भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Monday, March 29, 2010

'विदेह' ५४ म अंक १५ मार्च २०१० (वर्ष ३ मास २७ अंक ५४)-PART III


बालानां कृते-
जगदीश प्रसाद मंडल
किछु प्रेरक कथा
71    दोस्तक जरुरत
      एकटा पैध पोखरि छल। ओकर उत्तरबरिया महार मे मोर रहैत छल आ दछिनबरिया मे मोरनी। दुनू असकरे-असकरे रहैत। एक दिन मोर मोरनी ऐठाम जा विआहक प्रस्ताव रखलक। मोरक प्रस्ताव सुनि मोरनी पूछलकै- अहाँ कऽ कैक टा दोस अछि?
  नजरि दौड़बति मोर उत्तर देलक- एकोटा नइ।
  मोरक जबाव सुनि मोरनी विआह करै स इनकार क देलक। तखन मोरक मन मे एलै जे सुख स जीबैक लेल दोस जरुरी अछि। ओतऽ स विदा भ मोर पूबरिया महार होइत चलल। पूबरिया महार मे सिंह रहैत छल। आ पछबरिया मे कौछु। सिंह बैसल-बैसल झपकी लैत छल। मोर सिंहक आगू मे ठाढ़ भ गेल। मोर कऽ बजैक साहसे ने होय। बड़ी खान धरि मोर कऽ ठाढ़ भेलि देखि सिंह पूछलकै। निराश मने मोर कहलकै- भैया! हम अहाँ स दोस्ती करै एलहुँ। किऐक त जिनगीक लेल दोस्तक जरुरत होइत छैक। सिंह मानि दोस्ती कऽ लेलक। सिंह स दोस्ती भेलाक बाद मोर पछबरिया महार आबि कौछु स सेहो दोस्ती केलक। पछबरिये महारक गाछ पर टिटही सेहो रहैत छल। जे अपन काज इमानदारी स करैत छल। जखन कखनो शिकारीक आगमन होय वा कोनो आफत अबैवला होय त टिटही सबकेँ जानकारी द दैत।
      दोस्ती केलाक बाद मोर मोरनी लग आबि सब बात कहलक। मोरनी विआह करैक लेल राजी भऽ गेलि। दुनूक बीच विआह भ गेलै। दुनू एक्के ठाम रहै लगल।
      एक दिन एकटा शिकारी शिकारक भाँज मे पहुँचल। भरि दिन शिकारी शिकारक पाछू हरान भेल रहै मुदा कतौ किछु नहि भेल रहैक। थाकियो गेल रहै आ भूखो लागि गेल रहै। गाछक निच्चा मे सुसताय लगल। गाछक निच्चा मे चिड़ैक चट देखि गाछ पर चढ़ि चिड़ै कऽ पकडै़क विचार केलक। गाछे पर स मोर-मोरनी सेहो शिकारी कऽ देखैत। शिकारी कऽ गाछ पर चढ़ैत देखि दुनू परानी (मोर-मोरनी) सोचै लगल जे आइ दुनूक जान जायत। मोर उडै़त टिटही लग गेल। टिटही जोर-जोर स बोली देमए लगलै। सिंह बुझि गेल। शिकार पकड़ै ले सिंह विदा भेल। ताबे कछुआ सेहो पानि स निकलि किनछरि मे आबि गेल। सिंह कऽ देखि शिकारी भगैक ओरियान करै लगल कि कौछु पर नजरि पड़लै। कौछु कऽ पकड़ै शिकारी किनछरि मे गेला कि कौछु ससरि पानि मे चलि गेल। शिकारी पानि मे पैइसै लगल कि गादि (दलदल) मे लसकि गेल। ने आगू बढ़ि होय आ ने पाछू भऽ होय। ताबे सिंह आबि शिकारी कऽ पकड़ि लेलक। शिकारी कऽ पकड़ल देखि मोरनी मोर कऽ कहलक- विआह करै स पहिने जे दोस्तक संख्या पूछने रही से देखलिऐक। आइ जँ दोस्ती नहि केने रहितहुँ त की होइत?
 72   स्वार्थपूर्ण विचार
      एकटा बच्चाक मृत्यु भऽ गेलै। अभिभावक संग किछु गोटे ओकरा उठा कऽ असमसान (श्मशान) ल गेल। बरखा होइत रहै। असमसान मे सब विचारै लगल जे ऐहेन दुरकाल समय मे लाश कऽ की कैल जाय? अपना मे सब विचारितहि छल कि बिल से एकटा सियार निकलि कहलकै- ऐहेन समय मे लाश कऽ जरौनाइ से नीक माटि मे गारनाइ हैत। धरती माएक गोद मे समरपित करब सबसे नीक हैत।
सियारक बात समाप्तो नहि भेलि छल कि कौछु कहै लगलैक- धार मे फेकि दिऔ। अइ स नीक दोसर नै हैत। ताबे एकटा गीध उड़ैत आबि कहै लगलै- सबसे नीक हैत जे ओहिना फेकि दिऔ धारे मे नहा लिअ आ गाम पर चलि जाउ।
      कठिआरीवला सब तीनूक चलाकी बुझि गेल। तीनू क धन्यवाद दैत विदा केलक। पानियो छूटि गेलै। सब मिलि चीता खुनि जारन द जरा देलक।
     
