहु बेर ई सम्मेिलन आन्ध्रा प्रदेशक चित्तुर जिल्लाल अन्तषरगतक तिरुपतिमे आयोजित छल । संस्कृजत विश्वीविद्यालयक डीन झा जकि सहयोगे आयोजना होबा बला उक्त सम्मे लनमे वैजू बाबूक सभ तामझाम आमंत्रित छल ।
पहिने ई आयोजन विश्वकविद्यालय परिसरमे सम्पसन्नम होइत, मुदा आन्ध्रतप्रदेशमे चलैत तेलंगाना आन्दोतलनक कारणें ई सम्मेिलन तिरुपतिसं १० कि.मि. दक्षिण ब्रम्ह र्षि आश्रममे सम्पोन्नश करबाक नेयार कएल गेल । ओत्तहि आवास, भोजन एवं कार्यक्रम स्थाल । परिसर प्राकृतिक छटाक विच रमणीय छल ।

कार्यक्रम २२ दिसम्व र क ३ वजे प्रारंभ भेल । उद्घाटन कएलनि नेपालक सभासद् यदुवंश झा, प्रमुख अतिथि छलाह विश्वयविद्यालयक रजिष्टा र । विशिष्टज अतिथिमे दरिभंगाक विधायक सरावगी सहित पंक्ति लेखक सेहो रहथि । जेनाकि वैजूजीक सभ सम्मेटलनमे होइत अछि कार्यक्रम पूर्व निर्धारित नहि छल । तत्कासल अनुहार देखि बनाओल गेल हुनक कार्यक्रमक तीनटा चरण हेाइछ – पहिल शुभारंभ आ सम्मा न, दोसर भाषण–भुषण आ तेसर सांस्‍कृतिक कार्यक्रम ।

एही तरहें एहु कार्यक्रममे सम्मािन कएल गेल । हमरा लेखें दू गोट सम्माहन महत्व्पूर्ण छल – डा. प्रफुल्ल कुमार मौन आ अयोध्या नाथ चौधरीक । सभासद यदुवंशजीक सम्मासन औपचारिक छल ।
कार्यक्रमक शुरुआतेमे एहि बेर अगिला सम्मेधलन काठमाण्डू मे हयत से बात चर्चामे छल । दरिभंगा–जनकपुर आवतजावत कएनिहार समदिया सभ एकर वीडा–पान पूर्वेमे उठा लेने छलाह आ काठमाण्डूय सम्मेरलनक हेतु वाह–वाही लुटबाक आत्मपरति करब शुरु क देने छलाह । ई बात डा. बैजूक महा सचिवीय भाषणमे प्रकट भेलै जकर कडा प्रतिवाद पंक्ति लेखक अपन भाषणमे कएलक ।

अन्तैराष्ट्रि य सम्मेअलनक आयोजन खेल नहि छिऐक । डा. बैजूक कएल–धएल पर सपरानी तीर्थयात्रामे जाएब एक बात छैं, आमंत्रित अतिथि लोकनिकें उचित सम्माननक संग कार्यक्रमके औचित्यूपूर्ण बनाएब दोसर बात । हमर दृढ धारणा छल – जाहि तरहें बैजूबाबू कार्यक्रमक आयोजन अस्तक व्यऔस्त‍ हालतिमे करैत छथि तेहन काठमाण्डूध मे नहि हयत ।मंचसं हम सम्पूजर्ण श्रोता, दर्शक सभक आगां बाजल छलहुं–काठमाण्डूतमे सातम् अन्त राष्ट्रि य मैथिली सम्मेमलन हयत मुदा हमरा शर्त पर । अन्ताराष्ट्रि य जिज्ञाशाक केन्द्रतविन्दुर काठमाण्डूिमे महज भोज भातक हेतु भेडियाधसान उपस्थिीति किन्नलहुं नहि हयत । निर्धारित प्रतिनिधि, परिचयपत्र सहित सहभागी कराओल जएताह आ कार्यक्रममे स्थािनीय कलाकार सभक सेहो उल्लेधख्यि उपस्थितति रहत । ई बात डा. बैजू आ काठमाण्डूक आयोजक विच पूर्व निर्धारित रहत, जाहिमे फेरबदल संभव नहि ।
कहबाक जरुरति नहि हमर जानकारीसं वैजू बाबूक कैम्पनमे निफिकिर भेाजन भात आ नंींदक आनन्दोलेनिहार विच हडकम्पर शुरु भ गेलै । बहुतोकें वुझएलै–काठमाण्डू क सम्मेिलन आ पशुपतिक दर्शन कठिन भ गेल । यद्यपि वैजू बाबू मंचसं हमर शर्त आ प्रस्ता।वकें स्वी कार कएलनि मुदा अपन फौजकें तोष भरोस देबाक हेतु पशुपति दर्शनक युक्तिक आश्वातसन दैत रहलाह ।
काठमाण्डूक सम्मेकलनक विशिष्टा पक्ष की ?
जे केओ अन्तदराष्ट्रि य मैथिली सम्मे लन बैजू संस्कएरणमे गेल हयताह ओ शुरु सं अन्तप धरि सहभागिताक अव्य वस्था अवश्यत देखने हयताह । कार्यक्रममे सम्माबन प्रदान आ सांस्कृलतिक कार्यक्रम मात्र आकर्षक होइछ । काठमाण्डूह सम्मेथलन निर्धारित प्रतिनिधिक संग विशिष्टा विद्वानक सहभागितामे हयत । जाहिमे सरिपहुं विदेशी विद्वान सभकें समावेश कएल जाएत । उद्घाटन राष्ट्रिपति वा प्रधानमंत्रीक हाथें हो से आयोजक चाहत, जे असंभवो नहि छैक । तओं कार्यक्रमक गरिमा बढत ।
सम्मातन देबाक हेतु एकटा विशेषज्ञ कमिटी गठन हयत जे विभिन्नह भाषामे काज करितो मैथिली वा मातृभाषा प्रति विशेष लगावकें प्राथमिकतामे राखि सम्माटनक हकदार निर्धारित करत । सम्माषनमे एकटा छपल कागजक टुकडी खुल्लाे नहि ताम्रपत्रमे लिखित आकर्षक फ्रेम लागल रहत । प्रतीक चिन्ह। जानकी मंदिर, पशुपतिनाथ, स्वायंभूक सीसा जडित मौडल हयत जाहिमे पाग, दुपट्टा रहबे करत ।
औचित्येपूर्ण कार्यक्रमक हेतु एकटा गंभीर प्रकृतिक विचार गोष्ठी क आयोजन हयत, जत्त विभिन्नृ विषयमे लगभग तीन चारि घंटाक छलफल चलाओल जाएत । गोष्ठीतक एकटा केन्द्रि य विषय निर्धारित कएल जाएत । एहि गोष्ठीकमे विभिन्न। भाषा–भाषी विद्वान सभकें सहभागिता सुनिश्चि त कएल जाएत । तहिना मैथिलीक स्थािपित विद्वान, साहित्यीकार सभकें सहभागी कराओल जाएत ।
एकटा आकर्षक कवि गोष्ठी्क आयोजन हयतैक, जाहिमे पठित कविता सभके सम्पा दन क पुस्त काकार प्रकाशनक योजना आयोजक के छन्हिा ।
सांस्कृकतिक कार्यक्रममे डा. बैजूक हेंड़मे सामिल बहुतो महत्वभपूर्ण कलाकार मध्येत उत्कृाष्ट कें छानि आमंत्रित कएल जएतनि । सम्मेकलनक सांस्कृरतिक प्रभारी कमलाकान्तम जी सं परामर्श क ई गुरुत्तर काज सम्पयन्नत कल जाएत । नेपालोक विशिष्टे सांस्कृरतिक कलाकार सभकें अवसर उपलव्धज कराओल जएबाक कारणें सिमित समयमे सिमित कलाकारक प्रस्तुनति आयोजक लोकनिकें बाध्यकता हयतनि ।
एहि तरहें काठमाण्डूा सम्मेोलन आन समयक सम्मेतलन सं किछु फूट आ सन्देरशमूलक हयत । काठमाण्डूप अन्त राष्ट्रि य मिडियाक चहल–पहल बला ठाम हयबाक कारणें जत्त कार्यक्रम पूर्ण कभरेज पाओत ओत्तहि ताहिमे पूस्तुरत प्रत्येिक गतिविधि संयमित, व्यावस्थियत आ आकर्षक रखबाक जिम्मेावारी आयोजक लोकनिकें हयतनि ।
छठ्म अन्तुराष्ट्रि य मैथिली सम्मेमलनक मंच सं भेल एहि तरहक उद्घोषकें सभ पक्ष स्वािगत कएलक अछि । विश्वतविद्यालयक कुलपति तत्कािले अएबाक स्वीाकृति प्रदान कएलनि अछि तं चेन्नसईक भाइ मणिकान्त दास, कलकत्ताक कामदेव झा, अशोक, मुम्वअईक सुशील झा दिल्लीाक गंगेश गुंजन–काठमाण्डूण सम्मेतलनक आकर्षण हयताह ।
मैथिली अनुरागी लाखों सहृदयी सभक संग हम आयोजन पक्ष सेहो एहि सुखद क्षणक प्रतिक्षामे छी । तखन एकरा सफल बनएबालेल सभ पक्षक सभ तरहें सहयोग जरुरी छैक । कोनो जिज्ञासा क हेतु हमर निम्नक सम्पलर्क पर अवश्ये खोजवीन क सकैछी ।
अध्यनक्ष ः साझा प्रकाशन, पुलचोक, ललितपुर

