भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Saturday, March 13, 2010
'विदेह' ५३ म अंक ०१ मार्च २०१० (वर्ष ३ मास २७ अंक ५३)- PART IV
३.१. कालीकांत झा "बुच" 1934-2009- आगाँ
३.२. गंगेश गुंजन:अपन-अपन राधा १९म खेप
३.३. किछु रंग फगुआकः धीरेन्द्र प्रेमर्षि
३.४. शिव कुमार झा-किछु पद्य
३.५.कोशी- -प्रो. कपिलेश्वर साहु
३.६.साहेब- -महाकान्त ठाकुर
३.७.स्वागत गीत- -राधा कान्त मंडल ‘रमण’
३.८. राजदेव मंडल-दूटा कविता १.युग्मक फाग-पत्र २.आगमन
स्व.कालीकान्त झा "बुच"
कालीकांत झा "बुच" 1934-2009
हिनक जन्म, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक कर्मभूमि समस्तीपुर जिलाक करियन ग्राममे 1934 ई0 मे भेलनि । पिता स्व0 पंडित राजकिशोर झा गामक मध्य विद्यालयक
प्रथम प्रधानाध्यापक छलाह। माता स्व0 कला देवी गृहिणी छलीह। अंतरस्नातक समस्तीपुर कॉलेज, समस्तीपुरसँ कयलाक पश्चात बिहार सरकारक प्रखंड कर्मचारीक रूपमे सेवा प्रारंभ कयलनि। बालहिं कालसँ कविता लेखनमे विशेष रूचि छल । मैथिली पत्रिका- मिथिला मिहिर, माटि- पानि, भाखा तथा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित पत्रिकामे समय - समयपर हिनक रचना प्रकाशित होइत रहलनि। जीवनक विविध विधाकेँ अपन कविता एवं गीत प्रस्तुत कयलनि। साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित मैथिली कथाक इतिहास (संपादक डाॅ0 बासुकीनाथ झा )मे हास्य कथाकारक सूची मे, डाॅ0 विद्यापति झा हिनक रचना ‘‘धर्म शास्त्राचार्य"क उल्लेख कयलनि । मैथिली एकादमी पटना एवं मिथिला मिहिर द्वारा समय-समयपर हिनका प्रशंसा पत्र भेजल जाइत छल । श्रृंगार रस एवं हास्य रसक संग-संग विचारमूलक कविताक रचना सेहो कयलनि । डाॅ0 दुर्गानाथ झा श्रीश संकलित मैथिली साहित्यक इतिहासमे कविक रूपमे हिनक उल्लेख कएल गेल अछि |
!! राधिकाक विलाप !!
चलि गेला सखि श्याम जमुना पार गय,
हमर जीवन नाव तजि मजधार गय ।
पीठ पर फहरा रहल छल पीत पट,
कॉख तर बॅसुरी अधर पर एक लट,
कर कम लमे काठ केर पतवार गय ।.........
भऽ गेला वैराग्य लऽ घर सॅ विदा,
ज्ञान मे वनि नाथ गुरू जगतक मुदा,
प्रेम मे की ई उचित व्यवहार गय ।......................
सत्य अछि घनश्याम चोर हियतोड़ छथि,
रूप कपटी निरदयी बेजोर छथि,
झूठ योगेश्वर कहनि संसार गय ।.............
आन खातिर कान्ह पूर्णानंद छथि,
मिलन सुमनक शुद्ध मधु मकरंद छथि,
व्रजक बनला विरह हाहाकार गय ।.............................
हुनक सांख्यक गीत सॅ गीता बनल,
भक्ति केर उपदेश सॅ गुंजित गजल,
राधिकाक विलाप सभ वेकार गय ।........................................
!! हमर गाम !!
हमर गाम अछि बड़ महान औ, शकरकंद लागल गारा ।
परतर के कऽ सकतै आन औ, शकरकंद लागल गारा ।।
हलधर जूआन विशुनदेव पहलमान जतऽ,
बुलबुल, बुच, बैजू बनऽल विद्वान जतऽ,
ब्रह्मदेव सऽन विद्वान औ शकरकंद लागल गारा ।
परतर ......................................................................... ।।
दऽस लोक बीच बनै धर्मावतारे,
देखू से कऽ रहलै भवसागर पारे
सुनहट मे लऽ रहलै प्राण औ शकरकंद लागल गारा ।
परतर ......................................................................... ।।
मूरूख भऽ वी0 ए0 केर काने कटै छै,
भोरे सॅ सॉझो धरि ज्ञाने छॅटै छै,
निशवद मे चरबै - छै धान औ शकरकंद लागल गारा ।
परतर ......................................................................... ।।
सगरो दिन रहलै फलहारे मे बैसल,
सॉझे देखै छी ओ गहवर मे पैसल,
कक्कर कऽ रहलै धेयान औ शकरकंद लागल गारा ।
परतर ......................................................................... ।।
जक्कर मधूर चाखि मस्त गामवासी,
खाकऽ धधूर सैह बनलै उदासी,
कचरी केर केलकै दोकान औ शकरकंद लागल गारा ।
परतर ......................................................................... ।।
भेल चौपाड़ि पऽर पूरा कठघारा,
नौला सॅ भऽ रहलै वीस अवधारा,
राखू सिड॰राही केर मान औ शकरकंद लागल गारा ।
परतर ......................................................................... ।।
गंगेश गुंजन:
जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी।श्री गंगेश गुंजन मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक छथि आऽ हिनका उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल छन्हि। एकर अतिरिक्त्त मैथिलीमे हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोर (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आऽ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)पुस्तक लेल सहित्य अकादेमी पुरस्कारसँ सम्मानित ।
अपन-अपन राधा १९म खेप
ने करथि बैसि क' एक क्षण दुटप्पी
ने भैये जाथि हमरा अंतर मे चुप, शांत|
मन तं बरु हो हमर, हमर अप्पन, अपने मे भेटैत
खास अपना अधीन |
कहाँ होइत अछी से ? कहाँ?
कोनो उपायों कहाँ होइछ...
उत्ताप दग्ध ह्रदय मे ई शीतल , निश्चिन्त,
रौद-बसात सबटा जेना भेल अछि, जेना किछु नहिं |
सब किछु भ' गेलय किछु ने |
ई तं नबे पराभव थिक, नबे रूपक माया !
बेश नाचि रहलौन्हें आत्मलिप्त अपनहिं अरजल एहि
स्वपीरण के बान क' जेना अनुष्ठान
बेश भक्ति-स्वाहैत समर्पण सं क' रहल छी कए दिन सं होम!
अपनहिं नहिं ,हुनको विरुद्ध ई कर्मकांड, जिनका
भरि गोकुल कहैत छनि कन्हाई |
...ई करिया छौंरा नहिं जीब देत, नईं मर' देत|
नै रह' देत, नईं कह' देत किछुओ टा...
अपने रहत एहिना अलोपित |
कतोक-कतोक दिन, आ बनल बौक राखत हमरो बना क' एहिना
एही दशा|
...राधा दाई बड़ कठोर भ' जीह कूच' लगलीह-मनकथा मे एना
श्री कृष्ण कें करैत गंजन, लगबैत अभियोग पर अभियोग कयना गेलनि घोर पाप से
बोध क' देलकैन अस्तव्यस्त, अस्थिर-अशांत प्राण !
छ्टपट छटपट करय लगलीह, कए टा कृत्रिम व्यवहार-बात , जेना -
धोअ' जल सं आंखि-मुंह-कपार-कान-गर्दैन गरदनि-हाथ-पैर आ नुआक आंचर सं पोछैत बेर-बेर
फेर-फेर पोछैत अपन पोछलो देह-अंग
जेना अपनहिं कें करबा लेल निस्संग क' गेलीह कतोक काल
कैक टा एहने विषय , बनौटी काज | ई सब केहन राधाक कर्म आ
कृष्णक की मर्म ? मुदा लिखत लिखितय राधा-
एक टा नबे कर्मगीता सभक सौंसे समाज सब लोकक बुद्धि श्रमक करबा लेल
नब तरहक प्रयोग-उपयोग, तकर लगाबितय अनुमान-विज्ञान |
सभक श्रमें ठाढ़ करितेय सबहक एकहि समाज, तेहन लोक-बुद्धि
नब सर्जित सृष्टि नूतन स्वाद सुखी लोक-श्रमिक-संसार !
बनाबितौं हमहीं
हमहीं बनायब से स्वाधीन सुरक्षित सबहक समाज |
कहिया मुदा ?
कोना ?
मुदा कि कोनो निर्माण थिक चूल्हि फूकबक सन सरल काज,
राधा, बाज। छैक तेहन सोझ काज, नीपिया-बढ़िया आ एत' धरि जे
मालजालक सेवा सन सहज-सरल ?
से कथमपि नहिं, कथमपि, बनब' सं पहिने अपना कें किछु बनाब' पडैत छैक-
बना सकबा योग्य !
से योग्य लोक होइत अछि एकटा बुद्धि, प्रेरणा,चेतना ।
अभ्यास-प्रयासक बलें बिनु थाकल अनवरत चलबाक-
चलैत जयबाक संकल्प सँ मात्र कल्पना करैत छैक-
मनुक्ख कें तैयार क' जयबा लेल, अपना अपन निजी परिवार छोड़ि
सौंसे समाजक करबा वास्ते काज-उपकार ।
से कल्पना रूप धरैत अछि-कर्मक, मोन आ मेहनतिक निरन्तर
कारबार मे,सुतैत-सुतैत-उठैत,चलैत-बैसैत
मनक स्वप्न करबा मे यथाशीघ्र साकार
जाय नहि दैतछि एकहु टा क्षण अनेरे-बेकार से
क्रम क्रम सं धर' लगैत छैक रूपाकार ।
स्वप्नक साँचक आ गढ़बाक उपक्रम मे होअ' लगैत छैक
ठाढ़ अनमन सभ भोर देखबा योग कोनो छोटछिन गाछ भने हो भाँटाक,
एक रती आओर ऊँच मूड़ी ! पात सब ओकर आओर देखार
देखबा-बुझबा योग्य से विकास, उन्नतिक लक्षण ,
समय कें सक्रिय-स्वतः चलैत-चलवैत रखबाक अथक स्वभावक दर्शन
प्रेरित करबाक दायित्व-निर्वाह, बुझाइत छैक--राति बीतल तं एकहि ठाम
अर्थात ओत' नहिं जतए सँ साँझ भेल रहय, ओ बीति क' बढ़ि गेलय आगाँ-
भाँटा गाछक एक नह बढ़बा मे,
भरि टोलक इनारक भोरका जल मे, आ कए पक्षीक बयस्क कलरव मे मिज्झर
भेल किछु आओर चुनचुन करैत सद्यः जनमल चुनमुन्नीक बोल मे
अनमन जेना मन्द्र आ तार सप्तकक लागि गेल हो कोनो-
पँचम, बा मध्यम स्वर एक्के संग आ ध्वनित भ' गेल हो सबटा
एकदम्मे सँ नब रूप-स्वाद मे अवर्णनीय !