 73   संगीक महत्व
      एकटा गाछ लग एकटा फूलक लत्ती जनमि क लटपटाइत बढ़ैत गाछक फुनगी धरि पहुँच गेलि। गाछक आश्रय पाबि ओ लत्त्ी फुलाय-फड़ै लगल। लत्तीक फड़-फूल देखि गाछ कऽ मन मे द्वेष जगै लगलै जे हमरे बले ई लत्त्ी एत्ते बढ़ि फड़ै-फुलाय अए। जँ हम सहारा नइ दैतिऐक त कहिया-कतै माल-जाल चरि नष्ट क देने रहितैक। लत्ती पर रोब जमबैत गाछ कहलकै- तोरा हम जे आदेश दिऔ से तू कर। नइ त मारि क भगा देबौ।
      वृक्ष लत्ती कऽ कहिते छल कि दू टा बटोही ओहि रस्ते जाइत छल। लत्ती स सुशोभित गाछ देखि एकटा राही दोसर स कहलक- संगी! एहि वृक्ष कऽ दखियौक जे कत्ते सुन्दर लगै अए। निच्चा मे कत्ते-शीतल केने अछि। ऐठाम बैसि बीड़ी-तमाकुल कऽ लिय तखन आगू बढ़ब।
      लत्ती संग अपन महत्व सुनि गाछक रोब समाप्त भ गेलै। ओहि दिन स दुनू मिलि प्रेम स रहै लगल।
 74   उपहास
      कोनो अधलो (प्रचलन) चलैन वा ढ़र्रा कऽ तोड़ब अपने-आप मे कठिन कार्य होइत। जखन कखनो केयो समाज वा परिवार मे गलत कार्य कऽ छोड़ि स्वस्थ वा तर्कयुक्त कार्य आरंभ करैत त सिर्फ परिवारे टा मे नहि समाजो मे सब उपहास करैत अछि। जहि स धैर्यवान त स्थिर रहैत मुदा साधारण मनुष्य अधीर भ जाइत। पहिने इंग्लैंड मे छतरी (छत्ता) ओढ़नाइ गमारपन बुझल जाइत छलैक। जहि दुआरे लोक बरखो मे भीजैत चलैत मुदा छाता नहि ओढ़ैत। एहि गलत प्रथाक विरोध करैत हेनरी जेम्स छाता ओढ़ब शुरु केलनि। सदिखन ओ छाता संगे मे राखथि। जहि स जिमहर होइत चलैत व्यंग्यक बौछार हुुअए लगनि। मुदा तेकर एक्को पाइ परवाह नहि करथि।
      देखा-देखी लोक हुनकर अनुकरण करै लगल। किछु दिनक बाद सभ छाता रखै लगल। जहि स चलनि बनि गेल। चलैन एत्ते बढ़ि गेलैक जे स्त्रीगणो आ राजमहलोक सभ छाता ओढ़ै लगल।
      बाद मे जैह सभ व्यंग्य करैत वैह सभ हेनरी जेम्स कऽ बधाई देमए लगलनि। बधाई देनिहार केँ हेनरी जेम्स कहथिन- जे केयो उपहास आ व्यंग्यक विरोध सऽ नहि डरत वैह छोट स पैध धरि परिवर्तन कऽ सकैत अछि।
      चाहे शिक्षा हो वा खेती वा आन-आन जिनगीक पहलू रुढ़िवादी पुरान प्रथा कऽ तोड़ै पड़त। जाबे ओ नहि टूटत ताबे नव समाजक निमार्ण कल्पना रहत। तेँ किछु प्रथा कऽ तोड़ि आ किछु केँ सुधारि चलै पड़त। एहि लेल सभमे साहस आनै पड़त।
75    महादान
      अज्ञानक निवारण करब सबसँ पैघ पुण्य परमार्थ थिक। जे स्वध्याय आ ज्ञानार्जन स होइत अछि। उत्तराखंड मे एकटा पुरान नगर मे सुबोध नामक राजा राज्य करैत छलाह। हुनक (सुबोधक) नियम छलनि जे राजक काज शुरु करै स पहिने आयल याचक सभ कऽ दान दैत छलाह। एहि नियम मे कहियो भूल नहि भेलनि।  एक दिन सब याचक कऽ दान दऽ देलखिन मुदा विचित्र स्थिति पैदा भऽ गेलनि। एकटा याचक ओहन आइल छल जे दानक लेल त हाथ पसारैत छल मुदा मुह स किछु नहि बजैत। सभ हैरान होइत जे हिनका की देल जाइन? एतथर्द बुद्धियार सभक सलाहकार बोर्ड बनौलनि। क्यो विचार दन्हि जे वस्त्र देल जाय त क्यो अन्न देवाक सलाह देथिन। क्यो सोना-चानीक विचार देथिन। मुदा समस्याक यथार्थ समाधान हेबे ने करैत। सुबोधक पत्नी उपवर्गो रहथिन।