३. पद्य

३.१. कालीकांत झा "बुच" 1934-2009- आगाँ

३.२. गंगेश गुंजन:राधा १७म खेप

३.३. शिव कुमार झा-किछु पद्य
३.४.१. रामभरोस कापडि भ्रमर-गीत २. रमण कुमार सिंह- दिल्लीमे...

३.५.१. राजदेव मंडल- सिर बिहून धड़ २. कालीनाथ ठाकुर-एक अभिशाप बापक पाप

३.६.१. सत्यानंद पाठक, गुवाहाटी- आह! जाड चलि गेल! २. दयाकान्त-ई छी मैथिल के पहचान
३.७.१. विनीत उत्पल-पुष्कर २ मनीष झा "बौआभाई"- ऋतुपति बसंत (कविता)-
३.८.१. मो. गुल हसन-सभटा चौपट्ट भऽ गेल २. मनोज कुमार मंडल-बहीन३.कल्पना शरण-मिथिलाक तीला संकराति

स्व.कालीकान्त झा "बुच"
कालीकांत झा "बुच" 1934-2009
हिनक जन्म, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक कर्मभूमि समस्तीपुर जिलाक करियन ग्राममे 1934 ई0 मे भेलनि । पिता स्व0 पंडित राजकिशोर झा गामक मध्य विद्यालयक
प्रथम प्रधानाध्यापक छलाह। माता स्व0 कला देवी गृहिणी छलीह। अंतरस्नातक समस्तीपुर कॉलेज, समस्तीपुरसँ कयलाक पश्चात बिहार सरकारक प्रखंड कर्मचारीक रूपमे सेवा प्रारंभ कयलनि। बालहिं कालसँ कविता लेखनमे विशेष रूचि छल । मैथिली पत्रिका- मिथिला मिहिर, माटि- पानि, भाखा तथा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित पत्रिकामे समय - समयपर हिनक रचना प्रकाशित होइत रहलनि। जीवनक विविध विधाकेँ अपन कविता एवं गीत प्रस्तुत कयलनि। साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित मैथिली कथाक इतिहास (संपादक डाॅ0 बासुकीनाथ झा )मे हास्य कथाकारक सूची मे, डाॅ0 विद्यापति झा हिनक रचना ‘‘धर्म शास्त्राचार्य"क उल्लेख कयलनि । मैथिली एकादमी पटना एवं मिथिला मिहिर द्वारा समय-समयपर हिनका प्रशंसा पत्र भेजल जाइत छल । श्रृंगार रस एवं हास्य रसक संग-संग विचारमूलक कविताक रचना सेहो कयलनि । डाॅ0 दुर्गानाथ झा श्रीश संकलित मैथिली साहित्यक इतिहासमे कविक रूपमे हिनक उल्लेख कएल गेल अछि |


!! माॅथ पर धान !!