काल एहिना एही सब गतिविधि-प्रकार मे
आगाँ बढ़ैत अछि। सभक बयस मे एक दिन आरो जुटि जएबाक रूप मे,
गत दिनक बाँचि गेल खेत कें जोति पूरा क' देबा मे काल बढ़ल अछि आगाँ।
ओ नहिं ठहरल भरियो राति। लोक-पशु-पक्षी-मालजाल आ गाछ बृक्ष जकाँ भरि राति
सुतबा-सुस्तएबा आ विश्राम करबा मे किंबा जगले स्वप्न बिद्ध!
पडऽल एक ठाम कोनो सीमित स्मृति-सुख कामनाक
स्वकेन्द्रित मोहक ठहरल संसार मे नहिं। समय तकरा अनठा क' बढ़ल गेलय आगाँ।
पाछाँ घुरबाक ओकरा अधिकार नहि भेटलैक। नीके भेलैक। सोचि-बुझिये क' कएलखिन ई सृष्टि
एहन विधान, काल नहि घूमि सकय पाछाँ, नहिं तं ओहो बनि जायत मनुक्खे जकाँ-अहदी,स्वार्थी
आ तें आत्मसुख लीन जीव ! गबैत अतीतक कुरूप सँ कुरूप कटु सँ कटु गीत,
मनेमन देखैत रहत मन माफिक बिन देखलो व्यतीत, तकर मृत अधमृत चित्र भेल आत्म विभोर।
करैत रहत प्रात सं दुपहरिया, साँझ सं भोर..
मरल अतीत मे जीयब केहन व्यर्थक थिक इच्छा मनक ?
काल टा बाँचल अछि एहन संक्रामक रोग सँ, रच्छ अछि।
तें तं अछि साबुत निर्भीक निर्मम सेहो,तें ओ सतत तैयार !
अपन प्रगति आ कर्म लेल ओकरा ने चाही कोनो टा औजार,
मनुष्य जकाँ,जकरा दातमनि पर्यन्त हेतु चाही एक टा छूरी,
नह काट' वास्ते नहरनी...मनुक्ख कें दाँत खोधबाक लेल पर्यन्त चाही-नोकगर खड़िका।
किछु ने किछु कोनो ने कोनो औजार
मनुक्ख भेल गेल किंचित तें कालक्रमे हिंसक !
ई कोनो आत्मग्लानि करबा योग्य विषय नहि रहैक जतेक राधा कें बुझाय लगलनि।
अपनएहि मनोदशा मे जीवैत एहन नोतल असकर एकान्त मे अपन आ भाव संग आइ
कए दिन बीति गेल छलनि। कए दिन गाम,लोक,समाज सँ अदृश्य अपन उपार्जित
एकान्त मे यद्यपि बुझाइत छनि सब किछु छनि उपस्थित, श्रीकृष्ण जत' सद्यः उपस्थित
होथि ओतहि तं छनि हुनक ब्रह्मांड उपस्थित ! मुदा ई बोध राधा कें एक रूपें तेना समृद्ध
कएने रहलनि आइ धरि जेना कठिनता सँ अर्जल पर्याप्त धन पर कोनो अकर्मक भ' गेल
धनिक! एक समय निश्चिन्त सूति गेल हो। के पड़ओ आब किछु करबाक चक्र मे ? पर्याप्त
तं अछि । सब टा मौज करी,जीवी,खाइ-पीबी । ई कोनो आत्मग्लानि करबा योग्य विषय नहि रहैक जतेक राधा कें बुझाय लगलनि।
अपनएहि मनोदशा मे जीवैत एहन नोतल असकर एकान्त मे अपन आ भाव संग आइ
कए दिन बीति गेल छलनि। कए दिन गाम,लोक,समाज सँ अदृश्य अपन उपार्जित
एकान्त मे यद्यपि बुझाइत छनि सब किछु छनि उपस्थित, श्रीकृष्ण जत' सद्यः उपस्थित
होथि ओतहि तं छनि हुनक ब्रह्मांड उपस्थित ! मुदा ई बोध राधा कें एक रूपें तेना समृद्ध
कएने रहलनि आइ धरि जेना कठिनता सँ अर्जल पर्याप्त धन पर कोनो अकर्मक भ' गेल
धनिक! एक समय निश्चिन्त सूति गेल हो। के पड़ओ आब किछु करबाक चक्र मे ? पर्याप्त
तं अछि । सब टा मौज करी,जीवी,खाइ-पीबी ।...परन्तु जबकल बन्द धनक गति तं कर्पूर
जकाँ होइछ, बिलाइत-बिलाइत निठ्ठाहे बिला जाइत छैक । यावत् याबत् ओ निश्चिन्त धनिक
जगैए, बूझैए ताबत भ' रहल रहैत छैक ओकरा पर कालदण्डक गंहीर प्रहार। ताबत् भ' चुकैछ ओ
अथबल-बेकार..हाथ मलैत-कछमछ उठैत-बैसैत...
तथापि जेहन अमूल्य धन श्रीकृष्ण कें मानि राधा छथि स्वयं मे श्री सम्पन्न धन्य परन्तु से
तकर स्वरूप की एही रूपे एहिना बहुत काल धरि राखल जा सकैत छैक- अनघट अक्ष्क्षुण्ण ?
की एकरो नहि होअ' लगतैक दिनानुदिन क्षय ? घटतैक नहि एकरो प्रभाव आ गुण ? यदि
ई एहिना एकरूप एकहि स्थिति मे, एकटा स्नेही प्रेमी, से भने राधे किएक नहि हो तकरा
प्रेमक प्रताप सँ मात्र रहतैक सुरक्षित? एहि प्रेम मे विकास हेतैक अपन एहने असकर समर्पित
परन्तु निजी एकान्थ मे ? ई बज्र एकान्तक उस्सर समय-भूमि मे प्रेमक लत्तीकतबा ऊँच कतबा
ऐल फैल चतरि सकतैक ...
भने कतबो पटाबथि राधा, जल नहि-अपना नोरे सँ तकरा।
ओहनो वनस्पति प्रेमहुक वनस्पति कें नोर नहि, नीर स्वच्छ शीतल नीरे
संवर्धित करैत छैक । बढ़बैत छैक ओकर शक्ति आ सौंदर्य आ बनबैत छैक
अपना अस्तित्व सफल होयबा योग्य तैयार।
ओकरा चाही नित्यक स्नेह संचारित गति विधि, व्यवहार ।
राधा किएक नहि सोचैत छी,
किएक नहि सोचलिऐक ई बात ?
जाहि प्रेम आ तकर अभिमान मे पड़ल रहि गेलहुं अनेरे एतेक दिन
असकर निष्क्रिय, जाहि स्नेहक स्वाभिमान मे अड़ल रहि गेलहुं
एते-एते समयक व्यर्थ दिन-राति,
तकरा कि एहि बाटे कहियो पाओल जा सकैत अछि?
बढ़ाओल जा सकैत अछि आगाँ? संभव छैक
एहि रस्ते पहुँचब ओहि ठाम जतए रूसल बैसल छथि अपनेक
बृन्दावन बिहारी लाल, किछु करबा मे लागल छथि।
देखाइ नहि पड़ैए। देखाइ पड़ैए मात्र अहाँक अपन आत्म पीड़न,
स्वयं के सीदित करबाक मोनक एक टा सुभितगर रोग
सुभितगर पर उनटि उठली मने मन राधा ।आखिर रोगे थिक ई'
बुझओलनि मन कें-' उठू, अपने आप कें करू तैयार।
पड़ल नहि रहू केहुनी पर भार देने, तरहत्थी पर राखि क' ठोढ़ी अपन,
एते-एते दिन-राति, राधा दाय ! की कहने रहथि ओहि सन्ध्या श्रीकृष्ण ?
आ केहन साफ-साफ, जेना कहने नहि, गाबि क' सुनौने रहथि अपन
विचार,आत्माक अपन उल्लास ! सत्ते, कहने नहि रहथि ताहि क्षण॒
गओने रहथि अहाँक लग अपन मनोराग ।
-केहन आनन्द छैक राधा, करबा मे कोनो उपकारक काज ? स्वयं
कोनो कारणें अशक्य-असहाय जे भ' गेल हो,
क्यो नहि हो जकरा देखनिहार, क' देबा मे ओकर बहुत जरूरी काज ?
केहन लगैत छैक मोन कें खुशी? से करबा मे त्रुटि भ' गेने
मन भ' जाइत छैक कतेक खिन्न,
बुझाय लगैत छैक केहन अकर्मक, उदास ?
किछु रंग फगुआकः धीरेन्द्र प्रेमर्षि
कोन रूप फगुआ खेलाएब ?
दिनभरिक पसेनासँ
राति हमर पेट भरए
जिनगीक चितापर
सेहन्ताक लाश जरए
होड़ी कोना हम गाएब!
कोन रूप फगुआ खेलाएब!
परुकेँक देल वचन
खूब खाएब पूआ
बौआलए अङ्गा, आ
घरनीलए नूआ
जेठक इनारसँ
घीचैए पानि श्रम
गगरी कखन भरि पाएब!
कोन रूप फगुआ खेलाएब!
आश लेने हिरदय
नइ कहियो जुड़ाएल
साँसक चिड़इ एतबा
मुफतहि उड़ाएल
चूरि–चूरि पाथर
थुराएल अछि हाथो
आब कोना डम्फा बजाएब!