      ओ (उपवर्गा) कहलकनि- राजन! जइ आदमीक मुह स बोल नइ निकलै ओकरा आन कोनो चीज देब उचित नहि। तेँ ऐहन लोक कऽ मुह मे बोल देब सबसँ उत्तम हैत। अर्थात् ज्ञानदान। ज्ञान स मनुष्य अपन सब इच्छा-आकांक्षा पूर्ति क सकैत अछि आ दोसरो कऽ मदति कऽ सकैत अछि।
      उपवर्गाक विचार सभकेँ जँचलनि। ओहि आदमीक लेल शिक्षा व्यवस्था कयल गेल। ओहि दिन सुबोध अपन दानक सार्थकता बुझलनि।
76    भाग्यवाद
      भाग्यवाद शकुन फलित ज्योतिष जेँका अनेको प्रकरण अछि जे जनसमुदाय कऽ जंजाल मे ओझरा शोषणक रास्ता शोषकक लेल खोलि दैत अछि। एकटा ज्योतिषी सुख-दुख जनम-मरणक बात कहि मनसम्फे धन जमा कऽ ताड़ी-दारु खूब पीबैत। एक दिन एकटा जमीनदारक ऐठाम पहुँच हुनक हाथ देखि कहलखिन जे एक बर्खक अभियनतरे अहाँक मृत्यु भ जायत। ज्योतिषीक बातक बिसवास कऽ जमीनदार दिन व दिन सोगाइ लगलाह। जमीनदार केँ तीनि गोट बेटा। तीनू पिताक आज्ञापालक। पिता केँ सोगाइत देखि मझिला बेटा पूछलकनि- बाबूजी! अपने दिनानुदिन किऐक रोगाइल जाइ छी?
चिन्तित मने जमीनदार उत्तर देलखिन- बौआ! हमर औरदा पूरि गेल। सालक भीतरे मरि जायब।
  - ई अहाँ कोना बुझलिऐक?
  - ज्योतिषी हाथ देखि कहलनि।
      मझिला बेटा ज्योतिषी कऽ बजा पूछलखिन। पैछले बात कऽ ज्योतिषी देहरा देलकनि। मझिला बेटा ज्योतिषी केँ पुनः पूछल- अहाँ अपने कत्ते दिन जीबि?
  हँसैत ज्योतिषी उत्तर देलखिन- तीस बर्ख। ज्योतिषीक बात सुनि ओ घर स फरुसा आनि सोझे ज्योतिषीक गरदनि पर लगा देलक। ज्योतिषीक मूड़ी धर स अलग भ गेल। तखन ओ पिता कऽ कहलक- हिनकर उमेर तीस बर्ख बचले छलनि तखन आइ किऐक मरलाह? ई सब ठक छी। ठकक बात मे पड़ि अहाँ अनेरे सोगाइल जाइ छी।
  जमीनदारक भ्रम टूटि गेल। धीरे-धीरे निरोग हुअए लगलाह।
 77   सद्वृत्ति
      स्कन्दपुराणक कथा थिक। एक बेरि कात्यायन देवर्षि नारद स पूछलकनि- भगवान! आत्म-कल्याणक लेल भिन्न-भिन्न शास्त्र मे भिन्न-भिन्न उपाय आ उपचार बताओल गेल अछि। गुरुजन सेहो अपन-अपन विचारानुसार कते तरहक साधन-विधानक महात्म्य बतौने छथि। जना-जप तप त्याग वैराग्य योग ज्ञान स्वध्याय तीर्थ व्रत ध्यान-धारण समाधि इत्यादि अनेको रास्ता कहने छथि। जे सब करब असंभवे नहि असाध्यो अछि। सामान्यजन त निर्णये ने कऽ सकैत अछि जे एहि मे ककरा चुनल जाय? कृपा कऽ अपने एकर समाधान करियौक जे सर्वसुलभ सेहो होय आ सुनिश्चित मार्ग सेहो होय।