की लचकल अछरल पछरल डाॅड़,
की मचकल आॅचर गछरल फाॅड़,
चालि उत्तान छै,
माॅथ पर धान छै ।।

बढ़ै छै रूनरून रूनरून शीस,
पड़ै छै दीठि पायलक दीस,
कंठ मे गान छै ।
माॅथ पर धान छै ।।

की चमकल बुट्टी - बुट्टी देह,
ठोर पर हासक पातर रेह,
गाल तर पान छै ।
माॅथ पर धान छै ।।

आॅखि पर लागल लाजक बोझ,
घोघ सॅ ताकय सोझे सोझ,
लक्ष्य खरिहान छै ।
माॅथ पर धान छै ।।

भक्त रहलै मंदिर केॅ झोलि,
गेलै दू - दू शिव आसन डोलि,
अभय वरदान छै,
माॅथ पर धान छै ।

वियोगक वीतल कारी रैन,
जुड़ायल आइ मुड़ायल नैन,
गगन मे चान छै,
माॅथ पर धान छै ।।

काटि कऽ माल भोग केर खेत,
बान्हि कऽ बोझ चललि समवेत,
गमागम प्राण छै ।
माॅथ पर धान छै ।।

वदन पर अनुचित अलुपित दृष्टि,
चरण पर करू सिनेहक दृष्टि
एतय भगवान छै ।
माॅथ पर धान छै ।।

हे चरऽरक चंडी धऽरक देवि,
देश बढ़ि रहल अहाॅ केॅ सेवि,
मोॅछ पर शान छै ।
माॅथ पर धान छै ।।




!! बुढ़ारी मे घीढ़ारी !!

बुढ़ारी मे ई घी की -
एकरा कहियौ डालडा ढ़ारी ।।
वरद जुआ कऽ हाॅफि रहल छथि -
चमेर लेट्ट गाड़ी ।।

बुनलनि गहुमक लेट भेराइटी,
दऽ सकलाह खाद नहि डाइटी,
दाना बेगाना भेलनि,
थे्रसर पर चैकल नारी ।।

मझिनी मे जलपान करै छथि,
भरलो थार जियान करै छथि,
उठि गेला चटनी चटैत,
पड़ले तरूआ तरकारी ।।

हे देखू अकरहर करै छथि,
पेंचर ट्यूब मे हवा भरै छथि,
जोलही धोती केर आसन पर,
पसरल सीफेन साड़ी ।।

बऽर सऽख सॅ दाॅत लगौलनि,
खसि पड़लनि जहिना मुॅह बौलनि,
कनियाॅ ओडÛठ़लि दरवज्जा पर,
अपने बैसल बारी ।।

टीशन पर रोमांस करै छथि,
हीरो सबहक कान कटै छथि,
कारी केश खिजाबी ताहि पर -
उगलनि उज्जर दाढ़ी ।।
!! सारिक पत्र पाहुनक नाम !!

फोटो अहॅक टडÛबौने छी मन मे,
हऽम छोट सारि अहॅक औ पाहुन,
हमरे शपथ अहाॅ अबियौ फागुन मे ।।

जहिया सॅ गेलहुॅ हमर नीन लेलहुॅ,
ओझा अहाॅ पर सुनू मरि गेलहुॅ,
हमरा तऽ कंठी अछि अपने मॅछखौका औ,
झोरे चटयलहुॅ कियक नेनपन मे ।
फोटो .............................................. ।।

साॅझे दैया लग परिते निनयलहुॅ,
सपने मे झटकल अहाॅ चलि अयलहुॅ,
ओझा बुझि धयलहुॅ जहिना हम बहिना केॅ,
ओ हॅसलि हम दुःगंजन मे ।
फोटो .............................................. ।।

चाही ने हमरा सिनुरो आ चूड़ी,
इच्छा अछि एक्के बहुत मजबूरी,
एखन अहाॅ नेह क्षीर दारू बहिना केॅ,
हमर मिलन होयत अगिले जनम मे
फोटो .............................................. ।।
!! राम बिना अवधपुरी !!

विलपि रहल वन उपवन भवन निःपरान गय,
राम बिना अवधपुरी लागय मसान गय ।

पतनी चुड़ैल भेलि पति परेत सन सूझै,
बेटा वैताल माय जोगिनी वनलि बूझै
कोयलि कुलवधू आइ डाकिनी समान गय,
राम बिना .......................................... ।।

शैल युता काली आ शंकर भैरव बनला,
तांडव नत्र्तकक लेल, सोझे सरयू फनला,
डमडम डमरू त्रिशूल चमकय असमान गय ।
राम बिना .......................................... ।।

धऽर धऽर मे विलाप द्वारि - द्वारि हहाकार,
बूढ़क की बात हाय नेनो तजलक अहार,
अप्पन ने ककरो क्यो सभक सऽभ आन गय ।
राम बिना .......................................... ।।

शीतल अछि आगि पानि अदहन भऽ उधिएलै,
काॅट भेल कोमल आ फूले गड़ि - गड़ि गेलै,
झडकावै चानिनियाॅ जड़ि रहलै चान गय ।
राम बिना .......................................... ।।


गंगेश गुंजन:
जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी।श्री गंगेश गुंजन मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक छथि आऽ हिनका उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल छन्हि। एकर अतिरिक्त्त मैथिलीमे हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोर (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आऽ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)पुस्तक लेल सहित्य अकादेमी पुरस्कारसँ सम्मानित ।