कोन रूप फगुआ खेलाएब!
मधुसनक बोलहुटा
हमरालए गीत हएत
सन्तोषक मुस्की
अभावोक मीत हएत
नेह भरल जिनगी थिक
सतरङ्गी इन्द्रधनुष
कोन काज रङ्गे उड़ाएब!
एहिना हम फगुआ खेलाएब।
वि.सं. २०४९/११/२५
फगुआ गीत
नायकः एमकी होरीमे गोरी मचेबै हुड़दंग
केओ कहै मतवाला कि कहै रे मतंग
नायिकाः एमकी होरीमे जोड़ी चढ़ेलौँ कि भंग
किए हमरा सताबैत, करै छी एना तंग
नायकः होरीक ई बलजोरी गोरी प्रेमक बस इजहार छै
आलिंगनमे अहाँ छी तैसँ फगुओमे ई बहार छै
नायिकाः बड़ लागए सोहनगर ई प्रेमक तरंग
मुदा कटि ने जाए ककरो नजरिसँ पतंग
नायिकाः मदमातल ई पवन बहैए, चिनगी जुनि सुनगाउ यौ
झुलसए नइ ई प्रेमचिड़ैया, लऽग ने आरो आउ यौ
नायकः अहाँ हमरा बूझै छी किएक अवढंग
हम तँ प्रेमक बजाबै छी मन–मिरदंग
नायकः रंगक नइ उत्सव ई खालि जिनगीक सेहो वसन्त छै
रंगि ली मनकेँ प्रेमक रंग तँ केहनो पतझड़ अन्त छै
नायिकाः एना हियामे पिया नइ जगबू उमंग
नइ तँ सैँतल ई मनमे छिलकि जाएत रंग
असली रङ्ग उड़ेलियै ना
पुरुषः बिहुँसैत फगुआ फेरो आएल
मनमे नव उमङ्ग समाएल
डम्फा बजैबे, होरियो रे गेबै,
छाती जुड़ेबै ना
हम तँ रङ्ग उड़ेबै ना
स्त्रीः बिहुँसैत फगुआ फेरो आएल
मनमे नव उमङ्ग समाएल
नचबै नचेबै, गेबै गबेबै,
छाती जुड़ेबै ना
हम तँ रङ्ग उड़ेबै ना
पुरुषः नव–पल्लव लऽ गाछ पनुघलै
नैनकेँ चहुँदिस फूले सुझलै
स्त्रीः दैव रे की भऽ गेल ई हमरा
सबतरि देखी भमरेभमरा
पुरुषः गोरीक छमछम बाजैत पायल
कऽ गेल सोझे हमरा घायल
मरबै कि जीबै, प्रेमरस पीबै,
छाती जुड़बै ना
हम तँ रङ्ग उड़ेबै ना
स्त्रीः मन–मन्दिर ई छल अजबारल
तोरहि मुरुतसँ गेल अजबारल
स्त्रीः सैंतल सेजौट गेल धङिआएल
तोहर बातसँ मन भङिआएल
पुरुषः एमकीक होरी, धारि गेल गोरी
छाती जुड़ेलियै ना
असली रङ्ग उड़ेलियै ना
वि.सं. २०५०/१०/३०
शिव कुमार झा-किछु पद्य ३..शिव कुमार झा ‘‘टिल्लू‘‘,नाम ः शिव कुमार झा,पिताक नाम ः स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘,माताक नाम ः स्व0 चन्द्रकला देवी,जन्म तिथि ः 11-12-1973,शिक्षा ः स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम $ पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर,पिन: 848101,संप्रति ः प्रबंधक, संग्रहण,जे0 एम0 ए0 स्टोर्स लि0,मेन रोड, बिस्टुपुर
जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि ः वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार - प्रसार हेतु डाॅ0 नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चैधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्व मे संलग्न
!! हुरहुर (बाल साहित्य) !!
दलानक पंाजरि गमकि रहल छल,
फलित तरू पुष्पित फुलवारी ।
कात सटल कट्ठा भरि लागल,
खसखस साग हरित तरकारी ।।
बाबा कमावथि सीता गुनि - गुनि,
हमर हाथ मे जऽलक गगरी ।
हुनक नैन सॅ ओझल भऽ कऽ,
खूब चिबाबी गाजर ककरी ।।
लदल गाछ छल नेबो बरहर,
अनार शरीफा मधुर लताम ।
बिनु आज्ञा केयो पात जौ छूबय,
बाबा छीलथि ओक्कर चाम ।।
दीर्घ पिपासित किछु गाछ कॅपै छल,
ढ़ारि देलहुॅ भरि गगरी नीर ।
झन्न पीठ पर लागल चटकन,
उमड़ल व्यथा गेल देह सिहरि ।।
खसि पड़लहुॅ कात परती मे,
तमकैत बाबा लगलनि दुत्कारय ।
अछि उदण्ड दीर्घटेंटी नेना,
हम्मर कोनो बात ने मानय ।।
पुष्पहीन अफलित गाछ पर,
देलक सभटा जऽल उड़ेल ।
नीक अधलाह गप्प बूझय नहि,
तेसर कक्षा मे चलि गेल ।।
भनसार आबि माय सॅ पूछल,
थ्वलोचन डबडब नासिका सुरसुर ।
आड़ि मुरझायल थिक कोन झाड़ी,
बाउ ओहि अनाथक नाम हुरहुर ।।
माल जाल सॅ फुलवारी बचवऽ लेल,
आड़ि पर मालिक ओकरा रोपय ।
सामन्ती जिरातक उपेक्षित सेवक,
खाद - पानि लेल ककरो नहि टोकय ।।
लेलुप जहानक अपवर्जी थिक
सओन जनमल वैशाखे उपटल ।
तीत पात मे पुष्प खिलय नहि,
उपहासे मे जीवन विपटल ।।
रैन इजारिया गगरी भरि - भरि,
जल सॅ देलहुॅ हुरहुर केॅ बोरि ।
भोरे - भोरे बाबा केॅ देखल,
सजावैत कियारी पासनि सॅ कोरि ।।
कर्कष हिय मे प्रीति देखि कऽ,
झट दौड़ि हुनका गऽर लगाओल ।
दलित उपेक्षित जीवन वॉचल,
श्रद्धा सॅ नोर टपकाओल ।।
!! नवतुरिया होरी !!
बाढ़िक पसाही मे डूबल सगरो मिथिला धाम ।
बागमती करेहक आंत मे, ओझरायल हम्मर गाम ।।
भदैया संग रब्बी बूड़ल, जिरात मे फाटलि गंग ।
बीति गेल फागुन मुदा, ऊँच जोतॉस जलमग्न ।।
नेना टोली हेरि रहल, सम्मत लेल खर पतवार ।
रामू बाबा सूतल खाट पर, ऊड़ल खोपरिक चार ।।
पौत्रक नीन जहिना फूजल, झमाड़ल कुंभकरण ।
झट सनि ऊठू औ बाबा देखू नभ तरेगन ।।
राम लोचन दौड़लनि गाड़ि पढ़ैत बड़ी पोखरिक मोहारि ।
बनि कपीश नेना भुटका देलक खोपड़ी जाड़ि ।।
लालिमा देखि आदित्य केॅ कदवा कएल दलान ।
शंभू रंगलनि गोबर थाल सॅ छोटका पाहुनक कान ।।
तीन फुटिया लाला पैघ खोंचाह, हाकिम पर फेकल रंग ।
फूदन चिनुआरक घैल मे, मिलाओल चिन्नी भंग ।।
भरि कठौत पायस भरल, घिवही पूआ केर संग ।
भौजी तन बोरल गुलाल सॅ, उमड़ल मातृ उमंग ।।
चैतावर टिटही तान मे, गावथि टलहा दऽल ।
छोट छीन गुंजन - सुमन्त, घूमथि भूत बनऽल ।।
सा रा रा रा गूंजि रहल लुटकुन जीक बथान ।
सियाराम जय गान सॅ गमगम मैथिल दलान ।।
डॉक्टर भैया क सार पर ढ़ारल कारी मोबिल ।
देखि नेना गण केर होरी गहुमनो घुसि गेल विल ।।
प्रो. कपिलेश्वर साहु
जन्म- 02 12 1962
ग्राम-कड़हरवा
पोस्ट-बेलही भवानीपुर
जिला- मधुबनी
शिक्षा-स्नातकोत्तर
अशर्फी दास साहु समाज इन्टर महिला महा. वि. निर्मली, सुपौल।
कोशी
हे माइ कोशकी हम करै छी अहाँकेँ प्रणाम्
हम विकल भऽ बैसल छी अहाँक कछेरमे,
हम जाएब कोना अपन गाम, हे माइ।।
बहुत दिनसँ बहैत अछि कोशी,
नहि नाजुक भेल स्थिति बेचारीकेँ!