      ध्यान स नारद कात्यायनक बात सुनि कहलखिन- हे मुनिश्रेष्ठ! सद्ज्ञान आ भक्तिक एक्के मार्ग   अछि। जे थिक मनुष्य कऽ सत्कर्म मे प्रवृत्त करब। स्वयं संयमी बनि अपन सामथ्र्य स गिरल आदमी कऽ उठबै आ उठल केँ उछालै मे नियोजित करै। सत्प्रवृत्तिये असल देवी थिक। जकरा जे जत्ते श्रद्धा स सिंचैत अछि ओ ओते विभूति कऽ अर्जित करैत अछि। आत्म-कल्याण आ विश्व-कल्याणक समन्वित साधनाक लेल परोपकार रत रहब श्रेष्ठ अछि। चाहे व्यक्ति कोनो जाति वा धर्मक किऐक ने होथि।

 78   आश्रम नहि स्वभाव बदली
      एकटा युवक उद्धत स्वभावक छल। बात-बात मे खिसिया कऽ आगि-अंगोड़ा भऽ जाइत छल। जँ क्यो बुझबै-सुझबै छलैक त ओ घर छोड़ि संयासी बनैक धमकी दैत छलैक। ओहि युवक स परिवारक सब परेशान रहैत। एक दिन पिता खिसिया कऽ संयासी बनै ले कहि देलक।
      घर स किछुऐ दूर हटि संयासीक आश्रम छलैक। जे ओकरा बुझल छलैक। घर स निकलि युवक सोझे संयासीक आश्रम पहुँच गेल। आश्रमक संचालक ओहि युवकक उदंडता स परिचित छल। युबक कऽ आश्रम मे पहुँचते संचालक रास्ता पर अनै दुआरे पुचकारि कऽ लग मे बैसाय पूछलक। ओ युवक संयासक दीक्षा लैक विचार व्यक्त केलक। दोसर दिन दीक्षा दैक (दइक) आश्वासन संचालक दऽ देलखिन।
      दीक्षाक विधान मे पहिल कर्म छल गोसाई उगै सऽ पहिने समीपक धार मे नहा कऽ ऐनाई। आलसी प्रवृत्ति आ जाड़ स डरैवला युवक कऽ ई आदेश खूब अखड़लै। मुदा करैत की? नियम पालन त करै पड़तैक।
      कपड़ा कऽ देवालक खूँटी पर टांगि युवक नहाइ ले गेल। जखन युवक नहाई ले गेल कि संचालक कपड़ा कऽ चिरी-चोंट फाड़ि देलक। नहा कऽ थरथराइत युवक आयल त देखलक। तामसे आरो थरथराइ लगल। मुदा करैत की?
      दीक्षाक मुहूत्र्त संचालक सौंझुका बनौलक। ताधरि मात्र किछु फल-फलहरी खायब छलैक। तेँ ओहि युवकक लेल नोन मिलाओल करैला परोसि क थारी मे देल गेलै। एक त करैला ओहिना तीत दोसर छुछे। कंठ स निच्चा युवक कऽ उतड़वे ने करै।
      भोर मे उठब जाड़ मे नहायब फाटल-चीटल कपड़ा पहिरब आ तइ पर स तीत करैला खायब। युबक खिन्न हुअए लगल। संचालक सब बुझैत। युबक कऽ बजा संचालक कहलक- संयासी बनब कोनो  खेल नहि छियैक। एहि दिशा मे बढ़निहार कऽ डेग-डेग पर मन कऽ मारै पड़ैत छैक। परिस्थिति स ताल-मेल बैसाय संयम बरति अनुशासनक पालन करै पड़ैत छैक। तखन संयासी बनैत अछि।
      भरि दिन युवक अपन प्रस्ताब पर सोचैत-विचारैत रहल। तेसर पहर अबैत-अबैत ओ पुनः घुरि कऽ घर आबि गेल। संयम साधना आ मनोनिग्रहक नामे त संयास थिक। जे घरो पर रहि लोक पालन क सकैत अछि।
      स्वभाव बदलने बाताबरणो बदलि जाइत छैक।