राधा १७म खेप
एना किएक बेशी अनुभव आब अनचिन्हार लगइये
एना किएक लोको सब, सखि पर्यंत बुझाइत रहैए आन
कौखन तं ई घरो-आँगन,टोलक सब गाछ-बृक्ष
बाट-घाट,गाय गोरू फूल पात, इनार |
सब किछु अनुभव होइत अछि दूर दूरस्तक बस्तु, तेहल्ला |
कौखन क' कोना बुझाय लागलय आन गाम आब अपनहिं ई गाम |
बेशी लोक देखितहिं करय लागैत बुझाय उपहास
एना कोना मोन हमर बन्हा गेलय अपनहि लाचारिक ठाठ?
मामूली मूक मालजाल जकां नियतिक सोझां मे निहुरल
जीवित अछि देह-प्राण यद्यपि ई तैयो बुझाय लागय निष्प्राण |
कौखन तं सबटा जे एखनहिं छल सोझां मे प्रत्यक्ष अर्थवान
सौंसे घर एक संग मिझा गेल डिबिया जकां अकस्मात भ' जाइछ
अन्हार सबटा व्यर्थ |
सब अनुभव तकर गतिविधि बेकार
से व्यर्थ मन-भार क' दैत अछि नवे तरह सं व्याकुल
सबटा सब तरहक जतबा जे बुधि अपन लगा-लगा
थाकि जाइत अछि इच्छा|
सबटा जे अनसोहांत, अनिच्छित-अनपेक्षित परिस्थिति
सब मे सं किछु ने किछु अंकुराय लगैत बुझाय लगइये दैत पेंपी,
एक क्षण-दू क्षण जतबा धरि संभव ध्यान देब -
से लगले ओ सबटा अंकुर सब
अपन अपन दुपत्ति-तिनपत्ती बनि
माटि पर पनगैत सघन जीवन स्पंदित वनस्पति भ'
हरियर-हरियर लहलहाईत बुझाय लागैत अछि I
सौंसे परिवेशक एहि एहि मनक सबटा व्यर्थ बोध ,
स्वयं सेहो जेना अपना स्वभावें अंकुराय लगैत अछि -
देखितहिं देखैत बन' लागय अन्न,फल-फूलक से छोट-पैघ गाछ
रमनगर, सभ टा अपना -अपना रंगक आशाक हरियरीक आभास
सद्यः अभिभूत करैत, क' दैतछि देखबा लेल बाध्य |
देखबा लेल माने ओकर परिचर्या -सेवा ....

अनायास तकैत छी घैल पानि,
सभ कें पटब' मे लगैत छी|
सभ कें जल पिया-पिया जखन होइ छी तृप्त तखन
अपनहु देब' लगैत अछि कंठ मे त्रास
पियासक उत्कट इच्छा ...
अहा ! कंठगत होइत एको आंजुर ज'ल !..
हा कृष्ण !
कत' छथि ?
मुदा जँ पीयब तं श्रीकृष्णेक हाथें.
खाहे छुटि ने जाओ ई प्राण .
देखिअनि आखिर कहिया धरि नहि लैत छथि हमर कुशल-समाचार
कहिया धरि सहैत रहैत छथि- हमर पियास
शिव कुमार झा-किछु पद्य ३..शिव कुमार झा ‘‘टिल्लू‘‘,नाम ः शिव कुमार झा,पिताक नाम ः स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘,माताक नाम ः स्व0 चन्द्रकला देवी,जन्म तिथि ः 11-12-1973,शिक्षा ः स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम $ पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर,पिन: 848101,संप्रति ः प्रबंधक, संग्रहण,जे0 एम0 ए0 स्टोर्स लि0,मेन रोड, बिस्टुपुर
जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि ः वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार - प्रसार हेतु डाॅ0 नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चैधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्व मे संलग्न


!! आकुल जननी !!
(बाल साहित्य)

सूति रहू हमर लाल, अर्द्ध रैनि बीतल ।
अहॅक अविरल नयन सॅ आॅचर तीतल ।।

घोंटि अछिंजल काटि रहलहुॅ अछि जीवन,
तात दर्शनक आश छिन्न किएल अरपन,
क्षीर बिनु दुहू वक्ष शुष्क पड़ल ।
सूति रहू ....................................... ।।

कोन सियाही सॅ लिखल विधना हमर कपार ?
अपने प्रवास गेलनि छोड़ि हमरा व्यथा धार,
चानन सन नेनाक हिय, भूख सॅ कानल ।
सूति रहू ....................................... ।।

हुनके की दोष दिअऽ स्नेहक ओ दिव्यमूर्ति,
कायादीन विद्याविहीन करथि पंचजनक पूर्ति,
अहॅक अश्रु मातृ नयन शोणित भरल ।
सूति रहू ....................................... ।।

कहबनि गौमाता आनू औता फागुन मे
कामधेनुक सुधा भरब अहॅक कण-कण मे
अहाॅ निन्न हऽम कल्पना मे उड़ल ।
सूति रहू ....................................... ।।

!! लंका !!

खुरखुर भैया सूट सियौलनि,
बतही काकी क हाथ रूमाल ।

अध वयसि चोकटलही भौजी,
बाट पसारलि प्रेमाजाल
मैथिली कुहरथि पर्णकुटी मे,
सूर्पनखा बनली रानी ।

नेना पेट क्षीर विनु आकुल,
मोबाइल नचावथि पटरानी ।।
अद्र्धांगिंनी नेत्री सॅ कुपित भऽ
शंखनाद कयलनि मामा ।

हस्त ऊक लऽ मामी खेहलथिन्ह,
फूजल मामा केर पैजामा ।।
अपन पुतोहु केॅ झोंकि अन लमे,
बनि गेलीह गामक सरपंच ।
धर्माचार्य देव मंदिर केर,
मुदा हृदय भरल परपंच ।।

कतेक घऽर मे सान्हि काटि,
शांति समिति केर आव प्रधान ।
रक्षक छथि चुटकी मे वैसल,
कोना बाॅचत अवला केर मान ?
विद्यालय केॅ मुॅह नहि देखल,
धएने कुरसी शिक्षा सचिव ।
कुटिल तंत्र केर ईह लीला मे
मारल गेलन्हि मूक गरीब ।।

मुंडी इनार मे हुरहुर जनमल,
कमीशन लागत दस परसेन्ट ।
नौकरशाह मोटर मे घूमथि,
आॅखि गोगल्स काॅखि मे सेन्ट ।।

सभ काज मे दिऔक भएट,
शौच करू वा लघुशंका ।
रामराज्य केॅ बिसरि जाऊ,
आर्यावत्र्त आव सद्यः लंका ।।
राजनीति मे अज्ञ - विज्ञ केर,
नहि कोनो अछि वर्ग विभेद ।
अपने पीबथि ताड़ी दारू,
मंत्री विभाग मद्य निषेद्य

राग वसंतक गेल जमाना
सुनू ब्रितानी विकट संगीत ।
डंकन कुरथी पाक बनल
आ अप्पन वारिक पटुआ तीत ।।

!! होरी !!