अखन काटि रहल अछि, निर्मली, भपटियाही, दिधिआ, दुधैला, बेला अरु मझिाड़ीकेँ।
हरल-भरल छल वाग बगीचा, ओ सोना कटोरा सन खेत,
देखि-देखि कऽ हिया फटैत अछि, सगरे भरल अछि रेत।
जतए चलै छल जानकी एक्सप्रेस सन गाड़ी,
ततए बहैत अछि जल अथाह,
बास डीहकेँ कुन्ड बनौलथि,
बाँस नहि लैत अछि थाह।
अपनो आएल कोशी मइया, कएने आएल अन्देश,
पीलही, बुखार, मलेरिया लेने आएल सन्देश।
कतएसँ लाएब दवाइ कुनाइन गाएक दुध अरु धान,
कतएसँ लाएब साबूर दाना कोना कऽ बचतै प्राण।
जतए उपजै छल नाजीर, कनकजीर, करियाकामौर ओ पलिया धान।
ताहि गामक नर-नारिकेँ अल्हुआ रखने अछि प्राण।
दरभंगा, मधुबनी, सुपौल सहरसा, मधेपुरा, पूर्णियाँ लगैत छल सभा केर ढेर।
छओ जिलापर राज करैत अछि झोआ, काश पटेर।
हे माइ कोशीकी समेटहुँ अपन भाभट आ दए दिअ हमर हरियरका खेत
नहि तँ कनिये दिनक बाद अपनेक उपरसँ चलि देत गंगा यमुना एक्सप्रेस।
हमर करुण क्रन्दनकेँ सुनि करियौ समस्याक निदान
वहए छी हमर समाजवादी नेता, आ वहए छी मिथिलाक भगवान।
हे माइ कोशीकी हम करै छी अहाँक प्राणाम्।
महाकान्त ठाकुर
पाली मोहन,खजौली
मध्ुाबनी
साहेब
कुकुरक बीचक कुकुर
जखन एलशिशियन डॉग भऽ जाइए
गली कंची छोड़ि दैत अछि
कानूनन लग भऽ जाइए।
आइ एस आइ पीएस की बीपीएस
आर आर कते की प्रशिक्षित सभ
अराजकताक विरुद्ध
किन्नहुँ नहि भूकत।
ड्योढ़ी राज महल छोड़ि एसगर नहि घूमत।
मालिकक विश्वास पात्र
अपनहि कूलक सुपात्र/ अपनहि जाति कें हबकत
एहन सन डर भऽ जाइए।
ई नश्ल पश्चिम सँ आएल अछि
छोटके कें पकड़ओ सिखाएल अछि
बड़का तऽ ओकर मालिके छैक
अपना लेल अनका उजाड़िते छैक।
याह तऽ एकर खूबी छैक
अपनहि जाति पर भुकैत छैक
मालिकक लूटिक संपत्तिक
रक्षा करबाक ब्योंत धरबै छै।
भूखल देशक भले जेहन अवस्था छैक
एकरा लेल पांच सितारा व्यवस्था छैक
अनेरुआक संग नहि राखल जा सकैए
समूहक अगुआ नहि बनओ
तैं विशेष भवन मे राखल रहैए।
एहन कुकुरक कुकुरो लेल
जनतेक बुट्टी कुट्टी काटल जाइए
भूखल कियो नहि छैक धरती पर
एहन रिपोर्ट आ प्रमाण देबय लेल
बेसी कऽ खाइए।
जतय केर लोक एकरा चिन्हि गेल
एकर चालि चलन बूझि गेल
ओतहिं ओतहिं क्रांति भेल।
भारत मे भगत सिंह सुभाषक बाद
छोड़ि देल छार भार एकरे हाथ
तैं जनता पिटओ माथ
परिणाम तऽ देखाइते अछि
निर्धन देशक जनता सुखाइते अछि
अपनहि बीचक सहोदर
चदबी आ पावर पाबि ‘बगऽ भऽ जाइए
कुकुरक बीचक कुकुर जखन डॉग भऽ जाइए।
राधा कान्त मंडल ‘रमण’
जन्म- 01 03 1978
पिता- श्री तुरन्त लाल मण्डल
गाम- धबौली, लौकही
भाया- निर्मली
जिला-मधुबनी
षिक्षा- स्नातक
स्वागत गीत
हे अयोध्या वासी श्रीराम अहाँ स्वागत हमर स्वीकार करु
हे दिव्य पुत हे शान्ति दूत
निज काम भावसँ बढ़ैत रहू, अहाँ सत्य
मार्ग पर चलैत रहूँ हे अयोध्या वासी श्रीराम अहाँ स्वागत हम...
धन्य माए वो पिता धन्य अछि-2
जिनक अहाँ सन भेल संतान-2
जनक पूरी आगि धानुष भंग कऽ
सीताक रखलेँ अहाँ प्राण-2
धन्य-2 छी अहाँ अयोध्या वासी
अहाँ अयोध्या वासी श्रीराम अहाँ स्वागत
हमर स्वीकार करु
राजदेव मंडलदूटा कविता १.युग्मक फाग-पत्र २.आगमन
युग्मक फाग-पत्री
(प्रथम)
फगुआक रंग
लागल अंग-अंग
जागल अनंग
अहाँ नहि छी संग।
(द्वितीय)
शीत भागल
बसंत जागल
पिक पागल
कतए छी अभागल।
(तृतीय)
रितुराजक सुमन
झूमैत कण-कण
पिपासित मन
अहाँ छी दुसमन।
(चतुर्थ)
कहने रहि- नहि घबराएब
हम शीघ्रे आएब
आब कतेक कमाएब
ई मधुमास पुनः पाएब।
(पंचम)
परेमक संगहि विरह रहत
जीनगीक संगहि गिरह रहत
आब कतेक मन दुख सहत
आउ न फगुआ की कहत।
आगमन
अहाँक आगमनसँ
अंत भऽ गेल
आँखित पतीक्षा
आस छल आएब अहाँ
किन्तु
नहि जनैत छलौं
आबि सकब अहाँ
एतेक शीघ्र
सोचने छलौं
अहाँक स्पर्श होएत
मृदुल आओर कोमल
मलयानिल सन सुखद
परन्तु
अहाँक अएलासँ
झन-झना उठल
हमर हृदय
किएक तँ
अहाँक आएब नहि अछि सच्चा
कहि रहल गोदीक बच्चा
पतझड़ी जिनगीक आब
हमरा करए पड़त सामना
तइयो अहाँक लेल
कऽ रहल छी मंगल कामना।
बालानां कृते-
१. जगदीश प्रसाद मंडल-किछु प्रेरक प्रसंग २. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स) ३.कल्पना शरण-देवीजी
१. जगदीश प्रसाद मंडल
किछु प्रेरक कथा
61 रत्न गमेवाक दुख
एकटा गोताखोर कैक दिन स असफल होइत आयल छल। भरि-भरि दिन परिश्रम करैत छल मुदा किछु हाथ नहि लगैत छलैक। जहि स परिवार चलब कठिन भऽ गेलै। आन काज करैक लूरि रहबे ने करै जे करैत। भोरे घर स नदीक मोहार पर बैसि रत्नक आशा मे टक-टक पाइन दिशि तकैत रहैत छल। निराश भ गोताखोर मन मे विचारलक जे आइ एहि काजक आखिरी दिन छी। जँ आइ किछु नहि भेटत त काल्हि स छोड़ि देब। जाल ल नदीक मोहार पर बैसि मने-मन भगवान स कहै लगलनि- अगर अहाँ मदति नहि करब त हम जीवि कोना?
भगवान स प्रार्थना क गोताखोर पानि मे पैसि डूबकी लगौलक। एकटा पोटरी भटिलै। पोटरी नेने गोताखोर ऊपर भेल। किनछरि मे बैसि पोटरी खोललक। छोट-छोट पाथर ओहि पोटरी मे। पाथर देखि गोताखोर निराश भ गेल। मन मे क्रोधो उठलै। एकाएकी ओहि पाथर कऽ पानि मे फेकैय लगल। पाथरो फेके आ मने-मन अपना भागो कऽ कोसै। फेकैत-फेकैत एकटा पाथर बँचलै। ओहि पाथर कऽ जखन फेकैय लगल कि ओहि पर नजरि पड़लै। पाथर चमकैत रहैय। ओ नीलम पत्थर रहै। गोताखोर चीन्हि गेल। मुदा ताघरि त सबटा फेकि देने छल। अपसोच करै लगल मुदा सब त पानि मे चलि गेल छलैक तेँ अपसोच कइये कऽ की होयतैक। अपसोच करैत देखि भगवान चिड़ै बनि आबि कहै लगलखिन- ऐ गोताखोर! सिर्फ तोँही टा ऐहन अभागल नहि छैँ ढ़ेरो अछि जे जीवन रुपी रत्न राशि कऽ एहिना गमबैत अछि। जो जैह बँचल छौक ओकरे बेचि क गुजर कर। मुदा ज्ञान बढ़ा। जहि स धनो पबैक लूरि भऽ जेतौ आ मनुक्खो बनि जीमे।
62 नशा
एकटा व्यापारी अफीम खाइत छल। ओ अपना नोकरो कऽ अफीमक चहटि लगा देलक। एक दिन दुनू गोटे बाजार जाइक विचार केलक। जे सामान सब दोकान मे सठल रहै ओकर पुरजी बनौलक। रुपैआ गनलक। दुरस्त बाजार रहने दुनू गोटे घरे पर भरि पेट खा लेलक। बाजार विदा भेल। किछु दूर गेला पर दुनू गोटे खेनाइ बिसरि गेल। रास्ता मे होटल छलै दुनू गोटे घोड़ा स उतड़ि खाइ ले गेल। घोड़ा कऽ छानि चरै ले छोड़ि देलक। दोकान मे दुनू गोटे खा सोझे बजार विदा भेल। बजारक कात जखन पहुँचल त व्यापारी केँ मन पड़लै जे घोड़ा ओतै छूटि गेल। मनहूस भऽ दुनू गोटे माथ पर हाथ द बैसि रहल। थोड़े काल गुनधुन करैत घोड़ा आनै दुनू गोटे घुरि गेल। घुरि कऽ दोकान लग आयल त घोड़ा कऽ चरैत देखलक। लगाम लगा दुनू गोटे चढ़ि बजार दिशि विदा भेल। बाजार पहुँच दोकान मे सौदा-बारी कीनलक। सामान समेटि मोटरी बान्हि जखन रुपैया देमए लगलै त रुपैआक झोरे नहि। दुनू गोटे मन पाड़ै लगल जे रुपैआक झोरा की भेल? किछु कालक बाद मन पड़लै जे झोरा त ओतै छूटि गेल जेतै बैसल छलौ। दुनू गोटे बपहारि कटै लगल। कनैत देखि एकटा ग्रामीण महिला सामान कीनैत छलि व्यापारी कऽ कहलक- ई गति सिर्फ अहीं दुनू गोटे टा क नहि सब नसेरी कऽ होइ छै।