79    पुरुषार्थ
      संसारक कुशल-क्षेम बुझै ले एक दिन भगवान नारद केँ पृथ्वी पर पठौलखिन। पृथ्वी पर आवि नारद एकटा दीन-हीन बूढ़ आदमी लग पहुँचला। ओ वेचारे (वृद्ध-आदमी) अन्न-वस्त्रक लेल कलहन्त छल। नारद जी कऽ देखितहि चीन्हि गेलखिन। कानैत-कलपैत कहै लगलनि- अहाँ घुरि क जब भगवान लग जायब तखन कहबनि जे हमरा सन-सन लोकक लेल जीबैक जोगार करति।
      बूढ़क बात सुनि उदास मने नारद आगू बढ़ला। आगू बढ़ितहि एकटा धनीक आदमी स भेटि भेलनि। ओहो नारद कऽ चीन्हि गेलनि। ओ धनीक नारद केँ कहलकनि- भगवान हमरा कोन जंजाल मे फँसौने छथि जे दिन-राति परेशान-परेशान रहै छी। कम धन दितथि जे गुजरो चलैत आ चैनो स रहितहुँ। तेँ भगवान कऽ कहबनि जे जंजाल कम कऽ दथि।
      दुनूक बात सुनला पर नारद मने-मन सोचै लगला जे क्यो धने तबाह त क्यो  निर्धने तबाह। सोचैत-बिचारैत नारद आगू बढ़ला। थोड़े आगू बढ़ला पर बबाजीक झुण्ड भेटिलनि। नारद कऽ देखि बाबाजी घेरि कऽ कहै लगलनि- स्वर्ग मे तोँही सभ मौज करबह। हमरो सभ ले राजसी ठाठ जुटावह नहि त चुट्टा स मारि-मारि भुस्सा बना देवह।
      नारद घूमि कऽ भगवान लग पहुँचला। यात्राक वृतान्त भगवान नारद स पूछल। तीनू घटनाक वृतान्त नारद सुना देलखिन। हँसैत नारायण कहै लगलखिन- देवर्षि! हम ककरो कर्मक अनुसार किछु दइ ले विवश छी। जे कर्महीन अछि ओकरा कत्तऽ स किछु देबैक। अहाँ फेरि जाउ। ओहि वृद्ध गरीब कऽ कहबै जे भाइ अपन गरीबी मेटिबै ले संघर्ष करु। अपन पुरुषार्थ कऽ जगाउ। तखन सब कुछ भेटत। दोसर ओहि धनीक कऽ कहबै जे अहाँ कऽ धन दोसरा क उपकार करै ले देलहुऽ। से नहि कऽ संग्रही बनि गलहु तेँ अहाँ धनक जंजाल मे फँसि गेल छी। आ ओहि बावाजी सभ केँ कहवै जे परमार्थीक वेष बना कोढ़ि आ स्वार्थी बनि गेल छी तेँ अहाँ सभके नरक हैत।
80    नैष्ठिक सुधन्वा