हाथ अबीर काॅरव पिचकारी,
भाल पर गदरल चाह उमंग ।
पूरन भैया होरी खेलथि,
नव नौतारि सारि केर संग ।।
कखनहुॅ डुबकी लैत अधर मे,
जुट्टी मे कखनहुॅ हिलकोर ।
नील, वैंजनी लाल गुलाल सॅ,
रंगलनि चम्पा पोरे - पोर ।।

‘टिल्लू’ नयन पर अचरज पसरल,
देखि भ्राता केर बसन्ती वुन्न ।
एखनहुॅ श्रृंगारक आह भरल मुदा -
आॅखि अन्हार कान छन्हि सुन्न ।।
हऽम पुछलअनि कोना कऽ कयलहुॅ,
मधु सॅ उबडुव मधुर प्रबंध ।
सकल तन अछि बेकार मुदा हम,
ध्राण शक्ति सॅ सूॅघल गंध ।
भौजी लऽ वाढ़नि आ खापड़ि,
झाड़ि देलनि भैया केर अंग ।
कुरता फाटल नयन नोरायल
भूतल खसल होरी के रंग ।।


शिव कुमार झा




!! माॅडर्न जमाना !!

नुआ धोती मिल बरहर जनमल,
आयल बरमूडा मिनी स्कर्ट ।
मुन्ना भैया चुनरी ओढ़ू,
भौजी पहिरलनि जोलही सर्ट ।।

काकी मरौत काढ़ने बैसलि,
कक्का गऽर धरम केर वाना ।
कदली कनियाक हाथ मे वीयर,
आवि गेल माॅडर्न जमाना ।।

भरि दिवसक गणना जौ करवै,
बहुआसिनक सात वेरि सतमनि ।
भरल साॅझ स्वामी आयल छथि,
अॅइठार वैसलि लऽ मुॅह मे दतमनि ।।

अस्सी दशक मे माय सॅ मम्मी
फेर माॅम आब भेली मम्मा ।
मायक भ्राता केर नाम की राखब?
मामा पिघलि बनला झामा ।।

अपन नेना सॅ वेस पियरगर,
संकर झवड़ा चायनीज कुकुर ।
भुटका - नाथ केॅ छाड़ि घऽर मे
टाॅमी संग गेलि अंतःपुर ।।

चरण स्पर्श निर्वांण लेलक आव,
छुट्टो कैंचा केॅ भऽगेल वाय ।
भौजी एकसरि मधुशाला मे
भैया सॅ गेलनि मोन अघाय ।।

नेना पच्छिमक बोली उगलै ।
माॅ मैथिली कोना वजतीह दैया ।
बात अंगरेजिया माथ घुसल नहि,
मुदा करै छथि या ! या ! या !!

तिलकोर मखान नीक नहि लागय,
नहि सुस्वादु मकैयक लावा ।
पाॅपकाॅर्न चाउमीन दलिया लेल,
मोॅछ पिजौने बैसलनि वावा ।।

१. रामभरोस कापडि भ्रमर-गीत २. रमण कुमार सिंह- दिल्लीमे...

रामभरोस कापडि भ्रमर
गीत
ओ पवन, झिहिर झिहिर बहैत जाउ
छूबि बताउ कने, पिया छथि कत्त ककरा संग
वर्षहु गेला भेलन्हिा, सुधिबुधि किछु ने छैन !
दिन भेल पहाड, दुख भेल जीवनक अंग ।

निष्ठू र समाज चाहे, नोचि नोचि खाइ जेना
शेरक भूख बनल जवानीक तरंग जेना
चारुभर शिकारी ताकमे वैसल अछि
रहल ने कोनो उमंग !
ओ पबन, पिया छथि कत्त ककरा संग !!

अधिकारक बात सभ लागुने भेल कखनो
नारीक व्याथा कथा कमैनीक धंधा एखनो
जान जोखिम बनल कत्त धरि घींचब
त्याजगब प्राण वियोगे कन्ता !
ओ पवन, पिया छथि कत्त ककरा संग !!

जानि जानि आगिसं खेली कोना हम
शक्ति भरल मुदा तौली कोना हम
शील, सुशील मिथिलाकेर ललना
पतिक परोक्ष भेल शिथिल तरंग !
ओ पवन, पिया छथि कत्त, ककरा संग !!

!!!

गीत

बाध बोनसं उपर उठियौ
करियौ मनके चंगा
देश दुनियांके हाल ने जनबै
रहब सभ दिन उटंगा
अखनो अनके मुंह तकबै
कखनो ने भेटत जस,
पिया अहां रहलहुं जस के तस ।

ठीक नीक ने उठब–बैसब
कोना वुझबै जीवनक रंग
अप्प न काज सुतारत सदिखन
अहां चास वासमे दंग
भुच्चचर बनि क� आंगन सेबने
जीवन तहस–नहस,
पिया अहां रहलहुं जस के तस !

बाल बच्चाव टेल्गजर होइते
पढएबै बोरडिंग नीके
पढ़तै लिखतै बढ़का बनतै
सभ किछु हयतै ठीके
सपना मनमे राखि हम जिलौं
भोगलहुं अहांक अजस,
पिआ अहां रहलहुं जस के तस !
अहांके बोली कोंढ़ कटैए
आबो करु अहां बस,
पिया रहलहुं जसके तस !

गीत
ऐ चन्दाब अहां, खोजि पठाउ प्रिय कंत
अहींक इजोरियामे गेला निरमोहिया
बनल प्रतिक्षा अनन्ता !

सजल सेज ओगरने सदिखन, हम बैसलि बौरायलि
अओताह हृदय लगओताह, मनहिमन अकुलायलि
राति–दिनकेर गणना विसरल
सुधि वुधि भेल उसरन्तण !
ऐ चन्दाध, अहां खोजि पठाउ प्रिय कन्त! !!

लुच्चाा पबन देह, छुबि–छुबि लसकए
काम मोचरुवा हिय, रहि रहि चसकए
ठाढ़स बान्ह भंग दुखदायी
शील, कुल केर अन्तख,
ऐ चन्दाा, अहां खोजि पठाउ प्रिय कंत !!

दुनियां बैरी आंखि गड़ौने, लप–लप जीह करैए
आनक चास खएबा अभ्यागसी, हरिय घास तकैए
आबहुं जं अहां भेद नुकएलहुं
परतारब दिगदिगन्तल ।
ऐ चन्दां, अहां खोजि पठाउ प्रिय कंत ।
अहींक इजोरियामे गेला निरमोहिया
बनल प्रतिक्षा अनन्ता!!!