63 सामना
एकटा बन छल। ओहि बन मे अनेको सुगर परिवार छल। ओहि बन मे एकटा सिंह सेहो रहैत छलैक। जखन कखनो सिंह कऽ भूख लगै तखन टहलि सुगर क पकड़ि खा जाइत। दोसर-तेसर सुगर सिंह कऽ देखिते पड़ा जायत। एक दिन सब सुगर मिलि बैसार केलक। बैसार मे तय केलक- जखन एकाएकी मरिये रहल छी तखन लड़ि कऽ किऐक ने मरब।
एहि विचार स सब सुगर मे साहस जगलै। सब मिलि लड़ै ले विदा भेल। सब हल्लो करै आ चिकड़ि-चिकड़ि सिंह कऽ गरिऐवो करै। जत्ते जोरगर सुगर छल ओ आगू-आगू आ अबलाहा सब पाछू-पाछू विदा भेल। सिंह कऽ देखितहि सब जोर स हल्ला करैत दौड़ल। आइ धरि सिंह कऽ ऐहेन मुकाबला स भेंटि नहि भेल छल। सिंह डरा गेल। अपन जान बँचबै ले पड़ाइल। सिंह कऽ पड़ाइत देखि सुगर पाछु स खेहारलक। सिंह बन स बाहर भऽ गेलै। बन खाली भऽ गेलै। सब सुगर निचेन स रहै लगल।
64 शिष्टाचार
एकटा इनार पर चारि टा पनिभरनी पाइन भरै ले आइल छलि। एक्केटा डोल छलैक तेँ एक गोटे पानि भरैत छलि आ तीनि गोटे गप-सप करैत छलि। सब अपन-अपन बेटाक बड़ाई करैत। पहिल औरत बाजलि- हमर बेटाक आवाज एत्ते मधुर अछि जे रजो-रजवार मे ओकरा सम्मान भटितै।
दोसर कहलकै- हमरा बेटाक शरीर मे एत्ते तागत अछि जे नमहर भेला पर बड़का-बड़का पहलमान कऽ पटकत।
तेसर बाजलि- हमर बेटा ऐहेन तेजगर अछि जे सब साल इस्कूल मे फस्ट करै अए।
मूड़ि निच्चा केने चारिम कहलक- आने बच्चा जेँका हमर बेटा साधारण अछि।
पनिभरनी सभ इनार पर गप-सप करिते छलि कि स्कूल मे छुट्टी भेलै। अबैत-अबैत चारुक बेटा इनार लग देने गुजरैत। एकटा गीति गबैत दोसर कूदैत-फनैत तेसर किताब खोलि किछु पढ़ैत छल। चारिम पाछू-पाछू चुपचाप अबैत छल। इनार लग अबिते चारिम अपन माएक भरल घैल माथ पर ल लेलक आ माएक हाथ मे अपन बस्ता द देलक। आगू-पाछू दुनू माए-बेटा आंगन विदा भेल।
इनारे लग एकटा बुढ़िया बैसलि सब बात सुनैत छलि। ओ चारु पनिभरनी कऽ रोकि कहलक- ई चारिम लड़का जे अछि ओ सबसँ नीक अछि। एकर शिष्टाचार सबसँ नीक छैक।
65 ठक
एकटा ठक लोमड़ी गाछक निच्चा मे छल। गाछ पर बैसल मुर्गा कऽ पट्टी द रहल छलै जे भाइ तूँ नइ सुनलहक जे सब पशु-पक्षी आ जानवरक बीच सभा भेल। जहि मे सर्वसम्मति स निर्णय भेल जे अपना मे कोइ ककरो अधला नहि करै तेाँ किऐक गाछ पर छह निच्चा आवह आ दुनू गोटे अपन जिनगीक दुख-सुखक गप-सप करह। लोमड़ीक चालाकी मुर्गा बुझति छल तेँ गाछे पर स हूँ-कारी दैत मुदा निच्चा नहि उतड़ै। ताबे दू टा आवारा कुकूड़ कऽ दौड़ल अबैत लोमड़ी देखलक। कुत्ता कऽ देखिते पड़ायल। लोमड़ी कऽ पड़ाइत देखि गाछे पर से मुर्गा कहलकै- भाइ भगै किएक छह? जखन सबहक बीच समझौता भ गेलै तखन तोरा किऐक डर होइ छह?
लोमड़ी भगबो करै आ उत्तरो दइ- भ सकै अए जे तोरे जेँका ओकरो (कुत्तो के) नइ बुझल होय।
66 पत्नीक अधिकार
गृहस्ताश्रम ओहन आश्रम होइत जहि मे आत्मसंयम पारस्परिक सद्भाव आ सद्वृतिक अभ्यास आसानी स कैल जा सकैत अछि। एक दिन हजरत उमर स भेटि करै एक आदमी आयल। थोड़े काल बैसल त उमरक पत्नी कऽ जोर-जोर स उमर पर बजैत सुनलक। उमर चुपचाप सुनैत। किछु उत्तर नहि दैत। ओहि आदमी कऽ बड़ छगुन्ता लगलै जे पत्नी यत्र-कुत्र कहि रहल छनि मुदा किछुुुु उत्तर उमर नइ दैत छथिन। ओहि आदमी कऽ नहि रहल गेलै। ओ उमर केँ पूछल- अपनेक पत्नी यत्र-कुत्र कहि रहल छथि मुदा अहाँ मुड़िओ उठा क ओमहर नहि तकै छी?
गंभीर स्वर मे उमर जबाबव देलखिन- भाई! ओ (पत्नी) हमर गैल-कुचैल कपड़ा खिंचैत छथि खाना बनबै छथि सेवा करैत छथि आ सबसँ पैघ बात जे हमरा पाप करै स सेहो बँचबै छथि। तखन जँ ओ बिगड़ि क दू-चारि टा बाते कहै छथि त कि हुनका एतबो अधिकार नहि छनि।
67 शिनीचीक स्नेह
तीनि दिन स चुल्हि नहि पजरने दुनू परानी सियान त बरदास केने रहति मुदा बच्चा सब भूखे ओसार पर ओंघरनियो दैत आ हिचुकि-हिचुकि कनबो करैत। अनेको प्रयास सियान केलक मुदा कोनो गर खेनाइक नै लगलै। अंत मे निराश भ सियान अपन जिनगी क बेकार बुझि आत्महत्या करैक विचार मन मे ठानि लेलक। आत्महत्या करै ले विदा भेल। निराश मन दुखक अथाह सागर मे डूबै लगलै कि पाछू स एक आदमी कान्ह पर हाथ दऽ कहलकै- मित्र! एहि अमूल्य जिनगी क गमौला स की हैत? हम मानै छी जे अहाँक विपत्ति अहाँ कऽ आत्महत्या करै ले बेवस कऽ देलक। मुदा की अहाँ एहि विपत्ती कऽ हँसैत-हँसैत पाछू नहि धकेल सकै छी?
आत्मीयताक शब्द सुनि सियान बोम फाँड़ि कनै लगल। कनबो करै आ अपन सब मजवूरी ओहि आदमी कऽ कहबो करै। मजबूरी सुनि शिनीचिओ कऽ आॅखि मे नोर आबि गेलइ। तत्काल ओ सियान कऽ भोजनक जोगार करैक लेल किछु रुपैया दऽ देलखिन। सियान घुरि कऽ घर आबि भोजनक व्यवस्था केलक।
वैह शिनीची जापानक प्रसिद्ध कवि छथि। आहिठाम ओ संकल्प केलनि जे अप्पन कमाइक तीनि-चैथाइ भाग ओहन व्यक्तिक सेवा मे लगाएव जे कष्टमय जिनगी मे पड़ल अछि।
घर पर आबि शिनीची एकटा गुप्तदानक पेटी बना मुख्य चैराहा पर रखि देलक। ओहि पेटीक उपर मे लिखि देलखिन- जइ सज्जन कऽ सचमुुच पाइक जरुरत होइन ओ एहि पेटी स अपना काज जोकर निकालि लेथि
सब दिन साँझ कऽ शिनीची आबि पेटी खोलि देखि लेथि। जँ पाइ नइ रहै त दऽ देथि।
68 सिखबैक उपाय
एकटा गरुड़ छल। ओकरा एकटा बच्चा छलै। बच्चा कऽ पीठि पर लऽ गरुड़ एकठाम स दोसर ठाम चराओर करैत छल। साँझू पहर कऽ बच्चा कऽ पीठि पर लदने घर अबैत छल। उड़ै जोकर बच्चा भऽ गेल छलै मुदा पीठि पर बैसैक जे आदति लागि गेल छलै से छोड़बे ने करैत। कैक दिन गरुड़ बुझौलकैक मुदा ओ अपन बाइन छोड़बे ने करैत। मने-मन गरुड़ सोचलक जे सोझे कहने से नहि मानत तेँ रास्ता धड़बै पड़त।
दोसर दिन बच्चा कऽ पीठि पर नेने गरुड़ उड़ैत विदा भेल। जखन खूब ऊपर गेल तखन आस्ते स अपन पाँखि समेटि बच्चा कऽ छोड़ि देलक। बच्चा निच्चा गिरै लगल। अपना कऽ निच्चा गिरैत देखि बच्चा पाँखि फड़फड़बै लगल। आस्ते स निच्चा उतड़ल। आखि उठा-उठा गरुड़ देखबो करै आ बँचवैक उपायो सोचै। निच्चा मे आबि बच्चा पाँखि चलबैक प्रयास करै लगल जहि स उड़ब सीखि लेलक। सायंकाल जखन सब एकठाम भेल तखन बच्चा बापक शिकायत करैत माए केँ कहलक- माए! आइ जँ पाँखि नहि फड़फड़ेने रहितहुुँ तऽ बाबू बिचहि रास्ता मे मारि दइते।
माए बुझि गेलि। हँसैत बेटा कऽ कहलक- बौआ! जे अपने स नहि सिखत स्वावलंवी बनत ओकरा सिखवैक एकटा इहो रास्ता छियैक।
69 कर्तव्यपरायन तोता
एकटा जमीनदार रहथि। हुनका बहुत खेत रहनि। धानक खेती केने रहति। खेतक चारु कोण पर रखवार खोपड़ी बना ओगरबाहि करैत छल। रखवार कऽ रहितहुँ तोता सब उड़ैत आबि धानो खाइत आ सीस काटि-काटि लइयो जाइत। एकटा ऐहन तोता छल जे अपने खेतेे मे खा लैत आ उड़ै काल छह टा सीस काटि लोल मे लऽ उड़ि जाइत। एक दिन रखबार ओकरा जाल मे फँसा लेलक। तोता कऽ नेने जमीनदार लग रखवार लऽ गेल।
तोता कऽ देखि जमीनदार पूछलकै- धानक सीस काटि कतऽ जमा करै छेँ?