      महाभारत मे सुधन्वा आ अर्जुनक बीच लड़ाइक कथा आयल अछि। दुनू महाबलि युद्ध विद्या मे निपुन। दुनूक बीच लड़ाई छिड़ल। धीरे-धीरे लड़ाई जोर पकड़ैत गेलै। लड़ाई ऐहन भयंकर रुप लऽ लेलक जे निर्णयक दौरि आबिये ने रहल छलैक।
      अंतिम बाजी एहि विचार पर अड़ल जे फैसला तीनि वाण मे हुअए। या त एतबे मे क्यो हारि जाय वा लड़ाई बन्न क दुनू हारि कबूल क लिअए। जीवन-मरणक प्रश्न दुनूक सामने। कृष्ण सेहो रहथिन। कृष्ण अर्जुन कऽ मदति करैत रहथिन। हाथ मे जल लऽ कृष्ण संकल्प केलनि जे गोवरधन उठौला आ ब्रजक रक्षा करैक पुण्य हम अर्जुनक वाणक संग जोडै़त छी।
      सुधन्वा संकल्प केलक- पत्नी धर्म पालनक पुण्य अपन अस्त्रक संग जोड़ैत छी
दुनू अस्त्र आकाश मार्ग स चलल। आकाशे मे दुनू टकरायल। अर्जुनक अस्त्र कटि गेल। सुधन्वाक अस्त्र आगू बढ़ल मुदा निशान चूकि गेलैक।
      दोसर अस्त्र पुनः उठल। कृष्ण अपन पुण्य अस्त्रक संग जोड़ैत कहलखिन- गोहि (ग्राह) स हाथीक जान बचाएव आ द्रौपदीक लाज बँचबैक पुण्य जोड़ैत छी।
      अपन अस्त्रक संग जोड़ैत सुधन्वा बाजल- नीतिपूर्वक उपारजन आ दोषरहित चरित्रक पुण्य जोड़ै छी।
      दुनू अस्त्र आकाशे मे टकरायल। सुधन्वा क वाण अर्जुनक वाण कऽ काटि      धरासायी क देलक। तेसर अस्त्र बाकी रहल। एहि पर निर्णय आबि गेल। अर्जुनक बाणक संग जोड़ैत कृष्ण कहलखिन- बेरि-बेरि एहि धरती पर अवतार लऽ धरतीक भार उताड़ैक पुण्य जोड़ै छी। अपन वाणक संग जोड़ैत सुधन्वा कहलक- अगर स्वार्थक लेल धन कऽ एक्को क्षण सोचने होय आ सदति परमार्थ मे लगाओल पुण्य जोड़ैत छी।
      दुनू वाण आकाश मार्ग स चलल। अर्जुनक वाण कटि क निच्चा गिरल। दुनू पक्ष मे के अधिक समर्थ इ जानकारी देवलोक मे पहुँचल। देवलोक स फूलक वर्षा सुधन्वा पर हुअए लगल। लड़ाई समाप्त भेल। भगवान कृष्ण सुधन्वाक पीठि ठोकि कहलखिन- नरश्रेष्ठ! अहाँ साबित कऽ देलौ जे नैष्ठिक गृहस्थ साधक कोनो तपस्वी सऽ कम नहि होइत छैक।

 बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी  धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आसर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आघोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आयुवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आनेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आऔषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आमित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽबिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
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विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
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1.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेबबला, हेमबला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
2. आ
/आऽ
3. क
लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल/लऽ/लय/लए
4. भ
गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर
गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय
,दिय,लिअ,दिय/
7. कर
बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/कबला / करए बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह
, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ
/ओऽ(सर्वनाम)
20. ओ (संयोजक) ओ
/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे
/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा
रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल
/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत
/ओत/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे
/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/ इआद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस

34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की
/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश/दालान दिस
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए
/कऽ/लए कए
47. ल
/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा
/करबाय/करबाए
60. त
/त ऽ तय/तए 61. भाय भै/भाए
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै / माए
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द
/द ऽ/दए
67. (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका
कए तकाय तकाए
69. पैरे (
on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे


71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय/बननाइ
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि
  गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे

81. से/ के से
/के
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो/करिऔ-करैऔ
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा

94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह / इएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(
in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (
play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (
different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (
understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग
 
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (
to test)चिखइत
126. करइयो(
willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा
/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग

141. खेलाइ (
for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो / केओ
145. केश (
hair)
146. केस (
court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल

155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना
/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो
रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के

169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि

181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ /करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा
(आगि लगा)
193. से से

194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(
spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटिआएब
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा

201. देखाय देखा

202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
204.गेलैन्ह/ गेलन्हि
205.हेबाक/ होएबाक
206.केलो/ कएलो
207. किछु न किछु/ किछु ने किछु
208.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ
209. एलाक/ अएलाक
210. अः/ अह
211.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन)
212.कनीक/ कनेक
213.सबहक/ सभक
214.मिलाऽ/ मिला
215.कऽ/
216.जाऽ/जा
217.आऽ/
218.भऽ/भ
( फॉन्टक कमीक द्योतक)219.निअम/ नियम
220.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
221.पहिल अक्षर ढ/ बादक/बीचक ढ़
222.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
223.कहिं/कहीं
224.तँइ/ तइँ
225.नँइ/नइँ/ नञि/नहि
226.है/ हइ
227.छञि/ छै/ छैक/छइ
228.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
229.आ (
come)/ आऽ(conjunction)
230. आ (
conjunction)/ आऽ(come)
231.कुनो/ कोनो
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ- कएलहुँ
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)- (conjunction-and)/
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/होन्हि
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौँ/ ज्योँ
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कुनो/ कोनो
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलन्हि/ गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि
२५८.लय/ लए(अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक
२६०.पठेलन्हि/ पठओलन्हि
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नहि/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह(बिकारी)क प्रयोग उचित

२६५.केर/-/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जै
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जै/ जए
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सेरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलहुँ/ कहै छलहुँ- एहिना चलैत/ पढ़ैत (पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित)-आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझ छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/बिन। रातिक/ रातुक
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट
२९१. खन/ खुना (भोर खन/ भोर खुना)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नहि अछि।वक्तव्य/ वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८.बाली/ (बदलएबाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
300. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६.आ (come)/ आ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, बीचमे नहि।
३०९.कहैत/ कहै
३१०. रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय

उच्चारण निर्देश:
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नहि सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य मे जीह तालुसँ , मे मूर्धासँ आ दन्त मे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे केँ वैदिक संस्कृत जेकाँ सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जेकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जेकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोगगड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि) से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ  ऐछ
छथि- छ इ थ  – छैथ
पहुँचि- प हुँ इ च
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ एहि सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा एहिमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री  रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- एहि लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव  http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ/ के/ कऽ हटा कऽ। एहिमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ जेना छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नहि। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए- रहै मुदा सकैए- सकै-ए
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना
से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा।
पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए
छलै, छलए मे सेहो एहि तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- संजोगने
केँ- के / कऽ
केर- क (केर क प्रयोग नहि करू )
क (जेना रामक) रामक आ संगे राम के/  राम कऽ
सँ- सऽ
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नहि। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- राम सऽ  रामकेँ- राम कऽ राम के