रमण कुमार सिंह
दिल्ली
मे...
सालो
भरि वसंत रहै छै दिल्ली मे
जे
चाही सब मोल बिकै छै दिल्ली मे
मेट्रो
-मल्टीप्लेक्स बने छै दिल्ली मे
डेग
-डेग पर लोक कनय छै दिल्ली मे
गाड़ी
बंगला कोठा सोफा दिल्ली मे
बाट
-बाट पर मौत के तोहफा दिल्ली मे
दारू
स्मैक गुटका खैनी दिल्ली मे
हरपल
भागम-भाग बेचैनी दिल्ली मे
नवका
-नवका बाट बनै छै दिल्ली मे
लोकतंत्र
के खाट खड़ा छै दिल्ली मे
नित
नव-नव बाजार बनै छै दिल्ली मे
माय
-बहिन के लाज लुटे छै दिल्ली मे
सालो
भर वसंत रहै छै दिल्ली मे
जे
चाही सब मोल बिके छै दिल्ली मे
१. राजदेव मंडल- सिर बिहून धड़
२. कालीनाथ ठाकुर- एक अभिशाप बापक पाप


राजदेव मंडल
सिर बिहून धड़

गौंआ-घरुआ आओर बरियात
कियो नहि बुझि रहल अछि बात
किएक नहि वर कऽ रहल सिन्दूार दान
कि कियो कएलक हुनक अपमान
बराती सभ तोड़ए तान
केहेन अछि ओछहा खानदान
बन्नन भऽ गेल अछि मंगल गान
सिनूर लेने ठाढ़
दूल्हाल भेल अवाक
नाचि रहल अछि माथक चाक
फानि रहल सभ कातहिं कात
कन्यारकेँ कहाँ अछि माथ
सिन्दूहर कतए देल जाएत
देखतहि तँ सभ गोटे पड़ाएत
सिर बिहून धड़ बैसल अछि
मनमे संशय पैसल अछि
नहि अछि सौंथ नहि अछि मांग
पीने छह सभ गोटे भांग
कियो नहि देखि रहल अछि साइत
सिनूर कतए देल जाएत
बढ़ल जा रहल अन्हएरिया राति
एक-दोसर दिशि रहल अछि ताकि
अकचकाइत
गौंआ पुछैत अछि
किएक रुसैत अछि
दूल्हाु आर की लेताह
ओझा लेखे गाम बताह।


कालीनाथ ठाकुर

एक अभिशाप बापक पाप
पण्डितजी दण्डित भेलाह जखनहि कन्या पाँच
पूर्व जन्म के कर्म फल, वा विधिक कोनो ई जाँच।

विधिक कोनो ई जाच, यैह चर्चा भरि गामक
लाबथु नोट निकालि जत्ते सम्पत्ति छन्हि मामक।
पनही गेलन्हि खियाय, कतौ नहि बसिलनि गोरा
धन्यवाद क पात्र छथि ”कलियुग” के घोडा।

सत, रज, तम, सभ व्यर्थ थीक शिक्षा शील स्वभाव
गुण एकहि अछि अर्थ गुण अवगुण अर्थाभाव
अवगुण अर्थाभाव भाव नहि अछि गुण रूपक
कन्या कारी , गोर , मूर्ख वा दिव्यस्वरूपक।
मायक दूध क दाम जोडि गनबओता टाका
पुत्र हुनक गामक गौरब से कहलथि काका

बीतल शुद्ध आषाढ के अगहन वैशाख।
पहिल कुलच्छन बुझलनि, जखनहि घुरि अयला सौराठ॥
घुरि अयला सौराठ हाट करथु बेचारे
विधिक लिखल के मेटल आब रहि जेता कुमारे॥
छोरलनि बीस हजार , लोभ मे तीस हजारक।
कए रहला गणना जोतखी, एहि साल बजारक

सुनलनि जखनि सुषेण सँ , दहेज निरोधी न्यूज
तखनहि जेना दिमाग केर ढिबरी भय गेल फ्यूज
ढिबरी भय गेल फ्यूज बराति कन्यागत दुनू
घटकैती के करत घटक केर हाल न सूनू
बर क हाथ कनिया बरियातीक हाथ हथकड,
सरियाी सभ करथु दौडबडहा कचहरी।

लूटन झा त लुटि गेला कए दूई कन्या दान
मोछ पिजौनहि रहि गेलाह करता की बरदान?
करता की बरदान चोट छन्हि नगदी नोटक
उजरल बरदक हाट प्रथम ई बात कचोटक
घटक राज केर संग करथु बरु तीर्थयात्रा
करथु मन्त्रणा गुप्त मुक्त भय सफल सुयात्रा

जाति जनौ बाँचत कोना? कुल मर्यादा मान
अन्तर्जाति ववाह में घोषित नकद ईनाम
घोषित नकद ईनाम संग सर्विस सरकारी
कहय शास्त्र ओ वेद मात्र द्विज छथि अधिकारी
करथु ग्रहण ककरो कन्या हो डोम चमारक
मन डोललनि पण्डित जी के जे उच्च विचारक

भेल मनन मन्थन बहुत, ई समाज केर पाप!!
की दहेज बन्ले रहत समाजक अभिशाप!!
समाजक अभिशाप ब्याज ई पूँजीवादक।
बेचि आत्मसम्मान स्वांग धरि कुल मर्यादक
सिद्धान्त नहि व्यवहारहु केर करू प्रदर्शन
तखनहि त भय सकत रोग उन्मूलन॥
१. सत्यानंद पाठक, गुवाहाटी- आह! जाड चलि गेल! २. दयाकान्त-ई छी मैथिल के पहचान