निरभिक (निर्भीक) भऽ तोता उत्तर देलकनि- दू टा सीस कर्ज सठबै ले दू टा कर्ज लगबै ले आ दू टा परमार्थक लेल लऽ जाइ छी। कुल छह टा सीस अपन पेट भरला पर ल जाइ छी।
अचंभित होइत जमीनदार पूछलकै- की मतलब?
तोता- बृद्ध माए-बाप छथि जनिका उड़ि नहि होइत छनि तनिका लेल दू टा सीस। दू टा बच्चा अछि तकरा लेल दू टा सीस आ पड़ोसिया दुखित अछि दू टा सीस तकरा लेल।
तोताक बात ध्यान स सुनि जमीनदार गुम्म भऽ गेल। किछु समय मने-मन विचारि रखवार कऽ कहलखिन- एहि तोता कऽ चीन्हि लहक। जँ कहियो धोखा स पकड़ाइयो जा त छोड़ि दिहक।
70 तस्वीर
एकटा चित्रकार तीनि टा तस्वीर बनौलक। एकटा सोच मे दोसर हाथ मलैत आ तेसर माथ धुनैत। एक गोटे तीनू तस्वीर क देखि चित्रकार स पूछलक- तीनू तीनि रंगक बुझि पड़ै अए?
उत्तर दैत चित्रकार कहलक- ई तीनू एक्के आदमीक तीनि अवस्थाक छी। कोन-कोन अवस्थाक छी?
पहिल विआह स पहिलुका छी। जखन युवक कल्पना मे उड़ैत अछि। सोचैत अछि जे कत्ते सुन्नर कनियाँ भेटत। दोसर विआहक बादक छी। जखन पारिबारिक जिनगी शुरु होइत छैक आ जिम्मेबारी बढ़ैत छैक। जिम्मेबारी बढ़लाक बादे समस्या स टकराइ पड़ैत छैक। तखन बुझि पड़ैत छैक जे कोन जंजाल मे पड़ि गेलहुँ तेँ हाथ मलैत अछि। तेसर तस्वीर ओ छी जखन स्त्रीक वियोग वा विरोध होइत छैक। तखन माथ घुनैत सोचै पड़ैत छैक जे हमर कपार फूटि गेल। अपने किरदानी स अपन परिवारक आ खानदनक नाक कटा देलिऐक। जँ हमहू सही रास्ता पर आबि चलैत रहितहुँ तऽ ऐहेन दिन नहि देखै पड़ैत।
२.देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)
नताशा:
(नीचाँक कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा पैंतालीस
नताशा छिआलीस
नताशा सैंतालीस
नताशा अड़तालीस
३.कल्पना शरण- देवीजी
देवीजी ः मुस्कुराहट
देवीजी विद्यालय एली तऽ देखलखिन जे एकटा बच्चा कानि रहल छल आ बाॅंकि सब दूर जा कऽ ठाढ़ छलैथ। देवीजी आेहुना देखैत रहैथ जे नब आयल इर् बच्चा सब संगे मिलि नहिं पाबि रहल छल।तखन देवीजी सबसऽ बात केली तऽ बुझलखिन जे अहि बच्चा के स्वभाव मे कनि खराबी छल आ सबसऽ खाैंझाकऽ बात करै छल।ताहि पर देवीजी के एक विचार बनलैन। आे आेहि असगरूआ बच्चाके बजाकऽ कहलखिन जे हमरा एकटा किताब अपन कक्षाके बच्चा सऽ मांगि क दे। आे भीड़मे आेकरे लग गेल जे स्वभाव सऽ नम्र छल आ अकरा हॅंसि कऽ जवाब दैत छल। जे बच्चा पढ़ै मे भने तेज छल लेकिन स्वभाव सऽ कड़क छल तकरा लग अकरा जायके नहिं माेन भेलै। टाहि पर देवीजी कहलखिन जे जहिना अहाॅंके विनम्र स्वभाव नीक लागैत अछि तहिना दाेसराे के हाेयत छै। आ अपन विनम्रता दर्शाबऽके सबसऽ नीक तरीका छै मुस्कुरेनाइ।
देवीजी इहाे कहलखिन जे हॅंसैत रहबला व्यक्तिरअपने तऽस्वस्थ रहिते अछि संगे दाेसराे के माेन हल्लुक कऽ दैत अछि।साैहार्द्र सऽ भरल हॅंसी केहनाे कुदरूपके सुन्दर बना दैत छै आ अकर विपरीत कियाे कतबाे सुन्दर कियैक नहिं हुए विनम्रता आ सुभाषिताक अभाव मे सबसऽ एकहरबा भऽ जायत अछि। देवीजीके अहि ज्ञानसऽ आे बालक बहुत लज्जित भेल आ अपन स्वभाव बदलैके निर्णय लेलक।
फेर की छल देवीजीके इर् चेला तऽ सबहक कान कटलक। शबहक बीचमे हॅंसैत चहचहायत अहि शिष्य के देखिकऽ देवीजीक माेन गदगद भऽ गेलैन।7 फरवरीकऽ ‘स्माएल डे’ पर देवीजीके सबसऽ पैघ उपहार यैह भेटल छलैन।
आहि बच्चा सबहक व्यक्ति त्वक के विकास पर विशेष ध्यान देेने रहैथ।
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)
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विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
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1.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’/
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला / करए बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/ इआद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश/दालान दिस
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ/लए कए
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए 61. भाय भै/भाए
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै / माए
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका’ कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे
71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय/बननाइ
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो/करिऔ-करैऔ
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा’
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह / इएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो(willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा’/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो / केओ
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि
181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ /करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटिआएब
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा’
201. देखाय देखा’
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
204.गेलैन्ह/ गेलन्हि
205.हेबाक/ होएबाक
206.केलो/ कएलो
207. किछु न किछु/ किछु ने किछु
208.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ
209. एलाक/ अएलाक
210. अः/ अह
211.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन)
212.कनीक/ कनेक
213.सबहक/ सभक
214.मिलाऽ/ मिला
215.कऽ/ क
216.जाऽ/जा
217.आऽ/ आ
218.भऽ/भ’ (’ फॉन्टक कमीक द्योतक)219.निअम/ नियम
220.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
221.पहिल अक्षर ढ/ बादक/बीचक ढ़
222.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
223.कहिं/कहीं
224.तँइ/ तइँ
225.नँइ/नइँ/ नञि/नहि
226.है/ हइ
227.छञि/ छै/ छैक/छइ
228.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
229.आ (come)/ आऽ(conjunction)
230. आ (conjunction)/ आऽ(come)
231.कुनो/ कोनो
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ- कएलहुँ
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)-आ (conjunction-and)/आ
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/होन्हि
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/ओ
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौँ/ ज्योँ
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कुनो/ कोनो
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलन्हि/ गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि
२५८.लय/ लए(अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक
२६०.पठेलन्हि/ पठओलन्हि
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नहि/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह(बिकारी)क प्रयोग उचित
२६५.केर/-क/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जै
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जै/ जए
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सेरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलहुँ/ कहै छलहुँ- एहिना चलैत/ पढ़ैत (पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित)-आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझ छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/बिन। रातिक/ रातुक
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट
२९१. खन/ खुना (भोर खन/ भोर खुना)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नहि अछि।वक्तव्य/ वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८.बाली/ (बदलएबाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
300. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६.आ (come)/ आ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, बीचमे नहि।
३०९.कहैत/ कहै
३१०. रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय
उच्चारण निर्देश:
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नहि सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य शमे जीह तालुसँ , षमे मूर्धासँ आ दन्त समे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे ष केँ वैदिक संस्कृत जेकाँ ख सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जेकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जेकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग आ गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि) से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ ऐछ
छथि- छ इ थ – छैथ
पहुँचि- प हुँ इ च
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ एहि सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा एहिमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- एहि लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ/ के/ कऽ हटा कऽ। एहिमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ– जेना छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नहि। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए- रहै मुदा सकैए- सकै-ए
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना
से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा।
पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए।
छलै, छलए मे सेहो एहि तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- संजोगने
केँ- के / कऽ
केर- क (केर क प्रयोग नहि करू )
क (जेना रामक) –रामक आ संगे राम के/ राम कऽ
सँ- सऽ
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नहि। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- राम सऽ रामकेँ- राम कऽ राम के
केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ तऽ त केर एहि सभक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना के कहलक।
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ एहि सभक उच्चारण- नै
त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नहि) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नहि- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नहि)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नहि)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नहि)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन)
पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नहि)
ओइ/ ओहि
ओहिले/ ओहि लेल
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक (देखिऔक बहि- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ/ जेकाँ
तँइ/ तैँ
होएत/ हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ
सौँसे
बड़/ बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नहि)
मे केँ सँ पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेशी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ।
एकटा दूटा (मुदा कैक टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नहि।आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नहि (जेना दिअ, आ )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचाएक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एत्स्हो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नहि दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन
केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ त नहि)
सँ ( सऽ स नहि)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)
३.नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन
१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।
२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।
३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।
४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।
५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।
७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।
८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।
९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।
१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक
धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य
एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि
अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।
21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।
ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.NAAGPHAANS-PART_III-Maithili novel written by Dr.Shefalika Verma-Translated by Dr.Rajiv Kumar Verma and Dr.Jaya Verma, Associate Professors, Delhi University, Delhi
8.2.Original Poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy of New York.-The Sun And The Moon Witness
VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)
DATE-LIST (year- 2009-10)
(१४१७ साल)
Marriage Days:
Nov.2009- 19, 22, 23, 27
May 2010- 28, 30
June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30
July 2010- 1, 8, 9, 14
Upanayana Days: June 2010- 21,22
Dviragaman Din:
November 2009- 18, 19, 23, 27, 29
December 2009- 2, 4, 6
Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25
March 2010- 1, 4, 5
Mundan Din:
November 2009- 18, 19, 23
December 2009- 3
Jan 2010- 18, 22
Feb 2010- 3, 15, 25, 26
March 2010- 3, 5
June 2010- 2, 21
July 2010- 1
FESTIVALS OF MITHILA
Mauna Panchami-12 July
Madhushravani-24 July
Nag Panchami-26 Jul
Raksha Bandhan-5 Aug
Krishnastami-13-14 Aug
Kushi Amavasya- 20 August
Hartalika Teej- 23 Aug
ChauthChandra-23 Aug
Karma Dharma Ekadashi-31 August
Indra Pooja Aarambh- 1 September
Anant Caturdashi- 3 Sep
Pitri Paksha begins- 5 Sep
Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep
Matri Navami- 13 Sep
Vishwakarma Pooja-17Sep
Kalashsthapan-19 Sep
Belnauti- 24 September
Mahastami- 26 Sep
Maha Navami - 27 September
Vijaya Dashami- 28 September
Kojagara- 3 Oct
Dhanteras- 15 Oct
Chaturdashi-27 Oct
Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct
Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct
Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct
Chhathi- -24 Oct
Akshyay Navami- 27 Oct
Devotthan Ekadashi- 29 Oct
Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov
Somvari Amavasya Vrata-16 Nov
Vivaha Panchami- 21 Nov
Ravi vrat arambh-22 Nov
Navanna Parvana-25 Nov
Naraknivaran chaturdashi-13 Jan
Makara/ Teela Sankranti-14 Jan
Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan
Mahashivaratri-12 Feb
Fagua-28 Feb
Holi-1 Mar
Ram Navami-24 March
Mesha Sankranti-Satuani-14 April
Jurishital-15 April
Ravi Brat Ant-25 April
Akshaya Tritiya-16 May
Janaki Navami- 22 May
Vat Savitri-barasait-12 June
Ganga Dashhara-21 June
Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul
NAAGPHAANS- Maithili novel written by Dr. Shefalika Verma in 2004- Arushi Aditi Sanskriti Publication, Patna- Translated by Dr. Rajiv Kumar Verma and Dr. Jaya Verma- Associate Professors, Delhi University, Delhi.