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ तऽ त केर एहि सभक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना के कहलक
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ एहि सभक उच्चारण- नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नहि) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नहि- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नहि)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नहि)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नहि)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन)
पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नहि)
ओइ/ ओहि
ओहिले/ ओहि लेल
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक (देखिऔक बहि- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ/ जेकाँ
तँइ/ तैँ
होएत/ हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ
सौँसे
बड़/ बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नहि)
मे केँ सँ पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेशी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ।
एकटा दूटा (मुदा कैक टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नहि।आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नहि (जेना दिअ, आ )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचाएक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एत्स्हो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नहि दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ त नहि)
सँ ( सऽ स नहि)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)

३.नेपाल भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक  उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ,,, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक
धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि
, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर
,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन
,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा
,ठिना,ठमा
जेकर
, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ
, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल
, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। करगेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक
न्हध्वनिक स्थानमे लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4.
तथा ततय लिखल जाय जतस्पष्टतः अइतथा अउसदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह
,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे
के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व
वा प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ वा लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे
ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव
लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ
, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। मेमे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। क वैकल्पिक रूप केरराखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद
कयवा कएअव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग
, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध
ओ अर्द्ध क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ’ , ‘’, तथा क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय
, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क
लिखल जाय, हटा कनहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क
लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा कनहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा
' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६

VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)


 VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS



DATE-LIST (year- 2009-10)

(१४१७ साल)

Marriage Days:

Nov.2009- 19, 22, 23, 27

May 2010- 28, 30

June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30

July 2010- 1, 8, 9, 14

Upanayana Days: June 2010- 21,22

Dviragaman Din:

November 2009- 18, 19, 23, 27, 29

December 2009- 2, 4, 6

Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25

March 2010- 1, 4, 5

Mundan Din:

November 2009- 18, 19, 23

December 2009- 3

Jan 2010- 18, 22

Feb 2010- 3, 15, 25, 26

March 2010- 3, 5

June 2010- 2, 21

July 2010- 1

FESTIVALS OF MITHILA

Mauna Panchami-12 July

Madhushravani-24 July

Nag Panchami-26 Jul

Raksha Bandhan-5 Aug

Krishnastami-13-14 Aug

Kushi Amavasya- 20 August

Hartalika Teej- 23 Aug

ChauthChandra-23 Aug

Karma Dharma Ekadashi-31 August

Indra Pooja Aarambh- 1 September

Anant Caturdashi- 3 Sep

Pitri Paksha begins- 5 Sep

Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep

Matri Navami- 13 Sep

Vishwakarma Pooja-17Sep

Kalashsthapan-19 Sep

Belnauti- 24 September

Mahastami- 26 Sep

Maha Navami - 27 September

Vijaya Dashami- 28 September

Kojagara- 3 Oct

Dhanteras- 15 Oct

Chaturdashi-27 Oct

Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct

Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct

Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct

Chhathi- -24 Oct

Akshyay Navami- 27 Oct

Devotthan Ekadashi- 29 Oct

Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov

Somvari Amavasya Vrata-16 Nov

Vivaha Panchami- 21 Nov

Ravi vrat arambh-22  Nov

Navanna Parvana-25 Nov

Naraknivaran chaturdashi-13 Jan

Makara/ Teela Sankranti-14 Jan

Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan

Mahashivaratri-12 Feb

Fagua-28 Feb

Holi-1 Mar

Ram Navami-24 March

Mesha Sankranti-Satuani-14 April

Jurishital-15 April

Ravi Brat Ant-25 April

Akshaya Tritiya-16 May

Janaki Navami- 22 May

Vat Savitri-barasait-12 June

Ganga Dashhara-21 June

Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul

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5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
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7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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