सत्यानंद पाठक, गुवाहाटी

आह! जाड चलि गेल!
कहलखिन्ह बाबू साहब
त हुनक आह में देखलहुं
कतेक रास दुख
कतेक रास अफसोस
आ ओहि संग पसरल
बोतल सभ, बसिया थारी
जाहिमे कांट-कूश ओंघरायल
कहि रहल छल कथा जाडक
आह! जाड चलि गेल।
बाबू साहब कहलथिन्ह
जाड सन सोहनगर आर कुनो मौसम नहिं
घरे रहू सभ किछु अगा पाछा
घरक आगामे घूर
घरमे घुरक सामान
बस! बाबू साहब के की चाही।
दिन जखन
आंखि बन्न कऽलैत छलैक आ
चढैत रातिमे ठिठुरन
तेज भय जाइत छलैक तऽ
बाबू साहब गरमाए लगैत छलाह
आ जा धरि आंखि फुजल रहैत छलनि
देह गरमायल रहैल छलनि
आ दिन कऽ सेहो
ओहने हवा-बसात
ओहने करियौन मेघ
त दिन सेहो घरमे गरमायल रहैत छलैक
मुदा आई भोरे जखन
आंखि फुजलैन तऽ
नुकायल सूरज
भक्क दऽ सुझलैन।
आह! जाड चलि गेल।
चहकि उठल जकांताक बेटा
बेटी आ कनिया तखन
काजमे लागल छलथिन्ह
जकांताक बेटा
सूरज देखिते फुर्र सऽ घर सँ
निकलल।
माए-बहिन अचरजमे
ई छौंडा-एक मास सँ
घरमे छल दुबकल।
कोना फुर्ती आबि गेलै।
आ जकांताक बेटा
घर सँ सडक पर आबि
दुनू हाथ ऊपर उठा
कहि रहल छल
आह! जाड चलि गेल।
ई जाड ओहि जाड सँ बेसी
कनकनी वला छल।
दिन-राति एक्के
धस स अनवरत बहैत बसात।
तीरो सं चोख
सोझे जेना
छाती- पेट, पएर सँ होइत।
पंजरामे धंसि जाइत छलैक
बाबू साहबक दरवज्जा पर
अनवरत सुलगैत घूर दूरे सं देखि
संतोष करऽ पडैत छलैक।
जारनि सँ चूल्हि जडत
घूरक ले कतऽ सँ आयत
तऽ सांझ पडिते जखन
बसात तेज भऽ जाइत छलैक
दांत ठिठुरऽ लागैत छलैक
जकांताक बेटा
फलालैन केर फाटल गंजी सँ
उघरल देह केँ झांपक
प्रयास करैत चुल्हाक आगामे बैसल
मायक पांजडि सँ सटि जाइत छल।
पटिया पर देह के
संकोचने आ पटिया ओढने
जकांताक परिवार
बेढ वाला घरमे
एक दोसराके सटने राति काटि लैत छलैक
मुदा, जकांताक बेटा
अपन बाप सँ कहियो
ई पूछबाक साहस नहि केलक
जे अतेक जाडे ओ
अन्हरोखे दाऊन करऽ किएक
चलि जाइत छलैक
ओढय वाला पटिया तखन
से नहि भेटति छलैक।
मुदा आई-सभ खतम
किएक तऽ सुनू कहैत अछि
जकांताक बेटा
आह! जाड चलि गेल।
आह! जाड चलि गेल!


दयाकान्त
ई छी मैथिल के पहचान
भरि दिन चुन-तम्बाकू खेsता
चिबबैत रहताs गुटका, पान
जम्हरे देखु थुकैत रहताs
मार्केट, ऑफिस हो वा मकान
ई छी मैथिल के पहचान

बात-बात पर झगरैत रहताs
नहि बजवाक कोनो ठेकान
एकबेर दोसर डपिट दैन तs
लगताह भिजल बिलारी समान
ई छी मैथिल के पहचान

गाम छोरि परदेश बसै छैथ
तखनो नहि दोसर सs मिलान
भरि दिन दोसरक निंदा करताs
टांग घिचाई मे सत्तत प्रधान
ई छी मैथिल के पहचान

मैथिलि बजवा मे परहेज करताs
नहि छैन दोसर भाषा के ग्यान
कह्बैंन ई शब्द एना बाजु तs
कहताs हम छी कोनो अकान
ई छी मैथिल के पहचान

अप्पन मेहनत लगन के बल सs
कs लैत छैत कंपनी मे नाम
परमोसन कs बेर मे सदिखन
नहि रहैत छैन बाँस सs मिलान
ई छी मैथिल के पहचान

सरकारी हो व गैरसरकारी
भेटत मैथिल उच्च स्थान
कोनो कजाक आस राखब तs
नहि होयत पुरा कुनु ठाम
ई छी मैथिल के पहचान

सफल प्रत्यासी के लिस्ट मे
सब सs आगु मिथिलाधाम
हिनक लगन, प्रतिभाक आगु
दैत अछि सब दंडप्रणाम
ई छी मैथिल के पहचान

नहि मैथिल ककरो सs पाछु
पाछु अछि मिथिलाक गाम
रहलै हमर भुगोल मे सदिखन
जिबछ, कोशी, कमला बालन
ई छी मैथिल के पहचान

हमर मैथिलि भाषा सन मिठगर
नहि अछि कोनो दोसर ठाम
आपस मे सब मैथिलि बाजु
चाहे लोक मुनैया कान
ई छी मैथिल के पहचान
१. विनीत उत्पल-पुष्कर २ मनीष झा "बौआभाई"- ऋतुपति बसंत (कविता)-



विनीत उत्पल 1978-
आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव आ तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स)। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आऽ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र भs सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र। आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्ली मे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडा मे वरिष्ट उपसंपादक।

पुष्कर

पुष्करक घाटपर बैसल
ओहि साँझ पोखरिकेँ निङहारैत
लोक-वेदक मुद्राकेँ देखैत
वेदपुराण, वाल्मिकी रामायण आ
महाभारत मनमे घुमैत

एक-एक दृश्य मनकेँ उमंगित करैत रहैत
एहि ठाम ब्रह्म यज्ञ कईने छलाह
एहि ठाम भगवान राम पिता दशरथक श्राद्ध कएलन्हि
एहि ठाम श्रीकृष्ण दीर्घकाल धरि तपस्यामे लीन छलाह
एहि ठाम सुभद्राक अपहरण कऽ अर्जुन विश्राम कएने छलाह

चारू दिस अरावलीक पहाड़
सहृदय नाग पर्वतमालाक आंचरमे
बावन घाटक ई सरोवर
कतेक खिस्सा अपनामे
समेटने अछि

अगस्त्य, भतृहरि,
जमदाग्नि ऋषि
विश्वामित्र, कपिल
आ कण्व मनीषीक
तपस्या आ यज्ञ स्थली अछि

ई तीर्थराज पुष्कर जयपुर घाटसँ
सूर्यास्तक दृश्य
रामानुज संप्रदायक विशाल बैकुंठ मंदिरकेँ तारैत
आदि शंकराचार्यकेँ मन पाड़ैत
मन प्रफुल्लित आ उद्वेलित भऽ जाइत अछि