NAAGPHAANS
PART –III
The life cycle goes on. Nothing remains permanent – Simant’s love also started vanishing. Always busy with his work, he started ignoring Dhara. Dhara’s was not able to bear this attitude. But Dhara also realized Simant’s helplessness. Whenever she complained, Simant used to reply, Dhara, you do not understand. If I work hard, it is for your welfare and betterment. These days if you do not have money, you will not survive. Moreover my business requires me to be always on run. Even I also do not like to be on run, away from you. I always think about you and try to give you the best.Dhara’s attitude gets softened. Even Simant was not at fault.
One day Simant not only suggested but almost compelled Dhara to join some job. Kadamba and Manjul both were studying outside. Dhara remained alone. Dhara’s heart started boiling, like a tornado. It was a bold and courageous step for Dhara to join a job away from her husband and that is also in the land of Mithila. When the entire world was witnessing feminist movement, in the land of Mithila, woman talking to another man was looked down upon as immoral and she was declared characterless. In this environment, Dhara’s step was really bold and courageous.
Dhara’s wavering thoughts, vacillating moods and meandering emotions always invited comments from Simant, I understand, you are a writer,a poetess,a mother and a wife, all in one, really overburdened. Simant made his decision clear- Dhara, I want you to join some college as a lecturer. I remain busy throughout the day. Most of the time I am out of the town. Kadamba is also studying outside this small town. You will become engaged and your writing will also continue. Initially Dhara hesitated and after some dilly-dallying she started applying for job in different colleges, ultimately getting appointed as a lecturer but not in a college of her small town but in a different city away from Simant
Simant asked, what are you thinking Dhara? Replied Dhara, nothing. But I cannot stay away from you. I do not want to join. Simant tried to convince her, we will stay together during vacations, you can also make progress as a writer, writing day and night. I will tell everybody, Dharaji is my wife, Kadamba will tell Dharaji is my mother. We will feel proud of you. I will embrace you saying I have embraced such a great writer. Dhara was enlightened. She became confident and determined. But how can I stay alone in that unknown city?
2
Unknown city – Simant replied – do you remember Akash? Right now Akash is posted there – you will get an acquaintance even there. Dhara went into past- She had met Akash in a Kavi Sammelan. Akash was the chief guest. He was enchanted after listening to Dhara’s poem. They became close friends. The ringing phone brought Dhara back to present.
Hello. Dhara, I am Akash speaking. What are you doing these days?
As such nothing.
Why you are replying in such a feeble and low tone?
No… Nothing.
Did you receive any news from Simant? Whether he is coming?
No, Dhara replied in a tired voice – I received his letter but due to his busy time
schedule he is not able to come and I am feeling quite lonely.
Why? What is the matter?
Dhara remained silent.
You become silent all of a sudden as if the string of Veena had broken.
No..No.. there is no matter to worry. Simant had done one good thing he got phone connection installed here – which makes my lifeless existence alive.
Telephone -- Akash asked laughingly- how?
Sometimes I get your call and become happy.
Akash Babu kept on laughing.
Such a wonderful family—Dhara, Simant, Kadamba and Manjula—full of love, similar thoughts, similar expression, similar experience- everybody was happy and contented—Simant had a small business, family had everything—“ Aap bhi bhukha na rahe – Sadhu na bhukha jaye” – everybody had different dreams .
Once she had visited Birpur accompanying Simant. She stayed in a very artistic dormitory. Dhara was not able to believe her eyes that such an artistic dormitory was conceived and built in the district of Saharsa, Bihar. Later on Dhara visited it on several occasions. Clad in a blue saree, sitting on a blue chair under blue sky, Dhara thought – the blue colour of sky has faded as the hidden partial truth of human heart fades away. Human beings never automatically believe the truthfulness of the heart, they tend to live in the false world.
Dhara developed emotional attachment towards Birpur dormitory. The peaceful seclusion of this place resulted into creativity… various poems composed, many articles penned down. In the evening Simant’s friend asked her, Bhauji, are you happy being all alone whole day. Dhara replied laughingly, I never feel alone in this dormitory. Everybody was overjoyed and said, we all are grateful to this dormitory. Simant also had the feeling that Dhara always accompanied him to this place due to attraction of this dormitory. He felt free to pursue his work. He wanted to provide at least this small happiness to his newly married wife.
3
Didi, I have come back home early as college is closed today, told Rangama. Please give me a cup of tea Rangama. Tea has been her best friend. People say that they forget sorrow after drinking wine. But Dhara felt happy after a cup of tea. Sometimes she thought of cancer caused by this habit of taking excess tea.
She started sipping the tea.
May I come in?
Dhara was taken aback, Akash Babu -- door is ajar, please come in.
Today college is closed.
Why? asked Akash Babu.
I do not know the reason.
You are really amazing, Akash lit the cigarette and said whom are you remembering?
Dhara tried to reply – you, but was not able to speak. She was not sure why even at this advanced age her behaviour was childish and why she was trying to behave like a teenaged girl by replying ‘you’. But who can understand the feelings and nature of Dhara’s heart.
Akash said, Dharaji, do not consume so much of tea. You have just had it.
Akashji, you should also not smoke continuously. However, I am very much fond of the smoke of cigarette as it seems the cloud is dancing. But it is injurious to health.
Dharaji, I can not live without cigarette. My wife hails from village. Even she does not like cigarette. She is not able to tolerate its smell. But if men do not smoke how can they struggle and face the vagaries of life.
Why you are not staying with your wife? Dhara asked.
I am alone in the family. Father is quite old and staying in the village. Thus, wife along with three children is with him. My wife Tarang is looking after our vast ancestral property.
Dhara took a deep breathe – they shared the same pain – then why people get married, Akash Babu. What is the significance of such marriage?
It is already 1 p.m. – looking at his wrist watch Akash stood up – you are yet to freshen up – I am really a big fool, just beating about bush and wasting your valuable time.
Dhara wanted Akash to stay back but was not able to stop him. Her soul was crying – do not go Akash Babu, do not go. I am already a broken person. You can not understand how your proximity makes me alive. But she kept mum and just uttered, come again. Akash left and Dhara went for another cup of tea. Dhara remembered Vanya’s story. Vanya had advised her – Dhara, do not rely on males – you are very innocent. You easily believe everybody. And then Vanya told Dhara her pathetic story. How she loved Jalad who was already a married person – how she got trapped in her affair with Jalad.
Jalad enticed her and at the same time told her wife how he is befooling Vanya just to expose that she is of a mean character. Vanya herself heard it. If others have told her about this, she would have never believed it. She countered both of them and told—thank you very much for playing with my emotions and immediately left the dazed couple.
4
Dhara, I deeply loved Jalad. He cheated me, but he was not at fault. It was clearly my fault trying to break his married life. But I never thought that he would play with my emotions– Vanya started crying hysterically.
Please calm down Vanya – life is full of struggles.
No Dhara, how can I calm down. You do not know my complete story. Do you want to listen?
After that incident, Jalad,s wife narrated it to my neighbour Murti Babu whose wife Reena was like my sister. Now under her influence, Reena also humiliated me.
Reena told me- Vanya, I have always cautioned you not to believe others easily. You innocently believe others and they kick you as a ball.
Dhara, Shakespeare has rightly said, Blow, Blow Thou Winter Wind Thou Are Not So Unkind As Men’s Ingratitude.
Dhara I did everything for Reena didi and her family. But unflinchingly Reena didi told me – I treat you as my sister but….
Dhara, I lost patience but failed to retaliate due to my emotional nature – I can only give my love to everybody, can not hate anybody.
Dhara consoled Vanya quoting Bachchan, Main chhipana janta to jag mujhe Sadhu samajhta, Shatru aaj ban gaya chhal-rahit vyavhar Mera. Really these sentences expose the reality. Vanya, never have two thoughts – who is good or who is bad? Nobody can answer these two.
Vanya replied – Dhara, you are right. If the relationship survived by blaming me, I feel fortunate. If somebody’s married life remains intact, I will never care for the blemish of my reputation. God is observing everyone. That day I was sharing lunch with Reena didi from the same plate and I had no inclination that her heart was engulfed by the venomous
NAAGPHAANS. Dhara, what should I do now?
Vanya, nobody can damage others reputation. But certainly enemies are preferable to these kind of friends. Now I am also scared to know about these self-centered, self-indulgent and self-seeking persons.
TO BE CONTINUED
Original Poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy of New York.
The Sun And The Moon Witness
Announcement of Aryabhatta
In Patliputra
If it is other subjects in question
Many debates occur for and against
But the theory of science
Approved by the sun and the moon
The dream of Chandrayan made true
By leelawati
After learning the method of
Calculating distance between planets
The effort was fruitful today
The meaning of brahmashtra and pashupatashtra
Were known today.
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महत्त्वपूर्ण सूचना:(१) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल गेल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक खण्ड-१ सँ ७ Combined ISBN No.978-81-907729-7-6 विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे आ प्रकाशकक साइटhttp://www.shruti-publication.com/ पर।
महत्त्वपूर्ण सूचना (२):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर
गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बालमंडली-किशोरजगत विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)- essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups literature in single binding:
Language:Maithili
६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
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विदेह: सदेह : १ : तिरहुता : देवनागरी
"विदेह" क २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित।
विदेह: प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/
विदेह: वर्ष:2, मास:13, अंक:25 (विदेह:सदेह:१)
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर; सहायक-सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा
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रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
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आलोचना
इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक
बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन
सामाजिक चिंतन
किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा
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माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
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मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन
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धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम
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संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
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अंतिका प्रकाशन
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादवमूल्य: भा.रु.१००/-
२.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलनखण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना
खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि)
खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर)
खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ)
खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण)
खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन )
खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत)- गजेन्द्र ठाकुर मूल्य भा.रु.१००/-(सामान्य) आ $४० विदेश आ पुस्तकालय हेतु।
३. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता”प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (मूल्य भा.रु.१२५/- US$ डॉलर ४०) आ पेपरबैक (भा.रु. ७५/- US$ २५/-)
४/५. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर संलस्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु. 100/-
६. गामक जिनगी (कथा संेग्रह)- जगदीश प्रसाद मंकडल): मूल्य भा.रु. ५०/- (सामान्य), $२०/- पुस्तकालय आ विदेश हेतु)
७/८/९.a.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश; b.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आ c.जीनोम मैपिंग ४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.- मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध-सम्पादन-लेखन-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा
P.S. Maithili-English Dictionary Vol.I & II ; English-Maithili Dictionary Vol.I (Price Rs.500/-per volume and $160 for overseas buyers) and Genome Mapping 450AD-2009 AD- Mithilak Panji Prabandh (Price Rs.5000/- and $1600 for overseas buyers. TIRHUTA MANUSCRIPT IMAGE DVD AVAILABLE SEPARATELY FOR RS.1000/-US$320) have currently been made available for sale.
१०.सहस्रबाढ़नि (मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक)-ISBN:978-93-80538-00-6 Price Rs.100/-(for individual buyers) US$40 (Library/ Institution- India & abroad)
११.नताशा- मैथिलीक पहिल चित्र श्रृंखला- देवांशु वत्स
१२.मैथिली-अंग्रेजी वैज्ञानिक शब्दकोष आ सार्वभौमिक कोष--गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा Price Rs.1000/-(for individual buyers) US$400 (Library/ Institution- India & abroad)
13.Modern English Maithili Dictionary-Gajendra Thakur, Nagendra Kumar Jha and Panjikar Vidyanand Jha- Price Rs.1000/-(for individual buyers) US$400 (Library/ Institution- India & abroad) COMING SOON:
I.गजेन्द्र ठाकुरक शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-
१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२
खण्ड-८
(प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग
२.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास
स॒हस्र॑ शीर्षा॒
३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह
स॑हस्रजित्
४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह
शब्दशास्त्रम्
५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक
उल्कामुख
६. त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध
नाराशं॒खसी
७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक
जलोदीप
८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह
बाङक बङौरा
९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह
अक्षरमुष्टिका
II.जगदीश प्रसाद मंकडल-
कथा-संग्रह- गामक जिनगी
नाटक- मिथिलाक बेटी
उपन्यास- मौलाइल गाछक फूल, जीवन संघर्ष, जीवन मरण, उत्थान-पतन, जिनगीक जीत
III.मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार गीत आ गीतनाद -संकलन उमेश मंडल- आइ धरि प्रकाशित मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद मिथिलाक नहि वरन मैथिल ब्राह्मणक आ कर्ण कायस्थक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद छल। पहिल बेर जनमानसक मिथिला लोक गीत प्रस्तुत भय रहल अछि।
IV.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
V.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
VI.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
VII.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ "बलचन्दा"
VIII.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
IX.मिथिलाक जन साहित्य- अनुवादिका श्रीमती रेवती मिश्र (Maithili Translation of Late Jayakanta Mishra’s Introduction to Folk Literature of Mithila Vol.I & II)
X. स्वर्गीय प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-
मिथिलाक इतिहास, शारान्तिधा, A survey of Maithili Literature
XI. मैथिली चित्रकथा- नीतू कुमारी
XII. मैथिली चित्रकथा- प्रीति ठाकुर
[After receiving reports and confirming it ( proof may be seen at http://www.box.net/shared/75xgdy37dr ) that Mr. Pankaj Parashar copied verbatim the article Technopolitics by Douglas Kellner (email: kellner@gseis.ucla.edu) and got it published in Hindi Magazine Pahal (email:editor.pahal@gmail.com, edpahaljbp@yahoo.co.in and info@deshkaal.com website: www.deshkaal.com) in his own name. The author was also involved in blackmailing using different ISP addresses and different email addresses. In the light of above we hereby ban the book "Vilambit Kaik Yug me Nibadha" by Mr. Pankaj Parashar and are withdrawing the book and blacklisting the author with immediate effect.]
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विदेह:सदेह:१ (तिरहुता/ देवनागरी)क अपार सफलताक बाद विदेह:सदेह:२ आ आगाँक अंक लेल वार्षिक/ द्विवार्षिक/ त्रिवार्षिक/ पंचवार्षिक/ आजीवन सद्स्यता अभियान।
ओहि बर्खमे प्रकाशित विदेह:सदेहक सभ अंक/ पुस्तिका पठाओल जाएत।
नीचाँक फॉर्म भरू:-
विदेह:सदेहक देवनागरी/ वा तिरहुताक सदस्यता चाही: देवनागरी/ तिरहुता
सदस्यता चाही: ग्राहक बनू (कूरियर/ रजिस्टर्ड डाक खर्च सहित):-
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दू बर्ख(२०१०-११ ई.):: INDIA रु.३५०/- NEPAL-(INR 1050), Abroad-(US$50)
तीन बर्ख(२०१०-१२ ई.)::INDIA रु.५००/- NEPAL-(INR 1500), Abroad-(US$75)
पाँच बर्ख(२०१०-१३ ई.)::७५०/- NEPAL-(INR 2250), Abroad-(US$125)
आजीवन(२००९ आ ओहिसँ आगाँक अंक)::रु.५०००/- NEPAL-(INR 15000), Abroad-(US$750)
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(ग्राहकक हस्ताक्षर)
२. संदेश-
[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]
१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिंट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाइ। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे। ..सुभाष चन्द्र यादवक कथापर अहाँक आमुखक पहिल दस पं्क्तिमे आ आगाँ हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी शब्द अछि (बेबाक, आद्योपान्त, फोकलोर..)..लोक नहि कहत जे चालनि दुशलनि बाढ़निकेँ जिनका अपना बहत्तरि टा भूर!..( स्पष्टीकरण- अहाँ द्वारा उद्घृत अंश यादवजीक कथा संग्रह बनैत-बिगड़ैतक आमुख १ जे कैलास कुमार मिश्रजी द्वारा लिखल गेल अछि-हमरा द्वारा नहि- केँ संबोधित करैत अछि। कैलासजीक सम्पूर्ण आमुख हम पढ़ने छी आ ओ अपन विषयक विशेषज्ञ छथि आ हुनका प्रति कएल अपशब्दक प्रयोग अनुचित-गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक मंतव्य क्यो चित्रगुप्त सभा खोलि मणिपद्मकेँ बेचि रहल छथि तँ क्यो मैथिल (ब्राह्मण) सभा खोलि सुमनजीक व्यापारमे लागल छथि-मणिपद्म आ सुमनजीक आरिमे अपन धंधा चमका रहल छथि आ मणिपद्म आ सुमनजीकेँ अपमानित कए रहल छथि।..तखन लोक तँ कहबे करत जे अपन घेघ नहि सुझैत छन्हि, लोकक टेटर आ से बिना देखनहि, अधलाह लागैत छनि.....ओना अहाँ तँ अपनहुँ बड़ पैघ धंधा कऽ रहल छी। मात्र सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे http://www.videha.co.in/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि आ किएक रखने छथि वा आगाँसँ दाम नहि राखथु- ई सभटा परामर्श अहाँ प्रकाशककेँ पत्र/ ई-पत्र द्वारा पठा सकै छियन्हि।- गजेन्द्र ठाकुर)... अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।
२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मे हमर उपन्यास स्त्रीधनक जे विरोध कएल गेल अछि तकर हम विरोध करैत छी।... कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल जाए।-गजेन्द्र ठाकुर)
२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।
२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।
२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।
३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।
३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।
३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।
३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।
३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।
३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।
३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।
३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।
३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।
३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।
४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।
४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रशंुसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।
४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल।
५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।
५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।
५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।
५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।
५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि। समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन् सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक’ विलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६८.श्री बृखेश चन्द्र लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल , हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक सेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।
७२. श्री हरेकृष्ण झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचना कौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मे समाजक इतिहास आ वर्तमानसँ अहाँक जुड़ाव बड्ड नीक लागल, अहाँ एहि क्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक सन किताब मैथिलीमे पहिले अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
७५.प्रोफेसर कमला चौधरी- मैथिलीमे कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक सन पोथी आबए जे गुण आ रूप दुनूमे निस्सन होअए, से बहुत दिनसँ आकांक्षा छल, ओ आब जा कऽ पूर्ण भेल। पोथी एक हाथसँ दोसर हाथ घुमि रहल अछि, एहिना आगाँ सेहो अहाँसँ आशा अछि।
विदेह
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