पुष्करक हवा-बसात, मंदिर आ घाटक दृश्य
गोकुलचंद पारेखक कएल जीर्णोद्धार मंदिर
आ आदि शंकराचार्यक स्थापित कएल ब्रह्माजीक मूरूत
एतए आबए बला लोककेँ मोन पाड़ैत अछि
कहबी ‘सारे तीरथ बार-बार, पुष्कर तीरथ एक बार’
२.
मनीष झा "बौआभाई"
ऋतुपति बसंत (कविता)-
स्वागत अछि हे ऋतुपति बसंत
वर्णनीय छी अहाँ अनंत
स्वागत अछि हे ऋतुपति बसंत

नवपल्लवक संग सुशोभित
मज्जर देखि होइत मनमोहित
बाट बटोही सहजहि आकर्षित
गाबथि वर्णन ऋषि-मुनि-संत
स्वागत अछि हे ऋतुपति बसंत

वीणा वादिनी देलन्हि प्रवेश
वरमुद्रा में हरलन्हि क्लेश
ऋतुराजक छन्हि गुण विशेष
गुण वखानक कोनो ने अन्त
स्वागत अछि हे ऋतुपति बसंत

मधुर सुगंध पसारैत महुआ
टिप-टिप झहरैत आमक मधुआ
गँहुमक खेतक हरियर बथुआ
तीसी सरिसव बनल महंथ
स्वागत अछि हे ऋतुपति बसंत

रंग अबीरक संग में होली
बूढ सियानक अलगहि टोली
नेना भुटकाक टुनटुन बोली
माटि लेटायल छोटका जन्त
स्वागत अछि हे ऋतुपति बसन्त

कुहू-कुहू कोइली गीत सुनाबय
मोर आ मोरनी पंख पसारय
बोल पपिहराक बड़ मन भावय
विहुँसैत "मनीष" निपोरैत दन्त
स्वागत अछि हे ऋतुपति बसन्त

१. मो. गुल हसन-सभटा चौपट्ट भऽ गेल २. मनोज कुमार मंडल-बहीन३.कल्पना शरण-मिथिलाक तीला संकराति



मो. गुल हसन, आई. कॉम, जन्मम तिथि- 5. 01. 1964 ई., पिता- अब्दुतल रशीद भरहुम, ग्राम, पोस्ट - बेरमा, जिला- मधुबनी
सभटा चौपट्ट भऽ गेल

बड़ मेहनतसँ खेती कएलहुँ
नीक-नीक धानक बीया लगेलहुँ
गोबर-छाउरकसँ खेत भरि हम
कादो कए हम धान लगेलहुँ
मुदा नहि जानि विधना कि लिखि देल....
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल।

धानक शान कहल नइ जाइ छल
हरियर कंचन धान लगै छल
तुलसी फूल-बासमतिसँ
गम-गम करैत हमर खेत भरल छल
मुदा, बाढ़िक चपेटमे सभ चल गेल
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल

कमला तँ मानि गेली
मुदा, कोशी बिगड़ल छल
आ भुतहीकेँ तँ बाते नहि करु
जेना सोझहे ओ उलटल छल
नहरक पानि आ वर्षा मिलि
दुनू खेलल ऐहन खेल
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल

सरकारक अभियान चलल
नेता सभ केलनि पहल...
एक हजार रुपैआ आ एक क्वीऽन्टचल अनाज
देव से सुनि मनमे राहत तँ जरुर भेटल,
मुदा हे, अढ़ाइये सए रुपैआ पचीसे किलो चाउर
एतनेपर ओहो ब्रेक लागि गेल
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल

लिखैत ई बात गुल हसन कहैए की कहुँ भाय.....
आब हमरा किछु नहि फुरैए...
किऐक तँ हेँ
केलहा-धेलहा तँ सभटा पानिमे चल गेल
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल।


मनोज कुमार मंडल
पिता- श्री भगवान दत्त मंडल
श्‍ौक्षणिक योग्यनता- ग्राम, पोस्टन- बेरमा
बहीन

जखन बहीन अहि घर जनम लेल,
लार-प्याजर व स्नेाहक बरखा केलहुँ
स्नेबहक पुतला बना हम हृदयक मंदिरमे बैठाउल
जखन स्ने‍ह यौवन छूलक
दुनियाँ कहैछ जाइछथि ई
हम पुछलहुँ की कहैत छी?
सबहक बहीन जाइ छाथि।

आँखिमे पानि व्याथित हृदयसँ
हम बाजल- ‘जो बहिन तू अपन घर,
जतए खुशीसँ भरल बाग होउ
दुखक छाँह तोरा नहि भेटउ
स्ने हक जतए राज होउ,
कहैत-कहैत आँखिसँ गिरल
पानिक दू गोट बून्नँ
लोक सहृदए कहलक- ‘भुलि जाओ अहाँ
हम पुछलहुँ की कहैत छी?
सबहक बहीन जाइ छथि।

महिना बीतल, बरखक बरख बीतल
हमहुँ जेना भुलि जेँका गलहुँ
नव बन्धेनमे बान्द्धि हम
मायामे समाए गेलहुँ
जखन कहियो मन परल पुरने स्नेकह उमैर परल,
स्नेकहक मोटरी बानिह पहुँचलहुँ
लोग कहलक- ‘भुलि जाओ अहाँ
हम पुछलहुँ की कहैत छी?
सबहक बहीन जाइ छथि।

डोली लागल बरात साजल छल,
सबहक आँखि नोरसँ भरल छल
पग भारी छल,
आगू डोली, पाछु बरात छल
हम पुछलहुँ केहन ई उत्सछव?
सभ कहलक- भूहल जाओ अहाँ
हम.......

कल्पना शरण
मिथिलाक तीला संकराति

भाेरहरबामे नहायक छल याेग
घूर तापैत चुड़लायक भाेग
माय बाप सऽ तील बहबाक
बात कऽ लेल स्वाद तीलबाक
सप्ताऽह भरि सऽ तैयारी रहल
घरमे साेन्हगर गंध छल भरल
सूर्य मकर राशिमे प््रारवेश लेल
सालक प््रारारम्भ पाबनि सऽ भेल
दिनमे भेल खिचड़ीक महाभाेज
अन्न दान लेल पंडितक खाेज
पकवानक ढ़ेर भेल जहन राति
इर् छल मिथिलाक तीला संकराति

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2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
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4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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